Romantic Story: प्यार के मायने – निधि को किस ने सिखाया प्यार का सही मतलब?

Romantic Story: उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे. एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

Funny Hindi Story: साष्टांग प्रणाम

Funny Hindi Story: आदरणीय और परमादरणीय सरकारजी को मेरा प्यार भरा प्रणाम, टांग और जांघ प्रणाम, साष्टांग प्रणाम.

मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से महीना नवंबर, साल 2018 में चपरासी के पद से ससम्मान रिटायर होने वाला एक्स चपरासी भोलाराम, सुपुत्र श्री मांगेराम, गांव-अबस, तहसील-अबस, जिला-अबस, प्रदेश-अबस, मोबाइल नंबर-अबस, भारत देश का असली आधारकार्डधारक हूं. मेरे पास नकली हंसीखुशी के सिवा और कुछ भी नकली नहीं है.

सरकारजी, जब भी मैं बहुत परेशान हो जाता हूं, तो आप को चिट्ठी लिख देता हूं, ताकि मुझे भी लगे कि मैं ने भी अपना रोना किसी के आगे रो दिया.

मेरे बच्चे औफिशियल प्रोसीजर का पालन करते हुए मेरी बीवी के सामने अपना रोना रोते हैं. मेरी बीवी थू्र प्रोपर चैनल उन का रोना मेरे आगे रखती है. वह भी रोती है, पर कभी कहती नहीं.

चपरासी भोलाराम की बीवी है न सरकारजी. उस ने अब लोकतंत्र में रोने को स्वीकार कर लिया है… और मैं अपना रोना थू्र प्रोपर चैनल पहले आप के सामने रखता हूं, बाद में अपने ऊपर वाले के आगे, क्योंकि मुझे ऊपर वाले से पावरफुल आप लगते हो सरकारजी.

पर, लगता है कि अब हम सब की तरह ऊपर वाला भी बहरा हो गया है. यहां किसी की सुनता ही कौन है सरकारजी. लगता है कि ऊपर वाले ने जो कान हमारे सुनने को लगाए थे, वे सब अब बहरे हो गए हैं. बस, बची जबान, सो चलाए रहते हैं.

बहुत बधाई हो सरकारजी आप को. अखबार में पढ़ कर अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगा, जब पढ़ा कि आप सब ने जो बातबात पर संसद में हमें दिखाने को लड़ते रहते हैं, मिलमिला कर अपने वेतन भत्तों में इजाफा कर लिया है और बाहर आप ने हमें दो चार सौ पर दिन के हिसाब से दे कर किसी न किसी बहाने चौबीसों घंटे आपस में लड़ामरवा कर रखा. बधाई हो सरकारजी. किसी के वेतन भत्ते तो बढ़े.

बुरा मत मानिएगा सरकारजी. अमीरों के पेट में तो सोएसोए भी जाता ही रहता है सरकारजी. अब तनिक हम जैसों के पेट में भी कुछ डलवा दीजिए न प्लीज. आप जोकुछ हमारे पेटों के लिए भेजते हैं, वह तो ऊपरऊपर ही खत्म हो जाता है सरकारजी. इसे आप शिकायत नहीं, सच मानिएगा जनाब.

सरकारजी, आप ने तर्क दिया है कि मुद्रास्फीति बढ़ गई थी, इसलिए उस दिन से नहीं, 2 साल पीछे से आप के वेतन भत्ते बढ़ने चाहिए थे कायदे से. चलो सरकारजी, खुशी हुई कि देश में कायदे से कुछ तो हो रहा है.

आप के वेतन भत्ते बढ़ने जरूरी, नहीं बहुत जरूरी थे. जनता भी मान रही थी. न बढ़ते तो सरकारजी आप को खानेपीने में तंगी हो जाती.

देश में जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता का लोकप्रिय नेता कभी तंगी में नहीं रहना चाहिए. देश की जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता के नेता तंगी में रहें, यह कहां का लोकतंत्र है सरकारजी.

सरकारजी, आप ने अपना वेतन बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपने भत्ते बढ़ाए, बधाई हो सरकारजी. आप को इस का एरियर भी मिलेगा, बधाई हो जी. आप ने अपना दैनिक भत्ता बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपना तो वेतन बढ़ाया ही बढ़ाया, अपने पास अपने कंप्यूटर का काम करने वाले को भी तार दिया, बधाई हो जी.

सबकुछ पेपरलैस करने की कवायद करने वाले सरकारजी, आप ने हर महीने जनता के काम करने के लिए प्रयोग होने वाले कागजस्याही का भुगतान भी बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने पहले ही देश को चरा चुके अपने बंधुबांधवों की पैंशन भी बढ़ाई, बधाई हो सरकारजी. खुद टिकाऊ न होने के बाद भी जनाबजी अपने लिए पहले से महंगी टिकाऊ कुरसीमेज ले सकेंगे, इस के लिए बधाई हो सरकारजी.

हम जनता तंगियों में रहे तो रहे, पर हम सब की हरदम यह दिली इच्छा रहती है कि आप तंगी में सोएसोए भी न रहें सरकारजी. जो आप तंगियों में रहें, तो हमारे तंग रहने का क्या फायदा?

सरकारजी, बुरा मत मानिएगा. सच कह रहा हूं कि जो आप अपनी पगार न भी बढ़ाएं तो भी आप के पास कमानेखाने के हजारों साधनसंसाधन हैं, पर मेरे जैसों के पास तो सब खाने ही खाने वाले हैं. कमा कर देने वाला एक भी नहीं. माना कि मैं तो 4 चपातियों से 2 पर आ गया हूं, पर मेरे पास मेरा भरापूरा परिवार खाने वाला है, रिश्तेदार खाने वाले हैं, यारदोस्त खाने वाले हैं.

जैसा कि मैं ने पहले भी आप से दोनों हाथ जोड़ कर विनती की है कि मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से बरस 2018, महीना नवंबर, चपरासी के पद से रिटायर हुआ जीव हूं सरकारजी, हालांकि मैं अपने जमाने का 10वीं पास था फर्स्ट डिवीजन, पर मेरी प्रमोशन न हो सकी, जबकि मेरे साथ वाले 10वीं फेल मेरे चपरासी रहते आप के साथ हो कर कहां से कहां निकल गए, अब उन्हें भी पता नहीं.

सरकारजी, महंगाई सिर से ऊपर हो जाने के बाद भी 2 साल से डीए तो मिला नहीं, पर मेरा बचा एरियर भी आज तक नहीं मिला. मेरे से बाद वालों को मिल गया. मेरी ही रोटी में से मेरे आगे कभीकभार एक टुकड़ा तोड़ कर फेंका जा रहा है. उस टुकड़े को अपने पेट में डालने की तो बारी ही नहीं आती.

एरियर का टुकड़ा मिलने से पहले ही घर में उस एरियर के टुकड़े को ले कर बहुत बहसबाजी शुरू हो जाती है. कोई कहता है कि मेरे पेट में डालो, तो कोई कहता है कि मेरे पेट में. एरियर से मिलने वाले उस टुकड़े को अब आप ही कहो कि किसकिस के पेट में डालूं सरकारजी?

एरियर के टुकड़े को ले कर हुई लड़ाई को जैसेतैसे शांत करने के बाद जिस के पेट में वह एरियर का टुकड़ा डालता हूं, वह और ‘भूखभूख’ चिल्लाने लगता है. इतने बड़े परिवार के पेटों के बीच एरियर का 10वां टुकड़ा क्या माने रखता है सरकारजी… आप ही बताओ.

एक बार फिर आप से गुजारिश है कि आप मेरा बचा एरियर मेरे जीतेजी एकमुश्त देने की कृपा करें, ताकि मुझे लगे कि किसी से तो मेरा लेनदेन जिंदा रहते खत्म हुआ. शेषों, अवशेषों से तो मरने के बाद भी हिसाबकिताब चलते रहेंगे सरकारजी.

Romantic Story: खेल खेल में

Romantic Story: शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’

‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.

कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’

‘‘कोई खास मौका है क्या?’’

‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’

नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’

‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.

औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.

‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते हुए कहा.

‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.

अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.

‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.

शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.

शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.

दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’

‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे… मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’

‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’

‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.

‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.

‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से

अच्छा सामान…’’

‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’

‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.

‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’

आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.

‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.

‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.

‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’

अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.

‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.

‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले

लौट आए.

‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.

‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.

‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और… और… मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’

‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.

‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’

‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’

‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना  चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’

‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’

शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.

कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा… उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’

‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’

‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’

‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.

‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.

‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.

‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है…’’

‘‘हां.’’

‘‘उस का क्या करोगी?’’

शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’

‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.

‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’

‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’

‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.

शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवादसहानुभूति के भाव से भर उठा था.

Romantic Story: बेनाम रिश्ता – क्या किशन के दिल में अमृता के लिए प्यार था?

Romantic Story: अपने विवाह के बाद किसी रिश्तेदार के विवाह समारोह में मेरा जाना हुआ. वहां जा कर मैं ने देखा कि तमाम रिश्तेदारों के साथसाथ मेरी चचेरी भाभी भी आई हुई थीं. उन से मेरा 40 वर्षों बाद मिलना हुआ था. रात को भोजन के बाद मैं भाभी के पास बैठी उन से बातें कर रही थी.

उन्होंने बताया कि चाचा की मृत्यु के तुरंत बाद ही वे ससुराल छोड़ कर अपने इकलौते बेटे व बहू के साथ अपने मायके लखनऊ जा कर बस गईर् थीं.

मैं बहुत ध्यान से उन की बातें सुन रही थी और साथ ही साथ विस्तार से जानने की जिज्ञासा भी प्रकट कर रही थी.

उन्होंने आगे बताया कि उन का भाई किशन भी लखनऊ में अपने पैतृक मकान में परिवार सहित रह कर पुश्तैनी व्यवसाय संभाल रहा था.

इतना सुनने के बाद मेरे लिए आगे कुछ और जानने की जिज्ञासा का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि वे मेरे और किशन के रिश्ते से अनभिज्ञ नहीं थीं. मेरी आंखों के सामने एक धुंधला सा चेहरा तैर गया, जो वक्त के बहाव में धूमिल होतेहोते मिट सा गया था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे मन में जो चल रहा है, उस को मेरे चेहरे के भाव से भाभी पढ़ लें, इसलिए मैं आंखें बंद कर के सोने का उपक्रम करने लगी और उन से विदा ले कर अपने कमरे में चली आई. दिनभर की भागदौड़ से थकी होने के कारण तुरंत ही मैं सो गई.

तमाम मेहमानों के साथ भाभी ने भी विदा ली. जातेजाते वे अपना मोबाइल नंबर देना और मेरा लेना नहीं भूलीं. इस मुलाकात ने हमारी आत्मीयता को पुनर्जीवित कर दिया था. मैं दिल्ली

लौट आई और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई.

मुझे आए हुए 20 दिन बीते कि एक दिन मेरा मन भाभी से बात करने को हुआ, लेकिन यह सोच कर टाल दिया कि कहीं किशन भी आसपास न बैठा हो. मैं बुझी हुई आग को दोबारा सुलगाना नहीं चाहती थी. लेकिन फिर भी परोक्षरूप से उस से संपर्क करने की इच्छा का ही तो परिणाम था कि मैं उन से बात करना चाह रही थी.

अभी 3 दिन ही बीते कि अचानक अपने मोबाइल में एक मैसेज और उस को भेजने वाले का नाम पढ़ कर मैं बुरी तरह चौक गई. जो मैं नहीं चाहती थी, वही हुआ. भाभी के भाई किशन का मैसेज था, ‘‘कैसी हो अमृता,’’ मैसेज पढ़ते हुए मैं ने अपने चारों और ऐसे देखा, जैसे मैं कोई चोरी कर रही हूं.

