प्यार में हद पार करने का खतरनाक नतीजा

अगस्त, 2016 की सुबह मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना पुरानी छावनी के खेरिया गांव के अटल गेट के पास खेत में 24-25 साल के एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना गांव वालों ने पुलिस को दी तो अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी प्रीति भार्गव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रही थीं कि एसपी हरिनारायण चारी मिश्र और एएसपी दिनेश कौशल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ लगी थी.

थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. इस से साफ हो गया कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. मृतक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब से मोटरसाइकिल की चाबी मिली. लाश से थोड़ी दूरी पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. पुलिस ने मृतक की जेब से मिली चाबी उस मोटरसाइकिल में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस से पुलिस को लगा कि इस मोटरसाइकिल से मृतक की शिनाख्त हो सकती है.

पुलिस ने मोटरसाइकिल जब्त कर अन्य तमाम काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन जब पुलिस ने आरटीओ औफिस से मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह मोटरसाइकिल विनयनगर, सेक्टर 3, पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष किरार की थी.

पुलिस ने उस के घर जा कर पता किया तो घरवालों ने बताया कि संतोष एक अगस्त की सुबह अपनी मोटरसाइकिल से निकला है तो अब तक घर लौट कर नहीं आया है. इस से पुलिस को लगा कि खेत में पड़ी लाश संतोष की हो सकती है. लेकिन जब पुलिस ने वह लाश उस के पिता रामकिशोर को दिखाई तो उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे संतोष की नहीं है. इस के बाद पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में संतोष की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

प्रीति भार्गव लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रही थीं कि शाम को थाना हजीरा के रहने वाले तुलसीराम पिछली शाम से गायब अपने बेटे की तलाश करतेकरते उन के पास आ पहुंचे. दरअसल, पिछली शाम को घर से निकला उन का बेटा शीतल न लौट कर आया था और न उस का फोन मिला था, तब परेशान हो कर वह थाना हजीरा में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए थे.

वहां से जब उन्हें बताया गया कि थाना पुरानी छावनी पुलिस ने एक लड़के की लाश बरामद की है तो वह थाना पुरानी छावनी पहुंच गए थे. थाना पुरानी छावनी पुलिस ने तुलसीराम को बरामद लाश दिखाई तो वह फफकफफक कर रोने लगे. इस के बाद उन्होंने खेतों में मिली लाश की शिनाख्त अपने बेटे शीतल की लाश के रूप में कर दी थी.

प्रीति भार्गव ने हत्यारे का पता लगाने के लिए तुलसीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी कि उन के बेटे की इस तरह हत्या कर दी जाती. उन से पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उस के बारे में जानने से मना कर दिया. तुलसीराम के बताए अनुसार, उन की किराने की दुकान थी. दोपहर को दुकान पर उन का बेटा शीतल बैठता था. इस तरह वह पिता के कारोबार में हाथ बंटाता था.

पुलिस ने हत्याकांड के खुलासे के लिए जितने भी लोगों से पूछताछ की, उन में से कोई भी ऐसी बात नहीं बता सका, जिस से वह हत्यारे तक पहुंच पाती. प्रीति भार्गव की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शीतल खेरिया गांव क्यों गया? अगर वह संतोष के साथ वहां गया था तो उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि संतोष ने उसे मौत के घाट उतार दिया? यह सब जानने के लिए पुलिस को संतोष की तलाश थी. आखिर आठवें दिन काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में वह असलियत छिपा नहीं सका और उस ने शीतल की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने शीतल की हत्या की जो कहानी सुनाई वह हैरान करने वाली तो थी ही, साथ ही आज के युवाओं में स्त्रीसुख की जो लालसा उपजी है, उस की हकीकत बयां करने वाली थी. पत्रकार कालोनी का रहने वाला इलेक्ट्रिशियन संतोष 31 जुलाई, 2016 की शाम घर लौट रहा था तो रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क पर खड़े एक युवक ने उसे हाथ दे कर रोक कर कहा, ‘‘भाई साहब, मैं यहां काफी देर से किसी सवारी का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन कोई सवारी मिल नहीं रही है. अगर आप मुझे अपनी मोटरसाइकिल से लिफ्ट दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

संतोष ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. इस के बाद उस युवक ने अपना नाम शीतल बताते हुए कहा, ‘‘हजीरा के इंद्रनगर में मेरे पिता की किराने की दुकान है. मैं उसी पर बैठता हूं. लेकिन अब मेरा मन दुकान पर बैठने को नहीं होता, इसलिए मैं नौकरी खोज रहा हूं. इंटरव्यू देने ही मैं झांसी जा रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से मेरी ट्रेन छूट गई.’’

‘‘कोई बात नहीं, यार, मैं तुम्हारी नौकरी यहीं लगवा दूंगा.’’ संतोष ने कहा. विजयनगर पहुंचतेपहुंचते दोनों में ऐसी दोस्ती हो गई कि उन्होंने पीनेपिलाने का प्रोग्राम बना डाला. फिर इस नई दोस्ती के नाम पर दोनों में एकदूसरे को शराब पिलाने की होड़ लग गई, जिस में करीब 500 रुपए खर्च हो गए. शराब के नशे ने अपना असर दिखाया तो संतोष ने जाने कितनी बार शीतल को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस की नौकरी ग्वालियर में लगवा देगा. उसे यह शहर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना नहीं पड़ेगा.

संतोष शीतल से बातें कर रहा था, तभी उस की प्रेमिका रेखा (बदला हुआ नाम) का उस के मोबाइल पर फोन आ गया. शीतल से उस की दोस्ती हो ही चुकी थी, इसलिए उस से बिना कुछ छिपाए वह रेखा से अश्लील यानी शारीरिक संबंधों की बातें करने लगा. संतोष रेखा से जो बातें कर रहा था, उन्हें सुनसुन कर शीतल उत्तेजित हो उठा. तब उस ने बिना किसी संकोच के संतोष से कहा, ‘‘कल तुम अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहे हो न, मुझे भी कल उस से मिलवा दो.’’

‘‘तुम उस से मिल कर क्या करोगे?’’ संतोष ने कहा तो जरा भी झिझके बिना शीतल ने कहा, ‘‘जो तुम करोगे, वही मैं भी करूंगा.’’

इस पर संतोष नाराज होते हुए बोला, ‘‘रेखा ऐसी लड़की नहीं है. वह केवल मुझ से ही बातें करती है और केवल मुझ से उस के शारीरिक संबंध हैं.’’ उस समय तो संतोष ने शीतल को समझाबुझा कर उस के घर भेज दिया. लेकिन सुबह होते ही शीतल संतोष को फोन कर के कहने लगा कि वही उस का सच्चा दोस्त है. सिर्फ एक बार वह अपनी प्रेमिका से उसे भी मौजमजा ले लेने दे. यही नहीं, उस ने यहां तक पूछ लिया कि वह कितनी देर में रेखा को उस के पास भिजवा रहा है.

नए दोस्त के मुंह से सुबहसुबह प्रेमिका के बारे में ऐसी बातें सुन कर संतोष को गुस्सा आ गया. किसी तरह अपने गुस्से पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘एक घंटे के भीतर तू मेरे घर आ जा, आज मैं तुझे रेखा से मिलवा ही देता हूं. तू भी याद करेगा कि कोई दोस्त मिला था.’’ शीतल के आने से पहले संतोष ने तय कर लिया था कि प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वाले शीतल को अब वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. जैसे ही शीतल उस के घर पहुंचा, वह उसे ले कर निकल पड़ा.

संतोष ने ठेके से शराब की 2 बोतलें खरीदीं और मोटरसाइकिल से शीतल को ले कर पुरानी छावनी की ओर चल पड़ा. वहां एक पेड़ के नीचे बैठ कर दोनों ने शराब पी. अपनी योजना के अनुसार संतोष ने शीतल को कुछ ज्यादा शराब पिला दी थी. शीतल को जैसे ही शराब का नशा चढ़ा, उस ने कहा, ‘‘चलो बुलाओ रेखा को. तुम ने उस के साथ बहुत मजा लिया है, आज मैं उस के साथ ऐसा मजा लूंगा कि वह भी याद करेगी.’’

संतोष रात से ही शीतल की इन बातों से जलाभुना बैठा था. उस ने पैंट की जेब में रखा चाकू निकाला और एक ही झटके में शीतल का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने शराब की बोतल उठा कर एक ही सांस में पूरी शराब पी ली और शीतल की लाश को वहीं अटल गेट के पास एक खेत में छोड़ कर चला आया. मोटरसाइकिल वह इसलिए नहीं ला सका, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रास्ते में शीतल ने चलाने के लिए ले ली थी और उस की चाबी उस ने अपनी जेब में रख ली थी.

इसलिए शीतल की हत्या करने के बाद जब संतोष ने अपनी जेब में मोटरसाइकिल की चाबी देखी. चाबी न पा कर नशे में होने की वजह से उसे लगा कि चाबी कहीं गिर गई है. हड़बड़ाहट में वह गाड़ी वहीं छोड़ कर घर चला और घर से कानपुर चला गया. उसे उम्मीद थी कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. एक सप्ताह तक वह निश्चिंत हो कर कानपुर में रहा. लेकिन शायद उसे पता नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है. पैसे खत्म होने के बाद संतोष पैसे लेने के लिए जैसे ही घर आया, थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने उसे पकड़ लिया. संतोष से पूछताछ में पता चला कि उस ने शीतल की हत्या जिस खेत में की थी, लाश वहां नहीं मिली थी.

पुलिस ने खेत की रखवाली करने वाले सोनू कुशवाह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने लाश पड़ी देखी तो डर के मारे उस ने अपने रिश्तेदार सैकी कुशवाह की मदद से लाश ले जा कर खेरिया मोड़ पर अटल गेट के पास रमेश शर्मा के खेत में फेंक दी थी. पुलिस ने सोनू और सैकी को हिरासत में ले लिया. इन का दोष यह था कि इन्होंने लाश पड़ी होने की सूचना पुलिस को नहीं दी थी, इस के अलावा सबूत नष्ट किए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भिजवा दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सहयोग : रंजीत सुर्वे

प्यार का खौफनाक पहलू

उत्तर प्रदेश जिला रायबरेली के थाना बछरावां का एक गांव है गजियापुर. इसी गजियापुर का छोटा सा मजरा है शेखपुरा समोधा. पुत्तीलाल लोध अपने परिवार के साथ इसी मजरे में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां आशा व माया और एक बेटा था उमेश. पुत्तीलाल कास्तकार था और खेतीकिसानी से अपने परिवार का भरणपोषण करता था. वह सीधासादा सरल स्वभाव का व्यक्ति था.

पुत्तीलाल की 3 संतानों में आशा सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही 16वां बसंत आतेआते उस की खूबसूरती और भी निखर गई थी. उस का अंगअंग फूलों की तरह महक उठा था. उस की पतली कमर, नैननक्श और गोरा रंग किसी को भी आंखों में चाहत जगा देने के लिए काफी थे.

खूबसूरत होने के साथ आशा पढ़ाई-लिखाई में भी तेज थी. प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर के बीए में एडमिशन ले लिया था. आशा की खूबसूरती ने कई युवकों को उस का दीवाना बना दिया था. लड़के उस के आगेपीछे घूमते थे. इन लड़कों में बृजेंद्र कुमार भी था.

बृजेंद्र शेखपुरा समोधा का ही रहने वाला था. उस का घर आशा के घर से कुछ दूरी पर था. बृजेंद्र के पिता जागेश्वर दबंग किसान थे. उन की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति भी मजबूत थी. बृजेंद्र कुमार हृष्ट-पुष्ट सजीला नौजवान था. रहता भी बनसंवर कर था. वह पढ़ने में भी वह अच्छा था. बीए पास करने के बाद उस का चयन बीटीसी में हो गया था. वह अध्यापक बनने का इच्छुक था.

बृजेंद्र और आशा बचपन से एकदूसरे को जानते थे. कालेज आतेजाते दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं. दोनों एकदूसरे को चाहत भरी नजरों से देखते और फिर मुसकरा देते थे. बृजेंद्र आशा को चाहने लगा था. आशा भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. उसे अपने लिए बृजेंद्र की आंखों में प्यार का सागर हिलोरे मारता लगता था. धीरेधीरे उस के मन में भी बृजेंद्र के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

जब बृजेंद्र को आभास हुआ कि आशा उस की ओर आकर्षित है तो वह दिल की बात दिल में नहीं रख सका. एक दिन आशा कालेज से अकेली घर लौट रही थी. बृजेंद्र ने उसे रास्ते में रोक लिया. आशा भले ही अकेली थी, लेकिन रास्ता सुनसान हीं था. इसलिए वहां दिल की बात नहीं कहीं जा सकती थी. मिनट 2 मिनट बात करने पर भले ही कोई संदेह न करता, लेकिन दिल की बात कहने के लिए समय चाहिए था, क्योंकि इजहारे इश्क करते के लिए भूमिका बांधने में ही समय लग जाता है.

यही वजह थी कि उस समय दिल की बात कहने के बजाए बृजेंद्र ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आशा, क्या आज शाम 7 बजे तुम मुझ से मिलने गांव के बाहर बगीचे में आ सकती हो?’’

आशा कुछ कहती उस के पहले ही बृजेंद्र ने एक बार फिर कहा, ‘‘मैं बेसब्री से तुम्हारा वहीं इंतजार करूंगा.’’

आशा का जवाब सुने बगैर बृजेंद्र चला गया. आशा हैरानी से तब तक उसे जाते देखती रही जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया. वह जानती थी कि बृजेंद्र ने उसे क्यों बुलाया है? सवाल यह था कि वह उस से मिलने जाए या न जाए. यही सोचते हुए वह घर पहुंच गई.

दोनों की पहली मुलाकात
आशा घर जरूर पहुंच गई, लेकिन उस का मन बेचैन था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जाए या न जाए. वह भले ही कितनी भी बेचैन रही. लेकिन शाम को बृजेंद्र से मिलने जाने से खुद को रोक नहीं सकी.

सहेली के घर जाने का बहाना बना कर वह बगीचे में पहुंची तो बृजेंद्र वहीं बैठा उस का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर बृजेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘चलो यह अच्छी बात है कि तुम्हारा विश्वास नहीं टूटा. बताओ मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘पहली बात तो यह कि तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. फिर भी बता दूं कि मैं ने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

बृजेंद्र की इस बात पर आशा को कोई हैरानी नहीं हुई. क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि बृजेंद्र ने यही कहने के लिए बुलाया है. फिर भी बनावटी हैरानी व्यक्त करते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो?’’

‘‘आशा मेरे दिल में जो था, मैं ने कह दिया. बाकी तुम जानो. यह बात सच है कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं.’’ बृजेंद्र की इन बातों से आशा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. बृजेंद्र उसे अच्छा लगता ही था. वह उसे चाहने भी लगी थी. इसलिए उस ने बृजेंद्र को चाहत भरी नजरों से देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा,

‘प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन डर लगता है.’’

बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘डर किस बात का आशा, मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर तो मैं तुम्हारा साथ आखिरी सांस तक निभाऊंगी.’’ आशा ने अपना दूसरा हाथ बृजेंद्र के हाथ पर रखते हुए कहा.

इस तरह प्यार का इजहार हो गया तो आशा और बृजेंद्र की दुनिया ही बदल गई. आशा कालेज जाने के बहाने घर से निकलती और पहुंच जाती बृजेंद्र के पास. बृजेंद्र उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाता, फिर दोनों बछरावां, रायबरेली घूमने निकल जाते. कभीकभी एकांत में बैठ कर दोनों भविष्य के सपने बुनते. जबकि उन्हें पता था कि वे जो सोच रहे हैं, वह इतना आसान नहीं है.

मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई जाने लगीं. हालांकि दोनों परिवारों में समानता नहीं थी. इसलिए यह इतना आसान नहीं था. फिर भी दोनों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए वे अपनी दुनिया बसा कर रहेंगे.

प्यारमोहब्बत ज्यादा दिनों तक छिपने वाली चीज नहीं होती. कुछ दिनों बाद पुत्तीलाल को भी शुभचिंतकों से पता चल गया कि बेटी गलत राह पर चल पड़ी है. पतिपत्नी ने बेटी को डांटाफटकारा भी और प्यार से समझाया भी. इस के बावजूद भी उन्हें बेटी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि जवानी के जोश में आशा गलत कदम उठा सकती है. इसलिए उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया.

पुत्तीलाल और सुशीला ने अब आशा पर निगाह रखनी शुरू कर दी, जिस से दोनों के मिलन में बाधा पड़ने लगी. फिर भी आशा को जब मौका मिलता वह बृजेंद्र से बतिया लेती थी. बृजेंद्र उसे सांत्वना देता कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.

एक रात सुशीला ने आशा को बृजेंद्र से मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. उस ने उसी समय आशा को डांटा, ‘‘देखो, आशा इज्जतआबरू और मानमर्यादा औरत के गहने हैं और तू इन गहनों पर दग लगा रही है. तुझे तो अपनी इज्जत की परवाह है नहीं, कम से कम हम लोगों की इज्जत का तो खयाल रख. तू पढ़ीलिखी है, समझदार है, फिर भी मना करने के बावजूद तू बृजेंद्र से संबंध बनाए हुए है.’’

सुशीला ने गुस्से में आशा को डांटा भी और उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से समझाया भी, ‘‘बेटी, औरत की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं धुल पाता. अब भी समय है. तू बृजेंद्र को भूल जा. मैं जल्दी ही तेरा रिश्ता अच्छा घरवर देख कर कर दूंगी.’’

बदल गया आशा का मन…
मां की बात आशा के दिल को छू गई. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह बृजेंद्र को भुलाने की पूरी कोशिश करेगी. मांबाप उस का रिश्ता, जहां भी जैसा भी करेंगे वह स्वीकार कर लेगी. उस ने मां को अपने फैसले के बारे में बता भी दिया. बेटी के चेहरे पर विश्वास देख कर मां खुश हुई.

पुत्तीलाल आशा के लिए योग्य वर की खोज में जुट गया. थोड़ी मेहनतमशक्कत के बाद उसे एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाने अंतर्गत कुशहारी गांव निवासी बच्चूलाल लोध के 25 वर्षीय बेटे साजन के बारे में पता चला तो वह उस के घर पहुंचे. साजन उन्हें पसंद आ गया. साजन बीए पास कर चुका था और कंप्टीशन की तैयारी में जुटा था. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में वह शामिल भी हो चुका था.

साजन के पिता बच्चूलाल के पास 10 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बच्चूलाल, पुत्तीलाल का दूर का रिश्तेदार भी था. इसलिए घरपरिवार जाना समझा था. घरवर पसंद आया तो पुत्तीलाल ने अपनी बेटी आशा की शादी साजन के साथ तय कर दी. चूंकि लड़का और लड़की दोनों पढ़ेलिखे थे, अत: तय हुआ कि जब लड़कालड़की एकदूसरे को देख लें और पसंद कर लेंगे, तभी शादी की तारीख फाइनल कर दी जाएगी.

कुछ दिन बाद साजन अपने मातापिता व बहनों के साथ आशा को देखने आया. दोनों ने एकदूसरे को देखा और बातचीत भी की. उस के बाद दोनों ने अपनी रजामंदी दे दी. इस के बाद सगाई की रस्म भी पूरी हो गई. शादी की तारीख तय हुई 12 मार्च, 2019.

इधर बृजेंद्र को आशा की शादी तय हो जाने की खबर लगी तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उसे अपना सपना बिखरता नजर आया. आशा की बेवफाई की बात सुन कर बृजेंद्र विचलित हो उठा. वह उस दिन किसी तरह आशा से मिला और गुस्से में उस की आंखों में झांकते हुए शादी की सच्चाई के बारे में पूछा.

