टीचर बन कर पढ़ा रहा था जिहाद

बिहार के गया शहर में वह मास्टर बन कर रह रहा था. पहले उस ने एक स्कूल में नौकरी की, उस के बाद वह प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. उस ने पुलिस और लोकल लोगों को झांसा देने के लिए अपना नाम और पहचान बदल ली थी. उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था, जबकि उस का असली नाम तौसिफ खान था. अतीक साल 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों का आरोपी था. पिछले 9 सालों से वह गया में अपना हुलिया बदल कर रह रहा था.

13 सितंबर, 2017 को बिहार के गया जिले में दबोचे गए 3 आतंकियों में से एक की पहचान तौसिफ खान के रूप में हुई, तो पुलिस और खुफिया महकमे के होश उड़ गए. उस ने खुलासा किया कि गया शहर के 3 खास इलाकों विष्णुपद मंदिर के पितृपक्ष मेले का इलाका, महाबोधि मंदिर और गया रेलवे जंक्शन पर बम धमाका करने की साजिश रची गई थी.

गौरतलब है कि जिस समय तौसिफ खान ने धमाके की साजिश रची, उस समय गया में 15 दिनों का पितृपक्ष मेला लगा हुआ था. इस में देशविदेश के लाखों लोग पिंडदान करने के लिए गया पहुंचते हैं.

तौसिफ खान साइबर कैफे के एक संचालक की मुस्तैदी से पुलिस के हत्थे चढ़ गया. वह रोजाना साइबर कैफे से ईमेल के जरीए सारी जानकारी अपने आका को भेजता था.

पुलिस ने कैफे से वह कंप्यूटर जब्त कर लिया है, जिस से वह किसी चांद नाम के आदमी को ईमेल भेजता था. गया के एसएसपी ने बताया कि 3 और संदिग्धों को पकड़ा गया है, जिन से पूछताछ के बाद तौसिफ खान के आतंकी होने की बात पक्की हो गई है. पुलिस ने बताया कि साइबर कैफे संचालक अनुराग को तौसिफ खान की हरकतें ठीक नहीं लगी थीं, तो उस ने तौसिफ खान से पहचानपत्र मांगा. जब उस ने पहचानपत्र नहीं दिया, तो अनुराग ने पुलिस को सूचना दी. उस के बाद तौसिफ खान और उस के साथी भागने लगे.

अनुराग ने उन का पीछा किया, तो वे उसे धक्का दे कर आटोरिकशा में सवार हो गए. उसी समय सामने से पुलिस की गाड़ी आ रही थी. अनुराग ने पुलिस वालों को आटोरिकशा रुकवाने का इशारा किया. पुलिस ने आटोरिकशा रोका और उस में सवार तौसिफ खान और उस के साथी सना खान और गुलाम सरवर को पकड़ा.

35 साल के तौसिफ खान उर्फ अतीक का पता अहमदाबाद के जूहापुरा इलाके का यूनाइटेड अपार्टमैंट्स का फ्लैट नंबर-15ए है. वह इंडियन मुजाहिदीन का फं्रटलाइन आतंकी है. इलैक्ट्रोनिक्स ऐंड कम्यूनिकेशन से इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद उस ने आतंक की दुनिया में कदम रख दिया था. उस ने महाराष्ट्र के नंदूरबाग के डीएन पाटिल इंजीनियरिंग कालेज से साल 2001-05 में बीटैक किया था.

अहमदाबाद में बम धमाकों को अंजाम देने के बाद तौसिफ खान साल 2008 में गया आ गया था. 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में 90 मिनट के अंदर एक के बाद एक 16 बम धमाके किए गए थे, जिन में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 2 सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे.

तौसिफ खान गया जिले के डोभी थाने के करमौनी गांव में रह रहा था और पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था. उस ने स्थानीय सना खान की मदद से मुमताज पब्लिक हाईस्कूल में टीचर की नौकरी हासिल कर ली थी. वह विज्ञान और गणित पढ़ाया करता था.

3 साल तक स्कूल में पढ़ाने के बाद तौसिफ खान ने नौकरी छोड़ दी और प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. गिरफ्तारी के बाद उस ने कबूल किया कि वह आईएसआई के प्रचार का काम कर रहा था. पुलिस इस बात की पड़ताल कर रही है कि वह कितने बच्चों के दिमाग में आतंक का कीड़ा डाल चुका है. उस के पाकिस्तान कनैक्शन की भी खोज की जा रही है.

तौसिफ खान से पूछताछ के बाद कई खुलासे हुए हैं. उस के घर से पाकिस्तान के लाहौर में प्रिंट कराई गई किताबें और जिहादी परचे बरामद हुए हैं. पुलिस को शक है कि उस ने गया में 50 जिहादियों को तैयार कर दिया है, जिस में से ज्यादातर 14 साल से 16 साल की उम्र के लड़के हैं.

तौसिफ खान ने किनकिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर जिहाद की घुट्टी पिलाई है, इस की भी जांच की जा रही है. गया में रहने के दौरान तौसिफ खान कई दफा राजस्थान और मुंबई गया था. पुलिस और एटीएस उस की इन यात्राओं के मकसद का पता लगा रही है. साल 2016 और साल 2017 में वह 2 बार राजस्थान गया था. उस के पास मुंबई जाने का टिकट भी मिला है.

तौसिफ खान के साथ दबोचा गया गुलाम सरवर खान बोधगया ब्लौक के बारा पंचायत के प्राथमिक निमहर विद्यालय का प्रभारी है. स्कूल के बच्चों ने पुलिस को बताया कि गुलाम सरवर खान हफ्ते में 2-3 दिन ही स्कूल आता था. साल 2006 में उस की बहाली पंचायत शिक्षक के रूप में हुई थी.

पुलिस जब गुलाम सरवर खान को गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तो गांव वालों ने विरोध किया. पुलिस के काफी समझानेबुझाने के बाद ही गांव वाले शांत हुए. गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने बताया कि तौसिफ खान पर पुलिस ने देशद्रोह का केस दर्ज किया है और उस के साथ पकड़े गए उस के 2 साथियों पर उसे संरक्षण देने का आरोप लगा है. उस के पास से मिले कागजात, पैनड्राइव और मोबाइल डाटा से देशद्रोह की गतिविधियों में शामिल होने के ठोस सुबूत मिल चुके हैं.

गुजरात की एटीएस टीम ने 15 सितंबर, 2017 को उस से पूछताछ की. गया के सिविल लाइन थाने में तीनों के खिलाफ केस (नंबर-277/2017) दर्ज कराया गया है. गया पुलिस की रिमांड की सीमा खत्म होने के बाद गुजरात एटीएस उन्हें रिमांड पर ले लेगी.

वहीं पुलिस सूत्रों की मानें, तो तौसिफ खान ने अहमदाबाद बम धमाकों में खुद के शामिल होने की बात को कबूल कर लिया है. पटना एटीएस, एसटीएफ और गया पुलिस अफसरों को पहले वह झांसा देने की कोशिश करता रहा. पहले तो वह आतंकी होने से ही इनकार करता रहा, उस के बाद उस ने माना कि अहमदाबाद बम धमाकों में संदिग्धों की लिस्ट में उस का नाम आने के बाद गिरफ्तारी के डर से वह वहां से भाग निकला था.

15 सितंबर की रात गुजरात एटीएस की टीम गया पहुंची और उस से पूछताछ की. एटीएस टीम ने बम धमाके के दूसरे आरोपियों के साथ उस का फोटो दिखाया, तो उस के होश उड़ गए. चारों ओर से खुद को फंसा देख कर आखिर तौसिफ खान ने हार मान ली.

गुजरात एटीएस की पूछताछ के बाद तौसिफ खान ने माना कि वह सिमी का हार्डकोर सदस्य है. वह 24 आतंकी मामलों में वांटेड था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के जलगांव का रहने वाला है.

सिमी का सदस्य बनने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भी भेजा गया था. पाकिस्तान में उस ने बम धमाके की ट्रेनिंग ली थी. इंजीनियर और तेज दिमाग का होने की वजह से उस ने बड़े आतंकियों के बीच अपनी खासी पैठ बना ली थी. वह सिमी की बैठकों और योजनाओं में शामिल होता था और उस की बातें गौर से सुनी जाती थीं.

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी

मई, 2016 को स्पेन में मलागा की अदालत से आने वाले एक चर्चित मामले के फैसले का लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था. आरोपी और पीडि़त के परिजनों से ले कर मीडिया के लोगों तक को फैसला सुनने की उत्सुकता थी. यह हाईप्रोफाइल मामला ब्रिटेन के 48 वर्षीय सोने के व्यापारी एंडी बुश की हत्या का था. उन की हत्या 5 अप्रैल, 2014 को स्पेन के शहर मारबेला के कोस्टा डेल सोल नामक मशहूर बीच पर स्थित होटल हौलिडे विला में उन की पूर्व प्रेमिका द्वारा गोली मार कर की गई थी. हत्या का आरोप 26 वर्षीया स्विमवियर मौडल मायका मैरीका कुकुकोवा पर था. अपराध साबित हो जाने के बाद उसे सजा के लिए दोषी करार दिया जा चुका था.

अदालत में बुश की 22 वर्षीया बेटी एल्ली अपनी 44 वर्षीया बुआ रशेल के साथ मौजूद थी. जबकि ज्यूरी के सामने सिर झुकाए चिंतातुर बैठी आरोपी कुकुकोवा अपने चेहरे को हथेली से बारबार ढंकने का प्रयास कर रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी से खासकर एल्ली और रशेल से नजरें मिलाने से बचना चाह रही हो. हालांकि सुनवाई के दौरान उन तीनों का अदालत में पहले भी कई बार आमनासामना हो चुका था, लेकिन तब वे अपनीअपनी बातों को साबित करने की कोशिश करते हुए इतनी अधिक असहज महसूस नहीं करती थीं, जितना कि उन्हें फैसले की घड़ी के वक्त महसूस हो रहा था.

मायका मैरीका कुकुकोवा अपने बचाव के लिए हर संभव प्रयास कर चुकी थी. लेकिन सबूतों के अभाव में उस की दलीलों को खारिज कर दिया गया था. फिर भी क्यूडेड ला जस्टिका के निर्णायक मंडल द्वारा उसे एक और अंतिम मौका दिया गया था, ताकि वह बचाव संबंधी औपचारिक याचिका दायर कर सके.

कुकुकोवा ने भले ही बचाव के लिए कोई याचिका नहीं दायर की थी, लेकिन इतना जरूर कहा था कि बुश ने उस के ऊपर हमला किया था और उस ने अपनी आत्मरक्षा में उसे गोली मारी थी.

बुश को चोट पहुंचाने का उस का कोई मकसद कभी नहीं था, क्योंकि अपनी उम्र से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करती थी. उस ने भावुकता के साथ कहा था कि वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी, लेकिन उन के प्रेम में किसी तीसरे के शामिल होने से वह काफी दुखी थी.

निर्णायक मंडल ने फैसला सुनाने के दरम्यान कहा कि घटना के 6 महीने पहले ही कुकुकोवा और बुश के बीच संबंध खराब हो चुके थे. वह ईर्ष्या, द्वेष की भावना से भरी हुई थी.

सरकारी वकीलों को उम्मीद थी कि इस मामले में 26 वर्षीया मौडल कुकुकोवा को 25 साल की जेल की सजा तो सुनाई ही जाएगी, लेकिन जजों के निर्णायक मंडल ने उसे 15 साल की सजा सुनाने के साथ बुश की 21 वर्षीया बेटी को 1,22,000 पाउंड और 44 वर्षीया बहन रशेल को 30,500 पाउंड की राशि जुरमाने के तौर पर देने का आदेश दिया.

इसी के साथ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी का पूर्व का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं है. उस ने जो भी अपराध किया है, वह भावुकता में किया है. इस लिहाज से उसे अपना पक्ष रखने का एक और मौका दिया जाता है लेकिन बचाव के अंतिम मौके का भी कुकुकोवा को कोई लाभ नहीं मिल पाया.

अदालत ने फैसले से संबंधित 17 पृष्ठों का दस्तावेज बुश के परिजनों को भी दे दिया. इस फैसले पर भले ही एल्ली और उस की बुआ रशेल ने न्याय मिलने का संतोष व्यक्त किया, लेकिन बुश से तलाक ले चुकी एल्ली की मां ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि कुकुकोवा को कम सजा हुई है. उसे कम से कम 20 साल की सजा होनी चाहिए थी. वह अदालत में अपनी बेटी के साथ नहीं थी, लेकिन उस ने खुद उस की भावनाओं को काफी शिद्दत के साथ महसूस करते हुए कई ट्वीट किए थे.

अदालती सुनवाई और जांचपड़ताल की काररवाई में पाया गया था कि बुश को .38 की रिवौल्वर से 3 गोलियां मारी गई थीं. 2 गोलियां उस के सिर में लगी थीं, जबकि एक गोली उस के कंधे में लगी थी. न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुश का हाथ रिवौल्वर के साथ इस तरह से रखा गया था, ताकि पहली नजर में लगे कि उस ने आत्महत्या की है. हत्या के बाद कुकुकोवा बुश की महंगी हमर गाड़ी से करीब 3012 किलोमीटर दूर स्लोवाकिया स्थित अपने घर चली गई थी, जहां उस का प्रेमी इंतजार कर रहा था.

कुकुकोवा ने न केवल 2 देशों की सीमाएं लांघीं, बल्कि इस लंबी यात्रा को 27 घंटे में पूरा भी किया. हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसे स्लोवाकिया स्थित उस के पुश्तैनी गांव नोवा बोसाका से हिरासत में ले लिया गया था. उस की गिरफ्तारी स्पैनिश अधिकारियों के अनुरोध पर यूरोपीय वारंट के आधार पर की गई थी.

मायका मैरीका कुकुकोवा एक जमाने में बहुचर्चित स्विमवियर मौडल रही. सन 1990 में उस का जन्म स्लोवाकिया के एक गांव नोवा बोसाका में हुआ था. ग्रामीण परिवेश के साधारण परिवार में पलीबढ़ी कुकुकोवा जब किशोरावस्था में आई तो उसे अहसास होने लगा कि उस के अंदर खूबसूरती के साथसाथ हीरोइन बनने के भी तमाम गुण मौजूद हैं. जब उस के दोस्तों ने उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांधे तो उस की सपनीली आंखों में मौडलिंग की रंगीन दुनिया तैरने लगी.

कुकुकोवा के मातापिता ने उसे अपनी मनमर्जी से कैरियर चुनने की आजादी दे रखी थी. उस ने मौडलिंग के लिए कोशिश की तो थोड़े प्रयास में ही उसे मौका मिल गया. मौडलिंग की दुनिया में शुरुआत की पहली कोशिश में ही उसे सफलता मिल गई.

आगे भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा. ऊंची जगह बनाने के लिए भी उसे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. उस की खूबसूरती और पहली ही नजर में किसी को भी आकर्षित कर लेने वाले ग्लैमर की वजह से उस का आगे का रास्ता खुदबखुद बनता चला गया.

जल्दी ही कुकुकोवा एक परफेक्ट मौडल बन गई. चाहे रैंप पर चलना हो या कैमरे के किसी भी एंगल के सामने खुद को प्रदर्शित करना हो, वह बहुत कम समय में सीख गई. फलस्वरूप जल्द ही वह एक पेशेवर मौडल बन गई. उसे कुछ नामीगिरामी मौडलों के साथ रैंप पर चलने का मौका मिला तो वह एक चर्चित मैगजीन के कवर पर भी जगह बनाने में सफल रही.

इस के बाद फोटोग्राफरों ने उसे इंटरनेशनल मौडलिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की सलाह दी. उस ने ऐसा ही किया और स्लोवाकिया के फैशन और मौडलिंग की दुनिया का मक्का माने जाने वाले शहर मिलान की ओर रुख किया. मौडलिंग की बदौलत कुकुकोवा ने अपनी खास पहचान बना ली. ब्रिटिश और अमेरिकन मौडलों से टक्कर लेते हुए उस ने स्विमवियर या बिकिनी के पहनावे के साथ रैंप पर चल कर निर्णायक मंडल का दिल जीत लिया.

फिर क्या था, उस का सितारा बुलंद हो गया. मल्टीनेशनल कंपनियां उसे जहां अपने ब्रांड के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाने को लालायित रहने लगीं, वहीं उसे नौकरी के कुछ औफर भी मिले. लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही वह देर रात तक चलने वाली पार्टियों में भी आनेजाने लगी.

