Family Story In Hindi: संतुलन – रोहित का क्यों बढ़ा अपने माता पिता के साथ झगड़ा

Family Story In Hindi: झगड़ाशुरू कराने वाली बात बड़ी नहीं थी, पर बहसबाजी लंबी खिंच जाने से रोहित और उस के पिता के बीच की तकरार एकाएक विस्फोटक बिंदु पर पहुंच गई.

‘‘जोरू के गुलाम, तुझे अपनी मां और मेरी जरा भी फिक्र नहीं रही है. अब मुझे भी नहीं रखना है तुझे इस घर में,’’ ससुरजी की इस बात ने आग में घी का काम करते हुए रोहित के गुस्से को इतना बढ़ा दिया कि वे उसी समय अपने जानकार प्रौपर्टी डीलर से मिलने चले गए. मैं बहुत सुंदर हूं और रोहित मेरे ऊपर पूरी तरह लट्टू हैं. मेरी ससुराल वालों के अलावा उन के दोस्त और मेरे मायके वाले भी मानते हैं कि मैं उन्हें अपनी उंगलियों पर बड़ी आसानी से नचा सकती हूं. मेरे सासससुर ने अपनी छोटी बहू यानी मुझे कभी पसंद नहीं किया. वे दोनों हर किसी के सामने यह रोना रोते कि मैं ने उन के बेटे को अपने रूपजाल में फंसा कर मातापिता से दूर कर दिया है. वैसे मुझे पता था कि रोहित की घर से अलग हो जाने की धमकी से घबरा कर मेरी सास बिगड़ी बात संभालने के लिए जल्दी मुझे से मिलने मेरे कमरे  में आएंगी. गुस्से में घर से अलग कर देने की बात मुंह से निकालना अलग बात है, पर मेरे सासससुर जानते हैं कि हम दोनों के अलावा उन की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. ऊपरी मंजिल पर रह रहे बड़े भैया और भाभी मुझ से तो क्या, घर में किसी से भी ढंग से नहीं बोलते हैं.

मैं बहुत साधारण परिवार में पलीबढ़ी थी. इस में कोई शक नहीं कि अगर मैं बेहद सुंदर न होती, तो मुझ से शादी करने का विचार अमीर घर के बेटे रोहित के मन में कभी पैदा न होता. मेरे मातापिता ने बचपन से ही मेरे दिलोदिमाग में यह बात भर दी थी कि हर तरह की खुशियां और सुख पाना उन की परी सी खूबसूरत बेटी का पैदाइशी हक है. अपनी सुंदरता के बल पर मैं दुनिया पर राज करूंगी, किशोरावस्था में ही इस इच्छा ने मेरे मन के अंदर गहरी जड़ें जमा ली थीं. रोहित से मेरी पहली मुलाकात अपनी एक सहेली के भाई की शादी में हुई थी.वे जिस कार से उतरे उस का रंग और डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया था. सहेली से जानकारी मिली कि वे अच्छी जौब कर रहे हैं. इस से उन से दोस्ती करने में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी. उन की आंखों में झांकते हुए मैं 2-3 बार बड़ी अदा से मुसकराई, तो वे फौरन मुझ में दिलचस्पी लेने लगे. मौका ढूंढ़ कर मुझ से बातें करने लगते, तो मैं 2-4 वाक्य बोल कर कहीं और चली जाती. मेरे शर्मीले स्वभाव ने उन्हें मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए और ज्यादा उतावला कर दिया. उस रात विदा लेने से पहले उन्होंने मेरा फोन नंबर ले लिया. अगले दिन से ही हमारे बीच फोन पर बातें होने लगीं. सप्ताह भर बाद हम औफिस खत्म होने के बाद बाहर मिलने लगे.

हमारी चौथी मुलाकात एक बड़े पार्क में हुई. वहां एक सुनसान जगह का फायदा उठाते हुए उन्होंने अचानक मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ कर मुझे चूम लिया. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण मैं बहुत जोर से उन से लिपट गई. बाद में उन की बांहों के घेरे से बाहर आ कर जब मैं सुबकने लगी, तो उन की उलझन और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई. बहुत पूछने पर भी न मैं ने उन्हें अपने आंसू बहाने का कारण बताया और न ही ज्यादा देर उन के साथ रुकी. पूरे 3 दिनों तक मैं ने उन से फोन पर बात नहीं की तो चौथे दिन शाम को वे मुझे मेरे औफिस के गेट के पास मेरा इंतजार करते नजर आए. उन के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने उदास लहजे में कहा, ‘‘आई ऐम सौरी पर हमें अब आपस में नहीं मिलना चाहिए, रोहित.’’

‘‘पर क्यों? मुझे मेरी गलती तो बताओ?’’ वे बहुत परेशान नजर आ रहे थे.

‘‘तुम्हारी कोई गलती नहीं है.’’

‘‘तो मुझ से मिलना क्यों बंद कर रही हो?’’

उन के बारबार पूछने पर मैं ने नजरें झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो रही हूं…तुम्हारे साथ नजदीकियां बढ़ती रहीं तो मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सकूंगी.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ उन की आंखों में उलझन के भाव और ज्यादा बढ़ गए.

‘‘हम ऐसे ही मिलते रहे तो किसी भी दिन कुछ गलत घट जाएगा…तुम मुझे चीप लड़की समझो, यह सदमा मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. साधारण से घर की यह लड़की तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के सपने नहीं देख सकती है. तुम मुझ से न मिला करो, प्लीज,’’ भरे गले से अपनी बात कह कर मैं कुछ दूरी पर इंतजार कर रही अपनी सहेली की तरफ चल पड़ी. बाद में रोहित ने बारबार फोन कर के मुझे फिर से मिलना शुरू करने के लिए राजी कर लिया. मेरी हंसीखुशी उन के लिए दिनबदिन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती चली गई. मेरे रंगरूप का जादू उन के सिर चढ़ कर ऐसा बोला कि महीने भर बाद ही उन के घर वाले हमारे घर रिश्ता पक्का करने आ पहुंचे. उस दिन हुई पहली मुलाकात में ही मुझे साफ एहसास हो गया कि यह रिश्ता उन के परिवार वालों को पसंद नहीं था. मेरी शादी को करीब 6 महीने हो चुके हैं और अब तक मेरे सासससुर और जेठजेठानी की मेरे प्रति नापसंदगी अपनी जगह कायम है. अपने पिता से झगड़ा करने के बाद रोहित को घर से बाहर गए 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सासूमां मेरे कमरे में आ पहुंचीं. उन की झिझक और बेचैनी को देख कर कोई भी कह सकता था कि बात करने के लिए मेरे पास आना उन्हें अपमानित महसूस करा रहा है.

मेरे सामने झुकना उन की मजबूरी थी. उन का अपनी बड़ी बहू नेहा से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि बेहद अमीर बाप की बेटी होने के कारण वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी. मेरे सामने बैठते ही सासूमां मुझे समझाने लगीं, ‘‘ घर में छोटीबड़ी खटपट, तकरार तो चलती रहती है, पर तू रोहित को समझाना कि वह घर छोड़ कर जाने की बात मन से बिलकुल निकाल दे.’’ मैं ने बेबस से लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप तो जानती ही हैं कि वे कितने जिद्दी इनसान हैं. मैं उन्हें घर से अलग होने से कब तक रोक सकूंगी? आप पापा को भी समझाओ कि वे घर से निकाल देने की धमकी तो बिलकुल न दिया करें.’’

‘‘उन्हें तो तब तक अक्ल नहीं आएगी जब तक गुस्से के कारण उन के दिमाग की कोई नस नहीं फट जाएगी.’’ ‘‘ऐसी बातें मुंह से न निकालिए, प्लीज,’’ मेरा मन ससुरजी के अपाहिज हो जाने की बात सोच कर ही बेचैनी और घबराहट का शिकार हो उठा था. कुछ देर तक अपनी व ससुरजी की गिरती सेहत के दुखड़े सुनाने के बाद सासूजी चली गईं. हम घर से अलग नहीं होंगे, मुझ से ऐसा आश्वासन पा कर उन की चिंता काफी हद तक कम हो गई थी. उस रात मुझे साथ ले कर रोहित अपने दोस्त की शादी की सालगिरह की पार्टी में जाना चाहते थे. उन का यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया, क्योंकि ससुरजी को सुबह से 5-6 बार उलटियां हो चुकी थीं. औफिस से आने के बाद जब उन्होंने मेरे जल्दी तैयार होने के लिए शोर मचाया, तो घर में क्लेश शुरू हो गया और बात धीरेधीरे बढ़ती चली गई.

सचाई यही है कि कुछ कारणों से मैं खुद भी रोहित के दोस्त द्वारा दी जा रही कौकटेल पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. आज मैं जिंदगी के उसी मुकाम पर हूं जहां होने के सपने मैं हमेशा देखती आई हूं. संयोग से मैं ने जिस ऐशोआराम भरी जिंदगी को पाया है, उसे नासमझी के कारण खो देने का मेरा कोई इरादा नहीं था. रोहित की एक निशा भाभी हैं, जिन के अपने पति सौरभ के साथ संबंध बहुत खराब चल रहे हैं. उन के बीच तलाक हो कर रहेगा, ऐसा सब का मानना है. मैं ने पिछली कुछ पार्टियों में नोट किया कि फ्लर्ट करने में एक्सपर्ट निशा भाभी रोहित को बहुत लिफ्ट दे रही हैं. यह सभी जानते हैं कि एक बार बहक गए कदमों को वापस राह पर लाना आसान नहीं होता है. रोहित को निशा से दूर रखने के महत्त्व को मैं अपने अनुभव से बखूबी समझती हूं, क्योंकि अपने पहले प्रेमी समीर को मैं खुद अब तक पूरी तरह से नहीं भुला पाई हूं.

वह मेरी सहेली शिखा का बड़ा भाई था. मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी करने उन के घर पढ़ने जाती थी. मेरी खूबसूरती ने उसे जल्दी मेरा दीवाना बना दिया. उस की स्मार्टनैस भी मेरे दिल को भा गई. उन के घर में कभीकभी हमें एकांत में बिताने को 5-10 मिनट भी मिल जाते थे. इस छोटे से समय में ही उस के जिस्म से उठने वाली महक मुझे पागल कर देती थी. उस के हाथों का स्पर्श मेरे तनमन को मदहोश कर मेरे पूरे वजूद में अजीब सी ज्वाला भर देता था. एक रविवार की सुबह जब उस की मां बाजार जाने को निकलीं. मां के बाहर जाते ही समीर बाहर से घर लौट आया. हमें कुछ देर की मौजमस्ती करने के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया, तो हम बहुत उत्तेजित हो आपस में लिपट गए. फिर गड़बड़ यह हुई कि उस की मां पर्स भूल जाने के कारण घर से कुछ दूर जा कर ही लौट आई थीं. दरवाजा खोलने के बाद समीर और मैं अपनी उखड़ी सांसों और मन की घबराहट को उन की अनुभवी नजरों से छिपा नहीं पाए थे. उन्होंने मुझे उसी वक्त घर भेज दिया और कुछ देर बाद आ कर मां से मेरी शिकायत कर दी. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी शिखा से दोस्ती टूट गई और अपने मातापिता की नजरों में मैं ने अपनी इज्जत गंवा दी.

कच्ची उम्र में समीर के साथ प्यार का चक्कर चलाने की मूर्खता कर मैं ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी. मेरे सजनेसंवरने पर भी पूरी तरह से पाबंदी लग गई. मां की रातदिन की टोकाटाकी और पापा का मुझ से सीधे मुंह बात न करना मुझे बहुत दुखी करता था.  उन कठिन दिनों से गुजरते हुए एक सबक मैं अच्छी तरह सीख गई कि अगर मेरी ऐशोआराम की जिंदगी जीने की इच्छा और सारे सपने पूरे नहीं हुए तो जीने का मजा बिलकुल नहीं आएगा. घुटघुट कर जीने से बचने के लिए मुझे फौरन अपनी छवि सुधारना बहुत जरूरी था. ‘‘केवल सुंदर होने से काम नहीं चलता है. सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए,’’

मां से रातदिन मिलने वाली चेतावनी को मैं ने हमेशा के लिए गांठ बांध कर अपने को सुधार लेने का संकल्प उसी समय कर लिया. तभी से अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई, उलझन और मुसीबत से सबक ले कर मैं खुद को बदलती आई हूं. रोहित के विवाहेत्तर संबंध न बन जाएं, इस डर के अलावा एक और डर मुझे परेशान करता था. उन्हें सप्ताह में 1-2 बार ड्रिंक करने का शौक है. आज भी उन के गुस्से को बहुत ज्यादा बढ़ाने का यही मुख्य कारण था कि दोस्तों के साथ शराब पीने का मौका उन के हाथ से निकल गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि अगर हम अलग मकान में रहने चले गए, तो दोस्तों के साथ उन का पीनापिलाना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. समीर वाले किस्से के बाद मेरी मां मेरे साथ बहुत सख्त हो गई थीं. उन की उस सख्ती के चलते मेरे कदम फिर कभी नहीं भटके थे. यहां मेरे सासससुर मां वाली भूमिका निभा रहे थे. रोहित और मुझे नियंत्रण में रख कर वे दोनों एक तरह से हमारा भला ही कर रहे थे. अब मुझे यह बात समझ में आने लगी थी.

पिछले दिनों तक मैं घर से अलग हो जाने की जरूर सोचती थी, पर अब इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ने ऐसा करने का इरादा बदल दिया है. रोहित 2 घंटे बाद जब लौटे, तब भी उन की आंखों में तेज गुस्सा साफ झलक रहा था. फिर भी मैं ने रोहित को अपनी बात कहने का फैसला किया. उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना मैंने आंखों में आंसू भर कर भावुक लहजे में पूछा, ‘‘तुम मुझे सब की नजरों में क्यों गिराना चाहते हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है?’’ उन्होंने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘टैंशन के कारण पापा को ढंग से सांस लेने में दिक्कत हो रही है. आपसी लड़ाईझगड़े की वजह से उन्हें कभी कुछ हो गया, तो मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर कभी नहीं जी सकूंगी.’’

‘‘वे लोग बात ही ऐसी गलत करते हैं…पार्टी में न जाने दे कर सारा मूड खराब कर दिया.’’

‘‘पार्टी में जाने का गम मत मनाओ, मैं हूं न आप का मूड ठीक करने के लिए,’’ मैं ने उन के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम तो हो ही लाखों में एक जानेमन.’’

‘‘तो अपनी इस लाखों में एक जानेमन की छोटी सी बात मानेंगे?’’

‘‘जरूर मानूंगा.’’ मेरी सुंदरता मेरी बहुत बड़ी ताकत है और अब इसी के बल पर मैं सारे रिश्तों के बीच अच्छा संतुलन और घर में हंसीखुशी का माहौल बनाना चाहती हूं. इस दिशा में काफी सोचविचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि सासससुर के साथ अपने रिश्ते सुधार कर उन्हें मजबूत बनाना मेरे हित के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने रोहित के कान के पास मुंह ले जा कर प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें कभी किसी भी बात से नाराज हो कर सोने देती हूं?’’

