सत्यकथा: तहसीलदार का खूनी इश्क

रुचि सिंह चौहान उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थी. उस का हाल ही में बाराबंकी से लखनऊ तबादला हुआ था. 13 फरवरी, 2022 को उस की ड्यूटी थी, लेकिन वह अपने औफिस ड्यूटी पर नहीं पहुंची. इस के बाद उस की तलाश की गई, उस का कोई पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था. रुचि के साथ काम करने वाली उस की सहेली ने सोशल मीडिया पर फोटो सहित उस के लापता होने की पोस्ट डाली तो पूरे विभाग में हड़कंप मच गया.

जब किसी तरह से रुचि का पता नहीं लगा तो विभाग के अनुभाग अधिकारी एम.पी. सिंह ने सुशांत गोल्फ सिटी थाने में रुचि की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. पुलिस ने 3-4 दिनों तक उसे अपने स्तर से ढूंढा, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

उसी दौरान 17 फरवरी को पीजीआई थाना क्षेत्र के कल्ली माती स्थित नाले में एक युवती की लाश मिली है. पीजीआई थाने के प्रभारी धर्मपाल सिंह सूचना पर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश को नाले से निकलवा कर निरीक्षण किया गया.

मृतका का चेहरा काफी बिगड़ गया था. कपड़ों से ही उस की पहचान हो सकती थी. परंतु जब मौके पर उस की शिनाख्त न हो सकी तो इंसपेक्टर सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इसी बीच थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह सुशांत को गोल्फ सिटी में सिपाही रुचि सिंह की गुमशुदगी दर्ज होने की जानकारी मिली तो उन्होंने नाले से युवती की लाश बरामद करने की सूचना थाना गोल्फ सिटी को दे दी.

सूचना पा कर 19 फरवरी को रुचि के साथ काम करने वाली उस की सहेली थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह के साथ मोर्चरी चली गई. उस ने कपड़ों के आधार पर ही लाश की पहचान रुचि के रूप में कर ली. जिस के बाद रुचि सिंह के घर घटना की सूचना दे दी गई. रुचि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद थाने के महावतपुर बिलौच की रहने वाली थी. रुचि के घर वालों द्वारा भी लाश की पहचान कर ली गई.

इस के बाद पुलिस ने पीजीआई थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी. रुचि का मोबाइल नंबर भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

काल डिटेल्स में 12 फरवरी को उस के फोन की आखिरी लोकेशन पीजीआई, लखनऊ के पास मिली. उसी दिन उस की जिस नंबर से अंतिम बार बात हुई थी, वह नंबर पता किया गया. वह नंबर पद्मेश श्रीवास्तव के नाम पर था, जोकि प्रतापगढ़ के रानीगंज में नायब तहसीलदार के पद पर तैनात था.

20 फरवरी की सुबह साढे़ 5 बजे लखनऊ पुलिस प्रतापगढ़ पहुंच गई. स्थानीय पुलिस को साथ ले कर लखनऊ पुलिस रानीगंज में कंपनी बाग के पास स्थित ट्रांजिट हौस्टल पहुंची. इसी हौस्टल में पद्मेश रहता था.

पुलिस ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ पलों में ही पद्मेश ने दरवाजा खोल दिया. पुलिस ने पद्मेश को हिरासत में लेने के बाद पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पूछताछ में रुचि की हत्या में 2 और नाम सामने आए. एक नाम पद्मेश की पत्नी प्रगति श्रीवास्तव और दूसरा उन दोनों के परिचित नामवर सिंह का था.

पद्मेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने नामवर सिंह को रानीगंज से और पद्मेश की पत्नी प्रगति को प्रयागराज स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया. तीनों को ले कर लखनऊ पुलिस वापस आ गई. यहां आ कर जब उन सभी से गहनता से पूछताछ की गई तो हत्या की पूरी वजह खुल कर सामने आ गई.

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नजीबाबाद थाने के महावतपुर बिलौच में रहती थी 25 वर्षीय रुचि सिंह चौहान. उस के पिता का नाम योगेंद्र सिंह चौहान और माता का नाम रानी देवी था. पिता पेशे से किसान थे. रुचि का एक भाई था शुभम. वह अभी पढ़ रहा था.

रुचि शुरू से पढ़ाई में काफी तेज थी. उस ने नजीबाबाद के ही एक कालेज से इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. उस के बाद उस ने पुलिस की भरती के लिए तैयारियां करनी शुरू कर दीं.

उस का सेलेक्शन भी हो गया. पुलिस ट्रेनिंग के दौरान उस की मुलाकात नीरज सिंह से हुई. वह भी कांस्टेबल की ट्रेनिंग कर रहा था.

नीरज सिंह बरेली जिले का रहने वाला था. रुचि बेहद खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस के तीखे नैननक्श उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. नीरज भी उसे देख कर अपना दिल हार बैठा. उस की नजर ही रुचि पर से नहीं हटती थी.

नीरज ने उस की तरफ कदम बढ़ाए तो रुचि को भी इस का एहसास हो गया कि नीरज उसे चाहता है. नीरज भी गबरू जवान था. रुचि भी उस में रुचि लेने लगी. पहले दोनों में दोस्ती हुई, जब दोनों एकदूसरे को अच्छे से जानने लगे, चाहत की आग बढ़ी तो दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार कर बैठे.

जून, 2019 में रुचि ने नीरज से विवाह कर लिया. रुचि के घरवाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे, लेकिन रुचि नहीं मानी. इस पर रुचि के घरवालों ने उस से ज्यादा मतलब रखना बंद कर दिया.

विवाह के बाद जैसेजैसे समय आगे बढ़ता गया, दोनों के बीच और नजदीकियां आने के बजाय दूरियां आने लगीं. उन के बीच का प्यार कम होता गया. रोजरोज झगड़े होने लगे.

रुचि ने फेसबुक पर अपना एकाउंट बना रखा था. उस के जरिए वह परिचितों से तो जुड़ी ही थी, साथ ही साथ नए अंजान लोगों के संपर्क में भी आ गई थी. उन में से ही एक था पद्मेश श्रीवास्तव.

पद्मेश स्मार्ट तो था ही, उस की सब से बड़ी खूबी यह थी कि वह सरकारी नौकरी करता था. वह उस समय नायब तहसीलदार के पद पर कौशांबी में तैनात था. उस की पहली पोस्टिंग प्रतापगढ़ के कुंडा में थी. वह प्रयागराज का रहने वाला था. पद्मेश शादीशुदा था और उस की पत्नी प्रगति प्रयागराज में जौब करती थी. उन के 2 बच्चे थे.

फेसबुक के जरिए रुचि की मुलाकात पद्मेश से हुई. दोनों ने एकदूसरे को अपने बारे में बताया. उन के बीच हर रोज बातचीत होने लगी. मैसेंजर पर चैटिंग होने लगी. जिस की वजह से उन में गहरी दोस्ती हो गई. पद्मेश ने उसे यह नहीं बताया था कि वह विवाहित है.

रुचि तो उसे अविवाहित समझ कर उस के साथ जुड़ी थी. वह नीरज के बाद पद्मेश के साथ जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी.

वह समझती थी कि पद्मेश से अच्छा दूसरा उसे कोई जीवनसाथी नहीं मिलेगा. इसलिए उस ने नीरज से तलाक लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी. नीरज इस समय कौशांबी में जीआरपी में तैनात था.

समय के साथ दोनों ने अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया. दोनों की मोबाइल पर बातें शुरू हो गईं. पहली मुलाकात दोनों की एक जमीन के मामले में हुई. उस के बाद उन के बीच मुलाकातों का सिलसिला चल निकला.

पद्मेश लखनऊ आता तो रुचि के साथ ही उस के किराए के मकान पर रुकता था. वह अकेली ही वहां रहती थी. रुचि भी रानीगंज जाती और पद्मेश के साथ उस के हौस्टल के कमरे में ही रुकती थी. सब अच्छा चलता देख कर रुचि पद्मेश पर जल्दी शादी कर लेने की बात करने लगी.

पद्मेश तो सिर्फ उस से संबंध बनाए रखना चाहता था. इसलिए उसे शादी करने का झूठा दिलासा देता रहता था. वह उस से कहता कि जल्द ही वह उस से शादी कर लेगा और लखनऊ में ही मकान बनवा कर उस के साथ रहेगा. यह सुन कर रुचि खुश हो जाती थी.

28 अगस्त, 2021 को रुचि का भाई शुभम उत्तर प्रदेश पुलिस में एसआई की परीक्षा देने लखनऊ आया तो वह अपनी बहन रुचि के मकान पर ही रुका. रुचि ने उसे भी बताया कि वह नीरज से तलाक ले रही है और तहसीलदार पद्मेश से शादी करने वाली है.

फोन पर शुभम की पत्नी शालिनी यानी अपनी भाभी को भी रुचि ने पद्मेश से शादी करने की बात बताई. वह शादी को ले कर बहुत खुश थी.

समय निकलता जा रहा था, लेकिन पद्मेश शादी की बात कहता जरूर था लेकिन करता कुछ नहीं था. इस पर रुचि पद्मेश पर जल्दी शादी करने का दबाव बनाने लगी.

उस के बारबार दबाव डालने से पद्मेश को एहसास हो गया कि रुचि अब ऐसे नहीं मानने वाली. अब वह उसे किसी तरह समझा कर बहलाफुसला नहीं सकता तो उस ने रुचि से अपने शादीशुदा होने की बात बता दी.

यह सुन कर रुचि हैरत में पड़ गई. इतना बड़ा झूठ पद्मेश ने उस से बोला, वह उसे ही सच मानती रही. उस झूठ को सच मान कर अपना तनमन उस पर लुटाती रही. लेकिन रुचि अब इतना आगे बढ़ चुकी थी कि वह वहां से पीछे नहीं लौट सकती थी. इसलिए वह पद्मेश के शादीशुदा होने के बाद भी उस से शादी करने को तैयार हो गई.

दूसरी ओर पद्मेश को उम्मीद थी कि उस के शादीशुदा होने की बात जान कर रुचि उस से शादी करने का इरादा छोड़ देगी, जिद नहीं करेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

पद्मेश के लिए अब रुचि गले में फंसी हड्डी बन गई थी, न निगलते बन रहा था, न उगलते. वह उस से दूरी बनाने लगा. उस की काल आती तो वह उठाता नहीं था. अगर उठाता तो व्यस्त होने का बहाना बना कर काल काट देता.

एक दिन जब रुचि ने पद्मेश को फोन किया तो वह प्रयागराज में अपने घर पर था. मोबाइल की घंटी बजते देख कर पद्मेश की पत्नी ने काल रिसीव कर ली. इस के बाद दोनों में काफी नोकझोंक हुई.

प्रगति ने रुचि को हिदायत दी कि वह दोबारा काल न करे. अपने पति पद्मेश को भी रुचि से दूर रहने की हिदायत दी. बात न मानने पर देख लेने की धमकी दी. लेकिन रुचि कहां मानने वाली थी. वह पद्मेश से हर हाल में शादी करना चाहती थी.

रुचि की जिद से पद्मेश तो परेशान था ही, उस की पत्नी प्रगति को भी डर था कि कहीं रुचि अपने इरादों में न सफल हो जाए और उस की सौतन बन जाए. इसलिए रुचि को ठिकाने लगाने का फैसला उस ने पद्मेश के साथ बात कर के कर लिया.

नामवर सिंह लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र के कल्ली में रहता था. रानीगंज में उस की जमीन का कुछ मामला था. उसी संबंध में वह नायब तहसीलदार पद्मेश से मिलता रहता था. कई बार मुलाकात में एकदूसरे को जान गए थे.

प्रगति की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी. पीजीआई में उसे दिखाने के लिए पद्मेश प्रगति को कार से ड्राइवर के साथ भेज देता था. वहां पीजीआई के पास रहने के कारण नामवर सिंह वहीं मिल जाता और प्रगति को आराम से डाक्टर को दिखवा देता था.

बारबार डाक्टर को दिखाने आने से प्रगति और नामवर सिंह की कई मुलाकातें हुईं तो उन मुलाकातों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

दूसरी ओर पद्मेश ने नामवर सिंह से कहा कि वह रुचि की हत्या करने में उस का साथ देगा तो वह उस की जमीन का दाखिल खारिज कर देगा. एक तो यह लालच और दूसरा प्रगति के कहने पर वह पद्मेश का साथ देने को तैयार हो गया.

12 फरवरी, 2022 को पद्मेश कार से पीजीआई के पास पहुंचा. नामवर सिंह उस के पास पहुंच गया. फिर योजनानुसार पद्मेश ने रुचि को फोन कर के पीजीआई आने को कहा.

रुचि कैब कर के अर्जुनगंज से पीजीआई के लिए निकल गई. वहां पहुंचने पर वह पद्मेश से मिलने के लिए उस की कार में बैठ गई. पहले तो पद्मेश और नामवर का इरादा रुचि का इलाज कराने के बहाने उसे जहरीला इंजेक्शन दे कर मार देने का था. हालांकि यह योजना सफल नहीं हुई.

फिर नींद की 10 गोलियां अनार के जूस मे मिला दीं. वह जूस रुचि को पीने को दे दिया. वह जूस पी कर रुचि को नींद आने लगी. इस के बाद पद्मेश और नामवर ने उस का पहले गला दबाया, फिर सिर पर प्रहार कर के उस की हत्या कर दी.

फिर नामवर ने रुचि की लाश को अपनी गाड़ी में शिफ्ट किया और कल्ली स्थित 5 फीट गहरे नाले में फेंक आया. इस के बाद प्रगति को रुचि की हत्या कर देने की बात बता दी. इस के बाद पद्मेश वापस लौट गया.

लेकिन उन के गुनाह की इबारत पुलिस से छिपी न रह सकी और तीनों पकड़े गए. कागजी खानापूर्ति करने के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित

अपराध: पंजाब में की हत्या, लाशें फेंकी सोलन में

कालका से शिमला की ओर कोही रेलवे सुरंग के पास चादर में लिपटी 2 लाशें पड़ी देख कर लोग इकट्ठा हुए, तो पता चला कि दोनों ही लाशें औरतों की थीं. फरवरी के पहले हफ्ते में हुए इस हत्याकांड ने सभी को चौंका दिया.

आसपास के इलाके के लोगों से पूछताछ हुई, तो सभी ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. मुंहनाक बंद कर उन की हत्या की गई?थी. लैब से जांच के बाद विशेष जांच टीम ने सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया व इन औरतों की पहचान के लिए सभी जगह फोटो भेज कर जांच को आगे बढ़ाया, तो मालूम हुआ कि ये लाशें ऊना व पंजाब के बठिंडा की औरतों की थीं. वे दोनों ही औरतें ब्यूटीपार्लर में काम करती थीं और साथ में ही रहती थीं.

पंचकूला व चंडीगढ़ के ब्यूटीपार्लर में गहन पूछताछ की गई. दूसरे राज्यों के सीसीटीवी कैमरों पर भी नजर रखी गई. वे दोनों औरतें पति से अलग रहती थीं. गीता, 31 साल, पत्नी जसवाल, बठिंडा (पंजाब) व निशा, 27 साल, पत्नी सनी, अंबऊना की रहने वाली थी. उन दोनों की काल डिटेल को भी चैक किया गया. परिजनों से पूछताछ पर पता चला कि वे दोनों पंचकूला व चंडीगढ़ के ब्यूटीपार्लर में काम करती थीं. उन की जानपहचान पंचकूला में हुई जो दोस्ती में बदल गई, तो दोनों ने जीरकपुर में कमरा लिया व वहीं रहने लगीं.

