प्यार की खातिर- भाग -1

Ramni Motana

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुईतो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाबटैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहींमैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थेपर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

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रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होतीतो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का ताराउन का बेहद दुलारा. उस की बड़ी बहनें थींजो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थीपर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता हैतो इस में एहसान की बात कहां से आ गईपर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमनतुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओजिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखोउन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थेतो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थेतो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरेयह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिकतुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जातातो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहेजिस पर चाहेखर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

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अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थेवे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगेखूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटीमहंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरतीहाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

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आशंका: भाग 3

‘‘भैया को मांबाप से बहुत लगाव था. उन्होंने उन का कमरा जैसा था वैसा ही रहने दिया था. वे हमेशा उस कमरे में अकेले बैठना पसंद करते थे,’’ सतबीर ने जैसे सफाई दी.

इंस्पैक्टर देव फोटोग्राफर और फोरेंसिक वालों के साथ व्यस्त हो गया. फिर शोकसंतप्त परिवार से बोला, ‘‘मैं आप की व्यथा समझता हूं, लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए मुझे आप सब से कई अप्रिय सवाल करने पड़ेंगे. अभी आप लोग घर जाइए. लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं जाएगा खासकर दयानंद काका.’’

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‘‘जो हमें मालूम होगा, हम जरूर बताएंगे इंस्पैक्टर. लेकिन हम सब से ज्यादा विभोर बता सकते हैं, क्योंकि भाभी से भी ज्यादा समय भैया इन के साथ गुजारते थे,’’ सतबीर ने विभोर का परिचय करवाया.

रणबीर के शरीर को पोस्टमाटर्म के लिए ले जाने को जैसे ही ऐंबुलैंस में रखा, पूरा परिवार बुरी तरह बिलखने लगा.

‘‘आप ही को इन सब को संभालना होगा विभोर साहब,’’ विभास ने कहा.

‘‘घर पर और भी कई इंतजाम करने पड़ेंगे विभास. आप साइट का काम बंद करवा कर बंगले पर आ जाइए और कुछ जिम्मेदार लोगों को अभी बंगले पर भिजवा दीजिए,’’ विभोर ने कहा.

विभोर जितना सोचा था उस से कहीं ज्यादा काम करने को थे. बीचबीच में मशवरे के लिए उसे परिवार के पास अंदर भी जाना पड़ रहा था. एक बार जाने पर उस ने देखा कि ऋतिका और मृणालिनी भी आ गई हैं. मृणालिनी गरिमा को गले लगाए जोरजोर से रो रही थी. चेतना और सतबीर उन्हें हैरानी से देख रहे थे.

‘‘ये मेरी सास हैं और आप की मां की घनिष्ठ सहेली. यह बात कुछ महीने पहले ही उन्होंने सर को बताई थी, तब से सर अकसर उन से मिलते रहते थे,’’ विभोर ने धीरे से कहा.

‘‘हां, भैया ने बताया तो था कि मां की एक सहेली से मिल कर उन्हें लगता है कि जैसे मां से मिले हों. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वे आप की सास हैं,’’ सतबीर बोला.

‘‘विभोर साहब, बेहतर रहेगा अगर आप अपनी सासूमां को संभाल लें, क्योंकि उन के इस तरह रोने से भाभी और बच्चे और व्यथित हो जाएंगे और फिर हमें उन्हें संभालना पड़ेगा,’’ चेतना ने कहा.

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ कह कर विभोर ने ऋतिका को बुलाया, ‘‘मां को घर ले जाओ ऋतु. अगर इन की तबीयत खराब हो गई तो मेरी परेशानी और बढ़ जाएगी.’’

कुछ देर बाद ऋतिका का घर से फोन आया कि मां का रोनाबिलखना बंद ही नहीं हो रहा, ऐसी हालत में उन्हें छोड़ कर वापस आना वह ठीक नहीं समझती. तब विभोर ने कहा कि उसे आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वहां कौन आया या नहीं आया देखने की किसी को होश नहीं है.

एक व्यक्ति के जाने से जीवन कैसे अस्तव्यस्त हो जाता है, यह विभोर को पहली बार पता चला. सतबीर और गरिमा ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि रणबीर ने जो प्रोजैक्ट शुरू कराए थे, उन्हें उस की इच्छानुसार पूरा करना अब विभोर की जिम्मेदारी है. उन दोनों को भरोसा था कि विभोर कभी कंपनी या उन के परिवार का अहित नहीं करेगा. विभोर की जिम्मेदारियां ही नहीं, उलझनें भी बढ़ गई थीं.

