News Kahani: क्या सोनम ही बेवफा है

News Kahani: चांदनी को छत्तीसगढ़ गए एक महीना हो गया था. अनामिका का जन्मदिन आने वाला था. उस ने सोचा कि क्यों न इस बार विजय को सरप्राइज दिया जाए. इधर विजय भी अनामिका के जन्मदिन की तैयारी कर रहा था. उस ने सोचा था कि दिल्ली में ही कोई होटल बुक करा कर रातभर मस्ती करेंगे. पर अनामिका के इरादे कुछ और ही थे. थोड़े से एडवैंचर से भरे.

जन्मदिन से एक दिन पहले विजय और अनामिका एक कैफे में कौफी पी रहे थे. तभी अनामिका बोली, ‘‘विजय, कल सुबह 11 बजे तैयार रहना. हमें कहीं जाना है.’’

विजय ने पूछा, ‘‘कहां? कोई खास काम?’’ वह आज जन्मदिन का जिक्र नहीं करना चाहता था, वरना उस का सरप्राइज खुल सकता था.

‘‘है कोई खास जगह. हम वहां स्कूटी से चलेंगे,’’ अनामिका बोली.

‘‘ओह, तो मैडम मुझे किसी  सीक्रेट जगह ले जाना चाहती हैं,’’

विजय ने अनामिका का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘ज्यादा रोमांटिक बनने की जरूरत नहीं है. हां, हम कल जिस जगह जा रहे हैं, वह किसी जन्नत से कम नहीं है और हां, हम शाम तक वहां से वापस भी आ जाएंगे,’’ अनामिका ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

अगले दिन विजय और अनामिका स्कूटी पर निकल पड़े अपनी उस जन्नत की तरफ.

‘‘सुनो, हम फरीदाबाद से चलेंगे. वहां से गुड़गांव के पहाड़ी वाले रास्ते पर अपनी मंजिल है. रास्ते में हनुमान की मूर्ति भी देखनी है. सुना है, बहुत बड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘हमें इतनी दूर जाना है… ऐसा क्या है उन सूखी पहाडि़यों में… सुनसान इलाका है,’’ विजय ने पूछा.

‘‘तुम चलो तो सही मेरी जान…’’ अनामिका ने विजय को गुदगुदी करते हुए कहा.

‘‘यार, स्कूटी चलाते हुए मुझे गुदगुदी मत किया करो. कहीं स्कूटी ठोंक दूंगा तो फिर मत कहना,’’ विजय ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘ओह, साहब को गुदगुदी हो रही है,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से चिपक गई.

सवा घंटे के बाद वे दोनों हनुमान की मूर्ति के आगे खड़े थे. सड़क किनारे थोड़ी ऊंचाई पर बड़े से हनुमान बैठे हुए थे. एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए. उन के सिर पर कोई छत नहीं.

‘‘देख लिया… अब चलें?’’ विजय ने अनामिका से पूछा.

‘‘तुम्हें पता है हनुमान के ज्यादातर मंदिरों में वे ऐसे बिना छत के क्यों रहते हैं?’’ अचानक से अनामिका
ने पूछा.

‘‘मुझे पता था यह सवाल जरूर आएगा. तुम ईश्वर को तो मानती नहीं, फिर भी यहां आई, कोई तो चक्कर है,’’ विजय ने कहा.

‘‘वह बात नहीं है. पर तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया,’’ अनामिका एकदम से बोली.

‘‘पता नहीं. मैं ने कभी इस नजरिए से सोचा नहीं,’’ विजय बोला.

‘‘पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लगता है कि हनुमान को राम का दास बताया है, इसलिए वे आज भी दास की तरह ऐसे बिना छत के मूर्ति के रूप में बैठे या खड़े रहते हैं. गरीबों को ऐसे ही दास देवताओं की पूजा करने का हक दिया जाता है,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या तुम भी अपने जन्मदिन पर इतनी गंभीर सोच में पड़ गई. इस मुद्दे पर फिर कभी बहस करेंगे. मुझे अच्छा लगेगा हनुमान की मूर्ति पर चर्चा करने में,’’ विजय ने कहा.

‘‘जैसे हमारे प्रधानमंत्री परीक्षा पर चर्चा करते हैं,’’ अनामिका हंसते हुए बोली.

‘‘अब चलें, शाम तक वापस भी आना है,’’ विजय बोला.

वहां से निकल कर वे दोनों पहले तो कुछ देर फरीदाबादगुड़गांव रोड पर चलते रहे, फिर आगे जा कर बाईं तरफ कैंप वाइल्ड रोड की तरफ मंगर गांव की ओर बढ़ गए. वहीं पर उन की मंजिल थी होटल ललित मंगर.

कैंप वाइल्ड रोड एकदम सुनसान थी. दोनों तरफ अरावली का जंगल.

कुछ ही देर में वे दोनों होटल ललित मंगर पहुंच गए. बड़ा ही खूबसूरत  होटल था.

होटल के दरबान ने उन दोनों को स्कूटी पर देखा, तो उसे लगा कि शायद यहां भटक कर आ गए हैं, क्योंकि वहां तो अमूमन लोग बड़ी गाडि़यों में ही आते थे.

जब वे दोनों स्कूटी को पार्किंग में लगा कर भीतर जाने लगे, तो दरबान ने अदब से पूछा, ‘‘जी, यहां कैसे?’’

विजय पहले ही थक चुका था और अनामिका के सरप्राइज से भी बेखबर था, तो झल्ला गया और बोला, ‘‘क्यों, यहां आना बैन है क्या? इन मैडम से पूछिए कि इस सुनसान जंगल में मुझे क्यों लाई हैं…’’

अनामिका हंसी और दरबान से बोली, ‘‘हम ने 2 लोगों के लंच का रिजर्वेशन करा रखा है.’’

‘‘जी मैडम,’’ इतना कह कर दरबान ने उन को ‘वैलकल’ कहा.

होटल बहुत शानदार था. रैस्टोरैंट भी खूबसूरत था. अनामिका ने वहां के मैनेजर से बात की और विजय के साथ अपनी रिजर्व्ड सीट पर आ कर बैठ गई. थोड़ी देर में एक वेटर केक ले आया.

विजय केक देख कर हैरान रह गया. उसे सब समझ में आ गया. अनामिका ने केक काटा. फिर उन दोनों ने लंच किया.

विजय को बहुत अच्छा लगा. वह बोला, ‘‘वाह अनामिका, यह सरप्राइज तो शानदार था. पर यार, यहां तो बहुत देर हो गई. 3 बजने वाले हैं. अब निकलते हैं. घर भी टाइम से पहुंचना है.’’

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है. मैं अभी आई,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से थोड़ा दूर जा कर खड़ी हो गई और फोन पर किसी से बातें करने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी?’’ जब अनामिका पास आई, तो विजय ने पूछा.

‘‘पापा से,’’ अनामिका बोली और विजय का हाथ पकड़ कर होटल घूमने की जिद करने लगी कि यहां आए हैं तो कुछ फोटो ही क्लिक कर लेते हैं. अपनी यादगार के लिए.

विजय बेमन से उठा और अनामिका के साथ चल दिया. अनामिका ने वेटर से कहा कि यह केक पैक कर दो, फिर वे होटल में यहांवहां घूमते हुए फोटो क्लिक करने लगे.

इस तरह वहीं शाम के 5 बज गए. विजय ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अब चलें… घर जातेजाते रात के 8 बज जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, हम अब चलते हैं,’’ अनामिका ने फोन में कोई मैसेज करते हुए कहा.

अभी वे दोनों स्कूटी से कुछ दूर गए ही थे कि अनामिका बोली, ‘‘जरा स्कूटी रोकना. मुझे वाशरूम जाना है.’’

‘‘पर यहां जंगल में कहां वाशरूम मिलेगा…’’ विजय ने कहा.

‘‘अरे, इतना बड़ा जंगल है. यहीं कर लेती हूं. तुम बस स्कूटी रोक दो,’’ अनामिका बोली.

‘‘तुम भी न यार,’’ इतना कह कर विजय ने सड़क किनारे स्कूटी रोक दी. अनामिका जंगल के कुछ अंदर चली गई.

जब कुछ देर हो गई और अनामिका बाहर नहीं आई, तो विजय को चिंता हुई. वह जंगल के अंदर जाने ही वाला था कि सामने से एक कार आई. उस में 4 मुस्टंडे टाइप लड़के बैठे थे.

‘‘अबे, यहां अकेले में क्या कर रहा है?’’ कार रोक कर एक लड़के ने पूछा.

‘‘तुम से मतलब…’’ विजय ने कहा.

इतने में अनामिका भी वहां आ गई. उसे देख कर दूसरे लड़के ने कहा, ‘‘यहां तो जंगल में मंगल हो रहा है और यह लड़का हम से कह रहा है कि तुम से मतलब. जहां लड़की, वहां हम.’’

इस के बाद उन लड़कों ने कार सड़क किनारे रोक दी और बाहर आ कर अनामिका से बदतमीजी करने लगे. यह देख विजय घबरा गया.

इतने में उन में से 2 लड़कों ने अनामिका को कस कर पकड़ा और जबरदस्ती जंगल में ले जाने लगे.

अनामिका चिल्लाई और बोली, ‘‘मुझे हाथ भी लगाया, तो विजय तुम सब को जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’

पर सच कहें तो विजय की घिग्घी बंधी हुई थी. वह अकेला क्या कर लेता. उस की तो आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘इसे कुछ मत करो. आज इस का जन्मदिन है. यह मेरे भरोसे यहां आई है.’’

तभी एक लड़के ने विजय को तमाचा जड़ दिया और बोला, ‘‘अबे, कैसा आशिक है तू. तेरी गर्लफ्रैंड को तुझ पर इतना भरोसा है और तू डर के मारे थरथर कांप रहा है. क्यों अनामिका, क्या किया जाए तेरे विजय बाबू के साथ?’’

‘‘तुम हम दोनों का नाम कैसे जानते हो?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

विजय का इतना कहना था कि वे सब खिलखिला कर हंस दिए. अनामिका सब से ज्यादा हंस रही थी. वह बोली, ‘‘अरे, मेरे डरपोक आशिक. ये सब मेरे दोस्त हैं. हम सब ने तुम्हारे साथ प्रैंक किया है.’’

यह सुन कर विजय की सांस में सांस आई. अनामिका ने उन सब का परिचय विजय से कराया. दरअसल, वे अनामिका के दोस्त थे, जिन्हें विजय नहीं जानता था. उन सब ने विजय से ‘सौरी’ बोलते हुए कहा कि दिल पर मत लेना. हम ने तो वही किया, जो अनामिका ने हम से कहा था.

‘‘पर विजय, मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम तो कुछ ज्यादा ही घबरा गए,’’ अनामिका बोली.

‘‘मुझे तुम्हारी चिंता थी,’’ विजय धीरे से बोला.

‘‘क्यों… मुझे क्या हो जाता? ओह, शायद तुम्हें शिलांग वाला मामला याद आ गया, जिस में लड़के की लाश मिली और लड़की गायब…’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सा मामला? मैं समझा नहीं?’’ विजय ने पूछा.

‘‘चलो, कहीं बैठ कर बात करते हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘हमारा केक तो बचा कर लाई है न?’’ उन चारों में से एक लड़के ने अनामिका से पूछा.

‘‘लाई हूं बाबा, हम ने पैक करा लिया था,’’ अनामिका बोली.

अब वे 6 जने एक सस्ते से ढाबे पर बैठ कर चाय पी रहे थे.

विजय ने अनामिका से पूछा, ‘‘यह शिलांग वाला मामला क्या है?’’

अनामिका ने कहा, ‘‘यह बड़ा ही खौफनाक कांड है. एक जोड़ा हनीमून मनाने शिलांग गया था, पर वहां कुछ ऐसा घटा कि सुनने वाले के रोंगटे खड़े हो जाएं.’’

‘‘यार, खबरिया चैनलों की तरह सनसनी मत फैलाओ. जो भी बात है वह बताओ न…’’ विजय ने पूछा.

‘‘तो सुनो… राजा रघुवंशी मर्डर केस की कहानी मध्य प्रदेश से शुरू होती है. जानकारी के मुताबिक, राजा और सोनम की शादी 11 मई को इंदौर में हुई थी. उस के बाद दोनों पतिपत्नी 20 मई को हनीमून के लिए मेघालय जाते हैं. यहीं से कहानी मोड़ लेती है.’’

‘‘क्या मोड़ लेती है?’’ इस बार अनामिका के एक दोस्त ने उस से पूछा.

‘‘मेघालय पहुंचने के बाद ऐसा कुछ हुआ कि इन दोनों की अपने परिवार वालों से कोई बातचीत नहीं होती है. न फोन आता है और न ही फोन जाता है. इस से राजा और सोनम के परिवार  वालों को चिंता सताने लगी कि क्या हुआ. ये लोग पुलिस के पास शिकायत ले कर पहुंचे.

‘‘पुलिस ने तेजी दिखाते हुए ऐक्शन शुरू किया. सभी सीसीसटी फुटेज देखे गए. कुछ दिन बाद पुलिस को एक स्कूटी मिली, जो सोनम और राजा ने किराए पर ली थी.

‘‘पुलिस ने मामले को संदिग्ध मानते हुए तलाशी अभियान तेज कर दिया. जंगलों में भी सर्च आपरेशन चलाया गया.’’

‘‘ओह, देश में इतना सनसनीखेज कांड हो गया और हमें भनक तक नहीं लगी,’’ अनामिका के दूसरे दोस्त ने कहा.

‘‘तुम ने पिछली बार अखबार कब पढ़ा था?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘याद नहीं. मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि हमारे घर में अखबार कौन सा आता है,’’ उस दोस्त ने जवाब दिया.

अनामिका ने उस दोस्त को घूरा, फिर आगे बोली, ‘‘28 मई को पुलिस को जंगल में 2 बैग लावारिस हालत में मिले. इन की पहचान कराई गई, तो सोनम के भाई और राजा की मां ने एकएक बैग को पहचान लिया.

‘‘अब तो यह मामला और ज्यादा पेचीदा होने लगा था कि आखिर सोनम और राजा कहां गए? फिर अचानक 2 जून को विजाडोंग इलाके से राजा रघुवंशी की लाश मिली. राजा की बौडी पर बने एक टैटू के चलते उस की पहचान हो सकी.

‘‘वहीं, राजा की लाश के पास से एक सफेद शर्ट, मोबाइल की टूटी स्क्रीन भी पुलिस ने बरामद की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा की मौत हादसा नहीं, बल्कि हत्या है.

‘‘पुलिस को अब सोनम की तलाश थी. उस का कुछ भी अतापता नहीं चल रहा था. ऐसा माना जा रहा था कि सोनम भी किसी हादसे का शिकार हो गई है. ऐसी भी अफवाह उड़ी थी कि राजा को मार कर हत्यारे सोनम को बंगलादेश ले गए होंगे. लेकिन पुलिस सभी तथ्यों पर जांच कर रही थी.’’

‘‘करनी भी चाहिए. लोग शादी के बाद हनीमून मनाने के लिए इसलिए कहीं जाते हैं कि पतिपत्नी एकदूसरे को समझ सकें. उन का बंधन और ज्यादा मजबूत हो जाए,’’ विजय ने कहा.

