मेरी भाभी चाहती हैं कि मैं उनका मां बनने में साथ दूं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं विवाहित पुरुष हूं. विवाह को 8 वर्ष हो गए हैं. 7 साल का एक बच्चा है. मैं बच्चे व पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. मेरी समस्या मेरी दूर के रिश्ते की भाभी को ले कर है. उन के विवाह को 10 वर्ष हो गए हैं लेकिन वे अभी तक मां बनने का सुख हासिल नहीं कर पाई हैं.

मैडिकल जांच में भाभी के पति में कमी पाई गई है. भाभी चाहती हैं कि मैं उन का साथ दूं ताकि वे मां बनने का सुख हासिल कर सकें. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं, सलाह दें.

जवाब

आप अपने वैवाहिक जीवन में सुखी हैं तो फिर बैठे बिठाए अपने वैवाहिक जीवन को क्यों बरबाद करना चाहते हैं. आप की भाभी का मां बनने को ले कर आप से जो प्रस्ताव है वह पूरी तरह से गलत है. ऐसा करने से आप की हंसती खेलती गृहस्थी बरबाद हो जाएगी.

जहां तक भाभी के मां बनने का सवाल है उस के लिए मैडिकल औप्शन उपलब्ध है जैसे आईवीएफ. वे इस उपाय को अपना सकती हैं. इस से आप की खुशहाल गृहस्थी में भी कोई आंच नहीं आएगी और आप की भाभी मां बनने का सुख हासिल भी कर सकेंगी. आप भूल कर भी अपनी भाभी के प्रस्ताव को न स्वीकारें. इस से न केवल आप पति पत्नी के रिश्ते में दरार आएगी, बल्कि आप के अपने दूर के भाई से भी संबंध बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

मैली लाल डोरी : दास्तान अपर्णा की

रविवार होने के कारण अपर्णा सुबह की चाय का न्यूज पेपर के साथ आनंद लेने के लिए बालकनी में पड़ी आराम कुरसी पर आ कर बैठी ही थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस के देवर अरुण का फोन था.

‘‘भाभी, भैया बहुत बीमार हैं. प्लीज, आ कर मिल जाइए,’’ और फोन

कट गया.

फोन पर देवर अरुण की आवाज सुनते ही उस के तनबदन में आग लग गई. न्यूजपेपर और चाय भूल कर वह बड़बड़ाने लगी, ‘आज जिंदगी के 50 साल बीतने को आए, पर यह आदमी चैन से नहीं रहने देगा. कल मरता है तो आज मर जाए. जब आज से 20 साल पहले मेरी जरूरत नहीं थी तो आज क्यों जरूरत आन पड़ी.’ उसे अकेले बड़बड़ाते देख कर मां जमुनादेवी उस के निकट आईं और बोलीं, ‘‘अकेले क्या बड़बड़ाए जा रही है. क्या हो गया? किस का फोन था?’’

‘‘मां, आज से 20 साल पहले मैं नितिन से सारे नातेरिश्ते तोड़ कर यहां तबादला करवा कर आ गई थी और मैं ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. तब से ले कर आज तक न उन्होंने मेरी खबर ली और न मैं ने उन की. तो, अब क्यों मुझे याद किया जा रहा है?

‘‘मां, आज उन के गुरुजी और दोस्त कहां गए जो उन्हें मेरी याद आ रही है. अस्पताल में अकेले क्या कर रहे हैं. आश्रम वाले कहां चले गए,’’ बोलतेबोलते अपर्णा इतनी विचलित हो उठी कि उस का बीपी बढ़ गया. मां ने दवा दे कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

50 वर्ष पूर्व जब नितिन से उस का विवाह हुआ तो वह बहुत खुश थी. उस की ससुराल साहित्य के क्षेत्र में अच्छाखासा नाम रखती थी. वह अपने परिवार में सब से छोटी लाड़ली और साहित्यप्रेमी थी. उसे लगा था कि साहित्यप्रेमी और सुशिक्षित परिवार में रह कर वह भी अपने साहित्यज्ञान में वृद्धि कर सकेगी. परंतु, वह विवाह हो कर जब आई तो उसे मायके और ससुराल के वातावरण में बहुत अंतर लगा.

ससुराल में केवल ससुरजी को साहित्य से लगाव था, दूसरे सदस्यों का तो साहित्य से कोई लेनादेना ही नहीं था. इस के अलावा मायके में जहां कोई ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था वहीं यहां घर का हर सदस्य क्रोधी था. ससुरजी अपने लेखन व यात्राओं में इतने व्यस्त रहते कि उन्हें घरपरिवार के बारे में अधिक पता ही नहीं रहता था. सास अल्पशिक्षित, घरेलू महिला थीं. वे अपने शौक, फैशन व किटी पार्टीज में व्यस्त रहतीं. घर नौकरों के भरोसे चलता. हर कोई अपनी जिंदगी मनमाने ढंग से जी रहा था. सभी भयंकर क्रोधी और परस्पर एकदूसरे पर चीखतेचिल्लाते रहते. इन 2 दिनों में ही नितिन को ही वह कई बार क्रोधित होते देख चुकी थी. यहां का वातावरण देख कर उसे डर लगने लगा था.

सुहागरात को जब नितिन कमरे में आए तो वह दबीसहमी सी कमरे में बैठी थी. नितिन उसे देख कर बोले, ‘क्या हुआ, ऐसे क्यों बैठी हो?’

‘कुछ नहीं, ऐसे ही,’ उस ने दबे स्वर में धीरे से कहा.

‘तो इतनी घबराई हुई क्यों हो?’

‘नहीं…वो… मुझे आप से डर लगता है,’ अपर्णा ने घबरा कर कहा.

‘अरे, डरने की क्या बात है,’ कह कर जब नितिन ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह अपना सब डर भूल गई.

विवाह को कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन डाकिया एक पीला लिफाफा लैटरबौक्स में डाल गया. जब नितिन ने खोल कर देखा तो उस में केंद्रीय विद्यालय में अपर्णा की नियुक्ति का आदेश था जिस के लिए उस ने विवाह से पूर्व आवेदन किया था. खैर, समस्त परिवार की सहमति से अपर्णा ने नौकरी जौइन कर ली. घर और बाहर दोनों संभालने में तकलीफ तो उठानी पड़ती, परंतु वह खुश थी कि उस का अपना कुछ वजूद तो है.

तनख्वाह मिलते ही नितिन ने उस का एटीएम कार्ड और चैकबुक यह कहते हुए ले लिया कि ‘मैं पैसे का मैनेजमैंट बहुत अच्छा करता हूं, इसलिए ये मेरे पास ही रहें तो अच्छा है. कहां कब कितना इन्वैस्ट करना है, मैं अपने अनुसार करता रहूंगा.’

मेरे पास रहे या इन के पास, यह सोच कर अपर्णा ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. एक दिन जब वह घर आई तो नितिन मुंह लटकाए बैठा था. पूछने पर बोला कि वह जिस कंपनी में काम करता था वह घाटे में चली गई और उस की नौकरी भी चली गई.

अपर्णा बड़े प्यार से उस से बोली, ‘तो क्या हुआ, मैं तो कमा ही रही हूं. तुम क्यों चिंता करते हो. दूसरी ढूंढ़ लेना.’

‘अच्छा तो तुम मुझे अपनी नौकरी का ताना दे रही हो. नौकरी गई है, हाथपैर नहीं टूटे हैं अभी मेरे,’ नितिन क्रोध से बोला.

‘नितिन, तुम बात को कहां से कहां ले जा रहे हो. मैं ने ऐसा कब कहा?’

‘ज्यादा जबान मत चला, वरना काट दूंगा,’ नितिन की आंखों से मानो अंगारे बरस रहे थे.

उसे देख कर अपर्णा सहम गई. आज उसे नितिन के एक नए ही रूप के दर्शन हुए थे. वह चुपचाप दूसरे कमरे में जा कर अपना काम करने लगी. नौकरी चली जाने के बाद से अब नितिन पूरे समय घर में रहता और सुबह से शाम तक अपनी मरजी करता. एक दिन अपर्णा को घर आने में देर हो गई. जैसे ही वह घर में घुसी.

‘इतनी देर कैसे हो गई.’

‘आज इंस्पैक्शन था.’

‘झूठ बोलते शर्म नहीं आती, कहां से आ रही हो?’

‘तुम से बात करना बेकार है. खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत तुम्हारे ऊपर बिलकुल सटीक बैठती है,’ कह कर अपर्णा गुस्से में अंदर चली गई.

पूरे घर पर नितिन का ही वर्चस्व था. अपर्णा को घर की किसी बात में दखल देने की इजाजत नहीं थी. वह कमाने की मशीन और मूकदर्शक मात्र थी. एक दिन जब वह घर में घुसी तो देखा कि पूरा घर फूलों से सजा हुआ है. पूछने पर पता चला कि आज कोई गुरुजी और उन के शिष्य घर पर पधार रहे हैं. इसीलिए रसोई में खाना भी बन रहा है.

अपर्णा ने नितिन से पूछा, ‘यह सब क्या है नितिन? सुबह मैं स्कूल गई थी, तब तो तुम ने कुछ नहीं बताया?’

‘तुम सुबह जल्दी निकल गई थीं, सूचना बाद में मिली. आज गुरुजी घर आने वाले हैं. जाओ तुम भी तैयार हो जाओ,’ कह कर नितिन फिर जोश से काम में जुट गया.

उस दिन देररात्रि तक गुरुजी का प्रोग्राम चलता रहा. न जाने कितने ही लोग आए और गए. सब को चाय, खाना आदि खिलाया गया. अपर्णा को सुबह स्कूल जाना था, सो, वह अपने कमरे में आ कर सो गई. दूसरे दिन शाम को जब स्कूल से लौटी तो नितिन बड़ा खुश था. ट्रे में चाय के 2 कप ले कर अपर्णा के पास ही बैठ गया और कल के सफल आयोजन के लिए खुशी व्यक्त करने लगा. तभी अपर्णा ने धीरे से कहा, ‘नितिन, आप खुश हो, इसलिए मैं भी खुश हूं परंतु मेहनत की गाढ़ी कमाई की यों बरबादी ठीक नहीं.’

‘तुम क्या जानो इन बाबाओं की करामात? और जगदगुरु तो पहुंचे हुए हैं. तुम्हें पता है, शहर के बड़ेबड़े पैसे वाले लोग इन के शिष्य बनना चाहते हैं परंतु ये घास नहीं डालते. अपना तो समय खुल गया है जो गुरुजी ने स्वयं ही घर पधारने की बात कही. तुम्हारी गलती भी नहीं है. तुम्हारे घर में कोई भी बाबाओं के प्रताप में विश्वास नहीं करता. तो तुम कैसे करोगी? व्यंग्यपूर्वक कह कर नितिन वहां से चला गया. शाम को फिर आया और कहने लगा, ‘देखो, यह लाल डोरी. इसे सदा हाथ में बांधे रखना, कभी उतराना नहीं, गुरुजी ने दी है. सब ठीक होगा.’

