कुंआरी ख्वाहिशें : हवस के चक्रव्यूह में फंसी गीता

‘‘गीता, ओ गीता. कहां है यार, मैं लेट हो रहा हूं औफिस के लिए. जल्दी चल… तुझे कालेज छोड़ने के चक्कर में मैं रोज लेट हो जाता हूं.’’

‘‘आ रही हूं भाई, तैयार तो होने दो, कितनी आफत मचा कर रखते हो हर रोज सुबह…’’

‘‘और तू… मैं हर रोज तेरी वजह से लेट हो जाता हूं. पता नहीं, क्या लीपापोती करती रहती है. भूतनी बन जाती है.’’

इतने में गीता तैयार हो कर कमरे से बाहर आई, ‘‘देखो न मां, आप की परी जैसी बेटी को एक लंगूर भूतनी कह रहा है… आप ने भी न मां, क्या मेरे गले में मुसीबत डाल दी है. मैं अपनेआप कालेज नहीं जा सकती क्या? मैं अब छोटी बच्ची नहीं हूं, जो मुझे हर वक्त सहारे की जरूरत पड़े.’’

मां ने कहा, ‘‘तू तो मेरी परी है. यह जब तक तेरे साथ न लड़े, इसे खाना हजम नहीं होता. और अब तू बड़ी हो गई है, इसलिए तुझे सहारे की जरूरत है. जमाना बहुत खराब है बच्चे, इसलिए तो कालेज जाते हुए तुझे भाई छोड़ता जाता है और वापसी में पापा लेने आते हैं. अब जा जल्दी से, भाई कब से तेरा इंतजार कर रहा है.’’

‘‘हांहां, जा रही हूं. पता नहीं ये मांएं हर टाइम जमाने से डरती क्यों हैं?’’ गीता बड़बड़ाते हुए बाहर चली गई.

गीता बीबीए के पहले साल में पढ़ रही थी. उस का भाई बंटी उस से 6 साल बड़ा था और नौकरी करता था. गीता का छोटा सा परिवार था. मम्मीपापा और एक बड़ा भाई, जो पंजाबी बाग, दिल्ली में रहते थे.

गीता के पापा का औफिस नारायणा में था और भाई नेहरू प्लेस में नौकरी करता था. गीता का राजधानी कालेज पंजाबी बाग में ही था, मगर घर से तकरीबन 10-15 किलोमीटर दूर, इसीलिए बस से जाने के बजाय वह भाई के साथ जाती थी.

वैसे भी जब से गीता ने कालेज में एडमिशन लिया था, मां ने सख्त हिदायत दी थी कि उसे अकेला नहीं छोड़ना, जमाना खराब है. कल को कोई ऊंचनीच हो गई, तो कौन जिम्मेदार होगा, इसलिए अपनी चीज का खयाल तो खुद ही रखना होगा न.

गीता को कालेज छोड़ने के बाद बंटी रास्ते से अपने औफिस के साथी सागर को नारायणा से ले लेता था.

एक दिन सागर ने कहा, ‘‘यार, मुझे अच्छा नहीं लगता कि तू रोज मुझे ले कर जाता है. तू परेशान न हुआ कर, मैं बस से चला जाऊंगा.’’

इस पर बंटी बोला, ‘‘यार, मेरा तो रास्ता है इधर से. मैं अकेला जाता हूं, अगर तू पीछे बाइक पर बैठ जाता है, तो क्या फर्क पड़ता है…’’

‘‘फिर भी यार, तुझे परेशानी तो होती ही है.’’

‘‘यार भी कहता है और ऐसी बातें भी करता है. देख, अगर बस के बजाय मेरे साथ जाएगा तो बस का किराया बचेगा न, वह तेरे काम आएगा. मैं जानता हूं, तेरा बड़ा परिवार है और तनख्वाह कम पड़ती है.’’

यह सुन कर सागर चुप हो गया.

इसी तरह यह सिलसिला चलता रहा. एक बार बंटी बहुत बीमार हो गया और लगातार कुछ दिनों तक औफिस नहीं गया.

सागर ने तो फोन कर के हालचाल पूछा, मगर उसे मिले बिना चैन कहां, यारी जो दिल से थी. एक दिन छुट्टी के बाद वह पहुंच गया बंटी से मिलने.

इधर जब बंटी बीमार था, तो गीता को कालेज छोड़ने कौन जाता, क्योंकि पापा तो सुबहसुबह ही काम पर चले जाते थे. लिहाजा, गीता बस से कालेज जाने लगी. बंटी ने समझा दिया था कि किस जगह से और कौन से नंबर की

बस पकड़नी है. वापसी में तो उसे पापा ले आते.

सागर ने बंटी के घर की डोरबैल बजाई, तो दरवाजा गीता ने खोला. अपने सामने 6 फुट लंबा बंदा, जो थोड़ा सांवला, मगर तीखे नैननक्श, घुंघराले बाल, जिस की एक लट माथे पर झूलती हुई, भूरी आंखें… देख कर गीता खड़ी की खड़ी रह गई.

यही हाल सागर का था. जैसे ही उस ने गीता को देखा तो हैरान रह गया. उसे लगा मानो कोई शहजादी हो या कोई परी धरती पर उतर आई हो.

सागर ने गीता को अपने बारे में बताया, तो वह उसे भीतर ले गई.

सागर बंटी के साथ बैठ कर बातें कर रहा था. मां और गीता चायपानी का इंतजाम कर रही थीं, मगर बीचबीच में सागर गीता को और गीता सागर को कनखियों से देख रहे थे. घर जा कर सागर सारी रात नहीं सो सका, इधर गीता उस के खयालों में खोई रही.

अगले दिन गीता को न जाने क्या सूझा कि बस से कालेज न जा कर नारायणा बस स्टैंड पर उतर गई, क्योंकि शाम को वह बातोंबातों में जान चुकी थी कि सागर नारायणा में रहता है, जिसे बंटी अपने साथ नेहरू प्लेस ले जाता था.जैसे ही गीता नारायणा बस स्टैंड पर उतरी, तकरीबन 5 मिनट बाद ही सागर भी वहां आ गया.

‘‘हैलो…’’ सागर ने औपचारिकता दिखाते हुए कहा.

‘‘हाय, औफिस जा रहे हैं आप?’’ गीता ने ‘हैलो’ का जवाब देते हुए और बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां, जा तो रहा था, मगर अब मन करता है कि न जाऊं,’’ सागर आंखों में शरारत और होंठों पर मुसकान लाते हुए बोला.

‘‘कहते हैं कि मन की बात माननी चाहिए,’’ गीता ने भी कुछ ऐसे अंदाज से कहा कि सागर ने मस्ती में आ कर उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे सागरजी, छोडि़ए… कोई देख न ले…’’ गीता ने घबरा कर कहा.

‘‘ओफ्फो, यहां कौन देखेगा… चलिए, कहीं चलते हैं,’’ सागर ने कहा और गीता चुपचाप उस के साथ चल दी.

‘‘आज आप भी कालेज नहीं गईं?’’ सागर ने गीता के मन की थाह पाने

की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘बस, आज मन नहीं किया,’’ कह कर गीता ने शरमा कर आंखें झुका लीं.

सागर और गीता सारा दिन घूमते रहे, लेकिन शाम होते ही गीता बोली, ‘‘सागर, मुझे जाना है. पापा कालेज

लेने आएंगे. अगर मैं न मिली तो वे परेशान होंगे.’’

‘ठीक है जाओ, लेकिन कल ज्यादा देर रुकना. पापा से कहना कि ऐक्स्ट्रा क्लास है,’’ सागर ने कहा.

‘‘मैं ने आप को यह तो नहीं कहा कि मैं कल आऊंगी…’’ गीता ने चौंक कर कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम कल भी आओगी. जैसे मुझे पता था कि तुम आज मुझ से मिलने आओगी…. तो ठीक है फिर कल मिलते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर गीता कालेज चली गई और इतने में उस के पापा आ गए. अगले दिन फिर वही सिलसिला शुरू हो गया.

बंटी ठीक हो गया और इत्तिफाक से उसे वहीं पंजाबी बाग में ही अच्छी नौकरी मिल गई. गीता की तो बल्लेबल्ले. अब तो अकेले ही बस पर जाने की छूट. उधर सागर भी फ्री हो गया कि अब न बंटी मिलेगा और न ही उसे पता चलेगा कि सागर कब औफिस गया और कब नहीं.

सागर और गीता के प्यार की पेंग ऊंची और ऊंची चढ़ने लगी. दोनों को एकदूसरे के बिना एक पल भी चैन नहीं.

सागर तो प्यासा भंवरा कली का रस चूसने को उतावला, लेकिन गीता अभी तक डर के मारे बची हुई थी और उसे ज्यादा करीब आने का मौका नहीं दिया.

गीता चाहती कि सागर भाई से शादी की बात करे, क्योंकि गीता नहीं जानती थी कि सागर शादीशुदा है, पर बंटी जानता था.

सागर हर बार गीता को कहता, ‘‘तुम बंटी से अभी कुछ मत बताना, क्योंकि उस का सपना है कि वह तुम्हें बहुत बड़े घर में ब्याहे और मैं ठहरा मिडिल क्लास… वह नहीं मानेगा हमारी शादी के लिए, इसलिए मौका देख कर मैं खुद अपने तरीके से बात करूंगा, ताकि वह मान जाए.’’गीता सागर की बातों में आ गई.एक दिन भंवरे ने कली का रस चूस लिया… सागर ने प्यार से गीता को बहलाफुसला कर उस का कुंआरापन खत्म कर दिया और कर ली अपने मन की पूरी.

कुछ दिनों तक यह खेल फिर चलता और एक दिन गीता बोली, ‘‘सागर, ऐसा न हो कि भाई को कहीं किसी और से हमारे बारे में पता चले. इस से अच्छा है कि हम खुद ही बता दें. भाई फिर मम्मीपापा से खुद बात कर लेगा.’’

सागर बोला, ‘‘गीता, अगर तुम मेरी बात मानो तो हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं और फिर मैं आऊंगा तुम्हारे घर और दोनों बात करेंगे. जब हमारे पास कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट होगा, फिर कोई मना ही नहीं कर पाएगा.

‘‘और सोचो, तुम्हें अगर बच्चा ठहर गया, तब क्या कोई तुम से शादी करेगा… तुम्हें तो तुम्हारे घर वाले मार ही डालेंगे. फिर क्या मैं जी सकूंगा तुम्हारे बिना… मुझे मौत से डर नहीं लगता, बस मेरी छोटी बहन, बूढ़े मांबाप बेचारे किस के सहारे जिएंगे…’’

इस तरह सागर ने गीता को समझा दिया और वह बेचारी एक दिन घर से मां के जेवर और कुछ नकदी ले कर अपने सागर के पास चली गई.

‘‘सागर, चलो कोर्ट और अभी इसी समय शादी कर के फिर घर चलते हैं… और ये लो पैसे और जेवर, जितना खर्च हो कर लो.’’

सागर इन सब के लिए पहले से तैयार था. उस ने अपना परिवार कहीं और शिफ्ट कर दिया था. नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था. गीता को वह अपने किराए वाले घर में ले गया.

गीता ने देखा कि घर पर कोई नहीं है, तो उस ने पूछा, ‘‘सागर, मांबाबूजी और तुम्हारी बहन कहां हैं? यह घर खालीखाली क्यों है?’’

‘‘ओहो गीता, मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया, मुझे दूसरे औफिस से अच्छा औफर आया है और मैं नौकरी बदल रहा हूं, इसलिए सारा सामान नए घर में शिफ्ट कराया है. मांबाबूजी और छुटकी हमारे रिश्ते के चाचा की बेटी की शादी मेंगए हैं.

तुम चिंता मत करो. आज शादी होना मुश्किल है, क्योंकि अभी तक हमारी अर्जी पास नहीं हुई. कल हो जाएगी. आज रात तुम यहीं रुको, कल शादी करते ही हम तुम्हारे घर चलेंगे.’’

अभी भी न समझ पाई गीता और सबकुछ सौंप दिया सागर को. 2 दिन बाद कमरा भी बदल लिया. इस तरह सागर कई दिनों तक गीता को बेवकूफ बनाता रहा.

इधर शाम को गीता के कालेज में न मिलने पर उस के पापा परेशान हो गए. उस की सहेली से पूछा तो पता चला कि गीता तो पिछले कुछ दिनों से कालेज में कम ही आई है. बस शाम के समय बाहर नजर आती थी. उसे एक लड़का छोड़ने आता था.

पापा सारा माजरा समझ गए. उन्होंने बंटी को बताया. वे अब मान चुके थे कि कोई गीता को बहलाफुसला कर ले गया है.

गीता के साथियों से पूछने पर अंदाजा लगाया कि ये सब शायद सागर की बात कर रहे हैं. सागर को फोन मिलाया तो फोन बंद मिला. सागर ने वह नंबर बंद कर के दूसरा नंबर ले लिया था.

बंटी जा पहुंचा सागर के घर. वहां से पूछताछ की तो मकान मालिक ने बताया कि बीवी को पहले ही मायके भेज दिया था. वह एक लड़की लाया था. 2 दिन बाद उसे ले कर कहां गया, पता नहीं.

लड़की के हुलिए से वे समझ गए कि गीता ही थी. बंटी को अपनी दोस्ती पर अफसोस होने लगा कि उस ने आस्तीन में सांप पाल लिया था.

इधर गीता भी असलियत जान चुकी थी. अब वह सागर से छुटकारा पाना चाहती थी. सागर सुबह काम पर जाता तो बाहर से ताला लगा कर जाता. इधर गीता का परिवार उसे ढूंढ़ कर थक चुका था. इश्तिहार छपवा दिए गए, ताकि गीता का कहीं से कोई तो सुराग मिले.

एक दिन सागर तैयार हो रहा था कि औफिस से फोन आया कि अभी पहुंचो. वह जल्दी में ताला लगाना भूल गया. गीता के लिए यह अच्छा मौका था. वह भाग निकली और जा पहुंची अपने घर. उस ने अपने किए की माफी मांगी.

घर वालों से तो गीता को माफी मिल गई, पर आसपड़ोस के लोगों ने उस का जीना मुहाल कर दिया था.

गीता के पापा ने यह घर बेच कर रोहिणी में जा कर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत की, मगर वहां भी वे जिल्लत की जिंदगी जिए. न कहीं गीता का रिश्ता तय होता था और न ही कहीं बंटी का.