‘‘कभी नहीं और आज भी मत सोने देना,’’ उन के होंठों पर एक शरारती मुसकान उभरी.

‘‘आज आप भी मेरी इस अच्छी आदत को अपनाने का वादा मुझ से करो.’’

‘‘लो, कर लिया वादा.’’

‘‘तो अब चलो मेरे साथ.’’

‘‘कहां?’’

‘‘अपने मम्मीपापा के पास.’’

‘‘उन के पास किसलिए चलूं?’’

‘‘आप उन के साथ कुछ देर ढंग से बातें कर लोगे, तो ही वे दोनों चैन से सो पाएंगे.’’

‘‘नहीं,’’ यह मैं नहीं…

मैं ने झुक कर पहले रोहित के होंठों पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए मोहक स्वर में बोली, ‘‘प्लीज, मेरी खुशी की खातिर आप को यह काम करना ही पड़ेगा. आप मेरी बात मानेंगे न?’’ तुम्हारी बात कैसे टाल सकता हूं ब्यूटीफुल चलो,’’ रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूमने के बाद जब वे फौरन अपने मातापिता के पास जाने को उठ खड़े हुए, तो मैं मन ही मन विजयीभाव से मुसकराते हुए उन के गले लग गई. Family Story In Hindi

Hindi Kahani: चाल – फहीम के चेहरे का रंग क्यों उड़ गया ?

Hindi Kahani: कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’

‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’

‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’

‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.

‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’ कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’

फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’

दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमने-सामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.

हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’

फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.

फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.

‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’

फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’

‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’

यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.

फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’

हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’

यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’

फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.

‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’

‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’

पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.

फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.

‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’

फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’

फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’

हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’

हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.

अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’

फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’

यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’

हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.

‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.

‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’

हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.

फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’ Hindi Kahani

Long Hindi Story: वे दो अनमोल दिन – पहला भाग

Long Hindi Story, लेखक – शकील प्रेम

विनय के पास इनोवा जैसी 2 गाडि़यां थीं. एक वह खुद चलाता था और दूसरी गाड़ी किराए पर दी हुई थी. विनय बिहार के दूरदराज इलाकों तक सवारियों को ले जाता था. हालांकि, ज्यादातर सवारियां रेलवे स्टेशन तक की होती थीं.

सुबह ही विनय की गाड़ी को भगीरथ नाम के एक आदमी ने बुक किया था, जो इस वक्त ड्राइवर की पिछली सीट पर बैठा था. 7 सीटों वाली इनोवा कार में विनय समेत कुल 8 लोग बैठे थे, जिन्हें मोतिहारी से पटना तक जाना था. वे सभी भगीरथ के परिवार के लोग थे. मोतिहारी से पटना का सफर 6 घंटे का था.

गाड़ी के अंदर लगे बैक मिरर पर विनय की नजर पड़ी, तो उस में एक खूबसूरत सा चेहरा नजर आया.

सवारियों में एक शादीशुदा खूबसूरत औरत थी, जिस के बगल में ही भगीरथ बैठा था, जो शायद उस खूबसूरत औरत का पति था.

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और मोतिहारी की भीड़ भरी सड़कों से आगे हाईवे पर आ गया. कभीकभार वह बैक मिरर में झांक कर उस खूबसूरत औरत को देख लेता था.

पीछे बैठी उस औरत के चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी. यह खामोशी थी या उदासी विनय समझ नहीं पा रहा था.

मुजफ्फरपुर हाईवे पर गाड़ी पहुंचते ही विनय ने म्यूजिक सिस्टम को औन किया. एक रोमांटिक गाना बजना शुरू हुआ, ‘प्यार कभी कम नहीं करना…’

यह गाना बजना शुरू ही हुआ था

कि पीछे बैठी वह खूबसूरत औरत झल्लाते हुए बोली, ‘‘प्लीज… यह गाना बंद कर दो.’’

विनय ने तुरंत उंगली से म्यूजिक सिस्टम का अगला बटन दबा दिया और ‘जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझ नहीं, कोई जाना नहीं…’ गीत बजने लगा.

इस गाने के बजने के साथ ही विनय ने आवाज को कम कर दिया, तभी फिर वही आवाज विनय के कानों में आई, ‘‘आवाज क्यों कम की?’’

आवाज को तेज करते हुए विनय समझ गया था कि पीछे बैठी औरत को शायद पुराने गाने पसंद हैं.

विनय की गाड़ी मुजफ्फरपुर हाईवे पर तेजी से दौड़ रही थी. टोल आने से पहले ही विनय को गाड़ी रोकनी पड़ी, क्योंकि पीछे बैठी एक बूढ़ी औरत को उलटियां होने लगी थीं. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे तीनों लोग नीचे उतरे और उस बूढ़ी औरत को संभालने लगे.

भगीरथ अपनी पत्नी को डांटते हुए बोला, ‘‘सुमन, तुम्हें सुबहसुबह परांठे बनाने की क्या जरूरत थी… तुम मेरी मां को मारना चाहती हो.’’

सुमन कुछ नहीं बोली और पानी से अपनी सास के मुंह को अच्छी तरह साफ कर उन्हें थामते हुए गाड़ी में
ले आई.

जब सुमन की सास गाड़ी में बैठ गईं, तो सुमन ने अपने हाथ धोए और पानी पीने के बाद उस ने विनय की ओर पानी की बोतल बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पानी पी लीजिए.’’

भगीरथ के साथ आया एक लड़का विनय के बराबर में बैठा था, जिसे सुमन की यह हरकत पसंद नहीं आई. वह सुमन की ओर देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, ड्राइवर को प्यास लगेगी तो वह खुद पानी पी लेगा. तुम्हें ज्यादा मदर टैरेसा बनने की जरूरत नहीं है.’’

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ गया. पीछे बैठा भगीरथ धीमी आवाज में सुमन से कुछ कह रहा था और सुमन सिर नीचे किए सुने जा रही थी.

एक घंटे के बाद भगीरथ के कहने पर विनय ने मुजफ्फरपुरपटना हाईवे के किनारे एक रैस्टोरैंट पर गाड़ी रोक दी. भगीरथ का परिवार गाड़ी से उतर कर सीधा रैस्टोरैंट की ओर बढ़ गया.

सब से आगे भगीरथ अपनी मां के हाथ को थामे चल रहा था, उस के पीछे परिवार के बाकी लोग थे और सब से पीछे सुमन थी.

सुमन को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह भी भगीरथ के परिवार का हिस्सा है. भगीरथ को तो अपनी पत्नी की जरा भी परवाह नहीं थी और ऐसा लगता था कि सुमन ने भी परिवार की परवाह करना छोड़ दिया था.

रैस्टोरैंट में अंदर दाखिल होने से पहले सुमन ने विनय की ओर देखा और हाथ के इशारे से कुछ खा लेने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई.

विनय के लिए यह लमहा बेहद भावुकता भरा था. विनय की उम्र 27 साल थी और उस की 3 साल पहले शादी हो चुकी थी, लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही विनय की बीवी मीनाक्षी अपने पहले प्रेमी के साथ चली गई थी.

विनय तभी से औरतों से नफरत करता था, लेकिन सुमन जैसी औरत को देख कर उसे एहसास हुआ कि कुछ औरतों के वजूद में ही मुहब्बत की खुशबू होती है.

सुमन के प्रति विनय का खिंचाव हर पल बढ़ता जा रहा था, लेकिन उसे पता था कि बस कुछ ही देर में मुहब्बत की यह खुशबू दुनिया की भीड़ में हमेशा के लिए खो जाएगी.

रैस्टोरैंट से निकलते भगीरथ को देख कर विनय ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. विनय की नजरें सब से पीछे चल रही सुमन को ढूंढ़ रही थीं. सभी के गाड़ी में बैठने के बाद सुमन भी बैठ गई और विनय ने गाड़ी को स्टार्ट कर वहां से आगे बढ़ा ली.

पीछे बैठा भगीरथ सुमन पर चिल्ला रहा था, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने यही सिखाया है कि किसी की इज्जत न करो. अरे, अगर तुम मां के साथ टौयलेट में चली जाती तो छोटी हो जाती. मेरी किस्मत ही खराब थी, जो तुम जैसी औरत मेरे गले पड़ गई.’’

भगीरथ गुस्से में था. अपने बेटे के गुस्से को शांत करने के बजाय भगीरथ की मां उस के गुस्से को और भड़काने में लगी थीं, ‘‘जाने दे बेटा, किस्मत तो मेरी फूटी थी, जो मैं ने सोहनलाल की बेटी के रिश्ते को ठुकरा कर इस नकचढ़ी से तेरी शादी कराई.’’

दोनों मांबेटे के बीच बैठी सुमन बिलकुल खामोश थी. उस की आंखों में आए आंसू भी सूख चुके थे. विनय के लिए सुमन के साथ होने वाला यह बरताव बरदाश्त से बाहर की बात थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था.

तभी भगीरथ की तेज आवाज विनय तक आई, ‘‘भैया, थोड़ा तेज चलाओ.

5 बज कर 10 मिनट पर हमें पटना से चेन्नई की ट्रेन पकड़नी है. और 4 यहीं बज गए हैं.’’

विनय ने कहा, ‘‘आप चिंता न कीजिए. मुझे खुद भी जल्दी है, क्योंकि आप लोगों को स्टेशन छोड़ने के बाद मुझे घर भी लौटना है.’’

विनय ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और थोड़ी देर में ही वह गांधी सेतु पर पहुंच गया. भयंकर ट्रैफिक जाम से निकलते ही पटना स्टेशन आ गया.

विनय ने गाड़ी की छत से सामान उतारना शुरू किया. गाड़ी की छत पर सुमन का सूटकेस भी था, जिस के लिए वह खड़ी थी.

तभी भगीरथ सुमन के करीब आया और उस ने एक जोरदार थप्पड़ सुमन के गाल पर जड़ दिया, ‘‘तुम्हें अपने सूटकेस की पड़ी है और गाड़ी में जो सामान है, उस की कोई चिंता नहीं. वह सामान क्या तुम्हारा बाप उठाएगा.’’

विनय के मन में आया कि वह अभी छत से नीचे उतरे और भगीरथ को जान से मार दे, लेकिन तभी सुमन ने उस की ओर देखा जैसे कह रही हो कि ‘गुस्से पर काबू पाओ विनय’.

सुमन के कंधे पर एक भारी बैग था और उस के हाथ में एक सूटकेस था, जिसे वह घसीटते हुए भगीरथ के परिवार के पीछेपीछे चल रही थी. भगीरथ सामान उठाने के लिए कुली भी कर सकता था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. भगीरथ सारा सामान परिवार वालों के हाथों में दे कर खुद खाली हाथ चल रहा था.

विनय को अपनी गाड़ी का किराया मिल चुका था. अब वह अपनी गाड़ी ले कर घर जा सकता था, लेकिन सुमन अभी उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

प्लेटफार्म नंबर एक की ओर मुड़ते हुए सुमन ने पीछे मुड़ कर विनय की ओर देखा और फिर विनय की आंखों से ओझल हो गई.

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और उसे सड़क पर एक साइड में खड़ी कर प्लेटफार्म नंबर एक की ओर बढ़ गया. विनय को खुद नहीं मालूम था कि वह प्लेटफार्म पर क्यों जा रहा है. उसे न गाड़ी की फिक्र थी और न ही अपनी कोई चिंता थी. वह तो सुमन के सम्मोहन में खोया हुआ था.

ऐसा नहीं था कि विनय सुमन की खूबसूरती के सम्मोहन में उस के पीछे चल पड़ा था, बल्कि विनय को सुमन की चिंता सता रही थी, इसलिए वह प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ बढ़ गया.

पटना स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी चेन्नई जाने वाली ट्रेन खचाखच भरी हुई थी. विनय ने भीड़ में सुमन को ढूंढ़ना शुरू किया. इसी बीच गाड़ी तेज हौर्न के साथ प्लेटफार्म से खिसकना शुरू हो गई. बहुत से लोग तेजी से चलती ट्रेन में घुस रहे थे.

विनय को लगा कि सुमन और उस का परिवार ट्रेन में बैठ चुका है, फिर भी वह गाड़ी को प्लेटफार्म से पूरी तरह चले जाने का इंतजार करने लगा.

जब ट्रेन पूरी तरह आंखों से ओझल हो गई, तब ही विनय प्लेटफार्म से बाहर जाने के लिए एक तरफ मुड़ा, तभी उस के सामने सुमन खड़ी नजर आई.

सुमन को देख कर विनय बुरी तरह चौंक गया. सुमन के हाथों में सिर्फ उस का सूटकेस था. विनय ने सूटकेस अपने हाथों में लिया और बोला, ‘‘सुमनजी, लगता है, आप की ट्रेन छूट गई है. आप अपने घर फोन कर दीजिए, मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा.’’

सुमन ने अपने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल विनय की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है.’’

विनय ने हैरानी भरी आवाज में कहा, ‘‘आप ऐसा क्यों बोल रहीं हैं? आप लोग मोतिहारी से बैठे थे न. वहीं आसपास आप की ससुराल होगी. ससुराल नहीं जाना हो तो मायके चली जाइएगा. बताइए, मैं आप को कहां तक छोड़ दूं?’’

सुमन ने विनय से पूछा, ‘‘क्या यहां आसपास कोई लौज होगा? चेन्नई की अगली ट्रेन 2 दिन के बाद इसी प्लेटफार्म से खुलेगी, तब तक के लिए मुझे स्टेशन के नजदीक के किसी लौज में ठहरने का बंदोबस्त कर दीजिए.’’

विनय ने कहा, ‘‘क्या आप का पति अगले स्टेशन पर उतर कर आप को यहां से नहीं ले जाएगा?’’

सुमन ने कहा, ‘‘मेरे पैरों में दर्द है, जिस की वजह से ट्रेन खुलते समय मैं पीछे रह गई. उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा. ट्रेन खुल गई तो मैं ने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने कहा कि नजदीक के लौज में ठहर जाओ, अगली ट्रेन से चेन्नई आ जाना.

मुझे कल सुबह तत्काल में अगली ट्रेन की रिजर्वेशन भी करवानी है, इसलिए स्टेशन के पास ही कोई लौज मिल जाए तो बेहतर होगा.’’

विनय ने कहा, ‘‘क्या आप के पति आप की टिकट करवा कर आप के ह्वाट्सएप पर नहीं भेज सकते? यह जिम्मेदारी तो उन की है न…’’

सुमन ने कहा, ‘‘प्लीज, आप लौज दिलवा दीजिए.’’

विनय ने कहा, ‘‘देखिए सुमनजी, यहां लौज तो मिल जाएगा, लेकिन आप अकेली हैं और यहां के माहौल से
भी आप बिलकुल अनजान हैं. अगर आप को मुझ पर भरोसा हो, तो आप मेरे घर चल सकती हैं. वहां मेरी मां और मेरी छोटी बहन हैं. उन के साथ आप का मन लग जाएगा. कल सुबह मैं ही आप की तत्काल टिकट निकलवा दूंगा और आप को यहां से ट्रेन में भी बिठा दूंगा.’’

