मानसून स्पेशल : सोने की चिड़िया- भाग-2

‘‘समय हमेशा एक सा तो नहीं रहता न भाभी. पीयूष भैया का सदमा पापा सह नहीं सके. पक्षाघात का शिकार हो गए. जो कुछ भविष्य निधि मिली उन के इलाज और अमला दीदी के विवाह में खर्च हो गई. पेंशन से फ्लैट की कि स्त दें या घर का खर्च चलाएं. उस पर रोहित भैया की डाक्टरी की पढ़ाई. रोहित भैया पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करने जा रहे थे. मैं ने ही कहा कि मैं तो प्राइवेट पढ़ाई भी कर सकती हूं. रोहित भैया ने पढ़ाई पूरी कर ली तो पूरे परिवार का सहारा बन जाएंगे. इसीलिए नौकरी कर ली. 7 हजार भी बड़ी रकम लगती है आजकल,’’ पूरी कहानी बताते हुए रो पड़ी थी मानसी.

‘‘इतना सब हो गया और तुम लोगों ने मुझे सूचित तक नहीं किया. एकदम से पराया कर दिया अपनी भाभी को?’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा आए थे.

‘‘पराया तो आप ने कर दिया, भाभी. भैया क्या गए आप भी हमें भूल गईं और जैसे ही आप घर छोड़ कर गईं मां तो बिलकुल बुझ सी गई हैं. सदा एक ही बात कहती हैं, ‘मैं ने सुहासिनी को अपनी बहू नहीं बेटी समझा था पर उस ने तो पीयूष के बाद पलट कर भी नहीं देखा.’ टीना को देखने को तड़पती रहती हैं. उस के जन्मदिन पर बधाई देना चाहती थीं पर पापा ने मना कर दिया. कहने लगे, आप सोचेंगी कि पैसे के चक्कर में बच्ची को बहका रहे हैं ससुराल वाले,’’ मानसी किसी प्रकार अपने आंसू रोकने का प्रयत्न करने लगी थी.

सुहासिनी ने खाने के लिए जो हलकाफुलका, मंगाया था वैसे ही पड़ा रहा. चाय भी ठंडी हो गई पर दोनों में से किसी ने छुआ तक नहीं.

‘‘मुझे घर छोड़ दो, भाभी. मां सदा यही सोचती रहती हैं कि कहीं कुछ अशुभ न घट गया हो,’’ मानसी उठ खड़ी हुई थी.

सुहासिनी मानसी को बाहर से ही छोड़ कर चली आई थी. घर के अंदर जा कर किसी का सामना करने का साहस उस में नहीं था. वैसे भी कहीं एकांत में बैठ कर फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था उस का. अनजाने में ही कैसा अन्याय हो गया था उस से.

पीयूष की पत्नी होने के नाते ही उसे मुआवजा मिला था. उसी के स्थान पर नौकरी मिली थी और वह सारे बंधन तोड़ कर मुंह फेर कर चली आई थी.

‘‘लो, आ गईं महारानी,’’ सुहासिनी को देखते ही मां ने ताना कसा था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? आप इतने क्रोध में क्यों हैं,’’ सुहासिनी ने पूछ ही लिया था.

 

मानसून स्पेशल: हम खो जाएंगे – भाग 2

अपनी बातों के दरम्यान वह आमतौर पर हम का ही इस्तेमाल करती थी. अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार थी. कभी मूड में होती थी तो मजे की बातें करती थी, वरना आमतौर पर मेरे सामने आ कर बैठ जाती थी और बड़ीबड़ी आंखों से एकटक देखा करती थी. मेरे अलावा उस घर में कभीकभार एक लड़का दिखाई दिया करता था. उस का नाम नासिर था.

मुझे यह नहीं मालूम था कि उस का घर से क्या रिश्ता है मगर वह बड़ी बेतकल्लुफी से शाहीना से बात किया करता था. शाहीना ने बस सिर्फ इतना बताया था कि वो उन का रिश्तेदार है. कई बार मन होता कि उस से सवाल करूं कि रिश्ता क्या है? मगर यह सोच कर छोड़ दिया कि मुझे पेड़ गिनने से क्या मतलब?

शाहीना मुझ पर मरती थी. जेब कभी खाली नहीं रहती थी. तनख्वाह 2 सौ रुपए थी. 100 रुपए अब्बू ऐंठ लिया करते थे, 50 अम्माजी की भेंट चढ़ जाते थे. मेरे हिस्से में केवल 50 रुपए रह जाते थे. खुद सोच लें कि एक आवारागर्द लड़के को कितने दिन मजे से रख सकते थे.

महीने के शुरू के दिनों में ही जेब खाली हो जाती थी. शाहीन को मैं ने अपनी आर्थिक स्थिति शुरू में ही बता दी थी कि मैं फोरेस्ट डिपार्टमैंट में काम करने वाले एक मामूली से नौकर की छठी औलाद हूं.

बाप अपनी 3 बहनों और 2 बेटियों की शादी करने के बाद बिलकुल कंगाल हो चुका है. इसलिए मेरी तालीम के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो पाते हैं. अम्मी अकसर बीमार रहती हैं. उन का अच्छी तरह इलाज नहीं हो सका है. रिजल्ट के बाद प्राइवेट तौर पर इम्तिहान की तैयारी करूंगा. अच्छी नौकरी मेरी जिंदगी का मकसद है.

मौजूदा नौकरी टैंपरेरी है किसी भी समय जवाब मिल सकता है. जब तक तुम्हारे अब्बू मेहरबान हैं, हमारा गुजारा हो रहा है. जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि उन की बेटी से इश्क फरमाने लगा हूं, वो मुझे नौकरी से निकाल बाहर करेंगे. इस से पहले कि यह स्थिति आ जाए मैं खुद यह नौकरी छोड़ना चाहता हूं.

शाहीना मेरी दर्द भरी कहानी सुन कर मेरी मोहब्बत पर और जोर से ईमान ले आई. वो चुपकेचुपके मेरी जेब में सौपचास के नोट डाल दिया करती  थी. कभी सूट का कपड़ा खरीद लाती तो कभी पतलून, टाई तोहफे में दे देती.

3 महीने बाद मेरा रिजल्ट आ गया. मैं थर्ड डिविजन में पास हो गया था. औफिस में मिठाई बांटी. वहीद साहब ने बुलवा लिया. मुबारकबाद दी. कहने लगे, ‘‘मियां, माशा अल्लाह होनहार हो. इम्तिहान में निकल गए यहां मीटिंग होने वाली है, देखते हैं तुम्हारा मुकद्दर यहां भी चमकता है या नहीं. अगर तुक्का चल गया तो तनख्वाह भी बढ़ जाएगी और नौकरी भी पक्की हो जाएगी.’’

