जब सड़कों पर उतरते हैं बड़े घरों के लाडले

सेक्टर-8 की सेंट्रल रोड से होते हुए वर्णिका कुंडू सेक्टर-7 के पेट्रोल पंप के पास पहुंची तो उस के किसी दोस्त का फोन आ गया. कार को सड़क किनारे रोक कर वह फोन सुनने लगी. तभी उस ने देखा कि एक एसयूवी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल) पीछे आ कर रुकी और उस में से 2 युवक उतर कर उस की कार की ओर बढ़ने लगे. सफेद रंग की यह एसयूवी गाड़ी तभी से उस का पीछा कर रही थी, जब वह सेक्टर-8 से निकली थी. तब उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

उस रोज शुक्रवार था और तारीख थी 4 अगस्त, 2017. देर रात सवा 12 बजे वर्णिका अपनी कार से सेक्टर-8 की मार्केट से पंचकूला स्थित अपने घर जा रही थी. हरियाणा का यह शहर चंडीगढ़ से एकदम सटा है. उस जगह से घर पहुंचने में उसे 10-15 मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लगना था.

पहले भी वह करीबकरीब रोजाना चंडीगढ़ से पंचकूला इसी तरह अकेली जाती थी, वक्त भी यही होता था. चंडीगढ़ उसे हर तरह से सुरक्षित लगता था. लेकिन उस रात पीछे आने वाले युवकों का अलग सा अंदाज देख कर उस के मन में अनहोनी की आशंका हुई. उस ने फोन बंद कर के वहां से कार दौड़ा दी.

कार को वहां से भगाते समय उस ने फ्रंट मिरर में देखा कि उन लड़कों ने भी जल्दी से अपनी एसयूवी में बैठ कर उस की कार के पीछे दौड़ा दी. उन्हें देख कर साफ पता चल रहा था कि उन्हें एक अकेली लड़की को देख कर परेशान करने में बहुत मजा आ रहा था. वे बारबार हौर्न बजाते हुए डिपर का भी इस्तेमाल करते रहे. वर्णिका को एक बारगी लगा कि वे उस की कार में टक्कर मारेंगे. उन के हावभाव से शराब पिए होने की आशंका भी लग रही थी. साथ ही वे गलत इशारे भी कर रहे थे.

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नीली शर्ट वाले लड़के की बदमाशी

पूरी तरह चौकन्नी हो कर अपनी कर को तेज रफ्तार से भगाते हुए वर्णिका सेक्टर-26 स्थित सेंट जौन स्कूल के पास उस जगह पहुंच गई, जहां न्योन लाइट्स की काफी रोशनी थी. उसे लगा कि अगर लड़कों की नीयत ठीक न हुई तो भी वे भरपूर रोशनी में उस के साथ कोई शरारत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. वर्णिका ने सोचा कि वहां रुक कर उसे अपने घर वालों को सारी स्थिति बता देनी चाहिए ताकि वे लोग उसे लेने वहां आ जाएं.

लेकिन उन लड़कों को जैसे किसी तरह का कोई डर नहीं था. वर्णिका के किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले ही उन्होंने भरपूर रोशनी में भी अपनी गाड़ी वर्णिका की कार के आगे लगा कर उसे रुकने को मजबूर कर दिया.

उन के इस कृत्य से वर्णिका बुरी तरह घबरा गई, मगर उस ने धैर्य नहीं छोड़ा. लगातार हौर्न बजाते हुए उस ने कार को रिवर्स गीयर में डाला और वहां से भागने को हुई. तभी एसयूवी में से नीली टीशर्ट पहने एक युवक उतर कर अजीब तरह से हाथपैर हिलाते हुए उस की कार के पास आ पहुंचा.

उस ने जैसे ही कार को रोकने की कोशिश की, वर्णिका ने कार रोकने के बजाए उल्टी दिशा में भगा दी और ट्रैफिक लाइट पर पहुंच कर दाईं ओर मोड़ने की कोशिश की. तभी यूएसवी उस के पास से तेजी से निकल कर घूमी और आगे आ कर उस का रास्ता रोक लिया.

वर्णिका ने होशियारी से काम लिया और कार सेक्टर-26 की ओर घुमा कर मध्यमार्ग पर ले जाने की कोशिश की. उसे यकीन था कि अगर उस की कार मध्यमार्ग पर पहुंच गई तो वह पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी. लेकिन यहां भी लड़कों की गाड़ी ने फिर से उस का रास्ता रोक लिया.

इस बार भी पहले वाले लड़के ने अपनी गाड़ी से उतर कर उसे कार रोकने का इशारा किया और वर्णिका की ओर भागा. वर्णिका ने अपनी कार फिर से रिवर्स गीयर में डाल कर उल्टी दिशा में दौड़ा दी. जैसेतैसे वह मध्यमार्ग पर पहुंचने में सफल हो गई. यहां से उस ने गीयर बदल कर अपनी कार पंचकूला जाने वाले रास्ते पर दौड़ा दी.

इसी बीच वर्णिका ने 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) को फोन कर के इस मामले की जानकारी देते हुए मदद मांगी. पुलिस ने उस की सही लोकेशन पूछी और जल्दी पहुंचने का आश्वासन दिया. इस के बाद कुछ दूर तक एसयूवी नजर नहीं आई. वर्णिका को लगा कि लड़कों ने उसे फोन करते देख लिया होगा और वे समझ गए होंगे कि उस ने पुलिस को फोन कर दिया है.

अपनी समझ के मुताबिक वर्णिका यह सोच कर आश्वस्त हो गई कि उस का पीछा करने वाले लड़कों ने डर कर रास्ता बदल दिया होगा और पीछे मुड़ गए होंगे, अब एसयूवी उस के पीछे नहीं आएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मिनट भर का अंतराल भी नहीं हुआ था कि वह गाड़ी तेज रफ्तार से वर्णिका की कार के पीछे आती नजर आई.

उस वक्त वर्णिका करीब 6 किलोमीटर लंबी सीधी रोड पर थी. इस पूरे रास्ते भर एसयूवी निरंतर उस का पीछा करती रही. कार में सवार लड़के उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रहे थे. यह स्थिति देख वर्णिका को अपना हौंसला पस्त होता नजर आने लगा था. उसे पुलिस का बेसब्री से इंतजार था.

वर्णिका का डर

वह सोच रही थी कि अगर वक्त रहते पुलिस ने आ कर उन लड़कों को काबू न किया और वह उन के हत्थे चढ़ गई तो पता नहीं उस का क्या होगा? इस में कोई शक नहीं था कि उस का पीछा करने वाले शोहदे थे. उन के इरादे खतरनाक भी हो सकते थे, दिमाग में उमडतीघुमड़ती इस तरह की बातें वर्णिका को परेशान करने लगी थीं. फिर अभी यह भी स्पष्ट नहीं था कि वे लोग इस तरह उस के पीछे क्यों पड़ गए थे.

जो भी था, निरंतर 5 किलोमीटर तक वर्णिका ने अपनी कार पूरी रफ्तार से भगाई. उस का पीछा करती एसयूवी भी उसी रफ्तार से उसे फौलो करती हुई उस तक पहुंचने का प्रयास कर रही थी.

घिर गई वर्णिका

पंचकूला-चंडीगढ़ को जोड़ने वाला हाऊसिंग बोर्ड चौक ज्यादा दूर नहीं रहा था. मगर वहां तक पहुंचने से पहले ही लड़कों ने अपनी गाड़ी और भी तेज रफ्तार से भगाते हुए वर्णिका की कार को घेर कर रोक लिया. इस बार भी पहले वाला युवक दौड़ता हुआ वर्णिका की कार के पास आया और उस की कर की खिड़की खोलने का प्रयास करने लगा. दरवाजे का हैंडिल मजबूती से पकड़ कर वह बारबार इस तरह झटक रहा था जैसे उसे तोड़ कर ही मानेगा.

वर्णिका के पास इस के अलावा बचाव का अन्य कोई रास्ता नहीं था कि निरंतर हौर्न बजाती गाड़ी को फिर से रिवर्स गीयर में डाल कर वहां से निकलने का प्रयास करे. उस ने ऐसा ही किया भी.

लेकिन यह सड़क सुनसान नहीं थी. उस वक्त भी वाहनों की अच्छीखासी आवाजाही जारी थी. जरा सी देर में वहां काफी वाहन एकत्र हो गए, जिस की वजह से रास्ता अवरुद्ध हो गया. वर्णिका की कार के साथसाथ लड़कों की एसयूवी भी घिर गई. लोगों को स्थिति मालूम नहीं थी. वे अपने वाहनों से निकल कर इन लोगों को बुराभला कहते हुए अपनी गाडि़यां वहां से हटाने को कहने लगे. अगर ऐसा हो जाता तो वर्णिका निश्चित रूप से उन लड़कों के हत्थे चढ़ जाती.

अभी कुछ ही पल गुजरे थे कि सायरन बजाती पीसीआर वैन वहां आ पहुंची. इस में से उतरे पुलिसकर्मियों ने दोनों युवकों को उन की एसयूवी समेत काबू कर के थाना ईस्ट पहुंचा दिया. थाने में वर्णिका से लिखित शिकायत ले कर उसे घर जाने दिया गया.

वर्णिका वरिंदर सिंह कुंडू की बेटी थी. वरिंदर सिंह कुंडू हरियाणा में 1986 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. कुंडू साहब के बारे में मशहूर है कि अपने पद पर रहते हुए उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी और कुशलता से किया और वह कभी किसी के दबाव में नहीं आए. अन्याय तो वह कभी सहन नहीं करते थे. पीडि़त व्यक्ति को न्याय दिलवाने के लिए वह बड़े से बड़े शख्स से भी टकराने को तैयार हो जाते थे.

शायद यही वजह थी कि वह अब तक 30 तबादलों का दंश झेल चुके थे, जबकि उन्हें नौकरी में आए अभी कुल  31 बरस भी नहीं हुए थे. इन दिनों वह हरियाणा सरकार के एडीशनल चीफ सेक्रेटरी के पद पर तैनात थे.

कुंडू साहब के परिवार में उन की धर्मपत्नी सुचेता कुंडू के अलावा 2 बेटियां हैं, वर्णिका एवं सत्विका. सत्विका को मार्शल आर्ट सीखने का शौक था. इस संबंध मे उस ने एक सेंटर ज्वाइन किया तो देखते ही देखते उस का पूरा परिवार ही मार्शल आर्ट सीखने लगा.

कालांतर में कुंडू साहब इस फील्ड में सेकेंड डिग्री ब्लैकबेल्ट होल्डर बन गए. उन की बेटी वर्णिका ताईक्वांडो की प्रथम श्रेणी ब्लैकबेल्ट हासिल कर चुकी थी. सुचेता पंचकूला के बालनिकेतन व बाल सदन में रहने वाले बच्चों को मार्शल आर्ट का नि:शुल्क प्रशिक्षण देती थीं. वर्तमान में पी.एस. कूंडू ताईक्वांडो फेडरेशन औफ इंडिया के अध्यक्ष हैं.

स्कूली दिनों से ही वर्णिका को गीतसंगीत का शौक था. उस का सपना था कि बड़ी हो कर वह संगीतकार बने. ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद उस ने अपना एक डीजे (डिस्को जौकी) खोल लिया. बाद में वह अन्य जगहों पर भी परफौर्म करने लगी. इस क्षेत्र में वह काफी लोकप्रिय होती जा रही थी. उस का अगला लक्ष्य मुंबई था.

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चंडीगढ़ के सेक्टर-26 में एक बार है स्विस सिटी पब, जहां उस की परफोर्मेंस बहुत पसंद की जाती है. यहां से फारिग होने में उसे अकसर रात 12 बज जाया करते थे. लेकिन रात में यहां से घर के लिए अकेले निकलने में उसे कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी. उस की नजर में चंडीगढ़ लड़कियों के लिए पूरी तरह सुरक्षित शहर था.

लेकिन 4 अगस्त, 2017 की आधी रात में उस की यह खुशफहमी तब निराशा में बदल गई, जब उसे अकेली देख 2 शोहदों ने गुंडागर्दी कर के उस की कार रोकने की कोशिश की थी. यह वर्णिका की बहादुरी भरी होशियारी ही थी कि वह उन के हत्थे चढ़ने से बच गई थी और पुलिस उन्हें उन की गाड़ी समेत थाना ले गई थी.