इस पर अनामिका ने कहा, ‘‘पर यहां तो इस कांड में नया मोड़ आने वाला था.  मेघालय के मुख्यमंत्री कौनराड के. संगमा ने ट्वीट कर के बताया कि 7 दिन की मशक्कत के बाद मेघालय पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है. पुलिस ने 4 हमलावरों को गिरफ्तार किया है. वहीं, एक औरत ने भी सरैंडर किया है.’’
‘‘किस औरत ने?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मेघालय की डीजीपी ने बताया कि राजा रघुवंशी की हत्या में उस की पत्नी सोनम का हाथ है. उसी ने हत्या करवाई है. इस के बाद मोड़ तब आया जब सोनम ने गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के एक ढाबे से अपने घर फोन किया और बताया कि वह यहां है.

‘‘सोनम के भाई ने तुरंत इंदौर पुलिस को इस बात की जानकारी दी. पुलिस ने गाजीपुर पुलिस से संपर्क किया और सोनम को वन स्टौप सैंटर भेज दिया गया.

पुलिस ने सोनम का सब से पहले मैडिकल कराया. उस में पता चला कि सोनम के शरीर पर कहीं भी चोट का एक निशान नहीं है यानी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई.

‘‘पुलिस ने फौरन सोनम को हिरासत में लिया और पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस यह भी जानना चाहती थी कि वह गाजीपुर तक कैसे पहुंची.’’

‘‘पर यह तो पुलिस बोल रही है. सोनम क्या कहती है और इस हत्याकांड के पीछे की असली वजह क्या है?’’ विजय ने पूछा.

अनामिका बोली, ‘‘सोनम तो खुद को बेकुसूर बता रही है. पर अगर पुलिस की मानें तो सोनम और राज नाम के एक लड़के के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. पिता के हार्ट पेशेंट होने से सोनम लवमैरिज नहीं कर पा रही थी.

‘‘पिता अपने समाज में उस की शादी करना चाहते थे, इसलिए उस ने राजा से शादी को हां कर ली थी. उस ने पहले ही तय कर लिया था कि शादी के बाद राजा को मार कर राज के साथ रहने लगेगी.

‘‘सोनम ने राज से कहा था कि जब मैं विधवा हो जाऊंगी, फिर तुम मुझ से शादी कर लेना. तब मेरे परिवार वाले भी हमारी शादी के लिए मान जाएंगे.’’

‘‘यह क्राइम स्टोरी तो बड़ी पेचीदा है. जब तक यह केस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचेगा, तब तक कुछ न कुछ नया ही सुनने को मिलेगा,’’ अनामिका के एक दोस्त ने कहा.

‘‘तब की तब देखेंगे, फिलहाल तो हमें निकलना चाहिए. हम पहले ही लेट हो गए हैं,’’ विजय ने कहा.
अनामिका बोली, ‘‘ठीक है, अब घर चलते हैं.’’ News Kahani

Hindi Family Story: काकुली

Hindi Family Story, लेखक – एसी ठाकुर

जब वह मिली तो बहुत उदास सी लगी थी. अलबत्ता वह मां तो बन चुकी थी. एक खूबसूरत बेटी थी उस की गोद में. ठीक उसी की तरह बड़ीबड़ी आंखें और हलकी चपटी नाक. वह गुमसुम बैठी कहीं खोई हुई थी.
‘‘कब आई हो?’’ न चाहते हुए भी मैं ने ही पहले टोक दिया.

मेरी आवाज सुन वह जैसे कहीं से तुरंत वापस हुई हो, बोली, ‘‘ओह, आप हैं… नमस्कार…’’ थोड़ी सी सूखी मुसकराहट उस के होंठों पर तैर गई. उस ने अपने पल्लू को तुरंत ठीक किया. अपने माथे को पोंछने के अंदाज में हाथ फिराया. सहज होने की भरसक कोशिश की. कुछ पलों की यह कोशिश बहुतकुछ कह गई.

‘‘आप बैठिए न,’’ कहते हुए वह सोफे पर एक किनारे खिसक गई.

‘‘कब आई हो?’’ मैं ने सवाल दोहराया.

‘‘कल ही तो…’’

‘‘क्या आनंद बाबू भी आए हैं?’’

उस ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘तो फिर किस के साथ आई हो?’’

इस बार उस की नजरें झुक गईं. चेहरे पर बल पड़ता दिखाई दिया. फिर वह बोली, ‘‘अकेली.’’

‘‘सच? वाह, तब तो तुम बहुत होशियार हो गई हो.’’

‘‘होशियार हुई नहीं, होने जा रही हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब जानना चाहेंगे?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मैं ने आप के आनंद बाबू से तलाक ले लिया है.’’

‘‘क्या?’’ मैं हैरानी से उसे देखता रह गया.

‘‘यह सच है…’’ वह धीरे से बोली.

यह सुन कर मेरी धड़कन तेज हो गई.

‘‘मैं दोबारा अपनी जगह वापस आना चाहती हूं. लेकिन कुछ वक्त के बाद. पहले मैं अकेली थी, अब मेरी छोटी सी बेटी भी है. इतना ही नहीं, पहले मैं घमंडी थी, अब ऐसी बात नहीं है,’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘लेकिन ठहरिए, क्या मेरी ‘जगह’ मुझे अपना लेगी? यही चिंता है…’’

‘‘तुम्हें हैरानी होगी कि उस ‘जगह’ को भूचाल भी नहीं बदल सका. वह न हिली है, न डुली है. आज भी पहले जैसी है,’’ इस बार अनचाहा सन्नाटा छा गया.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे आंखें चारों ओर घुमाईं. उस वक्त कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा था. वह घर अतीत को हूबहू जीने लगा था.

मैं यानी किशन और काकुली साथसाथ पढ़ते थे. मैं था शांत और वह नटखट. मैं पढ़ने में तेज और वह नाचने और गाने में. वह पिता की तीसरी और आखिरी औलाद थी. 2 बड़े भाई थे. वह घरभर की दुलारी थी, बड़े बाप की बेटी. घर में किसी चीज की कमी न थी.

मेरे पिता की काकुली के पिता से दोस्ती थी. मैं बचपन से ही वहां आताजाता था, कोई रोकटोक नहीं. सच पूछिए, तो कब हम दोनों में प्यार हुआ, जानता नहीं.

समय बीता. काकुली पीछे छूट गई, मैं आगे बढ़ा. मैं बैंक में अफसर बन गया. मेरी शादी हुई. बीवी काफी वक्त साथ रही. खुश थी. मुझे बहुत मानती थी. किंतु एक बात उसे बरदाश्त नहीं थी कि मैं काकुली की खूबसूरती का बखान करूं. इस बात पर वह रूठ जाती थी.

काकुली का तब तक मुझ से और मेरा उस से लगाव भर बाकी था. वह कभीकभार मेरी बीवी से
मिलने के बहाने आ जाती थी.

एक दिन पत्नी ने काकुली से कहा था, ‘‘तुम रविवार को मेरे यहां मत आया करो.’’

काकुली हंस कर टाल गई थी, पर चोट गहरी थी.

बैंक के अफसर को फुरसत कम ही मिल पाती है, इसलिए बीवी कहती, ‘‘एक तो काकुली है और यह बैंक भी मेरी सौत हो गया है.’’

इस बात पर हम दोनों हंसते थे, किंतु इस में कहीं न कहीं सचाई थी. फिर भी, हम दोनों में काफी मेलमिलाप था.

किंतु, कुदरत का विधान मेरे लिए कुचक्र रच चुका था. मेरी पत्नी मां बनने वाली थी. दर्द शुरू होते ही डाक्टर के यहां ले गया.

डाक्टर ने जांच के बाद बताया, ‘‘बच्चा पेट में मर चुका है. जच्चा बच जाए, यही काफी है. हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं.’’

उसी दरमियान मेरी बीवी ने हमेशाहमेशा के लिए आंखें मूंद लीं.

घर में कुहराम मच गया. मैं पागल सा हो गया. काकुली, उस की मां और दूसरे सभी लोग आए. सब ने
धीरज बांधने की पूरी कोशिश की.

मैं ने बैंक से छुट्टी ले ली. माहौल बदलने के लिए पिताजी और काकुली की मां की जिद पर उस के यहां भी भेज दिया गया.

मैं धीरेधीरे सहज होने लगा. काकुली ने अपनी भरपूर कोशिश से मुझे उदासी से दूर करना चाहा था. अब उस के साथ गुजरा पुराना जमाना भी मेरा पीछा करने लगा था.

कुछ दिनों बाद काकुली से मौका पा कर बोला, ‘‘मैं दूसरी शादी तुम से करना चाहता हूं.’’

काकुली ने मेरे हाथ झटक दिए और दूर हट गई.

‘‘याद करो वह दिन, जिस दिन तुम्हारी शादी थी,’’ वह अकड़ कर बोली, ‘‘मैं ने खबर भेजी थी कि तुम एक बार मुझ से मिलो, पर तुम ने साफ इनकार कर दिया था. मुझे तुम्हारे लिए हमदर्दी है, पर इस का मतलब…’’

‘‘मैं ने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया था…’’ मैं ने बीच में ही सफाई देनी चाही, ‘‘असल में, मैं बहुत परेशान था. वह शादी तो जबरदस्ती की थी… तुम सब जानती हो.’’

‘‘मैं सब जानती हूं,’’ काकुली गुस्से से बोली.

मैं उठ कर पिछले दिनों की तरह उसे पकड़ने लगा, उसे बांहों में भरना चाहा. पर वह छिटक गई और चीख कर बोली, ‘‘खबरदार, जो इस निगाह से फिर देखा,’’ और वह सीढि़यां उतरती चली गई.

मैं उस दिन बहुत रोया. मौका पा कर काकुली के सामने कई बार गिड़गिड़ाया, पर वह नहीं मानी.

मैं फिर दूसरी शादी नहीं कर पाया. पहली बीवी की याद तो आती ही थी, पर काकुली की याद भी सताती. बीवी के रूप में उसे ही देखा था.

कई बार मां ने समझाया, ‘‘किशन, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? दूसरी शादी कर लो.’’

पर मैं ने इनकार कर दिया था.

सोफे पर बैठाबैठा मैं गुजरे वक्त की यादों में डूबा हुआ था कि नौकरानी ने आ कर हम दोनों के सामने चाय रखी.

‘‘क्या सोच रहे हैं? आप चाय पीजिए,’’ चुप्पी तोड़ते हुए काकुली बोली.

मैं ने चाय लेते हुए कहा, ‘‘काकुली, यह ‘आपआप’ सुन कर मेरे कान पक गए.’’

वह चुप रही.

मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम ने अपने पति से तलाक क्यों लिया?’’

‘‘तलाक?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं तंग आ चुकी थी उन के बरताव से, उन की दौलत के नशे से, उन के दोस्तों से, उन की लत से. महीने में एक दिन आना, न आना, शराब पीना, छोटीछोटी बातों पर मुझे पीटना, गालियां देना,’’ काकुली गुस्से में बोल रही थी.

मुझे काकुली पर बहुत प्यार आ रहा था, वहीं डर भी हो रहा था कि कोई आ न जाए. मैं ने इधरउधर झांका, फिर आ कर उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘यकीन करो, तुम्हें पहली जगह जरूर मिलेगी.’’

मैं अपने रूमाल से काकुली के आंसू पोंछ ही रहा था कि सीढि़यों से किसी के आने की आवाज सुनाई दी. मैं छिटक कर दूर हट गया.

तभी नौकरानी काकुली की 6 महीने की बेटी को लिए अंदर आई और बोली, ‘‘यह जग गई थी, इसे भूख लगी है.’’

वह बड़ी प्यारी गुडि़या थी. मैं ने झपट कर उसे उठा लिया और चूमते हुए कहा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है.’’

बच्ची जोरजोर से चिल्लाने लगी. काकुली चुपचाप मुसकराते हुए हमें देखती रही. मैं बेखबर बच्ची को
चूमता रहा. Hindi Family Story

Hindi Kahani: धंधेवाली का दर्द

Hindi Kahani: सैक्स वर्करों के दर्द पर लेख तैयार करने के लिए विनय रैडलाइट एरिया पहुंचा. शहर की भीड़ से हट कर गंदी सी बस्ती में देह धंधे की एक ऐसी मंडी, जहां इनसानी सोच की बदबू को दबाने के लिए अलगअलग दड़बेनुमा कमरों से मोगरा, चमेली से ले कर रूम फ्रैशनर की मिलीजुली महक बाहर आ रही थी.

कम उम्र की लड़कियों से ले कर अधेड़ उम्र वाली औरतें सजधज कर ऐसे तैयार बैठी थीं, जैसे शोरूम में पुतले के ऊपर ब्रांडेड कपड़े नुमाइश के लिए रखे गए हों.

कस्टमर समझ कर हर कोई विनय को अपनी ओर लुभाने और रिझाने की कोशिश कर रही थी. किसी के चेहरे पर असली मुसकराहट थी, तो कोई बनावटी मुसकान बिखेर रही थी.

इसी दौरान सामने से आ रही जींसटीशर्ट पहने एक लड़की ने विनय की कमर में हाथ डाल दिया और बोली ‘‘साथ ले चलोगे या मेरे साथ चलोगे… फुलटाइम या पार्टटाइम?’’

विनय ने अपनी कमर से उस लड़की का हाथ हटाते हुए समझाया, ‘‘अरे, आप गलत समझ रही हैं. दरअसल, मैं एक पत्रकार हूं…’’

‘‘तो इस में समझना क्या है बाबू. पत्रकार ‘करते’ नहीं क्या?’’ इस भद्दी सी बात के साथ उस लड़की ने अपनी मुसकान बिखेरी.

विनय उस लड़की को समझाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘देखो…’’

‘‘दिखाओ…’’ बीच में ही टोकते हुए उस लड़की ने कहा और हंस पड़ी.

विनय झेंपते हुए बोला, ‘‘देखिए, मैं आप लोगों की जिंदगी पर एक प्रोजैक्ट तैयार कर रहा हूं, जिस से आप की बदहाली को सरकार तक पहुंचाया जा सके, ताकि सरकार आप लोगों के लिए अच्छी जिंदगी का इंतजाम कर सके.’’

‘‘अरे छोडि़ए साहब, हमारी इज्जत और जिंदगी को. हम तो नरक के पिल्लू हैं, नरक में ही जीना और नरक में ही मरना…

‘‘अब चलो, मजा लेते हैं. फुलटाइम सर्विस में कुछ डिस्काउंट दे दूंगी, आखिर पत्रकार जो ठहरे…’’ उस लड़की ने विनय की बात को हंसी में टालते हुए कहा और विनय की छाती पर हाथ फेरने लगी.

उस लड़की के इस बरताव से विनय काफी चिढ़ गया. वह गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम लोगों के भले के लिए कुछ तैयार कर रहा हूं, ताकि प्रशासन और सरकार के सामने उस रिपोर्ट को रख सकूं. मैं चाहता हूं कि तुम्हें सभ्य समाज में इज्जत की जिंदगी और रोजगार मिल सके और तुम धंधे की बात कर रही हो…

‘‘आखिर हो तो धंधेवाली ही न और वह तो समाज के बजाय कोठे पर ही अच्छी लगती है…’’ इतना कह
विनय वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘एक मिनट साहब,’’ पीछे से आवाज देते हुए उस लड़की ने विनय को रोका.