मेरे मन में अजीब सी हलचल होने लगी. पलक झपकते ही मैं समझ गई कि किशन ने भाभी से ही मेरा मोबाइल नंबर लिया होगा. मेरे मन में भाभी से मिलने के बाद उस का खयाल आना और उस का मैसेज आना, टैलीपैथी ही तो थी, सच ही कहा गया है किसी से मिलने के पीछे भी कोई न कोई कारण होता है. तो क्या भाभी से मिलने का कारण भी मेरा किशन से दोबारा संपर्क होना था, मैं सोच रही थी.

मेरा मन अशांत हो चला था. मैं अपने मस्तिष्क को 40 वर्ष पहले अतीत में घटित घटना की यादों में धकेलने के लिए मजबूर हो गई थी, जो मेरे मानस पटल से समय के बहाव में धुलपुंछ गए थे और जिन का मेरे जीवन में अब कोई अस्तित्व ही नहीं था. अतीत के पन्ने एकएक कर के मेरी आंखों के सामने खुलने लगे.

मेरी भाभी अपनी मां और भाई के साथ मथुरा में हमारे घर आई थीं. तब मेरी उम्र 21-22 वर्ष की रही होगी. भाभी के आग्रह पर जहांजहां वे घूमने गए, मैं भी उन के साथ गई. साथसाथ घूमते हुए भाभी के भाई की गहरी निगाहों की कब मैं शिकार हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. उस की मंदमंद मुसकान और बोलती हुई बड़ीबड़ी भूरी आंखों ने मुझे मूक प्रेमनिमंत्रण देने में जरा भी संकोच नहीं किया. जिस को स्वीकार करने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह बहुत कम बोलता था, लेकिन उस की आंखों की भाषा से कुछ भी अनकहा नहीं रहता था. किसी ने ठीक ही कहा है खामोशियों की भी जबां होती है. परिवार वालों से हट कर जब भी मौका मिलता था, वह मेरा हाथ पकड़ लेता था और मैं ने भी कभी हाथ छुड़ाने का प्रयास नहीं किया था. हम दोनों मंत्रमुग्ध से एकदूसरे का साथ पाने के लिए आतुर रहते थे. और वह होली का दिन, कैसे भूल सकती हूं… वह सब. यंत्रचालित हम एकदूसरे के पीछे भागते रहते थे.

20 दिनों के साथ के बाद अंत में बिछुड़ने का दिन आ गया. भाभी मुझ से खिंचीखिंची ही रहीं. इस से मुझे आभास हो गया था कि उन से कुछ भी छिपा नहीं है, मौका पा कर किशन ने मेरे हाथ में एक छोटी सी पर्ची थमा दी, जिस में उस का पता लिखा था. कुछ भी कहनेसुनने का हम दोनों को कभी मौका नहीं मिला. आज के विपरीत वह जमाना ही ऐसा था, जब अपने हावभाव से ही प्रेम की अभिव्यक्ति होती थी, उसे शब्दों का जामा पहनाने में इतना विलंब हो जाता था कि समय के बहाव में परिस्थितियां ही बदल जाती थीं.

मुझे याद है, उस के जाने के बाद अगले दिन अपनी सहेली से लिपट कर मैं कितना रोई थी. किशन से लगभग 3 महीने तक पत्रव्यवहार हुआ. फिर अचानक उस का पत्र आना बंद हो गया. मैं ने पत्र लिख कर कारण पूछा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

समय बीतता गया और किशन के साथ बिताए गए दिनों की यादें समय की परतों के नीचे दबती चली गईं. और आज अचानक इतने वर्षों बाद उस का यह अप्रत्याशित मैसेज. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

अपने पति की मृत्यु के बाद से जीवन अकेलेपन और खालीपन के एहसास के नीचे दब कर दम तोड़ रहा था और एक बोझ सा बन गया था, लेकिन जीना तो था न. बच्चे बहुत व्यस्त रहते थे, मैं हमेशा उन के सामने मुसकराहट का मुखौटा ओढ़े रहती थी, लेकिन रात में अकेले, साथी की कमी को बहुत शिद्दत से महसूस करती थी और कई बार तो रातभर नींद नहीं आती थी, यह सोच कर कि  पहाड़ सा जीवन कैसे काटूंगी.

वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए मेरा मन किशन से बात करने के लिए व्याकुल हो गया. कुछ देर के आत्ममंथन के बाद हमारे जमाने के विपरीत जब पति के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से आत्मीयता का संबंध रखना पाप समझा जाता था, इस जमाने की बदली हुई सोच, नई टैक्नोलौजी द्वारा उपलब्ध संपर्क साधन के कारण और पहले प्यार की अनुभूति की पुनरावृत्ति की मिठास को पाने के लोभ ने आग में घी डालने का कार्य किया और मेरा मन, मन की सीमारेखा को तोड़ने के लिए मजबूर हो गया.

मैं ने अपने मन को यह कह कर समझाया, ‘देखिए आगेआगे होता है क्या.’ और मैं ने जवाब दिया, ‘‘ठीक हूं, तुम बताओ?’’ वह जैसे मेरे जवाब का इंतजार ही कर रहा था. प्रत्युत्तर में उस ने औपचारिकतापूर्ण मेरे परिवार के बारे में विस्तार से पूछा और अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के परिवार में उस की पत्नी और 2 बेटियां हैं, दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है.

वर्षों बाद उस की आवाज सुन कर मैं बहुत रोमांचित हुई, ऐसा लगा कि जैसे हमारे अतीत के मूकप्रेम को वाणी मिल गई. वार्त्तालाप में साथसाथ बिताए गए वे दिन, जो धरातल में कही समा गए थे, पुनर्जीवित हो गए. बहुत सारी घटनाएं किशन ने याद दिलाईं, जो मैं भूल चुकी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें तो सब याद है.’’

वह बोला, ‘‘मैं भूला ही कब था?’’

‘‘तो फिर तुम ने पत्र लिखना क्यों बंद कर दिया?’’

क्या करता दीदी ने सबकुछ पिताजी को बता दिया. और उन के आदेश पर मुझे ऐसा करना पड़ा. वह जमाना ही ऐसा था, जब बड़ों का वर्चस्व ही सर्वोपरि होता था.’’

‘‘काश, उस समय मोबाइल होता.’’ मेरी इस आवाज का मर्म उसे अंदर तक आहत कर गया.

‘‘चलो, अब तो मोबाइल है. अब तो बात कर सकते हैं,’’ उस ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा.

उस से बात कर के मुझे अपने पर नाज हो आया कि आज इतने सालों बाद भी मैं किसी की यादों में बसी हूं. विवाह एक सामाजिक बंधन है, जो शरीर को तो कैद कर सकता है, लेकिन मन तो आजाद पंछी की तरह अरमानों के गगन में जब चाहे उड़ सकता है. बहुत बार विवाह के समय हवन की अग्नि भी प्यार की तपिश को अक्षुण्ण नहीं कर पाती. उस की बातों से स्पष्ट हो गया था कि वह भी अपने परिवार के प्रति समर्पित है, लेकिन मेरी तरह उस के भी दिल का एक कोना खाली ही रहा. प्रसिद्ध शायर फराज ने ठीक ही कहा है, ‘‘कुछ जख्म सदियों के बाद भी ताजा रहते हैं फराज, वक्त के पास भी हर मर्ज की दवा नहीं होती.’’

मुझे किशन की बातें बहुत रोमांचित करती थीं. लेकिन कभीकभी मेरा मन नैतिकता और अनैतिकता के झूले में झूलता हुआ रिश्ते के स्थायित्व के बारे में सोच कर उद्विग्न हो जाता था. लेकिन धीरेधीरे उस से बातें कर के मुझे एहसास हो चला था कि हमारा प्रेम परिपक्व उम्र की अंतरंग मित्रता में परिवर्तित हो गया है. इस नए रिश्ते को बनाने में किशन का बहुत सहयोग था.

पहले उस की जो बातें मुझे रोमांचित करती थीं, अब अजीब सा सुकून देने लगी थीं. अब हम दोनों की बातचीत में किसी कारण लंबा अंतराल भी आ जाता था, तो मुझे उस के दोबारा खो जाने की बात सोच कर बेचैनी नहीं होती थी. हम दोनों ही वार्त्तालाप के दौरान एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त करते थे.

एक दिन उस ने मुझे यह कह कर चौंका दिया कि वह एक बार मिलने के लिए बहुत बेचैन है और वह जल्दी ही किसी बहाने से मुझ से मिलने दिल्ली आएगा. यह सुन कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. उस से मिलने की कल्पना ही मुझे बहुत रोमांचित कर रही थी. सोच में पड़ गई. 40 वर्षों में उस में जाने कितना परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं, मैं उस के साथ सहज हो पाऊंगी या नहीं.

वह दिन भी आ गया जब उसे दिल्ली आना था. किशन से इतने सालों बाद मिलना, मेरे लिए, सपने का वास्तविकता में बदलने से कम नहीं था. समय और परिस्थितियां बहुत बदल गई थीं. इसलिए उस से मिलने के लिए अपनी मनोस्थिति को तैयार करने में मुझे बहुत समय लगा.

उस से मिलने पर मुझे लगा कि हम दोनों के सिर्फ बाहरी आवरण पर ही उम्र ने छाप छोड़ी थी, लेकिन अंदर के एहसास में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं आया था. इतने सालों बाद मिलने पर समझ ही नहीं आ रहा था कि बातों का सिलसिला कहां से आरंभ किया जाए, अभी भी बिना कुछ कहे ही जैसे हम ने आपस में सबकुछ कह दिया था.

किशन ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बात आरंभ की, ‘‘अमृता, जरूरी नहीं कि हम जिस से प्यार करें, उस से शादी भी हो जाए और जिस से शादी हो उस से प्यार हो जाए, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है, इसलिए इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है.

‘‘हमारी आपस में शादी नहीं हुई, लेकिन आपस के प्यार के एहसास के रिश्ते को अच्छे दोस्त बन कर तो जिंदा रख सकते हैं. वैसे भी, उम्र के इस पड़ाव में इस से अधिक चाहिए ही क्या? मेरे जीवन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.’’

मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में विचरण कर रही हूं. हमारे पुरुषप्रधान समाज में तो ऐसी सोच वाला पुरुष मिलना असंभव नहीं, तो कठिन जरूर है, जिस ने मेरे प्यार को दीये की लौ की तरह अभी तक अपने दिल में छिपा रखा था. मैं अपने को धन्य समझ कर, भावातिरेक में उस से लिपट गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले.

उस ने मुझे अपने बाहुपाश में थोड़ी देर के लिए जकड़े रखा. किशन के पहली बार के इस स्पर्श ने मुझे अलौकिक सुकून दिया. मुझे लगा कि मेरे एकाकी जीवन में किसी साथी ने दस्तक दे दी थी और मुझे जीने का सबब मिल गया था.

पति और पत्नी का रिश्ता कानूनी है, लेकिन यह बेनाम रिश्ता, क्योंकि इस ने समाज की स्वीकृति की मुहर प्राप्त नहीं की है, अवैध माना जाता है. समाज को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बेनाम रिश्ता इतना खूबसूरत होता है कि जीवन के लिए संजीवनी से कम नहीं होता और ताउम्र खुशी देता है.

शायर गुलजार ने इस बेनाम रिश्ते को अपनी कलम से बहुत खूबसूरत तरीके से उकेरा है, ‘हाथ से छू के इस रिश्ते को इलजाम न दो.’

उस ने मुझ से कहा कि हमारा मिलना आसान नहीं है, लेकिन फोन पर एकदूसरे के संपर्क में रह कर हमेशा एकदूसरे से जुड़े रहेंगे. किशन ने एक ऐसा एहसास दे कर, जिस के कारण हजारों मील की दूरियां भी बेमानी हो गई थीं, मुझ से विदा ली. इन दोनों के बीच की दूरी अब कोई माने नहीं रखती थी. दिल से दिल जुड़ गए थे. यह रिश्ता दिल का था. समाज की मुहर की जरूरत भी नहीं थी इसे.

