Crime Story: मीठे रिश्तों की कड़वाहट- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

जवान बेटी ससुराल छोड़ कर बाप की छाती पर मूंग दले, इस से बड़ा कष्ट बाप के लिए और क्या हो सकता है. ऊपर से जब उस के नाजायज रिश्तों की बात पता चले तो उस के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली स्थिति बन जाती है.

सीमा के बाप का धैर्य टूटा तो उस ने बेटी पर लगाम कसनी शुरू की और उस के योग्य कोई लड़का खोजना शुरू कर दिया. इस बीच प्रतिबंध लग जाने से सीमा और नीरज का मिलना कुछ कम हो गया. काफी दौड़धूप के बाद घर वालों ने वर्ष 2019 में सीमा का दूसरा विवाह विशाल यादव के साथ कर दिया. विशाल यादव के पिता कल्लू यादव की मृत्यु हो चुकी थी.

विशाल मिर्जापुर शहर के कटरा थाना अंतर्गत डंगहर मोहल्ले में रहता था और मंजू रिटेलर टायर बरौंधा कचार में काम करता था.

विशाल यादव से विवाह करने के बाद सीमा हंसीखुशी से ससुराल में रहने लगी. यहां उस पर कोई बंधन नहीं था. न घर में सास थी न ससुर. पति भी सीधासादा था. वह पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उसे पूरा कर देता था. क्योंकि वह पत्नी की खुशी में ही अपनी खुशी समझता था. उस की मांग पर उस ने उसे नया मोबाइल फोन भी ला कर दे दिया था.

होना यह चाहिए था कि जब सीमा ने दूसरी शादी कर ली तो नीरज को उस की ससुराल नहीं जाना चाहिए था. लेकिन नीरज नहीं माना. वह शारीरिक सुख पाने के लिए सीमा के घर जाने लगा. सीमा कभी तो उसे लिफ्ट दे देती, तो कभी उसे दुत्कार भी देती. सीमा नाराज हो जाती तो नीरज उसे उपहार दे कर या फिर आर्थिक मदद कर उस की नाराजगी दूर करता.

सीमा के पति विशाल की ड्यूटी रात में रहती थी. उस के जाने के बाद ही नीरज सीमा से मिलने आता था. फिर घंटा, 2 घंटा उस के साथ बिताने के बाद वापस चला जाता था.

पड़ोसियों ने पहले तो गौर नहीं किया, लेकिन जब नीरज अकसर वहां आने लगा तो उन के कान खड़े हो गए. उन्होंने विशाल को हकीकत बताई तो उस के मन में शंका का बीज उपज आया.

विशाल ने इस बाबत सीमा से जवाब तलब किया तो वह उसे बरगलाने की कोशिश करने लगी. विशाल ने सख्ती की तो सीमा ने सच्चाई बयां कर दी और यह कहते हुए माफी मांग ली कि आज के बाद वह नीरज से कोई वास्ता नहीं रखेगी.

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विशाल ने घर टूटने के खौफ से सीमा को माफ कर दिया. इस के बाद सीमा ने सख्त रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया. अब नीरज जब भी उस के घर आता, सीमा उसे दुत्कार कर भगा देती, लेकिन नीरज दुत्कारने के बावजूद सीमा से मिलने पहुंच जाता. वह सीमा को मनाने की भी कोशिश करता.

27 नवंबर, 2020 की रात साढ़े 9 बजे नीरज बनसंवर कर घर से निकला. उस ने अपने भाई धीरज से झूठ बोला कि वह दोस्त के घर जागरण में जा रहा है. घर से निकल कर वह कुछ देर इधरउधर घूमता रहा फिर रात साढ़े 11 बजे डंगहर स्थित सीमा के घर जा पहुंचा. सीमा ने उसे दुत्कारा और घर से निकल जाने को कहा.

लेकिन नीरज नहीं माना. उस ने सीमा को धकेल कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और सीमा से जोरजबरदस्ती करने लगा. सीमा ने विरोध किया तो वह जबरदस्ती उसे अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करने लगा.

सीमा बचाव में हाथपैर चलाने लगी. इसी बीच उस की निगाह छोटे गैस सिलेंडर पर पड़ी. उस ने लपक कर सिलेंडर उठाया और नीरज के सिर पर दे मारा.

नीरज का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने उस का पति विशाल था. वह पति के सीने से लिपट गई और बोली, ‘‘नीरज जबरदस्ती घर में घुस आया था और उसे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था.’’

सीमा की बात सुन कर विशाल का गुस्सा बढ़ गया. उस ने ईंट से उसे पीटना शुरू कर दिया. इस पर नीरज चीखने लगा और माफी मांगने लगा.

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बुरी तरह पीटने के बाद विशाल ने नीरज को घर के बाहर धकेल दिया. नीरज घायल अवस्था में कुछ दूर तक गया फिर मीना किन्नर के घर के सामने गिर पड़ा. रात भर ठंड में वह वहीं पड़ा रहा. सुबह कुछ लोग घर से टहलने निकले तो उन्होंने नीरज को गंभीर हालत में देखा.

उधर से गुजरने वाले एक व्यक्ति को अपने घर का पता देते हुए उस ने खबर देने का अनुरोध किया. जब उस व्यक्ति ने नीरज के घर खबर की तो उस का भाई धीरज आया. धीरज ने उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विशाल यादव और सीमा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 29 नवंबर, 2020 को दोनों अभियुक्तों को मिर्जापुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सीमा नाम परिवर्तित है.

Crime: जब सेवक “किडनैपर” बन जाए!

आमतौर पर किसी आम व्यक्ति की सेवाएं लेना जीवन को सहज बनाने के लिए एक जरूरी आवश्यकता होती है. घर हो या दफ्तर अथवा कोई दुकान किसी न किसी  शख्स की सेवाएं तो लेनी पड़ती है. यह सेवा हमारे काम को सहज बनाने में मददगार होती है.

मगर आपके यहां काम करते हुए अगर “सेवक” यानी सर्वेंट से मनमुटाव हो और उसे आप काम से अलग कर दें तो यह कोई बड़ी गंभीर घटना नहीं मानी जाती. छत्तीसगढ़ से जिला रायगढ़ में एक शख्स ऊपर यह घटना मानो एक आफत बनकर गिर पड़ी. उसके मासूम बालक‌ का अपहरण का शिकार हो गया.

छ:  साल के मासूम शिवांश के अपहरणकर्ताओं के इरादे  खतरनाक थे. अगवा करने के बाद बच्चे को छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड के खूंखार “किडनैपर्स गैंग” के हवाले कर 25 लाख फिरौती वसूली की योजना बन गई थी, लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने रास्ते में ही अपहर्ताओं को धर दबोचा.

यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किडनैपिंग का मास्टर माइंड एक रसोईया खिलावन महंत है, जो पेशेवर रसोईया है और  हाल तक शिवांश के घर  ही खाना बनाने का काम किया करता था. यही रह उसने घर परिवार को देखा और घुलमिल गया, मगर जब परिस्थितियां बदली तो उसके तेवर भी बदल गए.

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जब “सेवक राम” को हटा दिया गया…

जब हम किसी सर्वेंट और घरेलू नौकर की बात करते हैं तो अनेक चित्र हमारे सामने खींचे जाते हैं.

फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी की मशहूर फिल्म “बावर्ची” का रसोईया राजेश खन्ना का चरित्र जो कि एक आदर्श प्रस्तुत करता हमें दिखाई देता है.