मुझ से मीठी बातें करने के बाद उन्होंने तोते की तरह आंखें फेर लीं. हुआ यह कि उन के रिश्तेदार ने भी इंटर पास किया था. वह सिफारिश के लिए उन के पास आ गया. वहीद साहब ने चुपकेचुपके उसे अपने पास रखने का फैसला कर लिया. मुझे पता ही नहीं चलने दिया. मेरी वह रिपोर्ट जो कुछ दिनों बाद मीटिंग में पेश करनी थी, रातोंरात बदल दी.

मुझे इस काम के लिए अयोग्य और गैरजिम्मेदार करार दे कर फौरी तौर पर नौकरी से अलग करने की सिफारिश के साथ दूसरी रिपोर्ट मीटिंग में पेश कर दी. औफिस में दूसरे लोग पहले से ही मुझ से जलते थे कि हर समय साहब के घर के चक्कर काटता रहता है. औफिस का काम करता ही कहां था.

वहीद साहब ने मुझे अपना पीए बना डाला और इस का बदला भी कुछ नहीं मिला. आखिरी समय तक उन्होंने मुझे धोखे में रखा. यही कहते रहे कि फिक्र न करो मियां तुम्हारी नौकरी पक्की करवा देंगे.

मीटिंग हुई. मुझे पूरी उम्मीद थी कि नौकरी भी पक्की होगी और पैसे भी बढ़ेंगे. अपने तौर पर सारी काररवाई बड़े ही खुफिया तरीके से हो रही थी. जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, मैं वहीद साहब से मिलने के लिए बेचैन हो गया. वो नहीं मिले, सीधे घर चले गए. मैं घर पहुंचा. पता चला कि किसी काम से बाहर गए हुए हैं.

औफिस आया तो नक्शा ही बदला हुआ था. हर जुबान पर मेरी नौकरी खत्म होने का जिक्र था. जूनियर एकाउंटेट ने बुला कर मुझे सारी सच्चाई बता दी कि वहीद साहब ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है.

मेरे तनबदन में आग लग गई. उन्होंने ए टू जैड तक मीटिंग की सारी काररवाई सुना दी. कहने लगे, ‘वह बड़े काइयां हैं. देखना, वो तुम से मिलना भी गवारा नहीं करेंगे. उन्होंने मीटिंग के बाद उस लड़के का अपौइंटमेंट लैटर भी टाइप करवा लिया है, जिसे वह तुम्हारी जगह रखना चाहते हैं. यह लड़का नासिर उन का रिश्तेदार है.’

मेरे कानों की लौएं गरम हो गईं. नासिर को मैं ने उन के घर भी देखा था. इस का मतलब यह हुआ कि दोनों बापबेटी मुझे उल्लू बना रहे थे. वहीद साहब ने उसे नौकरी दिलवाई है. बेटी उसे बहुत लिफ्ट देती है. अब मेरी जगह नासिर वहां जाया करेगा.

अगर इस समय शाहीना इस खेल में शरीक न थी तो क्या हुआ. चंद दिनों बाद वो भी जैनब की तरह पटरी बदल कर नए रास्ते पर चल निकलेगी. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. मुझे वहीद साहब को ऐसा मजा चखाना होगा कि वह भी याद रखें.

अगले दिन सूरज डूबने के वक्त वहीद साहब के घर पहुंचा, मुझे मालूम था कि इस वक्त बच्चों सहित वह सैर के लिए किसी छोटे पार्क में जाते हैं और घर पर शाहीना अकेली होती है.

मेरा पैगाम पहुंचते ही वह बेकरारी से बाहर निकल आई. कहने लगी, ‘कमाल के आदमी हैं आप, सुना है कल आए थे. बाहर से ही अब्बू को पूछा और चल दिए, हम इंतजार करते ही रह गए. हमें आप से बहुत जरूरी बात करनी थी.’

वह मुझे अंदर ले आई. घर में उस के सिवा और कोई न था. कहने लगी, ‘वो लोग अभी सैर के बाद लौट आएंगे. हम फिर शायद इतनी आजादी के साथ आप से न मिल सकें. अब्बू हमारी शादी नासिर से करना चाहते हैं. वह अब्बू का भांजा है. हमें इस रिश्ते पर कोई ऐतराज न होता अगर आप से पहले वादा न किया होता. हम वादा निभाने वालों में से हैं. बताइए, आप हम से शादी करेंगे या यों ही दिल्लगी कर रहे थे.’

लड़की की इस साफगोई से पसीने छूट गए. मगर यह हिम्मत दिखाने का मौका था. मैं ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का साथी बनाना चाहता था, मगर तुम्हारे अब्बू साहब ने सब कुछ चौपट कर दिया. उन्होंने मुझे नौकरी से निकलवा दिया है और नासिर को मेरी जगह रख लिया है.’

वह बोली, ‘यह तो और भी अच्छा हुआ. अब्बू साहब हमारी यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं करेंगे. वह नासिर से भी कहते रहते हैं कि यह लड़की तुम्हारा सुकून बरबाद कर देगी. हम सचमुच उन का सुकून बरबाद कर के छोड़ेंगे, आप हमारे साथ चलने को तैयार हो जाइए.

‘हम दोनों यह शहर छोड़ कर मुंबई चले जाएंगे. आप वहां नौकरी तलाश कर के हमारे लिए छोटा सा घर बना दें, हम सारी उम्र आप के कदमों में बसर करेंगे. इस घर से अब हमें नफरत होने लगी है.’

ओह, तो साहबजादी मेरे साथ भागने के मंसूबे बना रही थीं. यानी कुदरत ने बदला लेने का मौका खुद ही हमारी झोली में डाल दिया था. वहीद साहब ने अपने भांजे को खुशियां देने के लिए मेरी नौकरी और अपनी बेटी के जज्बात की भेंट चढ़ाई थी. उन्हें सबक देना जरुरी हो गया था.

मैं ने फौरन शाहीना के मंसूबे पर हामी भर दी. वह कहने लगी, ‘आप खर्चे की फिक्र न करें. सारा इंतजाम हम करेंगे. आप पर आंच नहीं आने देंगे. जब तक आप की नौकरी नहीं लगेगी, घर का खर्च हम उठाएंगे.