रणबीर की मृत्यु का रहस्य उस के मोबाइल पर मिले अंतिम नंबर से और भी उलझ गया था. वह संदेश एक अस्पताल के सिक्का डालने वाले फोन से भेजा गया था और वहां से यह पता लगाना कि फोन किस ने किया था, वास्तव में टेढ़ी खीर था. पहले दयानंद के कटाक्ष से लगा था कि वह गरिमा के खिलाफ है और शायद गरिमा रणबीर की अवहेलना करती थी, लेकिन बाद में दयानंद ने बताया कि वैसे तो गरिमा रणबीर के प्रति संर्पित थी बस उस की नियमित सुबह की सैर या दिवंगत मातापिता के कमरे में बैठने की आदत में गरिमा, बच्चों व सतबीर की कोई दिलचस्पी नहीं थी. दयानंद के अनुसार यह सोचना भी कि सतबीर या गरिमा रणबीर की हत्या करा सकते हैं, हत्या जितना ही जघन्य अपराध होगा.

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मामला दिनबदिन सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा था. इंस्पैक्टर

देव का कहना था कि विभोर ही रणबीर के सब से करीब था. अत: उसे ही सोच कर बताना है कि रणबीर के किस के साथ कैसे संबंध थे. रणबीर की किसी से दुश्मनी थी, यह विभोर को बहुत सोचने के बाद भी याद नहीं आ रहा था और अगर किसी से थी भी तो उस की पहुंच रणबीर के रिवौल्वर तक कैसे हुई? इंस्पैक्टर देव का तकाजा बढ़ता जा रहा था कि सोचो और कोई सुराग दो.

दीवार: भाग 3

एक शाम वह औफिस से लौटा तो जया को देख कर हैरान रह गया.

‘‘तुम आज औफिस से जल्दी कैसे आ गईं, जया?’’

‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं,’’ जया ने बताया, ‘‘जा ही रही थी कि मुरली हड़बड़ाया हुआ आया कि अंकल अपने औफिस की लिफ्ट में फंस गए हैं. केबल टूटने की वजह से 9वीं मंजिल से लिफ्ट नीचे गड्ढे में जा कर गिरी है…’’

‘‘ओह नो, अब अंकल कैसे हैं, जया?’’ राहुल ने घबरा कर पूछा.

‘‘खतरे से बाहर हैं, आईसीयू से निजी कमरे में शिफ्ट कर दिए गए हैं लेकिन  1-2 रोज अभी औब्जरवेशन में रखेंगे.’’

‘‘और मुरली भी रहेगा ही…’’

‘‘मुरली नहीं, रात को अंकल के पास तुम रहोगे राहुल. अंकल को नौकर की नहीं किसी अपने की जरूरत है.’’

‘‘मुझे दूसरी जगह सोना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं तो जाने से रहा,’’ राहुल ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘तो फिर मैं चली जाती हूं. अंकल को किराए के लोगों के भरोसे तो छोड़ने से रही. वैसे भी औफिस से तो मैं ने छुट्टी ले ही ली है इसलिए जब तक अंकल अस्पताल में हैं मैं वहीं रहूंगी,’’ जया ने अंदर जाते हुए कहा, ‘‘मुरली आए तो उसे रुकने को कहना है, मैं अपने कपड़े ले कर आती हूं.’’

राहुल ने लपक कर उस का रास्ता रोक लिया.  ‘‘मगर क्यों? क्यों जया, उन के लिए इतना दर्द क्यों?’’ राहुल ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्या लगते हैं वह तुम्हारे?’’

‘‘मेरे ससुर लगते हैं क्योंकि वह तुम्हारे बाप हैं,’’ जया के स्वर में भी व्यंग्य था, ‘‘आनंद उन की जाति नहीं नाम है और डीए आनंद का पूरा नाम असीम आनंद धूत है.’’  राहुल हतप्रभ रह गया. हलके से दिया गया झटका भी जोर से लगा था.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘अचानक ही पता चल गया. 7-8 सप्ताह पहले अहमदाबाद से लौटते हुए प्लेन में मेरी बराबर की सीट पर एक प्रौढ़ दंपती बैठे थे, वार्तालाप तो होना ही था. यह सुन कर मैं स्टार टावर्स में रहती हूं, महिला ने अपने पति से कहा, ‘तुम्हारे धूर्तानंद भी तो अब वहीं रहते हैं.’

‘‘पति रूठे अंदाज में बोला, ‘तुम सब की इस धूर्तानंद कहने की आदत से चिढ़ कर असीम डीए आनंद बन गया मगर तुम ने अपनी आदत नहीं बदली.’  ‘‘‘वह तो उन्होंने विदेश जा कर उपनाम पहले लिखने का चलन अपनाया था और यहां लौट कर गुस्साए ससुराल वालों और बीवीबच्चों से छिपने के लिए वही अपनाए रखा लेकिन एक बात समझ नहीं आई, मेफेयर गार्डन में बैंक से मिली बढि़या कोठी छोड़ कर वे स्टार टावर्स के फ्लैट में रहने क्यों चले गए?’ पत्नी ने पूछा.

‘‘‘जिन बीवीबच्चों से बचने को नाम बदला था अब जीवन की सांध्य बेला में उन की कमी महसूस हो रही है इसलिए यह पता चलते ही कि एक बेटा स्टार टावर्स में रहता है, ये भी वहीं रहने चला गया, कहता है कि अपनी असलियत उसे नहीं बताएगा, दूर से ही उसे आतेजाते देख कर खुश हो लिया करेगा.’