इसी तरह फिल्म राजेश खन्ना की फिल्म “अवतार” में सचिन का चरित्र जो अपने मालिक के लिए अपने खून तक बेचने पहुंच जाता है.

ऐसे में जीवन की सच्चाई खुलकर सामने आ जाती है, जब कोई सेवक कानून और अपनी मर्यादाओं को तोड़ कर छोटे बड़े  किसी लालच अथवा क्रोध में आकर बदला लेने पर उतारू हो जाता है.

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला के खरसिया में मासूम  शिवांश के पिता राहुल अग्रवाल ने काम नहीं होने का हवाला देकर जब  रसोईया खिलावन को रूखसत कर दिया और खिलावन का बकाया पैसा भी दे दिया . इसके दो दिन पश्चात 20 फरवरी 21 को खिलावन फिर  राहुल अग्रवाल के घर मोबाइल चार्जर लेने के बहाने से पहुंचा और चिप्स खिलाने के बहाने से  शिवांश को लेकर शाम करीब साढे 5 बजे बाइक से फरार हो गया. काफी देर बाद खोजबीन पर भी जब शिवांश का पता नहीं चला तो परिजनों ने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करायी.

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सीसीटीवी में आरोपी हुआ कैद

घटना की सूचना पर पुलिस अधीक्षक तुरंत खरसिया चौकी पहुंचे. वहीं  साइबर टीम  संदेही के संभावित आरोपी की पड़ताल में जुट गयी. इसी बीच बिलासपुर पुलिस महानिरीक्षक रतनलाल डांगी भी मौके पर पहुंच गये. इसी दरम्यान शातिर आरोपीगण पुलिस की नाकेबंदी के रास्तों को जानते हुए मुख्य मार्ग को छोड़ते हुए पहाड़ी व अंदरूनी रास्तों का प्रयोग करते बम्हनीनडीह- नंदेली- तारापुर अमलीभौना होते हुए रायगढ़ की सीमा पार करने की जानकारी मिली. जबकि खरसिया में संदेही अपने परिचितों को बिहार जाने की बात बताई थी ताकि पुलिस भ्रमित होकर बिहार की ओर टीम रवाना करें.  यही नहीं संदेही खिलावन महंत बालक को घर से मोटरसाइकिल में बिठा कर ले गया था.

सीसीटीवी फुटेज में भी वह बाइक में दिखा परन्तु अपने साथियों के साथ अपनी पूर्व प्लानिंग अनुसार खिलावन महंत पुलिस को चकमा देने बाइक से निकला और रास्ते में बाइक छोड़ अपने दो साथी अमर दास महंत व संजय सिदार (ड्राइवर) जो किराये की अर्टिगा कार के साथ रास्ते में उसका इंतजार कर रहे थे, उनसे मिला. अब तीनों आरोपी बालक को कार में बिठाकर झारखंड रवाना हुये, वे इस घटना में अपने को सुरक्षित रखने झारखंड के पेशेवर अपहरण गिरोह को सौंपने के लिये सम्पर्क कर रहे थे. उसके बाद आरोपियों की योजना  बालक के पिता से 25 लाख रूपये की डिमांड करने की थी. मगर पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था में अंतर अपहरणकर्ता गिरफ्तार हुए और जेल की सीखचों में पहुंच गए हैं.

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Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया जनाब. आप को इस बात का पता तो चला कि मैं आप का कितना खयाल रखती हूं. मैं तो अभी तक यही सोचती थी कि न जाने कब आप को पता चलेगा और कब मैं अपने दिल का हाल बयां कर पाऊंगी.’’ कह कर सोनू ने अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘क्या मतलब…’’ आशीष ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘अब इतने भी अंजान नहीं हो तुम कि इस का क्या मतलब ही न जानते हो. जो मैं तुम्हारा हर समय हरदम खयाल रखती हूं, वह भी एक पत्नी की तरह, तो क्यों रखती हूं.’’

‘‘तो तुम ही खुल कर बता दो कि तुम्हें मेरा इतना खयाल क्यों है.’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम को पसंद करती हूं तुम से प्यार करती हूं, इसीलिए मुझे तुम्हारा इतना खयाल रहता है. मुझे तुम्हारा साथ पसंद है इसीलिए हमेशा तुम्हारे पास ही बनी रहती हूं, लेकिन तुम हो कि मेरे जज्बातों की फिक्र ही नहीं है.’’ सोनू ने यह कह कर एक बार फिर अपनी नजरें झुका लीं और मायूसी का लबादा ओढ़ लिया.

आशीष उस की बात पर मंदमंद मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं जानता था लेकिन जानबूझ कर अंजान बना था. तुम्हारे इतना सब करने पर कोई मूर्ख व्यक्ति भी समझ जाएगा कि तुम्हारे दिल में क्या है तो मैं तो पढ़ालिखा हूं. तुम्हारी जुबां से सुनना चाहता था, इसलिए अंजान बनने का नाटक कर रहा था.’’

यह सुनते ही सोनू की खुशी का पारावार न रहा, ‘‘मतलब मुझे इतने दिनों से बना रहे थे कि कुछ नहीं जानते हो. मुझे बता तो देते मैं तो वैसे भी तुम पर वारी जा रही थी.’’ कह कर सोनू आशीष के सीने से लग गई. उस की आंखों में अपनी जीत की खुशी चमक रही थी.

‘‘तुम पत्नी जैसे सब काम कर रही थीं लेकिन एक काम छोड़ कर…’’ शरारती अंदाज में तिरछी नजरों से आशीष ने सोनू को देख कर कहा.

सोनू ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर दे कर सोचा, फिर अगले ही पल आशीष की बात का मतलब समझते ही वह शरमा गई और उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया.

आशीष और सोनू के बीच उम्र में 18 साल का अंतर था. सोनू 27 साल की थी तो आशीष 45 वर्ष का. सोनू आशीष के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अपने नाम के आगे शुक्ला लगाने लगी. जिस से भी मिलती, बातें करती तो अपने आप को आशीष की पत्नी ही बताती.

समय के साथ ब्याहता राखी को पता चल गया कि उस का पति आशीष सोनू नाम की किसी महिला के साथ रह रहा है. पति आशीष से राखी ने बात की तो उस ने कह दिया कि जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है. काम के सिलसिले में वह उस के पास रह रही है.

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आशीष के साथ रहते सोनू उसे अपने वश में करने की पूरी कोशिश करती थी. मसलन किसी भी कागज/दस्तावेज में पत्नी के नाम की जगह आशीष उस का ही नाम डाले. कोई संपत्ति खरीदे तो उस के नाम से ही खरीदे. इस के लिए वह आशीष पर दबाव बनाती थी. आशीष उस की बात को नजरअंदाज कर देता था.

सोनू के कहने पर ऐसा वह कर भी नहीं सकता था. लेकिन आशीष को अपनी बात न मानते देख कर सोनू नाराज हो जाती थी. अब उन दोनों में अकसर विवाद होने लगा. सोनू अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. आशीष से उस ने जिस वजह से रिश्ता बनाया, वह वजह उसे पूरी होती नहीं दिख रही थी.

आशीष का एक दोस्त था 23 वर्षीय आनंद तिवारी. आनंद अकबरपुर थाना क्षेत्र के सिंहमई कारीरात गांव में रहता था. उस के पिता रमेश तिवारी किसान थे. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था और अविवाहित था.