कलह और असंतोष के मध्य जिंदगी किसी तरह कट रही थी. बिना किसी काम के व्यक्ति की मानसिकता भी बेकार हो जाती है. उसी बेकारी का प्रभाव नितिन के मनमस्तिष्क पर भी दिखने लगा था. अब उस के स्वभाव में हिंसा भी शामिल हो गई थी. बातबात पर अपर्णा व बच्चों पर हाथ उठा देना उस के लिए आम बात थी. घर का वातावरण पूरे समय अशांत और तनावग्रस्त रहता. लगातार चलते तनाव के कारण अपर्णा को बीपी, शुगर जैसी कई बीमारियों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया.

एक दिन घर पर नितिन से मिलने कोई व्यक्ति आया. कुछ देर की बातचीत

के बाद अचानक दोनों में हाथापाई होने लगी और वह आदमी जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगा. कालोनी के कुछ लोग गेट पर जमा हो गए और कुछ अपने घरों में से झांकने लगे. किसी तरह मामला शांत कर के नितिन आया तो अपर्णा ने कहा, ‘यह सब क्या है? क्यों चिल्ला रहा था यह आदमी?’

‘शांत रहो, ज्यादा जबान और दिमाग चलाने की जरूरत नहीं है,’ बेशर्मी से नितिन ने कहा.

‘इस तरह कालोनी में इज्जत का फालूदा निकालते तुम्हें शर्म नहीं आती?’

‘बोला न, दिमाग मत चलाओ. इतनी देर से कह रहा हूं, चुप रह. सुनाई नहीं पड़ता,’ कह कर नितिन ने एक स्केल उठा कर अपर्णा के सिर पर दे मारा.

अपर्णा के सिर से खून बहने लगा. अगले दिन जब वह स्कूल पहुंची तो उस के सिर पर लगी बैंडएड देख कर पिं्रसिपल ऊषा बोली, ‘यह क्या हो गया, चोट कैसे लगी?’

उन के इतना कहते ही अपर्णा की आंखों से जारजार आंसू बहने लगे. ऊषा मैडम उम्रदराज और अनुभवी थीं. उन की पारखी नजरों ने सब भांप लिया. सो, उन्होंने सर्वप्रथम अपने कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद किया और अपर्णा के कंधे पर प्यार से हाथ रख कर बोलीं, ‘क्या हुआ बेटा, कोई परेशानी है, तो बताओ.’

कहते हैं प्रेम पत्थर को भी पिघला देता है, सो ऊषा मैडम के प्यार का संपर्क पाते ही अपर्णा फट पड़ी और रोतेरोते उस ने सारी दास्तान कह सुनाई.

‘मैडम, आज शादी के 20 साल बाद भी मेरे घर में मेरी कोई कद्र नहीं है. पूरा पैसा उन तथाकथित बाबाजी की सेवा में लगाया जा रहा है. बाबाजी की सेवा के चलते कभी आश्रम के लिए सीमेंट, कभी गरीबों के लिए कंबल, और कभी अपना घर लुटा कर गरीबों को खाना खिलाया जा रहा है. यदि एक भी प्रश्न पूछ लिया तो मेरी पिटाई जानवरों की तरह की जाती है. सुबह से शाम तक स्कूल में खटने के बाद जब घर पहुंचती हूं तो हर दिन एक नया तमाशा मेरा इंतजार कर रहा होता है. मैं थक गई हूं इस जिंदगी से,’ कह कर अपर्णा फूटफूट कर रोने लगी.

ऊषा मैडम अपनी कुरसी से उठीं और अपर्णा के आगे पानी का गिलास रखते हुए बोलीं, ‘बेटा, एक बात सदा ध्यान रखना कि अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला अधिक दोषी होता है. सब से बड़ी गलती तेरी यह है कि तू पिछले

20 सालों से अन्याय को सह रही है. जिस दिन तेरे ऊपर उस का पहला हाथ उठा था, वहीं रोक देना था. सामने वाला आप के साथ अन्याय तभी तक करता है जब तक आप सहते हो. जिस दिन आप प्रतिकार करने लगते हो, उस का मनोबल समाप्त हो जाता है. आत्मनिर्भर और पूर्णतया शिक्षित होने के बावजूद तू इतनी कमजोर और मजबूर कैसे हो गई? जिस दिन पहली बार हाथ उठाया था, तुम ने क्यों नहीं मातापिता और परिवार वालों को बताया ताकि उसे रोका जा सकता. क्यों सह रही हो इतने सालों से अन्याय? छोड़ दो उसे उस के हाल पर.’

‘मैं हर दिन यही सोचती थी कि शायद सब ठीक हो जाएगा. मातापिता की इज्जत और लोकलाज के डर से मैं कभी किसी से कुछ नहीं कह पाई. लगा था कि मैं सब ठीक कर लूंगी. पर मैं गलत थी. स्थितियां बद से बदतर होती चली गईं.’ अपर्णा ने रोते हुए कहा.

अब ऊषा मैडम बोलीं, ‘जो आज गलत है, वह कल कैसे सही हो जाएगा. जिस इंसान के गुस्से से तुम प्रथम रात्रि को ही डर जाती हो और जिस इंसान को अपनी पत्नी पर हाथ उठाने में लज्जा नहीं आती. जो बाबाओं की करामात पर भरोसा कर के खुद बेरोजगार हो कर पत्नी का पैसा पानी की तरह उड़ा रहा है, वह विवेकहीन इंसान है. ऐसे इंसान से तुम सुधार की उम्मीद लगा बैठी हो? क्यों सह रही हो? तोड़ दो सारे बंधनों को अब. निर्णय तुम्हें लेना है,’ कह कर मैडम ने दरवाजा खोल दिया था.

बाहर निकल कर उस ने भी अब और न सहने का निर्णय लिया और अगले ही दिन अपने तबादले के लिए आवेदन कर दिया. 6 माह बाद अपर्णा का तबादला दूसरे शहर में हो गया.

नितिन को जब तबादले के बारे में पता चला, तो क्रोध से चीखते हुए बोला, ‘यह क्या मजाक है मुझ से बिना पूछे ट्रांसफर किस ने करवाया?’

‘मैं ने करवाया. मैं अब और तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. तुम्हारे उन तथाकथित गुरुजी ने तुम्हारी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज और अभी से ही तुम्हारी यह दुनिया तुम्हें मुबारक. अब और अधिक सहने की क्षमता मुझ में नहीं है.’

‘हांहां, जाओ, रोकना भी कौन चाहता है तुम्हें? वैसे भी कल गुरुजी आ रहे हैं. तुम्हारी तरफ देखना भी कौन चाहता है. मैं तो यों भी गुरुजी की सेवा में ही अपना जीवन लगा देना चाहता हूं,’ कह कर भड़ाक से दरवाजा बंद कर के नितिन बाहर चला गया.

बस, उस के बाद से दोनों के रास्ते अलगअलग हो गए थे. बेटे नवीन ने पुणे में जौब जौइन कर ली थी. परंतु आज आए इस एक फोन ने उस के ठहरे हुए जीवन में फिर से तूफान ला दिया था. तभी अचानक उस ने मां का स्पर्श कंधे पर महसूस किया.

‘‘क्या सोच रही है, बेटा.’’

‘‘मां, कुछ नहीं समझ आ रहा? क्या करूं?’’

‘‘बेटा, पत्नी के नाते नहीं, केवल इंसानियत के नाते ही चली जा, बल्कि नवीन को भी बुला ले. कल को कुछ हो गया, तो मन में हमेशा के लिए अपराधबोध रह जाएगा. आखिर, नवीन का पिता तो नितिन ही है न,’’ अपर्णा की मां ने उसे समझाते हुए कहा.

अगले दिन वह नवीन के साथ दिल्ली के सरकारी अस्पताल के बैड नंबर 401 पर पहुंची. बैड पर लेटे नितिन को देख कर वह चौंक गई. बिखरे बाल, जर्जर शरीर और गड्ढे में धंसी आंखें. शरीर में कई नलियां लगी हुई थीं. मुंह से खून की उलटियां हो रही थीं. पूछने पर पता चला कि नितिन को कोई खतरनाक बीमारी है. उसे आया देख कर नितिन के चेहरे पर चमक आ गई.

वह अपनी कांपती आवाज में बोला, ‘‘तुम आ गईं. मुझे पता था कि तुम जरूर आओगी. अब मैं ठीक हो जाऊंगा,’’ तभी डाक्टर सिंह ने कमरे में प्रवेश किया. नवीन की तरफ मुखातिब हो कर वे बोले, ‘‘इन्हें एड्स हुआ है. अंतिम स्टेज में है. हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

‘‘आज आप के तथाकथित गुरुजी कहां गए. आप की देखभाल करने क्यों नहीं आए वे. जिन के कारण आप ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज उन्होंने अपनी करामात क्यों नहीं दिखाई? मुझ से क्या चाहते हैं आप. क्यों मुझे फोन किया गया था?’’ अपर्णा आवेश से भरे स्वर में बोली. तभी देवर अरुण आ गया. उस ने जो बताया, उसे सुन कर अपर्णा दंग रह गई.

‘‘आप के जाने के बाद भैया एकदम निरंकुश हो गए. गुरुजी के आश्रम में कईकई दिन पड़े रहते. घर पर ताला रहता और भैया गुरुजी के आश्रम में. गुरुजी के साथ ही दौरों पर जाते. गुरुजी के आश्रम में सेविकाएं

भी आती थीं. गुरुजी सेविकाओं से हर प्रकार की सेवा करवाते थे. कई बार गुरुजी के कहने पर भैया ने भी अपनी सेवा करवाई. बस, उसी समय कोई इन्हें तोहफे में एड्स दे गई. गुरुजी और उन के आश्रम के लोगों को जैसे ही भैया की बीमारी के बारे में पता चला, उन्होंने इन्हें आश्रम से बाहर कर दिया. और आज 3 साल से कोई खैरखबर भी नहीं ली है.’’

अपर्णा मुंह खोले सब सुन रही थी. उस ने नितिन की ओर देखा तो उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए मानो अब तक की सारी काली करतूतों को एक माफी में धो देना चाहता हो.

अपर्णा कुछ देर सोचती रही, फिर नितिन की ओर घूम कर बोली, ‘‘नितिन, मेरातुम्हारा संबंध कागजी तौर पर भले ही न खत्म हुआ हो पर दिल के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. जब मेरे दिल में ही तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है, तो कागज क्या करेगा? जहां तक माफी का सवाल है, माफी तो उस से मांगी जाती है जिस ने कोई गुनाह किया हो. तुम ने आज तक जो कुछ भी मेरे साथ किया, उसे भुलाना तो मुश्किल है, पर हां, माफ करने की कोशिश करूंगी. पर अब तुम मुझ से कोई उम्मीद मत रखना.

मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकती. हां, इंसानियत के नाते तुम्हारी बीमारी के इलाज में जो पैसा लगेगा, मैं देने को तैयार हूं. बस, अब और मुझे कुछ नहीं कहना. मैं तुम्हें सारे बंधनों से मुक्त कर के जा रही हूं,’’ यह कह कर मैं ने पर्स में से एक छोटा पैकेट, वह मैली लाल डोरी निकाल कर नितिन के तकिए पर रख दी, ‘‘लो अपनी अमानत, अपने पास रखो.’’

यह कह कर अपर्णा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. नितिन टकटकी लगाए उसे जाते देखता रहा.

उपहार: क्या मोहिनी का दिल जीत पाया सत्या

लेकिन मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…

‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’

‘‘ऊं…हूं…’’

‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’

‘‘सत्या प्लीज…’’

‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’

‘‘नहीं जानती.’’

‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’

‘‘मुझे एक छाता चाहिए सत्या. धूप में, बारिश में, बाहर जाते समय काफी तकलीफ होती है. ला दोगे न?’’

‘‘बातों का रुख मत बदलो. छाता दिला दूं तो ‘आई लव यू’ कह दोगी न?’’

मोहिनी के जिद्दी स्वभाव के बारे में सोच कर सत्या तिलमिला उठा पर वह दिल के हाथों मजबूर था. मोहिनी के बिना वह अपनी जिंदगी सोच ही नहीं सकता था. लगा, मोहिनी न मिली तो दिल के टुकड़ेटुकड़े हो जाएंगे.

सत्या ने पहली बार जब मोहिनी को देखा तो उसे दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट महसूस हुई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सीधी नाक, ठुड्डी पर छोटा सा तिल, नमी लिए सुर्ख गुलाबी होंठ, लगा मोहिनी की खूबसूरती का बयान करने के लिए उस के पास शब्दों की कमी है.

मोहिनी से पहली मुलाकात सत्या की किसी इंटरव्यू देने के दौरान हुई थी. मिक्सी कंपनी में सेल्समैन व सेल्स गर्ल की आवश्यकता थी. वहां दोनों को नौकरी नहीं मिली थी.

कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी कंपनी के साक्षात्कार के समय उस ने दोबारा मोहिनी को देखा था. गुलाबी सलवार कमीज में वह गजब की लग रही थी. कहीं यह वो तो नहीं? ओफ…वही तो है. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

मोहिनी ने भी उसे देखा.

‘बेस्ट आफ लक,’ सत्या ने कहा.

उस की आंखें चमक उठीं. गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे.

‘थैंक यू,’ मोहिनी के होंठों से ये दो शब्द फूल बन कर गिरे थे.

यद्यपि वहां की नौैकरी को वह खुद न पा सका पर मोहिनी पा गई. माइक्रोओवन बेचने वाली कंपनी… प्रदर्शनी में जा कर लोगों को ओवन की खूबियों से परिचित करवा कर उन्हें ओवन खरीदने के लिए प्रेरित करने का काम था.

सत्या ने नौकरी मिलने की खुशी में मोहिनी को आइसक्रीम पार्टी दे डाली. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. छुट्टी के दिन व काम पूरा करने के बाद मोहिनी की शाम सत्या के साथ गुजरती. सत्या का हंसमुख चेहरा, मजाकिया बातें, दिल खोल कर हंसने का अंदाज मोहिनी को भा गया था. वह उस से सट कर चलती, उस की बातों में रस लेती. एक बार सिनेमाहाल में परदे पर रोमांस दृश्य देख विचलित हो कर अंधेरे में सत्या ने झट मोहिनी का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर अपने जलतेतड़पते होंठ रख दिए थे.

यह प्यार नहीं तो और क्या है? हां, यही प्यार है. सत्या के दिल ने कहा तो फिर ‘आई लव यू’ कहने में क्या हर्ज है?

पिछली बार मोहिनी के जन्म-दिन पर सत्या चाहता था कि वह अपने प्यार का इजहार करे. जन्मदिन पर मोहिनी ने उस से सूट मांगा. 500 रुपए का एक सूट उस ने दस दुकानों पर देखने के बाद पसंद किया था पर खरीदने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे क्योंकि प्रथम श्रेणी में स्नातक होने के बाद भी वह बेरोजगार था.

घर के बड़े ट्रंक में एक पान डब्बी पड़ी थी. पिताजी की चांदी की… पुरानी…भीतर रह कर काली पड़ गई थी. मां को भनक तक लगे बिना सत्या ने चालाकी से उसे बेच दिया और मोहिनी के लिए सूट खरीदा.

आसमानी रंग के शिफान कपड़े पर कढ़ाई की गई थी. सुंदर बेलबूटे के साथ आगे की तरफ पंख फैलाया मोर. सत्या को भरोसा था कि इस उपहार को देख कर मोर की तरह मोहिनी का मन मयूर भी नाच उठेगा. उस से लिपट कर वह थैंक्यू कहेगी और ‘आई लव यू’ कह देगी. इन शब्दों को सुनने के लिए उस के कान कितने बेकरार थे पर उस के उपहार को देख कर मोहिनी के चेहरे पर कड़वाहट व झुंझलाहट के भाव उभरे थे.

‘यह क्या सत्या? इतना घटिया कपड़ा. और देखो तो…कितना पतला है, नाखून लगते ही फट जाएगा. यह देखो,’ कहते हुए उस ने अपने नाखून उस में गड़ाए और जोर दे कर खींचा तो कपड़ा फट गया. सत्या को लगा था यह कपड़ा नहीं, उस के पिताजी की पान डब्बी व मां के सेंटिमेंट दोनों तारतार हो गए हैं.

‘कितने का है?’ मोहिनी ने पूछा.

‘तुम्हें इस से क्या?’

‘रुपए कहां से मिले?’

‘बैंक से निकाले,’ सत्या ने सफाई से झूठ बोल दिया.

और इस बार छाता…उस ने मोलभाव किया. अपनेआप खुलने व बंद होने वाला छाता 2 सौ रुपए का था. दोस्तों से रुपए मिले नहीं. घर में जो कुछ ढंग की चीज नजर आई मां की आंखें बचा कर उसे बेच कर सिनेमा, ड्रामा, होटल के खर्चे में वह पहले से पैसे फूंक चुका था.

काश, एक नौकरी मिल गई होती. इस समय वह कितना खुश होता. मोहिनी के मांगने के पहले उस की आवश्यकताओं की वस्तुओं का अंबार लगा देता. चमचमाते जूते पर धूल न जमे, कपड़ों की क्रीज न बिगड़े, एक अदद सी नौकरी, बस, उसे और क्या चाहिए. पर वह तो मिल नहीं रही थी.

नौकरी तो दूर की बात, अब उस की प्रेमिका, उस की जिंदगी मोहिनी एक छाता मांग रही है. क्या करे? अचानक उसे रवींद्र का ध्यान आया जो बचपन में उस का सहपाठी था. बड़ा होने पर वह अपने पिता के साथ उन के प्रेस में काम करने लगा. बाद में पिता के सहयोग से उस ने प्रिंटिंग इंक बनाने की फैक्टरी लगा ली थी. बस, दिनरात उसी फैक्टरी में कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता था.

एक दोस्त से पैसा मांगना सत्या को बुरा तो लग रहा था पर क्या करे दिल के हाथों मजबूर जो था.

‘‘उधार पैसे मांग रहे हो पर कैसे चुकाओगे? एक काम करो. ग्राइंडिंग मशीन के लिए आजकल मेरे पास कारीगर नहीं है. 10 दिन काम कर लो, 200 रुपए मिलेंगे. साथ ही कुछ सीख भी लोगे.’’

इंक बनाने के कारखाने में ग्राइंडिंग मशीन पर काम करने की बात सोच कर ही सत्या को घिन आने लगी थी. पर क्या करे? 200 रुपए तो चाहिए. किसी भी हाल में…और कोई चारा भी तो नहीं.

10 दिन के लिए वह जीजान से जुट गया. मशीनों की गड़गड़ाहट… पसीने से तरबतर…मैलेकुचैले कपड़े… थका देने वाली मेहनत, उस ने सबकुछ बरदाश्त किया. 10वें दिन उस ने छाता खरीदा. मोलभाव कर के उस ने 150 रुपए में ही उसे खरीद लिया. 50 रुपए बचे हैं, मोहिनी को ट्रीट भी दूंगा, उस की मनपसंद आइसक्रीम…उस ने सोचा.

तालाब के किनारे बना रेस्तरां. खुले में बैठे थे मोहिनी और सत्या. वह अपलक अपने प्यार को देख रहा था. हवा के झोंके मोहिनी की लटों को उलझा देते और वह उंगलियों से उन्हें संवार लेती. मोहिनी के चेहरे की खुशी, उस की सुंदरता का जादू, वातावरण की मादकता को बढ़ाए जा रही थी. सत्या का मन उसे भींच कर अपनी अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर लेने का था, किंतु बरबस उस ने अपनी कामनाओं को काबू में कर रखा था.

कटलेट…फिर मोहिनी की मनपसंद आइसक्रीम…सत्या ने बैग से छाता निकाला. वह मोहिनी की आंखों में चमक व चेहरे पर खुशी देखने के लिए लालायित था.

‘‘सत्या, यह क्या है?’’ मोहिनी ने पूछा.

‘‘तुम ने एक छाता मांगा था न…यह कंचन काया धूप में सांवली न पड़ जाए, बारिश में न भीगे, इसीलिए लाया हूं.’’ मोहिनी ने बटन दबाया. छाता खुला तो उस का चेहरा ढक गया. छाते के बारीक कपड़े से रोशनी छन कर भीतर आई.

‘‘छी…तुम्हें तो कुछ खरीदने की तमीज ही नहीं सत्या. देखो तो कितनी घटिया क्वालिटी का छाता है. इसे ले कर मैं कहीं जाऊं तो चार लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? छाते को झल्लाहट के साथ बंद कर के पूरे वेग से उस ने तालाब की ओर उसे फेंका. छाता नाव से टकरा कर पानी में डूब गया.’’

सत्या उसे भौंचक हो कर देखता रहा. क्षण भर…वह खड़ा हुआ, कुरसी ढकेल कर दौड़ पड़ा. सीढि़यां उतर कर नाव के समीप गया. नाव को हटा कर उस ने पानी में हाथ डाल कर टटोला. छाता पूरी तरह डूब गया था. हाथपैर से टटोल कर थोड़ी देर की मशक्कत के बाद वह उसे ले आया. उस के चेहरे पर क्रोध व निराशा पसरी हुई थी.