साल बीतते गए. पहले तो पापा इस सदमे से बीमार हो गए और फिर उन की मौत हो गई. मां दिनरात चिंता में घुलती रहती थीं. घरबार सब बिक गया, इज्जत चली गई.

गीता के एक मामा करनाल में रहते थे. एक दिन वे बोले, ‘‘दीदी, करनाल तो मैं आप को लाऊंगा नहीं, मेरी भी यहां इज्जत खराब होगी, पर आप कुरुक्षेत्र में शिफ्ट हो जाओ, कम से कम दिल्ली जितना महंगा तो नहीं है.’’

वे सब कुरुक्षेत्र में शिफ्ट हो गए. वहां मामा ने जैसेतैसे छोटीमोटी नौकरी का इंतजाम करवा दिया था. इस से किसी तरह गुजारा चल निकला.

गीता अब 35 साल की और बंटी 40 साल का हो गया. गीता का रिश्ता तो न हुआ. अलबत्ता, बंटी का रिश्ता वहां किसी जानकार ने करा दिया.

अब बंटी की तो शादी हो गई. क्या करता, कब तक गीता के लिए इसे भी कुंआरा रखते, आगे परिवार भी तो बढ़ाना था.

गीता का रिश्ता न होने की वजह एक और भी थी कि उसे शराब पीने की लत लग गई थी. टैंशन में होती और औफिस के स्टाफ के साथ पीने लग जाती और पी कर फिर होश कहां रहता. कभीकभी तन की आग भी सताती और कोई न कोई अपनी भी आग इस से बुझा लेता.

लेकिन ऐसा भी कब तक चलता. भाई के बच्चे भी हो गए हैं, सब समझने लगे हैं. भाभी को भी अब बुरा लगता है कि कब तक शराबी बहन उन के सिर पर मंडराएगी. उम्र भी तो कम नहीं, 45 साल की हो गई.

आखिरकार एक रिश्ता मिला शाहबाद में. लड़का क्या आदमी था, अधेड़ था. सूरज विधुर था, मगर कोई बच्चा नहीं, इसलिए सोचा कि दूसरी शादी कर के वंश आगे बढ़ाया जाए. बात बन गई तो शादी कर दी.

गीता ने भी सोचा कि अब एक अच्छी बीवी बन कर दिखाऊंगी. शराब की लत छोड़ दी धीरेधीरे. तकरीबन 6 महीने सब सही रहा.

इसी बीच पड़ोसी की बेटी रीमा दुबई से आई. 2-3 महीने यहां रही. दोनों परिवारों में अच्छाखासा लगाव भी था. रीमा जितने समय तक शाहबाद में रही, गीता संग अच्छी दोस्ती रही. वह सारा दिन ‘भाभीभाभी’ करती रहती.

जातेजाते रीमा गीता को बोल गई, ‘‘भाभी, मैं आप दोनों को दुबई बुला लूंगी. वहां की लाइफ यहां से अच्छी है. वहां सैट करूंगी आप को.’’

गीता और सूरज भी खुश थे कि वे दोनों दुबई में सैट होंगे. वैसे भी आगेपीछे कोई नहीं, दोनों ही तो हैं, तो कहीं भी रहें.

2 महीने बाद रीमा का फोन आया, ‘‘भाभी, यहां के नियम बहुत सख्त हैं, इसलिए हमें यहां के नियम से चलना होगा. मैं ने आप के पेपर सब तैयार कर दिए हैं. मैं आप को अपने बच्चे की नैनी यानी आया के रूप में बुलाऊंगी, फिर आप यहां सैट हो कर सूरज भैया को बुला लेना.’’

कुछ समय बाद गीता खुशीखुशी दुबई चली गई, लेकिन वहां के तो रंग ही कुछ और थे. सुबह 5 बजे से रात के

12 बजे तक सारे घर का काम करे, उस पर बच्चा इतना बिगड़ा हुआ था कि कभी उसे गाली दे, कभी चप्पल उठा कर मारे, खाना भी ढंग से न दे, बस जो बचाखुचा वही दे दे, चाहे उस से पेट भरे या न भरे.

गीता न तो बच्चे को डांट सके, न ही कहीं जा सके और न कोई पैसा उस के पास. खून के आंसू रोए बेचारी.

4 साल तक न तो परिवार वालों से कोई बातचीत, न ही सुख की सांस ली.

आखिरकार गीता ने एक दिन हिम्मत की, जब रीमा और उस का पति औफिस गए हुए थे. वह चुपचाप एक खिड़की

से भाग निकली और पहुंची सीधा पुलिस के पास और सबकुछ बताया. पुलिस जा पहुंची रीमा के घर.

हां, गीता भागी जरूर, पुलिस में उस के खिलाफ शिकायत भी की, मगर उस ने धोखा नहीं दिया रीमा को, जिस तरह रीमा ने उसे दिया था. वह तब भागी, जब रीमा के आने का समय हो चला था, ताकि रीमा का बेटा ज्यादा समय अकेला न रहे. पूरे घर का काम कर के तब.

जब पुलिस रीमा के घर आई, तब भी उस ने यह कहा कि उसे रीमा से अपने पासपोर्ट और पेपर वगैरह दिलवा दें और उसे वर्क परमिट मिल जाए… और उसे कुछ नहीं चाहिए, गीता अपने पति को बुलाना चाहती है.

रीमा ने उस के सब पेपर उसे सौंप दिए. गीता ने रीमा पर कोई केस नहीं किया. गीता अब दुबई में अलग काम करती है, अलग घर में शांति से रहती  है.

गीता इस समय सूरज के कागजात तैयार करवा रही है, ताकि सूरज को वहां बुला ले.

गीता सारी उम्र एक गलती की सजा भुगतती रही, वह सच्चे प्यार के लिए तरसती रही. एक छोटी सी गलती ने पूरा परिवार बिखेर दिया, लेकिन अब बुढ़ापे में कोई न कोई तो सहारा चाहिए हर एक को. कम से कम सूरज और गीता एकदूसरे का सहारा तो बनेंगे. कुंआरी ख्वाहिशें झुलस कर दम तोड़ चुकी थीं.

लेकिन गीता एक अच्छा काम और कर रही थी कि कोई भी लड़की अगर इस तरह की भूल करती, तो वह उसे समझाबुझा कर उस के घर पहुंचा आती.

काठ की हांडी : क्या हुआ जब पति की पुरानी प्रेमिका से मिली सीमा

रितु ने दोपहर में फोन कर के मु झे शाम को अपने फ्लैट पर बुलाया था.

‘‘मेरा मन बहुत उचाट हो रहा है. औफिस से निकल कर सीधे मेरे यहां आ जाओ. कुछ देर. दोनों गपशप करेंगे,’’ फोन पर रितु की आवाज में मु झे हलकी सी बेचैनी के भाव महसूस हुए.

‘‘तुम वैभव को क्यों नहीं बुला लेती हो गपशप के लिए? तुम्हारा यह नया आशिक तो सिर के बल भागा चला आएगा,’’ मैं ने जानबू झ कर वैभव को बुलाने की बात उठाई.

‘‘इस वक्त मु झे किसी नए नहीं, बल्कि पुराने आशिक के साथ की जरूरत महसूस हो रही है,’’ उस ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘सीमा भी तुम से मिलने आने की बात कह रही थी. उसे साथ लेता आऊं?’’ मैं ने उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए पूछा.

‘‘क्या तुम्हें अकेले आने में कोई परेशानी है?’’ वह खीज उठी.

‘‘मु झे कोई परेशानी होनी चाहिए क्या?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ और उस ने  झटके से फोन काट दिया.

रितु अपने फ्लैट में अकेली रहती है. शाम को उस से मिलने जाने की बात मेरे मन को बेचैन कर रही थी. अपना काम रोक कर मैं कुछ देर के लिए पिछले महीनेभर की घटनाओं के बारे में सोचने लगा…

मेरी शादी होने के करीब 8 साल बाद रितु अचानक महीनाभर पहले मेरे घर मु झ से मिलने आई तो मैं हैरान होने के साथसाथ बहुत खुश भी हुआ था.

‘‘अभी भी किसी मौडल की तरह आकर्षक नजर आ रही रितु और मैं ने एमबीए साथसाथ किया था. सीमा, हमारी शादी होने से पहले ही यह मुंबई चली गई थी वरना बहुत पहले ही तुम से इस की मुलाकात हो जाती,’’ सहज अंदाज में अपनी पत्नी का रितु से परिचय कराते हुए मैं ने अपने मन की उथलपुथल को बड़ी कुशलता से छिपा लिया.

मेरे 5 साल के बेटे रोहित के लिए रितु ढेर सारी चौकलेट और रिमोट से चलने वाली कार लाई थी. सीमा और मेरे साथ बातें करते हुए वह लगातार रोहित के साथ खेल भी रही थी. बहुत कम समय में उस ने मेरे बेटे और उस की मम्मी का दिल जीत लिया.‘‘क्या चल रहा है तुम्हारी जिंदगी में? मयंक के क्या हालचाल हैं?’’ मेरे इन सवालों को सुन कर उस ने अचानक जोरदार ठहाका लगाया तो सीमा और मैं हैरानी से उस का मुंह ताकने लगे.

हंसी थम जाने के बाद उस ने रहस्यमयी मुसकान होंठों पर सजा कर हमें बताया, ‘‘मेरी जिंदगी में सब बढि़या चल रहा है, अरुण. बहुराष्ट्रीय बैंक में जौब कर रही हूं. मयंक मजे में है. वह 2 प्यारी बेटियों का पापा बन गया है.’’

‘‘अरे वाह, वैसे तुम्हें देख कर यह कोई नहीं कह सकता है कि तुम 2 बेटियों की मम्मी हो,’’ मेरे शब्दों में उस की तारीफ साफ नजर आ रही थी.

रितु पर एक बार फिर हंसने का दौरा सा पड़ा. सीमा और मैं बेचैनीभरे अंदाज में मुसकराते हुए उस के यों बेबात हंसने का कारण जानने की प्रतीक्षा करने लगे.

‘‘माई डियर अरुण, मु झे पता था कि तुम ऐसा गलत अंदाजा जरूर लगाओगे. यार, वह 2 बेटियों का पिता है पर मैं उस की पत्नी नहीं हूं.’’

‘‘क्या तुम दोनों ने शादी नहीं की है?’’

‘‘उस ने तो की पर मैं अभी तक शुद्ध अविवाहिता हूं, तलाकशुदा या विधवा नहीं. तुम्हारी नजर में मेरे लायक कोई सही रिश्ता हो तो जरूर बताना,’’ अपने इस मजाक पर उस ने फिर से जोरदार ठहाका लगाया.

‘‘मजाक की बात नहीं है यह, रितु बताओ न कि तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’ मैं ने गंभीर लहजे में पूछा.

‘‘जब सही मौका सामने था किसी अच्छे इंसान के साथ जिंदगीभर को जुड़ने का तो मैं ने नासम झी दिखाई और वह मौका हाथ से निकल गया. लेकिन यह किस्सा फिर कभी सुनाऊंगी. अब तो मैं अपनी मस्ती में मस्त बहती धारा बनी रहना चाहती हूं… सच कहूं तो मु झे शादी का बंधन अब अरुचिकर प्रतीत होता है,’’ 33 साल की उम्र तक अविवाहित रह जाने का उसे कोई गम है, यह उस की आवाज से बिलकुल जाहिर नहीं हो रहा था.

मगर सीमा ने शादी न करने के मामले में अपनी राय उसे

उसी वक्त बता दी, ‘‘शादी नहीं करोगी तो बढ़ती उम्र के साथ अकेलेपन का एहसास लगातार बढ़ता जाएगा. अभी ज्यादा देर नहीं हुई है. मेरी सम झ से तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, रितु.’’

‘‘तुम ढूंढ़ना न मेरे लिए कोई सही जीवनसाथी, सीमा,’’ रितु बड़े अपनेपन से सीमा का हाथ पकड़ कर दोस्ताना लहजे में मुसकराई तो मेरी पत्नी ने उसी पल से उसे अपनी अच्छी सहेली मान लिया.

उन दोनों को गपशप में लगा देख मैं उस दिन भी अतीत की यादों में खो गया…

एक समय था जब साथसाथ एमबीए करते हुए हम दोनों ने जीवनसाथी बनने के रंगीन सपने देखे थे. हमारा प्रेम करीब 2 साल चला और फिर उस का  झुकाव अचानक मयंक की तरफ होता चला गया.

वैसे मयंक रितु की एक सहेली निशा का बौयफ्रैंड था. इस इत्तफाक ने बड़ा गुल खिलाया कि मयंक रितु की कालोनी में ही रहता था. इस कारण निशा द्वारा परिचय करा दिए जाने के बाद मयंक और रितु की अकसर मुलाकातें होने लगीं.

ये मुलाकातें निशा और मेरे लिए बड़ी दुखदाई साबित हुईं. अचानक एक दिन रितु ने मु झ से और मयंक ने निशा से प्रेम संबंध समाप्त कर लिए.

‘‘रितु प्लीज, तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी बहुत सूनी हो जाएगी. मेरा साथ मत छोड़ो,’’ मैं ने उस के सामने आंसू भी बहाए पर उस ने मु झ से दूर होने का अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘आई एम सौरी अरुण… मैं मयंक के साथ कहीं ज्यादा खुश हूं. तुम्हें मु झ से बेहतर लड़की मिलेगी, फिक्र न करो,’’ हमारी आखिरी मुलाकात के समय उस ने मेरा गाल प्यार से थपथपाया और मेरी जिंदगी से निकल गई.

मु झ से कहीं ज्यादा तेज  झटका उस की सहेली निशा को लगा था. उस ने तो नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश भी करी थी.

एमबीए करने के बाद वह मुंबई चली गई. मैं सोचता था कि उस ने मयंक से शादी कर ली होगी पर मेरा अंदाजा गलत निकला.

मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि रितु से जुड़ी यादों की पीड़ा को वह लगभग पूरी तरह भूल चुका है. मैं सीमा और रोहित के साथ बहुत खुश था. उस दिन रितु को सामने देख कर मु झे वैसी खुशी महसूस हुई थी जैसी किसी पुराने करीबी दोस्त के अचानक आ मिलने से होती है.

उस दिन सीमा ने अपनी नई सहेली रितु को खाना खिला कर भेजा. कुछ घंटों में ही उन दोनों के बीच दोस्ती के मजबूत संबंध की नींव पड़ गई.

रितु अकसर हमारे यहां शाम को आ जाती थी. उस की मु झ से कम और सीमा से ज्यादा बातें होतीं. रोहित भी उस के साथ खेल कर बहुत खुश होता.

