शादी- भाग 2: सुरेशजी को अपनी बेटी पर क्यों गर्व हो रहा था?

‘‘क्या मम्मा, अब हम बच्चे नहीं हैं, भाई पिज्जा और बर्गर ले कर आएगा. हमारा डिनर का मीनू तो छोटा सा है, आप का तो लंबाचौड़ा होगा,’’ कह कर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या मां, यह साड़ी पहनोगी…नहींनहीं, शादी में पहनने की साड़ी मैं सिलेक्ट करती हूं,’’ कहतेकहते रोहिणी ने एक साड़ी निकाली और मां के ऊपर लपेट कर बोली, ‘‘पापा, इधर देख कर बताओ कि मां कैसी लग रही हैं.’’

‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी कि बेटी मां से अधिक सयानी हो गई है, श्रीमतीजी आज गश खा कर गिर जाएंगी.’’

तभी रोहन पिज्जा और बर्गर ले कर आ गया, ‘‘अरे, आज तो कमाल हो गया. मां तो दुलहन लग रही हैं. पूरी बरात में अलग से नजर आएंगी.’’

बच्चों की बातें सुन कर सुकन्या गर्व से फूल गई और तैयार होने लगी. तैयार हो कर सुरेश और सुकन्या जैसे ही कार में बैठने के लिए सोसाइटी के कंपाउंड में आए, सुरेश हैरानी के साथ बोल पड़े, ‘‘लगता है कि आज पूरी सोसाइटी शादी में जा रही है, सारे चमकधमक रहे हैं. वर्मा, शर्मा, रस्तोगी, साहनी, भसीन, गुप्ता, अग्रवाल सभी अपनी कारें निकाल रहे हैं, आज तो सोसाइटी कारविहीन हो जाएगी.’’

मुसकराती हुई सुकन्या ने कहा, ‘‘सारे अलग शादियों में नहीं, बल्कि राहुल की शादी में जा रहे हैं.’’

‘‘दिल खोल कर न्योता दिया है नंदकिशोरजी ने.’’

‘‘दिल की मत पूछो, फार्म हाउस में शादी का सारा खर्च वधू पक्ष का होगा, इसलिए पूरी सोसाइटी को निमंत्रण दे दिया वरना अपने घर तो उन की पत्नी ने किसी को भी नहीं बुलाया. एक नंबर के कंजूस हैं दोनों पतिपत्नी. हम तो उसे किटी पार्टी का मेंबर बनाने को राजी नहीं होते हैं. जबरदस्ती हर साल किसी न किसी बहाने मेंबर बन जाती है.’’

‘‘इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं कि मेकअप ही खराब हो जाए,’’ सुरेश ने कार स्टार्ट करते हुए कहा.

‘‘कितनी देर लगेगी फार्म हाउस पहुंचने में?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘यह तो टै्रफिक पर निर्भर है, कितना समय लगेगा, 1 घंटा भी लग सकता है, डेढ़ भी और 2 भी.’’

‘‘मैं एफएम रेडियो पर टै्रफिक का हाल जानती हूं,’’ कह कर सुकन्या ने रेडियो चालू किया.

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तभी रेडियो जौकी यानी कि उद्घोषिका ने शहर में 10 हजार शादियों का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि आज हर दिल्लीवासी किसी न किसी शादी में जा रहा है और चारों तरफ शादियों की धूम है. यह सुन कर सुरेश ने सुकन्या से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि आज शहर में 10 हजार शादियां होंगी?’’

‘‘आप तो ऐसे पूछ रहे हो, जैसे मैं कोई पंडित हूं और शादियों का मुहूर्त मैं ने ही निकाला है.’’

‘‘एक बात जरूर है कि आज शादियां अधिक हैं, लेकिन कितनी, पता नहीं. हां, एक बात पर मैं अडिग हूं कि 10 हजार नहीं होंगी. 2-3 हजार को 10 हजार बनाने में लोगों को कोई अधिक समय नहीं लगता. बात का बतंगड़ बनाने में फालतू आदमी माहिर होते हैं.’’

तभी रेडियो टनाटन ने टै्रफिक का हाल सुनाना शुरू किया, ‘यदि आप वहां जा रहे हैं तो अपना रूट बदल लें,’ यह सुन कर सुरेश ने कहा, ‘‘रेडियो स्टेशन पर बैठ कर कहना आसान है कि रूट बदल लें, लेकिन जाएं तो कहां से, दिल्ली की हर दूसरी सड़क पर टै्रफिक होता है. हर रोज सुबहशाम 2 घंटे की ड्राइविंग हो जाती है. आराम से चलते चलो, सब्र और संयम के साथ.’’

बातों ही बातों में कार की रफ्तार धीमी हो गई और आगे वाली कार के चालक ने कार से अपनी गरदन बाहर निकाली और बोला, ‘‘भाई साहब, कार थोड़ी पीछे करना, वापस मोड़नी है, आगे टै्रफिक जाम है, एफ एम रेडियो भी यही कह रहा है.’’

उस को देखते ही कई स्कूटर और बाइक वाले पलट कर चलने लगे. कार वालों ने भी कारें वापस मोड़नी शुरू कर दीं. यह देख कर सुकन्या ने कहा, ‘‘आप क्या देख रहे हो, जब सब वापस मुड़ रहे हैं तो आप भी इन के साथ मुड़ जाइए.’’

सुरेश ने कार नहीं मोड़ी बल्कि मुड़ी कारों की जगह धीरेधीरे कार आगे बढ़ानी शुरू की.

‘‘यह आप क्या कर रहे हो, टै्रफिक जाम में फंस जाएंगे,’’ सुकन्या ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं होगा, यह तो रोज की कहानी है. जो कारें वापस मुड़ रही हैं, वे सब आगे पहुंच कर दूसरी लेन को भी जाम करेंगी.’’ धीरेधीरे सुरेश कार को अपनी लेन में रख कर आगे बढ़ाता रहा. चौराहे पर एक टेंपो खराब खड़ा था, जिस कारण टै्रफिक का बुरा हाल था.

‘‘यहां तो काफी बुरा हाल है, देर न हो जाए,’’ सुकन्या थोड़ी परेशान हो गई.

‘‘कुछ नहीं होगा, 10 मिनट जरूर लग सकते हैं. यहां संयम की आवश्यकता है.’’

बातोंबातों में 10 मिनट में चौराहे को पार कर लिया और कार ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी. थोड़ीथोड़ी दूरी पर कभी कोई बरात मिलती, तो कार की रफ्तार कम हो जाती तो कहीं बीच सड़क पर बस वाले बस रोक कर सवारियों को उतारने, चढ़ाने का काम करते मिले.