इस हसीन पेशकश पर दिल झूम उठा. सोचा सब मुफ्त में हाथ आए तो बुरा क्या है. मेरे घर वाले खुद मेरी आवारागर्दी से तंग आए हुए हैं. उन से कह दूंगा कि मुंबई जा कर नौकरी ढूंढूंगा. अब्बू के बारे में मुझे पता था कि बहुत खुश होंगे.

वह बारबार कहते थे कि मंसूर मियां कोई दूसरी नौकरी ढूंढो. यह सौपचास वाली नौकरी दिल को कुछ जंचती नहीं. उन की यह हसरत भी पूरी हो जाएगी कि मैं दूसरे शहर जा कर भी नौकरी तलाशने की कोशिश करुंगा. अभी मैं ने उन्हें नौकरी छूटने के बारे में कुछ नहीं बताया था.

घर लौटा तो पूरी योजना मेरे दिमाग में तैयार हो चुकी थी. वहीद साहब से बदला ले कर अपने भविष्य तक के लिए ढेरों सपने देख डाले थे मैं ने. शाहीना एक अच्छी बीवी साबित हो सकती थी. इस से पहले जिन आधा दरजन लड़कियों से मेरा चक्कर चला था, जो खुद भी मेरे जैसी ही थीं. इसलिए मुझे शाहीना की मोहब्बत पर भी शक होने लगा था कि वह भी यूं ही वक्त गुजारी के तौर पर यह शगल अपनाए हुए है.

मगर जब उस ने मेरे साथ जिंदगी गुजारने का पूरा प्रोग्राम संजीदगी से सुना दिया, तब मुझे वो अच्छी लगी कि शादी कहीं न कहीं तो करनी ही होगी. यह लड़की इतनी कुरबानियां दे रही है, सारी उम्र वफादार रहेगी. वहीद साहब तिलमिला कर रह जाएंगे और उन का वो भांजा हाथ मलता रह जाएगा. उन्हें कभी दुश्मन का नाम तक मालूम हो नहीं सकेगा.

प्रोग्राम यह तय हुआ था कि वो अपनी खाला के घर जाने के बहाने घर से निकलेगी. और खुद स्टेशन पहुंच जाएगी. वहां मैं उस का इंतजार करूंगा और पहले से ही 2 टिकट खरीद लूंगा, वह ऐन वक्त पर आएगी. दोनों अलगअलग डिब्बों में सफर करेंगे.

अपनाअपना टिकट पास रखेंगे. ताकि किसी को शुबहा न हो. अगर खुदा न खास्ता पुलिस ने हम में से किसी एक को पकड़ लिया तो वह हरगिज दूसरे का नाम न लेगा और ऐसी सूरत में उस से पूरी तरह से अजनबी बन जाएगा. वैसे इस बात की संभावना बहुत कम थी, फिर भी इस तेज दिमाग की लड़की को मुझे बचाए रखने का पूरा ध्यान था.

तय प्रोग्राम के मुताबिक मैं ने अब्बू को बता दिया कि मैं एक इंटरव्यू के लिए मुंबई जा रहा हूं. अगर नौकरी मिल गई तो अपना सामान लेने वापस आ जाऊंगा. न मिल सकी तो कुछ दिन ठहर कर एकदो जगह और कोशिश करूंगा.

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल

मानसून स्पेशल : सोने की चिड़िया- भाग-1

बड़े से मौल में अपनी सहेली शिखा के साथ चहलकदमी करते हुए साड़ी कार्नर की ओर बढ़ गई थी सुहासिनी. शो केस में काले रंग की एक साड़ी ने उस का ध्यान आकर्षित किया पर सेल्स- गर्ल की ओर पलटते ही वह कुछ यों चौंकी मानो सांप पर पांव पड़ गया हो.

‘‘अरे, मानसी तुम, यहां?’’ उस के मुंह से अनायास ही निकला था.

‘‘जी हां, मैं यहां. कहिए, किस तरह की साड़ी आप को दिखाऊं? या फिर डे्रस मेटीरियल?’’ सेल्स गर्ल ने मीठे स्वर में पूछा था.

‘‘नहीं, कुछ नहीं चाहिए मुझे. मैं तो यों ही देख रही थी,’’ सुहासिनी के मुख से इतना भी किसी प्रकार निकला था.

मानसी कुछ बोलती उस से पहले ही सुहासिनी बोल पड़ी, ‘‘मानसी, क्या मैं तुम से कुछ देर के लिए बातें कर सकती हूं?’’

‘‘क्षमा कीजिए, मैम, हमें काम के समय व्यक्तिगत कारणों से अपना स्थान छोड़ने की अनुमति नहीं है. आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगी,’’ मानसी ने धीमे स्वर में उत्तर दिया था और अपने कार्य में व्यस्त हो गई थी.

‘‘क्या हुआ? इस तरह प्रस्तरमूर्ति बनी क्यों खड़ी हो? चलो, जल्दी से भोजन कर के चलते हैं. लंच टाइम समाप्त होने वाला है,’’ शिखा ने उसे झकझोर ही दिया था और मौल की 5वीं मंजिल पर स्थित रेस्तरां की ओर खींच ले गई थी.

‘‘क्या लोगी? मैं तो अपने लिए कुछ चाइनीज मंगवा रही हूं,’’ शिखा ने मीनू पर सरसरी निगाह दौड़ाई थी.

‘‘मेरे लिए एक प्याली कौफी मंगवा लो और कुछ खाने का मन नहीं है,’’ सुहासिनी रुंधे गले से बोली थी.

‘‘बात क्या है? कैंटीन में खाने का तुम्हारा मन नहीं था इसीलिए तो हम यहां तक आए. फिर अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’ शिखा अनमने स्वर में बोली थी.

‘‘साड़ी कार्नर के काउंटर पर खड़ी सेल्सगर्ल को ध्यान से देखा तुम ने?’’

‘‘नहीं. मैं ने तो उस पर ध्यान नहीं दिया. मैं दुपट्टा खरीदने लगी थी पर तुम ने तो उस से बात भी की थी और उसे ध्यान से देखा भी था.’’

‘‘ठीक कह रही हो तुम. मेरे मनमस्तिष्क पर इतनी देर से वही छाई हुई है. पता है कौन है वह?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘वह मेरी ननद मानसी है, शिखा.’’

‘‘क्या कह रही हो? वह यहां क्या कर रही है?’’

‘‘साडि़यों के काउंटर पर साडि़यां बेच रही है और क्या करेगी.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘यही तो जानना चाहती थी मैं पर उस ने तो बात तक नहीं की.’’