रोहित के जन्मदिन की पार्टी में सीमा ने उस का परिचय अपनी सहेली वंदना के बड़े भाई वैभव से कराया. दोनों सहेलियों की मिलीभगत से यह मुलाकात संभव हो पाई थी.

वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था.

किसी को उम्मीद नहीं थी पर रितु के साथ हुई पहली मुलाकात में ही वैभव भाई उस के प्रशंसक बन गए थे. रितु भी उस दिन फ्लर्ट करने के पूरे मूड में थी. उन दोनों के बीच आपसी पसंद को लगातार बढ़ते देख सीमा बहुत खुश हुई थी.

रितु और वैभव ने 2 दिन बाद बड़े महंगे होटल में साथ डिनर किया है, वंदना से मिली इस खबर ने सीमा को खुश कर दिया.

‘‘वैसे यह बंदा तो ठीक है सीमा, पर मेरे सपनों के राजकुमार से बहुत ज्यादा नहीं मिलता है, लेकिन तुम्हारी मेहनत सफल करने के लिए

मैं दिल से कोशिश कर रही हूं कि हमारा तालमेल बैठ जाए,’’ अगले दिन शाम को रितु ने अपने मन की बात सीमा को और मु झे साफसाफ बता दी.

‘‘अपने सपनों के राजकुमार के गुणों से हमें भी परिचित कराओ, रितु,’’ सीमा की इस जिज्ञासा का रितु क्या जवाब देगी, उसे सुनने को मैं भी उत्सुक हो उठता था.

रितु ने सीमा की पकड़ में आए बिना पहले मेरी तरफ मुड़ कर शरारती अंदाज में मु झे आंख मारी और फिर उसे बताने लगी, ‘‘मेरे सपनों का राजकुमार उतना ही अच्छा होना चाहिए जितना अच्छा तुम्हारा जीवनसाथी, सीमा. मेरी खुशियों… मेरे सुखदुख का हमेशा ध्यान रखने वाला सीधासादा हंसमुख इंसान है मेरे सपनों का राजकुमार.’’

‘‘ऐसे सीधेसादे इंसान से तुम जैसी स्मार्ट, फैशनेबल, आधुनिक स्त्री की निभ जाएगी?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर सवाल किया.

‘‘सीमा, 2 इंसानों के बीच आपसी सम झ और तालमेल गहरे प्रेम का मजबूत आधार बनता है या नहीं?’’

‘‘बिलकुल बनता है. वैभव तुम्हें अगर नहीं भी जंचा तो फिक्र नहीं. तुम्हारी शादी मु झे करानी ही है और तुम्हारे सपनों के राजकुमार से मिलताजुलता आदमी मैं ढूंढ़ ही लाऊंगी,’’ जोश से भरी सीमा भावुक भी हो उठी थी.

‘‘जो सामने मौजूद है उसे ढूंढ़ने की बात कह रही थी मेरी सहेली,’’ कुछ देर बाद जब सीमा रसोई में थी तब रितु ने मजाकिया लहजे में इन शब्दों को मुंह से निकाला तो मेरे दिल की धड़कनें बहुत तेज हो गईं.

मन में मच रही हलचल के चलते मु झ से कोई जवाब देते नहीं बना था. रितु ने हाथ बढ़ा कर अचानक मेरे बालों को शरारती अंदाज में खराब सा किया और फिर मुसकराती हुई रसोई में सीमा के पास चली गई.

उस दिन रितु की आंखों में मैं ने अपने लिए चाहत के भावों को साफ पहचाना था.

आगामी दिनों में उसे जब भी अकेले में मेरे साथ होने का मौका मिलता तो वह जरूर कुछ न कुछ ऐसा कहती या करती जो उस की मेरे प्रति चाहत को रेखांकित कर जाता. मैं ने अपनी तरफ से उसे कोई प्रोत्साहन नहीं दिया था पर मु झ से छेड़छाड़ करने का उस का हौसला बढ़ता ही जा रहा था.

इन सब बातों को सोचते हुए मैं ने शाम तक का समय गुजारा. रितु के फ्लैट की तरफ अपनी कार से जाते हुए मैं खुद को काफी तनावग्रस्त महसूस कर रहा था, इस बात को मैं स्वीकार करता हूं.

अपने ड्राइंगरूम में रितु मेरी बगल में बैठते हुए शिकायती अंदाज में बोली, ‘‘तुम ने बहुत इंतजार कराया, अरुण.’’

‘‘नहीं तो… अभी 6 ही बजे हैं. औफिस खत्म होने के आधे घंटे बाद ही मैं हाजिर हो गया हूं. कहो, कैसे याद किया है?’’ अपने स्वर को हलकाफुलका रखते हुए मैं ने जवाब दिया.

‘‘आज तुम से बहुत सारी बातें कहनेसुनने का दिल कर रहा है,’’ कहते हुए उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया.

‘‘तुम बेहिचक बोलना शुरू करो. मैं तुम्हारे मुंह से निकले हर शब्द को पूरे ध्यान से सुनूंगा.’’

मेरी आंखों में गहराई से  झांकते हुए उस ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘अरुण, तुम्हारे प्यार को मैं कुछ दिनों से बहुत मिस कर रही हूं.’’

‘‘अरे, अब मेरे नहीं वैभव के प्यार को अपने दिल में जगह दो, रितु,’’ मैं ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘मेरी जिंदगी में बहुत पुरुष आए हैं और आते रहेंगे, पर मेरे दिल में तुम्हारी जगह किसी को नहीं मिल सकेगी. तुम से दूर जा कर मैं ने अपने जीवन की सब से बड़ी भूल की है.’’

‘‘पुरानी बातों को याद कर के बेकार में अपना मन क्यों दुखी कर रही हो?’’

‘‘मेरी जिंदगी में खुशियों की बौछार तुम ही कर सकते हो, अरुण. अपने प्यार के लिए मु झे अब और तरसने मत दो, प्लीज,’’ और उस ने मेरे हाथ को कई बार चूम लिया.

‘‘मैं एक शादीशुदा इंसान हूं, रितु. मु झ से ऐसी चीज मत मांगो जिसे देना गलत होगा,’’ मैं ने उसे कोमल स्वर में सम झाया.

‘‘मैं सीमा का हक छीनने की कोशिश नहीं कर रही हूं. हम उसे कुछ पता नहीं लगने देंगे,’’ मेरे हाथ को अपने वक्षस्थल से चिपका कर उस ने विनती सी करी.

कुछ पलों तक उस के चेहरे को ध्यान से निहारने के बाद मैं ने ठहरे अंदाज में बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे बदलते हावभावों को देख कर मु झे पिछले कुछ दिनों से ऐसा कुछ घटने का अंदेशा हो गया था, रितु. अब प्लीज तुम मेरी बातों को ध्यान से सुनो.

‘‘हमारा प्रेम संबंध उसी दिन समाप्त हो गया था जिस दिन तुम ने मु झे छोड़ कर मयंक के साथ जुड़ने का निर्णय लिया था. अब हमारे पास उस अतीत की यादें हैं, लेकिन उन यादों के बल पर दोबारा प्रेम का रिश्ता कायम करने की इच्छा रखना तुम्हारी नासम झी ही है.

‘‘ऐसे प्रेम संबंध को छिपा कर रखना संभव नहीं होता है, रितु. मु झे आज भी मयंक की प्रेमिका निशा याद है. तुम ने मयंक को उस से छीना तो उस ने खुदकुशी करने की कोशिश करी थी. तुम्हें मनाने के लिए मैं किसी छोटे बच्चे की तरह रोया था, शायद तुम्हें याद होगा. किसी बिलकुल अपने विश्वासपात्र के हाथों धोखा खाने की गहन पीड़ा कल को सीमा भोगे, ऐसा मैं बिलकुल नहीं चाहूंगा.

‘‘पिछली बार तुम ने निशा और मेरी खुशियों के संसार को अपनी खुशियों की खातिर तहसनहस कर दिया था. आज तुम सीमा, रोहित और मेरी खुशियोें और सुखशांति को अपने स्वार्थ की खातिर दांव पर लगाने को तैयार हो पर काठ की हांडी फिर से चूल्हे पर नहीं चढ़ती है.

‘‘देखो, आज तुम सीमा की बहुत अच्छी सहेली बनी हुई हो. हम तुम्हें अपने घर की सदस्य मानते हैं. मैं तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त और शुभचिंतक हूं. तुम नासम झी का शिकार बन कर हमारे साथ ऐसे सुखद रिश्ते को तोड़ने व बदनाम करने की मूर्खता क्यों करना चाहती हो?’’

‘‘तुम इतना ज्यादा क्यों डर रहे हो, स्वीटहार्ट?’’ मेरे सम झाने का उस पर खास असर नहीं हुआ और वह अपनी आंखों में मुझे प्रलोभित करने वाले नशीले भाव भर कर मेरी तरफ बढ़ी.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो वह नाराजगीभरे अंदाज में मुड़ कर दरवाजा

खोलने चल पड़ी.

‘‘यह सीमा होगी,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वह  झटके से मुड़ी और मु झे गुस्से से घूरने लगी.

‘‘तुम ने बुलाया है उसे यहां?’’ उस ने दांत पीसते हुए पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं अकेले यहां नहीं आना चाहता था.’’

‘‘अब उसे क्या बताओगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम उस की सौत बनने की…’’

‘‘शटअप, अरुण. अगर तुम ने हमारे बीच हुई बात का उस से कभी जिक्र भी किया तो मैं तुम्हारा मर्डर कर दूंगी.’’ वह अब घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘क्या तुम्हें इस वक्त डर लग रहा है?’’ मैं ने उस के नजदीक जा कर कोमल स्वर में पूछा.

‘‘म… मु झे… मैं सीमा की नजरों में अपनी छवि खराब नहीं करना चाहती हूं.’’

‘‘बिलकुल यही इच्छा मेरे भी है, माई गुड फ्रैंड.’’

‘‘अब उस से क्या कहोगे?’’ दोबारा बजाई गई घंटी की आवाज सुन कर उस की हालत और पतली हो गई.

‘‘तुम्हें वैभव कैसा लगता है?’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘इस ठीक को हम सब मिल कर बहुत अच्छा बना लेंगे, रितु. तुम बहुत भटक चुकी हो. मेरी सलाह मान अब अपनी घरगृहस्थी बसाने का निर्णय ले डालो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि सीमा को हम यह बताएंगे कि हम ने उसे यहां महत्त्वपूर्ण सलाहमश्वरे के लिए बुलाया है, क्योंकि तुम आज वैभव को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए किसी पक्के फैसले तक पहुंचना चाहती हो.’’

‘‘गुड आइडिया,’’ रितु की आंखों में राहत के भाव उभरे.

‘‘तब सुखद विवाहित जीवन के लिए मेरी अग्रिम शुभकामनाएं स्वीकार करो, रितु,’’ मैं ने उस से फटाफट हाथ मिलाया और फिर जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए मजाकिया ढंग से धकेल सा दिया.

‘‘थैंक यू, अरुण.’’ उस ने कृतज्ञ भाव से मेरी आंखों में  झांका और फिर खुशी से भरी दरवाजा खोलने चली गई.

‘‘वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था…’’

हिंदी की दुकान : क्या पूरा हुआ सपना

मेरे रिटायरमेंट का दिन ज्योंज्यों नजदीक आ रहा था, एक ही चिंता सताए जा रही थी कि इतने वर्षों तक बेहद सक्रिय जीवन जीने के बाद घर में बैठ कर दिन गुजारना कितना कष्टप्रद होगा, इस का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. इसी उधेड़बुन में कई महीने बीत गए. एक दिन अचानक याद आया कि चंदू चाचा कुछ दिन पहले ही रिटायर हुए हैं. उन से बात कर के देखा जा सकता है, शायद उन के पास कोई योजना हो जो मेरे भावी जीवन की गति निर्धारित कर सके.

यह सोच कर एक दिन फुरसत निकाल कर उन से मिला और अपनी समस्या उन के सामने रखी, ‘‘चाचा, मेरे रिटायरमेंट का दिन नजदीक आ रहा है. आप के दिमाग में कोई योजना हो तो मेरा मार्गदर्शन करें कि रिटायरमेंट के बाद मैं अपना समय कैसे बिताऊं?’’

मेरी बात सुनते ही चाचा अचानक चहक उठे, ‘‘अरे, तुम ने तो इतने दिन हिंदी की सेवा की है, अब रिटायरमेंट के बाद क्या चिंता करनी है. क्यों नहीं हिंदी की एक दुकान खोल लेते.’’

‘‘हिंदी की दुकान? चाचा, मैं समझा नहीं,’’ मैं ने अचरज से पूछा.

‘‘देखो, आजकल सभी केंद्र सरकार के कार्यालयों, बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों में हिंदी सेल काम कर रहा है,’’ चाचा बोले, ‘‘सरकार की ओर से इन कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग करने और उसे बढ़ावा देने के लिए तरहतरह के प्रयास किए जा रहे हैं. कार्यालयों के आला अफसर भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं. इन दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों को समयसमय पर प्रशिक्षण आदि की जरूरत तो पड़ती ही रहती है और जहां तक हिंदी का सवाल है, यह मामला वैसे ही संवेदनशील है. इसी का लाभ उठाते हुए हिंदी की दुकान खोली जा सकती है. मैं समझता हूं कि यह दुकानदारी अच्छी चलेगी.’’

‘‘तो मुझे इस के लिए क्या करना होगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘करना क्या होगा,’’ चाचा बोले, ‘‘हिंदी के नाम पर एक संस्था खोल लो, जिस में राजभाषा शब्द का प्रयोग हो. जैसे राजभाषा विकास निगम, राजभाषा उन्नयन परिषद, राजभाषा प्रचारप्रसार संगठन आदि.’’

‘‘संस्था का उद्देश्य क्या होगा?’’

‘‘संस्था का उद्देश्य होगा राजभाषा का प्रचारप्रसार, हिंदी का प्रगामी प्रयोग तथा कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन में आने वाली समस्याओं का समाधान. पर वास्तविक उद्देश्य होगा अपनी दुकान को ठीक ढंग से चलाना. इन सब के लिए विभिन्न प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है.’’

‘‘चाचा, इन कार्यशालाओं में किनकिन विषय पर चर्चाएं होंगी?’’