मौडलिंग की दुनिया में इस प्रोफेशन को अपनाने वाली मौडल्स अगर अपनी अदाकारी और शारीरिक सुंदरता बिखेरती हैं तो इस में अमीरजादे प्लेबौय की भी भरमार रहती है. उन की सोच के हिसाब से सुंदरियां मौजमस्ती की सैरगाह में मनोरंजन और रोमांस के साधन की तरह होती हैं. ऐसे ही लोगों में से एक थे इंगलैंड के गोल्ड बिजनेसमैन ‘किंग औफ ब्लिंग’ के नाम से चर्चित एंडी बुश. वह अधेड़ावस्था की दहलीज पर आ चुके थे, लेकिन मौजमस्ती के लिए सुंदरियों के साथ डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

एंडी ब्रिटेन में सोने के आभूषणों के अरबपति कारोबारी थे. उन की गिनती अमीरजादों में होती थी. 1990 में उन्होंने बीबीसी टीवी प्रजेंटर साम मैसन से शादी की थी. उसी से एक बेटी एल्ली पैदा हुई थी. लेकिन बाद में साम मैसन से उन का तलाक हो गया था. वह एल्ली को बहुत प्यार करते थे और उसे हर तरह से खुश और सुखी रखने की कोशिश करते थे.

एल्ली अपनी मां से ज्यादा बुआ रशेल के करीब रही. दूसरी तरफ बुश की पहचान रंगीनियों में डूबे रहने वाले शख्स की बन गई थी. वह आए दिन लेट नाइट पार्टियों या फैशन शो में जाया करते थे. गर्लफ्रैंड के साथ लौंग ड्राइव या डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

कुकुकोवा को रैंप पर चलते देख बुश पहली बार में ही उस पर फिदा हो गए थे. बुश को न केवल उस का ग्लैमर भरा सौंदर्य पसंद आया था, बल्कि उस की शारीरिक सुंदरता और अदाएं भी बहुत अच्छी लगी थीं. संयोग से बुश उस फैशन शो वीक के प्रायोजक भी थे, जिस में कुकुकोवा को बतौर मौडल जगह मिली थी. तब दोनों की औपचारिक मुलाकात हुई थी.

पहली मुलाकात में ही कुकुकोवा ने बुश के दिल में इतनी तो जगह बना ही ली थी कि वह कारोबारी व्यस्तता के बावजूद उस से मिलनेजुलने के लिए समय निकालने लगे थे.

इस तरह शुरू हुई मुलाकातों के दौरान कुकुकोवा ने उन से अपने लिए कोई काम तलाशने की इच्छा जताई. इस पर बुश ने उसे ब्रिस्टल स्थित अपने ही सोने के आभूषणों के शोरूम में नौकरी दे दी.

अब बुश के लिए उस से मिलनाजुलना आसान हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उन की मुलाकातें प्रगाढ़ संबंध में बदलती चली गईं.

बुश अपनी सुगठित और चुस्तदुरुस्त देह के लिए काफी मेहनत करते थे. यही वजह थी कि वे 48 की उम्र में भी 28-30 के युवा की तरह दिखते थे. उन की सब से बड़ी कमजोरी सुंदरियों के पीछे भागना थी. नईनई प्रेमिकाएं बनाना, उन्हें महंगे उपहार देना और उन के साथ डेटिंग या लौंग ड्राइव पर जाना उन की जीवनशैली का अहम हिस्सा था.

उन के पास महंगी कारों की बड़ी शृंखला थी, जिन में लाल रंग की फेरारी और ग्रे रंग की लेंबोरगिनी के अतिरिक्त हमर रेंज की कई कारें थीं. उन की कई गाडि़यां कानसेलाडा के समुद्र तटीय गांव स्थित स्पैनिश विला में रखी जाती थीं.

अपनी आरामदायक जिंदगी गुजारने के लिए उन्होंने सन 2002 में करीब 3,20,000 पाउंड में 5 बैडरूम का एक मकान खरीदा था, जो केप्सटो के भीड़भाड़ वाले इलाके से काफी दूर ग्रामीण क्षेत्र मानमाउथशिरे में स्थित था. यह भव्य मकान 7 फुट ऊंची चारदीवारी से घिरा था.

इस के बावजूद इस मकान में सुरक्षा के तमाम अत्याधुनिक इंतजाम किए गए थे. उन्होंने सुरक्षा के लिए विख्यात राट्टेवाइलर डौग गार्ड भी वहां तैनात किए थे. आधिकारिक तौर पर बुश के 4 तरह के कारोबार थे, जिस में 3 तो फिलहाल निष्क्रिय थे. सिर्फ ट्रेडिंग कंपनी बिगविग से ही उन्हें मुनाफा होता था.

बुश के दिल में कुकुकोवा के लिए कितनी जगह थी या फिर कुकुकोवा बुश से कितनी मोहब्बत करती थी, यह कहना मुश्किल था, लेकिन इतना जरूर था कि वह उन के तमाम निजी कार्यों में दखलंदाजी करती थी. वह बुश के उसी शोरूम में एक कर्मचारी थी, जिस का कामकाज बुश की बहन रशेल और बेटी एल्ली संभालती थीं.

सन 2012 में बुश की कुकुकोवा के साथ डेटिंग चरम पर थी. इस का फायदा उठाते हुए कुकुकोवा बुश के साथ रशेल और एल्ली पर भी अपना रौब दिखाती थी. हालांकि उन के ‘लिव इन रिलेशन’ की मधुरता में जल्द ही नीरसता आ गई और नवंबर 2013 में तो उन के संबंध पूरी तरह से खत्म हो गए. इस की वजह यह थी कि उसी दौरान बुश की जिंदगी में एक 20 वर्षीया रूसी युवती मारिया कोरोतेवा आ गई थी.

मारिया इंगलैंड के पश्चिमी इलाके में स्थित एक यूनिवर्सिटी में ह्यूमन रिसोर्सेस की छात्रा थी. उस से बुश की मुलाकात ब्रिस्टल के कोस्टा कैफे की एक शाखा में हुई थी. मारिया बुश की बेटी एल्ली से मात्र एक साल बड़ी थी.

नई प्रेमिका का साथ मिलने पर वह कुकुकोवा को समय नहीं दे पा रहे थे. इतना ही नहीं, वह मारिया को अपना जीवनसाथी भी बनाना चाहते थे. कुकुकोवा अपनी उपेक्षा को महसूस कर रही थी. यह सब मारिया की वजह से हुआ था, इसलिए इस का दोषी वह मारिया को मान रही थी.

वह मारिया से ईर्ष्या करने लगी थी. इस की वजह से वह हमेशा तनाव में भी रहने लगी थी. और तो और वह फोन, ईमेल और डेटिंग ऐप के जरिए उस का पीछा भी करती थी. इस की शिकायत मारिया ने बुश से भी की थी. बुश को भी कुकुकोवा की यह हरकत पसंद नहीं आई. नतीजतन उन दोनों के बीच जबतब तकरार होने लगी. कुकुकोवा उन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की कोशिश करती थी.

एल्ली का कहना था कि कुकुकोवा बहुत जल्द गुस्से में आ जाती थी. दुकान की महंगी चीजों को फर्श पर फेंक देती थी. कई बार तो वह बुश का मोबाइल तक फेंक देती थी, पासपोर्ट छिपा देती थी और उन की गैरमौजूदगी में उन का पर्सनल कंप्यूटर चेक करती थी.

इसी तरह का एक वाकया एल्ली के जन्मदिन के अवसर पर भी हुआ. एल्ली अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर पिता और कुकुकोवा के साथ दुबई में थी. एक मौल में महंगी खरीदारी को ले कर कुकुकोवा ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया था, बल्कि गुस्से में उस ने बुश पर अपना बैग फेंक कर हमला भी किया था.

बुश ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर उस ने उसी दिन बुश का लैपटौप भी तोड़ डाला था. उस की वजह से एल्ली के जन्मदिन की खुशियों भरे माहौल में खलल पड़ गया. इंगलैंड वापस लौट कर बुश ने दुबई की घटना को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा.

कुकुकोवा की अजीबोगरीब आदतों को झेलना बहुत ही मुश्किल हो गया था. वह हमेशा तेवर में रहती थी. सितंबर, 2013 में कुकुकोवा बगैर कुछ बताए बुश के यहां से चली गई. वह एक जगह स्थिर नहीं रहती थी. एक शहर से दूसरे शहर घूमती रहती थी. बुश ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन कुकुकोवा को लगता था कि बुश उसे फिर से अपना लेगा. इस के लिए वह अपने फेसबुक एकाउंट पर प्रेमसंबंधों का सबूत देने वाले चुंबन और गले लगने के वीडियो अपलोड करती रहती थी.

कुकुकोवा के परिजनों के अनुसार, हत्या की घटना के 2 सप्ताह पहले वह अपना पुश्तैनी घर छोड़ गई थी. उस वक्त उस के पिता बीमार चल रहे थे. बुश की हत्या की खबर जब अखबारों की सुर्खियां बन गईं और उस की पूर्व पत्नी समेत दूसरे परिजनों ने हत्या का आरोप सीधे तौर पर कुकुकोवा पर लगाया.

इस के बाद स्पेन समेत स्लोवाकिया की पुलिस भी सक्रिय हो गई और बुश की हत्या के 2 दिनों बाद ही कुकुकोवा को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे न्यायिक हिरासत में ले कर मलागा के निकट अल्हउरा डेला टोर्रो जेल में डाल दिया गया. उस की गिरफ्तारी से उस की मां लुबोमीर कुकुका (50) और पिता दानक कुकुकोवा (51) को काफी दुख हुआ. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई है.

कुकुकोवा की वजह से उस के मातापिता की पूरे इलाके में काफी बदनामी हुई. इस के बावजूद वे बेटी को बचाने की कोशिश के लिए स्पेन गए. उन्होंने एक महंगा वकील किया, जिस की फीस जुटाने में उन का पुश्तैनी मकान तक बिक गया.

पुलिस के अनुसार, घटना वाली रात को कुकुकोवा बुश के उसी घर में थी, जिस में बुश ने अपनी नई प्रेमिका मारिया कोरातेवा को बुला रखा था. मारिया किसी वजह से कुछ देर के लिए बाहर चली गई थी. संभवत: वह वापस जाना चाहती थी. थोड़ी देर में ही उस ने गोली चलने की आवाज सुनी. यही गवाही मारिया ने कोर्ट में दी थी.

बुश के स्मार्टफोन पर डेटिंग ऐप के जरिए कुकुकोवा को पता चल चुका था कि बुश और मारिया 5 अप्रैल, 2014 की रात अपनी मुलाकात का पांचवां महीना पूरा होने पर जश्न मनाने वाले हैं. इस के लिए स्पैनिश विला कोस्टा डेल सोल में खास किस्म का रोमांटिक आयोजन किया गया था. इस से पहले ब्रिस्टल हवाई अड्डे पर बुश ने मारिया को 10,000 पाउंड की हीरे की एक अंगूठी भेंट की थी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि वे विला पर उस से एक खास बात पर चर्चा करना चाहते हैं.

घटना के बारे में मारिया ने बताया, ‘‘5 अप्रैल की सुबह जब हम लोग (मैं और बुश) विला पहुंचे, तब सूर्योदय नहीं हुआ था. हम लोगों ने एकदूसरे का हाथ थामे प्रेमी युगल की तरह हंसहंस कर बातें करते हुए विला में प्रवेश किया. विला के कर्मचारियों ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. हम सहज भाव से कमरे में चले गए.’’

मारिया ने आगे बताया, ‘‘बुश ने कमरे की बत्ती जलाई. मुझे कमरे में कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं ने दरवाजे के पास एक रैक में ‘ब्रा और किंकर्स’ टंगे देखे. यह देख कर मैं समझ गई कि निश्चित तौर पर यहां पहले से कोई औरतें आती होंगी. मैं बुश से थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ दूरी पर फर्श पर एक अधखुला सूटकेस पड़ा था, जिस में 2 कटार रखे दिखे. उसे देख कर मैं घबरा गई. मैं उलटे पैर मुड़ कर ऊपर की सीढि़यों पर चली गई.

‘‘जब मैं सब से ऊपर पहुंची, तब देखा कि वहां कुकुकोवा बिलकुल शांत, स्थिर एकदम चट्टान की तरह खड़ी थी. वह मुझे ही घूर रही थी. उस ने अपने बाल नीचे किए हुए थे और पाजामा पहन रखा था. ऊपर वह शार्ट्स पहने हुए थी. मैं ने पलभर के लिए उसे देखा और चिल्लाती हुई वहां से भाग कर घर से बाहर आ गई.’’

इसी बीच कुकुकोवा ने बुश पर 3 गोलियां दाग दीं. मारिया ने समझा कि टीवी या सीढि़यों से कोई भारी सामान गिर गया है. कुछ मिनट बाद ही कुकुकोवा बाहर आई तो उस के हाथ में गाड़ी की चाबी थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘कार से दूर हट जाओ.’’

उस वक्त वह बहुत ही शांत थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि बुश ने उसे अपनी हमर कार की चाबी कैसे दे दी. इस से मारिया को शक हुआ. जब तक वह घर में जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब तक कुकुकोवा कार को तेजी से ड्राइव करते हुए फरार हो गई. मारिया विला के अंदर पहुंची तो बुश की रक्तरंजित लाश देख कर घबरा गई.

मारिया ने तुरंत बुश की बहन रशेल और पुलिस को बुलाया. पुलिस के साथ आई डाक्टरों की टीम ने बुश को मृत घोषित कर दिया.

बुश की हत्या के बाद जहां मारिया के सपने साकार होने से पहले ही चूरचूर हो गए, वहीं कुकुकोवा को पूरी जवानी जेल की सलाखों के पीछे गुजारनी होगी. उस के मातापिता पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है. न तो बुढ़ापे का कोई सहारा है और न ही सिर छिपाने को छत बची है. सब कुछ बेटी को जेल जाने से बचाने में खत्म हो गया है. रही बात एल्ली और बहन रशेल की, तो उन को बुश की यादों के सहारे जीना होगा.

वरदी की आड़ में हनीट्रैप का खेल

उत्तरी दिल्ली के जय माता मार्केट, त्रिनगर का रहने वाला कमलेश कुमार एलआईसी ऐजेंट था. अपने इस काम की वजह से उसे दिन भर इधरउधर भागदौड़ करनी पड़ती थी. इस मेहनत से उसे महीने में ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. 25 मई, 2016 को वह किसी काम से त्रिनगर के पोस्ट औफिस गया. तभी उस के मोबाइल पर ज्योति नाम की एक महिला का फोन आया. वह ज्योति को पिछले 5-6 सालों से जानता था. कमलेश ने उस की जीवन बीमा पौलिसी की थी. ज्योति के सहयोग से उसे कई और भी पौलिसी मिली थीं. ज्योति ने उसे बताया, ‘‘मेरी एक बहन रोहिणी में रहती है. उसे एक पौलिसी करानी है. आप उस की कोई अच्छी सी पौलिसी कर देना.’’

‘‘उन के पास कब पहुंचना है?’’ कमलेश कुमार ने पूछा.

‘‘आज ही चले जाओ. मैं भी उसी के पास ही जा रही हूं.’’ ज्योति ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं अभी पोस्ट औफिस में हूं. यहां से निबट कर मैं रोहिणी पहुंच जाऊंगा. वहां का एड्रेस बता दो?’’ कमलेश ने कहा.

‘‘जब तुम यहां से निकलो तो मुझे फोन कर देना, मैं वहां कहीं मिल जाऊंगी और अपने साथ ले चलूंगी.’’ ज्योति बोली.

‘‘ठीक है, मैं बता दूंगा.’’

कोई नया केस तलाशने के लिए कभीकभी कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इस बात को कमलेश अच्छी तरह जानता था, पर अब उसे ज्योति के माध्यम से एक केस आसानी से मिलने जा रहा था. इसलिए वह खुश था. उस ने फटाफट पोस्ट औफिस का काम निपटाया और बाहर आते ही ज्योति को फोन किया. ज्योति ने उसे बताया कि वह दोपहर एक बजे रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर मिलेगी. ज्योति से बात करने के बाद कमलेश ने मोबाइल में समय देखा तो साढ़े 11 बज रहे थे. एक बजने में डेढ़ घंटा बाकी था. वह सोचने लगा कि यह टाइम कहां बिताए. उस ने कुछ लोगों को फोन किया. इत्तेफाक से पीतमपुरा के एक क्लाइंट ने उसे मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. कमलेश के लिए तो यह अच्छा ही था क्योंकि दोपहर एक बजे उसे पीतमपुरा से आगे रोहिणी जाना था, इसलिए उस ने फटाफट अपनी स्कूटी स्टार्ट की और पीतमपुरा की तरफ चल दिया.

