और सीता जीत गई

बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है.

जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचाससौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.

ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. अपराधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है.

यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे.

कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…

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लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं.

शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं.

कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’

‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था.

लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे.

इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था.

इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.

यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था.

बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’

अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’

कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं.

कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.

बापू ने बैठेबैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी.

बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना.

उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे.

एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी.

कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.

आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी.

यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे.

कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.

लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के  4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी.

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इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे.

इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.

पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था.

कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें.

एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’

‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.

‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.

‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.

‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी.

कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’

पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई.

कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची.

टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’

लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.

वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’

हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे.

कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था.

जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.

इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मांबापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती.

पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी.

जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा.

उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी.

कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’

फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया.

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कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे.

रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी.

सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.

दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’

कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया.

कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे

22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.

कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’

कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है.

उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है.

अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.

राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से

लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.

‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा.

कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.

दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा.

शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं.

हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई.

मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी.

मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया.

रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी.

राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?

राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’

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उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.

‘‘क्या बक रही है?’’

‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’

राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.

पत्रकारजी

…और नेताओं की कुर्सी हिलने लगी. आखिर पत्रकार जी ने बाण ही ऐसा चलाया था, जो अचूक था. हमारे शहर में हालांकि पत्रकार तो बहुतेरे हैं. मगर नेताओं की कुर्सी हिला सके, वह तो बस पत्रकार जी के बस या कहें बूते की बात हुआ करती है.

तो नेताओं की कुर्सी हिलने लगी थी.

पत्रकार जी ने ऐसी खोज खबर भरी रिपोर्टिंग की कि मुख्यमंत्री तलक कान खड़े हो गए .आप कहेंगे- भई! आखिर रिपोर्टिंग क्या थी ?…रुकिये!   हमारे पास इतना वक्त नहीं कि आपको एक एक बात तफसील से बताते फिरें.

हम तो सिर्फ यह बता रहे हैं… और जरा कान खोल कर सुन लीजिए… नेताओं की कुर्सी डग-मग, डग-मग हिलने लगी. साधु समान मुख्यमंत्री से  जब कस्बे के नेतागण राजधानी में मिलने पहुंचे तो देखते ही उन्होंने कहा- “अमां! आप लोग क्या खा कर राजनीति कर रहे हो…! ”

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सभी एक दूसरे की ओर देखने लगे. सांसद, विधायक की ओर, और विधायक पार्टी के सदर की और प्रश्न वाचक भाव लेकर देखने लगा. सभी की आंखों में असहजता का भाव था.

मुख्यमंत्री सांसद की और दृष्टिपात करते हुए बोले- “कस्बे के एक पत्रकार को तुम लोग काबू में नहीं रख पाये…वह यहां तक आ धमका.”

“जी .” सांसद बांसुरीनंद हकलाये.

“हां…अब कस्बे और आसपास के पत्रकारों को तो कम से कम आप लोग सुलटा लिया करो. यह बड़ी कमजोरी की बात है… एक कस्बे का पत्रकार राजधानी और हमारे गिरेबां तक आ पहुंचा.

छी…!” मुख्यमंत्री  डॉ. चमनानंद  का मुंह मानो कड़ुवा हो गया था.

“- माई बाप… जरूर यह यह गलती, इस लखनानंद  की होगी…इसने संसदीय सचिव बनने के बाद न तो पत्रकारों को पार्टी दी, न ही विज्ञापन बांटे…बस यही गलती हो गई इससे. ” सांसद बांसुरीनंद  ने आंखों पर चश्मे को ठीक से बैठाते हुए विनम्रता भरे शब्दों में कहा. यह सुन लखनानंद  उचक कर आगे आया-

“हुजूरे आला ! यह बात बेबुनियाद है, मैं तो कस्बे के हर एक पत्रकार से मधुर संबंध रखता हूं. बीच-बीच में खुश भी रखता हूं . एक-दो को तो ऐसे रखा है कि सुबह उठकर मुझसे बाते किये बिना और रात को सोने से पहले…कस्बे की एक एक बात का हालो हवास दिए बिना नींद भी नहीं आती है.”

मुख्यमंत्री ने अपने प्रिय विधायक और  संसदीय सचिव की और स्निग्ध मुस्कुराहट डालते  हुए देखा.

सांसद और विधायक को साफ-साफ बचता देख पीछे दुबके खड़े जिले के सदर अशोकानंद  हाथ जोड़कर आगे आए, -“मालिक ! मैं भी गुनाहगार नहीं हूं.मेरी बखत ही क्या है, मगर मैं कस्बे  के पत्रकारों को भरसक साध कर रखे हुए  हूं.. मेरे पास कोई बड़ा स्रोत भी नहीं है… मगर…” सदर अपनी सफाई दे रहा था कि मुख्यमंत्री ने सभी की और तीक्ष्ण दृष्टिपात करते हुए थोड़ा सा कठोर होते हुए कहा-” मैं एक खास पत्रकार की और तुम सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं.”

” जी हुजूर ! ” सांसद, विधायक और सदर के साथ मौजूद वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ता समवेत स्वर में बोल पड़े.

” एक पत्रकार है, जिसने बडे मार्के की शिकायत की हुई है…

सूचना अधिकार के तहत . अब हम क्या करें .” मुख्यमंत्री डॉ. चमनानंद यह कह कर चुप हो गए और सभी की ओर नजरें फिराने लगे.

… “हुजूर आदेश !”… सभी शहद से लिपटे हुए शब्द नि:सृत करने लगे.

मुख्यमंत्री बोले-” सूचना  अधिकार का ब्रह्मास्त्र चलाकर तुम्हारे कस्बे के पत्रकार ने मानो हमको घायल कर दिया है…. अब हमारा कार्यालय जवाब देता है तो मुश्किल… नहीं देता है तो मुश्किल…. ”

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” हुजूरे आलिया !  सांसद उछल पड़े- “आप…. मैं समझ गया आप तनिक भी चिंता न करें. अरे पत्रकार जी तो हैं… इसका काम ही उंगली करना है आप…. निश्चित रहिए, हम उसे देख लेंगे.” सदर अशोकानंद ने  कंधे उचका कर कर कहा -” हां हां… ठीक हो जायेगा .”

विधायक लखनानंद  ने धीमे स्वर में कहा- “माई बाप! गलती हो गई होगी… मुआफ करें….हम उसे देख लेंगे.”

दोनों सांसद की और उत्सुक भाव से देखने लगे. सांसद डॉ. बांसुरीनंद हंसकर बोले,- “अरे हमारे पत्रकार जी तो हैं ही ऐसे….थोड़ा टेढ़े है मगर उसे बुलाकर सीधा कर लेंगे. हमसे बाहर नहीं जाएगा ।”

” हूं !” मुख्यमंत्री ने हुंकार भरी और हौले से मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए । सभी नेताऔ ने लौटते ही पत्रकार जी  को तलब किया. सांसद डॉक्टर बांसुरीनंद ने उसे वक्र दृष्टि से  देखा और कहा- “कइसे रे ! ऐसने पत्रकारिता करथे .”

पत्रकार जी सामने सोफे पर बैठे है.सोच रहे हैं… इनसे बैर ठीक नहीं. पुलिस कप्तान, कलेक्टर सभी इनके इशारे पर नृत्य कर रहे हैं.आत्मसमर्पण में ही बुद्धिमत्ता है .

सांसद चुप हुए तो विधायक बोल पड़े- “अरे भाई यह कैसी पत्रकारिता है.कुछ लिखो पढ़ो… सुचना अधिकार से क्या होगा ? सरकार से टकराकर खैर से रहा है कोई…”

” मुख्यमंत्री महोदय! को हम लोगों ने आश्वस्त किया है. पत्रकार जी हमारे हैं, चुक हो गई होगी .हम समझा लेंगे . यह सदर की सुमधुर वाणी थी.

पत्रकार जी की आंखें झुकी हुई थी.

पलकें उठाई  बारी-बारी सबको देख कर धीरे से उसने मन की पीड़ा उड़ेली – ” में क्या करता ! स॔सदीय सचिव बने तो  कोई विज्ञापन नहीं,… सांसद  बने तो कुछ नहीं …. जन्मदिन आया कुछ नहीं, कस्बे में मुख्यमंत्री आये, खाली डब्बा, मै क्या करता बताओ.”

“- चलो शांत हो जाओ.,” सांसद बांसुरीनंद  ने जेब से  एक हजार  का नोट निकाला …. “लो रख लो ..और विधायक चल  तहूं  एक हजार दे.”

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” -ऐ पांच सौ मेरी ओर से .”

सदर अशोकानंद  के चेहरे पर हास्य है . पत्रकार जी ने रुपये थामे. चाय पी और दफ्तर की ओर कदम बढ़ा दिए.

उम्मीद : संतू को क्या थी सांवरी से उम्मीद

संतू किसी ढाबे पर ट्रक रोकने का मन बना रहा था, तभी सड़क के किनारे खड़ी सांवरी ने हाथ दे कर ट्रक रुकवाया और इठलाते हुए कहा, ‘‘और कितना ट्रक चलाएगा… चल, आराम कर ले.’’ संतू ने सांवरी पर निगाह डाली. ट्रक की खिड़की से सांवरी के कसे हुए उभारों को देख कर संतू एक बार तो पागल सा हो गया.

संतू को अच्छी तरह मालूम था कि इस रास्ते पर ढाबे वाले ग्राहकों को लुभाने के लिए लड़कियों का सहारा लिया करते हैं. उस ने ट्रक सड़क किनारे लगाया और सांवरी के बताए रास्ते पर चल कर उस की झोंपड़ी में पहुंच गया. सांवरी कह रही थी, ‘‘अरे, ढाबे वाले अच्छा खाना कहां देते हैं, इसलिए तुझे यहां अपना समझ कर ले आई. अब तू आराम से खापी, मौज कर. सुबह निकल लेना.’’

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संतू के ऊपर सांवरी की खुमारी चढ़ती जा रही थी. चूल्हा अभी गरम था. रोटी और मटन की खुशबू ने संतू की भूख और बढ़ा दी थी. चूल्हे की लौ में सांवरी की देह तपे हुए सोने सी लग रही थी. उस ने देशी दारू का पौवा निकाला और संतू को पिला कर दोनों ने खाना खाया.

खाना खाने के थोड़ी देर बाद ही वह सांवरी के आगोश में समा गया. सुबह 5 बजे जब संतू जागा, तब उस ने देखा कि न वहां सांवरी थी और न ही सड़क किनारे ट्रक. ट्रक में कम से कम एक लाख रुपए का सामान भरा हुआ था. अब अगर वह बिना सामान के लौटेगा, तब कंपनी को क्या जवाब देगा और जेल की हवा खानी पड़ेगी सो अलग.

तभी कुछ दूरी पर संतू को अपना ट्रक खड़ा दिखा. जब वह वहां पहुंचा, तब उस ने देखा कि उस का सामान गायब था, लेकिन कुछ दूर खड़ी सांवरी हंस रही थी. संतू कुछ बोले, इस के पहले ही सांवरी ने संतू से कहा, ‘‘ऐ ड्राइवर, अब चुपचाप निकल ले. इसी में तेरी भलाई है, वरना…’’

संतू ने कहा, ‘‘तू ने अपनी कातिल निगाहों से तो मुझे घायल कर ही दिया है, अब एक एहसान और कर कि इस चाकू से मुझे भी घायल कर दे, ताकि…’’ खून से लथपथ संतू किसी तरह ट्रक चला कर कंपनी के दफ्तर पहुंचा. कंपनी ने संतू को इलाज के लिए 10 हजार रुपए दिए और एक महीने की छुट्टी दी.

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कंपनी वाले इसलिए खुश हो रहे थे कि सामान भले ही गया, पर उस का बीमा तो मिल जाएगा, लेकिन संतू ट्रक सहीसलामत ले आया था.

अब घर पर रमिया संतू की दवादारू कर रही थी. संतू ठीक हो गया था और रात को ट्रक ले कर इस उम्मीद से उसी रास्ते से गुजर रहा था कि सांवरी उसे फिर मिलेगी.

हिम्मत : क्या बबली बचा पाई अपनी इज्जत

अंधेरा होते ही बबली का पति काम कर के अपने घर आ गया था. बबली भी एक कबाड़ी के गोदाम पर गंदगी के ढेर से बेकार चीजों की छंटाई का काम करती थी. उसे 2 सौ रुपए रोजाना मिलते थे. पतिपत्नी दोनों बड़ी लगन से मेहनतमजदूरी करते थे, तभी घर का खर्च चल पाता था.

कबाड़ी के गोदाम पर बबली जैसी 4-5 औरतें काम करती थीं. सभी औरतें झोंपड़पट्टी इलाके की थीं. उन के पति भी किसी चौधरी के खेतों में काम करते थे. सुबह 6 बजे जाते थे और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते थे. घर आते ही उन में इतनी ताकत नहीं होती थी कि अपनी झोंपड़ी से थोड़ी दूर पैदल जा कर नहर में नहा आएं.

बबली का पति मेवालाल तो रोजाना की इस कड़ी मेहनत से सूख कर कांटा हो गया था. उस के बदन का रंग काला पड़ गया था.

गरमी के चलते कई दिनों से नल में पानी नहीं आ रहा था. अगर पानी आ भी जाता था, तो गरीब बस्ती से पहले दबंग लोगों की कालोनी थी, जहां हर घर में बिजली की मोटर लगी थी. जब बड़े घरों में बिजली की मोटरें चलेंगी, तो गरीबों के नल में पानी आना कतई मुमकिन नहीं. ऐसे हालात में गरीब बस्ती वालों का एकमात्र सहारा बस्ती से थोड़ी दूर बहती गंदे पानी की नहर थी.

अंधेरा होने पर बस्ती की जवान बहूबेटियों की इज्जत पर कितनी बार हमले हो चुके थे. गरीब लोग दबंगों के ऐसे हमले सहने को मजबूर थे.

