मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’
‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.
अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’
अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.
‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.
मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.
हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.
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मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.
वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’
‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’
‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’
‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’
वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.
उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.
उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’
‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.
पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?
हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.
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इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.
निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.
मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?
अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.
निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.