आनंद तिवारी आशीष से मिलने उस के कमरे पर आता रहता था. आनंद भी काफी स्मार्ट और जवान था. सोनू से 4 साल छोटा था. आशीष तो दोनों से उम्र में काफी बड़ा था. आनंद से कुछ छिपा नहीं था, वह जानता था कि सोनू आशीष की पत्नी नहीं है, उसे केवल अपने पास रखे हुए है. उस से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. ऐसे में वह भी सोनू के नजदीक आने की जुगत में लग गया.

सोनू आशीष के द्वारा बात न मानने पर तनाव में रहती थी. ऐसे में आनंद उस के पास आता, उस से बातें करता, बातों के दौरान ही हलकाफुलका मजाक भी कर देता तो सोनू का मन बहल जाता. कुछ समय के लिए वह अपना सारा तनाव भूल जाती थी.

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सोनू भी उस से घुलनेमिलने लगी. दोनों एकदूसरे की चाहत को अपने प्रति समझ रहे थे. चाहत दिल में पैदा हुई तो अधिक समय साथ बिताने लगे.

एक दिन आनंद आया तो सोनू चाय बनाने लगी. आनंद को शरारत सूझी तो वह चुपके से सोनू के पीछे पहुंच गया और अचानक चिल्ला दिया. सोनू हड़बड़ा गई. हड़बड़ाहट में वह पीछे मुड़ी तो आनंद को खडे़ पाया, वह मुसकरा रहा था.

अगले भाग में पढ़ें- आशीष की हत्या क्यों हुई

Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नवंबर 2020 माह की 28 तारीख थी. जनपद अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर किसी अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी. सुबहसवेरे घाट पर पहुंचे लोगों ने लाश देखी तो कुछ देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना मालीपुर थाने में फोन कर के दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश पौलिथिन में लिपटी हुई थी. मृतक की उम्र लगभग 43-44 साल थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए जाने के निशान मौजूद थे. आसपास का निरीक्षण करने पर कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. अनुमान लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां फेंकी गई है. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी वर्मा ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की है.

थाने आ कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने जिले के समस्त थानों में दर्ज गुमशुदगी के बारे में पता किया तो अकबरपुर थाने में 45 वर्षीय आशीष शुक्ला नाम के व्यक्ति की गुमशुदगी दर्ज होने की बात पता चली. गुमशुदगी आशीष के साथ लिवइन में रहने वाली सोनू नाम की युवती ने दर्ज कराई थी. सोनू को बुला कर लाश की शिनाख्त कराई गई तो उस ने उस की शिनाख्त आशीष के रूप में की.

सोनू ने पूछताछ में बताया कि एक दिन पहले देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद आशीष घर से चले गए थे. आज उन की लाश मिली.

पता चला कि आशीष लखीमपुर जिले की कोतवाली सदर अंतर्गत कनौजिया कालोनी में रहता था. आशीष अंबेडकरनगर में अमीन पद पर कार्यरत था और कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. उस के साथ उस की कथित पत्नी सोनू शुक्ला रहती थी.

लखीमपुर में आशीष की पत्नी राखी और बच्चे रहते थे. राखी को पति की लाश मिलने की सूचना मिली तो वह तुरंत अंबेडकरनगर पहुंच गई. मालीपुर थाने में उस ने दी तहरीर में पति की हत्या का आरोप सोनू शुक्ला और उस के 3 साथियों विवेक, विकास पर लगाया.

राखी की तहरीर के आधार पर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने सोनू और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

30 नवंबर को थानाप्रभारी ने सोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती करने पर वह टूट गई और आशीष की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि आशीष की हत्या में उस के प्रेमी आनंद तिवारी, उस के साथी मूलसजीवन पांडेय और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू ने साथ दिया था.

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पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन आनंद और मूल सजीवन को गिरफ्तार कर लिया गया.  उन सभी से पूछताछ के बाद आशीष की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

आशीष शुक्ला लखीमपुर खीरी क्षेत्र में एलआरपी रोड पर स्थित कनौजिया कालोनी में रहते थे. 18 वर्ष पहले उन का विवाह राखी से हुआ था. राखी काफी सरल स्वभाव की थी. उस ने आते ही आशीष की जिंदगी को महका दिया था.

आशीष भी सरल स्वभाव की राखी को हमसफर के रूप में पा कर काफी खुश हुआ. कालांतर में राखी ने एक बेटे आयुष (17 वर्ष) और बेटी अर्चिता (12 वर्ष) को जन्म दे दिया. आयुष के जन्म के बाद 2006 में आशीष की नौकरी अमीन के पद पर लग गई. वह अंबेडकरनगर में ही कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, कभीकभी तभी अचानक से जिंदगी में ऐसा खतरनाक मोड़ आ जाता है कि इंसान न संभले तो सब कुछ तहसनहस हो जाता है.

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आशीष की जिंदगी में भी सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उस की जिंदगी दूसरे रास्ते पर चल पड़ी. वह रास्ता उस के और उस के परिवार के लिए कितना खतरनाक होने वाला था, आशीष को इस का बिलकुल आभास नहीं था.

अंबेडकरनगर में काम के दौरान उस की मुलाकात सोनू नाम की युवती से हुई. 27 वर्षीय सोनू इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र के बड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता विजय कुमार तिवारी की मृत्यु हो चुकी थी.

सोनू 2 भाई व 3 बहनें थीं. सोनू काफी महत्त्वाकांक्षी थी. पिता के न रहने पर उस के विवाह होने में भी अड़चन आ रही थी. इसलिए उस ने अपने लिए खुद ही अच्छा हमसफर तलाश करने की ठान ली.

इसी तलाश ने उसे आशीष शुक्ला तक पहुंचा दिया. आशीष एक तो सरकारी नौकरी करता था, साथ ही काफी स्मार्ट भी था. सोनू ने उस की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. सोनू ने आशीष के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली. उसे यह भी पता था कि आशीष शादीशुदा है और 2 बच्चों का पिता है. लेकिन सोनू के लिए अच्छी बात यह थी कि उस की पत्नी और बच्चे लखीमपुर में रहते थे.

आशीष को सोनू ने अपने रूपजाल में फांसना शुरू कर दिया. आशीष के साथ वह अधिक से अधिक समय बिताने लगी. उस के लिए खाना बना देती. घर में बना उस के हाथ का खाना खा कर आशीष को बड़ा अच्छा लगता था. वैसे आशीष कभी खुद खाना बना लेता था या होटल पर खा लेता था.

सोनू अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी मर्द के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. भरपेट मनपसंद खाना मिलता तो आशीष सोनू की जम कर तारीफ करता. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे.

आशीष अपनी पत्नी राखी को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन सोनू का साथ पा कर वह दिल के हाथों ऐसा मजबूर हुआ कि वह अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी जिंदगी को दूसरे रास्ते पर ले गया. उस रास्ते पर सोनू बांहें फैलाए उस का इंतजार कर रही थी.

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अब सोनू हर दूसरेतीसरे दिन आशीष के कमरे पर ही रुकने लगी. रुकती तो खाना बनाने के साथ ही बाकी काम भी वह कर देती थी. सोनू उस के साथ ऐसा व्यवहार करती जैसे उस की पत्नी हो. आशीष को यह सब काफी अच्छा लगता.