मेवालाल सारा दिन मेहनतमजदूरी करने की वजह से प्यास से मरा जा रहा था. उसे नहाना भी था. घर में पानी की एक बूंद नहीं थी. उस ने बबली को नहर से पानी लाने को कहा.

बबली भी थकी हुई थी. उस ने तुनक कर जवाब दिया, ‘‘इतनी दूर से पानी कैसे लाऊंगी? मैं भी थकी हुई हूं. तुम नहर पर जा कर नहा आओ. देर भी हो गई है. अंधेरा फैला हुआ है.’’

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‘‘सारा दिन काम करतेकरते पूरे जिस्म से जान निकली जा रही है. अगर मैं मर गया, तो तुम विधवा हो जाओगी. चलता हूं तो चक्कर आते हैं. कहीं नहर में गिर गया तो…

‘‘मेरी नखरे वाली बिल्लो, जा पानी ले आ. अभी तो 3 बेटियां ब्याहनी हैं. अकेले ही तीनों को कैसे ठिकाने लगाओगी?’’ मेवालाल ने बबली की चिरौरी की, तो वह मान गई.

‘‘हांहां, मैं ही मिट्टी की बनी हूं. मुझ पर ही जवानी चढ़ी जा रही है. सारा दिन मैं भी तो मेहनत करती हूं,’’ बबली ने भी अपनी हालत बयान करते हुए थकेहारे लहजे में कहा, तो मेवालाल खामोश रहा. भारी थकावट के चलते उस का बदन दर्द के मारे दुखा जा रहा था. उस की उम्र अभी 35 साल से ज्यादा नहीं थी, मगर कमजोरी के चलते कितनी बीमारियों ने उस के बदन में घर बना लिया था.

थकीहारी बबली ने दुखी मन से बड़ा बरतन उठाया और पानी लेने चली गई. रास्ता कच्चा और ऊबड़खाबड़ था. अंधेरे के चलते बबली ठोकर खाती नहर

की तरफ बढ़ रही थी, तभी उस के कानों में एक मर्दाना आवाज आई. उस के सामने इलाके का दबंग आदमी रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था. वह शायद शराब के नशे में चूर था. वह पहले भी इसी रास्ते पर बबली से जोरजबरदस्ती कर चुका था. बसअड्डे पर उस की मोटर मेकैनिक की दुकान थी.

उस दबंग की 2 बार शादी हुई थी. दोनों ही बार उस की शराब पीने की आदत के चलते घरवालियां भाग चुकी थीं. अब वह दूसरों की घरवालियों पर तिरछी नजर रखता था.

बबली कबाड़ के गोदाम पर काम करती थी. गोदाम का मालिक पाला राम उस का दोस्त था. इसी दोस्ती के चलते वह दबंग बबली पर अपना हक समझने लगा था.

‘‘अरे, इस अंधेरी रात में इतनी दूर से पानी ले कर आओगी. इस तरह तो तेरी जवानी का कचरा हो जाएगा. मेरी रानी, तू अगर रात को मेरे पास आ जाया करे, तो मैं तेरी झोंपड़ी के सामने ही पानी का ट्यूबवैल लगवा दूंगा. बोल, रोज रात को मेरे कमरे पर आया करेगी?’’ सामने रास्ता रोक कर उस मोटर मेकैनिक ने रोमांटिक होते हुए पूछा.

‘‘मुझे अपने घरवाले के लिए नहाने का पानी ले जाना है. मैं सारा दिन काम कर के थकीहारी लौटी हूं. कहीं दूसरी गंदी नाली में मुंह मार,’’ दहाड़ते हुए बबली ने कहा.

‘‘अरे, क्यों उस मरे हुए आदमी के लिए अपनी मस्त जवानी बरबाद कर रही है? उसे छोड़ कर मेरे साथ आ जा. मैं तुझे रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए हवस से भरे उस मोटर मेकैनिक ने थकीहारी बबली को गोद में उठा कर साथ ही के खाली प्लाट में जमीन पर गिरा दिया और उस की साड़ी उतारने पर आमादा हो गया.

सारे दिन की थकीहारी बबली अपनेआप को बचा नहीं पा रही थी. मोटर मेकैनिक अपनी मनमानी कर के माना. बबली अपनी आबरू गंवा बैठी.

जातेजाते वह दबंग 5 सौ रुपए का नोट देते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही मजे देती रहेगी, तो तुझे मालामाल कर दूंगा.’’

‘‘मैं थूकती हूं तेरे रुपयों पर. आज तो तू ने अपनी मनमरजी कर ली, दोबारा ऐसी कोशिश मत करना. अगर कोशिश की, तो बहुत बुरा अंजाम होगा,’’ बबली ने उसे चेतावनी दी. उस ने अपने कपड़े पहने और रोतीसिसकती पानी लाने नहर पर चली गई.

घर जा कर बबली ने पति को सारी बात बताई और यह भी कहा कि मोटर मेकैनिक की बेहूदा हरकत पर उसे सबक सिखाना बहुत जरूरी हो गया है.

अगली सुबह मेवालाल बबली के साथ बस्ती के नजदीक पुलिस थाने पहुंचा. पहलेपहल तो थानेदार ने उन की शिकायत सुनी ही नहीं, उलटे बबली पर ही देह धंधा करने का आरोप लगा दिया.

जब बबली ने बड़े साहब के पास जाने की धमकी दी, तब थानेदार ने एक पुलिस वाला भेज कर मोटर मेकैनिक को थाने बुला लिया.

थानेदार ने जब मोटर मेकैनिक को बबली के साथ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी, तो वह थानेदार के साथ मुंशी के केबिन में घुस गया.

पता नहीं, मुंशी के केबिन में उन के बीच क्या कानाफूसी हुई. थोड़ी देर में थानेदार केबिन से मोटर मेकैनिक के साथ बाहर निकला और उस के साथ बबली को धमकाते हुए फिर कभी ऐसी गलती न करने की चेतावनी देते हुए थाने से निकाल दिया.

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बबली ज्वालामुखी की तरह दहक उठी थी. वह तो मोटर मेकैनिक से बदला लेना चाहती थी. तब उस ने अपनी बस्ती की तमाम सयानी औरतों के सामने अपना दर्द रखा. साथ ही, यह गुहार भी लगाई कि अगर ऐसे दबंगों पर शिकंजा न कसा गया, तो ये किसी की भी बहनबेटी पर जबरन हाथ डाल सकते हैं.

सब औरतों ने बबली को भरोसा दिलाया कि अगर अब फिर कभी मोटर मेकैनिक ऐसी हरकत करेगा, तो वह बस्ती की दबंग औरत फुलवा को फोन कर के जगह बता दे.

बबली ने एक पुराना मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोच लिया था कि अगर मोटर मेकैनिक दोबारा ऐसा करता है, तो उस का अंजाम बहुत बुरा होगा. अब वह रोजाना नहर पर रात के अंधेरे में पानी लेने जाती थी.

एक दिन शाम ढलने के बाद वह पानी लेने गई, तभी मोटर मेकैनिक फिर मिल गया.

‘‘क्यों रानी, मेरी शिकायत पुलिस में कर के देख ली? क्या हुआ… कुछ भी नहीं. थानेदार भी मेरा चेला है. मेरे दबदबे से तो उस की हवा निकलती है. मेरी रातें रंगीन कर दे मेरी रानी. मैं तुझे महारानी बना दूंगा,’’ शराब के नशे में झूमते हुए मोटर मेकैनिक ने बबली के उभारों पर हाथ रखा.

‘‘यहां रास्ते में कोई आ जाएगा. मैं नदी पर जा रही हूं. तुम आगेआगे वहीं पहुंचो. नहाधो कर वहीं पर मजे लूटेंगे,’’ मन ही मन सुलगते हुए बबली शहद घुली आवाज में बोली.

बबली की यह बात सुन कर मोटर मेकैनिक खुशी के मारे झूम उठा. वह तेजतेज चलते हुए आगे बढ़ने लगा.

बबली ने अपनी बस्ती की फुलवा को फोन कर दिया. वह धीरेधीरे चलते हुए नहर के किनारे पहुंची.

मोटर मेकैनिक बेसब्री के आलम में जल्दीजल्दी बबली की साड़ी खोलने लगा.

बबली ने झिड़क कर उसे रोक दिया, ‘‘रुको… मैं नहा तो लूं. बदन की थकावट उतर जाएगी, तो मस्ती मारने का मजा भी खूब आएगा,’’ बबली ने रोकना चाहा, तो मोटर मेकैनिक रुका नहीं. उस ने बबली को अपनी बांहों में कस कर जमीन पर गिरा दिया.

मोटर मेकैनिक उस पर झपटने ही वाला था कि तभी एकसाथ कई आवाजें सुन कर वह चौंक उठा.

बस्ती की कितनी औरतें हाथों में जूतेचप्पलें ले कर आई थीं. जवान लड़के भी पूरी तैयारी के साथ वहां पहुंच गए थे. सब के हाथों में टौर्च भी थी.

‘‘बदमाश, तू दूसरों की बहनबेटियों को अपनी जागीर समझता है. बहुत जोश भरा है तेरे अंदर? अभी तेरा इलाज करते हैं,’’ बस्ती की फुलवा गुस्से के मारे दहाड़ उठी थी. इस के बाद तो रात के अंधेरे में सब उस मोटर मेकैनिक पर बरस पड़े.

मोटर मेकैनिक की हालत खराब हो गई थी. उसे कोई बचाने वाला नहीं था. सब उसे पकड़ कर घसीटते हुए बस्ती में ले आए.

‘‘यह ले, इस कागज पर दस्तखत कर दे, वरना तेरी हालत और भी बुरी हो जाएगी,’’ फुलवा ने एक सादा कागज उस के सामने रखते हुए कहा.

‘‘यह क्या है?’’ बुरी तरह घायल मोटर मेकैनिक ने बड़ी मुश्किल से पूछा. उस की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था. अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करते ही वह जमीन पर चीखते हुए गिर पड़ा था.

‘‘अगर फिर कभी दोबारा तुम ने किसी भी बहनबेटी की तरफ बुरी नजर से देखा, तो तेरा अंगअंग काट दिया जाएगा. इस सजा की जिम्मेदारी सिर्फ तेरी होगी. किसी दूसरे को आरोपी नहीं माना जाएगा, इसलिए तेरे दस्तखत कराना जरूरी है.

‘‘हम इस कागज की एक कौपी थाने में और एक कौपी कचहरी में जमा कराएंगे,’’ फुलवा ने सारी बात समझाई, तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. जबान मानो तालू से चिपक गई थी.

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‘‘अरे, मोटर मेकैनिक बाबा, अभी दस्तखत कर दो, वरना गुस्से में आई ये औरतें तेरा आज ही अंग भंग कर देंगी. अगर तुम इन औरतों से बच गए, तो हम तुझे अभी नहर में फेंक देंगे. बस्ती में हमारी मांबहनें रहती हैं. जल्दी दस्तखत कर,’’ वहां जमा हुए लड़कों में से एक ने कहा.

मोटर मेकैनिक ने कांपते हाथों से कागज पर अपने दस्तखत करने में ही भलाई समझी. दस्तखत करते ही वह बेहोश हो गया.

बबली ने साथ आई औरतों का शुक्रिया अदा किया. उस ने महसूस किया कि हिम्मत और सूझबूझ से बड़ी से बड़ी मुसीबत से पार पाई जा सकती है.

Short Story : पापा मिल गए- सोफिया को कैसे मिले उसके पापा

शब्बीर की मौत के बाद दोबारा शादी का जोड़ा पहन कर इकबाल को अपना पति मानने के लिए बानो को दिल पर पत्थर रख कर फैसला करना पड़ा, क्योंकि हालात से समझौता करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता भी तो उस के पास नहीं था.

अपनी विधवा मां पर फिर से बोझ बन जाने का एहसास बानो को बारबार कचोटता और बच्ची सोफिया के भविष्य का सवाल न होता, तो वह दोबारा शादी की बात सोचती तक नहीं.

‘‘शादी मुबारक हो,’’ कमरे में घुसते ही इकबाल ने कहा.

‘‘आप को भी,’’ सुन कर बानो को शब्बीर की याद आ गई.

इकबाल को भी नुसरत की याद आ गई, जो शादी के 6-7 महीने बाद ही चल बसी थी. वह बानो को प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘क्या मैं ने अपनी नस्सू को फिर से पा लिया है?’’

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

‘‘क्या बात है?’’ कहते हुए इकबाल ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने उस की साली सलमा रोतीबिलखती सोफिया को लादे खड़ी है.

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‘‘आपा के लिए यह कब से परेशान है? चुप होने का नाम ही नहीं लेती. थोड़ी देर के लिए आपा इसे सीने से लगा लेतीं, तो यह सो जाती,’’ सलमा ने डरतेडरते कहा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं,’’ सलमा को अंदर आ जाने का इशारा करते हुए इकबाल ने गुस्से में कहा.

रोती हुई सोफिया को बानो की गोद में डाल कर सलमा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. इधर बानो की अजीब दशा हो रही थी. वह कभी सोफिया को चुप कराने की कोशिश करती, तो कभी इकबाल के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती.

सोफिया के लिए इकबाल के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था. इस पर बानो मन ही मन सोचने लगी कि सोफिया की भलाई के चक्कर में कहीं वह गलत फैसला तो नहीं कर बैठी?

सुबह विदाई के समय सोफिया ने अपनी अम्मी को एक अजनबी के साथ घर से निकलते देखा, तो झट से इकबाल का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘आप कौन हैं? अम्मी को कहां ले जा रहे हैं?’’

सोफिया के बगैर ससुराल में बानो का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. अगर हंसतीबोलती थी, तो केवल इकबाल की खातिर. शादी के बाद बानो केवल 2-4 दिन के लिए मायके आई थी. उन दिनों सोफिया इकबाल से बारबार पूछती, ‘‘मेरी अम्मी को आप कहां ले गए थे? कौन हैं आप?’’