‘‘कार्यशालाओं में शामिल किए जाने वाले विषयों में हो सकते हैं :राजभाषा कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयां और उन का समाधान, वर्तनी का मानकीकरण, अनुवाद के सिद्धांत, व्याकरण एवं भाषा, राजभाषा नीति और उस का संवैधानिक पहलू, संसदीय राजभाषा समिति की प्रश्नावली का भरना आदि.’’

‘‘कार्यशाला कितने दिन की होनी चाहिए?’’ मैं ने अपनी शंका का समाधान किया.

‘‘मेरे खयाल से 2 दिन की करना ठीक रहेगा.’’

‘‘इन कार्यशालाओं में भाग कौन लोग लेंगे?’’

‘‘केंद्र सरकार के कार्यालयों, बैंकों तथा उपक्रमों के हिंदी अधिकारी, हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक तथा हिंदी अनुभाग से जुड़े तमाम कर्मचारी इन कार्यशालाओं में भाग लेने के पात्र होंगे. इन कार्यालयों के मुख्यालयों एवं निगमित कार्यालयों को परिपत्र भेज कर नामांकन आमंत्रित किए जा सकते हैं.’’

‘‘परंतु उन के वरिष्ठ अधिकारी इन कार्यशालाओं में उन्हें नामांकित करेंगे तब न?’’

‘‘क्यों नहीं करेंगे,’’ चाचा बोले, ‘‘इस के लिए इन कार्यशालाओं में तुम्हें कुछ आकर्षण पैदा करना होगा.’’

मैं आश्चर्य में भर कर बोला, ‘‘आकर्षण?’’

‘‘इन कार्यशालाओं को जहांतहां आयोजित न कर के चुनिंदा स्थानों पर आयोजित करना होगा, जो पर्यटन की दृष्टि से भी मशहूर हों. जैसे शिमला, मनाली, नैनीताल, श्रीनगर, ऊटी, जयपुर, हरिद्वार, मसूरी, गोआ, दार्जिलिंग, पुरी, अंडमान निकोबार आदि. इन स्थानों के भ्रमण का लोभ वरिष्ठ अधिकारी भी संवरण नहीं कर पाएंगे और अपने मातहत कर्मचारियों के साथसाथ वे अपना नाम भी नामांकित करेंगे. इस प्रकार सहभागियों की अच्छी संख्या मिल जाएगी.’’

‘‘इस प्रकार के पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कार्यशालाएं आयोजित करने पर खर्च भी तो आएगा?’’

‘‘खर्च की चिंता तुम्हें थोड़े ही करनी है. अधिकारी स्वयं ही खर्च का अनुमोदन करेंगे/कराएंगे… ऐसे स्थानों पर अच्छे होटलों में आयोजन से माहौल भी अच्छा रहेगा. लोग रुचि ले कर इन कार्यशालाओं में भाग लेंगे. बहुत से सहभागी तो अपने परिवार के साथ आएंगे, क्योंकि कम खर्च में परिवार को लाने का अच्छा मौका उन्हें मिलेगा.’’

‘‘इन कार्यशालाओं के लिए प्रतिव्यक्ति नामांकन के लिए कितना शुल्क निर्धारित किया जाना चाहिए?’’ मैं ने पूछा.

चाचा ने बताया, ‘‘2 दिन की आवासीय कार्यशालाओं का नामांकन शुल्क स्थान के अनुसार 9 से 10 हजार रुपए प्रतिव्यक्ति ठीक रहेगा. जो सहभागी खुद रहने की व्यवस्था कर लेंगे उन्हें गैर आवासीय शुल्क के रूप में 7 से 8 हजार रुपए देने होंगे. जो सहभागी अपने परिवारों के साथ आएंगे उन के लिए 4 से 5 हजार रुपए प्रतिव्यक्ति अदा करने होंगे. इस शुल्क में नाश्ता, चाय, दोपहर का भोजन, शाम की चाय, रात्रि भोजन, स्टेशनरी तथा भ्रमण खर्च शामिल होगा.’’

‘‘लेकिन चाचा, सहभागी अपनेअपने कार्यालयों में इन कार्यशालाओं का औचित्य कैसे साबित करेंगे?’’

‘‘उस के लिए भी समुचित व्यवस्था करनी होगी,’’ चाचा ने समझाया, ‘‘कार्यशाला के अंत में प्रश्नावली का सत्र रखा जाएगा, जिस में प्रथम, द्वितीय, तृतीय के अलावा कम से कम 4-5 सांत्वना पुरस्कार विजेताओं को प्रदान किए जाएंगे. इस में ट्राफी तथा शील्ड भी पुरस्कार विजेताओं को दी जा सकती हैं. जब संबंधित कार्यालय पुरस्कार में मिली इन ट्राफियों को देखेंगे, तो कार्यशाला का औचित्य स्वयं सिद्ध हो जाएगा. विजेता सहभागी अपनेअपने कार्यालयों में कार्यशाला की उपयोगिता एवं उस के औचित्य का गुणगान स्वयं ही करेंगे. इसे और उपयोगी साबित करने के लिए परिपत्र के माध्यम से कार्यशाला में प्रस्तुत किए जाने वाले उपयोगी लेख तथा पोस्टर व प्रचार सामग्री भी मंगाई जा सकती है.’’

‘‘इन कार्यशालाओं के आयोजन की आवृत्ति क्या होगी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वर्ष में कम से कम 2-3 कार्य-शालाएं आयोजित की जा सकती हैं.’’

‘‘कार्यशाला के अतिरिक्त क्या इस में और भी कोई गतिविधि शामिल की जा सकती है?’’

मेरे इस सवाल पर चाचा बताने लगे, ‘‘दुकान को थोड़ा और लाभप्रद बनाने के लिए हिंदी पुस्तकों की एजेंसी ली जा सकती है. आज प्राय: हर कार्यालय में हिंदी पुस्तकालय है. इन पुस्तकालयों को हिंदी पुस्तकों की आपूर्ति की जा सकती है. कार्यशाला में भाग लेने वाले सहभागियों अथवा परिपत्र के माध्यम से पुस्तकों की आपूर्ति की जा सकती है. आजकल पुस्तकों की कीमतें इतनी ज्यादा रखी जाती हैं कि डिस्काउंट देने के बाद भी अच्छी कमाई हो जाती है.’’

‘‘लेकिन चाचा, इस से हिंदी कार्यान्वयन को कितना लाभ मिलेगा?’’

‘‘हिंदी कार्यान्वयन को मारो गोली,’’ चाचा बोले, ‘‘तुम्हारी दुकान चलनी चाहिए. आज लगभग 60 साल का समय बीत गया हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिले हुए. किस को चिंता है राजभाषा कार्यान्वयन की? जो कुछ भी हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है वह हिंदी सिनेमा व टेलीविजन की देन है.

‘‘उच्चाधिकारी भी इस दिशा में कहां ईमानदार हैं. जब संसदीय राजभाषा समिति का निरीक्षण होना होता है तब निरीक्षण तक जरूर ये निष्ठा दिखाते हैं, पर उस के बाद फिर वही ढाक के तीन पात. यह राजकाज है, ऐसे ही चलता रहेगा पर तुम्हें इस में मगजमारी करने की क्या जरूरत? अगर और भी 100 साल लगते हैं तो लगने दो. तुम्हारा ध्यान तो अपनी दुकानदारी की ओर होना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो चाचा, अब मैं चलता हूं,’’ मैं बोला, ‘‘आप से बहुत कुछ जानकारी मिली. मुझे उम्मीद है कि आप के अनुभवों का लाभ मैं उठा पाऊंगा. इतनी सारी जानकारियों के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

चंदू चाचा के घर से मैं निकल पड़ा. रास्ते में तरहतरह के विचार मन को उद्वेलित कर रहे थे. हिंदी की स्थिति पर तरस आ रहा था. सोच रहा था और कितने दिन लगेंगे हिंदी को अपनी प्रतिष्ठा व पद हासिल करने में? कितना भला होगा हिंदी का इस प्रकार की दुकानदारी से?

News Kahani: चुनावी दंगल में इश्क का मंगल

हरियाणा में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर पकड़ चुका था. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में सीधी टक्कर थी और कहीं न कहीं कांग्रेस इस बार बाजी मारती दिख रही थी. गांवदेहात में भी चुनावी चर्चाएं गरम थीं.

जींद जिले के एक गांव में चौपाल पर बैठक जमा थी. हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथसाथ सियासी दलों की बखिया भी उधेड़ी जा रही थी.

‘‘भाई, इस बार कांग्रेस ने विनेश फोगाट पर सही दांव खेल दिया है. कमल के फूल पर भारी पड़ेगा हाथ,’’ एक ताऊ ने अपनी बात रखी.

‘‘ताऊ, ओलिंपिक में मैडल जीतना एक बात है, पर राजनीति के अखाड़े में पैर जमाना इतना आसान नहीं. नेता अपने सगे के नहीं होते, फिर विनेश तो नईनई इस खेल में उतरी है,’’ सतीश नाम के एक नौजवान ने अपनी बात रखी.

23 साल का सतीश भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता था और पार्टी के प्रचार से जुड़ा था. उस के चाचा इस बार भाजपा के झंडे तले चुनाव लड़ रहे थे. आज भी उसे पास के गांव में पोस्टर और स्टीकर चिपकाने जाना था.

सतीश के चाचा चौधरी प्रताप सिंह इलाके के दबंग आदमी थे और पिछली बार भी भाजपा से विधायक रह चुके थे. पर इस बार मामला थोड़ा डांवांडोल था, क्योंकि 3 कृषि कानून से उपजे किसान आंदोलन के बाद दिल्ली में पहलवानों के धरने ने भाजपा का नुकसान किया था, तभी तो मनोहर लाल को समय से पहले मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था और नायब सिंह सैनी को कमान सौंप दी गई थी, ताकि गैर जाट समुदाय के वोटों को साधा जा सके.

सतीश घर से तैयार हो कर दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ प्रचार के लिए तय किए गए एक गांव में जा पहुंचा था. वहां उन्हें हर घर पर चौधरी प्रताप सिंह के स्टीकर चिपकाने थे और घरों में पंपलेट बांटने थे. पर आज माहौल थोड़ा गरम था, क्योंकि कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार सुशीला देवी के कार्यकर्ता भी वहां प्रचार कर रहे थे.

सतीश देखने में ठीकठाक था, पर बोलने में बड़ा माहिर था. उस ने देखा कि कांग्रेस पार्टी की एक कार्यकर्ता कुछ बेमन से वहां आई थी. वह लड़की तकरीबन 21 साल की होगी और धूप और उमस से उस का चेहरा लाल हो रखा था. शायद उसे प्यास भी लगी थी.

सतीश ने अपने एक साथी से पानी की बोतल मांगी और उस लड़की के पास जा कर बोला, ‘‘स्टीकर तो कोई और भी चिपका देगा, तुम पहले पानी पी लो.’’

सतीश के गले में भगवाई गमछा देख कर वह लड़की बोली, ‘‘दुश्मन के हाथ से पानी पी लूं… यह तो हमारे ‘हाथ’ के निशान के साथ गद्दारी होगी. सुशीला देवी मेरी दूर की मौसी हैं. जब वे जीत जाएंगी, तब तुम शौक से मुझे पानी पिला देना. मैं मना नहीं करूंगी.’’

‘‘तुम तो इस चुनाव प्रचार को बड़ा सीरियसली ले रही हो… ठीक है, हम अलगअलग पार्टी से हैं, पर इस में पानी का क्या कुसूर है. पी लो, अपनी मौसी के जीतने के बाद तुम मुझे चाय पिला देना,’’ सतीश ने पानी की बोतल उस लड़की की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

वह लड़की अब मना नहीं कर सकी और बोतल मुंह से लगा कर गटागट पानी पी गई.

‘‘मांबाप ने कुछ नाम भी रखा है या नहीं?’’ सतीश ने पूछा.

‘‘पूनम… और यह नाम मेरे दादा ने रखा है, क्योंकि मैं पूनम की रात को पैदा हुई थी,’’ उस लड़की ने बताया.

इसी बीच सतीश का एक साथी वहां आया और बोला, ‘‘पानी ही पिलाता रहेगा या लोगों से भी मिलेगा? शाम को चाचाजी पूरे दिन का हिसाब लेंगे.’’

सतीश का ध्यान उस लड़की से हटा और वह अपने साथी से बोला, ‘‘ठीक है, समझ गया. तू चल, मैं अभी आया.’’

‘‘तुम्हारा क्या नाम है?’’ पूनम ने पूछा.

सतीश बोला, ‘‘इतनी भी क्या जल्दी है. 2 घंटे के बाद गांव के बाहर बसस्टैंड के पास ‘चौधरी टी स्टौल’ पर मिलते हैं, वहीं नाम भी बता दूंगा.’’

यह सुन कर पूनम हंस पड़ी. उस ने इशारे में हां की और अपने कार्यकर्ताओं में जा मिली.

ठीक 2 घंटे बाद सतीश और पूनम ‘चौधरी टी स्टौल’ पर बैठे चाय की चुसकियां ले रहे थे.

‘‘मेरा नाम सतीश है. मैं ने बीए किया है और अब अपने चाचा प्रताप सिंह का चुनाव प्रचार कर रहा हूं.’’

‘‘मैं बीए के फाइनल ईयर में हूं. राजनीति से मेरा कोई खास लगाव नहीं है, पर मौसी को टिकट मिला है, तो यह काम कर रही हूं.’’

‘‘क्या सुशीला देवी तुम्हारी सगी मौसी हैं?’’ सतीश ने पूछा.

‘‘नहीं, मेरी मां के गांव की हैं, इसलिए रिश्ते में मेरी मौसी हो गईं,’’ पूनम बोली.

‘‘ओह, तो तुम भी रिश्ता निभा रही हो. वैसे, राजनीति में कोई दिलचस्पी है भी या नहीं?’’ सतीश ने पूछा.

‘‘5 अक्तूबर को प्रदेश में चुनाव है और 8 अक्तूबर को नतीजे आएंगे. इस बार कांग्रेस जीत रही है और भाजपा हार रही है,’’ पूनम ने कहा.

‘‘बड़ा यकीन है तुम्हें… इस की वजह?’’ सतीश ने चाय की चुसकी लेते हुए पूछा.

‘‘भाजपा में तो गुटबाजी बहुत है. अखबारों में सब छप रहा है. केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह कैबिनेट मंत्री न बनाए जाने से नाराज हैं. उन के समर्थक भी इस बात का खूब प्रचार कर रहे हैं. मीडिया के सामने अपने समर्थकों की नाराजगी की बात राव इंद्रजीत सिंह भी कह चुके हैं. ऐसे में भाजपा के लिए दक्षिण हरियाणा में उन की नाराजगी भारी पड़ सकती है.