15 मिनट में वह पीतमपुरा में अपने क्लाइंट के यहां पहुंच गया. उस क्लाइंट को एकमुश्त मोटी रकम एलआईसी में जमा करनी थी. उसी संबंध में बातचीत करने के लिए उस ने कमलेश को घर बुलाया था. कमलेश को रोहिणी भी पहुंचना था, इसलिए बातचीत करने के बाद वह निश्चित समय पर रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर पहुंच गया. वादे के मुताबिक ज्योति वहां खड़ी मिली. रोहिणी सेक्टर-1 की तरफ जाने की बात कह कर ज्योति उस की स्कूटी पर बैठ गई. सेक्टर-1 में पानी की टंकी के पास पहुंच कर ज्योति ने किसी महिला से बात की. फिर उस ने कमलेश से कुछ देर वहीं इंतजार करने को कहा. करीब 10 मिनट बाद वहां 30-35 साल की एक महिला आई. ज्योति ने उस का परिचय अपनी सहेली के रूप में कराया. उसे भी स्कूटी पर बैठा कर कमलेश उन के बताए अनुसार विजय विहार में बी.डी. जैन पब्लिक स्कूल के पास एक फ्लैट पर पहुंच गया.

वहां पहुंच कर 30-35 साल की उस महिला ने कमलेश से कहा, ‘‘मैं आप से अभी बात करती हूं. तब तक आप अंदर एसी वाले कमरे में बैठ जाएं. कमलेश अंदर वाले कमरे में चला गया. पहले से उस कमरे में जो लड़की बैठी थी, वह कमलेश से बातचीत करने लगी. उसे वहां आए अभी 5 मिनट ही हुए थे कि उसी दौरान वहां 4 व्यक्ति आए. लंबेचौड़े डीलडौल वाले वह चारों खुद को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के लोग बता रहे थे. उन में से एक व्यक्ति पुलिस वरदी में था.’’

कमरे में घुसते ही उन्होंने कमलेश को हड़काते हुए कहा, ‘‘यहां बैठे इस लड़की के साथ गलत काम कर रहे हो?’’

उन लोगों की बात सुनते ही कमलेश हक्काबक्का रह गया. कमलेश ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘नहीं सर, आप लोगों को शायद कोई गलतफहमी हुई है. मैं तो यहां बीमा केस के संबंध में आया हूं. आप चाहें तो बाहर बैठी ज्योति से पूछ सकते हैं. ज्योति सारी सच्चाई बता देगी.’’

कमलेश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वरदी वाले ने कमलेश के गाल पर जोरदार तमाचा मारा. पलभर के लिए कमलेश का दिमाग घूम गया. उसी दौरान कमरे में बैठी महिला वहां से चली गई. कमरे में अब कमलेश के अलावा वही 4 लोग ही थे.

कमलेश समझ गया कि उसे फंसाया गया है. ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. फिर भी खुद को बचाने के लिए वह उन के सामने गिड़गिड़ाने लगा. पर उन लोगों ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे हड़काते हुए जेल भेजने की धमकी देने लगे. तभी उन में से एक ने कमलेश की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्होंने उस का पर्स निकाल लिया और बैग की भी तलाशी ली. उस के पर्स में 4-5 सौ रुपए निकले, जबकि बैग में 25 हजार रुपए थे. वह रुपए उन्होंने अपने पास रख लिए. उस के पर्स में बैंक औफ बड़ौदा, आंध्रा बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम कार्ड थे. कमलेश को ले कर वह चारों फ्लैट से बाहर निकल आए. ज्योति नाम की जिस महिला के साथ वह एलआईसी केस के लालच में उस फ्लैट में आया था, वह दूसरे कमरे में बैठी हुई थी. कमलेश समझ गया कि यह सब उसी की साजिश है.

फ्लैट के बाहर आने के बाद उन में से एक व्यक्ति ने कमलेश को एक साइड में ले जा कर कहा, ‘‘देखो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो गई तो परेशानी में फंस जाओगे. जेल तो जाना ही पड़ेगा साथ में बदनामी होगी अलग से. फिर सालों साल कोर्ट जा कर मुकदमा लड़ते रहना. वकीलों की फीस तो तुम जानते ही हो. अगर तुम इन सब से बचना चाहते हो तो 2 लाख रुपए खर्च कर दो. सारी बात यहीं रफादफा हो जाएगी और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’ यह सुन कर कमलेश कुछ सोचने लगा. फिर कुछ पल बाद वह बोला, ‘‘इतने पैसे मेरे पास तो हैं नहीं. कहां से दूंगा. मैं आप लोगों से फिर से अनुरोध करता हूं कि मुझे छोड़ दीजिए.’’ कमलेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

‘‘हम ने तुझे जो तरीका बताया, तेरी समझ में नहीं आया. जब जेल जाएगा तब अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’ उसी शख्स ने धमकाया जिस ने 2 लाख रुपए में मामला रफादफा करने को कहा था. इस के बाद पुलिस वरदी वाले ने कमलेश के पर्स से निकाले हुए एटीएम कार्ड अपने एक साथी को देते हुए कहा, ‘‘इस के साथ कहीं आसपास के एटीएम बूथ पर जाओ और देखो कि इन खातों में पैसे हैं कि नहीं. यदि हों तो 2 लाख रुपए निकाल कर इस का मामला यहीं निपटा दो.’’

उस के कहने पर एक आदमी कमलेश की स्कूटी पर बैठ कर आईसीआईसीआई के एटीएम बूथ पर पहुंच गया. कमलेश ने डर की वजह से उसे अपना पिन बता दिया था. जिस के बाद उस शख्स ने कमलेश के एटीएम कार्डों से 82,200 रुपए निकाल लिए. इस तरह उन लोगों ने कमलेश से 1,10,200 ऐंठ लिए पैसे लेने के बाद उन्होंने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. बिना कुछ किएधरे ही कमलेश लुटपिट कर घर पहुंचा. उस का चेहरा उतरा हुआ था. पत्नी ने उस से वजह भी पूछी पर उस ने उसे कुछ नहीं बताया. यह ऐसी बात थी, जिसे वह किसी को बताने की हिम्मत भी नहीं जुटा रहा था. 3-4 दिन बीत जाने के बाद भी वह उस घटना को भुला नहीं पा रहा था. आखिर एक दिन उस के दोस्त ने उस से उस की खामोशी और परेशानी का कारण पूछ ही लिया. सोचविचार कर कमलेश ने अपने साथ घटी पूरी घटना उसे बता दी.

उस की बात सुनने के बाद दोस्त को लगा कि उस के साथ धोखाधड़ी हुई है क्योंकि असली पुलिस होती तो उसे सीधे थाने ले जाती. अगर किसी तरह की कोई सैटिंग होती भी तो थाने में होती. दूसरे पुलिस को इस तरह किसी के खाते से पैसे निकालने का कोई हक नहीं होता. ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि करूं तो क्या करूं.’’ कमलेश दुखी मन से बोला.

‘‘करना क्या है, तुम्हें थाने जाना चाहिए. तुम थाने जाओगे तो उन चारों पुलिसवालों में से कोई न कोई तो वहां दिख ही जाएगा. अगर उन में से कोई न दिखे तो थानाप्रभारी को बता देना. यह भी तो हो सकता है कि वो लोग पुलिसवाले हों ही नहीं. क्योंकि इसी तरह से एक पायलट से 15 लाख रुपए लेने के आरोप में पुलिस ने दिल्ली होमगार्ड के एक पूर्व कमांडर को गिरफ्तार किया था. मेरी बात मानो, तुम थाने चलो. मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं.’’ दोस्त ने उस की हिम्मत बढ़ाई. इस के बाद कमलेश दोस्त के साथ बाहरी दिल्ली के थाना विजय विहार पहुंचा. कमलेश ने थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को आपबीती सुनाई. थानाप्रभारी ने शाम 5 बजे थाने के समस्त स्टाफ की ब्रीफिंग के दौरान शिनाख्त कराई. कमलेश को उन में से कोई नहीं दिखा. इस से थानाप्रभारी को लगा कि कमलेश के साथ ठगी करने वाले या तो किसी दूसरे थाने के रहे होंगे या फिर उन्होंने फरजी पुलिस बन कर कमलेश से पैसे ऐंठे होंगे.

जो भी हो, उन्होने अपराध तो किया ही था. इसलिए थानाप्रभारी ने कमलेश की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 384/388/208/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ विजय विहार स्थित उस फ्लैट पर गए, जहां ज्योति कमलेश को ले गई थी. वह फ्लैट बंद मिला. पता चला कि वह फ्लैट अवध गुप्ता नाम के व्यक्ति का था. पुलिस अवध गुप्ता की तलाश में जुट गई. मुखबिर की सूचना के बाद पुलिस टीम ने 2 दिन बाद ही उसे रोहिणी के विजय विहार क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि कई सालों से वह इस फ्लैट में अकेला रहता है. उस की दोस्ती रोहिणी सेक्टर-22 के रहने वाले सुनील कुमार से थी. सुनील दिल्ली होमगार्ड में था. वह कभीकभी ज्योति नाम की एक महिला को ले कर उस के फ्लैट पर आता था. जब कभी ज्योति किसी व्यक्ति को ले कर आती थी तो सुनील अपने दोस्तों सीताराम, अनिल और आरिफ उर्फ बंटी को ले कर आ जाता था. उस वक्त सुनील पुलिस की वरदी में होता था. ये लोग उस व्यक्ति को रेप के आरोप में बंद करने की धमकी दे कर उस से मोटे पैसे ऐंठते थे. जितने पैसे ऐंठे जाते उसे सभी लोग आपस में बांट लेते थे. अवध गुप्ता ने बताया कि वह सुनील और ज्योति के ठिकानों के बारे में जानता है.

पुलिस ने अवध की निशानदेही पर ज्योति को गिरफ्तार कर लिया. शादीशुदा ज्योति की दोस्ती सुनील से थी. पैसे के लालच में वह हनीट्रैप में लोगों को फंसाने का धंधा करने लगी. कम मेहनत में उसे अच्छी कमाई होने लगी तो वह नएनए शिकार को तलाशने लगी थी. इसी चक्कर में उस ने कमलेश को फांसा था. पुलिस ने अवध गुप्ता और ज्योति को गिरफ्तार कर रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अन्य अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने उन के संभावित ठिकानों पर दबिशें दीं, पर वे लोग अपने घरों से फरार मिले. इसी तरह करीब 5 महीने बीत गए. आरोपियों का कहीं कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. इस पर उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी ने यह केस जिले की स्पैशल स्टाफ यूनिट को सौंप दिया. तेजतर्रार सब इंसपेक्टर राममनोहर मिश्रा की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई गई.

यह पुलिस टीम फरार अभियुक्त सुनील कुमार, सीताराम, अनिल, आरिफ उर्फ बंटी व उन की एक महिला साथी को तलाशने लगी. लेकिन आरोपी बेहद शातिर थे. उन्हें पता चल गया था कि पुलिस उन्हें ढूंढ रही है. इसलिए वह गुप्त ठिकानों पर छिप गए थे. टीम को किसी तरह से सुनील और उस के दोस्त सीताराम के फोन नंबर मिल गए थे. पुलिस उन के फोन नंबरों के सहारे उन्हें तलाशने लगी. उन के फोन नंबरों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को एसआई राममनोहर मिश्रा की टीम ने सुनील कुमार और सीताराम को दिल्ली के बाहरी रिंग रोड स्थित विवेकानंद इंस्टीट्यूट के पास से गिरफ्तार कर लिया. वह अपनी होंडा अमेज कार नंबर डीएल 4सीएयू1658 में वहां किसी का इंतजार कर रहे थे. दोनों को स्पैशल स्टाफ औफिस ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि सुनील दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-22 में रहने वाले मेवालाल का बेटा था. वह शादीशुदा था लेकिन किसी बात को ले कर उस की पत्नी से नहीं बनती थी, इसलिए वह पत्नी से अलग रहता था. सुनील दिल्ली होमगार्ड था. करीब 6 महीने पहले उस की नौकरी छूट गई थी. जब वह होमगार्ड में नौकरी करता था, तभी उस की ड्यूटी सुल्तानपुरी थाने में थी. वहीं पर सीताराम भी उस के साथ ड्यूटी करता था. सीताराम का एक भाई दिल्ली पुलिस में था. सुनील और सीताराम गहरे दोस्त थे. दोनों ही ज्यादा पैसे कमाने की बातें करते रहते थे. तभी उन के दिमाग में हनीट्रैप के जरिए पैसा कमाने का विचार आया. इस के लिए एक महिला की जरूरत थी. उस का इंतजाम सुनील ने कर दिया. दरअसल सुनील ज्योति नाम की एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहता था.

ज्योति को उस ने तैयार कर लिया. अब बात आई जगह की तो सुनील का एक जानकार था अवध गुप्ता, जिस का विजय विहार में फ्लैट था. पैसे के लालच में वह भी तैयार हो गया. सीताराम ने अपने 2 दोस्तों अनिल व आरिफ उर्फ बंटी को भी इस गैंग में शामिल कर लिया. यह दोनों गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में रहते थे. ज्योति शिकार को फांस कर अवध गुप्ता के मकान पर ले जाती थी. फिर कुछ देर बाद सुनील अपने सभी साथियों के वहां आ धमकता था. सुनील पुलिस वरदी में होता था. इसलिए वह शिकार को डराधमका कर आसानी से पैसे झटक लेते थे. फिर उस रकम को आपस में बांट लेते थे. इस तरह उन का यह धंधा आसानी से चल रहा था. पर कमलेश कुमार के मामले में सभी फंस गए पुलिस ने सुनील और सीताराम को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया जबकि अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी है.

बच्ची के लिए फरिश्ता बना औटोरिक्शा चालक

ग्वालियर के ख्वाजानगर के रहने वाले हेमराज सिंह 29 दिसंबर, 2016 को अपने परिवार के साथ शहर के प्रसिद्ध साईंबाबा मंदिर गए थे. वहीं उन की 4 साल की बेटी दिव्या बिछुड़ गई. हेमराज सिंह और उन की पत्नी बेटी को इधरउधर खोजने लगे, पर वह कहीं दिखाई नहीं दी.

उन्होंने बच्ची को मंदिर परिसर से ले कर बाहर सड़क तक तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल सका. कुछ ही देर में बच्ची के गायब होने की खबर मंदिर परिसर में मौजूद लोगों के बीच फैल गई. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम और नजदीकी पुलिस स्टेशन में दिव्या के गुम होने की सूचना दे दी. पुलिस को सूचना देने के बावजूद भी हेमराज सिंह और उन की पत्नी बेटी को मंदिर के आसपास खोजते रहे.

उसी बीच एक महिला एक औटोरिक्शा में बैठते हुए औटोचालक से बोली कि उसे बसअड्डा जाना है. उस महिला के साथ जो बच्ची थी, उस की उम्र यही कोई 3-4 साल थी. वह बच्ची लगातार रोए जा रही थी. उसे चुप कराने के लिए वह महिला उसे खाने को कभी बिस्कुट तो कभी कुछ और चीजें दे रही थी. पर वह बच्ची रोते हुए अपनी मां के पास जाने के लिए कह रही थी. बच्ची को इस तरह रोता देख औटोचालक हरिमोहन चौरसिया को कुछ शक हुआ तो उस ने महिला से पूछा कि यह बच्ची क्यों रो रही है?

‘‘दरअसल, इस बच्ची की मां अस्पताल में भरती है. यह उस के पास जाने की जिद कर रही है.’’ महिला ने कहा. हरिमोहन को उस महिला की बात पर विश्वास नहीं हुआ. उसे दाल में कुछ काला नजर आया. लिहाजा वह अपने औटो को रास्ते में पड़ने वाले इंदरगंज थाने में ले गया. महिला ने जब औटो थाने में लाने के बारे में पूछा तो ड्राइवर हरिमोहन ने कहा कि उसे थाने में किसी से 2 मिनट बात करनी है.

हरिमोहन ने थाने में मौजूद हैडकांस्टेबल राजकिशोर त्रिपाठी को महिला पर हो रहे अपने शक के बारे में बता दिया. हरिमोहन की बात सुन कर हैडकांस्टेबल राजकिशोर उस के औटोरिक्शा के पास पहुंचे और महिला को पूछताछ के लिए औफिस में ले आए. पूछताछ में महिला ने बताया कि वह इस बच्ची की पड़ोसन है. इस बच्ची की मां सरकारी अस्पताल में भरती है. मैं इसे इस की मां से मिलवाने के लिए ले जा रही हूं.

