पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 2

बाबूलाल की इस तरह की गोलमोल बातें सुन कर गांव वाले अलगअलग अर्थ निकाल रहे थे. कुछ लोग मान रहे थे कि बाबूलाल ने स्वीकार कर लिया है कि उस के पास पारस मणि है और कुछ लोगों को साफसाफ महसूस हुआ कि ऐसा कुछ भी नहीं है, मगर गांव में बाबूलाल की अब तो बल्लेबल्ले अपने उफान पर थी.बाबूलाल यादव बड़े ठाटबाट से रहा करता था. वह एक तांत्रिक था. पूजा और तंत्रमंत्र से वह अच्छे पैसे कमा लेता था.

आज भी गांवदेहात में मजदूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है. लोग शहर की ओर पलायन कर जाते हैं या फिर गांव के धनी किसानों के यहां काम कर के जीवनयापन करते हैं. मगर बाबूलाल तांत्रिक होने के कारण बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.अच्छा पहनता, अच्छा खातापीता. लोग उसे बिना जमीनजायदाद के भी बड़ा आदमी मानते थे. उस की साख दिनोंदिन आसपास के गांव में भी फैलती चली जा रही थी.

छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला धनधान्य से परिपूर्ण होने के कारण धान का सच्चे अर्थों में कटोरा कहा जा सकता है.जिले के जांजगीर थानांतर्गत गांव मुनुंद है, जहां लगभग ढाई हजार लोगों की बस्ती है और ज्यादातर लोग खेतीकिसानी कर के अपना जीवन बसर करते हैं. यहीं बाबूलाल यादव तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करते हुए धीरेधीरे आसपास के गांवों में प्रसिद्ध हो गया था.

आसपास के गांवों ही नहीं, बल्कि उस के पास आसपास के जिलों कोरबा, बिलासपुर से भी लोग आने लगे थे. वह किसी बीमारी भूतप्रेत आदि बाधाओं को दूर करने का दावा करता था. उस का प्रभाव बढ़ता ही चला जा रहा था.उस के पास कोई पारस मणि है, यह चर्चा भी आसपास के गांवों से होती हुई दूर तक प्रसारित हो चुकी थी.जिला चांपा जांजगीर के बाराद्वार निवासी टेकचंद जायसवाल, जो एक किसान परिवार से है, ने भी एक दिन जब यह सुना कि तांत्रिक बाबूलाल के पास पारस मणि है तो उस के मन में उत्सुकता पैदा हुई कि क्यों न इसी तरीके से पारस मणि को हथिया लिया जाए.

वह साहसी व्यक्ति के रूप में गांव में जाना जाता था. शरीर में ताकत थी और वह गांव में अच्छे रुतबे वाला था. टेकचंद ने जब यह बात सुनी तो उस ने अपने दोस्तों से पता लगाया कि आखिर माजरा क्या है.एक दिन उस ने गांव बिरगहनी के रहने वाले अपने एक दोस्त राजेश हरबंस से मोबाइल पर इस संबंध में बात की. फिर दोनों ने प्लान बनाया कि बाबूलाल यादव के गांव चलें और उस से मिल कर समझा जाए कि आखिर सचमुच उस के पास पारस मणि है या कोई अफवाह है. अगर उस के पास पारस मणि है तो उसे हथियाने की योजना बनाई जाए.

टेकचंद जायसवाल और राजेश हरबंस दोनों हमउम्र थे. टेकचंद अपनी बाइक से बाराद्वार से बिरगहनी आ पहुंचा. उस के बाद दोनों बाइक से बाबूलाल यादव से मिलने मुनुंद गांव की ओर बढ़ चले.
रास्ते में दोनों बातें कर रहे थे. टेकचंद ने बाइक चलाते हुए राजेश से पूछा, ‘‘राजेश भाई, क्या महसूस कर रहे हो तुम? क्या सच में पारस मणि होती है?’’‘‘हां, यह सच है कि पारस मणि होती है. मैं ने गूगल पर सर्च किया और पाया कि ऐसी पारस मणि का जिक्र हमारे ग्रंथों में भी है. मगर यह भी सच है कि उसे पाना आसान नहीं है, यह तो बड़े भाग्य से मिलती है. लाखोंकरोड़ों लोगों में से किसी एक के पास होती है.’’ राजेश ने कहा.

बाइक चलाते हुए टेकचंद ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बात को तुम ने माना स्वीकार किया है. मुझे भी लगता है कि पारस मणि होती तो है. अब हमें यह पता करना है कि क्या बाबूलाल यादव तांत्रिक के पास पारस मणि है भी? और अगर है तो उसे कैसे प्राप्त किया जाए?’’ टेकचंद बोला.‘‘देखो भाई, कोई भी आदमी जिस के पास पारस मणि होगी, वह यह नहीं बताएगा कि मेरे पास है. अगर तुम्हारे पास होगी तो क्या भला किसी को बताओगे?’’ राजेश ने तर्क दिया.

‘‘हां, तुम्हारी बात भी बिलकुलसही है. अब कैसे पता करें भला?’’ टेकचंद बोला
‘‘इस का सीधा सा रास्ता यह है कि हम लोग गांव वालों से पता करेंगे. गांव वाले सच बताएंगे. गांव में कोई भी सच्चाई छिप नहीं सकती. और हो सकेगा तो बाबूलाल यादव से भी मिल कर के देखेंगे कि आखिर सच क्या है, वह कैसा आदमी है. बातचीत से भी बहुत कुछ समझ में आ जाएगा.’’
उस दिन टेकचंद और राजेश हरबंस बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद पहुंचे और कुछ लोगों से बातचीत की. लोगों ने उन्हें दबी जुबान में बताया कि बाबूलाल के पास सचमुच पारस मणि है, मगर वह स्वीकार नहीं करता.

इस के बाद दोनों बाबूलाल से भी मिले. उस के हावभाव और बातचीत से दोनों ही बड़े प्रभावित हुए और जब घर लौटे तो दोनों इस बात को पूरी तरीके से मान चुके थे कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसा है जिस से वह मालामाल हुआ है.टेकचंद और राजेश हरबंस ने धीरेधीरे महमदपुर निवासी रामनाथ श्रीवास, बलौदा की शांतिबाई यादव, कोरबा निवासी यासीन खान और अन्य कई लोगों से बातचीत कर के एक योजना पर अमल करने की कोशिश शुरू कर दी.

उन सभी ने यह प्लान बनाया कि अलगअलग तरीके से हम बाबूलाल यादव से उस के घर पर जा कर मिलेंगे. चूंकि वह तांत्रिक है, इसलिए अपना इलाज कराने का बहाना भी बना सकते हैं. बातचीत करते हुए हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि उस ने वह पारस मणि कहां छिपा रखी है या फिर ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि पारस मणि हमें दिखा दे तो हम लोग उसे हथिया लें.राजेश हरबंस और शांति यादव दोनों ही गांव बिरगहनी थाना बलौदा एक ही गांव के रहने वाले और आपस में परिचित थे. दोनों ने योजना बनाई कि शांतिबाई की बीमारी का हवाला देते हुए बाबूलाल यादव से मिला जाए.
राजेश हरबंस ऐसी परिस्थिति बनाएगा कि पारस मणि ले कर के खुद बाबूलाल खड़ा हो जाएगा.

शांतिबाई यादव की उम्र 21 वर्ष थी. वह दिखने में खूबसूरत और कमसिन थी. राजेश हरबंस उसे अपना परिचित बताते हुए एक दिन बाबूलाल यादव के घर पहुंच गया और इलाज की फरियाद की. शांतिबाई ने बाबूलाल से हंस कर बातें की और बताया कि उस के शरीर में हमेशा दर्द बना रहता है. कई डाक्टरों को दिखाया मगर वह ठीक नहीं हो पा रही है, इसलिए सोचा कि आप के पास झाडंफूंक करवाऊं.
बाबूलाल यादव ने शांतिबाई का इलाज शुरू किया. उसे तंत्रमंत्र कर के भभूत दी और कहा कि कोई बाधा है जिसे वह एक महीने में ठीक कर देगा. इस के लिए उसे हर सप्ताह आना पड़ेगा.

 

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 1

प्यार की कोई उम्र नहीं होती, यह किसी भी उम्र में किसी से हो सकता है. जैसे 2 शादीशुदा बेटियों की मां मिथिलेश को गांव के ही 4 जवान बेटों के पिता किरणपाल से हो गया था. जमाने की रुसवाई को नजरंदाज कर यह प्यार 10 सालों तक चला. इस के बाद इस का जो खूनी अंजाम हुआ, वह… ‘अंजलि मैं तुम्हें भूल जाऊं ये हो नहीं सकता और तुम मुझे भूल जाओ ये मैं होने नहीं दूंगा…’फिल्म ‘धड़कन’ में सुनील शेट्टी ने यह डायलौग क्या मारा, नौजवानों को अपनी प्रेमिकाओं को अपनी मोहब्बत की ताकत दिखाने का जबरदस्त मसाला मिल गया.

