बच्चे के लिए बच्ची की बली- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

उस दिन नवंबर, 2020 की 15 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. तभी थाना घाटमपुर प्रभारी इंसपेक्टर राजीव सिंह को नरबलि की खबर मिली. यह खबर भदरस गांव के किसी व्यक्ति ने उन के मोबाइल फोन पर दी थी. उस ने बताया कि दीपावली की रात गांव के करन कुरील की 7 वर्षीय बेटी श्रेया उर्फ भूरी की बलि दी गई है. उस की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी है.

खबर पाते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोसपड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैंकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. थानाप्रभारी राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी फिर जांच में जुट गए.

श्रेया उर्फ भूरी की नग्न लाश भद्रकाली मंदिर के समीप नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता करन कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी माया कुरील दहाडें़ मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

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मासूम का पेट किसी नुकीले व धारवाले औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं.

मासूम श्रेया के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैर लाल रंग से रंगे थे. देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पल, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला.

थानाप्रभारी सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया है, वह जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी.

अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए. उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मासूम बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे.

एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड टीम भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी मासूम के खून के अंश व उस की चप्पल खोजी कुतिया को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर रुक गई.

टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस वह आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी.

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्रेया के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया गया.

उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया.

उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ‘सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौड़ने लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे. मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्पलीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी.

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मासूम के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद श्रेया का शव उस के पिता करन कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहीद के साथ नवनिर्वाचित विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका श्रेया के पिता करन कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया.

चैक लेते समय करन व उन की पत्नी माया की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नर पिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्क आउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने श्रेया को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था.

अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की लेकिन अंकुल नहीं टूटा.

आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम श्रेया की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी.

उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर करन की बेटी श्रेया को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वह गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने उस के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ला कर दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए. ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था.

बच्चे के लिए बच्ची की बली- भाग 2

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इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए, फिर हम लोग घर चले गए.

16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था.

उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही श्रेया की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निसंतानों के बच्चे हो जाते हैं. वह भी निसंतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था.

चूंकि सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. अत: थानाप्रभारी राजीव सिंह ने मृतका के पिता करन कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया. पुलिस जांच में एक ऐसे दंपति की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने अंधविश्वास में पड़ कर संतान पाने की चाह में एक मासूम के कलेजे की सुपारी दी और उसे खा भी लिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. परशुराम कुरील इसी दलित बाहुल्य इस गांव में रहता था. लगभग 10 साल पहले उस की शादी सुनयना के साथ हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था. वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था.

भदरस और उस के आसपास के गांव में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है. जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है.

बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुर्गे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं.

इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकड़जाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या दो बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था.

दरअसल, सुनयना की शादी को 10 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया. लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों व मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी.

तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए. लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी रही.

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक काम में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी. क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था.

परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के जन्मदिन, मुंडन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे सामाजिक पीड़ा होती थी. सामाजिक अवहेलना से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. 10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बा के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई.

तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह उपाय कर सके.

‘‘कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

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‘‘यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

‘‘ठीक है बाबा. मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा.

उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक पुस्तक हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था.

परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ‘‘विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

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बच्चे के लिए बच्ची की बली- भाग 3

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अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बालिका का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है.

अंकुल, परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था.

अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ‘‘अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

‘‘वह कैसे चाची?’’

‘‘इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगे तो हमारे घर में खुशी आ सकती है.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करतेकरते उन के सामने भूरी का चेहरा आ गया. श्रेया उर्फ भूरी करन कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. करन परशुराम के घर के समीप रहता था. उस की 3 बेटियों में श्रेया दूसरे नंबर की थी. वह कक्षा 2 में पढ़ती थी. करन किसान था. उसी से जीविका चलाता था.

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वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया.

इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने लाल रंग से भरी एक डब्बी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देश दिए.

शाम 6 बजे अंकुल और वीरन, परशुराम के घर से निकले. तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब करन के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम श्रेया पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने भूरी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

भूरी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों भूरी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. श्रेया को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ‘‘भैया, कहां ले जा रहे हो?’’ यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई.

फिर वे दोनों भूरी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया. उन दोनों ने श्रेया उर्फ भूरी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने श्रेया के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया.

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परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय करन को श्रेया नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. करन व उस की पत्नी माया रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी.

