सोनू सूद को “भगवान” बना दिया! धन्य है भारत देश

चढ़ते सूरज को यहां नमस्कार करने वालों की कमी नहीं, फिर चाहे बाद में वहां गिद्द ही क्यों नहीं मंडलाने लगे. ऐसा ही अजूबा अब फिल्म दुनिया में खलनायक के रूप में मशहूर और स्थापित हो चुके सोनू सूद के मामले में देखने को मिल रहा है.उन्हें भगवान का दर्जा देकर मंदिर बना दिया गया है. और पूजा का ढकोसला चल रहा है. यही नहीं मीडिया भी इसे लताड़ने की जगह महत्व दे रही है. सवाल है क्या हमारे यहां वैसे ही देवताओं की कमी है? या फिर यह कहे कि जितने भी देवता हैं कुछ इसी तरह धीरे-धीरे लोकमान्य होते चले गए हैं! आइए! आज इस महत्वपूर्ण ढोंग और अंधविश्वास के मसले पर विस्तार से चर्चा करते हैं-

कोरोना लॉकडाउन के समय मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए सहायक बनकर सामने आए सोनू सूद की अब गरीबों के भगवान बन चुके हैं. तेलंगाना के गांव डुब्बा टांडा के लोगों ने 47 वर्षीय सोनू सूद के नाम पर एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी मूर्ति स्थापित की है. मजे की बात यह है कि श्रीमान सोनू की प्रतिमा सोनू की चिर परिचित पोशाक टी शर्ट पहने हुए है..!

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह जानकारी मिल रही है की गांव के कुछ खब्तीयों ने इस मंदिर का सिद्दीपेट जिले के कुछ अधिकारियों की मदद से बनवाया है.मंदिर का लोकार्पण बीते रविवार को मूर्तिकार और स्थानीय लोगों की मौजूदगी में किया गया. और जैसा की नाटक होता है इस दौरान एक आरती भी गाई गई. ट्रेडिशनल ड्रेस में वहां की महिलाओं ने पारंपरिक गीत भी गाए.

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जिला परिषद के सदस्य गिरी कोंडेल का बयान सामने आया है वे कहते हैं कि सोनू सूद ने कोरोना के दौरान गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया है. वहीं, मंदिर निर्माण के योजनाकार संगठन में शामिल रमेश कुमार का कथन है कि सोनू ने अच्छे कामों के चलते भगवान का दर्जा हासिल कर लिया है. तो अब कुल मिलाकर हमारे देश में कोई भी कभी भी किसी के भी कामों के गुण दोष को देखकर उसे भगवान का दर्जा दे सकता है.

सोनू का काबिले तारीफ कार्य

निसंदेह मार्च में जब कोरोना का प्रसार और लाक डाउन की स्थिति निर्मित हुई जब सारे बड़े-बड़े नामचीन लोग घरों में घुस गए सोनू सूद ने बहादुरी का परिचय दिया मानवता और इंसानियत का परिचय दिया.

कोरोना से पहले सोनू सूद एक औसत एक्टर के तौर पर जाने जाते थे जोकि फिल्मों में खलनायक के भूमिका में दिखाई देते हैं. हालांकि कोरोना के दौरान लॉकडाउन में अपनी उदारता और शालीनता से उन्होंने लोगों के दिलों में एक अलग ही जगह बनाई राजनेताओं जोकि समाज सेवा का चोला पहने जाते हैं की असलियत भी जगजाहिर कर दी. लॉकडाउन में सोनू सूद ने छत्तीसगढ़ , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और केरल के करीब 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया था.

इतना ही नहीं, सोनू ने इनके खाने-पीने का भी इंतजाम किया था. छत्तीसगढ़ में बस्तर की एक बालिका को घर बनवा करके भी दिया जो की चर्चा में रहा सोनू सूद ने मानवता का जो परिचय दिया है वह निसंदेह कम ही उदाहरण बन का सामने आता है. उन्होंने अपने काम से यह दिखा दिया कि वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और प्रत्येक उस व्यक्ति की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा हो जाती है जिसके पास धन दौलत होती है. शायद यही कारण है कि उस दरमियान सोनू सूद की मीडिया में भी खूब तारीफ हुई.

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संतोषी माता और नरेंद्र मोदी भी उदाहरण

देश में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि भगवान कैसे बनते हैं? और किस तरह रातों-रात लोग उनके नाम पर मंदिर बना देते हैं.

यही हमारे देश की खासियत है और यही कमी है. अंधविश्वास के फेर पढ़कर लोग किसी को भी महान गुरु, भगवान का दर्जा दे देते हैं और बाद में धोखा खाते हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का भी एक मंदिर सुर्खियों में रहा. इसी तरह 70 के दशक में जब जय संतोषी मां मूवी रिलीज हुई तो गांव गांव में संतोषी मां के मंदिर बन गए. संतोषी मां की भजन और पूजा सामग्री तैयार होकर बिकने लगी.

सफलता के लिए पढ़ना जरूरी

लेखक-   धीरज कुमार

समय बहुत कीमती होता है. जो समय को भांप गया, सफल हो गया. समय विद्यार्थी जीवन में सफल होने का मौका हरेक को देता है.

रिचा साइंस की स्टूडैंट थी. जब उस का एडमिशन अच्छे कालेज मे हुआ तो वह लगभग रोज ही कालेज जाया करती थी. कालेज में उस की ढेर सारी फ्रैंड्स बन गई थीं. वह रोज नई ड्रैस पहन कर कालेज जाती थी. सहेलियों के साथ वह तरहतरह के वीडियोज बनाती थी, फोटोशूट करती थी, दोस्तों के साथ सैल्फी लेती थी और उन्हें एकदूसरे को शेयर करती  थी. कालेज से घर आते हुए जितने भी रैस्टोरैंट व होटल थे, सभी में वह अलगअलग दिन दोस्तों के साथ डिशेज का स्वाद लेती थी.

परीक्षा में अच्छे मार्क्स के लिए ट्यूशन भी पढ़ रही थी. ट्यूशन से आने के बाद कौपीकिताब एक तरफ रख कर आराम करती थी. इतना कुछ करने के बाद उस के पास एनर्जी नहीं बच पाती थी कि वह घर पर नियमित पढ़ाई कर सके. ट्यूशन व कालेज में पढ़ाई गई बातों को दोहराने का उसे समय नहीं मिल पाता था. थोड़ाबहुत खाली समय मिलने पर मोबाइल से गाने सुनती थी. कुछ समय अपने दोस्तों से मोबाइल पर चैटिंग करती थी. लगभग यही उस की प्रतिदिन की दिनचर्या थी.