बहुत से आशिकों ने सिचुएशन के मुताबिक इस डायलौग में थोड़ाबहुत फेरबदल कर के इजहारे मोहब्बत किया होगा. हर प्रेमी किसी न किसी मौके पर अपनी महबूबा के सामने यह डायलौग जरूर मारता है. इस डायलौग को सुन कर प्रेमिकाओं को भी लगता है कि उन का प्रेमी उन के लिए कितना पजेसिव है. 2 दशक से यह डायलौग प्रेमी दिलों की तड़प जाहिर करता आ रहा है.लेकिन जब सुनील शेट्टी के डायलौग की तर्ज पर किरणपाल ने तमंचा लहराते हुए अपनी प्रेमिका मिथिलेश से कहा, ‘‘तू मेरी हो न सकी और मैं तुझे किसी और की होने न दूंगा…’’ तो मारे डर के मिथिलेश अपनी जान बचाने के लिए भागी.

मगर उस दिन किरणपाल के सिर पर इंतकाम का ऐसा भूत सवार था कि उस ने अपनी प्रेमिका पर गोली दाग दी. धांय… धांय… एक नहीं 2-2 गोलियां. वह तय कर के आया था कि बस अब यह प्रेम कहानी यहीं खत्म कर देनी है.पहली गोली लगते ही मिथिलेश जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. किरणपाल उस के पास आया. खून से लथपथ जमीन पर पड़ी छटपटाती प्रेमिका को देख कर उस की आंखें भीग गईं.
वह पलभर उसे टकटकी लगाए निहारता रहा और फिर रोतेरोते उस के शरीर पर झुक गया. वह उस के तड़पते जिस्म को अपनी छाती से भींच कर रोने लगा और तमंचे का स्ट्रिगर फिर दबा दिया.

इस बार गोली मिथिलेश की छाती पर लगी और कुछ ही देर में उस की छटपटाहट भी शांत हो गई. आंखें मुंद गईं और गरदन एक ओर को लुढ़क गई. किरणपाल प्रेमिका के मृत शरीर से लिपट गया. उसे अपनी बांहों में लपेट कर फूटफूट कर रोने लगा.अचानक उस ने तमंचे की नाल अपनी कनपटी से लगाई और स्ट्रिगर फिर दबा दिया. धांय के साथ गोली निकली और किरणपाल के लगी. यानी मिथिलेश को मार कर किरणपाल ने अपनी भी इहलीला समाप्त कर ली.

दोनों के शव एकदूसरे से लिपटे हुए जब लोगों ने देखे तो फिर जितने मुंह उतनी बातें, क्योंकि मामला ही कुछ ऐसा था. जिन बातों को बदनामी के डर से अब तक दबाछिपा कर रखा गया था, मौत के इस मंजर ने उन्हें उघाड़ कर रख दिया.प्रेम में असफल प्रेमी के इंतकाम की यह भयानक कहानी है मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर की. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ये युवावस्था में कदम रखने वाले किन्हीं 18-20 साल के प्रेमी युगल की कहानी नहीं, बल्कि 2 शादीशुदा और जवान बच्चों के अधेड़ मातापिता के प्रेम और उस के अंत की कहानी थी.

मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर में 15 जुलाई की सुबह हुई इस वारदात से इलाके में हड़कंप मच गया.उस रात किरणपाल रात भर जागता रहा. बारबार सिरहाने तकिए के नीचे रखे तमंचे को निकाल कर बिस्तर पर उठ बैठता. लोडेड तमंचे को होंठों से लगाता फिर उसे अंगुलियों के बीच घुमाता दरवाजे से कभी बाहर कभी अंदर होता फिर बिस्तर पर आ बैठता.

उस की बेचैनी चरम पर थी. वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच चुका था और उस निष्कर्ष से अब उसे कोई विमुख नहीं कर सकता था. 10 साल की मोहब्बत आज अपने अंजाम पर पहुंचने वाली थी.पौ फटते ही किरणपाल अपनी पैंट में तमंचा खोंस कर निकल पड़ा. उस के अंदर आग सी लगी हुई थी. आज फैसला हो जाना था. वह अब दोहरी जिंदगी से तंग आ चुका था. अपने प्यार को वह पूरी तरह पा लेना चाहता था, मगर वह उसे हासिल नहीं हो रहा था. और अब तो वह उस से मिलना ही नहीं चाहती थी. बातबात पर उसे ताने देने लगी थी. पीछा छोड़ने को कहने लगी थी.

उस के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर था उस की प्रेमिका मिथिलेश का घर. उसे पता था कि हर रोज वह भोर में घर के पीछे गोबर बटोरने आती है. किरणपाल घात लगा कर वहीं बैठ गया और उस के आने का इंतजार करने लगा.

साढ़े 6 बजे के करीब उस की प्रेमिका मिथिलेश हाथों में कूड़ा उठाए घर से निकली और उसी ओर चल पड़ी. घर के पीछे खाली जगह थी, जहां गायभैंसें गोबर कर जाती थीं. मिथिलेश ने हाथ का कूड़ा अभी फेंका ही था कि किरणपाल आड़ से निकल कर सामने आ खड़ा हुआ. उस की लंबी गुच्छेदार मूंछों के पीछे उस का उग्र चेहरा देख कर मिथिलेश डर गई.

मिथिलेश का पति धीर सिंह उस वक्त घर पर ही था, ऐसे में किरणपाल कोई बखेड़ा न खड़ा करे, यह सोच कर वह घर की ओर भागने को हुई. मगर किरणपाल ने उसे मौका ही नहीं दिया और तमंचा निकाल कर उस पर गोली चला दी.गोली लगने के बाद मिथिलेश जान बचाने के लिए चंद कदम भागी, मगर फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का शरीर गोली लगने से छटपटा रहा था. किरणपाल उस के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने डूबीडूबी आंखों से किरणपाल की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो, ‘ये तुम ने क्या किया?’

किरणपाल भी उसे यूं तड़पता देख रो पड़ा. मगर अब उस के सामने कोई रास्ता नहीं बचा था. वह रोतेरोते घुटनों के बल बैठ गया और तड़पती प्रेमिका को बाहों में ले कर बोला, ‘‘तू मेरी हो न सकी, मैं तुझे किसी दूसरे की होने न दूंगा मिथिलेश…’’कुछ पल वह उसे सीने से लगा कर रोता रहा, फिर उस ने उस पर दोबारा फायर झोंक दिया. दूसरी गोली लगते ही मिथिलेश जोर से तड़पी और थोड़ी देर में शांत हो गई.

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 3

रणवीर को थाने पर बुला कर अलगअलग तरीके से पूछताछ हुई. उसी तरह की पूछताछ रामसुमेर और आशीष से भी हुई. इसी बीच पुलिस को गांव की एक महिला से मालूम हुआ कि पारुल की मौत की वजह घर के कलह के कारण हुई है. उस ने पारुल की मौसी के बारे में बताया, जो इन दिनों परिवार के साथ नहीं रह रही थी. एक अन्य ग्रामीण महिला ने दबी जुबान में बताया कि रामसुमेर और पारुल की मौसी के बीच प्रेम संबंध थे, जो पारुल को पसंद नहीं थे.

इस एंगल से पुलिस ने एक बार फिर रणवीर और उन की पत्नी रूमा से पूछताछ की. रणवीर ने यह माना कि उस के घर पर चचेरे भाई का आनाजाना उस की बेटी को अच्छा नहीं लगता था. जबकि रामसुमेर उन की गैरमौजूदगी में घर आता था.पारुल से उस की जरा भी नहीं बनती थी. वह रामसुमेर का विरोध करती थी. रूमा ने पुलिस को बताया कि किस तरह से उस ने भी रामसुमेर को अपनी बहन से संबंध खत्म करने को ले कर डांट पिलाई थी.

उस के बाद पुलिस की नजर में रामसुमेर ही शक के दायरे में आ गया था. वह पहले भी पूछताछ से कतराता रहता था और थाने आने से इनकार कर दिया था.खैर, 8 जून, 2022 की रात के करीब 11 बजे रामसुमेर को उस के घर से गिरफ्तार कर घंटों थाने में बैठाए रखा. मानसिक दबाव बनाया और सरकारी गवाह बनाने का आश्वासन दिया. एक ही सवाल को कई पुलिसकर्मियों ने पूछा. आखिरकार वह टूट गया और उस ने हत्याकांड के बारे में जो बताया, वह काफी चौंकाने वाला था—

रणवीर यादव को लोग पप्पू यादव के नाम से भी जानते हैं. उस के पास खेती की जमीन थी, लेकिन शटरिंग का काम करता था. उस के 3 बच्चों में पारुल सब से बड़ी थी, 2 बेटे सर्वेश और राजेश हैं.
पारुल इंटरमीडिएट में पढ़ती थी. वह खूबसूरत खुशमिजाज लड़की थी. मोहनलालगंज में रोजाना पढ़ने जाती थी. उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. उस के पिता रणवीर की एक चचेरी साली मोरकली भी परिवार के साथ ही रहती थी. हालांकि वह मूलरूप से एटा जिले के रंगतेरी गांव की थी.
वह रणवीर के परिवार के साथ पिछले 3 सालों से रह रही थी. उस ने अपने कामकाज से परिवार के सभी सदस्यों का दिल जीत लिया था. जबकि अपनी जवानी और रूपरंग की बदौलत उस पर रामसुमेर लट्टू हो गया था. रिश्ते में साली होने चलते उस से मजाक किया करता था, जिस का कोई भी बुरा नहीं मानता था.