17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्वतखोरी की दुकान में जान की कीमत – भाग 1

सौजन्य : सत्यकथा

उत्तर प्रदेश का महोबा शहर कई मायनों में पूरे भारत में चर्चित है. यह शहर जहां वीर योद्धा आल्हाऊदल की कर्मभूमि रहा, जिन्होंने अपनी वीरता से 52 किलों को फतह किया था, तो दूसरी तरफ यह शहर प्राकृतिक संपदा से भी परिपूर्ण है. यहां के पहाड़ों से निकला ग्रेनाइट पत्थर दूरदूर तक प्रसिद्ध है. महोबा जिले का मुख्य व्यवसाय पत्थर गिट्टी है. जो सड़क व भवन निर्माण में काम आता है.

महोबा जिले का एक व्यवसायिक कस्बा है कबरई. इस कस्बे को स्टोन सिटी के नाम से भी जाना जाता है. कस्बे के बाहर दर्जनों क्रशर कारखाने हैं, जहां पत्थर से गिट्टी बनाई जाती है. पहाड़ तोड़ने का ठेका लेने वाले ठेकेदारों और क्रशर संचालकों का पुलिस के साथ चोलीदामन का साथ रहता है.

क्रशर संचालकों की कई कमजोरियां है. पुलिस इन का भरपूर फायदा उठाती है. कबरई की पत्थर मंडी और क्रशर कारखाने पूरे प्रदेश में अव्वल माने जाते हैं.

कबरई मंडी से रोजाना पूरे प्रदेश के विभिन्न शहरों में गिट्टी के सैकड़ों ट्रक जाते है. गिट्टी की रायल्टी दर 160 रुपया घन मीटर है. क्रशर संचालकों की पुलिस से सांठगांठ इसलिए मजबूरी है कि ट्रक में 12 से 14 घन मीटर तक की गिट्टी भरने का खन्ना जारी होता है, जबकि ट्रकों में इस से 2 गुना 30 घन मीटर तक गिट्टी लोड की जाती है. ऐसे में पुलिस ओवरलोड ट्रकों को रोक कर चालान कर सकती है, जो होते नहीं हैं, पैसे से काम चल जाता है.

अधिकांश क्रशर संचालक ही पहाड़ों के पट्टे लेते हैं. पहाड़ों में चट्टान तोड़ने के लिए विस्फोट का लाइसैंस कम क्षमता का होता है, लेकिन विस्फोट कई गुना ज्यादा करते हैं.

अकसर पहाड़ों में काम करने वाले मजदूर घायल या मौत के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में मजदूर और बस्तियों के बाशिंदे हंगामा करते हैं. इस संकट में पुलिस ही क्रशर संचालकों की मदद करती है. फरजी खन्नों से भी पत्थर गिट्टी की ढुलाई होती है. खफा होने पर पुलिस फरजी खन्ने फाड़ कर चालान कर देती है.

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इंद्रकांत त्रिपाठी इसी कबरई कस्बे के जवाहर नगर मोहल्ले में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रंजना के अलावा बेटा कृष्णा तथा बेटी गुनगुन थी. इंद्रकांत त्रिपाठी क्रशर संचालक थे. उन की कंपनी आरजेएस ग्रेनाइट नाम से थी.

वह गिट्टीपत्थर के बड़े व्यवसाई थे. उन के पास विस्फोटक व मैगजीन का लाइसैंस था. उन के 2 अन्य भाई रविकांत व विजयकांत भी इसी व्यवसाय से जुड़े थे. कबरई पत्थर मंडी में इंद्रकांत की अच्छी प्रतिष्ठा थी.

इंद्रकांत त्रिपाठी पत्थरगिट्टी के बड़े सप्लायर थे. बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे निर्माण में उन के 4 दरजन से अधिक ट्रक गिट्टी सप्लाई में लगे थे. उन का कारोबार वैसे तो ठीक से चल रहा था, लेकिन जब से मणिलाल पाटीदार ने महोबा के एसपी का चार्ज संभाला था, तब से कारोबार में परेशानियां बढ़ने लगी थीं. एसपी मणिलाल पाटीदार ने रिश्वत की रकम में बढ़ोत्तरी कर दी थी और रकम न देने पर ट्रकों का चालान करवाने लगे थे.

एक रोज एसपी मणिलाल पाटीदार ने कबरई थानाप्रभारी देवेंद्र शुक्ल के मार्फत इंद्रकांत के पार्टनर बालकिशोर द्विवेदी व पुरुषोत्तम सोनी को थाना कबरई बुलाया और कहा कि यदि कारोबार करना है तो 6 लाख रुपया प्रतिमाह देना होगा अन्यथा जेल जाओगे.