‘‘बात नहीं की तो तुम उसे गोली मारो. क्यों अपनी जान हल्कान कर रही हो. वैसे भी तुम तो उस घर को 3 वर्ष पहले ही छोड़ चुकी हो. जब पीयूष ही नहीं रहा तो तुम्हारा संपर्क सूत्र तो यों भी टूट चुका है,’’ शिखा ने समझाया था.

‘‘संपर्क सूत्र तोड़ना क्या इतना सरल होता है, शिखा? उस समय पीयूष का संबल छूट जाने पर मैं कुछ भी सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. मातापिता, भाईभाभी ने विश्वास दिलाया कि वे मेरे सच्चे हितैषी हैं और मैं अपनी ससुराल छोड़ कर उन के साथ चली आई थी. उन्हें यह डर सता रहा था कि पीयूष के बीमे और मुआवजे आदि के रूप में जो 20  लाख रुपए मिले थे उन्हें कहीं मेरे ससुराल वाले न हथिया लें.’’

‘‘उन का डर निर्मूल भी तो नहीं था, सुहासिनी?’’

‘‘पता नहीं शिखा, पर मेरे और पीयूष के विवाह को मात्र 3 वर्ष हुए थे. परिवार का बड़ा, कमाऊ पुत्र हादसे का शिकार हुआ था…उन पर तो दुखों का पहाड़ टूटा था…मैं स्वयं भी विक्षिप्त सी अपनी 2 वर्ष की बेटी को सीने से चिपकाए वास्तविकता को स्वीकार करने का प्रयत्न कर रही थी. ऐसे में मेरे परिवार ने क्या किया जानती हो?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरे दहेज की एकएक वस्तु वापस मांग ली थी उन्होंने. मेरी सास ने विवाह में उन्हें दी गई छोटीमोटी भेंट भी लौटा दी थी. सिसकते हुए कहने लगीं, ‘मेरा बेटा ही चला गया तो इन व्यर्थ की वस्तुओं को रख कर क्या करूंगी?’ पर जब मैं अपनी बेटी टीना को उठा कर चलने लगी तो वे तथा परिवार के अन्य सदस्य फफक उठे थे, ‘मत जाओ, सुहासिनी और तुम जाना ही चाहती हो तो टीना को यहीं छोड़ जाओ. पीयूष की एकमात्र निशानी है वह. हम पाल लेंगे उसे. वैसे भी वह तुम्हारे भविष्य में बाधक बनेगी.’’’

‘‘तो तुम ने क्या उत्तर दिया था, सुहासिनी?’’

‘‘मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही बड़ी भाभी ने झपट कर टीना को मेरी गोद से छीन लिया था और टैक्सी में जा बैठी थीं. मैं निशब्द चित्रलिखित सी उन के पीछे खिंची चली गई थी.’’

‘‘जो हुआ उसे दुखद सपना समझ कर भूल जाओ सुहासिनी. उन दुख भरी यादों को याद करोगी तो जीना दूभर हो जाएगा,’’ शिखा ने सांत्वना दी थी.

‘‘जीना तो वैसे ही दूभर हो गया है. तब मैं कहां जानती थी कि धन के लालच में ही मेरा परिवार मुझे ले आया था. छोटे भाई सुहास ने कार खरीदी तो मुझ से 2 लाख रुपए उधार लिए थे. वादा किया था कि वर्ष भर में सारी रकम लौटा देंगे पर लाख मांगने पर भी एक पैसा नहीं लौटाया. अब तो मांगने का साहस भी नहीं होता. सुहास उस प्रसंग के आते ही आगबबूला हो उठता है.’’

‘‘चल छोड़ यह सब पचड़े और थोड़ा सा चाऊमीन खा ले. भूख लगी होगी,’’ शिखा ने धीरज बंधाया था.

‘‘मैं लाख भूलने की कोशिश करूं पर मेरे घर के लोग भूलने कहां देते हैं. अब बडे़ भैया को फ्लैट खरीदना है. प्रारंभिक भुगतान के लिए 10 लाख मांग रहे हैं. मैं ने कहा कि सारी रकम टीना के लिए स्थायी जमा योजना में डाल दी है तो कहने लगे, खैरात नहीं मांग रहे हैं, बैंक से ज्यादा ब्याज ले लेना.’’

‘‘ऐसी भूल मत करना, तुम्हें अपने लिए भी तो कुछ चाहिए या नहीं. मुझे नहीं लगता उन की नीयत ठीक है,’’ शिखा ने सलाह दी थी.

‘‘मुझे तो पूरा विश्वास है कि मेरे प्रति उन का पे्रेम केवल दिखावा है. टीना बेचारी तो बिलकुल दब कर रह गई है. हर बात पर उसे डांटतेडपटते हैं. मैं बीच में कुछ बोलती हूं तो कहते हैं कि तुम टीना को बिगाड़ रही हो.’’

‘‘तुम्हारे मातापिता कुछ नहीं कहते?’’

‘‘नहीं, वे तो अपने बेटों का ही पक्ष लेते हैं. जब से मैं ने बड़े भैया को फ्लैट के लिए 10 लाख देने से मना किया है, मां मुझ से बात तक नहीं करतीं,’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा गए थे.

‘‘क्यों अपने को दुखी करती है, सुहासिनी. अलग फ्लैट क्यों नहीं ले लेती. मैं ने तो पहले भी तुझे समझाया था. क्या नहीं है तेरे पास? सौंदर्य, उच्च शिक्षा, मोटा बैंक बैलेंस. दूसरे विवाह के संबंध में क्यों नहीं सोचती तू?’’

‘‘मेरे जीवन में पीयूष का स्थान कोई और नहीं ले सकता और मैं टीना के लिए सौतेला पिता लाने की बात सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘इसीलिए तुम ने योगेश जैसे योग्य युवक को ठुकरा दिया?’’ शिखा ने अपना चाऊमीन समाप्त करते हुए कहा था.

‘‘नहीं, मैं खुद दूसरा विवाह नहीं करना चाहती. यों भी उसे मुझ से या टीना से नहीं मेरे पैसे और नौकरी में अधिक रुचि थी.’’

‘‘चलो, ठीक है, तुम सही और सब गलत. बहस में तुम से कोई जीत ही नहीं सकता,’’ शिखा ने पटाक्षेप करते हुए बिल चुकाया और दोनों सहेलियां मौल से बाहर आ गईं.

कार्यालय में व्यस्तता के बीच भी मानसी का भोलाभाला चेहरा सुहासिनी की आंखों के सामने तैरता रहा था.

5 बजते ही सुहासिनी अपना स्कूटर उठा कर मौल के सामने आ खड़ी हुई. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. कुछ ही देर में मानसी आती नजर आई थी.

