ब्लैकमेलर: शिखा की सास ने बच्चे की मोह में क्या किया

बैडरूम की दीवार पर मर्फी रेडियो के पोस्टर बौय का फोटो आज भी मिलता है. जितना खूबसूरत बच्चा उतनी ही खूबसूरत अदा से मुसकराते हुए होंठों पर उंगली रखे पोज में रंगीन फोटो. यह फोटो शिखा के बैडरूम में पिछले 4 सालों से लगा था. सास ने कहा था कि सुंदर बच्चे का फोटो देखने से बच्चा भी सुंदर होगा. बच्चे की राह देखतेदेखते पिछले साल उस की सास चल बसीं.

खानापीना खत्म कर शिखा नाइट लाइट की मध्यम रोशनी में मर्फी बौय को देखे जा रही थी. तभी पति अमर ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, ‘‘मैं ने डाक्टर से अपौइंटमैंट ले ली है. अब हमें चल कर टैस्ट करा लेना चाहिए. देखें डाक्टर क्या कहता है.’’

‘‘हां, पर यह पहले होता तो अम्मांजी की इच्छा पूरी होने की उम्मीद तो जरूर रहती.’’

‘‘आज से पहले डाक्टर ने कभी दोनों को टैस्ट करने के लिए नहीं कहा था… तुम्हारी सहेली जो डाक्टर है, उस ने भी कहा था कि कभीकभी प्रैगनैंसी में देर हो जाती है. वैसे हम ने भी

1 साल तक परहेज बरता था.’’

अमर ने ग्रैजुएशन के बाद एक प्राइवेट कंपनी में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी जौइन कर ली थी. वह स्टेट लैवल बौक्सिंग चैंपियन

था. अच्छीखासी पर्सनैलिटी थी अमर की. औफिस में उस के दोस्त उस से कहते भी थे, ‘‘अरे यार बौक्ंिसग रिंग में तो तुम चैंपियन हो. अब अपनी गृहस्थी जमाओ… कम से कम अपने जैसा बलवान, हृष्टपुष्ट एक फ्यूचर चैंपियन तो पैदा करो.’’

‘‘वह भी हो जाएगा… जल्दी क्या है?’’ अमर कहता.

अब शादी के 5 साल बाद शिखा और अमर दोनों ने डाक्टर से इस विषय पर सलाह लेने की जरूरत महसूस की. डाक्टर ने दोनों के कुछ टैस्ट किए और फिर 2 दिनों के बाद जब वे मिलने गए तो डाक्टर बोला, ‘‘आप की रिपोर्ट्स तैयार हैं. शिखा की रिपोर्ट्स नौर्मल हैं. उन में मां बनने के सभी लक्षण हैं, पर…’’

‘‘पर क्या डाक्टर?’’ शिखा ने बीच में डाक्टर की बात काट कर पूछा.

‘‘आई एम सौरी, बट मुझे कहना ही होगा कि अमर पिता बनने के योग्य नहीं हैं.’’

कुछ पल डाक्टर के कैबिन में सन्नाटा रहा. फिर शिखा ने कहा, ‘‘पर डाक्टर आजकल मैडिकल साइंस इतनी तरक्की कर चुकी है… कोई मैडिसिन या उपाय तो होगा?’’

‘‘हां है क्यों नहीं… आईवीएफ तकनीक

से आप मां बन सकती हैं आजकल यह बहुत

ही आसान हो गया है. किसी सक्षम पुरुष के शुक्राणु का इस्तेमाल कर आप बच्चे को जन्म दे सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, इस के अलावा और कोई उपाय नहीं है?’’

‘‘सौरी, इस के अलावा एक ही उपाय बचता है कि आप किसी बच्चे को गोद ले लें. आप लोग ठीक से विचार कर के बता दें… मैं थोड़ी देर में आता हूं. अगर आप कुछ और समय चाहते हैं, तो आप अपनी सुविधा से अपना फैसला ले सकते हैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने कुछ देर तक डाक्टर के क्लीनिक में बैठेबैठे विचार किया कि अब और देर करने से कोई लाभ नहीं होगा और बच्चा आईवीएफ तकनीक से ही होगा. शिखा ने मन में सोचा कि इस से उसे मातृत्व का अनुभव भी होगा. फिर दोनों ने डाक्टर को अपना फैसला बताया.

डाक्टर बोला, ‘‘वैरी गुड. आप के कुछ और टैस्ट होंगे. मेरे क्लीनिक में कुछ डोनर्स के सैंपल्स हैं. देख कर 1-2 दिन में आप को खबर दूंगा. कोई बड़ा प्रोसैस नहीं है. जल्द ही आप का काम हो जाएगा.’’

1 सप्ताह के अंदर ही शिखा आईवीएफ तकनीक की देन से गर्भवती हुई. डाक्टर ने शिखा को नियमित चैकअप कराते रहने को कहा.

कुछ दिनों के बाद जब अमर ने बड़ी शान से औफिस में दोस्तों से कहा कि वह पिता

बनने वाला है, तो एक दोस्त ने कहा, ‘‘आखिर हमारे चैंपियन ने बाजी मार ली. अब तुम्हें हम लोगों का मुंह मीठा कराना होगा.’’

दोस्तों के कहने पर औफिस की कैंटीन में ही उन्हें मिठाई खिलाई. दोस्तों ने उस से कहा, ‘‘इस छोटीमोटी पार्टी से तुम बचने वाले नहीं हो. हम लोगों को सपरिवार पार्टी देनी होगी.’’

‘‘ठीक है, वह भी होगी.’’

करीब 4 महीने बाद डाक्टर ने शिखा से कहा, ‘‘आप के बच्चे की ग्रोथ बिलकुल ठीक है. अब आप निश्चिंत रहें. आप का बच्चा स्वस्थ और हृष्टपुष्ट होगा.’’