जेल जाने के भय से दोनों पार्टनर डर गए और सारी बात इंद्रकांत त्रिपाठी को बताई. इस के बाद इंद्रकांत त्रिपाठी ने एसपी मणिलाल पाटीदार से मुलाकात की और बताया कि लौकडाउन में पत्थरमंडी बंद पड़ी है. कारोबार में घाटा हो रहा है. ऐसे में व्यवस्था नहीं हो सकती.

यह सुनते ही पाटीदार नाराज हो कर बोले, ‘‘व्यवस्था नहीं होगी तो जेल जाओगे. मुझे सब पता है. तुम्हारी 50 गाडि़यां है. गाडि़यां चलानी हैं तो हर माह रकम देनी होगी.’’

पुलिस कप्तान की धमकी से इंद्रकांत घबरा गए. उन्होंने भयवश जून व जुलाई 2020 में मणिलाल पाटीदार को 6-6 लाख रुपए भिजवा दिए. इस के बाद उन्होंने पूर्व विधायक (चरखारी) बृजभूषण को अपनी व्यथा बताई और कप्तान की ज्यादतियों की शिकायत की. उन्होंने कहा कि उस की शिकायत शासन स्तर पर की गई है. काररवाई का इंतजार है.

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अगस्त माह में जब इंद्रकांत त्रिपाठी से पुन: रिश्वत का 6 लाख रुपया मांगा गया तो वह परेशान हो उठे. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि कारोबार ठप होने से वह पैसा नहीं दे पाएंगे. तब उन्हें एसपी की तरफ से धमकी दी गई कि फरजी मामलों में फंसा कर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. यही नहीं उन्हें हत्या तक की धमकी दी गई.

आखिर पुलिस कप्तान पाटीदार की धमकियों से आजिज आ कर 7 सितंबर को इंद्रकांत ने एसपी मणिलाल पाटीदार के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल कर दिया. साथ ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा जिलाधिकारी को भी शिकायती पत्र भेज दिए.

वायरल वीडियो में इंद्रकांत ने एसपी पर 6 लाख रुपया प्रतिमाह उगाही का आरोप लगाया. साथ ही कहा कि अगर उन की हत्या होती है तो इस के जिम्मेदार एसपी पाटीदार होंगे.

7 सितंबर को ही इंद्रकांत ने एक फेसबुक पोस्ट भी लिखी, जिस में उन्होंने लिखा, ‘मेरे प्रिय मित्रों व मेरे प्रिय आदरणीय जनों, हो सकता है मैं कल आप सब के बीच न रहूं, क्योंकि एसपी महोबा किसी भी वक्त मेरी हत्या करवा सकते हैं. वह मुझ से 6 लाख रुपया प्रतिमाह की मांग कर रहे हैं. जिसे मैं देने में असमर्थ हूं.’

रिश्वतखोरी की दुकान में जान की कीमत – भाग 2

सौजन्य : सत्यकथा

सोशल मीडिया पर इंद्रकांत का वीडियो वायरल हुआ तो एसपी मणिलाल पाटीदार का पारा चढ़ गया, उन्होंने आननफानन में प्रैसवार्ता की और बताया कि इंद्रकांत त्रिपाठी जुआ व सट्टे का बड़ा व्यापारी है.

उस का नाम ग्राम रिवई में पकड़े गए जुए में आया था. काररवाई से बचने के लिए वीडियो वायरल कर अनर्गल आरोप लगा रहा है. इसी के साथ उन्होंने जिले के थानेदारों को इंद्रकांत की खोज में लगा दिया.

इंद्रकांत त्रिपाठी को भय था कि पुलिस कप्तान कुछ भी करा सकते हैं. अत: वह बांदा की ओर निकल गए. दूसरे दिन सुबह उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट लिखी, जिस में उन्होंने लिखा, ‘प्रिय पत्रकार बंधुओं, मैं कल यानी 9 सितंबर को एक प्रैसवार्ता करने जा रहा हूं, जिस का स्थान मेरा क्रशर यानी आरजेएस ग्रेनाइट होगा.

समय सुबह 11 बजे. कप्तान मणिलाल पाटीदार, कबरई थाना इंचार्ज देवेंद्र शुक्ला, खन्ना थाना इंचार्ज राकेश कुमार सरोज, खरेला इंसपेक्टर राजू सिंह तथा सिपाही अरुण कुमार के भ्रष्टाचार के एकएक सबूत दिए जाएंगे.’

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दोपहर बाद इंद्रकांत त्रिपाठी अपनी औडी कार से बांदा से कबरई के लिए रवाना हुए. जब वह बधवाखेड़ा गांव के पास पहुंचे, तभी उन्हें गोली मार दी गई. गोली उन के गले में लगी, जिस से उन की गाड़ी एक पत्थर से टकरा कर झाडि़यों में पलट गई. घायल अवस्था में ही उन्होंने मोबाइल फोन पर यह सूचना अपने मित्र सत्यम को दी.