‘‘मोहिनी, इस छाते को खरीदने के लिए 10 दिन…पूरे 10 दिन मैं ने खूनपसीना एक किया है, हाथपैर गंदे किए हैं, इंक फैक्टरी में काम सीखा है. सोच रहा था कुछ दिनों में रुपए का जुगाड़ कर के क्यों न एक छोटी सी इंक फैक्टरी मैं भी खोल लूं. कितने अरमानों से इसे खरीद कर लाया था. तुम ने मेरी मेहनत को, मेरे अरमानों को बेकार समझ कर फेंक दिया. आई एम सौरी…वेरीवेरी सौरी मोहिनी…जिसे पैसों का महत्त्व नहीं मालूम ऐसी मूर्ख लड़की को मैं ने चाहा. लानत है मुझ पर…गुड बाय…’’

‘‘एक मिनट सत्या,’’ मोहिनी ने कहा.

‘‘क्या है?’’ सत्या ने मुड़ कर पूछा तो उस की आवाज में कड़वाहट थी.

‘‘तुम ने सूट खरीद कर दिया था, उसे भी मैं ने फाड़ दिया था, तब तो तुम ने कुछ कहा नहीं. क्यों?’’

‘‘बात यह है कि…’’

‘‘…कि वह तुम्हारी मेहनत के पैसों से खरीदा हुआ नहीं था. मैं तुम्हारी मां से मिली थी. तुम मेहनत से डरते हो, यह मैं ने उन की बातों से जाना. 500 रुपए के सूट को मैं ने फाड़ा तब तो तुम ने कुछ नहीं कहा और अब इस छाते के लिए कीचड़ में भी उतर गए, जानते हो क्यों? क्योंकि यह तुम्हारी मेहनत की कमाई का है.’’

‘‘मैं इसी सत्या को देखना चाहती थी कि जो मेहनत से जी न चुराए, किसी भी काम को घटिया न समझे, मेहनत कर के कमाए और मेहनत की खाए?’’

मोहिनी उस के समीप गई. उस के हाथों से उस छाते को लिया और बोली, ‘‘सत्या, यह मेरे जीवन का एक कीमती तोहफा है. इस के सामने बाकी सब फीके हैं. अब तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस के समीप जा कर मोहिनी ने उसे गले लगाया.’’

‘‘उफ्, मेरे हाथपैर कीचड़ से सने हैं, मोहिनी.’’

‘‘कोई बात नहीं. एक चुंबन दोगे?’’

‘‘क्या?’’

‘‘आई लव यू सत्या.’’

सत्या के दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट का एहसास उसी तरह से हो रहा था जैसे उस ने पहली बार मोहिनी को देखने पर अपने दिल में महसूस किया था.

सरोकार : मंझधार में फंसा एक बेटा

जनकदेव जनक  समय ही एक ऐसा साथी है, जो अच्छे और बुरे दिनों में इनसान के साथ रहता है. चाहे अमीर हो या गरीब, राजा हो या रंक, वह सब को अपने आगोश में लिए घूमता है, मगर जिस का भी समय पूरा हो जाता है, उसे यमराज के हवाले कर हमेशा के लिए अलविदा कह देता है. ठीक वैसे ही एक दिन 28 साल के एक नौजवान अमर की मां के साथ हुआ. 55 साल की उस की मां की उम्र मरने की तो नहीं थी, लेकिन घर की माली हालत ऐसी नहीं थी कि ठीक से वह उस का इलाज करा सके. फिर भी जब तक सांस है, तब तक आस है. अमर ने एक डाक्टर से उस का इलाज कराया. अमर अपनी मां के मरने से बहुत आहत हुआ, इसलिए कि उस की मां का अंतिम संस्कार उस के लिए एक समस्या बनी हुई थी, क्योंकि वह अपनी बिरादरी से छांट दिया गया था. मां की अर्थी को कंधा देने वाला उस के सिवा कोई नहीं था. संयुक्त परिवार होने के बावजूद अमर अपने घर पर अकेला मर्द सदस्य था.

उस के पिता की मौत 5 साल पहले हो चुकी थी, जबकि घर के दूसरे सदस्य उस के चाचा जितेंद्र कोलकाता में रहते थे. घर पर उस के साथ चाची मंजू देवी व उन की 3 बेटियां सोनी, पार्वती व कंचन थीं, जो कि 16, 17 व 18 साल की थीं.  अमर ने अपनी मां के मरने की खबर जब मोबाइल से अपने चाचा को दी, तो उन्होंने कहा, गाडि़यों की हड़ताल के चलते मैं समय से घर नहीं पहुंच सकता, इसलिए तुम भाभी का अंतिम संस्कार जल्द कर देना. मेरे इंतजार में लाश को घर में रखना ठीक नहीं है. चाचा की इस बात से अमर को गहरा सदमा पहुंचा. वह कुछ देर तक चुपचाप खड़ा रहा. उस के बाद वह गांव के सूर्यभान पहलवान और अपने पट्टीदारों के घर पहुंचा.

उन की चौखट पर नाक रगड़रगड़ कर अंतिम संस्कार में चलने को कहा, लेकिन सभी ने नकार दिया. आखिर में अमर हताश और निराश हो कर लौट रहा था, तभी उस की मुलाकात एक दोस्त आरती से हुई, जो बीए पास एक दलित लड़की थी, साथ ही भीम सेना की क्षेत्रीय सचिव भी थी. ‘‘क्या बात है अमर, आज तेरा हंसमुख चेहरा बहुत उदास और बुझाबुझा सा लग रहा है? कोई मुसीबत आ पड़ी है क्या?’’ आरती ने पूछा. ‘‘क्या करोगी जान कर? मेरी मुसीबत तेरे वश की बात नहीं है,’’

अमर ने कहा. ‘‘फिर भी कुछ तो बोलो, शायद मैं कोई रास्ता निकाल सकूं,’’ आरती ने गंभीरता के साथ अमर को देखते हुए पूछा. ‘‘मेरी मां इस दुनिया में नहीं रहीं आरती. उन की अर्थी को कंधा देने वाले 4 लोग नहीं मिल रहे हैं. क्या मेरी मां की लाश घर में ही पड़ी रहेगी?’’

भावुक हो कर अमर फूटफूट कर रोने लगा. ‘‘अमर, हौसला रखो… हम तुम्हारे साथ हैं,’’ आरती ने अमर के कंधे पर हाथ रख कर थपथपाते हुए धीरज बंधाया और बोली, ‘‘घबराने की कोई जरूरत नहीं है अमर. मैं ने रास्ता निकाल लिया है. तुम्हारी मां की अर्थी को कंधा देने वाले मिल गए हैं.’’ ‘‘कौन हैं वे लोग…?’’ अमर ने उत्सुकता जताते हुए आरती से पूछा,

जैसे समाज की सब से बड़ी चुनौती का हल निकल गया हो. ‘‘अर्थी को कंधा मैं, तुम, तुम्हारी चचेरी बहन कंचन व पार्वती देंगी. साथ में पश्चिम टोला से हम भगवान भैया, वकील भैया, बुजुर्ग नागा दादा को भी ले लेंगे. सूर्यभान पहलवान से डरना नहीं है. अब उस का जमाना लद गया है. पश्चिम टोला के लोगों ने उस से डरना छोड़ दिया है.’’ ‘‘लेकिन, अर्थी को बेटियां कंधा नहीं देती हैं.

हम रीतिरिवाज और परंपरा के खिलाफ जा रहे हैं.’’ ‘‘अमर, जिंदगी में हमेशा जीतना सीखो, हारना नहीं. देखो, आगेआगे होता क्या है?’’ अर्थी को कंधा दे कर वे लोग गंडकी नदी के किनारे ले गए. वहां जमीन पर अर्थी को रख दिया गया. उस के बाद बुजुर्ग नागा दादा ने कहा, ‘‘अमर की मां को टीबी की बीमारी थी, इसलिए उस की लाश को जलाया नहीं जा सकता. कब्र के लिए 6 फुट लंबा, 4 फुट चौड़ा और तकरीबन 5 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाए.’’ ‘‘ठीक है दादा, जमीन की खुदाई का काम जल्दी शुरू किया जाए. सूरज पश्चिम दिशा में डूब गया है. ठंड भी बढ़ने लगी है.

अमर, एक कुदाल मुझे भी दो,’’ आरती ने कहा. ‘‘अरे, चिंता क्यों करती हो आरती बेटी, कुदाल चलाने में माहिर भगवान, वकील, अमर हैं न. तुम कंचन और पार्वती के साथ कब्र की मिट्टी बाहर निकालो. सब की मदद से कब्र जल्दी तैयार हो जाएगी,’’ बुजुर्ग नागा दादा ने समझदारी के साथ सब को अलगअलग काम बांट दिए. नदी के किनारे साफसुथरी जगह देख कर कुदाल से मिट्टी की खुदाई की जाने लगी… साथ में गए लोग खुदाई के काम में लग गए. हालांकि मिट्टी बाहर निकालते समय पार्वती का ध्यान अंधेरे में कहीं भटक जाता. उस ने गांव के लोगों से सुन रखा था कि श्मशान में भूतप्रेत, चुड़ेल हवा में घूमती रहती हैं, जो मौका पाते ही आदमी की देह में घुस जाती हैं और उस आदमी के साथ उस के घरपरिवार को भी तबाह कर देती हैं. पार्वती मारे डर के कभीकभी कांप जाती.

नागा दादा पार्वती की मनोदशा को ताड़ गए. वे उस के पास गए. उसे स्नेह व प्यार से देखा और उस के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘भूतप्रेत कुछ नहीं होता है पार्वती. सब मन का वहम है. कब्र से मिट्टी को बाहर निकालने में मदद करो,’’ नागा दादा की इस बात से पार्वती अपने काम में जुट गई. अमर ने आकाश की ओर देखा. शाम ढल कर रात के आगोश में समा रही थी. आसमान में कई तारे निकल आए थे. नदी किनारे चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था.

जमीन खुदाई वाली जगह से थोड़ी दूरी पर अमर की मां की लाश थी, जो अमर द्वारा सामाजिक कुरीतियां और पाखंडों को त्यागने पर शायद आरती का धन्यवाद कर रही थी. कब्र तैयार होने पर लाश को आहिस्ताआहिस्ता नीचे उतारा गया. उस के बाद मिट्टी डाल कर कब्र को अच्छी तरह से ढक दिया गया. फिर वे सभी वहां से अपनेअपने घर चले गए. अमर ने अपनी मां के मरने पर किसी तरह का कोई कर्मकांड नहीं किया. उस ने न तो पीपल के पेड़ में पानी दिया, न मुंडन संस्कार कराया, न तेरहवीं के दिन श्राद्ध पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराया. अमर के नास्तिक होने की बात पूरे इलाके में चर्चा का मुद्दा बन गई थी. एक दिन अमर अपने खेतों की बोरवैल से सिंचाई कर रहा था,

तभी वहां सूर्यभान सिंह पहुंचा और अपने खेतों में बोरवैल का पानी ले जाने लगा तो अमर ने उस का विरोध किया और कहा, ‘‘10,000 रुपए बकाया हो गया है. पहले रुपए चुकता करो, तब पानी ले जाओ. डीजल 110 रुपए प्रति लिटर हो गया है. मोटर पंप कैसे चलेगा? मेरे पास पैसा रहेगा, तभी तो पंप में डीजल डाला जाएगा.’’ अमर ने सरकारी अनुदान से अपने खेत में बोरवैल लगाया था.