‘‘अरे, भाभी, आप अभी तक यहीं हैं? आप तो मुझे देख कर बिना कुछ खरीदे ही लौट गई थीं?’’ मानसी ने उसे देख कर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए थे.

‘‘मैं तब से यहीं नहीं हूं, मैं और मेरी सहेली शिखा यहां लंच के लिए आए थे. मैं कार्यालय से यहां फिर से केवल तुम्हारे लिए आई हूं. चलो बैठो, कहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ सुहासिनी ने अपने स्कूटर की पिछली सीट की ओर इशारा किया था.

‘‘नहीं भाभी, मेरी बस छूट जाएगी. देर हो जाने पर मां बहुत चिंता करने लगती हैं,’’ मानसी संकुचित स्वर में बोली थी.

‘‘बैठो मानसी, मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूंगी,’’ सुहासिनी का अधिकारपूर्ण स्वर सुन कर मानसी ना नहीं कह सकी थी.

‘‘अब बताओ, तुम्हें मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’ रेस्तरां में आमने- सामने बैठते ही पूछा था सुहासिनी ने.

दूसरे भाग में जानिए आखिर क्यों सेल्सगर्ल बनने पर मजबूर हुई मानसी?

हमें तुम से प्यार कितना

डाक्टर बेटी : शमीम कुर्सी पर बैठे हुए क्या ख्वाब देख रही थी- भाग 2

’’ अमीना बेगम गुस्से में बोलीं. ‘‘नहीं अम्मी, आप को समझाने की कोशिश कर रहा हूं. जो भूल आप ने अनवर के साथ की है, उस भूल को मेरे साथ न दोहराएं. अम्मी, किसी मासूम की जिंदगी से खेलना अच्छा नहीं होता…’’ ‘‘वसीम, मैं तुम्हारी दूसरी शादी करूंगी.’’ ‘‘अगर दूसरी बीवी से भी लड़कियां पैदा हुईं, तब आप क्या करेंगी…?’’ ‘‘ऐसा नहीं होगा…’’ अमीना बेगम ने जोर दे कर कहा. ‘‘लेकिन, मुझे आप की बात मंजूर नहीं है,’’ कहते हुए वसीम आगे बढ़ा.

‘‘वसीम, एक बात कान खोल कर सुन लो, तुम ने आज तक अपनी जिद की है. इस बार भी तुम जिद कर रहे हो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगी.’’ ‘‘अम्मी, आप समझती क्यों नहीं? शमीम बहुत ही नेक औरत है.’’ ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब ‘हां’ या ‘न’ में चाहिए.’’ ‘‘मुझे दूसरी शादी नहीं करनी,’’ वसीम ने दोटूक जवाब दिया. ‘‘ठीक है, आज के बाद तुम मुझ से कभी भी मिलने की कोशिश मत करना,’’ इतना कह कर अमीना बेगम तेज कदमों से आगे बढ़ गईं. वसीम ने एक गहरी सांस ली और वार्ड में चला गया. सामने ही शमीम लेटी हुई थी. सफेद कपड़ों में उस का पीला चेहरा बुरी तरह मुरझाया हुआ था. आंखों से आंसू बह रहे थे.

शमीम को रोते देख कर वसीम उस के ही बैड पर बैठ गया और उंगली से उस के आंसू पोंछते हुए बोला. ‘‘शमीम, तुम रो रही हो. लगता है, तुम ने मेरी और अम्मी की बातें सुन ली हैं.’’ ‘‘ठीक ही तो कहती हैं अम्मी. उन्हें पोता चाहिए. आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?’’ ‘‘शमीम, क्या हमारे मुहब्बत की डोर इतनी नाजुक है कि एक हलका सा झटका उसे तोड़ दे.’’ ‘‘लेकिन, हम अम्मी को तो नाराज नहीं कर सकते…’’ ‘‘तुम इस बारे में जरा भी मत सोचो, तुम्हें आराम की जरूरत है,’’ वसीम ने शमीम की बगल में सो रही बच्ची को प्यार किया और वहीं पर रखी एक कुरसी पर गुमसुम सा बैठ गया. अमीना बेगम के 2 बेटे थे, वसीम और अनवर. उन के शौहर कई साल पहले गुजर गए थे.

उन्होंने मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे अपने बच्चों की परवरिश की थी. वसीम अनवर से 2 साल बड़ा था. अनवर की शादी हुए 8 साल बीत गए थे और उस के 4 लड़के थे. वह केवल इंटर तक पढ़ पाया था. अम्मी की जिद पर उस ने जल्दी ही शादी कर ली थी. उस के कंधों पर परिवार का बोझ आ गया, तो वह नौकरी खोजने लगा. नौकरी न मिलने पर वह बसस्टैंड पर फल बेचने का धंधा करने लगा. धीरेधीरे परिवार बड़ा होने लगा. अनवर की आमदनी कम थी और परिवार की जरूरतें ज्यादा. इसी वजह से न तो वह सुख में था और न ही उस का परिवार. वह अंदर ही अंदर घुटता रहता था. वसीम अनवर से बड़ा था, लेकिन उस ने शादी अनवर के बाद में की थी. वैसे, उस की अम्मी ने उस के लिए ऊंचे रिश्ते की पेशकश की थी, मगर उस ने साफ कह दिया था कि वह तब तक शादी नहीं करेगा, जब तक कि अपने पैरों पर खड़ा न हो जाए. कठिनाइयों से जूझते हुए अपनी मेहनत के बल पर वसीम ने एम. कौम पास किया.

एक बैंक में क्लर्क हो गया. इस के बाद उस ने अपनी अम्मी की इच्छा से एक साधारण परिवार की लड़की शमीम से शादी कर ली. वसीम का पारिवारिक जीवन सुखी था और उस की अम्मी उस के साथ ही रहती थीं. अगर उस के जीवन में कोई अभाव था, तो वह संतान का न होना था. शादी हुए 4 साल बीत गए थे, मगर संतान के बिना उस का घर सूना पड़ा था. उस दिन उस नवजात बच्ची ने इस कमी को दूर कर दिया था. वसीम ने एक गहरी सांस ले कर शमीम की ओर देखा, जो उस की ओर ही देखतेदेखते सो गई थी. वसीम कुरसी से उठा और पिछली खिड़की खोल कर बाहर देखने लगा. दूर पेड़ों की ओट में सूरज डूब रहा था. कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद शमीम अपने घर वापस आ गई. वसीम ने अपनी बेटी का नाम नीलोफर रखा था. शमीम उसे प्यार से ‘नीलो’ कहती थी. वह दोनों अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे. समय का पंछी पंख फड़फड़ाया, मौसम बदले, साल दर साल गुजरते चले गए.