पुलिस ने भी हत्यारों को पकड़ने के लिए पूरा जोर लगा रखा था, ताकि इस शांत राज्य में अपराध की बुनियाद डालने व लोगों को डराने वालों को बेनकाब कर सजा दी जा सके.

शातिर मजे से घूम रहे थे, लेकिन पुलिस उन्हें ढूंढ़ रही थी. बारबार सीसीटीवी कैमरों पर गौर किया गया तो एक बाहरी नंबर प्लेट वाली कार हत्याकांड वाले दिन कालका की तरफ से हिमाचल प्रदेश में दाखिल हुई, तो कुछ समय बाद ही वापस लौट गई. इसी नंबर की जांच कर पूछताछ व सख्ती की गई. यहां आने की ठोस वजह न बता पाने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया तो काफी बड़ी कामयाबी हाथ लगी. आरोपियों को जुर्म कबूलने के सिवा कोई चारा न दिखा तो इस दोहरे हत्याकांड से भी पुलिस ने परदा उठा दिया.

जितेंद्र, 43 साल, खरड़ (मोहाली) व दिनेश, 32 साल, रोपड़ को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किए जाने पर कोर्ट ने उन्हें रिमांड पर भेजा. दोनों आरोपी पेशे से ड्राइवर हैं. कसौली कोर्ट से उन्हें रिमांड मिली है, क्योंकि जहां लाशें फेंकी गई थीं, वह इलाका कसौली के तहत ही आता है.

अभी तक हत्यारों ने ज्यादा नहीं बताया है, लेकिन दोनों ही औरतों गीता व निशा की हत्या को इन्होंने खरड़ के ही एक निजी फ्लैट में अंजाम दिया है, जहां दोनों हत्यारे जितेंद्र व दिनेश पेशे से चालक हैं. इन्हीं कडि़यों को जोड़ कर आगे की तफतीश जारी है.

कसौली मशहूर पर्यटक स्थल है व हिमाचल प्रदेश शांत राज्य है, लेकिन यहां ऐसे अपराधों का लगातार बढ़ते जाना गहरी चिंता की बात है. हत्यारों का इतनी दूर से यहां आ कर लाशों को फेंकना बड़ी साजिश का ही हिस्सा है, लेकिन उन की योजना फेल हो गई और वे आज पुलिस हिरासत में हैं.

सच व अपराध महक की तरह हैं. इन्हें लंबे समय तक झूठ व चालाकी के दम पर छिपाया या दबाया नहीं जा सकता. कानून में देर तो है, लेकिन अंधेर नहीं.

मुकेश विग      

सत्यकथा: लव सेक्स और धोखे का खिलाड़ी- एक दिलचस्प क्राइम केस

लेखक-मुकेश तिवारी

पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि मारपीट और धोखाधड़ी का मामला सीरियल मर्डर तक पहुंचेगा. जो हकीकत सामने आई, वह हैरान करने वाली थी, क्योंकि यह मामला एक दशक पहले हुई 4 हत्याओं का निकला.

कहते हैं कि अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, एक न एक दिन कानून की गिरफ्त में आता जरूर है, हालांकि हत्या जैसा जघन्य अपराध जब भी कोई अपराधी करता है, तो निश्चित ही वह यही सोचता है कि उस ने जो अपराध किया है, उसे करते किसी ने देखा नहीं है, अत: वह साफ बच निकलेगा.

इस कहानी में आरोपी का अगला शिकार बनने वाली उस की दूसरी पत्नी के साहस ने उस की असलियत पुलिस के सामने ला दी. गजब के चतुर आरोपी ने इस सनसनीखेज हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया, इस में कौनकौन शामिल रहा? उस का इरादा क्या था? इतने लंबे समय तक वह कैसे पुलिस को छकाता रहा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब सिलसिलेवार विस्तार से जानते हैं.

इस की शुरुआत मारपीट की शिकायत से हुई. 14 मार्च, 2022 की दोपहर अनामिका नाम की एक महिला बदहवास हालत में ग्वालियर शहर के झांसी रोड थाने पहुंची. वह काफी घबराई हुई थी. थाने के गेट पर राइफल ले कर खड़े संतरी से जब उस ने थानाप्रभारी के बारे में पूछा तो संतरी ने उन के कक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब अंदर बैठे हैं, आप चली जाइए.’’

अनामिका तेज कदमों से सीधे थानाप्रभारी के कक्ष में दाखिल हुई. उस वक्त थानाप्रभारी अपने मातहतों के साथ किसी अहम मसले पर चर्चा कर रहे थे. अनजान महिला को अपने कक्ष में आया देख कर उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कहिए क्या काम है?’’

घबराई हुई अनामिका ने कहा, ‘‘साहब, मुझे अपने पति राजेंद्र यादव के जुर्म के संबंध में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी मय दस्तावेज और फोटो के आप को देनी है और उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करवानी है.’’

थानाप्रभारी ने महिला को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘आप आराम से बैठ कर पूरी बात बताइए. आखिरकार आप के साथ क्या हुआ?’’

थानाप्रभारी के कहने पर अनामिका कुरसी पर बैठ गई, लेकिन पता नहीं क्यों, उस के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. उस की जुबान सूख गई थी. उस की हालत देख कर थानाप्रभारी ने उसे पानी पिलवाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम अनामिका है.’’

तसल्ली देते हुए थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के साथ क्या और कैसे हुआ, विस्तार से बताइए. मैं आप को भरोसा दिलाता हूं कि पुलिस आप की हरसंभव मदद करेगी.’’

थानाप्रभारी के भरोसा देने पर अनामिका के अंदर थोड़ी हिम्मत आई. उस ने उन से कहा, मेरे पति राजेश मेहरा (36) द्वारा मेरे साथ मारपीट और गालीगलौज करने की शिकायत दर्ज कराने के साथ ही उस की असलियत से भी आप को अवगत कराना है.

अनामिका ने बताया कि उस के पिता ग्वालियर के बड़े ट्रांसपोर्टर हैं. उन्होंने बड़ी शानोशौकत से उस की शादी राजेश के साथ की थी.

इस के बाद अनामिका के साथ जो हुआ, उस की कहानी इस तरह सामने आई. समय अपनी गति से गुजरता रहा. शादी के कुछ दिनों बाद ही पति उसे परेशान करने लगा था. पति के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था, वह बातबात में उस से झगड़ा करने लगा था. यही नहीं, उस के साथ मारपीट भी करने लगा था.

अनामिका पति के बदले व्यवहार से काफी खफा रहती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अनामिका जब भी कभी उस के बदले व्यवहार की शिकायत करती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता.

यही नहीं, इस के बाद जब देखो तब राजेश मेहरा अनामिका की पिटाई कर उसे घर से निकल जाने को भी कहता. यहां तक कि उस ने घर खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए थे. जब राजेश के अत्याचारों की हद हो गई, तब अनामिका ने अपने पिता को सारी बातें बता दीं.

राजेश ने अनामिका के सामने इस तरह के हालात खड़े कर दिए कि अनामिका परेशान हो कर खुदबखुद अपने पति का घर छोड़ कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. 6 महीने पहल॒े पति की सच्चाई सामने आने के बाद वह अपने पति से अलग हो गई.

दरअसल, 6 महीने पहले इत्तफाक से कुछ कागजात अनामिका के हाथ लगे, जिस से उसे पता चला कि उस के पति का असली नाम राजेश मेहरा नहीं बल्कि राजेंद्र कमरिया है, राजेश मेहरा तो उस का बोगस नाम है. वह धोखाधड़ी और हत्या जैसे अपराधों में शामिल होने की वजह से फरार चल रहा है.

इस के बाद ही अनामिका पति से अलग हो कर अपने पिता के पास चेतकपुरी में रहने लगी थी. पति राजेश मेहरा उर्फ राजेंद्र कमरिया ने उसे फोन कर उस के पास लौटने को कहा. अनामिका ने जब लौटने को मना कर दिया तो राजेंद्र अनामिका को फोन पर जान से मारने की धमकी देने लगा,

एक दिन तो हद ही हो गई. 12 मार्च, 2022 को अनामिका अपने पिता से थोड़ी देर में आने को कह कर घर से निकली ही थी कि रास्ते में राजेंद्र अपने साथियों निक्की, प्रमोद और राजा के साथ खड़ा मिल गया.

वह अनामिका को जबरन अपनी गाड़ी में डाल कर सुनसान स्थान पर ले गया और उस के साथ जम कर मारपीट की.

इस मारपीट में अनामिका की आंख पर भी चोट लगी. अनामिका ने बताया कि उस दिन पति राजेंद्र उसे जान से मारने की फिराक में था, लेकिन वह जैसेतैसे उस के चंगुल से छूट कर भाग आई.

इस के बाद अनामिका सीधी ग्वालियर के झांसी रोड थाने पहुंची और पुलिस को अपने पति की असलियत बताने के साथ ही कई अहम दस्तावेज भी सौंपे.

जैसेजैसे जांच आगे बढ़ रही थी, पुलिस को नित नईनई जानकारी मिल रही थी. पुलिस ने अपना रिकौर्ड खंगाला तो इसी थाने में राजेंद्र मारपीट के एक मामले में फरार निकला. राजेंद्र को दबोचने के लिए बिलौआ पुलिस से संपर्क किया गया तो पता चला कि 2014 में हुई 36 लाख रुपए की धोखाधड़ी और मारपीट के मामले में वह वहां से भी फरार चल रहा है.

राजेंद्र यादव को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में क्राइम ब्रांच के टीआई दामोदर गुप्ता, थानाप्रभारी (बिलौआ) रमेश साख्य, क्राइम ब्रांच के एएसआई राजीव सोलंकी, हैडकांस्टेबल रामबाबू सिंह, कांस्टेबल आशीष शर्मा व सोनू परिहार तथा बिलौआ थाने में पदस्थ एएसआई जीत बहादुर, कांस्टेबल सुशांत पांडे, धरमवीर और महेश आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद मुखबिर की सूचना पर 16 मार्च, 2022 को पुलिस ने उसे बिलौआ क्षेत्र स्थित उस के फार्महाउस से हिरासत में लिया.

पुलिस ने थाने ला कर उस से पूछताछ की तो उस ने एक ऐसे सनसनीखेज अपराध का खुलासा कर दिया, जिस के बारे में सुनते ही पुलिस वालों के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

पकड़े गए युवक का असली नाम राजेंद्र यादव था. राजेंद्र ने पूछताछ में जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस असमंजस में पड़ गई. वजह यह थी कि वह एक संगीन अपराध था और वह आज जिन 4 हत्याओं के बारे में पुलिस को बता रहा था, उस से ग्वालियर पुलिस अभी तक पूरी तरह अनभिज्ञ थी.

पूछताछ में राजेश मेहरा उर्फ राजेंद्र मेहरा उर्फ राजेंद्र यादव उर्फ राजेंद्र कमरिया से पता चला कि वह सिर्फ 12वीं कक्षा तक ही पढ़ा है. ग्वालियर के बालाबाई के बाजार में उस का एक दोस्त मनोज गहलोत परिवार के साथ रहता था.

राजेंद्र यादव भी उस के पड़ोस में ही रहता था. दोनों में गहरी दोस्ती थी. राजेंद्र ने अपने से 10 साल बड़ी मनोज की पत्नी गीता को अपने प्रेम जाल में फांस लिया था. दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए थे.

31 दिसंबर, 2011 को राजेंद्र ने अपनी प्रेमिका गीता के साथ मिल कर उस के पति मनोज गहलोत को बियर में नशे की गोली मिला कर पिला दी.

इस के बाद उस का गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया और फिर मनोज की लाश झांसी के पास बेतवा नदी में फेंक दी थी. उधर मनोज के परिवार वालों ने कोतवाली थाने में मनोज की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

मनोज की हत्या के बाद राजेंद्र और गीता ने शादी कर ली थी. शादी के बाद गीता और राजेंद्र मऊरानीपुर रहने चले गए, यहां पर गीता का मकान था.

तकरीबन 2 साल बाद जब गीता से राजेंद्र का मन ऊब गया तो सन 2013 में राजेंद्र ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से गीता का मकान हड़प लिया. उस के बाद राजेंद्र ने रहस्यों से भरी किसी फिल्म की तरह गीता, उस के बेटे निक्की और भतीजे सूरज को भी चाकू से गोद कर मार डाला.

उस के इस अपराध में राजेंद्र के भाई कालू और उस के जीजा के भाई राहुल ने भी उस की मदद की थी. इस वारदात के बाद राजेंद्र मऊरानीपुर से फरार हो गया.

तिहरे हत्याकांड से मऊरानीपुर क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. इस के बाद पुलिस किसी तरह इस हत्याकांड के आरोपियों का पता लगाने में सफल हो गई.

इतना ही नहीं, पुलिस ने हत्याकांड में शामिल रहे कालू और राहुल को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. लेकिन राजेंद्र यादव नाम और हुलिया बदल कर इधरउधर छिपता रहा. पुलिस ने उस के ऊपर ईनाम तक घोषित कर दिया.

खुद को कुंवारा बता कर राजेश उर्फ राजेंद्र ने अनामिका को सन 2014 में अपने प्रेम जाल में फांस लिया. अनामिका ने पुलिस को बताया कि राजेश से उस की दोस्ती सन 2014 में ट्रेन के सफर में हुई थी.

दोस्ती बढ़ने पर राजेश ने दिल्ली में अनामिका की नौकरी लगवाने में काफी मदद की थी, इस वजह से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. बाद में दोनों ने आपसी सहमति से शादी कर ली थी.

शादी के वक्त राजेश उर्फ राजेंद्र ने अपने को कुंवारा बताया था. राजेंद्र ने अनामिका से एक नहीं, बल्कि कई झूठ बोले थे.

उन में सब से बड़ा तो यही था कि उस ने अपनी पत्नी से मकान मालिक कुलदीप मेहरा का परिचय अपने पिता के रूप में करवाया था. राजेंद्र ने अपना नाम भी अनामिका को राजेश मेहरा बताया था. बाद में अनामिका को पता चला कि कुलदीप मेहरा राजेश उर्फ राजेंद्र का पिता नहीं बल्कि मकान मालिक है.

बाद में पता चला कि राजेश ने कुलदीप मेहरा की तकरीबन 5 करोड़ रुपए की जमीन भी ठग ली थी. शादी के बाद राजेंद्र ने अपनी पत्नी को बहन के घर रखा था. राजेंद्र और अनामिका के एक बेटा भी है.

पिछले 10 सालों से राजेंद्र अपना नाम और भेष बदल कर रहता रहा. कभी पगड़ी लगा लेता तो कभी क्लीन शेव रहता. कभी दाढ़ी बढ़ा लेता था, कभी राजेंद्र यादव बन जाता तो कभी राजेश मेहरा. वह लग्जरी कारों का भी शौकीन है. साथ ही वह अय्याश प्रवृत्ति का तो है ही.

पहले वह लड़की से दोस्ती करता है, उस के बाद उन की प्रौपर्टी पर सुनियोजित ढंग से कब्जा कर खुर्दबुर्द कर देता. बात करने में हाजिरजवाब राजेंद्र यादव के अपराधों का कच्चा चिट्ठा खोलते हुए ग्वालियर के एसपी अमित सांघी, एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया ने संयुक्त रूप से पत्रकार सम्मेलन में पत्रकारों को जानकारी दी.