Family Story: बोझ

Family Story: महज 30 साल की उम्र में पंकज ने अपनी कारोबारी हैसियत का लोहा मनवा लिया था. पिता के टैंट हाउस के काम को वह नई ऊंचाई पर ले जा चुका था.

‘पंकज टैंट हाउस’ का नाम अब शहर से बाहर भी अपना डंका बजाने लगा था. बड़े आयोजन के लिए उस के काम का कोई सानी नहीं था. जहां उस के पिता 25 लोगों के स्टाफ के साथ अपना कारोबार चलाते थे, वहीं पंकज ने पिछले तकरीबन डेढ़ साल में 200 लोगों का स्टाफ अपने नीचे काम करने के लिए रख लिया था.

पैसों की बारिश के साथ सामाजिक इज्जत में भी भारी इजाफा हुआ था, पर इस शानशौकत, इज्जत, पैसे के एवज में पंकज न तो चैन की नींद ले पाता था, न ही ढंग से भोजन कर पाता था.

पंकज की शादी हुए भी 2 साल हो चुके थे, पर 3 दिन के हनीमून के अलावा उस के पास बीवी के लिए भी समय नहीं था. मातापिता और पत्नी उसे काम के फैलाव को समेटने के लिए समझाते, पर उस का जुनून उसे अपने काम के नशे से सरोबार रखता.

सारा दिन औफिस और साइट के बीच भागदौड़ और साथ ही मोबाइल पर लगातार बातचीत पंकज को एक पल के लिए भी अपने या परिवार के बारे में सोचने का मौका नहीं देता था. सुबह जल्दबाजी में नाश्ता कर घर छोड़ता, दिन में जो मिल जाता खा लेता और देर रात घर लौट कर जो भी उसे परोस दिया जाता, अपना ध्यान फोन पर उंगली फिराते हुए खा लेता.

ज्यादा मेहनत करने से पंकज की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था. कभी सिरदर्द, तो कभी बदनदर्द, एयरकंडीशंड औफिस में भी काम करते समय कभी माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आती थीं.

एक दिन ऐसे ही बेचैनी में पंकज औफिस से उठ कर अपने गोदाम की ओर चल दिया. 4-5 मजदूर सामान को जमातेजमाते भोजन करने जमीन पर घेरा बना कर बैठे थे. कोई डब्बे में तो कोई थैली में से भोजन निकाल रहा था और हंसीठिठोली से माहौल में मस्ती घोल रहा था.

पंकज चुपचाप उन को निहारता रहा और उसे उन को देख कर ही सुकून मिलने लगा था.

‘‘ले… मेरे कटहल के अचार का स्वाद चख, मेरी नानी ने बना कर भिजवाया है,’’ एक मजदूर ने दूसरे को मनुहार से अपना खाना साझा किया, तो दूसरा मजदूर बोला, ‘‘मेरी बीवी भी प्याजपरवल की सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, सब चख लो.’’

अचानक एक मजदूर की नजर पंकज पर पड़ी, तो सब चुप हो गए. वह धीरे से चल कर उन के पास आया, तो एक मजदूर सकपका कर बोला, ‘‘हम बस अभी खाना खाने बैठे हैं. जल्दी खा लेते हैं. कोई काम है, तो आप बताइए?’’

पंकज झिझकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं भी आप लोगों के साथ बैठ कर भोजन कर सकता हूं?’’

कुछ देर की शांति के बाद एक जना अटकते हुए बोला, ‘‘हमारा भोजन शायद आप को पसंद न आए और फिर आप कहां बैठ कर खाएंगे? यहां तो बरतन भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे, मैं यहीं तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन करना चाहता हूं, अगर आप को एतराज न हो तो…?’’ एक मुसकराहट के साथ पंकज ने कहा, तो खुशीखुशी सभी लोगों ने सरक कर घेरा बड़ा कर लिया और उस के लिए जगह बना दी.

पंकज पूरे मजे के साथ एकएक कौर खाते हुए सोच रहा था कि इतनी दौलत होने के बाद भी उस ने जिंदगी में पिछली बार कब इतने शौक से भोजन किया था?

बहुत सोचने के बाद भी पंकज याद नहीं कर पाया. इस समय तो बारबार बजते फोन को भी उस ने साइलैंट मोड पर कर दिया था. उस के कारोबार के लिए मेहनत करने वाले कामगारों को वह पहली बार जाननेसमझने का मौका पा रहा था, जो सब मिल कर उसे अपनी बातों से अनोखा मजा दे रहे थे.

वहां से खाना खा कर जाते हुए पंकज यह सोच रहा था कि वह अपने सभी कामगारों को एक शानदार तोहफा देगा और काम से छुट्टी ले कर अपने परिवार के लिए भी रोज समय जरूर निकालेगा.

पंकज की चिंता और दर्द अब काफूर हो चुके थे और उसे लग रहा था कि उस ने अपने ऊपर जबरदस्ती का लादा हुआ बोझ उतार फेंका है.

News Story: सैकंड क्लास सिटीजन का अव्वल कारनामा

News Story: आज से तकरीबन 10 महीने पीछे चलते हैं. शहर दिल्ली और महीना जुलाई का. बारिश का मानो कहर सा बरपा था. ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके के एक आईएएस कोचिंग सैंटर के बेसमेंट में बहुत से छात्र वहां बनी लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे थे.

शाम के साढ़े 6 बजे थे कि वहां बैठे छात्रों को महसूस हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. अचानक से ही बेसमेंट में पानी भरने लगा. पानी का बहाव इतना तेज था कि यह देख कर छात्रों के मानो हाथपैर फूल गए.

‘‘यार, अब यह क्या नौटंकी है… यहां हर साल ऐसे ही पानी भरता है,’’ रजनी ने पूछा.

‘‘पर, आज का मामला कुछ और ही है. यह सिर्फ पानी भरना नहीं है, बल्कि कोई बड़ी समस्या है,’’ अनामिका बोली.

अनामिका एक पढ़ाकू लड़की थी. उम्र 23 साल. भरा बदन और सांवला रंग. वह ज्यादातर सूटसलवार पहनती थी और अपना ज्यादातर समय लाइब्रेरी में ही बिताती थी.

‘‘मुझे तो बड़ा डर लग रहा है. यह पानी तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है,’’ जब घुटने से ऊपर पानी चला गया, तब विजय ने टेबल पर चढ़ते हुए कहा.

विजय का डर जायज था. चंद ही सैकंड में वहां बाढ़ का सा नजारा था. उसे तैरना नहीं आता था.

अनामिका समझ गई. उस ने हिम्मत नहीं खोई और जल्दी से विजय के पास तैर कर पहुंची और पीछे से कौलर पकड़ कर उसे खींचने लगी. उस का सिर भी पानी के ऊपर रखा और बेसमेंट के दरवाजे की तरफ उसे ले गई.

वहां ऊपर से कुछ लोगों ने रस्सियां फेंकी हुई थीं. अनामिका ने एक रस्सी विजय को पकड़ाई और बोली, ‘‘आप इसे मत छोड़ना. वे लोग आप को ऊपर खींच लेंगे.’’

पर विजय बहुत ज्यादा घबराया हुआ था. वह पानी में डुबकी लगाने लगा. लेकिन ऊपर खड़े लोगों ने उसे बहुत जल्दी ऊपर खींच लिया. अनामिका भी तब तक तैर कर ऊपर आ चुकी थी.

बाहर लोगों की भीड़ जमा थी. तब तक विजय बेहोश हो चुका था. शायद उस के पेट में पानी भर गया था, पर किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

इतने में अनामिका बोली, ‘‘सब लोग पीछे हो जाएं. थोड़ी हवा आने दें. मैं इन्हें देखती हूं.’’

इस के बाद अनामिका ने विजय के कपड़े ढीले कर दिए. उस की ठोढ़ी ऊपर उठा कर सिर पीछे झुकाया और फिर उस की नाक बंद कर मुंह पूरा खोल दिया. फिर उस ने अपना मुंह ढक्कन की तरह उस के मुंह पर फिट कर पूरी हवा मुंह में छोड़ दी. उस ने ऐसा हर 5 सैकंड बाद किया और तब तक करती रही, जब तक कि विजय की नाड़ी या धड़कन काम न करने लगी.

इस के बाद विजय के मुंह से पानी निकलने लगा. अनामिका ने उस की गरदन टेढ़ी कर के पानी निकाल दिया और फिर से उसे सांस देने लगी.

थोड़ी देर में ही विजय को थोड़ा होश आने लगा. इस के बाद उसे आननफानन ही पास के एक अस्पताल में ले जा कर भरती कराया गया.

अनामिका भी साथ में ही थी. वह सारी रात गीले कपड़ों में विजय के पास रही. उस के कपड़ों से बदबू तक आने लगी थी, पर वह विजय की ढाल की तरह वहीं जमी रही.

सुबह जब बारिश का जोर कम हुआ, तब विजय के मांबाप अस्पताल में आए. तब तक विजय को पूरी तरह होश आ चुका था.

विजय ने बताया, ‘‘मां, यह अनामिका है. इस ने ही मुझे डूबने से बचाया है.’’

मां कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अनामिका ने कहा, ‘‘अरे, यह सब बताने की क्या जरूरत है. तुम ठीक हो, यही काफी है.’’

‘‘नहीं अनामिका, आप ने वाकई बड़ी बहादुरी दिखाई. डूबते को तिनके का सहारा होता है और आप तो एक ऐसी इनसान हैं, जिस ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारे बेटे को न सिर्फ बचाया है, बल्कि सारी रात यहां अस्पताल में बिता दी,’’ विजय के पापा अमरनाथ बोले.

‘‘अनामिका, हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं,’’ विजय की मां लक्ष्मी देवी ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए. यह तो मेरा फर्ज था. विजय अब ठीक है, यही मेरे लिए काफी है,’’ अनामिका बोली.

इस हादसे को बीते 10 महीने हो गए थे. अनामिका और विजय गहरे दोस्त बन गए थे. दोस्त से ज्यादा ही. उन में प्यार के बीज फूट पड़े थे. उन का यह दोस्ती का रिश्ता विजय के मांबाप भी जानते थे.

एक शाम को विजय और अनामिका एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. विजय ने पूछा, ‘‘यार, एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने मुझे इतनी आसानी से कैसे बचा लिया था?’’

‘‘क्योंकि, मैं बहुत अच्छी तैराक हूं,’’ अनामिका ने झट से जवाब दिया.

‘‘तुम ने स्विमिंग कहां से सीखी?’’

‘‘नदी में. मैं तो 4 मिनट तक सांस रोक कर पानी के भीतर तैर सकती हूं.’’

‘‘वाह, पर ऐसा करने की जरूरत ही क्या है?’’

‘‘हमारा काम ही ऐसा है गांव में.’’

‘‘कैसा काम…? मैं अभी तक कुछ समझा नहीं,’’ विजय ने पूछा.

‘‘मैं मछुआरा जाति से हूं… हम मल्लाह हैं और बिहार के वैशाली जिले में रहते हैं. मेरे पिता केशवराम का यही पुश्तैनी कारोबार है. उन के पास 10 बड़ी नाव हैं. कई कोल्ड स्टोरेज हैं और वे मछली का होलसेल काम करते हैं.’’

‘‘तुम मछुआरा जाति से हो…?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हां, जनाब. इस समाज का होना कोई गुनाह है क्या?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘गुनाह तो है. तुम ने मुझ से यह बात क्यों छिपाई?’’ विजय गुस्सा होते हुए बोला.

‘‘मैं ने कुछ भी नहीं छिपाया है. तुम ने आज पूछा, तो मैं ने सब सच बता दिया है.’’