चिंता का कारण

जैसे ही परीक्षा का समय आया. वह काफी चिंतित हो गई थी. पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी. वह टैंशन में रहने लगी थी. इसीलिए परीक्षा पास नहीं कर पाई. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई थी. जब पढ़ने के दिन थे तो दोस्तों के साथ मौजमस्ती करती रही.  यही कारण था कि पढ़ाई में पिछड़ गई थी. सो, स्वाभाविक था कि परीक्षा में  अच्छे अंक नहीं आ पाएंगे. वह फेल हो चुकी थी.

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इस प्रकार वह 2 साल का कीमती समय बरबाद कर चुकी थी. उस की सारी दोस्त अगली कक्षा में जाने के लिए तैयार थीं. उस की कुछ दोस्त अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे की रणनीति बना रही थीं और उस पर काम कर रही थीं. जबकि, रिचा 2 साल व्यर्थ गए समय के बारे में अफसोस कर रही थी. कुछ दिन तो उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं बच पाई थी कि वह फिर से परीक्षा की तैयारी कर सके. लेकिन जब उस के मातापिता और गुरुजनों ने मार्गदर्शन किया तो वह अपनी गलती सुधारने को तैयार हो गई.

नकारात्मक सोच की उत्पत्ति

रिचा की तरह कम स्टूडैंट्स होते हैं जो असफल होने के बाद सफलता के लिए दोबारा मेहनत कर पाते हैं. कुछ स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर बीच में पढ़ाई छोड़ चुके होते हैं. कुछ ऐसे भी स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. जबकि, आत्महत्या करना किसी भी समस्या का निदान नहीं है.

समय के सदुपयोग के फायदे

12वीं क्लास में पढ़ने वाली श्रुति दिनरात घर पर पढ़ाई कर रही थी. स्कूल से आने के बाद वह नोट्स का घर पर प्रतिदिन रिवीजन करती थी. दिक्कत होने पर ट्यूशन में डिस्कस करती थी. उसे हर विषय में सैल्फ स्टडी के कारण सभी विषयों के कौन्सैप्ट्स क्लीयर रहते थे.

यही कारण था कि वह परीक्षा में 90 प्लस मार्क्स स्कोर कर पाई थी. वह सभी सब्जैक्ट्स को टाइम मैनेजमैंट के हिसाब से पढ़ती थी.

पढ़ाई के दौरान वह मोबाइल से दूर रहती थी. हां, मोबाइल से अपने कठिन विषयों के वीडियोज, स्पीच आदि जरूर सुनती थी और देखती थी. उस के दोस्तों की संख्या सीमित थी. वह उन्हीं दोस्तों से कनैक्ट रहती थी जिन से पढ़ाईलिखाई में मदद मिल सके. वह हंसते हुए बताती है, ‘‘मैं पढ़ाईलिखाई में रुचि नहीं रखने वाले दोस्तों से जल्द ही किनारा कर लेती हूं. मेरे मोबाइल में उन्हीं फ्रैंड्स के नंबर हैं जो पढ़ाईलिखाई में अच्छी हैं और जो मु?ो भी पढ़नेलिखने में मदद कर पाती हैं. फालतू लोगों के नंबर मैं ब्लौक कर देती हूं.’’

फालतू दोस्तों से नुकसान

एक बात तो स्पष्ट है कि पढ़ाईलिखाई के दौरान फालतू दोस्तों से बातें करना समय बरबाद करना ही है. कुछ पढ़ने वाले स्टूडैंट्स की ये शिकायतें जरूर रहती हैं कि पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों का जमावड़ा लक्ष्यप्राप्ति में बाधक होता है. पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों की संख्या सीमित होनी चाहिए. कुछ दोस्त पढ़ाईलिखाई के बजाय मौजमस्ती की ओर डायवर्ट करने की कोशिश करते रहते हैं, जिस से पढ़ाई में बाधा पहुंचती है.

अनियमित पढ़ाई से सफलता में देरी

बिहार के औरंगाबाद जिला निवासी सतीश कुमार का कहना है कि वे इंटर लैवल यानी एसएससी परीक्षा की तैयारी कई सालों से कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. उन का कहना है, ‘‘असफलता का मुख्य कारण है प्रतिदिन टाइम मैनेजमैंट के अनुसार पढ़ाई का अभ्यास नहीं कर पाना. मैं विगत 3 सालों से तैयारी कर रहा हूं. अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के कारण पढ़ाईलिखाई नियमित नहीं कर पाता हूं. यही कारण है कि अभी तक मुझे सफलता नहीं मिल पाई है. किसी भी परीक्षा की तैयारी करते समय नियमित पढ़ाई करना जरूरी है. व्यक्तिगत परेशानियों में फंसे रह जाने के कारण पढ़ाईलिखाई बाधित हो जाती है, इसीलिए मुझे अभी तक सफलता नहीं मिली है.’’

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सफलता के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी

यूपीएससी परीक्षा 2019 के टौपर, हरियाणा के सोनीपत जिले के तेवड़ी गांव के निवासी प्रदीप सिंह का कहना था कि वे सफलता के लिए पूरे सप्ताहभर का टाइम मैनेजमैंट तैयार करते थे. अगर किसी कारण किसी दिन तय की गई पढ़ाई पूरी नहीं कर पाता था तो अगले दिन उस को भी जरूर पूरा करता था. सप्ताह के अंत तक वे बनाए गए टारगेट को पूरा कर लेते थे. तभी उन्हें इतनी बड़ी सफलता मिली. उन्होंने इस सफलता के लिए नियमित पढ़ाई के महत्त्व को स्वीकार किया.

लक्ष्यप्राप्ति के लिए रोज पढ़ें

किसी भी परीक्षा में टाइम मैनेजमैंट का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए रोज पढ़ना जरूरी होता है. तभी सफलता की उम्मीद की जा सकती है. अगर आप प्रतिदिन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तो सफलता की उम्मीद नहीं कर सकते. सफलता के लिए खुद के पैमाने पर स्टूडैंट्स खुद को तोल लेते हैं. जिस प्रकार से स्टूडैंट्स की तैयारी होती है, उस  के मुताबिक वे सफलता और असफलता का अनुमान खुद ही लगा लेते हैं.