‘‘भाजपाई और हरियाणा के गृह मंत्री रह चुके अनिल विज भी काफी लंबे समय से मुख्यधारा से अलग चल रहे हैं. हालांकि, वे पार्टी के खिलाफ कुछ नहीं कहते, लेकिन उन की पार्टी से नाराजगी की बात सभी को पता है. अनिल विज की नाराजगी सिर्फ पंजाबी समाज में भाजपा की पकड़ पर असर नहीं डालती, बल्कि जीटी रोड बैल्ट पर भी खासा असर करती है.

‘‘लोकसभा चुनावों के बाद देश के कई राज्यों में भाजपा के नेताओं की नाराजगी देखने को मिल रही है. ऐसे में इन नेताओं की नाराजगी को पार्टी ने समय रहते अगर दूर नहीं किया, तो उस का फायदा कांग्रेस पार्टी उठाने की पूरी कोशिश करेगी.’’

‘‘वाह भई वाह, अपने खेत में घुटनों तक पानी भरा है, वह नहीं दिख रहा तुम्हें…’’ सतीश हंसते हुए बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ पूनम ने नाराजगी जताते हुए पूछा.

‘‘अपनी कांग्रेस की फूट नहीं दिखती तुम्हें… हुड्डा गुट, कुमारी शैलजा गुट और रणदीप सुरजेवाला गुट… तीनों अपनीअपनी डफली अपनाअपना राग अलाप रहे हैं. किसी के बैनर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा गायब हैं, तो कोई अपनी ही पदयात्रा कर रहा है. इस बार तो कोई सीएम का चेहरा भी नहीं है.

‘‘एक तरफ दीपेंद्र हुड्डा ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ यात्रा को लीड करने की बात करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कुमारी शैलजा अपनी अलग पदयात्रा निकालने पर अड़ जाती हैं. रणदीप सुरजेवाला ने भी प्रदेश की सियासत से लंबे समय से दूरी बनाए हुई है. उन की सक्रियता प्रदेश में उस तरह की दिखाई नहीं देती है, जैसी उन के राज्यसभा सांसद बनने से पहले हुआ करती थी.’’

‘‘चाय खत्म हो गई है. अब चलें…?’’ पूनम को ये राजनीतिक बातें अब बोर करने लगी थीं या फिर वह कांग्रेस की बुराई नहीं सुन सकती थी.

‘‘अपना मोबाइल नंबर तो दे दो… फोन कर के तुम्हें राजनीति की बातों से पकाऊंगा,’’ सतीश ने जब यह कहा, तो पूनम हंस पड़ी.

दोनों ने एकदूसरे को अपना मोबाइल नंबर दिया और वहां से चले गए.

एक दिन दोपहर को पूनम अपनी मौसी सुशीला देवी के औफिस में बैठी थी. कार्यकर्ताओं की मीटिंग चल रही थी. किसी ने शिकायत कर दी थी कि पूनम अब काम पर ध्यान नहीं दे रही है.

‘‘क्यों पूनम, कोई दिक्कत है क्या प्रचार करने में?’’ सुशीला देवी ने पूछा.

‘‘नहीं मौसीजी, ऐसा कुछ नहीं है,’’ पूनम ने कहा.

‘‘तो फिर वह लड़का कौन है, जो भाजपा के प्रचार से ज्यादा तुम में दिलचस्पी ले रहा है. ऐसे लोगों से बच कर रहो. ये कब अंदर की बात उगलवा लेंगे तुम्हें पता भी नहीं चलेगा,’’ सुशीला देवी ने चिंता जाहिर की.

‘‘सतीश से मेरी ज्यादा जानपहचान नहीं है. हम कभीकभार ही मिले हैं,’’ पूनम ने कहा.

‘‘ठीक है, पर तुम अब से अपने काम पर ज्यादा फोकस करो. कुछ दिन में चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा, फिर उस के बाद देखेंगे कि आगे क्या करना है,’’ सुशीला देवी ने अपना फैसला सुना दिया.

इस के बाद पूनम और सतीश दोनों में मोबाइल फोन पर खूब बातचीत और चैटिंग होने लगी. जवान खून था, जो एकदूसरे के करीब आ रहा था. चुनाव प्रचार के साथसाथ उन दोनों का मिलनाजुलना भी बढ़ रहा था.

इतने में पूनम के मोबाइल पर एक मैसेज आया. सतीश ने उस से आज का प्रोग्राम पूछा था. पूनम ने पार्टी औफिस से बाहर निकल कर सतीश को फोन किया और बोली, ‘‘एक घंटे के बाद कसबे की ‘रामदीन हलवाई’ की दुकान पर मिलते हैं. इन लोगों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है.’’

सतीश ने कोई सवाल नहीं किया. एक घंटे के बाद वे दोनों ‘रामदीन हलवाई’ की दुकान पर बैठे थे और ‘रामदीन हलवाई’ के यहां के समोसे खा रहे थे. चाय भी अच्छी बनी थी.

‘‘चुनाव प्रचार के बाद तुम्हारा आगे क्या करने का इरादा है?’’ पूनम ने सतीश से पूछा.

‘‘तुम पहले चाय पी लो, बड़ी अच्छी बनी है,’’ सतीश ने कहा.

‘‘?कभी मेरे हाथ की चाय पीना. जिंदगी में ऐसी चाय नहीं पी होगी,’’ पूनम बोली.

‘‘फोन पर तुम्हारा मूड क्यों खराब था?’’ सतीश ने पूछा.

‘‘अरे, वही प्रचार वाली बात. किसी ने मेरी चुगली कर दी कि मैं काम से ज्यादा तुम पर ध्यान दे रही हूं. भला, किसी को क्या मतलब कि मैं तुम से बात करती हूं… यह मेरा निजी मामला है,’’ पूनम ने भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘तुम्हारी बात एकदम सही है पूनम, पर हमें अपने काम पर ज्यादा फोकस करना होगा. मेरे चाचाजी को मु?ा से काफी उम्मीद है. भाजपा अब पूरे जोरशोर से चुनाव प्रचार में लग गई है. वह प्रदेश में लोकल मुद्दों के साथसाथ कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाएगी और भ्रष्टाचार के चलते जेल में बंद विधायकों को टिकट दिए जाने को भी बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है. चुनावी रणनीति के तहत भाजपा का फोकस गैर जाट जातियों पर भी रहेगा,’’ सतीश बोला.

‘‘देखो, हम दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ रहे हैं और इस में कोई बुराई भी नहीं है. किसी को पसंद करना हमारा निजी फैसला होता है और उस से हमारे काम पर कोई असर नहीं पड़ता. मु?ो दुख इस बात का है कि मेरी मौसी भी यही सोचती हैं कि मैं चुनाव प्रचार पर ध्यान नहीं दे पा रही हूं,’’ पूनम बोली.

‘‘लेकिन, तुम इस बार कांग्रेस को कम मत समझना. मेरी मौसीजी तुम्हारे चाचाजी को कड़ी टक्कर देंगीं,’’ पूनम ने अपनी बात रखी.

‘‘देखो, चुनाव में हारजीत तो लगी रहती है. इस का हमारी दोस्ती पर असर नहीं पड़ना चाहिए,’’ सतीश बोला.

इस के बाद वे दोनों बेमन से ही सही, चुनाव प्रचार में जुट गए. वोटिंग की तारीख नजदीक आती जा रही थी.

3 दिन के बाद चुनाव होने थे. पूनम और कुछ खास कार्यकर्ताओं को अब दिनरात काम करना था. सुशीला देवी ने कसबे के एक सस्ते होटल में उन सब के रहने का इंतजाम करा दिया था.

पूनम ने यह बात सतीश को बताई, ‘‘तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? रहोगे मेरे साथ होटल में?’’

‘‘मैं ऐसा करता हूं कि तुम्हारे होटल के नजदीक ही दूसरे होटल में एक कमरा ले लेता हूं. वह मेरे दोस्त का होटल है. जब तुम काम से फ्री हो जाओगी, तो हम एकसाथ डिनर कर लेंगे.’’

‘‘मैं थोड़ा जल्दी आ जाऊंगी. मेरे पास एक स्पैशल चाय है. मैं अपने हाथ का बना चूरमा भी ले आऊंगी. चाय के साथ चूरमा भी खाएंगे, तो बड़ा मजा आएगा.’’

‘‘मजा तो तब आता, जब तुम मेरे पैर भी दबा देती. इतना चलचल कर थकान के मारे पूरे शरीर में दर्द रहता है. और हां, मैं भी तुम्हारे पैर दबा सकता हूं, अगर तुम्हें कोई दिक्कत न हो तो,’’ सतीश धीरे से बोला.

‘‘तब की तब देखी जाएगी. हम दोनों कल शाम को होटल में मिलते हैं. तुम अपने दोस्त को बोल कर इलैक्ट्रिक कैटल कमरे में मंगवा लेना. मैं कमरे में ही चाय बनाऊंगी. दूधचीनी वगैरह भी मांग लेना,’’ पूनम ने कहा.

अगले दिन सुबह जब पूनम तैयार हो रही थी, तब उस की मां सरला देवी ने कहा, ‘‘मैं तुझे तेरी मौसी के भरोसे एक रात के लिए होटल में भेज रही हूं. तू अपना काम लगन से करना. हो सकता है कि इस बार कांग्रेस की सरकार बन जाए और तेरी मौसी को कोई बड़ा पद मिल जाए, तो वह तेरे भाई को कोई रोजगार दिला देगी.’’

‘‘तू चिंता मत कर मां. मैं अपना अच्छाबुरा सब समझती हूं. मैं बालिग हूं और कोई भी काम अपने होशहवास में ही करूंगी,’’ पूनम बोली.

सतीश का होटल पूनम के होटल से ज्यादा दूर नहीं था. दिनभर पार्टी का काम करतेकरते कब शाम के 6 बज गए, पूनम को पता ही नहीं चला. वह तैयार हो कर सतीश से मिलने चल दी. उस ने मुंह पर चुन्नी लपेट रखी थी.

सतीश होटल के कमरे में पूनम का इंतजार कर रहा था. इलैक्ट्रिक कैटल और दूधचीनी वगैरह वह पहले ही कमरे में ला चुका था.

बाहर किसी की आहट हुई, तो सतीश ने दरवाजा खोल दिया. सामने पूनम खड़ी थी. उस ने एक टाइट जींस और पतली सी टीशर्ट पहनी हुई थी.

यह देखते ही सतीश के दिल की धड़कन बढ़ गई.

‘‘अब देखते ही रहोगे या बैठने को भी कहोगे…’’ पूनम ने मुंह से चुन्नी उतारते हुए कहा. फिर वह बाथरूम में मुंह धोने चली गई.

फ्रैश होने के बाद पूनम ने अपने पर्स से एक खास किस्म की चाय की पत्ती निकाली और सतीश से बोली, ‘‘अब देखना मेरे हाथ का कमाल.’’

इलैक्ट्रिक कैटल में चाय बन रही थी. सतीश बोला, ‘‘चूरमा लाई हो न? मैं गरम करा देता हूं.’’

पूनम ने पर्स से चूरमा निकाला. सतीश ने एक नौकर को बुलाया और कहा, ‘‘थोड़ी देर में यह चूरमा गरम करा कर ले आना.’’

नौकर डब्बा ले गया.

‘‘इतने में चाय बनती है, मैं जल्दी से एक काम निबटा कर आता हूं,’’ सतीश ने पूनम से कहा और बाहर चला गया.

अभी 3-4 मिनट ही हुए थे कि सतीश लौट आया.

‘‘बड़ी जल्दी काम कर के लौट आए. कहां गए थे?’’ पूनम ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही,’’ सतीश शरमा कर बोला.

‘‘जब तक नहीं बताओगे, तब तक चाय और चूरमा नहीं मिलेगा,’’ पूनम ने अपनी शर्त रख दी.

‘‘कैमिस्ट तक गया था,’’ यह कह कर सतीश मुसकरा दिया.

‘‘बदमाश कहीं के…’’ पूनम ने इतना कहा और चाय छानने लगी.

क्या वही प्यार था : दीदी बाबा का प्यार क्या रंग लाया

दादी और बाबा के कमरे से फिर जोरजोर से लड़ने की आवाजें आने लगी थीं. अम्मा ने मुझे इशारा किया, मैं समझ गई कि मुझे दादीबाबा के कमरे में जा कर उन्हें लड़ने से मना करना है. मैं ने दरवाजे पर खड़े हो कर इतना ही कहा कि दादी, चुप हो जाइए, अम्मा के पास नीचे गुप्ता आंटी बैठी हैं. अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि दादी भड़क गईं.

‘‘हांहां, मुझे ही कह तू भी, इसे कोई कुछ नहीं कहता. जो आता है मुझे ही चुप होने को कहता है.’’

दादी की आवाज और तेज हो गई थी और बदले में बाबा उन से भी जोर से बोलने लगे थे. इन दोनों से कुछ भी कहना बेकार था. मैं उन के कमरे का दरवाजा बंद कर के लौट आई.

दादीबाबा की ऐसी लड़ाई आज पहली बार नहीं हो रही थी. मैं ने जब से होश संभाला है तब से ही इन दोनों को इसी तरह लड़ते और गालीगलौज करते देखा है. इस तरह की तूतू मैंमैं इन दोनों की दिनचर्या का हिस्सा है. हर बार दोनों के लड़ने का कारण रहता है दादी का ताश और चौपड़ खेलना. हमारी कालोनी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे महल्लों के सेवानिवृत्त लोग, किशोर लड़के दादी के साथ ताश खेलने आते हैं. ताश खेलना दादी का जनून था. दादी खाना, नहाना छोड़ सकती थीं, मगर ताश खेलना नहीं.

दादी के साथ कोई बड़ा ही खेलने वाला हो, यह जरूरी नहीं. वे तो छोटे बच्चे के साथ भी बड़े आनंद के साथ ताश खेल लेती थीं. 1-2 घंटे नहीं बल्कि पूरेपूरे दिन. भरी दोपहरी हो, ठंडी रातें हों, दादी कभी भी ताश खेलने के लिए मना नहीं कर सकतीं. बाबा लड़ते समय दादी को जी भर कर गालियां देते परंतु दादी उन्हें सुनतीं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर उसी तरह ताश में मगन रहतीं. कई बार बहुत अधिक गुस्सा आने पर बाबा, दादी के 1-2 छड़ी भी टिका देते. दादी बाबा से न नाराज होतीं न रोतीं. बस, 1-2 गालियां बाबा को सुनातीं और अपने ताश या चौपड़ में मस्त हो जातीं.