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फार्म हाउस आ गया. बरात अभी बाहर सड़क पर नाच रही थी. बरातियों ने अंदर जाना शुरू कर दिया, सोसाइटी निवासी पहले ही पहुंच गए थे और चाट के स्टाल पर मशगूल थे.

‘‘लगता है, हम ही देर से पहुंचे हैं, सोसाइटी के लोग तो हमारे साथ चले थे, लेकिन पहले आ गए,’’ सुरेश ने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए सुकन्या से कहा.

‘‘इतनी धीरे कार चलाते हो, जल्दी कैसे पहुंच सकते थे,’’ इतना कह कर सुकन्या बोली, ‘‘हाय मिसेज वर्मा, आज तो बहुत जंच रही हो.’’

‘‘अरे, कहां, तुम्हारे आगे तो आज सब फीके हैं,’’ मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘देखो तो कितना खूबसूरत नेकलेस है, छोटा जरूर है लेकिन डिजाइन लाजवाब है. हीरे कितने चमक रहे हैं, जरूर महंगा होगा.’’

‘‘पहले कभी देखा नहीं, कहां से लिया? देखो तो, साथ के मैचिंग टाप्स भी लाजवाब हैं,’’ एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लग गई, साथ ही सभी सोसाइटी की महिलाओं ने सुकन्या को घेर लिया और वह मंदमंद मुसकाती हुई एक कुरसी पर बैठ गई. सुरेश एक तरफ कोने में अलग कुरसी पर अकेले बैठे थे, तभी रस्तोगी ने कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘क्या यार, सुरेश…यहां छिप कर चुपके से महिलाआें की बातों में कान अड़ाए बैठे हो. उठो, उधर मर्दों की महफिल लगी है. सब इंतजाम है, आ जाओ…’’

सुरेश कुरसी छोड़ते हुए कहने लगे, ‘‘रस्तोगी, मैं पीता नहीं हूं, तुझे पता है, क्या करूंगा महफिल में जा कर.’’

‘‘आओ तो सही, गपशप ही सही, मैं कौन सा रोज पीने वाला हूं. जलजीरा, सौफ्ट ड्रिंक्स सबकुछ है,’’ कह कर रस्तोगी ने सुरेश का हाथ पकड़ कर खींचा और दोनों महफिल में शरीक हो गए, जहां जाम के बीच में ठहाके लग रहे थे.

‘‘यार, नंदकिशोर ने हाथ लंबा मारा है, सबकुछ लड़की पक्ष वाले कर रहे हैं. फार्म आउस में शादी, पीने का, खाने का इंतजाम तो देखो,’’ अग्रवाल ने कहा.

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‘‘अंदर की बात बताता हूं, सब प्यारमुहब्बत का मामला है,’’ साहनी बोला.

‘‘अमा यार, पहेलियां बुझाना छोड़ कर जरा खुल कर बताओ,’’ गुप्ता ने पूछा.

‘‘राहुल और यह लड़की कालिज में एकसाथ पढ़ते थे, वहीं प्यार हो गया. जब लड़कालड़की राजी तो क्या करेगा काजी, थकहार कर लड़की के बाप को मानना पड़ा,’’ साहनी चटकारे ले कर प्यार के किस्से सुनाने लगा. फिर मुड़ कर सुरेश से कहने लगा, ‘‘अरे, आप तो मंदमंद मुसकरा रहे हैं, क्या बात है, कुछ तो फरमाइए.’’

‘‘मैं यह सोच रहा हूं कि क्या जरूरत है, शादियों में फुजूल का पैसा लगाने की, इसी शादी को देख लो, फार्म हाउस का किराया, साजसजावट, खानेपीने का खर्चा, लेनदेन, गहने और न जाने क्याक्या खर्च होता है,’’ सुरेश ने दार्शनिक भाव से कहा.

‘‘यार, जिस के पास जितना धन होता है, शादी में खर्च करता है. इस में फुजूलखर्ची की क्या बात है. आखिर धन को संचित ही इसीलिए करते हैं,’’ अग्रवाल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा.

‘‘नहीं, धन का संचय शादियों के लिए नहीं, बल्कि कठिन समय के लिए भी किया जाता है…’’

सुरेश की बात बीच में काटते हुए गुप्ता बोला, ‘‘देख, लड़की वालों के पास धन की कोई कमी नहीं है. समंदर में से दोचार लोटे निकल जाएंगे, तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा.’’

‘‘यह सोच गलत है. यह तो पैसे की बरबादी है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सारा मूड खराब कर दिया,’’ साहनी ने बात को समाप्त करते हुए कहा, ‘‘यहां हम जश्न मना रहे हैं, स्वामीजी ने प्रवचन शुरू कर दिए. बाईगौड रस्तोगी, जहां से इसे लाया था, वहीं छोड़ आ.’’

देसी मेम- भाग 3: क्या राकेश ने अपने मम्मी-पापा की मर्जी से शादी की?

लेखक- शांता शास्त्री

मेरे दिमाग में अचानक लाल बत्ती जल उठी. यानी जो कुछ हो रहा था वह केवल एक संयोग नहीं था…दिल ने कहा, ‘अरे, यार राकेश, तुम नौजवान हो, सुंदर हो, अमेरिका में तुम्हारी नौकरी है. तुम से अधिक सुयोग्य वर और कौन हो सकता है? लड़कियों का तांता लगना तो स्वाभाविक है.’

मैं चौंक उठा. तो मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है. पता लगाना है कि इस में कौनकौन शामिल हैं. मगर कैसे? हां, आइडिया. मैं ने मधु को अकेले में बुलाया और उसे उस की पसंद की अंगरेजी मूवी दिखाने का वचन दिया. उसे कुछ कैसेट खरीदने के लिए पैसे भी दिए तब कहीं मुश्किल से राज खुला.

‘‘भैया, जिस दिन सुसन के बारे में तुम्हारा पत्र आया था उस दिन से ही घर में हलचल मची हुई है. दोस्तों, नातेरिश्तेदारों में यह खबर फैला दी गई है कि तुम भारत आ रहे हो और शायद शादी कर के ही वापस जाओगे.’’

तो यह बात है. सब ने मिल कर मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा और सब अपना- अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं. तो अब आप लोग भी देख लीजिए कि मैं अकेले अभिमन्यु की तरह कैसे आप के चक्रव्यूह को भेदता हूं,’’ मन ही मन मैं ने भीष्म प्रतिज्ञा ली और अगले ही क्षण से उस पर अमल भी करने लगा.