2011 में खास दोस्त मनोज गहलोत की हत्या, 2012 में ग्वालियर में पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर के मकान में भाड़े पर रहा. उस की पत्नी को फांस कर 60 लाख की ठगी की. चैक बाउंस मामले में गिरफ्तारी वारंट 18 जून, 2013 में धारा 420, 467, 468, 471, 120 भादंवि का केस उस के खिलाफ दर्ज हुआ.

2013 में अपने भाई और जीजा के छोटे भाई के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका गीता और उस के बेटे और भतीजे की निर्मम हत्या कर दी.

कड़वा सच तो यह है कि अनामिका का कई मर्तबा मन हुआ कि वह अपने पति के बारे में पुलिस को सब कुछ सचसच बता दे, लेकिन राजेंद्र के खिलाफ मुंह खोलने का साहस नहीं जुटा पाई.

जब अति हो गई तो वह पति के खिलाफ पक्के सबूतों के साथ थाने में जा कर खड़ी हो गई, वैसे भी पति के खिलाफ खड़ी होने में ही अनामिका की भलाई थी.

पति की कारगुजारियों से अनामिका को गहरा झटका लगा है. इस से उबरने में फिलहाल उसे वक्त लगेगा.

पूछताछ के बाद राजेंद्र को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

झोपड़ी में बुझाई तन की आग: रसवंती को रास न आया अवैध संबंध

सौजन्य- सत्यकथा, अप्रैल 2022

बात मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के चितरंगी थानांतर्गत धवई गांव की है. थानाप्रभारी अपने औफिस में दैनिक कामों में लगे हुए थे. तभी उन्हें चितरंगी-कर्थुआ रोड पर स्थित एक झोपड़ी में किसी महिला की लाश मिलने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ वह पर घटनास्थल के लिए रवाना हुए. उन के वहां पहुंचने से पहले ही काफी भीड़ वहां जुट चुकी थी. थानाप्रभारी ने भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में बात की.

उस व्यक्ति ने बताया कि हम गांव वालों को काफी दिनों से आसपास में अजीब सी दुर्गंध आ रही थी. हमें लगा कि कोई जानवर मरा होगा, उसी से बदबू आ रही होगी. किंतु ऐसा नहीं था. यह बदबू तो रसवंती नामक महिला की झोपड़ी से आ रही थी.

पुलिस द्वारा तुरंत मौके का बारीकी से निरीक्षण किया गया, वहां चारपाई के नीचे रसवंती की लाश पड़ी थी, जो पूरी तरह से सड़ चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी डी.एन. राज ने इस की सूचना अपने एसडीपीओ राजीव पाठक को दी. सूचना मिलते ही वह तत्काल मौके पर पहुंचे. यह बात 11 नवंबर, 2021 की थी.

लाश को देखने के बाद यह तय कर पाना काफी मुश्किल था कि यह मामला स्वाभाविक मौत का है या हत्या का. पुलिस ने सुराग तलाशने के लिए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. जिस के बाद गांव वालों से पूछताछ शुरू की, लेकिन कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने पर पता चला कि रसवंती की मृत्यु गला घोटने से हुई थी. जिस के बाद एसडीपीओ राजीव पाठक के निर्देश पर चितरंगी थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी.

चूंकि महिला की सुरक्षा एवं उन से जुड़े मामले शासन के उच्च प्राथमिकता वाले विषयों में से हैं, जिस के कारण एसपी (सिंगरौली) वीरेंद्र कुमार सिंह स्वयं ही इस मामले की जांच को खुद आगे बढ़े.

एसडीपीओ राजीव पाठक ने सब से पहले गांव वालों से पूछताछ की, जिस में पता चला कि रसवंती शादीशुदा और एक बच्चे की मां थी, मगर लंबे समय से अपने पति व बच्चे को छोड़ कर धवई गांव में अपने भाई के साथ रहती थी.

जिस के बाद पारिवारिक झगड़ों के चलते वह गांव से बाहर चितरंगी और कर्थुआ रोड पर एक झोपड़ी बना कर अकेली ही रहने लगी थी.

चूंकि रसवंती अकेली रहती थी और काफी समय से गांव में ही रहती थी, इस कारण उस के बारे में जो भी जानकारी मिल सकती थी, वह गांव वालों से ही मिलती. लेकिन गांव वालों का सहयोग पुलिस को नहीं मिला.

तब थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को सक्रिय किया और अपने मुखबिरों द्वारा जानकारी हासिल करने का प्रयास शुरू कर दिया था.

इस कोशिश में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी पुलिस के हाथ लगी थीं. पता चला कि रसवंती कोई काम नहीं करती थी. वह केवल एक छोटी सी किराने की दुकान लगा कर अपना गुजारा करती थी, जोकि काफी नहीं था. पुलिस को पता चला कि वह इस दुकान की आड़ में अपना जिस्म बेच कर गुजारा चलाया करती थी.

इस की जानकारी मिलने पर थानाप्रभारी को यह मामला अवैध संबंधों का लगा. एसडीपीओ के निर्देश पर ऐसे लोगों की जानकारी जुटाने का काम शुरू किया गया जो अकसर रसंवती के संपर्क में रहते थे या उस से मिलने झोपड़ी में आया करते थे.

जांच के दौरान पुलिस को इस बात की जानकारी मिली कि रसवंती की झोपड़ी में बिजली नहीं थी. उसे अपने काम के लिए प्राकृतिक रोशनी पर ही निर्भर रहना पड़ता था. जिस वजह से वह अपने पास टौर्च या मोबाइल तो रखती ही होगी, लेकिन पुलिस को ये दोनों की सामान मौके से नहीं मिले.

इस से शक हुआ कि शायद मोबाइल और टौर्च दोनों ही हत्यारे अपने साथ ले गए होंगे. एसडीपीओ ने गांव वालों से पूछताछ करतेकरते इतना तो समझ लिया था कि हत्यारा इसी गांव का होगा.

इसलिए उन्होंने जांच के परिणामों को गांव वालों के बीच फैलाना शुरू कर दिया. इस का नतीजा भी जल्द ही सामने आ गया, जब 2 दिनों बाद गांव में एक जगह पर रसवंती की टौर्च पड़ी मिली, जो हत्या के बाद से ही गायब थी.

टौर्च जिस स्थान पर मिली, उस के आसपास रहने वालों की सूची तैयार करवाई गई तथा इस बात की जानकारी जुटाई कि इन में से कौन रसवंती से रात में मिलने आया करते थे. इस में से एक नाम सामने आया 22 साल के प्रिंस यादव का.

पुलिस को जानकारी मिली कि भले ही प्रिंस रसंवती से आधे से भी कम उम्र का था, लेकिन रसवंती के पास उस का आनाजाना भी काफी था. यहां तक कि शादी होने के बाद भी प्रिंस ने रसवंती के यहां आनाजाना नहीं छोड़ा था.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने प्रिंस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि प्रिंस और रसवंती के बीच अकसर फोन पर काफीकाफी देर तक बातचीत होती रहती थी.

इतना ही नहीं, लाश मिलने के 15 दिन पहले जिस रोज रसवंती का फोन बंद हुआ था. तब उस के फोन पर आखिरी बार बात प्रिंस ने ही की थी. इसलिए पुलिस ने प्रिंस यादव को हिरासत में ले कर पूछताछ की, जिस में पहले तो वह पुलिस को गुमराह करने का प्रयास करने लगा.

लेकिन वह ज्यादा देर टिक नहीं पाया और उस ने अपने दोस्त गांव के ही युवक अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

इस के बाद पुलिस ने गांव से अजीत यादव को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार सामने आई—

पति को छोड़ कर मायके लौटी रसवंती कुछ साल तक तो भाई के घर में आराम से रही, लेकिन समय के साथ उसे अपनी जिंदगी में एक पुरुष की कमी खलने लगी थी.

पति को छोड़ कर अकेली रह रही रसवंती पर गांव के कुछ युवकों की भी नजर थी और यह बात रसवंती भी जानती थी. फिर उस ने उन्हीं युवकों में से एक को चुन लिया और अपने तन की प्यास बुझाने का रास्ता खोज निकाला.

युवक से दोस्ती हुई तो वहां जरूरत पड़ने पर उसे खर्च करने के लिए पैसे भी देने लगा. यहीं से रसवंती को अपनी देह की कीमत का पता चला. उसे लगा कि यदि वह 2-4 युवकों को अपने पास आने का मौका दे तो उस की शारीरिक जरूरत तो पूरी होगी ही, साथ ही कुछ आमदनी भी हो जाया करेगी.

यही सोच कर उस ने गांव के कई युवकों से संबंध बना लिए थे. रसवंती के हरकतों की यह जानकारी जब उस के भाई को हुई तो उस ने उसे टोका तो 10 साल पहले रसवंती ने भाई का घर छोड़ दिया और खुद एक झोपड़ी बना कर रहने लगी.

चूंकि यह झोपड़ी रसवंती की अपनी थी तो वह जिसे चाहे उसे वहां मिलने के लिए बुला लिया करती थी. इस के अलावा उस ने दिखावे के लिए वहां एक छोटी सी दुकान भी लगा ली थी. वक्त के साथ रसवंती की उम्र बढ़ने लगी, इसलिए गांव के युवकों ने उस में दिलचस्पी लेनी कम कर दी.

जो उस की उम्र के थे, वे घरपरिवार वाले थे सो जब रसवंती के पास आने वाले मर्दों की संख्या घटने लगी तो रसवंती ने नया दांव खेला. उस ने कम उम्र के लड़कों को सैक्स का चस्का लगाना शुरू किया.

प्रिंस यादव भी रसवंती की इस योजना का शिकार 16 साल की उम्र में ही बन गया था. चूंकि उस वक्त तक प्रिंस के मन में सैक्स के प्रति एक नया ही नशा था, सो वह रसवंती को ही सब से बड़ा सुख मान कर उस के पास आने लगा.

रसवंती इश्क तो किसी से करती नहीं थी. उस के लिए तो यह काम भी पैसा कमाने का एक जरिया था. इसलिए प्रिंस से भी वह अपनी पूरी कीमत वसूलती थी.

वह रसवंती के पास केवल सैक्स का सुख लेने आया था, लेकिन धीरेधीरे वह उस का दीवाना हो गया. वह लगभग रोज ही उस से मिलने आने लगा.

कहना नहीं होगा कि अब रसवंती प्रिंस के लिए प्यार बन गई थी. जबकि प्रिंस, रसवंती के लिए एक सौदा था, इसलिए वह आए दिन उस से पैसों की मांग करती रहती थी. प्रिंस भी उसे यदाकदा खर्च के लिए पैसे देता रहता था.

प्रिंस 21 साल का हो गया तो उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. लेकिन पत्नी के आने के बाद भी उस का रसवंती के पास जाना कम नहीं हुआ.

दरअसल, रसवंती के लिए सैक्स एक धंधा था, इसलिए वह जानती थी कि उस के पास दूसरों से कुछ अलग नहीं होगा तब तक उस के पास ग्राहक क्यों आएगा. इसलिए प्रिंस जैसे युवकों को वह हर उस तरीके से संतुष्ट करने को राजी रहती थी. जिस की मांग युवा वर्ग में अधिक है.

इस की वह कीमत भी खूब वसूलती थी. लेकिन वह भूल चुकी थी कि प्रिंस के मन में जो पागलपन 16 साल में था, वह इन 6 सालों मे नहीं रह गया. दूसरा प्रिंस की शादी भी हो चुकी थी, इसलिए रसवंती उस की जरूरत भी नहीं रह गई थी. रसंवती द्वारा पैसों की मांग उस के लिए अब भारी पड़ने लगी थी.

जबकि उम्र बढ़ने से दीवानों की संख्या कम हो जाने के कारण रसवंती प्रिंस से ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलना चाहती थी. इसलिए दोनों के बीच पैसों को ले कर विवाद होने लगा था.

इस से तंग आ कर प्रिंस ने रसवंती के पास जाना बंद कर दिया. रसवंती जवान होती तो दूसरा दीवाना खोज लेती. अब 48 साल की उम्र में उसे कोई प्रिंस के जैसा दीवाना तो मिलने से रहा, इसलिए वह प्रिंस पर मिलने के आने के लिए दबाव बनाने लगी.

उस का कहना था कि अगर प्रिंस उस से मिलने नहीं आएगा तो वह पूरे गांव में पिं्रस के साथ अपने संबंधों का ढिंढोरा पीट देगी. प्रिंस इस बात से परेशान हो गया तो उस ने अपने दोस्त अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की आवाज हमेशा के लिए खामोश करने की ठान ली.

इस के लिए योजना बना कर दोनों दोस्त 27 अक्तूबर, 2021 की शाम रसवंती के पास पहुंचे, जहां उसे कुछ रुपए दे कर दोनों ने बारीबारी से पहले तो रसवंती के साथ संबंध बनाए. फिर साथ में लाई जानवर बांधने की रस्सी से उस का गला दबा कर हत्या कर दी और लाश को वहीं चारपाई के नीचे डाल कर घर आ गए.

चूंकि रसवंती गांव में बदनाम थी, इसलिए उस के गांव में न दिखने पर भी किसी ने न तो उस की चर्चा की और न ही खोजखबर ली.

रसवंती की हत्या का पता उस समय चला, जब उस की लाश सड़ जाने के कारण फैल रही बदबू से लोग परेशान हो गए और उन्होंने पुलिस को खबर दी.

पुलिस ने आरोपी प्रिंस यादव और अजीत यादव से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

सत्यकथा: गुनाह बन गया भूला-बिसरा प्यार

12 जनवरी, 2022 सुबह के करीब 11 बजे का वक्त था. जबलपुर जिले के चरगवां पुलिस थाने के टीआई विनोद पाठक बाहर धूप में बैठे टेबल पर रखी कुछ फाइलें उलटपलट कर देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर बजी घंटी ने उन का ध्यान फाइलों से हटा दिया. जैसे ही काल रिसीव की, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘सर मैं घुघरी गांव का सरपंच राजाराम करपेती बोल रहा हूं.‘‘

‘‘हां सरपंचजी, बोलिए आज कैसे फोन किया?’’ टीआई ने कहा.

‘‘सर सुबह गांव के कुछ लोगों ने घुघरी कैनाल में एक लाश तैरती देखी है. आप पुलिस टीम ले कर जल्दी गांव आ जाइए, गांव में दहशत का माहौल है.’’

‘‘ठीक है सरपंचजी, चिंता मत कीजिए, मैं जल्द ही वहां पहुंच रहा हूं.’’ टीआई विनोद पाठक ने सरपंच से कहा और घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद पुलिस टीम के साथ वे घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

जबलपुर जिले का चरगवां पुलिस थाना क्षेत्र नरसिंहपुर जिले की सीमा से लगा हुआ है. पूरे इलाके में नर्मदा नदी पर बने वरगी डैम का पानी नहर (कैनाल) के माध्यम से खेतों में जाता है, जिस से सिंचाई का काम होता है.

चरगवां से करीब 10 किलोमीटर दूर घुघरी गांव में कुछ ही देर में पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. घुघरी कैनाल में जहां लाश तैर रही थी, वहां नहर के दूसरी तरफ सोमती गांव है.

नहर पार करने के लिए एक पुल बना हुआ था, जिस पर रैलिंग नहीं थी. पुलिस का अंदाजा था कि हो सकता है कि किसी दुर्घटना की वजह से कोई नहर में गिर गया होगा.

सरपंच और गांव वालों की मदद से काफी मशक्कत के बाद पानी में तैरती लाश रस्सी से बांध कर बाहर निकाला गया. तब तक बरगी जबलपुर की सीएसपी अपूर्वा किलेदार और फोरैंसिक टीम की डा. नीता जैन भी वहां पर पहुंच चुकी थीं. लाश काफी फूल चुकी थी.

