Writer- रमेश मनोहरा
‘‘पंकेश, अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मां यशोदा ने आ कर जब यह कहा, तब पंकेश बोला, ‘‘मेरी अच्छी मम्मी, बेटा कितना ही बड़ा हो जाता है, वह अपनी मम्मी की नजर में छोटा ही रहता है. अब बताओ मम्मी, क्या कहना चाहती हो?’’
‘‘मैं कह रही हूं कि तू अब शादी करने की हां कर दे.’’
‘‘अरे मम्मी, फिर वही बात. मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है,’’ एक बार फिर इनकार करते हुए पंकेश बोला.
‘‘अरे, अभी नहीं करेगा, तब क्या बूढ़ा हो कर करेगा?’’ यशोदा नाराज हो कर बोलीं.
‘‘ओह मम्मी, मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे अपना कैरियर बनाना?है. अभी से शादी के बंधन में बांध दोगी, तब मैं कैसे कैरियर बनाऊंगा.’’
‘‘कैरियरकैरियर सुनसुन कर मेरे तो कान पक गए हैं,’’ फिर गुस्से से यशोदा बोलीं, ‘‘तेरी बैंक में नौकरी लग गई. अब तुझे कौन सा कैरियर बनाना है?’’
‘‘अरे मम्मी, मुझे बहुत बड़ा अफसर बनना है. मैं उसी की तैयारी कर रहा हूं.’’
‘‘मैं भी चाहती हूं कि तू बहुत बड़ा अफसर बन जाए, मगर शादी के बाद भी तू तैयारी कर सकता है,’’ समझाते हुए यशोदा बोलीं, ‘‘मैं चाहती हूं कि मेरे सामने तेरी शादी हो जाए, ताकि बाकी जिंदगी सुखसंतोष से गुजार सकूं.’’
‘‘ओह मम्मी, ऐसी बात मत करो. तुम अभी 100 साल जिंदा रहोगी,’’ मां के गले लगते हुए पंकेश बोला.
‘‘जिंदगी का क्या भरोसा. तेरे पापा अगर आज होते, तब मैं इतनी गरज नहीं करती, फिर भी तू मेरी एक भी नहीं सुनता है.’’
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