‘‘गंदी बात बेटी, ऐसा नहीं बोलते. यह तुम्हारे खोए हुए पापा हैं, जो तुम्हें मिल गए हैं,’’ बानो सोफिया को भरोसा दिलाने की कोशिश करती.

‘‘नहीं, ये पापा नहीं हो सकते. रोजी के पापा उसे बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ये तो मुझे पास भी नहीं बुलाते,’’ सोफिया मासूमियत से कहती.

सोफिया की इस मासूम नाराजगी पर एक दिन जाने कैसे इकबाल का दिल पसीज उठा. उसे गोद में उठा कर इकबाल ने कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’

यह सुन कर बानो को लगने लगा कि सोफिया अब बेसहारा नहीं रही. मगर सच तो यह था कि उस का यह भरोसा शक के सिवा कुछ न था. इस बात का एहसास बानो को उस समय हुआ, जब इकबाल ने सोफिया को अपने साथ न रखने का फैसला सुनाया.

‘‘मैं मानता हूं कि सोफिया तुम्हारी बेटी है. इस से जुड़ी तुम्हारी जो भावनाएं हैं, उन की मैं भी कद्र करता हूं, मगर तुम को मेरी भी तो फिक्र करनी चाहिए. आखिर कैसी बीवी हो तुम?’’ इकबाल ने कहा.

‘‘बस… बस… समझ गई आप को,’’ बानो ने करीब खड़ी सोफिया को जोर से सीने में भींच लिया.

इस बार बानो ससुराल गई, तो पूरे 8 महीने बाद मायके लौट कर वापस आई. आने के दोढाई हफ्ते बाद ही उस ने एक फूल जैसे बच्चे को जन्म दिया. इकबाल फूला नहीं समा रहा था. उस के खिलेखिले चेहरे और बच्चे के प्रति प्यार से साफ जाहिर था कि असल में तो वह अब बाप बना है.

आसिफ के जन्म के बाद इकबाल सोफिया से और ज्यादा दूर रहने लगा था. इस बात को केवल बानो ही नहीं, बल्कि उस के घर वाले भी महसूस करने लगे थे.

इकबाल के रूखे बरताव से परेशान सोफिया एक दिन अम्मी से पूछ बैठी, ‘‘पापा, मुझ से नाराज क्यों रहते हैं? टौफी खरीदने के लिए पैसे भी नहीं देते. रोजी के पापा तो रोज उसे एक सिक्का देते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. पापा तुम से भला नाराज क्यों रहेंगे. वे तुम्हें टौफी के लिए पैसा इसलिए नहीं देते, क्योंकि तुम अभी बहुत छोटी हो. पैसा ले कर बाहर निकलोगी, तो कोई छीन लेगा.

‘‘पापा तुम्हारा पैसा बैंक में जमा कर रहे हैं. बड़ी हो जाओगी, तो सारे पैसे निकाल कर तुम्हें दे देंगे.’’

‘‘मगर, पापा मुझे प्यार क्यों नहीं करते? केवल आसिफ को ही दुलार करते हैं,’’ सोफिया ने फिर सवाल किया.

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‘‘दरअसल, आसिफ अभी बहुत छोटा है. अगर पापा उस का खयाल नहीं रखेंगे, तो वह नाराज हो जाएगा,’’ बानो ने समझाने की कोशिश की.

इसी बीच आसिफ रोने लगा, तभी इकबाल आ गया, ‘‘यह सब क्या हो रहा है बानो? बच्चा रो रहा है और तुम इस कमबख्त की आंखों में आंखें डाल कर अपने खो चुके प्यार को ढूंढ़ रही हो.’’ इकबाल के शब्दों ने बानो के दिल को गहरी चोट पहुंचाई.

‘यह क्या हो रहा है?’ घबरा कर उस ने दिल ही दिल में खुद से सवाल किया, ‘मैं ने तो सोफिया के भले के लिए जिंदगी से समझौता किया था, मगर…’ वह सिसक पड़ी.

इकबाल ने घर लौटने का फैसला सुनाया, तो बानो डरतेडरते बोली, ‘‘4-5 रोज से आसिफ थोड़ा बुझाबुझा सा लग रहा है. शायद इस की तबीयत ठीक नहीं है. डाक्टर को दिखाने के बाद चलते तो बेहतर होता.’’

इकबाल ने कोई जवाब नहीं दिया. आसिफ को उसी दिन डाक्टर के पास ले जाया गया.

‘‘इस बच्चे को जौंडिस है. तुरंत इमर्जैंसी वार्ड में भरती करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने बच्चे का चैकअप करने के बाद फैसला सुनाया, तो इकबाल माथा पकड़ कर बैठ गया.

‘‘अब क्या होगा?’’ माली तंगी और बच्चे की बीमारी से घबरा कर इकबाल रोने लगा.

‘‘पापा, आप तो कभी नहीं रोते थे. आज क्यों रो रहे हैं?’’ पास खड़ी सोफिया इकबाल की आंखों में आंसू देख कर मचल उठी.

डरतेडरते सोफिया बिलकुल पास आ गई और इकबाल की भीगी आंखों को अपनी नाजुक हथेली से पोंछते हुए फिर बोली, ‘‘बोलिए न पापा, आप किसलिए रो रहे हैं? आसिफ को क्या हो गया है? वह दूध क्यों नहीं पी रहा?’’

सोफिया की प्यारी बातों से अचानक पिघल कर इकबाल ने कहा, ‘‘बेटी, आसिफ की तबीयत खराब हो गई है. इलाज के लिए डाक्टर बहुत पैसे मांग रहे हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं पापा. आप ने मेरी टौफी के लिए जो पैसे बैंक में जमा कर रखे हैं, उन्हें निकाल कर जल्दी से डाक्टर अंकल को दे दीजिए. वह आसिफ को ठीक कर देंगे,’’ सोफिया ने मासूमियत से कहा.

इकबाल सोफिया की बात समझ नहीं सका. पूछने के लिए उस ने बानो को बुलाना चाहा, मगर वह कहीं दिखाई नहीं दी. दरअसल, बानो इकबाल को बिना बताए आसिफ को अपनी मां की गोद में डाल कर बैंक से वह पैसा निकालने गई हुई थी, जो शब्बीर ने सोफिया के लिए जमा किए थे.

‘‘इकबाल बाबू, बानो किसी जरूरी काम से बाहर गई है, आती ही होगी. आप आसिफ को तुरंत भरती कर दें. पैसे का इंतजाम हो जाएगा,’’ आसिफ को गोद में चिपकाए बानो की मां ने पास आ कर कहा, तो इकबाल आसिफ को ले कर बोझिल मन से इमर्जैंसी वार्ड की तरफ बढ़ गया.

सेहत में काफी सुधार आने के बाद आसिफ को घर ले आया गया.

‘‘यह तुम ने क्या किया बानो? शब्बीर भाई ने सोफिया के लिए कितनी मुश्किल से पैसा जमा किया होगा, मगर…’’ असलियत जानने के बाद इकबाल बानो से बोला.

‘‘सोफिया की बाद में आसिफ की जिंदगी पहले थी,’’ बानो ने कहा.

‘‘तुम कितनी अच्छी हो. वाकई तुम्हें पा कर मैं ने नस्सू को पा लिया है.’’

‘‘वाकई बेटी, बैंक में अगर तुम्हारी टौफी के पैसे जमा न होते, तो आसिफ को बचाना मुश्किल हो जाता,’’ बानो की तरफ से नजरें घुमा कर सोफिया को प्यार से देखते हुए इकबाल ने कहा.

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‘‘मैं कहती थी न कि यही तुम्हारे पापा हैं?’’ बानो ने सोफिया से कहा.

इकबाल ने भी कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’

सोफिया ने बानो की गोद में खेल रहे आसिफ के सिर को सीने से सटा लिया और इकबाल का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेरे पापा… मेरे अच्छे पापा.’’

जीत: बसंती से कैसे बच पाया रमेश

रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था.

25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं.

रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा.

रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है.

रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी.

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रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी.

निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा.

शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’

पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए.

शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया.

शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए.

सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था.

बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके.

थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की.

थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

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थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.

हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

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‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे.

मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा.

थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था.

अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा.

अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी.

थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी.

अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछ वे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’

आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए.

इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था. थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’

करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे.

शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी.

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रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’

यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं.

ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी.

डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे.

अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की.

रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया.

रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’

अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

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Short Story : बदला जारी है

सुशांत रोजाना की तरह कोरियर की डिलीवरी देने जा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा. उस ने झल्ला कर मोटरसाइकिल रोकी, लेकिन नंबर देखते ही उस की आंखों में चमक आ गई. उस की मंगेतर सोनी का फोन था. उस ने जल्दी से रिसीव किया, ‘‘कैसी हो मेरी जान?’’

‘तुम्हारे इंतजार में पागल हूं…’ दूसरी ओर से आवाज आई.

उन दोनों के बीच प्यारभरी बातें होने लगीं, पर सुशांत को जल्दी से जल्दी अगले कस्टमर के यहां पहुंचना था, इसलिए उस ने यह बात सोनी को बता कर फोन काट दिया.

दिए गए पते पर जा कर सुशांत ने डोरबैल बजाई. थोड़ी देर में एक औरत ने दरवाजा खोला.

‘‘मानसीजी का घर यही है मैडम?’’ सुशांत ने पूछा.

‘‘हां, मैं ही हूं. अंदर आ जाओ,’’ उस औरत ने कहा.

सुशांत ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने कागजात तैयार करने लगा. मानसी भीतर चली गई.

अपने दोस्तों के बीच माइक्रोस्कोप नाम से मशहूर सुशांत ने इतनी ही देर में अंदाजा लगा लिया कि वह औरत उम्र में तकरीबन 40-41 साल की होगी. उस के बदन की बनावट तो खैर मस्त थी ही.

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सुशांत ने कागजात तैयार कर लिए. तब तक मानसी भी आ गई. उस के हाथ में कोई डब्बा था.

सुशांत ने कागजपैन उस की ओर बढ़ाया और बोला, ‘‘मैडम, यहां दस्तखत कर दीजिए.’’

‘‘हां कर दूंगी, मगर पहले यह देखो…’’ मानसी ने वह डब्बा सुशांत को दे कर कहा, ‘‘यह मोबाइल फोन मैं ने इसी कंपनी से मंगाया था. अब इस में बारबार हैंग होने की समस्या आ रही है.’’

सुशांत चाहता तो मानसी को वह मोबाइल फोन रिटर्न करने की सलाह दे सकता था, उस की नौकरी के लिहाज से उसे करना भी यही चाहिए था, लेकिन अपना असर जमाने के मकसद से उस ने मोबाइल फोन ले कर छानबीन सी शुरू कर दी, ‘‘यह आप ने कब मंगाया था मैडम?’’

‘‘15 दिन हुए होंगे.’’

उन दोनों के बीच इसी तरह की बातें होने लगीं. सुशांत कनखियों से मानसी के बड़े गले के ब्लाउज के खुले हिस्सों को देख रहा था. उसे देर लगती देख कर मानसी चाय बनाने अंदर रसोईघर में चली गई.

सुशांत को यकीन हो गया था कि घर में मानसी के अलावा कोई और नहीं है. लड़कियों से छेड़छाड़ के कई मामलों में थाने में बैठ चुके 25 साला सुशांत की आदत अपना रिश्ता तय होने के बाद भी नहीं बदल सकी थी. उसे एक तरह से लत थी. ऐसी कोई हरकत करना, फिर उस पर बवाल होना, पुलिस थानों के चक्कर लगाना…

सुशांत ने बाहर आसपास देखा और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर अंदर की ओर बढ़ गया. खुले नल और बरतनों की आवाज को पकड़ते हुए वह रसोईघर तक आसानी से चला गया.

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मानसी उसे देख कर चौंक उठी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

कोई जवाब देने के बजाय सुशांत ने मानसी का हाथ पकड़ कर उसे खींचा और गले से लगा लिया.

मानसी ने उस की आंखों में देखा और धीरे से बोली, ‘‘देखो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

मानसी की इस बात ने तो जैसे सुशांत को उस की मनमानी का टिकट दिला दिया. उस के होंठ मानसी की गरदन पर चिपक गए. नाम के लिए मानसी का नानुकर करना किसी रजामंदी से कम नहीं था.

कुछ पल वहां बिताने के बाद सुशांत मानसी को गोद में उठा कर पास के कमरे में ले आया और बिस्तर पर धकेल दिया.

मानसी अपने हटते परदों से बेपरवाह सी बस सुशांत को घूरघूर कर देखे जा रही थी. सुशांत को महसूस हो गया था कि शायद मानसी का कहना सही है कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, क्योंकि उस का शरीर थोड़ा गरम था. लेकिन उस ने इस की फिक्र नहीं की.

थोड़ी देर में चादर के बननेबिगड़ने का दौर शुरू हो गया. रसोईघर में चढ़ी चाय उफनतेउफनते सूख गई. खुले नल ने टंकी का सारा पानी बहा दिया. घंटाभर कैसे गुजर गया, शायद दीवार पर लगी घड़ी भी नहीं जान सकी.

कमरे में उठा तूफान जब थमा तो पसीने से लथपथ 2 जिस्म एकदूसरे के बगल में निढाल पड़े हांफ रहे थे. तभी कमरे में रखा वायरलैस फोन बज उठा.

मानसी ने काल रिसीव की, ‘‘हां बेटा, आज भी बुखार हो गया है… डाक्टर शाम को आएंगे… जरा अपनी नानी को फोन देना…’’

मानसी ने कुछ देर तक बातें करने के बाद फोन काट दिया. सुशांत आराम से लेटा सीलिंग फैन को ताक रहा था.

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‘‘कपड़े पहनो और निकलो यहां से अब… धंधे वाली का कोठा नहीं है जो काम खत्म कर के आराम से पसर गए,’’ मानसी ने अपनी पैंटी पहनते हुए थोड़ा गुस्से में कहा और पलंग से उतर कर अपने बाकी कपड़े उठाने लगी.

