इस सामूहिक हत्याकांड ने एक नई बहस खड़ी कर दी है कि क्या इनसान के जान की कीमत जमीन के टुकड़े से भी कम है? लेकिन इस से बड़ा एक सवाल यह है कि गांवदेहात में जमीन से जुड़े विवाद पैदा ही क्यों होते हैं?

इन विवादों के पीछे ज्यादातर जमीनों का हिसाबकिताब रखने वाला वह मुलाजिम होता है जिसे अलगअलग जगहों पर लेखपाल या पटवारी के नाम से जाना जाता है. ये पटवारी चंद रुपयों के लालच में दबंगों और पहुंच वालों के साथ मिल कर किसी भी जमीन को विवादित बना देते हैं. एक बार जमीन के विवादित होने की दशा में किसान की कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते चप्पलें घिस जाती हैं. पटवारियों द्वारा विवादित की गई जमीन के चक्कर में पीढि़यां दर पीढि़यां मुकदमे झेलने को मजबूर होती हैं. कई बार तो बेकुसूरों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.

चंद रुपयों के लिए पटवारी किसी भी जमीन को कैसे विवादित बना देते हैं, इस की बानगी हम सिद्धार्थनगर के डंडवा पांडेय गांव की 2 बहनों के मामले में देख सकते हैं.

अनीता और सरिता नाम की इन 2 बहनों के मांबाप की मौत पहले ही हो चुकी थी. एक भाई था जिस की मौत भी बाद में गंभीर बीमारी के चलते हो गई. ऐसे में कानूनी रूप से मांबाप की सारी जायदाद इन दोनों बहनों को मिलनी थी, लेकिन जो काम आसानी से होना था उसे यहां के 2 पटवारियों ने पैसों के लालच में विवादित बना दिया.

छोटी बहन अनीता के ससुर रवींद्रनाथ तिवारी ने जब पटवारी से दोनों बहनों के नाम उन जमीनों को करने की बात कही तो पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने इस के एवज में पैसे की मांग की. लेकिन इन दोनों बहनों की तरफ से पैसे नहीं मिलने की दशा में उस ने पड़ोसियों से पैसे ले कर जमीन उन के नाम करने का लालच दिया और जमीन को विवादित बना दिया.

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