‘‘‘खुशी मिल रही है कि नहीं?’

‘‘‘क्या पता, मेफेयर गार्डन में रहता था तो गाहेबगाहे मुलाकात हो जाती थी. स्टार टावर्स से न उसे आने की और न हमें जाने की फुरसत है.’

‘‘मेरे लिए इतना जानना ही काफी था और तब से मैं उन का यथोचित खयाल रखने लगी हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने मुझ से यह क्यों छिपाया?’’

‘‘क्योंकि सुनते ही तुम अंकल की खुशी को नष्ट कर देते. अभी भी मजबूरी में बताया है. एकदम असहाय और असमर्थ से लग रहे अंकल के चेहरे पर मुझे देख कर जो राहत और खुशी आई थी, वह मैं उन से कदापि नहीं छीनूंगी और न ही अपने और तुम्हारे बीच में शक या नफरत की दीवार को आने दूंगी,’’ जया ने दृढ़ स्वर में कहा.  ‘‘अब तुम्हारेमेरे बीच शक की कोई दीवार नहीं रहेगी जया और न ही बापबेटे के बीच नफरत की…’’

‘‘और न इन दोनों फ्लैट को अलग करने वाली यह दीवार,’’ जया ने बात काटी.  ‘‘हां, यह भी नहीं रहेगी, बिलकुल, पर अभी तो मैं पापा के साथ अस्पताल में रहूंगा और वहां से आने के बाद पापा हमारे साथ ही रहेंगे,’’ राहुल का स्वर भी दृढ़ था.

शैतान : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

शैतान भाग 1 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

8 महीने पहले रानिया जब उस शानदार कोठी में नौकरी के लिए आई थी, तब उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह उस कोठी की मालकिन भी बन सकती है. दरअसल अखबार में 3 साल की एक बच्ची की देखभाल के लिए आया के लिए एक विज्ञापन छपा था. रानिया को काम की जरूरत थी, इसलिए वह आया की नौकरी के लिए उस कोठी पर पहुंच गई थी, जिस का पता अखबार में छपे विज्ञापन में दिया था. कोठी के गेट के पास बने केबिन में बैठे गार्ड ने रानिया को रोक कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने की खबर मेमसाहब को दे आता हूं, जब वह बुलाएंगी, तब तुम अंदर चली जाना.’’

रानिया केबिन में पड़े स्टूल पर बैठ गई थी. गार्ड खबर देने कोठी के अंदर चला गया था. रानिया को बच्चों की देखभाल करने का कोई तजुर्बा नहीं था. और तो और, घर में भाई का जो बच्चा था, उसे भी वह कम ही लेती थी.

कुछ देर बाद कोठी से एक दूसरा गार्ड आया और उस ने रानिया को अपने साथ मेमसाहब के कमरे तक पहुंचा दिया. रानिया कमरे में दाखिल हुई तो वहां बैठी महिला ने उस का मुसकरा कर स्वागत किया. वह देखने में बीमार लग रही थी.

दुबलीपतली उस महिला के चेहरे की पीली रंगत, अंदर धंसी बेनूर आंखें और पास की टेबल पर रखी दवाएं इस बात का सबूत थीं.

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उस महिला ने रानिया से सर्टिफिकेट मांगे. सर्टिफिकेट देखने के बाद उस ने कहा, ‘‘मिस रानिया फारुखी, आप को बच्ची की देखरेख करने का तो कोई तुजर्बा है नहीं, इस समय आप जहां काम कर रही हैं, वह कंपनी बहुत अच्छी है. नौकरी भी आप की योग्यता के मुताबिक है. इस के बावजूद आप आया की नौकरी क्यों करना चाहती हैं?’’

रानिया कुछ देर उसे खामोशी से देखती रही. उस के बाद सकुचाते हुए बोली, ‘‘दरअसल मैडम, रिहाइश का मसला है. मेरे भाई मुल्क से बाहर हैं, भाभी भी उन के पास जाना चाहती हैं, पर वह मुझे अकेली छोड़ना नहीं चाहतीं. मेरी वजह से वह भाई के पास नहीं जा पा रही हैं. मैं उन के रास्ते की रुकावट बन रही हूं. अगर मुझे रहने की यहां मुनासिब जगह मिल गई तो भाभी भाई के पास चली जाएंगी. अगर मैं आप के पास रहूंगी तो उन दोनों को मेरी तरफ से कोई चिंता नहीं रहेगी.’’

महिला कुछ सोच कर बोली, ‘‘मेरा नाम सोनिया है, मेरे शौहर का नाम अरसलान है. हमारी 3 साल की बच्ची फिजा है. तुम कितने भाईबहन हो?’’

‘‘हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी बहन की शादी अम्मा अपनी मौत से पहले कर गई थीं. उन से 2 साल छोटे अजहर भाई हैं, जो बाहर हैं. उन से 5 साल छोटी मैं हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी मजबूरी को देखते हुए तुम्हें नौकरी दे सकती हूं, पर मेरी एक शर्त है…’’

‘‘कैसी शर्त मैडम?’’ रानिया जल्दी से बोली.