एक रात जब दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो आशीष ने उस से कह दिया, ‘‘सोनू तुम मेरा बहुत खयाल रखती हो. इतना खयाल तो सिर्फ पत्नी ही रख सकती है. तुम मेरी पत्नी न होते हुए भी पत्नी जैसा खयाल रख रही हो.’’

अगले भाग में पढ़ें- राखी को पता चल गया कि उस का पति किसी महिला के साथ रह रहा है

Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

सोनू उस की शरारत समझ गई. वह उसे मारने दौड़ी तो वह वापस हुआ तो आगे पलंग था. वह उस से टकराने से बचने के लिए रुका तो पीछे भागी सोनू उस से टकरा गई. दोनों आपस में टकराए तो एक साथ पलंग पर गिर गए. दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकरा रही थी तो दिल भी आपस में मिल गए. उस समय दोनों के दिल की धड़कनें काफी तेज थीं.

तन सटे होने के कारण एकदूसरे के दिल की तेज धड़कनों को दोनों ही महसूस कर रहे थे. दोनों जुबां से तो कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. आनंद सोनू को इतने नजदीक पा कर खुशी से भर उठा और बेसाख्ता बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू, सोनू.’’

आनंद के इन मीठे बोलों ने सोनू के कानों को सुखद अनुभूति कराई. उस ने आंखें बंद कीं तो होंठ थिरक उठे, ‘‘आई लव यू टू आनंद.’’

इस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. सोनू को आनंद के साथ आनंद का सुखद एहसास हुआ.

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उस दिन के बाद उन के बीच संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. अब सोनू आनंद के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि आशीष से अब उसे किसी प्रकार की उम्मीद

नहीं रह गई थी. लेकिन आशीष की सरकारी नौकरी और संपत्ति का लालच उसे जरूर था.

आनंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए उसे आशीष की नौकरी और संपत्ति की जरूरत थी. वैसे भी इन चीजों को पाने के लिए सोनू ने काफी प्रयास किया था और समय भी बर्बाद किया था. वह ऐसे आसानी से सब छोड़ नहीं छोड़ सकती थी.

इसलिए उस ने आनंद से बात की तो आनंद के मन में भी लालच पैदा हो गया. सरकारी नौकरी और संपत्ति तभी हाथ लग सकती थी, जब आशीष जिंदा न रहे. इसलिए दोनों ने आशीष की हत्या करने का फैसला कर लिया.

आशीष की हत्या में साथ देने के लिए आनंद तिवारी ने अपने 2 साथियों मूलसजीवन पांडेय निवासी गांव गंगापुर भुलिया जिला सुलतानपुर और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू निवासी गांव भारीडीहा अंबेडकरनगर को तैयार कर लिया. मूलसजीवन और राजू दोनों ही अकबरपुर के आरडी लौज में काम करते थे और इस समय वहीं रह रहे थे.

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27 नवंबर की रात 11 बजे के करीब सोनू और आशीष का विवाद हुआ. विवाद के बाद आशीष सो गया. सोनू ने आनंद को उस के साथियों के साथ बुला लिया. आनंद अपनी बजाज पल्सर बाइक से दोनों साथियों को ले कर आशीष के कमरे पर पहुंचा.

उन लोगों को आया देख कर सोनू ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. तीनों अंदर आ गए. सोते समय आशीष के गले पर तेज धारदार चाकू व कैंची से कई प्रहार किए गए. आशीष चीख भी न सका और उस की सांसों की डोर टूट गई.

आशीष को मारने के बाद उन्होंने उस की लाश एक पौलिथिन में लपेट कर उस की ही हुंडई इयान इरा कार में डाल दी और उसे मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर फेंक आए. आने के बाद कार सुलतानपुर के दोस्तपुर थाना क्षेत्र में लावारिस हालत में छोड़ दी.

अगले दिन सोनू ने अकबरपुर थाने जा कर आशीष की गुमशुदगी लिखाई. लेकिन चारों का गुनाह छिप न सका. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कैंची, 5 मोबाइल फोन, पल्सर बाइक और आशीष की इयान कार बरामद कर ली.

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कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने चौथे अभियुक्त राजीव तिवारी उर्फ राजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 दिन की दुल्हन: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

10 दिसंबर, 2020 को आरजू अमनदीप गुप्ता की दुलहन बन कर ससुराल कानपुर आ गई. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की सराहना की. सुंदर व गुणवान पत्नी पा कर अमनदीप जहां खुश था, वहीं अच्छा घरवर पा कर आरजू भी खुश थी. सुंदर व सुशील बहू मिलने से सास पिंकी व ससुर आर.सी. गुप्ता भी फूले नहीं समा रहे थे. वह आरजू को बेटी की तरह स्नेह करते थे.

आर.सी. गुप्ता की बेटी का नाम भी आरजू था और बहू का भी. अब घर में 2 आरजू थीं. अत: उन्होंने दोनो को नंबर अलाट कर दिए थे. बहू को वह आरजू फर्स्ट कह कर बुलाते थे और बेटी को आरजू सेकेंड.

आर.सी. गुप्ता के घर किसी चीज की कमी न थी, सो आरजू हर तरह से खुश थी. मोबाइल फोन पर बतियाने का भी किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध न तो पति की तरफ से था और न ही सासससुर की तरफ से. अत: आरजू दिन में कई बार अपनी मां अर्चना से मोबाइल फोन पर बतियाती थी और उन्हें बताती थी कि वह ससुराल में हर तरह से खुश है.

आरजू ने अपने परिवार का एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया था, जिस में वह अकसर फोटो शेयर करती थी. आरजू की अपनी ननद आरजू गुप्ता से भी खूब पटती थी. ननदभौजाई सहेली जैसी थीं. खूब हंसतीबोलती थीं. हंसीमजाक में खूब ठहाके लगते थे. आरजू के सरल स्वभाव तथा मृदुल व्यवहार से पड़ोसी भी प्रभावित थे. वह अकसर पिंकी से उस की बहू की तारीफ करते थे. पिंकी बहू की तारीफ सुन कर गदगद हो उठती थी. लेकिन यह खुशी शायद प्रकृति को मंजूर नहीं थी. फिर तो जो हुआ, शायद उस की उम्मीद किसी को नहीं थी.

25 दिसंबर, 2020 की सुबह 9 बजे आरजू नींद से जागी. उस के बाद उस ने मोबाइल पर अपनी मां अर्चना से बात की और बताया कि वह फ्रैश होने बाथरूम जा रही है. अमनदीप उस समय कमरे में ही था. उस के बाद क्या कुछ हुआ, किसी को पता नहीं. पिंकी और उस की बेटी रसोईघर में थीं और आर.सी. गुप्ता ड्यूटी पर जा चुके थे.

कुछ देर बाद नौकरानी रज्जो साफसफाई के लिए कमरे में आई. वह पानी लेने के लिए बाथरूम की तरफ गई. उस ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो बहू आरजू बाथरूम के गीले फर्श पर गिरी पड़ी थी. उस ने उसे हिलायाडुलाया. जब कोई हरकत नहीं हुई तो वह चीख पड़ी.

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उस की चीख सुन कर अमनदीप, उस की मां पिंकी व बहन आरजू आ गई. उस के बाद तो माही वाटिका अपार्टमेंट में सनसनी फैल गई. सूचना पा कर आर.सी. गुप्ता भी आ गए.