सूचना पाते ही सत्यम अपने पिता अर्जुन के साथ अपनी कार से बंधवाखेड़ा गांव पहुंचा और खून से लथपथ इंद्रकांत को महोबा के जिला अस्पताल पहुंचाया. इस के बाद सत्यम ने यहसूचना इंद्रकांत के घर वालों को दी.

इंद्रकांत को गोली लगने की खबर घर वालों को मिली तो सब घबरा गए. इंद्रकांत की पत्नी रंजना, भाई रविकांत, विजयकांत तथा दर्जनों मित्र अस्पताल पहुंच गए. पति की नाजुक हालत देख कर रंजना फफक पड़ी. चूंकि इंद्रकांत की हालत गंभीर थी. अत: घर वाले उन्हें कानपुर ले आए और सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल में भरती करा दिया.

इधर गोलीकांड की सूचना पुलिस प्रशासन को लगी तो सनसनी फैल गई. थानाप्रभारी (कबरई) देवेंद्र शुक्ला, एएसपी विनोद कुमार तथा डीएसपी राजकुमार पांडेय घटनास्थल पर पहुंचे और बारीकी से निरीक्षण किया.

कुछ देर बाद आईजीपी (चित्रकूटधाम मंडल) के. सत्यनारायण तथा एडीजी (प्रयागराज) प्रेमप्रकाश ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा घरवालों से जानकारी हासिल की.

इंद्रकांत के भाई रविकांत ने पुलिस अधिकारियों के समक्ष कहा कि उन के भाई पर जानलेवा हमला पुलिस कप्तान मणिलाल पाटीदार तथा कबरई के थानाप्रभारी देवेंद्र शुक्ला ने कराया है.

इस षडयंत्र में विस्फोटक सप्लायर सुरेश सोनी तथा बृहम दत्त भी शामिल हैं. रविकांत ने कई अन्य पुलिसकर्मियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तथा रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की गुहार लगाई.

क्रशर व्यापारी गोलीकांड की गूंज लखनऊ तक पहुंची तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत काररवाई करते हुए एसपी मणिलाल पाटीदार को निलंबित कर दिया तथा उन के स्थान पर नए एसपी अरुण कुमार श्रीवास्तव को नियुक्त कर दिया. अरुण कुमार ने पद संभालते ही भ्रष्टाचार में लिप्त कबरई थानाप्रभारी देवेंद्र शुक्ला, थाना खन्ना के इंसपेक्टर राकेश कुमार सरोज, खरेला के थानाप्रभारी राजू सिंह तथा सिपाही अरुण यादव व राजकुमार को निलंबित कर दिया.

दोनों सिपाही पुलिस अधिकारियों के खासमखास थे. क्रशर व्यापारियों से डीलिंग और पैसा वसूलने में इन की अहम भूमिका थी.

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11 सितंबर, 2020 को रविकांत त्रिपाठी की तहरीर पर थाना कबरई पुलिस ने भादंवि की धारा 307/120बी/387 के तहत निलंबित एसपी मणिलाल पाटीदार, निलंबित थानाप्रभारी देवेंद्र शुक्ला तथा विस्फोटक सप्लायर बृहम दत्त व सुरेश सोनी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच डीएसपी राजकुमार पांडेय को सौंपी गई.

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रिश्वतखोरी की दुकान में जान की कीमत – भाग 3

सौजन्य : सत्यकथा

इसी कबरई थाने में एक अन्य मुकदमा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एक्ट की धारा 7,13 के तहत दर्ज किया गया. इस में आरोपी मणिलाल पाटीदार, इंसपेक्टर देवेंद्र शुक्ला, राकेश कुमार सरोज, राजू सिंह, सिपाही अरुण यादव व राजकुमार (सभी निलंबित) को आरोपी बनाया गया. भ्रष्टाचार की जांच एसपी (विजिलेंस) हरदयाल सिंह को सौंपी गई.

मुकदमा दर्ज होते ही सभी आरोपी फरार हो गए. पुलिस दबिश देने गई तो उन के घरों पर ताले लटके मिले. उधर मणिलाल पाटीदार कोरोना पौजिटिव होने का बहाना कर कहीं जा कर छिप गए थे. कोरोना पौजिटिव की जानकारी उन के वकील मुकुल ने जांच अधिकारी को दी थी. लेकिन वे कहां क्वारंटीन थे, इस की जानकारी वे भी नहीं दे सके.