रामसुमेर गांव के लोगों की नजर में गलत चरित्र का युवक था. ग्रामीणों के साथ अकसर उस का झगड़ा होता रहता था. वह मोरकली को दिलोजान से चाहता था, लेकिन रणवीर यादव और रूमा देवी के चलते उस की दाल नहीं गलती थी.पारुल भी उस का जबतब विरोध किया करती थी. एक बार जब पारुल ने उन को रंगेहाथों प्रेमालाप में देख लिया था, तब उन्होंने पारुल को धमकी दी थी. जबकि रामसुमेर ने बताया कि मोरकली ने कहा था कि उस के प्यार की दुश्मन पारुल ही है.

रामसुमेर के मन में मोरकली की यह बात चुभ गई थी. उस के बाद से ही वह पारुल को अपने प्यार की राह से हटाने की ताक में रहने लगा था. संयोग से उसे 3 जून की रात को मौका मिल गया था. पारुल जैसे ही फोन पर बात करते हुए घर से बाहर निकली, रामसुमेर ने उसे दबोच लिया.
दरअसल, फोन मोरकली का था, जो रामसुमेर ने ही करवाया था. रामसुमेर उसे घर से कुछ दूर ले गया और उस के सिर पर डंडे से प्रहार किया. सिर पर चोट लगने से वह बेहोश हो गई और खेत में गिर गई थी. गिरने के बाद उस ने डंडे से उस की खूब पिटाई की. फिर बाद में उस के सिर पर गुस्से में ईंट से वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद वह घर वापस लौट आया.

उस वक्त घर वाले पारुल की तलाश में लगे हुए थे. उन के साथ रामसुमेर भी तलाश करने लगा.
हत्या का जुर्म स्वीकार लेने के बाद 9 जून का उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल किया गया डंडा और ईंट भी बरामद कर ली. बाद में रामसुमेर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 1

कहानी मोहनलालगंज के कोराना गांव की है. एक सामान्य जीवन गुजारते हुए यादव परिवार में
शटरिंग का काम करने वाला घर का मुखिया रणवीर यादव जहां अपने कामकाज के सिलसिले में गांव और शहर एक करता रहता था, वहीं उस की पत्नी रूमा देवी घरेलू कामकाज में लगी रहती थी.
खाना पकाने, बरतन मांजने, कपड़े धोने, अनाज के रखरखाव से ले कर साफसफाई एवं मवेशियों का भी खयाल रखने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. उस में उन की छोटी बहन मोरकली और बेटी पारुल यादव भी मदद करती थी. वैसे पारुल पढ़ाई भी कर रही थी.

इन के अलावा पट्टीदारों में रामसुमेर यादव और उस का छोटा भाई आशीष यादव का भी अपने चचेरे बड़े भाई रणवीर यादव के घर आनाजाना लगा रहता था. परिवार में मेलजोल बना हुआ था. वक्तवेबक्त सभी एकदूसरे के सुखदुख में सहयोगी बने रहते थे.रामसुमेर खेतीकिसानी के कामों में लगा रहने वाला एक विवाहित युवक था. किंतु था मनचला. गांव की लड़कियों और दूसरी औरतों को वासना की नजरों से देखता था. मौका मिलते ही उन से मजाक करता और छेड़छाड़ तक कर दिया करता था.

एक रोज कालेज से लौटती पारुल को उस के चाचा रामसुमेर ने रास्ते में रोक लिया. उसे डांटते हुए बोला, ‘‘देख पारुल, तुझे आखिरी बार समझा रहा हूं, मेरे और मोरकली के बीच में तुम मत आओ. तुम बहुत छोटी हो इसलिए चेता रहा हूं.’’पारुल कुछ कहे बगैर चुपचाप अपने चाचा की बात सुन कर घर आ गई. लेकिन गुस्सा मन में दबा था. बरामदे में कुरसी के साथ लगी टेबल पर किताबों का बैग पटका और सीधे रसोई में घुस गई. पानी पीने के लिए स्टील का गिलास उठाया, लेकिन वह हाथ से छूट कर जमीन पर जा गिरा. गिलास वहीं पर 2-3 बार उछलने के बाद झनझनाहट की तेज आवाज के साथ घूमने लगा.
बगल के कमरे से उस की मां रूमा की आवाज आई, ‘‘पारुल, अरे ठीक से. बरतन पर अपना गुस्सा क्यों निकाल रही है.’’

असल में रूमा ने उसेघर में पैर पटकती हुई आते देखा था और घर में बरतन गिरने की वजह वह जानती थी. ऐसा तभी होता था, जब पारुल गुस्से में होती थी.‘‘क्या बात है, इधर आ कर बता तो!’’ वह बोली.
‘‘अरे कुछ नहीं मम्मी! मोरकली कहां है?’’ पारुल ने मम्मी को जवाब देते हुए पूछा.
‘‘क्यों? होगी कहीं? क्या किया मोरकली ने? ..और सुन वह तुम से बड़ी है मौसी कह कर नहीं बुला सकती हो.’’ मम्मी ने समझाया.‘‘कैसी मौसी मम्मी? उस के चलते ही हमें आज चाचा ने चार बातें सुना दी,’’ पारुल तुनकती हुई बोली.

‘‘कौन रामसुमेर! वह थोड़ी देर पहले ही तो यहां आया था. मैं ने उसे डांट कर भगाया. वह मोरकली की शिकायत कर रहा था.’’ रूमा बोली.तब तक पारुल ने मम्मी के पास आ कर रास्ते में चाचा द्वारा कही गई बात बता दी.इस पर रूमा बोली, ‘‘अच्छा तो उस करमजली के चलते बात यहां तक आ पहुंची है. आने दो उसे, अभी उस की खैर लेती हूं. बाबूजी ने उसे मेरे गले मढ़ दिया है. कब तक यहां रहेगी पता नहीं.’’मोरकली रूमा की चचेरी बहन थी, जिस के मांबाप नहीं थे. उस की देखभाल के लिए रूमा के पिता उस के पास छोड़ गए थे.मोरकली थी कि अपनी ही मस्ती में रहती थी. घरेलू काम में रूमा की बहुत मदद करती थी. इस कारण घर के सभी सदस्य उस के मेहनती होने को ले कर खुश रहते थे, लेकिन कुछ दिनों से उस के रंगढंग में बदलाव आ गया था. वह खेतों में घूमने लगी थी. पास के दूसरे लोगों से गप्पें लड़ाने लगी थी. हंसीमजाक भी करने लगी थी.

पारुल ने पकड़ी मोरकली का करतूत एक बार मोरकली को पारुल ने रामसुमेर से हंसहंस कर बातें करते देख लिया था. पारुल को देखते ही दोनों अचानक चुप हो गए थे. रामसुमेर चुपचाप वहां से चला गया था. मोरकली ने पारुल का हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘‘पारुल, मम्मी को मत बोलना कि मैं तुम्हारे चाचा के साथ मिली थी. उसी ने मुझे जबरदस्ती रोक लिया था. मैं तो खेत से घर आ रही थी.’’ मोरकली सफाई देती हुई बोली.

उस रोज पारुल अपनी मौसी के कहने का मतलब बहुत अधिक नहीं समझ पाई कि वह उसे देख कर सफाई क्यों देने लगी थी. किंतु वह इतना समझ गई थी मोरकली अपनी करतूत छिपाना चाहती है.
2 दिन बाद दोपहर को उस ने अपने घर में जो देखा, वह उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा. हुआ यह था कि पारुल अपने कालेज से घर आई थी. हमेशा की तरह उस ने अपना बैग बरामदे में टेबल पर रख दिया था और रसोई में पानी पीने के लिए जाने लगी, लेकिन उस के कमरे से फुसफुसाने की आवाजें सुनाई दीं. उस ओर देखा. कमरे का दरवाजा बंद था.

उस की जिज्ञासा जागी और दरवाजे के पास आ गई. तब आवाजें और साफ सुनाई देने लगी थीं. मोरकली कह रही थी, ‘‘…अब जाओ, कोई आ जाएगा.’’पारुल ने दरवाजे से कान सटा दिए थे. कुछ सेकेंड बाद फिर आवाज आई, ‘‘अरे मुंह मत बंद करो, दम घुट जाएगा. चलो, हटो अब.’’
पारुल तब तक इतना समझ गई थी कि कमरे में मोरकली के साथ कोई और भी है, और जो भीतर हो रहा है वह गलत है. उस ने दरवाजा पीटने के लिए हाथ उठाया ही था कि एक झटके में दरवाजे का एक पल्ला खुल गया.