इस के बाद अमनदीप व आर.सी. गुप्ता पड़ोसियों के सहयोग से आरजू को कार से मधुलोक अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही जवाब दे दिया. उस के बाद आरजू को कार्डियोलौजी तथा रीजेंसी अस्पताल लाया गया. लेकिन यहां भी डाक्टरों ने हाथ खड़े कर लिए.

फिर आरजू को हैलट अस्पताल लाया गया. जहां डाक्टरों ने उस का परीक्षण किया और आरजू को मृत घोषित कर दिया. शव को घर लाया गया और थाना नौबस्ता पुलिस को आरजू की मौत की सूचना दी गई.

इधर सुबह 11 बजे अमनदीप की बहन आरजू ने नीरज कटारे के बड़े बेटे अमन कटारे से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि आरजू भाभी बाथरूम में फिसल गई हैं. आप लोग तुरंत आ जाइए.

अमन को कुछ संदेह हुआ तो उस ने दबाव डाल कर पूछा. इस पर उस ने कभी बाथरूम में फिसल कर तो कभी गीजर से करंट लगने की बात बताई. अमन को लगा कि दाल में कुछ काला जरूर है. बहन की जिंदगी खतरे में हो सकती है. अत: उस ने सारी बात अपने मांबाप को बताई. उस के बाद तो परिवार में सनसनी फैल गई.

नीरज कटारे ने देर करना उचित नहीं समझा. उन्होंने फोन पर जानकारी दे कर अपने खास रिश्तेदारों को बुलवा लिया. फिर अपने बेटे अमन, अनंत, पत्नी अर्चना तथा 20-25 रिश्तेदारों को साथ ले कर निजी वाहनों से कानपुर के लिए निकल पड़े.

रात लगभग डेढ़ बजे नीरज कटारे कानपुर स्थित बेटी की ससुराल माही वाटिका पहुंचे. वहां बेटी का शव देख कर फफक पड़े. अर्चना बेटी के शव से लिपट कर फफक पड़ी. अमन व अनंत भी बहन का शव देख कर बिलख पड़े.

रिश्तेदारों ने उन सब को सांत्वना दे कर किसी तरह से शव से अलग किया. ससुरालीजनों से नीरज कटारे ने जब बेटी की मौत का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आरजू बाथरूम में फिसल कर गिर पड़ी थी, जिस से उस की मौत हो गई. उस की जिंदगी बचाने के लिए वह उसे हर बड़े अस्पताल ले गए. लेकिन बचा नहीं पाए.

इधर आरजू की मौत की सूचना पा कर थाना नौबस्ता प्रभारी इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ आ गए. चूंकि मौत का यह मामला एक धनाढ्य परिवार की बहू का था, अत: सिंह ने सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा डीएसपी विकास कुमार पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल व शव का निरीक्षण किया तथा मृतका के पति अमनदीप, सास पिंकी, ससुर आर.सी. गुप्ता तथा मृतका की ननद आरजू से घटना के संबंध में पूछताछ की.

ससुरालीजनों ने बताया कि आरजू की मौत बाथरूम में फिसल कर गिरने से हुई है. पुलिस अधिकारियों ने मृतका के मातापिता से भी जानकारी हासिल की. चूंकि मायके वालों ने अभी तक ससुरालीजनों पर कोई सीधा आरोप नहीं लगाया था, अत: उन्होंने शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने का आदेश दिया.

अधिकारियों के जाने के बाद दरोगा अशोक कुमार ने मृतका आरजू का शव पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल कानपुर भेज दिया. लेकिन यहां दरोगा अशोक कुमार से चूक हो गई. दरअसल नियम के मुताबिक किसी विवाहित युवती की शादी के 7 साल के भीतर संदिग्ध मौत हो जाती है तो उस का पंचनामा मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में भरा जाता है और मजिस्ट्रैट ही पंचनामा पर हस्ताक्षर करता है.

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इस चूक के कारण पोस्टमार्टम हाउस के डाक्टरों ने शव का पोस्टमार्टम नहीं किया. कागज दुरुस्त होने के बाद ही उन्होंने पोस्टमार्टम किया और रिपोर्ट नौबस्ता के पुलिस को सौंप दी.

प्रभारी इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह ने जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. क्योंकि आरजू की मौत हादसा नहीं हत्या थी. उस का मुंह और नाक दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आरजू के माथे, गाल, कंधे पर चोट के निशान पाए गए. आंखों में खून उतर आने से लालपन था. इस से ऐसा प्रतीत होता था कि आरजू का मुंह किसी चीज से ढंक कर जोर से दबाया गया. इस से उस के होंठ अंदरबाहर फट गए और आंखोें में खून उतर आया. माथे, कंधे और गाल पर जख्म से माना गया कि उस ने मौत से पहले काफी संघर्ष किया था. दम घुटने से उस के फेफड़ों का वजन भी बढ़ गया था. रिपोर्ट के अनुसार आरजू की मौत दम घुटने से हुई थी.

आरजू की हत्या की खबर जब समाचार पत्रों में छपी तो कानपुर शहर में सनसनी फैल गई. आरजू के मायके वालों का भी गुस्सा फट पड़ा. उन्होंने माही वाटिका अपार्टमेंट जा कर आर.सी. गुप्ता के घर धावा बोल दिया. उन्होंने उन को खूब खरीखोटी सुनाई और दहेज के लिए बेटी को मार डालने का आरोप लगाया.

अपार्टमेंट में झगड़े की खबर पा कर पुलिस पहुंच गई और इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह ने अमनदीप व उस के पिता आर.सी. गुप्ता को हिरासत में ले लिया तथा थाना नौबस्ता ले आए.

अगले भाग में पढ़ें- फोरैंसिक टीम ने जांच में आरजू की मौत को हादसे में उलझा दिया

17 दिन की दुल्हन: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

मध्य प्रदेश का एक चर्चित शहर है शहडोल. इसी शहर में नीरज कटारे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा 2 बेटे अमन, अनंत तथा एक बेटी आरजू थी. नीरज कटारे ईंट कारोबारी थे. शहर में उन का आलीशान मकान था और उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. शहर के व्यापारियों में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. वह गहोई समाज से ताल्लुक रखते थे.

नीरज की बेटी आरजू 2 भाइयों के बीच एकलौती बहन थी, सो घरपरिवार सभी की दुलारी थी. अर्चना व नीरज आरजू को बेहद प्यार करते थे और उस की हर ख्वाहिश पूरी करते थे.

आरजू बचपन से ही खूबसूरत थी. जब उस ने युवावस्था में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने अपनी मेहनत और लगन से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली थी और सौफ्टवेयर इंजीनियर के तौैर पर बेंगलुरु की एक निजी कंपनी में जौब करने  लगी थी.

हालांकि नीरज कटारे धनवान व्यापारी थे, आरजू को नौकरी की आवश्यकता नहीं थी, वह उसे अपने से दूर भी नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन बेटी की इच्छा का सम्मान करते हुए, उन्होंने आरजू को बेंगलुरुमें जौब करने की इजाजत दे दी थी.

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आरजू जब जौब करने लगी, तब नीरज कटारे को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह अपनी लाडली बेटी की शादी ऐसे घर में करना चाहते थे, जो संपन्न हो. घर में किसी चीज का अभाव न हो तथा लड़का भी आरजू के योग्य हो.