क्रशर व्यापारी इंद्रकांत 4 दिन तक कानपुर के रीजेंसी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे. आखिर 13 सितंबर को उन की मौत हो गई. उन की मौत की खबर कबरई कस्बा पहुंची तो सनसनी फैल गई. व्यापारी सड़क पर उतर आए और प्रदर्शन करने लगे. सुरक्षा की दृष्टि से कबरई में पुलिस व पीएसी लगा दी गई.

मृतक इंद्रकांत के पार्टनर पुरुषोत्तम तथा बालकिशन को एएसपी विनोद कुमार ने हिरासत में ले लिया. कानपुर में पोस्टमार्टम के बाद इंद्रकांत के शव को कड़ी पुलिस सुरक्षा में कबरई लाया गया और अंतिम संस्कार कराया गया.

क्रशर व्यापारी इंद्रकांत की मौत के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया. सपा, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश सरकार को कानून व्यवस्था पर घेरा तो सरकार तिलमिला उठी.

विपक्षी नेता सहानुभूति जताने मृतक के घर को रवाना हुए तो उन्हें सुरक्षा का हवाला दे कर रास्ते में ही रोक दिया गया और मृतक के घर तक नहीं पहुंचने दिया गया. इसे ले कर पुलिस से उन की झड़प भी हुई.

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विपक्षी तेवरों को ढीला करने के लिए पीडब्लूडी राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय मृतक क्रशर व्यापारी इंद्रकांत त्रिपाठी के घर पहुंचे और घर वालों को धैर्य बंधाया. साथ ही उन्होंने हरसंभव मदद का भी आश्वासन दिया.

कारोबारी के भाई रविकांत त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन राज्यमंत्री को सौंपा, जिस में आर्थिक सहायता दिलाने और सरकारी नौकरी की मांग की गई थी. साथ ही मामले की जांच विशेष पुलिस टीम से कराने तथा परिवार की सुरक्षा की मांग भी की गई. राज्यमंत्री ने मांग पूरी करने कर भरोसा दिया.

जिलाधिकारी अवधेश कुमार तिवारी भी मृतक क्रशर व्यापारी के घर पहुंचे और उन की पत्नी रंजना, बेटे कृष्णा तथा बेटी गुनगुन से मुलाकात की. डीएम ने पत्नी व बच्चों को किसी भी समस्या पर सीधे बात करने को कहा.

एडीजी (प्रयागराज) प्रेमप्रकाश ने व्यापारी के घर वालों से मुलाकात की और उन की सुरक्षा के लिए घर पर फोर्स लगा दी गई.

क्रशर व्यापारी इंद्रकांत त्रिपाठी की मौत के बाद दर्ज मामले में हत्या की धारा 302 और जोड़ दी गई तथा मृतक के घर वालों की मांग पर शासन ने जांच एसआईटी को सौंप दी और एक सप्ताह में जांच पूरी करने का आदेश दिया.

इस के लिए शासन ने वाराणसी जोन के आईजी विजय कुमार सिंह मीणा की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय टीम गठित की. इस टीम में डीआईजी (विशेष जांच) शलभ माथुर तथा मानवाधिकार एसपी अशोक तिवारी को शामिल किया गया.

एसआईटी ने बड़ी सावधानीपूर्वक जांच प्रारंभ की. टीम मृतक इंद्रकांत त्रिपाठी के घर पहुंची और उन के बड़े भाई रविकांत त्रिपाठी, पार्टनर पुरुषोत्तम, बालकिशन, कारोबारी के साले बृजेश शुक्ला, ड्राइवर रामहेतु तथा पूर्व विधायक अरिमर्दन सिंह आदि से पूछताछ कर बयान दर्ज किए.

वायरल वीडियो की जानकारी ली तथा जांच के लिए घर के सदस्यों के मोबाइल फोन हासिल किए. टीम के सदस्य घटनास्थल वधवाखेड़ा गए और वहां कई युवकों से पूछताछ की. फिर टीम कबरई थाने आई और वहां खड़ी व्यापारी की औडी कार की जांच की. टीम ने यहां कुछ पुलिसकर्मियों से भी जानकारी हासिल की.

टीम ने सत्यम और उस के पिता अर्जुन से भी पूछताछ की, जिन्होंने गोली लगने के बाद व्यापारी इंद्रकांत को अस्पताल पहुंचाया था. सत्यम से पूछताछ के बाद टीम ने मृतक के घर से वह पिस्टल बरामद कर ली, जिस से गोली मारी गई थी. यह पिस्टल मृतक इंद्रकांत की थी, जो लाइसैंसी थी.

इस बीच टीम के समक्ष 2 आरोपियों सुरेश सोनी व बृहम दत्त ने आत्मसमर्पण कर दिया. पूछताछ कर उन दोनों को महोबा की जिला जेल भेज दिया गया.