बोरवैल का पानी वह 300 रुपए प्रति घंटा के हिसाब से दूसरों को सिंचाई के लिए बेचता था. उस से मिले पैसे से वह बोरवैल की सरकारी किस्त भरता था. वह जब भी सूर्यभान से सिंचाई का पैसा मांगता, वह रुपए देने में आनाकानी करता. तब अमर ने इस की शिकायत सरपंच भानु प्रताप सिंह से की थी, लेकिन सरपंच ने कभी सुनवाई तक नहीं की. ‘‘पानी का बकाया… मेरे पास तेरा कोई बकाया नहीं है. तू मुझ पर धौंस जमाना चाहता है. तू जानता नहीं है कि मैं कौन हूं. तेरी बिरादरी से मैं ने ही तेरा हुक्कापानी बंद कराया. इस के बावजूद तेरी हेकड़ी नहीं गई. ठहर, कल तुम्हारी सारी हेकड़ी भुला दूंगा,’’

उलटे सूर्यभान सिंह ने उस पर रोब जमाते हुए गुस्से  में कहा. सूर्यभान सिंह और अमर दोनों का शोरगुल सुन कर वहां खेतों में सिंचाई कर रहे खेतिहर मजदूर जुट गए और किसी तरह समझाबुझा कर मामला  शांत कराया गया. पैर पटकते हुए सूर्यभान सिंह जाने लगा. जातेजाते उस ने अमर को बुरे नतीजे भुगतने की चेतावनी दी. अमर के गांव में ऊंची जाति वालों की तूती बोलती थी.

लोगों के दिलोदिमाग पर सरपंच भानु प्रताप सिंह और सूर्यभान सिंह का खौफ छाया रहता था. उन के आदेश के बिना कोई भी शख्स अपना निजी काम तक नहीं कर सकता था. अगर बिना इजाजत किसी ने कुछ किया, तो उस की खैर नहीं थी. वहां सूर्यभान सिंह पहुंच कर काम रुकवा देता और मोटी रकम ले कर ही काम करने देता. जो कोई रुपए देने में आनाकानी करता, उसे घसीटते हुए सरपंच के पास ले जाता और झूठे आरोप लगा कर उसे सजा दिला कर ही दम लेता.

वह किसी को नहीं छोड़ता था. 40 साल का सूर्यभान सिंह एक बेऔलाद व अक्खड़ पहलवान था, जो अपनी ताकत का इस्तेमाल लोगों को सताने में किया करता था. वह अपनी दबंगई दिखाने के लिए अकसर सरपंच के इशारों पर नाचता था.  सरपंची का चुनाव हो या ठेकेदारी, किसी प्रतिद्वंद्वी को सबक सिखाना हो या फिर किसी मामले को दबाना, वह परछाईं की तरह सरपंच भानु प्रताप सिंह के साथ रहता था. उस के आतंक के खिलाफ कोई अपनी जबान तक नहीं खोलता था.  अगले दिन अमर के दरवाजे पर सरपंच का कारिंदा पहुंचा और पंचायत में ठीक दिन के 12 बजे आने की सूचना दी.

कारिंदे के जाने के बाद अमर ने आरती को फोन किया और सूर्यभान सिंह के साथ हुई घटना का जिक्र किया. साथ ही, पंचायत में पहुंचने को कहा. ‘‘अपनी मां की मौत पर बिना किसी रीतिरिवाज की चिंता किए तू ने दाह संस्कार किया है. उस की भरपूर सजा मिलेगी. पहले 5 ब्राह्मणों को 1-1 बछिया दान दो और मृत्युभोज में पूरे गांव को खाना खिलाना जरूरी है. इस गांव में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है.’’ सरपंच भानु प्रताप सिंह ने अपना फरमान जारी करते हुए कहा. ‘‘बोलो अमर, पंचायत का फैसला मंजूर है या गांव छोड़ कर दूसरी जगह जाओगे?’’ पंच की हैसियत से सूर्यभान सिंह ने अमर से पूछा.

‘‘यह तो सरासर गलत फैसला है. अमर के साथ नाइंसाफी है. इस के खिलाफ भीम सेना अदालत का दरवाजा खटखटाएगी,’’ पंचायत में मौजूद आरती ने कहा. ‘‘भीम सेना जिंदाबाद…’’ का नारा लगाते हुए आरती के समर्थन में भीम सेना के दर्जनों कार्यकर्ता खड़े हो गए. ‘‘यह कोई राजनीतिक पार्टी की बैठक नहीं, जहां तुम लोग नारेबाजी कर रहे हो. यह पंचायत है, पंचायत. शांति से चले जाओ, वरना…’’ सरपंच भानु प्रताप सिंह ने चेतावनी दी. ‘‘वरना क्या करेंगे सरपंच साहब, दलित, पीडि़त और शोषितों पर गोली चलाएंगे. वह जमाना लद गया, जब आप की गीदड़ भभकी से लोग डर जाते थे. हम आप की मनुवादी विचारधारा के खिलाफ हैं. जरूरत पड़ी तो सड़क से सदन तक आवाज बुलंद करेंगे,’’ आरती ने बिना डरे अपनी बात रखी और अपने समर्थकों को शांत रहने का इशारा किया. ‘‘गीदड़ की मौत आती है, तो वह शहर की ओर भागता है. वह समय अब आ गया है,

’’ सरपंच भानु प्रताप सिंह ने भीम सेना पर ताना कसा. ‘‘मौत की बात करते हैं सरपंच साहब, शर्म नहीं आती है. अमर की मां सुबह मरी थीं और शाम तक कंधा देने वाले लोग नहीं मिले.  ‘‘आप मृत्युभोज व गाय दान देने की बात करते हैं. जिस के घर में अन्न का एक दाना नहीं है, न पैसे हैं, वह अपने पुरखों की जमीन बेच कर क्यों सामंतियों का पेट भरेगा? आप ने तो इनसानियत को शर्मसार किया है. आप को मरने के लिए चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होगा…’’

‘धांय’ गोली चलने की आवाज गूंजी. अभी आरती बोल ही रही थी कि सूर्यभान सिंह ने पिस्टल का ट्रिगर दबा दिया. भयानक आवाज के साथ गोली आरती के सिर के ऊपर से निकल गई.

पंचायत में भगदड़ मच गई. लोग इधरउधर भागने लगे. भीम सेना के सदस्य सूर्यभान सिंह से भिड़ गए. माहौल बिगड़ता देख सरपंच भानु प्रताप सिंह ने पुलिस को सूचना दे दी. थोड़ी देर बाद ही वहां पुलिस दलबल के साथ पहुंच गई. इसी बीच अमर ने सूर्यभान सिंह के हाथ से उस का पिस्टल छीन लिया था. भीम सेना के सदस्य उस की जम कर पिटाई करने लगे.

जब सूर्यभान सिंह वहां से भागने लगा, तो सब ने मिल कर उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया. थाने में आरती ने घटना की लिखित शिकायत की. थानेदार राजेंद्र प्रसाद ने घटना की जांच कर सूर्यभान सिंह के खिलाफ आर्म्स ऐक्ट का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया, वहीं अमर ने सरपंच भानु प्रताप सिंह पर मृत्युभोज के नाम  पर गरीबों को सताने की लिखित शिकायत की. दूसरे दिन आरती व अमर की खबरें सभी अखबारों, चैनलों, पोर्टलों और सोशल मीडिया की सुर्खियों में थीं.

प्यार के फूल : धर्म की दीवार के बीच

हलकीहलकी बारिश होने लगी थी और उस के साथ अंधेरा भी. मम्मी ने कहा, ‘अब हमें घर चलना चाहिए’. मैं ने ‘हां’ कहते हुए एक कैब को रुकने का इशारा किया और न्यू टाउन चलने को कहा. टैक्सी ड्राइवर 23-24 वर्ष का हिंदीभाषी लड़का था. मम्मी ने पूछ लिया, ‘आप भी भारतीय हैं?’ वह कहने लगा, ‘नहीं, मैं पाकिस्तानी मुसलिम हूं?’ और बस, अभी कुछ दूरी तक पहुंचे थे कि देखा आगे पुलिस ने ट्रैफिक डाइवर्ट किया हुआ था, पूछने पर मालूम हुआ शहर में दंगा हो गया है. सो, पूरे शहर में कर्फ्यू लगा है. सभी को अपनेअपने घरों में पहुंचने के लिए कहा जा रहा था. यह बात सुन कर मेरे और मम्मी के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं. मम्मी ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, ‘कोई और रास्ता नहीं है क्या न्यू टाउन पहुंचने का?’ उस ने कहा, ‘नहीं, पर आप चिंता मत कीजिए. मैं आप को अपने घर ले चलता हूं. यहीं पास में ही है मेरा घर. जैसे ही कर्फ्यू खुलेगा, मैं आप को न्यू टाउन पहुंचादूंगा.’

मम्मी और मैं दोनों एकदूसरे के चेहरे को देख रहे थे और टैक्सी ड्राइवर ने हमारे चेहरों को पढ़ते हुए कहा, ‘चिंता न कीजिए, आप वहां बिलकुल सुरक्षित रहेंगी, मेरे अब्बाअम्मी भी हैं वहां.’ खैर, परदेस में हमारे पास और कोई चारा भी न था. 5 मिनट में ही हम उस के घर पहुंच गए. वहां उस ने हमें अपने अब्बाअम्मी से मिलवाया और उन्हें हमारी परेशानी के बारे में बताया. उस की अम्मी ने हमें चाय देते हुए कहा, ‘इसे अपना ही घर समझिए, कोई जरूरत हो तो जरूर बताइए. और आप किसी तरह की फिक्र न कीजिए. यहां आप बिलकुल सुरक्षित हैं.’ मैं ने सोचा मैं पापा को फोन कर बता दूं कि हम कहां हैं लेकिन फोनलाइन भी ठप हो चुकी थी. सो, बता न सकी. बातबात में मालूम हुआ वह ड्राइवर वहां अपनी मास्टर्स डिगरी कर रहा है. उस के अब्बा टैक्सी ड्राइवर हैं और आज किसी निजी कारण से वह टैक्सी ले कर गया था और यह हादसा हो गया. खैर, 2 दिन उस की अम्मी ने हमारी बहुत खातिरदारी की. खास बात यह कि मुसलिम होते हुए भी उन्होंने 2 दिनों में कुछ भी मांसाहारी खाना नहीं बनाया क्योंकि हम शाकाहारी थे. जब उन्हें मालूम हुआ कि मुझे सनबर्न हुआ है तो वे मुझे दिन में 4 बार ठंडा दूध देतीं और कहतीं, ‘कंधों पर लगा लो, थोड़ी राहत मिलेगी.’ मैं उस परिवार से बहुत प्रभावित हुई और स्वयं उस से भी जो मास्टर्स करते हुए भी टैक्सी चलाने में कोई झिझक नहीं करता. जैसे ही फोनलाइन खुली, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा हम सुरक्षित हैं.’ और कर्फ्यू हटते ही वह टैक्सी ड्राइवर हमें न्यू टाउन छोड़ने आया.