उन्होंने आरजू के लिए योग्य लड़के की तलाश शुरू की तो उन्हें अमनदीप पसंद आ गया. अमनदीप के पिता आर.सी. गुप्ता कानपुर शहर के नौबस्ता थानांतर्गत केशव नगर में माही वाटिका अपार्टमेंट में रहते थे. परिवार में पत्नी पिंकी गुप्ता के अलावा बेटा अमनदीप तथा बेटी आरजू थी.

अमनदीप सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बेंगलुरु स्थित जिस कंपनी में आरजू इंजीनियर थी, उसी कंपनी में अमनदीप भी सौफ्टवेयर इंजीनियर था.

आर.सी. गुप्ता रेलवे में लोको पायलट थे. बेटा अमनदीप भी अच्छा कमाता था. अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. परिवार भी छोटा था और वह गहोई समाज से भी जुड़े थे. इसलिए आर.सी. गुप्ता का बेटा अमनदीप उन्हें पसंद आ गया था. अमन की पसंद का एक कारण और भी था, वह यह कि नीरज कटारे के परिवार की एक बेटी कानपुर में आर.सी. गुप्ता के परिवार में ब्याही थी. वह सुखी व संपन्न थी. इसलिए भी उन्होंने अमनदीप को पसंद कर लिया था.

रिश्ते की बात के समय दोनों पक्षों में तय हुआ कि रिश्ता फाइनल तब माना जाएगा जब लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद कर लेंगे. इस के लिए निश्चित दिन अमनदीप अपने परिवार के साथ शहडोल गया और आरजू तथा उस के घरवालों से मुलाकात की. आरजू व अमनदीप ने एकदूसरे को देखा और आपस में बातचीत की. दोनों शादी को राजी हो गए.

नीरज कटारे आरजू की शादी जल्द करना चाहते थे. लेकिन मार्च 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देश में तालाबंदी हो गई, जिस से सारी गतिविधियां ठप्प हो गईं. तालाबंदी के बाद अमनदीप बेंगलुरु से कानपुर आ गया और घर से ही कंपनी का काम करने लगा. लेकिन आरजू ने शादी तय होने के बाद नौकरी छोड़ दी और शहडोल आ गई. वह परिवार के साथ हंसीखुशी से रहने लगी.

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5 महीने बाद जब लौकडाउन में ढील मिली और शादी तथा अन्य समारोह में सशर्त छूट मिली तब नीरज कटारे ने आरजू के रिश्ते की तारीख तय की और शादी की तैयारी में जुट गए. 8 दिसंबर, 2020 को उन्होंने अपनी लाडली बेटी का ब्याह अमनदीप के साथ धूमधाम से कर दिया. शादी में उन्होंने लगभग 28 लाख रुपया खर्च किया और हर वह सामान दहेज में दिया था, जिस की इच्छा लड़के व उस के घरवालों ने जताई थी.

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17 दिन की दुल्हन: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

चूंकि मृतका के मातापिता अब दहेज हत्या का आरोप लगा रहे थे और रिपोर्ट दर्ज करने की मांग कर रहे थे. अत: थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने मृतका के पिता नीरज कटारे की तरफ से भादंवि की धारा 498ए/304बी के तहत ससुरालीजनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. अधिकारियों का आदेश था कि दोषियों को छोड़ा न जाए और निर्दोष को जेल न भेजा जाए.

दामाद की गिरफ्तारी के बाद अर्चना अपने पति नीरज कटारे के साथ थाना नौबस्ता पहुंचीं. वह रोते हुए कह रही थीं कि शादी में 28 लाख रुपया खर्च किया था. लेकिन लाल जोड़े में बेटी को 18 दिन भी न देख पाई. वह हवालात में बंद दामाद अमनदीप से एक ही बात पूछ रही थी कि उन की बेटी से कौन सी गलती हो गई जो उसे मार डाला. अगर दहेज की बात थी तो बताते, हम तुम सब लोगों को नोटों से तौल देते और अपनी बेटी की जान बचा लेते.

आरजू की हत्या की जांच सीओ (गोविंद नगर) विकास पांडेय को सौंपी गई थी. उन्होंने सब से पहले मृतका के पति अमनदीप से पूछताछ की. अमनदीप ने बताया कि उस ने अपनी मरजी से आरजू से शादी की थी. वह 38 लाख रुपया सालाना पैकेज पर कंपनी में काम कर रहा था. उस ने आरजू की हत्या नहीं की. दहेज की कोई मांग भी नहीं की थी.

इस पर थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि अगर उस ने आरजू की हत्या नहीं की तो किस ने की, उसी का नाम बता दो. इस पर वह चुप्पी साध गया. बारबार कुरेदने पर भी कुछ जवाब नहीं दिया. उस से कई राउंड पूछताछ की गई, लेकिन उस का एक ही जवाब था, उस ने आरजू की हत्या नहीं की.

सीओ विकास कुमार पांडेय ने मृतका की सास पिंकी, ससुर आर.सी. गुप्ता, ननद आरजू गुप्ता तथा नौकरानी रज्जो से पूछताछ की तथा उन सब के बयान दर्ज किए. सभी ने एक स्वर से हत्या के संबंध में अनभिज्ञता जताई और आरजू की मौत को हादसा बताया.

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पूछताछ के बाद बाकी लोगों को तो थाने से जाने दिया गया. लेकिन संदेह के आधार पर मृतका के पति अमनदीप गुप्ता को दहेज हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

आरजू की मौत के बाद पुलिस ने घटनास्थल को सील कर दिया था. अत: 28 दिसंबर की सुबह 11 बजे फोरैंसिक टीम एसपी (साउथ) दीपक भूकर, सीओ विकास कुमार पांडेय तथा नौबस्ता थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह के साथ माही वाटिका अपार्टमेंट स्थित अमनदीप के फ्लैट पर पहुंची और बाथरूम तथा कमरे की जांच शुरू की. आरजू के कमरे को खंगालने पर टीम को टूटी चूडि़यां, बाल तथा चप्पलें मिलीं.

इस सामान को टीम ने सुरक्षित कर लिया. टीम ने बाथरूम चैक किया तो टीम को गीजर से गैस लीकेज होने के सबूत मिले. इस के अलावा जांच से पता चला कि बाथरूम का दरवाजा बंद करने के बाद वह स्थान क्लोज चैंबर बन जाता है यानी बाथरूम से हवा बाहर निकलने का कोई स्थान नहीं मिला.

फोरैंसिक टीम ने जांच में आरजू की मौत को हादसे में उलझा दिया. पुलिस अधिकारियों को सौंपी गई 5 पन्नों की रिपोर्ट में फोरैंसिक टीम ने आरजू की मौत को हादसा बताया. टीम ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को नकार दिया.

उन की रिपोर्ट के अनुसार गैस गीजर में एलपीजी गैस सिलेंडर लगाया गया था जो लीकेज था. एलपीजी में प्रोपेन व न्यूटेन गैस होती हैं जो हवा से भारी होती हैं. गीजर की टोंटी खोलते वक्त गैस निकल रही थी. इस केस में यही लग रहा है.

किसी कारण से आरजू मुंह के बल बाथरूम में गिर कर बेहोश हुई. सतह पर जमी गैस ने उस की जान ले ली. टीम ने आरजू की मौत की वजह सफोकेशन स्मूथरिंग बताई.