सैल्फ स्टडी के फायदे

कंपीटिशन में सफलता के लिए लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है. नियमित अभ्यास से ही सफलता की उम्मीद की जा सकती है. कोचिंग क्लास में स्टूडैंट्स की प्रौब्लम्स को सौल्व किया  जाता है.

सो, वह सहायक हो सकता है, परंतु उसे सफलता की गारंटी नहीं कहा जा सकता. लेकिन अगर आप सैल्फ स्टडी लगातार कर रहे हैं, तो सफलता की उम्मीद कर सकते हैं.

नियमित पढ़ाई जरूरी

आप किसी प्रकार की पढ़ाई कर रहे हों- चाहे सामान्य डिग्री हासिल करना चाहते हों, किसी  कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हों, कोई भाषा सीख रहे हों, कानून की पढ़ाई कर रहे हों, मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रहे हों, हर पढ़ाई में जरूरी है कि पढ़ाईलिखाई नियमित हो. नियमित पढ़ाई से ही सफलता हासिल होती है.

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पढ़ाईलिखाई में शौर्टकट नहीं

किसी प्रकार के भी कोर्स को पूरा करने के लिए प्रतिदिन पढ़ना जरूरी है. कोर्स की संरचना इस प्रकार से की जाती है कि नियमित पढ़ाई से ही कोर्स पूरा किया जा सकता है. कुछ लोग सफलता के लिए शौर्टकट फार्मूला अपनाने की नाकाम कोशिश करते हैं. जीवन के अन्य क्षेत्रों में शौर्टकट अपनाया जा सकता है किंतु पढ़ाईलिखाई में यह संभव नहीं है. शौर्टकट तरीके से सफलता हासिल नहीं की जा सकती है.

आज के विद्यार्थी प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं. किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता की तैयारी के लिए टफ कंपीटिशन से गुजरना पड़ता है. आज के कौंपिटिटिव एनवायरमैंट में अनियमित पढ़ाई से सफलता मिलना बहुत ही मुश्किल है. विद्यार्थियों को काफी सोचसम?ा कर और रणनीति बना कर तैयारी करने की जरूरत है. विद्यार्थियों को सफलताप्राप्ति के लिए अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित करना पड़ता है. इसलिए अच्छी तैयारी के लिए अच्छी किताबें, कोचिंग सैंटर, गुरुजनों एवं मातापिता के मार्गदर्शन के साथसाथ नियमित पढ़ाई जरूरी है.

ऐसी सहेलियों से बच कर रहें

 लेखक-  धीरज कुमार

सलोनी कालेज में पढ़ती थी. वह पढ़नेलिखने में साधारण थी. कालेज में उस की कई सहेलियां बन चुकी थीं. कालेज कैंपस में भी वह अपनी सहेलियों से घिरी रहती थी.

कालेज आतेजाते 1-2 लड़कों से भी सलोनी की दोस्ती हो गई थी. समय मिलने पर वह उन लड़कों से भी बातें करती थी. उन के साथ पार्क और होटलों में घूमती थी. उस की सहेलियां यह सब देख कर जलनेभुनने लगी थीं.

सलोनी अपनी सहेलियों को सफाई दे चुकी थी कि उन लड़कों से सिर्फ दोस्ती है. उस की सहेलियां दिखावे के लिए मान गई थीं, लेकिन पीठ पीछे तरहतरह की बातें करती रहती थीं. धीरेधीरे सलोनी की सहेलियों से ये बातें उस के घर तक भी पहुंच गई थीं.

अभी जमाना इतना नहीं बदला था, इसलिए सलोनी के घर वालों ने भी उसे लड़कों से बातें करने से मना किया. जब वह नहीं मानी तो उस के कालेज जाने पर रोक लगा दी गई.

इस तरह सलोनी की पढ़ाई बीच में ही छूट गई. इसलिए वह इस तरह की बातों से काफी आहत हो गई थी. अब वह सोच रही थी कि काश, मैं इन लड़कियों से शुरू से ही दूरी बना कर रखती, तो यहां तक नौबत नहीं आती.

वहीं दूसरी तरफ रंजना कालेज में पढ़ती थी. उस के क्लास की कुछ लड़कियां उसे घमंडी कहती थीं. यही वजह थी कि उस की किसी लड़की से नहीं पटती थी. वह लड़कियों के साथ दोस्ती से बिदकती थी. वह रोज अकेले ही कालेज जाती थी. लेकिन उस के लड़के दोस्तों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी. उस के लड़के दोस्त मौल घुमाते थे, होटल में खिलाते थे. कुछ दोस्त उस के मोबाइल में पैसे भी डलवा देते थे. कुछ दोस्त समयसमय पर गिफ्ट दिया करते थे. कुछ लड़के बाइक से उसे कालेज भी छोड़ देते थे.

इसीलिए वह कालेज जाती तो लेक्चर के बाद कालेज कैंपस में रुकती भी नहीं थी. अपने दोस्तों को अलगअलग जगहों पर मिलने के लिए समय दे रखती थी. उस के मोबाइल कान पर ही लगे रहते थे. जब मोबाइल पर बातें करती, कोई दोस्त पूछता, तुम कहां हो?

किसी भी दोस्त को सही पताठिकाना नहीं बताती. वह अगर होटल में होती, तो किसी सहेली के घर बताती. वह अपने यारदोस्तों के साथ होती, तो अपने रिश्तेदार के घर बताती.

रंजना को लड़कों को बेवकूफ बनाने में मजा आता था. वह खुद को काफी होशियार समझती थी. कुछ लड़कों से जिस्मानी संबंध भी बना चुकी थी. लेकिन पेट से न हो जाए, इस के लिए काफी सावधान रहती थी.

रंजना अपने महल्ले और घर के लोगों के बीच सीधीसादी बनी रहती थी. बाहर भले ही गुलछर्रे उड़ाती, मगर घर में अलग इमेज बना कर रखती थी.

उस का मानना है, जिंदगी के मजे लेने हैं तो दुनिया से असली रूप छुपा कर रखना जरूरी है, वरना लोगों की नजरें लगते देर नहीं लगती है.

रंजना का असली मकसद पढ़ाई करना नहीं, बल्कि जिंदगी के मजे लेना था, इसीलिए पढ़ाई कम करती थी. लेकिन जीवन का भरपूर आनंद उठा रही थी.