नीलो बहुत ही सुंदर और पढ़नेलिखने में होशियार थी. उस दिन नीट का नतीजा निकलना था. वह सुबह से ही रिजल्ट देखने चली गई थी. शमीम अपने छोटे से घर के ड्राइंगरूम में बैठी हुई एक पत्रिका पढ़ रही थी. वह बड़ी बेकरारी से अपनी बेटी के आने का इंतजार कर रही थी, तभी शहद की तरह मीठी आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘अम्मी…’’ शमीम ने देखा, हाथ में खूबसूरत सा फूलों का गुलदस्ता उठाए नीलो दौड़ती हुई उस की ओर आ रही थी, ‘‘अम्मी देखो… मैं ने नीट की परीक्षा में पहले 25 में जगह पाई है.’’ ‘‘मेरी बेटी… मेरी लाल,’’ शमीम ने आगे बढ़ कर नीलो को गले लगा लिया, ‘‘मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी बेटी अपने अब्बा का नाम जरूर रोशन करेगी.’’ ‘‘और एक दिन डाक्टर भी बनूंगी… क्यों अम्मी?’’ नीलो मुसकराई. ‘‘हां… हमारी बेटी हमारा यह सपना जरूर पूरा करेगी.’’ ‘‘अम्मी, अब्बा कहां हैं…?’’ ‘‘मैं यहां हूं बेटी. मुझे मालूम था कि हमारी बेटी जरूर नीट क्लियर कर पाएगी. देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या इनाम लाया हूं,’’ वसीम मुसकराता हुआ घर के अंदर आया. ‘‘अब्बा,’’ नीलो वसीम की ओर दौड़ पड़ी, ‘‘आप मेरे लिए क्या लाए हैं?’’ ‘‘यह आईफोन… यही इनाम तो मांगा था तुम ने,’’ वसीम ने नीलो को फोन पकड़ा दिया. नीलो खुशी से उछलती घर में इधरउधर दौड़ने लगी.

शमीम और वसीम उस दिन बहुत खुश थे, तभी वसीम को अचानक कुछ ध्यान आया और बोला, ‘‘शमीम, जानती हो इस बार भी अम्मी ने मनीऔर्डर नहीं लिया.’’ ‘‘क्यों नहीं किसी दिन समय निकाल कर आप खुद उन से मिल आते?’’ ‘‘सोचा मैं ने भी यही था, लेकिन जब से मुझे प्रमोशन दे कर जोधपुर भेजा गया है, तब से अपने पुराने शहर में जाने का मौका ही नहीं मिला. न अम्मा ने बुलाया और न उन्होंने अनवर को मुझ से मिलने दिया.’’ वसीम फिर भी मनीऔर्डर से पैसे भेजता था, जो अकसर वापस आ जाते थे. कुछ के बारे में पता नहीं चलता था. एक शहर से दूसरे शहर में घूमते हुए वसीम 20 साल बाद फिर उसी अपने शहर में वापस आ गया था. उस के आने की खबर सुन कर उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मिलने आए, लेकिन उस की अम्मी नहीं आईं. वसीम और शमीम उन से मिलने भी गए, लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया. वसीम का छोटा भाई अनवर उस से जरूर मिला. अपने भाई की हालत देख कर वसीम का दिल कचोटने लगा था.

बड़े परिवार की जिम्मेदारियों और परेशानियों ने उसे वक्त से पहले ही बूढ़ा कर दिया था. अनवर के 4 बेटे थे, लेकिन कोई भी किसी रोजगार में नहीं लग सका था. बड़े परिवार की उलझनों के चलते वह अपने बच्चों को पूरा समय भी न दे पाता था. यही वजह थी कि उस के 2 बेटे आवारा हो गए थे. एक बेटा फलों का कारोबार संभालता था, उस से छोटा कपड़ों की सिलाई का काम करता था. परिवार काफी बड़ा था. इसी वजह से अनवर की माली हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी. अपने भाई की हालत देख कर वसीम ने उस की कुछ मदद भी कर दी थी. मगर वह बात उस की अम्मी अमीना बेगम को नहीं मालूम थी. तभी कार के रुकने की आवाज सुन कर शमीम खुशी से उछल पड़ी. पुरानी यादों का सिलसिला एकाएक टूट गया था. वह बैठक से बाहर आई, तो नीलो दौड़ कर उस के सीने से लग गई, ‘‘अम्मी… देखो, आप की बेटी ने आप का सपना पूरा कर दिया. मैं डाक्टर बन गई हूं.’’

‘‘हां बेटी… हां…’’ बेशुमार खुशी के चलते शमीम की आंखें भर आईं. सभी बैठक की ओर बढ़ गए. नीलो हंसहंस कर अपने कालेज की बातें सुनाने लगी. अगले दिन रविवार था. तड़के सुबह किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई, तो वसीम को नींद खुल गई. वह अपने बिस्तर से नीचे उतरे. उस से पहले ही रसोईघर से निकल कर नीलोफर ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर एक अनजान और बूढ़ी औरत को देख कर नीलोफर चौंक गई और बोली, ‘‘आ… आप, किस से मिलना है आप को?’’ ‘‘मुझे वसीम से मिलना है बेटी.’’ ‘‘लेकिन, अब्बा तो अभी सो कर नहीं उठे हैं. आप थोड़ी देर बाद आ जाइए.’’ ‘‘मगर, मेरा उन से मिलना बहुत जरूरी?है.’’ ‘‘नीलो बेटी, कौन?है…?’’ तभी वसीम वहां पहुंच गए. जैसे ही उन की नजर उस बूढ़ी औरत पर पड़ी, वे चौंक गए. वसीम ने लपक कर उस औरत को अपने हाथों का सहारा दिया, ‘‘अम्मी… आप?’’ ‘‘मैं तुम्हारे पास एक जरूरी काम से आई हूं बेटे…’’ अमीना बेगम कमजोरी से कंपकंपा रही थीं. ‘‘नीलो… ये तुम्हारी दादीजान हैं.’’ ‘‘ओह, मेरी प्यारी दादीजान,’’ नीलोफर आगे बढ़ कर दादी के सीने से लग गई. ‘‘मेरी बच्ची… यह तो बहुत बड़ी हो गई है,’’

अमीना बेगम ने अचरज से नीलोफर की ओर देखा. ‘‘अम्मी, यह कल ही डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर के वापस लौटी है.’’ ‘‘तुम सच कह रहे हो?’’ अमीना बेगम को मानो इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था. ‘‘हां अम्मी, मैं ने आप से एक दिन कहा था न कि मेरी बेटी बड़ी हो कर मेरा नाम रोशन करेगी.’’ ‘‘तुम ने ठीक कहा था बेटे,’’ अचानक ही अमीना बेगम की आंखों से ढेर से आंसू निकल पड़े. आंसू पछतावे के थे या खुशी के, वसीम और नीलो समझ न सके. वसीम अपनी अम्मी को साथ ले कर बैठक में आए. एक कुरसी पर बैठते हुए अमीना बेगम बोलीं, ‘‘बेटा, अनवर तो शर्म से नहीं आया, मुझे भेज दिया. उस की तबीयत भी ठीक नहीं. कुछ देर पहले ही पुलिस अनवर के बड़े बेटे रजाक को पकड़ कर ले गई?है. उस पर इलजाम है…’’ अमीना पूरी बात कह न सकीं.