‘‘पर, यह हम दोनों के रिश्ते के लिए अच्छी बात नहीं है. मुझे सोचना पड़ेगा हम दोनों के बारे में,’’ विजय बोला.

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो? हम दोनों यूपीएससी का प्रिलिमिनरी ऐग्जाम क्लियर कर चुके हैं. एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी भी करेंगे. तुम्हारे मांबाप हम दोनों की दोस्ती के बारे में जानते हैं और आज तुम मेरी जाति पर सवाल उठा रहे हो. मेरी जाति से मुझे जज कर रहे हो,’’ अनामिका बोली.

‘‘यार, तुम मछुआरा जाति की हो और मैं ब्राह्मण लड़का हूं. मेरे मांबाप जब यह सुनेंगे, तब हंगामा मच जाएगा,’’ विजय बोला.

‘‘तुम ने आज जता और बता दिया कि एक पढ़ेलिखे लड़के के मन में भी जातिवाद का जहर किस कदर दिमाग में भरा हुआ है. तुम जानते हो कि यूपीएससी के प्रिलिमिनरी ऐग्जाम में मेरी रैंक कितनी अच्छी आई है. जनरल कैटेगरी वालों से भी अच्छी है.

‘‘मुझे यकीन है कि मैं आईएएस जरूर बनूंगी. तुम भी बनोगे, पर आज यह कितने शर्म की बात है कि तुम अपने मांबाप से हम दोनों के रिश्ते के बारे में बताने से हिचक रहे हो, जबकि वे जानते हैं कि हम कितने गहरे दोस्त हैं.’’

‘‘मेरा वह मतलब नहीं है. तुम मुझे पसंद हो, पर मम्मीपापा को मनाना बहुत पेचीदा काम है,’’ विजय ने कहा.

‘‘पता है, आज जब तुम ने मेरी जाति के बारे में सुनने के बाद जो रिऐक्शन दिया है, उस से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की एक बात को बहुत ज्यादा बल मिला है और उन्हें सच साबित करने में तुम ने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सी बात?’’ विजय ने पूछा.

‘‘अभी बिहार में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं. दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं और ओबीसी सब इस में शामिल हैं. सिस्टम ने आप को घेर कर रखा है.’’

‘‘पर, यह तो बिहार विधानसभा चुनाव में वोट हासिल करने की कोई रणनीति भी हो सकती है,’’ विजय ने शक जाहिर किया.

‘‘यह सच है. राहुल गांधी ने इन सैकंड क्लास लोगों को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जाति जनगणना समाज का एक्सरे है, जिस से आप को वंचित रखा जा रहा है. यह क्रांतिकारी कदम है, इसलिए आरएसएस और भाजपा इसे रोकना चाहती है, मगर अब दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती है.

‘‘उन्होंने आगे कहा था कि तेलंगाना में जाति जनगणना हुई, आंकड़े आए तो हम ने आरक्षण बढ़ा दिया. यह डाटा मोदीजी आप को नहीं देना चाहते हैं. मैं मोदीजी से कहना चाहता हूं कि यह जो आप ने 50 फीसदी आरक्षण की झूठी दीवार बनाई है इसे हटाइए, नहीं तो हम इसे गिरा कर फेंक देंगे.’’

इस पर विजय बोला, ‘‘पर, यह तो एक सियासी भाषण है. राहुल गांधी ने पटना के श्रीकृष्ण मैमोरियल हाल में आयोजित संविधान सुरक्षा सम्मेलन में यह सब कहा था और उन्होंने माना कि पूर्व में कांग्रेस से गलती हुई है.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि मैं पहला व्यक्ति हूं, जो यह कहेगा कि बिहार में कांग्रेस को जो काम करने चाहिए थे, जिस मजबूती और गति से करने चाहिए थे, वह हम ने नहीं किए. हम अपनी गलती को समझे हैं.

‘‘अब हम बिना रुके, पूरे शक्ति से कमजोर, गरीब, दलित, वंचितों, महिलाओं को ले कर आगे बढ़ेंगे.

‘‘बिहार में कांग्रेस और गठबंधन की यही भूमिका है कि वह गरीब, दलित, ओबीसी, ईबीसी को आगे बढ़ाए. मैं ने और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार की टीम को साफसाफ बता दिया है कि गरीब व पिछड़ी जनता को प्रतिनिधित्व दीजिए.

‘‘हम दलितों और महिलाओं के लिए राजनीति का दरवाजा खोल कर बिहार का चेहरा बदलना चाहते हैं. हाल ही में हम ने कांग्रेस जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की है. पहले जिलाध्यक्षों की सूची में दोतिहाई अपर कास्ट के लोग थे, मगर अब जिलाध्यक्षों की नई सूची में दोतिहाई ईबीसी, ओबीसी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं.’’

‘‘तुम मेरी बात को ठीक से नहीं समझ रहे हो. यहां राहुल गांधी के सियासी भाषण की बात नहीं हो रही है, बल्कि मैं यह बताना चाहती हूं कि आजादी के इतने साल के बाद भी किसी नेता को यह कहना पड़ रहा है कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं.

‘‘बिहार के अपने इस दौरे पर राहुल गांधी ने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा था कि अंबेडकर ने सचाई के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने देश के गरीबों के लिए लड़ाई लड़ी. वे देश के दलितों को समझ पाए. वे उन के दुख को, उन की सचाई को समझ पाए. बाद में वे उसी सचाई को ले कर लड़े.

‘‘हम सचाई से दूर नहीं जा सकते. संविधान ही देश की सचाई का रक्षक है. हम सचाई की लड़ाई लड़ रहे हैं. अंबेडकर की विचारधारा हमारे खून के भीतर है और इसे कोई नहीं मिटा सकता.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि देश में 95 फीसदी लोग दलित, पिछड़े, ईबीसी, ओबीसी और अति दलित हैं. लेकिन 5 फीसदी लोग इस पूरे देश को चला रहे हैं. बस, 10 से 15 लोग हैं, जिन्होंने पूरे कौरपोरेट इंडिया को पकड़ रखा है. आप का लाखोंकरोड़ों रुपया सीधा इन की जेबों में जा रहा है. इन लोगों ने पूरे सिस्टम को घेर कर रखा हुआ है.’’

विजय समझ गया था कि जाति की बात छेड़ कर उस ने गलत किया है, पर अब तो कमान से तीर निकल चुका था. अनामिका को यह कतई बरदाश्त नहीं था कि विजय उस की जाति पर सवाल उठाए, जबकि वह अपनी जाति पर गर्व महसूस करती थी.

अनामिका को अपने पिता के काम पर किसी तरह की कोई शर्म नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर यह सब कारोबार जमाया था. खुद कम पढ़ालिखा होने के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया और उस की काबिलीयत को पहचाना.

विजय अब दोराहे पर खड़ा था. एक तरफ उसे अनामिका का गुस्सा शांत करना था, तो वहीं दूसरी तरफ उसे अपने मांबाप को यह कड़वी हकीकत बतानी थी. अनामिका कैफे से जा चुकी थी.

अगले दिन से ही अनामिका ने विजय को इग्नोर करना शुरू किया, पर विजय पर तो प्यार का रंग भी उतना ही चढ़ा था, जितना जाति का. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अनामिका को भरोसा दिलाए. उस ने मां से तो बात नहीं की, पर अपनी बड़ी बहन सुधा को फोन पर सब बता दिया, जो अनामिका से मिल चुकी थी और विजय की जान बचाने के किस्से को जानती थी.

सुधा के कहने पर विजय ने एक दिन अनामिका से प्यार जताने का फैसला कर लिया. अनामिका गर्ल्स होस्टल में रहती थी. विजय स्विगी डिलीवरीमैन की ड्रैस पहन कर उस के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैडम, आप का केक…’’

Hindi Story: अजीब जिंदगी

Hindi Story: आंगन में बैठा प्रीतम ध्यान से हरी दूब और रंगबिरंगे फूलों में खो जाना चाहता था. मोना के इंतजार में दोपहर से शाम होने को आई थी. कभीकभार एकाध बादल आसमान पर आ जाता, तो उसे यों लगने लगता जैसे बादल उसे ही खिजा रहा है. कभीकभार हवा भी सरसराती कोई सवाल पूछती थी. शाम ने काजल लगा लिया था.

चश्मा उठा कर प्रीतम भी भीतर आ गया. बत्ती जलाई और टैलीविजन देखने लगा. किसी सीरियल में एक रोमांटिक सीन चल रहा था. प्रीतम ने चैनल नहीं बदला, मगर वह सीन गौर से देखा भी नहीं. उसे मोना याद आ रही थी. 4 बजे स्कूल की छुट्टी हो जाती है. अब 7 बजने को आए हैं, मगर उस का कुछ अतापता नहीं.

प्रीतम ने पिछले हफ्ते बुखार और जुकाम होने पर डाक्टर की सलाह ली थी.

‘यह इंफैक्शन भी हो सकता है. आप घर पर भी मास्क लगाओ. दफ्तर मत जाओ. औरों को भी मुसीबत में मत डालो. 7 दिन बाद एक दफा मिल लेना. अगर मैं ठीक समझूंगा तो दफ्तर चले जाना,’ डाक्टर ने अपना फैसला सुनाया.

सचमुच वह राय नहीं फैसला ही हुआ करता था. पिछले 8 साल से प्रीतम उन डाक्टर की ही शरण में जाता था. प्रीतम पर उन का इलाज तुरंत असर करता था.

न जाने किधर खोया हुआ प्रीतम अभी भी आशा की ज्योति जलाए हुए था कि मोना फोन तो करेगी कम से कम.

प्रीतम मन ही मन गुस्सा हो रहा था कि तभी अचानक मोना आई और कुरसी पर पसर गई. प्रीतम का जुकामबुखार कुछ नहीं पूछा. सीधा बोली, ‘‘अभी बाहर से खाना मंगवा लेती हूं. तुम में तो अब सुधार है. दाल मंगवा रही हूं. खा तो लोगे न…?’’ जवाब सुने बगैर उस ने खाना और्डर कर दिया.

कमाल की बात यह है कि प्रीतम और मोना उस के बाद 20 मिनट तक चुपचाप ही बैठे रहे. वहीं मेज पर पानी की बोतल रखी थी. मोना ने 2 बार पानी उसी बोतल से गले में उतार लिया था.

खाना आ गया था. मोना ने पूछा, तो प्रीतम ने खुद ही दूध में कौर्नफ्लैक्स मिला लिया. मोना ने थाली ली. रोटी और दाल मिला कर खाने लगी.

2 चम्मच दूध और कौर्नफ्लैक्स प्रीतम ने भी गले से नीचे उतार लिया. पेट में जरा भोजन गया, तो उन दोनों को तब जा कर कुछ दम आया शायद.

पहले मोना ही बताने लगी, ‘‘सुनो, आज मैडम जुत्सी का विदाई समारोह था. बहुत ही बढि़या हुआ, मगर ये प्रिंसिपल भी खूब पाखंड करते हैं. मैडम जुत्सी आज तक स्कूल में एक घंटा ऐक्स्ट्रा नहीं रुकीं, तो उन्होंने भी मैडम जुत्सी को ऐक्स्ट्रा भाव नहीं दिया.

5 मिनट में ही उठ कर चल दिए और बहाना बना दिया कि आज डीईओ के पास खास मीटिंग है. वहां जाना है.’’

प्रीतम मोना को सुन रहा था.

‘‘फिर मैं ने और बानी ने मिल कर सब संभाला. कमाल की बात तो यह कि हम को ही न चाय मिली, न समोसे. ऐसा ही होता है न,’’ कह कर मोना दो पल के लिए ठहर गई.