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सलोनी जैसी लड़कियां पढ़ाई के साथसाथ लड़कों से भी मेलजोल रखना चाहती हैं, लेकिन वे भूल जाती हैं कि आजकल की लड़कियों को खुद अगर जो चीजें नहीं मिलती हैं, तो दूसरों को देख कर वे जलनेभुनने लगती हैं, क्योंकि कुछ लड़कियों में जलन की आदत जन्मजात होती है. इस से वे पीठ पीछे तरहतरह की अफवाह फैलाने लगती हैं. उन अफवाहों से खुद का नुकसान तो नहीं होता है, लेकिन जिस के बारे में फैलाया जाता है, उस का नुकसान जरूर हो जाता है.

कोई भी मातापिता ऐसी बातों से परेशान हो जाते हैं, इसीलिए कुछ लोग आननफानन ही लड़की की पढ़ाई बंद करवा देते हैं. कुछ मातापिता अपनी लड़की को जल्दीजल्दी शादी तक करवा देते हैं.

आज कोई भी लड़कालड़कियों के साथ घूमताफिरता है, तो मातापिता को कोई परेशानी नहीं होती है. कभीकभी तो कुछ मातापिता गर्व का अनुभव भी करते हैं, लेकिन यही बात लड़की पर लागू नहीं होती है. लड़की के लिए आज भी समाज दोयम दर्जे की सोच रखता है. यही काम जब लड़की करती है, तो समाज तरहतरह की अफवाहें फैलाने लगता है. लड़की को चरित्रहीन तक कहा जाने लगता है.

लड़कियों के किरदार के बारे में झूठी बातें फैलाने में लड़कियां ही आगे रहती हैं, जबकि लड़के ऐसा कम ही कर पाते हैं, इसलिए लड़कियां सहेलियों से परहेज रखना उचित समझती हैं.

सहमति से सैक्स संबंध बनाने वाली लड़कियां सहेलियों से दूर रहने में ही अपनी भलाई सम?ाती हैं. कई बार सहेलियों के चलते उन्हें लेने के देने पड़ जाते हैं. कभीकभी उन की सहेलियां उन्हीं लड़कों पर डोरे डालने लगती हैं, जिन से इन का इश्क चल रहा होता है. ऐसे हालात में बौयफ्रैंड छिन जाने का भी डर बना रहता है.

कल तक लड़केलड़कियों के बीच जिस्मानी संबंध बनाना नैतिकता से जोड़ कर देखा जाता था, लेकिन आज नैतिकता की बातें पुरानी हो गई हैं. अब जीवन का उद्देश्य सिर्फ जिंदगी के मजे लेना रह गया है. अब लोग सम?ाने लगे हैं कि ये सब बातें दकियानूसी हैं, इसलिए विवाह के पहले जिस्मानी संबंध बनाना व अपनी मरजी से शादी के बाद दूसरों से संबंध रखना किसी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है, बल्कि अब यह सब आधुनिक युग की मांग बताई जाती है. लोग भागदौड़ की जिंदगी में हर कोई खुशियां तलाशने की कोशिश कर रहा है. उसी कोशिश का नतीजा है यह.

ऐसे ही एक लड़की थी नव्या. वह अपनी सहेली किरण के बौयफ्रैंड पर डोरे डाल रही थी. जब उस की सहेली को यह बात पता चली, तो वह सड़क पर ही ? झगड़ा करने लगी थी. वहां काफी भीड़ जमा हो गई. दोनों के झगड़े से लोगों को यह सम?ाते देर नहीं लगी कि यह लड़ाई एक ही बौयफ्रैंड को ले कर हो रही है. दोनों ‘तूतूमैंमैं’ करतेकरते हाथापाई पर आ गई थी, जिसे बीचबचाव करने के लिए कुछ लोगों को आना पड़ा था. दोनों एकदूसरे को खूब गंदीगंदी गालियां दे रही थीं. काफी समझाने के बाद दोनों अलग हुई थीं.

चांदनी एक बच्चे की मां थी. अपने महल्ले में ही एक आदमी से उस का इश्क चल रहा था. चांदनी अपने घर में सलीके से रहती थी. उस का पति उसे बहुत प्यार करता था. वह पति की हर बात मानती थी. लेकिन इश्क के मामले में उसे अपनेआप पर कंट्रोल नहीं था, इसलिए वह बहक जाती थी. वह अपने महल्ले में किसी भी औरत के पास नहीं बैठती थी. अपने काम से मतलब रखती थी.

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चांदनी का कहना है, ‘‘मैं कम से कम औरतों से मेलजोल रखती हूं. जितनी ज्यादा औरतों से संपर्क होगा, वे मेरे बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहेंगी. औरतों को कुछ बातें हजम नहीं होतीं. कभी गुप्त बातें निकल गईं, तो सार्वजनिक होते देर नहीं लगती है. फिर यही औरतें खापी कर रायता इधरउधर फैलाती रहेंगी. कभीकभी तो ये औरतें आपस में ? गड़ाफसाद भी करा देती हैं, इसलिए इन से दूर रहना ठीक रहता है. मैं अपने काम में बिजी रहती हूं.’’

साफ है कि ऐसी लड़कियों और औरतों से दूरी बना कर रखना ही फायदेमंद है, ताकि बेवजह के लफड़े से बचा जा सके. कभीकभी सहेलियों के चलते निजी जिंदगी में भी रुकावट आने लगाती है. कुछ लड़कियों और औरतों को दूसरों की जिंदगी में दखलअंदाजी करना ज्यादा ही रास आता है. वे अपनी तकलीफों से कम परेशान रहती हैं, बल्कि दूसरों की खुशियों से ज्यादा दुखी रहती हैं.

बलात्कारी वर्दी का “दंश”

हमारे आसपास समाज में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होते जाती है. दरअसल, यह कुछ ऐसा ही है जैसे बाड़ ही खेत को खा जाए. आज हम इस रिपोर्ट में इन्हीं तथ्यों पर विचार करते हुए आपको बताएंगे की किस तरह वर्दी,पावर, अपने पद के गुमान में आम लोगों और विशेषकर अबला कही जाने वाली नारी पर अपने अत्याचार के रंग दिखाती है.

प्रथम घटना-

न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर के एक पुलिस महा निरीक्षक जैसे बड़े पद पर बैठे शख्स पर एक महिला ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए. मामला सुर्खियों में रहा आज भी महिला आयोग में मामला लंबित है.

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दूसरी घटना-

एक पुलिस अधीक्षक आईपीएस ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कुछ युवतियों से संबंध बना लिए. मामला जब धर्मपत्नी तक पहुंचा तो उसने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की.

तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के बस्तर के कांकेर में एक पुलिस अधिकारी ने एक आदिवासी युवती को बहला-फुसलाकर शादी करूंगा कह अपने जाल में फंसाया. युवती के माता-पिता ने उच्च अधिकारियों तक शिकायत पहुंचाई. अंततः पुलिस अधिकारी हुआ निलंबित.

यह कुछ घटनाएं सिर्फ बानगी मात्र है, जो बताती है कि किस तरह “खाकी वर्दी” पहन कर कुछ लोग पद का दुरुपयोग कर रहे है. और जब बात बढ़ती है तो खाकी वर्दी पर भी गाज गिर पड़ती है. और आगे चलकर यह लोग मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते वहीं पद और प्रतिष्ठा भी खो देते हैं.

आरक्षकों का कारनामा

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दो पुलिसकर्मियों ने नाबालिग एक किशोरी से डरा धमका कर दुष्कर्म किया . दोनों पुलिसकर्मी डायल 112 में कांस्टेबल हैं. अपने पद का दुरुपयोग करते हुए किशोरी को दोनों आरोपी डरा धमकाकर बुलाते और बलात्कार करते रहे. किशोरी ने अंततः परिजनों को बताया और परिजनों के संरक्षण में मामला पुलिस के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. शिकायत के बाद मामला जांच में सही पाया गया इसके पश्चात बिलासपुर के सरकंडा थाना पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दो माह के लंबे समय के बाद दोनों कांस्टेबल को गिरफ्तार कर कार्रवाई की. पुलिस के उच्च अधिकारी बताते हैं कि जिले के
सीपत क्षेत्र निवासी 14 साल की किशोरी को कुछ माह पहले डायल 112 में तैनात कांस्टेबल देवानंद केंवट और वीरेंद्र राजपूत ने एक संदिग्ध युवक के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.

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इस पर दोनों पुलिसकर्मियों ने किशोरी का मोबाइल नंबर लिया और अपराधिक मंशा से छोड़ दिया . आरोप है कि इसके बाद ही किशोरी को दोनों सिपाही कौल करने लगे. वह डरा धमकाकर उसे बुलाते और दुष्कर्म करते रहे.परेशान होकर किशोरी ने अक्टूबर 2020 में सरकंडा थाने में रपट दर्ज करा दी. आरोपी कांस्टेबल इसी थाने के पदस्थ बताए जा रहे थे इस मामले की जांच में पुलिस को लंबा समय लग गया. जांच सही मिलने पर दिसंबर माह में पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. यहां यह भी कड़वा सच है कि पुलिस दोनों कांस्टेबल को बचाने के प्रयास में जुटी रही. इसके लिए समझौते का भी दबाव बनाया गया. मगर जब मामला नहीं बना तो पुलिस ने औपचारिकता पूरी की.

इस मामले में यह तथ्य भी सामने आया है कि एक आटो चालक मध्यस्थ था और मौका मिलते ही उसने भी किशोरी के साथ बलात्कार किया था और पकड़ा गया था. बहतराई निवासी पंचराम साहू उर्फ सोनू किशोरी को अपनी ऑटो में पुलिसकर्मियों के पास छोड़ने जाता और लाता था. इस दौरान उसने भी मौका पाकर किशोरी से दुष्कर्म किया था.

भ्रष्टाचार की बीमारी सरकारी योजनाओं में सेंधमारी

मसला

अमला है सरकारी जिस को एक धुन है,

लूटना, खाना ही जिस का खास गुन है.

आम जनता की कमाई भरी जिस में,

इस सड़े गोदाम में चूहे और घुन हैं.

ये लाइनें टैक्स देने वालों के पैसे के बल पर चल रही सरकारी स्कीमों में मची सेंधमारी पर मोजूं लगती हैं. आजादी के बाद से गरीबों, नौजवानों, औरतों व किसानों के नाम पर केंद्र व राज्यों की सरकारों ने बहुत सी योजनाएं चलाईं. पैसे की नहरें बहाईं, लेकिन पानी आखिरी छोर तक नहीं पहुंचा. लिहाजा, नतीजा वही ढाक के तीन पात. देश में करोड़ों लोग आज भी गरीबी की चपेट में हैं. साथ ही, बहुत सी समस्याएं बरकरार व भयंकर हैं.

कारण हैं खास

तालीम की कमी, नशा, अंधविश्वास व निकम्मापन गरीबी की सब से खास वजहें हैं, लेकिन गरीबों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं का बेजा इस्तेमाल भी इस की एक बड़ी वजह है. नतीजतन, सरकारी अमले में गले तक रचाबसा भ्रष्टाचार का दलदल है, इसलिए ज्यादातर सरकारी स्कीमें गरीबी दूर करने में बेअसर, नाकाम व बिचौलियों के लिए चारागाह साबित हुई हैं. इन की बदौलत भ्रष्ट नेताओं, अफसरों व मुलाजिमों ने अकूत दौलत इकट्ठी की है.

जिन के कंधों पर जरूरतमंदों के लिए चल रही योजनाओं के तहत राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी है, वे अपना फर्ज व जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा कर अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं. वे किसी को कानोंकान खबर नहीं देते, इसलिए बहुत कम लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी हो पाती है. सरकारी महकमे अपने दफ्तरों के बाहर चल रही योजनाओं में जनता के लिए दी जा रही छूट, कर्ज व सहूलियतों वगैरह का ब्योरा नहीं लिखवाते.

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सरकारी मुलाजिम कहीं किसी जरूरतमंद का फार्म भरवाने में मदद नहीं करते, उलटे उन्हें जराजरा से काम के लिए बारबार दफ्तरों के चक्कर कटवाते हैं. नतीजतन, बहुत से लोग या तो दलालों की शरण में जा कर अपनी जेब कटवाते हैं या थकहार कर घर बैठ जाते हैं.

ज्यादातर गरीब भोले, नावाकिफ व कम पढ़ेलिखे हैं. उन्हें अपने हकों व सरकारी स्कीमों की जानकारी नहीं है. वे सरकारी राहत व इमदाद पाने की खानापूरी भी नहीं कर पाते और उन में से ज्यादातर लोग सरकारी सहूलियतों से बेदखल रह जाते हैं. उन की जगह दूसरे लोग सांठगांठ कर के उन का हिस्सा हड़पने में कामयाब हो जाते हैं.