 

हमें तुम से प्यार कितना : भाग 1

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

मां ने मधु को गले लगा लिया. मधु की खुशी की कोई सीमा नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘अब आप दोनों इस रिश्ते के लिए राजी हैं तो मैं आलोक को मोबाइल पर यह खबर दे ही देती हूं खुशी की.’’

मधु आलोक के दिल्ली के रोहिणी इलाके के शेयर मार्केटिंग औफिस में उस से मिलने जाया करती थी. इस का उस से पहला परिचय तब हुआ था जब उस ने कनाट प्लेस से पश्चिम विहार के लिए लिफ्ट मांगी थी. उस ने आलोक को बताया था वह एक पब्लिशिंग हाउस में एडिटर के पद पर कार्यरत थी. लिफ्ट के समय कार में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने विजिटिंग कार्ड दे दिए थे. मधु की खूबसूरत छवि आलोक के दिमाग पर अंकित हो गई.

जब आलोक ने अपने बारे में पूरी तरह से बताया तो उस की बातचीत में उस के शादीशुदा और पत्नी सुहानी के निधन की बात शामिल थी.

बड़े ही अच्छे लहजे में मधु ने कहा था ‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम शादीशुदा हो. मेरे मातापिता मेरे लिए वर की तलाश कर रहे हैं. मैं ने तुम्हें अपने वर के रूप में पसंद कर लिया है जो भी थोड़ीबहुत मुलाकातें हुई हैं, उन में मैं जीवन के प्रति तुम्हारी सोच से प्रभावित हूं. तुम ने मुझे यह बताया है कि तुम्हारा एकमात्र मिशन है अपने लड़के अंशू को अच्छी परवरिश देना. दादादादी द्वारा उस का लालनपालन अपनेआप में काफी नहीं जान पड़ता है. यदि हमारा विवाह हो जाता है तो यह मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम होगा कि मैं तुम्हारी मदद उस की परवरिश में करूं. मुझे काम करने का शौक है, मैं चाहूंगी कि अपना पब्लिशिंग हाउस का काम जारी रखते हुए घर के कामकाज को सुचारु रूप से चलाऊं.

आलोक ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘सुहानी की मृत्यु के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया अंशू के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है. मेरा पूरा ध्यान अंशू को पालने में केंद्रित हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव पर जब मेरी तुम से मुलाकात हुई तो मुझे एक उम्मीद दिखी कि चाहे तुम्हारा साथ विवाह के बाद एक मित्र की तरह हो या पत्नी की हैसियत से, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. अगर तुम्हारे जैसी खूबसूरत और समझदार लड़की सारे पहलुओं का जायजा ले कर मेरे घर आती है तो अंशू को मां और परिवार को एक अच्छी बहू मिल जाएगी.’

मधु ने आलोक को यकीन दिलाते हुए कहा था, ‘इस में कोई शक नहीं है कि मुझे कुंआरे लड़के भी विवाह के लिए मिल सकते हैं, लेकिन मुझे विवाह के बाद की समस्याओं से डर लगता है. इसी समाज में लड़कियां शादी के बाद जला दी जाती हैं, दहेज की बलि चढ़ा कर उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ससुराल पसंद न आने पर लड़कियों को वापस मायके आ कर रहना पड़ जाता है. तुम से मुलाकात के बाद मुझे लगता है ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला. तुम्हारी तरह अंशू को पालने का चैलेंज मैं स्वीकार करती हूं. तुम्हारे घर आ कर अंशू से मेलजोल बढ़ाने का काम मैं बहुत जल्द शुरू करूंगी. अपनी मम्मी को यकीन में ले कर मेरे बारे में बात कर लो. एक बात और मैं बताना चाहूंगी, मैं ने एमए साइकोलौजी से कर रखा है. उस में चाइल्ड साइकोलौजी का विषय भी था.’

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल- भाग 1

वकील साहब का हंसताखेलता परिवार था. उन की पत्नी सीधीसाधी घरेलू महिला थी. वकील साहब दिलफेंक थे यह वे जानती थीं पर एक दिन सौतन ले आएंगे वह ऐसा सोचा भी नहीं था. उस दिन वे बहुत रोईं.

वकील साहब ने समझाया, ‘‘बेगम, तुम तो घर की रानी हो. इस बेचारी को एक कमरा दे दो, पड़ी रहेगी. तुम्हारे घर के काम में हाथ बटाएगी.’’

वे रोती रहीं, ‘‘मेरे होते तुम ने दूसरा निकाह क्यों किया?’’

वकील साहब बातों के धनी थे. फुसलाते हुए बोले, ‘‘बेगम, माफ कर दो. गलती हो गई. अब जो तुम कहोगी वही होगा. बस इस को घर में रहने दो.’’

बेगम का दिल कर रहा था कि अपने बच्चे लें और मायके चली जाएं. वकील साहब की सूरत कभी न देखें. पर मायके जाएं तो किस के भरोसे? पिता हैं नहीं, भाइयों पर मां ही बोझ है. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि शादी के 14 साल बाद 40 साल की उम्र में वकील साहब यह गुल खिलाएंगे. बसाबसाया घर उजड़ गया.

वकील साहब ने नीचे अपने औफिस के बगल वाले कमरे में अपनी दूसरी बीवी का सामान रखवा दिया और ऊपर अपनी बड़ी बेगम के पास आ गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं. बड़ी बेगम का दिल टूट गया. इतने जतन से पाईपाई बचा कर मकान बनवाया था. सोचा भी न था कि गृहस्थी किसी के साथ साझा करनी पड़ेगी.