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एसआईटी टीम जांच करने बांदा व छतरपुर तक गई और हर सूत्र को खंगाला. टीम के सदस्यों ने आरोपी एसपी मणिलाल पाटीदार, इंसपेक्टर देवेंद्र शुक्ला आदि से भी पूछताछ की कोशिश की किंतु वह सब फरार थे.

25 सितंबर, 2020 को एसआईटी के अध्यक्ष विजय कुमार सिंह मीणा ने व्यापारी इंद्रकांत मामले की जांच पूरी कर प्रैसवार्ता की और घटना का चौंकाने वाला खुलासा किया. उन्होंने बताया कि वीडियो वायरल करने के बाद एसपी मणिलाल पाटीदार, इंद्रकांत के पीछे पड़ गया था, जिस से इंद्रकांत खौफ में थे.

उन को बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो खुद की पिस्तौल से खुद को गोली मार ली. उन की हत्या नहीं की गई बल्कि उन्होंने आत्महत्या की है. इंद्रकांत मामले की जांच पूरी कर एसआईटी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी.

इस रिपोर्ट के बाद थाने में दर्ज रिपोर्ट में एक बार फिर बदलाव किया गया. अब हत्या की रिपोर्ट को आत्महत्या (धारा 306) में तब्दील कर दिया गया. इन सभी आरोपियों पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का ही मामला बनता था.

इधर जब एक महीना बीत जाने के बाद भी आरोपी एसपी मणिलाल पाटीदार व अन्य आरोपी पुलिसकर्मी पकड़ में नहीं आए तो महोबा के नए एसपी अरुण कुमार श्रीवास्तव ने शिकंजा कसा.

इस के लिए उन्होंने स्वाट टीम, क्राइम ब्रांच तथा सर्विलांस टीम की मदद ली. उन्होंने गिरफ्तारी के लिए 8 टीमें बनाई और आरोपियों की तलाश शुरू की. इस बीच उन्होंने कोर्ट से आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी प्राप्त कर लिया था.

25 नवंबर, 2020 को एसपी अरुण कुमार श्रीवास्तव को सूचना मिली कि आरोपी इंसपेक्टर देवेंद्र शुक्ला महोबा-झांसी बौर्डर पर मौजूद है. इस सूचना पर उन्होंने जाल फैलाया और स्वाट तथा सर्विलांस टीम की मदद से उसे गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद देवेंद्र से अन्य आरोपियों के विषय में पूछताछ की गई.

भ्रष्टाचार की जांच कर रहे एसपी हरदयाल सिंह ने भी उस से पूछताछ की. लेकिन उन्होंने अन्य आरोपियों के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी. 26 नवंबर, 2020 को पुलिस ने आरोपी निलंबित थानाप्रभारी देवेंद्र शुक्ला को महोबा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. निलंबित एसपी मणिलाल पाटीदार, दरोगा राकेश कुमार सरोज, राजू सिंह, सिपाही अरुण यादव व राजकुमार फरार थे.

पुलिस उन की तलाश में जुटी थी. उन की गिरफ्तारी के लिए 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया है. यह पहला मामला है जब किसी आईपीएस अधिकारी की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित हुआ है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की चाहत में

प्यार की चाहत में – भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

11सितंबर, 2020 की सुबह उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद थाने में एक राहगीर से सूचना मिली कि अमीना मसजिद के पास एक लाश पड़ी है. इस सूचना पर थाने से एसआई अशोक कुमार मसजिद के पास पहुंचे तो वास्तव में सड़क के किनारे एक युवक की लाश पड़ी थी. उस युवक की उम्र 25 साल के करीब लग रही थी. उस के गले पर हलके खरोंच के निशान थे.

उस समय सुबह का वक्त था. कुछ लोग सड़क पर आजा रहे थे. उन्होंने कुछ लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. चूंकि यह मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था, इसलिए एसआई अशोक कुमार ने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को घटना के बारे में सूचना दे दी.

थानाप्रभारी पी.सी. यादव थाने में मौजूद एएसआई प्रदीप, हैड कांस्टेबल कैलाश और कांस्टेबल अजय को साथ ले कर थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

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उन्होंने लाश का बारीकी से मुआयना किया. मृतक ने नारंगी रंग की टीशर्ट और स्लेटी रंग की पैंट पहन रखी थी. थानाप्रभारी ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया, जिस ने लाश की कई कोण से फोटो खींचीं. मृतक के गले पर खरोंच के निशान के अलावा शरीर पर जख्म के निशान दिखाई नहीं दे रहे थे.