विनय अनमने ढंग से रुक गया. वह लड़की आगे बोली, ‘‘किस इज्जत और रोजगार की बात आप करते हैं साहब… कई बार दोबारा बसाने के नाम पर हमारी बस्तियों को तोड़ा गया है, लेकिन रोजगार तो मिलता नहीं कुछ…

‘‘धंधेवाली का लेबल लगा है, सो गांव में दुकान भी खोलना चाहें, तो लोग दुकानदार के बजाय हमें बिकाऊ माल ही समझते हैं और फिर पेट पालने के लिए नैशनल हाईवे, बसस्टैंड, लौज या धुलाई के लिए स्टेशन यार्ड में खड़ी रेलगाड़ी के डब्बों को ही अपना आशियाना बनाना पड़ता है… बात करते हैं दोबारा बसाने और रोजगार की.

‘‘और हां, यह जो समाज या सरकार की बात कर रहें है न आप, तो कभी आइए शाम में हमारे कोठे पर, फिर देखिए आप को आप का तथाकथित सभ्य समाज वहीं मिल जाएगा और आप के सरकारी नुमाइंदों की पतलून धंधेवालियों के पलंग के नीचे…

‘‘और रही बात सरकार की, तो वीआईपी और माननीय महोदय के लिए हर रात छोटी उम्र की सील पैक फ्रैश माल उन की सरकारी कोठी पर भेज दी जाती हैं…

‘‘अब आप ही बताओ कि अगर हमारी दुकान बंद हो जाएगी, तो तुम्हारी सरकार कैसे चलेगी?’’

उस लड़की के भद्दे और तीखे शब्दों की चोट में छिपे दर्द ने विनय को सभ्य समाज के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया. Hindi Kahani

Social Story In Hindi: भटका हुआ नेता

Social Story In Hindi अमन एक छोटे से कसबे से निकल कर बड़े शहर के नामी कालेज में आया था. वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए बहुत जोश में था, लेकिन कालेज का माहौल उस की उम्मीद से बिलकुल अलग था. वहां पढ़ाईलिखाई से ज्यादा दबदबे और राजनीति का जोर था.

कालेज के कुछ छात्र, जो खुद को ‘छात्र नेता’ कहते थे, पूरे कैंपस में अपनी धाक जमाए हुए थे. उन के पीछे लोकल नेताओं का हाथ था, इसलिए वे मनमानी करते थे और कोई भी उन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था.

अमन ने खुद को इन सब चीजों से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन ऐसे नेता हर जगह थे… क्लासरूम, कैंटीन, यहां तक कि लाइब्रेरी में भी.

वे पढ़ाईलिखाई के बजाय राजनीति और गुंडागर्दी में बिजी रहते थे.

क्लास में प्रोफैसरों से बहस करना और उन पर दबाव बनाना उन की आदत बन गई थी.

कई बार कालेज के ये तथाकथित छात्र नेता प्रोफैसरों के साथ बहुत ही गलत बरताव करते थे. वे अपनी मरजी से क्लासरूम में आतेजाते थे, फिर चाहे लैक्चर चल रहा हो या नहीं. जब भी प्रोफैसर उन्हें अनुशासन में रहने के लिए कहते, तो वे उलटा उन्हें ही धमकाना शुरू कर देते.

छात्र राजनीति का जाल ऐसा फैला कि कालेज की दीवारों पर नारे लिखे जाने लगे और क्लासरूम बहस का अड्डा बन गए.

रवि कालेज का सब से खतरनाक और असरदार छात्र नेता बन चुका था. कुछ ही समय में उस ने अपने ग्रुप के साथ कालेज पर ऐसा कब्जा जमा लिया था कि बाकी छात्र और यहां तक कि प्रोफैसर भी उस से डरने लगे थे. छात्र राजनीति में उस की पकड़ इतनी मजबूत हो गई थी कि लोग उसे ‘नेताजी’ कहने लगे थे.

रवि की दबंगई का आलम यह था कि उस की मौजूदगी में पूरा क्लासरूम सहम जाता था. उस का रवैया इतना खतरनाक हो चुका था कि वह किसी की भी इज्जत करने को तैयार नहीं था.

एक दिन जब प्रोफैसर शर्मा ने रवि को क्लास में देर से आने पर टोका, तो उस ने पूरी क्लास के सामने उन की बेइज्जती करनी शुरू कर दी.

‘‘आप को यहां पढ़ाने के लिए रखा गया है, हमारे बौस मत बनिए,’’ रवि ने तंज कसते हुए कहा.

प्रोफैसर शर्मा ने जब रवि को शांत रहने को कहा, तो वह और ज्यादा भड़क गया. गुस्से से उस ने जवाब दिया, ‘‘हमारी पौलिटिकल पहुंच का अंदाजा है आप को? हम चाहें तो एक फोन कर के आप का ट्रांसफर करवा सकते हैं.’’

यह सुनते ही क्लास में सन्नाटा छा गया. प्रोफैसर शर्मा भले ही उम्र में बड़े थे, लेकिन वे इस तरह की धमकियों से डरने वाले नहीं थे. उन्होंने शांत रहते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यहां पढ़ाई करनी चाहिए, राजनीति नहीं. यह तुम्हारे भविष्य के लिए सही नहीं है.’’

रवि हंसते हुए बोला, ‘‘आप का जमाना चला गया, सर. अब हम जैसे लोगों का वक्त है. देखना, इस कालेज में अब वही होगा, जो हम चाहेंगे.’’

रवि का असर धीरेधीरे पूरे कालेज पर दिखने लगा. उस की बातें हवा में उड़ती जरूर थीं, लेकिन उन के पीछे छिपी असंतोष की चिनगारी छात्रों के मन में गहरी पैठ बना रही थी. वह न केवल अपने विचारों से, बल्कि अपनी बोलने की कला और शानदार शख्सीयत से भी छात्रों को अपनी तरफ खींच रहा था. उस का ग्रुप, जो पहले केवल कुछ दोस्तों तक सीमित था, अब धीरेधीरे एक बड़ा और ताकतवर संगठन बनता जा रहा था.

रवि ने छात्रों को भरोसा दिलाया कि वे केवल पढ़ाईलिखाई के लिए नहीं, बल्कि अपने हकों के लिए लड़ने को भी कालेज में हैं. उस के इन विचारों ने एक क्रांतिकारी लहर को जन्म दिया. ‘छात्र एकता जिंदाबाद’ के नारों से कालेज की दीवारें गूंजने लगीं.

रवि ने कालेज प्रशासन के खिलाफ एक मजबूत मोरचा खड़ा कर दिया और छात्रों को यह यकीन दिलाया कि अगर वे संगठित रहेंगे, तो प्रशासन उन की किसी भी मांग को नजरअंदाज नहीं कर पाएगा.

छोटेछोटे मुद्दों को ले कर हड़तालें होना अब रोजमर्रा की बात हो गई थी. कैंटीन के बढ़े हुए दाम हों या लाइब्रेरी में किताबों की कमी, हर मुद्दा छात्रों के लिए अब एक बड़ा आंदोलन बन जाता. रवि का हर शब्द उन्हें जद्दोजेहद करने के लिए उकसाता.

धीरेधीरे कालेज में एक असंतोष की भावना बढ़ने लगी. छात्र खुद को पहले से ज्यादा ताकतवर महसूस करने लगे, लेकिन इस ताकत के साथ एक सवाल यह भी था कि क्या यह लड़ाई सही दिशा में जा रही थी?

इस उथलपुथल के बीच कालेज प्रशासन भी अब इस बढ़ते विद्रोह से निबटने की योजना बनाने लगा था.
प्रिंसिपल श्रीवास्तव इन घटनाओं से परेशान थे. उन्होंने कई बार रवि को समझाने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह उग्र प्रदर्शन करने की धमकी देता.

आखिरकार प्रिंसिपल ने सख्त कदम उठाते हुए रवि को कालेज से निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया.

यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई. रवि ने इसे अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश बताया और अपने दोस्तों को उकसाया, ‘‘देखो, कालेज प्रशासन हमें दबाना चाहता है. हमें मिल कर इस का जवाब देना होगा.’’

अगले ही दिन कालेज में छात्रों की एक बड़ी सभा हुई. नारे और तेज हो गए… ‘प्रिंसिपल मुर्दाबाद’, ‘छात्रों का शोषण बंद करो, बंद करो’.

रवि कालेज के बाहर धरने पर बैठ गया और राजनीतिक दलों ने इस का फायदा उठाते हुए उसे समर्थन देना शुरू कर दिया. लोकल नेताओं ने छात्रों के बीच भाषण दे कर आंदोलन को और भड़काया.

छात्रों में गुस्सा बढ़ गया और वे रवि के निलंबन को गलत मानने लगे. राजनीतिक दलों की दखलअंदाजी
से यह आंदोलन कालेज से बाहर निकल कर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया.

निलंबन के बाद रवि ने खुद को छात्रों का मसीहा बना लिया. धरने और प्रदर्शनों ने उस के राजनीतिक सफर की शुरुआत की और उस की लोकप्रियता बढ़ती गई.

स्थानीय दलों ने उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश की और जल्दी ही रवि ने एक मनचाही पार्टी चुन ली,
जिस से उस की पहचान और मजबूत हो गई.

जल्द ही रवि चुनाव प्रचार में जुट गया और उस के जोरदार भाषणों व छात्रों के समर्थन ने उसे राजनीति का उभरता सितारा बना दिया. रवि का असर अब कालेज से निकल कर सियासत के गलियारों तक पहुंच चुका था.

समय के साथसाथ उस राजनीतिक दल ने रवि को अपनी युवा विंग में शामिल कर लिया, जिस से उस का राजनीतिक सफर और तेज हो गया. वह अब सिर्फ छात्र नेता नहीं रहा, बल्कि लोकल राजनीति में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा.

जब भी किसी कालेज या यूनिवर्सिटी में कोई विवाद उठता, रवि तुरंत वहां पहुंच कर छात्रों को संगठित करता और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करता. उस की बढ़ती ताकत और असर ने उसे बड़े नेताओं के साथ मंच साझा करने का मौका दिया और वह राजनीति में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में नाम कमाता चला गया.

कुछ सालों बाद रवि स्थानीय चुनावों में खुद भी उम्मीदवार बन गया. उस की पहचान एक साहसी युवा नेता के रूप में बन चुकी थी, जिस का छात्र राजनीति से ऊपर उठ कर बड़ी राजनीति में कदम रखने का सपना था. आखिरकार, उस ने अपना पहला चुनाव जीता और वह विधायक बन गया.

विधायक बनने के बाद रवि के सामने बेरोजगारी दूर करने का वादा सब से बड़ी चुनौती बन गया. चुनाव प्रचार में उस ने नौजवानों को रोजगार का सपना दिखाया था, लेकिन सत्ता में आते ही हकीकत का सामना करना पड़ा. बेरोजगारी सिर्फ भाषणों से हल नहीं हो सकती थी, बल्कि इस के लिए तो नीतियों और इन्वैस्टमैंट की जरूरत थी. अनुभव की कमी के चलते रवि की शुरुआती कोशिशें सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहीं और वह ठोस समाधान पेश करने में नाकाम रहा.

रवि के समर्थक तब धीरेधीरे निराश होने लगे, जब उन्हें एहसास हुआ कि उस की राजनीति सिर्फ वादों पर टिकी थी, लेकिन उन्हें पूरा करने की ताकत उस में नहीं थी. चुनाव जीतने के बाद रवि के सियासी सपने बढ़े, लेकिन बेरोजगारी और पढ़ाईलिखाई जैसे असली मुद्दे अनदेखे रह गए.

बेरोजगारी से निबटने में नाकाम रवि का राजनीतिक कैरियर तो आगे बढ़ता गया, लेकिन वादे अधूरे रह गए. छात्रों में हताशा और गुस्सा पनपने लगा और वे खुद को उस के राजनीतिक एजेंडे का मोहरा महसूस करने लगे.

कई छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाशने लगे, तो उन्हें याद आया कि रवि ने वादे किए थे कि वह उन के लिए रोजगार के मौके पैदा करेगा. कुछ छात्र इस उम्मीद के साथ रवि के पास गए कि उस की राजनीतिक पहुंच और दबदबे से उन्हें आसानी से नौकरी मिल जाएगी.

लेकिन जब वे रवि से मिले, तो उन्हें हकीकत का सामना करना पड़ा. रवि अब एक बिजी और ताकतवर विधायक बन चुका था और उसे अपने शुरुआती समर्थकों की परवाह नहीं थी.

रवि ने कहा, ‘‘सरकार की नीतियां फिलहाल बदल रही हैं, इसलिए थोड़ा इंतजार करो. मैं तुम्हारे लिए जरूर कुछ करूंगा, लेकिन अभी समय सही नहीं है.’’

छात्रों को झूठे दिलासे और वादे मिलते रहे, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया.

रवि के कुछ दोस्तों ने छात्रों को बताया कि विधायकजी बहुत बिजी हैं, इसलिए वे महीनों तक रवि के दफ्तर के चक्कर काटते रहते और उन की फाइलें धूल खाती रहतीं. रवि के कुछ चाटुकार पैसे के बदले छात्रों को उस से मिलने का मौका देते थे.

कुछ मामलों में तो रवि ने साफसाफ कह दिया कि वह तभी मदद करेगा, जब छात्र उस के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होंगे. इस से छात्रों को एहसास हो गया कि रवि सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उन का इस्तेमाल कर रहा है.

रवि अब राजनीति में पूरी तरह रचबस गया था. उस के इर्दगिर्द हमेशा नए चेहरे रहते थे… कभी चमचों की टोली, तो कभी खूबसूरत लड़कियां. कालेज के दिनों से ही रवि की नजर लड़कियों पर रहती थी. विधायक बनने के बाद यह सब और भी बढ़ गया.

रवि की लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए कई लड़कियां खुद उस के करीब आने की कोशिश करती थीं. उन में से नेहा भी एक थी, जो कालेज में रवि की समर्थक थी. राजनीति का उसे भी चसका लग चुका था. उस ने सोचा कि रवि के करीब रह कर वह भी राजनीति में अपना कैरियर बना लेगी.

लेकिन रवि के लिए नेहा सिर्फ एक शौक थी. वह उसे कभीकभार अपने साथ मीटिंग में ले जाता, उस के हावभाव की तारीफ करता और फिर उसे नजरअंदाज करना रवि का रवैया बन गया था.

इसी तरह रवि को हर पड़ाव पर एक नई लड़की मिलती रही. उस के पास अपने लोगों के लिए समय नहीं था, क्योंकि वह हमेशा किसी न किसी लड़की की बांहों में रहता था. यहां तक कि लोग भी अपना काम करवाने के लिए लड़कियों को उस के पास भेजते थे.

मीरा, जो अपनी नौकरी में मदद मांगने रवि के पास आई थी, को रवि ने यह कह कर अपने करीब खींच लिया कि तुम्हारे जैसे सम?ादार लोगों को राजनीति में होना चाहिए.