‘‘प्रीतम, तुम जरा सी दाल चख लो. एकदम सादा है. पेट को कुछ न होगा,’’ कह कर मोना ने स्नेह दिखाया और प्रीतम भी पिघल गया. उस ने मोना की ही थाली में से दाल और चपाती चख ली.

अब प्रीतम को मनुहार भरी परवाह से देखते हुए मोना ने उस से कौर्नफ्लैक्स की कटोरी और चम्मच ले लिया.

झूठे बरतन रसोई में सिंक के हवाले कर मोना हथेली में गुड़ के 2 टुकड़े रख कर लाई और बोली, ‘‘लो, एक खा लो यार. अच्छा लगेगा.’’

प्रीतम ने हथेली से उठा कर एक डली को मुंह में रख लिया.

‘‘कल से शायद दफ्तर जाना शुरू कर दूं,’’ प्रीतम ने गुड़ की मिठास में घुलते हुए बताया.

‘‘ओह, एक हफ्ता निकल गया यार, मैं ने तो एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं की. कितना थका दिया स्कूल की नौकरी ने. कभी मन होता है कि इसी पल यह नौकरी छोड़ दी जाए, फिर लगता है कि काम के बिना चैन भी तो नहीं मिलता है न.’’

मोना यों ही उठ कर प्रीतम का सिर दबाने लगी और बोली, ‘‘इतने दिन बच्चों का पेपर सैट करना था. कोई होश ही नहीं था मुझे. ऊपर से 2 दिन बाद एक कंपीटिशन कराना है. उस का भी मुझे ही इंचार्ज बना दिया है.

‘‘मन तो करता है कि मैडम जुत्सी बन कर सब टाल कर चैन से रहा जाए, मगर जिन बच्चों को पढ़ाते हैं, उन के लिए कोई अच्छा काम नजरअंदाज नहीं किया जाता…’’

मोना प्रीतम के बाल जांचने लगी, ‘‘प्रीतम, मैं बालों में नारियल का तेल और कपूर मिला कर लगा देती हूं.

बहुत रूखे बाल हो रहे हैं. दवा का असर हो रहा है. चेहरा भी कैसा सुस्त सा हो गया है,’’ कहते हुए वह नारियल का तेल और कपूर की टिकिया ले आई. हाथ से ताली सी बजा कर उस ने दोनों को मिलाया.

‘‘गरदन जरा ढीली रखो यार,’’ कह कर मोना बालों की जड़ों को देख कर उन में तेल लगाने लगी.

कुछ सैकंड बाद पूरे माहौल में नारियल और कपूर की महक फैल गई थी. प्रीतम को मोना शुरू से ही बेहद पसंद थी. मोना का मन बेहद सच्चा है, कालेज के जमाने से ही. ऐसे ही प्रेम विवाह थोड़े ही न किया था उन दोनों ने.

खिड़की से चांद चमक रहा था. इस समय प्रीतम का घर दुनिया का सब से सुखी घर था.

Emotional Story: मां

Emotional Story: ऐसा शब्द मां, जिसे पुकारने के लिए बच्चा तड़प उठता है. मां के बिना जिंदगी अधूरी है. यों तो हर इनसान जी लेता है, पर मां की कमी उसे जिंदगी के हर मोड़ पर खलती है. हर इनसान को मां की ममता नसीब नहीं होती.

मां की कमी का दर्द वह ही बयां कर सकता है, जो मां की ममता से दूर रहा हो. हम दुनिया में भले ही कितनी तरक्की कर लें, पर मां की कमी हमें कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर रुला ही देती है. किसी दिन का कोई लम्हा ऐसा गुजरता होगा, जब हम अपनी मां को याद न करते हों.

यह भी इत्तिफाक ही है कि किस्मत से मेरे पापा का बचपन बिन मां के गुजरा. उस के बाद मेरा और मेरे बच्चों को भी मां का प्यार नसीब न हुआ.

हम सब छोटीछोटी तमन्नाओं को मार कर जीए. खानेपहनने, घूमने या फिर जिद करने की, वह मेरे पापा मुझ से और मेरे बच्चों से कोसों दूर रही, क्योंकि मेरे पापा, मैं और मेरे बच्चे ही क्या दुनिया में लाखों इनसान बिन मां के जिंदगी गुजारते हैं.

लेकिन मां की कमी का दर्द वह ही समझ सकता है, जिस के पास उस की मां न हो. जिन की मां बचपन में ही उन्हें छोड़ दे, उस पर क्या बीतती है, वह मुझ से बेहतर कौन जानता होगा.

मेरे पापा की मम्मी तो बचपन में ही इस दुनिया से चली गई थीं. उस के बाद मेरी मां भी बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गईं.

लेकिन मेरे बच्चों का नसीब देखो कि उन की मां अभी इस दुनिया में हैं, पर वह अपनी जिंदगी बेहतर और अपनी मरजी से जीने के लिए इन मासूम बच्चों को रोताबिलखता छोड़ कर चली गई, जिस से इन मासूमों का बचपना भी छिना, प्यार भी छिना और उन का भविष्य भी अंधकारमय हो कर रह गया.

दुनिया में कोई कितना भी मुहब्बत का दावा कर ले, लेकिन मां की ममता कोई नहीं दे सकता. वह सिर्फ सगी मां ही दे सकती है, जो बच्चों की एक आह पर तड़प उठती है.

आज से 30 साल पहले मैं ने अपनी मां को खोया था. मां को खोने के बाद मैं कितना तड़पा था, यह मैं ही जानता हूं. मेरी छोटीछोटी तमन्नाएं अधूरी रह गईं. मेरा खेलना, मेरा बचपना सबकुछ खामोशी में तबदील हो कर रह गया.

मां के गुजर जाने के बाद मेरे पापा ने दूसरी शादी नहीं की. उन्हें डर था कि कहीं सौतेली मां बच्चों के साथ फर्क न करे, उन्हें मां की ममता से दूर रखा, उन की पढ़ाई बंद करवा दी और उन्हें बचपन से ही मजदूरों की तरह काम करना पड़ा, वह भी भूखेप्यासे, क्योंकि नई बीवी के आने से दादाजी तो उन के पल्लू से बंध कर रह गए और वह अपने इन नए बच्चे जो मेरे पापा की नई मां से पैदा हुए थे, उन पर ही अपना प्यार लुटाने लगे और अपनी पहली बीवी के बच्चों को भूल गए.

नई मां ने उन का बचपन मजदूर में तबदील कर दिया. उन की पढ़ाई जहां की तहां रुक गई. खेलनेकूदने की उम्र में उन्हें उन की औकात से ज्यादा काम दिया जाने लगा.

यही वजह थी कि मेरे पापा की उम्र उस वक्त महज 40 साल थी, लेकिन फिर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि वे अपने बच्चों पर दूसरी मां का साया नहीं डालना चाहते थे.

पापा के इस बलिदान से हम सब भाई पढ़े भी और जिंदगी में कामयाबी भी हासिल की, पर मैं एक ऐसा शख्स था, जो मां की ममता के लिए हमेशा तड़पता रहा. मुझे न पढ़ाई अच्छी लगी और न ही घर में रहना. वैसे, जैसेतैसे मैं ने एमकौम कर लिया था, पर मां के जाने के बाद मैं मां की ममता के लिए एक साल अपनी चाची के पास रहा. वहां मुझे प्यार तो मिला, लेकिन सिर्फ इतना जितना मैं उन के घर का काम करता था. उन के घर का झाडूपोंछा, उन के छोटेछोटे बच्चों को खिलाना ही मेरी जिंदगी का हिस्सा बन कर रह गया था.

खाना उतना मिल जाता था, जिस से मैं जी सकता था. पत्राचार द्वारा ही मैं पढ़ा. उस का खर्च मेरे पापा उठाते रहे और समझाते रहे कि बेटा, अपने घर आ जाओ, लेकिन मां की मुहब्बत की चाह में मैं ने अपनी चाची के घर एक साल निकाल दिया.

इस एक साल में मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि मां की ममता सिर्फ सगी मां ही दे सकती है और कोई नहीं. इस एक साल में मैं छोटीबड़ी हर बीमारी, हर जरूरत से खुद ही लड़ा. किसी को मेरी फिक्र नहीं थी. सब अपने सगे बच्चों को ही अहमियत देते हैं, दूसरों की औलाद को तो यतीम होने का ताना देते हैं और यतीम होने के नाते ही खाना देते हैं.

ये शब्द मैं ने कई बार अपनी चाची से सुने. उन्होंने तो बस सिर्फ अपने घर का काम करने और बच्चों की देखभाल के लिए मुझे रखा था. यही वजह थी कि मैं अपना गांव छोड़ कर मुंबई आ गया और सब रिश्तों से दूर हो गया.

यहां आ कर मैं ने एक बेकरी में काम किया. मेहनत बहुत थी, पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. भूख के वक्त या ज्यादा थक जाने के बाद मैं तन्हा बैठ कर रोता था और अपनी मां को याद करता था, लेकिन मेहनत करता रहा. यही वजह थी कि मैं जल्दी ही कामयाबी के रास्ते पर बढ़ता गया और कुछ ही साल में अपनी बेकरी ले ली और मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन ऐंड जर्नलिज्म का कोर्स कर लिया. कहानी लिखना मेरा शौक था, जो मैं ने जारी रखा.

कई साल बाद मैं अपने गांव गया और वहां मैं ने भी शादी कर ली. मुझे काफी खूबसूरत बीवी मिली. उस की खूबसूरती की जितनी तारीफ की जाए, कम थी. उस की और मेरी उम्र में 10 साल का फर्क था. उस की खूबसूरती ऐसी थी, मानो जन्नत से कोई हूर उतर कर जमीन पर आ गई हो. उस की बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी गाल, सुर्ख होंठ और काले घने लंबे बाल किसी भी इनसान को अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थे.

यही वजह थी कि पहली ही नजर में मैं उस का दीवाना हो गया था और उस का हर हुक्म मानने के लिए हर वक्त तैयार रहता था. इस वजह से शादी के एक महीने बाद ही मैं उसे अपने साथ मुंबई ले आया और शादी के एक साल बाद ही मैं एक बच्ची का बाप बन गया.

हम दोनों एकदूसरे से काफी मुहब्बत करते थे. यही वजह थी कि शादी के हर एक साल बाद वह मां बनती रही और इस तरह मैं 3 बेटी और एक बेटे यानी 4 बच्चों का बाप बन गया.

शादी के 7 साल कैसे गुजर गए, हमें पता ही नहीं चला. मेरी बीवी और मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे, लेकिन मेरी बीवी मुझ से ज्यादा बच्चों से प्यार करती थी. किसी के अंदर इतनी हिम्मत न थी कि कोई उस के बच्चों को तू भी कह सके. वह अपने बच्चों की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थी और अपने बच्चों को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी.

वक्त गुजरता गया. फिर आखिर वह वक्त भी आ गया, जिस ने हमारी जिंदगी में तूफान ला खड़ा किया था और मेरे बच्चे तिनकों की तरह बिखर गए थे. उन की मां उन्हें तन्हा छोड़ कर चली गई थी. उन का बचपन, उन की पढ़ाई, सब अंधकारमय हो कर रह गया था और वे मां की ममता के लिए तड़पतड़प कर जीने को मजबूर हो गए.

इन बच्चों की इस तड़प के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि वह मां थी, जिसे ममता की देवी कहा जाता है. जिस के साए में बच्चे अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. जिस का प्यार पाने के लिए बच्चे बेचैन हो उठते हैं.

वह ‘मां…’ शब्द को शर्मसार कर के बच्चों को तन्हा छोड़ कर अपनी जिंदगी बनाने या यह समझ कि वह अपनी जवानी और खूबसूरती का फायदा उठा कर अकेले जीने के लिए चली गई.