सुशांत ने उसे आंख मारी और बोला, ‘‘एक बार और पास आ जाता तो अच्छा होता.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं. तुम्हारे लिए एक बार ही बहुत है,’’ मानसी ने अजीब से लहजे में कहा.

यह सुन कर सुशांत मुसकरा कर उठा और अपने कपड़े पहनने लगा.

‘‘अगले महीने मेरी भी शादी होने वाली है, लेकिन जिंदगी बस एक के ही साथ रोज जिस्म घिसने में बरबाद हो जाती है, इसलिए बस यह सब कभीकभार…’’ सुशांत ने कहा.

सुशांत की बात सुन कर मानसी का चेहरा नफरत से भर उठा. वह अपने पूरे कपड़े पहन चुकी थी. उस ने आंचल सीने पर डाला और बैठक में से कोरियर के कागजात दस्तखत कर के ले आई.

‘‘ये रहे तुम्हारे कागजात…’’ मानसी सुशांत से बोली, ‘‘जानते हो, कुछ मर्द तुम्हारी ही तरह घटिया होते हैं. मेरे पति भी बिलकुल ऐसे ही थे.’’

अब तक सबकुछ ठीकठाक देख रहे सुशांत का चेहरा अपने लिए घटिया शब्द सुन कर असहज हो गया.

मानसी ताना मारते हुए कह पड़ी, ‘‘क्या हुआ? बुरा लगा तुम्हें? जिस लड़की से शादी रचाने जा रहा है, उस की वफा को ऐसे बेशर्म बन कर मेरे साथ अपने नीचे से बहाने में बुरा नहीं लगा क्या? पर मुझ से घटिया शब्द सुन कर बुरा लग रहा है?’’

‘‘देखिए मैडम, आप ने भी तो…’’ सुशांत ने अपनी बात रखनी चाही.

इस पर मानसी गुर्रा उठी, ‘‘हांहां, मैं सो गई तेरे नीचे. तुझे अपने नीचे भी दबा लिया, लेकिन बस इसलिए क्योंकि मुझ को तुझे भी वही देना था जो मेरा पति मुझे दे गया था… मरने से पहले…’’

सुशांत अब हैरान सा उसे देखे जा रहा था.

मानसी जैसे किसी अजीब से जोश में कहती रही, ‘‘मेरा पति अपने औफिस की औरतों के साथ सोता था. वह मुझे धोखा देता था. उस ने मुझे एड्स दे दिया और आज वही मैं ने तुझे भी… जा, खूब सो नईनई औरतों के साथ… तू भी मरना सड़सड़ कर, जैसे मैं मरूंगी…

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‘‘मैं अब किसी भी मर्द को अपनी टांगों के बीच आने से मना नहीं करती… धोखेबाज मर्दों से यह मेरा बदला है जो हमेशा जारी रहेगा,’’ कहतेकहते मानसी फूटफूट कर रोने लगी.

सुशांत के कानों में जैसे धमाके होते चले गए. वह सन्न खड़ा रह गया, लेकिन अब क्या हो सकता था…

अकरोना बाबा का मायाजाल

लेखक – नीरज कुमार मिश्रा

“गांव वालों के सारे कष्ट दूर करने आ रहे हैं आप के गांव में पहली बार ‘अकरोना बाबा’, कल  से उन की कष्ट हरण कथा गांव के स्कूल के मैदान में सुबह 10 बजे से शुरू होगी, जो बाबाजी की इच्छा तक चलेगी,” एक मोटा सा आदमी एक दाढ़ी वाले बाबा का फोटो लगा कर रिकशे पर बैठा पूरे गांव में मुनादी कर रहा था.

“याद रहे… अकरोना बाबा की कथा में सब को नहाधो कर आना है और सब लोग सामाजिक दूरी के साथ बैठेंगे. और सब से जरूरी बात  अकरोना बाबा की कथा में आप सब लोगों को मास्क मुफ्त में बांटे जाएंगे… आप लोगों को घर से मास्क लाने की जरूरत नहीं है.”

मुफ्त मिलेगा के नाम पर कई गांव वालों के कान खड़े हो गए थे.

“आप सब लोगों को बता दें… जो लोग अकारोना बाबा की कथा में आएंगे, उन को कभी भी कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं सताएगा… बाबा ने बड़ेबड़े नेताओं को कोरोना  से बचाया है… बोलो, अकरोना बाबा की जय.”

“अरे भैया… बाबा की कथा में हम लोगों को क्याक्या मुफ्त मिलेगा,” एक व्यक्ति ने दूसरे से पूछा.

“अरे पांडे यार, तुम भी एकदम बुड़बक ही हो… मास्क यानी फेस को कवर करने वाली चीज… जैसे हमारे पास होता है न ये गमछा… बस उसी का शहरी रूप है मास्क… और कोई बहुत बंपर चीज थोड़े ही न है,” दूसरे ने ज्ञान बघारा.

“हां, पर वो मुफ्त में दे रहे हैं… तब तो हम बाबाजी का आशीर्वाद लेने जरूर जाएंगे.”

पूरे गांव में अकरोना बाबा के विज्ञापन छाए हुए थे और हर कोई बाबा में उत्सुक हो गया था.

“पर, बाबा का नाम तो बड़ा अजीब सा लग रहा है,” एक ग्रामीण ने  चर्चा छेड़ी.

“हां… हां, क्यों नहीं… अरे, उन के बारे में मैं ने सुना है कि उन का जन्म ही कोरोना नामक विषाणुरूपी राक्षस को मारने के लिए हुआ है.

“अरे, मैं ने तो इन की बहुत सी कथाएं सुनी हैं. और तो और मुझे तो इन से व्यक्तिगत रूप से मिलने का पुण्य भी प्राप्त हो चुका है,” युवक ने शेखी बघारते हुए कहा.

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“वाह भैया वाह, तुम तो बड़े किस्मत वाले हो… तनिक हमारा भी सोर्स लगवाओ, हमें भी बाबाजी से आशीर्वाद  दिलवाओ,” दूसरा ग्रामीण मिन्नतें करने लगा.

“हां… हां, तुम को भी मिलवा ही देंगे, पर जरा कथा शुरू तो होने दो” शेखी बघारने वाला युवक शान से अकड़ा हुआ था.

शाम तक गांव के हर घर में अकरोना बाबा की ही बातें हो रही थीं, और लोग अकरोना बाबा को देखने के लिए बड़े उत्साहित हो रहे थे .

अगले दिन के सूरज उदय होने के साथ ही गांव में पानी का खर्चा अचानक से बढ़ गया था, हर एक घर में सभी लोगों का नहानाधोना चल रहा था, क्योंकि आज सभी को अकरोना बाबा के प्रवचन सुनने जाना है था, इसलिए तन, मन को धोना बहुत जरूरी था.

स्कूल के प्रांगण में एक तरफ तीन कारें खड़ी थीं, जो देखने में बहुत महंगी लग रही थीं.
अकरोना बाबा के आने का समय 10 बजे था, पर वह किसी बड़े नेता की तरह ठीक 12 बजे आए.

लंबी दाढ़ी और एक सफेद सा चोगा, होठों पर मुसकान और हाथों में सोने का ब्रेसलेट पहने हुए अकरोना बाबा का जलवा देखते ही बनता था.

बाबा ने मंच पर आते ही कहा, “भक्तजनो, आज पूरी दुनिया में कोरोना नामक बीमारी बहुत बुरी तरह फैल रही है, लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं… पर, आप सब लोगों को इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप लोग अकरोना बाबा की शरण में आ गए हैं. अब दुनिया का कोई भी वायरस आप लोगों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है…

“वैसे भी मैं बता दूं कि आप लोगों के गांव में एक चुड़ैल की प्यासी आत्मा घूम रही है, वो कभी भी किसी के सिर पर सवार हो सकती है, पर जो मेरी शरण में आएगा, वो सुरक्षित रहेगा,” बाबा बोले जा रहे थे और भक्त मोहित हो कर सुन रहे थे.

तभी बाबा के एक समर्थक ने जयकारा लगाना शुरू कर दिया, “अकरोना बाबा की जय.”

और इस जयकारे के साथ ही भीड़ में से एक ग्रामीण निकला और मंच के पास जा कर एक सौ का नोट चढ़ा दिया.

“सुनें… एक बात अच्छी तरह से समझ लें… ये बाबा सब जानते हैं और ऐसे दिव्यज्ञानी लोग पैसे को हाथ भी नहीं लगाते. और वैसे भी करेंसी को  छूने में इस समय हमारे देश की सरकार भी एहतियात बरतने को कह रही है, विषाणु का प्रकोप तेजी पर है, इसलिए मेरा आप लोगों से यह कहना है कि अगर आप लोग कुछ चढ़ाना चाहें तो वो या तो सोने की हो या चांदी की कोई वस्तु… कृपया रुपयापैसा चढ़ा कर स्वामीजी का अपमान न करे.”

और उस के बाद स्वामीजी ने कोई भजन गाना शुरू कर दिया, जिस की धुन पर सभी गांव वाले मस्त हो कर नाचने लगे.

जब सब गांव वाले नाच कर थक गए, तो उन सब को एक एक मास्क ये कह कर दिया गया कि ये अकरोना बाबा का प्रसाद है, जिसे लोगों ने बड़ी श्रद्धा के साथ लिया और पहन भी लिया.

“जिन लोगों की कोई पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक समस्या है, वो अपना समय ले ले और अकरोना बाबा से शाम के बाद वे मुलाकात कर सकते हैं,” अकरोना बाबा के एक चेले ने घोषणा की.

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिस को कोई समस्या न हो, इसलिए बाबा के शिविर में तो अपनी समस्याओं का समाधान पाने वालों का तांता लगने लगा.

बाबा वैसे तो सब की समस्याएं सुनते, पर महिला भक्तों पर उन की कृपा थोड़ी ज्यादा ही बरसती, उन के पास जो भी पुरुष पहुचते थे, उन की समस्याओं को तो वे एक विशेष प्रकार की लकड़ी, जिसे वे कल्पवृक्ष की लकड़ी कहते थे, उसी के स्पर्श मात्र से ही सही कर देते थे, पर यदि कोई महिला भक्त आती थी, तो उसे कुछ विशेष नुसखा देते थे.

“अकरोना बाबा की जय हो,” एक बहुत खूबसूरत महिला ने अंदर प्रवेश किया.

“कहो ठकुराइन, क्या कष्ट है?” बाबा ने आंखें बंद किए ही कहा.

ठकुराइन मन ही मन सोचने लगी कि मैं ने तो अभी बाबा को अपना नाम तक नहीं बताया और फिर भी वो नाम कैसे जान गए, भक्ति भाव में भर कर उस ने एक बार और जयकारा लगाया

“क्या बताऊं बाबाजी, मेरे कंधों में बहुत दर्द रहता है… कोई उपाय बताइए.”

“तू पिछले जन्म में किसी राज्य की राजकुमारी थी और तू ने लुटेरों के चंगुल से बचने के लिए वह खजाना कहीं गाड़ दिया था… उस खजाने का बोझ अब भी तेरे कंधों पर है, उस बोझ को हटाना होगा,” अकरोना बाबा ने कहा.

“पर, कैसे बाबा?”

“हमें वो खजाना ढूंढ़ना होगा,” बाबा ने कहा.

“पर, मिलेगा कहां बाबा?”

“खजाना तेरे घर में ही है… हमें वहीं आ कर खुदाई करनी होगी. और क्योंकि तू राजकुमारी थी, इसलिए  तुझे हमारे काम में सहयोग भी देना होगा,” अकरोना बाबा ने कहा.

“मैं तैयार हूं बाबा,” अब अपने दर्द को भूल गई थी ठकुराइन और उस की आंखों में खजाने के सपने तैरने लगे थे.

अगले दिन सुबह से ही ठकुराइन के घर पर अनुष्ठान होना था, अकरोना बाबा ने इसे बेहद गुप्त रखने को कहा था, सिर्फ बाबा और उस के 2 साथी ही वहां पहुचे थे.

“भाई हमारे साथ अनुष्ठान में  सिर्फ राजकुमारी… मेरा मतलब है कि ठकुराइन ही रहेगी, क्योंकि अपने खजाने की वो ही वारिस है इसलिए… किसी को कोई आपत्ति तो नहीं? क्यों ठाकुर?” अकरोना बाबा ने ठाकुर की ओर देखते हुए कहा.

“अरे नहीं, नहीं, बाबाजी… हमें कोई  दिक्कत नहीं है. बस आप खजाना ढूंढ़ दीजिए तो हमारी पत्नी के कंधे का दर्द तो कम हो जाए कम से कम.”

“अवश्य कम होगा,” बाबा ने हुंकार भरी.

अकरोना बाबा ने ठाकुर के मकान में घूमघूम कर एक कमरे का चुनाव किया और कहा कि इसी कमरे में हम अनुष्ठान करेंगे और हमें जरूरी सामान ले दिया जाए.

अनुष्ठान शुरू हुआ. उस कमरे में अकरोना बाबा ने ठकुराइन से ध्यान केंद्रित करने को कहा. ठकुराइन ने ऐसा ही किया. वह लगातार उसी बिंदु पर ध्यान लगाती रही, जबकि अकरोना  एक यज्ञ कर रहा था. अचानक से ठकुराइन बेहोश हो कर गिर गई, आग से उठता हुआ धुआं नशीला था.

फिर क्या था, ठकुराइन के गिरते ही अकरोना अपने असली रंग में आ गया. उस ने ठकुराइन के साथ बेहोशी की हालत में ही बलात्कार किया और उस की नग्न हालत में फोटो भी उतारा.

बेचारी ठकुराइन को जब होश आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. वह किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी और यदि बाबा की करतूत अपने पति से भी बताती तो भी उस के वैवाहिक जीवन को खतरा हो सकता था, इसलिए सब आगापीछा सोच कर वह चुप ही रही.