मीरा को लगा कि रवि उस की प्रतिभा को पहचान रहा है, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे एहसास हुआ कि वह रवि की ‘सोशल मीडिया शोपीस’ थी, जिसे उस ने बेकार कर छोड़ दिया था.

बाद में कई छात्रों ने भी महसूस किया कि राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के चलते वे अपनी पढ़ाई और स्किल से दूर हो गए थे. जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गए, तो उन्हें यह एहसास हुआ कि उन के पास न तो सही जानकारी थी और न ही जरूरी काबिलीयत, जिस से वे नौकरी पाने की दौड़ में टिक पाते.

नतीजतन, बहुत से छात्रों को निराशा हाथ लगी. उन्होंने रवि से जो उम्मीदें लगाई थीं, वे मिट्टी में मिल गई थीं. उन की नौकरियों की तलाश अधूरी रही और वे धीरेधीरे यह समझने लगे कि रवि की राजनीति ने उन के भविष्य को संवारने के बजाय बरबाद कर दिया था.

रवि की फायदे की राजनीति ने कई छात्रों को छात्र राजनीति से हटा दिया. वे अब इसे पढ़ाईलिखाई और कैरियर के लिए हानिकारक मानने लगे थे.

जो छात्र पहले अपने हकों के लिए जद्दोजेहद करते थे, वे अब राजनीति से दूर हो कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगे. इस से छात्र राजनीति धीरेधीरे कमजोर हो गई.

कुछ समय बाद रवि के समर्थक ही उस के विरोधी बन गए. छात्रों ने कालेजों में रवि के खिलाफ पोस्टर लगाए और उसे धोखेबाज करार दिया. सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ लिखा गया. औनलाइन अभियान चला कर उस की नीतियों और वादों की कड़ी आलोचना की. नतीजतन, रवि अगला चुनाव बुरी तरह हार गया और उस की राजनीतिक जमीन खिसक गई.

रवि ने देखा कि अमन, जो कालेज के दौरान राजनीति से दूर रह कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था, अब एक आईएएस बन चुका था और समाज में इज्जत पा रहा था.

एक मुलाकात में अमन ने रवि को समझाया, ‘‘सच्ची कामयाबी लोगों की भलाई और अपने फर्ज निभाने में है, न कि केवल राजनीति में पद और पावर हासिल करने में.’’

रवि को एहसास हुआ कि अमन की मेहनत और अनुशासन ने उसे असली कामयाबी दिलाई, जबकि उस ने खुद सत्ता की भूख में अपना असली मकसद खो दिया था. Social Story In Hindi

Hindi Family Story: बहन बनी दुश्मन

Hindi Family Story: अफसाना का जब से अपने शौहर से तलाक हुआ था और वह उसे छोड़ कर अपने मायके आई थी, तब से उस के अंदर अपनी बहन शहाना के लिए एक अलग ही किस्म की जलन थी. वह नहीं चाहती थी कि शहाना का निकाह हो और वह खुश रहे.

शादी से पहले अफसाना मोटी और सांवले रंग की एक साधारण सी लड़की थी. उस की उम्र भी काफी हो चुकी थी. उस के लिए जो भी रिश्ते आते थे, वे अफसाना की जगह शहाना को पसंद करते थे, जिस से अफसाना की वक्त रहते शादी नहीं हो पा रही थी और उस की उम्र बढ़ती ही जा रही थी.

इस के उलट शहाना देखने में गदराए बदन के साथसाथ खूबसूरती का भंडार थी. जो भी उसे देखता, बस देखता रह जाता. बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.
अफसाना और शहाना की उम्र में 7 साल का फर्क था और उस के अम्मीअब्बू पहले अफसाना की शादी करना चाहते थे, ताकि सही वक्त पर उस की घरगृहस्थी बस जाए, तो उस के बाद शहाना के निकाह के बारे में सोचें.

वैसे भी अभी शहाना की उम्र सिर्फ 17 साल थी, जबकि अफसाना 24 पार कर चुकी थी. शहाना की खूबसूरती और चंचलता देख कर अब अफसाना के दिल में धीरेधीरे शहाना के प्रति जलन पैदा होने लगी थी और वह अंदर ही अंदर शहाना से कुढ़ने लगी थी, क्योंकि अपनी शादी न होने की वजह वह शहाना को ही मान रही थी, इसलिए वह उस के लिए अपने दिल में नफरत भरती जा रही थी.

कहते हैं न कि हर चीज का एक वक्त होता है, ठीक ऐसा ही अफसाना के साथ भी हुआ और आखिरकार उस का रिश्ता पक्का हो गया और जल्द ही अफसाना का निकाह सुहेल से हो गया और वह दुलहन बन कर अपनी ससुराल पहुंच गई.

सुहेल के साथ शादी होने के बाद अफसाना जितना खुश थी, उस से कहीं ज्यादा उस के अम्मीअब्बू खुश थे, क्योंकि बड़ी मुश्किल से यह रिश्ता हुआ था.

सुहेल और अफसाना हंसीखुशी अपनी जिंदगी गुजार रहे थे. शादी को एक महीना बीत चुका था. शहाना भी अकसर अफसाना की सुसराल आतीजाती रहती थी. कभीकभार सुहेल भी अफसाना के साथ अपनी सुसराल आता रहता था.

शहाना जल्द ही सुहेल से काफी घुलमिल गई थी और खूब हंसीमजाक करने लगी थी. सुहेल भी धीरेधीरे उस की तरफ खिंचने लगा था.

इसी हंसीमजाक में सुहेल अकसर शहाना के नाजुक अंगों से भी छेड़छाड़ करता था और उस की उठी हुई मस्त छातियों पर हाथ तक फेरने से वह नहीं झिझकता था.

शहाना सुहेल की इस हरकत का बुरा नहीं मानती थी, तो सुहेल की हिम्मत बढ़ती चली गई.

एक दिन ऐसी घटना भी हो गई कि जिस ने अफसाना और सुहेल के बीच में ऐसी लकीर खींच दी, जिस से वे हमेशाहमेशा के लिए एकदूसरे से अलग हो गए.

हुआ यों था कि घर के सभी लोग कहीं बाहर गए थे. घर में शहाना और सुहेल के आलावा कोई नहीं था. अच्छा मौका देख कर सुहेल ने शहाना को अपनी बांहों में भरा और बिस्तर पर ले जाने लगा.

शहाना बोली, ‘‘जीजू, यह क्या कर रहे हो. छोड़ दो मुझे. दीदी को पता चलेगा तो वे बहुत गुस्सा होंगी. छोड़ दो मुझे. नीचे उतारो.’’

सुहेल ने अभी शहाना को गोद में उठा ही रखा था कि अचानक अफसाना अपने अम्मीअब्बू के साथ घर में आ गई.

शहाना को सुहेल की गोद में देख कर अफसाना का खून खौल उठा और वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘शहाना, तुम्हें शर्म नहीं आती अपने जीजू के साथ यह सब गंदी हरकत करते हुए…’’

शहाना बोली, ‘‘दीदी, मैं तो कब से जीजू को मना कर रही थी, पर ये ही जबरदस्ती मुझे अपनी गोद में उठा कर ले जा रहे थे.’’

यह सुनते ही अफसाना गुस्से से तिलमिला उठी और सब के सामने उस ने सुहेल के मुंह पर एक जोरदार तमाचा रसीद करते हुए उसे बुराभला कह कर घर से निकाल दिया.

बस, फिर क्या था. सुहेल को यह बात इतनी बुरी लगी कि कुछ ही दिनों में अफसाना और सुहेल का तलाक
हो गया.

अफसाना और उस के घर वालों ने सुहेल को बहुत समझाने की कोशिश की, अफसाना ने भी अपनी गलती की माफ़ी मांगी, पर सुहेल अपनी जिद पर अड़ा रहा.

अफसाना की जिंदगी देखते ही देखते बरबाद हो चुकी थी और उस के मन में शहाना के लिए नफरत भर चुकी थी.

घर वाले अब शहाना के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में लगे थे. कई रिश्ते आ भी रहे थे, पर जब भी वे शहाना को देखने आते तो अफसाना उन के सामने अपनी बहन की खूबसूरती की तारीफ करतेकरते यह भी बता देती कि शहाना इतनी खूबसूरत है कि इस के हुस्न के दीवाने कुंआरे ही क्या, शादीशुदा भी हैं. वह अपने शौहर वाली बात का भी जिक्र कर देती थी कि वे तो शहाना को गोद में उठाए फिरते थे.

अफसाना की ऐसी बातें सुन कर रिश्ते वाले रिश्ता करना तो दूर मुंह बना कर वहां से चले जाते थे.

शहाना समझ चुकी थी कि उस की बहन उस के लिए जलन रखती है. वह नहीं चाहती है कि उस का घर बसे और वह खुश रहे.

पर एक दिन अफसाना जब अपनी खाला के घर गई थी, तो शहाना को देखने वाले आए और उसे पसंद कर के उन्होंने रिश्ता तय कर दिया.

जब अफसाना को इस बात का पता चला तो वह उन के घर पहुंच गई और बोली, ‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, जो आप ने मेरी बहन को पसंद किया और शादी के लिए हां बोल दी.’’

लड़के ने कहा, ‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है. आप की बहन शहाना है ही इतनी खूबसूरत कि जो भी उसे देखे, बस देखता रह जाए.’’

अफसाना बोली, ‘‘आप ने एकदम सही कहा. शहाना जैसी खूबसूरत लड़की तो लाखो में एक होती है. उस की खूबसूरती के तो शादीशुदा मर्द भी दीवाने हैं.’’

लड़के के अब्बा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘क्या मतलब? हम समझे नहीं?’’

अफसाना ने कहा, ‘‘मेरे शौहर तो शहाना के ऐसे दीवाने थे कि उन्हें अपनी बीवी से ज्यादा उसी में लगाव था. उसे हर वक्त अपनी बांहों में उठाए फिरते थे और उसी की खातिर मुझे तलाक दे दिया.’’

यह बात सुन कर लड़के के अब्बा ने कहा, ‘‘कितने घटिया लोग हैं. हमें नहीं करनी ऐसी लड़की से शादी जो अपने जीजा के साथ रंगरेलिया मनाती हो.’’

अगले ही दिन उन लोगों ने शहाना से यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि हम तो इसे सीधीसादी लड़की समझ रहे थे. हमें क्या मालूम था कि यह अपने जीजा के साथ भी चक्कर चला चुकी है.

शहाना के घर वालों को यह समझते देर न लगी कि जरूर उन के कान अफसाना ने भरे हैं. अफसाना इस हद तक गिर जाएगी, उन्होंने सोचा भी न था.

इसी तरह 3 साल गुजर गए. न तो कोई अफसाना को ही अपना पा रहा था और शहाना का भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था. दोनों बहनें एकदूसरे से बहुत ज्यादा जलने लगी थीं.

थोड़ा वक्त और गुजरा तो शहाना के लिए एक जगह रिश्ता भी मिल गया. लड़का शाहिद शहाना के हुस्न का दीवाना बन बैठा था और वह किसी भी कीमत पर उस से शादी करने को तैयार था.

इस बार अफसाना की कोई भी बात उस रिश्ते पर नहीं चली. उन्होंने यह कह कर अफसाना को नजरअंदाज कर दिया कि शादी से पहले जो कुछ हुआ, उस से हमें कोई लेनादेना नहीं है.

अफसाना ने बात का रुख मोड़ते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या बात है. मुझे बहुत खुशी हुई आप लोगों से मिल कर. दरअसल, मैं भी खुले विचारों वाली ही हूं.’’

अगले दिन अफसाना शाहिद को फोन करते हुए बोली, ‘‘जीजू, क्या कर रहे हो. अगर फुरसत हो तो मेरे साथ बाजार चलो, कुछ खरीदारी करनी है.

शाहिद बोला, ‘‘ठीक है. मैं आप के घर आता हूं. वहीं से दोनों साथ चलेंगे.’’

अफसाना की चाल कामयाब हो गई. वैसे भी शहाना अम्मीअब्बू के साथ खरीदारी करने गई थी. अफसाना ने अपनेआप को संवारा और एक हलकी से गुलाबी रंग की ?ानी नाईटी पहन कर शाहिद के आने का इंतजार करने लगी.

कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक हुई. अफसाना ने फौरन दरवाजा खोला, तो सामने शाहिद खड़ा था.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप अंदर आ जाओ. अम्मीअब्बू शहाना को ले कर कहीं गए हैं.

शाहिद अफसाना का यह रूप देख कर हैरान था. उस की नजरें अफसाना की उठी हुई छातियों पर टिकी हुई थीं.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप क्या देख रहे हो…’’ फिर अपने बदन को शाहिद के करीब लाते हुए वह बोली, ‘‘आप क्या पियोगे जीजू?’’

शाहिद के बदन से जैसे ही अफसाना का बदन का छुआ, उस के बदन में एक अजीब बिजली दौड़ पड़ी. अफसाना भी मस्त हो रही थी.

अफसाना की यह अदा शाहिद के अंदर हवस का तूफान मचाने लगी. उस ने अफसाना की उठी हुई छातियों पर अपना हाथ रख दिया.

‘‘बस इतना ही करोगे क्या?’’ अफसाना सिसक कर बोली.

यह सुनते ही शाहिद ने अफसाना को अपनी बांहों में भर लिया और उस की छातियों पर अपने होंठ रख दिए.

अफसाना ने अपने बदन से नाइटी को ढीला कर दिया और खुद को शाहिद की बांहों में सौंप दिया.

शाहिद पागलों की तरह अफसाना के बदन का रसपान करते हुए उस के बदन से खेलने लगा.

अफसाना मौका देख कर शाहिद और अपने बीच चल रहे प्रेमप्रसंग के फोटो लेती रही.

दोनों जज्बात में बहते रहे और एकदूसरे के बदन से खेलते रहे. अपने बदन की प्यास बुझते ही शाहिद अचानक उठा और वहां से चला गया. अफसाना ने तब तक अपनी और शाहिद की रासलीला की वीडियो क्लिप तक बना ली थी.

शाम को जब शहाना और उस के घर वाले वापस आए, तो अफसाना ने अपने और शाहिद के बीच हो रहे प्रेमप्रसंग की वीडियो क्लिप अपनी बहन शहाना को दिखाते हुए कहा, ‘‘लो देखो अपने होने वाले शौहर की करतूत.’’

शहाना ने जैसे ही अफसाना और शाहिद के फोटो और वीडियो क्लिप देखी, तो वह फूटफूट कर रोने लगी और अपने अम्मीअब्बू से बोली, ‘‘मुझे नहीं करनी ऐसे आदमी से शादी, जो शादी से पहले ही मेरी बहन के साथ ऐयाशी करता हो.’’

इस तरह अफसाना ने शहाना का यह रिश्ता भी अपने जिस्म का सहारा ले कर तुड़वा दिया.