वर्णिका ने पिता को बताया

बदहवासी की सी स्थिति में घर पहुंच कर वर्णिका ने अपने साथ घटी इस घटना के बारे में परिवार के सदस्यों को बताया तो उस के पिता वरिंदर सिंह कुंडू उसे साथ ले कर उसी वक्त थाना सेक्टर-26 के लिए निकल गए. उन्होंने अपने एक परिचित वकील को भी फोन कर के थाने पहुंचने को कह दिया था, ताकि पुलिस इस मामले में कोई ढिलाई न बरत सके.

इस बात का अनुमान तो सहज ही लगाया जा सकता था कि जिन लड़कों ने बिना किसी खौफ के इतनी गुंडागर्दी दिखाई थी, वे कोई छोटेमोटे अपराधी नहीं हो सकते थे. कुंडू साहब ने सोचा कि पुलिस ने अगर उन के खिलाफ काररवाई नहीं की तो उन के हौसले और बुलंद हो सकते हैं.

थाने पहुंच कर पता चला कि दोनों लड़के कोई अपराधी न हो कर बड़े घरों के लाडले थे. इन में से एक था हरियाणा भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला का बेटा विकास और दूसरा उस का दोस्त आशीष. पुलिस ने दोनों के खिलाफ छेड़छाड़ और रास्ता रोकने की कोशिश के अलावा मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मामला दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था, मगर इन धाराओं के तहत उन्हें थाने से ही जमानत पर छोड़ा जा सकता था.

अभी तक न तो पुलिस वालों को मालूम था और न ही उन दोनों लड़कों को कि इस मामले में शिकायतकर्ता हरियाणा के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी की बेटी थी. बाद में जब यह परिचय सामने आया तो पुलिस वालों के पैरों तले की जमीन तो सरकी ही, दोनों आरोपी भी वर्णिका को बहन कहते हुए उस के व उस के पिता के सामने गिड़गिड़ा कर माफी मांगने लगे.

इस के बाद वी.एस. कुंडू के पास क्षेत्र के नेताओं के फोन आने लगे. सभी उन पर दबाव डाल कर इस मामले में समझौता करने को कह रहे थे. पुलिस पर भी दबाव था कि समझौता नहीं हो पाया तो जितनी धाराएं लगाई गई हैं, उन से आगे मत बढ़ना और लड़कों को थाने से ही जमानत दे कर घर भेज देना.

फेसबुक की पोस्ट रंग लाई

थाने में अभी यह सब चल ही रहा था कि वर्णिका ने एक ओर बैठ कर अपने स्मार्टफोन के माध्यम से फेसबुक एकाउंट पर इस घटना के खुलासे की पोस्ट डालते हुए अंत में अपना दर्द इस तरह से उजागर कर दिया ‘मुझे नहीं मालूम था कि मेरे साथ क्या हो सकता था. आरोपी मेरा रेप कर के मेरी हत्या भी कर सकते थे. चंडीगढ़ पुलिस द्वारा तुरंत एक्शन लिए जाने के कारण मैं आरोपियों की शिकार नहीं बनी. मगर हर लड़की मेरे जैसी लकी नहीं हो सकती.’

इस के बाद वर्णिका ने चंडीगढ़ पुलिस को दिल से धन्यवाद भी दिया.

लेकिन फिलहाल मामला ज्यों का त्यों रहा. पुलिस ने दोनों लड़कों का मेडिकल करवाया, जिस में उन के शराब पीने की पुष्टि हुई. सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ड्यूटी मजिस्टे्रेट के सामने वर्णिका के बयान भी दर्ज करवाए गए. लेकिन इस के बाद 5 अगस्त को दोपहर बाद करीब 4 बजे दोनों आरोेपियों को थाने से जमानत पर छोड़ दिया गया.

यह देख हरियाणा की पूरी अफसरशाही वर्णिका के साथ आ खड़ी हुई. इन अधिकारियों ने मामला देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचाने की तैयारी कर ली थी. सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को ले कर अलग बहस छिड़ गई, जिस में देश भर के आईएएस अधिकारी रुचि लेते हुए अपनी टिप्पणी करने लगे.

देखतेदेखते इस मामले पर राजनीति की रंगत भी चढ़ने लगी. विरोधी पार्टियों द्वारा बराला से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा जाने लगा. चंडीगढ़ पुलिस की पहले ही से किरकिरी हो रही थी. जमानती धाराओं में केस दर्ज कर अभियुक्तों को थाने से ही जमानत देने पर सवाल उठ रहे थे. कानून विशेषज्ञों का कहना था कि इस केस में किडनैपिंग के प्रयास की धारा 365, 511 लगनी चाहिए थी.

आखिर, चडीगढ़ का यह हाईप्रोफाइल मामला प्रधानमंत्री के नोटिस में भी आ गया, जिन्होंने इस घटना पर बेहद नाराजगी जाहिर की. प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने मामले का संज्ञान लेते हुए सुभाष बराला को दिल्ली तलब कर लिया. उन्होंने शाह के सामने जहां अपना पक्ष रखा.

बराला को भाजपा का अभयदान

दूसरी ओर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि सुभाष बराला का इस प्रकरण से कोई लेनादेना नहीं है. यह मामला चंडीगढ़ पुलिस का है, जिस में हरियाणा सरकार का कोई दखल नहीं है. इसी बीच किरण बेदी का यह बयान कई सवाल खडे़ कर गया कि पुलिस को बिना इंटरोगेशन के अपराधियों को बेल नहीं देनी चाहिए थी.

7 अगस्त को इस प्रकरण पर रोष प्रकट करने के लिए चंडीगढ़ की लड़कियों ने हाथों में बैनर ले कर मुख्य सड़कों पर प्रदर्शन किया. इन बैनर्स पर लिखा था, ‘शेम फौर चंडीगढ़’ और ‘वी डिजर्व टू बी सेफ औन रोड्स’ (हमें सड़कों पर सुरक्षा का अधिकार चाहिए) वगैरह.

अब तक की पुलिस काररवाई में यही बात सामने आ रही थी कि सीसीटीवी कैमरों को खंगालते हुए केस में कानून की अन्य किसी धारा के जोड़ने अथवा न जोड़ने पर लीगल राय ली जा रही है. 7 अगस्त को घटना का सीन भी रिक्रिएट करवाया गया. मगर पुलिस का एक्शन अभी तक वहीं का वहीं था.

देखतेदेखते यह मुद्दा न केवल गरमा गया, बल्कि घरघर की चर्चा भी बन गया. शहर के अनेक जिम्मेवार लोग लौजिक के साथ अपनीअपनी राय देने लगे. चंडीगढ़ के सीनियर एडवोकेट ए.एस. सुखीजा ने केस को ले कर अपना तर्क देते हुए कहा कि इंसान झूठ बोल सकता है, लेकिन हालातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता. जिस वक्त यह घटना घटी, लड़की न केवल तनाव में थी बल्कि एक तरह का जबरदस्त मानसिक आघात भी झेल रही थी.

ऐसे में उस की कार गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो सकती थी, जिस में उस की जान भी जा सकती थी. उसे अपनी इज्जत खोने का खतरा नजर आ रहा था, ऐसी स्थिति में वह आत्महत्या का प्रयास भी कर सकती थी.

‘आप बात कर रहे हैं अपहरण के प्रयास का केस दर्ज करने की, मेरी नजर में यह हत्या के प्रयास का मामला है. पुलिस को इसे इस तरह हलकेपन से कतई नहीं लेना चाहिए.’ एडवोकेट सुखीजा का कहना था.

राजनीतिक पैंतरा

मामला उछलते और अपना दामन दागदार होते देख सुभाष बराला ने इस प्रकरण को लेकर 8 अगस्त को पहली दफा अपना बयान दिया कि इस केस को प्रभावित करने के लिए वह किसी भी तरह से अपने राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल नहीं कर रहे. वर्णिका कुंडू केस में उन के बेटे विकास के खिलाफ जो भी जरूरी कदम हैं, वो उठाए जाने चाहिए. बीजेपी बेटियों की स्वतंत्रता की बात करती है और वर्णिका उन की बेटी जैसी है.

दूसरी ओर मामला ठंडा पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था. इस मुद्दे पर चंडीगढ़ में तो रोजाना रोष प्रदर्शन हो ही रहे थे, 9 अगस्त को रोहतक की कुंडू खाप ने वर्णिका के समर्थन में रोहतक-जींद रोड पर कई घंटे का जाम लगाया.

कई साल पहले हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी एसपीएस राठौर के मामले में रुचिका के हक में आवाज उठा कर उसे इंसाफ दिलवाने वाले आनंद प्रकाश व उन की पत्नी मधु आनंद ने भी वर्णिका को इंसाफ दिलवाने में उस का साथ देने की घोषणा कर दी. कई जगह सुभाष बराला का पुतला जलाने की भी घटनाएं हुईं.

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपना बयान जारी करते हुए साफ कह डाला कि केंद्र सरकार के इशारे पर इस मामले को रफादफा करने की कोशिश हो रही है.

9 अगस्त को सुभाष बराला ने इस प्रकरण पर बात करने के लिए एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन कर के पत्रकारों को बुलवाया. प्रैस कान्फ्रैंस शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट गुजरे होंगे कि सुभाष बराला को किसी का फोन आ गया. उन्होंने फोन क्या सुना कि बिना पत्रकारों से कुछ कहे वहां से चले गए.

बाद में मालूम पड़ा कि मिनिस्ट्री औफ होम अफेयर्स से यूनियन होम सेके्रटरी राजीव महर्षि के दखल के बाद चंडीगढ़ पुलिस ने विकास बराला व उस के साथी पर दर्ज एफआईआर में किडनैपिंग की कोशिश की धारा 365, 511 का समावेश कर दिया है. साथ ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के सेक्टर-26 स्थित ईस्ट थाना की हवालात में बंद कर दिया है. इसी सब की सूचना सुभाष बराला को मिली थी.

सामने आई करतूत

इस दफा पुलिस ने दोनों अभियुक्तों का 2 दिन का कस्टडी रिमांड ले कर उन से व्यापक पूछताछ की. विकास बराला कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था और उस का दोस्त आशीष इसी साल अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था. दोनों का संबंध प्रभावशाली घरों से था और इन की आपस में बनती भी खूब थी.

भले ही इन युवकों पर गैरजमानती धाराएं लगा कर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के अदालत से इन का कस्टडी रिमांड ले लिया था, मगर पावर का नशा जैसे अभी भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था. पुलिस की पूछताछ में अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को नकारते हुए दोनों ने बयान दिया कि विकास बराला को एलांते मौल से अपने जूते बदलवाने थे, जिस के लिए वह अपने दोस्त आशीष को साथ ले गया था.

बकौल विकास बराला, उन दोनों ने सेक्टर-8 की मार्केट की एक वाइन शौप से बीयर ले कर कार में बैठ कर 1-1 बोतल पी थी.

वर्णिका कुंडू को पहले से जानने की बाबत पूछने पर दोनों ने कहा कि वे उसे नहीं जानते और न ही उन लोगों ने उस का पीछा कर के उसे रोकने की कोशिश की थी. लेकिन इस बात को दोनों ने माना कि सेक्टर-7 में उन्होंने वर्णिका जैसी कार पर एक अकेली लड़की को जाते देखा था.

‘सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि तुम लोगों की गाड़ी वर्णिका की कार के पीछे जा रही है.’ पूछे जाने पर विकास बराला का जवाब था कि उन की गाड़ी भी हाउसिंग बोर्ड की तरफ गई थी. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि वे लोग उस का पीछा कर रहे थे. फिर उन्होंने उस के साथ ऐसी कोई आपराधिक वारदात तो की नहीं थी.

‘मुझे और मेरे दोस्त को यूं ही बलि का बकरा बना लिया गया है. हम ने अपराध जैसा कुछ नहीं किया.’ विकास बराला ने कहा.

आधी रात में पुलिस ने इन दोनों को साथ ले जा कर क्राइम सीन दोहराया. इस से सारी असलियत सामने आ गई. थोड़ी सख्ती से की गई पूछताछ में दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इस केस में विकास बराला को मुख्य अभियुक्त और उस के दोस्त आशीष को सह अभियुक्त बनाया.

मुंह खोलना पड़ा

पुलिस की व्यापक पूछताछ में जो कुछ विकास बराला ने बताया, वह कुछ इस तरह से था—‘दरअसल किडनैपिंग हमारा मकसद किसी भी हाल में नहीं था. हम लोग अपनी गाड़ी में बैठे बीयर पी रहे थे. इतने में एक कार हमारे पास आ कर हल्की सी स्लो हो गई और उस में बैठी लड़की ने हमारी तरफ देखा.’