मधु और चांदनी ने मिल कर घर का नक्शा ठीक किया. मम्मी और मामीजी ने मिल कर तरहतरह के पकवान बनाए. मेहमानों की अगवानी के लिए मैं भी शानदार सूट पहन कर अभीअभी आए अमेरिकन छैले की तरह तैयार हो गया.

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दोनों बहनों ने मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाया, ‘‘वाह, क्या बात है भैया, बहुत स्मार्ट लग रहे हो. असली बात का असर है, गुड लक. अमेरिका जाने से पहले लगता है आप का घर बस जाएगा.’’

बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. दोनों बहनें बाहर की ओर भागीं. जाने से पहले उन्होंने मुझ से वादा किया कि यह बात मैं किसी को न बताऊं कि उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है.

खैर, अतिथियों का आगमन हुआ. मम्मी और पापा को तो आना ही था पर साथ में एक बेटा और एक बेटी नहीं थे जैसा कि अब तक होता आया है. बल्कि इस बार 2 लड़कियां थीं. भई वाह, मजा आ गया. जुड़वां आनंद, एक टिकिट से सिनेमा के दो शो. मैं ने स्वयं अपनी पीठ थपथपाई. सब ने एकदूसरे का अभिवादन हाथ मिला कर किया. मगर बुजुर्ग औरतों ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. मैं खड़ाखड़ा सोचने लगा कि आज की युवा पीढ़ी अगर एक कदम आगे बढ़ना चाहे तो ये बडे़बूढे़ लोग, खासकर दकियानूसी औरतें, उन्हें दस कदम पीछे धकेल देती हैं. देश के प्रगतिशील समर्थकों का वश चलता तो वे इन सब को किसी ओल्ड होम में रख कर बाहर से ताला लगा देते.

‘‘आप किन विचारों में खो गए?’’ कोयल सी मीठी आवाज से मैं चौंक उठा.

‘‘लगता है 2 बिजलियों की चमक को देख कर शाक्ड हो गए,’’ दूसरी बिजली हंसी की आवाज में चिहुंकी.

‘‘यू आर राइट. आई वाज लिटिल शाक्ड,’’ मैं ने अब पूरी तरह अमेरिकन स्टाइल में पेश आने का निश्चय कर लिया था. तपाक से एक के बाद एक दोनों से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया. दोनों हाथों से दोनों के हाथ थामे मैं मकान के अंदर इस अंदाज में आया जैसे किसी फाइव स्टार होटल में घुस रहा हूं. ड्राइंगरूम में आते ही थोड़ा झुक कर उन्हें बैठाया. मैं ने देखा कि शिल्पा शेट्टी और मल्लिका शेरावत के अंदाज में एक ने जगहजगह से फटी हुई, सौरी फाड़ी गई जींस और गहरी कटाई वाला टौप पहन रखा था तो दूसरी, सी थ्रू टाइट्स पहने हुई थी. ऐसे में जवान मनचले तो क्या बूढे़ भी फिसल जाएं. हां, दोनों की आंखों के लैंसों का रंग अलगअलग था. इन रंगों के कारण ही मुझे पता चला कि दोनों ने आंखों में लैंस लगा रखे थे.

अगले 3-4 घंटे किस तरह बीत गए कुछ पता ही न चला. हम ने धरती और आकाश के बीच हर उस चीज पर चर्चा की जो अमेरिका से जुड़ी हुई है. जैसे वहां के क्लब, पब, डांसेस, संस्कृति, खान- पान, पहनावा, आजादी, वैभव संपन्नता आदि.

अगले दिन ही मेहमाननवाजी के बाद हम सब मामा के यहां से वापस आ गए.  पर मेरे अमेरिका जाने से पहले तक मेरे घर में यह कार्यक्रम जारी रहा था. मैं ने भी अपना किरदार खूब निभाया. कभी किसी को क्लब, डिस्को, पिकनिक आदि ले जाता तो कभी किसी से हाथ मिला कर हंसहंस कर बातें करता, तो कभी किसी की कमर में हाथ डाल कर नाचता.

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अब तक सब लोग अपनेअपने तरीके से मेरी हां का इंतजार कर रहे थे. उस दिन खाने की मेज पर बात छिड़ ही गई. पापा नाश्ता कर के अपने काम पर जा चुके थे. मम्मी ने पूछ ही लिया, ‘‘देखनादिखाना तो बहुत हो चुका. अब तक तू ने बताया नहीं कि तेरा निश्चय क्या है. तुझे कौन सी लड़की पसंद आई?’’

मैं भी सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘मम्मी, यह आप ने ठीक नहीं किया. मैं ने पहले ही पापा और आप को चिट्ठी लिख दी थी कि मेरे विचार क्या हैं.’’

‘‘तू भी अजीब बात करता है. एक से एक सुंदर पढ़ीलिखी और आधुनिक लड़कियों से मिल चुका है फिर भी अपना ही आलाप लिए बैठा है. भला ये किस बात में कम हैं तेरी अमेरिका की उन लटकझटक वाली छोकरियों से?’’ मां गुस्से से बोलीं.

संकरा- भाग 2: जब सूरज के सामने आया सच

यह सच जान कर आदित्य को अपने पिता पर गुस्सा आ रहा था. तभी उस ने फैसला लिया कि अब वह इस खानदान की छाया में नहीं रहेगा. वह अपने दादा ठाकुर रणवीर सिंह से मिल कर हकीकत जानना चाहता था. दादाजी अपने कमरे में बैठे थे. आदित्य को बेवक्त अपने सामने पा कर वे चौंक पड़े और बोले, ‘‘अरे आदित्य, इस समय यहां… अभी पिछले हफ्ते ही तो तू गया था?’’

‘‘हां दादाजी, बात ही ऐसी हो गई है.’’ ‘‘अच्छा… हाथमुंह धो लो. भोजन के बाद आराम से बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं दादाजी, अब मैं इस हवेली में पानी की एक बूंद भी नहीं पी सकता.’’ यह सुन कर दादाजी हैरान रह गए, फिर उन्होंने प्यार से कहा, ‘‘यह तुझे क्या हो गया है? तुम से किसी ने कुछ कह दिया क्या?’’

‘‘दादाजी, आप ही कहिए कि किसी की इज्जत से खेल कर, उसे टूटे खिलौने की तरह भुला देने की बेशर्मी हम ठाकुर कब तक करते रहेंगे?’’ दादाजी आपे से बाहर हो गए और बोले, ‘‘तुम्हें अपने दादा से ऐसा सवाल करते हुए शर्म नहीं आती? अपनी किताबी भावनाओं में बह कर तुम भूल गए हो कि क्या कह रहे हो…

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‘‘पिछले साल भी तारा सिंह की शादी तुम ने इसलिए रुकवा दी, क्योंकि उस के एक दलित लड़की से संबंध थे. अपने पिता से भी इन्हीं आदर्शों की वजह से तुम झगड़ कर आए हो. ‘‘मैं पूछता हूं कि आएदिन तुम जो अपने खानदान की इज्जत उछालते हो, उस से कौन से तमगे मिल गए तुम्हें?’’