मृतक के गले में एक मफलर लिपटा मिला था. मृतक काली पैंट, चैक वाली शर्ट और नीले रंग की जरकिन और पांव में जूते पहने हुए था. गले में लिपटे मफलर को हटाने पर मफलर के निशान साफ दिखाई दे रहे थे.

वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया था. तब पुलिस ने मृतक की शिनाख्त के लिए सोशल मीडिया पर उस की फोटो प्रचारित कर दी. वायरल हुई फोटो के आधार पर ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि नहर में मिली लाश जबलपुर के गोरखपुर थाना क्षेत्र के कैलाशपुरी में रहने वाले 41 साल के संदीप वगारे की है.

पुलिस की जांच में पता चला कि संदीप 9 जनवरी, 2022 की शाम करीब 7 बजे से अपने घर से निकला था, जिस की तलाश उस के घर के लोगों द्वारा की जा रही थी.

सूचना पा कर संदीप वगारे के घर वाले मौके पर पहुंच गए और उन्होंने लाश की शिनाख्त संदीप वगारे के रूप में कर ली. उस के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

2 दिन बाद आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि संदीप की गला घोट कर हत्या कर उसे नहर में फेंका गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ संदीप वगारे की हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया.

जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा, एडीशनल एसपी शिवेश सिंह बघेल और सीएसपी अपूर्वा किलेदार के निर्देश पर टीआई विनोद पाठक के नेतृत्व में थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की संयुक्त टीम गठित की गई.

टीम में एएसआई एस.आर. पटेल, उषा गुप्ता, हैडकांस्टेबल प्रदीप पटेल, कांस्टेबल रोशनलाल, लेडी कांस्टेबल भारती, क्राइम ब्रांच के एसआई राम सनेही शर्मा, हैडकांस्टेबल अरविंद श्रीवास्तव, साइबर सेल के अमित पटेल आदि को शामिल किया गया.

पुलिस के लिए संदीप वगारे की हत्या की गुत्थी सुलझाना किसी चुनौती से कम नहीं था. संदीप के घर वालों से पूछताछ में पता चला कि वह शराब पीने का आदी था. इसी वजह से कुछ महीने पहले उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई थी.

संदीप का मोबाइल भी घटनास्थल पर नहीं मिला था. पुलिस टीम ने उस के घर वालों से उस का मोबाइल नंबर ले कर काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में पता चला कि उस की आखिरी बात 9 जनवरी, 2022 को शाम करीब 6 बजे किसी लक्ष्मी शिवहरे से हुई थी.

पुलिस लक्ष्मी शिवहरे तक पहुंच गई. 44 साल की लक्ष्मी शिवहरे नाम की महिला मूलरूप से मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के धूमा की रहने वाली थी, जो अपने पति शरद शिवहरे के साथ जबलपुर की हाथीताल कालोनी में रहती थी.

पुलिस ने जब लक्ष्मी से संदीप वगारे के संबंध में पूछताछ की तो पहले तो वह पूरे घटनाक्रम से अंजान बनी रही. बाद में महिला पुलिसकर्मियों ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो संदीप के मर्डर की गुत्थी सुलझती चली गई.

लक्ष्मी ने पुलिस को बताया कि उस ने अपनी बहन के बेटे कपिल राय के द्वारा संदीप की हत्या कराई थी.

अब पुलिस टीम कपिल राय की खोज में जी जान से जुट गई. लक्ष्मी की बड़ी बहन का विवाह कंदेली नरसिंहपुर के संतोष राय से हुआ था. कपिल राय उन्हीं का बेटा था. पुलिस ने कपिल को भी हिरासत में ले लिया. उस ने पूछताछ में बताया कि मौसी लक्ष्मी के कहने पर ही उस ने वारदात को अंजाम दिया था.

कपिल राय और लक्ष्मी के इकबालिया बयान के आधार पर संदीप वगारे की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह शादी के पहले के प्रेम प्रसंग से जुड़ी निकली, जो इस प्रकार है—

लक्ष्मी शिवहरे का परिवार मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर के गुप्तेश्वर इलाके में रहता था. 2 बहनों में सब से छोटी लक्ष्मी तीखे नाकनक्श की खूबसूरत लड़की थी. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही लक्ष्मी अपने मोहलले में रहने वाले संदीप वागरे को दिल दे बैठी.

संदीप के पिता उस समय जबलपुर कलेक्ट्रेट में सरकारी मुलाजिम थे. संदीप और लक्ष्मी का प्यार परवान चढ़ रहा था. वह अकसर स्कूल की क्लास बंक कर के शहर के पार्क में घूमने निकल जाते. दोनों शादी करना चाहते थे, मगर जाति की दीवार उन की शादी के रास्ते में सब से बड़ी रुकावट थी.

एक दिन जबलपुर के रौक गार्डन में दोनों भविष्य के सपने बुन रहे थे. संदीप की बाहों में बाहें डाले लक्ष्मी बोली, ‘‘मेरे घर वाले शादी के लिए लड़का देखने लगे हैं, मगर मैं तो तुम्हें चाहती हूं.’’

‘‘लक्ष्मी, मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. यदि घर वाले हमारी शादी के लिए राजी नहीं हुए तो हम दोनों घर से भाग कर शादी कर लेंगे.’’ प्यार के रंग में डूबे संदीप ने लक्ष्मी से कहा.

‘‘नहीं संदीप, इस से परिवार की बदनामी होगी, थोड़ा इंतजार करो हो सकता है हम घर वालों को राजी कर लें.’’ लक्ष्मी ने दिलासा दी.

संदीप और लक्ष्मी को जब भी मौका मिलता, वे एकांत में घूमतेफिरते. उन्होंने शहर के फोटो स्टूडियो जा कर एकदूसरे की बाहों में बाहें डाल कर जो फोटो खिंचवाई थी, वह संदीप के पर्स में हमेशा रहती थी.

जब लक्ष्मी के घर वालों को दोनों के प्रेम प्रसंग का पता चला तो समाज में बदनामी के डर से उन्होंने जुलाई 2006 में लक्ष्मी की शादी मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के धूमा में शरद शिवहरे से कर दी.

शरद ने उस समय धूमा में ठेकेदारी का काम शुरू किया था. लक्ष्मी की शादी होते ही वह ससुराल में रहने लगी, मगर संदीप जुदाई के गम में शराब पीने लगा. संदीप पेशे से पेंटर था. वह शहर में बनने वाले मकानों में पुट्टी और पुताई करने का काम करता था. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वह शराबखोरी में खर्च कर देता था.

जब भी लक्ष्मी अपने मायके जबलपुर आती, संदीप उस से मिलने की कोशिश करता तो लक्ष्मी उसे समझा कर कहती, ‘‘देखो संदीप, शादी के पहले जो भी हुआ उसे भूल कर तुम भी शादी कर के अपना घर बसा लो.’’

मगर संदीप तो लक्ष्मी को भूलने तैयार नहीं था. संदीप के सिर पर तो प्यार का नशा चढ़ कर बोल रहा था. संदीप के मातापिता ने यह सोच कर उस की शादी बालाघाट जिले में कर दी कि धीरेधीरे वह लक्ष्मी को भूल कर अपनी नई जिंदगी शुरू कर देगा.

संदीप की शादी के बाद भी उस की शराब पीने की आदत नहीं छूटी, जिस का नतीजा यह हुआ कि उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई.

वक्त गुजरने के साथ लक्ष्मी एक बेटे और एक बेटी की मां बन चुकी थी. अपनी मेहनत के बलबूते लक्ष्मी का पति अब माइनिंग क्षेत्र का नामी ठेकेदार बन चुका था. लक्ष्मी के पति शरद शिवहरे के पास हाईक्लास एक्सप्लोजन का लाइसैंस था. वह बड़ीबड़ी पहाडि़यों पर विस्फोटक लगा कर ब्लास्टिंग कर के अच्छीखासी आमदनी कर लेता था.

2020 में शरद अपनी पत्नी लक्ष्मी और बच्चों के साथ धूमा से आ कर जबलपुर के हाथीताल इलाके में रहने लगा था. उन का जीवन खुशहाल चल रहा था, लेकिन इस बीच लक्ष्मी के पूर्वप्रेमी संदीप वगारे को लक्ष्मी के जबलपुर आने की भनक लग गई.

हाथीताल में संदीप वगारे उस के घर के आसपास मंडराने लगा. वह अकसर पति की गैरमौजूदगी में आ कर लक्ष्मी से मिलनेजुलने लगा. पहले प्यार का नशा संदीप पर इस कदर छाया हुआ था कि आज भी वह लक्ष्मी की एक झलक पाने बेताब था.

संदीप जब भी लक्ष्मी से मिलता एक ही बात की रट लगा कर कहता, ‘‘लक्ष्मी, मैं 16 साल के बाद भी तुम्हें भुला नहीं पाया हूं.’’

इस बात को ले कर लक्ष्मी परेशान रहने लगी. लक्ष्मी भी उसे झूठमूठ की दिलासा दे कर कहती, ‘‘मेरे मनमंदिर में तो तुम्हारे नाम का ही दीया जल रहा है. मगर अपने बच्चों की खातिर अब मैं अपना परिवार नहीं छोड़ सकती.’’

संदीप उस से नजदीकियां बनाने की कोशिश करता, मगर लक्ष्मी उस से दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझती. संदीप अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. लक्ष्मी से मिल कर उस का पुराना प्रेम फिर से कुलांचे भरने लगा था.

एक दिन संदीप ने एक फोटो दिखा कर धमकी देते हुए कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो ये फोटो मैं सोशल मीडिया पर वायरल कर तुम्हें बदनाम कर दूंगा.’’

लक्ष्मी ने गौर से उस फोटो को देखा तो उसे याद आ गया कि यह वही फोटो है जिसे शादी के पहले उस ने संदीप के गले में हाथ डाल कर जबलपुर के फोटो स्टूडियो में खिंचाया था.

फोटो देख कर लक्ष्मी बुरी तरह डर गई थी. उस ने संदीप से मिन्नतें करते हुए कहा, ‘‘प्लीज संदीप तुम्हें मेरे प्यार का वास्ता, ये फोटो तुम किसी को नहीं दिखाना.’’

संदीप के हाथ जब से लक्ष्मी ने अपने प्यार की फोटो देखी थी, तभी से उस का हर लम्हा डर और दहशत के साए में बीतने लगा था. लक्ष्मी को लगा कि यदि उस के पति शरद को पता चल गया तो उस की तो बसीबसाई गृहस्थी पलभर में ही रेत के महल की तरह बरबाद हो जाएगी.

उस ने कई बार संदीप को समझाने की कोशिश भी की, मगर संदीप उस का पीछा छोड़ने तैयार नहीं था.

चूंकि संदीप की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी, वह अकसर लक्ष्मी का पीछा करता. उस के घर के सामने खड़ा हो जाता. उस के घर में घुसने का प्रयास करता था. जब लक्ष्मी संदीप की हरकतों से परेशान हो गई तो इस बात की जानकारी उस ने नरसिंहपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन को दे दी.

लक्ष्मी की समस्या हल करने के लिए बड़ी बहन ने यह सोच कर अपने बेटे कपिल को लक्ष्मी के पास भेज दिया कि कपिल संदीप को डराधमका कर मामले को शांत करा देगा.

नरसिंहपुर के गांधी वार्ड कंदेली में रहने वाला 25 साल का कपिल ड्राइवर होने के साथसाथ शातिर बदमाश था.

7 जनवरी, 2022 को कपिल जैसे ही अपनी मौसी के घर हाथीताल, जबलपुर पहुंचा तो लक्ष्मी ने संदीप की हरकतों से परेशान रहने की दास्तान सुनाते कहा, ‘‘कपिल, संदीप ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है. किसी भी तरह इसे मेरे रास्ते से हटा दो. यदि तुम्हारे मौसाजी को ये सब पता चल गया तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी.’’

‘‘मौसी तुम चिंता मत करो, मैं हूं न. मैं उसे हमेशा के लिए आप के रास्ते से हटा दूंगा.’’ कपिल ने मौसी को भरोसा दिलाते हुए कहा.

पति शरद अपने काम के सिलसिले में घर से बाहर फील्ड पर रहता तो रात 9 बजे के बाद ही घर आता था. इसी समय मौसी के साथ मिल कर कपिल राय संदीप की हत्या की प्लानिंग बनाता.

कपिल राय भी अपने नाना के घर गुप्तेश्वर, जबलपुर आताजाता रहता था, इसलिए संदीप को वह अच्छी तरह से जानता था. कपिल उसे मामा कह कर बुलाता था. उसे पता था कि संदीप शराब का शौकीन है. कपिल ने मौसी को बताया कि उसे शराब पिला कर ही ठिकाने लगाना बेहतर होगा.

योजना के मुताबिक, 9 जनवरी को कपिल ने मौसी लक्ष्मी के मोबाइल से संदीप को काल कर के कहा, ‘‘हैलो मामा मैं कपिल बोल रहा हूं, नरसिंहपुर से आज ही मौसी के पास जबलपुर आया हूं. सोचा आज मामा के साथ महफिल जमा लूं.’’

इस तरह शराब पीने का न्यौता मिलने से संदीप की बांछे खिल उठीं. उस ने कपिल को सहमति देते हुए पूछा, ‘‘कहां पर आना है कपिल.’’

‘‘मामा कृपाल चौक आ जाओ. मैं स्कूटी ले कर आता हूं,’’ कपिल बोला.

शराब संदीप की बहुत बड़ी कमजोरी थी, वह शाम 7 बजे कपिल के बताए स्थान कृपाल चौक चला आया. कपिल अपनी मौसी की स्कूटी ले कर उसी का इंतजार कर रहा था. कपिल वहां से संदीप को ले कर तिलवारा के रास्ते चरगवां ले गया.

तब तक रात का अंधेरा हो चुका था, रास्ते में दोनों ने शराब पी कर इधरउधर की बातें की. कपिल ने बड़ी चालाकी से संदीप वगारे को अधिक शराब पिला दी.

जब वह नशे में धुत हो गया तो उसे बरगी कैनाल पर बने घुघरी सोमती पुल के ऊपर ले जा कर अपने मफलर से

संदीप का गला घोट दिया. थोड़ी ही देर में नशे में धुत संदीप की मौत हो गई.

कपिल शातिरदिमाग था, उस ने पहचान छिपाने के उद्देश्य से संदीप की जेब से उस का मोबाइल फोन और पर्स निकाल कर अपने पास रख लिया और अंधेरे का फायदा उठा कर संदीप को पुल के ऊपर से नहर में फेंक दिया.

घटना को अंजाम दे कर वह स्कूटी ले कर लक्ष्मी मौसी के घर आ गया. मौसी को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दे कर वह अपने घर नरसिंहपुर चला गया.

एडीशनल एसपी शिवेश सिंह बघेल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर मामले का खुलासा कर मीडिया को जानकारी दी. संदीप की हत्या के आरोप में लक्ष्मी और कपिल को गिरफ्तार कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने संदीप व लक्ष्मी की निशानदेही पर संदीप का मोबाइल फोन, पर्स और वारदात में प्रयुक्त उस की स्कूटी को जब्त कर ली.

केस की जांच टीआई विनोद पाठक कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

Crime: मर्द से औरत बनने का अधूरा ख्वाब

अरुण शारीरिक रूप से तो लड़का था, लेकिन उस की आदतें और स्वभाव लड़कियों की तरह थे. इसलिए उस ने अपना नाम मीशा रख लिया. मीशा के दोस्त जस्सी ने उस का औपरेशन करा कर उस की लड़की बनने की ख्वाहिश पूरी करने का वादा किया.