आशा को बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला नजर आ रही थी. सच कहने में ही उसे भलाई नजर आई. उस ने कहा, ‘‘हां, बृजेंद्र, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे मातापिता ने मेरी शादी तय कर दी है. अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं तुम्हें? मैं ने तुम से प्यार किया है, सपना संजोया था कि तुम मेरी दुलहन बनोगी. लेकिन तुम तो बेवफा निकली.’’

‘‘मैं बेवफा नहीं हूं, बृजेंद्र. मेरी मजबूरी समझो.’’ आशा ने बृजेंद्र को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम बेवफा नहीं तो और क्या हो? जब तुम्हें दूसरी जगह ही ब्याह रचाना था तो मुझे सपने क्यों दिखाए, क्यों मेरी दुलहन बनने का वादा किया. अब भी समय है आशा, तुम शादी के लिए मना कर दो और मांबाप के विरुद्ध खड़ी हो जाओ. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

‘‘नहीं बृजेंद्र, मैं ऐसा नहीं कर सकती. मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि मांबाप के फैसले के खिलाफ कुछ कर सकूं.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है,” आशा ने दो टूक जवाब दिया और घर वापस चली गई.

बृजेंद्र नहीं छोड़ना चाहता था आशा को
आशा और बृजेंद्र के प्यार की डोर भले ही टूट गई थी, लेकिन इस सब के बावजूद दोनों की कभीकभी फोन पर बातें होती रहती थीं. इस बातचीत में बृजेंद्र अकसर आशा से कहता था कि वह रिश्ता तोड़ कर उस के साथ भाग चले. लेकिन आशा इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह घर से भाग कर मांबाप के मुंह पर कालिख नहीं पोतना चाहती.

लेकिन बृजेंद्र के दिलोदिमाग पर आशा कुछ इस तरह छाई थी कि उस के मना करने के बावजूद वह उसे भुला नहीं पा रहा था. कभी उसे आशा की बेवफाई पर गुस्सा आता तो कभी उस की मजबूरी पर तरस. आशा की वजह से उस की जिंदगी निराशा में बदल गई थी. अब उस का मन किसी भी काम में नहीं लगता था.

बृजेंद्र का एक दोस्त अजय बछरांवा कस्बे में रहता था. कस्बे में ढाबे के पास उस की मोबाइल शौप थी. बृजेंद्र हमेशा उसी की दुकान से मोबाइल रिचार्ज कराता था. इसी वजह से दोनों के बीच अच्छा परिचय हो गया था. बाद में धीरेधीरे यह परिचय दोस्ती में बदल गया था.

बृजेंद्र को जब भी मोबाइल रिचार्ज कराने की जरूरत होती थी उसे फोन कर लेता था. अजय उस का मोबाइल फोन रिचार्ज कर देता था. बृजेंद्र अपनी प्रेमिका आशा का मोबाइल फोन भी उसी से रिचार्ज कराता था. दोनों के प्रगाढ़ संबंधों की उसे जानकारी थी. बृजेंद्र स्वयं भी उस से हर बात शेयर करता था.

इधर कुछ समय से बृजेंद्र गुमसुम रहने लगा था. उस में आए बदलाव को देख कर अजय ने कारण पूछा तो उस ने अपने दिल की बात उसे बता दी.

अजय चूंकि बृजेंद्र का दोस्त था, इसलिए उस ने बृजेंद्र को सलाह दी कि वह आशा को भुला दे. क्योंकि अब वह किसी और की अमानत बनने जा रही है. आशा की खुशी के लिए उसे अपने सीने पर पत्थर रखना ही होगा.

बृजेंद्र ने दोस्त की सलाह पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन उस की बात स्वीकार भी नहीं की. आशा के प्यार में आकंठ डूबे बृजेंद्र ने एक शाम आशा के मोबाइल पर फोन कर के प्यार की दुहाई दी और उसे गांव के बाहर उसी बगीचे में बुलाया, जहां उन की पहली मुलाकात हुई थी.

उस ने कहा था कि एक हफ्ते बाद 12 मार्च को वह किसी और की हो जाएगी. इसलिए सिर्फ इस बार उस से मिल ले. बृजेंद्र की इस विनती को आशा ठुकरा नहीं सकी और उस से मिलने बगीचे में जा पहुंची.
आशा जैसे ही वहां पहुंची बृजेंद्र उसे अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘आशा, तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हें अपनी दुलहन बनाना चाहता हूं, जबकि तुम पीछे हट रही हो.’’

खुद को बृजेंद्र की बांहों में आजाद कर के आशा ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कह दिया था कि मैं अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा सकती. मेरी वजह से मांबाप की इज्जत पर दाग लगे, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी.’’

‘‘प्यार करने वाले, इस सब की परवाह नहीं करते. तुम मुझ से प्यार करती हो, यह बात तुम न जाने कितनी बार कह चुकी हो. इसलिए अब तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए.’’ बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर विनती की, ‘‘हम दोनों बालिग हैं. इसलिए हम अपनी मरजी से शादी कर सकते हैं. शादी के बाद कुछ दिनों में घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो, पर मैं तुम्हें साफसाफ बता रही हूं. मैं तुम से कभी प्यार करती थी, लेकिन अब नहीं करती. इसलिए तुम से शादी नहीं कर सकती. भाग कर शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता. आशा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए अपना आखिरी फैसला सुना दिया.’’

आशा के प्रति भर गई नफरत
आशा ने बृजेंद्र के प्यार को ठुकराया और शादी से इनकार किया तो उस के मन में आशा के प्रति नफरत और गुस्से की चिंगारी सुलगने लगी. एक रात बृजेंद्र ने मोबाइल फोन पर फिल्म ‘बेवफा सनम’ देखी. फिल्म की कहानी उस की असल जिंदगी की कहानी से मिलतीजुलती थी. आशा भी उस के प्यार को ठुकरा कर दूसरे से शादी रचा रही थी.

यह ‘बेवफा सनम’ फिल्म बृजेंद्र ने अपने मोबाइल फोन पर कई बार देखी. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि फिल्म की तरह वह भी आशा को उस की बेवफाई की सजा देगा.

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे बृजेंद्र की नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था. बृजेंद्र के चाचा लोधेश्वर के पास डबल बैरल (दोनाली) बंदूक थी. लोधेश्वर जब शादी तिलक समारोह में जाता था तो बंदूक साथ ले जाता था और शादी समारोह में हर्ष फायरिंग करता था. चूंकि बृजेंद्र भी चाचा के साथ जाता था, सो उस ने भी बंदूक चलानी सीख ली थी. चाचा के साथ वह भी हर्ष फायरिंग करता था.

12 मार्च, 2019 को मंगलवार था. उस दिन पुत्तीलाल की 22 वर्षीय बेटी आशा की शादी होनी थी. बारात उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाना अंतर्गत गांव कुशहरी से आनी थी. सुबह से ही पुत्तीलाल के घर पर चहलपहल शुरू हो गई थी. नातेरिश्तेदार आने शुरू हो गए थे. पुत्तीलाल अपने परिवार के लोगों के साथ व्यवस्था में जुटा था. उस की तमन्ना थी कि उस की बेटी की शादी में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए.

बृजेंद्र भी शादी में कर रहा था सहयोग
बृजेंद्र के दिल में क्या था, और वह किस उधेड़बुन में लगा था. किसी को पता नहीं था. सुबह से ही वह पुत्तीलाल के घर मौजूद था और उस की हर तरह से मदद कर रहा था. कभी वह व्यंजन तैयार कर रहे हलवाइयों के पास जाता और उन्हें आदेश देता तो कभी डेकोरेशन का काम कर रहे कर्मचारियों को ठीक से डेकोरेशन करने की हिदायत देता. उसे देख कर किसी को नहीं लग रहा था कि उस के दिल में कोई भयंकर तूफान उमड़ रहा है.

घरपरिवार व रिश्तेदार महिलाएं मंगल गीत गाते हुए शादी की पूर्व होने वाली रस्मों को पूरा कर रही थीं. कुछ मंडप के नीचे परछन कर रही थीं तो कुछ गीत गाते हुए आशा को उबटन लगा रही थीं. कुछ ऐसी भी थीं जो चुहलबाजी और हंसीमजाक कर माहौल को खुशनुमा बना रही थीं. पूरा घर आंगन खुशियों से सराबोर था.

शाम ढलतेढलते सारी तैयारियां पूरी हो गईं. पंडाल सज गया और मेहमानों के बैठने के लिए पंडाल में कुरसियां डाल दी गईं. दूल्हादुलहन के लिए पंडाल में भव्य स्टेज सजाया गया. पूरा पंडाल लाइटों से जगमगा रहा था. छोटछोटे बच्चे सजधज कर मस्ती करने लगे थे.

आशा भी अपनी सहेलियों के साथ सजधज कर अपने कमरे में आ गई थी. वह बछरावां स्थित मधु ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराने गई थी. सजीधजी आशा आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. सखीसहेलियां उस से हंसीमजाक कर रही थीं, जबकि वह अपने भविष्य के सुनहरे सपनों में खोई थी.

रात साढ़े 10 बजे के लगभग बारात गाजेबाजे के साथ पुत्तीलाल के दरवाजे पर पहुंची. पुत्तीलाल ने हर एक बाराती के गले में फूलमाला डाल कर स्वागत किया. फिर दूल्हे साजन को स्टेज पर लाया गया. उस समय रिश्तेदारों, गांव वालों और बारातियों से पूरा पंडाल भरा हुआ था. सजीधजी महिलाओं की रौनक देखते ही बन रही थी. सभी खुशी में डूबे हुए थे.

कुछ देर बाद आशा दुलहन के वेश में स्टेज पर आई. उस के साथ उस की सहेलियां भी थीं. स्टेज पर दूल्हा और दुलहन ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर सिर झुका लिया. फिर एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म पूरी की. कई युवकयुवतियां खुशी से स्टेज के सामने नाचने लगे. इस के बाद वरवधू को दोनों पक्षों के लोग आशीर्वाद देने आने लगे. फोटोग्राफर फोटो खींचने में लगा था.

शादी का स्टेज हो गया खून से लाल
जयमाला होने के बाद स्टेज पर दुलहन आशा और उस के दूल्हे साजन का फोटो सेशन चल रहा था. तभी अचानक आशा का पूर्व प्रेमी बृजेंद्र कुमार अपने चाचा लोधेश्वर की दोनाली बंदूक ले कर वहां आ धमका. बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला साफ झलक रही थी.

उस के हाथ में बंदूक देख कर आशा सहम गई और उठ कर खड़ी हो गई. उसी समय बृजेंद्र आशा के नजदीक आ कर बोला, ‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी, तो मैं जीते जी तुम्हें किसी और की दुलहन बन जाने दूंगा. नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ बृजेंद्र ने आशा पर फायर झोंक दिया. गोली उस के पेट में धंसी और वह खून से लथपथ हो कर स्टेज पर ही गिर पड़ी. गांव के 2 साहसी युवक बृजेंद्र के हाथ से बंदूक छीनने उस की ओर लपके लेकिन बृजेंद्र उन दोनों पर भी बंदूक तानते हुए बोला, ‘‘खबरदार, जो मेरे पास आए. अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ.’’ कहते हुए बृजेंद्र ने बंदूक की नाल अपने गले पर सटाई और ट्रिगर दबा दिया.

धांय की आवाज के साथ बृजेंद्र भी जमीन पर बिछ गया. कुछ देर छटपटाने के बाद आशा और बृजेंद्र दोनों ने दम तोड़ दिया.

इधर गोली चलने की आवाज सुन कर लोगों में भगदड़ मच गई. दूल्हा साजन तो बेहोश ही हो गया. बच्चूलाल उसे कार में डाल कर अपने गांव की ओर भागा. अन्य बाराती भी भाग लिए. बारातियों को इस बात का संतोष था कि दूल्हा सहीसलामत था और किसी भी बाराती को हानि नहीं पहुंची थी.

डोली की जगह उठी अर्थी
जिस घर में कुछ देर पहले खुशियां छाई थीं. अब वहां मौत की परछाइयों के अलावा कुछ नहीं था. चारों ओर चीखपुकार मची थी. आशा के मातापिता व घर वाले उस के शव के पास विलाप कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर बृजेंद्र के मातापिता और परिजन आंसू बहा रहे थे. गांव वाले भी अवाक थे कि जिस घर से सुबह डोली उठनी थी, वहां से अब अर्थी उठेगी.

इसी बीच किसी ने मोबाइल फोन के जरिए इस गंभीर वारदात की सूचना थाना बछरावां को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी रविंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाने से रवाना होते समय उन्होंने वारदात से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. शेखपुरा समोधा गांव, बछरावां थाने से मात्र 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

रात करीब 12 बजे के लगभग एसपी सुनील कुमार सिंह, एएसपी शशि शेखर सिंह तथा सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी रवींद्र सिंह पहले से ही वहां मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. स्टेज पर एक युवती की लाश पड़ी थी, जो दुलहन के वेश में थी और स्टेज के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि युवती का नाम आशा था और मृतक बृजेंद्र कुमार था.

आशा की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी, जबकि बृजेंद्र की उम्र लगभग 25 वर्ष थी. मृतक के पास दोनाली बंदूक पड़ी थी. इसी बंदूक से वारदात को अंजाम दिया था. अत: पुलिस ने जांच हेतु बंदूक अपने पास सुरक्षित रख ली.

घटनास्थल पर मृतका और मृतक के मातापिता व घर वाले मौजूद थे. एसपी सुनील कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक शशिशेखर सिंह ने उन सब से पूछताछ की तो पता चला कि यह सब प्रेम प्रसंग की वजह से हुआ है.

इस मामले में सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही ने मौके पर मौजूद गवाह रमेश आदि के बयान दर्ज किए. वहीं थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के मातापिता सुशीला और पुत्तीलाल तथा बृजेंद्र के पिता जागेश्वर व उस के भाई लोधेश्वर के बयान दर्ज किए. इस के बाद दोनों शव राजकीय अस्पताल रायबरेली पोस्मार्टम हेतु भेज दिए.

पुलिस अधिकारियों ने दूसरे रोज थाने बुला कर दूल्हे साजन तथा उस के पिता बच्चूलाल से भी पूछताछ की. उन के भी बयान दर्ज किए गए.

इधर थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के पिता पुत्तीलाल को वादी बना कर आशा की हत्या के आरोप में भादंवि की धारा 302 के तहत बृजेंद्र कुमार के विरुद्ध रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन बृजेंद्र द्वारा आत्महत्या कर लेने से इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

साजिश : 17 साल की मंजुला का ब्लाइंड मर्डर

17 वर्षीय मंजुला अपने परिवार के साथ मोहाली के गांव मटौर में रहती थी. सेक्टर-69 के एक वकील के यहां वह बेबीसिटर की नौकरी करते हुए उन के छोटे बच्चे को संभालती थी. दिन के 9 बजे उस की ड्यूटी शुरू होती थी और प्राय: शाम 4 बजे छुट्टी कर के वह पैदल ही घर के लिए निकल पड़ती थी. 9 नवंबर, 2017 की सुबह भी वह नौकरी पर जाने के लिए रोजाना की तरह घर से निकली थी. मगर उस शाम घर नहीं लौटी.

पैदल चल कर भी मंजुला अकसर 5 बजे तक घर पहुंच जाया करती थी. उस रोज 6 बज गए और वह नहीं लौटी तो उस के भाई ने वकील के यहां फोन कर के दरियाफ्त की. वकील साहब ने बताया कि मंजुला तो हमेशा की तरह शाम के 4 बजे छुट्टी कर के चली गई थी.

इस जानकारी से घर में सब को लड़की की फिक्र हो गई. पहले तो उस की तलाश में काफी भागदौड़ की गई. फिर उस के भाई ने इस संबंध में पुलिस से गुहार लगाई तो फेज-8 के थाने में मंजुला की गुशुदगी लिखा दी गई. नाबालिग लड़की का मामला होने की वजह से पुलिस ने भी मंजुला की तलाश के लिए हाथपैर चलाए. लेकिन उस के संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद लगातार मंजुला की तलाश की जाती रही. उस का मिल पाना तो दूर की बात, उस के बारे में कहीं से कोई छोटीमोटी खबर तक नहीं मिल पाई थी. देखतेदेखते मंजुला को गायब हुए 5 दिन गुजर गए.

14 नवंबर को बालदिवस की वजह से कुछ बच्चे एक समारोह अटैंड कर के अपने घर लौट रहे थे. पैदल चलते हुए वे सेक्टर-69 स्थित निजी अस्पताल मायो के पास से हो कर आगे निकले तो 2 बच्चों को पेशाब की हाजत हुई. इस से फारिग होने को वे पास की झाड़ियों में चले गए. वहां पीछे एक छोटामोटा जंगल था.

झाडि़यों से निकलते वक्त इन की निगाह जंगल की तरफ चली गई. वहां इन्हें लेडीज कपड़ों के टुकड़े पड़े दिखाई दिए. जिज्ञासावश ये थोड़ा आगे बढ़ गए. आगे का दृश्य देख इन के मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुन कर उन के साथी भी दौड़ते हुए वहां आ पहुंचे. फिर तो जो कुछ इन लड़कों ने वहां देखा, उस से उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इन से जरा ही फासले पर एक लड़की की गलीसड़ी नग्न हालत में लाश पड़ी थी.

ऐसा भयानक दृश्य देख, सभी लड़के भागते हुए सड़क पर आ गए. वहां उन्हें एक नौजवान खड़ा दिखाई दिया. उसे उन्होंने इस बाबत बता दिया. उस नौजवान ने अपने मोबाइल से तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. जरा सी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी वहां आ पहुंची. पीसीआर कर्मियों ने मौकामुलाहजा कर के मामला फ्लैश कर दिया.

जिस वक्त यह सूचना फेज-8 के थाने में पहुंची, थानाप्रभारी राजीव कुमार अपने दफ्तर ही में थे. सबइंसपेक्टर जागीर सिंह व कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे. नाबालिग मंजुला की गुमशुदगी की सूचना उन्हीं के थाने में दर्ज थी, जिस के साथ गुमशुदा लड़की का फोटो भी लगा था.

राजीव कुमार को लाश की सूरत मंजुला से मेल खाती लगी. उन्होंने तुरंत थाने से संबंधित फाइल मंगवा कर शव और फोटो में लड़की के हुलिए से मिलान करने का प्रयास किया. रिजल्ट पौजीटिव आते देख उन्होंने मंजुला के भाई को बुलवा भेजा. आते ही वह शव को देख फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने इस की शिनाख्त अपनी बहन मंजुला के रूप में कर दी.

पहली ही नजर में साफ था कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद चाकुओं से गोदगोद कर उसे मौत के घाट उतारा गया था.

पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू की. थानाप्रभारी ने मंजुला के भाई की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 363, 366, 302, 376-डी एवं 120-बी के अलावा पौक्सो एक्ट की धारा 4, 5 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस दौरान मौके की दीगर काररवाइयों को अंजाम देते हुए पुलिस ने मंजुला के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

अस्पताल में डाक्टरों के विशेष पैनल ने मंजुला के शव का पोस्टमार्टम कर के अपनी रिपोर्ट में उस के जिस्म पर तेजधार हथियार के 13 घावों का उल्लेख करने के अलावा इस बात की भी पुष्टि की कि उस के साथ एक से ज्यादा पुरुषों ने बलात्कार किया था. डाक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव बताया था. मंजुला का बिसरा भी रासायनिक परीक्षण के लिए फोरेंसिक लैबोरेट्री भेज दिया.