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 3

राजेश हरबंस और शांतिबाई यही चाहते थे कि वे बारबार बाबूलाल के पास आएं और संबंध बना कर के पारस मणि के बारे में सच्चाई को जान जाएं और उसे हथिया लें.
राजेश हरबंस हंसहंस के बाबूलाल से बातें करता बड़ा सम्मान देते हुए कुछ भी कहता. एक दिन मौका पा कर राजेश ने कहा, ‘‘बाबूलाल जी, एक बात पूछूं अगर आप बुरा ना मानें और हमें अपना छोटा भाई मानें तो.’’

सहज भाव से बाबूलाल ने कहा, ‘‘नहींनहीं भाई, भला मैं बुरा क्यों मानूंगा. पूछो क्या जानना चाहते हो?’’
‘‘मैं ने सुना है कि आप के पास पारस मणि है. क्या यह सच है? अगर यह सच है तो आप तो दुनिया के सब से अमीर आदमी बन सकते हो. रोज सोना बना कर के दुनिया भर की सुविधाओं का उपभोग कर सकते हो. मगर ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो. इस में अगर हमारी कोई मदद चाहिए तो बताइए, मेरी पहचान छत्तीसगढ़ के मंत्री तक है.’’

बाबूलाल ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हर बात हर आदमी को नहीं बताई जाती, मैं जैसा भी हूं खुश हूं. मुझे और ज्यादा क्या चाहिए, मैं तो सेवक आदमी हूं. लोगों की सेवा में मुझे आनंद आता है और जो कुछ भी मेरे पास है वह पर्याप्त है.’’राजेश हरबंस ने अपनी आंखों को घुमाते हुए कहा, ‘‘बाबूलालजी, मैं यह जानना चाहता हूं कि आप के पास पारस मणि है कि नहीं?’’

राजेश की बातों को बाबूलाल ने सहजता से लिया और कहा, ‘‘छोड़ो, तुम अपने इलाज पानी पर ध्यान दो.’’बाबूलाल की बातों को एक गहरे अर्थ में समझ कर के राजेश हरबंस मौन रह गया. अब उसे पूरा विश्वास हो गया था कि बाबूलाल यादव के पास पारस मणि है और वह सहजता से न दिखाएगा और न देगा. इस के लिए कोई दूसरा रास्ता ही अख्तियार करना होगा.उस ने टेकचंद जायसवाल से बात की और बताया कि बाबूलाल तो बड़ा चालाक आदमी है वह कुछ नहीं बता रहा है. इस के लिए कोई योजना बनाओ, ताकि वह सब कुछ सचसच बोल दे और हमें पारस मणि दे दे.

एक दिन टेकचंद जायसवाल के गांव लोहारकोटा स्थित घर में अद्वितीय पारस मणि को प्राप्त करने के लालच में राजेश हरबंस, शांतिबाई यादव, रामनाथ श्रीवास, यासीन खान, प्रकाश जायसवाल, रवि जायसवाल सहित 10 लोग इकट्ठे हुए.वहां हुई बैठक में टेकचंद ने कहा, ‘‘तांत्रिक बाबूलाल जैसे मूर्ख के हाथ में पारस मणि है, जिसे हम आसानी से हथिया सकते हैं. आज हमें तय करना है कि पारस मणि प्राप्त करने के लिए चाहे जो भी करना पड़े, हम योजनाबद्ध तरीके से करेंगे.’’

यह सुन कर शांतिबाई यादव बोली, ‘‘बाबूलाल बहुत ही घाघ आदमी है. मैं ने उसे अपने तमाम लटकेझटके दिखाए, मगर उस ने थोड़ी सी भी बात नहीं बताई.’’राजेश हरबंस बोल पड़ा, ‘‘इसलिए मैं कहता हूं कि हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा. उस से पारस मणि प्राप्त करना आसान नहीं है. वह बहुत ही चतुर है. ठाठ की जिंदगी जीता है मगर घर तो ऐसा है मानो झोपड़ी, जिसे देख कर
कोई नहीं कहेगा कि इस के पास पारस मणि होगी.’’यासीन खान ने भी कहा, ‘‘मुझे तो लगता है उस के पास सौ प्रतिशत पारस मणि है. और आप जो भी कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं. चाहे जो भी करना हो.’’

उस दिन सभी ने एकजुट हो कर के तय किया कि योजना बना कर के बाबूलाल यादव को घर से बाहर निकाला जाए और जिला जांजगीर के कटरा जंगल में ले जा कर उस से पूछताछ की जाए. वहां वह घबरा जाएगा और हमें पारस मणि सौंप देगा.

योजना के तहत 8 जुलाई, 2022 को राजेश हरबंस और शांतिबाई यादव बाबूलाल यादव के पास पहुंचे. राजेश ने उस से निवेदन किया, ‘‘मेरे घर पर कुछ बाधा है, उसे आप को दूर करना है. आप अभी चलेंगे तो अच्छा होगा.’’

चूंकि राजेश शांतिबाई को ले कर बाबूलाल के पास कई बार जा चुका था, इसलिए तांत्रिक बाबूलाल ने उस की बात पर विश्वास कर लिया और राजेश की बाइक पर बैठ कर उसी वक्त चल दिया.
बाबूलाल यादव को ले कर के दोनों बाइक से बलौदा के जंगल की ओर निकल गए. योजना के अनुसार, एक जगह टेकचंद जायसवाल, यासीन खान, रामनाथ श्रीवास आदि वहीं जंगल में इकट्ठा मिल गए.
वहां जा कर बाबूलाल को सभी ने एक सुनसान घर में ले गए. सभी ने उसे घेर लिया और पारस मणि के बारे में पूछने लगे. मगर बाबूलाल ने शांत भाव से कहा, ‘‘मेरे पास कोई पारस मणि नहीं है. आप लोगों को जरूर गलतफहमी है.’’

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो, तुम्हारे पास कुछ तो है. सारे गांव वाले बोल रहे हैं कि तुम्हारे पास पारस मणि है, जिस से तुम लोहे को सोना बना सकते हो. उसे चुपचाप हमें सौंप दो नहीं तो…’’ गुस्से से उफनते हुए टेकचंद जायसवाल ने उस के बाल पकड़ कर गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिए.बाबूलाल यादव की आंखों में आंसू आ गए. वह घबरा गया. उस की एक नहीं सुनी गई और हाथपांव बांध कर उस से सभी पूछताछ करने लगे. 10 लोगों के गिरोह में फंसा बाबूलाल बेबस, लाचार हो गया था.

सभी उसे बारीबारी से मारपीट रहे थे और पूछ रहे थे कि बताओ पारस मणि तुम ने कहां पर रखी हुई है.
जब बाबूलाल कुछ न बता पाया तो टेकचंद जायसवाल ने सभी से कहा कि चलो सब इस के घर चलते हैं और इस के घर में खोजबीन करते हैं. जहां भी पारसमणि होगी, उसे हम ले आएंगे.
कुछ लोगों को बाबूलाल की सुरक्षा में छोड़ कर बाकी सभी बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद रात को 11 बजे पहुंचे. घर खुलवा कर के पत्नी रामवती को उन्होंने डराधमका कर एक जगह बैठा दिया और सारे घर में इधरउधर पारस मणि खोजने लगे. मगर उन्हें जब संदूक और अन्य जगहों पर पारस मणि नहीं मिली तो संभावित जगहों पर उन्होंने कुदाली से खोद कर देखा.

जब कहीं भी पारस मणि नहीं मिली तो सभी दुखी हो गए और सिर पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि आखिर पारस मणि बाबूलाल ने कहा छिपाई हुई है.कुछ समझ में नहीं आया तो घर में बाबूलाल की पत्नी की ज्वैलरी और 23 हजार रुपए नकद कब्जे में ले कर रामवती को धमकी दे कर वहां से चले आए.
वे सभी जंगल में पहुंचे तो बाबूलाल को रस्सियों से बंधा हुआ पाया.

बाबूलाल से टेकचंद आदि ने फिर पूछताछ शुरू की. बाबूलाल चूंकि पारस मणि की झूठी अफवाह फैला चुका था, इसलिए अब लाख सफाई देने पर भी उस की बात कोई मानने को तैयार नहीं हुआ.
उस के साथ प्रताड़ना शुरू हो गई. बारबार उस से पूछा जाता कि बताओ कहां पर पारस मणि छिपा रखी है. जब वह नहीं बता पाया तो उसे सभी ने पीटपीट कर मार डाला. फिर उस की लाश लेवई गांव के पास कटरा जंगल में गड्ढा खोद कर दफना दी गई.