30अगस्त, 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार होने के कारण पुलिस स्टाफ ने सुबह

भोर होने तक सुरक्षा इंतजामों में ड्यूटी दी थी. इसीलिए तरुण मन्ना 31 अगस्त की सुबह 9 बजे जब साउथईस्ट दिल्ली के सरिता विहार थाने में अपने भाई अरुण की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने गया तो उसे थानाप्रभारी अनंत गुंजन से मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा. जब थानाप्रभारी अपने रेस्टरूम से तैयार हो कर औफिस में आए तो तरुण ने उन्हें अपने भाई के गायब होने की जानकारी दी. तब अनंत गुंजन ने तरुण से पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम्हारे भाई को क्या घर में किसी से झगड़ा हो गया था.’’

‘‘नहीं सर, कोई झगड़ा नहीं हुआ था कल शाम को 5 बजे वह यह कह कर घर से बाहर गया था कि 10 मिनट में वापस लौट आएगा अपने दोस्त जस्सी से मिलने जा रहा है.

‘‘जब करीब एक घंटा हो गया और वह लौट कर नहीं आया तो हमें चिंता होने लगी. हम ने उस का फोन भी मिलाया लेकिन वह स्विच्ड औफ था. इसी दौरान उस के दोस्त जस्सी का फोन मेरी मां शांति देवी के फोन पर आया और उस ने कहा मीशा से बात करा दो.’’

तरुण मन्ना ने जब यह बताया कि अरुण के दोस्त जस्सी ने उस की मां शांति देवी से मीशा से बात कराने के लिए कहा था तो थानाप्रभारी अनंत गुंजन चौंक पड़े. क्योंकि बात तो अरुण के बारे में हो रही थी, लेकिन अचानक बीच में मीशा का जिक्र कहां से आ गया.

इसलिए उन्होंने तरुण को रोक कर पूछा, ‘‘एक मिनट ये मीशा कौन है? क्या यह तुम्हारे घर की कोई सदस्य है?’’

‘‘नहीं सर, अरुण ने ही अपना नाम बदल कर मीशा रख लिया था, इसलिए अब उसे मीशा कहते हैं.’’

एसएचओ अनंत गुंजन का दिमाग घूम गया. भला कोई लड़का लड़कियों वाला नाम क्यों रखेगा. अचानक पूरे मामले में उन की दिलचस्पी बढ़ गई.

तरुण मन्ना ने अरुण के मीशा बनने की जो कहानी बताई, वह भी दिलचस्प थी. लेकिन इस समय उन के लिए यह जानना जरूरी था कि अरुण उर्फ मीशा आखिर क्यों और कैसे लापता हो गया. तरुण ने बताया कि जस्सी का फोन आने के बाद उस की मां चौंक पड़ीं. क्योंकि मीशा तो उन से यह कह कर गई थी कि वह जस्सी से मिलने जा रही है और जस्सी पूछ रहा था कि मीशा कहां है?

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तरुण के मुताबिक उस की मां ने जस्सी को बता दिया मीशा तो उस से मिलने की बात कह कर करीब एक घंटा पहले घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं लौटी है.

यह बात सुन कर जस्सी भी हैरान रह गया क्योंकि मीशा तो उस से मिलने आई ही नहीं. फिर उस ने अपने परिवार वालों से झूठ क्यों बोला.

इसी तरह कई घंटे बीत गए, लेकिन मीशा घर नहीं लौटी. जैसेजैसे वक्त गुजरता रहा, घर वालों की चिंता बढ़ती गई. परिवार वालों को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि कभी झूठ न बोलने वाला अरुण उर्फ मीशा ने घर से बाहर जाने के लिए जस्सी का नाम क्यों लिया था.

हैरानी वाली बात यह भी थी कि मीशा का फोन भी लगातार बंद आ रहा था. इस वजह से घर वालों को लग रहा था कि कहीं उस के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई.

तरुण मन्ना, उस की मां और पिताजी ने एक के बाद एक शाम से रात तक अरुण उर्फ मीशा के सभी दोस्तों को फोन किए, लेकिन उस का कहीं कोई सुराग नहीं लगा.

पूरी रात उन की आंखों में ही बीत गई. मीशा पूरी रात घर नहीं लौटी. तरुण मन्ना और उस के पिता ने आसपड़ोस के लोगों से भी मीशा के लापता होने का जिक्र किया तो सब ने सलाह दी कि उस की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाए.

इसी सलाह को मान कर तरुण मन्ना अपने एकदो पड़ोसियों को ले कर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सरिता विहार थाने पहुंचा था. सारी बात सुन कर थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने तत्काल ड्यूटी अफसर को बुला कर अरुण उर्फ मीशा (26) के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी और उस की जांच का जिम्मा तेजतर्रार एएसआई सत्येंद्र सिंह को सौंप दिया.

उन्होंने तरुण मन्ना को भरोसा दिया कि पुलिस इस मामले में अरुण उर्फ मीशा के दोस्त जस्सी की भी जांच करेगी कि कहीं इस मामले में उस की तो कोई मिलीभगत नहीं है.

जांच का काम हाथ में लेते ही एएसआई सत्येंद्र ने गुमशुदगी के मामलों में की जाने वाली सारी औपचारिकताएं करनी शुरू कर दीं. उन्होंने दिल्ली के सभी थानों और पड़ोसी राज्यों को मीशा का हुलिया और उस की फोटो भेज कर लापता होने की सूचना दे दी. साथ ही उन्होंने गुमशुदगी के लिए बने नैशनल पोर्टल पर भी जानकारी डाल दी.

एएसआई सत्येंद्र सिंह ने मीशा की गुमशुदगी से जुड़े पैंफ्लेट और पोस्टर छपवा कर सभी थानों में भिजवा दिए. उन्होंने अरुण उर्फ मीशा के भाई तरुण व परिवार के दूसरे सदस्यों से भी पूछताछ की. मसलन, उस की किनकिन लोगों से दोस्ती थी, वह कहां नौकरी करता था, किन लोगों के साथ उस का मिलनाजुलना था और किसी से उस की दुश्मनी या कोई विवाद तो नहीं था, आदि.

जांच की इस काररवाई व पूछताछ में 2-3 दिन का वक्त गुजर गया. चूंकि घर वाले बारबार मीशा के लापता होने में जस्सी का हाथ होने की बात कह रहे थे. लिहाजा एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ जस्सी का फोन नंबर ले कर उस के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवा ली.

उन्होंने तरुण मन्ना से जस्सी का पता ले कर जस्सी को पूछताछ के लिए सरिता विहार थाने बुलवा लिया.

एएसआई सत्येंद्र ने जब जस्सी से पूछताछ शुरू की तो उस ने बिना लागलपेट के बता दिया कि जिस शाम मीशा अपने घर से लापता हुई, उस ने उसी समय मीशा को फोन जरूर किया था. उस वक्त वह घर पर ही थी.

जस्सी ने बताया, ‘‘सर उस वक्त मैं सरिता विहार इलाके में था. मैं ने मीशा को फोन कर के पूछा था कि अगर वह फ्री है और घर में कोई जरूरी काम नहीं है तो वह आली बसस्टैंड पर आ कर मिल ले. क्योंकि उस दिन जन्माष्टमी थी और मैं उस के साथ मंदिर घूमना चाहता था.’’

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‘‘मीशा कितनी देर बाद आई?’’ एएसआई सत्येंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं आई सर, मैं करीब एक घंटे तक वहां खड़ा रहा लेकिन मीशा नहीं आई. फिर मैं ने सोचा चलो घर तो पास में ही है, वहीं जा कर मीशा से मिल लेता हूं.’’

एक क्षण के लिए सांस लेने के लिए रुक कर जस्सी ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, इसीलिए मैं ने मीशा का फोन लगा कर पूछना चाहा कि अगर वह नहीं आ सकती तो मैं खुद उस से मिलने के लिए घर आ जाता हूं. लेकिन सर उस का फोन भी स्विच्ड औफ मिला.

‘‘मैं ने कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला तो हार कर मैं ने मीशा की मम्मी को फोन कर लिया और उन से पूछा कि मीशा कहां है. लेकिन सर, मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि मीशा घर पर नहीं थी. पता चला कि वह मेरा फोन आने के कुछ देर बाद ही घर में यह बता कर कहीं चली गई थी कि वह जस्सी से यानी मुझ से मिलने जा रही है.’’

जस्सी ने पूरी कहानी साफ कर दी. और फिर एएसआई की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए कहने लगा, ‘‘सर, आप ही बताइए कि जब मीशा मेरी इतनी अच्छी दोस्त थी, हमारे बीच किसी तरह का कोई विवाद भी नहीं था. 2-4 दिन से नहीं करीब डेढ़दो साल से हम एकदूसरे के दोस्त हैं. मैं उस के घर भी आताजाता था. उस का मेरा कोई पैसे का लेनदेन भी नहीं था. कारोबारी दुश्मनी भी नहीं थी. तो फिर भला मैं उसे लापता या किडनैप क्यों करूंगा. और उस का किडनैप कर के क्या करूंगा. मैं तो खुद ही उस के लापता होने के बाद से बहुत परेशान हूं.’’ कहते हुए जस्सी की आंखें भर आईं.

पूछताछ करते हुए एएसआई सत्येंद्र लगातार जस्सी की आंखों को पढ़ रहे थे. उन्हें कहीं भी उस की बातों में झूठ नजर नहीं आया.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी से मीशा के बारे में और भी कई तरह की जानकारी ली. मसलन दोनों की दोस्ती कब हुई. दोनों के बीच में किस तरह के रिश्ते थे.

जस्सी ने एएसआई सत्येंद्र को अपने और मीशा के बारे में सब कुछ बता दिया. कुल मिला कर एएसआई सत्येंद्र जस्सी से पूछताछ में संतुष्ट नजर आए.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी को थानाप्रभारी अनंत गुंजन तथा अतिरिक्त थानाप्रभारी दिनेश कुमार तेजवान के सामने भी पेश किया. उन्होंने भी जस्सी से पूछताछ की, जिस में उस ने वही जवाब दिया जो उस ने एएसआई सत्येंद्र को दिया था.

इस दौरान एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस की जांचपड़ताल शुरू कर दी थी. जिस में एक बात की पुष्टि तो हो गई कि शाम के वक्त जस्सी ने मीशा को फोन किया था. फिर उस के आधा घंटे बाद मीशा का फोन बंद हो गया था.

अब तक की जांच में जस्सी के ऊपर शक करने की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी.॒ लेकिन मीशा को फोन करने वाला आखिरी शख्स जस्सी ही था, इसलिए उसे आसानी से शक के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता था.

एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स में उस के फोन की आखिरी लोकेशन देखनी शुरू की तो पता चला कि फोन की लोकेशन करीब आधे घंटे बाद फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में थी. इस के बाद मीशा के फोन की लोकेशन बंद हो गई थी.

मतलब साफ था कि फरीदाबाद के सराय अमीन में मीशा के फोन को या तो तोड़ दिया गया या कहीं फेंक दिया गया.

मीशा के फोन की काल डिटेल्स के बाद एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी के फोन की काल डिटेल्स की पड़ताल शुरू तो वह यह देख कर दंग रह गए कि जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहांवहां थी, जहां मीशा के फोन की लोकेशन थी.

जिस वक्त मीशा के फोन की आखिरी लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन में थी, ठीक उसी वक्त जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहीं थी.

एएसआई सत्येंद्र को न जाने क्यों अचानक मीशा के साथ अनर्थ की आशंका होने लगी. वह समझ गए कि जस्सी पुलिस के साथ खेल खेल रहा है.

मीशा के परिवार वालों ने उस के खिलाफ जो शक जाहिर किया था, वह एकदम सही था. एएसआई सत्येंद्र ने अब तक हुई विवेचना के बारे में तत्काल थानाप्रभारी अनंत गुंजन को बताया तो वह भी समझ गए कि मीशा के परिजनों ने जस्सी पर अपहरण का जो शक जाहिर किया था एकदम सही था.

किडनैपिंग की पुष्टि हो चुकी थी. लिहाजा अनंत गुंजन ने मीशा के भाई तरुण मन्ना को थाने बुलवा लिया और उस की शिकायत के आधार पर उसी दिन यानी 5 सितंबर को सरिता विहार थाने में अपहरण 365 आईपीसी का मामला दर्ज कर लिया.

अब इस मामले की जांच एडीशनल एसएचओ दिनेश कुमार तेजवान को सौंपी गई. अपराध की गंभीरता को समझते हुए अनंत गुंजन ने दक्षिणपूर्वी जिले के डीसीपी आर.पी. मीणा और सरिता विहार के एसीपी बिजेंद्र सिंह को पूरे मामले से अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान के सहयोग के लिए एएसआई सत्येंद्र के साथ हैडकांस्टेबल मनोज और अनिल को भी टीम में शामिल कर लिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र से पूरे मामले की एकएक जानकारी ली और एक टीम को जस्सी को पकड़ने के लिए फरीदाबाद की शिव कालोनी रवाना किया, जहां वह रहता था.

लेकिन जस्सी को शायद तब तक इस बात का अहसास हो चुका था कि पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए जब पुलिस वहां पहुंची तो वह नहीं मिला. इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र को जस्सी की गिरफ्तारी के काम पर लगा दिया और खुद यह पता लगाने में जुट गए कि मीशा आखिर कहां है. वैसे अब तक पुलिस को यकीन हो चुका था कि हो न हो जस्सी ने शायद उस की हत्या कर दी है.

चूंकि मीशा के फोन की लास्ट लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके की थी, इसलिए उन्होंने वहीं पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर दिया.

दिल्ली से लगते फरीदाबाद के सभी थानों में इस बात की जांचपड़ताल शुरू कर दी कि कहीं 30 तारीख से अब तक किसी लड़की का शव बरामद तो नहीं हुआ है. एनसीआर के सभी शहरों को जोड़ कर दिल्ली पुलिस के कुछ वाट्सऐप ग्रुप हैं, जिस में पुलिस अपराधियों से संबंधित किसी भी तरह की सूचना लेनेदेने का काम करती है.

इंसपेक्टर तेजवान ने इसी वाट्सऐप ग्रुप पर अरुण उर्फ मीशा की गुमशुदगी की जानकारी डाल कर फरीदाबाद पुलिस से जब जानकारी एकत्र करनी शुरू की तो पता चला की फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाना क्षेत्र में पुलिस को एक नाले से 4 सितंबर, 2021 की सुबह एक लाश मिली थी.

वह लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी. हालांकि वह लाश तो किसी पुरुष की थी, लेकिन उस के शरीर पर जो कपड़े थे वह महिलाओं वाले थे. तेजवान समझ गए कि हो न हो, ये लाश मीशा की ही होगी. उन्होंने मीशा के परिजनों को बुलवा लिया और उन्हें ले कर फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाने पहुंच गए.

वहां सेक्टर-17 पुलिस ने उन्हें बताया कि 4 सितंबर को नाले से जो अज्ञात लाश मिली थी, उस को अभी अस्पताल में प्रिजर्व कर के रखा गया है. सेक्टर-17 थाना पुलिस के साथ इंसपेक्टर तेजवान और मीशा के परिजन जब सिटी हौस्पिटल पहुंचे तो वहां पोस्टमार्टम के बाद मुर्दाघर में जो लाश रखी थी, वह इतनी सड़गल चुकी थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था.