सुमन काफी देर सोचती रही, फिर विनय के साथ उस के घर जाने को तैयार हो गई. एक अजनबी शहर में एक अजनबी के साथ अनजानी राहों पर सुमन की जिंदगी की गाड़ी विनय की गाड़ी के साथ चल रही थी. जिंदगी के इस सफर में सुमन को एक अनजाना सा हमराही मिल गया था, जिस पर उसे न जाने क्यों पूरा भरोसा था.

पटना से मोतिहारी के 6 घंटे के सफर में सुमन विनय के बगल वाली सीट पर खामोशी से बैठी रही. इस बीच विनय ने भी उस से कोई सवाल नहीं किया. जिस औरत की जिंदगी ही एक सवाल हो, उस से दूसरा सवाल भी क्या करना?

विनय की इनोवा की अगली सीट पर बैठी सुमन की आंखे बंद थीं. शायद थकान की वजह से वह सो गई थी या आंखें बंद कर अपनी जिंदगी की दुश्वारियों में खो चुकी थी.

विनय बारबार सुमन के खूबसूरत चेहरे को देखता और फिर नजरें घुमा लेता.

रात के 12 बज चुके थे. विनय ने सोती हुई सुमन को आवाज दी, ‘‘सुमनजी, मेरा घर आ गया है.’’

विनय सूटकेस ले कर घर में दाखिल हुआ. सामने विनय की मां और उस की बहन लता खड़ी थीं. विनय के साथ एक खूबसूरत औरत को देख कर वे दोनों काफी हैरान थीं.

विनय ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, ये सुमनजी हैं. इन की ट्रेन छूट गई है, तो मैं इन्हें अपने घर ले आया हूं. 2 दिन बाद अगली ट्रेन है, उस से ये चली जाएंगी.’’

सुमन का सूटकेस लता ने अपने हाथों में लिया और सुमन को ले कर अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह विनय को बहुत सारा काम था. सुमन का तत्काल टिकट करवाना था और सुमन के साथ कुछ वक्त भी गुजारना था, वरना वह 2 अजनबी महिलाओं के साथ बोरियत महसूस करती.

विनय की बहन लता सुमन के साथ घुलमिल गई थी. वह तो सुमन से ऐसे खुश थी जैसे सुमन उस की भाभी हो. सुमन नहाधो कर फ्रैश हो चुकी थी. नए सूट में वह और भी खूबसूरत लग रही थी.

मां ने सुबह का नाश्ता तैयार कर दिया और चारों ने साथ बैठ कर नाश्ता किया. सुमन के घर में आने से घर की रौनक बढ़ गई थी, लेकिन यह रौनक सिर्फ अगले दिन के लिए ही तो थी.

नाश्ते के बाद विनय सुबहसवेरे सुमन की तत्काल टिकट निकलवा लाया और सुमन के हाथों में टिकट रखते हुए वह धीरे से बोला, ‘‘यह लीजिए, कल शाम 5 बज कर 10 मिनट पर चेन्नई की टिकट.’’

सुमन ने विनय के हाथों से टिकट थामते हुए विनय की ओर देखा और बोली, ‘‘टिकट के कितने रुपए देने हैं?’’

विनय ने कहा, ‘‘आप रुपयों की टैंशन छोडि़ए, जब सहीसलामत चेन्नई पहुंच जाना, तो मुझे एक फोन कर देना. बस, वही मेरा मेहनताना होगा.’’

टिकट को मुट्ठी में भींचे सुमन कमरे की ओर बढ़ गई. टिकट कंफर्म होने की कोई खुशी सुमन के चेहरे पर नहीं थी, बल्कि वह चेन्नई जाने का नाम सुन कर ही उदास हो गई थी.

विनय ने लता को आवाज दी और कहा, ‘‘लता, देखो मौसम कितना सुहाना है, तुम सुमन को नदी के किनारे वाले हमारे बगीचे में घुमा लाओ. उन्हें अच्छा लगेगा और दिन भी कट जाएगा. दोपहर तक आ जाना, तब तक खाना तैयार हो जाएगा. फिर सब साथ ही बैठ कर खाएंगे.’’

विनय की बात सुमन ने भी सुन ली थी. वह बोली, ‘‘लता के साथ आप भी चलो न बगीचे में.’’

सुमन की बात सुन कर लता मन ही मन मुसकराई और बोली, ‘‘भैया, आप और सुमनजी दोनों ही बगीचे में चले जाओ. मुझे पढ़ाई करनी है. 2 दिन बाद मेरा इम्तिहान है.’’

थोड़ी ही देर में विनय और सुमन नदी के किनारे बैठे थे. हवा का तेज झांका जब भी सुमन के चेहरे पर पड़ता, उस के खूबसूरत बाल हवा में लहराने लगते. सुहाना मौसम, नदी का किनारा और विनय जैसे आदमी का साथ पा कर सुमन बहुत खुश थी और विनय के लिए भी यह जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था.

तभी सुमन की खूबसूरत आवाज विनय के कानों तक आई, ‘‘विनय, पता है, आसमान और जमीन कभी नहीं मिल पाते, लेकिन ये बादल और यह मौसम ही दोनों को मिला देते हैं. आसमान में उठती हवाएं और आसमान के बादलों से बरसती बूंदें कुछ पल के लिए आसमान और जमीन को एक कर देती हैं.’’

विनय को सुमन की बातों की गहराई सम?ा नहीं आई. वह बोला, ‘‘सुमनजी, क्या मैं आप के बारे में कुछ जान सकता हूं?’’

सुमन ने गहरी सांस ली और कहा, ‘‘भगीरथ से मेरी शादी पिछले साल ही हुई थी. मैं गोपालगंज की रहने वाली हूं और भागीरथ का गांव मोतिहारी है.

2 साल पहले जब मैं बीए में थी, तभी भागीरथ का रिश्ता आया. उस वक्त मैं प्रकाश से प्यार करती थी.
प्रकाश गरीब परिवार से था और जाति भी उस की अलग थी. वह आजीविका के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. भगीरथ सरकारी नौकरी में था और पिछले कई सालों से चेन्नई में पोस्टैड था.

‘‘सरकारी नौकरी के चक्कर में मेरे घर वालों ने भगीरथ से मेरी शादी कर दी. मैं चाह कर भी कुछ न कर पाई.

10 दिन पहले भगीरथ के पापा का देहांत हुआ, तो वह अपने परिवार के साथ गांव आया था.

‘‘मैं शादी के बाद भगीरथ के संग चेन्नई चली गई. शादी के बाद मैं भी बहुत खुश थी, लेकिन मेरी यह खुशी जल्दी ही खत्म हो गई. भगीरथ में प्यार नाम की कोई चीज नहीं है. वह छोटीछोटी बात पर मुझे डांटता है और कई बार हाथ उठा देता है. उस के घर वाले भी उसी का साथ देते हैं. भगीरथ के घर में नौकरानी से ज्यादा मेरी कोई औकात नहीं.’’

‘‘मायके में मेरे भैयाभाभी के अलावा कोई नहीं है. मां पहले ही मर चुकी थीं और मेरी शादी के अगले महीने ही मेरे पिताजी भी गुजर गए. तब मैं चेन्नई में थी और भगीरथ ने मुझे अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी नहीं आने दिया था.’’

इतना कह कर सुमन फफकफफक कर रोने लगी. विनय को समझ नहीं आ रहा था कि सुमन को बिना हाथ लगाए चुप कैसे कराए. आखिरकार विनय ने सुमन के सिर पर हाथ रखा और बोला, ‘‘सुमन, चुप हो जाओ. थोड़ी देर में बारिश होने वाली है. हमें घर चलना चाहिए.’’ Long Hindi Story

Romantic Story In Hindi: इस प्यार को हो जाने दो

Romantic Story In Hindi: कालेज के वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सभी छात्रछात्राएं अपनीअपनी खूबियों के अनुसार कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. अफजल को गजलें लिखने का शौक था. उस की गजल का हर शब्द काबिलेतारीफ होता. पूरा कालेज दीवाना था उस की गजलों का. पूनम को गीतसंगीत बहुत पसंद था. बहुत मीठी आवाज थी उस की. पूरा कालेज उसे ‘स्वर कोकिला’ के नाम से जानता था. दोनों हर कार्यक्रम में एकसाथ ही भाग लेते. और न जाने कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे.

वेलैंटाइन डे पास आ रहा था. कालेज व बाजार में उस का माहौल अपना असर दिखा रहा था. कालेज के कई लड़केलड़कियां कार्ड खरीद कर लाए थे और अफजल से कुछ पंक्तियां लिख कर देने को कह रहे थे ताकि वे कार्ड में लिख अपने प्यार का इजहार कर सकें.

वहीं, कुछ लोगों ने वेलैंटाइन डे पर लाल गुलाब का गुलदस्ता बनवाया था. अफजल आज एक लाल गुलाब ले कर पूनम के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं, पूनम. क्या तुम स्वीकारोगी मेरा प्यार?’’ यह कह वह अपने प्यार का इजहार कर बैठा. पूनम अफजल को मन ही मन चाहने लगी थी. सो, उस ने फूल हाथ में ले, शरमाते हुए, झुकी पलकों संग उस के प्यार को स्वीकार कर लिया था.

दोनों का प्यार बादलों के संग उड़ते हुए आजाद परिंदों की तरह परवाज करने लगा था. कालेज के बाद दोनों छिपछिप कर मिलने लगे थे. लेकिन इश्क और मुश्क भला छिपाए छिपे हैं किसी से? कालेज के सभी लोग उन्हें ‘हंसों का जोड़ा’ के नाम से पुकारते. इसी तरह मिलते और प्यार में डूबे 4 वर्ष बीत गए.

कालेज खत्म कर दोनों अपनीअपनी नौकरियों में लग गए. पूनम अपनी पूरी तनख्वाह अपनी मां के हाथ में रखती, हां, कुछ रुपए हर तनख्वाह में से अपने भाइयों के लिए उपहार के लिए रख लेती.

अब पूनम के घर में उस के विवाह के लिए चर्चा होने लगी थी और वह बहुत चिंतित हो गई थी. आज पूनम जब अफजल से मिली, कहने लगी, ‘‘अफजल, मेरे मातापिता मेरी शादी की बात कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि वे हमारे प्यार को स्वीकारेंगे.’’

अफजल ने जवाब में कहा, ‘‘पूनम, तुम घबराओ नहीं. तुम अपनी मां को बताओ तो सही या मैं तुम्हारे पिताजी से बात करूं?’’

पूनम कहने लगी, ‘‘अफजल, देखती हूं, आज मैं ही मां को बता देती हूं.’’

जैसे ही मां ने सुना, वे तो बिफर पड़ी और आव देखा न ताव, जा बताया पिताजी को. जैसे ही पूनम के पिताजी ने उस के मुंह से अफजल का नाम सुना, तो वे आगबबूला हो उठे. मां तो कोसने लगी,  ‘‘कहा था लड़की को इतनी छूट मत दो. अब पोत रही है न हमारे मुंह पर कालिख. क्या फायदा इस को पढ़ानेलिखाने का. रातदिन इस की चिंता लगी रही. कभी देर से घर आती तो कलेजा मुंह को आ जाता. किंतु यह दिन दिखाएगी, ऐसा तो सोचा भी न था. मैं सोचती थी पढ़लिख जाए तो अच्छे घर में रिश्ता हो जाएगा. अपने पैरों पर खड़ी होगी तो किसी की मुहताज न होगी. पर हमें तो इस ने कहीं का न छोड़ा, अब क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज में.’’

पिताजी बोले, ‘‘अगर प्रेम ही करना था तो कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था. इन मुसलमानों में ही तुझे ज्यादा प्यार नजर आया? उन के घर में बुर्का पहन कर रहेगी? मांसमछली खाएगी? अपने धर्म की गीता छोड़ 5 वक्त नमाज पढ़ेगी? अरे, समझती क्यों नहीं, नाम भी बदल देंगे तेरा, जो कि तेरी अपनी पहचान है, कहीं की न रहेगी तू?’’

पूनम ने कितनी बार समझाने की कोशिश की थी अपनी मां को. वह कहती, ‘‘मां, अफजल एक नेक इंसान है, 4 साल साथ में गुजारे हैं हम ने और फिर हम एकदूसरे को अच्छे से समझते भी हैं. ऐसे में तुम क्यों खिलाफ हो उस के? उस की जगह किसी हिंदू लड़के से शादी कर लूं और हमारे विचार ही आपस में न मेल खाएं तो उस शादी का क्या फायदा मां? शादी तो 2 इंसानों का मिलन होता है, उस में धर्म की दीवार क्यों मां? क्या तुम पिताजी के साथ खुश हो मां?’’ जैसेतैसे अपनी जिंदगी की गाड़ी घसीट ही तो रहे हैं आप लोग.’’

इतना सुन मां ने उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया, ‘‘बेशर्म, जबान लड़ाती है, इतनी अंधी हो गई है उस मुसलमान के प्यार में?’’

उस के घर में तो धर्म का बोलबाला था, कोई उस की बात समझना तो दूर की बात, सुनने के लिए भी तैयार न था. इसी कारण उन दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया. और कोई चारा भी न था.

शादी के बाद जब वे दोनों पूनम के घर आशीर्वाद लेने आए, उस के पिता कहने लगे, ‘‘हमारी छूट व प्यार का गलत फायदा उठाया है तुम ने. जरा सोचो, तुम्हारे छोटे भाइयों का क्या होगा आगे? कुछ तो लिहाज किया होता. बिरादरी में हमारी नाक क्यों कटवा दी? तुझे पैदा होते ही क्यों न मार डाला हम ने? जाओ, अब जहां रिश्ता जोड़ा है वहीं जा कर रहो. अब तो वे तुम्हारा धर्म भी परिवर्तन कर देंगे. अल्लाहअल्लाह करना रातदिन.’’

पूनम चुपचाप सब सुन रही थी. बीचबीच में कुछ बोलने की कोशिश करती, किंतु पिताजी के गुस्से के सामने चुप हो जाती. थोड़ी सी आस अपने दोनों भाइयों से थी. किंतु जैसे ही उस ने उन से नजरें मिलाने की कोशिश की, एक ने तो मुंह फेर लिया और दूसरे ने उस का हाथ पकड़ दरवाजे का रास्ता दिखा दिया और कहा, ‘‘जाओ दीदी, अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हैं.’’

अफजल दरवाजे के बाहर ही खड़ा सुन रहा था. वह चाहता था कि पूनम के पिताजी से बात करे, किंतु पूनम ने उसे रोक दिया था और वह अफजल से बोली, ‘‘चलो अफजल, घर चलते हैं, पिताजी नहीं मानने वाले.’’

उस के जातेजाते पिताजी ने कह दिया था, ‘‘यदि वे तुम्हें इस्तेमाल कर तलाक दे कर निकाल दें तो लौट कर न आना वापस.’’ अफजल को भी बहुत बुरा लग रहा था कि पूनम उस से प्यार व निकाह क्या कर बैठी, आशीर्वाद मिलना तो दूर, उस के लिए उस के मातापिता के घर के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए थे. सो, दोनों अफजल के घर आ पहुंचे.