इस खुशी में उस दिन रात अमर ने अपने घर पर दोस्तों को सपरिवार आमंत्रित किया. शिखा भी घर पर पार्टी की तैयारी में लगी थी. उसी समय कौल बैल बजी. उस ने दरवाजा खोला तो एक आदमी बाहर खड़ा था. वह बोला, ‘‘नमस्ते मैडम.’’

‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, पर लगता है पहले कहीं देखा है… अच्छा बोलिए क्या काम है? अभी साहब घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मुझे सिर्फ आप ही से काम है.’’

‘‘मुझ से? मुझ से भला क्या काम हो सकता है आप को?’’

‘‘मैडम, आप के पेट में जो बच्चा है वह मेरा है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो? गैट लौस्ट,’’ बोल कर शिखा दरवाजा बंद करने लगी.

उस आदमी ने हाथ से दरवाजा पकड़ कर कहा, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनिए वरना बाद में शर्मिंदगी होगी और पछताना पड़ेगा. अमर बहुत शान से पार्टी दे रहा है बाप बनने की खुशी में. मैं पार्टी के बीच में ही आ कर सब को बताऊंगा कि यह बच्चा अमर का नहीं, मेरा है. उस की सारी मर्दानगी की हवा निकाल दूंगा मैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने आईवीएफ की बात छिपा रखी थी और अभी तक सभी से बता रखा था कि यह बच्चा उन का अपना है. वह डर गई और फिर बोली, ‘‘आखिर तुम क्या चाहते हो? हमें परेशान कर के तुम्हें क्या मिलेगा?’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ

क्व2 लाख दे दीजिए. मैं अपनी जबान बंद रखूंगा.’’

‘‘इतनी बड़ी रकम हम लोग तुम्हें नहीं दे सकते हैं.’’

‘‘देखिए, पैसे तो आप को देने ही होंगे, हंस कर या रो कर… आज नहीं तो कल… अब आप बताएं मैं रात में पार्टी में आऊं या नहीं.’’

शिखा कुछ देर सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘अभी मेरे पास मुश्किल से क्व2 हजार हैं. उन्हें आप को दे रही हूं.’’

‘‘ठीक है, आप अभी वही दे दीजिए. बाकी आप एकमुश्त देंगी… मुझे डिलिवरी के पहले पूरी रकम मिल जानी चाहिए.’’

शिखा ने उस आदमी को क्व2 हजार देते हुए कहा, ‘‘अभी इन्हें रखो. बाकी के लिए मैं अमर से बात करती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 दिन बाद फिर आऊंगा.’’

उस रात पार्टी के बाद शिखा ने अमर को ब्लैकमेलर वाली बात बताई तो अमर बोला,

‘‘क्व2 लाख हमारे लिए बहुत बड़ी रकम होती है. कहां से लाऊंगा… उस के लिए मुझे कर्ज लेना होगा… पर यह तो ब्लैकमेलिंग हुई… उसे हमारा पता किस ने दिया होगा?’’

‘‘मुझे लगता है उस आदमी को कभी मैं ने डाक्टर के क्लीनिक में देखा है.’’

‘‘डाक्टर ऐसा नहीं कर सकता है, फिर भी एक बार मैं उस से बात करता हूं.’’

दूसरे दिन अमर डाक्टर के पास पहुंचा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘हम लोग ऐसी सूचनाएं गुप्त रखते हैं. इसीलिए हम 3 शपथ पत्र तैयार करते हैं- पहला आईवीएफ के लिए आप दोनों की सहमति का, दूसरा यह कि आप लोग कभी डोनर के बारे में जानकारी नहीं लेंगे और अगर किसी तरह से आप को यह मालूम भी हो जाए तो आप इसे किसी को नहीं बताएंगे और साथ ही आप के बच्चे का डोनर की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘हां, हमें याद है पर, तीसरा शपथपत्र कौन सा है?’’

‘‘तीसरा हम डोनर से लेते हैं कि वह अपना अंश स्वेच्छा से दे रहा है और उसे यह जानने का हक नहीं होगा कि उस का अंश किसे दिया गया. अगर किसी तरह उसे पता चल भी जाए तो वह इसे किसी को नहीं बताएगा और होने वाले बच्चे पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘पर शिखा ने कहा है कि उस आदमी को शायद पहले आप के क्लीनिक में देखा है. कहीं आप का ही कोई स्टाफ तो उस से मिला नहीं है?’’

‘‘हम पूरी सावधानी बरतते हैं, पर स्वार्थवश इस के लीक होने की संभावना हो सकती है,’’ डाक्टर बोला.

‘‘हम से गलती सिर्फ इतनी हुई है कि हम ने किसी से इस तकनीक की बात न कह कर इसे अपना बच्चा बताया है,’’ अमर बोला.

‘‘खैर, आप आगे भी यह बता सकते हैं.’’

‘‘नहीं डाक्टर, इट्स टू लेट… वह ब्लैकमेल कर रहा है… लगता है हमें पैसे देने ही होंगे.’’

डाक्टर कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘आप उसे एक पैसा भी नहीं देंगे. आप लोग खासकर शिखाजी को थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा और जरा साहस भी दिखाना होगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘देखिए 2 रास्ते हैं- या तो अबौर्शन

करवा लें या…’’

‘‘प्लीज डाक्टर अबौर्शन की बात न कीजिए… शिखा टूट जाएगी.’’

‘‘मैं भी यही चाहता हूं… शिखाजी से कहें कि जब वह आदमी पैसों के लिए आए तो बिलकुल न डरें, बल्कि बोल्ड हो कर उसे फेस करें.’’

‘‘वह किस तरह?’’