लेकिन लाश के पहने हुए कपड़े देख कर मीशा की मां ने पहचान कर ली कि वह लाश मीशा की ही थी. इस के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त की औपचारिकता पूरी कर ली.

फरीदाबाद पुलिस ने मीशा का शव उस के परिजनों को सौंप दिया, जिस का उन्होंने अंतिम संस्कार कर दिया गया.

चूंकि मीशा की लाश बरामद हो चुकी थी, अत: अब ये मामला हत्या का बन चुका था. इसलिए उन्होंने मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ दी.

अब पुलिस सरगरमी से जस्सी की तलाश कर रही थी, क्योंकि उसी के बाद साफ हो सकता था कि मीशा की हत्या क्यों और कैसे की गई.

पुलिस टीम लगातार जस्सी के फोन को सर्विलांस पर लगा कर यह पता लगा रही थी कि उस की लोकेशन कहां है.

आखिर पुलिस को सफलता मिल ही गई. 12 सितंबर को पुलिस टीम ने जस्सी को फरीदाबाद के पलवल शहर से गिरफ्तार कर लिया, वहां वह अपने एक रिश्तेदार के घर छिपा था.

पुलिस ने जब जस्सी से पूछताछ की तो मीशा हत्याकांड की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

जस्सी (24) का पूरा नाम सुमित पाठक है. बिहार के रहने वाले जस्सी के परिवार में मातापिता और एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन है. पिता और भाई दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.

साधारण परिवार का जस्सी शुरू से एक खास तरह की आदत का शिकार था. उसे बचपन से ही लड़कियों के बजाय लड़कों में दिलचस्पी थी. उस का सैक्स करने का तो मन करता, लेकिन लड़कियों के साथ नहीं बल्कि लड़कों के साथ. यही कारण था कि कई ट्रांसजेंडर से उस की दोस्ती हो गई थी. 12वीं तक पढ़ाई के बाद जस्सी ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर के फरीदाबाद के एक फैशन से जुड़े एनजीओ में नौकरी कर ली.

एनजीओ में नौकरी के कारण जस्सी को अकसर कई फैशन शो और प्रोग्राम में एनजीओ की तरफ से जाना पड़ता था. करीब 2 साल पहले जस्सी की मुलाकात अरुण से हुई. उम्र में अरुण उस से 2 साल बड़ा था. पहली बार हुई मुलाकात में ही जस्सी को पता चल गया कि अरुण जन्म से लड़का जरूर है, लेकिन हारमोंस से वह पूरी तरह लड़की है.

लड़कियों जैसे हावभाव, चलनेफिरने और बात करने में लड़कियों की तरह अदाएं दिखाना. पहनावा और मेकअप भी अरुण ऐसा करता कि देखने वाला पहली नजर में लड़की समझने की भूल कर लेता.

अरुण के परिवार में मातापिता और एक छोटे भाई तरुण के अलावा कोई नहीं था. पिता आली गांव में ही पान का खोखा लगाते थे, जबकि मां और भाई बदरपुर स्थित प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करते थे.

अरुण के बचपन से ही लड़कियों की तरह व्यवहार करने और बदलते हारमोन को ले कर परिवार वाले भी परेशान थे. उन्होंने कई जगह उस का इलाज भी कराया, लेकिन जवान होते होते डाक्टरों ने जवाब दे दिया कि उस के हारमोन पूरी तरह बदल चुके हैं.

अरुण ने बड़े होने के बाद अपना नाम मीशा रख लिया और वह फरीदाबाद की ‘पहल’ एनजीओ में नौकरी करने लगा. मीशा और जस्सी की मुलाकात हुई तो जल्दी ही दोनों की दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई.

क्योंकि जस्सी को तो लड़कों में ही अधिक रुचि थी. वहीं मीशा को भी किसी ऐसे दोस्त की तलाश थी, जिस को लड़की में नहीं बल्कि लड़कों या लड़की के भेष में छिपी आधीअधूरी लड़की में रुचि हो.

दोनों में जल्द ही जिस्मानी संबध भी बन गए. मीशा की ख्वाहिश थी कि वह अपना सैक्स परिवर्तन करवा कर पूरी तरह लड़की बन जाए. एक दिन उस ने अपनी यह ख्वाहिश अपने पार्टनर जस्सी से बताई तो जस्सी ने मेहनत से जो पैसे जोड़े थे, उस में से 50 हजार रुपए खर्च कर के अरुण के ऊपरी भाग यानी ब्रेस्ट का औपरेशन करवा दिया.

औपरेशन के बाद सीने पर लड़कियों जैसे उभार निकलते ही मीशा की खूबसूरती में चारचांद लग गए. इस के बाद तो अरुण ने खुद को सार्वजनिक रूप से मीशा के रूप में परिचित कराना शुरू कर दिया. मीशा और और जस्सी के सबंध इस के बाद और भी प्रणाढ़ हो गए. दोनों साथ घूमते, साथ फिल्में देखते. इतना ही नहीं, जस्सी का मीशा के घर पर भी बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया था. मीशा के परिवार वालों ने भी इसे नियति मान लिया था. मीशा अब अपने लिंग का औपरेशन करवा कर पूरी तरह लड़की बनना चाहती थी.

हालांकि औपरेशन के बाद लड़कियों जैसे यौनांग तो एकदम तैयार नहीं हो पाते, लेकिन लिंग का औपरेशन करवा कर उस से अपने पुरुष होने की सजा से मुक्ति मिल जाती.

मीशा जस्सी से जिद करने लगी कि वह अपने निचले हिस्से का भी औपरेशन करवा कर पूरी तरह एक लड़की बनना चाहती है. वैसे जस्सी को उस के औपरेशन में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मीशा की जिद और खुशी के लिए जस्सी ने हां कर दी.

जस्सी ने उस से कहा कि अगले कुछ महीनों में जब उस के पास पैसे इकट्ठा हो जाएंगे तो वह औपरेशन करवा देगा. क्योंकि इस में करीब एक लाख रुपए का खर्च डाक्टरों ने बताया था.

जस्सी मीशा के ऊपर दिल खोल कर पैसा खर्च करता था. जस्सी के परिवार को भी यह बात पता थी कि वह एक ऐसी लड़की से प्यार करता है जो न तो पूरी तरह लड़का है और न ही लड़की.

परिवार वालों ने ऐसा रिश्ता जोड़ने के लिए उसे मना भी किया, लेकिन उस ने परिवार की एक नहीं सुनी.

इसी दौरान पिछले कुछ महीनों से धीरेधीरे मीशा के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा. वह क्लबों में जाने लगी. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बहुत सारे लोगों से उस की दोस्ती हो गई. वह उन के साथ नाइट पार्टियों में जाती. कुछ लोगों के साथ उस के घनिष्ठ संबध भी बन गए.

जब जस्सी को इस बात का अहसास होने लगा और उसे भनक लगी तो उस ने मीशा को रोकनाटोकना चाहा. लेकिन मीशा जिंदगी के जिस रास्ते पर चल पड़ी थी, वहां उस की मंजिल जस्सी नहीं था.

लिहाजा उस ने जस्सी से साफ कह दिया कि वह उसे अपनी प्रौपर्टी न समझे. वह किस के साथ घूमेगी, किस के साथ जाएगी, ये वह खुद तय करेगी.

जस्सी ने भी उस से एकदो बार कहा कि उस ने अपनी मेहनत की कमाई उस के औपरेशन और खर्चों पर इसलिए लुटाई थी ताकि वह उस की बन कर रहे. जस्सी ने उस से एक दिन गुस्से में यह तक कह दिया कि अगर वह उस की नहीं रहेगी तो किसी की नहीं रहेगी. लेकिन मीशा ने उस की बात हवा में उड़ा दी.

लेकिन यह बात मीशा ने अपनी मां को जरूर बता दी थी. जब जस्सी ने देखा कि मीशा पूरी तरह काबू से बाहर हो चुकी है. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों से मिलना देर रात तक उन के साथ पार्टी करना और मस्ती करना उस की आदत बन चुकी है तो उस ने तय कर लिया कि वह उस की हत्या कर देगा. इस के लिए उस ने पूरी साजिश रची. 30 अगस्त, 2021 को उस ने 4 बजे मीशा को फोन कर के उसे 10 मिनट के लिए घर के पास ही मिलने के लिए बुलाया.

मीशा जब उस से मिलने पहुंची तो वह उसे तुरंत मोटरसाइकिल पर बैठा कर यह कह कर अपने साथ ले गया कि अभी आधे घंटे में आते हैं. तुम्हारी किसी दोस्त से मुलाकात करानी है, जो तुम्हारे जैसा ही है. इसी उत्सुकता में मीशा विरोध न कर सकी.

वह 15 मिनट में ही मीशा को मोटरसाइकिल से दिल्ली से सटे फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में नाले के किनारे एक सुनसान जगह ले गया. वहां उस ने मीशा की गोली मार कर हत्या कर दी. मीशा का मोबाइल उस ने अपने हाथ में ले कर पहले ही बंद कर दिया था. हत्या करने के बाद उस ने शव को नाले में फेंक दिया. इस के बाद उस ने मीशा के मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया और फोन तोड़ कर नाले में फेंक दिया. मीशा का शव नाले में बहते हुए 5 किलोमीटर दूर सेक्टर-17 थाने की सीमा में पहुंच गया, जिसे 5 सितंबर को वहां की पुलिस ने बरामद कर लिया.

मीशा की हत्या करने के बाद जस्सी फिर से मोटरसाइकिल से आली गांव पहुंचा, जहां से उस ने मीशा की मां को फोन कर के मीशा से बात कराने के लिए कहा. फिर वह घर चला गया. पुलिस ने पूछताछ के बाद जस्सी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. पुलिस ने मीशा का मोबाइल बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जस्सी को 13 सितंबर, 2021 को अदालत में

पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त परिवार के कथन और आरोपी के बयान पर आधारित

डेथ रेप ड्रग्स: लड़कियों को मिली आजादी पर अंकुश

आमतौर पर हमारे यहां रेप का कुसूर पिछड़ी जातियों के उद्दंड बेरोजगार और कट्टर बन रहे नौजवानों पर डाला जाता हैजो दलित लड़कियों को रेप कर के जला तक डालते हैं. पर समस्याएं ऊंची जातियों में भी हैं और ओबीसी जातियों की लड़कियों में भीजो पैसे और पढ़ाईलिखाई के चलते अब मेनस्ट्रीम में आने लगी हैं. इन में एक समस्या डेट रेप की है.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली अनामिका मुंबई के अंधेरी इलाके के एक पेइंग गैस्टहाउस में रहती थी. वह एक पिछड़े समाज की खातेपीते घर की लड़की थीजो शहर में पढ़ने व काम करने आई थी. उस ने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली.

सुसाइड नोट में उस ने लिखा, ‘एक दिन जब मैं औफिस में थीतब मेरे ह्वाट्सएप में वीडियो मैसेज आया. वह जिस नंबर से आया थावह भारत का नहीं था. मेरे मन में उत्सुकता पैदा हुई कि आखिर यह किस बारे में है और किस ने भेजा है. मैं ने इंटरनैट से मालूम किया तो पता चला कि नंबर सिंगापुर से आपरेट किया जा रहा था.

मैं स्टाफरूम में गई और चुपचाप  मैसेज देखा. देख कर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गईक्योंकि वह मु?ा से ही संबंधित था. वह एक पोर्न फिल्म थी. मैं डर के मारे सिहर उठी.

घर आ कर मैं ने कई बार वीडियो मैसेज देखा. मैं हैरान थी कि उस में कई लड़कों को मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाते हुए दिखाया गया था. मु?ो यह तक याद न था कि यह कब व कैसे हुआ. उस में न मेरी तरफ से विरोध था और न ही मैं नशे की हालत में थी. बिना हीलहुज्जतपूरी सहमति से दिखाए गए इतने सारे सैक्स संबंध मु?ो डरा रहे थे. हर दृश्य में मैं तो साफतौर पर दिख रही थीपर सैक्स करने वालों के चेहरे छिपे हुए थे. अंत में धमकी भरी सूचना थी कि अमुक जगह व समय पर मिलोनहीं तो इसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा.

मु?ो सम?ा नहीं आ रहा था कि यह हादसा कब व कैसे घटित हुआजबकि मैसेज तनिक भी फर्जी नहीं लग रहा था.

मैं ने दिमाग पर बहुत जोर डालातब याद आया कि पिछली बार जब बौयफ्रैंड डेट’ पर ले गया थातब कान व गले में यही तो पहने थेजो उस वीडियो में नजर आ रहे हैं. ड्रिंक्स के बाद मैं असामान्य हो गई थी. इस वजह से रात वहीं गुजारनी पड़ी. मगर वहां रहते हुए ऐसा हुआयह सोच कर मैं हैरान थी.

ऐसा एमएमएस कबकहां व कैसे बना और बनाने व भेजने वाला कौन है का जवाब नहीं मिल रहा था. सब से बड़ी उल?ान यह थी कि वीडियो में मैं पूरे होशोहवास में सहयोग करती नजर आ रही थी. अगर बौयफ्रैंड को बताती या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जातीतो कैसे साबित करती कि जो हुआवह मेरी इच्छा के खिलाफ था.

इस के बाद मैं हथियार डालने को मजबूर हो गई. मेरी बोल्डनैस पलभर में छूमंतर हो गई. निश्चित समय व तय जगह पर पहुंचना मेरी मजबूरी थी. फिर तो मैं पतन के गर्त में समाती चली गई. मैं उन लोगों के हाथों की कठपुतली बन गई और गैंग रेप’ की शिकार होने लगी. बाद में पता चला कि मेरा बौयफ्रैंड फ्रौड था. वह उसी गैंग के लिए काम करता था. मेरी जैसी अनेक लड़कियां वहां पोर्न फिल्मों’ की हीरोइनें बनी हुई थीं. इस दलदल से निकलने के लिए खुदकुशी करने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता न था.

अफसोस तो मु?ो इस बात का है कि मैं ने बिना परखे बौयफ्रैंड बनाया और बाद में समय रहते पुलिस के पास नहीं जा पाईवरना मु?ो यह जलालत तो नहीं सहनी पड़ती.

रोहित शेट्टी की फिल्म संडे’ में सेहर नाम की लड़की लाख कोशिश करने पर भी एक संडे को याद नहीं कर पातीजबकि उस के लिए वह संडे खास थाक्योंकि जांच एजेंसियां उस संडे के बारे में उस से जानना चाहती थीं.

देखा जाएतो सेहर के गुम संडे और अनामिका के साथ घटे हादसे का राज समान ही नजर आता है और वह यह कि वे दोनों अनजाने में किसी की साजिश का शिकार बन गई थीं.

आमतौर पर ऐसे मामलों में लड़कियां ऐसी दवा की शिकार बन जाती हैंजिस के सेवन से शारीरिक व मानसिक रूप से वे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि ठीक तरह से विरोध भी नहीं कर पातीं. इन दवाओं में ऐसी चीजें मिली होती हैंजिन से यौन उत्तेजना बढ़ जाती है.

जाहिर हैऐसी हालत में पीडि़ता खिलाफत के बजाय सहयोगी बन कर सैक्स की भूख शांत करती नजर आती हैक्योंकि बढ़ी हुई यौन उत्तेजना के चलते जाहिर होने वाला विरोध भी दब कर रह जाता है और यही उस के पक्ष को कमजोर बना देता है. नतीजतनऐसे रेप या साजिश साबित नहीं हो पाती और वह ब्लैकमेल’ होने को मजबूर हो जाती है.

यह उन लड़कियों के लिए गंभीर चेतावनी हैजो पार्टियोंक्लबों या पबों में जाती हैं व खुद को बोल्ड’ साबित करने की धुन में नशे की आदी हो गई हैं.