पोस्टमार्टम के बाद मंजुला का शव उस के परिजनों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने रोतेबिलखते उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था जो थाना पुलिस हल कर पाने में सफल नहीं हो पा रही थी. मोहाली के एसएसपी कुलदीप चहल ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इस की जांच का जिम्मा जिला पुलिस की सीआईए ब्रांच को सौंप दिया.

सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने केस की फाइल हाथ में आते ही न केवल इस का गहराई से अध्ययन किया बल्कि घटनास्थल पर जा कर बारीकी से जांच भी की. हालांकि  घटना को हुए काफी दिन गुजर चुके थे, ऐसे में उन्हें घटनास्थल से कत्ल संबंधी कोई क्लू मिलने की उम्मीद नहीं थी. क्लू उन्हें चाहिए भी नहीं था. उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी में न जाने कितने ब्लाइंड मर्डर केस सौल्व किए थे.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन कर के एकएक नुक्ते को जोड़ कर अपराधी तक पहुंचने का प्रयास किया था. उन्होंने घटनास्थल की फिर से फोटोग्राफी भी कराई फिर फाइल का ठीक से अध्ययन किया.

नक्शा व फोटो सामने रख कर इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उन का घटनास्थल से मिलान करते हुए एकाग्रचित्त हो कर अपनी अलग तरह की जांच शुरू की. उन्होंने लाश बरामद होने के समय खींचे गए फोटो को भी बड़े ध्यान से देखा.

एक फोटो में जमीन की मिट्टी पर एक ऐसे हाथ की छाप उभर रही थी जो किसी युवती का लग रहा था. यह हाथ मृतका का भी हो सकता था. मगर इस मुद्दे को यहीं पर खत्म न कर के तरलोचन सिंह ने चित्र के आधार पर उस जगह की तलाश की, जहां का यह फोटो था.

अनुमान और प्रयासों के आधार पर वह जगह मिल गई. लेकिन हाथ की छाप अब वहां नहीं थी. अब तक उस में शायद धूल वगैरह भर गई थी. तरलोचन सिंह ने इस जगह को आसपास से खुदवाया तो वहां से हरे रंग के कांच की चूड़ी का एक टुकड़ा उन के हाथ लग गया. उन्होंने उसे अपने पास संभाल कर रख लिया. टुकड़े को ले कर वह एसएसपी चहल के पास पहुंचे. फिर सीधेसपाट लहजे में बोले, ‘‘सर, इस ब्लाइंड मर्डर केस में कोई न कोई लड़की इन्वौल्व है.’’

‘‘लेकिन तरलोचन सिंह आप यह क्यों भूल रहे हो कि मर्डर के साथ यह गैंगरेप का मामला भी है.’’

‘‘लेकिन वो सब बदला लेने के नीयत से भी तो करवाया जा सकता है, सर.’’

‘‘मतलब यह कि किसी लड़की ने इस लड़की से बदला लेने के लिए पहले इस का गैंगरेप करवाया और फिर इस का मर्डर करवा दिया.’’

‘‘गैंगरेप जरूर करवाया गया सर, लेकिन मर्डर इस लड़की ने खुद अपने हाथों किया है. हां, ऐसा करते वक्त दूसरों की मदद जरूर ली गई होगी, यह सोचा जा सकता है.’’

‘‘तरलोचन सिंह, मेरी समझ में फिलहाल आप की बात नहीं आ रही है. आखिर ऐसा कौन सा क्लू आप के हाथ लग गया जो आप इतने उत्साहित हैं.’’

एसएसपी की बात पर हरे रंग की चूड़ी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हुए तरलोचन सिंह ने पहले घटनास्थल पर किए गए अपने प्रयास की बात बताई. फिर बताया कि रिकौर्ड में दर्शाया गया है कि मृतका ने लाल रंग की चूड़ियां पहन रखी थीं.

इस मामले में अभी तक पुलिस अपनी जो काररवाई करती आई थी वो यही थी कि पिछले कुछ अरसे में पकडे़ गए गैंग रेप आरोपियों को बुड़ैल जेल से ट्रांजिट रिमांड पर ला कर उन से इस केस के बारे में गहन पूछताछ करती रही थी.

मुखबिरों को लगा कर उन के कहने पर कुछ संदिग्ध लोगों पर भी शिकंजा कसा गया था. मगर पुलिस की पूछताछ में उन्हें बेकसूर पा कर हरी झंडी दे दी गई थी.

आगे छानबीन का सारा कार्यक्रम ही बदल दिया गया. अपने अन्य प्रयासों के अलावा सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने इस काम पर अपने खास मुखबिरों को लगाया.

10 जनवरी, 2018 को इंसपेक्टर तरलोचन सिंह के एक खास मुखबिर ने आ कर उन्हें इस केस के बारे में अहम सूचना दी. इस सूचना के अनुसार मृतका के मटौर स्थित निवास के पास एक औरत शीला अपनी जवान लड़की पूजा के साथ रहती थी. उन्हीं दोनों ने पहले अपने साथियों से मंजुला का रेप करवाया, फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

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‘‘लेकिन इस के पीछे कोई वजह भी तो रही होगी? इतने बड़े कांड को अंजाम देने का कोई कारण तो होगा?’’ तरलोचन सिंह ने मुखबिर से पूछा.

‘‘इस सब की जानकारी मुझे नहीं हो पाई है. लेकिन इस केस के असली कसूरवार यही लोग हैं. इन्होंने एक जगह बैठ कर आपस में मीटिंग की है. मैं ने छिप कर इन की सारी बातें सुनी हैं. आज ये लोग यहां से निकल भागने वाले हैं. मैं आप को वहां ले चलता हूं, जहां इन्होंने शरण ले रखी है. आप अभी उन्हें काबू कर लें, वरना पछतावे वाली बात हो जाएगी.’’ मुखबिर ने कहा.

ज्यादा सोचनेसमझने का वक्त नहीं था. इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उसी वक्त अपनी पुलिस पार्टी तैयार कर के मुखबिर को साथ लिया और उस की बताई जगह पर छापा मारा. वहां एक औरत व एक युवती के अलावा एक अन्य शख्स पुलिस के हत्थे चढ़ गया. मालूम पड़ा इन के साथ एक और भी आदमी था जो किसी तरह फरार होने में सफल हो गया था.

काबू में आए तीनों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में अभी लाया ही गया था  कि तीनों ने मंजुला को कत्ल किए जाने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड ले लिया गया.

रिमांड की अवधि में हुई गहन पूछताछ के दौरान इन तीनों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक अलग ही कहानी सामने आई.

पकड़ी गई औरत का नाम शीला और युवती थी उस की बेटी पूजा. इन के साथ पकड़े गए शख्स का नाम मक्खन था, जो शख्स भागने में सफल हो गया था, उस का नाम था रहूण.

शीला उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की रहने वाली थी. इस के पति रामनिवास का काम अच्छा नहीं चल रहा था, मगर वह अपना मूल प्रदेश छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश में जाना भी नहीं चाहता था. घर की गुजरबसर के लिए शीला और उस की बेटी पूजा छोटीमोटी नौकरी करती थीं. शीला जवान हो रही थी, घर वालों को उस की शादी की चिंता स्वाभाविक ही थी.

उत्तर प्रदेश के कामगार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब में उन के लिए हमेशा रोजगार के अवसर रहते हैं. इसी वजह से शीला कुछ साल पहले पति से अनुमति ले कर बेटी पूजा के साथ मोहाली आ गई. मोहाली की एक फैक्ट्री में दोनों को काम मिल गया. रहने के लिए मोहाली के गांव मटौर में किराए का मकान भी ले लिया.

यहीं पर पड़ोस में मंजुला अपने परिवार के साथ रहती थी. शीला ने पुलिस को बताया कि एक बार उस का पति उन लोगों से मिलने मटौर आया.

एक दिन मंजुला ने उस पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जैसेतैसे बात संभल तो गई लेकिन मंजुला ने धमकी देते हुए कहा कि वह रामनिवास को छोड़ेगी नहीं. उसे उस की करतूत की सजा दे कर रहेगी.

कुछ दिनों बाद रामनिवास वापस उत्तर प्रदेश चला गया, जहां सड़क दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई. उसे टक्कर मारने वाला चालक अपना वाहन भगा ले गया था. बाद में उसे पकड़ा नहीं जा सका.

पूजा और शीला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की मौत के पीछे मंजुला का हाथ था. उसी ने योजना बना कर रामनिवास को मरवाया था. इसीलिए मांबेटी ने तय कर लिया कि वे मंजुला को भी दर्दनाक मौत दे कर रहेंगी. योजना बनी तो इन लोगों ने पैसों का लालच दे कर मटौर में रहने वाले अपने परिचित मक्खन व रहूण को भी तैयार कर लिया. ये दोनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे.

दोनों ने मांबेटी से एक ही बात कही कि उन्हें इस काम के लिए पैसा नहीं चाहिए. बस वे मंजुला को मारने से पहले उस के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे.

योजना बन गई. इस के लिए लंबे फल वाला एक चाकू भी खरीद लिया गया. मंजुला का पीछा कर के उस के आनेजाने के रास्तों के बारे में पता लगा कर उसे 9 नवंबर, 2017 की शाम को उस वक्त झाडि़यों में खींच लिया गया जब वह वकील के यहां से छुट्टी कर के पैदल वहां से गुजर रही थी.

जंगल में ले जा कर मक्खन और रहूण ने उसे निर्वस्त्र कर के बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया. फिर मक्खन और रहूण के अलावा पूजा ने मंजुला के हाथपैर पकड़े. तभी शीला ने चाकुओं से लगातार वार कर के मंजुला की हत्या कर दी.

पूछताछ के दौरान ही शीला की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया था. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर तीनों अभियुक्तों को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मंजुला बदला हुआ नाम है

 

 

शराब माफिया के निशाने पर थानेदार

17 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली ने खगड़िया जिले के पसराहा थाने में तैनात युवा और तेजतर्रार थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड का विस्तृत विवरण जानने के लिए भागलपुर जिलाधिकारी और नवगछिया एसपी से रिपोर्ट मांगी है.

मृतक दरोगा आशीष कुमार के पिता गोपाल सिंह ने कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली को अपने बेटे आशीष कुमार सिंह की साजिशन हत्या किए जाने के संबंध में एक दुख भरा पत्र भेजा था. आयोग ने उन के पत्र को गंभीरता से लेते हुए यह कड़ा कदम उठाया था, इसी संबंध में दोनों अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई.

12 अक्तूबर, 2018 को पुलिस और बदमाशों के बीच हुए एक एनकाउंटर में खगड़िया के पसराहा थाना के दारोगा आशीष कुमार सिंह शहीद हो गए थे. एनकाउंटर पसराहा थाने की पुलिस और दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि और उस के गैंग के बीच हुआ था. एनकाउंटर में पुलिस की गोली से दिनेश मुनि गैंग का शातिर अपराधी श्रवण यादव मारा गया था.

इसी संबंध में मानवाधिकार आयोग ने भागलपुर डीएम और नवगछिया एसपी से घटना से संबंधित विस्तृत जानकारी मांगी थी. आयोग ने उन्हें 8 सप्ताह यानी 16 मार्च, 2019 के अंदर संबंधित कागजात उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.

घटना खगड़िया और नवगछिया जिले की सीमा से लगे बिहपुर थानाक्षेत्र के सलालपुर दियारा में घटी थी. आयोग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम की वीडियो सीडी, मजिस्ट्रैट जांच रिपोर्ट, डिटेल रिपोर्ट, एफआईआर की कौपी, घायल पुलिसकर्मी की रिपोर्ट, मृतक अपराधी श्रवण यादव का आपराधिक इतिहास, फोरैंसिक जांच रिपोर्ट, बैलेस्टिक रिपोर्ट, घटनास्थल का ब्यौरा, मृतक का फिंगरप्रिंट, जब्ती सूची आदि मांगी थी.

यही नहीं, आयोग ने सभी कागजात अंगरेजी वर्जन में देने का आदेश दिया है. आयोग इस की जांच कर रहा है. संबंधित कागजात मिलने पर आयोग नोटिस भेज कर इस मामले से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुला सकता है.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जो रिपोर्ट तलब की है, उस की कहानी कुछ ऐसे सामने आई है.

मुखबिर ने खगड़िया जिले के थाना पसराहा के प्रभारी आशीष कुमार सिंह को सेलफोन से सूचना दी थी कि दुर्दांत अपराधी दिनेशमुनि अपने गैंग और साथियों के साथ अपने गांव में छिपा है. उस ने अपने गांव तिहाय में कुछ महिलाओं को रंगरलियां मनाने के लिए बुलाया है. जल्दी की जाए तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. दिनेश मुनि पर जिले के विभिन्न थानों में लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी जैसी गंभीर और संगीन धाराओं में दरजन भर मुकदमे दर्ज थे.

सूचना मिलते ही आशीष कुमार हुए रवाना

खगडि़या जिले के अलावा राज्य के कई अन्य जिलों में भी उस के खिलाफ लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी के मुकदमे दर्ज थे. हत्या वाले मुकदमों में वह वांछित चल रहा था. पुलिस को उस की तलाश थी. पसराहा थाने में भी उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. दारोगा आशीष कुमार सिंह ने दिनेश मुनि की सुरागरसी में एक मुखबिर को लगाया था. उसी मुखबिर ने आशीष कुमार सिंह को यह सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही एसओ आशीष कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिहाय गांव के लिए रवाना हो गए. उन की टीम में ड्राइवर कुंदन यादव, सिपाही दुर्गेश सिंह, होमगार्ड अरुण मुनि और बीएमपी के जवान थे. रवाना होने से पहले यह सूचना जिले की पुलिस कप्तान मीनू कुमारी को दे दी गई थी. कप्तान मीनू ने उन्हें सावधानी से मिशन को अंजाम देने की शुभकामनाएं दी थीं.

तिहाय के करीब पहुंचने पर मुखबिर ने एसओ को फोन कर के बताया कि दिनेश मुनि और उस के साथियों को पुलिस के वहां पहुंचने की सूचना पहले ही मिल गई थी, इसलिए उस ने अपना ठिकाना बदल दिया है. अब वह सलालपुर दियारा में जा छिपा है.

यह सुन कर एसओ आशीष कुमार ने तिहाय से सलालपुर दियारा गांव की तरफ जीप मुड़वा दी. यह इलाका खगड़िया और नवगछिया के सीमावर्ती इलाके में पड़ता है.

सलालपुर दियारा में चारों ओर अंधेरा फैला था. अंधेरे को चीरती पुलिस जीप ऊबड़खाबड़ संकरे रास्ते से होती हुई सलालपुर दियारा की ओर बढ़ती जा रही थी. बदमाशों को पुलिस के आने की भनक न लगे, इसलिए पुलिस ने अपनी जीप की लाइटें बंद कर दी थीं. बीचबीच में एसओ के नंबर पर मुखबिर की काल आ रही थी. वह उसे थोड़ी और रुक जाने को कह रहे थे.

एसओ आशीष कुमार सिंह अभी थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अचानक धांय धांय की आवाज आई. बदमाशों ने पुलिस के ऊपर 3 गोलियां चलाई थीं. लेकिन तीनों गोलियां पुलिस जीप से बच कर निकल गईं. स्थिति के मद्देनजर एसओ आशीष सिंह और उन की टीम ने जीप रोक कर पोजीशन ले ली और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी.

अंधेरे में दोनों ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हो गई. अंधेरे में पुलिस को यह समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी कि बदमाश कहांकहां छिपे हैं और उन की संख्या कितनी है. अगर इस का सही अंदाजा लग जाता तो बदमाशों से मोर्चा लेना आसान हो जाता.

स्थिति भांपने के लिए आशीष सिंह जीप से नीचे उतर गए और दोनों हाथों से सर्विस रिवौल्वर थामे पोजीशन ले कर बदमाशों की ओर फायरिंग करने लगे. जवाबी काररवाई में बदमाशों की ओर से भी फायरिंग हो रही थी. उसी दौरान एसओ आशीष कुमार सिंह के सीने में 3 गोलियां जा धंसी, जिस से वह लहराते हुए जमीन पर गिर गए.

एक गोली सिपाही दुर्गेश सिंह के पैर में लगी. वह भी घायलावस्था में नीचे गिरा कर कराहने लगा. कुछ देर बाद बदमाशों की तरफ से फायरिंग बंद हो गई. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि या तो सभी बदमाश ढेर हो गए या फिर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकले.

फायरिंग बंद होते ही ड्राइवर कुंदन यादव ने जीप की लाइट औन की. तभी उस ने एसओ आशीष कुमार सिंह को खून से लथपथ जमीन पर गिरा देखा तो वह चीख पड़ा. एसओ साहब से थोड़ा आगे सिपाही दुर्गेश सिंह भी खून से लथपथ पड़ा कराह रहा था. यह देख कर होमगार्ड अरुण मुनि दौड़ा हुआ दुर्गेश की ओर बढ़ा और उसे गोद में उठा लिया.

शरीर से काफी खून बहने से एसओ आशीष सिंह की हालत गंभीर होती जा रही थी. उन के मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. ड्राइवर कुंदन यादव ने सीधे कप्तान मीनू कुमारी से बात की और उन्हें स्थिति से अवगत कराने के बाद मौके पर और फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

सूचना मिलते ही एसपी मीनू कुमारी की आंखों की नींद गायब हो गई. उन्होंने उसी वक्त यह सूचना भागलपुर जोन के आईजी सुशील मान सिंह खोपड़े, मुंगेर प्रक्षेत्र के डीआईजी जितेंद्र मिश्र, खगड़िया के डीएम अनिरुद्ध कुमार को दे दी. साथ ही जिले के विभिन्न थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

आशीष कुमार सिंह को बचाने का प्रयास

आदेश मिलते ही सभी थानेदार और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. खून से लथपथ थानेदार आशीष कुमार सिंह और घायल सिपाही दुर्गेश सिंह को जीप से भागलपुर जिला चिकित्सालय ले जाया गया था. डाक्टरों ने एसओ आशीष को देखते ही मृत घोषित कर दिया और दुर्गेश को बेहतर इलाज के लिए भरती कर लिया.

मौके पर पहुंची पुलिस ने सलालपुर दियारा में रात में ही कौंबिंग शुरू कर दी गई. मुठभेड़ के दौरान एक बदमाश श्रवण यादव मारा गया था. मौके से अत्याधुनिक हथियार के तमाम खाली खोखे मिले.

बड़ा सवाल यह था कि मुखबिर ने सलालपुर दियारा में कुख्यात बदमाश दिनेश मुनि और उस के 4-5 साथियों के छिपे होने की पक्की सूचना दी थी. मौके से केवल एक ही बदमाश की लाश बरामद हुई तो दिनेश मुनि और उस के दूसरे साथी कहां चले गए. पुलिस को लगा कि या तो बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए होंगे या घायल होने के बाद किसी डाक्टर से इलाज करा रहे होंगे.

एसपी मीनू कुमारी के दिमाग में भी यही विचार उमड़ रहा था. उन्होंने दिनेश मुनि के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए सीओ पसराहा को लगा दिया. बदमाशों को तलाशने में जुटी फोर्स ट्रैक्टर ट्रौली आदि से क्षेत्र में गश्त करने लगी. पुलिस ने पूरे दियारा को छान मारा लेकिन बदमाशों का कहीं पता नहीं लगा.