हैडकांस्टेबल को भी उस महिला की बातों पर शक हुआ तो उस ने उस बच्ची को अलग ले जा कर बात की. उस ने कहा, ‘‘अंकल, मेरा नाम दिव्या है. मैं तो अपने मम्मीपापा के साथ साईंबाबा मंदिर में दर्शन के लिए गई थी. यह जो आंटी मुझे ले जा रही हैं, इन्हें मैं नहीं जानती. मेरी मम्मी अस्पताल में नहीं भरती हैं. पता नहीं यह मुझे कहां ले जा रही हैं?’’ इतना कह कर दिव्या रोने लगी.

हैडकांस्टेबल राजकिशोर को अब मामला समझ में आ गया. उस ने उस समय उस महिला से कुछ नहीं कहा. उसे थाने में बिठा कर वह दिव्या को मोटरसाइकिल पर बिठा कर साईंबाबा मंदिर ले गया. वहां दिव्या के पिता हेमराज सिंह और उन की पत्नी मिल गई. दोनों ही परेशान थे. जैसे ही उन्होंने पुलिस वाले के साथ अपनी बेटी को देखा, उन के चेहरे पर खुशी की चमक लौट आई.

मां ने दिव्या को सीने से लगा लिया. कई मिनट तक वह उसे पुचकारती रही. हेमराज सिंह ने जब दिव्या के साथ आए पुलिस वाले से पूछा कि उन्हें उन की बेटी कहां मिली तो उस ने बताया कि एक महिला इस का अपहरण कर औटो में बैठा कर कहीं ले जा रही थी. वह तो भला हो उस औटो वाले का जो अपना औटो सीधे थाने ले आया और आप की बच्ची गलत जगह पहुंचने से बच गई. बेटी को बचाने वाले उस औटोचालक को बहुत दुआएं दीं. इस के बाद हैडकांस्टेबल राजकिशोर हेमराज और उन की पत्नी को थाने ले आए.

थाने पहुंचने के बाद हैडकांस्टेबल ने पूरी जानकारी थानाप्रभारी को दी. दिव्या का अपहरण कर के ले जा रही महिला से हैडकांस्टेबल राजकिशोर त्रिपाठी ने पूछताछ की तो उस महिला ने अपना नाम लक्ष्मी उर्फ मुन्नीबाई बताया. वह डबरा कस्बे की जवाहर कालोनी की रहने वाली थी.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह बच्चों को चुराने वाले गैंग से जुड़ी है. इस बच्ची को भी वह चुरा कर ले जा रही थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी डा. आशीष खरे को दी. जिले के अलगअलग क्षेत्रों से अनेक बच्चियां गायब हो चुकी थीं. उन का कोई सुराग नहीं मिल रहा था, इसलिए उन्होंने झांसी रोड सर्किल के सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया को इस मामले की जांच करने को कहा.

सीएसपी भदौरिया ने महिला पुलिस की मदद से लक्ष्मी से पूछताछ की तो उस ने  सारा राज उगल दिया. पता चला कि लक्ष्मी के गैंग में 8 लोग शामिल थे और ये तमाम बच्चियों को चुरा कर अलगअलग जगहों पर भेज चुके हैं. एक बच्ची चुराने के लिए उन्हें 25 से 30 हजार रुपए मिलते थे. पैसे के लालच में लक्ष्मी के 2 बेटे राजेश और राजू भी यही काम कर रहे थे.

लक्ष्मी ने बताया था कि उस के गैंग में 3 महिलाएं और 5 शातिर पुरुष शामिल हैं. कई शहरों में मौजूद दलालों से बच्चियों को सप्लाई करने का सौदा किया जाता है. कभीकभी दलाल डील के बदले एडवांस में भी पैसे देते थे.

गैंग के सदस्य रेलवे स्टेशनों, बसअड्डे, मंदिरों आदि भीड़भाड़ वाले इलाकों में सक्रिय रहते हैं. पता चला कि गैंग के टारगेट में केवल छोटी बच्चियां ही होती हैं. बच्ची को अगवा करने के बाद कुछ दिनों तक ये अपने ठिकाने पर रखते हैं, फिर उन्हें दूसरी जगहों पर रख कर भीख मंगवाई जाती है और जवान होने पर उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया जाता है. पता चला है कि 50 वर्षीया लक्ष्मी ही गैंग की मुखिया थी.

सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया ने लक्ष्मी से सभी राज खुलवाने के बाद लक्ष्मी की निशानदेही पर ग्वालियर के गिर्जोरा गांव से राममिलन कंजर, रामदास कुशवाह और लक्ष्मी के दोनों बेटों राजू और राजेश के घर दबिश दे कर गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने इन के पास से अगवा की गई 3 बच्चियों को बरामद किया था.

इस के बाद एक पुलिस टीम राजस्थान के धौलपुर जिला भेजी गई. वहां से पुलिस ने सरनाम कंजर को धर दबोचा. उस के पास से पुलिस ने अगवा की गई 2 बच्चियां बरामद कीं. ग्वालियर जिले का बदनापुरा क्षेत्र वेश्यावृत्ति के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर रोशनबाई और आकाश कालकोट के घर दबिश दी गई. उस के पास से भी 2 बच्चियां बरामद की गईं.

गैंग का नेटवर्क देश के 5 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ था.

पुलिस ने 8 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर उन के पास से ग्वालियर के माधोगंज की 6 वर्षीया मोहिनी माहौर, गुढ़ागढ़ी के नाके की 5 वर्षीया नेहा खान, नई बस्ती ललितपुर की 6 साल की कांती, मोहनगढ़ की 4 साल की नैना, 8 साल की राशि, 4 साल की अंजलि, 5 साल की प्राची और 4 साल की रज्जो उर्फ आयशा को बरामद किया.

यह पुलिस के लिए बहुत बड़ी सफलता थी. पुलिस ने बरामद की गई सभी बच्चियां उन के मातापिता को सौंप दीं. अपनी बच्चियों को पा कर परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

इस सफलता के लिए सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया और औटो चालक हरिमोहन को प्रदेश की राजधानी भोपाल में बाल आयोग द्वारा सम्मानित किया गया. औटोरिक्शा चालक की चौकसी के बाद यदि लक्ष्मी नहीं पकड़ी जाती तो पता नहीं यह गैंग कितनी और बच्चियों को चुरा कर उन का जीवन तबाह कर देता.

रंगीन शौक पड़ गया जान पर भारी

राजस्थान में आम लोगों के होली खेलने के अगले दिन पुलिस वाले होली खेलते हैं. इस की वजह यह है कि होली पर पुलिस वाले आम लोगों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी पर तैनात रहते हैं. इसलिए पुलिस विभाग अगले दिन होली खेलता है. उस दिन पुलिस वाले पूरी मस्ती में होते हैं. पुलिस अधिकारियों के घरों और रिजर्व पुलिस लाइनों में दोपहर तक यही सिलसिला चलता रहता है.

इस बार 13 मार्च को आम लोगों ने होली खेली थी, इसलिए पुलिस वालों ने 14 मार्च को होली खेली. दोपहर तक चली पुलिस वालों की होली की मस्ती की खुमारी शाम तक उतरने लगी थी. जयपुर के थाना मानसरोवर के ज्यादातर पुलिस वाले वरदी पहन कर अपनी ड्यूटी पर आ गए थे. 1-2 ही थे, जो किसी वजह से नहीं आए थे, इस से कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.

शाम 6-7 बजे के बीच थाना मानसरोवर के लैंडलाइन फोन की घंटी बजी तो ड्यूटी अफसर ने रिसीवर कान से लगा कर कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, आप थाना मानसरोवर से बोल रहे हैं न?’’ दूसरी ओर से पूछा गया.

‘‘जी कहिए, मैं थाना मानसरोवर से ही बोल रहा हूं?’’ ड्यूटी अफसर ने कहा.

‘‘सर, मैं हीरापथ से बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से किसी आदमी की घबराई हुई सी आवाज आई, ‘‘सर, हीरापथ के मकान नंबर 55/31 से बहुत तेज दुर्गंध आ रही है. इस मकान में रहने वाले बापबेटे भी नजर नहीं आ रहे हैं. सर, मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है.’’

‘‘मकान से दुर्गंध कब से आ रही है?’’ ड्यूटी अफसर ने फोन करने वाले से पूछा.

‘‘सर, दुर्गंध तो होली के बाद से ही आ रही है, लेकिन अब असहनीय हो गई है.’’ फोन करने वाले ने कहा और फोन काट दिया.

फोन कटने के तुरंत बाद ड्यूटी अफसर ने फोन द्वारा मिली सूचना थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत को दे दी. सूचना की सच्चाई का पता करने के लिए थानाप्रभारी ने एक सबइंसपेक्टर और 4 सिपाहियों को हीरापथ पर भेज दिया. मानसरोवर जयपुर महानगर की सब से बड़ी आवासीय कालोनी है. मुख्य मार्ग को क्रौस करते हुए मुख्य सड़कों के नाम स्वर्णपथ, रजतपथ, किरणपथ, कावेरीपथ आदि हैं.

पुलिस को हीरापथ पर स्थित उस मकान को खोजने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. हीरापथ पर आईसीआईसीआई बैंक के सामने 5 मंजिला एक निर्माणाधीन होटल के पास बहुत सारे लोग खड़े बातें कर रहे थे. पुलिस समझ गई कि घटना उसी मकान में घटी है.

पुलिस ने गाड़ी वहां जा कर रोक दी. सबइंसपेक्टर ने वहां खड़े लोगों से पूछा कि क्या बात है तो भीड़ में से एक अधेड़ ने आगे आ कर कहा, ‘‘साहब, आप यह जो होटल देख रहे हैं, यह मकान नंबर 55/31 पर बना हुआ है. इसी मकान से तेज दुर्गंध आ रही है. इस मकान में रहने वाले बापबेटे का भी कुछ अतापता नहीं है.’’

‘‘इस मकान में बापबेटे ही रहते थे?’’ सबइंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘सर, हमें ज्यादा कुछ पता नहीं है. बस इतना पता है कि यहां कोई सक्सेना साहब रहते थे, साथ में उन का बेटा रहता था. परिवार में शायद कोई महिला नहीं है.’’ अधेड़ ने कहा.

‘‘आप को इन सक्सेना साहब के बारे में ज्यादा क्यों नहीं पता?’’

‘‘साहब, वह झगड़ालू किस्म के आदमी थे, इसलिए उन की किसी से ज्यादा पटती नहीं थी.’’ अधेड़ ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो देखते हैं.’’ सबइंसपेक्टर ने कहा.

सबइंसपेक्टर होटल की ओर बढ़े तो दुर्गंध की वजह से उन्हें नाक पर रूमाल रखनी पड़ी. मकान में बने होटल का गेट धक्का देते ही खुल गया. शायद वह खुला ही पड़ा था. पुलिस होटल के अंदर घुसी तो सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. होटल निर्माण का भी कुछ सामान पड़ा था. इधरउधर पड़े सामान से सहज ही अंदाजा लग गया कि इस घर को होटल में तब्दील किया जा रहा था और इन दिनों निर्माणकार्य चल रहा था.

पुलिस ने मकान की तलाशी ली तो ग्राउंड फ्लोर पर पीछे के कमरे में एक बुजुर्ग का शव पड़ा मिला. शव के सीने पर पानी की टंकी का ढक्कन रखा था. वहीं एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था. पत्थर पर खून के निशान थे. इस से लगा कि बुजुर्ग की हत्या सिर पर पत्थर मार कर की गई थी.

इस के बाद पुलिस पहली मंजिल पर पहुंची तो वहां एक युवक का शव पड़ा मिला. युवक के हाथ कपड़े से आगे की ओर बंधे थे. उस के कपड़े खुले थे. दोनों शवों से तेज बदबू आ रही थी. सबइंसपेक्टर ने आसपास के लोगों से शवों की शिनाख्त कराई. लोगों ने उन की शिनाख्त राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ सक्सेना के रूप में की.

सबइंसपेक्टर ने यह सूचना थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत को दी तो उन्होंने उच्चाधिकारियों को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी सहित अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक एक्सपर्ट को भी बुला लिया गया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट ने तो साक्ष्य जुटा लिए, पर डौग स्क्वायड से पुलिस को कोई खास मदद नहीं मिली. लाशों को देख कर ही लग रहा था कि ये हत्याएं 3-4 दिन पहले की गई थीं. स्थितियों से यही लग रहा था कि बदमाशों ने सौरभ को बंधक बना कर राजनारायण सक्सेना से कोई सौदा करने या लूटपाट की कोशिश की थी. सौरभ को चोट लगने पर राजनारायण ने भागने की कोशिश की होगी तो बदमाशों ने उन्हें मार दिया. उस के बाद सौरभ को भी मार डाला.

इस बात पर भी विचार किया गया कि पितापुत्र का अपने किसी परिचित या रिश्तेदार से प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं चल रहा था, तमाम कोणों पर विचार किए गए, लेकिन पुलिस को हत्या की वजह पता नहीं लग सकी. उसी दिन थाना मानसरोवर में इस दोहरे हत्याकांड का केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस आयुक्त ने अधिकारियों के साथ मीटिंग कर हत्या के इस मामले पर व्यापक विचारविमर्श किया. इस के बाद पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) मनीष अग्रवाल और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) योगेश गोयल ने सहायक पुलिस आयुक्त देशराज यादव के निर्देशन में थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं, जिस में थाना शिप्रापथ और मानसरोवर के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीमों ने आसपास के लोगों से पूछताछ कर राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ के बारे में जानकारी जुटाई. पता चला कि करीब 73 साल के राजनारायण सक्सेना कृषि विभाग में उपनिदेशक के पद से रिटायर हुए थे. करीब 43 साल के उन के बेटे सौरभ सक्सेना ने मुंबई से इलैक्ट्रिकल में इंजीनियरिंग की थी.

करीब 6 साल पहले उस की शादी हुई थी, लेकिन उस का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा. शादी के 4-5 साल बाद ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था. राजनारायण सक्सेना की पत्नी इंद्रा की डेढ़ साल पहले मौत हो गई थी. उस के बाद घर में बापबेटे ही रह गए थे.

राजनारायण सक्सेना ने 3 साल पहले अपने मकान को होटल में तब्दील करने का फैसला लिया और उसे तोड़वा कर होटल का रूप देने लगे थे. पत्नी की मौत के बाद काम रोक दिया गया था. इधर कुछ महीने पहले फिर से निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया था. अब तक निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका था. कमरों में पीओपी करवाई जा रही थी. फिनिशिंग और सजावट का पूरा काम बाकी था.

जांच में पता चला कि सौरभ सक्सेना के पास कई मोबाइल फोन थे. जो पुलिस को मिल गए थे. उन की काल डिटेल्स की जांच की गई तो पता चला उस के पास गोवा, मुंबई, असम और कोलकाता से फोन आते थे. इस से पुलिस को शक हुआ कि सौरभ कहीं किसी तरह की सट्टेबाजी का काम तो नहीं करता था?

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि 10 मार्च की रात करीब साढ़े 10 बजे सौरभ ने अपने घर के पास ही एक मोबाइल फोन की दुकान से अपने एक मोबाइल में बैलेंस डलवाया था, उस समय उस के साथ एक आदमी और था. इस से अंदाजा लगाया गया कि सौरभ की हत्या 10 मार्च की रात साढ़े 10 बजे के बाद की गई थी. सक्सेना के घर के आंगन में 12 मार्च के अखबार पड़े थे, जिन्हें खोला नहीं गया था.

जांच में एक बात यह भी सामने आई कि 14 मार्च की रात करीब 8 बजे के बाद पितापुत्र की हत्या का पता चला था, उस से करीब 4 घंटे पहले शाम 4 बजे के करीब एक महिला सक्सेना के घर से लैपटौप वाला बैग और एकदूसरे अन्य बैग में कुछ सामान ले कर निकली थी. वह महिला साड़ी पहने थी और उस की उम्र 30-35 साल थी.