दिन गुजरे, हफ्ते गुजरे. बड़ी बेगम रोधो कर चुप हो गईं. पहले वकील साहब एक दिन ऊपर खाना खाते और एक दिन नीचे. फिर धीरेधीरे ऊपर आना बंद हो गया. उन की नई बीवी में चाह इतनी बढ़ी कि वकालत पर ध्यान कम देने लगे. आमदनी घटने लगी और परिवार बढ़ने लगा. छोटी बेगम के हर साल एक बच्चा हो जाता. अत: खर्चा बड़ी बेगम को कम देने लगे.

बड़ी बेगम ने हालत से समझौता कर लिया था. हाईस्कूल पास थीं, इसलिए महल्ले के ही एक स्कूल में पढ़ाने लगीं. बच्चों की छोटीमोटी जरूरतें पूरी करतीं. शाम को घर पर ही ट्यूशन पढ़ातीं जिस से अपने बच्चों की ट्यूशन की फीस देतीं. अब उन का एक ही लक्ष्य था अपने बेटेबेटी को खूब पढ़ाना और उन्हें उन के पैरों पर खड़ा करना. पति और सौतन के साथ रहने का उन का निर्णय केवल बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए ही था. वे जानती थीं कि बच्चों के लिए मांपिता दोनों आवश्यक हैं.

अब सारे घर पर छोटी बेगम का राज था. बड़ी बेगम और उन के बच्चे एक कमरे में रहते थे जहां कभी किसी विशेष कारण से वकील साहब बुलाए जाने पर आते.

इस तरह समय बीतता गया और फिर एक दिन वकील साहब अपनी 5 बेटियों और छोटी बेगम को छोड़ कर चल बसे. छोटी बेगम ने जैसेतैसे बेटियों की शादी कर दी. मकान भी बेच दिया.

बड़ी बेगम की बेटी सनोबर की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. देखने में सुंदर भी थी पर शादी के नाम से भड़कती थी. वह अपनी मां का अतीत देख चुकी थी अत: शादी नहीं करना चाहती थी. बड़ी बेगम के बहुत समझाने पर वह शादी के लिए राजी हो गई. साहिल अच्छा लड़का था, परिवार का ही था.

सनोबर ने शादी के लिए हां तो कर दी पर अपनी शर्तें निकाहनामे में रखने को कहा.

साहिल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है.’’

सनोबर ने बात साफ की, ‘‘ऐसे कह देने से नहीं, निकाहनामे में लिखना होगा की मेरे रहते तुम दूसरी शादी नहीं करोगे और अगर कभी हम अलग हों और हमारे बच्चे हों तो वे मेरे साथ रहेंगे.’’

सनोबर को साहिल बचपन से जानता था. उस के दिल का डर समझता था. बोला, ‘‘सनोबर निकाहनामे में यह भी लिख देंगे और भी जो तुम कहो. अब तो मुझ से शादी करोगी?’’

सनोबर मान गई और दोनों की शादी हो गई. दोनों की अच्छी जौब, अच्छा प्लैट, एक प्यारी बेटी थी. कुल मिला कर खुशहाल जीवन था सनोबर का. शादी के 12 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

सनोबर का प्रमोशन होने वाला था. अत: वह औफिस पर ज्यादा ध्यान दे रही थी. घर बाई ने ही संभाल रखा था. बेटी भी बड़ी हो गईर् थी. वह अपना सब काम खुद ही कर लेती थी. सनोबर उस को भी पढ़ाने का समय नहीं दे पाती. अत: ट्यूशन लगा दिया था. सनोबर का सारा ध्यान औफिस के काम पर था. घर की ओर से वह निश्चिंत थी. बाई ने सब संभाल लिया था.

डाक्टर बेटी : शमीम कुर्सी पर बैठे हुए क्या ख्वाब देख रही थी- भाग 3

‘‘मैं कोतवाली जाता हूं. आप बेफिक्र रहिए, रजाक छूट जाएगा,’’ वसीम दूसरे कमरे की ओर बढ़ते हुए बोले, तभी वहां शमीम पहुंच गई. अमीना बेगम को देख कर वह भी चौंक पड़ी. ‘‘बहू… लगता है, तुम अभी भी मुझ से नाराज हो.’’ ‘‘यह आप ने कैसे समझ लिया अम्मी. मैं तो यह सोच रही थी कि कितने समय बाद हम ने एकदूसरे का सामना किया है और वह भी इस एहसास के साथ कि बेटे चाहें 10 हों, अगर उन में से कोई भी लायक न बन सके, तो परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.

‘‘बेटी चाहे एक हो, अगर उस की परवरिश ठीक ढंग से हो जाए, तो वह भी अपने खानदान का नाम रोशन कर सकती है, जैसे मेरी बेटी…’’ शमीम ने फख्र से अपनी बेटी की ओर देखा. ‘‘तुम ठीक कहती हो बहू,’’ अमीना बेगम की आवाज में हार की सी बोझिलता थी, ‘‘उस समय मैं नईपुरानी पीढ़ी के फर्क को समझ न सकी थी. मुझे सोचना चाहिए था कि वसीम नए जमाने का नौजवान है. उस की सोच और उस के इरादे जरूर ही एक नए समाज की रोशनी वाले हैं. ‘‘मेरी जिद और अंधविश्वास ने अनवर का जीवन बरबाद कर दिया. अगर वसीम की तरह उस ने भी पढ़लिख कर अपना भविष्य संवारा होता और उस का भी परिवार छोटा होता तो आज वह इतनी बदहाली में न होता, न उस के बच्चे बिगड़ते.’’ शाम को वसीम आया और बोला,

‘‘अम्मी, रजाक को पुलिस ने रिहा कर दिया है. वह वापस घर चला गया है.’’ ‘‘तुम बहुत अच्छे हो बेटा…’’ अमीना बेगम बोलीं. ‘‘अम्मी, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, यहीं रहेंगी हमारे पास.’’ ‘‘लेकिन, अनवर बीमार है. वह क्या सोचेगा?’’ ‘‘आप उस की बिलकुल भी चिंता न करें. अब हमारी नीलो अपने चाचाजान का भी इलाज करेगी और मैं उस के बच्चों का भविष्य सुधारने की कोशिश करूंगा.’’ ‘‘तुम इनसान नहीं फरिश्ते हो बेटा…’’ अमीना बेगम की आंखों में पानी भर आया. ‘‘और मैं दादीजान, मैं कैसी हूं?’’ नीलोफर शरारत से मुसकराई. ‘‘तुम तो मेरी चांद हो… 100 बेटों से बढ़ कर हो,’’ अमीना बेगम नीलोफर के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं.

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख

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