ऐसी लड़कियां मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स से परहेज नहीं करतींकिंतु बोल्डनैस के चलते सैक्स के लिए समर्पित भी नहीं होतीं. ऐसी लड़कियों से निबटने के लिए गलत मर्द साथी ड्रिंक्स में यह दवा मिला देते हैंजिन्हें डेट रेप ड्रग्स’ के नाम से जाना जाता है. इस के बाद वे बेखौफ उन्हें जिस्मानी शोषण का शिकार बना लेते हैं और ब्लैकमेल’ करते रहने के लिए पुख्ता सुबूत भी जुटा लेते हैं. गामा हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड के नाम से जानी जाने वाली एक ड्रग्स इन्हीं में से है.

जयपुर के जगतपुरा क्षेत्र में डेट रेप ड्रग्स’ की खेपें जाती रहती हैंक्योंकि इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है. इन में से एक केटामाइन प्रतिबंधित दवा भी हैजो मानसिक मरीजों के लिए इस्तेमाल होती हैपर इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल नाइट क्लबोंरेव पार्टियों में होने लगा है. इन्हें लेने वाला तकरीबन होश खो देता है और होश में आने पर अपराध में शरीक रहे अपराधियों तक को नहीं पहचान पाता.

फोरैंसिक माहिरों का कहना है कि आमतौर पर पार्टी के दौरान लड़कियों को कैटामाइन इंजैक्शन या ड्रिंक्स के रूप में दिया जाता है. इस के बाद वे सपने जैसी हालत में पहुंच जाती हैं. होश में आने पर उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता. इस तरह वे बेहोश तो नहीं होतींपर सोचनेसम?ाने व पहचानने तक की ताकत खो बैठती हैं.

यहां तक कि वे बौयफ्रैंड और दूसरे में फर्क नहीं कर पातीं. तभी तो ऐसी क्लब पार्टियों में पार्टनरों के बदलते रहने के चलते वे गैंग रेप’ की शिकार बन जाती हैं और होश में आने के बाद न अपने बरताव को याद कर पाती हैं और न ही बलात्कारी पार्टनरों को पहचान पाती हैं.

गांवों व छोटे कसबों से आने वाली लड़कियां आमतौर पर शहरी बनने के चक्कर में बहुत से जोखिम भी लेती हैंइसलिए वे हर न्योते को स्वीकार कर लेती हैं. उन्हें अपने शारीरिक दम पर भरोसा होता हैपर ये ड्रग्स दिमाग पर काम करती हैंशरीर के मसल्स पर नहीं.

जहां तक इन दवाओं से सावधान रहने की बात हैयह भी तकरीबन नामुमकिन सा ही हैक्योंकि ऐसी दवाएं रंगगंध व स्वादहीन होती हैंइसीलिए इन्हें आसानी से बिना जानकारी के किसी भी पेय पदार्थ में मिला कर पिलाया जा सकता है. इसे पानी के साथ भी दिया जा सकता है. पीने वालों को तनिक भी पता नहीं चलता और वे सहज विश्वास से उसे पी जाते हैं.

इस के कुछ समय बाद ही दवा अपना असर दिखाने लगती है. साजिश रचने वाला इंतजार में रहता है. उस का तनिक सा आमंत्रण सभी दूरियां मिटा देता है और वह हालात का फायदा उठाने से नहीं चूकता.

डाक्टरों का कहना है कि ऐसी

ड्रग्स का बेसिक कंपोनैंट है हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड’. इस का असर तकरीबन 6 से 8 घंटे तक बना रहता है. यह दवा शरीर में तकरीबन

12 घंटे तक रहती है. 8 से 12 घंटे की अवधि तक उसे लेने वाली लड़की ढुलमुल व मतिभ्रम की शिकार बनी रहती है. अगर 12 घंटे में उस की पैथोलौजिकल जांच हो जाएतब तो दवा दिए जाने के सुबूत मिल सकते हैंवरना वे पता नहीं चल पाते. जाहिर है कि इतने समय में पीडि़त के सामान्य न होने से मामले का पता नहीं चल पाता और अपराधी के कांड पर परदा पड़ा रह जाता है.

पश्चिमी देशों में इस तरह की घटनाएं घटित होना आम बात है. अकेले ब्रिटेन में हर हफ्ते तकरीबन 30 से ज्यादा महिलाएं ऐसे हादसों की शिकार बनती हैं.

ये आंकड़े उन महिलाओं के हैंजो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा पाती हैं. जाहिर हैअनेक महिलाएं ऐसी भी होंगीजिन्हें अपराधियों द्वारा समयसमय पर उपयोग तो किया जाता हैकिंतु उन्हें उस का ज्ञान तक नहीं होता. यह भी मुमकिन है कि उन्हें पता तो चल गयापर उलट हालात को देखते हुए ब्लैकमेल होना नियति मान बैठी हों और पुलिस के पास जाना उन्हें फुजूल लग रहा हो.

जरूरी है कि लड़कियां ऐसे मामलों से बच कर रहेंखासकर वे जो पार्टियोंक्लबोंपबों या बार में जाती हैं और मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स लेने की आदी हैं. न जाने कौनकब उन के ड्रिंक्स में कुछ मिला दे और अपना शिकार बना ले. इसी तरह जो लड़कियां दोस्त या मंगेतर के साथ डेट’ पर जाती हैंवे भी आसानी से विश्वासघात की शिकार बन सकती हैं.

दिल्ली में द्वारका में एक लड़कीजो 12वीं क्लास की छात्रा थीमहीनों तक इसी तरह की डेट रेप ड्रग्स की शिकार रही. उसे बारबार पेटीएम से पैसे भेजने को कहा जाता रहा. आखिर में उसे मातापिता को विश्वास में ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करानी पड़ी.

चाहे अपराधी पकड़ में आ जाएपर करीब के सब लोग लड़की के कारनामोें को जान जाते हैं और नाम बताए जाने के बाद वह बदनाम हो जाती है.        

प्रेमी की खातिर पति को मौत का संदेश: भाग 3

इस मुलाकात में दोनों के जवानी में तपते हुए तन एकदूसरे के नजदीक आए तो फिर एकदूसरे में समा कर ही अलग हुए. जवानी के पहले पायदान पर पे्रमी के संग सैक्स सुख के अनुभव ने नीलम को पागल कर कर दिया था.

इस के बाद वह खुल कर रोहित से मिलने लगी. छोटे से कस्बे में 2 प्रेमियों की यह नजदीकी जल्द ही लोगों में चर्चा का विषय बन गई.

बात रोहित के अलावा नीलम के घर पर भी पहुंच गई थी. लेकिन अब तक रोहित और नीलम एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताने की कसमें खा चुके थे.

बात रोहित के घर वालों के अलावा नीलम के घर तक पहुंच गई थी. रोहित ने देखा कि पारिवारिक दबाव के बाद भी नीलम पीछे नहीं हट रही है तो रोहित भी जिद पर अड़ गया.

स्कूल के बाद रोहित राजपूत डीजे का काम करने लगा. जबकि नीलम के दिल में रोहित के प्यार की गूंज उस के डीजे की आवाज से कहीं ज्यादा ऊंची आवाज में गूंजती थी. वक्त के साथ नीलम के घर वालों ने झाबुआ निवासी लकी पांचाल के साथ उस का रिश्ता पक्का कर दिया.

नीलम नहीं चाहती थी कि वह रोहित के अलावा किसी और की दुलहन बने. इसलिए यह देख कर नीलम ने रोहित को संदेश पहुंचा दिया कि वह जल्द से जल्द घर आ कर उस के घर वालों से शादी की बात करे. लेकिन शायद रोहित हिम्मत नहीं जुटा सका.

इस के बाद इसी साल जनवरी महीने में नीलम की लकी के साथ शादी हो गई तो वह झाबुआ आ गई.

नीलम ने मजबूरी में लकी के साथ शादी तो कर ली, लेकिन वह अपने मन से अपने प्यार रोहित को नहीं भुला पा रही थी. इसलिए जैसे ही वह शादी के बाद पहली बार मायके गई, वह कटला पहुंच कर अपने पे्रमी रोहित से मिली.

वास्तव में नीलम मिली तो थी रोहित से उस की बुजदिली की शिकायत करने, लेकिन नीलम को देखते ही रोहित ने उसे अपनी बांहों में भर लिया तो नीलम सारी शिकायतें भूल कर प्रेमी के संग एक बार फिर प्यार के सागर में डूब गई.

पुराने प्यार की कहानी एक बार फिर नए जोश के साथ शुरू हो जाने के चलते नीलम जितने दिन भी मायके में रही, लगभग रोज किसी न किसी तरह रोहित से मिलती थी.

रोहित की मोहब्बत में डूबी नीलम वापस ससुराल नहीं जाना चाहती थी, इसलिए एकदो बार लकी ने उसे लिवाने के लिए कटला आने का प्लान बनाया तो नीलम ने बहाना बना कर उसे टाल दिया.

जांच में सामने आया कि लकी के साथ नीलम की शादी को केवल 5 महीने ही हुए थे. इस दरमियान नीलम 20 दिन भी अपनी ससुराल नहीं रही थी. इतना ही नहीं, वह जितने दिन भी ससुराल में रही, खुद को अपने कमरे में बंद कर दिन भर रोहित से फोन पर बातें किया करती थी.

इस बात की गवाही नीलम के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स ने दी. एक दिन में 9 घंटे बात होने की जानकारी काल डिटेल्स से पुलिस को मिली.

कुछ दिन पहले जब नीलम झाबुआ से वापस मायके गई तो उस ने उसी दिन रोहित से साफ कह दिया था कि लकी की बांहों में उसे कांटे चुभते हैं. इसलिए अब वह कभी झाबुआ नहीं जाएगी.

ऐसे में रोहित ने नीलम को लकी से तलाक लेने को कहा तो उस का कहना था कि वह इतना इंतजार नहीं कर सकती. इसलिए उस ने रोहित को ही लकी को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की चुनौती  दी ताकि दोनों साथ रह सकें.

इस के बाद मार्च महीने में ही दोनों ने लकी को खत्म करने की ठान ली थी. चूंकि इस काम में रिस्क बहुत था, इसलिए लकी की हत्या उस ने सुपारी किलर से कराने की योजना बनाई.

डीजे का काम करते हुए लकी ब्याज पर भी पैसे बांटता था. इसलिए काम का फायदा उठाने की योजना बना कर 3 कर्जदार बच्चू उर्फ बस्सू, मांगू उर्फ मग्गू, रंजीत और पप्पू से बात की.

दरअसल, रोहित ने इन सभी आरोपियों को लगभग 3 लाख रुपए उधार दिए हुए थे. इसलिए रोहित ने इन पर उधार दिया पैसा वापस मांग कर दबाव बनाया, जिस के बाद उन्हें लालच दिया कि अगर वे मिल कर लकी की हत्या कर दें तो वह न केवल उन का यह कर्ज माफ कर देगा, बल्कि उन्हें 60 हजार रुपए और भी देगा.

इस तरह कुल 3 लाख 60 हजार रुपए की सुपारी दे कर रोहित ने उक्त आरोपियों को लकी की हत्या के लिए राजी कर लिया और इस बात की खबर अपनी पे्रमिका नीलम को दी और उस के संग योजना बना कर मौके की तलाश करने लगे.

लेकिन धीरेधीरे 2 महीने बीत गए, रोहित लकी की हत्या के लिए मौका नहीं तलाश पाया. दूसरी तरफ लकी बारबार नीलम को फोन कर झाबुआ आने को कह रहा था. इस पर वह रोहित को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाने को बोलने लगी.

संयोग से 2 जून को रोहित की मां की मृत्यु हो गई तो रोहित ने अपनी मां की मृत्यु का उपयोग अपनी मोहब्बत को हासिल करने में किया. उस का कहना था कि मां की मौत के कारण पुलिस उस पर शक नहीं करेगी.

जब यह बात उस ने नीलम को बताई तो उस ने कहा कि ऐसा है तो ठीक है. तुम आदमी तैयार कर लो मैं लकी को जाल में फंसा कर मौत के पास ला कर खड़ा कर देती हूं.

इस के बाद नीलम ने लकी को फोन कर मीठीमीठी बातें कर उसे कटला बुला लिया. चूंकि इस से पहले नीलम ने कभी लकी को कटला आने को नहीं कहा था, इसलिए जब उस ने लकी को अपनी बातों मे फांस कर कटला आ कर अपने साथ लिवा जाने को कहा तो पत्नी की बात सुन कर लकी दूसरे दिन ही नीलम को लिवाने कटला के लिए निकल पड़ा.

जिस के बाद रास्ते में घात लगा कर बैठे सुपारी किलर लकी की हत्या कर पिपलौदा बड़ा के जंगल में लाश फेंक कर वापस गुजरात चले गए. लकी की हत्या की बात सुन कर नीलम बहुत खुश हुई, लेकिन पति की हत्या पर दुखी होने का नाटक कर तेरहवीं का इंतजार करने लगी.

दरअसल, उस की योजना लकी की तेरहवीं होने के बाद हमेशा के लिए मायके चली जाने की थी. लेकिन लकी ही हत्या के 7 दिन के बाद ही एसपी अरविंद तिवारी के निर्देशन में गठित टीम ने दोनों मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही सुपारी किलर भूमिगत हो गए थे. कथा लिखे जाने तक वे  गिरफ्तार नहीं हुए थे.

पुलिस ने लकी पांचाल की हत्या की आरोपी उस की पत्नी नीलम और उस के प्रेमी रोहित राजपूत को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्

सत्यकथा: जब पत्नी ने मांगा रानीहार

   —जगदीश प्रसाद शर्मा ‘देशप्रेमी’  

29 दिसंबर, 2021 की रात को देहरादून के थाना नेहरू कालोनी के थानाप्रभारी प्रदीप चौहान इलाके में गश्त लगा रहे थे. तभी उन्हें वायरलेस से पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा डिफेंस कालोनी से सटे फ्रैंड्स एनक्लेव में एक महिला के आत्महत्या करने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी थाने से सिपाही देवेंद्र और विजय को साथ ले कर फ्रैंड्स कालोनी जाने के लिए निकल पड़े.

इस की जानकारी चौहान ने सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी थी. साथ ही चौहान ने डिफेंस कालोनी पुलिस चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को भी घटनास्थल पर जल्दी पहुंचने को कह दिया.

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मात्र 10 मिनट में ही थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां जमा भीड़ को हटा कर पुलिस सूचना में बताए गए मकान के भीतर पहुंची तो वहां करीब 32 वर्षीया एक महिला बिछावन पर मृत पड़ी थी. उस का गला धारदार हथियार से रेता हुआ था.

उस शव के पास ही एक चाकू और कपड़े इस्तरी करने की आइरन का तार पड़ा हुआ था. शव के पास ही करीब एक साल का बच्चा लेटा था. जबकि उसी कमरे के कोने में एक 7 वर्षीय लड़की डरीसहमी सी खड़ी थी.

मौके की जांचपड़ताल के बाद थानाप्रभारी ने पाया कि शायद महिला की गला काट कर हत्या की गई है.वहां मौजूद आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर मृतका का नाम श्वेता श्रीवास्तव मालूम हुआ. उस का पति सौरभ श्रीवास्तव घर पर नहीं मिला. पड़ोसियों ने बताया कि वे इस मकान में काफी समय से रह रहे थे. घटना के बाद सौरभ श्रीवास्तव अपनी स्कूटी ले कर कहीं चला गया था.