एक खास बात थी, वह यह कि दोनों अकसर लड़ते तो थे मगर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. जब दोनों की लड़ाई हद से बढ़ जाती और दोनों ही चुप न होते तो दोनों को चुप कराने के लिए अम्मा इसी बात को हथियार बनातीं. वे इतना ही कहतीं, ‘‘आप दोनों में से किसी एक को देवरजी के पास भेजूंगी,’’ दोनों चुप हो जाते और तब दादी, बाबा से कहतीं, ‘‘करमजले, तू कहीं रहने लायक नहीं है और न मुझे कहीं रहने लायक छोड़ेगा,’’ और दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते.

खैर, गुप्ता आंटी तो चली गई थीं मगर अम्मा को आज जरा ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. सो, अम्मा ने दोनों से कहा, ‘‘बस, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. अभी देवरजी को चिट्ठी लिखती हूं कि किसी एक को आ कर ले जाएं.’’

अम्मा का कहना था कि बाबा हाथ जोड़ कर हर बार की तरह गुहार करने लगे, ‘‘अरी बेटी, तू बिलकुल सच्ची है, तू हमें ऊपर बनी टपरी में डाल दे, हम वहीं रह लेंगे पर हमें अलगअलग न कर. अरी बेटी, आज के बाद मैं अपना मुंह सी लूंगा.’’

अभी बात चल ही रही थी कि संयोग से चाचा आ गए. चायनाश्ते के बाद अम्मा ने चाचा से कहा, ‘‘सुमेर, दोनों में से किसी एक को अपने साथ ले कर जाना. जब देखो दोनों लड़ते रहते हैं. न आएगए की शर्म न बच्चों का लिहाज.’’

चाचा लड़ने का कारण तो जानते ही थे इसलिए दादी को समझाते हुए बोले, ‘‘मां, जब पिताजी को तुम्हारा ताश और चौपड़ खेलना अच्छा नहीं लगता तो क्यों खेलती हैं, बंद कर दें. ताश खेलना छोड़ दें. पता नहीं इस ताश और चौपड़ के कारण तुम ने पिताजी की कितनी बेंत खाई होंगी.

‘‘भाभी ठीक कहती हैं. मां, तुम चलो मेरे साथ. मेरे पास ज्यादा बड़ा मकान नहीं है, पिताजी के लिए दिक्कत हो जाएगी. मां, तुम तो बच्चों के कमरे में मजे से रहना.’’

आज दादी भी गुस्से में थीं, एकदम बोलीं, ‘‘हां बेटा, ठीक है. मैं भी अब तंग आ गई हूं. कुछ दिन तो चैन से कटेंगे.’’

दादी ने अपना बोरियाबिस्तर बांध कर तैयारी कर ली. अपनी चौपड़ और ताश उठा लिए और जाने के लिए तैयार हो गईं.

यह बात बाबा को पता चली तो बाबा ने वही बातें कहनी शुरू कर दीं जो दादी से अलग होने पर अम्मा से किया करते थे, ‘‘अरी बेटी, मैं मर कर नरक में जाऊं जो तू मेरी आवाज फिर सुने.’’

अम्मा के कोई जवाब न देने पर वे दादी के सामने ही गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘सुमेर की मां, आप मुझे जीतेजी क्यों मार रही हो. आप के बिना यह लाचार बुड्ढा कैसे जिएगा.’’

इतना सुनते ही दादी का मन पिघल गया और वे धीरे से बोलीं, ‘‘अच्छा, नहीं जाती,’’ दादी ने चाचा से कह दिया, ‘‘तेरे पिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं न, मैं नहीं जाऊंगी,’’ और दादी ने अपना बंधा सामान, अपना बक्सा, ताश, चौपड़ सब कुछ उठा कर खुद ही अंदर रख दिया.

चाचा को उसी दिन लौटना था अत: वे चले गए. शाम को मैं चाय ले कर बाबा के पास गई तो बाबा ने कहा, ‘‘सिम्मी बच्ची, पहले अपनी दादी को दे,’’ और फिर खुद ही बोले, ‘‘सुमेर की मां, सिम्मी चाय लाई है, चाय पी लो.’’

दादी भी वाणी में मिठास घोल कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘‘अजी आप पियो, मेरे लिए और ले आएगी.’’

एक बात और बड़ी मजेदार थी, जब अलग होने की बात होती तो तूतड़ाक से बात करने वाले मेरे बाबा और दादी आपआप कर के बात करते थे जो हमारे लिए मनोरंजन का साधन बन जाती थी. लेकिन ऐसे क्षण कभीकभी ही आते थे, और दादीबाबा कभीकभी ही बिना लड़ेझगड़े साथ बैठते थे. आज भी ऐसा ही हुआ था. ये आपआप और धीमा स्वर थोड़ी ही देर चला क्योंकि पड़ोस के मेजर अंकल दादी के साथ ताश खेलने आ गए थे.

बाबा की तबीयत खराब हुए कई दिन हो गए थे. दादी को विशेष मतलब नहीं था उन की तबीयत से. एक दिन बाबा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. बाबा कहने लगे, ‘‘आज मैं नहीं बचूंगा. अपनी दादी से कहो, मेरे पास आ कर बैठे, मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

दादी की ताश की महफिल जमी हुई थी. हम उन्हें बुलाने गए मगर दादी ने हांहूं, अच्छा आ रही हूं, कह कर टाल दिया. वह तो अम्मा डांटडपट कर दादी को ले आईं. दादी बेमन से आई थीं बाबा के पास.

दादी बाबा के पास आईं तो बाबा ने बस इतना ही कहा था, ‘‘सुमेर की मां, तू आ गई, मैं तो चला,’’ और दादी का जवाब सुने बिना ही बाबा हमेशा के लिए चल बसे.

तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए. शाम को दादी अपने कमरे में गईं. वे बिलकुल गुमसुम हो गई थीं हालांकि बाबा की मृत्यु होने पर न वे रोई थीं न ही चिल्लाई थीं. दादी ने खाना छोड़ दिया, वे किसी से बात नहीं करती थीं. ताश, चौपड़ को उन्होंने हाथ नहीं लगाया. जब कोई ताश खेलने आता तो दादी अंदर से मना करवा देतीं कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. अम्मा या पापा दादी से बात करने का प्रयास करते तो दादी एक ही जवाब देतीं, ‘‘मेरा जी अच्छा नहीं है.’’

एक दिन अम्मा, दादी के पास गईं और बोलीं, ‘‘मांजी, कमरे से बाहर आओ, चलो ताश खेलते हैं, आप ने तो बात भी करना छोड़ दिया. दिनभर इस कमरे में पता नहीं क्या करती हो. चलो, आओ, लौबी में ताश खेलेंगे.’’

दादी के चिरपरिचित जवाब में अम्मा ने फिर कहा, ‘‘मांजी, ऐसी क्या नफरत हो गई आप को ताश से. इस ताश के पीछे आप ने सारी उम्र पिताजी की गालियां और बेंत खाए. जब पिताजी मना किया करते थे तो आप खेलने से रुकती नहीं थीं और अब वे मना करने के लिए नहीं हैं तो 3 महीने से आप ने ताश छुए भी नहीं. देखो, आप की चौपड़ पर कितनी धूल जम गई है.’’

अब दादी बोलीं, ‘‘परसों होंगे 3 महीने. मेरा उन के बिना जी नहीं लगता. सुमेर के पिताजी, मुझे भी अपने पास बुला लो. मुझे नहीं जीना अब.’’

दादी की मनोकामना पूरी हुई. बाबा के मरने के ठीक 3 महीने बाद उसी तिथि को दादी ने प्राण त्याग दिए. यानी दादी अपने कमरे में जो गईं तो 3 महीने बाद मर कर ही बाहर आईं.

दादीबाबा को हम ने कभी प्रेम से बैठ कर बातें करते नहीं देखा था, लेकिन दादी बाबा की मौत का गम नहीं सह पाईं और बाबा के पीछेपीछे ही चली गईं. उन के ताश, चौपड़ वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं.

प्रेम का मूल : लता को चोरी क्यों करनी पड़ी

लता ने कभी सोचा नहीं था कि उसे टूट कर चाहने वाला यशवंत उसे मुसीबत के समय इस कदर धोखा भी दे सकता है. प्यार की हद तक चाहने का दावा करने वाले यशवंत का प्यार तो केवल लता की मतवाली जवानी से हवस मिटाने तक ही सिमटा रह गया था.

लता कभी अस्पताल के कमरे की छत पर टंगे मकड़जाले से लिपटे खड़खड़ाते पंखे को देख रही थी, तो कभी बैड के पास टूटे स्टूल पर चिंतित बैठे अपने पति छगन को.

डाक्टर ने बताया कि इस हादसे की वजह से उस की एक टांग टूट गई है और रीढ़ की हड्डी पर भी मामूली चोट आई है, जो समय के साथसाथ ठीक हो जाएगी.

लता की दाईं टांग पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था और कमर पर चौड़ी बैल्ट बंधी थी. दर्द से उस का रोमरोम सिहर रहा था. आंखें पछतावे के आंसू बहा रही थीं. उस ने दोनों हाथों से छगन के दाएं हाथ को पकड़ा और होंठों से एक गहरा चुम्मा जड़ दिया. छगन की आंखें भी भीग गईं. उस ने दूसरे लोगों की परवाह न करते हुए लता के माथे को चूम लिया.

लता के सूखे होंठों पर बस एक कोरी मुसकान उभर गई. छत के एक किनारे पर मकड़जाले में फंसे किसी पतंगे को देख कर उसे भी अपना अतीत याद आने लगा. उस ने छगन का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आंखें मूंदनी शुरू कर दीं. लता को यशवंत की वह पहली मुलाकात याद आने लगी, जब वह उस के चंगुल में फंस गई थी.

छगन को लगा कि लता को नींद आ गई है, तो उस ने चुपके से उस के हाथों से अपना हाथ हटाया और उस के पैर की उंगलियों पर भिनभिनाती मक्खियों को हटाने लगा.

लता शहर से गांव जाने वाले रास्ते पर बने वेटिंग रूम में बैठी थी. उस के पास 2 भारी बैग थे, जिस में महीनेभर का राशन और दूसरा जरूरी सामान था.

सूरज आकाश के बीचोंबीच आ कर शरीर को झुलसा रहा था. वह सोचने लगी कि कुछ देर बाद छगन भी दोपहर का खाना खाने के लिए घर आने वाला होगा. उसे घर पर न पा कर वह परेशान हो जाएगा.

छगन निकट ही जल महकमे में चपरासी था. लता छगन को बता कर शहर आई थी. उस ने ब्लाउज के अंदर हाथ ठूंस कर अपना मोबाइल निकाला और छगन को हालात के बारे में बता दिया.

लता अभी मोबाइल बंद कर ही रही थी कि उस के निकट एक मोटरसाइकिल सवार आ कर रुक गया. वह तिरछी निगाहों से लता को देख रहा था. लता कभी सड़क के दूसरे छोर को देख रही थी, तो कभी अपने दोनों बैगों को. वह चुपकेचुपके उस नौजवान को भी तिरछी निगाहों से देख रही थी.

काफी देर तक जब दोनों में बातचीत नहीं हुई, तो मोटरसाइकिल सवार ने पूछा, ‘‘क्या आप को नारायणकोटी गांव जाना है?’’

काफी देर तक जब लता ने कोई जवाब नहीं दिया तो, उस नौजवान ने अनमने भाव से कहा, ‘‘असल में, मैं इस गांव के लिए नया हूं. वहां मेरे रिश्तेदार रहते हैं, मुझे उन के घर जाना है. चूंकि मैं वहां पहली बार जा रहा हूं, इसलिए मुझे उन के घर के बारे में जानकारी नहीं है.

‘‘बाकी अगर आप की कुछ बोलने की इच्छा नहीं है, तो कोई बात नहीं. केवल उन के घर के बारे में ही बता दीजिए,’’ कह कर उस नौजवान ने मोबाइल निकाल कर एक पते के बारे में लता से पूछा.

यह घर तो लता के ठीक सामने वालों का था. बारबार समझाने के बाद भी जब नौजवान के पल्ले कुछ नहीं पड़ा, तो वह झंझला गई.

‘‘अगर आप को कोई तकलीफ न हो, और आप को भी नारायकणकोटी गांव जाना है, तो बुरा न मानें मेरे साथ चलिए. आप जल्दी भी पहुंच जाएंगी और मुझे पता ढूंढ़ने में दिक्कत भी नहीं आएगी. बाकी आप की इच्छा,’’ कह कर वह नौजवान मोटरसाइकिल पर किक मारने लगा.

वह नौजवान यही कोई 24 साल का रहा होगा. लंबा, छरहरा और गठीला बदन. बाल घुंघराले थे. बात करने के सलीके से ऐसा लग रहा था कि वह ठीकठाक पढ़ालिखा भी है. चेहरे पर मासूमियत टपक रही थी.

कुछ सोच कर लता ने अपने दोनों बैग संभाले और किसी तरह वह मोटरसाइकिल पर बैठ गई. कुछ देर की खामोशी के बाद दोनों में औपचारिक बातें शुरू हुईं, जिस का सार यह था कि उस नौजवान का नाम यशवंत है, जो एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. कुछ दिन की छुट्टियां बिताने के लिए वह इस गांव में जा रहा था.

अपने घर के निकट आते ही लता ने यशवंत को रुकने का इशारा किया. मोटरसाइकिल से उतर कर यशवंत ने लता के बैग उतारे और उस के घर के अहाते में रख दिए.

यशवंत का शुक्रिया अदा करते हुए लता ने उसे सामने वाले घर की ओर बढ़ने के लिए इशारा किया.

लता ने छगन को खाना खिलाया, जो भोजन कर के दोबारा अपनी ड्यूटी पर लौट गया.

कुछ देर के बाद लता कपड़े धो कर सुखाने के लिए छत पर गई. उस ने देखा कि सामने वाली छत पर यशवंत फोन पर किसी से बतिया रहा था.

लता को छत पर आता देख यशवंत ने तत्काल फोन पर बात करना बंद कर दिया और मुसकराते हुए लता की ओर देखने लगा.

जवाब में लता भी अपना निचला होंठ काट कर मुसकराने लगी. दोनों में कुछ बातें हुईं.