सुबह 9 जुलाई, 2022 दिन शनिवार को जब रामवती यादव ने गांव वालों को बताया कि कुछ लोग उस के घर पारस मणि ढूंढने आए थे. मणि नहीं मिली तो वे घर में लूटपाट कर के ले गए. जाते समय वे उसे धमकी भी दे गए थे. उस ने यह भी बताया कि पति बाबूलाल भी कल से लापता है.

यह सुन कर गांव वाले चिंतित हो गए और कयास लगाया जाने लगा कि जरूर कोई बड़ी घटना घटी है. इसलिए मामले की जानकारी पुलिस को देने में ही समझदारी होगी. तब रामवती यादव कुछ गांव वालों को ले कर जांजगीर थाने पहुंची और थानाप्रभारी उमेश साहू से मिल कर पूरी घटना की जानकारी दी. उमेश साहू ने मामले की जांच के लिए तत्काल स्टाफ को गांव मुनुंद घटनास्थल के लिए रवाना कर दिया.

पुलिस टीम ने गांव में जांच करने के बाद थानाप्रभारी को बता दिया कि रामवती यादव सही बोल रही थी. थानाप्रभारी उमेश साहू को जब जांच में मामले की गंभीरता समझ में आई तो उन्होंने एसपी विजय अग्रवाल को पूरी घटना की जानकारी दे कर मामले की गंभीरता के बारे में बताया.

एसपी विजय अग्रवाल ने अन्य थानों के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को ले कर तत्काल जांच के लिए 4 टीमें गठित कीं. पुलिस टीम में थानप्रभारी उमेश साहू, इंसपेक्टर विवेक पांडेय, एसआई कामिल हक, अवनीश श्रीवास, सुरेश धुर्व, एएसआई संतोष तिवारी, हैडकांस्टेबल राजकुमार चंद्रा, मनोज तिग्गा, यशवंत राठौर, मुकेश यादव, मोहन साहू, जगदीश अजय, कांस्टेबल मनीष राजपूत, दिलीप, सिंह, प्रतीक सिंह के अलावा साइबर सेल टीम को शामिल किया गया. पुलिस टीमों ने मामले की जांच बड़ी तेजी से शुरू कर दी.जांच में पुलिस को यह पता चल गया था कि तांत्रिक बाबूलाल को राजेश हरबंस और शांतिबाई तांत्रिक क्रिया के लिए अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने जब दोनों को बुला कर पूछताछ की तो धीरेधीरे टेकचंद जायसवाल, रवि जायसवाल, प्रकाश जायसवाल, यासीन खान आदि के नाम भी सामने आ गए. पुलिस ने सभी को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.

पुलिस पूछताछ में सब से पहले शांतिबाई यादव ने सब कुछ सचसच बता दिया. इस के बाद सभी को हिरासत में ले कर सभी से अलगअलग गहन पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने पारसमणि पाने के चक्कर में तांत्रिक बाबूलाल यादव की पीटपीट कर हत्या की. फिर उस के शव को जंगल में ही गड्ढा खोद कर दबा दिया था. उस के कपड़े आदि जला दिए थे.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर जंगल में दफनाया गया बाबूलाल का शव बरामद कर लिया. इस के अलावा आरोपियों की निशानदेही पर रामवती के घर से लूटी हुई ज्वैलरी, 9 हजार रुपए नकदी, बाबूलाल को मारपीट करने के दौरान उपयोग हुए डंडे, शव को दफनाने में प्रयुक्त फावड़ा, कुदाली, सब्बल, घटना में प्रयुक्त 3 मोटरसाइकिलें, बाबूलाल का थैला, मोबाइल फोन व अन्य सामान जो आरोपियों ने लेवई के जंगल में जला दिए थे, उन के अधजले अवशेष भी लेवई जंगल से बरामद कर लिए.

पुलिस ने केस में हत्या तथा डकैती की धाराएं भी जोड़ दीं. आरोपियों को भादंवि की धाराओं 457, 458, 360, 395, 342, 302, 201, 120बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर लिया.गिरफ्तार किए गए आरोपीगण टेकचंद जायसवाल, रामनाथ श्रीवास, राजेश हरबंस, मनबोधन यादव, छवि प्रकाश जायसवाल, यासीन खान, खिलेश्वर राम पटेल, तेजराम पटेल, अंजू कुमार पटेल एवं शांतिबाई यादव को पुलिस ने 15 जुलाई, 2022 को जांजगीर की कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. द्य

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 2

किरणपाल उस की लाश से लिपट कर रोता रहा और फिर तमंचे की नाल अपनी कनपटी से सटा कर उस ने खुद को गोली मार ली और अपनी प्रेमिका को बाहों में भरेभरे मौत को गले लगा लिया. चंद मिनटों में ही दोनों की इहलीला समाप्त हो गई.

गांव के लोग तो पहली गोली की आवाज पर ही आसपास इकट्ठा हो गए थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि हाथ में तमंचा लहराते किरणपाल के नजदीक भी चला जाए.उस खौफनाक दृश्य को मिथिलेश के पति धीर सिंह ने भी अपनी आंखों से देखा. इस घटना के बाद वह शर्म और बदनामी से जैसे जमीन में गड़ा जा रहा था. किसी से आंख मिला कर बात करने की उस की हिम्मत नहीं थी.

आखिर जिस संबंध के बारे में बारबार पूछने पर भी उस की पत्नी साफ इंकार कर जाती थी, वह इस तरह पूरे गांव के सामने उजागर होगा, ऐसा तो उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. आखिर यह कोई उम्र थी ऐसी हरकतें करने की? जिस उम्र में गांवदेहात की औरतें नानीदादी बन जाती हैं, उस उम्र में उस की पत्नी प्रेम रचा कर बैठी थी? उफ!समाज में किसकिस तरह के नाजायज रिश्ते पनपते और जारी रहते हैं, यह घटना उस का उदाहरण है. मिथिलेश की उम्र 44 साल हो रही थी. वह न सिर्फ शादीशुदा थी, उस का पति उस के साथ रहता था बल्कि वह 2 शादीशुदा बेटियों की मां भी थी.

उधर उस का प्रेमी किरणपाल भी 4 बच्चों का बाप था. उस की भी उम्र 45-46 साल थी. घर में उस की पत्नी थी, जो कभी अपने पति से वह प्यार और विश्वास नहीं पा सकी, जिस की वह हकदार थी. पता नहीं 2 बेटियों की मां मिथिलेश में किरणपाल ने क्या देखा कि वह ऐसा लट्टू हुआ.बीते 10 सालों से दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. कोई पति कितना भी छिपाना चाहे मगर पत्नी की नजरें भांप ही लेती हैं. मिथिलेश के कारण कई बार किरणपाल का अपनी पत्नी से झगड़ा हो चुका था.

लेकिन अधेड़ावस्था के इस प्रेम का अंजाम इतना भयावह होगा, इस की किसी को उम्मीद नहीं थी. दोनों को एकदूसरे से लिपटे हुए जिस हालत में लोगों ने मृत अवस्था में देखा, उस के बाद तो दोनों के घर वालों को लोग लानतें दे रहे थे.गांवोंदेहातों में अकसर पुरुष कमाई के लिए शहर चले जाते हैं. बीवीबच्चे गांव में ही रह जाते हैं. ऐसे में कई बार घर के अन्य पुरुषों से या बाहर के आदमियों से औरतों के नाजायज संबंध बन जाते हैं.

देहातों में अभी भी शौच आदि के लिए अनेक महिलाएं मुंहअंधेरे ही लोटा ले कर खेतों पर जाती हैं. यह वक्त प्रेमी जोड़ों के मिलन के लिए सब से उपयुक्त होता है. बहाना शौच का होता है और अंधेरे का फायदा भी मिलता है.देवरभाभी और जीजासाली संबंधों की कहानियां गांव की फिजा में ही ज्यादा सुनाई देती हैं. कुछ ऐसे ही संबंध 10 साल पहले मिथिलेश और किरणपाल के बीच भी बन गए, जब मिथिलेश का पति धीर सिंह काम के सिलसिले में बाहर गया था.

दुर्वेशपुर गांव के निवासी धीर सिंह की पत्नी मिथिलेश अपना घर संभालने के साथसाथ मजदूरी भी करती थी. धीर सिंह भी मेहनतमजदूरी के लिए कभी गांव में मनरेगा के तहत काम करता था तो कभी शहर चला जाता था. उस के 2 बेटियां थीं, जिन की शादियों की जिम्मेदारी पूरी करनी थी.लिहाजा पतिपत्नी दोनों मेहनत करते थे. मगर जब धीर सिंह शहर चला जाता था, तब मिथिलेश बहुत अकेलापन महसूस करती थी. 10 साल पहले इसी अकेलेपन में उस की दोस्ती किरणपाल से हो गई. किरणपाल दबंग टाइप का आदमी था. छोटीमोटी ठेकेदारी करता था. उस ने मिथिलेश को कई बार मजदूरी के काम पर लगाया और अच्छा मेहनताना दिया था.