‘‘तमगेतोहफे ही आदर्शों की कीमत नहीं हैं दादाजी. तारा सिंह ने तो अदालत के फैसले पर उस पीडि़त लड़की को अपना लिया था. लेकिन आप के सपूत ठाकुर राजेश्वर सिंह जब हरचरण की जोरू के साथ अपना मुंह काला करते हैं, तब कोई अदालत, कोई पंचायत कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि बात को वहीं दफन कर उस पर राख डाल दी जाती है.’’ यह सुन कर ठाकुर साहब के सीने में बिजली सी कौंध गई. वे अपना हाथ सीने पर रख कर कुछ पल शांत रहे, फिर भारी मन से पूछा, ‘‘यह तुम से किस ने कहा?’’

‘‘दादाजी, ऊंचनीच के इस ढकोसले को मैं विज्ञान के सहारे झूठा साबित करना चाहता था. मैं जानता था कि इस से बहुत बड़ा तूफान उठ सकता है, इसलिए मैं ने आप से और पिताजी से यह बात छिपाई थी, पर मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस तूफान की शुरुआत सीधे मुझ से ही होगी… मैं ने खुद अपने और सूरज के डीएनए की जांच की है.’’ ‘‘बरसों से जिस घाव को मैं ने सीने में छिपाए रखा, आज तुम ने उसे फिर कुरेदा… तुम्हारा विज्ञान सच जरूर बोलता है, लेकिन अधूरा…

‘‘तुम ने यह तो जान लिया कि सूरज और तुम्हारी रगों में एक ही खून दौड़ रहा है. अच्छा होता, अगर विज्ञान तुम्हें यह भी बताता कि इस में तेरे पिता का कोई दोष नहीं. ‘‘अरे, उस बेचारे को तो इस की खबर भी नहीं है. मुझे भी नहीं होती, अगर वह दस्तावेज मेरे हाथ न लगता… बेटा, इस बात को समझने के लिए तुम्हें शुरू से जानना होगा.’’

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‘‘दादाजी, आप क्या कह रहे हैं? मुझे किस बात को जानना होगा?’’ दादाजी ने उस का हाथ पकड़ा और उसे तहखाने वाले कमरे में ले गए. उस कमरे में पुराने बुजुर्गों की तसवीरों के अलावा सभी चीजें ऐतिहासिक जान पड़ती थीं.

एक तसवीर के सामने रुक कर दादाजी आदित्य से कहने लगे, ‘‘यह मेरे परदादा शमशेर सिंह हैं, जिन के एक लड़का भानुप्रताप था और जिस का ब्याह हो चुका था. एक लड़की रति थी, जो मंगली होने की वजह से ब्याह को तरसती थी…’’ आदित्य ने देखा कि शमशेर सिंह की तसवीर के पास ही 2 तसवीरें लगी हुई थीं, जो भानुप्रताप और उन की पत्नी की थीं. बाद में एक और सुंदर लड़की की तसवीर थी, जो रति थी.

‘‘मेरे परदादा अपनी जवानी में दूसरे जमींदारों की तरह ऐयाश ठाकुर थे. उन्होंने कभी अपनी हवस की भूख एक दलित लड़की की इज्जत लूट कर शांत की थी. ‘‘सालों बाद उसी का बदला दलित बिरादरी वाले कुछ लुटेरे मौका पा कर रति की इज्जत लूट कर लेना चाह रहे थे. तब ‘उस ने’ अपनी जान पर खेल कर रति की इज्जत बचाई थी.’’

कहते हुए दादाजी ने पास रखे भारी संदूक से एक डायरी निकाली, जो काफी पुरानी होने की वजह से पीली पड़ चुकी थी. ‘‘रति और भानुप्रताप की इज्जत किस ने बचाई, मुझे इस दस्तावेज से मालूम हुआ.

शादी- भाग 3: सुरेशजी को अपनी बेटी पर क्यों गर्व हो रहा था?

सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

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‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

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‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

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‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

नेहरू पैदा कर गए ऑक्सीजन की समस्या

लेखक- सुरेश सौरभ   

हमारे मोदीजी नाली की गैस से खाना बनाने वाली, चाय बनाने वाली गैस तो बना सकते हैं, पर औक्सीजन नहीं बना सकते, क्योंकि औक्सीजन की उन्हें कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, न ही बनाने के लिए उन से किसी ने कभी कहा. पर इतना बड़का राम मंदिर बना रहे हैं, जिस के सहारे हमारे मोदीजी सत्ता में आए और बड़काबड़का सब लोगों के लिए काम कर रहे हैं.

दुनिया में सब से बड़ी पटेल की करोड़ों रुपए लगा कर मूर्ति लगवाई. अपने नाम से करोड़ों रुपए का स्टेडियम बनवाया है. नई संसद बनाने का करोड़ों का बजट पास कर दिया है. करोड़ों रुपए की लागत से अपनी पार्टी के दफ्तर बनवा दिए हैं. ये सब क्या कम महान काम हैं.

अब लोग कोरोना मारामारी में, औक्सीजन की कमी से, डाक्टरों की कमी से, दवाओं की कमी से, अस्पतालों की कमी से मर रहे हैं, तो इस में हमारे मोदीजी का क्या कुसूर है. इस में जरूर पाकिस्तान की साजिश है. यह कोरोना बम जमातियों के बाद पाकिस्तानियों ने ही फोड़ा है.

हमारे मोदीजी के तो कुंभ में नहाने वाले भक्त, उन की रैली में आने वाले हजारों समर्थक कोरोना घटाने का लगातार काम किए हैं. वैसे भी अस्पताल हमारे मोदीजी से किसी ने मांगा नहीं था. उन की पार्टी का एजेंडा भी नहीं था, फिर काहे मोदीजी बनवा देते. मोदीजी क्या हमारे फेंकू हैं, जो कहते मंदिर और बनवाते अस्पताल.