कभीकभी इनसान गलत संगत में पड़ कर अपना घर बरबाद तो कर ही लेता है, लेकिन वह यह नहीं सोचता कि उस की इस गलती का खमियाजा कितने लोगों को भुगतना पड़ेगा, कितने लोगों की जिंदगी तबाह हो कर रह जाएगी.

मेरे और मेरे बच्चे के साथ भी यही हुआ था. हमारी खुशहाल जिंदगी में मेरी बीवी की दोस्त और उस की चचेरी बहन ने ऐसा ग्रहण लगाया कि मेरे बच्चे मां के लिए तरस कर रह गए.

दरअसल, हुआ यह कि मेरी बीवी की चचेरी बहन मुंबई घूमने आई थी और हमारे ही घर पर रुकी थी. मैं उस के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और न ही मुझे जानने का वक्त था, क्योंकि मैं अपने कामों में बिजी रहता था.

मेरी बीवी की चचेरी बहन बिंदास, खुले विचारों वाली एक मौडर्न लड़की थी. उस ने कई बौयफ्रैंड बना रखे थे.

30 साल की होने के बावजूद उस ने अभी तक शादी नहीं की थी, क्योंकि वह अपनी मरजी की जिंदगी जीने वाली लड़की थी.

उसे शादी के बंधन में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करनी थी. वह जिंदगी के हर लम्हे का मजा लेना चाहती थी. उस का यह कहना था कि जिंदगी बारबार नहीं मिलती, एक बार मिलती है तो क्यों न उस का मजा लिया जाए. अपने हिसाब से जिया जाए, क्यों शादी के बंधन में बंध कर अपनी जिंदगी के मजे खराब कर के बच्चे पैदा किए जाएं और किचन में जा कर अपनी खूबसूरती पति और बच्चों के लिए बरबाद की जाए.

उस की इस मौडर्न जिंदगी ने मेरी बीवी को इतना प्रभावित किया कि वह यह भूल गई कि वह 4 बच्चों की मां है और किसी की बीवी भी है.

वह चचेरी बहन मेरी बीवी के सामने ही अपने बौयफ्रैंड से बातें करती रहती थी और जल्द ही उस ने मुंबई में भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे और उन के साथ होटलों में खाना, घूमना और उन से महंगेमहंगे गिफ्ट लेना और मेरी बीवी को दिखाना, उसे रिझाना और यह कहना कि तुम इतनी खूबसूरत हो कर क्या जिंदगी जी रही हो, कह कर ताने मारना शुरू कर दिया था.

बस, उस चचेरी बहन की बातें सुन कर मेरी बीवी ने पहले तो जिम ज्वाइन किया, उस के बाद उस ने भी जींस और टौप पहनना शुरू कर दिया, लेकिन वह इस पर भी न रुकी और जल्द ही उस ने घर का काम करना बंद कर दिया. वह अपनी चचेरी बहन के साथ देर रात आने लगी. उस का बच्चों से भी लगाव कम होता गया.

यहां तक कि वह डिस्को भी जाने लगी और अब उसे मुझ में भी कोई रुचि न रही. उसे तो अब मौडर्न बनने का भूत सवार हो चुका था. उस के जिम की कई मौडर्न सहेली भी घर पर ही आने लगीं, जो बारबार मेरी बीवी को भी यह तंज कसतीं कि तुम इतनी मौडर्न, इतनी खूबसूरत और तुम्हारा पति तो तुम्हारी पैर की जूती के बराबर भी नहीं.

मैं यह सुन कर चुप रहता, क्योंकि अपनी बीवी के सामने बात करने या कोई शिकायत करने की हिम्मत मैं आज तक न जुटा पाया था.

मैं उसे जितनी इज्जत दे रहा था, उतना ही वह मुझ से नफरत कर रही थी, क्योंकि उस के दिमाग में तो अब आजादी का भूत सवार हो चुका था. मैं इतना समझ गया था कि जब तक इस की चचेरी बहन यहां से नहीं जाएगी और इस का जिम जाना बंद नहीं होगा, तब तक इस का बच्चों पर न ध्यान रहेगा और न ही यह मुझे तवज्जुह देगी.

मैं यही दुआ कर रहा था कि इस की चचेरी बहन अपने घर चली जाए. उसे आए हुए एक महीना हो गया था, जल्द ही मेरी यह दुआ कबूल हो गई और उस ने घर जाने की तैयारी कर ली.

मैं यह सोच रहा था कि अब मेरी बीवी में जरूर कुछ बदलाव आएगा, पर मेरा यह सोचना गलत साबित हुआ. अब वह अपनी नई मौडर्न सहेलियों के साथ ज्यादातर वक्त बाहर गुजारने लगी. उसे न बच्चों की चिंता थी और न ही मेरी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफर घर पर आने लगा. वह अपनी मौडलिंग की तैयारी में कभी बेहूदा फोटो खिंचवाती, तो कभी उन के साथ बाहर शूट करने चली जाती.

एक दिन अचानक मेरी बीवी घर छोड़ कर चली गई. मैं ने उसे फोन किया, तो उस ने नहीं उठाया. काफी
देर बाद उस का ही फोन आया और उस ने कहा कि मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती.

मैं ने रोते हुए उस से कहा कि इन बच्चों का क्या होगा?

उस ने दोटूक जवाब दिया कि बच्चे तुम्हारे हैं, तुम समझ. मैं इन्हें अपने साथ घर से थोड़े ही लाई थी. अगर तुम ने थाने में रिपोर्ट की या किसी से भी मेरे लौट आने की सिफारिश की, तो मैं सब के सामने एक ही जवाब दूंगी कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. इस से पहले कि मैं तुम पर कोई आरोप लगाऊं या तुम्हें नामर्द बोल कर बेइज्जत करूं, तुम खुद समझदार हो. मुझे ऐसा कुछ करने पर मजबूर मत करना. तुम अपनी मरजी की जिंदगी जीओ और मुझे भी अपनी जिंदगी जीने दो. तुम दूसरी शादी कर लो, मुझे कोई एतराज नहीं है. यह मेरी तुम से आखिरी बातचीत है. इस के बाद न मैं भविष्य में कभी तुम से बात करूंगी और न ही तुम्हारी जिंदगी में दखल दूंगी.

एक साल तक उस का इंतजार करने के बाद मैं पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने गया कि मेरी बीवी मेरे साथ नहीं रहती. एक साल से मुझे उस की कोई खबर भी नहीं है.

पुलिस ने मेरी बात सुनी और कहा कि तुम उसे ढूंढ़ना चाहते हो या नहीं. मैं ने उन से कहा कि ऐसी हालत में मुझे क्या करना चाहिए?

पुलिस ने कहा कि जब वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो उसे ढूंढ़ना बेकार है. वह अब नहीं आएगी. तुम अपनी शिकायत दर्ज करा दो कि उस के किसी भी गलत कदम का मैं जिम्मेदार नहीं हूं, क्योंकि वह एक साल से मुझ से अलग है.

मैं ने यह शिकायत लिख कर उस की एक कौपी अपने पास रख ली और मैं अपने बच्चों की परवरिश में लग गया.

मेरे लिए बच्चों की अकेले देखभाल करना बड़ा ही मुश्किल था, क्योंकि कामकाज का भी ध्यान रखना जरूरी था, ताकि बच्चों की अच्छी परवरिश हो सके.

मेरे दोस्तों ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी. बीवी के जाने के 2 साल बाद मैं ने एक बेवा से दूसरी शादी कर ली. उस के भी 2 बच्चे थे और मेरे भी 4 बच्चे थे.

इस तरह मेरे बच्चों को नई मां मिल गई. उस ने मेरे बच्चों का अच्छा खयाल रखा, लेकिन मेरे बच्चों को वह मां की मुहब्बत न मिल सकी, जो एक सगी मां से मिलती है. उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी, उन के खानेपीने की जिम्मेदारी उन्हें नई मां से तो मिल गई, पर वह मां न मिल सकी, जो और बच्चों को मिलती है. दोष भी किस को दूं, जब सगी मां ने ही उन की परवाह न की तो किसी और से उम्मीद क्या की जाए.

मैं अपने बच्चों को दिल से लगाना चाहता हूं. पर अफसोस, मैं अब ऐसा नहीं कर पाता हूं. मैं उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता हूं, पर अब मेरे लिए यह मुमकिन नहीं. मैं उन्हें अच्छा खिलाना चाहता हूं, पर अफसोस, मैं उन्हें नहीं खिला सकता.

मैं उन बच्चों की जिद पूरी करना चाहता हूं, पर नहीं कर सकता, क्योंकि बाप और बच्चों में कुछ फासले पैदा हो गए, जिन्हें लांघना मेरे बस में नहीं और मेरे बच्चे ऐसे बदनसीब बन कर रह गए, जिन की सगी मां ने ही उन का साथ न दिया तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए. कम से कम उन्हें दो वक्त का खाना तो मिल ही जाता था.

वह छोटीमोटी जिद तो अपनी इस नई मां से कर ही लेते हैं. उन की नई मां उन की पसंद का खाना तो बना ही देती है. उन की पढ़ाई का कुछ ध्यान तो रखती ही है. उन की सेहत का कुछ ध्यान तो रखती ही है.

बच्चे तो सहमे हुए हैं ही, क्योंकि उन्हें अपनी सगी मां की याद तो आती ही होगी. कभीकभार बंद कमरे में अपनी मां को याद कर के रोते ही हैं. भले ही वे मना करते हैं कि उन्हें अपनी सगी मां की याद नहीं आती.

पर, मैं बाप हूं, उन की आंखों की लाली और उस से टपकते हुए आंसू से इतना तो मालूम चल ही जाता है कि उन के बेवजह रोने की वजह क्या है? चुपचाप, शांत गुमसुम रहने की वजह क्या है? कभी खाना न खाने की वजह क्या है? होलीदीवाली या फिर ईद के त्योहार पर उन के गुमसुम रहने की वजह क्या है? वह अपनी मां की मुहब्बत को दिल में छिपाए रहते हैं. उन की हंसी कहां गायब हो गई, यह मैं बेहतर जानता हूं. उन का पढ़ाई में मन न लगना मैं अच्छी तरह सम?ाता हूं. यह सब 2 बड़े बच्चों में मिलता है, जो 7 और 8 साल के हैं. जो छोटे 4 और बच्चे हैं, जो 2 साल के हैं, उन्हें अपनी मां की याद नहीं आती और न ही उस की सूरत पहचानते होंगे, इसलिए वे खुश रहते हैं.

आज उन का भविष्य अधर में है, क्योंकि नई मां उन्हें समझ नहीं पाती. उन्हें अच्छी तालीम नहीं दे पाती. वह समझती है कि अगर वह कुछ कहेगी, तो मुझे बुरा लगेगा, इसलिए उस ने उन के खानेपीने, पढ़ाईलिखाई, अच्छाबुरा सब उन के ऊपर छोड़ दिया है. कोई खाए या नहीं, कोई पढ़े या नहीं, उसे सिर्फ मुझ से ताल्लुक है. वह सिर्फ मुझे खुश रखने की कोशिश करती है. पर, उसे क्या मालूम कि मेरी खुशी कहां है, मेरा सुकून कहां है, मेरी जिंदगी का मकसद क्या है. बच्चे ही मेरी जिंदगी हैं. काश, वह बीवी के साथसाथ एक जिम्मेदार मां भी बन जाए.

मुझे आज भी वह वक्त याद है, जब बच्चों की मां गलत संगत में नहीं पड़ी थी. किस तरह बच्चों की पढ़ाईलिखाई, उन के खानेपीने का ध्यान रखती थी. घर में कितनी खुशहाली थी, बच्चे कितने खुश थे, कितने साफसुथरे रहते थे.

मां के जाने के बाद बच्चों की जिंदगी थम सी गई. वे गुमसुम हो कर रह गए. ऐसा लगता जैसे उन का सबकुछ तबाह हो गया हो. वे सिसकसिसक कर जी रहे हैं. असल में तो वे उसी वक्त मर गए थे, जब उन की मां उन्हें बेसहरा छोड़ कर चली गई थी.