अफजल की मां ने नई बहू के स्वागत की पूरी तैयारियां कर रखी थीं. अफजल के रिश्तेदार इस विवाह के खिलाफ थे. आखिर हिंदू व मुसलिम एकदूसरे के कट्टर दुश्मन जो बने बैठे हैं. सो, उस की मां अकेली ही स्वागत कर रही थी अपनी बहू का. अफजल की मां ने उसे बेटी सा प्यार दिया. वे कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम मेरे अफजल के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आई हो. अब मैं ही तुम्हारी मांबाप, भाई हूं. इस घर में कोई परेशानी हो तो जरूर कहना.’’

अफजल की मां की बातें पूनम को बहुत सुकून दे रही थीं. कहां तो एक तरफ उस के अपने घर वाले उसे कोस रहे थे और जब से उस की व अफजल की बात उन्हें मालूम हुई, एक दिन भी वह चैन की नींद न सो पाई थी और न ही एक भी निवाला सुकून से खाया था. ऐसा मालूम होता था जैसे बरसों से भूखी हो व थकी हो.

2 दिनों बाद दोनों हनीमून के लिए मसूरी घूमने को गए. वहां की वादियों में दोनों रम जाना चाहते थे. लेकिन वहां भी पूनम को अपने मातापिता की बातें याद आती रहतीं. खैर, 15 दिन पूरे हुए, हनीमून खत्म हुआ. अब अफजल व पूनम दोनों को दफ्तर जाना था. अफजल की मां पूनम को सगी बेटी सा प्यार दे रही थीं. एक ही वर्ष में उस ने चांद सी बेटी को जन्म दिया.

पूनम को लगा शायद उस के मातापिता अपनी नातिन को देख कर खुश हो जाएंगे. सो, एक दिन उस ने अपनी मां को फोन मिलाया. पिताजी ने फोन उठाया और उस की आवाज सुन मां को फोन थमा दिया. मां ने तो उस की बात सुने बिना ही कह दिया, ‘‘पूनम, तुम हमारे लिए सदा के लिए मर चुकी हो.’’

उन की बात सुन कर पूनम खूब रोई. उस दिन पूनम ने मन ही मन अपने मातापिता से सदा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

पूनम अपनी सास के साथ पूरी तरह हिलमिल गई थी. कभीकभी छुट्टी के दिन वह अपनी सास के बुटीक में भी जा कर उन का हाथ बंटाती.

पूनम की सास ने किसी भी मसजिदमजार में जाना बंद कर दिया और पूनम मंदिरों में नहीं जाती. वे नया साल, अपनी विवाह की वर्षगांठ, बच्चों के जन्मदिन जम कर मनाते.

ईद के दिन रिश्तेदारों के यहां खाना खाते और दीवालीहोली पर सब को घर पर खाने पर बुलाते. जो मुसलिम रिश्तेदार पहले नाराज थे, धीरेधीरे घुलमिल गए.

ऐसा चलते पूरे 7 वर्ष बीत गए. अब सास का शरीर भी जवाब देने लगा था. सो, बुटीक कम ही संभालती थीं. लेकिन पूनम उन का पूरा सहारा बन गई थी बुटीक को चलाने में. बारबार सास कहतीं, ‘‘अब शरीर तो साथ देता नहीं, लगता है बुटीक बंद ही करना पड़ेगा और वे बहुत दुखी हो जातीं.’’

पूनम उन के दुख को समझती थी. काम के चलते अफजल एक वर्ष के लिए अमेरिका चले गए. तभी अचानक एक दिन पूनम के भाई का फोन आया. पूनम बहुत खुश हो गई और कहने लगी, ‘‘मां कैसी है?’’ उस के भाई ने उस से बहुत प्यार से बात की. पूनम का मीठा रुख देख अगले दिन मां का भी फोन आया. पूनम तो मानो चहक उठी और पूछने लगी, ‘‘कैसी हो मां तुम सब, पिताजी कैसे हैं?’’

मां कहने लगी, ‘‘बेटी पूनम, तुम्हारे पिता तो बूढ़े हो चले हैं, भाई पढ़ाईलिखाई में तो कुछ खास अच्छे निकले नहीं. सो, तुम्हारे पिताजी ने उन्हें एक दुकान खुलवा दी. किंतु दोनों के दोनों एक फूटी कौड़ी घर में नहीं देते हैं, बल्कि कर्जा और हो गया. जिस बैंक से लोन ले कर कारोबार शुरू किया वह भी अब चुका नहीं पा रहे हैं. यदि तुम कुछ रुपयों का इंतजाम कर सको…’’

उसे ठीक तरह बात करते देख मां ने भाइयों के लोन चुकाने के लिए पूनम से रुपए मांग ही लिए.

अब पूनम सब समझ गई थी कि आज भी उन्होंने पूनम से सिर्फ उन की अपनी जरूरत पूरी करवाने के लिए ही फोन किया था. एक वह दिन था जब वह अफजल से निकाह करना चाहती थी, तो उस के परिवार वालों ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. तब तो उन्हें बेटी से ज्यादा धर्म प्यारा हुआ करता था. और आज, जब पैसों की जरूरत आन पड़ी तो अब वह अपनी हो गई. वरना क्या जैसे अफजल की मां ने हिम्मत कर अकेली हो कर भी गैरधर्म की लड़की को अपना लिया, क्या उस के अपने मांबाप, भाई साथ नहीं दे सकते थे उस का? और उस के निकम्मे भाइयों के लिए मां उस से वापस रिश्ता जोड़ने के लिए राजी हो गई. फिर भी उस ने अपनी मां को मीठा जवाब दे दिया ‘‘हां मां, देखती हूं.’’

और कुछ ही दिनों में जब उस की अपनी सास बीमार हुई और औपरेशन करवाना पड़ा तो पूनम ने अपने बैंक अकाउंट में से पैसे निकलवा कर अपनी सास का दिल का औपरेशन करवाया और उस की सेवा में लग गई. उस के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ सास का बुटीक भी पूरी तरह से संभाल लिया. सास और बहू अब मांबेटी बन गई थीं. पूनम मन ही मन सोचती रहती, ऐसा धर्म किस काम का जिस की दीवार इतनी बड़ी होती है कि उस के सामने खून के रिश्ते भी बौने हो जाते हैं? और अपने धर्म को निभाने के लिए खून से जुड़े रिश्तों ने उसे छोड़ दिया था. उस ने तो धर्म की वह दीवार ढहा दी थी और वह गुनगुना रही थी –

धर्म, जाति, ऊंचनीच की दीवारों को ढह जाने दो.

इस प्यार को हो जाने दो, इस प्यार को हो जाने दो… Romantic Story In Hindi

Hindi Kahani: जिंदगी एक बांसुरी है – सुमन और अजय की कहानी

Hindi Kahani: जोकी हाट का ब्लौक दफ्तर. एक गोरीचिट्टी, तेजतर्रार लड़की ने कुछ दिन पहले वहां जौइन किया था. उसे आमदनी, जाति, घर का प्रमाणपत्र बनाने का काम मिला था. वह अपनी ड्यूटी को मुस्तैदी से पूरा करने में लगी रहती थी. सुबह के 10 बजे से शाम के 4 बजे तक वह सब की अर्जियां लेने में लगी रहती थी. आज उसे यहां 6 महीने होने को आए हैं. अब उस के चेहरे पर शिकन उभर आई है. होंठों से मुसकान गायब हो चुकी है. ऐसा क्या हो गया है? अजय भी ठहरा जानामाना पत्रकार. खोजी पत्रकारिता उस का शगल है. अजय ने मामले की तह तक जाने का फैसला किया. पहले नाम और डेरे का पता लगाया.

नाम है सुमनलता मुंजाल और रहती है शिवपुरी कालोनी, अररिया में.अजय ने फुरती से अपनी खटारा मोटरसाइकिल उठाई और चल पड़ा. पूछतेपूछते वहां पहुंचा. आज रविवार है, तो जरूर वह घर पर ही होगी.

डोर बैल बजाई. वह बाहर निकली. अजय अपना कार्ड दिखा कर बोला, ‘‘मैं एक छोटे से अखबार का प्रतिनिधि हूं मैडमजी. मैं आप से कुछ खास जानने आया हूं.’’

‘फुरसत नहीं है’ कह कर वह अंदर चली गई और अजय टका सा मुंह ले कर लौट आया.

अजय दूसरे उपाय सोचने में लग गया. 15 दिन की मशक्कत के बाद उसे सब पता चल गया. सुमनलता को किसी न किसी बहाने से उस के अफसर तंग करते थे.

अजय ने स्टोरी बना कर छपवा दी. फिर तो वह हंगामा हुआ कि क्या कहने. दोनों की बदली हो गई. अच्छी बात यह हुई कि सुमनलता के होंठों पर पुरानी मुसकान लौट आई.

एक दिन अजय कुछ काम से ब्लौक दफ्तर गया था. उस ने आवाज दे कर बुलाया. अजय चाहता तो अनसुना कर सकता था, पर फुरसत पा कर वह मिला. औपचारिक बातें हुईं. उस ने अजय को घर आने का न्योता दिया और उस का फोन नंबर लिया. बात आईगई हो गई.

3 दिन बाद रविवार था. शाम को अजय को फोन आया. अजनबी नंबर देख कर ‘हैलो’ कहा.

उधर से आवाज आई, ‘सर, मैं मिस मुंजाल बोल रही हूं. आप आए नहीं. मैं सुबह से आप का इंतजार कर रही हूं. अभी आइए प्लीज.’

मिस मुंजाल यानी ‘वह कुंआरी है’ सोच कर अजय तैयार हुआ और चल पड़ा. एक बुके व मिठाई ले ली. डोर बैल बजाते ही उस ने दरवाजा खोला.

साड़ी में वह बड़ी खूबसूरत लग रही थी. वह चहकते हुए बोली, ‘‘आइए, मैं आप का ही इंतजार कर रही थी.’’

अजय भीतर गया. वहां एक औरत बनीठनी बैठी थी. वह परिचय कराते हुए बोली, ‘‘ये मेरी मम्मी हैं. और मम्मी, ये महाशय पत्रकार हैं. मेरे बारे में इन्होंने ही छापा था.’’

अजय ने उन के पैर छू कर प्रणाम किया. वे उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘सदा आगे बढ़ो बेटा. आओ, बैठो.’’

तभी मिस मुंजाल बोलीं, ‘‘आप ने मुझे अभी तक अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’

वह बोला, ‘‘मुझे अजय मोदी कहते हैं. आप सिर्फ मोदी भी कह सकती हैं.’’

‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर वह अंदर गई. पलभर में वह ट्रौली धकेलती हुई आई. उस पर केक सजा हुआ था. देख कर अजय को ताज्जुब हुआ.

उस ने खुलासा किया, ‘‘आज मेरा जन्मदिन है.’’

अजय ने पूछा, ‘‘मेहमान कहां हैं?’’

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप ही मेहमान हैं मिस्टर अजय मोदी.’’

‘‘ओह,’’ अजय ने इतना ही कहा.

मोमबत्ती बुझा कर उस ने केक काटा. पहला टुकड़ा अजय को खिलाया. अजय ने भी उसे और उस की मम्मी को केक खिलाया. फिर बुके व मिठाई के साथ बधाई दी और कहा, ‘‘मैं बस यही ले कर आया हूं. पहले पता होता, तो तैयारी के साथ आता.’’

उस ने इशारे से मना किया और बोली, ‘‘आज प्रोफैशनल नहीं पर्सनल मूमैंट को जीना है.’’

अजय चुप हो गया. रात के 8 बजे वह लौटा, तो वे दोनों अजनबी से एक गहरे दोस्त बन चुके थे.

2 महीने बाद अजय का प्रमोशन हो गया, तो सोचा कि उस के साथ ही सैलिबे्रट करे. फोन किया. उस ने बधाई दी. उस की आवाज में कंपन और उदासी थी.

अजय ने कहा, ‘‘आप आज शाम को तैयार रहना.’’

शाम में वह तैयार हो कर शिवपुरी पहुंचा. वह सजसंवर कर तैयार थी. दोनों मोटरसाइकिल पर बैठ कर चल पड़े.

अजय ने रास्ते में बताया कि वे दोनों पूर्णिया जा रहे हैं. वह कुछ नहीं बोली. होटल हर्ष में सीट बुक थी. खानेपीने का सामान उस की पसंद से और्डर किया. पनीर के पकौड़े, अदरक की चटनी कौफी…

अजय ने कहा, ‘‘मिस मुंजाल, आज हम लोग स्पैशल मूमैंट्स को जीएंगे.’’

वह गजब की मुसकान के साथ बोली, ‘‘जैसा आप कहें सर.’’

अजय ने प्यार से पूछा, ‘‘मिस मुंजाल, मुझे ‘सर’ कहना जरूरी है?’’

वह भी पलट कर बोली, ‘‘मुझे भी ‘मिस मुंजाल’ कहना जरूरी है?’’

अजय ने कहा, ‘‘ठीक है. आज से केवल अजय कहना या फिर मोदी.’’

वह बोली, ‘‘मुझे भी केवल सुमन या लता कहना.’’

फिर वह अपने बारे में बताने लगी कि वह हरियाणा के हिसार की है. नौकरी के सिलसिले में बिहार आ गई, पर अब मन नहीं लग रहा है. एलएलएम कर रही है. बहुत जल्द ही वह यहां से चली जाएगी. उसे वकील बनने की इच्छा है.

फिर अजय ने बताया, ‘‘मैं भी बहुत जल्द दिल्ली जौइन कर लूंगा. हैड औफिस बुलाया जा रहा है.’’

फिर उस ने मुझे एक छोटा सा गिफ्ट दिया. बहुत खूबसूरत ‘ब्रेसलेट’ था, जिस पर अंगरेजी का ‘ए’ व ‘एस’ खुदा था.

मैं ने भी एक सोने की पतली चेन दी. उस में एक लौकेट लगा था और एक तरफ ‘ए’ व दूसरी तरफ ‘एस’ खुदा था.

वह बहुत खुश हुई. ब्रेसलेट पहना कर उस ने अजय का हाथ चूम लिया और सहलाने लगी. वह भी थोड़ा जोश में आ गया. उस ने भी उसे चेन पहनाई और गरदन चूम ली. वह सिसकने लगी.

अजय ने वजह पूछी, तो बोली, ‘‘तुम पहले इनसान हो, जिस ने मेरी बिना किसी लालच के मदद की थी.’’

अजय ने कहा, ‘‘एलएलएम करने तक तुम यहीं रहो. कुछ गलत नहीं होगा. मैं हूं न.’’

उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रात होतेहोते अजय ने उसे उस के डेरे पर छोड़ दिया. विदा लेने से पहले वे दोनों गले मिले.

अजय दूसरे ही दिन गुपचुप तरीके से बीडीओ साहब से मिला. अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और उस की ड्यूटी बदलवा दी.

इस बात को 10 साल गुजर गए. अजय अपने असिस्टैंट के साथ एक मशहूर मर्डर मिस्ट्री की सुनवाई कवर करने पटियाला हाउस कोर्ट गया था.  कोर्ट से बाहर निकल कर वह मुड़ा ही था कि कानों में आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘मिस्टर मोदी, प्लीज रुकिए.’’