‘‘रानिया, तुम्हें एक बांड भरना होगा, जिस के अनुसार एक साल से पहले तुम नौकरी नहीं छोड़ सकोगी. अगर उस से पहले नौकरी छोड़ोगी तो तुम्हें 5 लाख रुपए भरने होंगे. तुम इस बारे में अच्छे से सोच कर कल मुझे जवाब देना.’’

इस बीच चायनाश्ता आ गया. सोनिया ने उसे चायनाश्ता करने को कहा. चायनाश्ता कर के रानिया खड़ी हो कर बोली, ‘‘मैडम, कल मैं अपने सामान के साथ हाजिर हो जाऊंगी. अब मैं चलती हूं, वरना देर होने पर भाभी शक करेंगी.’’

रानिया खड़ी ही हुई थी कि एक बेहद खूबसूरत मर्द एक बच्ची के साथ उस कमरे में दाखिल हुआ. रानिया ने एक नजर प्यारी सी बच्ची पर डाली, उस के बाद उस की आंखें उस खूबसूरत मर्द पर जम गईं. सोनिया ने उस आदमी का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रानिया, यह मेरे शौहर अरसलान हैं, और यह मेरी बच्ची फिजा. अरसलान, मैं ने रानिया को अपनी बेटी की देखभाल के लिए रख लिया है.’’

अरसलान ने उचटती सी नजर रानिया पर डाली. उस के बाद सोनिया से बोला, ‘‘जैसा आप का दिल चाहे.’’

सोनिया ने बच्ची से कहा, ‘‘बेटा, यह आप की आंटी हैं. अब यह आप के साथ रहेंगी.’’ खुश हो कर बच्ची ने रानिया का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आंटी, आप मेरे साथ रहेंगी न?’’

‘‘हां बेटा, अब मैं आप के ही साथ रहूंगी.’’ कह कर रानिया ने उसे गोद में उठा लिया.

सोनिया ने पति से कहा, ‘‘अगर तुम गुलशन इकबाल की तरफ जा रहे हो तो रानिया को चौरंगी पर छोड़ देना.’’

‘‘कोई बात नहीं. 2 मिनट लगेंगे, बस.’’ अरसलान ने अनमने ढंग से कहा.

रानिया ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

सोनिया ने कहा, ‘‘नहीं, देर हो गई है. तुम्हें अरसलान छोड़ देंगे. फिर कल सवेरे तुम्हें आना भी तो है.’’

अरसलान ने फटाफट गैरेज से गाड़ी निकाली और रानिया को बैठाया. जैसे ही कार गेट से बाहर निकली, अरसलान का मूड ठीक हो गया. वह रानिया को देखते हुए बोला, ‘‘पता नहीं सोनिया ने तुम्हें काम पर कैसे रख लिया? वह तो खूबसूरत लड़कियों से चिढ़ती है. उसे तो बूढ़ी औरतें ही पसंद आती हैं. पता नहीं तुम पर वह  मेहरबान है, बहुत शक्की है वह.’’

रानिया के दिमाग में एक सवाल आया. उस ने पूछा, ‘‘वैसे मेमसाहब को हुआ क्या है. वह बीमार सी लगती हैं?’’

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अरसलान ने रानिया को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘शादी के बाद डाक्टरों ने मना किया था कि वह मां न बने, लेकिन उस ने किसी की बात नहीं मानी. नतीजा यह निकला कि उस की यह हालत हो गई. अब उस की बीमारियों से लड़ने की ताकत खत्म हो गई है.’’

‘‘आखिर, ऐसा क्या हुआ है?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘देखा जाए तो सोनिया अपने किए का फल भोग रही है. उस ने रूही के साथ जो किया, वही उस के साथ हो रहा है.’’

‘‘यह रूही कौन है, उस के साथ क्या किया था उन्होंने?’’ रानिया ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘रूही मेरी मंगेतर थी. हम एकदूसरे को बहुत चाहते थे, पर बीच में सोनिया आ टपकी. एक दिन रूही और उस के भाई का किडनैप हो गया. फिरौती की रकम 50 लाख मांगी गई. हम इतने पैसे नहीं दे सकते थे. हम ने सोनिया से मदद मांगी. उस ने हमारी मदद तो की, पर रूही लुटपिट कर घर वापस आई. उस ने उसी रात खुदकुशी कर ली.’’ अरसलान ने दुखी मन से कहा.

‘‘यह किडनैप किस ने किया था?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘सोनिया के पिता ने और किस ने.’’ उस ने कहा, ‘‘बाप ने अगवा करवाया और बेटी पैसे ले कर मदद को आ गई. देखो रानिया, इंसान की करनी का फल यहीं मिल जाता है. सोनिया की बीमारी की खबर जब उस के पिता को मिली तो वह हार्टअटैक से मर गया.’’