आशीष ने कहा, ‘लड़की देख कर गई है, गाड़ी उस के पीछे लगाओ. मैं ने गाड़ी उस कार के पीछे लगा दी. दरअसल, हम सिर्फ लड़की की शक्ल देखना चाहते थे. जानना चाहते थे कि वह जानपहचान की तो नहीं है. लड़की घबरा गई और नशे में हमें भी पता नहीं चला कि अखिर क्या हो रहा है. इस के बाद हम कभी लड़की की कार के आगे अपनी गाड़ी लगाते रहे और कभी पीछे. लड़की घबरा गई थी और नशे में होने की वजह से हमें इस का इल्म नहीं था.’

कस्टडी रिमांड की अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने विकास और आशीष को ड्यूटी मजिस्ट्रेट गौरव दत्ता की कोर्ट पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में बुडै़ल जेल भेज दिया गया.

28 अगस्त को दोनों अभियुक्तों की ओर से एसीजेएम बलजिंदर पाल सिंह की अदालत में जमानत की अर्जी लगाई गई. 29 अगस्त को सक्षम दंडाधिकारी ने इस टिप्पणी के साथ उन की जमानत याचिका खारिज कर दी कि उस रात इन लोगों का व्यवहार बीस्ट इन लस्ट सरीखा था.

8 सितंबर को इन की ओर से जमानत की अर्जी एडिशनल सैशन जज रजनीश कुमार शर्मा की अदालत में लगाई गई. 12 सितंबर को विद्वान एडीजे ने भी अपनी इस टिप्पणी के साथ इन अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार कर दिया कि दोनों की हरकतें रोडसाइड रोमियो सरीखी सामने आई है.

ठीक इसी रोज एक और बात हुई. वी.एस. कुंडू पर फिर से तबादले की गाज गिरी. उन्हें एक अहम विभाग से हटा कर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में नियुक्त कर दिया गया. 14 सितंबर को वर्णिका की जिंदगी फिर से डीजे ट्रैक पर आ गई, मतलब वह अपने काम पर लौट आई थी.

दूसरी ओर चंडीगढ़ पुलिस ने 21 सितंबर, 2017 को विकास बराला व आशीष के खिलाफ 40 गवाहों की सूची के साथ 300 पेज का चालान अदालत में पेश कर दिया था. यह चालान भादंवि की धारा 341, 354डी, 365, 511 और 34 के अलावा 185 मोटर वेहिकल एक्ट के तहत दाखिल किया गया.

बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब राजनीति से जुड़े बड़े घरों के ये लाडले अपनी करतूत की वह से सलाखों के पीछे पहुंचे हैं. कतिपय उदारहण काबिलेगौर है, बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी व उन के बाहुबली बेटे व एमएलए अमनमणि त्रिपाठी दोनों ही पत्नी की हत्या के मामले में फंसे. अमरमणि जहां अपनी पत्नी की हत्या के मामले में फंसे. वहीं अमनमणि पर भी अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या का मुकदमा चल रहा है.

उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव का बेटा विकास यादव नीतिश कटारा की हत्या के मामले में सजा काट रहा है. तूणमूल कांग्रेस के नेता एस.डी. सोहराब के बेटे सांबिया सोहराब पर हिट एंड रन केस में वायुसेना अधिकारी अभिमन्यु गौड़ की हत्या का आरोप लगा था.

चश्मदीदों के मुताबिक सांबिया ने शराब के नशे में अपनी औडी कार उस समय उक्त वायुसेना अधिकारी अभिमन्यु गौड़ पर चढ़ा दी थी, जब वह गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा ले रहे थे.

हरियाणा जनचेतना पार्टी के फाउंडर एवं कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को मौडल जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली थी.

स्थानीय स्तर पर कथित बड़े घरों के लाडलों की दबंगई के इस कदर मामले होते रहते हैं कि गिनती करना मुश्किल है. चिंता का विषय यही है कि क्या कभी इन की मानसिकता में बदलाव आएगा.

पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था. दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नाक : जब रूपबाई फंसी बेइज्जती के दलदल में

मां की बात सुन कर रूपबाई ठगी सी खड़ी रह गई. उसे अपने पैरों के नीचे से धरती खिसकती नजर आई. उस के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. रूपबाई ने तो समझा था कि यह बात सुन कर मां उस की मदद करेगी, समाज में फैली गंदी बातों से, लोगों से लड़ने के लिए उस का हौसला बढ़ाएगी और जो एक नई परेशानी उस के पेट में पल रहे बच्चे की है, उस का कोई सही हल निकालेगी. पर मां ने तो उस से सीधे मुंह बात तक नहीं की. उलटे लाललाल आंखें निकाल कर वे चीखीं, ‘‘किसी कुएं में ही डूब मरती. बापदादा की नाक कटा कर इस पाप को पेट में ले आई है, नासपीटी.’’

मां की बातें सुन कर रूपबाई जमीन पर बैठ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. उसे केवल मां का ही सहारा था और मां ही उस से इस तरह नफरत करने लगेंगी, तो फिर कौन उस का अपना होगा इस घर में.

पिताजी तो उसी रामेश्वर के रिश्तेदार हैं, जिस ने जबरदस्ती रूपबाई की यह हालत कर दी. अगर पिताजी को पता चल गया, तो न जाने उस के साथ क्या सुलूक करेंगे. रूपबाई की मां सोनबाई जलावन लेने खेत में चली गई. रूपबाई अकेली घर के आंगन में बैठी आगे की बातों से डर रही थी. हर पल उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उस की आंखों में आंसू भर आए थे. मन हो रहा था कि वह आज जोरजोर से रो कर खुद को हलका कर ले.

रामेश्वर रूपबाई का चाचा था. वह और रामेश्वर चारा लाने रोज सरसों के खेत में जाते थे. रामेश्वर चाचा की नीयत अपनी भतीजी पर बिगड़ गई और वह मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सचमुच रामेश्वर को मौका मिल गया. उस दिन आसपास के खेतों में कोई नहीं था. रामेश्वर ने मौका देख कर सरसों के पत्ते तोड़ती रूपबाई को जबरदस्ती खेत में पटक दिया. वह गिड़गिड़ाती रही और सुबकती रही, पर वह नहीं माना और उसे अपनी हवस का शिकार बना कर ही छोड़ा. घर आने के बाद रूपबाई के मन में तो आया कि वह मां और पिताजी को साफसाफ सारी बातें बता दे, पर बदनामी के डर से चुप रह गई.

इस के बाद रामेश्वर रोज जबरदस्ती उस के साथ मुंह काला करने लगा. इस तरह चाचा का पाप रूपबाई के पेट में आ गया.

कुछ दिन बाद रूपबाई ने महसूस किया कि उस का पेट बढ़ने लगा है. मशीन से चारा काटते समय उस ने यह बात रामेश्वर को भी बताई, ‘‘तू ने जो किया सो किया, पर अब कुछ इलाज भी कर.’’

‘‘क्या हो गया?’’ रामेश्वर चौंका. ‘‘मेरे पेट में तेरा बच्चा है.’’

‘‘क्या…?’’ ‘‘हां…’’

‘‘मैं तो कोई दवा नहीं जानता, अपनी किसी सहेली से पूछ ले.’’ अपनी किसी सहेली को ऐसी बात बताना रूपबाई के लिए खतरे से खाली नहीं था. हार कर उस ने यह बात अपनी मां को ही बता दी, पर मां उसे हिम्मत देने के बजाय उलटा डांटने लगीं.

शाम को रूपबाई का पिता रतन सिंह काम से वापस आ गया. वह दूर पहाड़ी पर काम करने जाता था. आते ही वह चारपाई पर बैठ गया. उसे देख कर रूपबाई का पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था. खाना खाने के बाद सोनबाई ने सारी बातें अपने पति को बता दीं.

यह सुन कर रतन सिंह की आंखें अंगारों की तरह दहक उठीं. वह चिल्लाया, ‘‘किस का पाप है तेरे पेट में?’’

‘‘तुम्हारे भाई का.’’ ‘‘रामेश्वर का?’’

‘‘हां, रामेश्वर का. तुम्हारे सगे भाई का,’’ सोनबाई दबी जबान में बोली. ‘‘अब तक क्यों नहीं बताया?’’

‘‘शर्म से नहीं बताया होगा, पर अब तो बताना जरूरी हो गया है.’’ इस बात पर रतन सिंह का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ, फिर उस ने पूछा, ‘‘अब…?’’

‘‘अब क्या… किसी को पता चल गया, तो पुरखों की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’ ‘‘फिर…?’’

‘‘फिर क्या, इसे जहर दे कर मार डालो. गोली मेरे पास रखी हुई है.’’ ‘‘और रामेश्वर…’’

‘‘उस से कुछ मत कहो. वह तो मर्द है. लड़की मर जाए, तो क्या जाता है? ‘‘अगर दोनों को जहर दोगे, तो सब को पता चल जाएगा कि दाल में कुछ काला है.’’

‘‘तो बुला उसे.’’ सोनबाई उठी और दूसरे कमरे में सो रही रूपबाई को बुला लाई. वह आंखें झुकाए चुपचाप बाप की चारपाई के पास आ कर खड़ी हो गई.

रतन सिंह चारपाई पर बैठ गया. रूपबाई उस के पैरों पर गिर कर फफक कर रो पड़ी. रतन सिंह ने उस की कनपटी पर जोर से एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘अब घडि़याली आंसू मत बहा. एकदम चुप हो जा और चुपचाप जहर की इस गोली को खा ले.’’

यह सुन कर रूपबाई का गला सूख गया. उसे अपने पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह थरथर कांप उठी और अपने बाएं हाथ को कनपटी पर फेरती रह गई. झन्नाटेदार थप्पड़ से उस का सिर चकरा गया था. रात का समय था. सारा गांव सन्नाटे में डूबा हुआ था. अपनेअपने कामों से थकेहारे लोग नींद के आगोश में समाए हुए थे.

गांव में सिर्फ उन तीनों के अलावा एक रामेश्वर ही था, जो जाग रहा था. वह दूसरे कमरे में चुपचाप सारी बातें सुन रहा था. पिता की बात सुन कर कुछ देर तक तो रूपबाई चुप रही, फिर बोली, ‘‘जहर की गोली?’’

तभी उस की मां चीखी, ‘‘हां… और क्या कुंआरी ही बच्चा जनेगी? तू ने नाक काट कर रख दी हमारी. अगर ऐसा काम हो गया था, तो किसी कुएं में ही कूद जाती.’’ ‘‘मगर इस में मेरी क्या गलती है? गलती तो रामेश्वर चाचा की है. मैं उस के पैर पड़ी थी, खूब आंसू रोई थी, लेकिन वह कहां माना. उस ने तो जबरदस्ती…’’

‘‘अब ज्यादा बातें मत बना…’’ रतन सिंह गरजा, ‘‘ले पकड़ इस गोली को और खा जा चुपचाप, वरना गरदन दबा कर मार डालूंगा.’’ रूपबाई समझ गई कि अब उस का आखिरी समय नजदीक है. फिर शर्म या झिझक किस बात की? क्यों न हिम्मत से काम ले?

वह जी कड़ा कर के बोली, ‘‘मैं नहीं खाऊंगी जहर की गोली. खिलानी है, तो अपने भाई को खिलाओ. तुम्हारी नाक तो उसी ने काटी है. उस ने जबरदस्ती की थी मेरे साथ, फिर उस के किए की सजा मैं क्यों भुगतूं?’’ ‘‘अच्छा, तू हमारे सामने बोलना भी सीख गई है?’’ कह कर रतन सिंह ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर उसे चारपाई पर पटक दिया.

सोनबाई रस्सी से उस के हाथपैर बांधने लगी. रूपबाई ने इधरउधर भागने की कोशिश की, चीखीचिल्लाई, पर सब बेकार गया. उस बंद कोठरी में उस की कोई सुनने वाला नहीं था. जब रूपबाई के हाथपैर बंध गए, तो वह अपने पिता से गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे मत मारिए पिताजी, मैं आप के पैर पड़ती हूं. मेरी कोई गलती नहीं है.’’

मगर रतन सिंह पर इस का कोई असर नहीं हुआ. रूपबाई छटपटाती रही. रस्सी से छिल कर उस की कलाई लहूलुहान हो गई थी. वह भीगी आंखों से कभी मां की ओर देखती, तो कभी पिता की ओर.