अब तक अकरोना समझ चुका था कि ठकुराइन अपना मुंह नहीं खोलेगी, इसलिए उस ने फिर से एक नाटक खेला.

कमरे का दरवाजा खोल कर ठाकुर को एक मिट्टी की हांडी दिखाई और बोला, “राजकुमारी ने खजाना तो सोने के घड़े में छुपाया था, पर किसी निर्दोष को सजा देने के कारण राजकुमारी को पाप मिला और राजकुमारी का वह खजाना अपनेआप मिट्टी में बदल गया… और अब कुछ नहीं हो सकता.”

“कोई बात नहीं अकरोना बाबा, आप ने इन को इतना टाइम दिया… यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है… आप का बहुत धन्यवाद है,” ठाकुर ने कहा.

और अकरोना बाबा ने गांव में भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया और जब गांव के बाकी लोगों ने जाना कि बाबा प्रवचन करने के साथसाथ समस्याएं भी सुलझाते हैं, तो अकरोना के पास लोगों की भीड़ बढ़ने लगी.

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और अब तो कभी हरिया, कभी किसना तो कभी राघव तो कभी मंगलू जैसे लोग बाबा के पास अपनी समस्या का इलाज कराने जाने लगे.

जिस तरह से उस ने ठकुराइन के साथ किया रहा, कुछ वैसा ही वह मंगलू के घर पर करने वाला था, उस बंद कमरे में मंगलू की पत्नी के अलावा बाबा और उस के 2 चेले थे.

मंगलू और उस के परिवार की आर्थिक समस्या सही करने के लिए अकरोना यज्ञ कर रहा था.
मंगलू की पत्नी अभी बेहोश नहीं हुई थी और बाबा अधिक ही उत्तेजित हो रहा था.

इसी दौरान अकरोना मंगलू की पत्नी की पीठ सहलाने लगा और धीरेधीरे उस के हाथ सीने की तरफ बढ़ने लगे.

मंगलू की पत्नी उस की नीयत भांप गई और उस का विरोध कर के बाहर निकल आई और शोर मचा कर सब को इकट्ठा कर के जोरजोर से कहने लगी, “देखो… देखो ये ढोंगी बाबा… ये मेरे साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहा है… देखो, देखो,” मंगलू की पत्नी चीख रही थी.

उस के इस तरह चीखने पर उस का पति और आसपास के लोग जमा हो गए, वे सभी उस की बातों  को सुन ही रहे थे कि अंदर के कमरे से अकरोना मुसकराते हुए बाहर निकला और बोला, “देखो गांव वालो, मैं ने तुम लोगों को तो बहुत पहले ही उस प्यासी चुड़ैल  की आत्मा के बारे में बता दिया था…

“देखो, आज उसी चुड़ैल की आत्मा इस औरत के अंदर आ गई है. आज हमारे पास इसे देने का  मौका है… इसे मेरे शिविर में ले चलो… हम सब मिल कर सजा देंगे.”

मंगलू की पत्नी चीखती रह गई थी, पर उस गांव में भला उस की सुनने वाला कौन था, गांव के लोग तो उसे चुड़ैल समझ कर उसे मारने पर आमादा थे.

अब मंगलू की पत्नी अकरोना के चंगुल में थी. अकरोना बाबा आया और बोला, “क्या फायदा मिला तुझे… देख लिया न, तेरे ही लोग तुझे यहां छोड़ कर गए हैं मेरे लिए… अगर तू चुपचाप रहती तो इतना नाटक नहीं करना पड़ता… तू भी खुश रहती और मैं भी खुश रहता… अब अपनी नासमझी का अंजाम भुगत.”

और उस के बाद बाबा और उस के चेलों ने जी भर कर उस के जिस्म से कई दिनों तक अपनी प्यास बुझाई.

बाबा का जाल सब गांव वालों की आंखों पर पड़ चुका था. बाबा औरतों और लड़कियों के जिस्म से तो खेलता ही था और पैसे भी मार रहा था.

धीरेधीरे अकरोना ने पूरे गांव पर अपने छोटेमोटे चमत्कार या हाथ की  सफाई दिखा कर गांव वालों के मन में जगह बना ली थी और गांव वाले उसे पूजने लगे थे, और बाबा की नजर जिस भी लड़की और महिला पर पड़ जाती उसे वह किसी पूजा के बहाने अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करता. और अगर वह विरोध करती तो उसे इसी तरह प्यासी चुड़ैल बता कर मारतेपीटते और अपनी हवस का शिकार भी बनाते.

गांव की कुछ महिलाओं ने उत्पीड़न सहने के बाद जब इस बाबा की पोल खोलने की कोशिश की, तो अकरोना ने गांव वालों को बताया कि ये प्यासी चुड़ैल है और अगर इसे मारा नहीं गया तो ये गांव वालों के बच्चों को ही खाने लगेगी, इसलिए बहुत सी औरतों को तो गांव के कुछ दबंग, ऊंची जाति और पैसे वाले लोगों ने उन महिलाओं को पेड़ के तने से बांध कर मारा, इतना मारा कि जब तक वे मर नहीं गई.

एक दिन की बात है, अकरोना के पास एक दंपती आया और चांदी की भेंट चढ़ाई, “बाबा के चरणों में हमारा प्रणाम.”

“हां… कल्याण हो तुम लोगों का… पर देखने में तुम लोग तो इस गांव के नहीं लगते,” अकरोना बोला.

“बाबाजी ने सही पहचाना, हम लोग पास के गांव से आए हैं. और हमारी समस्या यह है कि मेरी बीवी को बच्चा नहीं ठहरता, इसीलिये हम शादी के बाद भी बेऔलाद हैं,” उस आदमी ने बाबा से विनती की.

बाबा ने युवती की नब्ज़ टटोली. थोड़ी देर मौन रखने के बाद वह बोला, “खेत में खाली हल चलाने से फसल अच्छी नहीं होती… बीज अच्छा हो तो ही अच्छी फसल मिलती है… और तुम्हारे मस्तक की रेखाएं बता रही हैं कि तुम ने पिछले जन्म में किसी बच्चे को मारा है, इसीलिए उस जन्म की सजा तुम्हें इस जन्म में मिल रही है…

“और तुम्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही है, चलो कोई बात नहीं है. अब तुम सही जगह आ गए हो, अब तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे… हां, पर हमें संतान प्राप्ति यज्ञ करना होगा और हो सकता है कि उस बच्चे की आत्मा तुम पर या तुम्हारे पति पर आ जाए तो होशियार रहना… घबराना  बिलकुल मत. हम यहीं ठहरने और खानेपीने आदि की व्यवस्था करा देतें हैं. हमारा अनुष्ठान आज रात को ही शुरू हो जाएगा.”

वे दंपती आश्रम में ही रुक गए थे. बाबा की तरह उन्हें भी शाम होने का बेसब्री से इंतजार था.

शाम हुई तो उस दंपती को एक कमरे में ले जाया गया, जहां  बाबा सिर्फ एक लंगोटी बांधे, आंखें बंद किए बैठा था.

“इस पूजा में सिर्फ स्त्री ही बैठेगी… पुरुष को बाहर जाना होगा,” बाबा ने कहा.

बाबा की आज्ञा मान कर उस स्त्री के साथ आया आदमी बाहर आ कर बैठ गया.

बाबा ने यज्ञ करना शुरू किया और पता नहीं क्या बुदबुदाने लग गया.

कुछ देर बाद उस बाबा ने उस आई हुई औरत का हाथ पकड़ लिया. औरत ने कोई विरोध नहीं किया.

“बाबाजी, मुझे आप के बारे में सब पता है. दरअसल, मेरी एक सहेली भी आप से यही वाली पूजा कराने आई थी और इसी तरह आप ने उसे बच्चा पैदा करने वाली कृपा की थी और जिस का मजा मेरी सहेली को भी आया था, इसलिए मेरे साथ आप को कोई नाटक करने की जरूरत नहीं है.”

“अरे वाह, तुम तो बहुत समझदार निकली, तो फिर आओ, हम आराम से बिस्तर पर लेट कर सेक्स का मज़ा लेते हैं,” बाबा ने कहा.

“सेक्स का मजा, पर वो क्यों?” उस औरत ने पूछा.

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“अरे, अभी तुम ने ही तो कहा कि तुम मेरा तरीका जानती हो, तब तो तुम यह भी जानती ही होगी कि मैं आई हुई महिलाओं के साथ जबरन सेक्स करता हूं. और अगर वे नानुकुर करती हैं, तो मैं उन को चुड़ैल की आत्मा घोषित कर देता हूं और फिर मुझे कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, बाकी का काम उस के गांव वाले खुद ही कर डालते हैं… हा हा हा ” कह कर हंसने लगा था अकरोना बाबा.

“बस, अब तेरा खेल खत्म.म अकरोना,” उस महिला ने अपने बैग से पिस्तौल निकालते हुए कहा.

“क्या मतलब? कौन हो तुम?”

“मैं एक पुलिस इंस्पेक्टर हूं… और ये मेरी साथी हैं,” बाहर बैठा हुआ आदमी अंदर आते हुए  बोला.

“हां तो… तुम पुलिस हो… तो मैं क्या करूं… मैं ने किया क्या है,” बाबा ने कहा.

“महिलाओं का जबरन बलात्कार और उत्पीड़न के आरोप में हम तुम्हें गिरफ्तार करते हैं.

“हमें कई बार तुम्हारे खिलाफ गुमनाम फोन द्वारा शिकायतें मिल रही थीं, पर सबूत की कमी में हम कुछ नहीं कर पा रहे थे और इसीलिए हम ने ये प्लान बनाया.

“और हम ने तुम्हारी इस दाढ़ी के पीछे छिपे चेहरे को भी पहचान लिया है, तुम शातिर ठग विजय कुमार हो, जो जेल से भाग कर अपना वेश बदल कर ये काम करने लगे थे,” इंस्पेक्टर ने कहा

“पर सबूत क्या है, तुम लोगों के पास,” बाबा चीख रहा था.

“सारा सबूत इस के अंदर है,” उस महिला इंस्पेक्टर ने अपने बैग में छिपा हुआ एक खुफिया कैमरा दिखाते हुए कहा,

“और मेरे उकसाने पर तुम ने खुद ही अपनी सारी बातें अपने मुंह से ऊगली हैं, अब बाकी की जिंदगी जेल में कैदियों का कोरोना भगाने में लगाना,” महिला इंस्पेक्टर ने बाबा को हथकड़ी पहनाते हुए कहा.

बाबा ने कहा, “मुझे 10 मिनट अपने सहयोगी से बात करने दो. फिर मैं आप लोगों के साथ चलूंगा,” पुलिस पार्टी मान गई.

10 मिनट बाद बाबा के एक सहयोगी ने पेशकश रखी कि पुलिस पार्टी को 20 लाख नकद मिलेंगे और इंस्पेक्टर को साथ में पदोन्नति भी मिलेगी व 5 करोड़ साल वाला थाना मिलेगा. अंत में फैसला 30 लाख में हुआ.

पुलिस बाबा को पकड़ कर ले गई कि अगले दिन जमानत मिल जाएगी और बाद में केस रफादफा हो जाएगा.

एक ठग, जो अकरोना बाबा बना फिरता था, पहुंच गया जेल. वह सारी कमाई गंवा बैठा.

सही कहा गया है, बुरे कोरोना का बुरा नतीजा…

दुलहन और दिलरुबा : इज्जत की अनोखी कहानी

अपने औफिस में बैठा मैं एक सबइंसपेक्टर से किसी मामले पर बात कर रहा था, तभी 2 आदमी यह सूचना ले कर आए कि गंदे नाले में एक लाश पड़ी है. सुबहसवेरे लाश की सूचना पर मैं हैरान रह गया. मैं ने एक एएसआई और 2 सिपाहियों को उन लोगों के साथ भेज दिया. कुछ देर बाद एक सिपाही हांफता हुआ मेरे पास आ कर बोला, ‘‘सर, वह लाश तो धुर्रे शाह की है.’’

‘‘तुम्हें पूरा यकीन है कि वह लाश धुर्रे शाह की ही है?’’ मैं ने उसे घूरते हुए पूछा.

धुर्रे शाह इलाके का ऐसा हिस्ट्रीशीटर बदमाश था, जिस के नाम से बड़ेबड़े गुंडेबदमाश कांपते थे.

‘‘बिलकुल सर, उस पर धारदार हथियार से वार किए गए हैं.’’ सिपाही ने कहा.

मैं भी उस स्थान पर पहुंचा, जहां धुर्रे शाह की लाश पड़ी थी. मेरे पहुंचने से पहले एएसआई गफ्फार ने लाश नाले से बाहर निकलवा ली थी. मैं ने लाश देखी तो वह सचमुच धुर्रे शाह की थी. उस ने रेशमी कुर्ता पहना हुआ था. एक गहरा घाव उस की गरदन पर था, दूसरा घाव उस की कालर बोन पर था, तीसरा घाव उस की पसलियों पर था.

उस की जेब की तलाशी ली गई तो उन में से कुछ छोटे भीगे नोट निकले. जरूरी काररवाई कर के मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मैं सोच में पड़ गया कि धुर्रे शाह जैसे हिस्ट्रीशीटर बदमाश की हत्या किस ने की होगी?

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धुर्रे शाह रहीमपुर का रहने वाला था. उस का असली नाम पता नहीं था, सब उसे धुर्रे शाह कहते थे. वह मेलों में जाने का बड़ा शौकीन था. अपने लंबे बालों में वह एक पटटी बांधता था और कंधे पर रेशमी पटका रखता था. ढोल की थाप पर वह मेले तक नाचता हुआ जाता था. रात में उस के इलाके में उस का राज्य होता था. लोग डर की वजह से उस के इलाके से गुजरते नहीं थे. कोई घोड़ातांगा उधर से गुजरता तो चालक घोड़े को भगाता था. धुर्रे शाह दौड़ कर पीछे से घोड़े की बाग पकड़ लेता था, इसलिए लोग उसे घोड़े शाह भी कहते थे.