एक पड़ोसी ने जब उसे टोका तो उस ने कहा था कि सौरभ भैया ने बुलाया था. सौरभ के पास कभीकभी महिलाएं आतीजाती रहती थीं. इसलिए उस पड़ोसी ने महिला पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

 

पड़ोसियों से पता चला था कि सौरभ रात को अपने घर के अंदर और बाहर की सभी लाइटें जला कर रखता था, लेकिन होली की रात को उन के घर में अंधेरा छाया था. इस से पड़ोसियों ने अनुमान लगाया था कि दोनों बापबेटे कहीं गए हैं. चूंकि वे दोनों झगड़ालू थे और पड़ोसियों से बिना बात झगड़ा कर लेते थे, इसलिए किसी ने सक्सेना के घर की ओर ज्यादा ताकझांक नहीं की. जांच में पता चला था कि सौरभ ने घटना से कुछ दिनों पहले अपने घर के ग्राउंडफ्लोर पर सीसीटीवी कैमरे लगवाए थे. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की तलाश की तो वह घर में बने पानी के टैंक में टूटे हुए मिले. इन कैमरों का रिकौर्डर भी नहीं मिला. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्यारे को सक्सेना के घर की पूरी जानकारी थी.

यह भी पता चला था कि निर्माणकार्य के दौरान मेहनतमजदूरी को ले कर बापबेटे का कई बार मजदूरों और मिस्त्रियों से झगड़ा हुआ था. सौरभ की मजदूरों से मारपीट भी हुई थी. इस से यह भी सोचा गया कि रुपयों के लेनदेन को ले कर किसी मजदूर या मिस्त्री ने तो इन बापबेटे की हत्या नहीं कर दी?

पुलिस को राजनारायण सक्सेना के कुछ रिश्तेदारों का पता चला तो उन से भी बात की गई. लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस की जांच ज्योंज्यों आगे बढ़ रही थी, बापबेटों के बारे में नईनई बातें सामने आ रही थीं. लेकिन हत्या के बारे में कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

तमाम लोगों से पूछताछ और जांच के बाद पुलिस को यह अंदाजा जरूर हो गया कि हत्यारों का सुराग निर्माणकार्य में लगे मजदूरों और मिस्त्रियों से ही मिल सकता है. इस के बाद पुलिस ने मानसरोवर इलाके में वीटी रोड की चौखटी पर बैठने वाले मिस्त्रियों, मजदूरों और ठेकेदारों से पूछताछ शुरू की. कुछ महिलाओं से भी पूछताछ की गई.

इस काररवाई के बाद पुलिस ने 19 मार्च को 3 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में टोंक जिले के उनियारा के लतीफगंज पायगा गांव का रहने वाला राकेश मीणा, उस के साथ 5 साल से लिवइनरिलेशन में रह रही करौली निवासी गीता उर्फ पूजा मीणा तथा करौली के गुणेसरा का रहने वाला रमेश सैनी था.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ की तो इस दोहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया. पता चला कि सौरभ सक्सेना के शराब और शबाब के शौक ने ही उस की और उस के पिता की जान ली थी. पुलिस द्वारा तीनों से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ 3 साल से अपने मकान को होटल बनवा रहे थे. इस के लिए वे मानसरोवर के वीटी रोड की चौखटी से खुद ही मिस्त्री और मजदूर लाते थे. इसलिए उस इलाके के ज्यादातर मजदूरों और मिस्त्रियों को इस बात का पता था कि सौरभ की मां की मौत के बाद से घर में बापबेटे ही रहते हैं.

राकेश मीणा मकानों में मार्बल और टाइल्स लगाने का काम करता था. रमेश सैनी मार्बल घिसाई का काम करता था. मकान का काम करने के दौरान ही राजनारायण और सौरभ से इन की जानपहचान हुई थी. तभी उन्हें बापबेटों की कमजोरियों का पता चल गया था.

सौरभ के कहने पर ही कुछ दिनों पहले राकेश और रमेश ने उसे एक महिला उपलब्ध कराने की बात कही. उस के हां करने पर राकेश ने अपने साथ लिवइन रिलेशन में रह रही गीता उर्फ पूजा को इस के लिए तैयार कर लिया.

करीब 2 महीने पहले राकेश ने रमेश और गीता के साथ मिल कर योजना बनाई कि सक्सेना के घर शराब की पार्टी की जाए. जब दोनों नशे में हो जाएं तो एकएक कर उन्हें मार कर उन के घर रखी नकदी और ज्वैलरी लूट ली जाए.

इस के बाद राकेश अपने साथियों के साथ अकसर सौरभ के यहां आने लगा और रात में शराब की पार्टी करने लगा. उसी बीच उस ने सौरभ की तमाम व्यक्तिगत जानकारियां जुटाने के साथ यह भी जान लिया कि घर में नकदी व गहने कहां रखे हैं. सारी जानकारी जुटा कर राकेश रमेश और गीता उर्फ पूजा के अलावा 6 साल की बेटी को ले कर 10 मार्च की रात सौरभ के घर पहुंचा.

उस ने कहा कि एक दिन बाद होली है, इसलिए होली से पहले वे शराब की पार्टी करना चाहते हैं. इसी के साथ राकेश ने गीता की ओर आंख मार कर सौरभ से कहा कि अगर वह चाहे तो इस के साथ मौजमस्ती भी कर सकता है. गीता की गदराई जवानी को देख कर सौरभ का मन मचल उठा और वह शराब की पार्टी करने को तैयार हो गया.

इस के बाद राकेश और रमेश ने सौरभ के साथ शराब पी. इस बीच गीता और राकेश की बेटी उसी कमरे में एक कोने में बैठ कर नमकीन और स्नैक्स खाती रहीं. सौरभ को जब नशा चढ़ा तो वह गीता को ले कर मकान की पहली मंजिल पर चला गया. कुछ देर बाद गीता और सौरभ नीचे आ गए.

सौरभ ने एक पैग शराब और पी और नशे में झूमने लगा. वह एक ओर चला गया तो कुछ देर बाद राकेश ने उधर देखा, जहां उस की बेटी बैठी थी. वहां उसे बेटी दिखाई नहीं दी तो वह बेटी को ढूंढता हुआ पहली मंजिल पर पहुंचा.

वहां उस ने देखा कि सौरभ उस मासूम बच्ची के साथ गलत हरकतें कर रहा था. यह देख कर उस का सारा नशा उतर गया. उस की आंखों से अंगारे बरसने लगे. उस ने सौरभ को पकड़ कर उस का गला दबा दिया. सौरभ बेहोश हो गया. शोरशराबा सुन कर नीचे से रमेश और गीता भी पहली मंजिल पर आ गए. तीनों ने उस के हाथपैर बांध दिए और उस का गला दबा कर मार डाला.

सौरभ की हत्या कर सभी नीचे उतर रहे थे, तभी शोरशराबा सुन कर ग्राउंड फ्लोर से राजनारायण सक्सेना चिल्लाने लगे. राकेश ने पानी के टैंक का ढक्कन उठा कर उन के सिर पर दे मारा. बुजुर्ग राजनारायण गिर पड़े तो सभी ने उन का भी गला दबा दिया. उन की भी सांसें थम गईं.

बापबेटे को मौत की नींद सुला कर रमेश सक्सेना के घर से करीब 2 लाख रुपए के गहने और नकदी के अलावा मोबाइल फोन आदि ले कर साथियों के साथ चला गया. ये सभी पुलिस की गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रखे हुए थे, साथ ही दिन में 1-2 चक्कर सक्सेना के घर के लगा लेते थे, ताकि पता चलता रहे कि पुलिस क्या कर रही है?

3-4 दिनों तक कोई हलचल नहीं हुई तो ये लोग निश्ंिचत हो गए कि बापबेटे अकेले ही रहते थे, इसलिए उन के मरने का किसी को पता नहीं चलेगा. इस के बाद 14 मार्च की दोपहर को राकेश और गीता सक्सेना के घर गए और वहां से एलईडी टीवी, सीपीयू, कंप्यूटर मौनिटर, प्रोजेक्टर और वीडियो कैमरा उठा लाए.

उसी दिन शाम को राकेश गीता के साथ उत्तर प्रदेश के शहर मथुरा चला गया, जहां उन्होंने गोवर्धन परिक्रमा की. 16 मार्च को वह वहां से रमेश सैनी के घर करौली चला गया. एक दिन बाद गीता के साथ मेंहदीपुर बालाजी के दर्शन कर के जयपुर लौट आया. पुलिस ने 19 मार्च को उसे और गीता को जयपुर से और रमेश सैनी को करौली रामपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में राकेश ने अपने गांव का पता गलत बताने के साथ कहा कि उस के मातापिता भी नहीं हैं. लेकिन जांच में उस का गांव टोंक जिले का लतीफगंज पाया गया. उस के मातापिता भी जीवित मिले.

10 साल से वह मोहिनी देवी उर्फ गीता के साथ लिवइन रिलेशन में रहता था, जिस के तथा मिल कर उस ने दोनों बापबेटों की हत्या की थी. गीता को पूर्व पति धनराज मीणा से एक बेटा और एक बेटी है. राकेश ने सौरभ की हत्या की वजह बेटी से गलत हरकत करना बताया है, लेकिन पुलिस का मानना है कि राकेश ने अपने बचाव के लिए यह बयान दिया है. पुलिस ने बच्ची का मैडिकल करवाया है, जिस से ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

राकेश और उस के साथियों ने अगर अपराध किया है तो कानून उन्हें सजा देगा, लेकिन सौरभ के शराब और शबाब के शौक ने उस की तो जान ले ही ली, बूढे़ पिता को भी जान से हाथ धोना पड़ा.

जयपुर महानगर की सब से बड़ी और व्यस्त कालोनी में शिक्षित लोगों के साथ ऐसी वारदात होगी, किसी ने सोचा भी नहीं था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बदनामी का दाग जिसने सब तबाह कर दिया

7 अगस्त, 2016 की सुबह 7 बजे सायरा ने अपनी छत से पड़ोस में रहने वाली सुनीता की छत पर देखा तो वहां का नजारा देख कर वह सन्न रह गई. छत पर सुनीता के देवर राजेश की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. उस ने शोर मचाया तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. सायरा ने 100 नंबर पर फोन कर के इस बात की सूचना पुलिस को भी दे दी थी. पीसीआर वैन कुछ ही देर में आ गई. यह स्थान दक्षिणपश्चिम दिल्ली के थाना रनहौला के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम की सूचना पर के एसआई ब्रह्मप्रकाश हैडकांस्टेबल संजय एवं कांस्टेबल नरेश कुमार के साथ सुनीता के घर पहुंच गए थे.

जैसे ही ये सभी दूसरी मंजिल पर पहुंचे, बरामदे में सुनीता की लाश पड़ी मिली. उस की हत्या चाकू से गला रेत कर की गई थी. वह चाकू लाश के पास ही पड़ा था. उन्हें सुनीता के मकान की दूसरी मंजिल की छत पर उस के देवर की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी, इसलिए वह छत पर गए तो छत पर बिछी चटाई पर सुनीता के देवर राजेश की लाश पड़ी थी.

राजेश का सिर फटा हुआ था. लाश के पास ही हथौड़ा पड़ा था, जिस पर खून लगा था. इस का मतलब हत्या उसी हथौड़े से की गई थी. चटाई पर शराब की एक बोतल, 2 गिलास, एक लोटे में पानी तथा एक कटोरी में तली हुई कलेजी रखी थी. इस से साफ लग रहा था कि यहां बैठ कर 2 लोगों ने शराब पी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि मृतक राजेश कुमार हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव हुमायूंपुर में रहता था. वह अकसर सुनीता के घर आता रहता था. पड़ोसियों ने एक बात यह भी बताई कि राजेश जब भी यहां रात को ठहरता था, सुनीता की छोटी बेटी ज्योति अपनी सहेली के घर सोने चली जाती थी. ब्रह्मप्रकाश के दिमाग में यह बात बैठ गई कि चाचा राजेश के आने पर ज्योति अपना घर छोड़ कर किसी और के यहां सोने क्यों चली जाती थी?

ब्रह्मप्रकाश ने इस दोहरे हत्याकांड की सूचना थानाप्रभारी सुभाष मलिक को भी दे दी थी. थोड़ी देर में वह भी अपने कुछ मातहतों के साथ आ गए थे. उन्होंने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया था. थानाप्रभारी की सूचना पर एसीपी (नांगलोई) आनंद राणा भी आ गए थे.

निरीक्षण के बाद जब ज्योति से पूछा गया कि अपना घर होते हुए भी वह अपनी सहेली के घर सोने क्यों गई थी तो जवाब देने के बजाय वह शरमाने लगी. इस से आनंद राणा समझ गए कि मामला कुछ ऐसा होगा, जिसे वह बताना नहीं चाहती. सारी कारवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

डीसीपी ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी आनंद राणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी सुभाष मलिक, इंसपेक्टर एस.एस. राठी, हैडकांस्टेबल नरेंद्र, कांस्टेबल विक्रांत, अनिल, वीरेंद्र, नरेश, प्रवीण, संजीव, महिला कांस्टेबल परमिंदर आदि को शामिल किया गया.

टीम में शामिल महिला कांस्टेबल परमिंदर ने ज्योति से पूछा कि चाचा के आने पर वह उस रात दूसरे के यहां सोने क्यों गई थी तो ज्योति ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘चाचा और मम्मी शराब पी कर अश्लील बातें ही नहीं, अश्लील हरकतें करने लगते थे. कल रात भी जब दोनों नशे में एकदूसरे से अश्लील हरकतें करने लगे तो मैं रात 10 बजे के करीब गुस्से में सहेली के घर चली गई थी.’’

‘‘सुबह तुम्हें घटना की खबर कैसे मिली?’’

‘‘करीब 8 बजे सहेली के पापा ने मुझे बताया.’’ कह कर ज्योति रोने लगी.

इंसपेक्टर एस.एस. राठी ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम्हारे खयाल से तुम्हारी मम्मी और चाचा की हत्या कौन कर सकता है?’’

‘‘साहब, पता नहीं इन्हें किस ने मारा है, मुझे सिर्फ इतना पता है कि पापा की मौत के बाद मम्मी बेलगाम हो गई थीं.’’

एस.एस. राठी को इस हत्याकांड की वजह समझ में आ गई. उन्होंने सुनीता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर देखी तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उन्हें संदेह हुआ. वह नंबर ज्योति के पति कप्तान सिंह का था. कप्तान के नंबर पर घटना वाली रात पौने 2 बजे सुनीता के फोन से फोन किया गया था.

एस.एस. राठी की समझ में यह नहीं आया कि जब कप्तान के संबंध सास और पत्नी से ठीक नहीं थे तो उतनी रात को सुनीता ने कप्तान को फोन क्यों किया? इस बारे में उन्होंने ज्योति से बात की तो उस ने बताया कि उस के और मम्मी के कप्तान से कोई संबंध नहीं थे, इसलिए फोन पर बात करने वाली बात संभव नहीं है. उन्होंने ज्योति से कप्तान का पता ले लिया. वह हरियाणा के भालगढ़ का रहने वाला था. पुलिस ने उस के यहां छापा मारा और उसे हिरासत में ले कर दिल्ली आ गई.

कप्तान सिंह से जब इस दोहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि राजेश और सुनीता की हत्या उस के छोटे भाई अमित ने अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर की थी. इस के बाद कप्तान सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने रोहतक के गांव बिचपड़ी से सुमित शर्मा और सोनीपत से अमित को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

रामकुमार मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के हुमायूंपुर के रहने वाले जिले सिंह का बेटा था. उस के पास खेती की 7 एकड़ जमीन थी. उस के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा अंकित था. बाद में उस ने दिल्ली के रनहौला में मकान बनवा लिया और परिवार के साथ वहीं रहने लगा.

सुनीता हरियाणा के रोहतक की रहने वाली थी. शादी से पहले ही उस के कदम बहक गए थे. जब परिवार की बदनामी होने लगी थी तो पिता ने उस का विवाह रामकुमार से कर दिया था. रामकुमार की कुछ जमीन अच्छे पैसों में बिकी थी, इसलिए वह जम कर शराब पीने लगा था. बाद में सुनीता को भी उस ने अपने रंग में रंग लिया था. लगातार ज्यादा शराब पीने से रामकुमार की बड़ी आंत में कैंसर हो गया, जिस से उस की मौत हो गई. सुनीता को पति के मरने का कोई गम नहीं हुआ, इस के बाद वह और भी स्वच्छंद हो गई. इलाके के कई युवकों से उस के नाजायज संबंध बन गए.

