हरियाणा में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर पकड़ चुका था. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में सीधी टक्कर थी और कहीं न कहीं कांग्रेस इस बार बाजी मारती दिख रही थी. गांवदेहात में भी चुनावी चर्चाएं गरम थीं.
जींद जिले के एक गांव में चौपाल पर बैठक जमा थी. हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथसाथ सियासी दलों की बखिया भी उधेड़ी जा रही थी.
‘‘भाई, इस बार कांग्रेस ने विनेश फोगाट पर सही दांव खेल दिया है. कमल के फूल पर भारी पड़ेगा हाथ,’’ एक ताऊ ने अपनी बात रखी.
‘‘ताऊ, ओलिंपिक में मैडल जीतना एक बात है, पर राजनीति के अखाड़े में पैर जमाना इतना आसान नहीं. नेता अपने सगे के नहीं होते, फिर विनेश तो नईनई इस खेल में उतरी है,’’ सतीश नाम के एक नौजवान ने अपनी बात रखी.
23 साल का सतीश भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता था और पार्टी के प्रचार से जुड़ा था. उस के चाचा इस बार भाजपा के झंडे तले चुनाव लड़ रहे थे. आज भी उसे पास के गांव में पोस्टर और स्टीकर चिपकाने जाना था.
सतीश के चाचा चौधरी प्रताप सिंह इलाके के दबंग आदमी थे और पिछली बार भी भाजपा से विधायक रह चुके थे. पर इस बार मामला थोड़ा डांवांडोल था, क्योंकि 3 कृषि कानून से उपजे किसान आंदोलन के बाद दिल्ली में पहलवानों के धरने ने भाजपा का नुकसान किया था, तभी तो मनोहर लाल को समय से पहले मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था और नायब सिंह सैनी को कमान सौंप दी गई थी, ताकि गैर जाट समुदाय के वोटों को साधा जा सके.