धुर्रे शाह की हत्या से लोगों ने राहत की सांस ली थी. लेकिन हमारी कोशिश उस के हत्यारों तक पहुंचने की थी. मेरा विचार था कि उसे अपराधी किस्म के लोगों ने ही मारा होगा, इसलिए मैं ने तफ्तीश ऐसे ही लोगों से शुरू की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत अधिक खून बह जाने से हुई थी.

यह भी पता चला था कि उस ने देशी शराब पी रखी थी. मौत का समय आधी रात के लगभग बताया गया था. उस का कोई वारिस नहीं आया, इसलिए उस की लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

मैं ने अपने मुखबिरों से पता कराया कि हत्या से पहले उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था. मेरा एक मुखबिर था, जो छोटामोटा अपराधी भी था, लेकिन वह जबान का पक्का था. वह अंदर तक की खबरें निकाल कर ले आता था. उस ने मुझे जो बातें बताई थीं, उस से मुझे लगा कि हत्यारा जल्द ही गिरफ्तार हो जाएगा.

उस ने बताया था कि धुर्रे शाह में बहुत सी बुराइयां भी थीं. वह देशी शराब बहुत पीता था और वेश्याओं के पास भी जाता था. उस समय एक कोठे पर नईनवेली वैश्या दिलरुबा आई थी, जो उसे बहुत पसंद थी. वह उस पर दिल खोल कर पैसे लुटाता था. वह जब भी उस के कोठे पर जाता था, किसी की हिम्मत उस के सामने ठहरने की नहीं होती थी.

अगर वहां पहले से महफिल जमी होती थी तो धुर्रे शाह के पहुंचते ही सब से माफी मांग कर महफिल खत्म कर दी जाती थी. हत्या से 10-12 दिन पहले धुर्रे शाह अपने कुछ साथियों के साथ दिलरुबा के कोठे पर गया था. उस समय एक और अपराधी रंगू वहां पहले से बैठा था.

मैं रंगू को जानता था. वह धुर्रे शाह की टक्कर का बदमाश था. लेकिन ताकत और दिलेरी में धुर्रे शाह से कम था. रंगू और धुर्रे शाह की आपस में कोल्ड वार चल रही थी. लेकिन दोनों में से कोई भी खुल कर सामने नहीं आता था, जबकि रंगू उस से दबने वाला आदमी नहीं था.

धुर्रे शाह के आने पर दिलरुबा ने महफिल खत्म होने की बात कही तो रंगू ने कहा कि वह नाचगाना जारी रखे और किसी की परवाह न करे. इस पर दिलरुबा ने बड़े अदब से कहा, ‘‘माफ कीजिए सरकार, आप फिर कभी तशरीफ लाइए, शाहजी के आने पर महफिल खत्म कर दी जाती है.’’

‘‘यह वैश्या का कोठा है, किसी शाह का डेरा नहीं.’’ रंगू ने गुस्से से कहा, ‘‘यहां कोई भी आ सकता है. हम यहां पहले से बैठे हैं, इसलिए हमारा पहला हक बनता है. आप शाहजी को फिर कभी बुला लेना.’’

रंगू की इन बातों पर धुर्रे शाह को गुस्सा आ गया. उस ने फुरती से लंबा सा चाकू निकाल कर रंगू की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘चुपचाप यहां से निकल जा, नहीं तो गरदन काट कर रख दूंगा.’’

रंगू भी डरने वाला नहीं था. लेकिन मौत को गरदन पर देख कर वह उठा और चुपचाप चला गया. साथियों के सामने रंगू की बेइज्जती हो गई थी, इसलिए उस ने उसी समय कसम खाई थी कि वह इस अपमान का बदला ले कर रहेगा.

मुखबिर के जाने के बाद मैं ने एएसआई गफ्फार को बुला कर पूरी बात बताई. उस का भी मानना था कि धुर्रे शाह की हत्या रंगू ही ने की है. मैं ने एएसआई से कह दिया कि वह 3-4 सिपाहियों को ले कर रंगू के यहां जाए और उसे थाने ले आए. करीब 2 घंटे बाद वे रंगू को थाने ले आए. आते ही उस ने झुक कर सलाम कर के कहा, ‘‘क्या हुक्म आगा साहब, सेवक को कैसे याद किया?’’

‘‘मुझे चक्कर देने की कोशिश मत करना रंगू.’’ मैं ने कहा, ‘‘जो कुछ भी पूछूं, सीधी तरह से बता देना, तभी फायदे में रहोगे.’’

‘‘आप पूछिए सरकार, गलत बोलूं तो बेशक मेरी खाल उतार कर भूसा भरवा देना.’’ रंगू ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है कि धुर्रे शाह मारा गया है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी सरकार, उड़तीउड़ती खबर मैं ने भी सुनी है कि उस की हत्या हो गई है.’’ रंगू ने कहा.

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारी भी तो उस से दुश्मनी थी?’’

मेरे इतना कहते ही वह एकदम घबरा गया और नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मेरी भला उस से क्या दुश्मनी हो सकती थी? उस से तो सब डरते थे, मैं भी उस से बचता था.’’

मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था. मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’

‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.

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मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’

रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.

‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’

पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.

मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’

रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’

‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’

रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’

मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’

मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’

‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.

कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.

मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’

उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’

वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.

दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’

सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’

‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.

धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’

‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’

इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’

‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.

मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’

‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’

‘‘लगभग एक हफ्ता पहले की बात है.’’

‘‘उस ने यह तो बताया होगा कि दूल्हा कौन था, बारात कहां से आई थी, दुलहन कौन थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बारात रहीमपुर वापस जा रही थी.’’

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बाकी दुलहन वगैरह के बारे में उस ने मुझे कुछ नहीं बताया. मेरे लिए इतना ही काफी था. मुझे दूल्हे के गांव का पता चल गया था. मैं ने दिलरुबा से कुरेदकुरेद कर बहुत सारी बातें पूछीं, लेकिन और कोई काम की बात पता नहीं लग सकी. मैं ने कहा कि उस के शाहजी के हत्यारे बहुत जल्द पकड़े जाएंगे.

मैं ने एक महिला मुखबिर को बुलाया, जिस का नाम जकिया था. वह बहुत चालाक औरत थी. घर के पूरे भेद निकाल लाती थी. मैं ने उसे पूरी बात समझा कर रहीमपुर गांव भेज दिया. उस ने मुझे जो नई बात बताई, उस में मुझे दम नजर आया.

उस ने बताया था कि रहीमपुर गांव के खिजर की शादी भलवाल गांव की सलमा से हुई थी. रहीमपुर से गांव भलवाल अधिक दूर नहीं था, गरमियों के दिन थे, इसलिए लड़की वालों ने लड़की को शाम को विदा किया था. दुलहन के साथ लगभग 15-16 आदमी थे. उन दिनों दुलहनें डोली में जाया करती थीं.

4 कहार उस डोली को उठाते थे. सलमा भी डोली में विदा हुई थी. डोली के आगे खिजर घोड़ी पर सवार हो कर चल रहा था. जब सभी रहीमपुर के निकट पहुंचे तो दूल्हा यह कह कर घोड़ी दौड़ा कर रहीमपुर चला गया कि वह दुलहन के स्वागत के लिए सब को इकट्ठा करने जा रहा है.

दुलहन की डोली जब धुर्रे शाह के इलाके में पहुंची तो उस ने डोली रोक ली. उस समय उस के हाथ में लाठी थी. बारात के लोग उसे देख कर डर गए. बाराती यह सोच रहे थे कि यह सब की जेबें खाली करा लेगा, लेकिन उस ने दुलहन को ले जाने का इरादा किया. उन्होंने धुर्रे शाह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने दुलहन को डोली से बाहर निकाल लिया.

दुलहन सलमा बहुत समझदार और हिम्मत वाली लड़की थी. उस ने धुर्रे शाह से कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम सैयद हो और मैं भी सैयद हूं. तुम्हें एक सैयदजादी की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए और दोनों परिवारों का मानसम्मान करना चाहिए. इस के बाद भी अगर तुम ताकत के नशे में चूर हो तो मेरी एक शर्त है.’’

‘‘क्या शर्त है बताओ? अगर मानने लायक हुई तो जरूर मान लूंगा.’’ धुर्रे शाह ने कहा.

‘‘ऐसा है, मुझे हाथ भी न लगाना और इस समय मुझे घर जाने दो. घर जा कर मैं अपने पति को यह घटना सुनाऊंगी. अगर उस के अंदर जरा भी हिम्मत और ताकत हुई तो वह आ कर तुम से निपट लेगा और अगर उस में हिम्मत नहीं हुई तो मैं उसे छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. फिर तुम मुझ से निकाह कर लेना.’’ सलमा ने कहा.

धुर्रे शाह ने उस का यह चैलेंज स्वीकार कर लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 सप्ताह का समय देता हूं. अगर इस बीच तेरे पति ने आ कर मेरी हत्या नहीं की तो मैं तेरे घर आ कर उस की हत्या कर के तुझे उठा लाऊंगा और बिना निकाह के घर में पत्नी बना कर रखूंगा.’’

इस के बाद सलमा की डोली घर आ गई. सलमा ने पति खिजर से पूरी बात बता दी. उस के पति ने कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं धुर्रे शाह से निपट लूंगा और तुम्हारी इज्जत की पूरी रक्षा करूंगा.’’

उस के बाद खिजर ने मौके पर मौजूद गवाह रिश्तेदारों से यह बात कह दी, साथ ही यह भी कहा कि यह बात किसी को भी न बताएं. लेकिन सलमा पेट की हल्की थी, उस ने अपनी सहेली से सब बता दिया. उसी सहेली के द्वारा यह बात पुलिस की मुखबिर जकिया तक पहुंच गई थी.

जकिया ने मेरा काम आसान कर दिया. मुझे पूरा यकीन था कि धुर्रे शाह की हत्या खिजर ने ही की थी. मैं ने पुलिस टीम खिजर को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी. पर वह घर पर नहीं मिला. घर वालों से पूछा गया तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जाहिर की. तब मैं ने एक मुखबिर की ड्यूटी उस के घर पर लगा दी. 3 दिनों बाद मुझे उस मुखबिर ने सूचना दी तो मैं रात 11 बजे एएसआई और 4 सिपाहियों को ले कर खिजर के घर पहुंच गया.

मैं ने खिजर के घर दस्तक दी तो कुछ देर बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाजा खोला. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. वह उस का बाप था. मैं ने उस से खिजर के बारे में पूछा तो उस ने मेरी ओर बेबसी से देखा और अंदर गया और एक जवान आदमी को ले कर बाहर आया. मुखबिर ने कहा कि यही खिजर है.

खिजर ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से धुर्रे की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस की हत्या की थी. इस के बाद अपने घर से वह कुल्हाड़ी भी ले आया, जिस से उस ने धुर्रे की हत्या की थी.

थाने में खिजर से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘जब सलमा ने मुझे पूरी बात बताई तो मेरा खून खौल उठा. मैं ने उसी समय धुर्रे शाह की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन धुर्रे शाह इतना बड़ा बदमाश था कि उस की आसानी से हत्या नहीं की जा सकती थी. इसलिए मैं मौके की तलाश में था. मुझे पता था कि अगर मैं ने धुर्रे शाह की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर के सलमा को उठा ले जाएगा. मैं ने बहुत ही अच्छी कुल्हाड़ी बनवा रखी थी और उसे हमेशा अपने साथ रखता था.’’

घटना वाले दिन रात 8-9 बजे वह अपने घर जा रहा था. अंधेरे में अचानक उसे गंदे नाले के पास धुर्रे शाह दिखाई दिया. वह गाना गा रहा था और नशे के कारण डगमगा कर चल रहा था. उस ने इस मौके को उचित समझा और उस के पास जा कर कुल्हाड़ी का एक जोरदार वार उस की गरदन पर कर दिया.

धुर्रे शाह के मुंह से हाय की आवाज निकली और वह गिर पड़ा. खिजर ने 2 वार और किए, ढलान होने के कारण वह नाले में गिर गया. उस ने इधरउधर देखा कोई दिखाई नहीं दिया. घर आया और कुल्हाड़ी धो कर घर में दीवार पर टांग दी. उस ने अपनी पत्नी और पिता को सब कुछ बता दिया.

जो मारा गया था, वह समाज के लिए एक तकलीफ देने वाले फोड़े की तरह था. उस ने शरीफ लोगों का जीना हराम कर रखा था. मुझे खिजर पर दया आ रही थी, उस की अभीअभी शादी हुई थी. मैं नहीं चाहता था कि वह किसी मुसीबत में फंसे. मैं ने जो केस तैयार किया, उस में 2 कमियां छोड़ दीं, जो खिजर को मुकदमे में मदद कर सकती थीं.

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मुकदमा चला, खिजर का वकील कमजोर था, मेरी छोड़ी हुई 2 कमियों का वह लाभ नहीं उठा सका. उसे जज ने 7 साल की सजा सुनाई. मैं ने खिजर के बाप को समझाया कि वह सेशन में अपील करे और कोई दूसरा समझदार वकील करे. उस ने यही किया. सेशन कोर्ट में मुकदमा चला तो उस काबिल वकील ने मेरी छोड़ी हुई कमियों का पूरा फायदा उठाया, जिस के बाद कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया.

पलटवार : स्वरा के भरोसे में किसने मारी सेंध

‘‘दीदी.’’ स्वरा चौंक उठी, अरे, यह तो श्रेया की आवाज है. वह उल्लसित मन से छोटी बहन की ओर लपकी, ‘‘अरे तू, आने की सूचना भी नहीं दी, अचानक  कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ न पूछो दीदी, कंपनी का एक सर्वे है, उसी के लिए मुझे 2 माह तक यहीं रहना है. बस, मैं तो बहुत ही खुश हुई, आखिर इतने दिन मुझे अपनी बहन के साथ रहने को मिलेगा,’’ कह कर श्रेया अपनी दीदी स्वरा के गले में झूल गई. स्वरा को भी खूब खुशी हो रही थी, आखिर श्रेया उस की दुलारी बहन जो थी.