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अब पाकिस्तानी लोग कह रहे हैं  कि इमरान खान ने एक साल में अपने अस्पतालों, डाक्टरों की तादाद बढ़ा कर महामारी पर बिना लौकडाउन लगाए काफी हद तक कोरोना पर काबू पा लिया, पर हमारे मोदीजी नाकाम रहे. यह सब पाकिस्तानी व खालिस्तानी सोच वाले बकवास करते हैं. वे यह नहीं देखते कि पाकिस्तान ने अपनी माली तंगी के चलते गधे तक बेच डाले, हमारे मोदीजी ने  कुछ बेचा?

अरे, विनिवेश किए हैं देश की दशा सुधारने के लिए. उस पर भी देशद्रोही लोग कह रहे हैं कि मोदीजी ने देश बेच दिया, बेकारी बढ़ा दी. अब जनता ने औक्सीजन मांगी है, अस्पताल मांगे हैं, तो वह भी मिलेगा, पर पहले चुनाव निबट जाने दो. तब तक रामचरित मानस पढ़ें, कोरोना भगाएं, राजनाथ सिंह के मन की यह बात मानें.

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वेदों का श्रवण कर के हमारे ऋषिमुनि हजारों बरस तक बिना हवापानी के जीते थे, तीरथ की यह नेक सलाह मानें. और जो लोग पीएम केयर फंड का हिसाब मांग रहे हैं, वे यह क्यों भूल जाते हैं कि देशहित में क्या रैली मुफ्त में हो जाती है?

हमारे मोदीजी जब रैली में पैसा लगा कर चुनाव जीतेंगे, तभी तो वे सब की केयर और सब का साथ सब का विकास कर सकेंगे. फिर भी ये पीएम केयर फंड का हिसाब मांगने वाले पता नहीं क्यों हमारे मोदीजी को फालतू में चोर कहने की नाजायज कोशिश कर रहे हैं.

देसी मेम- भाग 4: क्या राकेश ने अपने मम्मी-पापा की मर्जी से शादी की?

लेखक- शांता शास्त्री

अब मैं उन के मनोविज्ञान को आईने में तसवीर की तरह साफसाफ देख रहा था. इस डर से कि कहीं किसी विदेशी मेम को मैं घर न ले आऊं, इन लोगों ने मेरे इर्दगिर्द देशी मेमों की भीड़ लगा दी थी.

मुझे लगा कि मम्मी मेरा निर्णय आज सुन कर ही दम लेंगी, इसीलिए उन्होंने फिर से पूछ लिया, ‘‘अब तो तेरे जाने का समय आ चुका है. तू ने बताया नहीं कि तुझे कौन सी भा गई.’’

मैं ने उन के प्रश्न को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘फिक्र क्यों करती हो, मां? एकाध दिन में अंतिम फैसला खुद ब खुद आप लोगों के सामने आ जाएगा.’’

मां न कुछ समझीं. न कुछ बोलीं, और न ही शायद अध्यक्ष महोदय से सलाह करना चाहती थीं. हुआ भी वही. अगले दिन मैं पिताजी के निशाने पर था. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाया कि बस, आप एक दिन और रुक जाइए.

‘‘मगर परसों तो तू जा रहा है,’’ मां ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘हां, मां, बिना यह मामला तय हुए मैं नहीं जाऊंगा, बस?’’ संदेह भरी नजरों से देखती हुई मां चुप हो गईं.

पिताजी सोच में पड़ गए.

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अगले दिन शाम को पिताजी घर पर ही थे. मधु अपने पिकनिक के फोटो मां और पिताजी को दिखा रही थी. मैं बनठन कर बाहर निकलने ही वाला था कि पिताजी की आवाज आई, ‘‘राकेश, यहां आओ.’’

मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह उन के पास आ कर खड़ा हो गया तो मां बोलीं, ‘‘सचसच बता, तू ने क्या खेल रचाया?’’ मम्मी ने मेरे बैठने से पहले ही गुस्से से पूछा.

‘‘कैसा खेल, मां?’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से पूछा.

‘‘इन लड़कियों से तू ने क्या कहा है कि वे बिदक गईं. अब न पूछना कि कौन सी लड़कियां?  मैं जानती हूं कि तू सब समझता है.’’

‘‘मां, मेरा विश्वास कीजिए. मैं ने उन से ऐसा कुछ नहीं कहा.’’

‘‘देखो राकेश, बात को घुमाने के बजाय साफ और सीधी करो तो सभी का समय बचेगा,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘इस ने जरूर कुछ उलटासीधा किया है वरना सारे के सारे रिश्ते इस तरह पलट नहीं जाते. कोई कहती है आगे पढ़ना है, किसी की कुंडली नहीं जमी तो कोई मंगली है….वाह, 9 के 9 रिश्ते अलगअलग बहाने बना कर छिटक गए. रिश्ते लड़कों की तरफ से मना होते हैं पर लड़कियों की तरफ से ना होना कितने अपमान की बात है. वह भी एक सुंदर, पढे़लिखे, अमेरिका में नौकरीशुदा नौजवान के लिए. बोल, क्या शरारत की तू ने? सचसच बता, वरना तू वापस अमेरिका नहीं जाएगा. हमारी तो नाक ही कट गई,’’ मां को इतना बिफरते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था.

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मैं मां की साथ वाली कुरसी पर बैठ गया और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, ‘‘मां, क्या तुम्हें अपने बेटे पर विश्वास नहीं है? मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है. वे जब अमेरिका में मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछ रही थीं तब मैं ने सूसन के बारे में बताया था.’’

पिताजी ने कहा, ‘‘हूं,’’ और उस एक ‘हूं’ में  हजार अर्थ थे.

मां ने कहा, ‘‘अब समझी, यह बात क्या कम है?’’

‘‘नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं. उन में से किसी भी लड़की को इस बात पर एतराज नहीं है.’’

पिताजी गरजे, ‘‘बकवास बंद कर. तू कैसे जानता है कि तेरे सूसन से परिचय में इन लड़कियों को कोई एतराज नहीं है?’’

‘‘क्योंकि उन में से एक ने कहा कि अमेरिकन कल्चर में यह आम बात है. दूसरी ने कहा कि वहां तो सुबह शादी होती है और शाम को डिवोर्स. तीसरी बोली कि मैं सती सावित्री की पुण्य भूमि में जन्मी हूं. मैं उस के चंगुल से आप को छुड़ा लूंगी.’’

मैं ने देखा कि पिताजी के होंठों पर मुसकराहट थी. मां का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘इसी तरह सभी ने इस बात को घास के तिनके की तरह उड़ा दिया था.’’

‘‘अगर किसी को इस बात पर एतराज न था तो समस्या कहां आई,’’ पिताजी ने असमंजस में भर कर पूछा.

अब मेरे सामने सच बोलने के सिवा कोई रास्ता नहीं था सो मैं ने तय कर लिया कि मुझे साफसाफ सबकुछ बताना ही होगा.