लता अब यशवंत के बारे में ही सोचने लगी थी. चंद दिनों में ही वे दोनों एकदूसरे के इश्क में पड़ गए. घंटों मोबाइल पर दोनों की चैटिंग होने लगी, यहां तक कि वीडियो काल के जरीए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

एक दिन दोपहर को छगन के ड्यूटी पर जाने के बाद लता ने यशवंत को घर आने का न्योता दे दिया. गरमी के मारे बुरा हाल था. लोग अमूमन घर में ही पंखे या कूलर की हवा ले रहे थे.

यशवंत ने तिरछी निगाहों से रास्ते के दोनों किनारों पर देखा, कोई भी नहीं था. उस ने दबे पैर लता के घर का दरवाजा खोला और अंदर आ कर कुंडी चढ़ा दी.

लता इस पल का कई दिन से इंतजार कर रही थी. उस ने गुलाबी रंग का पटियाला सूट पहना था. अभीअभी वह नहा कर बाहर आई थी. बाल खुशबूदार तेल से महक रहे थे.

यशवंत लता के बेहद करीब आ गया. इतना कि दोनों की सांसें एकदूसरे की सांसों से टकराने लगीं.

यशवंत ने लता को अपनी बांहों में ले लिया. एक आह के साथ लता यशवंत के चौड़े सीने से सट गई. दोनों की सांसें अब धौंकनी की तरह चल रही थीं.

यशवंत ने लता को उठा कर खाट पर पटक दिया और कुछ देर के लिए 2 जिस्म एक हो गए. सांसों ने रफ्तार पकड़ ली. कुछ देर बाद वे दोनों निढाल हो कर एकदूसरे की बांहों में सुस्ताने लगे.

‘‘बाबू, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता. छगन की कमाई से घर नहीं चलता. शादी के बाद से आज तक ढंग का सूट तक नहीं दिला पाया. कहीं घुमाने के लिए भी नहीं ले जाता. इस गंवार के साथ और नहीं रहा जाता,’’ कह कर लता यशवंत के सीने पर फैले बालों के साथ खेलने लगी.

‘‘पगली, अभी थोड़ा और समय दे दे. हम हमेशा के लिए इस गांव से दूर चले जाएंगे. मैं ने घर में बात कर ली है. हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे और मेरी कंपनी में तुम्हारे लिए एक बेहतर नौकरी भी है. इस घर में तुम्हारा रहना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. हम जल्दी यहां से निकल जाएंगे,’’ कह कर यशवंत लता के गालों को चूमने लगा.

इस के बाद बातों का सिलसिला कुछ देर तक चला. यशवंत कपड़े पहन कर बाहर निकल गया. लता को कई सालों बाद ऐसा प्यार मिला था. यशवंत के साथ कितना खुश रहेगी वह. दोनों ड्यूटी के बाद सैरसपाटे को निकलेंगे. बढि़या होटल में खाना खाएंगे. प्यार में अंधी हो चुकी लता को अब उसे टूट कर चाहने वाले छगन में कई बुराइयां दिखाई देने लगीं.

यशवंत 15 दिन गांव में रहा. इस दौरान उन दोनों के बीच कई बार जिस्मानी रिश्ता भी बना. एक दिन यशवंत लता से जल्दी शादी करने का वादा कर के वापस चला गया. उस के जाते ही लता का दिल घर के किसी भी काम में नहीं लग रहा था. छगन से भी वह कई बार बिना वजह ही बातबात पर झगड़ने लगी थी.

समय मिलते ही आएदिन यशवंत और लता घंटों फोन पर चिपके रहते थे. हवस में पागल हो चुकी लता को यशवंत कई बार शहर के होटलों में मिलने लगा था और वह लता के लिए खूबसूरत सूटसलवार और सिंगार का दूसरा सामान भी ले आता था. लता काफी खुश थी.

काफी समय गुजरने के बाद भी जब यशवंत शादी के नाम पर केवल बहाने बनाने लगा, तो लता को कुछ शक होने लगा. जब लता उस से शादी की बात करती, तो वह कहता कि अभी पैसे जोड़ रहा है. शहर में एक बढि़या सा घर भी तो बनाना है.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा, तो एक दिन उस ने यशवंत से झूठ कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. पहले तो यशवंत झल्ला गया, फिर उस ने बच्चा गिराने की सलाह दी, जिसे लता ने मानने से मना कर दिया.

अब लता को भी लगने लगा था कि यशवंत ने उसे बेवकूफ बना दिया है. थकहार कर उस ने यशवंत को डराने के मकसद से कड़े शब्दों में कहा कि अगर वह उस से शादी नहीं करेगा, तो वह पुलिस में उस की शिकायत दर्ज करेगी.

पुलिस का नाम सुन कर पहले तो यशवंत डर गया. फिर उस ने हालात संभालते हुए कहा कि वह लता को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है. अगर उसे थोड़ा भी शक है, तो कल वह उस से मिलने शहर आ जाए. फिर वहीं से कहीं दूर भाग कर साथ रहेंगे.

यशवंत ने लता को समझाया कि अगर घर में कुछ गहने या पैसे हैं, तो वे भी उठा कर अपने साथ ले आए, भविष्य में न जाने कैसे बुरे हालात बन जाएं, इसलिए गहने और पैसे उन के सुखद भविष्य के कुछ काम तो आएंगे.

लता अपने मांबाप के दिए कुछ गहने और छगन की जेब से चुरा कर जमा किए गए 20,000 रुपए एक बैग में रख कर शहर आ गई.

शहर में पहले से ही यशवंत लता का इंतजार कर रहा था. लता के आते ही उस ने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाया और हाईवे से आगे बढ़ने लगा. लता उस से सट कर बैठ गई. आखिरकार उसे उस का अनमोल प्यार जो मिल गया था.

यशवंत की मोटरसाइकिल तेज रफ्तार से शहर से दूसरे रास्ते पर बढ़ने लगी. ओवर स्पीड की वजह से सामने से तेज रफ्तार से आ रहे एक ट्रक से बचने के चक्कर में मोटरसाइकिल सड़क के किनारे बनी रेलिंग से जा टकराई. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि देखते ही देखते मोटरसाइकिल के परखच्चे उड़ गए.

यशवंत मोटरसाइकिल से छिटक कर खेतों में गिर गया. उस के एक पैर में चोट आ गई थी. लता निढाल हो कर सड़क के दूसरे किनारे पड़ी थी. उस के माथे, पैरों और नथुनों से खून फूट पड़ा था.

लता को उसी हालत में छोड़ कर सड़क किनारे गिरे लता के बैग को उठा कर यशवंत लड़खड़ाते कदमों से खेतों को पार करते हुए भाग चुका था.

इस भयंकर हादसे के बाद वहां पर लोग जमा होने लगे और लता को उठा कर नजदीक के एक अस्पताल में दाखिल कर के उस के पति को बता दिया था.

लता की सोच भंग हुई. उस के जेहन में बारबार धोखेबाज यशवंत का चेहरा घूम रहा था. उस की मुट्ठियां भिंचने लगी थीं. आंखों में गुस्से का लावा जमने लगा था. वह उठने की भरसक कोशिश करने लगी, लेकिन उठ नहीं  पाई.

छगन ने लता के होंठों से जूस का गिलास लगा दिया और बोला, ‘‘अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता, मैं किस के सहारे जीता, किस के लिए नौकरी करता. मैं ने पाईपाई जोड़ कर तुम्हारे लिए सोने की नथ बनवाने को दी थी… तुम्हें नथ बहुत पसंद है न…’’ कहतेकहते उस की आंखों से आंसू निकल आए.

लता के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. वह यशवंत की हवस और छगन के प्यार को तोल रही थी. उस ने इधरउधर देखा. आसपास न तो उस का मोबाइल नजर आ रहा था और न ही उस का कीमती बैग.

पूछने पर पता चला कि कुछ स्थानीय लोगों ने लता को अस्पताल पहुंचा कर उस के पति को बुलाया था. मतलब, यशवंत ने उसे धोखे में रखा. उस के गहने और पैसे यशवंत ले गया.

लता उसी हालत में अपने पति छगन से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उसे अपने किए पर पछतावा था, जिस का प्रायश्चित्त भी तो करना था. ठीक होने के बाद वह भगोड़े यशवंत से तो निबटेगी ही.

‘‘मुझे माफ कर देना,’’ कह कर लता रोने लगी. आज लता को पता चल चुका था कि गरीबी के दौर में भी उस के हर नखरे उठाने के बाद भी खुश रहने वाला छगन असलियत में कितना महान है. पत्नी का असल हमदर्द उस का पति ही होता है. उसे अपने गंदे शरीर से घिन सी आने लगी थी.

लता समझ चुकी थी कि प्रेम का मूल हवस नहीं है, बल्कि साथी के प्रति समर्पण, विश्वास और अपनों की खुशी है.

प्यार की पहली किस्त : अरबपति रहमान की कहानी

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झांका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं. तुम्हारी मजबूरी सुलतान. सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

हाय हैंडसम: प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे सम?ाऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मु?ो पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मु?ो और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मु?ो अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मु?ो ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मु?ो?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मु?ो दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मु?ा से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मु?ो कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मु?ो कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मु?ो फोन करोगी और न ही मु?ा से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा सम?ा कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

मेरे ड्राइवर ने मु?ो फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मु?ो अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मु?ो बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मु?ो यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मु?ो उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

प्यार दोबारा भी होता : संजना ने राजीव को देखकर क्या महसूस किया

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

पाक मुहब्बत : इश्क का मुश्किल इम्तिहान

अहसान और परवीन की मुहब्बत इतनी पाक थी कि उन दोनों ने तकरीबन 7 साल साथसाथ गुजारे थे. वे दोनों एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहते थे, पर उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि जब तक उन का निकाह नहीं होता, तब तक वे एकदूसरे के जिस्म को नहीं छुएंगे.

उस समय अहसान की उम्र महज 17 साल थी. तब वह अपनी चाची के घर उन के साथ रह रहा था, चाची उस पर अपनी जान छिड़कती थीं.

परवीन भी अकसर अहसान की चाची के घर आतीजाती रहती थी. परवीन और कोई नहीं, बल्कि अहसान की चाची की छोटी बहन थी, जो महज 16 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की नीली आंखें ऐसी लगती थीं, मानो कोई अंगरेज हो. गोरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, सुनहरे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाते थे.

एक दिन अहसान अपनी चाची से बातें कर रहा था कि तभी वहां परवीन भी आ गई.

चाची अचानक से बोलीं, ‘‘अहसान, तुझे परवीन कैसी लगती है?’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी.’’

चाची बोलीं, ‘‘मै चाहती हूं कि तेरी शादी परवीन से हो जाए.’’

अहसान ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मुझे इस में कोई एतराज नहीं है चाची.’’

इतना सुन कर पास बैठी परवीन भी शरमा गई और तिरछी निगाहों से अहसान को देखते हुए अपने प्यार का इजहार करने लगी.

अहसान की चाची ने परवीन से पूछा, ‘‘क्यों परवीन, क्या तू चाहती है कि तेरी शादी अहसान से हो जाए?’’

परवीन शरमाते हुए बोली, ‘‘बाजी, आप की जो मरजी, भला मुझे क्या एतराज होगा.’’

उस दिन से परवीन और अहसान एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहने लगे और अपनी शादी के सपने संजोने लगे. दोनों अकसर अकेले घूमने जाने लगे, जिस पर चाची को कोई एतराज नहीं था. फिर वे दोनों बालिग हो गए.

अब परवीन पर शादी करने का दबाव बढ़ने लगा था, जबकि अहसान अभी भी पढ़ाई में उलझ हुआ था. वह बीकौम कर रहा था.

जब परवीन को इस बात का पता चला कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है, तो उस ने अपनी बड़ी बहन से अपने दिल की बात कहते हुए कहा, ‘‘आप तो कह रही थीं कि मेरी शादी अहसान से कराओगी, फिर क्यों मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है?’’

परवीन की बाजी बोलीं, ‘‘अहसान से तेरी शादी कैसे हो सकती है… अभी वह पढ़ रहा है. कुछ कमाता है नहीं, कैसे तेरे खर्चे उठाएगा?’’

परवीन ने कहा, ‘‘कुछ भी करो, पर मेरी शादी अहसान से करा दो. मैं उस के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगी. मैं ने उसे अपना सबकुछ मान लिया है. अब इस दिल में उस के सिवा किसी और का खयाल करना भी मेरे लिए बड़ा मुश्किल है.’’

अगले दिन परवीन ने सारी बात अहसान को बता दी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो, क्योंकि मैं किसी गैर से शादी नहीं कर सकती.’’

अहसान बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. मैं चाची से बात करता हूं. वे मेरी बात जरूर मानेंगी और मुझे कुछ काम करने का थोड़ा समय भी दे देंगी. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो कर तुम से शादी कर लूंगा.’’

अहसान ने अगले ही दिन चाची से कहा, ‘‘चाची, आप ने मेरी शादी की बात परवीन से की थी. मैं उसे दिलोजान से चाहता हूं. मैं उस के बगैर नहीं रह सकता.’’

चाची बोलीं, ‘‘प्यार से पेट नहीं भरता, बल्कि जिंदगी जीने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. जब पेट की भूख बढ़ती है, तो प्यार का सारा भूत उतर जाता है.’’

अहसान बोला, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के उस का पेट भरूंगा. उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘मेहनतमजदूरी कर के एक वक्त का खाना खा सकते हो, अच्छी जिंदगी नहीं गुजार सकते. जिंदगी जीने के लिए पैसा चाहिए और मेरे अम्मीअब्बा कभी भी एक बेरोजगार से परवीन की शादी करने को कभी तैयार नहीं होंगे.’’

अहसान गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘आप कोशिश तो करो. मुझे कुछ समय दे दो. प्लीज, मेरी खाली झाली में मेरा प्यार परवीन डाल दो.’’

चाची बोलीं, ‘‘बहुत मुश्किल है. पहले तुम कामयाब हो जाओ, उस के बाद परवीन से शादी करने का खयाल करना.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं अगले 2 साल के अंदर एक कामयाब इनसान बन कर ही आऊंगा. मैं कल ही काम की तलाश में मुंबई जाता हूं,’’ अहसान बोला.

अगले ही दिन अहसान 2 साल का समय ले कर मुंबई चला गया और वहां उस ने अपनी जानपहचान के लोगों से काम की बात की, तो उसे एक बेकरी में हिसाबकिताब का काम मिल गया और 4,000 रुपए महीने की नौकरी पर उस ने वहां काम करना शुरू कर दिया.