अचानक रतन सिंह ने रूपबाई के मुंह में जहर की गोली डाल दी. लेकिन उस ने जोर लगा कर गोली मुंह से बाहर फेंक दी. गोली सीधी रतन सिंह की नाक से जा टकराई. वह गुस्से से तमतमा गया. उस ने रूपबाई के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रूपबाई के गाल पर हाथ का निशान छप गया. उस का सिर भन्ना उठा. वह सोचने लगी, ‘आदमी इतना निर्दयी क्यों हो जाता है? वहां मेरे साथ जबरदस्ती बलात्कार किया गया और यहां इस पाप को छिपाने के लिए जबरदस्ती मारा जा रहा है. अब तो मर जाना ही ठीक रहेगा.’

मरने की बात सोचते ही रूपबाई की आंखों में आंसू भर आए. आंसुओं पर काबू पाते हुए वह चिल्लाई, ‘‘पिताजी, डाल दो गोली मेरे मुंह में, ताकि मेरे मरने से तुम्हारी नाक तो बच जाए.’’ रतन सिंह ने उस के मुंह में गोली डाल दी. वह उसे तुरंत निगल गई. पहले उसे नशा सा आया और फिर जल्दी ही वह हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गई.

रतन सिंह और सोनबाई ने उस के हाथपैर खोले और उस की लाश को दूसरे कमरे में रख दिया. सारी रात खामोशी रही. रामेश्वर बगल के कमरे में अपने किए के लिए खुद से माफी मांगता रहा.

सुबह होते ही रतन सिंह और सोनबाई चुपके से रूपबाई के कमरे में गए और दहाड़ें मार कर रोने लगे. रामेश्वर भी अपने कमरे से निकल आया. फिर वे तीनों रोने लगे. रोनेधोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए कि क्या हो गया?

‘‘कोई सांप डस गया मेरी बच्ची को,’’ सोनबाई ने छाती पीटते हुए कहा और फिर वह दहाड़ें मार कर रो पड़ी.

बह गया जहर : एक माफी को तरसता अमर

रात के 9 बज रहे थे. बाहर हो रही तेज बारिश से बेपरवाह अमर अपने कमरे में चुपचाप बैठा था. दीवार पर उस की पत्नी शोभना और उस का फोटो टंगा था जिस पर अमर ने किसी की न सुनते हुए माला लगा दी थी. उस का कहना था कि शोभना के साथ वह भी मर चुका है.

आज घर तकरीबन खाली था. ज्यादातर सदस्य और अमर का 4 साल का बेटा रोहित किसी रिश्तेदार की शादी में बाहर गए हुए थे और अगले दिन शाम तक लौटने की बात थी. केवल अमर की भाभी मुग्धा अपने 9 महीने के बेटे विक्की के साथ यहीं रुक गई थी. आखिर उसे अपने जेठ अमर का खयाल भी तो रखना था.

मुग्धा अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह समझती थी. उसे अमर से एक खास लगाव था. अमर का हमेशा अपनों की मदद के लिए खड़े हो जाने वाला रवैया उस के दिल में अमर को खास जगह दिला चुका था.

अमर के यों तनाव में जाने से सब से ज्यादा वही दुखी थी. 2 दिन पहले अमर के पैर में चोट लगी थी और डाक्टर ने रात को नींद की गोली और पेन किलर खाने को दी थी.

गोलियां खाने के बाद उस ने मुग्धा की दी हुई सर्दीखांसी की दवा भी ली और कुछ देर तक शोभना और अपनी तसवीर के सामने भरी आंखें ले कर खड़ा रहा.

उसे शोभना की याद आज कुछ ज्यादा ही सताने लगी थी. जब भी उस की तबीयत बिगड़ती थी तो शोभना सब काम छोड़ कर उस की सेवा में लग जाती थी.

‘आज मेरा खयाल नहीं रखोगी शोभना?’ जैसे अमर के मन ने कहा. खुद को समझाने की कोशिश करते हुए अमर ने पालने में सो रहे विक्की के सिर पर हाथ फेरा और बिस्तर पर लेट गया. दवाओं की वजह से उस की खुमारी बढ़ गई थी.

गहरी नींद की हालत में अमर न जाने क्या अनापशनाप बड़बड़ाए जा रहा था, तभी उस का हाथ किसी चीज से टकराया और कुछ गिरने की आवाज आई. शायद वह पानी का जग था. मगर अमर की आंखें खुल नहीं सकीं. तभी उसे लगा कि शोभना उसे बुला रही है. अमर का कलेजा गरम हो उठा. उस की सांसें तेज हो गईं. उसे जितना पता चल सका, उस के मुताबिक शोभना बिलकुल उस के करीब खड़ी थी. उस ने उसे बुलाना चाहा.

‘‘शोभना…’’ टूटीफूटी आवाज उस के गले से निकल सकी. अमर को महसूस हुआ कि शोभना ने उस के सिर पर हाथ फेरा लेकिन वह वापस जाने लगी. अमर ने किसी तरह उस का हाथ पकड़ लिया और बुरी तरह रो पड़ा, ‘‘नहींनहीं शोभना… अब मत जाओ मुझ से दूर… मैं मर जाऊंगा… शोभना…’’

अमर की आंखें अब भी बंद थीं. उस ने अनुभव किया कि शोभना ने उस के आंसू पोंछे और उस के बगल में लेट गई. अमर उस से लिपटता चला गया. उसे कहीं न कहीं लग रहा था कि वह सपना देख रहा है जो उस की नींद के साथ ही टूट जाएगा. उस के दिल में जमा प्यार बाहर आने को बेताब हो उठा. उस ने एकएक कर उन के बीच पड़ने वाली हर दीवार तोड़ दी. उस के हाथ शोभना के जिस्म को सहलाने, दबाने लगे.

इस के बाद शोभना की कोमल उंगलियों की छुअन अमर को अपनी पीठ पर मिलने लगी. अरसे से अमर के अंदर भरा दहकता लावा रहरह के बह पड़ता. 1, 2, 3… न जाने कितनी बार अमर अपना सबकुछ शोभना पर लुटाता रहा.

शोभना अमर के शरीर से दबी पिसती रही. अमर को किसी बात का डर सता रहा था तो बस अपने जागने का लेकिन समय कब किसी के रोके रुका है.

सुबह की रोशनी खिड़की से कमरे में आने लगी. साथ ही, अमर की चेतना भी. तभी उसे अपनी बांहों में कैद किसी असली औरत की देह महसूस हुई. उस ने चौंक कर आंखें खोलीं तो देखा कि उस ने मुग्धा को ही अपने आगोश में ले रखा था. दोनों में से किसी के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं.

अमर को तो जैसे बिजली का तेज झटका लगा. वह छिटक कर मुग्धा से दूर कमरे के कोने में जा खड़ा हुआ.

‘‘मुग्धा… यह सब… क्या हुआ… मैं ने कैसे कर दिया…’’ कहता हुआ अमर उसी हालत में अपना सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. उस का दिल बेतहाशा धड़कने लगा. पास ही पालने में विक्की इस सब से निश्चिंत सो रहा था. पास में उस के दूध की खाली बोतल पड़ी थी. जमीन पर पानी का वही जग गिरा हुआ था जो रात उस के हाथ से टकराया था.

कुछ पलों तक यह सब देखते रहने के बाद मुग्धा धीरेधीरे खुद को संभालते हुए उठी और बिस्तर पर पड़ी साड़ी अपने शरीर से लपेट कर वहां से चली गई.

अमर उसी हालत में वहीं बैठा था. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. रात का नशा अब तक हावी था. सो, वह चुपचाप मुग्धा के अगले कदम का इंतजार करने लगा. समाज के सामने लगने वाला बदनामी का धब्बा उसे अपने माथे पर महसूस हो रहा था और कानों में मातापिता और भाई विक्रम द्वारा कहे जाने वाले शब्द गूंजने लगे जो सारी बात जानने के बाद कहेंगे ‘पापी, बेहया, कर दिया न सारे खानदान का नाम खराब.

‘कितना समझाते रहे हम सब इसे, लेकिन सुने कौन? बीवी क्या किसी और की मरती है. एक इसी की स्पैशल बीवी मरी थी जो भाभी के साथ सोना पड़ गया नशे में…’

अमर के हाथ अपने कानों पर जमते गए तभी उसे मुग्धा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अमर, मैं फ्रैश होने जा रही हूं, आप भी हो लीजिए, नाश्ता तुरंत बन जाएगा.’’

अमर उस की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका. मुग्धा के जाने के बाद वह भी फ्रैश होने चला गया. नाश्ता परोसते समय मुग्धा का चेहरा सामान्य था, लेकिन अमर अपनी नजरें नीची किए रहा और आज समय पर अपनी दुकान के लिए निकल गया.

शोभना के गुजरने के बाद से उस का दुकान पर जाना अनियमित सा हो गया था. आज भी वहां जाने का मकसद कमाई न हो कर मुग्धा के सामने से हटा रहना था.

शाम होने को आई. दोपहर के खाने के लिए भी अमर घर नहीं लौटा. पापा का फोन आया कि वे लोग लौट आए हैं.

अमर का दिमाग फिर सन्नसन्न करने लगा. रात को विक्रम का फोन आने पर वह घर के लिए चला.

घर आते ही रोहित उस से लिपट गया. अमर सब से नजरें चुरा रहा था लेकिन घर का माहौल बिलकुल सही लगा.

उस रात नींद आंखों से दूर रही. इसी तरह तकरीबन पूरा हफ्ता बीत गया. अमर का मन अपनी उस रात की गलती के लिए कचोटता रहता था.

एक शाम उस ने मौका पा कर छत पर मुग्धा को बुलाया और सिर झुका कर कहने लगा, ‘‘मुग्धा, मैं बहुत कमजोर निकला. मैं इस घर के हर सदस्य के साथसाथ शोभना का भी अपराधी हूं. मेरी कमजोरी मुझे किसी से कुछ कहने नहीं दे रही, लेकिन मैं जानता हूं कि तुम कमजोर नहीं हो, तुम चुप मत रहो, सच बता दो सब को, मुझे सजा मिलनी ही चाहिए.’’

मुग्धा गौर से अमर को देखती रही, फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘अमर, बीमारी तन की हो या मन की, वह केवल कमजोर करना ही जानती है. शोभना दीदी के जाने के बाद आप का मन बीमार हो गया था. आप टूटते जा रहे थे. उस रात मैं ने महसूस किया कि आप के अंदर के मर्द को एक औरत के सहारे की जरूरत है.’’

अमर अब तक अपना सिर उठा नहीं पाया था. मुग्धा कहती रही, ‘‘मेरे अंदर की औरत आप को वह सहारा देने से खुद को रोक नहीं पाई. आप के अंदर मैं ने हमेशा अपना बड़ा भाई, कभी पिता, तो कभी दोस्त देखा है. इस के साथसाथ मैं ने अकसर आप के अंदर अपने प्रेमी को भी देखा, प्रेम किसी शरीर पर आश्रित नहीं होता, उस की सीमा अनंत होती है.’’

इतना कह कर मुग्धा ने अमर का चेहरा पकड़ कर उस की आंखों में आंखें डालीं और कहा, ‘‘मर्द टूटा हुआ और कमजोर अच्छा नहीं लगता, फिर आप तो मेरे कंप्लीट मैन हैं. आप को जोड़ने के लिए मैं ने अपना थोड़ा सा कुछ हिस्सा न्योछावर कर दिया, अब मेरा मान रखिए.’’

‘‘लेकिन, मुग्धा…’’ अमर ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मुग्धा ने उसे रोक दिया और बोली, ‘‘आप यही कहना चाहते हैं न कि जब आप के छोटे भाई को यह सब पता चलेगा तो क्या होगा? इस का जवाब यही है कि मैं अपने पति की थी, हूं और हमेशा उन्हीं की रहूंगी, आप के और मेरे बीच जो भी हुआ, वह एक बिखरी हुई जिंदगी को जोड़ने की मेरी कोशिश थी, कोई दैहिक खिंचाव नहीं…

‘‘हां, यह भी सच है कि मेरी यह भावना शायद हर कोई न समझ सके, इसलिए उस रात की बात दीवारों के दायरे में ही रहने दीजिए.’’

इतना कह कर मुग्धा नीचे को चल पड़ी. अमर के मन में भरा तनाव का जहर आंखों के रास्ते बाहर बहने लगा.

अपहरण नहीं हरण : क्या हरीराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

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प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जानलेवा चुनौती: अमीर को कौनसा सबक मिला

यह कहानी बंटवारे से पहले अंगरेजी राज की है. उस समय लोगों के स्वास्थ्य बहुत अच्छे हुआ करते थे. बीड़ीसिगरेट, वनस्पति घी का प्रयोग नहीं हुआ करता था. उस जमाने के लोग बहुत निडर होते थे. हत्या, डकैती की कोई घटना हो जाती थी तो पुलिस और जनता उस में रुचि लिया करती थी. गांवों में पुलिस आ जाती तो पूरे गांव में खबर फैल जाती कि थाना आया हुआ है.