सीओ को जानकारी मिली कि मुठभेड़ के दौरान गिरोह का सरगना दिनेश मुनि और रमन यादव जख्मी हुए थे. अशोक मंडल और उस के रिश्तेदार पंकज मुनि पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब हो गए थे. पुलिस ने बिहपुर थाने में कुख्यात अपराधी दिनेश मुनि और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ आशीष कुमार सिंह को पहली बार गोली नहीं लगी थी. पिछले साल जब वह मुफस्सिल थाने में एसओ थे, तब भी एक मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी. लेकिन तब बच गए थे. आशीष कुमार सिंह जांबाज ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील व्यक्ति भी थे. उन की मां कैंसर से पीड़ित थीं. उन का इलाज कराने के लिए वह खुद उन्हें ले कर दिल्ली आतेजाते थे.

मुठभेड़ में एसओ आशीष कुमार सिंह के शहीद होने की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली तो कोहराम मच गया. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. पत्नी सरिता की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद जब आशीष का शव उन के गांव सरौजा पहुंचा तो पूरा गांव गमगीन हो गया. गांव वालों ने अपने घरों में चूल्हे नहीं जलाए.

बहरहाल, आईजी (जोन) सुशील मान सिंह खोपड़े के नेतृत्व में 2 क्यूआरटी, एसटीएफ की 3, चीता फोर्स और 5 डीएसपी को कौंबिंग व सर्च औपरेशन में लगाया गया. लेकिन थानाप्रभारी की हत्या के आरोपी दिनेश मुनि को घटना के 4 दिन बाद भी नहीं ढूंढा जा सका.

अलबत्ता पुलिस ने उस के कपड़े और मोबाइल फोन जरूर जब्त कर लिया. पुलिस ने यह काररवाई दीना चकला में रहने वाली उस की बहन की निशानदेही पर की थी.

कहानी दिनेश मुनि और थानेदार आशीष सिंह की

गौरतलब है कि पुलिस के पास दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि का एक फोटो तक नहीं था, जिस से उस का सही हुलिया पता लगाया जा सकता. बहुत मशक्कत के बाद आखिर पुलिस को दिनेश मुनि का फोटो मिल गया. दरअसल, करीब 3 साल पहले किसी मामले में बेगूसराय में दिनेश मुनि की गिरफ्तारी हुई थी. उसी दौरान उस का फोटो खींचा गया था, जो थाने में था.

पुलिस घायल दिनेश मुनि का इलाज करने वाले गांव के डाक्टर सहित उस के बहनबहनोई और मांबाप सहित आधा दरजन आश्रयदाताओं को हिरासत में ले चुकी थी. लेकिन इस के बावजूद दिनेश मुनि को गिरफ्तार नहीं किया जा सका. इस से लग रहा था कि उस का खुफिया तंत्र पुलिस के खुफिया तंत्र पर भारी पड़ रहा था.

आखिर दिनेश मुनि कौन है? वह पुलिस के लिए सिरदर्द क्यों बन गया था? उस के सिर पर किस का हाथ था, जिस की वजह से पुलिस की हर काररवाई की अग्रिम सूचना उस तक पहुंच जाती थी? थानेदार आशीष सिंह के साथ वो दूसरे थानेदार कौन थे, जो उस के गैंग के निशाने पर थे? उस के अतीत की कहानी जानने से पहले थानेदार आशीष कुमार सिंह के बारे में जान लें.

32 वर्षीय आशीष कुमार सिंह मूलरूप से सहरसा जिले के बलवाहाट के अंतर्गत सरोजा गांव के रहने वाले थे. उन के पिता गोपाल सिंह बिहार के एक जिले में थानेदार थे. गोपाल सिंह के 3 बेटों में आशीष कुमार सिंह सब से छोटे थे. पिता की तरह वह भी पुलिस में जाना चाहते थे. इस के लिए वह मेहनत करते रहे. करीब सवा 6 फीट लंबेतगड़े आशीष सन 2009 में एसआई बन गए.

विभिन्न जिलों में कुशलतापूर्वक ड्यूटी का निर्वहन करते हुए वह 4 सितंबर, 2017 को पसराहा थाने के एसओ बन कर आए. इसी दौरान उन की शादी सरिता सिंह के साथ हो गई थी. जिन से एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई.

धीरेधीरे उन की पहचान तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की बन गई थी. वह जिस थाने में तैनात होते, वहां के अपराधियों की धड़कनें बढ़ने लगती थीं. अपराधी दिनेश मुनि पसराहा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर हत्या, हत्या के प्रयास और लूट जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे. कई मामलों में वह वांछित भी था.

एसओ आशीष कुमार को लगातार सूचनाएं मिल रही थीं कि दिनेश मुनि जिले के एक कद्दावर नेता के संरक्षण में रह रहा है. उसी नेता के संरक्षण में वह बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में प्रतिबंधित शराब का अवैध तरीके से कारोबार कर रहा है. दिनेश मुनि का पता लगाने के लिए आशीष ने अपने मुखबिर उस के पीछे लगा दिए थे.

आशीष ने जब से पसराहा थाने का चार्ज लिया था, तब से अपने इलाके में शराब की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. इस से शराब माफियाओं के धंधे को काफी नुकसान पहुंच रहा था. आशीष सिंह के इस कदम से शराब माफिया उन से नाराज थे और उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे थे.

करीब 36 वर्षीय दिनेश मुनि मूलरूप से बिहार के खगड़िया जिले के तीनमुंही गांव का निवासी था. खगड़िया के तिहाय गांव में उस की ससुराल थी. सन 2006 में उस ने अपना गांव तीनमुंही छोड़ दिया था. सन 2007 से उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा और देखतेदेखते पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया.
उस पर आधा दरजन से अधिक मामले मड़ैया, पसराहा, परबत्ता के अलावा चौसा थानों में दर्ज थे. दिनेश मुनि का फंडा यह था कि वह छोटामोटा अपराध कर के छिपने के लिए अपने मूल गांव तीनमुंही चला जाता था.

दिनेश मुनि को उस के साथियों के अलावा बहुत कम लोग ही जानते थे कि वह मूलत: तीनमुंही गांव का रहने वाला है. लोग उस की ससुराल तिहाय गांव को ही उस का असली गांव समझते थे, क्योंकि दिनेश मुनि अधिकांशत: ससुराल में ही रहता था. अपराध के लिए उस ने खगड़िया का चयन किया था और छिपने के लिए अपना गांव. दिनेश मुनि का अपना गिरोह था.

उस के गिरोह में पंकज मुनि (रिश्तेदार), श्रवण यादव, अशोक मंडल, रमन यादव, संतलाल सिंह, बजरंगी सिंह, सुनील सिंह, बत्तीस सिंह, गजना, सुदामा, ननकू सिंह, मनोज सिंह भाटिया, मिथिलेश मंडल, टेपो मंडल, पृथ्वी मंडल आदि शामिल थे.

मुठभेड़ वाले दिन दिनेश मुनि सलालपुर दियारा में रात के वक्त अशोक मंडल के होटल पर रंगरलियां मनाने पहुंचा था. वहां उस के गिरोह के 9 सदस्य थे, जो 3 होटलों में रुके थे. उन के पास महिलाओं के आने की भी सूचना थी. यही सूचना मुखबिर ने पसराहा थानेदार आशीष कुमार सिंह को दी थी.

शहीद एसओ आशीष कुमार सिंह के कातिल को दबोचने के लिए पुलिस द्वारा दियारा में लगातार कौंबिंग औपरेशन चलाए जाने से दिनेश मुनि द्वारा संचालित दारू बेचने वाले लोग जिले से पलायन कर चुके थे.
बहरहाल, सलालपुर दियारा में पुलिस और दिनेश मुनि गिरोह के बीच हुई मुठभेड़ में पुलिस मुखबिर की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह जब तिहाय गांव के लिए निकले थे, तब मुखबिर को क्या पहले से ही पता था कि दियारा में क्या होना है, इसलिए गोली चलते ही वह मौके से भाग निकला था. मुखबिर के फरार होने से उन आशंकाओं को बल मिल रहा है, जिस में माना जा रहा है कि मुखबिर को सब पता था कि आगे क्या होगा और वह धोखे से थानेदार को मौत के दरवाजे तक ले गया.

थानेदार सुमन कुमार भी थे निशाने पर

फिलहाल मृतक थानेदार के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से ही इस बात का खुलासा हो सकता है कि मुखबिर कौन था, क्योंकि मुखबिर का नाम कथा लिखे जाने तक पता नहीं चल सका था. फिलहाल थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जांच चल रही है. तफ्तीश के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, उस से आशीष की हत्या के पीछे बड़ी साजिश के संकेत मिल रहे हैं. उस में शराब माफियाओं के साथसाथ कई बड़ों के नाम सामने आ रहे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह के साथ ही दूसरे थानेदार सुमन कुमार सिंह भी दिनेश मुनि गैंग के निशाने पर आ चुके हैं. यह खुलासा 17 अक्तूबर, 2018 को दिनेश मुनि, गिरोह के अपराधी पंकज मुनि की गिरफ्तारी के बाद उस के मोबाइल में सेव फोटो से पता चला.

एक अखबार में छपी खबर के साथ आशीष के साथ एसआई सुमन कुमार सिंह की तसवीर छपी थी. तसवीर में आशीष के साथ सुमन कुमार के फोटो पर लाल पेन से क्रौस बना हुआ था. पूछताछ में पंकज मुनि ने पुलिस को बताया था कि आशीष कुमार की हत्या के बाद सुमन कुमार की हत्या की योजना बनी थी लेकिन उन का स्थानांतरण हो जाने से फिलहाल वह बच गए थे.

काफी खोजबीन के बाद आखिर पूर्णिया जिले के अरजपुर भिट्ठा टोला के पास से 17 अक्तूबर, 2018 की देर रात को चौसा पुलिस ने कुख्यात अपराधी पंकज मुनि को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उस के पास से एक देसी कट्टा, 6 जिंदा कारतूस, 2 मोबाइल फोन, करीब 12 हजार रुपए नकद तथा चोरी की एक बाइक बरामद की. आशीष कुमार सिंह हत्याकांड में पंकज मुनि भी शामिल था.

पंकज मुनि के खिलाफ मधेपुरा, पूर्णिया, खगड़िया और भागलपुर जिले के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक संगीन मामले दर्ज थे.

उस से पूछताछ में पता चला कि करीब 2 महीने पहले सितंबर, 2018 में चौसा थाना क्षेत्र के चंदा गांव के चर्चित ईंट भट्ठा व्यवसायी मोहम्मद नसरुल हत्याकांड में पंकज मुनि का हाथ था. हत्या कर के वह फरार हो गया था.

अंधविश्वास में मासूम की बलि

ज्योंज्यों अंधेरा घिरता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश की परेशानी बढ़ती जा रही थी. वह कभी
दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखता तो कभी टिकटिक करती घड़ी की सुइयों को निहारने लगता. दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी जिस से मुकेश परेशान था. उस की 2 साल की बेटी कंचन अचानक गायब हो गई थी. शाम को वह घर के बाहर खेल रही थी. पर वह वहां से अचानक कहां गुम हो गई, किसी को पता न चला. यह बात 21 मार्च, 2019 की है.

उस दिन होली का त्यौहार था. नंदापुर गांव के लोग रंगों से सराबोर थे. फाग गाने वालों की टोली अपना जलवा अलग से बिखेर रही थी. कई लोग ऐसे भी थे, जो नशे में झूम रहे थे. कंचन का पिता मुकेश भी फाग गाता था. फाग गा कर मुकेश जब घर लौटा, तब उसे मासूम कंचन के गुम होने की जानकारी हुई थी. उस के बाद वह कंचन को ढूंढने निकल गया.

लेकिन उस का कुछ भी पता न चल पा रहा था. धीरेधीरे गांव में जब कंचन के गुम होने की खबर फैली तो लोग स्तब्ध रह गए. आज भी अनेक गांवों में ऐसी परंपरा है कि किसी के दुखतकलीफ में लोग एकदूसरे की मदद करते हैं. फाग गाने वाली टोलियों को जब मुकेश की बेटी के गायब होने की जानकारी मिली तो टोलियों ने फाग गाना बंद कर दिया. इस के बाद वे मुकेश के घर पहुंच गए.

घर पर मुकेश की पत्नी संध्या का रोरो कर बुरा हाल था. परिवार की महिलाएं उसे सांत्वना दे रही थीं. लेकिन संध्या का हाल बेहाल था. उस के मन में तमाम तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

उधर कंचन की खोज के लिए पूरा गांव एकजुट हो गया था. मुकेश के चाचा रामखेलावन ने 10-10 लोगों की टीमें बनाईं. चारों टीमों ने टौर्च व लालटेन की रोशनी में अलगअलग दिशाओं में कंचन की खोज शुरू कर दी. गांव के हर खेत, बागबगीचे, नदीनाले व झुरमुटों के बीच टीमों ने कंचन की खोज की लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

एक आशंका यह भी थी कि कहीं कंचन भटक कर गांव के बाहर न पहुंच गई हो और कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया हो. अत: इस दिशा में भी गांव के आसपास के जंगल व ऊंचीनीची जमीन के बीच कंचन की खोज की गई, लेकिन ऐसा कोई सबूत नही मिला. रात भर कंचन की खोज हुई. परंतु कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

जब मासूम कंचन का कुछ भी पता नहीं चला तो मुकेश अपने चाचा रामखेलावन के साथ थाना बिंदकी पहुंच गया. थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को उस ने अपनी 2 वर्षीय बेटी कंचन के लापता होने की जानकारी दे दी.

थानाप्रभारी ने कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने फतेहपुर के समस्त थानों को वायरलैस से 2 साल की कंचन के गुम होने की खबर भेजवा दी. थानाप्रभारी को लगा कि जब कंचन तलाश करने के बाद भी कहीं नहीं मिली है तो जरूर उस का किसी ने अपहरण कर लिया होगा और अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि किसी रंजिश या दूसरे किसी इरादे से किया होगा.

इस की 2 वजह थीं. पहली यह कि मुकेश कुशवाहा की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि कोई फिरौती के लिए उस की बेटी का अपहरण करे. दूसरी वजह यह थी कि 2 दिन बीत जाने के बाद भी मुकेश के पास किसी का फिरौती के लिए फोन नहीं आया था. रंजिश का पता लगाने के लिए थानाप्रभारी चंदेल, मुकेश के गांव नंदापुर पहुंचे.

वहां उन्होंने मुकेश से कुछ देर तक रंजिश के संबंध में पूछताछ की. मुकेश ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई रंजिश नहीं है. रुपयों के लेनदेन तथा जमीन से जुड़ा कोई विवाद भी नहीं है.
इस के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को शक हुआ कि कहीं मासूम का अपहरण किसी सिरफिरे या नशेबाज ने दुष्कर्म के इरादे से तो नहीं कर लिया. फिर दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी हो और शव को किसी नदीनाले या झाडि़यों में छिपा दिया हो.

इस प्रकार का शक उन्हें इसलिए हुआ, क्योंकि होली का त्यौहार था. नशेबाजी जम कर हो रही थी. हो सकता है कि किसी नशेबाज की नजर बच्ची पर पड़ी हो और वह उसे गलत इरादे से उठा कर ले गया हो. शक के आधार पर उन्होंने पुलिस टीम के साथ नदीनालों, जंगल, झाडि़यों आदि में कंचन की खोज की. लेकिन कंचन का सुराग नहीं मिला.

इधर कंचन के लापता होने से कुशवाहा परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि कंचन पता नहीं कहां और किस हाल में होगी. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों मुकेश व उस की पत्नी संध्या की चिंता बढ़ती जा रही थी.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक कंचन का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. तब मुकेश अपने सहयोगियों के साथ फतेहपुर के एसपी कैलाश सिंह से मिलने गया. लेकिन एसपी से उस की मुलाकात नहीं हो सकी. तब मुकेश ने एसपी कपिलदेव मिश्रा से मुलाकात की और अपनी व्यथा व्यक्त की.

एएसपी ने उसी समय थाना बिंदकी के थानाप्रभारी से बात की और कंचन को हर हाल में खोजने का आदेश दिया. इस के बाद थानाप्रभारी जीजान से कंचन को ढूंढने में जुट गए. उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. पुलिस टीम ने क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को उन के घरों से उठा लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन से कंचन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्हें छोड़ना पड़ा.

नाले में मिला कंचन का शव

25 मार्च, 2019 की शाम 4 बजे चरवाहे सैमसी नाले के पास बकरियां चरा रहे थे. तभी उन की निगाह नाले में उतराते हुए एक सफेद रंग के कपड़े पर पड़ी. लग रहा था उस में किसी बच्चे की लाश हो.
चरवाहे नंदापुर व सैमसी गांव के थे, अत: उन्होंने भाग कर गांव वालों को यह बात बता दी. यह खबर मिलते ही सैमसी व नंदापुर गांव के लोग नाले की ओर दौड़ पड़े. मुकेश भी बदहवास हालत में वहां पहुंचा. उसी दौरान किसी ने फोन कर के यह सूचना बिंदकी थाने में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थानाप्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.
मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आलाकत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.
हेमराज का मन न तो खेतीकिसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचारप्रसार के लिए उस ने कुछ युवकयुवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने का निश्चय कर लिया.

हर होलीदिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.
21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएंबाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

राजनीति की अंधी गली में खोई लड़की

जब मध्य प्रदेश की सत्ता भाजपा के हाथ से फिसल कर कांग्रेस की झोली में गई थी और मुख्यमंत्री कमलनाथ बने थे, तब सन्नाटा केवल राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में ही नहीं था, बल्कि संगठित और असंगठित अपराधों और अपराधियों सहित पुलिस महकमे में भी था. लोग उत्सुकता से नए मुख्यमंत्री और सरकार के मूड को ले कर बैचेन थे कि वह कैसा होगा.

मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर, जिसे मिनी मुंबई भी कहा जाता है, के चर्चित ट्विंकल हत्याकांड का मामला कमलनाथ की जानकारी में आया तो उन्होंने सख्ती दिखाते हुए पुलिस विभाग को कई नसीहतों के साथ निर्देश दिए. इसे इन निर्देशों या कमलनाथ के मूड का नतीजा ही कहा जाएगा कि 11 जनवरी को ट्विंकल के हत्यारे गिरफ्तार कर लिए गए. यह और बात है कि इस मामले की हकीकत 26 महीने बाद सामने आई.

ट्विंकल की दास्तां राजनीतिक भी है, पारिवारिक भी और सामाजिक भी, जिसे समझने के लिए कुछ महीने पहले जाना जरूरी है जिस से समझ आ जाए कि असल में हुआ क्या था और क्यों और कैसे मध्यमवर्गीय महत्त्वाकांक्षी युवतियां गलत हाथों में पड़ कर या तो अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं या फिर गंवा ही देती हैं.

कहानी ट्विंकल की

22 वर्षीय ट्विंकल डागरे खासी खूबसूरत और आकर्षक युवती थी. एलएलबी कर रही ट्विंकल महत्त्वाकांक्षी और जिद्दी भी थी जो अपनी जिंदगी से ताल्लुक रखने वाले फैसलों के लिए किसी की, खासतौर से अपने अभिभावकों की भी मोहताज नहीं रहती थी.

बाणगंगा इलाके में रहने वाले डागरे परिवार के मुखिया संजय डागरे शू स्टोर के मालिक हैं, जिस से उन्हें पर्याप्त आमदनी हो जाती है. उन की पत्नी यानी ट्विंकल की मां रीटा डागरे हालांकि गृहिणी हैं लेकिन इंदौर भाजपा महिला मोरचे से भी जुड़ी हैं. ट्विंकल का छोटा भाई अभी पढ़ रहा है.