किरणपाल को गोरी चमड़ी वाली मिथिलेश अच्छी लगने लगी. वह अकसर उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. मिथिलेश भी कभीकभी कनखियों से किरणपाल को देखती और मुसकरा देती. उस की इस अदा पर किरणपाल निहाल हो जाता था.धीरेधीरे दोनों के बीच दूरियां कम होने लगीं. बातचीत बढ़ने लगी. दोनों एक ही बिरादरी के थे. लिहाजा दोनों के बीच अकसर घरपरिवार और खानदान को ले कर लंबीलंबी बातें होती थीं.

मिथिलेश के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर किरणपाल का घर था. उस के घर में उस की पत्नी और 4 बेटे थे. मगर किरणपाल अब मिथिलेश का दीवाना हो गया था. वह उस से बेइंतहा प्यार करने लगा था.
वह उस की शारीरिक नजदीकियों की चाहत करने लगा था. पहले तो मिथिलेश ने किरणपाल की इस चाहत का दबादबा विरोध किया, लेकिन एक दिन धीर सिंह की गैरमौजूदगी में मिथिलेश के कदम बहक गए.

वह किरणपाल के मोहपाश में बंध गई. जब रहीसही दूरियां भी मिट गईं तो वह भी रातबिरात उस से मिलने आने लगी. दोनों छिपछिप कर खेतों में मिलते और रात भर एकदूसरे की बाहों में समाए रहते.
मिथिलेश को एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि वह 2 जवान बेटियों की मां है. किरणपाल की दबंगई में उस को मर्द वाली बात लगती थी. फिर वह पैसे वाला भी था. वक्तजरूरत पर मिथिलेश की मदद भी करता था. यह सब बातें मिथिलेश को उस के बहुत करीब खींच ले गईं.

किरणपाल का साथ मिथिलेश को बहुत अच्छा लगता था. वहीं किरणपाल को भी इस बात का होश नहीं रहा कि घर में उस की पत्नी और 4 बेटे हैं. वह तो चाहता था कि मिथिलेश अपने पति को छोड़ कर हमेशा के लिए उस की हो जाए. इस के लिए वह अपना घर भी छोड़ने को तैयार था. मगर मिथिलेश इस बात के लिए राजी नहीं होती थी. खैर, यह प्रेम कहानी 10 साल चलती रही.

जीजा के प्यार का रस

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 1

तांत्रिक बाबूलाल (65 वर्ष) एक दिन चौपाल पर बैठा था. उस दौरान लोग उस के ठाठबाट को
ले कर बात कर रहे थे, तभी वह अपनी शेखी बघारते हुए बोला, ‘‘अरे भाई, हमारे पास अब क्या कमी है. जो चाहते हैं, खातेपीते हैं और ऐश की जिंदगी जी रहे हैं. एक समय था, जब मैं बहुत गरीब था, मगर अब ऐसी बात नहीं है.’’
बाबूलाल यादव ने साथ बैठे हुए चौपाल के अपने हमउम्र और अन्य लोगों से गोलमोल बातें कहीं.
‘‘मगर भाई बाबूलाल, आज के समय आज की महंगाई में भी तुम्हारे ठाटबाट… कुछ समझ में नहीं आता.’’ किशन जायसवाल ने बड़े लल्लोचप्पो भरे स्वर
में कहा.
किशन ने किसी से सुन रखा था कि बाबूलाल के पास कोई ऐसी जादुई शक्ति है, जिस से वह मालामाल हो गया है. वह और अन्य कई लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर माजरा क्या है.
जब बात चली तो सभी उत्सुक भाव से बाबूलाल की ओर देख और सुन रहे थे. बाबूलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘देखो भई, संसार में एक से एक बड़ी शक्तियां हैं. सवाल है उन शक्तियों को साधने का और अगर एक बार आप ने साधना कर ली तो पूरी जिंदगी आप सुखशांति, ऐश्वर्य से बिता सकते हैं.’’
बाबूलाल के यह कहने के बाद तो लोगों में और भी उत्सुकता बढ़ गई. लोग बाबूलाल की प्रशंसा करने लगे. कोई कुछ कह रहा था तो कोई कुछ. अपनी प्रशंसा सुन कर के बाबूलाल उस समय बेहद गौरवान्वित था.
वहां पर मौजूद रमेश साहू नाम के युवक ने बाबूलाल से चिरौरी करते हुए कहा, ‘‘काका, कुछ तो ऐसा रास्ता हम लोगों को भी बताओ, ताकि हमारी जिंदगी भी सुखी हो जाए.’’
‘‘अरे बेटा, तुम तो जवान हो, दुकान चलाते हो, पैसे वाले हो. तुम्हारे पास क्या कमी है, जो मेरा रहस्य जानना चाहते हो?’’ हंसते हुए बाबूलाल ने रमेश साहू से कहा.
‘‘नहींनहीं काका, आज तो आप को बताना ही होगा आखिर आप के पास ऐसी क्या शक्ति है?’’ सुदर्शन यादव ने मिन्नतें करते हुए पूछा, ‘‘हम ने सुना है कि आप के पास सोना बनाने वाला कोई पत्थर है. क्या यह सच है?’’

ये बातें सुन कर के गांव में चौपाल में एक तरह से सन्नाटा पसर गया. सभी के मन में यह था कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसी शक्ति है, कोई मणि है जिस से वह मालामाल है. क्योंकि एक बार तो उस ने स्वयं बातोंबातों में गांव की सावित्री नामक महिला से कहा था कि उस के पास पारस मणि है. वहां से यह बात धीरेधीरे फैलती चली गई थी, मगर अंदरखाने थी.
उस दिन बाबूलाल बहुत खुश था. उस के चेहरे पर खुशी की आभा स्पष्ट दिखाई दे रही थी. गांव में उस का सम्मान बढ़ता चला जा रहा था. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस गांव में उस ने गरीबी देखी है, अभाव देखे हैं, घर में एक बार ही खाना बनता था और दिन भर भूखे पूरा परिवार गुजार देता था. उसी गांव में उसे इतना मानसम्मान और पैसा मिलेगा.
मगर वह समझ रहा था कि यह सब उस के तंत्रमंत्र और रुपएपैसे के कारण हो रहा है. वह अपने ज्ञान पर मंत्रमुग्ध भी था.

लोगों की भावना में बह कर बाबूलाल यादव ने कहा, ‘‘देखो, एक होती है पारस मणि, जो तुम कह रहे हो न, मैं उसी की बात कर रहा हूं. पारस मणि एक दिव्य पत्थर है, कहते हैं कि अगर लोहे को छुआ दो तो वह सोना बन जाता है. तुम ठीक कह रहे हो.’’ बाबूलाल यादव ने बड़ी समझदारी से जानबूझ कर के बातों को आधाअधूरा कहा, ताकि कुछ लोग बात समझ जाएं और कुछ अस्पष्ट भी हो.
चौपाल में बैठे हुए लोगों की धड़कनें बढ़ गई थीं. लोग यह सोच रहे थे कि आज बहुत बड़ा खुलासा होने वाला है. बाबूलाल खुद यह बता देगा कि उस के पास पारस मणि है. अगर ऐसा है तो गांव की तकदीर बदल सकती है. गांव धनधान्य से परिपूर्ण हो जाएगा.

एक बुजुर्ग मनहरण शर्मा ने बाबूलाल की पीठ पर हाथ रख कर के बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘भाई बाबूलाल, अगर ऐसा है कि तुम्हारे पास पारस मणि है तो फिर तो तुम हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं हो.’’
बाबूलाल की छठी इंद्री अब काम करने लगी थी. उस ने संभल कर कहा, ‘‘अरे भाई, मैं ने कब कहा कि कोई मणि मेरे पास है लेकिन साधना करने से क्या नहीं मिल सकता. मैं ने साधना की है. मैं उसी की वजह से खुशहाल हूं. आप लोग भी मेरे रास्ते पर चलो. मगर यह आसान नहीं है 20-30 साल लग जाते हैं, तब जा कर के कोई शक्ति प्राप्त हो पाती है.’’

 

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 3

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे बात गांव में फैलने लगी कि किरणपाल और मिथिलेश के बीच नाजायज रिश्ता है. मगर किरणपाल की दबंगई के कारण किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि सामने कुछ बोल दे.

बात धीर सिंह के कान में भी पड़ी. उस ने पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. धीर सिंह भी सोचता कि 40 साल की औरत, 2 बेटियों की मां भला प्रेमप्यार के चक्कर में कैसे पड़ सकती है? फिर किरणपाल ने वक्त जरूरत पर उस की मदद भी की है, ऐसे आदमी की नीयत पर वह कैसे शक करे? यही सोच कर वह चुप रहा.