पापा ने उस से कहा, ‘बेटा, परदेस में तुम ने जो मदद की है उस का मैं शुक्रगुजार हूं. तुम्हारे कारण ही आज मेरा परिवार सुरक्षित है. न जाने कभी मैं तुम्हारा यह कर्ज उतार पाऊंगा भी या नहीं.’ वह बोला, ‘मैं इमरान हूं और यह तो इंसानियत का तकाजा है, इस में कर्ज की क्या बात?’ और इतना कह वह टैक्सी की तरफ बढ़ गया. मैं पीछे से उसे देखती रह गई और अनायास ही मेरा मन बस इमरान और उस की बातों में ही खोया रहा. मुझ से रहा न गया और मैं ने उसे फेसबुक पर ढूंढ़ कर फ्रैंड बना लिया. अब हम कभीकभी चैट करते. उस से बातें कर मुझे बड़ा सुकून मिलता. शायद, मेरे मन में उस के लिए प्यार के फूल खिलने लगे थे. खैर, 3 वर्ष इसी तरह बीत गए. मैं इमरान से चैट के दौरान अपनी हर अच्छी और बुरी बात साझा करती. मैं समझ गई थी कि वह एक नेक और खुले विचारों का लड़का है. वक्त का तकाजा देखिए, 3 साल बाद मैं मास्टर्स करने सिडनी गई और एअरपोर्ट पर मुझे लेने इमरान आ गया. उसे देख मैं उस के गले लग गई. मुझ से रहा न गया और मैं ने कह दिया, ‘आई लव यू, इमरान’ वह कहने लगा, ‘आई नो डार्लिंग, ऐंड आई लव यू टू.’ इमरान ने मुझे बांहों में कसा हुआ था और वह कसाव धीरेधीरे बढ़ता जा रहा था.

मैं तो सदा के लिए उसी घेरे में कैद हो जाना चाहती थी. सो, मैं ने पापा को फोन कर कहा, ‘पापा, मैं सुरक्षित पहुंच गई हूं और इमरान लेने आया है मुझे और एक खास बात यह कि आप मेरे लिए शादी के लिए लड़का मत ढूंढि़ए. मेरा रिश्ता तय हो गया है इमरान के साथ.’ मेरी पसंद भी पापा की पसंद थी, इसलिए उन्होंने भी कहा, ‘हां, मैं इमरान के मातापिता से बात करता हूं.’ और बस कुछ महीनों में हमारी सगाई कर दी गई और फिर शादी. एक बार तो रिश्तेदारों को बहुत बुरा लगा कि मैं एक हिंदू और मुसलिम से विवाह? लेकिन पापा ने उन्हें अपना फैसला सुना दिया था कि वे अपनी बेटी का भलाबुरा खूब समझते हैं. आज मुझे इमरान से विवाह किए पूरे 5 वर्ष बीत गए हैं, मैं हिंदू और वह मुसलिम लेकिन आज तक धर्म की दीवार की एक भी ईंट हम दोनों के बीच नहीं आई. हम दोनों तो जियो और जीने दो की डोर से बंधे अपना जीवन जी रहे हैं. सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं, रिश्तेदारों के साथ. दोनों परिवार एकदूसरे की भावनाओं का खयाल रखते हुए एक हो गए हैं. मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैं एक मुसलिम परिवार में रह रही हूं. अपनी बेटी को भी हम ने धर्म के नाम पर नहीं बांटा.

मैं ने तो अपना प्यार पा लिया था. हमारे भारत के जब से 2 हिस्से क्या हुए, धर्म के नाम पर लोग मारनेकाटने को तैयार हैं. आएदिन दंगे होते हैं. कितने प्रेमी इस धर्म की बलि चढ़ा दिए जाते हैं. लोगों को अपने बच्चों से ज्यादा शायद धर्म ही प्यारा है या शायद एक खौफ भरा है मन में कि गैरधर्म से रिश्ता रखा तो अपने धर्म के लोग उन से किनारा कर लेंगे. धर्म के नाम पर दंगों में लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं, उन्हें घरों से उठा लिया जाता है. मैं सोच रही थी, कैसा धर्मयुद्ध है ये, जो इंसान को इंसान से नफरत करना सिखाता है या फिर धर्म के ठेकेदार इस युद्ध का अंत होने ही नहीं देना चाहते और धर्म की आड़ में नफरत के बीज बोए जाते हैं, जिन में सिर्फ नश्तर ही उगते हैं. न जाने कब रुकेगी यह धर्म की खेती और बोए जाएंगे भाईचारे के बीज और फिर खिलेंगे प्यार का फूल.

बिहारी अंदाज में वीडियो बनाकर सबको हंसाती है अस्तुति आनंद, 1 लाख है कमाई

सोशल मीडिया पर इन कई ऐसे कंटेट क्रिएटर्स जिनके मिलियन में व्यूज आते है, ऐसी ही सोशल मीडिया पर 24 साल की बिहारी लड़की ने तहलका मचाया हुआ है. बिहार के समस्तीपुर डिस्ट्रिक्ट की रहने वाली बिहारी टोन में फैमिली वीडियो बनाती है.

नाम है अस्तुति आनंद, इनकी वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल होती है. देखते ही देखते ये लड़की स्टार बन चुकी हैं. अस्तुति के वीडियोज ही ऐसे होते है जिनपर लोग खुद जुड़ जाते है.

 

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अस्तुति आनंद नाम ने दो बार मेडिकल का एग्जाम दिया था. हालांकि, वह एग्जाम में पास नहीं हुई.  इसके बाद अस्तुति ने पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह फनी कंटेंट बनाने में लग गई. अब वह हर दिन ऐसे कंटेंट अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करती है. जिसे देखकर लोगों का दिल खुश हो जाता है. वीडियो में अस्तुति का ठेठ अंदाज और बिहारी टोन यूजर्स को काफी पसंद आता है. उनकी मिमिक्री लोगों को हंसने पर मजबूर कर देती है.

अस्तुति ने कोविड के दौर में फनी वीडियो बनाना शुरू किया. हालांकि, शुरुआत में उनका वीडियो इतना वायरल नहीं हुआ था, तो उन्होंने इंस्टाग्राम डिलीट कर दिया था. जब दोबारा इंस्टाग्राम इंस्टौल किया तो उनका वीडियो वायरल हो चुके थे. अब अस्तुति के इंस्टाग्राम पर 14 लाख फौलोअर्स हैं. उनके हर वीडियो को लाखों लोग देखते और शेयर करते हैं. बता दें, अस्तुति अपने इन वीडियो कंटेंट से 1 लाख रुपए महीना कमा लेती है.

मेरी पत्नी मुझसे दूर दूर रहती है और मायके भी ज्यादा जाती है मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी हाल फिलहाल में नई शादी हुई है. मेरी पत्नी काफी अच्छी है, लेकिन पता नहीं उसे बार बार घर क्यों जाना होता है. वे थोडेंथोडें दिनों में मायके चली जाती है. इतना ही नहीं, घर में वे मुझसे दूरदूर रहती है. मुझे डर है कि कहीं उसका कोई आशिक तो नहीं है. या फिर घर जाने की कोई और वजह है. मुझे इस समस्या का हल बताइए. 

 

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जवाब

आपकी नई शादी हुई है और आप फैमिली के साथ रहते है. हो सकता है वे नई फैमिली में एडजस्ट न कर पा रही हो या आपको शक है कि आपकी वाइफ का अफेयर चल रहा है तो इस बात का आपको पता जरूर लगाना चाहिए और ऐसा है भी तो उसकी वजह जान उसे छुटकारा पाना चाहिए.

अगर ऐसा नहीं है तो हो सकता है कि आपकी पत्नी अलग घर चाहती हो, वे फैमिली के साथ नहीं रहना चाहती हो. क्योंकि वो भी अपनी फैमिली बनाना चाहती हैं.

घर में दूरदूर रहने की वजह ये हो सकती है कि वे सबके सामने शर्माती हो. इसलिए वे आपसे दूर रहती हो या हो सकता है वे खुद को सबके साथ कंफेर्टेबल महसूस न करती हो. लेकिन इस तरह हो सकता है कि वे फैमिली अलग हो जाएं, तो ये जरूरी है. कि घर के बड़े साथ बैठे और बात करें.

इतना ही नहीं जो लड़की आपके घर आई है उससे आप लोग ज्यादा बात करें घुलने मिलने की कोशिश करें, उसे खुश रखे और बातचीत करें. ऐसा करने घर में दरार नहीं आएगी.

भोजपुरी में तहलका मचाया, तो हिंदी सीरियल में काटा बवाल

भोजपुरी सिनेमा और उनकी एक्ट्रेसेस भी काफी चर्चा में रहती है. वे नेशनल और इंटनेशनल लेवल पर मशहूर हैं. इसके साथ ही भोजपुरी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का आपसी कनेक्शन भी बहुत गहरा है. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की कई ऐसी एक्ट्रेसेस हैं जो इंडस्ट्री पर राज करती हैं. लेकिन कई ने इसे अलविदा कह, हिंदी टीवी में जगह बना ली और आज जानीमानी हिंदी टीवी एक्ट्रेस हैं.

इनकी लिस्ट तो लंबी है लेकिन बताते है उन पौपुलर एक्ट्रेस के बारे में जिन्होंने भोजपुरी में तो तहलका मचाया ही, हिंदी सीरियल में भी अपनी पहचान को कायम रखा.

 

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मोनालिसा

मोनालिसा की पहचान भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की टौप एक्ट्रेसेस में की जाती है. उन्होंने अब तक 50 से भी ज्यादा भोजपुरी फिल्मों में काम किया है. इसके साथ ही मोनालिसा अब हिंदी टीवी सीरियल्स का भी जानामाना नाम बन गई हैं. एक्ट्रेस ने टीवी सीरियल ‘नज़र’ में डायन का लीड कैरेक्टर प्ले किया था. इसके अलावा वे बिग बौस और कई अन्य टीवी सीरियल में नजर आ चुकी हैं.

रश्मि देसाई

टीवी एक्ट्रेस रश्मि देसाई ने अपने शुरुआती करियर में गुजराती और भोजपुरी फिल्मों से की थी. रश्मि ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम किया है. इसके बाद उन्होंने हिंदी टीवी इंडस्ट्री में कदम रखा. अब वो हिंदी टीवी इंडस्ट्री का जाना पहचाना नाम हैं.