‘‘क्या सोनिया मैम की बीमारी का कोई इलाज नहीं है?’’

‘‘डाक्टर उम्मीद तो दिलाते हैं, पर सब बेकार है. मैं सोनिया को यकीन तो दिलाता हूं कि उस के सिवा मेरी जिंदगी में कोई नहीं है, पर वह पूरे वक्त शक करती है, अपने मुखबिर मेरे पीछे लगाए रखती है.’’ अरसलान इतना ही कह पाया था कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से सोनिया की आवाज आई. वह पूछ रही थी, ‘‘रानिया को छोड़ दिया क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे चौरंगी पर उतार दिया.’’ फोन बंद कर के उस ने कहा, ‘‘देखो, उसे तुम पर भी यकीन नहीं है. मैं ने कह दिया, उसे चौरंगी उतार दिया है. उसे पता नहीं है कि मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास ही उतारूंगा.’’

‘‘अरे नहीं, आप मेरी वजह से परेशान न हों. मैं चौरंगी से चली जाऊंगी.’’ रानिया ने कहा.

‘‘इस में परेशानी वाली कोई बात नहीं है. अब यहां से तुम्हारा घर रह ही कितनी दूर गया है.’’ अरसलान ने कहा.

कुछ देर में कार रानिया के घर के पास पहुंच गई तो वह उस का शुक्रिया अदा कर के कार से उतर कर अपने घर चली गई. रानिया ने उस से भी अपने घर चलने को कहा था, पर वह फिर कभी आने की बात कह कर चला गया था.

रानिया चहकती हुई अपने घर पहुंची तो भाभी का मूड ठीक नहीं था. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘इतनी देर क्यों हुई?’’

रानिया जल्दी से बोली, ‘‘भाभी, मैं एक नई नौकरी के इंटरव्यू के लिए गई थी. बहुत अच्छी जौब है. सैलरी भी अच्छी है. मेरे वहां नौकरी करने से आप की एक बड़ी समस्या हल हो जाएगी.’’

भाभी ने उसे हैरानी से देखा तो वह जल्दी से बोली, ‘‘हां भाभी, मुझे मिसेज सोनिया ने अपनी 3 साल की बच्ची की देखरेख के लिए रख लिया है. अच्छी सैलरी के साथ रिहाइश, खानापीना सब फ्री है. वह 30-35 साल की बहुत अच्छी महिला हैं, बच्ची की देखरेख के लिए मुझे रखा है.’’

‘‘लेकिन तुम्हें यह काम करने का कोई अनुभव नहीं है.’’

‘‘भाभी, बच्चे प्यार व खिदमत के भूखे होते हैं. मैं यह कर लूंगी. मुझे कल 10 बजे अपना सामान ले कर जाना है. मैं आप को वहां का पता वगैरह दे दूंगी.’’

भाभी के रजामंद होने पर रानिया बेहद खुश हुई.

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अरसलान के साथ रहने के बारे में सोच कर ही रानिया का दिल धड़कने लगा. अरसलान की बातों से उसे लगा था कि अब सोनिया ज्यादा नहीं जिएगी. उस ने बीमार सोनिया की तो देखभाल की ही, साथ ही उस की बेटी फिजा को भी बहुत प्यार दिया. करीब 8 महीने बाद सोनिया की मौत हो गई. इन 8 महीनों में सोनिया ने अरसलान की हर बात उसे बता दी थी.

उस की मौत से 3 दिन पहले की बात थी. उस दिन सोनिया की तबीयत ज्यादा खराब थी. रानिया सोनिया के पास ही थी. तभी एक नौकरानी ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘रानिया बीबी, आप को साहब ड्राइंगरूम में बुला रहे हैं.’’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

नशा बिगाड़े दशा – भाग 2 : महेश की हालत कैसी थी

उस के पिता के पास जमीन नहीं थी, जो छुईखदान में यहांवहां मेहनतमजूरी किया करते थे, पर महेश लफंगई व गुंडई करता था. महेश अपने घर का एकलौता लड़का था. लाड़प्यार में पला था. उस के पीछे एक बहन थी.

महेश अपने सरीखे लुच्चे यारों के साथ कभीकभार दारू पी लेता था और मातापिता के मना करने पर उन्हीं से लड़ पड़ता था कि शराब पीने के लिए रोकोगेटोकोगे, तो मेरा मुंह न देख सकोगे. मैं घर से भाग जाऊंगा.जब महेश ने देखा कि सीमा छुईखदान छोड़ कर राजनांदगांव रहने लगी है, तब उस ने राजनांदगांव में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में जैसेतैसे अपने लिए काम ढूंढ़ा और किराए का एक कमरा ले कर आउटर में रहने लगा.

अब वे 2 प्रेमी अकसर मिलने लगे. कभी पार्क में, तो कभी रत्नागिरी पहाड़ी में. कभी रेलवे स्टेशन में, तो कभी बसस्टैंड में. कभी ओवरब्रिज के नीचे, तो कभी रानी सागर के किनारे. कभी सिनेमाघर में, तो कभी बाजार में. मिलन के दरमियान वे मीठीमीठी बातें किया करते थे और जिंदगीभर साथ निभाने का वादा करते थे.