अफसाना के दिल को सुकून मिला और उस की शहाना के लिए पनपी जलन ने दोनों बहनों के रिश्ते को दुश्मनी की ऐसी आग में झोंक दिया, जिस में शहाना का घर कभी नहीं बस पाया. Hindi Family Story

Social Story In Hindi: अमीर भिखारिन

Social Story In Hindi: ‘‘यह क्या है? मैं 10 रुपए से कम नहीं लेती,’’ जैसे ही वरुण ने एक रुपए का सिक्का उस भिखारिन के हाथ पर रखा, तो यह जवाब सुन कर वह हैरान रह गया.

सफेद बालों वाली उस औरत के चेहरे पर तेज था और आवाज के साथसाथ भाषा पर भी अधिकार.
वरुण ने चुपचाप 50 रुपए का नोट निकाला और उस औरत की हथेली पर रख कर पूछा, ‘‘आप तो किसी अच्छे घर की जान पड़ती हैं, फिर यह भीख मांगना समझ नहीं आया?’’

50 रुपए के नोट को खोल कर परखती वह भिखारिन बोली, ‘‘मैं कभी एक अमीर घर से ताल्लुक रखती थी, पर अब मैं यह जो हूं, वह मैं हूं.’’

वरुण उस औरत के बगल में बैठ गया और बोला, ‘‘मैं एक पत्रकार हूं और एक लेखक भी. आप का इतिहास शायद एक उम्दा कहानी समेटे हुए है. अगर आप को एतराज न हो तो मेरे जिज्ञासु मन को शांत करने में मेरी मदद करेंगी?’’

वह औरत जोर से हंसी और बोली, ‘‘जरूर बताऊंगी, पर 500 रुपए फीस लूंगी. बोलो, मंजूर है?’’

वरुण ने जेब टटोली तो 200 रुपए का एक नोट मिला. उस औरत को नोट थमाते हुए वह बोला, ‘‘अभी मेरे पास इतने ही हैं. मैं फिर आ कर बाकी पैसे भी दे दूंगा, पर मुझे आप की कहानी अभी जानने की इच्छा है.’’

वह औरत इस बार धीरे से मुसकराई, कुछ पल वरुण के चेहरे को घूरा, फिर बोली, ‘‘चल, पप्पू चाय वाले के पास चलते हैं. वहां चाय की चुसकी लेते हुए बात करेंगे.’’

अब वे दोनों पैदल 400 मीटर दूर पप्पू चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ चले. चलते ही भिखारिन ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा नाम प्रभजोत कौर है, पर यहां हरिद्वार में मुझे जानने वाले ‘अमीर भिखारिन’ के नाम से ही जानते हैं. यहां मेरी खूब चलती है. सारे भिखारी मेरी बात मानते हैं. किसी का कोई झगड़ाटंटा होता है, तो मैं ही उस का निबटारा करती हूं. 5 साल हो गए मुझे यहां आए हुए, पर लगता है कि कई सालों से मैं यहीं रह रही हूं.’’

‘‘आप पहले कौन से शहर में रहती थीं?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘सब बताऊंगी, थोड़ा शांति से सुनो. मैं लुधियाना में पलीबढ़ी हूं. मेरे पिता बैटरी का बिजनैस करते थे. मैं पढ़ने में ठीकठाक थी, पर बाकी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

‘‘शुरू से ही मुझे खूबसूरत दिखने का शौक था, इसलिए 12वीं क्लास पास होते ही मैं ने ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. घर में किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए मनमरजी से जो करना चाहती, वह कर लेती थी.

‘‘2 साल में मैं ‘मिस लुधियाना’ और फिर ‘मिस चंडीगढ़’ बन गई. जिस दिन मैं ‘मिस चंडीगढ़’ बनी उसी दिन मेरी मुलाकात मनजीत से हुई. वह एक अमीर नौजवान था. उस के 4 शहरों में बड़ेबड़े होटल थे.
‘‘मनजीत मुझ पर फिदा हो गया था और मुझ से शादी करना चाहता था. मुझे भी वह पसंद आने लगा और हमारी शादी हो गई. मैं आजादखयाल लड़की अमृतसर के एक 15 लोगों के संयुक्त परिवार में रहने आ गई.’’

अब तक चाय का गिलास प्रभजोत कौर के हाथ में आ चुका था. उस ने एक गरम घूंट गले से उतारा और फिर कहना शुरू किया, ‘‘बहुत अमीर परिवार था. कार एजेंसी, होटल, टायर बहुत तरह के बिजनैस थे. बेहिसाब कमाई, महल जैसा घर, महंगी विदेशी गाडि़यां. कुलमिला कर मैं तो वहां की चकाचौंध में सब
भूल गई.

‘‘एक साल तो ऐसे ही बीत गया. मनजीत अकसर होटल के काम से बाहर जाता रहता था. मेरी सास बहुत खड़ूस थी. वह दिनभर ताने मारती रहती थी. मनजीत के घर पर न होने पर तो वह हद ही कर देती थी. मुझ से पता नहीं क्यों चिढ़ी रहती थी. शायद वह अपने बेटे का ब्याह किसी और लड़की के साथ कराना चाहती थी.’’

‘‘आगे क्या हुआ?’’ वरुण ने पूछा.

चाय का आखिरी घूंट भरते हुए प्रभजोत कौर ने चाय वाले को इशारा करते हुए कहा, ‘‘एक चाय और…’’ फिर गहरी सांस भरते हुए वरुण से बोली, ‘‘बस, फिर धीरेधीरे मेरे अपनी सास से संबंध खराब होते चले गए.

‘‘मैं ने भी ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दिया. अब आएदिन घर में क्लेश होने लगा. मनजीत ने बीचबचाव करने की कोशिश की, पर सुलह न हो सकी.

‘‘इस किचकिच से दूर रहने के लिए मैं ने फिर से मौडलिंग स्टार्ट कर दी. अब तो सास ने और तहलका मचाना शुरू कर दिया. उस ने मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाना शुरू कर दिया. मेरा घर पर रहना दूभर हो गया.

‘‘मैं ने कई बार मनजीत से अलग रहने की बात कही, पर वह हर बार साथ रहने के लिए मुझे मना लेता, क्योंकि कोई भी अब तक उस घर से अलग नहीं हुआ था, इसलिए वह यह बुराई अपने सिर लेने से बचना चाहता था.

‘‘मेरा मन बहुत बैचेन रहने लगा, पर कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था. एक दिन मौडलिंग करते हुए एक साथी ने मुझे दवा के नाम पर कोई नशीली चीज पिला दी. मैं तो जैसे दूसरी दुनिया के सुख में पहुंच गई. सबकुछ भूल गई. पहले हफ्ते में एक बार, फिर रोज ड्रग्स लेना शुरू हो गया.

‘‘एक दिन शाम को मैं ड्रग्स के नशे में घर पहुंची, तो घर पर सास अकेली थी. मुझे देखते ही वह मुझ पर राशनपानी ले कर चढ़ गई. ‘कुल्टा’, ‘कुलच्छनी’, ‘आवारा’ और न जाने वह मुझे कौनकौन सी गालियां दिए जा रही थी और बिना बोले मेरा गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ता जा रहा था.

‘‘जब सहा नहीं गया तो मैं ने किचन में जा कर बड़ा सा चाकू उठाया और सीधे अपनी सास के सीने में घोंप दिया. मेरे हाथों खून हो चुका था, पर मुझे बड़ा सुकून मिला. पर थोड़ी देर के बाद मु?ो अहसास हुआ कि मैं ने यह क्या कर दिया.

‘‘थोड़ी देर बाद ही मेरी एक जेठानी आई और फिर उस ने सब को बुलाया. मैं चुपचाप वहीं बैठी रही. पुलिस आई और मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. मेरे मातापिता ने भी मुझ से मुंह मोड़ लिया. 7 साल की जेल हुई. कोई मुझ से मिलने तक नहीं आया. मैं दिमाग से सुन्न हो चुकी थी.

‘‘7 साल की जेल से मैं बुरी तरह टूट गई. बाहर आई तो कोई लेने नहीं आया. अपनी ससुराल गई तो दुत्कार कर वहां से भगा दिया गया. मांबाप को फोन किया, तो उन के रूखे जवाब ने मेरा मन तोड़ दिया.

‘‘एक जोड़ी कपड़े और जेल में कमाए कुछ पैसे ले कर मैं ट्रेन में बैठ कर दिल्ली आ गई. मौडलिंग के कुछ जानकार लोगों से मदद की गुहार लगाने की कोशिश की, पर सब जगह मेरे किए गए कांड की खबर पहुंच चुकी थी.

‘‘दिल्ली में बिताए साल जहन्नुम से कटे. कभी भीख मांगी, कभी शरीर बेचा, तो कभी ?ाड़ूबरतन किए. बस, किसी तरह जिंदा थी.

‘‘मैं एक घर में झाड़ूपोंछा करती थी. वहां एक बूढ़ी माई को उस के बहूबेटा बहुत सताते थे. एक दिन उस ने मुझे हरिद्वार चलने के लिए पूछा, तो मैं ने अनमने मन से ‘हां’ कह दिया.

‘‘वह बुढि़या घर पर बिना बताए मेरे साथ हरिद्वार आ गई. हम कुछ महीने धर्मशाला में रहे, पर न उसे ढूंढ़ता कोई आया, न उसे किसी की याद आई. वह मेरा बच्चे की तरह खयाल रखती और मैं भी उस की आदर के साथ हर मदद करती. उस का अब यहीं रहने का मूड था और मुझे भी यह शहर भाने लगा था.

‘‘फिर एक दिन वह बुढि़या अचानक चल बसी. उन की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बिना उस के बेटे को बताए वहीं अंतिम संस्कार कर दिया. मैं फिर सड़क पर थी. अब तक सब शर्म, शिकवे और झिझक खत्म हो चुके थे. खुली जबान से इंगलिशहिंदी बोल कर लोगों से भीख मांगना शुरू कर दिया. अच्छी भीख मिलने लगी, पर अब पेट की भूख शांत करने के सिवा कोई चाह नहीं थी, तो भिखारियों से ही दोस्ती हो गई.

‘‘अब इन के साथ ही जिंदगी अच्छी कट रही है. अब ये ही मेरे दुखसुख के साथी हैं. मंडली में रोज कोई नया सदस्य जुड़ जाता है. सब कोई न कोई अलग कहानी समेटे हुए हैं. इन के साथ प्यारमुहब्बत से रहना सीख रही हूं,’’ ऐसा बोलते हुए प्रभजोत कौर ने एक लंबी सांस खींची और चुप हो गई.

वरुण भी कुछ देर खामोश रहा, फिर बोला, ‘‘आप के मातापिता ने भी कभी आप को तलाशने की कोशिश
नहीं की?’’

‘‘बाबू, यह दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती. सब अपने तरीके को सही मानते हुए जीते हैं. पर यहां आ कर मुझे समझ आया कि जीना सिर्फ अपने लिए नहीं होता, बल्कि यह तो दूसरों के लिए होता है.

‘‘यहां मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी मैं दिल से अमीर हूं, इसलिए लोग मुझे ‘अमीर भिखारिन’ कहते हैं…’’

यह कहते हुए प्रभजोत कौर ने अपने हाथ में रखा 200 रुपए का नोट वरुण को लौटाते हुए कहा, ‘‘अभी इस की तुम्हें ज्यादा जरूरत है. मेरे लिए तो यह 50 रुपए का नोट ही काफी है. तुम्हें और तुम्हारी इनसानियत को परखने के लिए मैं ने ये पैसे लिए थे.

‘‘मैं उम्मीद करती हूं कि तुम्हें एक कहानी लिखने का अच्छा मसाला मिल गया होगा. हां, इस की न्यूज मत बनाना, क्योंकि गुमनामी में जीने का जो मजा है, वह ज्यादा पहचान के साथ नहीं है. यह मैं दोनों को अनुभव करने के बाद कह रही हूं. यह ‘अमीर भिखारिन’ तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देती है.’’ Social Story In Hindi

Hindi Family Story: यह तो पागल है

Hindi Family Story: अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

 

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए.

2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी.

6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, उस के विचारों में है. उस के गंदे संस्कारों में है जो उस की मां ने उसे विरासत में दिए. सर, मां की प्रयोगशाला में बेटी पलती और बड़ी होती है, संस्कार पाती है. अगर मां अच्छी है तो बेटी भी अच्छी होगी. अगर मां खराब है तो मान लें, बेटी कभी अच्छी नहीं होगी. यही सत्य है.

‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते. Hindi Family Story

Short Story: भयानक सपना – क्या मनोहर जानता था कि आगे क्या होने वाला है

Short Story: हमेशा की तरह इस बार फिर धुंध गहरी होने लगी और चारों ओर सन्नाटा छा गया. मनोहर अच्छी तरह जानता था कि आगे क्या होने वाला है, पर फिर भी न जाने किस डर के कारण उस के दिल की धड़कन तेज होने लगी. धुंध के साथसाथ ठंड भी बढ़ने लगी और मनोहर कांपने लगा. लगता था कि सारी दुनिया एक सफेद बर्फीली चादर से ढक गई है. कोहरे के बीच में अचानक एक काला साया नजर आया, जो मनोहर की ओर धीरेधीरे बढ़ने लगा. यह जानते हुए भी कि उसे कोई खतरा नहीं है, मनोहर वहां से घूम कर भागना चाहता था, पर उसे लगा कि उस के पैर वहां जम ही गए थे.

साया मनोहर के पास आया और उस का चेहरा साफ दिखाई देने लगा. यह वही चेहरा था जो उस ने पहली बार कभी न भूलने वाली रात को देखा था. मासूम सा चेहरा था. एक 16-17 साल के लड़के का. मनोहर की तरफ उस ने उंगली से इशारा किया. ठंड के बावजूद मनोहर पसीनापसीना हो गया. 

‘तुम ने मुझे मारा. तुम ही मेरी मौत के जिम्मेदार हो. तुम्हें इस का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा. तुम्हें मेरी मौत की कीमत चुकानी पड़ेगी,’ लड़के ने मनोहर पर इलजाम लगाया.

‘पर गलती मेरी नहीं थी,’ मनोहर ने अपने ऊपर लगे अभियोग का विरोध किया.

‘गलती चाहे जिस की भी थी पर मारा तो तुम ने ही मुझे,’ लड़के ने दबाव डालना जारी रखा.

‘मैं क्या करता. तुम अचानक बिना कोई चेतावनी दिए…’ मनोहर ने जवाब देना शुरू किया, पर हमेशा की तरह उस की बात पूरी तरह बिना सुने लड़का धुंध में गायब हो गया. मनोहर चौंक कर उठा. पसीने से उस का बदन गीला था. वह जानता था कि अब कम से कम डेढ़दो घंटे तक वह सो नहीं पाएगा. यही सपना उसे हफ्ते में 2 या 3 बार आता था, उस हादसे के बाद से. मनोहर ने सोचा कि वह उस रात को कभी भूल नहीं सकेगा. धीरेधीरे वह गहरी सोच में डूबता गया…हौल खचाखच भरा था. पार्टी खूब जोरशोर से चल रही थी. लोग विदेशी संगीत पर नृत्य कर रहे थे पर बातचीत के शोर के कारण ठीक से कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था. जितने लोग मौजूद थे, चाहे मर्द हों या औरत, तकरीबन सब ने हाथ में गिलास पकड़ रखा था. शराब पानी की तरह बह रही थी. एक कोने में खड़ा मनोहर बिना कोई खास रुचि के तमाशा देख रहा था. मनोहर का दोस्त अशोक उस के पास आया और उस ने उसे एक गिलास पकड़ाने की कोशिश की.