बात 16 अक्तूबर, 2016 की है. उस दिन ट्विंकल काफी खुश थी. आमातैर पर सुबह देर से बिस्तर छोड़ने वाली ट्विंकल उस दिन जल्दी उठ गई थी और सजसंवर रही थी. उस ने तैयार हो कर दुलहन जैसा सिंगार किया और ड्रैस भी दुलहन सरीखी ही पहनी.

इस गेटअप में वह सचमुच इतनी आकर्षक लग रही थी कि उसे किसी की नजर भी लग सकती थी. दूसरे दिन करवाचौथ का त्योहार था, जिस की इंदौर में भी खासी चहलपहल थी.

ट्विंकल की शादी अभी नहीं हुई थी और हुई भी थी तो उस की जानकारी किसी को नहीं थी. करवाचौथ का व्रत आजकल अविवाहित युवतियां भी रखने लगी हैं जो एक फैशन भर है. लेकिन ट्विंकल ने सोलह सिंगार किसी खास मकसद से किए थे.

जब वह सजसंवर कर घर के बाहर जाने लगी तो बेटी को दुलहन सा सजा देख कर मां रीटा की त्यौरियां चढ़ गईं. उन्होंने तल्ख लहजे में पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

इस सवाल की उम्मीद ट्विंकल को थी, लिहाजा वह बेहद सर्द लहजे में बोली, ‘‘नाश्ता लेने जा रही हूं.’’

रीटा अब तक झल्ला चुकी थीं और काफी कुछ उन की समझ में भी आ रहा था, इसलिए वे बेटी को समझाने की गरज से बोलीं, ‘‘नाश्ता लेने जा रही हो, वह भी दुलहन बन कर.’’

मां के तेवर देख ट्विंकल को भी समझ आ गया था कि वह ऐसे मानने वाली नहीं हैं. लिहाजा वह मुस्करा कर बोली, ‘‘अरे कल करवाचौथ है, सो उस बदनावर वाले से मिलने जा रही हूं.’’

बदनावर इंदौर से 100 किलोमीटर दूर बसा एक छोटा सा कस्बा है. यहां रहने वाले एक युवक अमित से ट्विंकल की शादी तय हो चुकी थी, जो 4 महीने बाद फरवरी में होनी थी. बदनावर का नाम सुनते ही रीटा को तसल्ली हुई कि बेटी वहां नहीं जा रही, जहां की उन्हें आशंका थी, इसलिए उन्होंने उसे रोका नहीं. और फिर वह यह भी जानती थीं कि रोकने से वह रुकेगी भी नहीं.

फिर कभी नहीं लौटी ट्विंकल

यह ट्विंकल की जिंदगी का सूचनात्मक पहलू है कि वह एक मध्यमवर्गीय खातेपीते परिवार की युवती थी, लेकिन उस की जिंदगी का दूसरा पहलू राजनीतिक था. वह कोई गैरमामूली नहीं तो मामूली युवती भी नहीं थी. इंदौर में उस की अपनी अलग पहचान थी. वह एक उभरती युवा नेत्री के तौर पर पहचानी जाती थी. राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को उस में अपार संभावनाएं दिखती थीं. पहले वह भाजपा में पार्टी की प्रवक्ता थी लेकिन कुछ दिनों पहले उस ने कांग्रेस जौइन कर ली थी.

अखबारों में ट्विंकल के बयान और फोटो छपने लगे तो लोग उस में दिलचस्पी लेने लगे. हालांकि उस की चर्चा की वजह उस की खूबसूरती ज्यादा थी. इस में कोई दो राय नहीं कि राजनीति में हमेशा ही खूबसूरत युवतियों और महिलाओं की खासी पूछपरख होती रही है. ट्विंकल भी इस का अपवाद नहीं थी. अपने सौंदर्य को भुनाने का वह कोई मौका नहीं चूकती थी.

बहरहाल 16 अक्तूबर, 2016 को वह घर से निकली तो फिर कभी वापस नहीं आई. उस के जाने के बाद रीटा बेफिक्र हो गई थीं, क्योंकि अमित अच्छे और खातेपीते घर का लड़का था और हर लिहाज से ट्विंकल के लिए उपयुक्त था इसलिए उन्होंने बदनावर का नाम सुनने के बाद ट्विंकल को नहीं रोका था.

कोई वजह थी जो रीटा और उन के पति संजय चाहते थे कि ये 4 महीने जब तक बेटी की शादी न हो जाएं, ठीकठाक तरीके से गुजर जाएं. डागरे परिवार की यह काफी अहम और चिंताजनक वजह थी जिस का गहरा संबंध ट्विंकल की गुजरी जिंदगी से था.

परेशान हो गए रीटा और संजय

ट्विंकल के जाने के बाद रीटा अपने काम में लग गईं और संजय अपनी दुकान पर चले गए. शाम के बाद रात भी हो गई लेकिन बेटी वापस नहीं आई तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. कई बार उन्होंने ट्विंकल को फोन किया, लेकिन हर बार उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

ट्विंकल अकसर देर रात घर वापस लौटती थी. कई बार तो वह दूसरे दिन आती थी, लेकिन इस बाबत फोन पर मांबाप को बता जरूर देती थी. न जाने क्यों उस दिन भी उस के वक्त पर घर न लौटने पर रीटा और संजय ने कोई खास तवज्जो नहीं दी और सुबह देखेंगे, सोच कर सो गए.

दूसरे दिन सुबह दोनों को फिर बेटी की सुध आई तो उन्होंने अमित को फोन किया. क्योंकि वह उस के पास जाने की बात कह कर गई थी. संजय ने जब अमित को फोन कर ट्विंकल के बारे में पूछा तो उस का जवाब सुन कर वे चौंक उठे. अमित ने बताया कि न तो ट्विंकल बदनावर आई है और न ही उस की उस से कोई बात हुई है.

इतना सुनने के बाद संजय और रीटा को मानो सांप सूंघ गया. एक आशंका जो रहरह कर उन के दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रही थी, उस का नाम था जगदीश उर्फ कल्लू करोतिया. कल्लू के बारे में सोचसोच कर ही दोनों के हाथपैर फूलने लगे थे और दिमाग सुन्न हो चला था.

इंदौर की राजनीति में कल्लू करोतिया एक जानामाना नाम है. भाजपा का अहम चेहरा रहे कल्लू की उम्र 65 साल है. वह भाजपा से पार्षद भी रह चुका है और इंदौर भाजपा का महामंत्री भी, जो उन दिनों काफी अहम पद होता था क्योंकि भाजपा तब सत्ता में थी.

छात्र जीवन से राजनीति कर रही ट्विंकल ने जब सक्रिय राजनीति में आने का फैसला लिया तो उसे किसी ऐसे शख्स की तलाश थी जो उसे भाजपा में ला कर महत्त्वपूर्ण और जिम्मेदारी वाली पोस्ट दिला सके.

जगदीश करोतिया की भाजपा में खासी पैठ थी, क्योंकि वह रैलियों के लिए भीड़ जुटाता था. हर धरनेप्रदर्शन में आगे रहता था और पार्टी के लिए आधी रात को भी तैयार रहता था.

चूंकि रीटा भी भाजपा में थी, इसलिए ट्विंकल ने जब कल्लू को अपनी इच्छा बताई तो बुढ़ाते कल्लू की जवान हसरतें कुलबुलाईं.

बहुत जल्द ट्विंकल और कल्लू की मुलाकातें बढ़ने लगीं और कल्लू उसे सियासत का ककहरा पढ़ाने लगा. राजनीति का ककहरा पढ़ने के लिए ट्विंकल ने कल्लू को अपना गौडफादर मान लिया था.

कल्लू ने उसे जल्द ही पार्टी प्रवक्ता बनवा दिया तो ट्विंकल खुद को तजुर्बेकार और समझदार समझने लगी. नासमझ ट्विंकल को लगने लगा था कि अब बस दिल्ली दूर नहीं है. जल्द ही वह विधायक, सांसद और मंत्री भी बन सकती है, जिस का रास्ता पार्षदी से हो कर जाता है.

चिड़िया खुद दाना चुगने को बेताब थी, यह सोचसोच कर कल्लू के अंदर का हैवान अंगड़ाइयां लेने लगा था. उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि अपनी कुत्सित इच्छा पूरी कैसे करे.

भरेपूरे परिवार के मुखिया कल्लू के 3 जवान बेटे हैं और पत्नी भी. लिहाजा ट्विंकल उस के पास होते हुए भी काफी दूर थी. यह तो कल्लू जानता था कि अगर एक दफा भी ट्विंकल का नाम उस के साथ गलत तरीके से जुड़ा तो लेने के देने पड़ जाएंगे.

अब हर जगह ट्विंकल उस के साथ नजर आने लगी थी. स्कूटर पर पीछे की सीट पर सट कर बैठी ट्विंकल उसे डैडी और बड़े पापा संबोधन से बुलाती थी, तो कल्लू का दिल रोने लगता था कि ट्विंकल भी उसे औरों की तरह कल्लू कह कर क्यों नहीं बुलाती.

ट्विंकल अब भाजपा के कार्यक्रमों में भाग लेने लगी थी और बड़े नेताओं जैसे नाजनखरे भी दिखाने लगी थी. इंदौर की उभरती नेत्रियों की लिस्ट में अब उस का नाम भी शुमार होने लगा था.

संजय और रीटा अपनी बेटी की तरक्की से खुश थे और उस पर फख्र भी करने लगे थे. उन्हें उम्मीद हो चली थी कि ट्विंकल एक दिन बड़ा मुकाम हासिल कर उन का नाम रोशन करेगी.

इधर कल्लू और ट्विंकल के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, यह कोई नहीं जानता था. दूसरे मामलों की तरह इस बेमेल प्यार की शुरुआत कैसे हुई, इस की किसी को हवा भी नहीं लगी. ट्विंकल दीवानियों की तरह कल्लू पर मरने लगी थी और उस से शादी करने की जिद भी पकड़ बैठी थी.

ट्विंकल ने जो मां को बताया

इस वाकये का दूसरा पहलू रीटा की जुबानी मानें तो यह है कि अब से (हादसे से) कोई 4 साल पहले कल्लू ने धोखे से ट्विंकल का बलात्कार किया था. यह बात खुद ट्विंकल ने उन्हें बताई थी.

ट्विंकल के मुताबिक एक दिन कल्लू उसे दिलीप सिंह कालोनी के एक फ्लैट में ले गया था. वहां शिकंजी में नशीला पदार्थ पिलाने के बाद वह बेहोश हो गई. जब ट्विंकल होश में आई तो उस के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था. तब वह 18 साल की थी. होश में आने पर ट्विंकल को समझ आ गया कि कल्लू उर्फ डैडी उर्फ बड़े पापा ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा है.

राजनीति में सख्त तेवर दिखाती रहने वाली ट्विंकल ने इस पर कल्लू से झगड़ा किया तो कल्लू पर कोई असर नहीं हुआ, जो सामाजिक मनोविज्ञान का उस से बड़ा ज्ञाता था. कल्लू को पता था कि अव्वल तो कहीं मुंह न दिखा पाने वाली ट्विंकल अपने बलात्कार का कहीं, खासतौर से घर पर जिक्र नहीं करेगी और खुदा न खास्ता कर भी देगी तो इज्जत के चलते संजय और रीटा रिपोर्ट दर्ज नहीं कराएंगे.

कल्लू का अंदाजा सटीक निकला. डागरे दंपति ने उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई क्योंकि रीटा बेहतर जानती थीं कि राज भाजपा का है इसलिए कल्लू का कुछ नहीं बिगड़ेगा.

ट्विंकल कुछ दिन गुमसुम रही लेकिन उस में आत्मविश्वास मानो कूटकूट कर भरा था, इसलिए उस के दम पर जल्द ही फिर से राजनीति के मैदान में आ गई. ट्विंकल को समझ आ गया था कि बेवजह का हल्ला मचाने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.

उस ने बजाय कल्लू से नाता तोड़ने के इस रिश्ते में और गाढ़ा रंग भरना शुरू कर दिया. अब आए दिन दोनों हमबिस्तर होने लगे. फर्क सिर्फ इतना आया था कि अब पहले की तरह कल्लू को कथित रूप से ट्विंकल को बेहोशी की दवाई देने की जरूरत नहीं पड़ती थी, उलटे ट्विंकल अपनी अदाओं और हरकतों से उसे मदहोश करने लगी थी.

राजनीति में ऐसा होना कोई नई या ढकीमुंदी बात नहीं है, लेकिन ट्विंकल के मन में कुछ और ही था. इसलिए अब उस का कल्लू के घर आनाजाना बढ़ गया था. कल्लू भी खुश था कि कुछ नहीं बिगड़ा और खुद ट्विंकल पके आम की तरह उस की गोद में आ गिरी.

बहुत जल्द ही कल्लू के तीनों बेटों और पत्नी को भी मालूम हो गया कि ट्विंकल और कल्लू के बीच एक नाजायज रिश्ता कायम हो चुका है और कल्लू अब पूरी तरह ट्विंकल की गिरफ्त में आ चुका है. हल्ला तब मचा, जब एक दिन ट्विंकल ने कल्लू से शादी करने का फैसला सुना दिया. इस पर कल्लू के घर इतना कोहराम मचा कि वह घबरा उठा.

उस दिन कल्लू की पत्नी और ट्विंकल के बीच जम कर झगड़ा हुआ और इतना हुआ कि कल्लू की पत्नी ने कपड़े धोने वाली मोगरी से ट्विंकल की धुनाई कर डाली. यह वीभत्स और हिंसक नजारा देख कल्लू के बेटे अजय की पत्नी बेहोश हो गई थी.

ट्विंकल को चोट ज्यादा लगी थी इसलिए कल्लू ने अस्पताल ले जा कर उस का इलाज करवाया और उसे समझाबुझा कर जैसेतैसे सिचुएशन मैनेज कर ली. लेकिन इस पके नेता को इतना तो समझ आ गया था कि ट्विंकल अब अपनी पर उतारू हो आई है और आसानी से मानेगी नहीं.

अब कल्लू ट्विंकल से छुटकारा पाने के लिए छटपटा रहा था और ट्विंकल थी कि किसी प्रेत की तरह उस के घर की मुंडेर पर विराजमान हो चली थी, जिसे अब न नाम की परवाह थी और न ही बदनामी की चिंता. यह सब चिंता उस ने कल्लू के पाले में डाल दी थी.

इसी दौरान ट्विंकल ने बदनावर में रहने वाले अमित से सगाई कर ली थी, जिस से कल्लू और उस के परिवार ने चैन की सांस ली थी. लेकिन उन की यह गलतफहमी 16 अक्तूबर, 2016 को तब चूर हो गई जब ट्विंकल सुबहसुबह उन के यहां फिर आ धमकी.

यह ट्विंकल की दीवानगी थी या प्रतिशोध था. उस ने कल्लू यानी जगदीश के नाम का टैटू हाथ पर गुदवा लिया था. जाहिर है दोनों परिवारों में कलह और तनाव भी था. कह सकते हैं कि अब कुछ भी छिपा नहीं रह गया था. पर बात अभी तक दुनिया के सामने नहीं आई थी लेकिन घायल नागिन की तरह फुफकार रही ट्विंकल से कल्लू का परिवार खौफ खाने लगा था.

दृश्यम से ली प्रेरणा

ट्विंकल नाम के खौफ से छुटकारा पाने के लिए करोतिया परिवार में लंबीलंबी मीटिंगें हुईं, जिन में यह तय किया गया कि पानी चूंकि अब सिर और घर के ऊपर से गुजर चुका है, इसलिए कुछ करना चाहिए.

जगदीश करोतिया के 3 बेटे हैं. सब से बड़ा विजय 38 साल का, मंझला अजय 31 साल और सब से छोटा विजय 26 साल का है. करोतिया परिवार बौखलाहट में कुछ भी करने को तैयार था.

साल 2016 के शुरुआत में ट्विंकल ने अजय को फांसा था या अजय ने ट्विंकल को, यह कहना तो मुश्किल है लेकिन दोनों काफी नजदीक आ गए थे. अजय और ट्विंकल के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगी थीं और दोनों ने गुपचुप मंदिर में शादी भी कर ली थी. इस के बाद भी ट्विंकल कल्लू से भी शादी करने की जिद पकड़े बैठी थी.

यह वाकई हैरानी और दिलचस्पी की बात है कि ट्विंकल कल्लू के बाद उस के बेटे अजय से भी रिश्ता जोड़ बैठी थी. अब अगर अजय को उस का पति मानें तो कल्लू उस का ससुर हुआ, लेकिन ट्विंकल को शरमोहया या रिश्तेनातों की परवाह नहीं रह गई थी.

वह तो किसी भी कीमत पर कल्लू से बदला लेना चाहती थी और करोतिया परिवार में उस की वजह से पसरती कलह से उसे जो खुशी मिलती थी, शायद ही वह उसे शब्दों में बयां कर पाती.

ट्विंकल से छुटकारा पाने और बाद में बचने की साजिश रच रहे करोतिया परिवार के मझले बेटे अजय ने ट्विंकल को इस हद तक शीशे में उतार लिया था कि उस ने एक बार अजय को मैसेज किया था कि वह अपने मांबाप (रीटा और संजय) से तंग आ चुकी है और इस दुनिया से जा रही है.

जाहिर था कलह डोगरे परिवार में भी पसरी हुई थी. लेकिन हालत ऐसी थी कि हर कोई अपनी इज्जत देख रहा था, ट्विंकल पर किसी का जोरनहीं चल रहा था. कल का दबंग कल्लू अब चूहे की तरह भाग रहा था और ट्विंकल किसी बिल्ली की तरह उस का शिकार करते मनोरंजक और हिंसक खेल खेल रही थी.

तीनों बेटों और कल्लू ने आखिरी फैसला यह लिया कि अब ट्विंकल से छुटकारा पाने का एकलौता उपाय उसे हमेशा के लिए सुला देना है. इस के बाद उन्होंने अजय देवगन अभिनीत ‘दृश्यम’ फिल्म कई बार देखी, जिस से ट्विंकल का कत्ल कर आसानी से बचा जा सके.

कैसे हुई ट्विंकल की हत्या और किस नाटकीय तरीके से ये लोग पकड़े गए, यह जानने से पहले वापस 16 अक्टूबर 2016 की तरफ रुख करना जरूरी है.

जब 17 अक्तूबर को भी ट्विंकल वापस नहीं लौटी और अमित ने भी साफ कर दिया कि ट्विंकल ने उस से कोई संपर्क नहीं किया था, तो संजय और रीटा समझ गए कि वह कल्लू के यहां गई होगी. जिसके बेटे अजय के उकसाने पर वह उन के ही खिलाफ एक बार रिपोर्ट दर्ज करा चुकी थी.

बेटी की चिंता में गुजरे कल की बातें भूल कर 18 अक्तूबर, 2016 को दोनों ने बाणगंगा थाने जा कर ट्विंकल की गुशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. दोनों ने कल्लू और उस के बेटों अजय व विजय पर ट्विंकल के अपहरण का शक जाहिर किया. लेकिन उम्मीद के मुताबिक पुलिस वालों ने कल्लू के रसूख का लिहाज किया और सिर्फ गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर डागरे दंपति को चलता कर दिया.

गरमाई राजनीति

जब पुलिस ने कल्लू और उस के बेटों के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो संजय और रीटा को लगने लगा कि उन की बेटी जरूर किसी अनहोनी का शिकार हो गई है.

पुलिस वालों ने मामले को दबाने की कोशिश की, लेकिन एक कांग्रेसी नेत्री के गायब होने की खबर पर न केवल इंदौर बल्कि पूरे मध्य प्रदेश की राजनीति गरमाने लगी. तो दिखावे के लिए कल्लू को थाने बुला कर पूछताछ की गई.