एक अंगरेज डिप्टी कमिश्नर इंग्लैंड से रावलपिंडी स्थानांतरित हो कर आया था. जब भी कोई नया अंगरेज अधिकारी आता तो उसे उस इलाके की पूरी जानकारी कराई जाती थी, जिस से वह अच्छा कार्य कर के अपनी सरकार का नाम ऊंचा कर सके. उस अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को बताया गया कि भारत में अनोखी घटनाएं होती हैं, जिन में डाके और चोरियां शामिल हैं. अपराधियों की खोज करना बहुत कठिन होता है. कई घटनाएं ऐसी होती हैं कि सुन कर हैरानी होती है.

नए अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने एसपी से कहा कि मेरे बंगले पर 24 घंटे पुलिस की गारद रहती है साथ ही 2 खूंखार कुत्ते भी. इस के अलावा मेरे इलाके में पुलिस भी रहती है. रात भर लाइट जलती है, क्या ऐसी हालत में भी चोर मेरे घर में चोरी कर सकता है?

एसपी ने जवाब दिया कि ऐसे में भी चोरी की संभावना हो सकती है. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर ने कहा, ‘‘मैं इस बात को नहीं मानता, इतनी सावधानी के बावजूद कोई चोरी कैसे कर सकता है?’’

एसपी ने कहा, ‘‘अगर आप आजमाना चाहते हैं तो एक काम करें. एक इश्तहार निकलवा दें, जिस में यह लिखा जाए कि अंगरेज डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर अगर कोई चोरी कर के निकल जाए, तो उसे 500 रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा. अगर वह पुलिस या कुत्तों द्वारा मारा जाता है तो अपनी मौत का वह स्वयं जिम्मेदार होगा. अगर वह मौके पर पकड़ा या मारा नहीं गया तो पेश हो कर अपना ईनाम ले सकता है. उसे गिरफ्तार भी नहीं किया जाएगा और न ही कोई सजा दी जाएगी.’’

डिप्टी कमिश्नर ने एसपी की बात मान ली. इश्तहार छपा कर पूरे शहर में लगा दिए गए. इश्तहार निकलने के 2 महीने बाद यह बात उड़तेउड़ते चकवाल गांव भी पहुंची. उस जमाने में गांवों के लोग शाम को चौपालों पर एकत्र हो कर गपशप किया करते थे. चकवाल की एक ऐसी चौपाल पर अमीर नाम का आदमी बैठा हुआ था, जो 10 नंबरी था.

उस ने वहीं डिप्टी कमिश्नर के इश्तहार वाली बात सुनी. उस ने लोगों से पूछा कि 2 महीने बीतने पर भी वहां चोरी करने कोई नहीं आया क्या? एक आदमी ने उसे बताया कि पिंडी से आए एक आदमी ने बताया था कि उस बंगले में किसी की हिम्मत नहीं है जो चोरी कर सके. वहां चोरी करने का मतलब है अपनी मौत का न्यौता देना.

अमीर ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह उस बंगले में चोरी जरूर करेगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर को वह ऐसा सबक सिखाएगा कि वह पूरी जिंदगी याद रखेगा. उस ने अपनी योजना के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

कुत्तों के लिए उस ने बैलों के 2 सींग लिए और देशी घी की रोटियों का चूरमा बना कर उन सींगों में इस तरह से भर दिया कि कुत्ते कितनी भी कोशिश करें, रोटी न निकल सकें. उस जमाने में रेल के अलावा सवारी का कोई साधन नहीं था. गांव के लोग 30-40 मील तक की यात्रा पैदल ही कर लिया करते थे.
चूंकि अमीर 10 नंबरी था इसलिए कहीं बाहर जाने से पहले इलाके के नंबरदार से मिलता था. इसलिए अमीर सुबह जा कर उस से मिला, जिस से उसे लगे कि अमीर गांव में ही है. चकवाल से रावलपिंडी का रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था. अमीर दिन में ही पैदल चल कर डिप्टी कमिश्नर की कोठी के पास पहुंच गया.
उस ने संतरियों को कोठी के पास ड्यूटी करते हुए देखा. बंगले के बाहर की दीवार आदमी की कमर के बराबर ऊंची थी. बंगले के अंदर संतरों के पेड़ थे, और बड़ी संख्या में फूलों के पौधे भी थे.

बंगले के चारों ओर लंबेलंबे बरामदे थे, बरामदे के 4-4 फुट चौड़े पिलर थे. अमीर को अंदर जा कर कोई भी चीज चुरानी थी और यह साबित करना था कि भारत में एक ऐसी भी जाति है, जो बहुत दिलेर है और जान की चिंता किए बिना हर चैलेंज कबूल करने के लिए तैयार रहती है.
जब आधी रात हो गई तो वह बंगले की दीवार से लग कर बैठ गया और संतरियों की गतिविधि देखने लगा. जिन सींगों में घी लगी रोटियों का चूरमा भरा था, उस ने वे सींग बड़ी सावधानी से अंदर की ओर रख दिए. वह खुद दीवार से 10-12 गज दूर सरक कर बैठ गया. कुत्तों को घी की सुगंध आई तो वे सींगों में से चूरमा निकालने में लग गए. फिर दोनों कुत्ते सींगों को घसीटते हुए काफी दूर अंदर ले गए.
अब अमीर ने संतरियों को देखा, वे 4 थे. बरामदे में इधर से उधर घूमते हुए थोड़ीथोड़ी देर के बाद एकदूसरे को क्रौस करते थे. संतरी रायफल लिए हुए थे और उन्हें ऐसा लग रहा था कि 2 महीने से भी ज्यादा बीत चुके हैं. अब किसी में यहां आने की हिम्मत नहीं है. वैसे भी वह थके हुए लग रहे थे.

अमीर दीवार फांद कर पौधों की आड़ में बैठ गया. वह ऐसे मौके की तलाश में था जब संतरियों का ध्यान हटे और वह बरामदे से हो कर अंदर चला जाए. उसे यह मौका जल्दी ही मिल गया. क्रौस करने के बाद जब संतरियों की पीठ एकदूसरे के विपरीत थी, अमीर जल्दी से कूद कर बरामदे के पिलर की आड़ में खड़ा हो गया.

अमीर फुर्तीला था. दौड़ता हुआ ऐसा लगता था, मानो जहाज उड़ा रहा हो. उसे यकीन था कि काम हो जाने के बाद अगर वह बंगले के बाहर निकल गया तो संतरियों का बाप भी उसे पकड़ नहीं पाएगा.
दूसरा अवसर मिलते ही वह कमरे का जाली वाला दरवाजा खोल कर कमरे में पहुंच गया. लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था. चारों ओर देख कर वह बंगले के बीचों बीच वाले कमरे के अंदर पहुंचा. उस ने देखा कमरे के बीच में बहुत बड़ा पलंग था. उस पर एक ओर साहब सोया हुआ था और दूसरी ओर उस की मेम सो रही थी. मध्यम लाइट जल रही थी.

कमरे में लकड़ी की 2-3 अलमारियां थीं, चमड़े के सूटकेस भी थे. उस ने एक सूटकेस खोला, उस में चांदी के सिक्के थे. उस ने एकएक कर के सिक्के अपनी अंटी में भरने शुरू कर दिए. जब अंटी भर गई तो उस ने मजबूती से गांठ बांध ली. वह निकलने का इरादा कर ही रहा था कि उस की नजर सोई हुई मेम के गले की ओर गई, जिस में मोतियों की माला पड़ी थी.

मध्यम रोशनी में भी मोती चमक रहे थे. उस ने सोचा अगर यह माला उतारने में सफल हो गया तो चैलेंज का जवाब हो जाएगा. मेम और साहब गहरी नींद में सोए हुए थे. उस ने देखा कि माला का हुक मेम की गरदन के दाईं ओर था. उस ने चुपके से हुक खोलने की कोशिश की. हुक तो खुल गया, लेकिन मेम ने सोती हुई हालत में अपना हाथ गरदन पर फेरा और साथ ही करवट बदल कर दूसरी ओर हो गई.
अब माला खुल कर उस की गरदन और कंधे के बीच बिस्तर पर पड़ी थी, अमीर तुरंत पलंग के नीचे हो गया. 5 मिनट बाद उसे लगा कि अब मेम फिर गहरी नींद में सो गई. उस ने पलंग के नीचे से निकल कर धीरेधीरे माला को खींचना शुरू कर दिया. माला निकल गई. उस ने माला अपनी लुंगी की दूसरी ओर अंटी में बांध ली.

अमीर जाली वाले दरवाजे की ओट में देखता रहा कि संतरी कब इधरउधर होते हैं. उसे जल्दी ही मौका मिल गया. वह जल्दी से खंभे की ओट में खड़ा हो कर बाहर निकलने का मौका देखने लगा. कुत्ते अभी तक सींग में से रोटी निकालने में लगे हुए थे.

उसे जैसे ही मौका मिला, वह दीवार फांद कर बाहर की ओर कूद कर भागा. संतरी होशियार हो गए और जल्दबाजी में अंटशंट गोलियां चलाने लगे. लेकिन उन की गोली अमीर का कुछ नहीं बिगाड़ सकीं. वह छोटे रास्ते से पगडंडियों पर दौड़ता हुआ रात भर चल कर अपने घर पहुंच गया.

बाद में अमिर को पता लगा कि गोलियों की आवाज सुन कर मेम और साहब जाग गए थे. जागते ही उन्होंने कमरे में चारों ओर देखा. सिक्कों की चोरी को उन्होंने मामूली घटना समझा. लेकिन जब मेम साहब ने अपनी माला देखी तो उस ने शोर मचा दिया. वह कोई साधारण माला नहीं थी, बल्कि अमूल्य थी.

एसपी साहब और नगर के सभी अधिकारी एकत्र हो गए. उन्होंने नगर का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन चोर का पता नहीं लगा. अंगरेज डिप्टी कमिश्नर हैरान था कि इतनी सिक्योरिटी के होते हुए चोरी कैसे हो गई. उस ने कहा कि चोर हमारी माला वापस कर दे और अपनी 5 सौ रुपए के इनाम की रकम ले जाए. साथ में उसे एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा.
इश्तहार लगाए गए, अखबारों में खबर छपाई गई लेकिन 6 माह गुजरने के बाद भी चोर सामने नहीं आया. दूसरी तरफ मेमसाहब तंग कर रही थी कि उसे हर हालत में अपनी माला चाहिए. माला की फोटो हर थाने में भिजवा दी गई. साथ ही कह दिया गया कि चोर को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाएगा.

उधर अमीर चोरी के पैसों से अपने घर का खर्च चलाता रहा, उस समय चांदी का एक रुपया आज के 2-3 सौ से ज्यादा कीमत का था. अमीर के घर में पत्नी और एक बेटी थी, बिना काम किए अमीर को घर बैठे आराम से खाना मिल रहा था. उस ने सोचा, पेश हो कर अपने लिए क्यों झंझट पैदा करे, हो सकता है उसे जेल में डाल दिया जाए.

उस की पत्नी ने माला को साधारण समझ कर एक मिट्टी की डोली में डाल रखा था. एक दिन उस ने उस माला के 2 मोती निकाले और पास के एक सुनार के पास गई. उस ने सुनार से कहा कि उस की बेटी के लिए 2 बालियां बना दे और उन में एक मोती डाल दे. सुनार ने उन मोतियों को देख कर अमीर की पत्नी से कहा, ‘‘यह मोती तो बहुत कीमती हैं. तुम्हें ये कहां से मिले?’’

उस ने झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मेरा पति गांव के तालाब की मिटटी खोद रहा था, ये मोती मिट्टी में निकले हैं. मैं ने सोचा बेटी के लिए बालियां बनवा कर उस में ये मोती डाल दूं, इसलिए तुम्हारे पास आई हूं.’’ सुनार ने उस की बातों पर यकीन कर के बालियां बना दीं. उस ने अपनी बेटी के कानों में बालियां पहना दीं.
दुर्भाग्य से एक दिन अमीर की बेटी अपने घर के पास बैठी रो रही थी. तभी एक सिपाही जो किसी केस की तफ्तीश के लिए नंबरदार के पास जा रहा था, उस ने रास्ते में अमीर के घर के सामने लड़की को रोते हुए देखा. देख कर ही वह समझ गया कि किसी गरीब की बच्ची है, मां इधरउधर गई होगी. इसलिए रो रही होगी.