शराब पी कर वह रात में अपने किसी प्रेमी को बुला लेती. बड़ी बेटी का विवाह रामकुमार के सामने ही हो चुका था. छोटी बेटी ज्योति ने मां की अय्याशी पर लगाम लगाने की कोशिश की तो उस ने उस का विवाह कप्तान सिंह से कर के उसे दूर कर दिया. कप्तान सिंह सोनीपत में संगमरमर का व्यापार करता था. वह भी पक्का शराबी था. शराब पी कर वह ज्योति से मारपीट करता था. पति से तंग आ कर वह मायके आ कर रहने लगी. सुनीता के अवैध संबंध अपने सगे देवर राजेश से भी थे. शादीशुदा राजेश की नजर सुनीता की संपत्ति पर थी. इसलिए वह उसे दूसरी पत्नी के रूप में रखना चाहता था.

कप्तान का परिवार खानदानी और रईस था. कप्तान और घर वालों को सुनीता के चालचलन की जानकारी हो चुकी थी, इसलिए कप्तान के मातापिता नहीं चाहते थे कि ज्योति मायके में रहे. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि सुनीता कहीं ज्योति को भी अपनी तरह न बना दे. इसलिए उन्होंने ज्योति को लाने के लिए कप्तान और छोटे बेटे अमित को कई बार रनहौला भेजा.

मांबेटी ने दोनों भाइयों को हर बार अपमानित कर के भगा दिया था. कप्तान और उस के घर वालों को सुनीता की हर खबर मिलती रहती थी. लोग उस की अय्याशी के किस्से सुना कर उन की हंसी उड़ाते थे. इस से अमित का खून खौल उठता था. वह अकसर भाई से कहा करता था कि उस की सास की वजह से उन लोगों की बड़ी बदनामी हो रही है. देखना एक दिन वह उसे मार देगा.

एक दिन अमित सुनीता के घर गया और सुनीता को काफी समझाया. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दी कि वह सुधर जाए वरना अंजाम बुरा होगा. सुनीता ने उस की धमकी पर गौर करने के बजाय उसे धक्के मार कर घर से भगा दिया. अपमानित हो कर अमित घर तो लौटा आया, लेकिन उस ने तय कर लिया कि वह उसे जीवित नहीं छोड़ेगा. अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर उस ने सुनीता की हत्या की योजना बना डाली.

रोज की तरह 6 अगस्त, 2016 की रात करीब 12 बजे अमित सुमित शर्मा को ले कर सुनीता के घर पहुंचा. सुनीता ने गुस्से में कहा, ‘‘इतनी रात को तुम लोग यहां क्या लेने आए हो?’’

अमित उसे धक्का दे कर अंदर ले गया तो नशे में धुत सुनीता उसे गालियां देने लगी. दूसरी मंजिल की छत पर शराब पी रहे राजेश को पता चला कि अमित आया है तो वह भी अमित को ऊपर से गालियां देने लगा. अमित का पारा चढ़ गया. वह छत पर पहुंचा और राजेश के चेहरे पर घूंसे मारने लगा.

सुमित भी ऊपर पहुंचा. वहां रखा हथौड़ा उठा कर पूरी ताकत से उस ने राजेश के सिर पर मारा, जिस से उस का सिर फट गया और थोड़ी देर में उस की मौत हो गई. सुनीता डर कर नीचे अपने कमरे की ओर भागी तो अमित और सुमित भी उस के पीछे दौड़े. सुमित ने बरामदे में सुनीता को दबोच लिया. अमित ने रसोई से सब्जी काटने वाली छुरी ला कर सुनीता का गला रेत दिया. सुनीता भी कुछ देर में मर गई.

इस के बाद अमित ने कहा, ‘‘सुमित, अपना फोन देना. पुलिस को हमारी लोकेशन का पता न चले, इसलिए मैं अपना फोन नहीं लाया.’’

अमित की नजर बैड पर रखे सुनीता के मोबाइल पर गई तो उस ने फोन उठा कर बड़े भाई कप्तान का नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं ने उस कुलटा को सबक सिखा दिया है.’’

इस के बाद सुमित के साथ मकान से बाहर आया और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा, जहां से सुबह 5 बजे ट्रेन से सोनीपत चला गया. अमित निश्चिंत था कि किसी को पता नहीं चलेगा कि राजेश और सुनीता की हत्या किस ने की है मगर सुनीता की हत्या उस ने की है, लेकिन सुनीता के फोन से कप्तान को फोन कर के उस ने जो भूल की, उसी ने उसे कानून के फंदे में फंसा दिया.

8 अगस्त को पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा अमित और सुमित के खिलाफ दर्ज कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि कप्तान हत्याकांड में शामिल नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया. मामले की जांच एस.एस. राठी कर रहे हैं.

भाई के अपहरण में बहन भी शामिल

16 अक्तूबर, 2016 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे पुर्निषा उर्फ गुड्डी मम्मी रेखा पालेचा के साथ एक्टिवा स्कूटी से जोधपुर शहर की मानसरोवर कालोनी में रहने वाले अपने मामा रितेश भंडारी के घर पहुंची. बहन और भांजी को देख कर वही नहीं, घर के सभी लोग खुश हो गए. नाश्तापानी और थोड़ी बातचीत के बाद पुर्निषा अपने 5 साल के ममेरे भाई युग को खिलाने लगी.

बेटे युग के अलावा रितेश की एक 10 साल की बेटी भी थी. पुर्निषा जब भी मामा के घर आती थी, अपने ममेरे भाईबहनों के साथ खेलने में मस्त हो जाती थी. वह दोनों को खूब प्यार करती थी. करीब आधे घंटे बाद पुर्निषा युग को अपनी स्कूटी पर बिठा कर चौकलेट दिलाने के लिए ले गई.

पुर्निषा जब भी मामा के यहां आती थी, युग को खानेपीने की चीजें दिलाने या स्कूटी पर घुमाने ले जाती थी. उस के साथ युग के जाने पर किसी को कोई शक वगैरह होने की गुंजाइश भी नहीं थी.

युग और पुर्निषा को घर से गए आधे घंटे से ज्यादा का वक्त हो गया और दोनों लौट कर नहीं आए तो घर वालों का ध्यान उन के ऊपर गया. प्यार से पुर्निषा को सभी गुड्डी कहते थे. घर वालों को चिंता हुई कि गुड्डी युग को ले कर कहां चली गई कि अभी तक लौट कर नहीं आई.

घर के सभी लोग इसी बात पर विचार कर रहे थे कि तभी रितेश के फोन की घंटी बजी. रितेश ने फोन की स्क्रीन देखी तो उस पर उन की भांजी गुड्डी का नंबर था. उन्होंने फोन रिसीव कर के पूछा, ‘‘हां गुड्डी, बताओ, इस समय तुम कहां हो? बहुत देर हो गई, अभी तक घर क्यों नहीं लौटी?’’

इस के बाद दूसरी तरफ से पुर्निषा की कांपती आवाज आई, ‘‘मामा, आप मामी से बात कराइए.’’

रितेश ने मोबाइल अपनी पत्नी को देते हुए कहा, ‘‘गुड्डी का फोन है, बात करो.’

कान पर फोन लगा कर युग की मम्मी बोलीं, ‘‘हां, गुड्डी बोलो, क्या बात है? तुम कहां हो?’’

पुर्निषा कांपती आवाज में बोली, ‘‘मामी, मेरा और युग का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया है. ये लोग 50 लाख रुपए फिरौती मांग रहे हैं. ये बड़े ही खतरनाक लोग लग रहे हैं, इसलिए प्लीज मामी, पुलिस को सूचना दिए बगैर आप 50 लाख रुपए ले कर जल्द आ जाइए, वरना ये लोग हमें मार देंगे.’’

गुड्डी के साथ उन के बेटे का भी अपहरण हुआ था, इसलिए इस खबर से वह एकदम से घबरा गईं. वह जल्दी से बोलीं, ‘‘गुड्डी, तुम हो कहां, युग कहां है? यह तो बताओ कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘मामी, हमें पता नहीं, यह कौन सी जगह है, लेकिन शहर के बाहर कोई बाग है. उसी बाग में इन्होंने हमें बंधक बना रखा है. अच्छा, वे लोग हमारी तरफ ही आ रहे हैं, आप जल्दी पैसों का इंतजाम कर लो. मैं बाद में फोन करूंगी.’’ कह कर पुर्निषा ने फोन काट दिया.

युग की मम्मी ‘हैलो…हैलो’ करती रह गईं, पर दूसरी ओर से फोन कट चुका था. युग का अपहरण और 50 लाख रुपए की फिरौती की बात बगल में खड़े रितेश भंडारी ने भी सुन ली थी. वह भी घबरा गए. उन्होंने हकलाते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम इतनी परेशान क्यों हो? क्या कह रही थी गुड्डी, युग कहां है?’’

‘‘गुड्डी और युग का अपहरण हो गया है और अपहर्त्ता 50 लाख रुपए फिरौती मांग रहे हैं. पुलिस को सूचना देने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी है,’’ कहते हुए उन की पत्नी की आंखों में आंसू छलक आए.

पत्नी के मुंह से यह सब सुन कर रितेश भंडारी कांप उठे. अपहर्त्ता फिरौती में जो 50 लाख रुपए मांग रहे थे, वह उन के पास नहीं थे. यह कोई मामूली रकम भी नहीं थी, जिस का इंतजाम वह जल्द कहीं से कर लेते. अपहर्त्ताओं ने पुलिस को खबर न करने की चेतावनी दी थी. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करें.

बेटे के अपहरण से व्याकुल उन की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. कुछ ही देर में आसपड़ोस में यह खबर फैल गई. लोगों का उन के घर आना शुरू हो गया. कुछ लोगों ने रितेश को सलाह दी कि वह इस की सूचना पुलिस को जरूर दें.

सभी लोगों के कहने पर रितेश पत्नी और कुछ रिश्तेदारों के साथ करीब पौने 3 बजे चौपासनी हाउसिंग बोर्ड थाने पहुंचे और थानाप्रभारी जब्बर सिंह चारण को अपने बेटे और भांजी के अपहरण की जानकारी दे दी. उन्होंने यह भी बताया कि फिरौती का फोन पुर्निषा के ही मोबाइल से आया था.

रितेश भंडारी की बात सुन कर थानाप्रभारी को मामला कुछ संदिग्ध लगा. उन्हें उन की भांजी पुर्निषा पर ही शक हो रहा था. उन्हें कारवाई तो करनी ही थी, इसलिए उन्होंने अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी.

अधिकारियों के निर्देश पर जब्बर सिंह ने शहर के सभी प्रमुख मार्गों की नाकेबंदी करा दी. इस के बाद जोधपुर के डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह, एडिशनल डीसीपी विपिन शर्मा, एसीपी (प्रतापनगर) स्वाति शर्मा, एसीपी (केंद्रीय) पूजा यादव, एसीपी (पश्चिम) विक्रम सिंह थाना चौपासनी हाउसिंग बोर्ड पहुंच गए.

सभी ने पीडि़त परिवार से बात की. ऐसे मामले में पुलिस की यही कोशिश रहती है कि जिस का अपहरण हुआ है, उसे सुरक्षित तरीके से जल्द से जल्द बरामद किया जाए. इसलिए डीसीपी ने अपहर्त्ताओं तक जल्द पहुंचने के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसीपी (प्रतापनगर) स्वाति शर्मा, एसीपी (पश्चिम) विक्रम सिंह, एसीपी (केंद्रीय) पूजा यादव, थानाप्रभारी जब्बर सिंह चारण, थानाप्रभारी (शास्त्रीनगर) अमित सिहाग, तकनीकी विशेषज्ञ भागीरथ सिंघड़, स्वरूपराम, हरीराम, नरेंद्र सिंह, शकील खां, जबर सिंह व बजरंगलाल को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी विपिन शर्मा को सौंपा गया.

पुर्निषा ने जब रितेश भंडारी को फोन किया था, बातचीत में चिडि़यों के चहचहाने की आवाजें आ रही थीं. रितेश ने यह बात पुलिस को भी बताई. इस पर पुलिस को लगा कि फोन किसी पार्क से किया गया था. 3-3 पुलिसकर्मियों को ग्रुप में बांट कर अपहर्त्ताओं की तलाश शुरू कर दी गई.

टीमों ने मंडोर उद्यान, नेहरू पार्क, पब्लिक पार्क व अन्य सुनसान जगहों पर खोजबीन की. रितेश भंडारी और उन की पत्नी भी पुलिस के साथ थीं. पुलिस ने रितेश के मोबाइल से पुर्निषा के मोबाइल पर फोन करवाया. फोन किसी युवक ने उठाया.

फोन उठाने वाले युवक ने कहा कि रुपए ले कर जल्द आ जाओ, वरना हम इन दोनों को मार देंगे. रितेश ने युग से बात कराने को कहा तो उस ने युग से उन की बात करा दी. युग ने कहा कि वह दीदी के साथ है और टौफी बिस्कुट खा रहा है. बेटे से बात कर के रितेश को तसल्ली हुई कि वह सकुशल है.

एक पुलिस टीम जब नेहरू उद्यान पहुंची तो वहां एक कोने में बैठी पुर्निषा और युग को रितेश ने पहचानते हुए कहा, ‘‘वो रहे युग और पुर्निषा.’’

पुलिस ने नजर दौड़ाई तो पुर्निषा और युग के पास झाड़ी की ओट में 2 युवक बैठे दिखाई दिए. पुलिस ने अनुमान लगाया कि वही अपहर्त्ता होंगे. भनक लगने पर अपहर्त्ता युग और पुर्निषा को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए पुलिस ने चालाकी दिखाते हुए फुरती से उन दोनों युवकों को दबोच कर पुर्निषा और युग को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया.

सूचना पा कर अन्य पुलिस टीमें भी नेहरू उद्यान पहुंच गई थीं. पुलिस गिरफ्त में आते ही दोनों युवक कांपने लगे. यही हाल पुर्निषा का भी था. उन की निशानदेही पर पुलिस ने स्विफ्ट कार व पुर्निषा की एक्टिवा स्कूटी बरामद कर ली.

थाने ला कर जब दोनों युवकों से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम मयंक मेहता व मयंक सिंदल बताए. उन्होंने बताया कि युग के अपहरण की मास्टरमाइंड पुर्निषा थी.

यह सुन कर रितेश और उन की पत्नी हैरान रह गई कि यह कैसे हो सकता है, भला वह अपने भाई का अपहरण क्यों करेगी? पर पुलिस पूछताछ में जब पुर्निषा ने मयंक की बात की पुष्टि कर दी तो रितेश और उन की पत्नी की आंखें खुली की खुली रह गईं. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि जिस भांजी को वह इतना ज्यादा प्यार करते थे, वही उन का अहित कर सकती है.

अपहर्त्ताओं के गिरफ्तार होने की जानकारी डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह को मिली तो वह भी थाने पहुंच गए. उन के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो युग के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जोधपुर शहर की मानसरोवर कालोनी में रितेश भंडारी पत्नी शिवानी, एक बेटी व बेटा युग के साथ रहते थे. उन का सरदारपुरा, जोधपुर में फाइनैंस का कारोबार था, जिस से उन्हें बहुत अच्छी आमदनी होती थी. कभीकभी अपनी कमाई का लाखों रुपए वह अपनी सगी बहन रेखा पालेचा के पास रखते थे. वह सरदारपुरा में ही रहती थी. पुर्निषा रेखा की बेटी थी. वह मांबाप की लाडली थी. उस पर मांबाप आंख मूंद कर भरोसा करते थे. पुर्निषा पढ़ाई में होशियार थी. वह एमकौम कर रही थी. पढ़ाई के साथ वह एक निजी स्कूल में पढ़ाती भी थी.

पुर्निषा की एक साल पहले मयंक मेहता से दोस्ती हुई. थोड़े दिनों बाद यह दोस्ती प्यार में बदल गई. मयंक जोधपुर की चौपासनी हाउसिंग बोर्ड में रहता था. उस का एक दोस्त मयंक सिंदल था, वह भी वहीं रहता था. ये दोनों जोधपुर के जीत कालेज में कंप्यूटर साइंस के छात्र थे.

पुर्निषा व मयंक मेहता का प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों घर वालों से छिपछिप कर मिलते थे. मोबाइल पर भी घंटों बातें किया करते थे. दोनों के सपने बहुत ऊंचे थे, मगर आर्थिक तंगी के कारण इन के शौक पूरे नहीं हो रहे थे. टीवी चैनल के क्राइम शो देख कर पुर्निषा के दिमाग में हलचल मच गई. उस ने एक दिन बातोंबातों में अपने प्रेमी मयंक मेहता से कहा कि अगर वह उस के मामा रितेश के बेटे युग का अपहरण कर ले तो कम से कम 50 लाख रुपए की फिरौती मिल सकती है.