Bhojpuri actress

आम्रपाली दुबे

एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे ने अपने करियर की शुरुआत हिंदी टीवी सीरियल्स से की थी. आम्रपाली ने ‘रहना है तेरी पलकों की छांव में’, ‘सात फेरे’, ‘मायका’ जैसे टीवी सीरियल्स में काम किया है. बाद में आम्रपाली भोजपुरी इंडस्ट्री की ओर चली गईं. अब आम्रपाली भोजपुरी इंडस्ट्री की टौप एक्ट्रेस बन गई हैं.

अंजना सिंह

भोजपुरी इंडस्ट्री की टौप एक्ट्रेसेस की लिस्ट में अंजना सिंह भी शुमार हैं. उन्होंने ‘रंगीला’, ‘नागराज’, जैसी कई फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा उन्होंने भोजपुरी टीवी सीरियल्स में भी काम किया है. अंजना हिंदी के दबंग चैनल ‘नथ गहना या ज़ेवर’ में नज़र आ रही हैं.

श्वेता तिवारी

श्वेता तिवारी तो हिंदी टीवी का जाना पहचाना नाम हैं. लेकिन एक दौर था जब श्वेता तिवारी भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया करती थी. उन्होंने ‘हिंदुस्तानी सैंया हमार’, ‘कब अइबू अंगनवा हमार’ और ‘एई भौजी की सिस्टर’ जैसी कई सुपरहिट भोजपुरी फिल्मों में काम किया है. लेकिन अब वे हिंदी टीवी सीरियल की हो चुकी है. अब उनकी बेटी पलक तिवारी मीडिया की लाइमलाइट में रहती है. अपने लव अफेयर को लेकर जो कि सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम के साथ है.

मेरा बौयफ्रेंड नशा करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक 19 साल की लड़की हूं और पढ़ाई में बहुत अच्छी हूं. मैं एक लड़के को बहुत पसंद करती हूं, पर उस की एक गंदी आदत है कि वह नशा करता है. सिगरेट में कुछ भर कर पीता है और फिर बेसुध हो जाता है. मैं ने उसे कई बार अपने प्यार का वास्ता दिया, पर वह नहीं सुनता है. मैं उसे खोना नहीं चाहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप तुरंत उस लड़के को छोड़ दें. एक नशेड़ी से प्यार करने पर आप को सिवा दुश्वारियों के कुछ और नहीं मिलेगा. अगर वह वाकई आप को प्यार करता होता तो आप की खातिर नशा छोड़ चुका होता.

आप उस से कहें कि मुझे या नशे में से किसी एक को चुन लो तो वह बातें तो बड़ीबड़ी करेगा, आप  के लिए चांदतारे तोड़ लाने के वादे करेगा, लेकिन नशा न छोड़ पाए तो समझ लें कि उस का भविष्य क्या होगा.

बेहतर होगा कि आप धीरेधीरे उस से किनारा कर लें. उसे पा कर भी खो दें, इस से तो बेहतर है कि उसे बिना पाए ही खो दें, जो कि अभी मुमकिन है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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मारिया: भारतीय परंपराओं में जकड़ा राहुल क्या कशमकश से निकल पाया

दिल्ली का इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. जहाज से बाहर निकल कर इस धरती पर पांव रखते ही सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई. लगा यहां कुछ तो ऐसा है जो अपना है और बरबस अपनी तरफ खींच रहा है. यहां की माटी की सौंधीसौंधी खुशबू के लिए तो पूरे 2 साल तक तरसता रहा है.

ट्राली पर सामान लादे एअरपोर्ट से बाहर निकला. दर्शक दीर्घा में मेरी नजर चारों तरफ घूमने लगी. लंबी कतारों में खड़ी भीड़ में मैं अपनों को तलाश रहा था. मेरे पांव ट्राली के साथसाथ धीरेधीरे आगे बढ़ रहे थे कि पास से ही चाचू की आवाज आई.

मेरी नजर आवाज की ओर घूम गई.

‘‘अरे, नेहा तू?’’ मैं ने हैरानी से उस की ओर देखा.

‘‘हां, चाचू, इधर से आ जाइए. सभी लोग आए हुए हैं,’’ नेहा बोली.

‘‘सब लोग?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. अपनों से मिलने के लिए मन एकदम बेचैन हो उठा. सामने दीदी, मांबाबूजी को देखा तो मन एकदम भावुक हो गया. मेरी आंखें छलछला आईं. मां ने कस कर मुझे अपने सीने में भींच लिया. भाभी के हाथ में आरती की थाली थी.

‘‘मारिया कहां है,’’ भाभी ने इधरउधर झांकते हुए पूछा.

‘‘भाभी, अचानक उस की तबीयत खराब हो गई इसलिए वह नहीं आ सकी. वैसे आखिरी समय तक वह एकदम आने को तैयार थी.’’

मेरा इतना कहना था कि भाभी का चेहरा उतर गया जिसे मैं ने बड़े करीब से महसूस किया.

‘‘हम लोग तो यह सोच कर यहां आए थे कि बहू को सबकुछ अटपटा न लगे. पर चलो…’’ कहतेकहते मां चुप हो गईं.

‘‘चलो, मारिया न सही तुम ही तिलक करा लो,’’ भाभी ने कहा तो मैं झेंप गया.

‘‘नहीं भाभी, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. सब लोग क्या सोचेंगे.’’

‘‘यही सोचेंगे न कि कितने प्यार से भाभी देवर का स्वागत कर रही है. आखिर हमारा भरापूरा परिवार है. भारतीय परंपराएं हैं…’’ बाबूजी बोले.

सच, ऐसे घर को तो मैं तरस गया था. सभी घर आ गए.

‘‘मारिया नहीं आई कोई बात नहीं, तू तो आ गया न,’’ मां ने कहा.

‘‘राहुल क्यों नहीं आता? आखिर अपना खून है, फिर बहन की शादी है. तब तक तो मारिया भी आ जाएगी क्यों बाबू…’’ भाभी ने चुहल की.

‘‘हां भाभी,’’ मैं ने यों ही टालने के लिए कह दिया. बातों का सिलसिला मारिया से आगे बढ़ ही नहीं रहा था फिर उठ कर अनमने मन से सोफे पर लेट गया और सोने का प्रयास करने लगा. तब तक भाभी चाय बना कर ले आईं.

मुझे ऐसे लेटा देख कर बोलीं, ‘‘भैया, आप बहुत थक गए होंगे. भीतर कमरे में चल कर लेट जाइए. बातें तो सुबह भी हो जाएंगी.’’

मेरी आंखों में नींद कहां. परिवारजनों का इतना स्नेह उस विदेशी लड़की के लिए जिस को मैं ने चुना था. मांबाबूजी कितने दिन मुझ से नाराज रहे थे. महीनों तक फोन भी नहीं किया था. आखिर मां ने ही चुप्पी तोड़ी और बेमन से ही सही सबकुछ स्वीकार कर लिया था. स्नेह को बटोरने के लिए वह नहीं थी जिस के लिए यह सबकुछ हुआ था. मुझे रहरह कर बीते दिन याद आने लगे.

मेरी कंपनी ने मुझे अनुभव और योग्यता के आधार पर यूनान भेजने का निर्णय लिया था. मैं भरसक प्रयास करता रहा कि मुझे वहां न जाना पड़े क्योंकि एक तो मुझे विदेशी भाषा नहीं आती थी दूसरे वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या नहीं के बराबर थी. अत: शाकाहारी भोजन मिलने की कोई संभावना न थी. मेरे स्थान पर कोई  और व्यक्ति न मिल पाने के कारण वहां जाना मेरी मजबूरी बन गई थी.

मुझे एथेंस आए 15 दिन हो चुके थे. खाने के नाम पर उबले हुए चावल, ग्रीक सलाद, फ्राई किए टमाटर और गोल सख्त डबलरोटी थी जिन को 15 दिनों से लगातार खा कर मैं पूरी तरह से ऊब चुका था.

भारतीय रेस्तरां मेरे आफिस से 20 किलोमीटर दूर एअरपोर्ट के पास था जहां हर रोज खाने के लिए जाना आसान नहीं था. मेरे आफिस वाले भी इस मामले में मेरी कोई ज्यादा मदद नहीं कर पाए क्योंकि मैं उन्हें ठीक से यह समझा नहीं पाया कि मैं शाकाहारी क्यों हूं.

एथेंस यूरोप का प्रसिद्घ टूरिस्ट स्थान होने के कारण लोग यहां अकसर छुट्टियां मनाने आते हैं. यही वजह है कि यहां के हर चौराहे पर, सड़क के किनारे रेस्तरां तथा फास्टफूड का काफी प्रचलन है. घंटों बैठ कर ठंडी ग्रीक कौफी पीना तथा भीड़ को आतेजाते देखना भी यहां का एक फैशन और लोगों का शौक है.

उस दिन मैं यहां के मशहूर फास्टफूड चेन ‘एवरेस्ट’ के बाहर बिछी कुरसियों पर बैठा वेटर के आने का इंतजार कर ही रहा था कि लालसफेद ड्रेस में लिपटी एक महिला वेटर ने आ कर मुझे मीनू कार्ड पकड़ाना चाहा.

मैं ने उसे देखते ही कहा, ‘मुझे यह कार्र्ड नहीं, बस, एक वेज पिज्जा और कोक चाहिए.’

‘आप कुछ नया खाना नहीं खाना चाहेंगे. कल भी आप ने खाने के लिए यही मंगाया था. यहां का चिकन सूप, क्लब सैंडविच…’

उस महिला वेटर की बात को काटते हुए मैं ने कहा, ‘माफ कीजिए, मैं सिर्फ शाकाहारी हूं.’

‘तो शाकाहारी में वेजचीज सैंडविच, नूडल्स, मैश पोटेटो, फ्रेंच फाइज क्यों नहीं खाने की कोशिश करते?’ वह मुसकरा कर बोलती रही और मैं उस का मुंह देखता रहा कि कब वह चुप हो और मैं ‘नो थैंक्स’ कह कर उस को धन्यवाद दूं्.

मेरे चेहरे को देख कर शायद उस ने मेरे दिल की बात जान ली थी. इसलिए और भीतर आर्डर दे कर मेरे पास आ कर खड़ी हो गई.

‘आप कहां से आए हैं?’

‘इंडिया से,’ मैं ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘पर्यटक हैं? ग्रीस घूमने अकेले

ही आए हैं.’

‘नहीं, मैं यहां वास निकोलस में काम करता हूं और कुछ दिन पहले ही यहां आया हूं…और आप?’

‘मैं पढ़ती हूं. यहां पार्र्ट टाइम वेटर  का काम करती हूं, शाम को 4 से 10 तक.’

तब तक भीतर के बोर्ड पर मेरे आर्डर का नंबर उभरा और वह बातों का सिलसिला बीच में ही छोड़ कर चली गई. मैं ने महसूस किया कि यूरोप के बाकी देशों से यूनान के लोग ज्यादा सुंदर, हंसमुख और मिलनसार होते हैं. खाने के साथ यहां भी भारत की तरह पीने को पानी मिल जाता है जिस की कोई कीमत नहीं ली जाती.