6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद अहसान ने 20,000 रुपए जोड़ लिए और अपनी चाची से फोन कर के सब बता दिया.

चाची बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा है, पर 4,000 रुपए महीना कमाने से घर नहीं चलेगा. मेरे घर वाले इतना कम कमाने वाले से शादी नहीं करेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘अभी मेरे वादे के डेढ़ साल बाकी हैं. मैं इन डेढ़ साल के अंदर अच्छा पैसा कमाने वाला बन कर दिखाऊंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘ठीक है, पहले कामयाब बनो, तब बात करना. उस से पहले तुम मुझ से परवीन के बारे में कोई बात नहीं करोगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, चाची.’’

समय गुजरता गया. अहसान मेहनत और लगन से काम करता रहा. उसे काम करतेकरते डेढ़ साल हो गया. उस की मेहनत और लगन से खुश हो कर उस के मालिक ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमारे साथ एक बेकरी में सा?ोदारी करोगे?’’

अहसान बोला, ‘‘मेरे पास अभी पैसा नहीं है. बड़ी मुश्किल से 70,000 रुपए ही जोड़ पाया हूं.’’

मालिक बोले, ‘‘ठीक है, बाकी पैसा मैं लगा दूंगा. एक बेकरी किराए पर मिल रही है. 30,000 रुपए महीना किराया है, ऊपर का जो खर्च होगा, वह तकरीबन 3 लाख रुपए है.

3 पार्टनर मिल कर इस बेकरी को ले लेते हैं. तुम ईमानदारी और जिम्मेदारी से उसे चलाना. जो बचत होगी, उसे तीनों आपस में बांट लेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

अगले ही दिन वह बेकरी किराए पर ले ली गई. अहसान को उस की जिम्मेदारी दे दी गई.

अहसान की मेहनत रंग लाई और 3 महीने में ही उस बेकरी में 2 लाख रुपए हर महीने की बचत होने लगी.

अहसान के ऊपर जो कर्जा हो गया था, वह भी उतर गया था और अब वह तकरीबन 60,000 रुपए हर महीने कमाने लगा था.

2 साल पूरे होने में अभी 15 दिन बाकी थे. अहसान ने गांव जाने का इरादा किया और एक महीने के लिए बेकरी पर अपने पार्टनर को बैठा कर वह गांव चला गया.

गांव पहुंचते ही अहसान सब से पहले अपनी चाची के घर गया और बोला, ‘‘चाची, मैं अब 60,000 रुपए महीना कमाने लगा हूं, जिस से मैं परवीन को सारी खुशियां दे सकता हूं. अब आप अपने वादे के मुताबिक मेरी शादी परवीन से करा कर उसे मेरी झाली में डाल दो.’’

यह सुन कर चाची बोलीं, ‘‘परवीन की शादी तो एक साल पहले ही कर दी गई है. उस के एक बेटा भी हो गया है. उस का शौहर भी मुंबई में रहता है और महीने में 15,000 रुपए कमा लेता है.’’

अहसान ने जैसे परवीन की शादी की बात सुनी, तो उस का खून खुश्क हो गया. उस के दिल की धड़कन जहां की तहां थम गई. उस ने जिस लड़की को पाने के लिए अपनी पढ़ाई कुरबान कर दी थी, जिस के लिए वह अपना गांव छोड़ कर पैसा कमाने के लिए मुंबई चला गया था, वापस आने से पहले ही उस के सपने चूर हो कर रह गए.

अहसान का दिल पूरी तरह टूट चुका था. उस ने दबे लहजे में अपनी चाची से कहा, ‘‘चाची, आप को भी थोड़ा सब्र नहीं हुआ. मेरे दिल के टुकड़े को किसी दूसरे के हवाले करते हुए आप का दिल नहीं धड़का.’’

चाची बोलीं, ‘‘हमें क्या पता था कि तू 2 साल में कामयाब हो जाएगा. हम ने सोचा था कि अगर तू कामयाब न हुआ, तो परवीन को जिंदगीभर तेरे इंतजार में थोड़ा बिठाए रखेंगे, इसलिए हमें रिश्ता अच्छा लगा तो हम ने उस की शादी कर दी. मेरी बात मान, तू भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर ले.’’

कुछ दिनों के बाद अहसान ने भी शादी कर ही ली. वह अपनी पुरानी जिंदगी भूल कर नई जिंदगी की शुरुआत करने में मशगूल हो गया. दिन बीतते गए.

एक बार अहसान ‘महाराष्ट्र संपर्क क्रांति’ ट्रेन से मुंबई जाने के लिए जैसे ही बोगी नंबर एस 5 की बर्थ नंबर 32 पर पहुंचा, तो वहां परवीन को देख कर दंग रह गया.

परवीन बर्थ नंबर 31 पर अपने 4 महीने के बेटे के साथ बैठी थी. जैसे ही दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ी, तो हैरान रह गए.

अहसान परवीन से बोला, ‘‘तुम भी मुंबई जा रही हो क्या परवीन?’’

‘‘हां, मेरे शौहर को 2 महीने के लिए उन के दोस्त का कमरा मिला था, तो उन्होंने मुझे अपने पास मुंबई बुला लिया है. वे बांद्रा स्टेशन पर आ कर मुझे ले जाएंगे.’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत जल्दी की तुम ने शादी करने में, थोड़ा इंतजार कर लेती.’’

परवीन बोली, ‘‘वह एक साल मैं ने तुम्हारी याद में कैसे गुजारा था, मैं ही जानती हूं. तुम्हारा न कुछ अतापता था और न ही कोई मोबाइल नंबर. तब बाजी बोलीं कि क्यों उस की याद में परेशान होती है. अम्मी की तबीयत भी ठीक नहीं है. एक रिश्ता आया है.

‘‘अम्मी की तमन्ना थी कि उन के जीतेजी मेरी शादी हो जाए, तो मैं ने हां कर दी और मेरी शादी के एक महीने बाद ही वे चल बसीं.’’

अहसान ने कहा, ‘‘मेरा खयाल नहीं आया कि जब मैं तुम्हारी शादी की खबर सुनूंगा, तो मुझे पर क्या बीतेगी? मैं ने तुम्हारी बाजी से कामयाब होने के लिए 2 साल का समय मांगा था और मैं कामयाब हो कर तुम्हारी बाजी के पास गया, तो मुझे पता चला कि तुम ने शादी कर ली है. यह सुनते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है.’’

परवीन ने कहा, ‘‘अहसान, मुझे माफ कर देना. मैं मजबूर थी.’’

अहसान बोला, ‘‘चलो, छोड़ो पुरानी बातें… और सुनाओ, घर में सब कैसे हैं?’’

परवीन ने कहा, ‘‘सब सही है, पर जिस कमाऊ लड़के के चक्कर में घर वालों ने मेरी शादी की, वह बहुत गुस्से वाला है और हर समय घर पर ही पड़ा रहता है. सालभर में 6 महीने ही काम करता है,’’ यह कहतेकहते वह रोने लगी.

इस के बाद बात करतेकरते कब समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला. रात के 10 बज गए थे.

तभी परवीन बोली, ‘‘बहुत दिन गुजर गए एकसाथ खाना खाए. चलो, खाना खाते हैं.’’

दोनों ने एकसाथ खाना निकाल कर सीट पर रख लिया. तभी परवीन ने हाथ बढ़ा कर पहला निवाला अहसान को खिलाते हुए कहा, ‘‘आज तो खाना मेरे हाथ से ही खाना पड़ेगा.’’

यह सुनते ही अहसान की आंखों में आंसू आ गए और उस ने भी अपने हाथों से परवीन को खाना खिलाना शुरू कर दिया.

रात के 12 बज चुके थे. पूरे डब्बे के मुसाफिर सो गए थे. बस, अहसान और परवीन जाग रहे थे कि तभी परवीन ने अहसान को जगह देते हुए कहा, ‘‘तुम आराम से यहीं सो जाओ.’’

अहसान चौंका और सोने के इरादे से अपने बैग से चादर निकालने लगा. जैसे ही उस ने अपनी चादर निकाली, उस में से एक छोटा टैडी बीयर निकल कर अहसान के पास आ गिरा.

जैसे ही अहसान ने उसे उठाया, उस में एक परचा लगा था, जिस में उस की बीवी ने बड़े प्यार से प्यारभरी बातें लिखी थीं और आखिर में ‘आई लव यू’ लिखा था, जिसे देखते ही अहसान की आंखें भर आईं और वह उसे अपने सीने से लगा कर ऊपर वाली बर्थ पर ही लेट गया.

परवीन ने उसे आवाज दी और कहा, ‘‘नीचे आ कर यहां सो जाओ.’’

पर अहसान नीचे नहीं आया और बोला, ‘‘तुम सो जाओ. मैं यहीं सो रहा हूं.’’

दरअसल, अहसान के सामने उस की बीवी का प्यारभरा लव लैटर आ गया था, जिसे देख कर उसे अहसास हो गया था कि परवीन के पास जा कर सोना अपनी बीवी का साथ गद्दारी करना है, उसे धोखा देना है, जबकि परवीन अब एक पराई औरत है.

अपनी बीवी को याद करतेकरते कब अहसान की आंख लग गई, उसे पता ही न चला. सुबह जब आंख खुली, तो उस ने अपनेआप को बांद्रा स्टेशन पर पाया. ट्रेन मुंबई आ चुकी थी. अहसान जल्दी से उठा और नीचे उतर आया.

परवीन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम रात को नीचे नहीं आए?’’

अहसान टालते हुए बोला, ‘‘मेरी आंख लग गई थी.’’

दोनों ने जल्दीजल्दी अपना सामान एक साइड में किया. थोड़ी देर बाद परवीन बोली, ‘‘पता नहीं, अब कभी हमारी मुलाकात होगी या नहीं. अच्छा, अपना मोबाइल नंबर तो दे दो.’’

अहसान ने परवीन को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और दोनों का सामान वह गाड़ी से नीचे उतारने लगा.

प्लेटफार्म से बाहर निकलते ही परवीन का शौहर आ गया और आटोरिकशा में बैठा कर उसे ले जाने लगा.

परवीन हसरतभरी निगाहों से अहसान को देखती रही. थोड़ी ही देर में दोनों एकदूसरे की आंखों से ओझल हो गए.

अहसान ने मुंबई आ कर अपना काम संभाल लिया और खूब तरक्की की. कुछ ही दिनों में अहसान ने भी अपनी बीवी को मुंबई बुला लिया.

एक दिन अहसान ने अपनी चाची को फोन किया और उन की खबर जाननी चाही, तो उन्होंने बताया, ‘‘परवीन मायके में आ कर रह रही है. उस का शौहर उसे जानवरों की तरह मारतापीटता है. कुछ कामकाज भी नहीं करता है. और तू सुना क्या हाल हैं तेरे?’’

‘‘मैं 2 बेकरी चला रहा हूं. अब महीने के एक लाख रुपए कमाता हूं. बीवी भी खुश है. एक बेटी का बाप बन गया हूं.’’

चाची बोलीं, ‘‘तू ने वह कर दिखाया है, जिस की हमें उम्मीद भी नहीं थी. काश, हम समय रहते तुझे समझ पाते और परवीन से ही तेरी शादी करा देते, तो आज परवीन इस तरह की परेशानियों में न घिरी होती.’’

अहसान ने परवीन के बारे में इतना सुन कर फोन रख दिया.

एक दिन अहसान के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ से परवीन के बोलने की आवाज आई, ‘‘अहसान, मैं अब उस जालिम के साथ नहीं रहूंगी, जो मुझे जानवरों की तरह मारतापीटता है, खाने को भी नहीं देता. कुछ कमाता ही नहीं, बस रातदिन दोस्तों के साथ घूमता फिरता है. उस ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है. अहसान, अगर मैं उस से तलाक ले लूंगी, तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘कैसी बात कर रही हो तुम? ऐसा कुछ मत करो. अपने घर वालों से कहो कि उसे प्यार से सम?ाएं और उसे कोई काम करा दें, ताकि उस की कुछ इनकम होने लगे.

‘‘यह तो सोचो कि तुम्हारे पास अब उस का एक बेटा भी है. क्यों उसे उस के बाप से अलग करना चाहती हो? जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस की वजह से बाद में परेशानी हो.’’

परवीन बोली, ‘‘मैं तुम से मशवरा नहीं मांग रही, बल्कि मैं तो यह कह रही हूं कि अगर मैं उस से तलाक ले लूं, तो क्या तुम मुझे अपनाओगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है… मेरी भी बीवी है, बच्ची है, जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं. तुम समझती क्यों नहीं…’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तुम मुझ से प्यार नहीं करते थे और न ही करते हो…’’

अहसान बोला, ‘‘मैं सिर्फ तुम से ही प्यार करता था, पर अब अपने बीवीबच्चों से प्यार करता हूं.

हां, तुम से अब वह प्यार नहीं करता, जो तुम सोच रही हो, क्योंकि अब तुम भी किसी दूसरे की

अमानत हो और मैं भी. अब सिर्फ हम एक अच्छे दोस्त हैं.’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘ठीक है, तुम से ही उम्मीद थी कि तुम मुझे अपनाओगे, पर जब तुम ही पराए हो गए तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए,’’ कहते हुए उस ने फोन रख दिया.

अहसान भी अपने काम में मसरूफ हो गया. रहरह कर उसे परवीन के कहे शब्द सता रहे थे, पर वह अब उसे कैसे अपना सकता था, क्योंकि उस की बीवी थी, बच्ची थी, जिन्हें वह धोखा नहीं दे सकता था

एक दिन अहसान की चाची का फोन आया और उन्होंने उसे एक दुखभरी बात बताई, जिसे सुन कर अहसान के होश ही उड़ गए.

चाची ने बताया, ‘‘परवीन अब इस दुनिया में नहीं रही. उसे अचानक सीने में दर्द हुआ, फिर जल्दबाजी में उसे हौस्पिटल ले जाया गया, पर वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो गई.’’

यह सुनते ही अहसान को बड़ा धक्का लगा. देखते ही देखते उस की पाक मुहब्बत, जिसे वह सच्चे दिल से चाहता था, आज इस दुनिया में नहीं थी.

अहसान कई दिनों तक परवीन के गम में दुखी रहा. उसे न तो खाना अच्छा लगा और न ही कोई काम. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह यही सोच कर बेचैन हो रहा था कि कहीं परवीन की मौत का जिम्मेदार वह तो नहीं, क्योंकि आखिरी समय में परवीन ने उस से प्यार मांगा था, पर अपने बीवीबच्चों के होते हुए उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया था.

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