कल्लू ने ट्विंकल के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि वह तो उस की बेटी जैसी है, जिसे उस ने ही राजनीति में अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया है तो वह क्यों उस का अपहरण करेगा, जबकि गायब होने के पहले ट्विंकल हर समय उस के साथ रहती थी. पुलिस ने अपना काम कर दिया लेकिन कांग्रेसी जब तब इस मुद्दे को उछालते रहे. तब पुलिस ने एसआईटी का गठन कर डाला लेकिन वह भी कछुए की चाल से काम करती रही.

इसी तरह के होहल्ले में 28 महीने गुजर गए, लेकिन ट्विंकल की गुमशुदगी की गुत्थी नहीं सुलझ रही थी.

पुलिस का शक ट्विंकल के मंगेतर अमित पर भी गया था और रीटा और संजय पर भी, क्योंकि ट्विंकल ने एक बार उन के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी.

नवंबर दिसंबर, 2018 में विधानसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेसियों ने ट्विंकल की गुमशुदगी का मामला उठाते हुए कल्लू पर निशाना साधा था.

पर पुलिस कल्लू को बचाने की कोशिश में लगी रही. मुख्यमंत्री की कुरसी संभालते ही जब मामला कमलनाथ की जानकारी में यह मामला आया तो उन्होंने पुलिस विभाग को निर्देश दिए कि ट्विंकल वाले मामले में जल्दी ठोस काररवाई की जाए.

होनहार और समझदार पुलिस वाले समझ गए कि अब उन्हें क्या करना है और उन्होंने कमलनाथ की मंशा के मुताबिक ट्विंकल के हत्यारों को पकड़ भी लिया, जिस से 11 जनवरी को सूबे की सियासत कड़कड़ाती सर्दी में गरमा उठी.

परदा गिरा या उठा

डीआईजी हरिनारायण चारी मिश्रा ने 11 जनवरी को एक पत्रकारवार्ता में खुलासा किया कि ट्विंकल डागरे के हत्यारे पकड़ लिए गए हैं, जिन के नाम जगदीश करोतिया उर्फ कल्लू पहलवान, उस के बेटे अजय, विजय और विनय के अलावा 5वां आरोपी नीलेश कश्यप उर्फ नीलू है.

पुलिसिया पूछताछ में अजय ने स्वीकार लिया कि उस के पिता और ट्विंकल के नाजायज ताल्लुकात थे और ट्विंकल कल्लू के साथ रहने की जिद पकड़े हुई थी.

अजय के मुताबिक इस बात को ले कर घर में कलह होने लगी थी और पिता का पौलिटिकल कैरियर भी प्रभावित हो रहा था. लिहाजा इन सभी ने ट्विंकल को हमेशा के लिए रास्ते से हटा देने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक 16 अक्तूबर, 2016 की सुबह ट्विंकल को घर बुलाया गया. घर से अजय उसे एमआर10 स्थित नीलेश के खेत पर ले गया. यहां कल्लू ने ट्विंकल को समझाने की कोशिश की. इस पर ट्विंकल ने बगैर घबराए कल्लू को मुंहतोड़ जवाब यह दिया कि यह बात पहले क्यों नहीं सोची थी.

इस पर गुस्साए कल्लू ने एक जोरदार थप्पड़ ट्विंकल के गाल पर जड़ दिया और इस के तुरंत बाद ही अजय ने रस्सी से उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद ट्विंकल हमेशा के लिए शांत हो गई.

इन हत्यारों का इरादा ट्विंकल की लाश को वहीं दफन करने का था, लेकिन नीलेश डर गया और उस ने अपने खेत में लाश दफनाने से मना कर दिया. इस के बाद तीनों बापबेटे ट्विंकल की लाश को कपड़े में लपेट कर कार की डिक्की में डाल कर अपने घर ले गए.

अगले दिन तड़के ये सभी ट्विंकल की लाश को अवंतिका नगर स्थित एक अगरबत्ती के कारखाने के पास खाली प्लौट पर ले गए. यहां कल्लू ने नगर निगम के कर्मचारियों से कहा कि एक पार्षद का कुत्ता मर गया है, उसे दफनाना है इसलिए गड्ढा खोदो. चूंकि कल्लू खुद पार्षद रह चुका था, इसलिए उस की नगरनिगम में अच्छी जानपहचान और दबदबा था. कर्मचारियों ने उस के कहने पर गड्ढा खोद दिया.

इन लोगों ने ट्विंकल की लाश इस गड्ढे में दफना दी और ऊपर से घासफूस और कचरा डाल कर उसे जला दिया. फिर 2 दिन बाद इन्होंने ट्विंकल की हड्डियां नाले में बहा दीं.

कहीं कोई कमी न रह जाए, इसलिए दृश्यम फिल्म की ही तर्ज पर ट्विंकल का मोबाइल बदनावर ले जा कर फेंक दिया, जहां उस की आखिरी लोकेशन मिली भी थी.

अब पुलिस सूखी मिट्टी में सबूत ढूंढ रही है. ट्विंकल का ब्रेसलेट और बिछुए जब्त कर लिए गए हैं. इस मामले में 200 के लगभग लोगों से पूछताछ की गई.

अब पुलिस लाख बार अपनी पीठ थपथपाती रहे, लेकिन पुलिस महकमे में पसरा भ्रष्टाचार ही इस मामले से उजागर हुआ है. अगर पुलिस वालों ने यही फुरती 18 अक्तूबर, 2016 को दिखाई होती तो लगता कि पुलिस वक्त पर भी काररवाई करती है.

रीटा अब मान रही हैं कि उन्होंने ट्विंकल के दुष्कर्म की रिपोर्ट न लिखा कर गलती की थी. इस गलती की सजा ट्विंकल ने तो मर कर भुगती और अब वे भी भुगत रही हैं.

खुद को बचाने के लिए मार दिया दोस्त को

कंधे पर बैग टांग कर घर से निकलते हुए राजा ने मां से कहा कि वह 2 दिनों के लिए बाहर जा रहा है तो मां ने पूछा, ‘‘अरे कहां जा रहा है, यह तो बताए जा.’’ लेकिन जब बिना कुछ बताए ही राजा चला गया तो माधुरी ने झुंझला कर कहा, ‘‘अजीब लड़का है, यह भी नहीं बताया कि कहां जा रहा है?’’

मीरजापुर की कोतवाली कटरा के मोहल्ला पुरानी दशमी में अशोक कुमार का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 4 बेटों में राजन उर्फ राजा सब से छोटा था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. अशोक कुमार के परिवार का गुजरबसर रेलवे स्टेशन पर चलने वाले खानपान के स्टाल से होता था.

अशोक कुमार के 2 बेटे उन के साथ ही काम करते थे, जबकि 2 बेटे गोपाल और राजा मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर स्थित होटल जननिहार में काम करते थे. चूंकि मीरजापुर और मुगलसराय स्टेशन के बीच बराबर गाडि़यां चलती रहती हैं, इसलिए उन्हें आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

राजा 2 दिनों के लिए कह कर घर से गया था, जब वह तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो घर वालों ने सोचा कि किसी काम में लग गया होगा, इसलिए नहीं आ पाया. लेकिन जब चौथे दिन भी वह नहीं आया तो घर वालों को चिंता हुई. दरअसल इस बीच उस का एक भी फोन नहीं आया था. घर वालों ने फोन किया तो राजा का फोन बंद था. जब राजा से बात नहीं हो सकी तो उस की मां माधुरी ने उस के सब से खास दोस्त रवि को फोन किया. उस ने कहा, ‘‘राजा दिल्ली गया है. मैं भी इस समय बाहर हूं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था. राजा का फोन बंद था, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती थी. उस के दोस्त रवि से जब भी राजा के बारे में पूछा जाता, वह खुद को शहर से बाहर होने की बात कह कर राजा के बारे में कभी कहता कि इलाहाबाद में है तो कभी कहता फतेहपुर में है. अंत में उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

जब राजा का कहीं पता नहीं चला तो परेशान अशोक कुमार मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर कोतवाली कटरा पहुंचे और राजा के गायब होने की तहरीर दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी.

कोतवाली पुलिस ने गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन काररवाई कोई नहीं की. इस के बाद अशोक कुमार 26 अक्तूबर को समाजवादी पार्टी के युवा नेता और सभासद लवकुश प्रजापति के अलावा मोहल्ले के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर मीरजापुर के एसपी अरविंद सेन से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई. अशोक कुमार की बात सुन अरविंद सेन ने तत्काल कटरा कोतवाली पुलिस को काररवाई का आदेश दिया. कोतवाली पुलिस ने राजा के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्त रवि से पूछताछ करनी चाही, लेकिन वह घर से गायब मिला. अब तक राजा को गायब हुए 10 दिन हो गए थे. रवि घर पर नहीं मिला तो पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया, क्योंकि उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया था.

पुलिस की लापरवाही से तंग आ कर बेटे के बारे में पता करने के लिए अशोक कुमार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला न्यायालय तक पहुंचा तो पुलिस ने तेजी दिखानी शुरू की. 28 अक्तूबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि और उस के पिता को एसपी औफिस के पास एक मिठाई की दुकान से पकड़ कर कोतवाली लाया गया. लेकिन उन से की गई पूछताछ में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. इसी तरह अगले दिन भी हुआ. संयोग से उसी बीच एसपी अरविंद सेन ही नहीं, कोतवाली प्रभारी का भी तबादला हो गया. मीरजापुर जिले के नए एसपी कलानिधि नैथानी आए. दूसरी ओर कटरा कोतवाली प्रभारी की जिम्मेदारी इंसपेक्टर अजय श्रीवास्तव को सौंपी गई. अशोक कुमार 9 नवंबर को नए एसपी कलानिधि नैथानी से मिले. एसपी साहब ने तुरंत इस मामले में काररवाई करने का आदेश दिया. उन्हीं के आदेश पर कोतवाली प्रभारी ने अपराध संख्या 1232/2016 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

इस घटना को चुनौती के रूप में लेते हुए एसपी कलानिधि नैथानी ने कोतवाली प्रभारी कटरा, प्रभारी क्राइम ब्रांच स्वाट टीम एवं सर्विलांस को ले कर एक टीम गठित कर दी. इस टीम ने मुखबिरों द्वारा जो सूचना एकत्र की, उसी के आधार पर 14 नवंबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि कुमार को मीरजापुर के नटवां तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस से राजा के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के गायब होने के पीछे की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस वाले जहां हैरान रह गए, वहीं रवि के पकड़े जाने की खबर सुन कर कोतवाली आए राजा के घर वाले रो पड़े. क्योंकि उस ने राजा की हत्या कर दी थी. उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना नरसैना के गांव रूखी के रहने वाले नरेश कुमार पीएसी में होने की वजह से मीरजापुर में परिवार के साथ रहते हैं. वह पीएसी की 39वीं वाहिनी में स्वीपर हैं. रवि कुमार उन्हीं का बेटा था. उस की दोस्ती राजा से हो गई थी, इसलिए कभी वह उस से मिलने मुगलसराय तो कभी उस के घर आ जाया करता था. दोनों में पक्की दोस्ती थी.

रवि का एक चचेरा भाई दीपेश उर्फ दीपू फिरोजाबाद के टुंडला की सरस्वती कालोनी में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहता था. वह वहां दर्शनपाल उर्फ जेपी की गाड़ी चलाता था. जेपी की बहन राजमिस्त्री का काम करने वाले प्रवीण कुमार से प्यार करती थी. यह जेपी को पसंद नहीं था. उस ने बहन को समझाया . बहन नहीं मानी तो प्रेमी से उसे जुदा करने के लिए उस ने प्रवीण कुमार को ठिकाने लगाने का मन बना लिया.

यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने ड्राइवर दीपेश उर्फ दीपू को साथ मिलाया और 13 अक्तूबर, 2016 को बहन के प्रेमी प्रवीण कुमार को अगवा कर लिया. दोनों उसे शहर से बाहर ले गए और गोली मार कर हत्या कर दी. दोनों के खिलाफ इस हत्या का मुकदमा थाना टुंडला में दर्ज हुआ. चूंकि इस मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट भी लगा था, इसलिए पुलिस दोनों के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. दर्शनपाल उर्फ जेपी तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपेश उर्फ दीपू फरार चल रहा था. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी. पुलिस दीपेश को तेजी से खोज रही थी. इस स्थिति में पुलिस से बचने के लिए वह मीरजापुर आ गया था. टुंडला में घटी घटना के बारे में उस ने चचेरे भाई रवि को बता कर कहा, ‘‘रवि, मैं बुरी तरह फंस गया हूं. अगर तुम मेरी मदद करो तो मैं बच सकता हूं.’’

इस के बाद राजा और दीपेश ने योजना बनाई कि किसी ऐसे आदमी को खोजा जाए, जिसे टुंडला ले जा कर हत्या कर के उस की लाश को जला दिया जाए और लाश के पास दीपेश अपनी कोई पहचान छोड़ दे, जिस से पुलिस समझे कि लाश दीपेश की है और उस की हत्या हो चुकी है. इस के बाद पुलिस उस का पीछा करना बंद कर देगी.

जब ऐसे आदमी की तलाश की बात आई तो रवि को अपने दोस्त राजा उर्फ राजन की याद आई. क्योंकि राजा का हुलिया दीपेश से काफी मिलताजुलता था. फिर क्या था, दोनों ने राजा को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली, उसी योजना के तहत उस ने 18 अक्तूबर को राजा को फोन कर के कहा, ‘‘राजा, हम लोगों ने किराए पर एक गाड़ी की है, जिस से कल यानी 19 अक्तूबर को दिल्ली घूमने चलेंगे. मेरा चचेरा भाई दीपेश भी आया हुआ है, वह भी साथ चलेगा. मैं चाहता हूं कि तुम भी चलो.’’

राजा तैयार हो गया तो रवि ने 19 अक्तूबर, 2016 को पीएसी कालोनी के एक परिचित की गाड़ी बुक कराई और राजा को साथ ले कर दिल्ली के लिए चल पड़ा. योजना के अनुसार रास्ते में पैट्रोल खरीद लिया गया. इस के बाद उन्होंने बीयर खरीदी और राजा को जम कर पिलाई. वह नशे में हो गया तो रात 11 बजे के करीब फिरोजाबाद के थाना पचोखरा के गांव सराय नूरमहल और गढ़ी निर्भय के बीच सुनसान स्थान पर पेशाब करने के बहाने गाड़ी रुकवाई और राजा को उतार कर मारपीट कर पहले उसे बेहोश किया, उस के बाद पैट्रोल डाल कर जला दिया.

जब उन्हें विश्वास हो गया कि राजा मर गया है तो पहचान के लिए दीपेश ने अपना जूता राजा की लाश के पास रख दिया, जिस से बाद में उस लाश की पहचान उस की लाश के रूप में हो. इस के बाद दीपेश ने फिरोजाबाद पुलिस को मोबाइल से फोन कर के कहा, ‘‘मैं दीपेश उर्फ बाबू बोल रहा हूं. 3-4 बदमाश मेरा पीछा कर रहे हैं. मुझे बचा लीजिए अन्यथा ये मुझे मार डालेंगे.’’

जिस जगह पर रवि और दीपेश ने राजा को जलाया था, दीपेश का घर वहां से करीब 8 किलोमीटर दूर था. दीपेश ने इस जगह को यह सोच कर चुना था, जिस से पुलिस को लगे कि वह चोरीछिपे अपने गांव आया था. बदमाशों को पता चल गया तो उन्होंने उसे मार डाला. पुलिस को फोन कर के रवि और दीपेश फरार हो गए. जबकि पुलिस सर्विलांस के माध्यम से लोकेशन के आधार पर उन की तलाश में मीरजापुर से फिरोजाबाद तक उन के पीछे लगी थी. दीपेश तो फरार हो गया, लेकिन रवि मीरजापुर तो कभी सोनभद्र तो कभी सिगरौली जा कर छिपा रहा. आखिर ज्यादा दिनों तक वह पुलिस की नजरों से बच नहीं पाया और 14 नवंबर को उसे पकड़ लिया गया.

पूछताछ के बाद रवि की निशानदेही पर पुलिस ने पैट्रोल का डिब्बा, वह गाड़ी जेस्ट कार संख्या यूपी 63जेड 8586, जिस से वे राजा को ले गए थे, बरामद कर ली. इस के बाद उसे उस स्थान पर भी ले जाया गया, जहां उस ने दीपेश के साथ मिल कर राजा को जलाया था. राजा के पिता अशोक कुमार भी साथ थे, इसलिए उन्होंने राजा के अधजले कपड़ों को पहचान लिया था. पुलिस ने रवि को प्रैसवार्ता में पेश किया, जहां उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या की सारी कहानी सुना दी.

घटना का खुलासा होने के बाद कोतवाली पुलिस ने राजा उर्फ राजन की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर आरोपी रवि को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दीपेश उर्फ दीपू की तलाश में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू कर दिए तो दबाव में आ कर उस ने फिरोजाबाद की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया था.

सोना निकालने के लिए सांप का सहारा

उत्तर प्रदेश के जिला मीरजापुर स्थित विंध्याचल देवी का मंदिर विख्यात है. यहां साल के बारहों महीने लाखों की संख्या में देश के कोनेकोने से श्रद्धालु आते हैं. दूर से आने वाले श्रद्धालु यहां स्थित होटलों, लौज आदि में ठहरते हैं तो कुछ यहां के पुरोहितों से ले कर अपने जानपहचान वालों या फिर ऐसे लोगों के यहां भी ठहर जाते हैं, जो पैसे ले कर कमरा आदि मुहैया कराते हैं.

रोज की भांति 22 जुलाई, 2017 को विंध्याचल के कंतित निवासी सुराज कुमार पांडेय के घर वाले रात का खाना खा कर रात 10 बजे के करीब सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी.

दरवाजे की कुंडी बजने पर सुराज ने छोटे बेटे आकाश को आवाज दी, ‘‘बेटा आकाश, देखो तो दरवाजे पर कौन आया है. कहीं कोई यजमान तो नहीं है.’’ सुराज भी सेवा शुल्क ले कर यजमान को अपने यहां ठहरा लेते थे.

पिता की बात सुन कर आकाश दरवाजे के पास पहुंचा. उस ने दरवाजा खोला तो बाहर कुछ लोग खड़े थे, जिन्हें वह आदरपूर्वक अंदर ले आया. तब तक पीछे से सुराज भी वहां आ गए थे. उन लोगों में से एक को देखते ही उन्होंने कहा, ‘‘अरे भाई नन्हकू, आप इतनी रात को अचानक? सब ठीक तो है न…’’

नन्हकू सुराज की बहन के देवर का दोस्त था. सुराज अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाए थे कि नन्हकू ने कहा, ‘‘हां भाई, सब ठीकठाक है.’’

फिर वह अपने साथ आए लोगों की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये हमारे मेहमान हैं. सोचा कि इन्हें मां विंध्यवासिनी के दर्शन करा दूं. इधर आया तो सोचा आप से भी मिलता चलूं.’’

‘‘यह तो आप ने बड़ा अच्छा किया जो चले आए.’’ इतना कह कर सुराज उन लोगों के भोजन आदि की व्यवस्था में जुट गए.

जब सभी ने भोजन कर लिया तो उन के सोने की व्यवस्था करा कर सुराज भी उन्हीं के बगल के कमरे में सो गए.