लेकिन जब उस की नजर बच्ची के कानों पर पड़ी तो चौंका. उस की बालियों में मोती चमक रहे थे. उसे लगा कि वे साधारण मोती नहीं हैं. उस ने नंबरदार से पूछा कि यह किस की लड़की है. उस ने बता दिया कि वह अमीर की लड़की है, जो दस नंबरी है.

हवलदार को कुछ शक हुआ. उस ने पास जा कर मोतियों को देखा तो वे मोती फोटो वाली उस माला से मिल रहे थे. जो थाने में आया था.

उस ने अमीर को बुलवा कर कहा कि वह बच्ची की बालियां थाने ले जा रहा है, जल्दी ही वापस कर लौटा देगा. थाने ले जा कर उस ने चैक किया तो वे मोती मेम साहब की माला के निकले. अमीर पहले से ही संदिग्ध था, नंबरी भी. उसे थाने बुलवा कर पूछा गया कि ऊपर से 10 मोती उसे कहां से मिले. सब सचसच बता दे, नहीं तो मारमार कर हड्डी पसली एक कर दी जाएगी.
पहले तो अमीर थानेदार को इधरउधर की बातों से उलझाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना बताए छुटकारा नहीं मिलेगा तो उस ने पूरी सचाई उगल दी. उस के घर से माला भी बरामद कर ली गई.
थानेदार बहुत खुश था कि उस ने बहुत बड़ा केस सुलझा लिया है, अब उस की पदोन्नति भी होगी और इनाम भी मिलेगा. अमीर को एसपी रावलपिंडी के सामने पेश किया गया. साथ ही डिप्टी कमिश्नर को सूचना दी गई कि मेम साहब की माला मिल गई है.

डीसी और मेम साहब ने उन्हें तलब कर लिया. मेम साहब ने माला को देख कर कहा कि माला उन्हीं की है. डिप्टी कमिश्नर ने अमीर के हुलिए को देख कर कहा कि यह चोर वह नहीं हो सकता, जिस ने उन के बंगले पर चोरी की है. क्योंकि उस जैसे आदमी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि माला गले से उतार कर ले जाए.

एसपी ने अमीर से कहा कि अपने मुंह से साहब को पूरी कहानी सुनाए. अमीर ने पूरी कहानी सुनाई और बीचबीच में सवालों के जवाब भी देता रहा. उस ने यह भी बताया कि सोते में मेम साहब ने अपनी गरदन पर हाथ भी फेरा था. डिप्टी कमिश्नर ने उस की कहानी सुन कर यकीन कर लिया, साथ ही हैरत भी हुई.
उन्होंने कहा, ‘‘तुम ने हमें बहुत परेशान किया है, अगर तुम उसी समय हमारे पास आ जाते तो हमें बहुत खुशी होती, लेकिन हम चूंकि वादा कर चुके हैं, इसलिए तुम्हें तंग नहीं किया जाएगा. हम तुम्हें सलाह देते हैं कि बाकी की जिंदगी शरीफों की तरह गुजारो.’’

अमीर ने वादा किया कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा. वह एक साधू का चेला बन गया और उस की बात पर अमल करने लगा. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से नहीं जाता. वह छोटीमोटी चोरी फिर भी करता रहा. धीरेधीरे उस में शराफत आती गई.

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे.

वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

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‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

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परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

योजना को अंजाम देने के लिए परमानंद ने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, वह और उस का परिवार एकदम शांति से रहने लगा ताकि हिमांशु को रास्ते से हटाने के बाद सभी को यही लगे कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है. परमानंद अभी यह तानाबाना बुन ही रहा था कि एक नई घटना घट गई.

20 अप्रैन, 2017 को सोनी फिर हिमांशु के साथ भाग गई. इस बार हिमांशु के साथ हिमांशु का परिवार भी खड़ा था. दोनों का प्यार देख कर घर वालों ने दोनों की सहमति से मंदिर में शादी करा दी थी. शादी के 15 दिनों बाद हिमांशु और सोनी फिर गांव लौट आए. इस बार सोनी अपने घर के बजाय हिमांशु के घर गई.

हिमांशु और सोनी के लौटने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव वाले दोनों की हिम्मत देख कर हतप्रभ थे कि हिम्मत तो देखिए रिश्तों को कलंकित करते कलेजे को ठंडक नहीं पहुंची जो गांव को बदनाम करने फिर से यहां आ गए. खैर, जैसे ही ये खबर परमानंद को मिली तो उस का खून खौल उठा. वह आपे से बाहर हो गया.

अगले दिन यानी 5 जून, 2017 को सुबह के करीब 10 बजे गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत परमानंद के दरवाजे के सामने रखी गई. उस में सैकड़ों की तादाद में गांव वालों के अलावा 21 पंच जुटे. सभी पंच परमानंद के पक्ष में खड़े उस की हां में हां मिला रहे थे. पंचायत में हिमांशु के परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था.

पंचायत की अगुवाई गांव का गणेश यादव कर रहा था. एक दिन पहले ही गणेश यादव जेल से जमानत पर रिहा हुआ था. पंचायत में प्रताप यादव सिपाही भी था. वह बक्सर में तैनात था और कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया था. इसी की मध्यस्थता में पंचायत शुरू हुई थी.

10 बजे शुरू हुई पंचायत शाम 5 बजे तक चली. अंत में पंचों ने एकमत हो कर हिमांशु के खिलाफ तुगलकी फरमान सुना दिया कि हिमांशु ने जो किया वह बहुत गलत किया. उस की करतूतों से गांव की भारी बदनामी हुई है. उसे उस की गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए ताकि आइंदा गांव का कोई दूसरा युवक ऐसी जुर्रत करने के बारे में सोच भी न सके.

सभी पंचों ने कहा कि हिमांशु की गलती की सजा मौत है. उसे जान से मार देना चाहिए. इस पर पंचायत के सभी लोग सहमत हो गए. सभी ने लाठी, डंडा, तलवार, पिस्टल, ईंट आदि ले कर उस के घर पर एकाएक हमला बोल दिया.

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हिमांशु यादव घर पर ही था. उस के घर का दरवाजा बंद था. दरवाजे को तोड़ कर लोग उसे घर के भीतर से खींच लाए और उस का शरीर गोलियों से छलनी कर के पूरी भड़ास निकाल दी. इस के बाद महिलाएं उस की गर्भवती पत्नी सोनी को भी कमरे से खींच कर कहीं ले गईं. उस दिन के बाद से आज तक उस का कहीं पता नहीं चला कि वह जिंदा भी है या उस के साथ कोई अनहोनी हो चुकी है.

बेटे और बहू को बचाने गई हिमांशु की मां जेलस देवी भी पंचों के कोप का शिकार बन गई. उसे भी मारमार कर अधमरा कर दिया गया. पंच बने आतताइयों का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उन्होंने उस के घर को आग लगा दी और फरार हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही थाना कजरैली के थानाप्रभारी विजय कुमार को मिली तो उन के हाथपांव फूल गए. वह तत्काल मयफोर्स के घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मौके पर पहुंचते ही सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएसपी मनोज कुमार, एसपी (सिटी)  और सीओ गौराचक्क गांव पहुंच गए. पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने के बाद पुलिस ने आतताइयों के घर दबिश दी लेकिन वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले.

पुलिस ने हिमांशु की घायल मां जेलस देवी को इलाज के लिए मायागंज अस्पताल पहुंचवा दिया. हिमांशु की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. मौके से कई खाली खोखे बरामद हुए. गांव का तनावपूर्ण माहौल देखते हुए एसएसपी ने वहां पीएसी की 2 टुकडि़यां तैनात कर दीं ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे.

पुलिस ने अस्पताल में जेलस देवी के बयान लिए तो उस ने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. उस के बयान के आधार पर कजरैली थाने में हत्या, हत्या का प्रयास और बलवा करने की विभिन्न धाराओं में 21 आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ.

मामले में बहू सोनी के पिता और मुख्य आरोपी परमानंद यादव सहित सुनील यादव, भितो यादव, सुमन यादव, सीताराम यादव, विवेक यादव, प्रकाश यादव उर्फ विक्की, पूसो यादव, राजा यादव, पंकज यादव, प्रकाश यादव, अधिक यादव, प्रताप यादव (सिपाही), विजय यादव, अजब लाल यादव, गणेश यादव, वरुण यादव, सुमन यादव, अरुण यादव, कुशी यादव और गोपाल यादव को नामजद आरोपी बनाया गया.

हिमांशु यादव की पत्नी सोनी यादव के अपहरण का अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. इस मुकदमे में आरोपी आशा देवी, राधा देवी, रुक्मिणी देवी, मनीषा देवी, अंजू देवी, अन्नू देवी, नागो यादव और अब्बो देवी को नामजद दिया गया. यह सब भी अपनेअपने घर से फरार मिलीं. पर 2 हमलावर प्रकाश यादव और राजा यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ कर उन्हें जेल भेज दिया. घटना के बाद गांव के लोग 2 खेमों में बंट गए.

धीरेधीरे 10-12 दिन बीत गए. हिमांशु हत्याकांड और सोनी अपहरण के आरोपियों का पुलिस पता तक नहीं लगा सकी. समाचार पत्र इस लोमहर्षक घटना की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर रहे थे. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने 20 जून, 2017 को न्यायालय से आरोपियों की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए.

आरोपियों को जब पता चला कि पुलिस ने न्यायालय से उन की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए हैं तो सीताराम यादव, सुनील यादव, विवेक यादव, अरुण यादव, कुशो यादव और सुमन यादव ने 14 जुलाई, 2017 को अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार मिश्रा की कोर्ट में सरेंडर कर दिया. कोर्ट से सभी आरोपियों को जेल भेज दिया.

इस के पहले भी 2 आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया था और 3 को पुलिस पहले गिरफ्तार कर चुकी थी. बाकी अभियुक्तों को भी पुलिस तलाशती रही. 30 जुलाई, 2017 को मुख्य आरोपी परमानंद यादव को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बांका जिले से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से सोनी के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

इस केस में अजब लाल यादव भी आरोपी था. जबकि उस के घर वालों का कहना है कि उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. उस की बेटी अनुष्ठा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेग को पत्र लिख कर कहा कि उस के पिता को गलत फंसाया गया है. मानवाधिकार आयोग ने 8 जनवरी, 2018 को एसएसपी मनोज कुमार से हिमांशु हत्याकांड की ताजा रिपोर्ट देने को कहा.

आयोग के सवालों के जवाब देने के लिए एसएसपी ने डीएसपी (सिटी) को अधिकृत कर दिया. कथा लिखे जाने तक जवाब तैयार नहीं हुआ था. अपहृत सोनी का कुछ पता नहीं चल सका था. हिमांशु के घर वालों ने अपहरण कर के सोनी की हत्या की आशंका जताई है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पैसे के लिए वन्यजीवों की तस्करी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से पुलिस प्रशासन काफी सख्त था. नतीजा यह हुआ कि अन्य राज्यों की सीमाओं से गुजरने वाले वाहनों पर खास नजर रखी जाने लगी. मीरजापुर के एसपी कलानिधि नैथानी ने भी अपने यहां सभी थानाप्रभारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि बाहर से आने वाले वाहनों पर सख्त नजर रखी जाए. 8 जनवरी, 2017 को यातायात प्रभारी देवेंद्र प्रताप सिंह मंगला सिंह, दिनेश यादव, गोविंद चौबे तथा भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय के साथ भरूहना चौराहे पर आनेजाने वाले वाहनों की जांच कर रहे थे. जांच के दौरान चुनार-वाराणसी की ओर से आने वाली एक इनोवा कार को रोका गया.

इस की वजह यह थी कि उस की नंबर प्लेट पर इस तरह मिट्टी लगाई गई थी ताकि उस का नंबर जल्दी से दिखाई न दे. सिपाहियों ने कार रुकवाई तो उस में ड्राइवर सहित 3 लोग सवार थे. सिपाहियों ने कार में पीछे झांका तो उस में 4-5 बड़ेबड़े कार्टून रखे दिखाई दिए.

सिपाहियों ने नंबर प्लेट की मिट्टी पैर से हटाई तो पता चला कि कार आंध्र प्रदेश की थी. उस में बैठे लोग संदिग्ध लगे तो पुलिस ने कार में बैठे लोगों से कार की डिक्की खोलने को कहा. जब उन लोगों ने डिक्की खोलने में आनाकानी की तो पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस को मामला कुछ गड़बड़ लगा.