 

जब सीमा को लगा कि इस से उस की पढ़ाईलिखाई पर बुरा असर पड़ रहा है और वह सब की निगाह में आने लगी है, तब उस ने महेश से मिलनाजुलना कम कर दिया और किसी न किसी बहाने उसे टरकाने लगी.यह बात महेश को नागवार गुजरने के साथसाथ झटका देने वाली थी. वह सीमा की मजबूरी को न समझ कर उस पर शक करने लगा कि वह जरूर किसी दूसरे लड़के के चक्कर में पड़ गई है और उस से पीछा छुड़ा रही है.

यहां तक कि महेश शक के मारे सीमा की रैकी करने लगा. एक दिन उस के शक्की दिमाग में शक का बीज पड़ ही गया. उस ने देखा कि सीमा वाकई किसी दूसरे लड़के की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहीं जा रही है.

महेश ने रात को शराब के नशे में फोन पर सीमा को धमकी दी, ‘‘मुझे धोखा देने का अंजाम बुरा होगा सीमा.’’

सीमा सफाई देती रही, ‘‘वह लड़का मेरे भाई का दोस्त है, जो मुझे अपने घरपरिवार के लोगों से मिलाने के लिए ले गया था.’’

यहां बात आईगई हो गई, पर उस के दिमाग में शक का जो कीड़ा पड़ गया था, वह रहरह कर कुलबुलाने लगा.

एक दिन उस ने सीमा को परखने के लिए वीरान रत्नागिरी पहाड़ी पर बुलाया और वहां गम कम करने के लिए पहली बार छक कर दारू पी.

लेकिन अफसोस, सीमा वहां नहीं पहुंची. उस का जरूरी पेपर और लैब टैस्ट जो था. इस से महेश आपे से बाहर हो गया. चीखनेचिल्लाने लगा. अपना माथा पीटने लगा.

अब महेश का शक यकीन में बदल चुका था. जब नशा उतरा, तब समझ में आया कि यहां नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? लिहाजा, खुद को संभालते हुए उस ने सीमा को फोन लगाया.

इस पर सीमा ने सफाई दी, ‘‘लैब टैस्ट जरूरी था. यह मेरे कैरियर का सवाल है. मिलनामिलाना तो बाद में भी होता रहेगा.’’

बात को यहीं खत्म करते हुए सीमा ने अगले दिन रत्नागिरी पहाड़ी पर शाम को 4 बजे मिलने का वादा किया और फोन झटपट रख दिया.

सीमा के ऐसे बेगानेपन से महेश के दिल को फिर गहरी ठेस लगी. अब उस का शंकालु कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने जीभर कर शराब पी और उस से निबटने की योजनाएं बनाने लगा.

अगले दिन महेश सुनसान पहाड़ी पर समय से पहले पहुंच गया और आदतन अपना गला तर कर लिया. वह पूरी बोतल इस कदर गटक गया कि अपना आपा खो बैठा.

सीमा को वक्त पर पहुंचने में देर हो गई. जब वहां पहुंची, तब महेश नशे में धुत्त हो चुका था. उस की आंखें लाल हो गई थीं, जिस में उस की नाराजगी साफ झलक रही थी.

महेश सीमा को सजीधजी देख कर शक के मारे आगबबूला हो उठा कि यह किसी और से मिल कर आ रही है और उस के साथ गेमबाजी कर रही है. वह उसे भलाबुरा कहने लगा, गालियां देने लगा, उस के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगा. यहां तक कि वह नशे में उस को देख लेने की धमकियां देने लगा. इस से उन दोनों में तीखी नोकझोंक व हाथापाई हो गई.

तभी सीमा ने महेश के चंगुल से निकलते हुए उसे झटका और पूरी ताकत से धकेल दिया. वह मदहोशी में पटकनी खाते हुए पथरीली जमीन पर औंधे मुंह गिर पड़ा. सीमा रोतीबिलखती वहां से जाने लगी.

सीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. महेश ने घायल शेर की तरह जमीन पर गिरेगिरे ही एक वजनी पत्थर उठाया, पलटा, बैठा और गुस्से से सीमा के सिर पर ‘तेरी तो…’ कहते हुए जोर से दे मारा.

अचानक लगी तेज चोट से सीमा ने ‘ओह मां’ कहते हुए अपना सिर पकड़ लिया. वह लड़खड़ाई और एक पत्थर पर गिर कर बेहोश हो गई.महेश बदहवास वहीं बैठ गया. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. कुछ देर वह वहीं मायूस बैठा रहा और सीमा की मौत का मातम मनाता रहा.महेश ने सीमा को अस्पताल ले जाने के बजाय 2 बड़े पत्थरों की आड़ में लिटाया और वहां से चलता बना.महेश ने सीमा के मोबाइल फोन से उस के घर वालों और पुलिस को मैसेज भेज दिया कि वह अपनी मरजी से किसी के साथ जा रही है. उसे ढूंढ़ने की कोशिश न की जाए.