पुर्निषा ने बताया था कि उस के मामा के पास हर समय लाखों रुपए रहते हैं. बस फिर क्या था, दोनों ने रुपयों का लालच दे कर मयंक सिंदल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. पुर्निषा ने कहा था कि फिरौती के 50 लाख रुपए मिलने पर उस में से उसे 15 लाख रुपए दिए जाएंगे.

मयंक सिंदल झांसे में आ गया और उन की योजना में शामिल हो गया. पूरी योजना बनाने के बाद रविवार 16 अक्तूबर की दोपहर को पुर्निषा अपनी मम्मी के साथ मामा रितेश के घर जा पहुंची. युग को चौकलेट दिलाने के बहाने वह स्कूटी से घर से बाहर ले आई और अपने साथी मयंक मेहता और मयंक सिंदल को अपनी स्कूटी देते हुए कहा कि इसे कहीं सुनसान जगह खड़ी कर युग को ले कर नेहरू उद्यान आ जाओ.

पुर्निषा टौफी, बिस्कुट, कुरकुरे ले कर युग के साथ मयंक मेहता की स्विफ्ट कार में बैठ गई तो मयंक मेहता कार ले कर सीधे नेहरू उद्यान पहुंच गया. मयंक सिंदल इन से पहले वहां पहुंचा हुआ था. पार्क से ही पुर्निषा ने मामा रितेश को फोन कर के अपने और युग के अपहरण होने की बात कह कर 50 लाख रुपए फिरौती दे कर अपहर्त्ताओं से जल्द से जल्द युग और उसे छुड़ाने की बात कही. इस के बाद रितेश भंडारी अपनी पत्नी के साथ थाने पहुंचे और पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने मात्र ढाई घंटे में अपहर्त्ताओं को दबोच कर युग को सकुशल बरामद कर लिया था. पुर्निषा, मयंक मेहता व मयंक सिंदल के वे मोबाइल फोन भी पुलिस ने बरामद कर लिए थे, जिन से रितेश को फिरौती के लिए फोन किया गया था. आर्थिक तंगी के चलते पुर्निषा व मयंक मेहता ने अपहरण कर के फिरौती मांगने जैसा अमानवीय कृत्य किया था, जबकि तीनों ही गरीब परिवारों से नहीं थे, इन की महत्त्वाकांक्षा उन्हें ले डूबी थी.

पुलिस ने पूछताछ कर के 17 अक्तूबर, 2016 को पुर्निषा, मयंक मेहता और मयंक सिंदल को जोधपुर के कोर्ट नंबर-8 में न्यायाधीश वैदेही सिंह के समक्ष पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को केंद्रीय कारागार जोधपुर भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इन की जमानतें नहीं हुई थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

औन डिमांड गाड़ियां चुराने वाला हाईटेक गैंग

पहली अप्रैल, 2017 की बात है. दिल्ली पुलिस के दक्षिणीपूर्वी जिले के इंचार्ज राजेंद्र कुमार अपने औफिस में सबइंसपेक्टर प्रवेश कसाना और अजय कटेवा से एक केस के बारे में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक पुराना मुखबिर उन के पास आ पहुंचा. वह उन का विश्वसनीय मुखबिर था. वह जब भी आता था, कोई न कोई नई जानकारी लाता था. इसलिए उसे देखते ही इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘कहिए, क्या नई खबर है?’’

‘‘सर, खबर इतनी दमदार है कि आप भी खुश हो जाएंगे.’’ उस ने कहा.

इतना सुनते ही इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार और दोनों सबइंसपेक्टर उस के चेहरे की तरफ देखने लगे. इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘अब पहेलियां मत बुझाओ, जो भी हो सीधे बता दो.’’

‘‘ठीक है सर, बताता हूं.’’ कह कर उस ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, सूचना ऐसे कार चोर गैंग की है, जो केवल औन डिमांड कारों को चुराता है. इस के अलावा इस गैंग की एक खास बात यह है कि वह कंप्यूटर, लेटेस्ट सौफ्टवेयर व अन्य हाईटेक उपकरणों से मिनटों में ही कार को ले उड़ता है. गैंग के सदस्य आज शाम 4-5 बजे के बीच सफेद रंग की वेरना कार से न्यू फ्रैंड्स कालोनी में आएंगे. उन का इरादा एस्कार्ट्स अस्पताल के आसपास से किसी कार पर हाथ साफ करना है.’’

उस ने उन की वेरना कार का नंबर भी बता दिया. सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने एसीपी औपरेशन के.पी. सिंह और डीसीपी रोमिल बानिया को फोन से यह खबर दे दी. पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में लग्जरी कारों की चोरी की वारदातें बढ़ती जा रही थीं. दक्षिणपूर्वी दिल्ली में ही कई लग्जरी कारें चोरी हो चुकी थीं, लेकिन उन का खुलासा नहीं हो पा रहा था.

29 मार्च, 2017 को ही न्यू फ्रैंड्स कालोनी से योगेश कुमार आनंद की फार्च्युनर कार नंबर डीएल3सीबी डी-5094 चोरी हो गई थी, जिस की उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा रखी थी. इस के अलावा जिले में इस से पहले भी कई गाडि़यां चोरी हो चुकी थीं.

पुलिस को चोरों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. डीसीपी रोमिल बानिया ने एसीपी (औपरेशन) के.पी. सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार, एसआई प्रवेश कसाना, अजय कटेवा, एएसआई हरेंद्र सिंह, फूल सिंह, दलीप सिंह, हैडकांस्टेबल विनोद कुमार, नरेश कुमार, अनिल, कांस्टेबल विशाल, विनीत, राहुल, दिनेश आदि को शामिल किया गया. डीसीपी ने टीम को निर्देश दिया कि वह मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच कर जरूरी काररवाई करे.

निर्धारित समय से पहले ही पुलिस टीम न्यू फ्रैंड्स कालोनी पहुंच गई. टीम ने मीराबाई पौलिटेक्निक के पास बैरिकेड्स लगा कर रिंगरोड की तरफ से आने वाली कारों की जांच शुरू कर दी. पुलिस की नजर तो वेरना कार पर थी. उधर से जो भी वेरना कार आती हुई दिखती, पुलिस उस कार के कागजात बड़ी ही गंभीरता से चैक करती. यह काम करतेकरते पुलिस को करीब एक घंटा बीत गया, पर मुखबिर द्वारा बताए गए नंबर की वेरना कार नहीं आई.

ऐसे में पुलिस को यह आशंका होने लगी कि कहीं उन कार चोरों को पुलिस चैकिंग की भनक तो नहीं लग गई. जिस के बाद उन्होंने अपनी योजना बदल दी हो. इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने इस संबंध में एसीपी से बात की तो उन्होंने कहा कि वह शाम 6 बजे तक अपनी काररवाई जारी रखें. लिहाजा वाहनों की चैकिंग की काररवाई जारी रही.

शाम करीब सवा 5 बजे सफेद रंग की वेरना कार नंबर डीएल8सी एए-9035 आती दिखी. यह वही नंबर था, जो मुखबिर ने बताया था. जैसे ही वह कार नजदीक आई, पुलिस ने उसे रोक लिया. उस कार में पिछली सीट पर 2 युवक बैठे थे, जबकि आगे की सीट पर ड्राइवर के बराबर में एक युवक था. पुलिस ने उन से कार के पेपर दिखाने को कहा तो वे इधरउधर की बातें करने लगे.

पुलिस ने कार का चैसिस व इंजन नंबर नोट कर के जिपनेट पर चैक किया तो वह कार चोरी की निकली. पता चला कि वह 12 मार्च, 2017 को दिल्ली के नौर्थ रोहिणी से चुराई गई थी, जिस की चोरी की रिपोर्ट दर्ज थी. पुलिस ने कार को अपने कब्जे में ले कर उन चारों युवकों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उन्होंने अपने नाम क्रमश: शोएब खान (32 साल) निवासी अनूपशहर रोड अलीगढ़, आमिर उर्फ अमन (27 साल) निवासी गांव किलोली, बुलंदशहर, सफर उर्फ सफरुद्दीन (28 साल) निवासी नंदनगरी दिल्ली और सगीर (32 साल) गांव इसलामपुर, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश बताए.

स्पैशल स्टाफ औफिस ले जा कर जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने इस वेरना कार के अलावा हाल ही में कई कारें और चुराई थीं, जो दिल्ली की अलगअलग जगहों की पार्किंग में खड़ी हैं. पुलिस टीम सब से पहले उन्हें ओखला के बटला हाउस ले गई. वहां शोएब की निशानदेही पर पब्लिक पार्किंग से सफेद रंग की होंडा सिटी कार, एक आई20 कार बरामद की. उस ने बताया कि होंडा सिटी कार 12 जून, 2016 को दिल्ली के रानीबाग से और आई20 कार इसी साल दिल्ली के गाजीपुर से चुराई गई थी.

एसआई प्रवेश कसाना अभियुक्त सगीर को ओखला के अबुल फजल एनक्लेव ले गए. उस की निशानदेही पर वहां की पार्किंग से सफेद रंग की 3 स्विफ्ट डिजायर कारें और एक हलके नीले रंग की सैंट्रो कार बरामद की गई. उस ने बताया कि स्विफ्ट डिजायर कारें उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर दिल्ली के पश्चिम विहार, जहांगीरपुरी और विजय विहार, रोहिणी से तथा सैंट्रो कार ग्रेटर कैलाश से चुराई थी.

पुलिस ने सभी कारें अपने कब्जे में ले लीं. पुलिस को लगा कि ये अभियुक्त अभी भी कुछ छिपा रहे हैं. इसलिए इन से फिर सख्ती की गई. इस का नतीजा यह निकला कि उन की निशानदेही पर पुलिस ने दिल्ली की अलग अलग पार्किंग से 2 हुंडई क्रेटा, एक स्विफ्ट डिजायर, एक फार्च्युनर और एक मारुति ईको कार और बरामद कर ली. फार्च्युनर कार उन्होंने 29 मार्च, 2017 को न्यू फ्रैंड्स कालोनी क्षेत्र से, मारुति ईको अमर कालोनी से और हुंडई क्रेटा दिल्ली के रूपनगर से और नोएडा से चुराई थीं. पुलिस ने ये कारें भी कब्जे में ले लीं.

इन से पूछताछ में जो बात पता चली, वह यह थी कि यह कोई आम कार चोर नहीं थे, बल्कि हाईप्रोफाइल थे. कार चुराने में सहयोग करने वाले महंगे उपकरणों से लैस यह गैंग खाली समय में यूट्यूब पर कार चुराने वाले वीडियो देखता था. ऐसा भी नहीं था कि जिस कार को चुराने का मौका मिलता था, उसे ले जाते थे, बल्कि हकीकत यह थी कि जिन लोगों को यह चुराई हुई कारें बेचते थे, वहां से इन के पास डिमांड आती थी. जिस कंपनी की कार की इन के पास डिमांड आती थी, उसी कार को यह चुराने की कोशिश करते थे.

आसपास की रैकी करने के बाद ये अपने लैपटौप में मौजूद सौफ्टवेयर से सब से पहले यह पता लगाते थे कि उस कार में कौनकौन से सेफ्टी डिवाइस लगे हैं. अपने पास मौजूद उपकरण से वे यह भी पता लगा लेते थे कि उस कार में जीपीएस सिस्टम है या नहीं. जिस कार में जीपीएस लगा होता था, वे उसे चुराने से बचते थे.

कुछ कारों में सेंसर अलार्म लगा होता है, जो गाड़ी के टच करने पर बज जाता है. अपने पास मौजूद कंप्यूटर सौफ्टवेयर से वे इस का पता लगा लेते थे. फिर किसी तरह उस का बोनट खोल कर अलार्म सिस्टम के तार काट देते थे.

टारगेट की गई कार का लौक वे मास्टर की से खोलने की कोशिश करते थे. यदि लौक नहीं खुलता तो स्कैनर की सहायता लेते थे. इस तरह चंद मिनटों में वे कार ले कर उड़नछू हो जाते थे. चुराई हुई कारों को वे कुछ दिनों तक कहीं फ्री पार्किंग में खड़ी करते, फिर आगे सप्लाई कर देते थे.

गैंग के सदस्य आमिर और सफर अच्छे मोटर मैकेनिक थे. इस के बावजूद भी वे कार चोर कैसे बन गए और किस तरह वे गैंग बना कर चोरी की वारदातों को अंजाम देने लगे, इस की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

आमिर उर्फ अमन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गांव किलोली के रहने वाले नसरुद्दीन का बेटा था. 9 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर का था. पिता की कोशिश के बाद भी वह 7वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका. तब पिता ने उसे एक मोटरसाइकिल मैकेनिक के पास लगा दिया. वहां करीब 5 साल काम सीखने के बाद आमिर एक अच्छा मैकेनिक बन गया. उस ने कुछ दिनों तक नोएडा की एक कंपनी में नौकरी की. पर नौकरी में उस का मन नहीं लगा.

तब उस ने नोएडा में एक वर्कशौप खोल ली. उस का काम चलने लगा. इसी दौरान आमिर की मुलाकात सफर उर्फ सफरुद्दीन से हुई, जो बदायूं के इसलामपुर गांव का रहने वाला था. इस के भी 7 भाई थे. 12वीं पास करने के बाद इस ने अपने पिता के साथ चूडि़यां बेचनी शुरू कर दीं. बाद में इस ने मोटरसाइकिल मैकेनिक का काम सीख लिया.

सफर की मुलाकात राजू नाम के एक युवक से हुई, जो वाहन चोर था. राजू ने लालच दिया तो वह उस के साथ काम करने को तैयार हो गया. राजू ने उसे सगीर अहमद से मिलवाया. सगीर उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं का रहने वाला था. सगीर ने उसे अपने अन्य दोस्तों से मिलवाया. तभी उन सब की मुलाकात आमिर से हुई.

इन सब ने मिल कर दिल्ली से एक कार चुराई. कार चुरा कर ये दिल्ली से गाजियाबाद लौट रहे थे, तभी गाजियाबाद पुलिस ने उन से गाड़ी के कागज मांगे. इन के पास कागज थे नहीं, सो उन्होंने सच्चाई बता दी. तब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर डासना जेल भेज दिया. उस समय उनके साथ सुलेमान, सगीर भी थे.

डासना जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद सफर मोटर मैकेनिक का काम करने लगा. उसी दौरान सफर की मुलाकात नांगलोई के चरनप्रीत से हुई. चरनप्रीत एक कार चोर था. सफर ने चरनप्रीत के साथ कारों की चोरी शुरू कर दी. सन 2015 में वह दिल्ली क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया. उस के गिरफ्तार होने पर चोरी की 15 वारदातों का खुलासा हुआ.

जेल में ही उस की मुलाकात सगीर उर्फ सत्ता से हुई, जो उत्तर प्रदेश के जिला संभल का रहने वाला था. सगीर चोरी की कारें खरीद कर उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों में सप्लाई करता था. एक मामले में वह दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद सगीर, सफर उर्फ सफरुद्दीन, आमिर ने अपना अलग गैंग बनाया. गैंग में उन्होंने अलीगढ़ के शोएब को भी मिला लिया. फिर चारों ने दिल्ली और एनसीआर से कारों की चोरी शुरू कर दी. चुराई गई कारें वह संभल, दीपा सराय के रहने वाले सगीर उर्फ सत्ता को बेच देते थे. सत्ता चोरी की कारें सस्ते दाम पर खरीद कर उन्हें असम, गुवाहाटी, दार्जिलिंग आदि जगहों पर भेज देता था. कुछ कारें वह मेरठ के असरार, परवेज और गुलफाम को भी बेचता था, जो कारों को काट कर कबाड़ में बेच देते थे.

शोएब, सफर, आमिर और सगीर की जब मोटी कमाई होने लगी तो उन्होंने भी बनठन कर रहना शुरू कर दिया. सत्ता के पास जैसे ही लग्जरी कारों की डिमांड आती, वह इन लोगों से लग्जरी कारों की मांग करता.

लग्जरी कारों की सुरक्षा लोग तरहतरह के लौकिंग सिस्टम लगवा लेते हैं. वे लौकिंग सिस्टम कैसे खोले जाएं, इस के लिए इन लोगों ने यूट्यूब पर वीडियो देखनी शुरू कर दी.