‘‘स्वरा, एक कप चाय देना,’’ अमित ने गुहार लगाई.

जी, अभी लाई, कह कर स्वरा चाय ले जाने को तत्पर हो गई.

‘‘लाओ दीदी, मैं जीजू को चाय दे आती हूं,’’ कह कर श्रेया ने बहन के हाथ से चाय की ट्रे ले ली और अमित के कमरे की ओर बढ़ी. कमरा खुला था, परदे पड़े थे. उस ने झांक कर देखा, अमित की पीठ दरवाजे की ओर थी. वह अपना कोई प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. श्रेया ने चाय साइड टेबल पर रख दी और अमित की आंखों को अपने हाथों से बंद कर दिया. अमित हड़बड़ा गया, ‘‘क्या है स्वरा, आज बड़ा प्यार आ रहा है. क्या दिल रंगीन हो रहा है. अरे भई, दरवाजा तो बंद कर लो.’’ अमित ने श्रेया को स्वरा समझ कर अपनी ओर खींच लिया, श्रेया भरभरा कर अमित की गोद में आ गिरी.

‘‘हाय, जीजू क्या करते हैं, मैं आप की पत्नी नहीं, बल्कि श्रेया हूं, आप की इकलौती साली. क्यों, चौंक गए न,’’ श्रेया संभलती हुई बोली.

‘‘हां, चौंक तो गया ही, चलो कोई बात नहीं, आखिर साली भी तो आधी घरवाली होती है,’’ अमित ने ठहाका लगाया.

‘‘क्या बात है, बड़े खुश हो रहे हो,’’ स्वरा भी वहीं आ गई.

‘‘हां भई, खुशी तो होगी ही. अब इतनी सुंदर साली को पा कर मन पर काबू कैसे रखा जा सकता है. दिल ही तो है, मचल गया,’’ अमित ने शोखी से कहा.

‘‘हुं, ज्यादा न मचलें, थोड़ा काबू रखो. मेरी बहन कोई सेंतमेत की नहीं है, जो किसी का भी दिल मचल जाए,’’ स्वरा ने अमित को छेड़ा और दोनों बहनें हंसती हुई कमरे से बाहर आ गईं.

दिन के साढ़े 10 बजे रहे थे. श्रेया को सर्वे के लिए निकलना था. वह तैयार होने चली गई. अमित भी औफिस के लिए तैयार होने चला गया. दोनों साथ ही निकले. श्रेया आटो के लिए सड़क की ओर बढ़ने लगी कि तभी अमित ने पीछे से आवाज दी, ‘‘रुको साली साहिबा, तुम्हारी प्रोजैक्ट साइट मेरे औफिस के रास्ते में ही है, मैं तुम्हें ड्रौप कर दूंगा.’’ स्वरा ने भी हां में हां मिलाई और श्रेया लपक कर अमित की बगल वाली सीट पर बैठ गई.

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अमित ने कहा, ‘‘बैल्ट लगा लो श्रेया, यहां ट्रैफिक रूल्स बहुत सख्त हैं.’’

श्रेया ने बैल्ट लगाने की कोशिश की लेकिन वह लग नहीं रही थी. शायद कहीं फंसी हुई थी. उस ने बेबसी से अमित की ओर देखा. अमित समझ गया और थोड़ा झुक कर बैल्ट को खींचने लगा कि अचानक बैल्ट खुल गई. श्रेया झटका खा कर अमित की ओर लुढ़क गई. ‘‘सौरी,’’ उस ने धीरे से कहा. ‘‘ओके, जरा ध्यान रखा करो.’’ अमित ने गाड़ी बढ़ाते हुए कहा.

अब यह प्रतिदिन का नियम बन गया था. अमित श्रेया को उस की साइट पर छोड़ता और शाम को लौटते हुए उसे साथ में ले भी लेता था. वैसे तो यह एक सामान्य बात थी. जब दोनों का समय और रास्ता भी एक ही था तो साथ आनेजाने में कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन यह प्रतिदिन का जो साथ था, वह बिना किसी रिश्ते के एक अनजाने रिश्ते की ओर बढ़ रहा था.

अमित युवा था और उस का दिल सदैव उन्मत्त रहता था. रूपसी पत्नी के साहचर्य ने उसे और भी अधिक शोख बना दिया था. सुंदर स्त्रियों के साथ उसे आनंद आता था. अब हर समय उसे स्वरा का साथ तो उपलब्ध नहीं होता था तो वह अकस्मात ही अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित होने लगता था. वह सोचता भी था कि यह गलत है, किंतु आंखें? उन का क्या, उन्हें बंद तो नहीं किया जा सकता था. उन्हें देखने से कोई कैसे रोक सकता था.

श्रेया भी युवा थी, अपरिमित सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का हृदय जबतब मचलता रहता था. पुरुषों की सौंदर्यलोलुप दृष्टि का वह आनंद उठाती थी. पुरुष साहचर्य की कामना भी करती थी परंतु अपनी मर्यादाओं को समझते हुए. एक बार उस की किसी नवविवाहिता सहेली ने उसे बताया था, ‘पुरुष का प्रथम स्पर्श बहुत ही मधुर होता है.’ यह सुन कर वह रोमांचित हो उठी थी.

उसे अमित का साथ अच्छा लगने लगा था. यद्यपि कि उसे अपने पर शर्म भी आती थी कि वह जो कुछ भी कर रही है, वह गलत है. अमित उस की ही बहन का सुहाग है. जिस की ओर देखना भी उचित नहीं है, किंतु मन, उस का क्या, उस पर तो किसी का वश नहीं चलता है.

श्रेया यौवन के नशे में चूर थी और पुरुष साहचर्य की कामना करती रहती थी जो विवाह से पूर्व संभव न था. लेकिन अमित के साथ सट कर बैठना, उस के साथ घूमनाफिरना सब बहुत लुभावना लगता था.

उसे अपनी बहन की आंखों में देखते हुए भय लगता था क्योंकि उन आंखों में अनेक संशयभरे प्रश्न होते थे जिन का उस के पास कोईर् जवाब नहीं होता था. वह कभी भी अपनी दीदी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाती थी.

स्वरा सब देख, समझ रही थी. उसे आश्चर्य भी होता था और दुख भी. आश्चर्य अमित के रवैए पर था, वह पत्नी को कम से कम समय देता, खानेपीने में अरुचि दिखाता, उस के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से स्वरा अनभिज्ञ नहीं थी. दुख इस बात का था कि उस की प्यारी छोटी बहन उसे ही धोखा दे रही थी.

दिनप्रतिदिन श्रेया और अमित की नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थी. अब उन्हें इस बात की कोई भी चिंता नहीं होती थी कि स्वरा शाम की चाय पर उन की प्रतीक्षा कर रही होगी. वे दोनों तो घूमतेफिरते रात्रि के 8 बजे से पूर्व कभी भी घर नहीं पहुंचते थे. स्वरा जब भी अमित से देरी का कारण पूछती तो उत्तर श्रेया देती, ‘‘हां दीदी, जीजू तो समय पर लेने के लिए आ गए थे किंतु मेरा मन कुल्फी खाने का कर रहा था और मार्केट वहां से दूर भी बहुत है. अब समय तो लगता ही है न.’’ और कभी कौफी का बहाना, कभी ट्रैफिक का बहाना. स्वरा इन सब बातों का मतलब समझती थी. ‘‘और चाय,’’ वह धीमे से पूछती.

‘‘अब चाय क्या पिएंगे, सीधे खाना ही खिला देना, क्यों जीजू.’’

‘‘हां, और क्या, वैसे भी बहुत थक गया हूं. जल्दी ही सोना चाहूंगा,’’ अमित उबासी लेने लगता.

इधर सुबह दोनों जल्दी ही उठ कर कंपनीबाग सैर करने जाते थे. कभी भी स्वरा से चलने के लिए नहीं कहते थे. स्वरा मन ही मन कुढ़ती थी और समस्या के निराकरण का उपाय भी सोचती थी जो उसे जल्दी ही मिल गया. वह भी अकेली ही सैर पर निकल पड़ी और जौगिंग करते हुए अमित तथा श्रेया की बगल से हाय करते हुए मुसकरा कर आगे बढ़ गई. दोनों भौचक्के से उस की ओर देखने लगे. स्वरा को ट्रैक सूट में देख कर अमित अपनी आंखें मलने लगा, यह स्वरा का कौन सा अनोखा रूप था जिस से वह अपरिचित था.

घर आ कर स्वरा ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया और उन दोनों का इंतजार किए बिना स्वयं नाश्ता करने लगी. तभी अमित भी आ गया, ‘‘यह क्या मैडम, आज मेरा इंतजार नहीं किया, अकेले ही नाश्ता करने बैठ गई.’’

‘‘तो क्या करती? जौगिंग कर के आई हूं. भूख भी कस कर लग आई है, फिर खाने के लिए किस का इंतजार करना.’’ स्वरा ने टोस्ट में औमलेट रख कर खाते हुए कहा. अमित तथा श्रेया दोनों ने ही स्वरा में आए इस बदलाव को महसूस किया. दोनों ने अपनाअपना नाश्ता खत्म किया और तैयार होने कमरे में चले गए.

‘‘स्वरा, मेरा टिफिन लगा दिया?’’ अमित ने हांक लगाई.

‘‘नहीं तो, रोज ही तो खाना वापस आता है. मैं ने सोचा क्यों बरबाद किया जाए और श्रेया तो यों भी फिगर कौंशस है. वह तो दोपहर में जूस आदि ही लेती है. ऐसे में खाना बनाने का फायदा ही क्या?’’ स्वरा ने तनिक कटाक्ष के साथ कहा, ‘‘और हां अमित, घर की डुप्लीकेट चाबी लेते जाना क्योंकि आज शाम को मैं घर पर नहीं मिलूंगी. मेरा कहीं और अपौइंटमैंट है.’’

‘‘कहां?’’ अमित को आश्चर्य हुआ. उन के विवाह को 2 वर्ष बीत चले थे. कभी भी ऐसा नहीं हुआ था कि अमित आया हो और स्वरा घर पर न मिली हो.

‘‘अरे, मैं तुम्हें बताना भूल गई थी, विशेष आया हुआ है,’’ स्वरा के स्वर में चंचलता थी.

‘‘कौन विशेष? क्या मैं उसे जानता हूं?’’ अमित ने तनिक तीखे स्वर में पूछा.

‘‘नहीं, तुम कैसे जानोगे. कालेज में हम दोनों साथ थे. मेरा बैस्ट फ्रैंड है. जब भी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम कालेज में होता था, हम दोनों का ही साथ होता था. क्यों श्रेया, तू तो जानती है न उसे,’’ स्वरा श्रेया से मुखातिब हुई. श्रेया का चेहरा बेरंग हो रहा था, धीमे से बोली, ‘‘हां जीजू, मैं उसे जानती हूं. वह घर भी आता था. आप की शादी के समय वह कनाडा में था.’’

‘‘अरे, स्वरा ने तो कभी अपने किसी ऐसे दोस्त का जिक्र भी नहीं किया,’’ अमित के स्वर में रोष झलक रहा था.

‘‘यों ही नहीं बताया. अब भला अतीत के परदों को क्या उठाना. जो बीत गया, सो बीत गया,’’ स्वरा ने बात समाप्त की और तैयार होने के लिए चली गई. अमित तथा श्रेया भौचक एकदूसरे को देख रहे थे.

‘यह कौन सा नया रंग उस की पत्नी उसे दिखा रही थी.’ अमित हैरान था, सोचता रह गया. वह तो यही समझता था कि स्वरा पूरी तरह उसी के प्रति समर्पित है. उसे तो इस का गुमान तक न था कि स्वरा के दिल के दरवाजे पर उस से पूर्व कोई और भी दस्तक दे चुका था और वह बंद कपाट अकस्मात ही खुल गया.

‘‘जीजू चलें?’’ श्रेया तैयार खड़ी थी.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगा, तुम अकेली ही चली जाओ,’’ अमित ने अनमने स्वर में कहा और अपने कमरे में चला गया. भड़ाक, दरवाजा बंद होने की आवाज से श्रेया चिहुंक उठी. ‘तो क्या जीजू को ईर्ष्या हो रही है विशेष से,’ वह सोचने को विवश हो गई.

इधर अमित बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगा, ‘मैं पसीनेपसीने क्यों हो रहा हूं. आखिर क्यों मैं सहज नहीं हो पा रहा हूं. हो सकता है दोनों मात्र दोस्त ही रहे हों. तो फिर, मन क्यों गलत दिशा की ओर भाग रहा है. मैं क्यों ईर्ष्या से जल रहा हूं और फिर पिछले 2 वर्षों में कभी भी स्वरा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से मेरा मन सशंकित हो. वह पूरी निष्ठा से मेरा साथ निभा रही है, मेरी सारी जरूरतों का ध्यान रख रही है. मेरा परिवार भी उस के गुणों और निष्ठा का कायल हो चुका है. तो फिर, ऐसा क्यों हो रहा है.

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‘क्या तू ने उस के प्रति पूरी निष्ठा रखी?’ उस के मन से आवाज आई, ‘क्या श्रेया को देख कर तेरा मन डांवाडोल नहीं हो उठा, क्या तू ने श्रेया के संग ज्यादा अंतरंगता नहीं दिखाई? कितने दिनों से तू ने स्वरा को अपने निकट आने भी नहीं दिया, क्यों? आखिर क्यों? क्या तेरे प्यार में बेवफाई नहीं है?’

‘नहींनहीं, मेरे प्यार में कोई भी बेवफाई नहीं’, वह बड़बड़ा उठा, ‘श्रेया हमारी मेहमान है. उस का पूरी तरह खयाल रखना भी तो हमारा फर्ज है, इसीलिए स्वरा को श्रेया के साथ, उसी के कमरे में सोने के लिए कहा ताकि उसे अकेलापन न लगे. मेरा ऐसा कोई बड़ा अपराध भी नहीं है.’ अमित ने स्वयं को आश्वस्त किया लेकिन शंका का नाग फन काढ़े जबतब खड़ा हो जाता था.