अजय ने देखा कि एक लड़की वकील की ड्रैस में हांफती हुई चली आ रही थी. पास आ कर उस ने पूछा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी प्लीज, आर यू मिस्टर अजय मोदी?’’

अजय ने कहा, ‘‘यस. ऐंड यू?’’

उस ने कहा, ‘‘मैं रीना महिंद्रा. आप प्लीज मेरे साथ चलिए. मेरी सीनियर आप को बुला रही हैं.’’

अजय हैरान सा उस के साथ चल पड़ा. पार्किंग में एक लंबी नीली कार खड़ी थी. उस के अंदर एक औरत वकील की ड्रैस में बैठी थी.

अजय के वहां पहुंचते ही वह बाहर निकली और उस के गले लग गई.

अजय यह देख कर अचकचा गया. वह चहकते हुए बोली, ‘‘कहां खो गए मिस्टर मोदी? पहचाना नहीं क्या मुझे? मैं सुमनलता मुंजाल.’’

अजय बोला, ‘‘कैसी हैं आप?’’

वह बोली, ‘‘गाड़ी में बैठो. सब बताती हूं.’’

अजय ने अपने असिस्टैंट को जाने के लिए कहा और गाड़ी में बैठ गया. उस ने भी रीना को मैट्रो से जाने के लिए कहा और खुद ही गाड़ी ड्राइव करने लगी.

वह लक्ष्मी नगर के एक फ्लैट में ले आई. अजय को एक गिलास पानी ला कर दिया और खुद फ्रैश होने चली गई.

कुछ देर बाद टेबल पर नाश्ता था, जिसे उस ने खुद बनाया था. फिर वह अपनी जिंदगी की कहानी बताने लगी.

‘‘आप ने तो चुपचाप मेरी ड्यूटी बदलवा दी. कुछ दिन बाद ही मुझे पता चल गया. सभी ताने मारने लगे. मुझ से सभी आप का रिलेशन पूछने लगे, तो मैं ने ‘मंगेतर’ बता दिया.

‘‘काफी समय बीत जाने पर भी जब आप नहीं मिले और न ही फोन लगा, तो मैं परेशान हो गई. पता चला कि आप दिल्ली में हो और अखबार भी बंद हो गया है.

‘‘मैं समझ गई कि आप जद्दोजेहद कर रहे होंगे. इधर मेरी मां को लकवा मार गया. मेरी एलएलएम भी पूरी हो गई थी. उस नौकरी से मैं तंग आ ही चुकी थी.

‘‘मां के इलाज के बहाने मैं दिल्ली चली आई. एक महीने बाद मेरी मां चल बसीं. फिर मेरा संघर्ष भी शुरू हो गया. दिल्ली हाईकोर्ट जौइन कर लिया और धीरेधीरे मैं क्रिमिनल वकील के रूप में मशहूर हो गई.’’

अजय मुसकरा कर रह गया.

उस ने पूछा, ‘‘आप बताओ, कैसी कट रही है?’’

अजय ने बताया, ‘‘दिल्ली आने के कुछ महीनों बाद ही अखबार बंद हो गया. मैं ने हर छोटाबड़ा काम किया. ठेला तक चलाया. अखबार बेचा. फिर एक दिन एक रिपोर्टिंग कर एक अखबार को भेजी और उसी में मुझे काम मिल गया. आज तक उसी में हूं.’’

‘‘बीवीबच्चे कैसे हैं?’’

अजय ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘मैडम मुंजाल, जब अपना पेट ही नहीं भर रहा हो, तो फिर वह सब कैसे?’’

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘तब तो ठीक है.’’

अजय बोला, ‘‘सच कहूं, तो तुम्हारी जैसी कोई मिली ही नहीं और न ही मिलेगी. जहां इतनी कट गई है, तो आगे भी कट ही जाएगी.’’

वह बोली, ‘‘अच्छी बात है.’’

अजय ने पूछा, ‘‘तुम्हारे बालबच्चे कहां और कैसे हैं?’’

वह फीकी मुसकान के साथ बोली, ‘‘एक भिखारी दूसरे भिखारी से पूछ रहा है, तुम ने कितना पैसा जमा किया है.’’

फिर वह चेन दिखाते हुए बोली, ‘‘याद है न… ये चेन आप ने ही पहनाई थी. मैं ने तब से ही इसे अपना ‘मंगलसूत्र’ मान लिया है. समझे…’’

‘‘और फिर मैं हरियाणवी हूं. पति के शहीद होने पर भी दूसरी शादी नहीं करते, यहां तो मेरा ‘खसम’ मोरचे पर गया था, शहीद थोड़े ही हुआ था.’’

अजय उस की प्यार वाली बात सुन कर फफकफफक कर रोने लगा. वह उस के आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘कितना झंडू ‘खसम’ हो आप मेरे? मर्द हो कर रोते हो?’’

अजय ‘खसम’ शब्द पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आई एम सौरी माई लव. यू आर ग्रेट ऐंड आई लव यू वैरी मच.’’

वह भी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, इसलिए पलट कर मेरी खबर तक नहीं ली.’’

इस के बाद अजय को अपनी बांहों में कसते हुए वह बोली, ‘‘मैं इस ‘अनोखे मंगलसूत्र’ को दिखादिखा कर थक चुकी हूं, मोदी डियर. अब सब के सामने मुझे स्वीकार भी कर लो प्लीज.’’

वे दोनों अगले हफ्ते ही एक भव्य समारोह में एकदूसरे के हो गए. कहा भी गया है कि जिंदगी एक बांसुरी की तरह होती है. अंदर से खोखली, बाहर से छेदों से भरी और कड़ी भी, फिर भी बजाने वाले इसे बजा कर ‘मीठी धुन’ निकाल ही लेते हैं. Hindi Kahani

Hindi Story: सच्चा प्यार – दो चाहने वाले दिल न चाहते हुए भी जुदा हो गए

Hindi Story: अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी. शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था.

उस दिन उन का 10वीं के बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था. शिखा भी अनुपम के घर अपना रिजल्ट देखने आई. अनुपम ने अपना लैपटौप खोला और बोर्ड की वैबसाइट पर गया. कुछ ही पलों में दोनों का रिजल्ट भी पता चल गया. अनुपम को 95 प्रतिशत अंक मिले थे और शिखा को 85 प्रतिशत. दोनों अपनेअपने रिजल्ट से संतुष्ट थे. और एकदूसरे को बधाई दे रहे थे. अनुपम की मां ने दोनों का मुंह मीठा कराया.

शिखा बोली, ‘‘अब आगे क्या पढ़ना है, मैथ्स या बायोलौजी? तुम्हारे तो दोनों ही सब्जैक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं?’’

‘‘मैं तो पीसीएम ही लूंगा. और तुम?’’

‘‘मैं तो आर्ट्स लूंगी, मेरा प्रशासनिक सेवा में जाने का मन है.’’

‘‘मेरी प्रशासनिक सेवा में रुचि नहीं है. जिंदगीभर नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हें एक सलाह दूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम पायलट बनो. तुम पर पायलट वाली ड्रैस बहुत सूट करेगी और तुम दोगुना स्मार्ट लगोगे. मैं भी तुम्हारे साथसाथ हवा में उड़ने लगूंगी.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पायलट अपनी बीवी को साथ नहीं ले जा सकते, क्या.’’

तब शिखा को ध्यान आया कि वह क्या बोल गई और शर्म के मारे वहां से भाग गई. अनुपम पुकारता रहा पर उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा. थोड़ी देर में अनुपम की मां भी वहां आ गईं. वे उन दोनों की बातें सुन चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शिखा ने अनजाने में अपने मन की बात कह डाली है. शिखा तो अच्छी लड़की है. मुझे तो पसंद है. तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो. अगर तुम्हें पसंद है तो मैं उस की मां से बात करती हूं.’’

अनुपम बोला, ‘‘यह तो बाद की बात है मां, अभी तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. पहले मुझे अपना कैरियर देखना है.’’

मां बोलीं, ‘‘शिखा ने अच्छी सलाह दी है तुम्हें. मेरा बेटा पायलट बन कर बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मी, उस में बहुत ज्यादा खर्च आएगा.’’

‘‘खर्च की चिंता मत करो, अगर तुम्हारा मन करता है तब तुम जरूर पायलट बनो अन्यथा अगर कोई और पढ़ाई करनी है तो ठीक से सोच लो. तुम्हारी रुचि जिस में हो, वही पढ़ो,’’ अनुपम के पापा ने उन की बात सुन कर कहा.

उन दिनों 21वीं सदी का प्रारंभ था. भारत के आकाशमार्ग में नईनई एयरलाइंस कंपनियां उभर कर आ रही थीं. अनुपम ने मन में सोचा कि पायलट का कैरियर भी अच्छा रहेगा. उधर अनुपम की मां ने भी शिखा की मां से बात कर शिखा के मन की बात बता दी थी. दोनों परिवार भविष्य में इस रिश्ते को अंजाम देने पर सहमत थे.

एक दिन स्कूल में अनुपम ने शिखा से कहा, ‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं पायलट ही बनूंगा. तुम मेरे साथ उड़ने को तैयार रहना.’’

‘‘मैं तो न जाने कब से तैयार बैठी हूं,’’ शरारती अंदाज में शिखा ने कहा.

‘‘ठीक है, मेरा इंतजार करना, पर कमर्शियल पायलट बनने के बाद ही शादी करूंगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम.’’

अब अनुपम और शिखा दोनों काफी नजदीक आ चुके थे. दोनों अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगे थे. देखतेदेखते दोनों 12वीं पास कर चुके थे. अनुपम को अच्छे कमर्शियल पायलट बनने के लिए अमेरिका के एक फ्लाइंग स्कूल जाना था.

भारत में मल्टीइंजन वायुयान और एयरबस ए-320 जैसे विमानों पर सिमुलेशन की सुविधा नहीं थी जोकि अच्छे कमर्शियल पायलट के लिए जरूरी था. इसलिए अनुपम के पापा ने गांव की जमीन बेच कर और कुछ प्रोविडैंट फंड से लोन ले कर अमेरिकन फ्लाइंग स्कूल की फीस का प्रबंध कर लिया था. अनुपम ने अमेरिका जा कर एक मान्यताप्राप्त फ्लाइंग स्कूल में ऐडमिशन लिया. शिखा ने स्थानीय कालेज में बीए में ऐडमिशन ले लिया.

अमेरिका जाने के बाद फोन और वीडियो चैट पर दोनों बातें करते. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. देखतेदेखते 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका था. अनुपम को कमर्शियल पायलट लाइसैंस मिल गया. शिखा को प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. उस ने अनुपम से कहा कि प्रशासनिक सेवा के लिए वह एक बार और कंपीट करने का प्रयास करेगी.

अनुपम ने प्राइवेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी जौइन की. लगभग 2 साल वह घरेलू उड़ान पर था. एकदो बार उस ने शिखा को भी अपनी फ्लाइट से सैर कराई. शिखा को कौकपिट दिखाया और कुछ विमान संचालन के बारे में बताया. शिखा को लगा कि उस का सपना पूरा होने जा रहा है. एक साल बाद अनुपम को अंतर्राष्ट्रीय वायुमार्ग पर उड़ान भरने का मौका मिला. कभी सिंगापुर, कभी हौंगकौंग तो कभी लंदन.

शिखा को दूसरे वर्ष भी प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. इधर शिखा के परिवार वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते थे. अनुपम ने उन से 1-2 साल का और समय मांगा. दरअसल, अनुपम के पिता उस की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले चुके थे. अनुपम चाहता था कि अपनी कमाई से कुछ कर्ज उतार दे और छोटी बहन की शादी हो जाए.

वैसे तो वह प्राइवेट एयरलाइंस घरेलू वायुसेवा में देश में दूसरे स्थान पर थी पर इस कंपनी की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी. 2007 में कंपनी ने दूसरी घरेलू एयरलाइंस कंपनी को खरीदा था जिस के बाद इस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी थी. 2010 तक हालत बदतर होने लगे थे. बीचबीच में कर्मचारियों को बिना वेतन 2-2 महीने काम करना पड़ा था.

उधर शिखा के पिता शादी के लिए अनुपम पर दबाव डाल रहे थे. पर बारबार अनुपम कुछ और समय मांगता ताकि पिता का बोझ कुछ हलका हो. जो कुछ अनुपम की कमाई होती, उसे वह पिता को दे देता. इसी वजह से अनुपम की बहन की शादी भी अच्छे से हो गई. उस के पिता रिटायर भी हो गए थे.

रिटायरमैंट के समय जो कुछ रकम मिली और अनुपम की ओर से मिले पैसों को मिला कर उन्होंने शहर में एक फ्लैट ले लिया. पर अभी भी फ्लैट के मालिकाना हक के लिए और रुपयों की जरूरत थी. अनुपम को कभी 2 महीने तो कभी 3 महीने पर वेतन मिलता जो फ्लैट में खर्च हो जाता. अब भी एक बड़ी रकम फ्लैट के लिए देनी थी.

एक दिन शिखा के पापा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज अनुपम से फाइनल बात कर लेता हूं, आखिर कब तक इंतजार करूंगा और दूसरी बात, मुझे पायलट की नौकरी उतनी पसंद भी नहीं. ये लोग देशविदेश घूमते रहते हैं. इस का क्या भरोसा, कहीं किसी के साथ चक्कर न चल रहा हो.’’

अनुपम के मातापिता तो चाहते थे कि अनुपम शादी के लिए तैयार हो जाए, पर वह तैयार नहीं हुआ. उस का कहना था कि कम से कम यह घर तो अपना हो जाए, उस के बाद ही शादी होगी. इधर एयरलाइंस की हालत बद से बदतर होती गई. वर्ष 2012 में जब अनुपम घरेलू उड़ान पर था तो उस ने दर्दभरी आवाज में यात्रियों को संबोधित किया, ‘‘आज की आखिरी उड़ान में आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिला. हम ने 2 महीने तक बिना वेतन के अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार आप की सेवा की है.’’

इस के चंद दिनों बाद इस एयरलाइंस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का लाइसैंस रद्द कर दिया गया. पायलट हो कर भी अनुपम बेकार हो गया.

शिखा के पिता ने बेटी से कहा, ‘‘बेटे, हम ने तुम्हारे लिए एक आईएएस लड़का देखा है. वे लोग तुम्हें देख चुके हैं और तुम से शादी के लिए तैयार हैं. वे कोई खास दहेज भी नहीं मांग रहे हैं वरना आजकल तो आईएएस को करोड़ डेढ़करोड़ रुपए आसानी से मिल जाता है.’’

‘‘पापा, मैं और अनुपम तो वर्षों से एकदूसरे को जानते हैं और चाहते भी हैं. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. हम कुछ और इंतजार कर सकते हैं. हर किसी का समय एकसा नहीं होता. कुछ दिनों में उस की स्थिति भी अच्छी हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है.’’

‘‘हम लोग लगभग 2 साल से उसी के इंतजार में बैठे हैं, अब और समय गंवाना व्यर्थ है.’’

‘‘नहीं, एक बार मुझे अनुपम से बात करने दें.’’