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‘‘हर किसी ने मुझ से यही पूछा कि इस समय मेरी तनख्वाह क्या है और आगे चल कर कितनी बढ़ सकती है और मुझे ग्रीन कार्ड कब मिलेगा? इस पर मैं ने केवल इतना कहा कि मेरा वीजा मुझे 1 साल और वहां रहने की इजाजत देता है. मैं इस समय जो एसाइनमेंट कर रहा हूं वह ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के अंदर खत्म हो जाएगा. उस के बाद मैं भारत आ कर यहीं बसना चाहता हूं,’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से मां और पिताजी की ओर देख कर जवाब दिया.

संकरा- भाग 3: जब सूरज के सामने आया सच

‘‘बेटा, इसे आज तक मेरे सिवा किसी और ने नहीं पढ़ा है. शुक्र है कि इसे मैं ने भी जतन से रखा, नहीं तो आज मैं तुम्हारे सवालों के जवाब कहां से दे पाता…’’ रात की सुनसान लंबी सड़क पर इक्कादुक्का गाडि़यों के अलावा आदित्य की कार दौड़ रही थी, जिसे ड्राइवर चला रहा था. आदित्य पिछली सीट पर सिर टिकाए आंखें मूंदे निढाल पड़ा था. दादाजी की बताई बातें अब तक उस के जेहन में घटनाएं बन कर उभर रही थीं.

कसरती बदन वाला मैयादीन, जिस के चेहरे पर अनोखा तेज था, हवेली में ठाकुर शमशेर सिंह को पुकारता हुआ दाखिल हुआ, ‘ठाकुर साहब, आप ने मुझे बुलाया. मैं हाजिर हो गया हूं… आप कहां हैं?’ तभी गुसलखाने से उसे चीख सुनाई दी. वह दौड़ता हुआ उस तरफ चला गया. उस ने देखा कि सुंदरसलोनी रति पैर में मोच आने से गिर पड़ी थी. उस का रूप और अदाएं किसी मुनि के भी अंदर का शैतान जगाने को काफी थीं. उस ने अदा से पास खड़े मैयादीन का हाथ पकड़ लिया.

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‘देवीजी, आप क्या कर रही हैं?’ ‘सचमुच तुम बड़े भोले हो. क्या तुम यह भी नहीं समझते?’

‘आप के ऊपर वासना का शैतान हावी हो गया है, पर माफ करें देवी, मैं उन लोगों में से नहीं, जो मर्दऔरत के पवित्र बंधन को जानवरों का खेल समझते हैं.’ ‘तुम्हारी यही बातें तो मुझे बावला बनाती हैं. लो…’ कह कर रति ने अपना पल्लू गिरा दिया, जिसे देख कर मैयादीन ने एक झन्नाटेदार तमाचा रति को जड़ दिया और तुरंत वहां से निकल आया.

मैयादीन वहां से निकला तो देखा कि दीवार की आड़ में बूढ़े ठाकुर शमशेर सिंह अपना सिर झुकाए खड़े थे. वह कुछ कहता, इस से पहले ही ठाकुर साहब ने उसे चुप रहने का इशारा किया और पीछेपीछे अपने कमरे में आने को कहा. मैयादीन ठाकुर साहब के पीछेपीछे उन के कमरे में चल दिया और अपराधबोध से बोला, ‘‘ठाकुर साहब, आप ने सब सुन लिया?’’

शर्म पर काबू रखते हुए थकी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘हां मैयादीन, मैं ने सब सुन लिया और अपने खून को अपनी जाति पर आते हुए भी देख लिया… तुम्हारी बहादुरी ने पहले ही मुझे तुम्हारा कर्जदार बनाया था, आज तुम्हारे चरित्र ने मुझे तुम्हारे सामने भिखारी बना दिया. ‘धन्य है वह खून, जो तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है… अपनी बेटी की तरफ से यह लाचार बाप तुम से माफी मांगता है. जवानी के बहाव में उस ने जो किया, तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता है, तो जाने क्या होता. मेरी लड़की की इज्जत तुम ने दोबारा बचा ली…

‘अब जैसे भी हो, मैं इस मंगली के हाथ जल्द से जल्द पीले कर दूंगा, तब तक मेरी आबरू तुम्हारे हाथों में है. मुझे वचन दो मैयादीन…’ ‘ठाकुर साहब, हम अछूत हैं. समय का फेर हम से पाखाना साफ कराता है, पर इज्जतआबरू हम जानते हैं, इसलिए आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं. यह बात मुझ तक ही रहेगी.’

मैयादीन का वचन सुन कर ठाकुर साहब को ठंडक महसूस हुई. उन्होंने एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं… तुम्हारी बातें सुन कर मन में एक आस जगी है. पर सोचता हूं, कहीं तुम मना न कर दो.’ ‘ठाकुर साहब, मैं आप के लिए जान लड़ा सकता हूं.’

‘‘मैयादीन, तुम्हारी बहादुरी से खुश हो कर मैं तुम्हें इनाम देना चाहता था और इसलिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया था… पर अब मैं तुम से ही एक दान मांगना चाहता हूं.’ मैयादीन अचरज से बोला, ‘मैं आप को क्या दे सकता हूं? फिर भी आप हुक्म करें.’

ठाकुर साहब ने हिम्मत बटोर कर कहा, ‘‘तुम जानते हो, मेरे बेटे भानुप्रताप का ब्याह हुए 10 साल हो गए हैं, लेकिन सभी उपायों के बावजूद बहू की गोद आज तक सूनी है, इसलिए बेटे की कमजोरी छिपाने के लिए मैं लड़के की चाहत लिए यज्ञ के बारे में सोच रहा था. ‘‘मैं चाहता था, किसी महात्मा का बीज लूं, पर मेरे सामने एक बलवान और शीलवान बीजदाता के होते हुए किसी अनजान का बीज अपने खानदान के नाम पर कैसे पनपने दूं?’

यह सुन कर मैयादीन को जैसे दौरा पड़ गया. उस ने झुंझला कर कहा, ‘ठाकुर साहब… आज इस हवेली को क्या हो गया है? अभी कुछ देर पहले आप की बेटी… और अब आप?’ ‘मैयादीन, अगर तुम्हारा बीज मेरे वंश को आगे बढ़ाएगा, तो मुझे और मेरे बेटे को बिरादरी की आएदिन की चुभती बातों से नजात मिल जाएगी. मेरी आबरू एक दफा और बचा लो.’