मीरजापुर जनपद नक्सल प्रभावित सोनभद्र और चंदौली जिलों से सटा होने के साथसाथ मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड से ले कर छत्तीसगढ़ के नजदीक है, इसलिए मादक पदार्थों, विस्फोटक पदार्थों से ले कर वन्यजीवों की खाल, अवैध शस्त्र आदि के तस्कर इधर से गुजरते हैं.

इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर पुलिस ने थोड़ी सख्ती से डिक्की खोलने को कहा तो ड्राइवर बोला, ‘‘साहब, उस में कुछ खास नहीं है. थोड़ा घरेलू सामान है, जिसे हम घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘घरेलू सामान है तो दिखाने में क्या हर्ज है. चलो, तुम डिक्की नहीं खोलना चाहते तो हमीं खोल कर देख लेते हैं.’’ कार के पास खड़े एक सिपाही ने कहा ही नहीं, बल्कि आगे बढ़ कर उस ने डिक्की खोल भी दी. इसी के साथ उस ने कार के पिछले हिस्से में रखे कार्टूनों में से जैसे ही एक कार्टून पर पड़ा बोरा उठाया, अंदर से शेर के गुर्राने जैसी आवाज आई. सिपाही डर कर पीछे हट गया.

जानवर के गुर्राने की आवाज वाहनों की जांच में लगे अन्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों ने ही नहीं, वहां खड़े तमाशा देख रहे अन्य लोगों ने भी सुन ली थी. इसलिए पुलिस अधिकारी जहां कार के करीब पहुंच गए, वहीं तमाशबीन भी नजदीक आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब सभी कार्टूनों पर पड़ा बोरा हटाया तो अंदर जो दिखाई दिया, उसे देख कर सब के सब हैरान रह गए. सभी कार्टूनों में पिंजरे रखे थे, जिन में दुर्लभ प्रजाति के जानवर बंद थे. पुलिस उन्हें गौर से देख रही थी कि तभी मौका पा कर गाड़ी में सवार 3 लोगों में से 2 लोग कार की चाबी ले कर भाग निकले. संयोग से एक आदमी पुलिस के हाथ लग गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के साथ एक आदमी के पकड़े जाने की सूचना देवेंद्र प्रताप सिंह ने एसपी कलानिधि नैथानी को देने के साथ पुलिस लाइन से क्रेन मंगवा भी ली. क्रेन की मदद से इनोवा कार संख्या एपी28डी सी-3173 को पुलिस लाइन ले जाया गया.

सूचना पा कर डीएफओ के.के. पांडेय, सीओ (नगर) बृजेश कुमार तथा क्राइम ब्रांच प्रभारी विजय प्रताप सिंह भी पुलिस लाइन पहुंच गए. देखतेदेखते शेर जैसे दिखने वाले दुर्लभ जीव के बरामद होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई.

इस के बाद पुलिस लाइन के आसपास की सड़कों पर भीड़ लगने लगी. सूचना पा कर एसपी कलानिधि नैथानी, एएसपी आशुतोष शुक्ल, सीओ बी.के. त्रिपाठी भी पुलिस लाइन पहुंच गए थे. अधिकारियों की उपस्थिति में कार से पिंजरे बाहर निकाले गए. कार की तलाशी में 32 बोर का एक रिवौल्वर और कुछ कारतूस भी बरामद हुए.

इस सब से साफ हो गया कि यह दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की तस्करी का मामला है. पुलिस ने इन जानवरों के साथ जिस आदमी को पकड़ा था, उस का नाम अब्दुल आरिफ था. वह हैदराबाद का रहने वाला था. पूछताछ में पता चला कि उस के फरार हुए साथियों के नाम फहीम और इमरान थे.

अगले दिन एसपी कलानिधि नैथानी और वन अधिकारियों की उपस्थिति में पकड़े गए वन्यजीव तस्कर अब्दुल आरिफ से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने वन्यजीवों की तस्करी से जुड़ी चौंकाने वाली जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

आंध्र प्रदेश के जिला हैदराबाद के थाना कालापत्थर का एक गांव है ताड़वन. इसी गांव में मोहम्मद अब्दुल वाशिद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. अब्दुल वाशिद ने समय से सभी बच्चों की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली थी.

शादियां हुईं तो परिवार बढ़ा, परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़े. ऐसे में अब्दुल वाशिद के 2 बेटे हैदराबाद जा कर रोजीरोजगार से लग गए. लेकिन सब से छोटे बेटे अब्दुल आरिफ को छोटेमोटे कामों से जैसे नफरत थी. वह हमेशा बड़ा आदमी बनने और करोड़ों में खेलने के सपने देखता था. यही वजह थी कि लोग उसे शेखचिल्ली कहने लगे थे.

इसी सब के चलते उस की मुलाकात फिरोज से हुई. दोनों की सोच एक जैसी थी, इसलिए जल्दी ही उन में दोस्ती हो गई. काम की बात चली तो फिरोज ने कहा, ‘‘मेरा कहा मानो तो मैं तुम्हें एक काम बताऊं. उस में थोड़ा रिस्क तो है, लेकिन पैसा बहुत है. अगर चालाकी से काम किया जाएगा तो रिस्क भी खत्म हो जाएगा.’’

‘‘पहले काम तो बताओ. बिना रिस्क के वैसे भी पैसा कहां मिलता है. अगर मोटी कमाई करनी है तो रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा.’’ आरिफ ने कहा.

‘‘काम कोई खास मेहनत का नहीं है, उस में सिर्फ सावधानी की जरूरत है. काम करने लगोगे तो पैसों की बरसात होने लगेगी.’’ फिरोज ने कहा.

‘‘यार पहेलियां मत बुझाओ, काम बताओ. मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ आरिफ ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘काम कोई मुश्किल नहीं है, सिर्फ जंगली जानवरों को कार से ले आना है.’’

‘‘तुम कह रहे हो कि काम कोई मुश्किल वाला नहीं है. मैं जंगली जानवरों को कैसे पकड़ कर लाऊंगा?’’ आरिफ ने हैरानी से कहा.

‘‘जंगली जानवरों को तुम्हें पकड़ना नहीं है. पकड़ेगा कोई और, तुम्हें सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह कार से पहुंचाना है. इस के लिए तुम्हें आनेजाने के खर्च के साथसाथ जानवर जरूरत की जगह पहुंचाने के लिए मोटी रकम मिलेगी.’’ फिरोज ने कहा.

फिरोज द्वारा बताया गया यह काम अब्दुल आरिफ को पसंद आ गया तो वह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद फिरोज ने उस की मुलाकात मोहम्मद अब्दुल रहमान से करा दी. वह कालापत्थर के अलीबाग के रहने वाले अब्दुल अजीज का बेटा था. बातचीत के बाद आरिफ काम पर लग गया.

रहमान ने ही आरिफ को फहीम और इमरान के साथ पटना के रहने वाले डब्लू के यहां भेजा. आरिफ और उस के साथी उस इनोवा कार पर वाराणसी से सवार हुए थे. उस कार में जानवर हैं, इस की गंध किसी को न मिले, इस के लिए उस में तेज सुगंध वाला परफ्यूम छिड़क दिया गया था.

इन वन्यजीवों को बिहार से हैदराबाद तक पहुंचाने के लिए आरिफ को 50 हजार रुपए के अलावा रास्ते का पूरा खर्च दिया जाता. इस के अलावा प्रति जानवर 6 हजार रुपए इनाम भी मिलता. लेकिन आरिफ पुलिस को यह नहीं बता सका कि इन जानवरों का क्या किया जाएगा.

पूछताछ के बाद वन्यजीवों को वनविभाग को सौंप दिया गया. आरिफ के बयान के आधार पर देहात कोतवाली में उस के अलावा रहमान, इमरान, डब्लू और फहीम के खिलाफ भादंवि की धारा 9/51, 40, 39डी, 43, 48ए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मुकदमा दर्ज कर के आरिफ को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अब्दुल आरिफ तो पकड़ा गया था, लेकिन उस के साथी फरार हो गए थे. एसपी कलानिधि नैथानी उन्हें भी पकड़ना चाहते थे. उन्हें उन के मोबाइल नंबर आरिफ से मिल गए थे. इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए स्वाट, सर्विलांस तथा देहात कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम बना कर उन के पीछे लगा दी गई थी.

इस का नतीजा यह निकला कि 18 जनवरी को भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय ने आरिफ के साथी फहीम को मीरजापुर रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

फहीम और आरिफ से पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार ये जो जानवर ले जा रहे थे, उन्हें बंगाल के जंगलों से पकड़ा गया था. हैदराबाद इस तरह के जानवरों का बड़ा बाजार है. बिहार और बंगाल के जंगलों से पकड़े गए वन्यजीवों का उपयोग शक्तिवर्धक दवा बनाने में किया जाता है.

इन्हें पकड़ने के लिए पूरा एक रैकेट काम करता है. कुछ वनकर्मियों से भी इन की मिलीभगत होती है. इस रैकेट के बारे में किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती. हर व्यक्ति का काम बंटा होता है और हर आदमी को सिर्फ अपने काम के बारे में जानकारी होती है.

गिरफ्तार आरिफ और फहीम से 6 दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव बरामद हुए थे. इन में 5 कैरेकल कैट (जंगली बिल्ली) तथा 1 लैपर्ड कैट का बच्चा था. इन्हें न्यायालय के आदेश पर लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान भेज दिया गया था.

इन जंगली जानवरों को हैदराबाद से पानी के जहाज से अन्य देशों में भेजा जाना था. वन्यजीव तस्करों का नेटवर्क भारत ही नहीं, नेपाल तक फैला है. तस्कर अपने एजेंटों के माध्यम से दुर्लभ और खूंखार जानवरों को खरीद कर लाखों कमाते हैं.

खूंखार जंगली जावरों को 10 लाख से एक करोड़ रुपए तक में बेचा जाता है. अब तक ये शेर, कैरेकल (एक प्रकार की जंगली बिल्ली), चीता, तेंदुआ सहित कई अन्य जानवरों की तस्करी कर चुके हैं.

तस्करों के पास से बरामद जंगली बिल्लियां दुर्लभ प्रजाति की थीं. उन की संख्या देश भर में 200 से भी कम है. पता चला है कि कुछ निजी चिडि़याघर चलाने वाले भी ऐसे जानवरों को खरीद कर अपने यहां रखते हैं. इस के लिए वे तस्करों को लाखों रुपए देते हैं.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई तकरार, प्राइवेट पार्ट पर वार

29 साला सूर्य भूषण कुमार क्या अब जिंदगी में कभी सैक्स कर पाएगा? इस सवाल का जवाब तो अब उस का इलाज कर रहे डाक्टर कुछ दिन बाद ही दे पाएंगे, क्योंकि उस का प्राइवेट पार्ट तकरीबन 60 फीसदी कट चुका है.

यह सुन कर किसी को भी हैरत के साथ उस से हमदर्दी होना कुदरती बात है, क्योंकि मर्दानगी की निशानी प्राइवेट पार्ट किसी और ने नहीं, बल्कि उम्र में उस से 4 साल छोटी माशूका प्रिया (बदला नाम) ने पूरी बेरहमी से चाकू से काटा था.

आखिर प्रिया ने ऐसा खतरनाक कदम क्यों उठाया और इस से उसे हासिल क्या हुआ? यह समझने के लिए 3 साल पीछे चलना पड़ेगा, जब इन दोनों की लव स्टोरी शुरू हुई थी.

पटना में रह कर पढ़ाई कर रही प्रिया दरभंगा की रहने वाली है. सूर्य कुमार सीतामढ़ी का बाशिंदा है, जिस की तैनाती छत्तीसगढ़ के सुकमा में है. इस नक्सल प्रभावित इलाके में सूर्य कुमार सीआरपीएफ का जवान है. ये दोनों आपस में रिश्तेदार भी हैं. लिहाजा, कभीकभार मेलमुलाकातें होती रहती थीं, लेकिन प्यार कब हो गया, यह दोनों को पूरी तरह उस वक्त पता चला, जब सूर्य कुमार नौकरी पर सुकमा चला गया.

अब यह कहने भर की बात रह गई है कि प्यार में नजदीकियां और रोजरोज या कभी भी मिलना जरूरी है. सूर्य कुमार के सुकमा जाने से इन दोनों के प्यार पर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह दिनोंदिन बढ़ता ही गया, क्योंकि रोज बात करने के अलावा वीडियो काल भी होते रहे और चैटिंग करने के लिए ह्वाट्सएप है ही, जिस में दोनों घंटों मशगूल रहते थे.