‘‘अगली बार जब वह आए तो शिखाजी को बोलना होगा कि हां, मुझे अब पता चल गया है कि मेरा रेप तुम ने ही किया था और उसी के चलते मैं प्रैगनैंट हूं. अब मैं पुलिस को सूचित करने जा रही हूं. यह बात उसे धमकाते हुए बोल्डली कहनी होगी.’’

2 दिन बाद वह आदमी बाकी के रुपए लेने आने वाला था. शिखा ने उस दिन अमर को छुट्टी लेने को कहा, क्योंकि उसे डर था कहीं वह आदमी उस पर हमला न कर बैठे.

ठीक 2 दिन बाद ब्लैकमेलर जब पैसे मांगने आया तो शिखा ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मैं ने भी पता किया है, मेरे गर्भ में तुम्हारा ही अंश है… उस दिन जो तुम ने मेरा बलात्कार किया था उसी का नतीजा है यह. बलात्कार के दिन तुम ने नकाब से चेहरा ढक रखा था, मैं पहचान नहीं सकी थी, पर आज तुम स्वयं चल कर मेरे सामने आए हो, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. मैं ने उस दिन रुपए देने से पहले सैल फोन से तुम्हारा फोटो भी खींच रखा है. अब आसानी से पुलिस तुम्हें पकड़ सकती है.’’

पासा पलटते देख वह आदमी गिड़गिड़ाने लगा और बोला, ‘‘मैडम, आप ऐसा न

करें, मैं जेल चला जाऊंगा, मैं भी बालबच्चेदार आदमी हूं.’’

‘‘फिर तुम मेहनत कर क्यों नहीं कमाते हो… चलो मेरे क्व2 हजार वापस करो.’’

वह आदमी अपनी जेब से क्व5 सौ का एक नोट शिखा को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी मेरे पास इतने ही हैं… इन्हें रख लो. बाकी मैं जल्द ही लौटा दूंगा.’’

शिखा ने नोट उसे लौटाते हुए कहा, ‘‘इस से अपने बच्चों के लिए खिलौने और मिठाई मेरी तरफ से दे देना. बेहतर होगा कि तुम आगे से इस तरह के गलत काम न करने का वादा करो.’’

नोट वापस ले कर ब्लैकमेलर वहां से तुरंत खिसक लिया.

उस के जाने के बाद शिखा ने पति से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच पुलिस को फोन किया है?’’

‘‘नहीं, एक झूठ रेप का तुम ने कहा और दूसरा झूठ मैं ने कहा… चलो बला टल गई,’’ और फिर दोनों जोर से हंस पड़े.

ठगी का नया तरीका : औलाद की चाहत

नुसरत को जब कोई औलाद नहीं हुई, तो ससुराल वालों ने अपने एकलौते बेटे मसनून का दूसरा निकाह करने का मन बनाया. आपस में सलाह करने के बाद वे काजी मोहसिन के पास राय लेने उन के घर पहुंचे.

काजी मोहसिन के सामने उन्होंने अपनी बात रखी. पूरी बात सुनने के बाद काजी मोहसिन चुप रहे, फिर कुछ सोच कर उन्होंने मसनून के अब्बा खादिम मियां से कहा, ‘‘जनाब ऐसा है कि आजकल कानून बदल गया है. बीवी की रजामंदी और अदालत से मंजूरी ले कर निकाह कराओगे तो कोई कानूनी अड़चन नहीं आएगी, वरना…’’ कह कर वे खामोश हो गए.

‘‘फिर आप इस का कोई दूसरा हल निकालिए…’’ खादिम मियां ने काजी मोहसिन से कहा, ‘‘हमें आप पर पूरा भरोसा है. आप बहुतकुछ जानते हैं. तावीजगंडे हों या मजारों की मन्नत, हम सबकुछ करने को तैयार हैं. पैसा कितना भी लगे, हम खर्च करने को तैयार हैं. हमें खानदान को रोशन करने के लिए एक चिराग चाहिए,’’ खादिम मियां ने बात पूरी की.

‘‘बात तो आप ठीक कह रहे हैं. मु झे एक हफ्ते का वक्त दीजिए, इस के बाद ही मैं आप को कोई मशवरा दे सकता हूं. वैसे, मैं किसी को उलटीसीधी सलाह नहीं देता,’’ काजी मोहसिन ने जवाब दिया.

तकरीबन एक हफ्ता गुजर जाने के बाद एक दिन काजी मोहसिन खादिम मियां की दुकान के सामने से गुजर रहे थे, तभी खादिम मियां ने आवाज दे कर उन्हें बुलाया.

सलामदुआ के बाद खादिम मियां ने पूछा, ‘‘मेरी बात का क्या हुआ जनाब?’’

‘‘जी, मैं भी चाह रहा था कि इस बारे में आप से खुल कर बात करूं, पर मसरूफियत की वजह से समय ही नहीं मिला. मैं रात को खाना खा कर आप के पास आता हूं.

‘‘ठीक रहेगा न? वहीं बैठ कर इतमीनान से बात करेंगे,’’ काजी मोहसिन ने खादिम मियां से कहा.

‘‘आप ऐसा करें कि रात का खाना मेरे घर पर ही खाएं. आप अकेले जो ठहरे…’’ खादिम मियां बोले.

‘‘जी,’’ कह कर काजी साहब दुकान से उठ कर मदरसे चले गए.

मदरसे से लौट कर काजी मोहसिन ने अपने एक दोस्त काजी बाबुल को फोन लगा कर कहा, ‘‘बाबुल मियां, यहां के एक कबाड़ी परिवार से मेरी बात हुई है. उन की बहू को औलाद नहीं हो रही है. पैसे वाले लोग हैं. अगर हम चाहें तो सोनाचांदी और नकदी हड़प सकते हैं. वे गंडेतावीज, मजारों पर भरोसा करते हैं. अच्छा माल बन सकता है. हमारी सारी गरीबी दूर हो सकती है.’’