‘तुझे अकेले खड़े बोर होते हुए देख कर मुझे बहुत दुख होता है,’ उस ने कहा, ‘यह ले व्हिस्की, पी. शायद यह तुझे किसी लड़की से बात करने की हिम्मत दे.’ मनोहर ने सिर हिलाया, ‘तुम जानते हो कि मैं शराब बहुत कम पीता हूं. और पार्टी के बाद, जब कार खुद चला कर घर जाना होता है, जैसाकि आज, तब तो मैं शराब की तरफ देखता भी नहीं हूं.’

‘छोड़ यार,’ अशोक ने फिर गिलास मनोहर की ओर बढ़ाया, ‘एक पैग से क्या होता है. मैं तो हर पार्टी में 5-6 पैग पी कर भी कार चला कर सहीसलामत घर पहुंचता हूं.’ मनोहर मना करता गया, पर अशोक नहीं माना. आखिर में तंग आ कर मनोहर ने काफी अनिच्छा से गिलास ले लिया. शामभर मनोहर ने बस वही एक पैग धीरेधीरे पिया, जिस का असर उस पर तकरीबन न के बराबर था. रात काफी हो चुकी थी. जब मनोहर ने होटल की पार्किंग से अपनी गाड़ी निकाली और घर की तरफ चला, हलका कोहरा छाया हुआ था, पर सड़क साफ दिखाई दे रही थी. वाहनों की भीड़ कम थी. मनोहर ने अपनी कार की रफ्तार 50 और 60 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में ही रखी थी. उसे सामने चौराहे पर बत्ती हरी दिखाई दी. इसलिए मनोहर ने रफ्तार कम नहीं की. अचानक उस के बिलकुल सामने सैलफोन पर बात करता एक युवक सड़क पार करने लगा.

मनोहर ने ब्रैकपैडल जोर से दबाया पर तब तक देर हो चुकी थी. कार युवक से टकराई और वह तकरीबन 5 मीटर आगे जा कर गिरा. मनोहर ने कार रोकी और युवक के पास दौड़ कर पहुंचा. मनोहर ने उस का चेहरा गौर से देखा. उस की आंखें बंद थीं और वह बेहोश लग रहा था. मनोहर ने उसे उठा कर कार में रखा और नजदीक वाले अस्पताल की ओर चला. पर तब उसे खयाल आया कि अगर वह स्वीकार कर ले, और पुलिस को उस की सांस में शराब मिले, तो उसे शायद जेल जाना पड़े, यह सोचते हुए मनोहर ने अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड से कुछ दूरी पर कार रोकी और युवक को उठा कर अंदर ले गया. वहां एक वार्ड बौय को सौंप कर बोला, ‘ऐक्सिडैंट हुआ है. मैं इस की मां को लेने जा रहा हूं,’ और वहां से भाग गया. 2 दिन के बाद अखबार के अंदर के कोने में उस ने पढ़ा कि उस रात, किसी अज्ञात व्यक्ति ने एक अधमरे युवक का शव अस्पताल में छोड़ा था और फिर वहां से लापता हो गया था. उसी रात से मनोहर को धुंध वाला सपना आने लगा. मनोहर अपनी विधवा मां के साथ रहता था. इन सपनों के कारण उस की रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ाबहुत बदलाव जो आया, वह उस की मां की नजरों से छिप तो नहीं सकता था, पर जब भी वे इस मामले में कोई सवाल करती थीं, तो मनोहर बात टाल जाता था.

मनोहर 28 साल का हो चुका था. अच्छी नौकरी कर रहा था. उस की मां चाहती थीं कि वे जल्दी से जल्दी मनोहर की शादी कर दें, ताकि दिनभर बात करने के लिए उन्हें एक बहू मिल जाए और साल के अंदर वंश चलाने के लिए एक पोता. मनोहर भी शादी करने की सोच रहा था, पर हादसे के बाद से उस का मिजाज बदल गया. शादी की बात उस के दिमाग से निकल सी गई. बस, एक बात बारबार उस के मन में आती, ‘मेरी लापरवाही के कारण किसी ने अपना बेटा खो दिया था.’ अपने दोष को भुलाने के लिए मनोहर दिनरात काम में जुटा रहने लगा. दिन में तो दफ्तर की चहलपहल में उस का ध्यान बंट जाता था पर रात को, खासकर धुंध वाला सपना आने के बाद, उस पर उदासी छा जाती थी. उस रात के बाद उस ने कभी शराब को हाथ न लगाया और कंपनी की पार्टियों में भी शराब परोसना बंद कर दिया. हादसे के 6 महीने बाद मनोहर के दफ्तर में एक नई लड़की भरती हुई. उस का नाम मीना था और वह सीधे कालेज से बीए करने के बाद नौकरी करने आई थी. मीना को उस का काम समझाने की जिम्मेदारी मनोहर को सौंपी गई. मीना काफी बुद्धिमान थी और उस में काम सीखने का जोश भी था. मनोहर उस की लगन से बहुत खुश था. धीरेधीरे मनोहर मीना की ओर आकर्षित होने लगा और उसे लगने लगा कि मीना उस के लिए एक आदर्श जीवनसाथी बन सकती है. उस के साथ शादी कर के जिंदगी काफी मजे में कट सकेगी. पर शराफत के भी कुछ नियम होते हैं. मनोहर ने अपनी भावनाओं के बारे में मीना को तनिक भी ज्ञान होने नहीं दिया.

एक दिन सुबह मीना मनोहर के केबिन में आई.

‘‘गुड मौर्निंग, सर.’’

‘‘गुड मौर्निंग, मीना,’’ मनोहर ने जवाब दिया.

‘‘जन्मदिन मुबारक हो, सर. हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मनोहर बोला, ‘‘पर मैं हैरान हूं. आज तक तो इस दफ्तर में किसी ने मुझे जन्मदिन की बधाई नहीं दी. तुम्हें कैसे पता चला कि आज मेरा बर्थडे है?’’ मीना पहले थोड़ा शरमाई और फिर उस ने जवाब दिया, ‘‘आप को याद होगा कि पिछले हफ्ते आप ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसैंस दिया था उस की फोटोकौपी बनवाने के लिए. मैं ने उसी में देख लिया था कि आप का जन्मदिन कब है.’’ उस की बात सुन कर मनोहर को बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगा कि शायद मीना उसे पसंद करने लगी है. उसी दिन दोपहर को बारिश हुई और फिर लगातार काफी तेज होती ही रही. मनोहर जानता था कि मीना लोकल बस से घर जाती थी. उस ने मीना को बुलाया और पूछा, ‘‘तुम्हारे पास छतरी है?’’

‘‘नहीं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘आज सुबह तो आसमान बिलकुल साफ था, इसलिए मैं अपनी छतरी घर पर ही छोड़ आई.’’

‘‘तब तो तुम घर जातेजाते बिलकुल भीग जाओगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, सर. मैं बारिश में कई दफे भीगी हूं.’’

‘‘पर तुम बीमार पड़ सकती हो,’’ मनोहर के स्वर में चिंता भरी हुई थी, ‘‘तुम रहती कहां हो?’’

‘‘बापूनगर में, सर,’’ मीना ने बताया.

‘‘वह मेरे घर जाने के रास्ते से कोई खास दूरी पर नहीं है. आज मैं तुम्हें कार से तुम्हारे घर पर छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं, सर, इस की जरूरत नहीं है,’’ मीना ने मनोहर की बात का विरोध किया, ‘‘आप को खामखां दिक्कत होगी. मैं खुद चली जाऊंगी रोज की तरह.’’ पर मनोहर ने मीना की एक न सुनी, और उसे अपनी कार से घर पहुंचाया. अगले दिन मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मैं ने आप के बारे में अपने मातापिता को बताया. वे बहुत खुश थे कि आप जैसे बड़े अफसर ने मुझ पर एहसान किया और मुझे भीगने से बचाया. वे आप से मिलना चाहते हैं. हमारे यहां किसी दिन चाय पीने आइए.’’

‘‘जरूर आऊंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया. मन ही मन उस ने सोचा कि यह अच्छा मौका होगा, यह तय करने के लिए कि मीना से मेरी शादी करने की कितनी संभावना है. कुछ दिन बाद मनोहर को मीना के साथ चाय पीने का मौका मिला. उन के दफ्तर में यह ऐलान हुआ कि अगले दिन शाम को शहर में बड़े जुलूस के कारण सड़कें बंद कर दी जाएंगी, इसलिए दफ्तर में 2 घंटे पहले छुट्टी होगी. मनोहर ने मौके का फायदा उठा कर मीना को सूचित कर दिया कि अगले दिन वह मीना के साथ उस के घर जाएगा. अगली शाम 4 बजे जब छुट्टी मिली तो मनोहर मीना को ले कर उस के घर की ओर चला. रास्ते में उस ने मीना के बारे में उस से जानकारी हासिल करने की कोशिश की.

‘‘तुम्हें किस तरह की फिल्में पसंद आती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो टीवी में आ जाएं, वही देखती हूं, सर,’’ मीना ने जवाब दिया, ‘‘सिनेमाहौल में जाने का मौका सिर्फ वीकेंड पर मिलता है और तब भीड़ के कारण टिकट नहीं मिलता.’’

‘‘तुम्हारे कितने भाईबहन हैं?’’ मनोहर ने आगे बढ़ कर सवाल किया.

‘‘मेरा एक भाई था, पर पिछले साल एक हादसे में उस का देहांत हो गया,’’ यह कहतेकहते मीना की आवाज कुछ टूट सी गई. मनोहर को लगा कि जैसे उस ने कोई पुराना घाव कुरेद दिया है. उस ने ‘आई एम सौरी’ कहा और बाकी रास्तेभर चुप ही रहा. मीना का घर एक मिडल क्लास दो बैडरूम का अपार्टमैंट था. उस के मातापिता बड़े प्यार से मनोहर से मिले. मीना के पिता ने तकरीबन 35 साल नौकरी करने के बाद भारतीय रेलवे से अवकाश प्राप्त किया था. बैठक में बैठ कर वे और मनोहर आने वाले चुनाव के बारे में बात करने लगे. मीना और उस की मां अंदर जा कर चाय का बंदोबस्त करने लगीं. बात करतेकरते मनोहर की नजर इधरउधर घूम रही थी. अचानक उसे बड़े जोर का झटका लगा और वह हैरान रह गया. सामने दीवार पर एक बड़ी सी तसवीर लगी हुई थी, जिस पर पुष्पमाला पड़ी हुई थी. और तसवीर उसी नौजवान की थी जो मनोहर की कार के नीचे आ गया था. मनोहर अपनी आंखों पर विश्वास खो बैठा.

‘‘आज के नेता अपनी कुरसी की ज्यादा और जनता की खुशहाली की चिंता कुछ कम ही करते हैं…’’

‘‘माफ करना सर,’’ मनोहर ने उन की बात काटी, ‘‘पर क्या मैं पूछ सकता हूं कि दीवार पर लगी यह फोटो किस की है?’’

मीना के पिता एकदम चुप हो गए. फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘यह हमारा इकलौता बेटा प्रशांत था, मीना का भाई. पिछले साल एक दुर्घटना में इस का देहांत हो गया. पर इस के बारे में तुम मीना या उस की मां के सामने कुछ नहीं पूछना. वे दोनों अपना गम अभी तक भुला नहीं पाई हैं. इस के बारे में सोच कर वे आज भी बहुत भावुक हो जाती हैं.’’

मनोहर का सिर चकराने लगा. उस ने सोचा, ‘जिस लड़की से मैं शादी करना चाहता हूं, उसी के इकलौते भाई की मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं.’ बाकी शाम कैसे कटी, मनोहर को ठीक से याद नहीं. कुछ खाया, कुछ बोला, सबकुछ स्वचालित था. मीना की मां ने उस की फैमिली के बारे में पूछा. जब उस ने यह बताया कि उस की शादी अभी तक नहीं हुई है, तो मीना के मांबाप ने नजरें मिलाईं. पर खयालों में डूबे हुए मनोहर ने कुछ नहीं देखा. मीना के साथ एक आनंदमय जिंदगी बिताने के उस के सपने चूरचूर हो गए थे. तकरीबन 1 महीना बीत गया. एक दिन, बातचीत के दौरान, मीना ने मनोहर से कहा, ‘‘सर, मेरे मातापिता मेरी शादी कराना चाहते हैं. वे मेरे लिए दूल्हा ढूंढ़ रहे हैं. अगर आप की नजर में कोई योग्य लड़का हो तो उन्हें सूचित कर दें. वे जातिपांति को नहीं मानते हैं, न ही कुंडली मिलवाना जरूरी समझते हैं, पर लड़का कामकाजी होना चाहिए. और यह भी खयाल रखें कि हम कोई खास दहेज नहीं दे सकेंगे.’’

‘‘मैं देखता हूं. अगर कोई मिल गया तो अवश्य उन्हें बता दूंगा,’’ मनोहर ने जवाब दिया, पर मन ही मन वह अपनेआप को कोसने लगा. वह जानता था कि वह मीना के लिए लड़का कभी नहीं ढूंढ़ेगा. कुछ दिन बाद मीना ने अपनी शादी की बात फिर छेड़ी. उस ने कहा, ‘‘मेरी शादी के दौरान मुझे बस एक ही गम रहेगा.’’

‘‘वह क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘वह यह कि मेरा प्यारा भाई प्रशांत मुझे दुलहन के रूप में देखने के लिए वहां नहीं होगा. वह हमेशा कहता था कि मेरी शादी में वह खूब नाचेगा,’’ मीना की आवाज में निराशा थी.

‘‘यह तो उचित है,’’ मनोहर ने माना.

‘‘काश, वह उस दिन दोपहर के खाने के तुरंत बाद अपने दोस्तों के साथ स्विमिंग पूल नहीं गया होता.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘आप को पता नहीं कि प्रशांत की मौत कैसे हुई?’’ मीना ने पूछा. और बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘‘वह लंच के फौरन बाद तैरने गया. पूल में अचानक उस के पेट में मरोड़ उठने लगी और वह डूब कर मर गया. उस के दोस्तों ने और वहां मौजूद लाइफगार्ड ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर शायद उस की मौत का वक्त आ चुका था. एक हफ्ते पहले ही वह सैलफोन पर बात में व्यस्त हालत में एक कार के रास्ते में आ गया था. पर लगता है कार कोई शरीफ आदमी चला रहा था क्योंकि उस की गलती नहीं होने पर भी उस ने प्रशांत को अस्पताल पहुंचाया. और फिर गायब हो गया. उस हादसे में तो वह बच गया लेकिन…’’ मनोहर को लगा कि जैसे एक पहाड़ उस के सिर पर से उठ गया हो. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया कि अगले ही दिन वह मीना के घर जा कर उस के मांबाप से मिल कर मीना का हाथ मांगेगा. और उस को यकीन था कि उस दिन के बाद वह डरावना सपना उसे फिर कभी नहीं आएगा. Short Story

Hindi Family Story: देर आए दुरुस्त आए

Hindi Family Story, नीलिमा शोरेवाल

‘‘अरे-रे, यह क्या हो गया मेरी बच्ची को. सुनिए, जल्दी यहां आइए.’’