यही इन दोनों के बीच हो रहा था. वादोंइरादों में ही सही जिंदगी मजे में कट रही थी कि एक दिन प्रिया को पता चला कि सूर्य कुमार की शादी उस के घर वालों ने शिवहर की एक लड़की से तय कर दी है और शादी इसी 23 जून को होना तय हुई है, तो वह चोट खाई नागिन की तरह बिफर उठी.

प्रिया किसी भी सूरत में अपने आशिक को किसी दूसरी लड़की का होते नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि दोनों शादी का वादा बहुत पहले ही कर चुके थे.

सुहागरात पर काटा प्राइवेट पार्ट

सूर्य कुमार ने लाख सफाई और दुहाई अपने प्यार और वफा की दी, लेकिन प्रिया टस से मस नहीं हुई. उसे अपने प्रेमी की इस बात या दलील से भी कोई मतलब नहीं था कि शिवहर वाली लड़की से शादी उस की मरजी के खिलाफ घर वालों ने तय कर दी है और अब मना किया तो रिश्तेदारी और समाज में काफी बदनामी होगी.

शादी के पहले ही अपना सबकुछ सूर्य कुमार को सौंप चुकी प्रिया खुद को ठगा सा महसूस कर रही थी. उसे अपने आशिक की बुजदिली पर भी गुस्सा आ रहा था. उस ने फोन पर बहुत साफ लहजे में सूर्य कुमार को धौंस सी दी कि तुम पहले पटना आओ, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी.

प्रिया जब जिद पर अड़ गई, तो सूर्य कुमार भी पटना आने के लिए राजी हो गया. उस ने सोचा था कि किसी तरह प्रिया को मना लेगा या इस समस्या का कोई दूसरा हल निकाल लेगा.

तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक सूर्य कुमार बीती 3 जून को सुकमा से पटना पहुंचा और गांधी मैदान के पास एक होटल में ठहर गया. वे दोनों होटल में मिले तो फिर वही कलह शुरू हो गई, जिस का आज तक कोई हल नहीं निकला था.

प्रिया ने फिर जिद पकड़ ली कि वादे के मुताबिक मुझ से शादी करो, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी. आगे तुम जानो और तुम्हारा काम जाने.

सूर्य कुमार प्रिया के खतरनाक तेवर देख पहले से ही हलकान था, लिहाजा उसे भलाई इसी बात में लगी कि चुपचाप प्रिया से शादी कर ली जाए, आगे जो होगा देखा जाएगा. दोनों ने 5 जून को पटना सिटी कोर्ट में शादी कर ली और होटल वापस आ गए.

लेकिन शादी के बाद भी वे दोनों टैंशन में थे. सूर्य कुमार यह सोचसोच कर परेशान था कि अब 23 जून को क्या होगा, जब घर वालों और होने वाली ससुराल में प्रिया से उस की शादी की बात आम हो जाएगी? कहीं दोनों पक्षों में घमासान न हो जाए, क्योंकि बात तो दोनों की ही खराब हो रही थी. शादी की तैयारियां भी दोनों घरों में जोरशोर से चल रही थीं और सारी खरीदारी हो चुकी थी.

प्रिया ने अपनी जिद पूरी कर ली थी. अब वह सूर्य कुमार की माशूका नहीं, बल्कि ब्याहता हो गई थी. इस के बाद भी उस के दिल में 23 जून को ले कर खटका था कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्य कुमार उस लड़की से भी शादी कर ले. हालांकि, वह यह भी समझ रही थी कि ऐसा होना अब नामुमकिन है. फिर भी वह अपने नएनवेले पति से सौ फीसदी प्यार और वफा की गारंटी चाहती थी.

अब दोनों के पास अपनी टैंशन दूर करने का एक ही तरीका बचा था कि हालफिलहाल तो सबकुछ भूलभाल कर सुहागरात मनाई जाए. रात गहरातेगहराते सूर्य कुमार ने तो पूरे मूड में आते हुए अपने कपड़े भी उतार दिए थे. अब वह केवल बनियान और अंडरवियर में था.

सूर्य कुमार शुरुआत कर पाता, इस के पहले ही प्रिया ने 3 दिनों के अंदर तीसरी जिद यह पकड़ ली कि पहले शिवहर वालों को फोन पर कहो कि तुम ने मुझ से शादी कर ली है.

इस पर झल्लाया सूर्य कुमार नहीं माना तो प्रिया ने तीसरी बार ही उसे खुदकुशी कर लेने की धमकी दे डाली. इस बार उस ने धमकी यह भी दी कि खुद की जान दे दूंगी या फिर तुम्हारी ले लूंगी.

यह धमकी सुनसुन कर आजिज आ चुके सूर्य कुमार ने जब साफतौर पर मना कर दिया और हमबिस्तरी करने की गरज से प्रिया को अपने पास खींचा तो प्रिया ने बिजली की फुरती से अपने साथ लाए बैग में से चाकू निकाला और उस से सूर्य कुमार के प्राइवेट पार्ट को एक झटके में काट डाला.

हड़बड़ाया सूर्य कुमार दर्द से कराहता उसी हालत में कमरे के बाहर निकला और मदद के लिए चिल्लाया तो होटल के मुलाजिम दौड़े आए, लेकिन उस

की तरफ देख कर सकते में आ गए, क्योंकि उस की जांघों के बीच से खून बह रहा था.

ऐसा नजारा जाहिर है उन्होंने जिंदगी में पहली बार देखा था. जैसेतैसे संभलते वे सूर्य कुमार को पीएमसीएच ले गए. खबर मिलने पर पुलिस अस्पताल

पहुंची तो सूर्य कुमार के बयान से सारी कहानी उजागर हुई. प्रिया को पुलिस ने आईपीसी की धारा 326 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

सुबह जब बात आम हुई, तो सुनने वाले हैरान रह गए कि सुहागरात पर यह क्या तोहफा पत्नी ने पति को दिया कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला?

प्रिया का गुस्सा और जिद अपनी जगह जायज थे, लेकिन तभी तक जब तक सूर्य कुमार ने उस से शादी नहीं की थी. इस के बाद प्रिया ने गलती नहीं, बल्कि गुनाह ही कर डाला जिस की सजा अदालत से उसे मिलेगी, लेकिन उस ने अपने साथसाथ सूर्य कुमार की भी जिंदगी खराब कर दी है.

ऐसी कुछ अहम घटनाओं पर नजर डालें तो समझ आता है कि माशूका की मंशा आशिक को न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली कहावत की तर्ज पर कहीं न कहीं सबक सिखाने की रहती है. कटे प्राइवेट पार्ट वाला जिंदगीभर कसकता रहेगा और अपने प्यार को कोसते हुए खून के आंसू बहाने पर मजबूर रहेगा. अब ऐसे हिंसक प्यार को किस बिना पर प्यार कहा जाए, यह तय कर पाना और भी मुश्किल काम है.

हादसे ओडिशा के पटना सरीखे ही 2 सनसनीखेज और चर्चित मामले साल 2019 में आदिवासी बाहुल्य राज्य ओडिशा से सामने आए थे. राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन 525 किलोमीटर दूर नवरंगपुर जिले में एक पत्नी को शक था कि उस के पति के किसी और औरत से नाजायज संबंध हैं.

पूछने पर पति सफाई देता था, लेकिन गलत नहीं कहा जाता कि शक का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं. जनवरी की एक सर्द रात में शक की आग में जलती पत्नी का जब सब्र का बांध टूट गया, तो उस ने गहरी नींद में सोए पति का प्राइवेट पार्ट तेज धारदार हथियार से काट डाला.

पति जब दर्द से बिलबिला कर चिल्लाया, तो पड़ोसी भागेभागे आए और उसे अस्पताल ले गए. पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. यह पति तमिलनाडु में मजदूरी करता था और 3 महीने पहले ही नवरंगपुर आया था.इस हादसे के चंद महीनों बाद ही ओडिशा के क्योंझर जिले में एक औरत ने अपने बौयफ्रैंड का प्राइवेट पार्ट काटा था.

इस मामले में भी बौयफ्रैंड गहरी नींद में सोया हुआ था और इत्तिफाक की बात यह है कि वह भी तमिलनाडु में ही काम करता था. औरत शादीशुदा थी, जिस के नाजायज संबंध इस नौजवान से थे, जो चेन्नई से जब भी क्योंझर आता था, अपनी उम्रदराज माशूका से सैक्स सुख लेने पहुंच जाता था.

हादसे की रात दोनों में किसी बात को ले कर खासी कहासुनी हुई थी, जिस से माशूका को इतना गुस्सा आया कि सोते हुए आशिक का प्राइवेट पार्ट काटने के बाद ही शांत हुआ. खुद सरासर पति से बेवफाई कर रही यह औरत अपने आशिक से वफा चाहने की उम्मीद लगाए बैठी थी.

पहले गला काटा, फिर प्राइवेट पार्ट

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के अमलेश्वर की रहने वाली संगीता सोनवानी का दर्द यह था कि पति अनंत सोनवानी उसे प्यार नहीं करता था. वह उसे काली और बदसूरत कहते हुए ताने मारता था और कभीकभी घर से निकल जाने को कहता था.

आएदिन की ही तरह पिछले साल 22 सितंबर को भी उस ने संगीता की जम कर ठुकाई की और फिर सो गया. इस बार संगीता का सब्र टूट गया और उस ने गुस्से में दीवार पर टंगी कुल्हाड़ी उठाई और अनंत की हत्या कर दी. इस पर भी भड़ास पूरी नहीं निकली, तो उस ने पति का प्राइवेट पार्ट काट डाला.

पुलिस ने संगीता को गिरफ्तार किया, तो पता चला कि दोनों की ही यह दूसरी शादी है और अनंत को अपनी पहली पत्नी से 12 साल का एक बेटा भी है. संगीता का गुस्सा अनंत के गले से ज्यादा उस के प्राइवेट पार्ट पर ज्यादा उतरा, जिस के उस ने कई टुकड़े कर दिए थे.

इस ने तो चबा ही डाला पति या प्रेमी के प्राइवेट पार्ट पर गुस्सा उतारने का एक अजब किस्सा मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जौरा तहसील के गांव उम्मेदगढ़ से भी 24 मई, 2023 को सामने आया था. इस मामले में चाकू, कुल्हाड़ी या ब्लेड का इस्तेमाल नहीं किया गया था, बल्कि पति के प्राइवेट पार्ट को पत्नी ने दांतों से ही चबा डाला था.

पीडि़त ने जनसुनवाई में जिला एसपी को अपनी शिकायत में बताया कि उस की बीवी का चालचलन ठीक नहीं है. वह कभी भी अपने दोस्तों को फोन कर के घर बुला लेती है. इस पर टोका तो वह लड़ाईझगड़ा करने लगी और पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखाने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उस ने 75 साला बूढ़े ससुर के खिलाफ भी छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिखा रखी थी.

घटना के दिन जब उस आदमी ने पत्नी को डांटा, तो मारे गुस्से के वह आपे से बाहर हो गई और गुस्से में ही उस के प्राइवेट पार्ट को दांतों से चबा डाला. पीडि़त जब बेसुध सा हो गया, तो पत्नी ने लातों से भी प्राइवेट पार्ट पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. इलाज के लिए उसे ग्वालियर ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के प्राइवेट पार्ट के 3 आपरेशन किए.

प्राइवेट पार्ट से बदला क्यों?

ऐसे दर्जनों नहीं, बल्कि सैकड़ों मामले हैं, जिन में औरत का गुस्सा मर्द के प्राइवेट पार्ट पर उतरा. इस से तो लगता है कि एक औरत की नजर में किसी मर्द के लिए यही सब से बड़ी सजा है कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला जाए, जो मूंछों से पहले भी मर्दानगी की निशानी माना जाता है. तमाम मामलों में बीवियां या माशूकाएं गुस्से और नफरत की सारी हदें पार कर चुकी थीं.

इस के अलावा 90 फीसदी मामलों में पति या आशिक का प्राइवेट पार्ट उस वक्त काटा गया, जब वे नींद में थे. मर्दों का प्राइवेट पार्ट बाहर की तरफ निकला हुआ रहता है और नाजुक भी बहुत होता है, इसलिए उसे आसानी से काटा जा सकता है.

इस तरह के बढ़ते मामले पतियों और प्रेमियों के लिए सिगनल हैं कि प्यार और शादीशुदा जिंदगी में उन्हें संभल कर रहना चाहिए. अगर औरत सैक्स सुख दे सकती है, तो उसे हमेशा के लिए छीन भी सकती है.

औरत से बेवफाई, उस की बेइज्जती और अनदेखी उस के गुस्से के चलते इतनी महंगी भी पड़ सकती है कि आप जिंदगीभर सैक्स सुख के लिए तरसते रह सकते हैं.

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