शव और घटना की जानकारी जुटाए जाने के दरम्यान सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल भी वहां पहुंच गईं. पुलिस ने श्वेता की मौत की सूचना उन की बेटी के मोबाइल से उस के मायके वालों को दे दी.

फिर मौके की काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए दून अस्पताल भेज दिया. बच्चों को पड़ोसियों ने संभाल लिया. श्वेता की मौत की खबर पा कर उस के पिता अजय कुमार श्रीवास्तव भागेभागे कुशीनगर से देहरादून आ गए.

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अगले दिन ही अजय कुमार ने थाने पहुंच कर थानाप्रभारी से अपनी बेटी श्वेता के संबंध में जानकारी ली. पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार श्वेता की गला काट कर हत्या हुई थी. थानाप्रभारी ने जब उन से किसी पर शक करने के बारे में पूछा तो अजय ने साफ कह दिया कि उन की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का दामाद सौरभ श्रीवास्तव ही है.

उस के बाद अजय श्रीवास्तव ने अपने दामाद सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ अपनी बेटी श्वेता की हत्या करने की तहरीर थानाप्रभारी को दे दी. अजय कुमार की तहरीर पर सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ श्वेता श्रीवास्तव की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस हत्याकांड की जांच डिफेंस कालोनी चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को सौंपी गई थी. हत्या का आरोपी सौरभ फरार हो गया था. उस की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए गए थे.

अजय श्रीवास्तव ने स्थानीय लोगों की मदद से श्वेता के शव का अंतिम संस्कार देहरादून के ही श्मशान घाट में कर दिया था.

उस के 3 दिन बाद नेहरू कालोनी पुलिस को श्वेता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. रिपोर्ट में श्वेता की मौत का कारण गला काटना बताया गया था. उस के बाद तो पुलिस के सामने सौरभ को गिरफ्तार करना बड़ी चुनौती बन गई थी.

उस की खोजबीन और पकड़ के लिए एसएसपी जन्मेजय खंडूरी ने एसओजी टीम को भी लगा दिया. नए सिरे से पुलिस की 2 टीमों का गठन किया गया था.

बात 31 जनवरी, 2022 की है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. एसओजी टीम को मुखबिर के द्वारा एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिली. उस सूचना के आधार पर एसओजी टीम थानाप्रभारी प्रदीप चौहान के साथ डिफेंस कालोनी की एक सुनसान जगह पर पहुंच गई.

वहां पर सड़क के किनारे एक बड़े पत्थर पर एक युवक खोयाखोया सा बैठा था. मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. हिरासत में लेते ही वह युवक बोला, ‘‘अरे, मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैं ने क्या किया है?’’

‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है, इसलिए चुपचाप थाने चलो,’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ थाने पहुंचने पर थानाप्रभारी ने उस से पूछा. वह युवक चुप रहा.

‘‘जल्दी बताओ,’ उस के कुछ नहीं बोलने पर थानाप्रभारी ने डपट दिया.

‘‘जी…जी, सौरभ श्रीवास्तव.’’

‘‘पिता का नाम?’’

‘‘शंभूलाल श्रीवास्तव.’’

‘‘पूरा पता बताओ,’’ चौहान बोले.

‘‘कुशीनगर जिले का रहने वाला हूं. देहरादून में फ्रैंड्स एनक्लेव में रहता हूं.’’

‘‘इसे तुम पहचानते हो?’’ यह कहते हुए चौहान ने अपने मोबाइल की एक तसवीर उस के सामने कर दी. तसवीर देख कर सौरभ चुप लगा गया.

‘‘जवाब दो, हां या नहीं?’’

‘‘जी, पहचानता हूं. यह मेरी पत्नी श्वेता है.’’

‘‘वह अभी कहां है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम?’’ सौरभ बोला.

‘‘नहीं मालूम मतलब? कई दिनों से तुम कहां थे?’’

‘‘कंपनी के काम के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था,’’ सौरभ ने बताया. उन दिनों में पत्नी और परिवार की तुम ने कोई खोजखबर क्यों नहीं ली?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, मेरा मोबाइल दिल्ली जाते समय खो गया था.’’

‘‘इसे देखो,’’ चौहान ने दूसरी तसवीर उस के सामने कर दी. तसवीर देख कर उस के मुंह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी. सर्दी में भी उस के चेहरे पर पसीना आ गया था. उस ने सिर झुका लिया और फफकफफक कर रोने लगा.

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दरअसल, वह तसवीर भी उस की पत्नी श्वेता की ही थी, लेकिन तसवीर में वह मृत थी. सौरभ को रोता देख कर एक पुलिसकर्मी ने पानी का गिलास ला कर उस के सामने रख दिया. सौरभ एक सांस में पूरा पानी गटागट पी लिया.

सौरभ थाने में अपनी पत्नी की लाश के फोटो देख कर हिल गया था. उस से श्वेता की हत्या की बाबत विस्तार से पूछताछ होने लगी. वह एक माह तक खुद को बचातेबचाते शरीर और दिमाग से काफी थक गया था. टूट चुके सौरभ ने पुलिस को पत्नी की हत्या के बारे में जो कुछ बताया, वह इस प्रकार था—

उत्तर प्रदेश में जिला कुशीनगर के पिटेरवा कस्बे के रहने वाले अजय कुमार श्रीवास्तव ने अपनी बेटी श्वेता श्रीवास्तव की शादी साल 2014 में हरिद्वार निवासी सौरभ श्रीवास्तव के साथ की थी.

श्वेता 6 माह ससुराल में रहने के बाद अपने पति के साथ देहरादून आ गई थी. ग्रैजुएट सौरभ को सरकारी नौकरी भले ही नहीं मिली थी, लेकिन वह सीएसडी कंपनी में मार्केटिंग के काम से संतुष्ट था.

उस की इतनी कमाई हो जाती थी कि वह पत्नी के शौक पूरे कर सके. उस की पसंद के कपड़े दिलवा सके. साथसाथ घूमनेफिरने जा जा सके, रेस्टोरेंट में डिनर कर सके, या फिर कीमती सामानों में एंड्रायड फोन या ज्वैलरी आदि की खरीदारी करने में नानुकुर नहीं करे. सौरभ की कोशिश रहती थी कि वह पत्नी की ख्वाहिश हरसंभव पूरी करता रहे.

दोनों की जिंदगी हंसीखुशी से गुजरने लगी थी. समय का पहिया भी अपनी गति से घूम रहा था. खुशहाल जीवन बिताते हुए श्वेता 2 बच्चों की मां बन गई थी. पहली संतान बेटी और उस के बाद बेटे के जन्म के बाद सौरभ ने पत्नी से परिवार पूरा होने की बात कही थी. पत्नी ने भी संतोष जताया था.

इसी के साथ सौरभ अपने छोटे से परिवार को हमेशा खुश रखने की कोशिश में रहने लगा था. अपने बढ़े हुए खर्च को पूरा करने के लिए सौरभ और मेहनत करने लगा था, ताकि पत्नी की कोई फरमाइश अधूरी न रह जाए.

यह कहा जा सकता है कि सौरभ और श्वेता के दांपत्य जीवन की गाड़ी पटरी पर सरपट दौड़ रही थी. इस में खलल तब पड़ गई, जब 2 साल पहले कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा और लौकडाउन से अचानक कई विकट परिस्थितियां पैदा हो गईं.

सौरभ का कामधंधा भी प्रभावित हो गया. आमदनी धीरेधीरे कम होने लगी. इस के विपरीत श्वेता ने घरेलू खर्च, अपनी फरमाइशों और शौक में कोई कमी नहीं आने दी.

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शुरुआत में तो कुछ महीने तक सौरभ जमापूंजी काम में लाता रहा, किंतु जैसेजैसे लौकडाउन की तारीखें बढ़ती चली गईं, वैसेवैसे उस की हालत बिगड़ने लगी. नौबत कर्ज ले कर घर खर्च पूरे करने की आ गई.

कुछ महीने बाद लौकडाउन में ढील मिली, लेकिन उस का काम पहले की तरह रफ्तार नहीं पकड़ पाया. इस के विपरीत श्वेता के फरमाइशों की लिस्ट बढ़ती रही. एक दिन सौरभ के काम से घर लौटते ही उस ने टोका, ‘‘तुम्हें कुछ याद है?’’

‘‘क्या याद नहीं है? मैं कुछ समझा नहीं.’’ सौरभ बोला.

‘‘मैं जानती हूं, तुम जानबूझ कर अनजान बन रहे हो,’’ श्वेता ने मुंह बना कर कहा, ‘‘तुम्हें सच में कुछ नहीं पता या कोई और बात है?’’

‘‘अरे, साफसाफ बोलो न, बात क्या है?’’ सौरभ ने पूछा.

इसी बीच उस की बेटी आ कर बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, आज मम्मी का बर्थडे है. आप ने सुबह हैप्पी बर्थडे भी नहीं बोला.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. लो, अभी बोल देता हूं,’’ यह कहते हुए सौरभ ने ‘हैप्पी बर्थडे श्वेता डार्लिंग,’ बोल दिया.

‘‘केवल विश करने से नहीं होगा. बर्थडे गिफ्ट लाओ,’’ श्वेता बोली.

‘‘तुम कैसी बात करती हो, तुम्हें मालूम है, इन दिनों मेरा काम पहले की तरह नहीं चल रहा है,’’ सौरभ उदास लहजे में बोला.

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘देखो, मुझे समझने की कोशिश करो. ऐसा तो पहली बार हुआ है, जब मैं तुम्हें बर्थडे गिफ्ट नहीं दे पा रहा हूं. पिछली बार तुम्हारी पसंद का मोबाइल फोन दिया था,’’ सौरभ बोला.

‘‘उस फोन पर तो बेटी का कब्जा हो गया है. उसी से पढ़ाई करती है.’’

‘‘अच्छा चलो, बर्थडे गिफ्ट उधार रहा मुझ पर.’’ सौरभ ने समझाया.

‘‘चलो मैं मान गई, लेकिन कम से कम आज कहीं डिनर पर तो ले चलो,’’ श्वेता बोली.

‘‘फिर वही बात श्वेता, अभी मैं एकएक पैसा जोड़ रहा हूं और तुम खर्च बढ़ाने की बात कर रही हो,’’ सौरभ तुनकते हुए बोला.

‘‘कितना खर्च बढ़ जाएगा? देखो, आज मैं ने घर में कुछ पकाया भी नहीं है. महीनों से घर में पड़ेपड़े बोर होने लगी हूं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘बाहर जाने में कई दिक्कतें हैं. वैसे भी रेस्टोरेंट में बैठ कर खाने पर रोक है.’’

‘‘तब कुछ औनलाइन ही मंगवा लो.’’ श्वेता के बोलते ही दूसरे कमरे से बेटी बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, पिज्जा मंगवाना. मैं चीज वाला और्डर सेलेक्ट करूंगी. उस में कोल्डड्रिंक्स फ्री मिलेगा. …और मम्मी, चौकलेट वाला केक भी मंगवाना.’’

सौरभ और श्वेता के बीच बहस जैसी बातचीत औनलाइन और्डर पर आ कर थम गई. उस रोज सौरभ को 1150 रुपए का एक्सट्रा खर्च आ गया. श्वेता का बर्थडे घर पर ही  मना लिया गया, किंतु सौरभ इस चिंता में पड़ गया कि वह स्कूटी की किस्त कैसे दे पाएगा.

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उस के बाद सौरभ ने खुद को कंपनी के काम में झोंक दिया. काफी मुश्किलों के बाद जरूरी खर्च पूरे करने लगा, लेकिन कर्ज चुका पाने में असमर्थ बना रहा. कभी घर की परेशानी तो कभी काम में आने वाली रुकावटों से जूझता रहा. परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वाह करतेकरते वह थक सा गया था.

हालांकि वह जितना परेशान अपने काम को ले कर नहीं रहता था, उस से कहीं अधिक श्वेता की बातों को ले कर तनाव में रहता था.

श्वेता की फरमाइशें तो जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कई बार तो अपनी मांगों के लिए बच्चों की तरह जिद पकड़ लेती थी. इस बीच कोरोना का दूसरा फेज भी आया. उस झटके ने उसे और भी झकझोर कर रख दिया. पत्नी की फिजूलखर्ची से वह तंग आ गया था. इस की वजह से वह मकान मालिक को 3 महीने का किराया नहीं दे पाया था, जिस से वह काफी तनाव में रहने लगा था. इस के बाद भी श्वेता ने अपने खर्च कम नहीं किए थे. वह उस से रोज अपने खर्च के लिए पैसे मांगती रहती थी.

इसी दौरान सौरभ की छोटी बहन की शादी 10 फरवरी, 2022 को होनी तय हो गई थी. जब सौरभ ने श्वेता को शादी में चलने के लिए कहा तो वह इस बात पर अड़ गई थी कि वह शादी में तभी जाएगी, जब वह उसे रानीहार खरीद कर देगा.इस पर सौरभ ने उसे काफी समझाया कि शादी में पहले के जो जेवर हैं उन्हीं को पहन ले, लेकिन उस की जिद थी कि नया रानीहार ही चाहिए.

सौरभ की समस्या यह थी कि उसे शादी के लिए और भी दूसरे खर्च करने थे. सभी को नए कपड़े दिलवाने थे. बेटी को अच्छा फ्रौक और सैंडल खरीदने थे. जबकि पत्नी रानीहार की जिद पर अड़ी रही.

29 दिसंबर, 2021 की रात को श्वेता उस से रानीहार दिलाने के लिए बुरी तरह से झगड़ पड़ी. तब तक सौरभ का दिमाग काम करने की स्थिति में नहीं बचा था. पत्नी के व्यवहार से उसे काफी गुस्सा आ गया. बेटी दूसरे कमरे में सो रही थी. तूतूमैंमैं काफी बढ़ गई.

बात बढ़ने पर सौरभ ने पत्नी को गुस्से में उठा कर उसे बिछावन पर पटक दिया. उस के बाद पहले बच्चे की बैल्ट, फिर आइरन के तार से ही उस का गला कस दिया. दम घुटने से श्वेता तड़प उठी. तब सौरभ तुरंत किचन से चाकू लाया और पत्नी का गला रेत डाला. उस की मौत के बाद वह बच्चों को उसी हालत में छोड़ कर स्कूटी से चला गया था.

श्वेता की हत्या के बाद वह देहरादून के ही अलगअलग स्थानों पर छिपता रहा. उस ने पुलिस पर नजर बनाए रखी. जब विधानसभा की ओर से डिफेंस कालोनी की ओर आ रहा था, तब काफी थके होने के कारण सुस्ताने के लिए सड़क किनारे एक बड़े पत्थर पर ओट ले कर बैठ गया था. तभी पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस ने सौरभ श्रीवास्तव के बयान दर्ज कर के अगले दिन उस का मैडिकल करवाया. उसी दिन उसे अदालत में पेश कर दिया, जहां से वह जेल भेज दिया गया. सौरभ द्वारा श्वेता की हत्या में प्रयुक्त चाकू व आइरन की तार, बेल्ट आदि पहले से ही बरामद हो चुकी थी. कथा लिखे जाने तक सौरभ श्रीवास्तव देहरादून जेल में बंद था. दोनों बच्चों को अजय श्रीवास्तव अपने साथ कुशीनगर ले गए थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सत्यकथा: इश्क में दिल हुआ बागी

     —मुकेश तिवारी/पंकज द्विवेदी 

गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

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पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

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साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी.

उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है. बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

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नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी.

रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया. कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी.

लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लमखुल्ला घूमताफिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

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रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

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