बुरी तरह घबराई अनीता जोर से चिल्ला रही थी. उस की चीखें सुन कर कमरे में लेटा पलाश घबरा कर अपनी बेटी के कमरे की ओर भाग जहां से अनीता की आवाजें आ रही थीं.

कमरे का दृश्य देखते ही उस के होश उड़ गए. ईशा कमरे के फर्श पर बेहोश पड़ी थी और अनीता उस पर झुकी उसे हिलाहिला कर होश में लाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘क्या हुआ, यह बेहोश कैसे हो गई?’’

‘‘पता नहीं, सुबह कई बार बुलाने पर भी जब ईशा बाहर नहीं आई तो मैं ने यहां आ कर देखा, यह फर्श पर पड़ी हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा. मैं ने इस के मुंह पर पानी भी छिड़का लेकिन इसे तो होश ही नहीं आ रहा.’’

‘‘तुम घबराओ मत, मैं गाड़ी निकालता हूं. हम जल्दी से इसे डाक्टर के पास ले कर चलते हैं.’’

पलाश और अनीता ने मिल कर उसे गाड़ी की सीट पर लिटाया और तुरंत पास के नर्सिंगहोम की तरफ भागे. नर्सिंगहोम के प्रमुख डाक्टर प्रशांत से पलाश की अच्छी पहचान थी सो, बिना ज्यादा औपचारिकताओं के डाक्टर ईशा को जांच के लिए अंदर ले गए. अगले आधे घंटे तक जब कोई बाहर नहीं आया तो अनीता के सब्र का बांध टूटने लगा. वह पलाश से अंदर जा कर पता करने को कह ही रही थी कि डाक्टर प्रशांत बाहर निकले और उन्हें अपने कमरे में आने का इशारा किया.

‘‘क्या हुआ, प्रशांत भैया? ईशा को होश आया या नहीं? उसे हुआ क्या है?’’ उन के पीछे कमरे में घुसते ही अनीता एक ही सांस में बोलती चली गई.

‘‘भाभीजी, आप दोनों यहां बैठो. मुझे आप से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ पलाश और अनीता का दिल बैठ गया. जरूर कुछ सीरियस बात है.

‘‘जल्दी बताओ प्रशांत, आखिर बात क्या है?’’

डाक्टर प्रशांत अपनी कुरसी पर बैठ कर कुछ पल दोनों को एकटक देखते रहे. फिर बड़े नपेतुले स्वर में धीरे से बोले, ‘‘मेरी बात सुन कर तुम लोगों को धक्का लगेगा लेकिन सिचुएशन ऐसी है कि रोनेचिल्लाने या घबराने से काम नहीं चलेगा. कोई भी कदम उठाने से पहले चार बार सोचना होगा. दरअसल बात यह है कि ईशा ने आत्महत्या करने की कोशिश की है.’’

‘‘क्…क्याऽऽ?’’ पलाश और अनीता दोनों एकसाथ कुरसी से ऐसे उछल कर खड़े हुए जैसे करंट लगा हो.

‘‘क्या कह रहे हैं डाक्टर, ऐसा कैसे हो सकता है. आत्महत्या तो वे लोग करते हैं जिन्हें कोई बहुत बड़ा दुख या परेशानी हो. मेरी इकलौती बेटी इतने नाजों में पली, जिस की हर फरमाइश मुंह खोलने से पहले पूरी हो जाती हो, जो हमेशा हंसतीखिलखिलाती रहती हो, पढ़ाई में भी हमेशा आगे रहती हो, जिस के ढेरों दोस्त हों, ऐसी लड़की भला क्यों आत्महत्या करने की सोचेगी.’’ पलाश के चेहरे पर उलझन के भाव थे. अनीता तो सदमे के कारण कुरसी का हत्था पकड़े बस डाक्टर को एकटक घूरे जा रही थी. फिर अचानक जैसे उसे होश आया, ‘‘लेकिन अब कैसी है वह? सुसाइड किया कैसे? कोई जख्म तो शरीर पर था नहीं…’’

‘‘उस ने नींद की गोलियां खाई हैं. भाभी, 10-12 गोलियां ही खाई, तभी तो हम उसे बचा पाए. खतरे से तो अब वह बाहर है लेकिन इस समय उस की जो शारीरिक व मानसिक हालत है, उस में उसे संभालने के लिए आप को बहुत ज्यादा धैर्य और समझदारी की जरूरत है. और जहां तक सुखसुविधाओं का सवाल है पलाश, तो पैसे या ऐशोआराम से ही सबकुछ नहीं होता. उस के ऊपर जरूर कोई बहुत बड़ा दबाव या परेशानी होगी जिस की वजह से उस ने यह कदम उठाया है.

‘‘15-16 साल की यह उम्र बहुत नाजुक होती है. बचपन से निकल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखते बच्चे अपनी जिंदगी और शरीर में हो रहे बदलावों की वजह से अनेक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं. अब तक मांबाप से हर बात शेयर करते आए बच्चे अचानक ही सबकुछ छिपाना भी सीख जाते हैं. इसीलिए अकसर पेरैंट्स को पता ही नहीं चलता कि उन के अंदर ही अंदर क्या चल रहा है. ‘‘ईशा के मामले में भी यही हुआ है, वह किसी वजह ये इतनी परेशान थी कि उसे उस का और कोई हल नहीं सूझा. अब तुम दोनों को बड़े ही प्रेम और धीरज से पहले उस की समस्या का पता लगाना है और फिर उस का निदान करना है. और हां, मैं ने अपने स्टाफ को हिदायत दे दी है कि यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए. वरना बेकार में पुलिस केस बन जाएगा. तुम लोग भी इस बात का खयाल रखना कि यह बात किसी को पता न चले वरना पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रह जाओगे. बदनामी होगी वह अलग. बच्ची का समाज में जीना दूभर हो जाएगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हो तुम. हम बिलकुल ऐसा ही करेंगे,’’ पलाश अब तक थोड़ा संभल गया था. ‘‘और हां,’’ डाक्टर प्रशांत आगे बोले, ‘‘वैसे तो तुम दोनों पतिपत्नी काफी समझदार और सुलझे हुए हो, फिर भी मैं तुम्हें बता दूं कि अभी 5-7 मिनट में ईशा होश में आने वाली है और जैसे ही उसे पता चलेगा वह जिंदा है, उसे एक धक्का लगेगा और वह काबू से बाहर होने लगेगी. उस समय तुम दोनों घबराना मत और न ही उस से कुछ पूछना. धीरेधीरे जब उस की मानसिक अवस्था इस लायक हो जाए, तब बड़े ही प्यार से उसे विश्वास में ले कर यह पता लगाना कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया.’’

‘‘ठीक है भैया, हम सब समझ गए. क्या हम अभी उस के पास चल सकते हैं?’’

‘‘चलिए,’’ और तीनों ईशा के कमरे की तरफ बढ़ गए.

जैसा डाक्टर प्रशांत ने उन्हें बताया था वैसा ही हुआ. होश आने पर बुरी तरह मचलती और हाथपांव पटकती ईशा को संभालते हुए अनीता का कलेजा मुंह को आ रहा था. चौबीसों घंटे साथ रहते हुए भी वह जान ही न पाई कि ऐसा कौन सा दुख था जो उस की जान से प्यारी बेटी को ऐसे उस से दूर ले गया. चाहे जो भी हो, मैं जल्दी से जल्दी सारी बात का पता लगा कर ही रहूंगी, यही विचार उस के मन में बारबार उठता रहा. लेकिन उस का सोचना गलत साबित हुआ. घटना के 10 दिन बीत जाने के बाद, लाख कोशिशों के बावजूद दोनों पतिपत्नी बुरी तरह डरीसहमी ईशा से कुछ भी उगलवाने में कामयाब नहीं हुए. तब डाक्टर प्रशांत ने उन्हें उसे काउंसलर के पास  ले जाने का सुझाव दिया. वहां भी 6 सिटिंग्स तक तो कुछ नहीं हुआ 7वीं सिटिंग के बाद काउंसलर ने उन्हें जो बताया उसे सुन कर तो दोनों के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.

काउंसलर के अनुसार, ‘‘2 महीने पहले ईशा की 1 लड़के से फेसबुक पर दोस्ती हुई. चैटिंग द्वारा धीरेधीरे दोस्ती बढ़ी और फिर प्रेम में तबदील हो गई. फिर फोन नंबरों का आदानप्रदान हुआ और चैटिंग वाट्सऐप पर होने लगी. प्रेम का खुमार बढ़ने के साथसाथ फोटोग्राफ्स का आदानप्रदान शुरू हुआ. शुरू में तो यह साधारण फोटोज थे लेकिन धीरेधीरे नएनवेले प्रेमी की बारबार की फरमाइशों पर ईशा ने अपने कुछ न्यूड और सेमी न्यूड फोटोग्राफ्स भी उसे भेज दिए. अब प्रेमी की नई फरमाइश आई कि ईशा उसे आ कर किसी होटल में मिले. उस के साफ मना करने पर लड़के ने उसे धमकी दी कि अगर वह नहीं आई या उस ने किसी को बताया तो वह उस के सारे फोटोज फेसबुक पर अपलोड कर देगा.

‘‘ईशा ने उस से बहुत मिन्नतें कीं, अपने प्रेम का वास्ता दिया लेकिन प्रेम वहां था ही कहां? लड़के ने उसे 1 हफ्ते का अल्टीमेटम दिया और इस भयंकर प्रैशर को नहीं झेल पाने के कारण ही छठे दिन आधी रात के वक्त अपना अंतिम अलविदा का मैसेज उसे भेज कर ईशा ने सुसाइड करने की कोशिश की.’’ पलाश यह सब सुनते ही बुरी तरह भड़क गया, ‘‘मैं उस कमीने को छोड़ूंगा नहीं, मैं अभी पुलिस को फोन कर के उसे पकड़वाता हूं.’’ ‘‘प्लीज मिस्टर पलाश, ऐसे भड़कने से कुछ नहीं होगा. मेरी बात…’’

‘‘इतनी बड़ी बात होने के बाद भी आप मुझे शांति रखने को कह रहे हैं?’’ काउंसलर की बात बीच में ही काट कर पलाश गुर्राया.

‘‘अच्छा ठीक है, जाइए,’’ वह शांत मुसकराहट के साथ बोले, ‘‘लेकिन जाएंगे कहां? किसे पकड़वाएंगे? उस लड़के का नामपता है आप के पास? उस के फेसबुक अकाउंट के अलावा क्या जानकारी है आप को उस के बारे में? आप को क्या लगता है,  ऐसे लोग अपनी सही डिटेल्स देते हैं अपने अकाउंट पर? कभी नहीं. नाम, उम्र, फोटो आदि सबकुछ फेक होता है. तो कैसे ढूंढ़ेंगे उसे?’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’’ पलाश हारे हुए जुआरी की तरह कुरसी पर धम से बैठ गया.

तभी अनीता को याद आया, ‘‘फोन नंबर तो है न, ईशा के पास उस का.’’

‘‘उस से भी कुछ नहीं होगा. ऐसे लोग सिम भी गलत नाम से लेते हैं और ईशा का सुसाइड मैसेज मिलने के बाद तो वह उस सिम को कब का नाली में फेंक कर अपना नंबर बदल चुका होगा.’’ ‘‘ओह, तो अब हम क्या करें? ईशा का नंबर तो उस के पास है ही, जैसे ही उसे पता चलेगा कि वह ठीक है, वह फिर से उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर देगा. और भी न जाने कितनी लड़कियों को अपना शिकार बना चुका होगा. क्या इस समस्या का कोई हल नहीं?’’

‘‘आप दिल छोटा मत कीजिए. यह काम मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं. मैं एक साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का नंबर आप को देता हूं. वे जरूर आप की मदद करेंगे.’

‘‘साइबर सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट से आप का क्या मतलब है?’’

‘‘मतलब, जैसे दुनिया में छोटेबड़े अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस होती है, वैसे ही इंटरनैट की दुनिया यानी साइबर वर्ल्ड में भी तरहतरह के अपराध और धोखाधड़ी होती हैं, उन से निबटने के लिए कंप्यूटर के जानकार सिक्योरिटी ऐक्सपर्ट का काम करते हैं, ताकि इन स्मार्ट अपराधियों को पकड़ा जा सके. ये हमारी सरकार द्वारा ही नियुक्त किए जाते हैं और पुलिस और कानून भी इन का साथ देते हैं. आप आज ही जा कर मिस्टर अजीत से मिलिए.’’ अंधरे में जगमगाई इस रोशनी की किरण का हाथ थामे पलाश और अनीता उस ऐक्सपर्ट अजीत के औफिस में पहुंचे. ईशा को भी उन्होंने पूरी बात बता दी थी और उस लड़के के पकड़े जाने की उम्मीद ने उस के अंदर भी साहस का संचार कर दिया था. वह भी उन के साथ थी. उन सब की पूरी बात सुन कर अजीत एकदम गंभीर हो गया.‘‘बड़ा अफसोस होता है यह देख कर कि छोटेछोटे बच्चे पढ़ाईलिखाई की उम्र में इस तरह के घिनौने अपराधों में लिप्त हैं. आप की समस्या तो खैर हमारी टीम चुटकियों में सुलझा देगी. हमें बस इस लड़के का अकाउंट हैक करना होगा और सारी जानकार मिल जाएगी. फिर चैटिंग के सारे रिकौर्ड्स के आधार पर आप उसे जेल भिजवा सकते हैं.’’

‘‘क्या सचमुच यह सब संभव है?’’

‘‘जी हां, हमारे पास साइबर ऐक्सपर्ट्स की पूरी टीम है, जिन के लिए यह सब बहुत ही आसान है. हम लोग हर रोज करीब 15-20 ऐसे और बहुत से अलगअलग तरह के मामले हैंडल करते हैं. कुछ केस तो 1 ही कोशिश में हल हो जाते हैं, लेकिन कुछ में जहां अपराधी पढ़ेलिखे और कंप्यूटर के जानकार होते हैं वहां ज्यादा समय और मेहनत लगती है.’’ ‘‘तो क्या साइबर वर्ल्ड में इतनी धोखाधड़ी होती है?’’ ईशा ने हैरानी से पूछा.

‘‘बिलकुल,’’ अजीत ने जवाब दिया, ‘‘यह एक वर्चुअल दुनिया है. यहां जो दिखता है, अकसर वह सच नहीं होता. यहां आप एक ही समय में सैकड़ों रूप बना कर हजारों लोगों को एकसाथ धोखा दे सकते हैं. फेसबुक पर लड़कियों के नाम से झूठे प्रोफाइल बना कर दूसरी लड़कियों से मजे से दोस्ती करते हैं या उन्हें अश्लील मैसेज भेजते हैं. शादीविवाह वाली साइटों पर नकली प्रोफाइलों से शादी का झांसा दे कर अमीर लड़केलड़कियों को फंसाया जाता है. सोशल साइटों पर अकसर लोग अपनी विदेश यात्राओं, महंगी गाडि़यों आदि चीजों की फोटोग्राफ्स डालते रहते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ अपराधी तत्व उन के अकाउंट की इन सारी गतिविधियों पर नजर रखे होते हैं. जब जहां मौका लगता है, चोरियां करवा दी जाती हैं. औनलाइन बैंकिंग बड़ी सुविधाजनक  है, लेकिन अगर कोई हैकर आप का अकाउंट हैक कर ले तो आप का सारा बैंक बैलेंस तो गया समझो.’’