उस ने बड़ी तरतीब से मेरी मेज पर कांटे, छुरियों और पेपर नेपकिन के साथ पिज्जा सजा दिया, जिसे देखते ही मेरा मन फिर से कसैला सा हो गया. न जाने क्यों मैं यहां की चीज की गंध को बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

‘क्या हुआ, ठीक नहीं है क्या?’ मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए वह बोली.

‘नहीं यह बात नहीं है. 5 दिन से लगातार जंक फूड खातेखाते मैं बोर हो गया हूं. यहां आसपास कोई भारतीय रेस्तरां नहीं है क्या?’

‘नहीं, पर एक और शाकाहारी भोजनालय है, हरे रामा हरे कृष्णा वालों का, एकदम शुद्घ शाकाहारी. अंडा और चाय भी नहीं मिलती वहां.’

‘वह कहां है?’ मैं ने बड़ी उत्कंठा से पूछा.

‘मुझे उस का पता तो नहीं पर जगह मालूम है. आज मेरी ड्यूटी के बाद तक रुको तो मैं तुम को ले चलूंगी या फिर कल 4 बजे से पहले आना.’

‘मैं कल आऊंगा. क्या नाम है तुम्हारा?’ मैं ने पूछा.

‘मारिया.’

‘और मेरा राहुल.’

इस तरह हमारे मिलने का सिलसिला शुरू हुआ. अब हर शनिवार को हम साथ घूमते और खाते. वह सालोनीकी की रहने वाली थी जो एथेंस से 500 किलोमीटर दूर था. उस के पिता का वहां सिलेसिलाए वस्त्रों का स्टोर था. वह वहां पर अपनी एक सहेली के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती थी जिस का खर्च दोनों ही मिलजुल कर वहन करती थीं.

एक दिन बातोंबातों में मारिया ने बताया कि उस के पिता भी मूलत: भारतीय हैं जो बरसों पहले यहां आ कर बस गए थे. परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई क्रिस्टोस भी है जो उन के पास ही रहता है. अपने पिता से उस ने भारत के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उस की मां उस के पिता की भरपूर प्रशंसा करती हैं और कहा करती हैं कि भारतीय व्यक्ति से विवाह कर के मैं ने कोई भूल नहीं की. परिवार के प्रति संजीदा, व्यवहारकुशल, बेहद केयरिंग पति कम से कम यूनानी लोगों में तो कम ही होते हैं.

इस बार एकसाथ 4 छुट्टियां मिलीं तो मारिया बेहद खुश हुई और कहने लगी, ‘चलो, तुम को सैंतारीनी द्वीप ले चलती हूं. यहां के सब से खूबसूरत द्वीपों में से एक

है. वहां का सनसेट और

सन राईज देखने दुनिया भर से लोग आते हैं.’

मेरे तो मन में लाखों घंटियां एकसाथ बजने लगीं कि अब कई दिन एकसाथ रहने और घूमनेफिरने को मिलेगा. चूंकि साथ रहतेरहते वह अब मेरे बारे में बहुत कुछ जान चुकी थी इसलिए रेस्तरां में खुद ही आर्र्डर कर के सामान बनवाती और मुझे उस व्यंजन के बारे में विस्तार से समझाती. मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी. हर चीज इतनी आसान हो गई थी कि मुझे अब एथेंस में रहना अच्छा लगने लगा था.

मारिया के साथ गुजारी गई उन छुट्टियों को मैं कभी नहीं भूल सकता. मैं ने यह भी महसूस किया कि उस को भी मेरा साथ अच्छा लगने लगा था. होटल में हम ने अलगअलग कमरे लिए थे पर उस शाम मारिया मेरे कमरे में आ कर मुझ से बुरी तरह लिपट गई और चुंबनों की बौछार कर दी. मैं भी उसे चाहने लगा था इसलिए सारा संकोच त्याग कर उसे कस कर पकड़ लिया और वह सबकुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम एकदूसरे के और करीब आ गए.

दिन बीतते गए. एक दिन मारिया ने बताया कि उस की रूमपार्टनर वापस अपने शहर जा रही है. मारिया अकेली उस फ्लैट का किराया नहीं दे सकती थी और मुझे भी एक रूम की तलाश थी सो मैं होटल से सामान ले कर उस के साथ रहने लगा.

एक दिन मारिया ने कहा कि वह मुझ से शादी करना चाहती है. नैतिक तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी थी क्योंकि मैं भी उसे अब उतना ही चाहने लगा था जितना कि वह. पर तुरंत मैं कोई फैसला नहीं कर सका.

मैं ने कहा, ‘मारिया, मैं तुम्हें चाहता हूं फिर भी एक बार अपने घर वालों से इजाजत ले लूं तो…’

‘इजाजत,’ वह थोड़ा माथे पर त्योरियां चढ़ाते हुए बोली, ‘तुम सब काम उन की इजाजत ले कर करते हो. मेरे साथ घूमने और रहने के लिए भी इजाजत ली थी क्या? खाना खाने, रहने, सोने के लिए भी उन की इजाजत लेते हो क्या?’

‘ऐसी बात नहीं है मारिया, मैं भारतीय हूं. इजाजत न भी सही पर उन को बताना और आशीर्वाद लेना मेरा कर्तव्य है.’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘यह हमारी परंपराएं हैं.’

‘ये परंपराएं तुम्ही निभाओ,’ मारिया बोली, ‘मेरी बात का सीधा उत्तर दो क्योंकि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनना चाहती हूं.’

एकदम सीधासीधा वाक्य उस ने मेरे ऊपर थोप दिया. मुझे उस से इस तरह के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी.

‘मैं ने मम्मीपापा को यह सब बताया तो वे नाराज हो गए और मैं कितने ही दिन तक उन के रूठनेमनाने में लगा रहा. फिर जब मैं ने बताया कि लड़की के पिता भारतीय मूल के हैं तो उन्होंने बड़े अनमने मन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

कुछ ही दिनों बाद पता चला कि मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई है. मेरा मन भारत जाने के लिए एकदम विचलित हो गया. इसी बहाने मुझे छुट्टी भी मिल गई और भारत जाने को टिकट भी.

मैं ने यह सब मारिया को बताया तो वह भी साथ चलने की तैयारी करने लगी लेकिन जाने से ठीक एक दिन पहले मारिया को न जाने क्या सूझा कि उस ने मेरे साथ जाने से मना कर दिया. मैं ने नाराज हो कर मारिया को कहा कि ऐसे कैसे तुम मना कर रही हो.

‘राहुल मैं अब भारत नहीं जाना चाहती, बस…’

‘परंतु मारिया, मैं ने वहां सब को बता दिया है कि तुम मेरे साथ आ रही हो. सब लोग तुम से मिलने की राह देख रहे हैं. सच तुम भी वहां चल कर बहुत खुश होगी.’

‘मुझे नहीं जाना तो जबरदस्ती क्यों कर रहे हो,’ वह उत्तेजित हो कर बोली.

मैं मायूस हो कर रह गया. मैं यह बात अच्छी तरह जानता था कि मारिया अब मेरे साथ नहीं जाएगी क्योंकि जिस बात को वह एक बार मन में बैठा ले उस पर फिर से विचार करना उस ने सीखा नहीं था.

सुबह काम करने वालों के शोर के साथ ही मेरी निद्रा टूटी. बहन की शादी की घर पर चहलपहल तो थी ही.

बहन को विदा करने के साथसाथ मैं भी पूरा थक चुका था. जब से यहां आया ठीक से मांबाबूजी के पास बैठ भी नहीं सका. मां का पुराना कमर दर्द फिर से उभर कर सामने आ गया और मां बिस्तर पर पड़ गईं.

जैसेजैसे मेरे जाने के दिन करीब आते गए मांबाबूजी की उदासी बढ़ती गई. मेरा भी मन भारी हो आया और मैं ने छुट्टी बढ़वा ली. सभी लोग मेरे इस कुछ दिन और रहने से बहुत खुश हो गए परंतु मारिया नाराज हो गई.

‘‘राहुल तुम वापस आ जाओ. मेरा मन अकेले नहीं लग रहा है.’’

‘‘मारिया, अभी तो सब से मैं ठीक से मिला भी नहीं हूं. शादी की भागदौड़ में इतना व्यस्त रहा कि…फिर अचानक मां की तबीयत खराब हो गई. मैं ने छुट्टी 15 दिन के लिए बढ़वा ली है फिर न जाने कब यहां आना हो सके…’’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया.

कुछ दिनों बाद मारिया का फिर फोन आया. वह थोड़ा गुस्से में थी.

‘‘अब क्या हुआ?’’ मैं ने थोड़ा खीज कर पूछा.

‘‘पापा ने रविवार को मेरे और तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है और उस में तुम को आना ही पड़ेगा,’’ वह निर्णायक से स्वर में बोली.

‘‘मारिया, तुम समझती क्यों नहीं हो,’’ मैं ने थोड़ा गुस्से से कहा, ‘‘यह सब हठ छोड़ दो. मैं जल्दी ही वहां पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘नहीं राहुल, जब पापा को पता चलेगा कि तुम नहीं आ रहे हो तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. मैं ने ही जिद की थी कि आप पार्टी रख लो, राहुल तब तक आ जाएगा. उन के मन में तुम्हारे प्रति कितनी इज्जत है…’’

‘‘यही बात जब मैं ने तुम से कही थी कि मेरे घर वाले…’’

‘‘वह बात और थी डार्ल्ंिग…’’ मारिया बात को टालने की कोशिश करती रही.’’

‘‘नहीं, वह भी यही बात थी. सिर्फ सोच का फर्क है. हमारी परंपराएं इसीलिए तुम से अलग हैं. संयुक्त परिवारों की परंपराएं और एकदूसरे की भावनाओं का आदर करना ही हमारी सब से बड़ी धरोहर है.’’

‘‘देखो राहुल, तुम जानते हो कि यह सब मुझे बरदाश्त नहीं है. एक बार फिर सोच लो कि रविवार तक यहां आ रहे हो या नहीं.’’

‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ मैं ने स्पष्ट कहा.

‘‘फिर इस ढंग से तो यह रिश्ता नहीं निभ सकता. मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं है,’’ मारिया तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मारिया कि जो लड़की परिवार में घुलमिल नहीं सकती, मुझे भी उस की जरूरत नहीं है. मैं उन में से नहीं हूं कि विदेशी नागरिकता लेने के लिए अपनी आजादी खो दूं. अच्छा है मेरी तुम से शादी नहीं हुई.’’

मुझे आज लग रहा है कि उस से अलग हो कर मैं ने कोई गलती नहीं की है. मांबाबूजी की आंखों में मैं ने अजीब सी चमक देखी है. अपनी कंपनी से मैं ने अपने देश में ही ट्रांसफर करा लिया है.

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