‘ठीक है, मैं अभी आप के पास आ रहा हूं. तुम तैयार रहना,’ काजी बाबुल ने कहा.

थोड़ी देर बाद ही काजी बाबुल काजी मोहसिन के घर पहुंच गया. दोनों के बीच खादिम मियां के बारे में खुल कर बात हुई.

शाम की नमाज से फारिग हो कर वे खादिम मियां के घर जा पहुंचे. उन के बीच बातचीत हुई और फिर फैसला लिया गया कि इसी हफ्ते इस काम पर अमल करना है.

काजी बाबुल ने खादिम मियां से कहा, ‘‘अगर आप को औलाद चाहिए, तो हमारी हर बात माननी पड़ेगी. जैसा हम कहेंगे, वैसा करना होगा.’’

खादिम मियां ने सिर हिला कर इस की मंजूरी दे दी.

‘‘आप हरे रंग के कपड़े की 4 नई थैलियां बनवा लें. उन में सोना, चांदी, तांबा, लोहा रख कर उन के मुंह सिल कर घर के एक खाली कमरे में रख दें. वहां चिल्ला बांध कर उन को फूलों से ढक दें. फिर ढाई दिनों तक उसी जगह रह कर मंत्र पढ़ें. इस के बाद मजार पर 2 घंटे चारों थैलियां रख कर वापस ले आएं, जो आप 9 महीने तक अपने घर में रखे रहेंगे. फिर आप उन्हें खोल कर इस्तेमाल में ले सकते हैं.’’

‘‘आप चाहें तो काजी मोहसिन से मदद ले सकते हैं, पर इस बात की किसी को कानोंकान खबर न हो.’’

खादिम मियां ने आननफानन हामी भर दी.

काजी बाबुल वहां से जाने लगे कि तभी खादिम मियां ने अगले जुमे को घर आ कर यह काम करनेकी गुजारिश की.

इधर काजी मोहसिन को बुला कर खादिम मियां ने जाप करने की तैयारी शुरू कर दी. एक छोटा कमरा खाली करा कर सफाई की गई. फिर किवाड़ से अच्छा लोहा और तांबा निकाल कर रखा गया.

रात को काजी मोहसिन ने घर आ कर एक थैली में लोहा, एक थैली में तांबा, एक थैली में सोने और चौथी थैली में चांदी के जेवर रख कर लोबान की धूनी दे कर कुछ देर तक जोरजोर से कुछ मंत्र पढ़ कर फूंके और थैली के मुंह सिलने लगे.

इसी बीच काजी मोहसिन ने बड़ी होशियारी से सोने और चांदी की थैलियों में पहचान के लिए अलग से दूसरे रंग की छाप लगा दी.

एक संदूक में चारों थैलियां रख कर बड़े से ताले में बंद कर चाबी खादिम मियां को दे दी.

काजी बाबुल के कहे मुताबिक ही काजी मोहसिन ने पूरी कार्यवाही को अंजाम दे कर उन से विदा ली और अपने घर आ गए.

जुमे की रात को काजी मोहसिन, काजी बाबुल, खादिम मियां और उन की बहू बैठे थे. कुछ फासले पर रखे संदूक पर फूल डाल कर और लोबान जला कर काजी बाबुल मंत्र बुदबुदाने लगे.

यह काम एक घंटे तक चला. फिर उन्होंने संदूक में से थैलियां निकालीं और बहू की गोद में रख कर मंत्र बुदबुदाए. लोबान की खुशबू से पूरा कमरा धुएं से भर गया था. यह सब आधा घंटे तक चला.

यह सिलसिला 2 दिनों तक शाम की नमाज के बाद डेढ़ घंटा चलता रहा.

तीसरे दिन वे सब सुबह की नमाज के बाद दूर जंगल में बने मजार पर पहुंचे. साथ में वह संदूक भी था, जिस में थैलियां रखी थीं.

काजी मोहसिन ने मजार के खादिम को पहले से सबकुछ बता रखा था.

वहां पहुंचने के बाद वे संदूक रख कर खड़े हो गए. मजार के खादिम ने संदूक खोल कर रखने को कहा और बोला, ‘‘हां जनाब, आप लोग गुसलखाने से फारिग हो कर आ जाएं.’’

वे सभी मजार पर खुला संदूक छोड़ कर कुछ दूरी पर बने गुसलखाने की तरफ चले गए.

इसी बीच मजार के खादिम ने काजी मोहसिन के बताए मुताबिक सोने व चांदी की निशान लगी थैलियां निकाल कर ठीक वैसी ही दूसरी थैलियां वहां रख दीं. उस ने असली थैलियां मजार के अंदर छिपा दीं और बाहर आ कर खड़ा हो गया.

उन सभी के गुसलखाने से फारिग होने के बाद मजार पर मंत्र बुदबुदाने का सिलसिला चला. फिर वे संदूक में थैलियां और फूल रख कर घर वापस आ गए.

बाबुल काजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘औलाद मिल जाने पर संदूक खोल कर सोनेचांदी वाली थैलियां अलग रख लें, बाकी 2 थैलियों को पानी में बहा दें.

‘‘मैं 2 महीने बाद आऊंगा, तब तक बहू के पैर भारी हो जाएंगे. इन्हें आराम करने दें. संदूक पर फूल डालते रहें,’’ कह कर वे चले गए.

तकरीबन 3 महीने बीत गए, पर न तो काजी बाबुल और काजी मोहसिन लौटे, न बहू के पैर भारी हुए.

खादिम मियां को कुछ शक हुआ. उन्होंने संदूक खोल कर देखा तो पता चला कि सोनेचांदी वाली थैलियों में कंकड़पत्थर भरे थे. वे सम झ गए कि उन के साथ धोखा हुआ है.