मिथिलेश और धीर सिंह मिल कर अपनी जवान बेटियों के लिए इधरउधर के गांवों में रिश्ते ढूंढ रहे थे. रिश्ते मिल भी गए और दोनों की शादियां भी धूमधाम से हो गईं. शादी में पूरे गांव को न्योता था. किरणपाल का परिवार भी आया और शगुन दे कर गया.दोनों बेटियों के ससुराल चले जाने के बाद मिथिलेश अकेली हो गई. धीर सिंह की गैरमौजूदगी में उस का अकेलापन दूर करने के लिए किरणपाल अकसर उस से मिलने आने लगा. जैसेजैसे दोनों की उम्र बढ़ रही थी, दीवानगी भी बढ़ती जा रही थी. खासतौर से किरणपाल की.

अब उस ने खुलेआम मिथिलेश पर अपना हक जताना शुरू कर दिया था. यह देख कर मिथिलेश उस से कुछ भय खाने लगी थी.किरणपाल की यह बात मिथिलेश को अच्छी नहीं लगती थी. ढंकेछिपे जो प्रेम चल रहा था, वह ज्यादा मजे दे रहा था. मगर जब किरणपाल ने लोगों के सामने मिथिलेश से मिलना और बात करनी शुरू कर दी तो मिथिलेश की बदनामी होने लगी.

इधर कुछ दिनों से किरणपाल ने मिथिलेश पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह धीर सिंह को छोड़ कर हमेशा के लिए उस के पास आ जाए. मगर मिथिलेश ने साफ इंकार कर दिया. वह किसी भी हालत में अपना घर नहीं छोड़ना चाहती थी और फिर उस की दोनों बेटियों के ससुराल का भी मामला था. कितनी बदनामी होती उस के इस कदम से.बेटियों का ससुराल में सिर उठा कर जीना मुश्किल हो जाता. मिथिलेश ने किरणपाल को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा.

किरणपाल की जिद को देख कर अब मिथिलेश उस से दूर रहने लगी. वह 10 बार बुलाता तो कहीं एक बार जाती थी. उस के इस बर्ताव ने जैसे आग में घी का काम किया. किरणपाल प्यार की आग में धूधू कर जलने लगा. प्रेमिका से बनी हुई दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वह अब आरपार का फैसला करना चाहता था.एक दिन उस ने सुबह के धुंधलके में मिथिलेश को खेत पर पकड़ लिया. उस दिन वह उस का फैसला जान लेना चाहता था. उस ने मिथिलेश पर शादी का दबाव बनाया तो मिथिलेश ने साफ इंकार करते हुए यहां तक कह दिया कि वह उस से अब तंग आ चुकी है और अब वह उस से कभी नहीं मिलेगी. यह कह कर मिथिलेश तेज कदमों से अपने घर की ओर चल दी.

किरणपाल की तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गई. वह ठगा सा खेत की मेड़ पर बैठा रह गया. उसे मिथिलेश से ऐसा जवाब मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. उस के लिए तो उस ने कभी अपनी पत्नी की परवाह नहीं की, जिस ने उस के आंगन में एक नहीं 4-4 फूल खिलाए. मिथिलेश के लिए उस ने क्या नहीं किया. जब जरूरत पड़ी, उस की आर्थिक मदद की. लेकिन आज मिथिलेश के जवाब ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया.

किरणपाल ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि मिथिलेश अगर उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की हो कर भी नहीं रहने देगा. यह 13 जुलाई, 2022 की बात है जब उस ने अपनी प्रेम कहानी का अंत सोच लिया.

इस के बाद वह अपने लोडेड तमंचे के साथ मिथिलेश को अकेला पाने की टोह में लग गया. 15 जुलाई, 2022 की सुबह उसे यह मौका मिल गया और वह तमंचा लहराते हुए मिथिलेश के सामने आ खड़ा हुआ. मिथिलेश उस से कुछ कह पाती, इस का उस ने कोई मौका नहीं दिया. किरणपाल के गुस्से का आवेग इतना तेज था कि चंद मिनटों में ही दोनों की कहानी खत्म हो गई.

गांव के लोगों ने घटना की जानकारी पुलिस को दी. घटना की सूचना मिलते ही एसपी (देहात) केशव कुमार, सीओ (सदर देहात) पूनम सिरोही और परीक्षितगढ़ पुलिस भी मौके पर पहुंची. जल्दी ही फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई.पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. सीओ पूनम सिरोही ने लाशों की स्थिति को देखते ही अंदेशा जता दिया कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. गांव वालों से थोड़ी पूछताछ के बाद ही यह बात सामने आ गई कि मिथिलेश अब किरणपाल से पीछा छुड़ा रही थी, जिस के विरोध में किरणपाल ने उसे गोली मार दी और फिर खुद को भी गोली मार ली.

गांव में प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि महिला जब अपने घर से कचरा डालने निकली थी, तभी पीछे से किरणपाल भी पहुंच गया और आवाज लगाई कि मिथिलेश तू मेरी तो नहीं हो सकी, किसी और की भी नहीं होने दूंगा… आज जिंदगी भी खत्म समझ लेना.मिथिलेश कुछ समझ पाती, इस से पहले ही किरणपाल ने अपनी प्रेमिका को गोली मार दी. आसपास के लोग वहां पहुंचते, उस से पहले ही किरणपाल ने खुद को भी गोली मार ली. चंद मिनटों में ही दोनों की मौत हो गई.

इस सनसनीखेज वारदात के बारे में जिस ने भी जाना और देखा वह हैरान रह गया. दोनों के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. किरणपाल की पत्नी शीला अपने चारों बेटों को सीने से लगाए एक ओर पड़ी कलप रही थी. वहीं घर वालों के बीच बैठा धीर सिंह भी जारजार रोए जा रहा था.वहीं पर मिथिलेश की बेटियां भी दहाड़े मार कर रो रही थीं. लोग उन्हें संभाल रहे थे. पति धीर सिंह भी बेटियों को संभाल रहा था और बारबार कह रहा था सोचा नहीं था, ऐसा भी दिन देखने को मिलेगा.

किरणपाल की पत्नी शीला ने पुलिस को बताया कि अपने पति और मिथिलेश के प्रेम प्रसंग का उस ने कई बार विरोध किया. उस के बेटों ने भी पिता को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. अकसर वह मिथिलेश का पीछा करता और उसे रोक कर जबरन बातें करने की कोशिश करता था.
लोगों ने पुलिस को बताया कि करीब 5 साल से पूरे गांव को इस प्रेम प्रसंग की जानकारी थी. 15 दिन पहले किरणपाल ने मिथिलेश पर बच्चों को छोड़ कर कहीं बाहर जा कर रहने का दबाव बनाया था.

मिथिलेश ने अपने और उस के बच्चों का हवाला दे कर इस से इंकार कर दिया था. इस पर वह शराब पी कर उस के घर पहुंच गया था और हंगामा किया था. मिथिलेश के पति धीर सिंह ने उसे समझाबुझा कर किसी तरह वापस भेजा था. मगर इस के बाद से किरणपाल जगहजगह मिथलेश का रास्ता रोक लेता था और उस से झगड़ा करता था.दबंग प्रवृत्ति के किरणपाल को कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. उस के हाथों में मिले तमंचे को देख कर फोरैंसिक टीम भी दंग रह गई. पुलिस ने तमंचे को लोड कर के भी देखा. तमंचे की नाल की लंबाई 24 इंच से ज्यादा थी.

पुलिसकर्मी चर्चा करते दिखे कि आखिर ऐसे बढि़या किस्म के तमंचे बन कहां रहे हैं? पुलिस अब किरणपाल का इतिहास खंगालने में जुटी है. उस ने वह तमंचा कब और किस से खरीदा? उस का आपराधिक तत्त्वों से कितना गहरा संबंध है? उस के धंधे क्याक्या थे? उस के पास किनकिन माध्यमों से पैसे आ रहे थे? इन सब बातों की पुलिस कथा लिखने तक जांच कर रही थी.

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 2

सामने मोरकली खड़ी दुपट्टा संभाल रही थी, जबकि उस के पीछे रामसुमेर खड़ा था. सामने पारुल को खड़ा देख दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया था. मोरकली तेजी से बाथरूम की और भाग गई थी, जबकि रामसुमेर बाहर जाने वाले दरवाजे की ओर जाने लगा था, लेकिन दरवाजे पर ही रूमा से टकरातेटकराते बचा. उस के हाथ से मवेशी को चारा देने वाली टोकरी गिर गई थी. वह नाराजगी के साथ बोली, ‘‘अरे रामसुमेर, तुम यहां! इस वक्त!’’

‘‘जी…जी भाभी, मैं तो पारुल के साथ ही आया था. मैं ने उसे कालेज से अकेली आते देखा था, इसलिए उस के पीछेपीछे हो लिया था. गांव में कुछ लड़के आवारा हो गए हैं अकेली लड़की को छेड़ते रहते हैं.’’
‘‘नहीं मम्मी, सुमेर चाचा झूठ बोल रहे हैं, मैं तो अकेली आई हूं.’’
पारुल के आगे कुछ और बोलने से पहले ही रूमा बोल पड़ी, ‘‘मुझे पता है बेटी, आज नया थोड़े कालेज से तुम्हारा घर आनाजाना हो रहा है. …और ये तुम्हारा चाचा कितना झूठा है, मुझे नहीं मालूम है क्या? खुद जैसा है, वैसा ही दूसरे लड़कों के बारे में सोचता है. जाओ, तुम अपने कमरे में जाओ, आज मैं इस की खबर लेती हूं.’’ रूमा बोली.