बदलते समय के साथ इन्होंने खुद को भी मोडिफाइ कर लिया. लैपटौप ले कर इन्होंने उस में ऐसे सौफ्टवेयर लोड कराए, जिन की सहायता से कार के अंदर से लौकिंग सिस्टम की जानकारी मिल सके. लौकिंग प्रणाली जानने के लिए इन्होंने एक स्कैनर भी खरीद रखा था. महंगे उपकरण खरीदने के बाद इन्हें कार चुराना आसान हो गया. उन की सहायता से ये मिनटों में ही कार को उड़ा लेते थे.

पुलिस ने बताया कि औन डिमांड कार चुराने वाला यह गिरोह पिछले 2 सालों से राजधानी और आसपास से करीब 500 कारें चुरा चुका है.

गिरोह के सदस्य शोएब का काम टारगेट निश्चित करना था. जो कार चुरानी होती थी, शोएब अपने मोबाइल से उस के फोटो खींच कर अपने साथियों को वाट्सऐप करता था. रैकी करने के बाद उस कार को चुरा कर दिल्ली में ही कहीं पार्किंग में खड़ी कर देते थे. फिर कुछ दिनों बाद उसे संभल में सत्ता के पास पहुंचा देते. फिर सत्ता उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों में या मेरठ में गुलफाम, परवेज, असरार के पास पहुंचा देता था. 29 मार्च, 2017 को दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कालोनी इलाके से योगेश कुमार आनंद की जो फार्च्युनर कार चोरी हुई थी, वह भी इसी गैंग ने चुराई थी.

पुलिस ने इन चारों कार चोरों की निशानदेही पर संभल से सत्ता और मेरठ से परवेज, असरार व गुलफाम के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन वे सभी फरार मिले. इन रिसीवरों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को बड़ी कामयाबी मिल सकती थी.

बहरहाल, पुलिस ने सगीर, सफर, आमिर और शोएब को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. इन के कब्जे से पुलिस ने चोरी में प्रयोग होने वाले कई उपकरण भी बरामद किए हैं. मामले की तफ्तीश सबइंसपेक्टर प्रवेश कसाना कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

होमियोपैथी : मीठी गोलियों के नाम पर गोरखधंधा

सैंट्रल कौंसिल औफ होमियोपैथी (सीसीएच) के चेयरमैन रामजी सिंह होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने की डीलिंग तो खुद करता था, पर वह ‘नजराना’ अपने कुछ खास चेलों के जरीए ही लेता था.

रामजी सिंह की गिनती पटना और दिल्ली के अच्छे होमियोपैथी डाक्टरों में होती है. सीसीएच का अध्यक्ष बनने से पहले वह बिहार हौमियोपैथ चिकित्सा बोर्ड का सदस्य भी रह चुका था.

सीसीएच होमियोपैथी चिकित्सा शिक्षा की नियामक संस्था है और पिछले 5 सालों से रामजी सिंह उस का चेयरमैन बना हुआ था.

पटना के कदमकुआं महल्ले में ही रामजी सिंह का प्राइवेट क्लिनिक चलता है और उस ने रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज भी खोल रखा है.

पिछले दिनों राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज मैनेजमैंट से 20 लाख रुपए घूस लेने के चक्कर में वह सीबीआई के चंगुल में फंस गया.

सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, चेयरमैन के बदले उस के किसी खास आदमी ने रकम वसूल की. उस के बाद हवाला के जरीए 20 लाख रुपए रामजी सिंह के पास पहुंचा दिए गए थे.

दरअसल, राजकोट की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने होमियोपैथी कालेज की मान्यता के लिए सीसीएच में आवेदन दिया था. कालेज के पक्ष में निरीक्षण रिपोर्ट देने के लिए कालेज का वाइस प्रैसिडैंट लगातार रामजी सिंह और उस के एजेंट के संपर्क में था.

कालेज की जांच के लिए रामजी सिंह ने 3 लोगों की कमेटी बनाई थी. जबलपुर होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर राहुल श्रीवास्तव, कोलकाता के नैशनल इंस्टीट्यूट औफ होमियोपैथी के प्रोफैसर अशोक कोनार और रोहतक होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर अश्विनी आर्य को इस कमेटी का मैंबर बनाया गया था.

कमेटी ने कालेज का मुआयना कर लिया था और दिल्ली में ही ‘नजराने’ की रकम के भुगतान की बात तय हो चुकी थी. उस के बाद ही सीबीआई ने रामजी सिंह के दिल्ली के दफ्तर में ही जाल बिछा कर उसे और उस के एजेंट को दबोच लिया था.

कभी किराए के एक छोटे से कमरे में क्लिनिक की शुरुआत करने वाले रामजी सिंह की हैसियत को पिछले 20 सालों के दौरान मानो पंख लग गए थे.

साल 2001 में उस ने पटना के न्यू बाईपास से सटे रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज खोला था. कालेज को भी उस ने गैरकानूनी कमाई का जरीया बना रखा था.

छात्रों का शोषण करने में रामजी सिंह कोई कोरकसर नहीं छोड़ता था. छात्रों के क्लास से गैरहाजिर रहने पर जुर्माने के तौर पर वह सालाना लाखों रुपए वसूल लेता था.

एक दिन गैरहाजिर रहने पर छात्र से 2 सौ रुपए फाइन लिया जाता था. दूसरे राज्यों के छात्र सालभर में 2 सौ से ज्यादा दिन गैरहाजिर रहते थे. हर साल मई महीने में इम्तिहान का फार्म भरने के समय गैरहाजिर रहने का फाइन वसूला जाता था.

इस से यह साफ हो जाता है कि कालेज को छात्रों की पढ़ाईलिखाई या कैरियर से कोई मतलब नहीं रहता था. सारी कोशिश केवल जेब गरम करने की ही रहती थी.

कालेज के कई छात्रों ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि एडमिशन के समय डोनेशन के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती थी. दूसरे राज्यों के काफी छात्र उस के झांसे में आसानी से फंस जाते थे.

रामजी सिंह सीसीएच का अध्यक्ष भी था, इसलिए छात्र और उस के परिवार वाले उस की बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. छात्रों को यह लालच भी दिया जाता था कि कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी भी लगवा दी जाएगी.

गौरतलब है कि जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज में बिहार से ज्यादा जम्मूकश्मीर और उत्तर प्रदेश के छात्र हैं.

सीबीआई ने होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के एवज में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ किया है. इसी के तहत रामजी सिंह और बिचौलिए हरिशंकर झा को दबोचा गया है.

रामजी सिंह ने घूस लेने के लिए हरिशंकर झा को दलाल बना रखा था. मान्यता के लिए आवेदन करने वाले कालेजों से हरिशंकर झा ही डीलिंग करता था और रिश्वत की रकम तय करता था.

घूस की रकम तय हो जाने के बाद रामजी सिंह अपने खास डाक्टरों की टीम को कालेज की जांच करने के लिए भेजता था. रामजी सिंह की मरजी के मुताबिक ही टीम रिपोर्ट बनाती थी और उस के बाद कालेज को आसानी से मान्यता दे दी जाती थी.

गुजरात के राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज को मान्यता देने के लिए रामजी सिंह ने अपने खास लोगों की टीम बनाई थी और टीम ने उस के मनमुताबिक रिपोर्ट दे दी थी.

उस के बाद कालेज प्रबंधन से 20 लाख रुपए की रिश्वत की रकम ली जा रही थी. उसी समय सीबीआई ने रामजी सिंह के दलाल हरिशंकर झा को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था.

हरिशंकर झा के बयान के आधार पर रामजी सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद सीबीआई ने दिल्ली, गुड़गांव, रोहतक, राजकोट, गांधीनगर, पटना, जबलपुर और कोलकाता में रामजी सिंह के ठिकानों पर छापे मारे और कई दस्तावेज बरामद किए.

पटना के कंकड़बाग इलाके में द्वारका कालेज के सामने अशोक नगर के रोड नंबर-4 पर रामजी सिंह का आलीशान बंगला है.

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले रामजी सिंह ने अपने सीसीएच के अध्यक्ष के तौर पर पिछले 5 सालों में देशभर में सैकड़ों होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के बदले करोड़ों रुपए की दौलत बटोरी है.

पटना के रामकृष्णा नगर में उस ने 5 मकान और तकरीबन 6 एकड़ जमीन खरीद रखी है. बलिया में भी उस ने करोड़ों रुपए की जमीन खरीद रखी है.

बिहार के मुजफ्फरपुर के रायबहादुर टुनकी साह होमियोपैथी कालेज से डिगरी लेने के बाद रामजी सिंह ने साल 1990 में होमियोपथी इलाज की प्रैक्टिस शुरू की थी. जब प्रैक्टिस नहीं चली, तो उस ने पटना के पटेल नगर इलाके में रहने वाले मशहूर होमियोपैथी डाक्टर बी. भट्टाचार्य के असिस्टैंट के तौर पर काम करना शुरू किया.

रामजी सिंह के एक भाई की दिल्ली में होमियोपैथी दवाओं की कंपनी है. उस कंपनी की बनी दवाएं बिहार में खूब बिकती हैं.

केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने सीसीएच द्वारा मान्यता दिए गए होमियोपैथी कालेजों में नामांकन पर रोक लगा रखी है. मंत्रालय का मानना है कि सीसीएच ने कई ऐसे होमियोपैथी कालेजों को मान्यता दे दी है, जो मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं.

दिल्ली के महीपालपुर इलाके में हरिशंकर झा के 2 होटल हैं. एक का नाम ‘मोनार्क’ और दूसरे होटल का नाम ‘हनुमंत पैलेस’ है. रामजी सिंह जब दिल्ली जाता था, तो वह होटल ‘हनुमंत पैलेस’ में ही डेरा जमाता था.

सीबीआई इस बात की भी जांच कर रही है कि हरिशंकर झा के होटलों में भी तो होमियोपैथी घोटाले के रुपए नहीं लगे हुए हैं?

इस से पता चलता है कि होमियोपैथी की मीठीमीठी गोलियों की आड़ में रामजी सिंह होमियोपैथी को कड़वा और काला बनाने की जुगत में लगा हुआ था.

सस्ते मोबाइल फोन की खातिर ली महंगी जान

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के गौर थाना इलाके का केसरई गांव. वहां के एक बाशिंदे रमेश यादव ने 30 अक्तूबर, 2016 की सुबह के तकरीबन 11 बजे थानाध्यक्ष अरविंद प्रताप सिंह को यह सूचना दी कि उस का भाई राजेश कुमार यादव हंसवर गांव में सफाई मुलाजिम था. किसी ने आज सुबह ड्यूटी जाते समय हर्दिया के प्राइमरी स्कूल के पास खड़ंजे पर उस की हत्या कर लाश वहीं फेक दी है.

हत्या की सूचना पा कर इंस्पैक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने इस वारदात की सूचना अपने से बड़े अफसरों को दी और खुद अपने दलबल के साथ मौका ए वारदात की ओर चल दिए. वहां एक नौजवान की लाश पड़ी हुई थी और उस के सिर से काफी खून बह कर जमीन पर पड़ा हुआ था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि मारे गए उस नौजवान के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर उस की हत्या की है.

पुलिस ने लोगों और परिवार वालों से किसी पर हत्या का शक होने की बात पूछी, लेकिन सभी ने इनकार कर दिया. पुलिस को वहां ऐसा कोई सुबूत भी नहीं मिला, जिस से हत्या करने वाले या हत्या की वजह का पता किया जा सके.

इसी बीच परिवार के लोगों ने पुलिस को बताया कि राजेश के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो लाश के पास बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने परिवार वालों की सूचना के आधार पर राजेश कुमार की हत्या का मुकदमा दर्ज कर व लाश का पंचनामा कर 1 नवंबर, 2016 को ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस को राजेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दूसरे दिन ही मिल गई थी, जिस में मौत की वजह सिर पर चोट लगना ही बताया गया था.

अभी तक पुलिस को राजेश की हत्या करने का कोई भी मकसद नजर नहीं आ रहा था, फिर भी पुलिस गायब मोबाइल फोन को आधार बना कर छानबीन करती रही.

इस दौरान गायब मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया था. पुलिसिया छानबीन में शक की सूई एक शख्स पर जा कर टिक गई, क्योंकि किसी ने पुलिस को यह सूचना दी थी कि राजेश का मोबाइल फोन कप्तानगंज थाना क्षेत्र के हर्दिया गांव के रवीश कुमार मिश्र के पास है.

पुलिस सतर्क हो गई. रवीश कुमार मिश्र को पकड़ने के लिए उस के गांव में दबिश दी गई और उसे मोबाइल समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस की पूछताछ में रवीश पहले तो इधरउधर की बातों में उलझाता रहा, पर बाद में जब कड़ाई की गई, तो उस ने राजेश कुमार की हत्या करने की जो मामूली वजह बताई, वह उस की सनक का ही नतीजा निकला.

कहानी पिल्ले की

रवीश कुमार मिश्र ने राजेश कुमार की हत्या की जो वजह बताई, वह उस की सनक के चलते हुई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस का कप्तानगंज थाना क्षेत्र में दुधौरा तिलकपुर में ननिहाल है और वह अपने मामा के पास एक पालूत पिल्ले को एक हफ्ते के लिए छोड़ कर आया था.

एक हफ्ते बाद जब वह मामा के पास पिल्ला लेने पहुंचा, तो पिल्ले को न देख उस ने अपने मामा से पूछा.

मामा ने बताया कि उस के पिल्ले ने बहुत परेशान कर रखा था, इसलिए गांव में ही एक आदमी को उस की देखभाल के लिए छोड़ दिया.

इस बात से रवीश आगबबूला हो गया और वह मामा के पास न रुक कर सीधे उस आदमी के पास पहुंच गया और बिना गलती के ही उस के साथ हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई के दौरान उस का मोबाइल फोन कहीं गुम हो गया.

जब रवीश पिल्ले को ले कर अपने गांव हर्दिया आया, तो उस की बहन ने उस से अपना मोबाइल फोन मांगा.

रवीश ने मोबाइल खोजा, पर नहीं मिला. उस ने अपनी बहन से बहाना किया कि उस का मोबाइल किसी को फोन करने के लिए दिया है.  इस के बाद उस ने मोबाइल बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिला.

रवीश ने घर आ कर बताया कि मोबाइल गायब हो गया है, तो उस की बहन रोने लगी. घर वाले रवीश को ताना मारने लगे.

रवीश परेशान हो कर घर से बाहर निकल गया. इसी उधेड़बुन में वह गांव से बाहर जाने वाले खड़ंजे की सड़क पर जा ही रहा था कि उसे एक आदमी मोबाइल पर बात करते हुए आता दिखाई दिया. उस को लगा कि उस आदमी का मोबाइल छीन कर वह अपनी बहन को दे सकता है. इस के बाद उस ने राजेश कुमार के पास जा कर उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की.

अचानक हुई इस छीनाझपटी से राजेश कुछ नहीं समझ पाया और दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी रवीश कुमार के हाथ में एक डंडा आ गया और उस ने डंडे से राजेश के सिर पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

राजेश वहीं गिर कर तड़पने लगा और जल्द ही उस की मौत हो गई. रवीश ने मोबाइल उठाया और जिस डंडे से राजेश की हत्या की थी, उसे पास के ही एक गन्ने के खेत के बीच में जा कर गाड़ दिया.

रवीश जब घर आया और उस ने वह मोबाइल फोन अपनी बहन को देने की कोशिश की, तो उस की बहन ने लेने से इनकार कर दिया. लिहाजा, उस ने वह मोबाइल अपने पास ही रख लिया.

स्टेशन उड़ाने की धमकी

रवीश कुमार की सनक का एक मामला 30 जुलाई, 2015 को भी सामने आया था, जब उस ने अपने घर में पड़े एक झोले पर पंजाब के भटिंडा के एक दुकानदार का मोबाइल नंबर देखा, तो उस ने उस दुकानदार को फोन कर भटिंडा रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली.

यह धमकी सुन कर उस दुकानदार ने पंजाब पुलिस को सूचना दी, तो पंजाब पुलिस सक्रिय हो गई.

जिस मोबाइल नंबर से उस दुकानदार को रेलवे स्टेशन उड़ाने की धमकी दी थी, उस का सर्विलांस के जरीए रवीश की लोकेशन ढूंढ़ ली.

इस के बाद पंजाब पुलिस ने इस की सूचना बस्ती पुलिस को दी, जिस के बाद वहां की पुलिस भी सक्रिय हो गई और आननफानन रवीश कुमार मिश्र को गिरफ्तार कर धारा 505 के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

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