गुपचुप तरीके से खोजबीन की गई, पर दूरदूर तक उन दोनों काजियों का कुछ भी पता नहीं चला.

15 अगस्त स्पेशल: फौजी ढाबा

ढाबा चलाने के लिए करतार सिंह ने 4 लड़कों का स्टाफ भी रख छोड़ा था, जो ग्राहकों को अच्छी सर्विस देते थे. उन की मजे में जिंदगी कट रही थी.

फौज में सूबेदार करतार सिंह का बड़ा जलवा था. अपनी बहादुरी के लिए मिले बहुत सारे मैडल उस की वरदी की शान बढ़ाया करते थे. बौर्डर से जब भी वह गांव लौटता तो पूरा गांव अपने फौजी भाई से सरहद की कहानी सुनने आ जाता था.

करतार सिंह सरहद की गोलीबारी और दुश्मन फौज की फर्जी मुठभेड़ की कहानी बड़े जोश से सुनाया करता था. अपनी बहादुरी तक पहुंचतेपहुंचते कहानी में जोश कुछ ज्यादा ही हो जाता था. गांव का हर नौजवान बड़ी हसरत से सोचता कि काश, वह भी फौज में होता तो करतार सिंह की तरह वरदी पहन कर गांव आया करता.

गांव के बुजुर्ग तो करतार सिंह पर फख्र किया करते हैं कि उस ने उन के गांव का नाम देशभर में रोशन किया है.

इस बार करतार सिंह जब घर आया तो अपने पैरों के बजाय बैसाखी के सहारे आया. असली मुठभेड़ में उस की एक टांग में गोली लगी थी जिसे काटना पड़ा.

6 महीने सेना के अस्पताल में गुजारने के बाद करतार सिंह को छुट्टी दे दी गई और साथ में जबरदस्ती रिटायरमैंट के कागजात भी भारीभरकम रकम के चैक के साथ थमा कर उसे वापस घर भेज दिया गया.

फौजी की कीमत उसी वक्त तक है, जब तक कि उस के हाथपैर सहीसलामत रहते हैं. जिस तरह टांग के टूटने के बाद घोड़ा रेस में दौड़ने के लायक नहीं रह जाता तो उसे गोली मार दी जाती है, ठीक उसी तरह फौज लाचार हो जाने वाले को रिटायर कर देती है.

करतार सिंह को बड़ी रकम के साथ सरकार ने हाईवे से लगी हुई एक जमीन भी तोहफे में दी थी जिस पर आज उस ने ‘फौजी ढाबा’ खोल दिया था. 2 बेटियां और एक बीवी के अलावा कोई खास जिम्मेदारी करतार सिंह पर थी नहीं. फौज से मिली हुई रकम और ढाबे से होने वाली आमदनी ने पैसों की अच्छी आवाजाही कर रखी थी, इसलिए अब काम में सुस्ती आने लगी. नौकरों के भरोसे ढाबा चल रहा था.

करतार सिंह ज्यादातर नशे में धुत्त रहता था. वह पीता पहले भी था, लेकिन फौज में इतनी दौड़ाई रहती थी कि कभी नशा सवार नहीं हो पाता था. अब काम कुछ था नहीं, इसलिए नशा उतरने भी नहीं पाता था कि बोतल दोबारा मुंह से लग जाती.

जब मालिक नशे में रहे तो नौकरों को मनमानी करने से कौन रोक सकता है. आमदनी कम होने लगी, पैसे गायब होने लगे.

मजबूर हो कर ढाबे की कमान बीवी सरबजीत कौर ने संभाली. अब वह गल्ले पर खुद बैठती और काम नौकरों से कराती.

तीखे नाकनक्श की सरबजीत कौर के ढाबे पर बैठते ही ढाबे ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली. दाल मक्खनी और पिस्तई खीर के साथ सरबजीत कौर का तड़का भी फौजी ढाबे की पहचान बन गया.

एक बार फिर से ग्राहकों की तादाद कम होने लगी. सरबजीत कौर ने इस की वजह मालूम की तो एक नौकर ने बताया कि चंद कदम के फासले पर एक ढाबा और खुल गया है. अब ज्यादातर ट्रक वहां पर रुकते हैं.

दूसरे दिन सरबजीत कौर ने खुद जा कर देखा कि नया ढाबा, जिस का नाम ‘भाभीजी का ढाबा’ था, वहां 25-26 साल की एक खूबसूरत औरत गल्ले पर बैठी है और ग्राहकों से मुसकरामुसकरा कर डील कर रही है.

‘फौजी ढाबा’ को तोड़ने के लिए गंगा ने शुरू से ही अपनी बीवी को बिठा कर करतार सिंह के ग्राहकों पर डाका डाल दिया था.

सरबजीत कौर के पास अब इस के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था कि वह अपने ब्लाउज के गले को बड़ा कर के गल्ले पर बैठा करे. इस तरकीब से कुछ सीनियर फौजी तो ढाबे पर आ गए, लेकिन अभी भी ‘भाभीजी का ढाबा’ नंबर वन पर चल रहा था.

‘फौजी ढाबा’ किस हाल से गुजर रहा था, इस की परवाह अब करतार सिंह को नहीं थी. उसे तो बस सुबहशाम 2 बोतल दारू और एक प्लेट चिकन टिक्का चाहिए था, जो किसी न किसी तरह सरबजीत कौर उस तक पहुंचा देती थी.

ढाबे की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से सरबजीत कौर पर आ गई थी. बच्चियां छोटी थीं. यों भी स्कूल जाने वाली बच्चियों को ढाबे के काम में लगाना मुनासिब नहीं था.

एक बार उस ने एक बच्ची को पलंग पर बैठे एक ड्राइवर के पास सलाद देने के लिए भेजा तो यह देख कर उस का खून खौल गया कि ड्राइवर ने बच्ची के गाल को नोचा और फिर ड्राइवर का हाथ बच्ची की गरदन से नीचे आ गया.