रात का दूसरा पहर शुरू हुआ होगा कि सुराज के परिचित नन्हकू के साथ आया एक आदमी अचानक उठ कर बैठ गया. अपनी नजर को इधरउधर घुमाते हुए वह कुछ बुदबुदाने लगा. फिर कमरे से बाहर आ कर टहलने लगा. घर आए मेहमान को आधी रात को टहलता देख कर सुराज जाग गए. उस के पास आ कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ, आप अभी तक सोए नहीं हैं. कोई बात है क्या या पानी वगैरह चाहिए?’’

‘‘बात है, तभी तो मेरी नींद उड़ गई है.’’ उस आदमी ने कहा.

‘‘क्या बात है?’’ सुराज ने व्यग्रता से पूछा.

‘‘बताता हूं. दिल थाम कर रहिएगा, क्योंकि सुनेंगे तो आप भी दंग रह जाएंगे. आप को भरोसा नहीं होगा, लेकिन भरोसा करना होगा. क्योंकि मेरी इंद्रियां जो कह रही हैं, वह शत प्रतिशत सच है.’’ उस आदमी ने कहा.

इस के बाद सुराज का भी जी घबराने सा लगा कि आखिर ऐसी कौन सी बात है, जो यह आधी रात के बाद उठ कर बैठ गया और दिल थाम कर रखने को कह रहा है.

बहरहाल, अभी वह इन्हीं खयालों में खोए थे कि उस आदमी की आवाज ने उन के खयालों को भंग कर दिया. वह सुराज की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘सुराजजी, आप के मकान के नीचे सोना है सोना. और इसे थोड़ी मेहनत कर के पाया जा सकता है.’’

‘‘सोना…क…क्….क्या कहा आप ने? सोना है?’’

सोना होने की बात सुन कर सहसा सुराज आश्चर्यचकित हो उठे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस घर में वह बरसों से रहते आ रहे हैं, उस के नीचे सोना है.

बहरहाल, सोना होने की बात सुन कर सुराज के मन में भी लालच आ गया और वह हकलाती आवाज में पूछ बैठे, ‘‘भाई सोना है तो वह कहां है और कैसे मिलेगा?’’

‘‘बताता हूं भाई, सब बताता हूं.’’ उस ने कहा, ‘‘ज्यादा बेचैन हो रहे हो तो सुनो, सोना मकान के नीचे है. अगर इसे नहीं निकाला गया तो परिवार में कोई अनहोनी हो सकती है. इसलिए उस का यहां से निकाला जाना बहुत जरूरी है. क्योंकि धन का स्थान तिजोरी में होता है, न कि जमीन में.’’

इस के बाद वह आदमी आंखें बंद कर के ध्यानमग्न हो गया. सुराज उस के पास खड़े थे. कुछ देर बाद आंखें खोल कर उस ने कहा, ‘‘जानते हो, मकान के नीचे कितना सोना है? पूरे 5 किलोग्राम की सिल्ली है, जिसे अगर नहीं निकाला गया तो आप लोगों के जीवन पर संकट आ सकता है.’’

5 किलोग्राम सोने की बात सुन कर सुराज बहुत खुश हुए. वह उतावलेपन में उन्होंने कहा, ‘‘बताओ वह सोना निकलेगा कैसे?’’

सुराज की बात सुन कर उस आदमी ने कहा, ‘‘इस के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सब से उपयुक्त होगा. उसी समय खुदाई करनी होगी. हां, एक जरूरी बात है. इस के एवज में आप को 7 लाख रुपए खर्च करने होंगे.’’

7 लाख रुपए खर्च करने की बात सुन कर सुराज थोड़ा सशंकित हुए. लेकिन बात 5 किलोग्राम सोने की थी, इसलिए उस के आगे 7 लाख रुपए की रकम कुछ भी नहीं थी, सो उन्होंने तुरंत हां कह दी, तब इस के लिए अगले दिन यानी 23 जुलाई की रात तय कर दी गई.

अगले दिन रात होने पर जब सोना निकालने के लिए घर में खुदाई की तैयारी होने लगी तो सुराज ने नन्हकू से इस विषय पर कुछ बात की तो वह उन्हें कुछ दूर ले जा कर उन के कानों में जो कहा, उस के बाद सुराज ने सहमति में सिर हिला दिया.

सुराज की मौजूदगी में आधी रात के बाद मकान के आंगन में 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा गया. गड्ढा खुद जाने के बाद उस तथाकथित तांत्रिक ने सुराज से एक बाल्टी पानी लाने को कहा. जब वह पानी लेने चले गए तो उस ने लोगों की नजरें बचा कर एक नारियल और पीतल की सिल्लियों के साथ एक सांप को उस गड्ढे में डाल दिया.

कुछ देर में सुराज पानी ले कर आए तो उस ने उन के हाथ से पानी की बाल्टी ले कर पानी गड्ढे में उड़ेल दिया. इस के बाद उस ने सुराज से गड्ढे से मिट्टी निकालने को कहा. उस की बातों पर विश्वास कर के सुराज गड्ढे से मिट्टी निकालने लगे, तभी मिट्टी के नीचे दबा सांप मिट्टी हटते ही उन के हाथों को लिपट गया.

हाथों में अचानक सांप के लिपट जाने से सुराज की मानो सांसें ही थम गईं. चाह कर भी उन के मुंह से चीख नहीं निकल सकी. यह देख कर वह तथाकथित तांत्रिक खुश हो गया. सुराज के हाथ से सांप को हटा कर उस ने कहा, ‘‘मुबारक हो! सोना मिल गया. चिंता की कोई बात नहीं, यह सांप खजाने का रखवाला है. अब यह बात तय है कि खजाना यहीं है.’’

उस की बातें सुन कर सुराज को भी यकीन हो गया कि सच में खजाना निकलने वाला है. इस के बाद उस आदमी ने थोड़ी मिट्टी कुरेदी तो वहां एक नारियल निकला, जिस पर धागा लिपटा था. उस ने नारियल उठा कर उस में लिपटे धागे को सुराज को थमाते हुए कहा, ‘‘इस धागे के एक सिरे को ले कर घर की तिजोरी से टच करा लाओ.’’

सुराज को यह बात थोड़ी अजीब लगी. लेकिन बात करोडों के सोने की थी, सो वह कुछ कहने, बोलने के बजाय धागे का एक सिरा घर के एक कमरे में रखी तिजोरी के पास ले जा कर उस से टच करा कर वापस आए तो देखा एक बाल्टी में वही सांप, नारियल का गोला तथा कुछ मिट्टी व एक धातु रखी है, जो दूर से सोने जैसी प्रतीत हो रही थी.

उसे देख कर सुराज को ऌूरा विश्वास हो गया कि सोना मिल गया है. यह सब होतेहोते सुबह होने को आ गई थी. तभी अचानक वहां सुराज का छोटा भाई सोनू आ गया. उसे यह सब थोड़ा अटपटा लगा. घर पर आए इन मेहमानों के हावभाव भी कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

जमीन में दबे सोने को निकालने के लिए धागे के एक छोर को घर की तिजोरी से स्पर्श कराने की बात उसे कुछ अटपटी सी लगी, साथ ही उसे माजरा कुछ उलटा नजर आने लगा तो किसी से कुछ कहे बिना ही उस ने 100 नंबर पर फोन कर के इस की सूचना पुलिस को दे दी.

परिजनों के बीच घर में सोना मिलने को ले कर खुसरफुसर होने लगी थी. उधर सोना निकलने के बाद सुराज और घर आए मेहमानों के बीच लेनदेन को ले कर बातें हो रही थीं कि तभी अचानक दरवाजे पर विंध्याचल कोतवाली के इंसपेक्टर अजय कुमार श्रीवास्तव मय फोर्स के पहुंच गए. अलसुबह मोहल्ले में पुलिस को आया देख कर सुराज के पड़ोसी इकट्ठा हो गए तो वहीं खुद सुराज भी अचानक दरवाजे पर पुलिस को देख कर चकित हो उठे.

पुलिस को देख कर उन के घर आए मेहमानों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. जब तक वह कुछ समझ पाते, तब तक उन के घर आए मेहमानों में से नन्हकू मौका देख धीरे से भीड़ में गुम हो गया. उसे गायब देख कर उस के साथ आए अन्य लोग भी खिसकने की ताक में थे कि सभी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

पुलिस जब उन्हें थाने ले जाने लगी तो वे दुहाई देने लगे, ‘‘साहब, हम लोग कोई ऐसेवैसे व्यक्ति नहीं हैं. माता रानी के भक्त हैं और अपनी दिव्यशक्ति के जरिए जान लेते हैं कि कहां क्या है.’’

‘‘अच्छा, अब तुम लोग यह बताओ कि तुम्हारे साथ आगे क्या होने वाला है?’’ थानाप्रभारी अजय कुमार श्रीवास्तव ने पूछा.

‘‘साहब हम समझे नहीं…’’ उन में से एक बोला.

‘‘कोई बात नहीं, थाने पहुंच कर सब कुछ आसानी से समझ जाओगे.’’ अजय कुमार ने कहा.

इस के बाद सभी के चेहरे की रंगत बदलने लगी. कोतवाली पहुंचने पर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम शिवलाल सिंह निवासी अतरहट, जिला बांदा, रमेश कुमार दुबे निवासी कादीपुर, जिला सुलतानपुर, सुरेंद्र कुमार पांडेय निवासी शिवकटरा, जिला कानपुर नगर, प्रभाकर सिंह निवासी बहुचरा, प्रतापगढ़, रामप्रताप निवासी रतनपुर, जिला फतेहपुर तथा कांत तिवारी निवासी जंघई, जिला जौनपुर बताया.

नामपता पूछने के बाद थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘अब यह बताओ कि तुम लोग यह धंधा कब से कर रहे हो और अब तक कितने लोगों को अपने झांसे में ले कर ठग चुके हो?’’

उन की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि उन में से एक ने कहा, ‘‘नहीं साहब, आप हम लोगों को गलत समझ रहे हैं. हम लोगों ने किसी को नहीं ठगा है.’’

‘‘देखो, आप लोग अगर प्यार से नहीं बताओगे तो सच्चाई उगलवाने के लिए मुझे दूसरे तरीके भी आते हैं.’’ अजय कुमार ने धमकाया. उन के इतना कहते ही वे सभी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. फिर बोले, ‘‘साहब, आप हमें मारनापीटना मत, हम सब सचसच बताते हैं.’’

इस के बाद उन्होंने ठगी की जो अनोखी कहानी बताई, वह अंधविश्वास, लालच से भरी होने के साथ हैरान कर देने वाली निकली.

दरअसल, शिवपाल सिंह, रमेश कुमार दुबे, सुरेंद्र कुमार पांडेय, प्रभाकर सिंह, रामप्रताप कोरी तथा कांत तिवारी का ठगी का अपना एक गिरोह था, जो पहले सीधेसादे लोगों और परिवारों का पता लगाते थे. उस के बाद उन की हैसियत आदि का आंकलन कर के उन्हें अपने जाल में फांस कर जमीन, मकान में सोना होने का लालच दे कर ठगी का जाल फेंकते थे. इस के लिए वे किसी परिचित का सहारा लेते थे तो कभी स्वयं आगे बढ़ कर खुद शिकार को फांसते हैं.

सुराज के घर पर ये लोग ताराशंकर उर्फ नन्हकू तिवारी निवासी गांव चेकसारी, मीरजापुर के माध्यम से पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि वह ब्रह्म मुहूर्त में ठगी की तैयारी करते थे. इस की वजह यह थी कि इस वक्त अधिकांश लोग गहरी नींद में होते हैं, जिस से उन के काम में खलल नहीं पड़ता था.

सुराज के यहां आने से एक दिन पहले इन्हीं ठगों ने विंध्याचल के कंतित गांव में बाबा श्रीवास्तव के मकान में गड्ढा खोदा था. वहां से ये मेहनताना के तौर पर 2 हजार रुपए ले भी चुके थे. सुराज पांडेय के बाद इन का निशाना यही घर होने वाला था, लेकिन इस के पहले ही ये पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

पुलिस की मानें तो ये कोई मामूली ठग नहीं थे, इन का जाल पूर्वांचल में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में फैला था. ये प्रदेश के विभिन्न जिलों में जमीन से सोना निकालने से पहले किसी होटल, ढाबा या फिर किसी व्यक्ति के घर जा कर ठहरते थे. इस के बाद किसी ऐसे आदमी की तलाश करते थे, जो तांत्रिक क्रिया व अंधविश्वास में यकीन रखता हो.

पकड़े गए ठगों को 24 जुलाई, 2017 को पुलिस लाइन स्थित सभागार में मीडिया के समक्ष पेश करते हुए एसपी आशीष कुमार तिवारी ने बताया कि यह गिरोह पूरे प्रदेश के कई जिलों में घूमघूम कर लोगों को झांसा दे कर मोटी ठगी करता आ रहा है. जिस धातु को ये सोने की सिल्ली बताते थे, वह लोहे की या पीतल की होती थी. लोहे की सिल्ली पर ये पीतल की पौलिश करा लेते थे. वह सिल्ली कानपुर के एक मशहूर मेटल हाउस से लाते थे.

पकडे़ गए ठगों ने पुलिस को पूछताछ में बताया था कि ये 4-5 सौ रुपए में एक मदारी से सांप ले लेते और उस के दांत उखड़वा देते थे, जिस से सांप डस न सके.

पुलिस ने पकड़े गए 6 ठगों के पास से लोहे की 3 चौकोर सिल्लियां बरामद कीं, जिन पर पीतल का पानी चढ़ा हुआ था. गिल्ट के पुराने 2 सिक्के, एक नारियल सफेद धागा लिपटा हुआ, 7 मोबाइल फोन, एक काला सांप बरामद किया. पुलिस ने सांप वन विभाग की टीम को सौंप दिया.

पुलिस ने सभी ठगों के खिलाफ सुराज पांडेय की तहरीर पर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कर के सभी को जेल भेज दिया. पुलिस को मौके से फरार हुए ताराशंकर उर्फ नन्हकू तिवारी की सरगर्मी के साथ तलाश है.

एसपी आशीष कुमार तिवारी ने शातिर ठगों को गिरफ्तार करने वाली टीम में शामिल थानाप्रभारी इंसपेक्टर अजय कुमार श्रीवास्तव, कांस्टेबल रूपेश पांडेय, रविकांत यादव, पीआरवी के हैड कांस्टेबल शिवनाथ, भानुप्रताप, रिजवान आदि को पुरस्कृत करने की घोषणा की है, तो वहीं कंतित गांव में पुलिस को फोन करने वाले सोनू की खूब तारीफ हो रही है, जिस की सजगता से न केवल उस का परिवार ठगी का शिकार होने से बच गया, बल्कि विंध्याचल क्षेत्र के उन लोगों को भी ठगने से बचा लिया, जो ठगों के निशाने पर थे.

उधर फरार चल रहे नन्हकू तिवारी ने भी पुलिस का दबाव बढ़ता देख कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे पूछताछ के लिए पुलिस कस्टडी में लिया गया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस तथा मीडिया सूत्रों पर आधारित

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

रात का तीसरा पहर था. जाहिर है इस वक्त नींद अपने चरम पर होती है. तभी अचानक गोली चलने की आवाज के साथ एक चीख उभरी. मुझे लगा जैसे गैस का सिलेंडर फट गया हो. लाइट जला कर मैं किचन की ओर भागा, वहां सबकुछ ठीकठाक था. तभी मेरी नजर अपने घर के सामने वाले मकान पर पड़ी, जो कैप्टन अनूप का था. वहां से किसी के रोने की आवाज आ रही थी.

देखतेदेखते आसपास के सारे लोग जाग गए थे. एकाध हिम्मत दिखा कर बाहर आया. अमूमन कालोनी के लोग एकदूसरे से दूरी बना कर रखते हैं. इसलिए लोग अपनेअपने हिसाब से अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे. जब मैं ने देखा कि एक पड़ोसी तहकीकात में लगा है तो मैं भी बाहर आ गया.

‘‘यह चीख कहां से उभरी?’’ मैं ने वहां मौजूद पड़ोसी से पूछा.

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. मेरा खयाल है गोली की आवाज इसी घर से आई थी.’’

उन का भी वही अनुमान था, जो मेरा था. वह मकान कैप्टन अनूप का था. मेरी अनूप से ज्यादा बोलचाल नहीं थी. वैसे भी वह यहां कम ही रहता था. उस की फैशनेबल बीवी साधना भी कालोनी वालों से ज्यादा वास्ता नहीं रखती थी. वह अपने आप में ही खोई रहती थी.

अनूप ने इस मकान को 5 साल पहले खरीदा था. बाद में उसे तुड़वा कर आधुनिक शैली का बनवाया. घर में 2 बेटे उस की बूढ़ी मां व साधना के अलावा कोई नहीं था. बाकी नौकरचाकर कितने थे मुझे पता नहीं था. बड़ा बेटा 16 साल का था और छोटा 14 साल का.

उसी दौरान किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था, सो पुलिस आ गई. वहां मौजूद सभी लोग जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर गोली किसे लगी. मरा कौन और वजह क्या थी? तभी पुलिस वाले खून से लथपथ एक महिला को स्ट्रेचर पर लाद कर बाहर आए. जिसे वह अस्पताल ले गए. वह महिला कैप्टन अनूप की पत्नी साधना थी. पुलिस साधना के बड़े बेटे अर्नव से पूछताछ करने लगी.

‘‘क्या कोई अंदर आया था?’’ पुलिस इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मैं सो रहा था.’’ अर्नव डरते हुए बोला

‘‘डरो मत. तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा. सचसच बता दो. पुलिस तुम्हारी मां के हत्यारे का जरूर पता लगा लेगी.’’अधेड़ पुलिस इंस्पेक्टर ने अर्नव को पुचकारा तो वह फफक कर रो पड़ा. उस के छोटे भाई का तो पहले से ही रोरो कर बुरा हाल था. वह दादी की गोद में बैठा था. खबर पा कर साधना का एक चचेरा देवर तेजबहादुर भागते हुए वहां आया. वह सरकारी विभाग के किसी ऊंचे ओहदे पर था.

‘‘अचानक यह सब कैसे हो गया?’’ तेज बहादुर ने हैरत से पूछा.

‘‘आप इस परिवार को जानते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने उस से पूछा.

‘‘सर, साधना मेरी भाभी थीं.’’ तेज बहादुर ने बताया, ‘‘मैं इस परिवार का स्थानीय गार्जियन हूं…’’ तेज बहादुर अपनी बात पूरी करते उस से पहले अस्पताल से खबर आ गई कि साधना की मौत हो गई. यह खबर सुन कर सब सदमे में आ गए. तेजबहादुर की आंखें भर आईं. अनूप उस समय लंदन में था. खबर मिली तो जल्दबाजी कर के वह भी घर लौट आया. अनूप भी नहीं समझ पाया कि साधना का कत्ल क्यों हुआ?

पुलिस ने अनूप से सवाल किया,‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘मैं यहां रहता ही कितना हूं, जो किसी पर शक करूं.’’ वह बोला.

‘‘हो सकता है किसी से पुश्तैनी जमीन जायदाद का झगड़ा हो?’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है.’’ अनूप बोला. तभी एक बूढ़ी महिला नजर आई. इंस्पेक्टर ने उस की तरफ इशारा कर के पूछा, ‘‘ये कौन हैं?’’

‘‘मेरी मां हैं.’’ अनूप ने जवाब दिया.

‘‘यहीं रहती हैं?’’

‘‘हां, मेरी गैरमौजूदगी में घर की देखभाल यही करती हैं.’’

‘‘तेजबहादुर कौन है, क्या यह आप की मरजी से यहां रहता है?’’ तेजबहादुर का नाम सुनते ही अनूप का चेहरा बन गया. जिसे इंस्पेक्टर की पारखी नजर ताड़ गई.