शिखा ने अनुपम से मिल कर यह बात बताई. शिखा तो कोर्ट मैरिज करने को भी तैयार थी पर अनुपम को यह ठीक नहीं लगा. वह तो अनुपम का इंतजार भी करने को तैयार थी.

शिखा ने पिता से कहा, ‘‘मैं अनुपम के लिए इंतजार कर सकती हूं.’’

‘‘मगर, मैं नहीं कर सकता और न ही लड़के वाले. इतना अच्छा लड़का मैं हाथ से नहीं निकलने दूंगा. तुम्हें इस लड़के से शादी करनी होगी.’’

उस के पिता ने शिखा की मां को बुला कर कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाओ वरना मैं अभी के तुम को गोली मार कर खुद को भी गोली मार दूंगा.’’ यह बोल कर उन्होंने पौकेट से पिस्तौल निकाल कर पत्नी पर तान दी.

मां ने कहा, ‘‘बेटे, पापा का कहना मान ले. तुम तो इन का स्वभाव जानती हो. ये कुछ भी कर बैठेंगे.’’

शिखा को आखिरकार पिता का कहना मानना पड़ा ही शिखा अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. उस के पास सबकुछ था, घर, बंगला, नौकरचाकर. कुछ दिनों तक तो वह थोड़ी उदास रही पर जब वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का मन अब अपने गर्भ में पलने वाले जीव की ओर आकृष्ट हुआ.

उधर, अनुपम के लिए लगभग 1 साल का समय ठीक नहीं रहा. एक कंपनी से उसे पायलट का औफर भी मिला तो वह कंपनी उस की लाचारी का फायदा उठा कर इतना कम वेतन दे रही थी कि वह तैयार नहीं हुआ. इस के कुछ ही महीने बाद उसे सिंगापुर के एक मशहूर फ्लाइंग एकेडमी में फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. वेतन, पायलट की तुलना में कम था पर आराम की नौकरी थी. ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी थी  इस नौकरी में. अनुपम सिंगापुर चला गया.

इधर शिखा ने एक बेटे को जन्म दिया. देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. अनुपम के मातापिता अब उस की शादी के लिए दबाव बना रहे थे. अनुपम ने सबकुछ अपने मातापिता पर छोड़ दिया था. उस ने बस इतना कहा कि जिस लड़की को वे पसंद करें उस से फाइनल करने से पहले वह एक बार बात करना चाहेगा.

कुछ दिनों बाद अनुपम अपने एक दोस्त की शादी में भारत आया. वह दोस्त का बराती बन कर गया. जयमाला के दौरान स्टेज पर ही लड़की लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का बाएं पैर का निचला हिस्सा कृत्रिम था, जो निकल पड़ा था. पूरी बरात और लड़की के यहां के मेहमान यह देख कर आश्चर्यचकित थे.

दूल्हे के पिता ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. आप लोगों ने धोखा दिया है.’’

लड़की के पिता बोले, ‘‘आप को तो मैं ने बता दिया था कि लड़की का एक पैर खराब है.’’

‘‘आप ने सिर्फ खराब कहा था. नकली पैर की बात नहीं बताई थी. यह शादी नहीं होगी और बरात वापस जाएगी.’’

तब तक लड़की का भाई भी आ कर बोला, ‘‘आप को इसीलिए डेढ़ करोड़ रुपए का दहेज दिया गया है. शादी तो आप को करनी ही होगी वरना…’’

अनुपम का दोस्त, जो दूल्हा था, ने कहा, ‘‘वरना क्या कर लेंगे. मैं जानता हूं आप मजिस्ट्रेट हैं. देखता हूं आप क्या कर लेंगे. अपनी दो नंबर की कमाई के बल पर आप जो चाहें नहीं कर सकते. आप ने नकली पैर की बात क्यों छिपाई थी. लड़की दिखाने के समय तो हम ने इस की चाल देख कर समझा कि शायद पैर में किसी खोट के चलते लंगड़ा कर चल रही है, पर इस का तो पैर ही नहीं है, अब यह शादी नहीं होगी. बरात वापस जाएगी.’’

तब तक अनुपम भी दोस्त के पास पहुंचा. उस के पीछे एक महिला गोद में बच्चे को ले कर आई. वह शिखा थी. उस ने दुलहन बनी लड़की का पैर फिक्स किया. वह शिखा से रोते हुए बोली, ‘‘भाभी, मैं कहती थी न कि मेरी शादी न करें आप लोग. मुझे बोझ समझ कर घर से दूर करना चाहा था न?’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसी बात नहीं है. हम तो तुम्हारा भला सोच रहे थे.’’ शिखा इतना ही बोल पाई थी और उस की आंखों से आंसू निकलने लगे. इतने में उस की नजर अनुपम पर पड़ी तो बोली, ‘‘अनुपम, तुम यहां?’’

अनुपम ने शिखा की ओर देखा. मुन्नी और विशेष कर शिखा को रोते देख कर वह भी दुखी था. बरात वापस जाने की तैयारी में थी. दूल्हेदोस्त ने शिखा को देख कर कहा, ‘‘अरे शिखा, तुम यहां?’’

‘‘हां, यह मेरी ननद मुन्नी है.’’

‘‘अच्छा, तो यह तुम लोगों का फैमिली बिजनैस है. तुम ने अनुपम को ठगा और अब तुम लोग मुझे उल्लू बना रहे थे. चल, अनुपम चल, अब यहां नहीं रुकना है.’’

अनुपम बोला, ‘‘तुम चलो, मैं शिखा से बात कर के आता हूं.’’

बरात लौट गई. शिखा अनुपम से बोली, ‘‘मुझे उम्मीद है, तुम मुझे गलत नहीं समझोगे और माफ कर दोगे. मैं अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए मजबूर थी. अगर ऐसा नहीं करती तो मैं

अपनी मम्मी और पापा की मौत की जिम्मेदार होती.’’

‘‘मैं ने न तुम्हें गलत समझा है और न ही तुम्हें माफी मांगने की जरूरत है.’’

लड़की के पिता ने बरातियों से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्षमा करें, मैं बेटी के हाथ तो पीले नहीं कर सका लेकिन आप लोग कृपया भोजन कर के जाएं वरना सारा खाना व्यर्थ बरबाद जाएगा.’’

मेहमानों ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारे गले के अंदर निवाला नहीं उतरेगा. बिटिया की डोली न उठ सकी इस का हमें भी काफी दुख है. हमें माफ करें.’’

तब अनुपम ने कहा, ‘‘आप की बिटिया की डोली उठेगी और मेरे घर तक जाएगी. अगर आप लोगों को ऐतराज न हो.’’

वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें अनुपम पर गड़ी थीं. लड़की के पिता ने  झुक कर अनुपम के पैर छूने चाहे तो उस ने तुरंत उन्हें मना किया.

शिखा के पति ने कहा, ‘‘मुझे शिखा ने तुम्हारे बारे में बताया था कि तुम दोनों स्कूल में अच्छे दोस्त थे. पर मैं तुम से अभी तक मिल नहीं सका था. तुम ने मेरे लिए ऐसे हीरे को छोड़ दिया.’’

मुन्नी की शादी उसी मंडप में हुई. विदा होते समय वह अपनी भाभी शिखा से बोली, ‘‘प्यार इस को कहते हैं, भाभी. आप के या आप के परिवार को अनुपम अभी भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं.’’ Hindi Story

Story In Hindi: धोखा – प्रेम सच्चा हो तो जिंदगी में खुशियों की सौगात लाता है

Story In Hindi: घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’ ‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था. ‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’ ‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’ कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’ ‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली. ‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’ ‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा. ‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’ ‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’ शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा. शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’ ‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया. ‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’ ‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’ थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’ ‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’ ‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा. ‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’ ‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’ 1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’ जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’ शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई. सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’ ‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे. शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया. राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप रहना पड़ा था. ‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा. अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी. Story In Hindi

Hindi Funny Story: गिरगिर रिकौर्ड गिर

Hindi Funny Story: जबजब सज्जनों की तर्ज पर मैं गलती से सच्ची में नेकी वाला कोई काम करता हूं, तो हफ्ताभर शर्म से सिर नीचा किए रहता हूं. यह सोच कर कि जन्मजात समाज विरोधी काम करने वाले गधे, यह तू ने क्या कर दिया? इसे आप सीधेसीधे यों भी कह सकते हैं कि शायद मुझे नेकी का काम करते हुए शर्म आती है.

दरअसल, मैं अपने हाथ चलाता बुरे काम के लिए हूं और उन से गलती से यों अच्छा काम हो ही जाता है. इसे आप मेरी नहीं, बल्कि मेरे हाथों की लापरवाही भी कह सकते हैं.

अच्छा काम गलती से हो जाने के बाद पछतावे के तौर पर सिर नीचा किए मैं सुबह सैर को निकला था कि सामने रुपया गिरने की बेशर्मी के सारे रिकौर्ड तोड़़ने के बाद भी गर्व से सिर ऊंचा किए सीना ताने चला आ रहा था जौगिंग करता हुआ.

मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की जयजयकार का जमाना है. मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की हुंकार का जमाना है. फिर भी पता नहीं क्यों आप से यों ही पूछ रहा हूं कि ये बेशर्म टाइप के लोग ऐसे क्यों होते होंगे भाई साहब? इन्हें इज्जतबेइज्जती में कोई फर्क नजर आता होगा कि नहीं?

कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के अपने सब से निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे जौगिंग. कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे अपनी सेहत सुधारने के लिए सैर. गले में स्मार्ट वाच लटकाए रोज 10 हजार स्टैप्स चल, चाहे 20 हजार. अपनी सेहत के हित में जिस की सेहत बिगाड़ने वाले सड़क से संसद तक बैठे हों, उस की सेहत में सुधार वह खुद तो क्या, कुदरत भी नहीं कर सकती.

वह चाहे कितनी ही जौगिंग कर ले. वह चाहे कितनी ही सैर कर ले. वह कितने ही अपनी सेहत सुधार के लिए स्वदेशी से ले कर विदेशी टौनिक ले ले. उस की अपनी सेहत सुधार के लिए हर इंपोर्टेड टौनिक उस की सेहत बिगाड़ने वालों को ही लगते हैं. टौनिक वह लेता है और हट्टेकट्टे वे होते हैं बिस्तर पर लेटेलेटे. इन दिनों पेट मेहनत की खाने वालों के बढ़ते देखे गए हैं, दूसरों के हिस्से की खाने वालों के नहीं.

खुद हद का गिरा हुआ होने के बावजूद भी हर टाइप के गिरे हुए की तरह उस गिरे हुए से भी बात करने को मन तो नहीं हो रहा था, फिर भी पता नहीं उस से क्यों बात कर बैठा? मतलबी से मतलबी आदमी किसी से बात किए बिना आखिर कब तक रह सकता है.

‘रुपया भाई, एक बात तो बताना बुरा न लगे तो, रिकौर्ड स्तर पर गिरने के बाद भी तुम इतनी जिंदादिली से यह सब कैसे कर लेते हो? रोजरोज गिरते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती क्या? अब तो जनता पर रहम करो.

‘अरे यार, मेरी तरह ऊपर उठ नहीं सकते तो कम से कम कुछ दिनों के लिए वहां तो रुक जाया करो जहां गिरते हो. मुझे तुम्हारा सबकुछ पसंद है, लेकिन रोजरोज गिरना कतई पसंद नहीं.

‘अपने हो, इसलिए कह रहा हूं. पड़ोसी होते तो कुछ न कहता. जितना गिरना होता गिरते रहते, मेरी
बला से.’

इस पर रुपए ने कहा, ‘रहम करें वे जो मुझे गिरातेगिराते ऊपर से ऊपर उठे जा रहे हैं. वैसे डियर, गिरा हुआ यहां कौन नहीं? यहां पलपल कौन नहीं गिर रहा बंधु. यहां नंदू से ले कर चंदू तक सब तो गिर रहे हैं.

‘किसी का यहां ईमान गिर रहा है, तो किसी का सम्मान. कोई अपने कर्म से गिर रहा है, तो कोई जीने के मर्म से. यहां गिरना सच है तो ऊपर उठना ?ाठ. ऐसे में मु?ा गिरे हुए को काहे की शर्म? शर्म वे करें जिन्हें गिरने में शर्म महसूस होती हो.

‘हां, शुरूशुरू में गिरने पर शर्म जरूर महसूस होती थी. पर जब कोई बारबार गिरने लग जाए तो वह शर्म से ऊपर उठ जाता है. बारबार गिरने की लत लग जाने के बाद उसे नैतिकता की कितनी ही ब्रांडेड घुट्टियां पिला लो, उसे उठने को जोर देने के लिए कितने ही प्रवचन सुना लो, पर तब वह पलपल गुनगुनाता हुआ, इतराता हुआ गिरता ही जाता है, क्योंकि तब उस की जिंदगी का एकलौता मकसद बचता है, बस गिरना… गिरना… गिरना…

‘अब तो हर गिरने वाले की तरह मुझे भी अपने रोजाना गिरने पर खुशी नहीं, बहुत खुशी होती है. अब सब की तरह चाहता हूं कि मैं अपने गिरने के रोज अपने रिकौर्ड अपनेआप ही तोड़ता रहूं, इसलिए जबजब पिछले गिरने के रिकौर्ड से और नीचे गिरता हूं, तो अपने गिरने पर जम कर अब्दुल्ला हो नागिन डांस कर लेता हूं. खुद को खुद की बांहों में जी भर लेता हूं.

‘दोस्त, इज्जत की कुरसियों पर लेटे रोजाना गिरने वालों से पूछो तो पता चले कि आज गिरने में कितना मजा छिपा है.

‘आज मेहनत करतेकरते ऊपर उठना सब से बड़ी गलती है. दूसरे, मेहनत करते हुए कोई आज ऊपर उठ भी नहीं सकता. मेहनत के बाद भी गिरे किसी को कहां उठने देते हैं? गिरने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती.

तुम्हारे पास दूर तक देखने की नजर नहीं है तो लो, मेरी दूरबीन से देखो, यहां जो आज जितना गिरा हुआ है, वह आज उतना ही इज्जत से उठा हुआ है.

‘आज इज्जत ऊपर उठने वालों की नहीं, गिरने वालों की है. समाज आज इज्जत ऊपर उठने वालों को नहीं, गिरने वालों को देता है. ऐसे में रिकौर्ड गिरने के बाद भी जो मैं शान से फिट रहने की कोशिश कर रहा हूं, तो तुम्हारे पेट में मरोड़ क्यों उठ रही है?’ रुपए ने मेरे माथे पर आया पसीना पोंछा और नकटा आगे हो लिया.

बेशर्मों के क्या सींग होते हैं भाई साहब… Hindi Funny Story

Family Story In Hindi: सोमा

Family Story In Hindi, लेखक – रंगनाथ द्विवेदी

सोमा अपने 2 कमरे के मकान में बिलकुल अकेली रहती थी. ऐसा नहीं है कि अकेले रहना उस का कोई शौक था. दरअसल, उस के मांबाप उसे बचपन में ही अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे. उन के मरने के बाद सोमा घर में बिलकुल अकेली रह गई थी.