छोटी बच्ची सलाद की प्लेट पटक कर घर के अंदर भाग गई. दुकानदारी पर कहीं असर न पड़े, इसलिए सरबजीत कौर ने बात आगे नहीं बढ़ाई.

बाप नशे में धुत्त और मां दिनरात ढाबे के गल्ले पर बैठने के लिए मजबूर, ऐसे में बच्चियों पर कौन नजर रखे. कच्ची उम्र से जवानी की दहलीज पर पैर रखने वाली गीता की नजर चरनजीत से टकरा गई. 1-2 महीने से शनिवार की शाम को एक नए ट्रक के साथ एक नौजवान आ कर सब से अलग बैठ जाता. खाना खा कर सो जाता और दूसरे दिन वह ट्रक ले कर कहीं चला जाता. स्याह कमीज, स्याह पैंट और नारंगी रंग की पगड़ी में वह बहुत खूबसूरत लगता था.

पहली बार जब गीता ने देखा तो वह उसे देखती ही रह गई. इत्तिफाक से उस की नजर भी गीता की तरफ उठ गई तो उस ने नजर हटाई नहीं. अपनी बड़ीबड़ी आंखों से वह गीता को घूरता ही रहा.

साथ में बैठे क्लीनर ने जब पुकारा, ‘‘चरनजीते, कहां खो गया,’’ तो गीता को मालूम हुआ कि उस का नाम चरनजीत है.

दूसरे शनिवार को जब वह फिर वहां आया तो गीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उसे ऐसा लगा कि वह सिर्फ उसी के लिए आया है. लेकिन, चरनजीत के बरताव में कोई फर्क नहीं आया. खाना खा कर वह पलंग पर सो गया.

गीता ने घर से एक तकिया मंगा कर ढाबे के एक लड़के को देते हुए कहा कि उन साहब को दे आए. पहली बार किसी ग्राहक को तकिया पेश किया गया था. तकिए के कोने में गीता का मोबाइल नंबर और नाम भी लिखा था.

किसी को खबर भी नहीं हुई और चरनजीत और गीता एकदूसरे के इश्क में डूबते चले गए. मोबाइल पर बातें होती रहतीं. किसी को मालूम ही नहीं चल पाता कि चंद कदमों के फासले पर आशिक और माशूक बैठे एकदूसरे से हालेदिल बयां कर रहे हैं. स्कूल टाइमिंग में बाहर मुलाकातें होने लगीं.

एक दिन ऐसा भी आया, जब चरनजीत ने गीता से कहा कि ऐसा कब तक चलता रहेगा. हम लोगों को शादी कर लेनी चाहिए. गीता खामोश हो गई.

‘‘क्या मैं ने कुछ गलत बात कह दी?’’

‘‘नहीं, तुम ने कुछ गलत नहीं कहा. मेरे पापा सूबेदार रहे हैं, मेरी शादी वे किसी ट्रक ड्राइवर से कभी नहीं करेंगे.’’

‘‘फिर तो हम लोगों को अलग हो जाना चाहिए,’’ कहते हुए चरनजीत ने गीता का हाथ छोड़ दिया.

‘‘अब मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती…’’ थोड़ी देर की खामोशी के बाद गीता ने कहा, ‘‘मुझे यहां से ले कर कहीं दूर चले जाओ. वहीं शादी कर लेंगे.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है कि मैं तुम्हें भगा कर ले जाऊं. कितनी घटिया बात कही है तुम ने…’’ चरनजीत ने कहा, ‘‘मेरे मांबाप इस बात को पसंद नहीं करेंगे. तुम्हारे घर वाले भी यही सोचेंगे कि ट्रक ड्राइवरों का किरदार ऐसा ही होता है.

‘‘गीता, मैं पढ़ालिखा हूं. मास्टरी की है मैं ने. नौकरी नहीं मिली तो ड्राइवर बन गया.

‘‘यह मेरा अपना ट्रक है. शादी करूंगा तो इज्जत से करूंगा, वरना हम दोनों के रास्ते अलग हो जाएंगे. कल तुम्हारे मम्मीपापा से तुम्हारा हाथ मांगने आऊंगा. तैयार रहना.’’

करतार सिंह ने कभी सोचा भी नहीं था कि बेटियों की शादी भी की जाती है. उसे तो इस बात की फिक्र रहती थी कि कहीं रात में उस की बोतल खाली न रह जाए.

चरनजीत ने जब उस से उस की बेटी का हाथ मांगा तो सरबजीत कौर के साथ करतार सिंह के चेहरे का रंग भी बिगड़ गया. उसे ऐसा लगा, जैसे बोतल में किसी ने सिर्फ पानी मिला दिया था. पलभर में सारा नशा काफूर हो गया.

‘‘तुम ने गीता को मांगने से पहले यह नहीं सोचा कि तुम एक ट्रक ड्राइवर हो.’’

‘‘मैं ने यह तो नहीं सोचा, लेकिन यह जरूर सोचा कि आप की बेटी अगर मेरे साथ भाग जाएगी तो आप की कितनी बदनामी होगी. ट्रक ड्राइवरों पर से हमेशा के लिए आप का भरोसा उठ जाएगा.’’

ऐसा सुन कर फौजी करतार सिंह का सिर पहली बार किसी के सामने झुका था तो वह चरनजीत था.

‘‘अपने घर वालों से कहो शादी की तैयारी करें, गीता अब तुम्हारी हुई,’’ यह कह कर करतार सिंह ने शराब की बोतल को चरनजीत के सामने ही मुंह से लगा लिया.