दूसरे दिन महेश रत्नागिरी पहाड़ी पर उस जगह पर पहुंचा, जहां हादसा हुआ था. उस के होश फाख्ता हो गए, क्योंकि सीमा वहां नहीं थी. क्या उसे जंगली जानवर उठा कर ले गए या शहरी कुत्ते खा गए? अगर ऐसा होता, तो उस के कुछ निशान तो जरूर मिलते. वह होश में आ कर कहीं चली तो नहीं गई?

इस के बाद महेश डरासहमा सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. उधर सीमा के घर वाले जब मोबाइल फोन पर सीमा से संपर्क करने लगे, तो उस का फोन बंद बताने लगा.

उन्होंने घटना के दूसरे दिन छुईखदान थाने में एफआईआर दर्ज कराई कि उन की बेटी लापता हो गई है. इस के लिए महेश जिम्मेदार हो सकता है, क्योंकि सीमा और उस को राजनांदगांव में कई जगह देखा गया था.

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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नशा बिगाड़े दशा – भाग 1 : महेश की हालत कैसी थी

आज आधी रात को नशे में टुन्न हो कर महेश किराए के कमरे में पहुंचा ही था कि झमाझम बारिश होने लगी. हवा सांयसांय ऐसे चलने लगी, मानो खिड़कीदरवाजा तोड़ डालेगी.

गरज व चमक इस कदर बढ़ गई, जैसे गाज अभी के अभी और यहीं गिर पड़ेगी. ऐसे में सीमा के साथ हुए हादसे से उस के जेहन में खौफ समा गया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहाने लगीं.

जैसे ही महेश ने दरवाजे का ताला खोलने के लिए चाबी निकाली, वैसे ही वह चकरा गया और वह बड़बड़ाया, ‘‘अरे, ताला कहां गया? मैं ने तो ताला लगाया था, तभी तो चाबी मेरी जेब में है…’’ वह दिमाग पर जोर दे कर गुत्थी सुलझा ही रहा था कि हवा का एक तेज झोंका आया, जो उसे धकियाते हुए कमरे के अंदर ले गया.

महेश तुरंत पलटा और किवाड़ बंद करने की कोशिश की, पर हवा समेत पानी की बौछार इतनी तेज थी कि वह उसे बमुश्किल बंद कर पाया.

‘ओह, मेरे मन में इतना भरम कैसे समा गया है कि मैं ने किवाड़ पर ताला लगाया था या नहीं, भूल गया हूं?’’ महेश ने हांफतेहांफते अपनेआप से कुढ़ कर सवाल किया

महेश अक्खड़ और पियक्कड़ था. रंगरूप का कालाकलूटा बैगन लूटा. तन की तरह उस का मन भी काला. ऊपर से शराब पीपी कर खुद को ब्लड प्रैशर का मरीज बना लिया.

सीमा की मौत से उपजी फिक्र में अमनचैन व भूखप्यास उड़ जाने से महेश मरियल सा दिखने लगा था मानो उस का खून किसी ने चूस लिया हो.

भी हवापानी से नशा हिरन हो गया, तो उसे फिर दारू की तलब हुई. उस ने टेबल से देशी दारू का पौआ उठाया और दो घूंट हलक के नीचे उतारीं.

सीमा की मौत के बाद महेश एक महीने से सो नहीं सका था, इसीलिए आज की रात सोना चाह रहा था. पर, वह बिस्तर में गया ही था कि बिजली गुल हो गई. हवा का तेजी से सरसराना और बिजली का चले जाना, एकसाथ ऐसे हुआ कि महेश के जेहन में सुरसुरी दौड़ गई. वह सन्न रह गया. उस के रोंगटे खड़े हो गए.

बिजली जब गई, तब ट्रांसफार्मर में जोरदार धमाका हुआ मानो किसी ने उसे बम से उड़ा दिया हो. महेश बिस्तर से उठा. खिड़की से बाहर झांका. बाहर अंधेरा दिखा. कमरे में भी अंधियारा इस कदर छा गया कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था.बाहर आकाशीय बिजली का चमकना बदस्तूर जारी था. महेश ने अंधेरे में तकिए के पास अपना मोबाइल फोन टटोला, जो उसे नहीं मिला. तभी उसे याद आया कि मोबाइल फोन तो शायद टेबल पर रखा है.‘वाह रे भुलक्कड़…’ महेश मन ही मन बोला और उसे टटोलटटोल कर ढूंढ़ने लगा. मोबाइल मिला, तो वह उस की टौर्च औन कर ही रहा था कि उसे घुप्प अंधेरे में एहसास हुआ कि कोई लड़की ‘हूं…’ कहते हुए जबरदस्ती उस की गरदन पर सवार हो रही है.

अनदेखी लड़की का वजन इतना भारी था कि महेश उसे झटका दे कर दूर करने की कोशिश में खुद ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा.