सोमा के मम्मीपापा ने गैरजातीय ब्याह किया था, जिस की नाराजगी की वजह से सोमा के मम्मीपापा से उन के घर वालों ने अपना सारा रिश्ता हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर लिया था.

अनाथ और बेसहारा सोमा ने मेहनतमजदूरी कर के खुद को बिना किसी सहारे के पालापोसा था. अब वह पूरे 24 साल की हो चुकी थी. उस का रंग यों तो सांवला था, लेकिन उसे कुदरत ने इतनी अच्छी शक्लसूरत दी थी कि वह किसी भी गोरी लड़की से ज्यादा खूबसूरत लगती थी.

एक तरह से कहूं तो सोमा मुझे मन ही मन बहुत पसंद थी, लेकिन अपने दिल की बात उस से कहने की कभी मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी.

इस की सब से बड़ी वजह थी सोमा का झगड़ालू स्वभाव. अकसर जब मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो कर अपने घर से निकलता था, तो उसे रोजाना महल्ले में किसी न किसी से जोरजोर से लड़तेझगड़ते हुए देखता था.

कभीकभार तो सोमा औरतों और मर्दों को ऐसीऐसी गालियां दे देती थी कि अच्छेअच्छे गाली देने वालों तक की टैं बोल जाए. सच तो यह था कि पूरी कालोनी ही उस के इस झगड़ालू स्वभाव की वजह से उस से बचती थी.

यहां तक कि महल्ले के ऐसे जवानजहान लड़के भी सोमा को देखते ही अपना रास्ता बदल लेते थे, जो दूसरी जवान लड़कियों पर दिनभर डोरे डालने की फिराक में रहा करते थे. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं गलती से भी अगर सोमा की तरफ उन की आंख उठ गई, तो उन की इज्जत की खैर नहीं. न जाने कब वह चप्पल निकाल कर उन की धुनाई शुरू कर दे और लड़?ागड़ कर पूरे महल्ले को अपने सिर पर उठा ले.

आज लगातार यह चौथा दिन था, जब मेरे दफ्तर जाते समय मैं ने कालोनी में किसी औरत या मर्द से सोमा के झगड़ने और गालीगलौज देने की आवाज नहीं सुनी. शाम को जब मैं अपने दफ्तर से घर के लिए निकला, तो रास्तेभर यह सोचता हुआ अपने कमरे पर लौटा कि किसी तरह हिम्मत कर के आज मैं यह जानने की कोशिश करूंगा कि आखिर सोमा 3-4 दिन से कहां है?

यह एक तरह से मेरे दिल में सोमा के लिए छिपा हुआ वह प्यार ही था जो मुझे कहीं न कहीं सोमा की खोजखबर लेने के लिए बढ़ावा दे रहा था. लेकिन सवाल यह था कि मैं सोमा के बारे में कालोनी में किस से पूछूंगा कि आखिर वह 3-4 दिनों से दिख क्यों नहीं रही? क्या कोई बात है या कहीं वह किसी नातेरिश्तेदार के आने पर उस के साथ चली गई है?

लेकिन नातेरिश्तेदार वाला सवाल मेरे मन को जमा नहीं, क्योंकि जितना मैं ने सोमा के बारे में लोगों से जाना और सुना था, उस के मुताबिक ऐसा होना मुमकिन नहीं था.

फिर कुछ देर यों ही सोचते रहने के बाद मैं खुद ही डरता और मन ही मन कांपता हुआ सोमा के उस 2 कमरे की मकान की तरफ चल पड़ा.

जब मैं उस के मकान के पास पहुंचा तो लगा कि जैसे अभी सोमा धड़धड़ाते हुए अपने कमरे का दरवाजा खोलेगी और मुझ से बिना कुछ पूछे बेतहाशा झगड़ पड़ेगी.

लेकिन यह मेरा भरम ही साबित हुआ, क्योंकि सोमा का दरवाजा बिना खटखटाए ही भला वह कैसे जान सकती थी कि मैं उस के दरवाजे के पास खड़ा हूं.

फिर थोड़ी देर मैं ने खुद को सोमा के घर के दरवाजे के सामने सामान्य हो लेने दिया. जब खुद को काफी सामान्य महसूस किया, तो मैं ने हिम्मत कर के उस के दरवाजे की सांकल खटखटा कर पूछा, ‘‘कोई है?’’

लेकिन मेरे ‘कोई है?’ कहने में वह दम नहीं था, जो अगले को साफ सुनाई दे. एक बार फिर मैं ने किसी तरह जोर से सांकल बजाने के साथ ही कहा, ‘‘कोई है?’’

इस बार शायद मेरी आवाज को सोमा ने सुन लिया लिया था, क्योंकि अंदर से आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
मैं ने जब गौर किया तो मुझे एकबारगी यकीन ही नहीं आया कि यह उसी सोमा की आवाज थी, जो अगर एक बार बोल देती थी तो कालोनी के किसी भी आदमी या औरत की घिग्गी बंध जाती थी.

सोमा ने फिर कहा, ‘‘कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘जी मैं.’’

‘‘अरे, कौन मैं?’’ इस बार सोमा ने अपनी आवाज कड़क करने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मुझे साफसाफ लग रहा था कि उस दबंग सोमा की आवाज यह भी नहीं थी.

कुछ देर बाद पता नहीं सोमा ने क्या सोचा और कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है. अंदर आ जाओ.’’

जब मैं कमरे के अंदर सोमा के पास पहुंचा, तो मैं ने उसे एक पुराने से बिस्तर पर लेटे हुए देखा. मैं यह अच्छे से समझ गया था कि सोमा की तबीयत ठीक नहीं है.

फिर सोमा धीरे से बोली, ‘‘अरे, अंबर तुम.’’

हालांकि सोमा ने चौंकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं यह पहले ही जान गया था कि सोमा पहचान गई थी.
‘‘आओ, बैठो,’’ सोमा ने एक खाली पड़े हुए एक पुराने से स्टूल की तरफ इशारा किया.

मैं उस स्टूल पर बैठ तो गया, लेकिन चुपचाप अपना सिर नीचे किए रहा.

मेरी यह हालत देखने के बाद सोमा ने मुझ से खुद ही पूछा, ‘‘और बताओ अंबर, तुम मेरे पास किसलिए आए हो?’’

सोमा को इस तरह से बोलते हुए देख कर मुझे भी थोड़ी सी हिम्मत हुई, तो मैं ने कहा, ‘‘तुम 3-4 दिनों से दिखी नहीं, इसलिए मैं ने सोचा कि क्यों न तुम्हारे घर चल कर तुम्हारा हालचाल जान लिया जाए.’’

मेरे इतना कहने के बाद सोमा कुछ देर अपलक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, जैसे वह मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो.

कुछ देर के बाद सोमा बोली, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो अंबर. तुम ने 3-4 दिनों से महल्ले में मुझे किसी से लड़तेझगड़ते या गालीगलौज देते हुए नहीं देखा, इसलिए तुम मेरे बारे में जानने के लिए घर चले आए.

‘‘लेकिन अंबर, यह भी तुम्हारा आधा ही सच है, पूरा नहीं. सच तो यह है कि तुम्हारे मन में कुछ और भी है, जिसे तुम केवल इसलिए मुझ से कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हो कि कहीं मैं तुम्हारी बात सुन कर तुम से लड़नेझगड़ने न लगूं. यही बात है न अंबर?’’

मैं ने सिर झुकाए हुए ही छोटा सा अपना जवाव उसे ‘जी हां’ में दिया.

‘‘अंबर, तुम मुझ से साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम मुझ से मन ही मन बहुत प्यार करते हो…’’

एक बार फिर मेरे मुंह से ‘जी हां’ निकल गया. और फिर जैसे मेरी हिम्मत जवाब दे गई और लगा कि यह मैं क्या कह गया? कहीं सच में सोमा मुझ से लड़नेझगड़ने और गाली न देने लगे.

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि सोमा अचानक से सुबक कर किसी मासूम सी बच्ची की तरह रोने लगी. मैं टुकुरटुकुर सोमा के चेहरे की तरफ देखता ही रहा. उसे चुप कराने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी.

कुछ देर रो लेने के बाद एक बार फिर सोमा बोली, ‘‘जानते हो अंबर… मैं पैदा होने के बाद पता नहीं कब और किस उम्र में रोई थी, इस का मुझे कुछ पता नहीं. मैं तो यह तक नहीं जानती थी कि ये आंखें रोने के लिए भी होती है. आज पहली बार तुम्हारी वजह से मेरी इन सूनी आंखों को रोने का सुख मिला है अंबर.’’

मैं ने पहली बार सोमा का ऐसा रूप देखा था, इसलिए मैं कुछ भी कह पाने की हालत में नहीं था.

सोमा फिर बोली, ‘‘मैं बहुत पहले से जानती हूं कि तुम मन ही मन मुझ से प्यार करते हो. अंबर, लेकिन मेरे स्वभाव की वजह से तुम्हारी हिम्मत कुछ कहने की नहीं हो पा रही थी. और मैं भला एक लड़की हो कर इतनी बेहया कैसे हो सकती थी कि तुम से अपने दिल की बात खुद कहती.

‘‘अंबर, मैं ने चाहे जैसा भी स्वभाव लोगों के मन में गढ़ा हो, वह एक तरह से मेरी मजबूरी थी, क्योंकि अगर मैं ऐसा न करती तो मुझे घर में अकेली जान कर इसी महल्ले के शरीफ और इज्जतदार लोग मु?ो कहीं का नहीं छोड़ते.

‘‘दूसरी आम लड़कियों की तरह मेरे भी अरमान हैं, लेकिन मेरे अनाथ होने का एहसास मुझे अंदर तक तोड़ देता है. तुम खुद सोचो अंबर, अगर मैं अनाथ न होती तो आज पूरे 4 दिनों से बुखार से तपतीतड़पती क्या मैं अकेले पड़ी होती. आज मेरे आसपास कोई यह तक पूछने वाला नहीं है कि मेरी तबीयत कैसी है?

‘‘यह देखो अंबर…’’ इतना कह कर सोमा ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया.

जब मैं ने सोमा का हाथ छुआ, तो बरबस ही मेरा हाथ उस के माथे पर भी पड़ गया. सोमा का माथा किसी गरम तवे की तरह जल रहा था.

मैं बोला, ‘‘अरे, सोमा. तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है और तुम चुपचाप घर में पड़ी हो. क्या तुम्हें अपने तबीयत की जरा भी फिक्र नहीं है…’’

सोमा तेज बुखार में भी मुसकराई और बोली, ‘‘बैठ जाओ अंबर. मुझे कुछ भी नहीं हुआ है. मैं 2-4 दिनों में ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘नहीं सोमा. तुम्हें तो किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिए. यह शायद सोमा के प्रति अंबर का प्यार ही था, जो वह उस से इस हक से बोला, ‘‘अच्छा, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाता हूं.’’

‘‘नहीं अंबर, मैं ऐसे ही ठीक हूं. तुम अपने घर जाओ. तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है,’’ सोमा बोली.

थोड़ा रुक कर सोमा ने कहा, ‘‘तुम्हें नहीं पता जब कालोनी वाले मुझे तुम्हारे साथ अकेला जाते हुए देखेंगे तो वे मुझे चरित्रहीन भी समझना और कहना शुरू कर देंगे. तब शायद मैं इतनी बड़ी गाली बरदाश्त न कर पाऊं…’’

अंबर ने एक लंबी सांस ली, फिर वह बोला, ‘‘सोमा, ऐसी कोई नौबत ही नहीं आएगी. तुम इस की जरा भी चिंता मत करो.’’

सोमा बोली, ‘‘क्यों?’’

अंबर ने कहा, ‘‘क्योंकि तुम जैसे ही बुखार से ठीक होगी, हम उस के तीसरे ही दिन शादी कर लेंगे. तुम मेरी बात का यकीन करो और जल्दी से डाक्टर के यहां चलने के लिए तैयार हो जाओ.’’

सोमा धीरे से बिस्तर से उठी, लेकिन अंबर को लगा कि सोमा को खड़े होने में दिक्कत होगी, इसलिए उस ने सोमा को सहारा दे कर खड़ा किया.

सोमा चुपचाप दूसरे कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद जब वह उस कमरे से अपने कपड़े बदल कर बाहर निकली, तो उसे देख कर अंबर ने कहा, ‘‘चलो सोमा.’’

सोमा हलके से मुसकरा दी. उसे सबकुछ बड़ा अजीब सा लग रहा था. लगता भी क्यों न, आखिर आज पहली बार वह किसी के साथ कहीं बाहर जा रही थी. वह भी एक झगड़ालू, गालीगलौज देने वाली सोमा बन कर नहीं, बल्कि किसी के दिल की रानी बन कर. Family Story In Hindi

Hindi Romantic Story: दिल के पुल – समीक्षा की शादी में क्या थी रुकावट

Hindi Romantic Story: आज अल्लसुबह इतना कुहरा न था जितना अब दिन चढ़ते छाया जा रहा था. मौसम को भी अनुमान हो चला था कि आज साफगोई की आवश्यकता नहीं है. दिल की उदासी मौसम पर छाई थी और मौसम की उदासी दिल पर. समीक्षा खामोशी से तैयार होती जा रही थी. न मन में कोई उमंग, न कोईर् स्वप्न. आज फिर उसे नुमाइश करनी थी, अपनी. 33 श्रावण पार कर चुकी समीक्षा अब थक चुकी थी इस परेड से. पर क्या करे, न चाहते हुए भी परिवार वालों की जागती उम्मीद हेतु वह हर बार तैयार हो जाती. शुरूशुरू में अच्छी नौकरी के कारण उस ने कई रिश्ते टाले, फिर स्वयं उच्च पदासीन होने के कारण कई रिश्ते निम्न श्रेणी कह कर ठुकराए. 30 पार करतेकरते रिश्ते आने कम होने लगे. अब हर 6 माह बीतने बाद रिश्तों के परिमाण के साथ उन की गुणवत्ता में भी भारी कमी दिखने लगी थी.

समीक्षा ने प्रोफैशनल जगत में बहुत नाम कमाया. आज वह अपनी कंपनी की वाइस प्रैसीडैंट है. बड़ा कैबिन है, कई मातहत हैं, विदेश आनाजाना लगा रहता है. सभी वरिष्ठ अधिकारियों की चहेती है. पर यह कैसी विडंबना है कि जहां एक तरफ उस की कैरियर संबंधी उपलब्धी को इतनी छोटी आयु की श्रेणी में रख सराहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ शादी के लिए उस की उम्र निकल चुकी है. यही विडंबना है लड़कियों की. कैरियर में आगे बढ़ना चाहती हैं तो शादी पीछे रखनी पड़ती है और यदि समय रहते शादी कर लें तो पति, गृहस्थी, बालबच्चों के चक्कर में अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए कैरियर होम करना पड़ता है. क्या हर वह स्त्री जो नौकरी में आगे बढ़ना चाहती है और गृहस्थी का स्वप्न भी संजोती है, उसे सुपर वूमन बननागा?