15 अगस्त स्पेशल: फौजी के फोल्डर से एक सैनिक की कहानी

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गुप्त रोग: रूबी और अजय के नजायज संबंधों का कैसे हुआ पर्दाफाश

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बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम

Friendship Day Special: पंचायती राज – कैसी थी उनकी दोस्ती

उस दिन मुनिया अपने मकान में अकेली थी कि शोभित को अपने पास आया देख कर उस का मन खुशी से झूम उठा. उस ने इज्जत के साथ शोभित को पास बैठाया. पास के मकानों में रहते हुए शोभित और मुनिया में अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के घर आनेजाने लगे थे. कब उन के बीच प्यार का बीज पनपने लगा, उन्हें पता भी नहीं चला. अगर उन दोनों में मुलाकातें न हो जातीं, तो उन के दिल तड़पने लगते थे.

कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए शोभित बोला, ‘‘मुनिया, मैं कई दिनों से तुम से अपने मन की बात कहना चाहता था, लेकिन सोचा कि कहीं तुम्हें या तुम्हारे परिवार वालों को बुरा न लगे.’’ ‘‘तो आज कह डालो न. यहां कोई नहीं है. तुम्हारी बात मेरे तक ही रहेगी,’’ कह कर वह हंसी थी.

‘‘मुनिया, तुम मेरे दिल में इस तरह बस गई हो कि तुम्हें एक बार दिन में देख न लूं, तो मुझे चैन नहीं पड़ता. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. तुम से इतनी मुहब्बत हो गई है कि मैं रातरात भर तुम्हारी याद में सपने देखता रहता हूं.’’ यह सुन कर मुनिया खुशी से पागल हो गई, लेकिन अपनी इच्छा को दबाते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम नहीं जानते हो कि अगर हमारे रिश्ते की भनक तुम्हारे घर वालों को लग गई, तो इस का क्या नतीजा होगा?’’

शोभित बोला, ‘‘मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ मुनिया ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मैं तो तुम्हें बहुत पहले से अपने दिल में बसा चुकी हूं, लेकिन आज तक कह नहीं पाई. मुझे डर लगता है कि समाज शायद हमारी इस चाहत को कभी नहीं समझेगा.’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो,’’ इतना कह कर शोभित ने मुनिया को खींच कर अपनी बांहों में कस लिया और उस के गालों व होंठों को चूमने लगा. मुनिया उस के प्यार में मदहोश होती रही और उसे प्यार करने लगी. हरिराम और विक्रम पाल एक ही गांव में शुरू से पासपास रहते रहे थे. हरिराम का अपना निजी पुश्तैनी पक्का शानदार मकान था, जिस के सामने विक्रम पाल का मकान छोटा सा खपरैलदार बना था, फिर भी फैलाव में वह थोड़ा बड़ा था.

हरिराम ऊंची जाति का था और विक्रम पाल को लोग नीची जाति का मानते जरूर थे, लेकिन उस का गांव वालों के साथ उठनाबैठना बराबर का था. गांव में अंतर्जातीय विवाह की प्रथा नहीं थी, फिर भी गांव के कुछ लड़के व लड़कियां प्रेमजाल में फंस कर गांव छोड़ कर दूर जा बसे थे.

गांव के लड़के मुनिया और शोभित की प्रेम कहानी को चटकारे ले कर फैलाने लगे. एक दिन यह खबर शोभित के पिता हरिराम के कानों में पहुंची. उन्होंने शोभित की पिटाई कर दी. शोभित ने भी कसम खा ली थी कि वह मुनिया को अपना जीवनसाथी बना कर रहेगा, चाहे इस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े. वह भूल गया था कि एक ऊंचे खानदान वाले निचले खानदान की लड़की को बहू बनाना कभी पसंद नहीं करेंगे. वह यह भी अच्छी तरह जानता था कि प्यार करने वालों को गांवनिकाला दिया जा चुका था.

इधर हरिराम कुछ लोगों को साथ ले कर मुनिया के पिता विक्रम पाल के दरवाजे पर पहुंच कर गुस्से में दरवाजा पीटने लगा. विक्रम पाल के बाहर आने पर हरिराम चिल्लाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बेटी ने कैसे इतनी हिम्मत कर ली कि उस ने मेरे बेटे को अपने झूठे प्रेमजाल में फंसा कर सारे गांव में हमारी बेइज्जती का डंका पिटवा दिया.’’

‘‘मैं आप की बात समझा नहीं,’’ विक्रम पाल ने शांत लहजे में पूछा. ‘‘सारे गांव में ढिंढोरा पिट चुका है और तुम्हें खबर नहीं लगी. पूछो अपनी बेटी से कि उस ने क्यों मेरे बेटे पर अपना प्रेमजाल फैलाया? तुम उसे अपने हाथों से नहीं मारोगे, तो वह मार दी जाएगी. पड़ोस में रहने का यह मतलब नहीं है कि तुम लोग हमारे सिर पर चढ़ कर बैठने की कोशिश करो, हमारी बराबरी करने की हिम्मत करोगे.’’

‘‘वे दोनों नादान हैं. गलती कर दी होगी. उम्र का तकाजा है. हमें समझदारी से काम लेना चाहिए, वरना गांव का माहौल बिगड़ जाएगा. उन्हें माफ कर दो. मैं मुनिया को समझा दूंगा,’’ विक्रम पाल ने गुजारिश की. ‘‘तुम अपनी बेटी पर लगाम कसो, वरना,’’ कहते हुए हरिराम अपने लोगों के साथ वापस चला गया.

उस गांव में खाप पंचायत का बोलबाला था, जिस के तालिबानी फरमानों ने बहुत से नौजवान प्रेमी जोड़ों के सपने उजाड़ दिए थे. शोभित और मुनिया को अपने ऊपर होने वाले जुल्म की फिक्र न थी. वे दोनों छिपते हुए अपने किसी दोस्त के यहां मिलते रहे.