‘‘बाप रे…’’ कहते हुए महेश थरथर कांप उठा, ‘‘यह कौन बला है, जो मेरे ऊपर चढ़ाई कर रही है?’’

महेश डर के मारे बाएं हाथ में मोबाइल फोन ले कर तेजी से बैडरूम से बाहर निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि चौखट से मोबाइल फोन टकराया और छिटक कर दूर जा गिरा.

फोन लेने के लिए महेश झुक ही रहा था कि दाएं हाथ की कुहनी दरवाजे के कुंदे से इस कदर टकराई कि वह पीड़ा से कहर उठा, ‘‘हाय मां, मर गया मैं…’’

महेश ने जैसेतैसे मोबाइल फोन उठाया और मोमबत्ती व माचिस के लिए किचन की ओर खिसक रहा था कि बाथरूम से खौफनाक आवाजें सुनाई दीं, ‘हों… हं… हों…हं… हों…हं… मैं तुझे खा जाऊंगी. तेरा जीना हराम कर दूंगी.’

महेश घबरा गया. उस का दिमाग सुन्न हो गया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. उसे चोर की दाढ़ी में तिनके की तरह महसूस हुआ कि यह कोई और नहीं, बल्कि सीमा की आत्मा है, जो उसे तंग कर रही है. अब उस की खैर नहीं. वह उसे बेमौत मार डालेगी.

रात इतनी गहरी हो गई थी कि पड़ोसियों को जगाया नहीं जा सकता था. अगर महेश उन्हें जगाता भी है, तो उसी की पोलपट्टी खुलने का डर है.

दूर खंडहरनुमा मकान से आवारा कुत्तों व बिल्लियों के रोने की तीखी आवाजें आ रही थीं. महेश ने सुन रखा था कि कुत्ते व बिल्ली का यों रोना, वह भी आधी रात को, किसी अनहोनी आफत से कम नहीं होता है

तभी वही डरावनी आवाज किचन से घरघराई, ‘मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगी.’

‘‘बाप रे बाप, वही भयावह आवाज…’’ बड़बड़ाते हुए महेश का रोमरोम थर्रा उठा. उस ने अपना सिर धुन लिया और बोला, ‘‘मुझे मदहोशी में सीमा को जान से नहीं मारना चाहिए था. आखिर वह मेरे बचपन की गर्लफ्रैंड थी. जवानी में भी मुझ पर जान छिड़क रही थी. अचानक मैं हैवान कैसे बन गया?

‘‘भले ही मैं उस पर शक कर रहा था, लेकिन शक का यह बादल धीरेधीरे छंट भी सकता था. कमबख्त नशे ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा…’’

मरता क्या न करता, महेश ने कांपते हाथों से मोबाइल फोन की टौर्च को औन किया. माचिस व मोमबत्ती ढूंढ़ी. जैसेतैसे उसे जलाया, पर पलभर बाद तेज हवा से वह बुझ गई.महेश को लगा कि मोमबत्ती बुझी नहीं, बल्कि उसे तेज झोंकों से बुझा दिया गया है. ऐसा काम कोई और

नहीं, बल्कि सीमा की रूह ही कर सकती है. लगता है, वह उसे छोडे़गी नहीं और तड़पातड़पा कर मार डालेगी.

महेश बेहाल सा कुरसी पर धम्म से बैठ गया. आज की रात भी उस की नींद उड़ चुकी थी. उस के दिलोदिमाग में सीमा के साथ घटी घटना आईने की तरह उभरने लगी.

महेश व सीमा छुईखदान से थे. वे बालपन से साथसाथ पढ़े थे. जवानी में सीमा इकहरे बदन की हुस्न की मलिका बन गई थी. उसे देखदेख कर आवारा लड़के आहें भरा करते थे, पर वह महेश को छोड़ कर किसी दूसरे को चारा नहीं डालती थी.

सीमा अपने घर की बड़ी बेटी थी. भाई उस से छोटा था. उस के पिता छुईखदान में दारोगा थे. सीमा को नर्स बनने की दिली इच्छा थी. वह नर्सिंग प्रवेश परीक्षा दे कर उस में चुन ली गई थी. वजह, वह पढ़ाईलिखाई में होशियार थी और अपना मकसद हासिल करने की खातिर मेहनत करना जानती थी.

राजनांदगांव के नर्सिंग स्कूल में सीमा को एडमिशन मिल जाने से वहां किराए का कमरा ले कर चिखली में रहने लगी. सीमा का नर्सिंग में दाखिला हो जाने से महेश काफी परेशान रहने लगा. वजह, वह बस 9वीं पास था और 10वीं में फेल हो गया था, जबकि सीमा हायर सैकंडरी पास हो चुकी थी.जोबन की धनी, सुधा जैसी संगिनी हाथ से निकल न जाए, यही सोचसोच कर महेश का दिमाग बौराने लगा था.

बरसों की साध: भाग 3

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

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प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

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इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

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इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

प्रतिदिन: भाग 2

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

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‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

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‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

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