‘‘अगर ये सब इतना असुरक्षित है तो क्या ये सब छोड़ देना चाहिए?’’ अनीता ने पूछा.

‘‘नहीं, छोड़ने की जरूरत नहीं. हमें जरूरत है सिर्फ थोड़ी सावधानी की, दरअसल, हमारे यहां जागरूकता का अभाव है. हम छोटेछोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन और लैपटौप तो पकड़ा देते हैं लेकिन उन्हें उन के खतरों से अवगत नहीं कराते. उन्हें हर महीने रिचार्ज तो करा देते हैं लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं करते कि बच्चे ने क्या डाउनलोड किया या क्याक्या देखा. उम्र के लिहाज से जो चीजें उन के लिए असल संसार में वर्जित हैं, वे सब इस वर्चुअल दुनिया में सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध हैं.

‘‘कच्ची उम्र और अपरिपक्व दिमाग पर इन चीजों का अच्छा असर तो पड़ने से रहा. सो, वे तरहतरह की गलत आदतों में आपराधिक प्रवृत्तियों का शिकार हो जाते हैं. ये सब कुछ न हो, इस के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. बहुत छोटे बच्चों को अपने पर्सनल गैजेट्स न दें. पीसी या लैपटौप पर जब वे काम करें तो उन के आसपास रह कर उन पर नजर रखें ताकि वे किसी गलत साइट पर न जा सकें. चाइल्ड लौक सौफ्टवेयर का भी प्रयोग किया जा सकता है. फेसबुक या वाट्सऐप का प्रयोग करने वाले बच्चे और बड़े भी यह ध्यान रखें कि वे किसी के कितना भी उकसाने पर भी कोई गलत कंटैंट या तसवीरें शेयर न करें. अपनी सिक्योरिटी और प्राइवेसी सैटिंग्स को ‘ओनली फ्रैंड्स’ पर रखें ताकि कोई गलत आदमी उस में घुसपैठ न कर सके. अनजान लोगों से न दोस्ती करें न चैट. अगर कोई आप को गलत कंटैंट भेजता है तो उसे तुरंत ब्लौक कर दें और फेसबुक पर उस की शिकायत कर दें. ऐसी शिकायतों पर फेसबुक तुरंत ऐक्शन लेता है.

‘‘अपने ईमेल, फेसबुक, ट्विटर या बैंक अकाउंट्स के पासवर्ड अलगअलग रखें और समयसमय पर उन्हें बदलते रहें. किसी और के फोन या कंप्यूटर से कभी अपना कोई भी अकाउंट खोलें तो लौगआउट कर के ही उसे बंद करें. इन छोटीछोटी बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक हम साइबर क्राइम से अपने को बचा सकते हैं,’’ इतना कह कर अजीत चुप हो गया. पलाश, अनीता और ईशा मानो नींद से जगे, ‘‘इन सब चीजों के बारे में तो हम ने कभी सोचा ही नहीं. लेकिन देर आए दुरुस्त आए. अब हम खुद भी ये सब ध्यान रखेंगे और अन्य लोगों को भी इस बारे में जागरूक करेंगे,’’ पलाश दृढ़ता से बोला.

अगले 2 दिन बड़ी भागदौड़ में बीते. अजीत और उन की टीम को उस लड़के नितिन की पूरी जन्मकुंडली निकालने में सिर्फ 2 घंटे लगे. पुलिस की टीम के साथ उस के घर से उसे दबोच कर उसे जेल भेज कर वापस लौटते समय तीनों बहुत खुश थे.

‘‘मौमडैड, मुझे माफ कर दीजिए. मेरी वजह से आप को इतनी परेशानी उठानी पड़ी,’’ अचानक ईशा ने कहा.

‘‘ईशा, तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं और तुम्हारे पापा तो जीतेजी मर जाते,’’ एकदम से अनीता की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘कसम खाओ, आगे से कभी ऐसा कुछ करने के बारे कभी नहीं सोचोगी.’’ ‘‘नहीं, कभी नहीं. अब मैं सिर्फ अपनी पढ़ाई और भविष्य पर ध्यान दूंगी और ऐसी गलती दोबरा कभी नहीं करूंगी,’’ कहती हुई ईशा की आंखों में जिंदगी की चमक थी. Hindi Family Story

Short Story In Hindi: ठीक हो गए समीकरण

Short Story In Hindi: ‘‘प्रैक्टिकल होने का क्या फायदा? लौजिक बेकार की बात है. प्रिंसिपल जीवन में क्या दे पाते हैं? सिद्धांत केवल खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द होते हैं, जो हमेशा डरडर कर जीवन जीते हैं. सचाई, ईमानदारी सब किताबी बातें हैं. आखिर इन का पालन कर के तुम ने कौन से झंडे गाड़ लिए,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और उसे लगा जैसे वह किसी कठघरे में खड़ी है. उस के जीवन यहां तक कि उस के वजूद की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. सारे समीकरण गलत व बेमानी साबित करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘जो तुम कमिटमैंट की बात करती हो वह किस चिडि़या का नाम है… आज के जमाने में कमिटमैंट मात्र एक खोखले शब्द से ज्यादा और कुछ नहीं है. कौन टिकता है अपनी बात पर? अपने हित की न सोचो तो अपने सगे भी धोखा देते हैं और तुम हो कि सारी जिंदगी यही राग अलापती रहीं कि जो कहो, उसे पूरा करो.’’

‘‘तुम कहना चाहते हो कि झूठ और बेईमान ही केवल सफल होते हैं,’’ सुकांत की

इतनी कड़वी बातें सुनने के बावजूद वह उस की संकीर्ण मानसिकता के आगे झुकने को तैयार नहीं थी. आखिर कैसे वह उस की जिंदगी के सारे फलसफे को झुठला सकता है? जिस आदमी को उस ने अपनी जिंदगी के 25 साल दिए हैं, वही आज उस का मजाक उड़ा रहा है, उस की मेहनत, उस के काम और कबिलीयत सब को इस तरह से जोड़घटा रहा है मानो इन सब चीजों का आकलन कैलकुलेटर पर किया जाता हो. हालांकि जिस तरह से सुकांत की कनविंस व मैनीपुलेट करने की क्षमता है, उस के सामने कुछ पल के लिए तो उस ने भी स्वयं को एक फेल्योर के दर्जे में ला खड़ा किया था.

‘‘अगर तुम ने यह ईमानदारी और मेहनत का जामा पहनने के बजाय चापलूसी और डिप्लोमैसी से काम लिया होता तो आज अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रही होती. सोचो तो उम्र के इस पड़ाव पर तुम कहां हो और तुम से जूनियर कहां निकल गए हैं. अचार डालोगी अपनी काबिलीयत का जब कोई पूछने वाला ही नहीं होगा,’’ सुकांत के चेहरे पर एक बीभत्सता छा गई थी. लग रहा था कि आज वह उस का अपमान करने को पूरी तरह से तैयार था. अपनी हीनता को छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था उस के लिए कि वह उस के सम्मान के चीथड़े कर दे.

‘‘फिर तो तुम्हारे हिसाब से मैं ने जो ईमानदारी और पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे साथ अपना रिश्ता निभाया, वह भी बेमानी है. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ उस ने थोड़ी तलखी से कहा.

‘‘मैं रिश्ते की बात नहीं कर रहा. दोनों चीजों को साथ न जोड़ो. मैं तुम्हारे कैरियर के बारे में बात कर रहा हूं,’’ सुकांत जैसे हर तरह से मोरचा संभाले था.

‘‘क्यों, यह बात तो हर चीज पर लागू होनी चाहिए. तुम अपने हिसाब से जब चाहो मानदंड तय नहीं कर सकते… और जहां तक मेरी बात है तो मैं अपने से संतुष्ट हूं खासकर अपने कैरियर से. तुम ने कभी न तो मुझे मान दिया है और न ही दे सकते हो, क्योंकि तुम्हारी मानसिकता में ऐसा करना है ही नहीं. किसे बरदाश्त कर सकते हो तुम,’’ न जाने कब का दबा आक्रोश मानो उस समय फूट पड़ा था. वह खुद हैरान थी कि आखिर उस में इतनी हिम्मत आ कहां से गई.

‘‘ज्यादा बकवास मत करो नीला, कहीं मेरा धैर्य न चुक जाए,’’ बौखला गया था सुकांत. इतना सीधा प्रहार इस से पहले नीला ने उस पर कभी नहीं किया था.

‘‘तुम्हारा धैर्य तो हमेशा बुलबुलों की तरह धधकता रहा है… मारोगे? गालियां दोगे? इस के सिवा तुम कर भी क्या सकते हो? अच्छा यही होगा हम इस बारे में और बात न करें,’’ नीला बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. फायदा भी कुछ नहीं था. सुकांत जब पिछले 24 सालों में नहीं बदला तो अब क्या बदलेगा. जो अपनी पत्नी की इज्जत करना न जानता हो, उस से बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था.

नीला को बस इसी बात का अफसोस था कि वह अपने बेटे को सुकांत के इन्फलुएंस से बचा नहीं पाई थी. पता नहीं क्यों नीरव को हमेशा लगता था कि पापा ही ठीक हैं. संस्कारों की जो पोटली उस ने बचपन में नीरव को सौंपी थी वह उस ने बड़े होने के साथ ही कहीं दुछती पर पटक दी थी. उस के बाद उसे कभी खोलने की कोशिश नहीं की. वह बहुत समझाती कि नीरव खुद अपनी आंखों से दुनिया देखो, पापा के चश्मे से नहीं. पर वह भी उस की बेइज्जती कर देता. उस की बात अनसुनी कर पापा के खेमे में शामिल हो जाता. वह मनमसोस कर रह जाती. स्कूलकालेज और उस के बाद अब नौकरी में भी वह पापा के बताए रास्ते पर ही चल रहा है.

अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही थी.

उस पीड़ा को वह दिनरात सह रही थी और नीरव की जिंदगी को ले कर ही वह उस समय सुकांत से लड़ पड़ी थी. विडंबना तो यह थी कि नीरव की बात करने के बजाय सुकांत उस की जिंदगी के पन्नों को ही उलटनेपलटने लगा था. यह सच था कि वह डिप्लोमैसी से सदा दूर रही और सिर्फ काम पर ही उस ने ध्यान दिया और इस वजह से वह बहुत तेजी से उन लोगों की तुलना में कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाई जो खुशामद और चालाकी की फास्ट स्पीड ट्रेन में बैठ आगे निकल गए थे. लेकिन उसे अफसोस नहीं था, क्योंकि उस की ईमानदारी ने उसे सम्मान दिलाया था.

कई बार सुकांत के रवैए को देख कर उस का भी विश्वास डगमगा जाता था पर वह संभल जाती थी या शायद उस की प्रवृत्ति में ही नहीं था किसी को धोखा देना.

‘‘और जो तुम नीरव को ले कर मुझे हमेशा ताना मारती रहती हो न, देखना एक दिन वह बहुत तरक्की करेगा. सही राह पर चल रहा है वह. बिलकुल वैसे ही जैसे आज के जमाने की जरूरत है. लोगों को धक्का न दो तो वे आप को धकेल कर आगे निकल जाते हैं.’’

नीला का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए और उस से कहे कि वह नीरव को मुहरा न बनाए. नीला को परास्त करने का मुहरा. सुकांत उसे देख रहा था मानो उस का उपहास उड़ा रहा हो.

कितनी देर हो गई है, नीरव क्यों नहीं आया अब तक. परेशान सी नीला बरामदे के चक्कर लगाने लगी. रात के 10 बज रहे थे. मोबाइल भी कनैक्ट नहीं हो रहा था उस का. मन में अनगिनत बुरे विचार चक्कर काटने लगे. कहीं कुछ हो तो नहीं गया… औफिस में भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. सुकांत को तो शराब पीने के बाद होश ही नहीं रहता था. वह सो चुका था.

अचानक नीला का मोबाइल बजा. कोई अंजान नंबर था. फोन रिसीव करते हुए उस के हाथ थरथराए.

‘‘नीरव के घर से बोल रहे हैं?’’

नीला के मन की बुरी आशंकाएं फिर से सिर उठाने लगीं, ‘‘क्या हुआ उसे, वह ठीक तो है न? आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस का स्वर कांप रहा था.

‘‘वैसे तो वे ठीक हैं, पर फिलहाल जेल में हैं, उन्हें अरैस्ट किया गया है. अपनी कंपनी में कोई घोटाला किया है उन्होंने. कंपनी के मालिक के कहने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया है.’’

तभी लाइन पर नीरव के दोस्त समर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आंटी मैं हूं नीरव के साथ. बस आप अंकल को भेज दीजिए. उस की जमानत हो जाएगी.’’

पूरी रात जेल में बीती उन तीनों की. नीला को नीरव को सलाखों के पीछे खड़ा देख लग रहा था कि वह सचमुच एक फेल्योर है. हैरानी की बात थी कि सुकांत एकदम चुप थे. न नीरव से, न ही नीला से कुछ कहा, बस उस की जमानत कराने की कोशिश में लगे रहे.

नीला को लगा नीरव को कुछ भलाबुरा कहना ठीक नहीं होगा. उस के चेहरे पर पछतावा और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी. शायद मां ने उसे जो ईमानदारी का पाठ बचपन में सिखाया था, उसे ही वह आज मन ही मन दोहरा रहा था.

शाम हो गई थी उन्हें लौटतेलौटते. अपने को घसीटते हुए, अपनी सोच के दायरों में

चक्कर काटते हुए तीनों ही इतने थक चुके थे कि उन के शब्द भी मौन हो गए थे या शायद कभीकभी चुप्पी ही सब से बड़ा मरहम बन जाती है.

‘‘मुझे माफ कर दो मां,’’ नीरव उस की गोद में सिर रख कर सुबक उठा.

‘‘तू क्यों माफी मांग रहा है? गलती तो मेरी है. मैं ने ही तेरे मन में बेईमानी के बीज बोए, तुझे तरक्की करने के गलत रास्ते पर डाला. आज जो भी कुछ हुआ उस का जिम्मेदार मैं ही हूं और नीला मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं. सारी उम्र तुम्हें तिरस्कृत करता रहा, तुम्हारा उपहास उड़ाता रहा. सारे समीकरण गलत साबित कर दिए थे मैं ने. प्रिंसिपल ही जीवन में सब कुछ होते हैं, सिद्धांत खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द नहीं वरन जीवन जीने का तरीका है. सचाई, ईमानदारी किताबी बातें नहीं हैं,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और नीला की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे.

नीरव को जब उस ने सीने से लगाया तो लगा सच में आज उस की ममता जीत गई है. उस का खोया बेटा उसे मिल गया है. सारे समीकरण ठीक हो गए थे उस की जिंदगी के. Short Story In Hindi

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