‘‘समीक्षा तैयार हो गई? लड़के वाले आते होंगे,’’ मां की पुरजोर पुकार से उस के विचारों की तंद्रा भंग हुई. वर्तमान में लौट कर वह पुन: आईने में स्वयं को देख कमरे से बाहर चली गई.

‘‘हमारी बेटी ने बहुत जल्दी बहुत ऊंचा पद हासिल किया है जनाब,’’ महेशजी ने कहा.

यह सुनते ही लड़के की मां ने बिना देर किए प्रश्न दागा, ‘‘घर के कामकाज भी आते हैं या सिर्फ दफ्तरी आती है?’’

‘हम सोच कर बताएंगे,’ वही पुराना राग अलाप कर लड़के वाले चले गए. समय बीतने के साथ रिश्ता पाने की लालसा में समीक्षा के घर वाले उस से कम तनख्वाह वाले लड़कों को भी हामी भर रहे थे. लेकिन अब बात उलट चुकी थी. अकसर सुनने में आता कि लड़के वाले इतनी ऊंची पदासीन लड़की का रिश्ता लेने में सहज नहीं हैं. कहते हैं घर में भी मैनेजरी करेगी.

शाम ढलने तक बिचौलिए के द्वारा पता चल गया कि अन्य रिश्तों की भांति यह रिश्ता भी आगे नहीं बढ़ पाएगा. एक और कुठाराघात. कड़ाके की ठंड में भी उस के माथे पर पसीना उग गया. सोफे पर बैठेबैठे ही उस के पैर कंपकंपा उठे तो उस ने शाल से ढक लिए. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है. पता नहीं उठ कर चल पाएगी या नहीं. उस का मन काफी कुछ ठंडा हो चला था, किंतु आंखों का रोष अब भी बरकरार था.

‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए न,’’ पता नहीं समीक्षा की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक चुकी थी, ‘‘जो भी आता है मेरी खूबियों को कसौटी पर कसने की फिराक में नजर आता है. हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकाए जाने की पीड़ा असहनीय लगने लगी है मुझे,’’ उस ने भावुक बातों से पिता को सोच में डाल दिया.

समय का चक्र चलता रहा. समीक्षा के जिद करने पर उस के भाई की शादी करवा दी गई. उस ने शादी का विचार त्याग दिया था. सब कुछ समय पर छोड़ नौकरी के साथसाथ सामाजिक कार्य करती संस्था से भी जुड़ गई. मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने में उसे सच्चे संतोष की प्राप्ति होती. वहीं उस की मुलाकात दीपक से हुई. दीपक भी अपने दफ्तर के बाद सामाजिक कार्य करने हेतु इस संस्था से जुड़ा था. उस की उम्र करीब 45 साल होगी. ऐसा बालों में सफेदी और बातचीत में परिपक्वता से प्रतीत होता था. दोनों की उम्र में इतना फासला होने के कारण समीक्षा बेझिझक उस से घुलनेमिलने लगी. उस की बातों, अनुभव से वह कुछ न कुछ सीखती रहती.

एक दिन दोनों काम के बाद कौफी पी रहे थे. तभी अचानक दीपक ने पूछा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं? अभी तक शादी क्यों नहीं की समीक्षा?’’

‘‘रिश्ते तो आते रहे, किंतु कोई मुझे पसंद नहीं आया तो किसी को मैं. अब मैं ने यह फैसला समय पर छोड़ दिया है. मैं ने सुना है आप ने शादी की थी, लेकिन आप की पत्नी…’’ कहते हुए समीक्षा बीच में ही रुक गई.

‘‘उफ, तो कहानी सुन चुकी हो तुम? सब के हिस्से यह नहीं होता कि उन का जीवनसाथी आजीवन उन का साथ निभाए,’’ फिर कुछ पल की खामोशी के बाद दीपक बोले, ‘‘मैं ने सब से झूठ कह रखा है कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई. दरअसल, वह मुझे छोड़ कर चली गई. उसे जिन सुखसुविधाओं की तलाश थी, वे मैं उसे 30 वर्ष की आयु में नहीं दे सकता था…

‘‘एक दिन मैं दूसरी कंपनी में प्रैजेंटेशन दे कर जल्दी फ्री हो गया और सीधा अपने घर आ गया. अचानक घर लौटने पर मैं अपने एहाते में अपने बौस की कार को खड़ा पाया. मैं अचरज में आ गया कि बौस मेरे घर क्यों आए होंगे. फटाफट घंटी बजा कर मैं पत्नी की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खोलने में उसे काफी समय लगा. 3 बार घंटी बजाने पर वह आई. मुझे देखते ही वह अचकचा गई और उलटे पांव कमरे में दौड़ी. इस अप्रत्याशित व्यवहार के कारण मैं भी उस के पीछेपीछे कमरे में गया तो पाया कि मेरा बौस मेरे बिस्तर पर शर्ट पहने…’’

दीपक का गला भर्रा गया. कुछ क्षण वह चुप नीचे सिर किए बैठा रहा. फिर आगे बोला, ‘‘पिछले 4 महीनों से मेरी पत्नी और मेरे बौस का अफेयर चल रहा था… मुझ से तलाक लेने के बाद उस ने मेरे बौस से शादी कर ली.’’

समीक्षा ने दीपक के कंधे पर हाथ रख सांत्वना दी, ‘‘एक बात पूछूं? आप ने मुझे ये सब बातें क्यों बताईं?’’

कुछ न बोल दीपक चुपचाप समीक्षा को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने समीक्षा को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया. फिर बात को सहज बनाने हेतु वह बोली, ‘‘दीपकजी, इतने सालों में आप ने पुन: विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘तुम्हारे जैसी कोई मिली ही नहीं.’’

यह सुनते ही समीक्षा अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे दीपक के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. ऐसी बात शायद उस का मन दीपक से सुनना भी चाहता था पर यों अचानक दीपक के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है भला. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया था.

समीक्षा की रजामंदी मिलने के बाद दीपक ने कहा, ‘‘समीक्षा, मुझे तुम से कुछ कहना है, जो मेरे लिए इतना मूल्यवान नहीं है, लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए वह महत्त्वपूर्ण हो. मैं धर्म से ईसाई हूं. किंतु मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले. हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सब बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं, तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं? मैं तुम्हारे गुण, व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि समीक्षा भी दीपक के व्यक्तित्व, उस के आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. वह दीपक को खोना नहीं चाहती थी, खासकर यह जानने के बाद कि वह भी उसे पसंद करता है मगर इतना अहम फैसला वह अकेली नहीं ले सकती थी. लड़कियों को शुरू से ही ऐसे संस्कार दिए जाते हैं, जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है, क्योंकि इसी का समाज संस्कार का नाम देता है. आज रात खाने में क्या बनाऊं से ले कर नौकरी करूं या गृहस्थी संभालू तक मानो संस्कारों को जीवित रखने का सारा बोझ स्त्री के कंधों पर ही है.

समीक्षा ने यह बात अपनी मां के साथ बांटी, ‘‘आप क्या सोचती हैं इस विषय पर मां?’’

मां ने प्रतिउत्तर प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम दीपक से प्यार करती हो?’’

समीक्षा की चुप्पी ने मां को उत्तर दे दिया. वे बोलीं, ‘‘देखो समीक्षा, तुम्हारी उम्र मुझे भी पता है और तुम्हें भी. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन प्रेम से सराबोर हो, तुम भी अपनी गृहस्थी का सुख भोगो. मगर अब तुम्हें यह सोचना है कि क्या तुम दूसरे धर्म के परिवार में तालमेल बैठा पाओगी… यह निर्णय तुम्हें ही लेना है.’’

समीक्षा की मां से हामी मिलने पर दीपक उसे अपने घर अपने परिवार वालों से मिलाने ले गया. दीपक  के पिता का देहांत हो चुका था. घर में मां व छोटा भाई थे. समीक्षा को दीपक की मां पसंद आई. मां की परिभाषा पर सटीक उतरतीं सीधी, सरल औरत.

‘‘विवाहोपरांत कौन क्या करेगा, अभी इस का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है. दीपक की पहली शादी हम ने अपनी बिरादरी में की थी, लेकिन… अब इतने वर्षों के बाद यह किसी को पसंद कर रहा है तो जरूर उस में कुछ खास होगा,’’ मां खुश थीं.

लेकिन समीक्षा हिंदू है यह जान कर दीपक के भाई का मुंह बन गया.

कुछ ही देर में दीपक की बड़ी विवाहित बहन आ पहुंची. उसे दीपक के छोटे भाई ने फोन कर बुलाया था. बहन ने आ कर काफी हंगामा किया, ‘‘तेरे को शादी करनी है तो मुझ से बोल. मैं लाऊंगी तेरे लिए एक से एक बढि़या लड़की… यह तो सोच कि एक हिंदू लड़की, एक तलाकशुदा ईसाई लड़के से, जो उस से उम्र में भी बड़ी है, शादी क्यों करना चाहती है. तूने अपना पास्ट इसे बता दिया, पर कभी सोचा कि जरूर इस का भी कोई लफड़ा रहा होगा? इस ने तुझे कुछ बताया? क्या तू हम से छिपा रहा है?’’

लेकिन दीपक अडिग था. उस ने सोच लिया था कि जब दिल ने पुल बना लिया है तो वह उस पर चल कर अपने प्यार की मंजिल तक पहुंचेगा.

समीक्षा प्रसन्न थी कि दीपक व उस की मां को यह रिश्ता मंजूर है, साथ ही थोड़ी खिन्नता भी मन में थी कि उस के भाई व बहन को इस रिश्ते पर ऐतराज है. अब समीक्षा ने अपने घर में पिता और भाई को इस रिश्ते के बारे में बताने का निश्चय किया और फिर वही हुआ जिस की आशा भी थी और आशंका भी.

‘‘डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने अपने ही घर वालों को नहीं बख्शा, शर्म नहीं आई अपनी ही शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से?’’ उस का छोटा भाई गरज रहा था. वह भाई जिस की शादी की चिंता समीक्षा ने अपनी शादी से पहले की थी.

‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी, उस की शादी कैसे होगी यह बात खुलने पर?’’ उस की पत्नी भी कहां पीछे थी.

‘‘सौ बात की एक बात समीक्षा, यह शादी होगी तो मेरी लाश के ऊपर से होगी.

अब तेरी इच्छा है अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर,’’ पिता की दोटूक बात पर समीक्षा सिर झुकाए, रोती रही.

वह रात बहुत भारी बीती. बेटी की इस स्थिति पर मां अपने बिस्तर पर रो रही थीं और समीक्षा अपने बिस्तर पर. आगे क्या होगा, इस से दोनों अनजान डर पाले थीं.

अगले दिन पिता ने बूआ का बुला लिया. समीक्षा अपनी बूआ से हिलीमिली थी. अत: पिता ने बूआ को मुहरा बनाया उसे समझा कर शादी से हटाने हेतु. बूआ ने हर तरह के तर्कवितर्क दिए, उसे इमोशनल ब्लैकमेल किया.

उन की बातें जब पूरी हो गईं तो समीक्षा ने बस एक ही वाक्य कहा, ‘‘बूआ, मैं बस इतना कहूंगी कि यदि मैं दीपक से शादी नहीं करूंगी तो किसी से भी नहीं करूंगी.’’

किंतु अपेक्षा के विपरीत समीक्षा का शादी न करने का निर्णय उस के पिता व भाई को स्वीकार्य था. लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर पिता बोले, ‘‘समीक्षा की शादी के लिए मैं ने एक लड़का देखा है. हमारे गोपीजी का भतीजा. देखाभाला परिवार है. उन्हें भी शादी की जल्दी और हमें भी,’’ उन्होंने घृणाभरी दृष्टि समीक्षा पर डाली.

समीक्षा का मन हुआ कि वह इसी क्षण वहां से कहीं लुप्त हो जाए. उसी शाम से हिंदुत्व प्रचारक सोना के प्रमुख गोपीजी के भतीजे के गुंडे समीक्षा के पीछे लग गए. उस के दफ्तर के बाहर खड़े रहते. रास्ते भर उस का पीछा करते ताकि वह दीपक से न मिल सके. 3 दिनों की लुकाछिपी से समीक्षा काफी परेशान हो गई.

क्या हम इसीलिए अपनी बेटियों को शिक्षित करते हैं, उन्हें आगे बढ़ने, प्रगति करने की प्रेरणा देते हैं कि यदि उन के एक फैसले से हम असहमत हों तो उन का जीना दूभर कर दें? यह संकुचित सोच उस की मां को कुंठित कर गई. उन के मन में फांस सी उठी. क्या लड़की समाज के लिए अपनी खुशियों का, अपने जीवन का बलिदान दे दे तो महान तथा संस्कारी और यदि अपनी खुशी के लिए अपने ही परिवार से कुछ मांगे तो निर्लज्ज… परिवार का अर्थ ही क्या रह गया यदि वह अपने बच्चों की तकलीफ, उन का भला न देख सके…

रात के भोजन पर समीक्षा के मन पर छाए चिंताओं के बादल से या तो वह स्वयं परिचित थी या उस की मां. अन्य सदस्य बेखबर थे. वे तो समस्या का हल खोज लेने पर भोजन का रोज की भांति स्वाद उठा रहे थे, हंसीमजाक से माहौल हलका बनाए हुए थे.

अचानक मां ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘समीक्षा, तुम मन में कोई चिंता न रख. तुम आज तक बहुत अच्छी बेटी, बहुत अच्छी बहन बन कर रहो. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे.’’

इस से पहले कि पिता टोकते वे उन्हें रोकती हुई आगे बोलीं, ‘‘कर्तव्य केवल बेटियों के नहीं होते, परिवारों के भी होते हैं. दीपक के परिवार से मैं मिलूंगी और शादी की बात आगे बढ़ाऊंगी.’’

मां के अडिगअटल निर्णय के आगे सब चुप थे. शादी के दौरान भी तनाव कुछ कम नहीं हुआ. दोनों परिवारों में शादी को ले कर न तो रौनक थी और न ही उल्लास. समीक्षा के पिता और भाई ने शादी का कार्ड इसलिए नहीं अपनाया था, क्योंकि उस पर बाइबिल की पंक्तियां लिखी जाती थीं. और दीपक के रिश्तेदारों को उस पर गणेश की तसवीर से आपत्ति थी. केवल दोनों की मांओं ने ही आगे बढ़चढ़ कर शादी की तैयारी की थी. बेचारे दूल्हादुलहन दोनों डरे थे कि शादी में कोई विघ्न न आ जाए.

शादी हो गई तब भी समीक्षा थोड़ी दुखी थी. बोली, ‘‘कितना अच्छा होता यदि हमारे परिवार वाले भी सहर्ष हमें आशीर्वाद देते.’’

मगर दीपक की बात ने उस की सारी शंका दूर कर दी. बोलीं, ‘‘कई बार हमें चुनना होता है कि हम किसे प्यार करते हैं. हम दोनों ने जिसे प्यार किया, उसे चुन लिया. यदि वे हम से प्यार करते होंगे, हमारी खुशी में खुश होंगे तो हमें चुन लेंगे.’’

अब मन में बिना कोई दुविधा लिए दोनों की आंखों में सुनहरे भविष्य के उज्जवल सपने थे. Hindi Romantic Story

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