ठाकुर साहब की लाचारी मैयादीन को ठंडा किए जा रही थी, फिर भी वह बोला, ‘‘ठाकुर साहब, मुझे किसी इनाम का लालच नहीं, और न ही मैं लूंगा, फिर भी मैं आप की बात कैसे मान लूं?’’ ठाकुर साहब ने अपनी पगड़ी मैयादीन के पैरों में रखते हुए कहा, ‘मान जाओ बेटा. तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगा.’’

ठाकुर साहब उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘तुम ने सच्चे महात्मा का परिचय दिया है… अब से एक महीने तक तुम हमारी जंगल वाली कोठी में रहोगे. तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें तुम्हें वहां मौजूद मिलेंगी. सही समय आने पर हम वहीं बहू को ले आएंगे…’ आदित्य का ध्यान टूटा, जब उस के कार ड्राइवर ने तीसरी बार कहा, ‘‘साहब, एयरपोर्ट आ गया है.’’

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जब तक आदित्य खानदानी ठाकुर था, तब तक उस के भीतर एक मानवतावादी अपने ही खानदान के खिलाफ बगावत पर उतर आया था, पर अब उसे मालूम हुआ कि वह कौन है, कहां से पैदा हुआ है, उस का और सफाई करने वाले सूरज का परदादा एक ही है, तब उस की सारी वैज्ञानिक योजनाएं अपनी मौत आप मर गईं. जिस सच को आदित्य दुनिया के सामने लाना चाहता था, वही सच उस के सामने नंगा नाच रहा था, इसलिए वह हमेशा के लिए इस देश को छोड़े जा रहा था. अपने पिता के पास, उन की तय की हुई योजनाओं का हिस्सा बनने.

पर जाने से पहले उस ने अपने दादा की गलती नहीं दोहराई. उन के परदादा के जतन से रखे दस्तावेज को वह जला आया था.

Short Story: कोरोना और अमिताभ

मैं मॉर्निंग वॉक करके आया तो वाशबेसिन में हाथ धोने खड़ा हो गया, साबुन लगाया… हाथ धोने लगा, आंखों के आगे अचानक  अमिताभ बच्चन आकर खड़े हो गए… मुस्कुरा कर देख रहे थे.. मैं चौका और संभल कर,  दिखाने के लिए, तन्मय हाथ धोते रहा, मैं सोच रहा था अमिताभ जी सामने खड़े हैं और देख रहे हैं कि मैं हाथ ठीक से, उनके कथनानुसार  धो रहा हूं कि नहीं , मैं जरा सकपकाया, भाई! सदी के महानायक हैं! कह रहे हैं 20 सेकंड हाथ धोना है, तो धो लो!!

अमिताभ बच्चन मेरी ओर देख रहे हैं, मैं हाथ धो रहा हूं उनके चेहरे पर गंभीर भाव था बोले- ” हूं…बीस सेकेंड हाथ धोना है , दो गज की दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना है, ओके.”

मैंने कहा-” अमिताभ जी! देखो, मैं तो आपका कहना मान रहा हूं आपने कहा है तो पालन तो करना ही है, मगर एक  बात अभी अभी मेरे दिमाग में आई है, कृपया उसका जवाब दीजिए.”

अमिताभ बच्चन के चेहरे पर स्मित मुस्कुराहट खेलने लगी, बोले-” हां हां भाई, पूछो.”

यह उन्होंने अपने खास अंदाज में कहा जैसे अक्सर कहते हैं, मैंने गला साफ करते हुए कहा-” आपने कहा है 20 सेकंड हाथ धोना है, है ना! यह आपको कैसे पता कि 20 सेकंड हाथ धोना है, इससे कोरोना संक्रमण खत्म हो जाता है.”

अमिताभ बच्चन की आंखें बड़ी बड़ी हो गई वक्र दृष्टि से देखने लगे फिर शांत भाव से अपने ही अंदाज में बोले,- “भाई! यह तो सामान्य बात है, मुझे स्क्रिप्ट दी गई, मैंने अपने अंदाज में पढ़ दी है… और हां, याद आया, यह डब्ल्यूएचओ का कहना है उसका मार्गदर्शन है, मेरी कोई कोरी कल्पना नहीं है भाई.”अमिताभ निश्चल हंसी हंसने लगे

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अमिताभ ने मुझे बड़ी अच्छी तरह समझाया था और शांत भाव से मेरे चेहरे की ओर देखने लगे मानो पढ़ रहे हो कि मैं संतुष्ट हुआ कि नहीं, मैंने चेहरे पर कोई भी भाव लाय बिना सहजता से पुनः सवाल किया-” अमिताभ जी, आप तो महानायक हैं, मैं तो आपका फैन हूं आप की फिल्में देखता हूं , आप जो कहते हैं मैं मान लूंगा मगर…”

” फिर मगर, भाई!” अमिताभ बोले

“यह कोरोना 20 सेकंड में मर जाएगा, इसकी क्या गारंटी है.” मैंने डरते डरते पूछा

“यह तो गलत बात है, भाई! जब हम कह रहे हैं.” उन्होंने अधिकार पूर्वक  कहा

“नहीं! मैं यह सोच रहा हूं, मान लो कोरोना का स्टैंन अब बढ़ गया हो, आपने यह बात तो बहुत पहले कही थी, अभी स्टैंन    बदल गया हो, फिर क्या करूं…”

“क्या मतलब?”

“देखिए, माफ करिए अमिताभ जी! मैं आपका बहुत बहुत बड़ा फैन हूं मगर मेरे दिमाग में पता नहीं यह सवाल क्यों उठ रहा है कि मान लीजिए अब कोरोनावायरस 20 सेकंड में ही नहीं मरता हो ! अब हो सकता है उसकी ऊर्जा बढ़ गई हो 21 या 22 सेकंड हाथ धोने पर मरे, तब क्या होगा!”

अमिताभ बच्चन मेरी बाल बुद्धि पर  हंसे, फिर कहा,-” तो भाई! 22 सेकंड हाथ धो लो 25 सेकंड हाथ धो लो, अच्छी बात है.. ”

“अच्छा, हो सकता है 25 सेकंड में  वायरस नहीं मरता हो 30 सेकंड हाथ धोने पर खत्म हो तब…” मैंने बड़ी मासूमियत से कहा

” अरे! यह क्या बात है! तुम तो…”

” हो सकता है, अब 60 सेकंड यानी 1 मिनट हाथ धोने पर ही वायरस खत्म हो रहा हो, फिर क्या करूं.”

अमिताभ बच्चन बोले-” हां तो ठीक है, पूरे 60 सेकंड हाथ धो लो.”