शाम के 7 बज गए. ‘कहां होगी, अभी तक आई नहीं, अमित कल्पनाओं के जाल में उलझता जा रहा था. क्या कर रहे होंगे दोनों, शायद फिल्म देखने गए होंगे. फिल्म, नहींनहीं, आजकल कैसीकैसी फिल्में बन रही हैं, पता नहीं दोनों स्वयं पर काबू रख पा रहे होंगे भी, या नहीं. अमित का मन उद्वेलित हो रहा था, जी में आ रहा था कि अभी उठे और दोनों को घसीटते हुए घर ले आए. शादी मुझ से, प्यार किसी और से. अरे, जब उसी का साथ निभाना था तो मना कर देती शादी के लिए,’ अमित का पारा सातवें आसमान पर चढ़ता जा रहा था.

‘अब तो सिनेमा भी खत्म हो गया होगा, फिर कहां होंगे दोनों, क्या पता किसी होटल में गुलछर्रे उड़ा रहे हों. आखिर विशेष होटल में ही तो ठहरा होगा. हो सकता है दोनों एक भी हो गए हों,’ उस का माथा भन्ना रहा था. तभी मोबाइल बज उठा, ‘अरे, यह तो स्वरा का फोन है. अच्छा तो जानबूझ कर छोड़ गई है ताकि मैं उसे कौल भी न कर सकूं. देखूं, किस का फोन है.’ उस ने फोन उठाया. स्वरा के पापा का फोन था. ‘‘हैलो’’ उस का स्वर धीमा किंतु चुभता हुआ था.

‘‘अरे बेटा अमित, मैं बोल रहा हूं, स्वरा का पापा. कैसे हो बेटा? स्वरा कहां है? जरा उसे फोन देना.’’

‘‘स्वरा अपने किसी दोस्त के साथ बाहर गई है. मैं घर पर ही हूं. बताइए, क्या बात है?’’ अमित के स्वर में खीझ स्पष्ट थी.

‘‘गुड न्यूज है. तुम्हें भी सुन कर खुशी होगी. अरे भई, श्रेया का विवाह निश्चित हो गया है. बड़ा ही अच्छा लड़का मिल गया है. अब श्रेया को नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि लड़का कनाडा में सैटल्ड है. वह तो अचानक ही आ गया, घर भी आया था. हम उसे पहले से जानते हैं. विशेष नाम है उस का. स्वरा के साथ ही तो पढ़ता था.’’

अब यह कौन सा मित्र है स्वरा का जो अचानक ही आ गया और जिस का नाम भी विशेष ही है, और जो श्रेया से विवाह करने को भी राजी हो गया, अमित सोचने पर विवश हो गया. ‘‘अच्छा, बड़ी खुशी हुई. वैसे स्वरा का एक कोई और भी मित्र है विशेष, जो यहां आया हुआ है और पूरे दिन से स्वरा उसी के साथ है, अभी तक घर नहीं लौटी,’’ अमित का स्वर व्यंग्यात्मक था लेकिन उधर से फोन पर टूंटूं की आवाज आ रही थी. शायद नैटवर्क चला गया था.

आने दो स्वरा को, आज फैसला करना ही होगा. आखिर वह चाहती क्या है. अरे जब उसी के साथ रंगरेलियां मनानी थीं तो मुझ से विवाह क्यों किया. मेरे प्यार में उसे क्या कमी नजर आई, जो वह दूसरे के साथ समय बिता रही है. मैं चुप हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मुझे कुछ बुरा नहीं लग रहा है. और ये विशेष, बड़ा चालाक लगता है, इधर स्वरा से संबंध बनाए हुए है और उधर श्रेया से विवाह करने को भी तैयार है. मतलब यह कि अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहता है. आखिर यह क्या रहस्य है, कहीं वो दोनों को तो मूर्ख नहीं बना रहा है.

डोरबैल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. दरवाजा खोल वह कमरे में आ कर चुपचाप लेट गया. स्वरा ने अंदर आ कर देखा, कमरे में अंधेरा है और अमित लेटा हुआ है. ‘‘अरे, अंधेरे में क्यों पड़े हो, लाइट तो जला लेते.’’ उस ने स्विच औन करते हुए कहा.

‘‘रहने दो स्वरा, अंधेरा अच्छा लग रहा है. हो सकता है रोशनी में तुम मुझ से आंखें न मिला सको’’, उस के स्वर में तड़प थी.

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया है जो मैं तुम से आंखे न मिला सकूंगी,’’ स्वरा ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो, क्या हुआ है और क्या हो रहा है. मैं बात बढ़ाना नहीं चाहता. मुझे नींद आ रही है, लाइट बंद कर दो, सोना चाहता हूं,’’ कह कर उस ने करवट बदल लिया.

स्वरा मन ही मन मुसकरा उठी, ‘तो तीर निशाने पर लगा है, जनाब बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं.’ उस ने भी तकिया उठा लिया और सोने की कोशिश करने लगी.

सुबह उठ कर उस ने अपनी दिनचर्या के अनुसार सारे काम किए. अमित तथा श्रेया को बैड टी दी. डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और नहाने के लिए जाने को हुई तभी उस का मोबाइल बज उठा. अमित जल्दी से फोन उठाने के लिए लपका, तभी स्वरा ने उठा लिया. स्क्रीन पर नाम देख कर मुसकराने लगी. ‘हैलो, हांहां, पूरा प्रोग्राम वही है, कोई भी फेरबदल नहीं है. मैं भी बस तैयार हो कर तुम्हारे पास ही आ रही हूं.’ फोन रख कर उस ने बड़े ही आत्मविश्वास से अमित की ओर मुसकरा कर देखा.

अमित की आंतें जलभुन गईं. आज फिर कहां जा रही है, लगता है पर निकल आए हैं, कतरने होंगे, घर के प्रति पूरी तरह समर्पित, भीरू प्रवृत्ति की स्त्री इतनी मुखर कैसे हो गई, क्या इसे मेरी तनिक भी चिंता नहीं है. इस तरह तो यह मुझे धोखा दे रही है. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष से श्रेया की शादी फिक्स हो गई है तो फिर यह क्या है? इसी ऊहापोह में फंसा हुआ वह अपने कमरे में जा कर धड़ाम से बैड पर गिर गया. आज फिर औफिस की छुट्टी हो गई, लेकिन कब तक? आखिर कब तक? वह इसी प्रकार छुट्टी लेता रहेगा. बस, अब कुछ न कुछ फैसला तो करना ही है. वह सोचने पर विवश था.

तभी, श्रेया ने धीरे से परदा हटा कर झांका, ‘‘जीजू, आज शाम की फ्लाइट से मैं मांपापा के पास पुणे वापस जा रही हूं. मैं ने अपना त्यागपत्र कंपनी को भेज दिया है. अब जब अगले माह मेरी शादी हो रही है और मुझे कनाडा चले जाना है तो जौब कैसे करूंगी.’’

अमित मौन था. उस ने श्रेया को यह भी नहीं बताया कि उस के पापा का फोन आया था और वह इन सब बातों से अवगत है. श्रेया अपने कमरे में चली गई पैकिंग करने. अमित बैड पर करवटें बदल रहा था मानो अंगारों पर लोट रहा हो.

दरवाजे की घंटी की आवाज पर अमित ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. ‘‘आ गईं आप? अमित के स्वर में व्यंग्य था, ‘‘बड़ी जल्दी आ गईं, अभी तो रात के 10 ही बजे हैं. इतनी भी क्या जल्दी थी, थोड़ी देर और एंजौय कर लेतीं.’’

‘‘शायद, तुम ठीक कह रहे हो’’, स्वरा ने मुसकरा कर अंदर आते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों की फिक्र लगी थी, भूख लगी होगी, अब खाना क्या बनाऊंगी, कहो तो चीजसैंडविच बना दूं. चाय के साथ खा लेना.’’

‘‘बड़ी मेहरबानी आप की. इतनी भी जहमत उठाने की क्या जरूरत है. श्रेया शाम की फ्लाइट से पुणे वापस चली गई है. तुम्हारे पापा का फोन आया था. मैं ने भी खाना बाहर से और्डर कर के मंगा लिया था. तुम टैंशन न लो. जाओ, सो जाओ,’’ अमित ने कुढ़ते हुए कहा और सोने लगा.

स्वरा मन ही मन हंस रही थी. कैसी मिर्च लगी है जनाब को, कितने दिनों से मैं जो उपेक्षा की शरशय्या पर लोट रही थी, उस का क्या. न तो मैं मूर्ख हूं, न ही अंधी, जो इन दोनों की बढ़ती नजदीकियों को समझ नहीं पा रही थी या देख नहीं पा रही थी.

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अरे, अमित तो पुरुष है भंवरे की प्रवृत्ति वाला, जहां कहीं भी सौंदर्य दिखा, मंडराने लगा. यद्यपि ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि पिछले 2 वर्षों में उस ने कभी भी अपनी बेवफाई का कोई भी परिचय दिया हो, लेकिन श्रेया, वह तो मेरी सगी बहन है, मेरी ही मांजायी. क्या उसे मेरा ही घर मिला था सेंध लगाने को. अमित से निकटता बढ़ाने से पूर्व क्या उसे एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. किसी ने सच ही कहा है, ‘आग और फूस एक साथ रहेंगे तो लपटें तो उठेंगी हीं,’ जिन्हें वह स्पष्ट देख रही थी. उस ने मन ही मन निश्चय ले लिया था कि यह बात अब और आगे नहीं बढ़ने देगी.

सुबह वह थोड़ा निश्ंिचत हो कर  उठी. नहाधो कर नाश्ता लगाया.  ‘‘अमित, श्रेया इतनी जल्दी क्यों चली गई. आज भी तो जा सकती थी,’’ उस ने सामान्य लहजे में कहा.

‘‘तो तुम्हें क्या, तुम अपनी लाइफ एंजौय करो. तुम्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि श्रेया की शादी विशेष के साथ तय हो गई है. जो अगले माह में होगी. तुम्हारे पापा का ही फोन आया था. अरे हां, यह विशेष कहीं वही तो नहीं जिस के साथ तुम घूमफिर रही हो,’’ अमित ने चुभने वाले लहजे में कहा.

अब स्वरा चुप न रह सकी, ‘‘हां,  वही है. बताया तो था हम लोग क्लासमेट थे. तुम मिलना चाहो तो लंच पर बुला लेते हैं. और उस ने फोन लगा दिया. अमित हैरान था. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष वहां आया हुआ है तो फिर ये किस के साथ 2 दिनों से घूमफिर रही थी.’’

स्वरा ने बड़ा ही शानदार लंच बनाया था. सभी कुछ अमित की पसंद का था. पालक पनीर, भरवां करेले, मटर पुलाव, फू्रट सलाद, पाइनऐप्पल रायता और केसरिया खीर. 2 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. अमित ने दरवाजा खोला, सामने उस के मामा की बेटी निधि खड़ी मुसकरा रही थी. वह स्वरा की भी खास सहेली बन गई थी.

‘‘हाय दादा, भाभी कहां हैं?’’

‘‘वह तो किचन में है. उस का कोई दोस्त लंच पर आने वाला है. बस, उसी की तैयारी कर रही है,’’ अमित हड़बड़ा गया था.

‘‘अच्छा, तो भाभी से कहिए उन का दोस्त आ गया है,’’ निधि मुसकरा रही थी.

‘‘क्या? कहां है?’’ अमित का माथा चकरा रहा था.

‘‘आप के सामने ही तो है.’’

‘‘तुम?’’

‘‘सच, भाभी बहुत मजेदार हैं. 2 दिनों से जो मजे वे कर रही थीं, वर्षों से नहीं किए थे.’’

‘पूरे दिनदिन भर साथ रहना, रात में देर से आना,’ अमित उलझन में था. तभी पीछे से हंसती हुई स्वरा ने आ कर अमित के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘हां अमित, ये हम दोनों की मिलीभगत थी,’’ स्वरा के स्वर में मृदु हास्य का पुट था.

‘‘दादा, और श्रेया कहां है, भाभी कह रही थीं आजकल आप उस के साथ घूमफिर व खूब मौजमस्ती कर रहे हैं,’’  निधि के स्वर में तल्खी थी.

‘‘अरे भई, इन्हीं की बहन की आवभगत में लगा था ताकि श्रेया को यह न लगे कि मैं उस की अवहेलना कर रहा हूं. आखिर वह मेरी इकलौती साली है और फिर सौंदर्य किसे आकर्षित नहीं करता. फिर, हमारे बीच दोस्ती ही तो थी,’’ अमित ने सफाई पेश की ताकि वह असल बात को छिपा सके.

‘‘अच्छा, वाह दादा, दोस्ती क्या ऐसी थी कि रात में देरदेर से आते थे. अकसर बाहर ही खापी लेते थे.’’

अब अमित खामोश था. उस की कुछ भी कहनेसुनने की अब हालत नहीं थी. सच ही तो है, जब 2 दिनों से स्वरा उस के बगैर ही एंजौय करती रही, तब वह भी तो जलभुन रहा था और वह तो इतने दिनों से मेरी उपेक्षा की शिकार हो रही थी. जबकि उस के समर्पण में कोई भी कमी न थी. तो स्वरा ने गलत क्या किया?

अकस्मात उस ने स्वरा को अपनी बाहों में उठा लिया और गोलगोल चक्कर काटते हुए हंसतेहंसते बोला, ‘‘भई वाह, तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था. मेरी ओर से तुम्हारा गोल्ड मैडल पक्का.’’

स्वरा भी उस के गले में बाहें डाले झूल रही थी. उस का सिर अमित के सीने पर टिका था. निधि ने दोनों का प्यार देख कर वहां से चली जाना ही उचित समझा. उसे लगा कि दोनों के बीच कुछ था जो अब नहीं है. अब उस के वहां होने का कोई औचित्य भी नहीं था. उस ने राहत की सांस ली और गेट से बाहर आ गई.

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