बिगड़ैल अमला

सरकारें हर साल अरबों रुपए बहुत सी योजनाओं में खर्च करती हैं, लेकिन उन का एक बड़ा हिस्सा वे गटक जाते हैं, जो चील, गिद्ध, कौवों की तरह ताक में लगे रहते हैं. मसलन, बहुत से लोग आज भी बेघर हैं. वे किसी तरह अपना सिर छिपाने के लिए फूंस के छप्पर, खपरैल व मिट्टी से बने कच्चे घरों में रहते हैं. ऐसे गरीब लोगों को पक्का घर मुहैया कराने की गरज से साल 2016-17 में प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की गई थी, लेकिन चालाक, मक्कार व दलाल लोग मुलाजिमों की मदद से इस में भी गड़बड़ी करने में कामयाब हो गए.

इस योजना से फायदा उठाने वालों के लिए तयशुदा शर्तें रखी गई थीं, लेकिन योजनाओं को लागू करने का जिम्मा तो सब से नीचे के मुलाजिमों पर होता है और वे अपना घर भरने के लिए मनमानी बंदरबांट करने लगते हैं. उन की नकेल कसने वाले भी अपने हिस्से के लालच में उन से मिल जाते हैं, इसलिए वे भी उन्हें चैक करने के बजाय अपनी आंखें मूंद लेते हैं.

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कुलमिला कर भ्रष्ट व निकम्मे सरकारी मुलाजिमों की मिलीभगत व मनमानी की वजह से अकसर गरीबों की जगह उन अमीरों को भी लिस्ट में शामिल कर लिया जाता है, जो असल में राहत या इमदाद पाने के हकदार नहीं होते. बाद में जब कहीं कोई शिकायत होती है, तो पोल खुलती है और जांचपड़ताल में गड़बड़ी पाई जाती है.

यही उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी हुआ. वहां प्रधानमंत्री आवास योजना में जिले के 1,884 लोगों में 534 लोग अपात्र यानी गलत पाए गए. सिर्फ किसी एक इलाके या किसी एक योजना में ही पलीता लगाया जा रहा है, ऐसा नहीं है. अपवाद छोड़ कर सरकार की ज्यादातर योजनाओं में लूटखसोट व बंदरबांट चल रही है, इसलिए हांड़ी का एक चावल देख कर ही बाकी सब का पता लग जाता है.

घपले और घोटाले

किसान सम्मान निधि योजना में  10 करोड़ किसानों के बैंक खातों में  6-6 हजार रुपए भेजने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश में 1-2 नहीं, पूरे 14,000 लोग अपात्र पाए गए हैं. इन में से 1,200 किसान अकेले गोंडा जिले के हैं. राज्य सरकार ने इस पर कड़ा कदम उठाया है.

गरीब किसानों के लिए चली इस स्कीम में जिन्होंने बेजा तरीकों से सेंधमारी कर के सरकारी पैसा हड़पा ,वे अब उस रकम को सरकारी खजाने में वापस जमा करेंगे.

खेती महकमे ने चेताया है कि जिन लोगों ने गलत तरीके से किसान सम्मान निधि का पैसा लिया है, वे फौरन उसे वापस जमा कर दें, वरना उन से जुर्माने समेत वसूली की जाएगी.

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व उत्तर प्रदेश में गरीब छात्रों को दिए जाने वाले वजीफे में हुए करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी की जांच चल रही है.

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5 साल पहले उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पिछले दिनों फर्जी छात्र व फर्जी कालेज दिखा कर सरकारी वजीफे के  6 करोड़ रुपए हड़पे गए थे. यह मामला बरसों तक माली जरायम केसों की जांच करने वाली पुलिस के पास रहा. अब कुसूरवार अफसरों पर मुकदमा कायम करने के लिए मंजूरी मांगी गई है.

इस के बाद साल 2018 में इटावा और मेरठ जिलों में स्कौलरशिप हड़पने के 109 मामले पकड़े गए थे, जिन पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी. कमोबेश यही हाल विधवा पैंशन व बुढ़ावा पैंशन स्कीमों का है.

सरकारी योजनाओं में मिली रकम अब सीधे गरीबों के बैंक खातों में जाती है, लेकिन गड़बड़घोटाले करने वाले तरकीब व तरीके का तोड़ निकाल ही लेते हैं. इन का पूरा गिरोह मिलीभगत से काम करता है. कंप्यूटर में लाभार्थी की डिटेल फीड करते वक्त जानबूझ कर बैंक खातों का नंबर बदल दिया जाता है, इसलिए जो सरकारी सहूलियतें पाने के हकदार हैं, वे पीछे छूट जाते हैं और जो असरदार, चालबाज या छुटभैए नेता या उन के चमचे, चेलेचपाटे बेजा फायदा उठाने में कामयाब हो जाते हैं.

सरकारी योजनाओं में सारे असल गरीबों को इमदाद नहीं मिलती. यह बात यहीं खत्म नहीं होती. एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा यह कि उन के साथ चौतरफा बेजा बरताव भी होता है. सहूलियतें देने का लौलीपौप दिखा कर काम कराने के नाम पर उन से मोटी रकम वसूली जाती है और बाद में उन्हें ठेंगा दिखा दिया जाता है, इसलिए ज्यादातर गरीब बेचारे ठगे से देखते हुए रह जाते हैं.

ठगी पहले कदम से

सरकारी योजनाओं में गरीबों को लूटने का सिलसिला फार्म भरने के पहले पायदान से ही शुरू हो जाता है. कर्ज व छूट का फार्म भरवाने व बाद में मिलने वाली रकम का लालच दे कर दलाल पहले ही अपना हिस्सा झटक लेते हैं. बीते लौकडाउन के दौरान ऐसे बहुत से लोगों के कामधंधे बंद हो गए थे, जो रोज कमा कर खाते थे, इसलिए वे बेहद परेशान थे.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के इश्तिहार अखबारों में छपे थे. इस में ठेलेखोमचे आदि लगाने वालों को 10,000 रुपए का कर्ज मिलने का दावा किया गया था. सरकार ने मेरठ में 65,000 लोगों को इस स्कीम का फायदा देने का मकसद तय किया था. इस के उलट नगरनिगम के मुलाजिमों ने बीते 4 महीने में सिर्फ 18,745 लोगों का ही रजिस्ट्रेशन किया.

गौरतलब है कि उस में से केवल 6,815 फार्म ही बैंकों को भेजे गए. जब लीड बैंक से इस बाबत जानकारी की गई, तो पता लगा कि उन को 5,606 फार्म मिले. 209 फार्म बीच में कहां गायब हो गए, यह कोई नहीं जानता. और सुनिए, इन में से सिर्फ 1,036 फार्म ही कर्ज मंजूरी की सिफारिश करने लायक पाए गए, लेकिन कितनों को पैसा मिला, यह किसी को भी पता नहीं है.