फोरैंसिक टीम ने आरजू के कत्ल की थ्यौरी पर सवालिया निशान जरूर लगाया लेकिन एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने फोरैंसिक टीम की अपेक्षा पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ज्यादा अहम माना, जिस में हत्या की पुष्टि हुई थी. उन्होंने कहा जो आरोप मृतका के घरवालों ने लगाए हैं, उसी आधार पर जांच जारी रहेगी. ससुरालीजनों पर दहेज हत्या का केस चलेगा.

इधर आरजू के पिता नीरज कटारे व मां अर्चना कटारे ने एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से मुलाकात की और जांच अधिकारी पर जांच में शिथिलता बरतने का आरोप लगाया.

इस शिकायत पर एसएसपी ने सीओ विकास पांडेय से जांच वापस ले ली और सीओ (नजीराबाद) संतोष सिंह को जांच सौंप दी. संतोष सिंह ने जांच शुरू की और मृतका के पिता नीरज व मां अर्चना कटारे के बयान दर्ज किए.

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मृतका आरजू की मां अर्चना कटारे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी एक मार्मिक ट्वीट लिख कर न्याय की मांग की. उन्होंने ट्वीट मे लिखा, ‘योगीजी मुझे आप से तुरंत मिलना है. मैं वह अभागिन मां हूं जिस की इंजीनियर बेटी की शादी के 17 दिन के भीतर हत्या कर दी गई. हमें केवल न्याय चाहिए. हम अपनी आंखों के सामने दोषियों को सजा ए मौत चाहते हैं.’

आरजू की हत्या से शहडोल की महिलाओं में भी गुस्सा फट पड़ा. हत्या के विरोध में सैकड़ों महिलाओं ने न्याय यात्रा निकाली. वे नारे लगा रही थीं, ‘शहडोल की जनता करे पुकार, आरजू को न्याय दे सरकार. शहडोल की बेटी को जिस ने मारा है, फांसी दो वो हत्यारा है’. यात्रा जैन मंदिर से होते हुए कलेक्ट्रैट पहुंची. यहां महिलाओं ने एसपी के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए मांग रखी कि नगर की बेटी आरजू की हत्या के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए.

30 दिसंबर, 2020 को पुलिस ने अमनदीप गुप्ता को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस की जांच जारी है. अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी जांच के बाद ही की जाएगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेगैरत औरत का खेल: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

संजय उर्फ कल्लू शाहजहांपुर के सदर बाजार क्षेत्र के मोहल्ला महमंद जलालनगर में रहता था. उस के पिता अनिल प्राइवेट नौकरी करते थे. मां रमा देवी गृहिणी थीं. संजय का एक छोटा भाई दीपक भी था.

करीब 11 साल पहले संजय ने रेशमा नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था, वह दूसरे धर्म की थी. कालांतर में रेशमा ने 2 बेटों अंशू (10 वर्ष), अजय (4 वर्ष) और एक बेटी चांदनी (डेढ़ वर्ष) को जन्म दिया. संजय मैडिकल कालेज में प्राइवेट तौर पर लगी बोलेरो को चलाता था.

संजय चूंकि संयुक्त परिवार में रहता था, इसलिए रेशमा की आजादी पर बंदिशें थीं. उस ने संजय से कहना शुरू कर दिया, ‘‘आखिर कब तक तुम अपने पिता के बताए रास्ते पर चल कर दिन भर की गाढ़ी कमाई उन के हाथों में थमाते रहोगे. अब हमारा भी तो परिवार है, क्या हम अपने परिवार के लिए कुछ भी जमा कर के नहीं रखेंगे? तुम कहीं और मकान देख लो, अब हम यहां नहीं रह सकते.’’

रेशमा की बातों को एकाध बार तो संजय ने नजरअंदाज कर दिया और रेशमा को समझाया भी लेकिन वह नहीं मानी और बारबार उस पर अलग होने का दबाव बनाने लगी. आखिर संजय ने रेशमा की इच्छा के सामने घुटने टेक दिए.

इस के बाद संजय रेशमा और तीनों बच्चों के साथ कांशीराम कालोनी में रहने चला गया. यहां वे सब मजे से रहने लगे. कालोनी की जिस बिल्डिंग में संजय रहता था, उसी बिल्डिंग में भूतल पर सचिन नाम का एक 19 वर्षीय युवक रहता था.

सचिन शहर के ही अजीजगंज मोहल्ले में रहने वाले सुमित कुमार का बेटा था. कांशीराम कालोनी में भी उसे आवास आवंटित हो गया था. सचिन का परिवार अजीजगंज में तो सचिन कांशीराम कालोनी में रहता था. सचिन ईरिक्शा चलाता था. वह अविवाहित था.

सचिन कम पढ़ालिखा था, लेकिन उस के व्यक्तित्व और बात करने के अंदाज से कभी यह नहीं लगता था कि वह अधिक पढ़ा नहीं है. देखने में भी काफी सुंदर था. उस का मन होता तो ईरिक्शा ले कर काम पर चला जाता, मन नहीं होता तो घर पर ही पड़ा रहता.

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एक ही बिल्डिंग में होने के कारण सचिन की नजर रेशमा पर पड़ गई थी. रेशमा भी सचिन के सामने आने पर एकटक उसे निहारती रहती थी. निगाहें मिलतीं तो दोनों के होंठ मुसकराने लगते. उन के बीच परिचय हुआ तो बातें भी होने लगीं.

सचिन के पास एक कुत्ता था जो रेशमा को बहुत अच्छा लगता था. उसी कुत्ते की वजह से ही सचिन और रेशमा में परिचय और बातें होनी शुरू हुई थीं. रेशमा के नजदीक बने रहने के लिए सचिन को कुत्ते से बढि़या कोई तरीका नहीं लगा.

सचिन ने संजय से भी दोस्ती कर ली. रेशमा ने संजय से सचिन का कुत्ता मांग लेने की जिद की तो संजय ने उसे कई बार समझाया लेकिन रेशमा नहीं मानी. रेशमा की जिद के आगे संजय को झुकना पड़ा.

एक दिन संजय ने सचिन से बात की कि अगर उसे बुरा न लगे तो वह उस का कुत्ता लेना चाहता है. इस पर सचिन ने अपना कुत्ता उसे दे दिया. सचिन ने उस से इस की कोई कीमत भी नहीं ली. संजय के दिमाग में यह कभी नहीं आया कि यह भेंट उस पर कितनी भारी पड़ेगी.

जिस फ्लोर पर संजय रहता था, वहां तक पानी आसानी से नहीं पहुंचता था. इसलिए संजय ने सचिन से कह दिया कि वह अपनी मोटर से पाइप लगा कर पानी भरवा दिया करे. सचिन ने हामी भर दी.

सचिन काफी खुश था, वह जानता था कि संजय सुबह का निकला शाम को ही घर में घुसता था, पूरे दिन उस की पत्नी रेशमा घर में अकेली रहती थी. बच्चे तो उस के छोटे थे. ऐसे में रेशमा को अपने रंग में रंगने का उसे अच्छा मौका मिला था.

जब से उस ने रेशमा को देखा था, उस का सौंदर्य उस की आंखों में रचबस गया था. संजय तो उस के सामने पानी भरता था, मतलब लंगूर के हाथ हूर लग गई थी.