“मगर मुझे पता नहीं क्यों लग रहा है वायरस की शक्ति बढ़ गई होगी, जिस तरह प्रकोप मचा हुआ है, लोग मर रहे हैं 2 मिनट हाथ धोना चाहिए तब ही कोरोनावायरस खत्म होगा.” मैंने भोलेपन से कहा

“देखो भाई…” अमिताभ बच्चन अपनी शैली में समझाते हुए बोले,-” अभी कुछ अनुसंधान चल रहे हैं, वैज्ञानिक शोध में लगे हुए हैं, यह ध्यान में रखते हुए बस हाथ धोते रहो, मैं तो बस यही कहूंगा.”

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“मगर? ”

“अरे भाई, तुम तो हमारा दिमाग ही चट कर जाओगे , मुझे और भी फ्रेंड के पास जाना है, तुम अपनी समझदारी से हाथ धोते रहो… जब तक तसल्ली ना हो जाए… बस धोते रहो, ठीक है .” और अमिताभ बच्चन मेरी आंखों के सामने से अचानक अदृश्य हो गए.

Mother’s Day Special: मां का फैसला- भाग 1

रजनीगंधा की बड़ी डालियों को माली ने अजीब तरीके से काटछांट दिया था. उन्हें सजाने में मुझे बड़ी मुश्किल हो रही थी. बिट्टी ने अपने झबरे बालों को झटका कर एक बार उन डालियों से झांका, फिर हंस कर पूछा, ‘‘मां, क्यों इतनी परेशान हो रही हो. अरे, प्रभाकर और सुरेश ही तो आ रहे हैं…वे तो अकसर आते ही रहते हैं.’’ ‘‘रोज और आज में फर्क है,’’ अपनी गुडि़या सी लाड़ली बिटिया को मैं ने प्यार से झिड़का, ‘‘एक तो कुछ करनाधरना नहीं, उस पर लैक्चर पिलाने आ गई. आज उन दोनों को हम ने बुलाया है.’’

बिट्टी ने हां में सिर हिलाया और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई. अजीब लड़की है, हफ्ताभर पहले तो लगता था, यह बिट्टी नहीं गंभीरता का मुखौटा चढ़ाए उस की कोई प्रतिमा है. खोईखोई आंखें और परेशान चेहरा, मुझे राजदार बनाते ही मानो उस की उदासी कपूर की तरह उड़ गई और वही मस्ती उस की रगों में फिर से समा गई.

‘मां, तुम अनुभवी हो. मैं ने तुम्हें ही सब से करीब पाया है. जो निर्णय तुम्हारा होगा, वही मेरा भी होगा. मेरे सामने 2 रास्ते हैं, मेरा मार्गदर्शन करो.’ फिर आश्वासन देने पर वह मुसकरा दी. परंतु उसे तसल्ली देने के बाद मेरे अंदर जो तूफान उठा, उस से वह अनजान थी. अपनी बेटी के मन में उठती लपटों को मैं ने सहज ही जान लिया था. तभी तो उस दिन उसे पकड़ लिया.

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कई दिनों से बिट्टी सुस्त दिख रही थी, खोईखोई सी आंखें और चेहरे पर विषाद की रेखाएं, मैं उसे देखते ही समझ गई थी कि जरूर कोई बात है जो वह अपने दिल में बिठाए हुए है. लेकिन मैं चाहती थी कि बिट्टी हमेशा की तरह स्वयं ही मुझे बताए. उस दिन शाम को जब वह कालेज से लौटी तो रोज की अपेक्षा ज्यादा ही उदास दिखी. उसे चाय का प्याला थमा कर जब मैं लौटने लगी तो उस ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया और रोने लगी.

बचपन से ही बिट्टी का स्वभाव बहुत हंसमुख और चंचल था. बातबात में ठहाके लगाने वाली बिट्टी जब भी उदास होती या उस की मासूम आंखें आंसुओं से डबडबातीं तो मैं विचलित हो उठती. बिट्टी के सिवा मेरा और था ही कौन? पति से मानसिकरूप से दूर, मैं बिट्टी को जितना अपने पास करती, वह उतनी ही मेरे करीब आती गई. वह सारी बातों की जानकारी मुझे देती रहती. वह जानती थी कि उस की खुशी में ही मेरी खुशी झलकती है. इसी कारण उस के मन की उठती व्यथा से वही नहीं, मैं भी विचलित हो उठी. सुरेश हमारे बगल वाले फ्लैट में ही रहता था. बचपन से बिट्टी और सुरेश साथसाथ खेलते आए थे. दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. उस की मां मुझे मानती थी. मेरे पति योगेश को तो अपने व्यापार से ही फुरसत नहीं थी, पर मैं फुरसत के कुछ पल जरूर उन के साथ बिता लेती. सुरेश बेहद सीधासादा, अपनेआप में खोया रहने वाला लड़का था, लेकिन बिट्टी मस्त लड़की थी.

बिट्टी का रोना कुछ कम हुआ तो मैं ने पूछ लिया, ‘आजकल सुरेश क्यों नहीं आता?’ ‘वह…,’ बिट्टी की नम आंखें उलझ सी गईं.

‘बता न, प्रभाकर अकसर मुझे दिखता है, सुरेश क्यों नहीं?’ मेरा शक सही था. बिट्टी की उदासी का कारण उस के मन का भटकाव ही था. ‘मां, वह मुझ से कटाकटा रहता है.’

‘क्यों?’ ‘वह समझता है, मैं प्रभाकर से प्रेम करती हूं.’

‘और तू?’ मैं ने उसी से प्रश्न कर दिया. ‘मैं…मैं…खुद नहीं जानती कि मैं किसे चाहती हूं. जब प्रभाकर के पास होती हूं तो सुरेश की कमी महसूस होती है, लेकिन जब सुरेश से बातें करती हूं तो प्रभाकर की चाहत मन में उठती है. तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं. किसे अपना जीवनसाथी चुनूं?’ कह कर वह मुझ से लिपट गई.

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मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरा और सोचने लगी कि कैसा जमाना आ गया है. प्रेम तो एक से ही होता है. प्रेम या जीवनसाथी चुनने का अधिकार उसे मेरे विश्वास ने दिया था. सुरेश उस के बचपन का मित्र था. दोनों एकदूसरे की कमियों को भी जानते थे, जबकि प्रभाकर ने 2 वर्र्ष पूर्व उस के जीवन में प्रवेश किया था. बिट्टी बीएड कर रही थी और हम उस का विवाह शीघ्र कर देना चाहते थे, लेकिन वह स्वयं नहीं समझ पा रही थी कि उस का पति कौन हो सकता है, वह किस से प्रेम करती है और किसे अपनाए.

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