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कड़वा सच

मेरठ में फलों की रेहड़ी लगा रहे किशनपुरा के दिनेश से जब इस लेखक ने बात की, तो उस ने बताया कि एक आदमी खुद को सरकारी मुलाजिम बता कर फार्म भरने के नाम पर उस से 200 रुपए ले गया. फिर उस के बाद क्या हुआ, यह आज तक पता नहीं चला.

इस ठगी का शिकार दिनेश अकेला नहीं है. आइसक्रीम बेच रहे मंशा, फूल बेचने वाले नंदू व जूस निकालने वाले फुरमान ने बताया कि उन्हें आज भी इंतजार है कि शायद कुछ इमदाद जरूर मिलेगी. हालांकि उन के पास कोई रसीद या फार्म भरने वाले का नामपता नहीं है. तालीम व जानकारी की कमी से बहुत

से गरीब लोग आएदिन ठगी के शिकार होते हैं.

यह है हल

सरकारी योजनाओं में पसरी लूटखसोट बंद करने के लिए जरूरी है कि योजनाओं का प्रचारप्रसार कारगर तरीकों से किया जाए. असली हकदार लोगों को छांट कर उन की पहचान लिस्ट बनाते वक्त पूरी जांचपड़ताल सही तरीके से की जाए. साथ ही, उन्हें जागरूक किया जाए. अपनी जेब भरने के लालच में गड़बड़ी करने वाले मुलाजिमों की जवाबदेही तय की जाए. घपलेघोटालों की जांच जल्दी पूरी की जाए. दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए, साथ ही, उन से ब्याज व जुर्माने समेत सरकारी पैसों की वसूली की जाए.

गरीबों की स्कीमों में घुसपैठ करने वाले अमीरों पर भी तगड़ा जुर्माना लगे और उन के नाम व फोटो इश्तिहारों में सार्वजनिक किए जाएं. हर योजना का पब्लिक औडिट हो, ताकि गड़बड़ी करने वालों पर कारगर नकेल कसी जा सके, वरना सरकारी स्कीमों में गरीबों के हक पर अमीरों की सेंधमारी आगे भी इसी तरह जारी रहेगी.

बिहार : सरकारी नौकरियों की चाहत ने बढ़ाई बेरोजगारी

धीरज कुमार

प्रदेश की राजधानी पटना में तकरीबन सभी जिलों के लड़केलड़कियां अलगअलग शहर के कोचिंग सैंटरों में अपना भविष्य बेहतर करने की उम्मीद में भागदौड़ करते देखे जा सकते हैं. उन की एक ही ख्वाहिश होती है कि किसी तरह से प्रतियोगिता परीक्षा में पास कर सरकारी नौकरी हासिल करना.

बहुत से लड़केलड़कियां अपना भविष्य बनाने की चाह में पटना जैसे शहरों में कई सालों से टिके होते हैं, फिर भले ही उन के मातापिता किसान हैं, रेहड़ी चलाने वाले हैं, छोटेमोटे धंधा करने वाले हैं. उन की थोड़ी आमदनी भी होगी, लेकिन वे अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं, चाहे इस के लिए खेत बेच कर, कर्ज ले कर, गहने गिरवी रख कर कोचिंग सैंटरों में लाखों रुपए क्यों न बरबाद करना पड़े.

कोचिंग सैंटर वाले भी इस का भरपूर फायदा उठा रहे हैं. ज्यादातर कोचिंग सैंटर सौ फीसदी कामयाबी का दावा कर लाखों का कारोबार करते हैं, भले ही उन की कामयाबी की फीसदी जीरो के बराबर हो.

अब सवाल यह कि किसी सरकार के पास इतने इंतजाम हैं, जो सभी नौजवानों को नौकरी मुहैया करा देगी? इस सवाल के जवाब के लिए पिछले तकरीबन 10 सालों की  प्रमुख रिक्तियों और बहालियों का विश्लेषण किया गया. राज्य सरकार ने साल 2010 में बिहार में पहली बार शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) का आयोजन किया था. इस परीक्षा में 26.79 लाख लोगों ने आवेदन किया था, जिन में से मात्र 1.47 लाख अभ्यर्थियों को पास किया गया. इस में कामयाबी का फीसदी मात्र साढ़े 5 फीसदी था. राज्य सरकार ने उन सफल अभ्यर्थियों में से तकरीबन एक से सवा लाख लोगों को नियोजन किया.

उस समय शिक्षकों को सरकार ने  जो बहाली की, उन्हें नियोजन यानी आउटसोर्सिंग पर रखा गया, जिन को सरकार नियत वेतन देती है. नियमित शिक्षकों की तरह वेतन व अन्य सुविधाएं नहीं देती है. हां, चुनाव के समय कुछ पैसे बढ़ा कर वोट बैंक के लिए खुश करने की कोशिश की जाती है.

आज उन्हीं शिक्षकों ने कानून का दरवाजा खटखटा कर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी लड़ाई लड़ी, ताकि उन्हें पुराने शिक्षकों की तरह दूसरी सुविधाएं मिलें. लेकिन वे सरकार और अदालत के चक्रव्यूह में फंस कर हार गए.

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी दलील पेश की है कि स्थायी बहाली नहीं होंगी. पहले की हुई स्थायी बहाली को वर्तमान सरकार डाइंग कैडर यानी मृतप्राय मान चुकी है.

इस का मतलब यह है कि अब जो भी बहाली होगी, वह सिर्फ नियत वेतन पर रखा जाएगा. अब पुरानी बहाली की तरह ईपीएफ, बीमा, पैंशन, ग्रेच्युटी, स्थानांतरण, अनुकंपा पर नौकरी देने का प्रावधान आदि की सुविधाएं खत्म कर दी गई हैं.

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जबकि गैरसरकारी संस्थाओं में आज भी ऐसी सुविधाओं में से कुछ ही दी जाती हैं. यही वजह है कि मेहनत करने वाले लोग प्राइवेट संस्थाओं को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं, लेकिन इस के बावजूद भी कुछ  लोग अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि सरकारी नौकरियों के पीछे भागना फायदेमंद है या नुकसानदायक.