अनूप ने सफाई दी, ‘‘वह मेरा चचेरा भाई है. उसे इजाजत की क्या जरूरत है. अगर मेरे परिवार को रातबिरात डाक्टर या दवा की जरूरत हुई तो कौन ला कर देगा?’’

इंस्पेक्टर ने घर में मौजूद अनूप की मां से पूछा, ‘‘मांजी, साधना की दिनचर्या क्या थी?’’ जवाब देने की जगह वह सुबकने लगीं. वह उठ कर जाने लगीं. अनूप ने रोकने की कोशिश की मगर रुकी नहीं. इंस्पेक्टर को अटपटा लगा. कहां लोग हत्यारों की तलाश के लिए पुलिस की मदद करते हैं वही यहां कोई कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं था.

कम पढ़ेलिखे लोग ज्यादा दिमाग नहीं लगाते. इसलिए इंस्पेक्टर साधना की आया को थाने ले आए. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘तुम साधना के यहां कब से हो?’’

‘‘पिछले 2 सालों से.’’ वह सहमी हुई थी.

‘‘साधना के यहां कौनकौन आता था.’’ इस सवाल पर वह नजरें चुराने लगी. तभी इंस्पेक्टर ने अपना पुलिसिया रौब दिखाया तो वह असलियत पर आ गई.

‘‘ज्यादातर तेज साहब.’’ उस ने बताया.

‘‘उन के अलावा और कौनकौन आता था?’’

‘‘और लोग आते थे तो नीचे ड्राइंगरूम में बैठते थे. मेरा काम था उन्हें चायपानी देना. मैं उन्हें शायद ही पहचानूं.’’

‘‘तेज अंकल कब आते थे?’’

‘‘अकसर सुबह आते थे. कभीकभी रात में भी आ जाते थे.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चलता कि वे रात में भी आते थे?’’

‘‘मैं काम खत्म कर के रात 9 बजे के आसपास चली जाती हूं. उस समय उन्हें कई बार मेमसाहब के कमरे में आते देखती थी. मेमसाहब उन्हें देख कर खुश हो जाती थीं. उन्हें अपने बेडरूम में बिठातीं, वह बेडरूम जहां बिना पूछे उन के बेटों को भी जाने की इजाजत नहीं थी. कहती थीं यह उन का निजी कमरा है.’’

‘‘बच्चे कहां रहते थे?’’

‘‘उन का अलग कमरा है.’’

‘‘और उन की बूढ़ी सास?’’

‘‘उन का भी अपना अलग कमरा है.’’

यहां भले ही हाई सोसाइटी के लोग रहते थे, मगर अंदर से परिवार बिखरा हुआ था. पति शिप पर था. पत्नी की अलग दुनिया. बच्चों को हर सुखसुविधा दे कर साधना उन का मुंह बंद कराने की भरसक कोशिश करती. बातोंबातों में आया ने बताया कि एक नेपाली कुक भी है, जो मकान में ही बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था.

कुक लापता था. उस की तलाश जारी थी. साधना का हार गायब था, जिस की कीमत 5 लाख रुपए थी. तफ्तीश में पता चला कि कुक एक दिन पहले ही छुट्टी ले कर चला गया था. पुलिस पेशोपेश में पड़ गई. अब शक करे तो किस पर. पुलिस को साधना की मित्रमंडली पर भी शक था.

पुलिस ने उन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला वे सब की सब शहर के नामीगिरामी उच्चपदाधिकारियों की पत्नियां थीं. पूछताछ में पुलिस को उन से सुराग नहीं मिला. अलबत्ता पुलिस को यह जरूर पता चला कि तेजबहादुर और साधना ने साझे में एक जिम खोल रखा था.

वह शहर का मशहूर जिम था. साधना के उच्च संपर्कों के चलते वहां सिर्फ धनाढ्य लोगों की भीड़ रहती थी. पुलिस को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जिम के पैसों को ले कर दोनों में विवाद बढ़ गया हो और बात हत्या तक जा पहुंची हो. इसलिए इंस्पेक्टर ने तेजबहादुर से पूछा, ‘‘जिम आप लोगों के साझे में था?’’

‘‘हां.’’ तेज ने जवाब दिया.

‘‘सालाना कितनी आमदनी हो जाती है?’’

‘‘इनकम टैक्स वालों से पूछो,’’ वह चिढ़ गया. जाहिर था वह ऐसी कोई निजी जानकारी साझा नहीं करना चाहता था.

‘‘वही बता दीजिए जो इनकम में दिखाते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘10 लाख.’’

‘‘आप का हिस्सा कितना था?’’

‘‘हिस्से को ले कर कोई समस्या नहीं थी. साधना मेरी भाभी थीं. वह जो हिसाब लगा कर देती थीं, वह मुझे मंजूर था.’’ कहने को तो तेज ने कह दिया मगर वह यह भूल गया कि शायद ही कोई हिसाबकिताब के मामले में कोताही बरतता हो. यदि बरतता है तो उस की कोई मजबूरी होगी.

इंस्पेक्टर के लिए यह पता लगाना बेहद जरूरी था कि तेजबहादुर की ऐसी क्या मजबूरी थी, जो वह पैसों के मामले में हुज्जत नहीं करता था. एकबारगी पुलिस को लगा कि हो न हो इस कत्ल के पीछे अनूप का हाथ हो? उस की चुप्पी यही साबित कर रही थी. इंस्पेक्टर ने उस से पूछा, ‘‘आप अपनी पत्नी के बारे में कुछ बताएंगे.’’

यह सुन कर अनूप के माथे पर बल पड़ गए. तभी इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘मसलन उन का बैकग्राउंड क्या था, आप लोगों के बीच सब ठीक चल रहा था न?’’

‘‘मैं ने उस से प्रेमविवाह किया था. वह मेरे एक सीनियर अधिकारी की बेटी थी.’’ अनूप ने बताया.

‘‘वह आजादखयाल की थीं. उन के तौरतरीकों को ले कर आप को कोई ऐतराज नहीं था?’’ इंस्पेक्टर ने अगला सवाल किया.

‘‘जी बिलकुल नहीं, घर में अकेले रह कर वह क्या करती. उस की एक मित्रमंडली थी, जिम था. वह अपना समय उन लोगों के बीच गुजारती थी.’’

‘‘महीनों बाद जब आप आते थे, तब उन का व्यवहार कैसा होता था?’’
‘‘सामान्य रहता था.’’

‘‘उम्र के इस पड़ाव पर आने के बाद भी उन का उन्मुक्त लिबास जैसे जींसटौप पहनना, घर में बच्चों से ज्यादा न घुलनामिलना, अपने निजी कमरे में बच्चों को बिना इजाजत न आने देना. इस से आप को नहीं लगता कि सब कुछ सामान्य नहीं था.’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘वह क्या पहनती थी क्या नहीं, इस से आप को कोई मतलब नहीं होना चाहिए. उस की पसंद और नापसंद पर जब मुझे कोई ऐतराज नहीं था तो आप को भी नहीं होना चाहिए.’’ अनूप उखड़ा.

‘‘अच्छा यह बताइए कि आप रिवौल्वर रखते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने प्रसंग बदला.

‘‘हां, मेरे पास लाइसेंसी रिवौल्वर है.’’ अनूप ने बताया.

‘‘क्या मैं उसे देख सकता हूं.’’

“क्यों नहीं.’’ अनूप ने अपने बड़े बेटे से अलमारी में रखा रिवौल्वर मंगा लिया.

इंस्पेक्टर रिवौल्वर को उलट पलट कर देखने लगे. उसी समय इंस्पेक्टर के मोबाइल पर थाने से फोन आया. उन्हें बताया गया कि साधना वाले केस से संबंधित एक शख्स को हिरासत में लिया गया है.

यह सुनते ही इंस्पेक्टर जीप ले कर थाने लौट गए. जब वह थाने पहुंचे तो उन्हें थाने में एक आदमी बैठा मिला. देखने से वह नेपाली लग रहा था. एक कांस्टेबल ने बताया कि यह वही नेपाली है जो साधना के यहां खाना बनाने का काम करता था. एसएसआई साहब इसे लखनऊ से ढूंढ़ कर लाए हैं.

‘‘मेम साहब के यहां कब से काम करते हो?’’ इंस्पेक्टर ने कुक से पूछा.

2 साल से साहब,’’ उस का जवाब था.

‘‘मेमसाहब कैसी महिला थीं? सचसच बताना नहीं तो तुम्हें ही खून के इल्जाम में जेल भेज दूंगा.’’ इंस्पेक्टर ने धौंस जमाई.

वह घबरा गया और बोला, ‘‘साहबजी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं इस खून से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. घटना से एक दिन पहले मैं मेमसाहब से छुट्टी ले कर लखनऊ अपने रिश्तेदारों से मिलने गया था.’’

‘‘झूठ बोल रहे हो तुम. तुम ने 5 लाख के हीरे के हार के लिए मेमसाहब का कत्ल कर दिया.’’ इंस्पेक्टर उस पर गरजे.

‘‘हीरे, कौन से हीरे का हार साहब?’’ वह बोला, ‘‘मैं सच कह रहा हूं. मैं किसी हार के बारे में नहीं जानता. मेरा तो मेमसाहब के कमरे में घुसना भी मना था. मेरा काम था खाना बनाना. उन के कमरे में फूलमती ही नाश्तापानी ले जाती थी.’’

कुछ सोच कर इंस्पेक्टर ने आगे कहा, ‘‘चलो मान लेते हैं फिर यह बताओ कि कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर शक है?’’

डरतेडरते उस ने एक राज उगल कर सब को सकते में डाल दिया, ‘‘मेमसाहब का तेजबहादुर से चक्कर था. जब भी वह मेमसाहब से मिलने आते थे तो बहुत देर तक उन के कमरे में बैठ कर खुसुरफुसुर करते थे.’’

‘‘तुम ने उन्हें कभी आपत्तिजनक अवस्था में देखा था?’’

‘‘नहीं, पता नहीं दोनों बंद कमरे में अकेले क्या करते थे?’’

‘‘उस समय उन के बेटे कहां रहते थे.’’

‘‘साहबजी, वे तो सुबह ही स्कूल चले जाते थे. तेजबहादुर तभी आते थे जब बाबा लोग घर पर नहीं रहते थे.’’

नेपाली साधना के बच्चों को बाबा कहता था. इंस्पेक्टर ने सोचा कि मान भी लिया जाए कि दोनों में अवैध संबंध थे तो भी हत्या की वजह उन की समझ में नहीं आ रही. हो न हो इस हत्या के पीछे किसी और का हाथ हो.

वह दूसरे बिंदु से हत्या का कारण तलाशने लगे. क्या अनूप को अपनी बीवी के चालचलन की जानकारी नहीं थी? जरूर होगी क्योंकि उस की मां साधना के साथ रहती थी. वह जरूर बहू के चालचलन से उसे अवगत कराती होगी. हो सकता है अनूप ने ही भाड़े के हत्यारे से उस की हत्या करवा दी हो?

पत्नी की चरित्रहीनता भला कौन पति स्वीकारेगा. इंस्पेक्टर पुन: अनूप के पास पहुंच गए. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कैप्टन साहब, तेज साहब का कितना दखल है आप के घर में यानी आप लोग उन पर कितना भरोसा करते थे?’’

अजीब सवाल करते हैं. कल को आप मेरे ही घर में मुझ से ही ऐसा सवाल करने लगेंगे.’’ अनूप को बुरा लगा. उस ने आगे कहा, ‘‘तेज मेरा चचेरा भाई है. वह इस घर का एक तरह से केयरटेकर था. मेरी गैरमौजूदगी में वही सब कुछ देखता था.’’

‘‘सब का मतलब क्या?’’

‘‘इमरजेंसी में जब भी मेरी मां या घर का कोई सदस्य उसे बुलाता था वह तुरंत आ जाता था.’’

‘‘वह इतने बड़े अधिकारी हैं, क्या उन्हें यह असम्मानजनक नहीं लगता था?’’

‘‘होगा अधिकारी अपने औफिस का. मगर हमारे लिए तो वह सिर्फ तेज था.’’

‘‘आप ने एक बार भी अपनी बीवी के हत्यारे के बारे में जानने की पहल नहीं की. न ही आप को कोई गरज है.’’

‘‘मैं भला क्यों नहीं जानना चाहूंगा. साधना मेरी बीवी थी. जब से वह गई है, मैं पूरी तरह से टूट चुका हूं. कौन पति नहीं चाहेगा कि उस की पत्नी के कातिल का पता चले.’’

‘‘आप मुझे सहयोग दीजिए. मैं आप की मां से कुछ पूछना चाहता हूं.’’ इंस्पेक्टर को लगा लोहा गरम है. अनूप ने मां को बुलाया. इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘मांजी रात क्या हुआ था?’’

सुन कर वह कहीं खो गईं. मानो उस रात की घटना उन की नजरों के सामने तैर गई हो. वह बोली,‘‘मैं सो रही थी तभी अचानक चीख की आवाज आई. मैं कुछ समझ पाती तभी अर्नव भागते हुए मेरे पास आया. बोला मां को किसी ने गोली मार दी है. इतना सुनते ही मैं घबरा कर उठी. साधना के कमरे में गई तो देखा वह बेसुध जमीन पर पड़ी थी.’’

‘‘किसी को आप ने भागते हुए देखा था?”

‘‘कहां से देखती अंधेरा था.’’ मां की बात सुन कर इंस्पेक्टर के दिमाग में आया कि पहला चश्मदीद व्यक्ति अर्नव ही है. कोई सुराग न मिलने पर इंस्पेक्टर ने अर्नव से पूछा तो उस का भी वही जवाब था. जब गोली के साथ चीख उभरी तब उस की नींद टूटी. मां के कमरे में भागते हुए पहुंचा तो वह दर्द से छटपटा रही थी. घबरा कर वह दादी के कमरे में आया.

‘‘तुम ने किसी को भागते हुए देखा?’’ इंस्पेक्टर ने अर्नव से दूसरा सवाल किया.

‘‘नहीं.’’

कोई जानकारी न मिलने पर वह थाने लौट आए. उन्हें भरोसा था कि साधना की सास ही कोई सुराग बता सकती है. मगर वह भी दिग्भ्रमित थीं. बहरहाल इंस्पेक्टर ने हार नहीं मानी. उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. उन्हें वह गोली भी मिल गई. जिस से साधना का जिस्म छलनी किया गया था. उन्होंने उस गोली को अच्छी तरह से देखा. कुछ सोच कर उन की बांछें खिल गईं. वह तुरंत अनूप के पास पहुंच गए. अनूप कहीं जाने की तैयारी कर रहा था.

‘‘कहां जा रहे हैं?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘मुंबई.’’

‘‘इतनी जल्दी. मुझे आप से कुछ और जानकारियां चाहिए.’’

‘‘सब तो जान चुके हैं. अब क्या बाकी रह गया है. कितने दिन मैं यहां अपनी नौकरी छोड़ कर रहूंगा?’’

‘‘आज के बाद आप को परेशान नहीं करूंगा. क्या आप उस रिवौल्वर को दोबारा दिखा सकते हैं?’’

अनूप ने अर्नव को रिवौल्वर लाने के लिए कहा. रिवौल्वर देखने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘यह वह रिवौल्वर नहीं है जिसे कुछ दिन पहले आप ने मुझे दिखाया था.’’

अनूप इस बार अपनी बात दोहराता रहा. अंत में जब कोई हल निकलता दिखाई नहीं दिया तब इंस्पेक्टर ने धमकी दी, ‘‘आप उस रिवौल्वर को नहीं दिखा रहे तो मैं यही समझूंगा कि हत्या में आप का ही हाथ है.’’

‘‘आप के पास सबूत क्या है?’’ अनूप बोला.

‘‘सबूत मिल चुका है.’’ सुन कर अनूप सिहर गया.

‘‘आप रिवौल्वर मुझे देते हैं या फिर…’’ इंस्पेक्टर की बात पूरी होने से पहले ही तेजबहादुर वहां आ गया. वह बोला, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, आप इन पर दबाव क्यों बना रहे हैं?’’

‘‘मैं दबाव नहीं बना रहा. मुझे सिर्फ वही रिवौल्वर चाहिए जिसे कुछ दिन पहले इन्होंने मुझे दिखाया था.’’

‘‘वह रिवौल्वर यही था.’’ तेज बहादुर बोला.

‘‘आप को कैसे पता?’’ इंस्पेक्टर का इतना कहना था कि वह बगलें झांकने लगा. इंस्पेक्टर को वह संदिग्ध लगा. संदिग्ध तो पहले से ही था मगर सरकारी अधिकारी होने के नाते बिना पर्याप्त सुबूत के उस पर हाथ डालना सही नहीं था.

‘‘इस का मतलब यह है कि आप दोनों को पता है कि असली रिवौल्वर कोई और है. देखिए, जितना जल्दी हो सच्चाई बता दीजिए वरना मुझे सख्ती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’’

अचानक अनूप ने अपनी जेब से रिवौल्वर निकाला. जब तक तेज बहादुर संभलता उस ने तड़ातड़ कई गोलियां उस के सीने में उतार दीं. इंस्पेक्टर ने तुरंत अनूप को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जब अनूप को ले जाने लगी तो उस का बेटा अर्नव फफकफफक कर रोने लगा, ‘‘पापा, हम दोनों भाइयों का अब क्या होगा?’’

‘‘बेटा तुम्हें जेल हो जाती तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाता. मुझे गर्व है कि तुम ने जो किया ठीक किया. तुम्हारी मां ने न केवल मेरे साथ बेवफाई की बल्कि अपने जवान होते बेटों को भी नहीं बख्शा. ऐसी औरत को तुम ने जो सबक सिखाया उस पर मुझे फख्र है. याद रखना दोनों कत्ल मैं ने ही किए हैं. इसे सिर्फ मैं और तुम ही जानते हैं. यह राज कभी मत खोलना.’’ अर्नव ने सिर हिला कर हामी भरी. क्षण भर में अच्छाखासा परिवार छिन्नभिन्न हो गया.

अब इंस्पेक्टर की समझ में सब कुछ आ चुका था. क्या नहीं था उस घर में. रुपयापैसा, आलीशान घर, लग्जरी कार, ऐशोआराम की सभी आधुनिक चीजें वहां थीं, जिन्हें पा कर कोई भी बच्चा निहाल हो जाता. आज के बच्चों को और क्या चाहिए? सारी भौतिकवादी सुविधाएं पाने वाली साधना के लिए सिर्फ रुपया ही सब कुछ नहीं था, उसे तेजबहादुर जैसे लोगों के साथ की भी जरूरत थी.

आजाद ख्याल की साधना को उस के बेटे ने जो दंड दिया था वह अकल्पनीय था. अर्नव को अपनी मां का चालचलन पसंद नहीं था. वह अच्छी तरह जानता था कि तेज का उस की मां से क्या संबंध था. अनूप आखिरी वक्त तक अर्नव को बचाने का प्रयास करता रहा. हार को गायब करने के पीछे अनूप का यही मकसद था. ताकि पुलिस अपनी तफ्तीश का रुख बदल दे.

मगर जब उसे आभास हो गया कि पुलिस के पास वह गोली है जिस का रिवौल्वर उस के पास है तब अनूप ने तेज को मारने का प्लान बनाया. ताकि दोनों कत्ल का जिम्मेदार उसे ठहराया जाए. वह अर्नव की जिंदगी बरबाद करना नहीं चाहता था.

बुझा दिया घर का चिराग

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव
में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.
‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’
‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.
इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी.
अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटाफटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशामैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.
ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’
सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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