अब हर रोज किसी भी समय पानी खत्म हो जाता तो रेशमा आवाज दे कर सचिन को पानी का पाइप लगाने को कह देती. पहले कुत्ते के बहाने से और अब पानी भरवाने के बहाने से सचिन रेशमा के पास उस के कमरे में जाने लगा. इस के बाद उन के बीच बातचीत का सिलसिला और तेजी से बढ़ने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी शुरू हो गया.

दिन भर अकेले रहने के कारण रेशमा का मन नहीं लगता था. लेकिन जब से सचिन ने उस के यहां आनाजाना शुरू किया था, तब से उस का अकेलापन दूर हो गया था. वह अब दिन भर हंसतीमुसकराती रहती थी. उस के खिले चेहरे को देख कर सचिन को भी अच्छा लगता था. रेशमा सचिन से 12 साल बड़ी थी. रेशमा की उम्र 31 साल थी तो सचिन की 19 साल.

सर्दी का समय था. घना कोहरा छाया था. ऐसे में सचिन ने रेशमा के घर का पानी भरवाया तो उस में वह भीग गया, जिस से वह सर्दी से और कांपने लगा. उस ने जा कर कपड़े चेंज किए और रेशमा के पास उस के कमरे में पहुंच गया.

उसे सर्दी से कंपकंपाते हुए रेशमा ने देखा तो उस से कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’ कह कर रेशमा रसोई में चाय बनाने चली गई. सचिन भी उस के साथ पीछेपीछे रसोई में पहुंच गया.

‘‘अरे तुम क्यों आ गए, वहीं कुरसी पर बैठते. और कुछ खाना हो तो बताओ?’’

‘‘जो चाहो, खिला दो. मैं तो तुम्हारे इन कोमलकोमल हाथों से जहर खाने के लिए भी तैयार हूं.’’ कह कर सचिन ने रेशमा का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया.

‘‘हाय राम, ये क्या कर रहे हो.’’ रेशमा ने झट से अपना हाथ छुड़ा लिया.

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‘‘क्यों, कुछ गलत कर दिया क्या? तुम भी तो मुझे प्यार करती हो, मैं यह अच्छी तरह से जानता हूं.’’ सचिन ने कहा.

‘‘किस ने कहा?’’ रेशमा इठलाते हुए बोली.

‘‘तुम्हारी आंखों ने…क्यों सच कह रही हैं न तुम्हारी आंखें?’’ सचिन ने रेशमा की आंखों में आंखें डाल

कर कहा.

‘‘तुम बड़े बेशर्म हो.’’ रेशमा ने इतरा कर बोली..

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इतना भी नहीं जानते कि दरवाजा खुला है और इस बीच कोई आ गया तो आफत आ जाएगी.’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘अरे हां, मैं तो भूल ही गया था. क्या करूं, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि देखते ही सब भूल जाता हूं. संजय भाई की तो पांचों अंगुलियां घी में तैरती हैं.’’

रेशमा ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘उन की छोड़ो वह जैसे हैं वैसे ही रहेंगे जिंदगी भर. तुम अपनी बताओ कि तुम्हारे दिल में क्या है मेरे रूप का नशा तुम पर किस हद तक चढ़ा है.’’ रेशमा ने कहा.

अगले भाग में पढ़ें- ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर खून फैला हुआ था

बेगैरत औरत का खेल: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

संजय के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में पूछने पर गुड्डू ने बताया कि 2 महीने पहले तक कांशीराम कालोनी की उसी बिल्डिंग में रहने वाले सचिन का संजय के घर काफी आनाजाना था. संजय की पत्नी रेशमा से सचिन के अवैध संबंध थे. लेकिन संजय ने उसे रंगेहाथों पकड़ा, तब से वह अपने अजीजगंज के पुराने घर में रहने लगा था. यह जानकारी पुलिस के लिए बड़े काम की थी.

इंसपेक्टर सिंह ने रेशमा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की सचिन से रोज घंटों बातें होने की बात पता चली. यह भी पता चला कि संजय के घर से निकलने के समय पर ही रेशमा ने सचिन को काल भी की थी, शायद संजय के घर से बाहर निकलने की बात बताने के लिए. उस ने सचिन को फोन किया होगा.

साक्ष्य मिले तो इंसपेक्टर सिंह ने सचिन के घर पर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार मिला. 9 दिसंबर, 2020 को दोपहर लगभग 2 बजे इंसपेक्टर प्रवेश सिंह ने चांदापुर तिराहे से सचिन को गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद रेशमा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. कोतवाली में जब उन दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

घटना से 2 महीने पहले रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद से रेशमा और संजय में अकसर विवाद होने लगा. यहां तक कि संजय ने रेशमा का मोबाइल भी तोड़ दिया था. इस पर सचिन ने उसे बात करने के लिए दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया था. सचिन अब कांशीराम कालोनी में नहीं रहता था, लेकिन वहां रोज आताजाता था.

अपने बीच संजय को आया देख कर रेशमा बौखला उठी. वह पति को छोड़ कर सचिन से शादी कर के उस के साथ रहना चाहती थी. इस के लिए रेशमा ने सचिन पर दबाव बनाया कि वह संजय की हत्या कर दे. उस के बाद वह शादी कर के उस के साथ रहने लगेगी. संजय के जीवित रहते यह  संभव नहीं होगा.

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प्रेमिका की सलाह पर अमल करने के लिए सचिन तैयार हो गया. इस के बाद उस ने तमंचे व कारतूस का इंतजाम किया. उस ने एकदो नहीं 4 बार संजय को मारने की कोशिश की थी, लेकिन तमंचा चलाने की उस की हिम्मत नहीं हुई. इस पर रेशमा ने सचिन को धमकी दी कि यदि उस में यह थोड़ा सा काम करने की हिम्मत नहीं है तो वह उसे छोड़ देगी. इस से सचिन ने अगली बार हर हाल में संजय को मारने का वादा किया.

3 दिसंबर को रात साढ़े 11 बजे जब गुड्डू का फोन आया तो संजय बोलेरो से उस से मिलने के लिए निकला. संजय के घर से निकलते ही रेशमा ने सचिन को फोन किया और संजय के घर से निकलने की बात बताई. सचिन उस समय कांशीराम कालोनी में ही था. सचिन के पास बजाज पल्सर बाइक थी.

सचिन संजय को ओवरटेक करते हुए आगे निकला और गोल चक्कर से मुड़ कर वापस आते हुए संजय को रुकने का इशारा किया. उस के इशारे को समझ कर संजय ने गाड़ी रोक दी. संजय ने जैसे ही कार का शीशा नीचे किया. सचिन ने साथ लाए तमंचे से संजय पर फायर कर दिया.

गोली संजय की कनपटी के पास लग कर माथे से निकल गई. गोली लगते ही संजय बाईं ओर लुढ़क गया और उस की मौत हो गई. गोली मारने के बाद सचिन ने तमंचा और 2 कारतूस गर्रा नदी के किनारे फेंक दिए. इस के बाद रेशमा को संजय का काम तमाम होने की बात पता चली तो उस ने भी अपना मोबाइल तोड़ दिया.

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लेकिन दोनों के गुनाह छिप न सके और पकड़े गए. इंसपेक्टर सिंह ने सचिन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा, 2 जिंदा कारतूस, पल्सर बाइक नंबर यूपी27यू1043, सचिन का मोबाइल 2 सिम सहित और रेशमा का टूटा मोबाइल एक सिम सहित बरामद कर लिया.

मुकदमे में रेशमा को धारा 120बी का अभियुक्त बना दिया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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