मां तो मां ही होती है, पर समझ में नहीं आता कि ऐसी भी मां होती है, जो सिर्फ अपने लिए जीती है.
फिर भी मेरे बच्चों के पास मां तो है, जो उन का खयाल रखती है. मेरे बच्चे तन्हा तो नहीं हैं. कोई तो है उन की फिक्र करने वाला. हर बच्चे को सबकुछ तो नहीं मिलता, फिर भी मेरे बच्चे हजारों से बुरे हैं तो लाखो से बेहतर भी हैं, क्योंकि उन के पास उन की नई मां जो है.

Hindi Story: रैन बसेरा

Hindi Story, लेखक – ए. सिन्हा

महीनों नहीं, सालों गुजर गए थे, उसे इसी तरह इंतजार करते हुए. वह सोचता था कि शायद किसी दिन रंजू मेम साहब का खत आ जाए. लेकिन इंतजार का मीठा फल उसे अभी तक नहीं मिला था. वह अब उसी होटल का मालिक हो गया था, जिस में कभी वह नौकर हुआ करता था.

उन दिनों रंजू अपनी सहेलियों के साथ इम्तिहान देने आई थी. वे सब उसी होटल में नाश्ता करती थीं, जहां वह बैरा था.

जब रंजू पहली बार होटल में आई थी, तो वही और्डर लेने गया था. वह दिन उसे अच्छी तरह याद था. उस के दिलोदिमाग पर उस दिन की सभी बातें जैसे अपनी अनोखी छाप छोड़ गई थीं.

‘‘जी मेम साहब,’’ वह मेज के पास जा कर बोला था.

‘‘4 जगह समोसे और कौफी,’’ सब से खूबसूरत लड़की बोली थी.

वह सामान मेज पर रख कर पास में ही खड़ा हो गया था. फिर तो यह रोज का काम हो गया था.

रंजू के आते ही वह सभी ग्राहकों को छोड़ कर उस की मेज के पास पहुंच जाता था. जाने क्यों, उसे वह बहुत अच्छी लगती थी.

उस के दिल की बात शायद रंजू के साथसाथ उस की सहेलियां भी भांप गई थीं. तभी तो एक दिन एक लड़की ने पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘अनु,’’ …छोटा सा जवाब उस ने दिया था.

‘‘अनु… वाह, क्या बात है. रंजू, तुम्हारे आशिक का नाम तो लाजवाब है. बहुत प्यारा है तुम्हारा आशिक,’’ एक दूसरी लड़की बोली थी.

इस बात पर सभी लड़कियां हंस दी थीं. तब अनु को ऐसा महसूस हुआ, मानो पायलों की झंकार गूंज उठी हो. तभी उस ने देखा कि रंजू भी तिरछी निगाहों से उस की ओर देख रही थी.

उस दिन बिल देने के बाद रंजू ने बाकी बचे पैसे लेने से इनकार कर दिया.

‘‘रख लो अनु… अपनी महबूबा के खत का जवाब कैसे दोगे?’’ एक लड़की बोली थी, तभी दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘क्यों रंजू, खत लिखोगी न अपने भोले आशिक को?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं… अपने भोले आशिक को हम कैसे भूल सकते हैं,’’ रंजू ने मुसकराते हुए जवाब दिया था.
इसी मुसकुराहट पर तो वह दीवाना था.

पर उस दिन के बाद रंजू फिर कभी नहीं आई. कई साल गुजर गए, लेकिन उस का कोई खत नहीं आया. अनु सोचता, ‘रंजू मेमसाहब ने कहा था कि वे खत लिखेंगी. फिर अभी तक क्यों नहीं लिखा?’

एक रात वह खुद खत लिखने बैठ गया. पर चंद लाइनें लिखने के बाद ही उस ने वह खत फाड़ डाला. 2-3 बार कोशिश करने के बाद आखिर में वह एक शानदार खत लिखने में कामयाब हो गया. लेकिन तब उसे खयाल आया कि उस के पास तो रंजू मेमसाहब का पता ही नहीं है. तब मायूस हो कर उस ने वह खत भी फाड़ दिया.

अकसर वह डाकिए को देखता तो दौड़ कर उस के पास चला जाता, एक हसरत लिए हुए. एक दिन डाकिए ने उसे देखते ही डांट दिया, ‘‘तुम्हारे आगेपीछे कोई है ही नहीं… तब कौन लिखेगा तुम्हें खत? मेरा दिमाग मत चाटा करो… जाओ यहां से.’’

उस घड़ी वह बहुत मायूस हो गया था. उस का सिर शर्म से झुक गया था. भारी कदमों से वह अपने कमरे की तरफ लौट गया था.

कुछ दूर जाने पर डाकिए के मन में पछतावा हुआ कि उस ने क्यों बेचारे को बेकार में डांट दिया. पता नहीं, किस के खत का उसे इंतजार है? कल उस से पूछेगा. नहीं होगा, तो वह खुद लिख कर उसे दे देगा. कम से कम उस के दिल को ठंडक तो मिलेगी.

उसी रात अनु अपने पलंग पर लेटा था. कमरे का दरवाजा खुला था. बत्ती बुझी हुई थी. कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था. इस वक्त भी वह रंजू के खयालों में खोया था. तभी एक साया तेजी से कमरे में दाखिल हुआ और उसी तेजी से पलंग के नीचे छिप गया, तभी और 4 साए कमरे में आए.

अनु ने बत्ती जला दी थी. वे चारों साए अब खतरनाक गुंडों की शक्ल में दिखाई देने लगे.

‘‘ऐ… इधर तू ने कोई लड़की देखी है क्या…?’’

‘‘धीरे बोलो भाई साहब, कोई सुनेगा तो हंसेगा. हम ने सालों से कोई लड़की नहीं देखी है.’’

‘‘ज्यादा होशियारी नहीं मारने का बच्चे… वरना हड्डीपसली एक कर दूंगा,’’ एक गुंडा बोला.

‘‘ऐ… धमकी किसी और को देना, अनु को नहीं… समझा क्या?’’

फिर तो वहां कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. अनु की आवाज सुन कर 7-8 पड़ोसी भी वहां पहुंच गए. सब ने मिल कर उन गुंडों की खूब धुनाई की. वे गालियां बकते हुए भाग गए.

अनु ने अब कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और पलंग के पास झुक कर बोला, ‘‘आप जो भी हैं, बाहर आ जाइए… वे लोग चले गए हैं.’’

पलंग के नीचे से निकलने वाले साए को देख कर वह चौंका, क्योंकि उस के सामने रंजू मेमसाहब खड़ी थीं.

‘‘रंजू… मेमसाहब, आप?’’

‘‘मुझे छूना मत अनु, मैं किसी के काबिल नहीं रही.’’

‘‘किसी के काबिल रही हो या न रही हो, लेकिन अनु के काबिल तो तुम हमेशा ही रहोगी.’’

‘‘मैं मुजरिम हूं. मैं ने तुम्हारे मासूम प्यार का मजाक उड़ाया है… एक अमीरजादे से ब्याह रचा लिया, जिस का नतीजा यह मिला. मेरे मर्द ने मुझे तबाह कर दिया.’’

‘‘अब आगे कुछ मत कहो रंजू. मेरे लिए तुम अब भी वही चुलबुली रंजू मेमसाहब हो,’’ इतना कह कर अनु ने अपनी बांहें फैला दी थीं. कुछ सोचते हुए उन फैली हुई बांहों में रंजू समा गई.

अगले दिन डाकिया दरवाजे पर अनु को न पा कर बहुत दुखी हुआ. उस ने दरवाजा खटखटाया, तो अनु बाहर आया.

‘‘तुम खत के बारे में पूछते थे न… तुम्हें किस के खत का इंतजार है?’’ डाकिए ने पूछा.

‘‘चाचा, तुम्हारी एक ही फटकार ने मेरी जिंदगी बदल डाली. अब खत की जरूरत ही नहीं है… खत लिखने वाली मेरी महबूबा रंजू मेमसाहब खुद ही चली आई हैं. मेरा उजड़ा हुआ रैन बसेरा बस गया है चाचा.’’

पास ही रंजू खड़ी मन ही मन मुसकरा रही थी.

Hindi Story: अधूरी प्यास

Hindi Story: सुहाग सेज सजी थी. गुलशन दुलहन बनी अपने शौहर का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे तमाम रिश्तेदारों ने घेर रखा था. सभी लोग गुलशन की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थक रहे थे, पर गुलशन उन सब की बातों को अनसुना कर अपने शौहर का इंतजार कर रही थी.

रात के 11 बज चुके थे. मेहमानों का आनाजाना अब न के बराबर था. तभी बैडरूम का दरवाजा खुलने की आहट हुई, तो गुलशन ने तिरछी नजरों से देखा कि उस का शौहर शहजाद कमरे के भीतर आ रहा था.

गुलशन ने जल्दी से अपना मुंह पल्लू में छिपा लिया और शहजाद की अगली हरकत जानने के लिए चुपचाप बैठी रही.

तभी शहजाद ने कमरे के भीतर आ कर गुलशन को सलाम करते हुए कहा, ‘‘माफ करना. मेहमानों में घिरा होने की वजह से मुझे देर हो गई.’’

फिर शहजाद ने गुलशन के करीब आ कर उस का घूंघट उठाया और बोला, ‘‘क्या गजब की खूबसूरती पाई है आप ने.’’

शहजाद से अपनी तारीफ सुन कर गुलशन शरमा गई और अपनी हथेली से अपने मुंह को छिपाने लगी.

शहजाद ने फौरन गुलशन को अपनी बांहों में भरा और उस के रसभरे होंठों को चूमने लगा. साथ ही, वह गुलशन के कपड़ों को भी उस के तन से अलग करने लगा.

गुलशन का सफेद संगमरमर की तरह चमकता हुआ बदन देख कर शहजाद के तो मानो होश ही उड़ गए. वह अभी गुलशन के आगोश में गया ही था कि अचानक एक तरफ को लुढ़क गया. उस की सांसें तेज चलने लगीं.

शहजाद हांफते हुए बोला, ‘‘मैं आज बहुत ज्यादा थक गया हूं. मुझे नींद आ रही है. शादी में काम भी बहुत होता है.’’

गुलशन तड़प कर रह गई. उस की जिस्मानी प्यास अधूरी रह गई. उस ने तो अपनी सुहागरात को ले कर न जाने क्याक्या सपने देखे थे, जो पलभर में ही टूट कर रह गए. वह चुपचाप सो गई.

अगले दिन शहजाद बोला, ‘‘जानू, मुझे माफ करना. कल ज्यादा थकावट की वजह से मैं तुम्हें वह सुख नहीं दे पाया, जो एक औरत को अपने शौहर से उम्मीद रहती है, पर आज रात मैं तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूंगा.’’

यह सुन कर गुलशन के चेहरे पर उम्मीद की कुछ किरण नजर आई और वह मुसकरा कर वहां से अंदर चली गई.

रात हो चुकी थी. गुलशन बड़ी बेसब्री से शहजाद के आने का इंतजार कर रही थी. कुछ देर के इंतजार के
बाद शहजाद कमरे में आया और आते ही गुलशन को अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा.

शहजाद की इस हरकत से गुलशन भी उसे अपने ऊपर खींचने लगी, पर जल्द ही वह पस्त हो कर एक तरफ लुढ़क गया.

अब गुलशन को यकीन हो गया कि अच्छी कदकाठी का गबरू जवान होने के बाद भी शहजाद बिस्तर के मामले में नाकाम है.

गुलशन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस से अपना दुखड़ा रोए.

शादी को 3 महीने गुजर चुके थे. एक दिन शहजाद के चाचा का लड़का इमरान किसी काम से गांव से शहर आया. वह शहजाद के घर पर ही रुका.