2 घंटे तक वहां के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. इस के बावजूद भी जब मृतक की पहचान नहीं हो सकी तो उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दिया गया. मोर्चरी में लाश पर चोटों के निशान देखने के लिए उस के कपड़े उतारे गए तो पता चला कि मृतक युवक मुसलिम है. उसी दिन थानाप्रभारी पी.सी. यादव के निर्देश पर मृतक की फोटो वजीराबाद के कई वाट्सऐप ग्रुप में भेज कर उन से लाश की शिनाख्त करने की अपील की गई.

दोपहर में फोटो की पहचान वजीराबाद की गली नंबर 9 में रहने वाले साहिल उर्फ राजा के रूप में हो गई. उस के घर पहुंचने पर मृतक की मां मिली. उस ने मोबाइल पर लाश की फोटो देख कर उस की पुष्टि अपने बेटे साहिल के रूप के कर ली.

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पूछताछ के दौरान उन्होंने थानाप्रभारी पी.सी. यादव को बताया कि कल रात साहिल ने उसे फोन कर बताया था कि वह अभी वर्षा के घर जा रहा है, इसलिए उस का इंतजार न करें. मां ने साहिल की हत्या का शक वर्षा पर जताया.

13 सितंबर को पुलिस ने साहिल की मां की शिकायत पर वर्षा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और इस केस की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता को सौंप दी गई. अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने साहिल की मां से वर्षा के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वर्षा अपने भाई आकाश के साथ दिल्ली के ही शास्त्रीनगर में रहती है.

वर्षा के ठिकाने का पता लगते ही वह पुलिस टीम के साथ शास्त्रीनगर स्थित वर्षा के मकान पर पहुंचे. लेकिन उस के मकान पर ताला लटका हुआ था. उस के मकान मालिक का पता लगा कर उस से वर्षा के बारे में पूछताछ की, लेकिन मकान मालिक को भी वर्षा के मूल निवास स्थान की जानकारी मालूम नहीं थी.

लेकिन उस ने पुलिस टीम को वर्षा के छोटे भाई आकाश का मोबाइल नंबर बता दिया, जिसे अतिरिक्त थानाप्रभारी गुलशन गुप्ता ने अपनी डायरी में नोट कर लिया. वर्षा के घर से गायब रहने के कारण जांच अधिकारी के मन में साहिल की हत्या में उस का हाथ होने का शक और पुख्ता हो गया.

इस के बाद उन्होंने साहिल के दोस्त साजिद से पूछताछ की तो साजिद ने बताया कि कल रात वह और साहिल औफिस से साथ निकले थे. बातचीत के दौरान साहिल ने उस से कहा भी था कि वह वर्षा के घर जा रहा है. उस ने भी वर्षा पर ही साहिल की हत्या का शक जाहिर किया.

वहां से लौट कर गुलशन गुप्ता घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां से 50 मीटर की दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा देखा, जिस का फोकस उसी तरफ था, जहां पर साहिल का शव मिला था. उन्होंने फौरन उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवा कर बीरीकी से इस की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो देखा सुबह सवा 6 बजे के समय वहां पर एक आटो आ कर रुका, जिस से 3 औरतें बाहर निकलीं. उन्होंने एक बेहोश से आदमी को आटो से बाहर निकाला और इस के बाद आटो वहां से चला गया.

प्यार की चाहत में – भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

आटो के जाने के बाद तीनों उस आदमी को वहां से थोड़ी दूर घसीट कर ले गईं. फिर एक सुनसान सी जगह पर उसे लिटा कर फरार हो गईं. सीसीटीवी फुटेज को कई वार रिवर्स कर के देखने से आटो के पीछे लिखा ‘अंशुल दी गड्डी’ और आटो की नंबर प्लेट पढ़ कर उसे अपनी डायरी पर नोट कर लिया. करीब 200 आटो की खोजबीन करने के बाद वह आटो मिल गया, जिस के पीछे कवर पर अंशुल दी गड्डी लिखा था. आटो की नंबर प्लेट से उस के मालिक रविंद्र तथा ड्राइवर मुकेश का पता लगा लिया.

मुकेश से पूछताछ करने पर पता चला कि घटना वाली रात को तड़के 4 बजे वह अपने आटो के साथ कश्मीरी गेट बसअड्डे पर किसी सवारी का इंतजार कर रहा था. एक युवती उस के पास आई थी और अपने दोस्त के गहरे नशे में होने की बात कह कर उसे शास्त्री पार्क स्थित अपने कमरे पर ले गई. वहां से अपने बेहोश साथी को ले कर जगप्रवेश अस्पताल गई. उस के साथ 2 युवतियां और थीं. वहां किसी कारण इलाज नहीं होने पर उसे वजीराबाद ला कर वहां छोड़ दिया, जहां पर पुलिस ने सुबह लाश बरामद की थी.