बिहार सरकार स्टाफ सिलैक्शन कमीशन (एलडीसी) 2014 में  तकरीबन 13,000 पदों की बहाली के लिए परीक्षा का आयोजन किया गया. इन पदों पर बहाली के लिए तकरीबन  13 लाख  अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. कई बार यह परीक्षा रद्द की गई. इस परीक्षा को टालते हुए लगभग  5-6 साल बीत जाने के बाद भी अभी उस की बहाली पूरी नहीं की गई है. अगर रिक्तियों के अनुपात में बहाली की संख्या को देखा जाए तो इस परीक्षा में महज  1 फीसदी अभ्यर्थियों का चयन किया जाना है.

बिहार सरकार जानबूझ कर कोई भी बहाली को कम समय में पूरा नहीं करती है, बल्कि उसी बहाली को कई सालों में चरणबद्ध तरीके से पूरा करने की कोशिश करती है, ताकि समय लंबा खिंचे. इस से अभ्यर्थी धीरेधीरे कम होंगे और सरकार के एजेंडे का प्रचारप्रसार ज्यादा होगा. इस तरह सरकार को ज्यादा फायदा मिलेगा. ऐसी प्रक्रिया में कुछ अभ्यर्थियों की तो उम्र भी निकल जाती है, जिस के कारण वे बहाली से पहले ही छंट जाते हैं.

साल 2019 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल के 11,880 पदों पर बहाली होनी थी, जिस में तकरीबन 13 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन दिए थे. अभ्यर्थियों के अनुपात में यह महज एक फीसदी से भी कम बहाली की गई. इस के साथ ही कई अन्य छोटीमोटी बहालियां हुईं जैसे दारोगा की बहाली, नर्स की बहाली, पशुपालन विभाग में बहाली वगैरह. इन सभी पदों की बहाली में सीटें कम थीं. इन 10 सालों की बहाली में तकरीबन छोटीबड़ी सभी बहालियां मिला कर तकरीबन डेढ़ से 2 लाख अभ्यर्थियों की बहाली हुई होगी.

ऊपर मोटेतौर पर 2-3 परीक्षाओं का जिक्र किया गया. गौर करने की बात  यह है कि तीनों परीक्षाओं  में तकरीबन 50 लाख अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया, जिन में से तकरीबन 2 लाख लोगों को नौकरी मिल गई.

बिहार के नौजवानों की यह खासीयत है कि एकसाथ कई परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. अगर मान लिया जाए कि तीनों परीक्षा में कुछ लोग समान रूप से सम्मिलित हुए हों, तो तकरीबन 30 से 35 लाख नौजवान 10 सालों में बेरोजगार रह गए यानी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई.

राज्य और केंद्र सरकार द्वारा युवाओं में स्किल पैदा करने के लिए ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ के तहत कई तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. लेकिन इन प्रशिक्षण केंद्रों पर प्लेसमैंट की योजना नहीं होने के चलते ये सभी कार्यक्रम कागजों पर ही रह गए हैं. इसी तरह नौकरी से वंचित लोगों की वजह से बेरोजगारों की तादाद काफी बड़ी हो जाती है. उन में से ज्यादातर लोग घर छोड़ कर दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. स्किल की कमी में कम तनख्वाह पर बाहरी राज्यों में काम करना पड़ता हैं.

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नीतीश सरकार अपने शुरू के कार्यकाल में बेरोजगारी दूर करने और रोजगार बढ़ाने के लिए बाहरी राज्यों के गैरसरकारी संस्थाओं को बिहार में आमंत्रित कर नियोजन मेला का आयोजन करती थी, जिस का मीडिया में काफी प्रचारप्रसार भी किया जाता था. इस में दूसरे राज्यों के धागा मिल, कपड़ा मिल, बीमा कंपनियां, सिक्योरिटी कंपनी, साइकिल कंपनी, मोटर कंपनी वगैरह छोटीबड़ी तकरीबन 20-22 कंपनियां हर जिले में आ रही थीं. उस में 18 से 25 साल की उम्र के लड़के और लड़कियों को रोजगार देने का काम किया जाता था. लेकिन लोगों ने गैरसरकारी कंपनी होने के चलते रोजगार हासिल करने में जोश नहीं दिखाया, इसलिए सरकार को वह कार्यक्रम बंद करना पड़ा.

केंद्र सरकार की ओर से की जाने वाली बहाली जैसे रेलवे, बैंक वगैरह में कम कर दी गई हैं या तकरीबन रोक दी गई हैं. फिर भी बिहार के छोटेबड़े शहरों में तैयारी करने वालों की तादाद में कमी नहीं आई है, बल्कि इजाफा ही हुआ है.

साल 2001 से साल 2005 के बीच बिहार सरकार ने 11 महीने के लिए राज्य में शिक्षामित्रों की बहाली की थी. यह बहाली मुखिया द्वारा की गई थी, जिन का मासिक वेतन मात्र 1,500 रुपए था. बाद में आई सरकार ने उन के मासिक वेतन में बढ़ोतरी 3,000 रुपए कर दी. साल 2015 में  वर्तमान सरकार शिक्षकों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने के लिए वेतनमान तो लागू कर दिया, पर आज भी पुराने शिक्षकों की तरह सुविधाओं से वंचित रखा गया है.

आज सरकार हजार डेढ़ हजार रुपए पर किसी भी तरह की बहाली निकालती है, तो लोगों की भीड़ लग जाती है. लोगों का मानना है कि पहले सरकारी दफ्तर में किसी तरह से घुस जाओ. आने वाले समय में सरकार अच्छस वेतन दे ही देगी. इसी का नतीजा है कि बिहार में तकरीबन ढाई लाख रसोइया विद्यालयों में इस उम्मीद में काम कर रही हैं कि आने वाले दिनों में सरकार अच्छा वेतन देगी.

सरकारी नौकरियों के पीछे भागने की खास वजह यह रही है कि इस में मेहनत कम करनी पड़ती है. इस के उलट गैरसरकारी दफ्तरों में काम ज्यादा करना पड़ता है.

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बिहार में खेती लायक जमीन होते हुए भी लोगों का खेतीबारी के प्रति मोहभंग होता जा रहा है. इस के पीछे बाढ़, सुखाड़ और नवीनतम कृषि उपकरणों की कमी होना भी है, जिस के कारण लोगों के पास एकमात्र विकल्प सरकारी तंत्र में नौकरियों की तलाश करना रह जाता है.

नौजवानों को चाहिए कि सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाय वे अपने अंदर हुनर पैदा करें. इस पर अपने पौजिटिव नजरिए को विकसित करने की जरूरत है. कोई भी नया हुनर सीख कर अपने कामधंधे में लगा जा सकता है और अपने परिवार के लिए सहारा बना जा सकता है.

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