एक दिन गुलशन भाभी को खामोश देख इमरान बोला, ‘‘क्या बात है भाभी, आप बहुत उदास रहती हो. न किसी से बात करती हो, न हंसती हो.’’

गुलशन बोली, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. बस, तबीयत थोड़ी खराब है. सिर में दर्द है.’’

इमरान बोला, ‘‘तो इस में घबराने की क्या बात है. मैं आप के सिर की मालिश कर देता हूं.’’

गुलशन ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. तुम्हारे भाई देखेंगे तो शायद उन्हें बुरा लग जाए.’’

‘‘अरे भाभी, शहजाद भाई बाहर गए हैं और शाम तक वापस आएंगे. क्या तब तक यों ही बेचैन रहोगी?’’ कहते हुए इमरान ने गुलशन को बिस्तर पर बैठाया और सरसों का तेल हलका गरम कर के लाते हुए बोला, ‘‘भाभी, आज आप के सिर की ऐसी मालिश करूंगा कि कभी दर्द नहीं होगा.’’

इमरान गुलशन के सिर पर मालिश करने लगा, तो वह छुअन पा कर सिहर उठी.

इमरान गुलशन के बालों में उंगलियां फेरते हुए बोला, ‘‘कैसा लग रहा है भाभी?’’

गुलशन बोली, ‘‘अच्छा लग रहा है. तुम्हारे हाथों में तो वाकई कमाल का जादू है.’’

गुलशन के सिर की मालिश करतेकरते इमरान उस के माथे और गरदन पर भी अपने हाथ फेरने लगा. फिर अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुए उस ने गुलशन के उभारों को छुआ, तो गुलशन एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘क्या कर रहे हो? मुझे कुछकुछ हो रहा है. बस करो.’’

इतना कह कर गुलशन कमरे में जाने लगी और बोली, ‘‘अब तुम रहने दो. मेरा दर्द ठीक है.’’

शाम के वक्त शहजाद घर आ गया. गुलशन, शहजाद और इमरान ने बैठ कर एकसाथ खाना खाया.

गुलशन आज इमरान से नजरें नहीं मिला पा रही थी. उसे यह सोचसोच कर अपनेआप पर गुस्सा भी आ रहा था कि आखिर अपनी अधूरी प्यास को पूरा करने के लिए उस ने इमरान को अपने जिस्म को क्यों छूने दिया.

शहजाद ने पूछा, ‘‘कैसा रहा भाई आज का दिन और कैसा लगा शहर?’’

इमरान ने कहा, ‘‘भाई, अच्छा दिन गुजरा, पर शहर तो अभी मैं घूमा ही नहीं. अकेला कहां जाता घूमने… मुझे कुछ मालूम नहीं.’’

शहजाद ने कहा, ‘‘देख भाई, मुझे तो वक्त नहीं मिलता और अगर तू चाहे तो अपनी भाभी के साथ घूमने चले जाना.’’

इमरान बोला, ‘‘यह ठीक रहेगा, पर क्या भाभी मुझे शहर घुमाएंगी?’’

‘‘अरे, कैसी बात कर रहा है. यह भी घर में पड़ीपड़ी बोर हो जाती है. इसे तो बहुत शौक है घूमने का, पर मुझे वक्त हीं नहीं मिलता.’’

इमरान ने कहा, ‘‘ठीक है भाई. तुम भाभी से बोल देना कि वे तुम्हें शहर दिखा लाए.’’

यह सुन कर गुलशन बोली, ‘‘नहीं, मैं कहीं नहीं जा रही हूं घूमनेफिरने. मुझे बस घर में ही रहने दो’’

शहजाद बोला, ‘‘मेरा भाई गांव से आया है. इसे कम से कम शहर की चकाचौंध तो दिखा दो.’’

गुलशन बोली, ‘‘ठीक है. जब आप बोल रहे हैं, तो कल मैं इमरान को कहीं घुमा लाती हूं.’’

अगले दिन गुलशन और इमरान जुहूचौपाटी पर घूमने चले गए. वहां का नजारा देख कर गुलशन शरमा उठी.

तभी इमरान ने कहा, ‘‘भाभी, यहां की औरतें तो बहुत एडवांस हैं. देखो, कैसेकैसे कपड़े पहन रखे हैं. मर्द और औरतें एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर कैसे समंदर के किनारे लेटे हुए हैं.’’

गुलशन बोली, ‘‘देवरजी, यहां से और कहीं दूसरी जगह चलते हैं.’’

इमरान बोला, ‘‘भाभी, यहां कितना अच्छा लग रहा है. अभी यहीं बैठते हैं हम भी. सुना है कि मुंबई का नारियल पानी बहुत अच्छा है. वही पीते हैं,’’ कहते हुए इमरान 2 नारियल पानी ले आया. वे दोनों एक चटाई पर बैठ कर नारियल पानी पीने लगे.

तभी इमरान ने कहा, ‘‘भाभी वह देखो, दोनों कैसे एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर जिंदगी के मजे ले रहे हैं.’’

गुलशन बोली, ‘‘ओह, कैसे लोग हैं, इन्हें तो बिलकुल भी शर्मोहया नहीं है.’’

इमरान ने गुलशन के हाथ पर हाथ रखा, तो गुलशन ने झट से अपना हाथ हटा लिया और बोली, ‘‘बस, चलो अब यहां से.’’

इमरान बोला, ‘‘भाभी, यहां कहीं बांद्रा बैंडस्टैंड भी तो है, मुझे वह भी दिखा दो. गांव में बहुतकुछ सुना है उस के बारे में.’’

गुलशन ने कहा, ‘‘नहीं, वह अच्छी जगह नहीं है.’’

इमरान ने पूछा, ‘‘क्यों भाभी, ऐसा क्या है वहां?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

इमरान बोला, ‘‘तो ठीक है, वह बुरी जगह ही दिखा दो,’’ कहते हुए इमरान ने एक टैक्सी को रोका और बांद्रा बैंडस्टैंड के लिए रवाना हो गए.

बैंडस्टैंड का नजारा देख कर गुलशन और इमरान के बदन में जोश अपने पैर पसारने लगा, क्योंकि वहां बहुत से प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे के होंठों का रसपान करते नजर आ रहे थे.

गुलशन शर्म से पानीपानी होने लगी, तभी इमरान बोला, ‘‘भाभी, आओ उस पत्थर पर बैठ कर यहां का नजारा देखते हैं,’’ और उस ने गुलशन की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए एक पत्थर के पास ले गया.

गुलशन का प्यासा बदन तड़पने लगा और उस ने अपनेआप को इमरान से छुड़ाने की हलकी सी नाकाम कोशिश भी की, पर इमरान ने फौरन अपने गरम होंठ गुलशन के होंठों पर रख दिए और उन का रसपान करने लगा.

इमरान की इस हरकत से गुलशन का बदन अपनी प्यास बु?ाने के लिए छटपटाने लगा, पर वह समाज के डर और अपने शौहर की इज्जत की वजह से ?ाट इमरान से अलग होती हुई बोली, ‘‘अब हमें घर चलना चाहिए…’’ और वहां से उठते हुए वह टैक्सी की तरफ बढ़ने लगी और इमरान को ले कर वापस घर आ गई.

घर पहुंचते ही गुलशन अपने कमरे में चली गई. शाम का वक्त हुआ, तो शहजाद अपने काम से वापस आया और खाना खाने के बाद गुलशन से बोला, ‘‘कैसा रहा आज का घूमना?’’

गुलशन ने कहा, ‘‘अच्छा था.’’

शहजाद ने पूछा, ‘‘इमरान को अच्छी तरह घुमाया या यों ही वापस लौट आई हो?’’

गुलशन बोली, ‘‘अच्छी तरह घूमने के बाद ही हम लोग वापस आए हैं.’’

‘‘चलो अच्छा है, वरना मुझे यही डर सता रहा था कि वह पहली बार गांव से शहर आया है और मुझे उसे घुमाने का वक्त भी नहीं मिल पा रहा है…

‘‘कहीं चाची को पता चलता कि इमरान बस घर की चारदीवारी में ही रह कर लौट आया है, तो उन की नजरों में मेरी इज्जत गिर जाती,’’ कहते हुए शहजाद ने गुलशन को अपनी बांहों में भरा और प्यार करते हुए बोला, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो, सब का कितना खयाल रखती हो.’’

गुलशन ने भी शहजाद को अपनी बांहों में जकड़ लिया और कामुक होती हुई बोली, ‘‘मेरा काम है तुम्हारा अच्छी तरह खयाल रखना.’’

शहजाद ने गुलशन को बिस्तर पर लिटा दिया और उस के होंठों को चूमता हुआ उसे प्यार करने लगा.

अभी गुलशन जोश में आ ही पाई थी कि शहजाद निढाल हो कर एक तरफ लुढ़क गया और बोला, ‘‘तुम भी सो जाओ, मुझे नींद आ रही है.’’

गुलशन का बदन तड़पने लगा. उस की प्यास अधूरी रह गई. उस की हवस भड़की हुई थी, पर शहजाद तो खर्राटे ले कर सो चुका था.

शहजाद को सोता देख गुलशन कमरे से निकली और वाशरूम की ओर जाने लगी. अभी वह कुछ ही दूर चली थी कि उस की नजर पास वाले कमरे में लेटे इमरान पर पड़ी, जो करवट बदल रहा था.

गुलशन हवस की आग में जल रही थी. आज उसे न तो शहजाद की और न ही समाज की कोई परवाह थी.

वह तो अपनी अधूरी प्यास बुझाना चाहती थी, पर समाज और दुनिया की खातिर उस ने अपनेआप को रोक रखा था, लेकिन आज उस की प्यास बुझाने वाला खुद उस के घर में मौजूद था, इसलिए गुलशन यह मौका गंवाना नहीं चाहती थी.

इमरान खुद पहल कर के गुलशन को न्योता दे रहा था, तो गुलशन ने भी आज उस का न्योता स्वीकार करने का मन बना लिया और कमरे में पहुंच कर इमरान के पास लेट गई और उस के बदन को सहलाने लगी.

फिर क्या था. इमरान ने झट गुलशन के उभारों को भींच दिया. गुलशन कामुक हो उठी. वह इमरान को अपने ऊपर खींचने लगी.

हकीकत में आज गुलशन को सुहागरात का असली मजा मिला और वह सुख भी मिला, जिस के लिए वह बरसों से तड़प रही थी. कुछ देर बाद उन दोनों के जिस्म एकदूसरे से अलग हुए.

गुलशन उठी और बोली, ‘‘तुम ने तो आज मुझे जन्नत की सैर करा दी,’’ कहते हुए उस ने इमरान के गाल पर एक प्यार भरा चुम्मा रसीद कर दिया और अपने कमरे मे वापस आ कर सो गई.

एक बार यह जिस्मानी रिश्ता बना, तो फिर जब तक इमरान वहां रहा, बनता ही गया. फिर एक दिन वह वक्त भी आ गया, जब इमरान को वहां से वापस अपने गांव आना पड़ा.

इमरान के जाने से गुलशन बहुत दुखी थी, पर उसे यह खुशी भी थी कि उस की अधूरी प्यास पूरी हो गई थी.

गुलशन ने अपनी अधूरी प्यास भले ही गलत तरीके से बुझाई थी, पर उसे इस पर कोई अफसोस नहीं था, क्योंकि वह अब पेट से हो गई थी. उस के पेट में इमरान का बच्चा पल रहा था, जिसे शहजाद अपना बच्चा समझ रहा था और गुलशन व उस के होने वाले बच्चे का बहुत खयाल रख रहा था.

शहजाद ने गुलशन का शुक्रिया भी अदा किया और बोला, ‘‘आखिर, तुम ने मुझे बाप बनने का मौका दे ही दिया. मैं बहुत खुश हूं.’’

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