मुकेश का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस टीम जगप्रवेश अस्पताल पहुंची और वहां के सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल की. उस में आटो और तीनों औरतें साफ दिख गईं.

अब तक की जांचपड़ताल से इतना पता चल गया था साहिल की हत्या में उन्हीं 3 औरतों का हाथ है. आकाश के मोबाइल नंबर की लोकेशन से पता चला कि वह इस समय उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है.

13 सितंबर, 2020 को दिल्ली से एक पुलिस टीम वर्षा और उस के साथियों की तलाश में शाहजहांपुर पहुंची और वहां पर अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे वर्षा और उस के भाई आकाश को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ करने पर तीसरे साथी अलका उर्फ अली हसन को भी उस के रिश्तेदार के यहां से गिरफ्तार कर लिया. तीनोें को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम वजीराबाद थाने लौट आई.

वर्षा से पूछताछ की. पहले तो उस ने साहिल की हत्या करने से इनकार किया, लेकिन जब उसे सीसीटीवी फुटेज दिखाया गया तो वर्षा का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने साहिल की हत्या की बात स्वीकार करते हुए अपने इकबालिया बयान में जो बात बताई, वह हैरतअंगेज कर देने वाली थी. वर्षा से पूछताछ के बाद साहिल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

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23 वर्षीय साहिल उर्फ राजा अपनी अम्मी के साथ उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद में रहता था. कई साल पहले उस के अब्बा का इंतकाल एक लंबी बीमारी के दौरान हो गया था.

कोई 4 साल पहले की बात है. तब साहिल ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुका था. अब्बा की मौत के बाद से ही घर में मुश्किलों का दौर शुरू हो गया था, जो अब तक कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. अम्मी जैसेतैसे घर का गुजारा चला रही थी.

उस ने अपने लिए नौकरी की तलाश शुरू की. काफी भागदौड़ करने के बाद किसी तरह उसे शास्त्री पार्क स्थित एक स्थानीय अखबार के औफिस में नौकरी मिल गई. जहां वह रिपोर्टिंग के साथ अखबार के लिए विज्ञापन लाने का काम करता था. इस काम में उसे तनख्वाह और कमीशन मिलता था. उस से घर का गुजारा चलने लगा.

साहिल को अभी यह काम करते हुए कुछ महीने गुजरे थे कि एक दिन उस की मुलाकात वर्षा से हुई. 19 वर्षीय वर्षा देखने में काफी सुंदर होने के अलावा हंसमुख स्वभाव की थी. साहिल को वर्षा की बातें अच्छी लगीं.

वर्षा ने साहिल को बताया कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गांव हसनपुर, हरदोई की रहने वाली है. गांव में उसे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में अपने भाई के साथ दिल्ली आ गई. इस समय वह अपने छोटे भाई आकाश के साथ शास्त्री पार्क में रहती है.

साहिल ने वर्षा से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. वर्षा ने भी साहिल का मोबाइल नंबर सेव कर लिया. इस घटना के बाद साहिल और वर्षा हमेशा एकदूसरे के संपर्क में रहने लगे. जब भी साहिल को काम से फुरसत मिलती वह वर्षा को बुला क र उस के साथ कहीं घूमने निकल जाता था. वर्षा भी साहिल को प्यार करती थी, इसलिए वह हमेशा उसे खुश रखने की कोशिश करती थी.

चूंकि इश्क की आग दोनों तरफ बराबर लगी थी, सो जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. बाद में वर्षा साहिल से शादी करने की जिद करने लगी तो पहले साहिल ने उस से शादी करने में कुछ आनाकानी की, लेकिन जब वर्षा ने साहिल से कहा कि बिना शादी के वह इस रिलेशन को नहीं रखना चाहती है तो साहिल ने वर्षा की जिद देखते हुए उस के साथ कोर्टमैरिज तो कर लिया, मगर उसे अपने घर नहीं ले गया.

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उस ने वर्षा को समझाते हुए कहा कि उस की अम्मी अभी इस कोर्टमैरिज को स्वीकार नहीं करेंगी. जब उस की अम्मी उसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो जाएंगी तो वह उसे अपनी बेगम बना कर घर ले जाएगा.

वर्षा ने साहिल की बात पर यकीन कर लिया. इस के बाद साहिल ने वर्षा के रहने के लिए शास्त्री पार्क में एक मकान किराए पर ले लिया, जिस में एक कमरा ग्राउंड फ्लोर पर और दूसरा कमरा ऊपरी मंजिल पर बना था.

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