रूमा ने सुनाया फैसला

पारुल पहले रसोई में गई, पानी पीया फिर छत पर अपने कमरे में चली गई. रूमा अपने देवर के यहां आने का करण अच्छी तरह से समझती थी. उसी वक्त मोरकली के बाथरूम से निकलने पर उस का विश्वास और मजबूत हो गया. उसे वहीं रुकने को बोली. रामसुमेर का हाथ खींचती हुई बोली, ‘‘अब तू कहां भागता है? चल इधर आ.’’
‘‘भाभी, बाद में आऊंगा,’’ कहता हुआ रामसुमेर जाने को हुआ.
‘‘नहीं, अभी यहीं मेरा फैसला सुनना होगा.’’ रूमा बोली.
‘‘फैसला! कैसा फैसला? मैं ने क्या किया है?’’ मोरकली बोली.
‘‘तुम और रामसुमेर जो कर रहे हो, वह मेरी नजरों से छिपा नहीं है. तुम क्या समझती हो तुम्हें रामसुमेर दिल से प्यार करता है? अरे नहीं, उसे तुम्हारी देह से लगाव है. तुम्हारी जिंदगी को बरबाद कर देगा. …और तुम रामसुमेर, इस की जिंदगी के साथ तो खिलवाड़ कर ही रहे हो, अपनी बीवीबच्चों को भी धोखा दे रहे हो.’’ रूमा दोनों को समझाते हुई बोली.

‘‘भाभी, मुझे गलत समझ रही हो. मैं ने ऐसा क्या कर दिया है, जो मोरकली की जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं तो उसे दिल से…’’
रामसुमेर की बातों को बीच में काटती हुई रूमा बोली, ‘‘बस, बहुत हो गया तुम दोनों का प्यारमोहब्बत का खेल अभी बात मुझ तक है, लगता है आज इस की भनक पारुल को भी हो गई. कल तुम्हारे भैया को हो जएगी. इस का असर हमारे परिवार पर पड़ेगा, वह मुझे बरदाश्त नहीं होगा. इसलिए कह रही हूं, तुम लोग संभल जाओ और आइंदा कभी मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

पारुल को मिली धमकियां

रूमा देवी के इस फरमान का असर मोरकली और रामसुमेर पर कितना हुआ, इस का पता कुछ दिनों बाद ही चल गया. दोनों उफनती वासना के बहाव में बह रहे थे. लोकलाज और सामाजिक, पारिवारिक नैतिकता को नजरंदाज कर चुके थे.
दोनों एक रोज फिर पारुल की नजरों के सामने आ गए. इस बार पारुल ने उन्हें घर के बाहर एकांत में देखा था. उस रोज रामसुमेर ने सीधे उस का गला पकड़ लिया था और साफ लहजे में धमकी दे डाली थी कि अपनी मां को कुछ भी नहीं बताए, वरना उस का अंजाम कुछ भी हो सकता था. मोरकली ने भी धमकी दी थी कि अगर उस ने किसी को कुछ भी बताया तो वह उसे बदनाम कर देगी.
बावजूद इन धमकियों के पारुल ने अपनी मां को सब कुछ उसी रोज बता दिया था. संयोग से इस की जानकारी उस के पिता रणवीर यादव को भी एक ग्रामीण से हो गई थी. घर आते ही उन्होंने मोरकली की जबरदस्त डांट लगाई. उसे अगले रोज उस के घर छोड़ आने के लिए कहा. उसी वक्त उन्होंने रामसुमेर को बुला कर भी सभी के सामने खूब डांटा.

घर में मोरकली और रामसुमेर को ले कर तनाव का माहौल बन गया था. पारुल कुछ अधिक तनाव में आ गई थी. वह डर भी गई थी. रामसुमेर के व्यवहार को जानती थी. वह किसी से भी लड़नेझगड़ने और मरनेमारने से पीछे नहीं हटता था. उस के मन में डर समा गया था कि कहीं उस के चलते कालेज की पढ़ाई न छूट जाए.मोरकली अपने घर जा चुकी थी. उस का भी पारुल को डर था. वह भी उसे बदनाम करने की धमकी दे गई थी.बात 3 जून, 2022 की है. रात को पारुल अचानक घर से लापता थी. घर का माहौल कुछ दिनों से मोरकली और रामसुमेर को ले कर ठीक नहीं था. एक दिन पहले ही रणवीर यादव मोरकली को उस के घर छोड़ आए थे.

अब पारुल के अचानक गायब होने से वह चिंतित हो गए. वह कोई छोटी बच्ची नहीं, जो कोई उठा ले जाए, बल्कि 18 साल की इंटरमीडिएट की छात्रा थी. वह रात करीब 8 बजे फोन काल सुन कर अपने घर से मां के साथ ही बाहर निकली थी. गाय और बछड़े को चारापानी दे कर वापस घर नहीं आई थी.
ऐसा पहली बार हुआ था, लेकिन कुछ समय बाद ही घर वालों ने उस की तलाश शुरू कर दी. काफी रात तक खोजने के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चला.

मिली पारुल की लाश अगले रोज 4 जून, 2022 को करीब 7 बजे ग्रामीणों के जरिए पारुल की खून सनी लाश खेत में होने की सूचना मिली. ग्रामीणों ने इस की सूचना तुरंत मोहनलालगंज थाने को को भी दे दी. लाश कोराना गांव से 500 मीटर दूर अमर सिंह के खेत में मिली थी. वह खून से लथपथ थी.
सूचना पा कर रणवीर यादव खेत पर गए. वहां बेटी पारुल की लाश देख कर वह बेसुध हो गए. उस का शव लहूलुहान खेत में पड़ा था. कुछ समय में ही पुलिस भी दलबल के साथ आ गई थी. लाश का मुआयना किया.

पुलिस ने पाया कि पारुल के सिर में चोट के निशान थे. जिस का मतलब साफ था कि उस कि सिर पर पीछे से ईंट और डंडे से प्रहार किया गया था. मोहनलालगंज थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने पारुल के पिता रणवीर यादव से पूछताछ की. किसी से दुश्मनी, प्रेम संबंध और घरपरिवार में उस के व्यवहार आदि से संबंधित सवाल पूछे गए. लेकिन रणवीर यादव से इस बारे में उन्हें कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. हालांकि रणवीर यादव ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह काफी सख्त मिजाज की लड़की थी. एकदम से निडर. उस का न तो घर में और न ही पासपड़ोस में किसी से भी कोई मनमुटाव था. यहां तक कि उसे किसी के द्वारा परेशान करने की कोई शिकायत तक नहीं मिली थी.
पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और रणवीर यादव की तहरीर के आधार पर हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. उन्होंने रामसुमेर के छोटे भाई आशीष यादव पर शक जताया था.

थानाप्रभारी ने केस को सुलझाने के लिए एक टीम बनाई. टीम में थाने के अतिरिक्त इंसपेक्टर ए.जेड. खान (क्राइम), एसआई ओमपाल सिंह, शैलेष कुमार तिवारी, शशिकला, कांस्टेबल शांति देवी आदि को शामिल किया.जांच की शुरुआत पारुल की मां रूमा देवी से पूछताछ के साथ हुई. बातचीत से पता चला कि 3 जून की रात करीब 8 बजे पारुल रूमा के साथ मवेशियों को चारा देने के लिए गई थी. उसी समय उस के फोन पर एक काल आई. फोन पर बात करतेकरते वह घर से बाहर निकल गई. घर की रसोई में गैस पर दूध रखा था. इस कारण रूमा तुरंत घर के अंदर आ गई. उन्होंने सोचा कि पारुल गाय और बछड़ों को चारापानी दे कर आ जाएगी. कुछ देर तक जब वह नहीं आई तब रूमा चिंतित हो गईं. उन्होंने इस की जानकारी अपने पति रणवीर यादव को दी.

वह खाना खाने के बाद पारुल की तलाश के लिए निकल पड़े. उन के साथ चचेरा भाई रामसुमेर यादव और उस का छोटा भाई आशीष यादव भी थे. उन्होंने रात 3 बजे तक पारुल की तलाश की. काफी थक जाने पर वे वापस लौट आए.तलाशी के दौरान रणवीर ने पाया कि आशीष उन्हें बरगला रहा है. कभी पोखर जाने के रास्ते पर ले गया तो कभी अलग जगहों पर ले गया. यहां तक कि उस ने तालाब में पैर फिसल कर गिरने की भी आशंका जताई थी. उस खेत की ओर उस ने उन्हें जाने ही नहीं दिया, जहां पारुल की लाश मिली थी. हत्याकांड की जांचपड़ताल

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