एक दिन मुनिया की सहेली ने उसे समझाया, ‘‘तुम जितनी भोली और नासमझ हो, तुम्हारा शोभित वैसा नहीं है. वह पैसे वाला है. तुम्हारा उस से कोई मुकाबला नहीं हो सकता. ‘‘ये बड़े घर के लोग छोटों की इज्जत को खरीदने की चीज समझते हैं, पर घर की बहू नहीं बना सकते. अफसोस इस बात का है कि हम नीची जाति की लड़कियों से वे मनोरंजन तो कर सकते हैं, पर अपने घर में जगह नहीं दे सकते.’’

‘‘अब मैं क्या करूं? न तो उसे छोड़ते बनता है, न ही उस के बगैर मैं जिंदा रह सकूंगी,’’ निराश हो कर मुनिया ने कहा. ‘‘निराश मत हो. शोभित से मिल कर मंदिर में शादी कर लो. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा.’’

‘‘इस से तो बात बढ़ेगी.’’ ‘‘तब प्रेम की दुहाई मत दो और शोभित से नाता तोड़ दो. इसी में तुम्हारी भलाई है,’’ सहेली ने कहा.

गांव में छोटी सी बात भी बहुत जल्दी फैल जाती है, फिर मुनिया और शोभित के मिलने की बात कैसे छिप सकती थी. गांव की पंचायत बैठ गई. लोग इकट्ठा होने लगे. कुछ परदानशीं औरतें और शहर से पढ़ कर लौटी लड़कियां भी वहां थीं. ऐसा लग रहा था, जैसे गांव का पूरा समाज वहां जमा हो रहा था.

मुनिया के सिर पर आंचल था. उस की मांग में सिंदूर और माथे पर लाल टीका लगा था. मुनिया और शोभित ने गुपचुप शादी रचा ली थी. पंचायत में हरिराम ने हंगामा करते हुए चीख कर कहा, ‘‘इस नीच लड़की मुनिया ने मेरे बेटे शाभित पर इतना दबाव डाला कि उस ने हमारी इज्जत को दरकिनार करते हुए उस से शादी कर ली. इस पापिन को मौत की सजा दी जाए, ताकि गांव की दूसरी बहूबेटियों की इज्जत बनी रहे.’’

कुछ लोगों ने उस की शिकायत को जायज माना. ‘‘इस में सारा कुसूर हरिराम का है. शुरू से ही शोभित और मुनिया साथ खेलतेखाते रहे और आज उन्हें ऊंचनीच समझाई जा रही है. बाप को अपने बेटे के चालचलन पर काबू करना था. उस समय हरिराम को याद नहीं आया कि उन का बेटा नीचे कुल की लड़की के साथ बैठ कर उस की जूठी रोटी खाता था.

‘‘मैं तो कहता हूं कि शोभित ने मेरी बेटी के साथ फरेब किया है. मौत का भागी तो वह होगा,’’ हरिराम के जवाब में विक्रम पाल ने अपनी सफाई दी. दोनों पक्षों में देर तक बहस चलती रही. बाद में पंचायत ने फैसला सुनाया, ‘मुनिया और उस के परिवार को गांव से निकाल दिया जाए, क्योंकि नीची जाति की लड़की से ऊंचे जाति के लड़के की शादी नहीं हो सकती. दोनों की शादी एक तमाशा है.’

उसी समय शहर से पढ़ कर आई कुछ लड़कियों में से एक चिल्लाने लगी, ‘‘पंचायत को इसी तरह का गलत फैसला सुनाना था, तो हमें शहर पढ़ने क्यों भेजा गया? वहां तो हम सभी को हर जाति, हर तबके की लड़कियों के साथ खानापीना पड़ता था. ऐसे में हम सभी लड़कियों को इस गांव में रहने का कोई हक नहीं. हमें भी गांव से निकाल देना चाहिए. ‘‘गांव के जो लड़के शहर में जा कर नीची जाति की लड़कियों से जिस्मानी संबंध बना कर खुद को पाकसाफ कहते हुए गांव लौटते हैं, उन्हें भी गांव से निकाल देना चाहिए.’’

‘‘पंचायत का फैसला अटल है. तुम लोगों की सारी बातें बकवास हैं,’’ एक पंच ने कहा. ‘‘आप लोगों का ऐसा तालिबानी फरमान हम नहीं मानेंगीं. हम बड़े सरकारी अफसरों को इस मामले की जानकारी दे कर इंसाफ मांगेंगीं. आप लोगों का इसी तरह मनमानी आदेश चलता रहा, तो देश को आगे बढ़ाने की तरफ ध्यान देने के बजाय नौजवान पीढ़ी ऐसी खाप पंचायतों के फरमानों में ही उलझ कर दम तोड़ने लगेंगी.

‘‘यही नहीं, दूसरे गांव में भी ऐसी खाप पंचायतें खुद को कानून से ऊपर मान कर गैरकानूनी कदम उठा रही हैं, जिस का हम विरोध करेंगीं,’’ उन लड़कियों में से दूसरी ने उठ कर कहा. उसी समय पुलिस इंस्पैक्टर दलबल के साथ वहां पहुंचे और बोले, ‘‘किसी ने कलक्टर साहब को फोन किया है कि किसी नीची जाति की लड़की के साथ आप की पंचायत नाइंसाफी कर रही है, इसलिए मुखियाजी को चल कर कोर्ट में अपनी सफाई देनी होगी. तब तक के लिए पंचायत का आदेश माना नहीं जाएगा. लड़की को सताया न जाए, वरना हमें कानूनी कार्यवाही करनी पड़ेगी.’’ उसी समय पंचायत खत्म हो गई. शोभित और मुनिया दोबारा अपने दोस्त के मकान की ओर चले गए.

तभी ‘हमारी जीत हुई… हम साथसाथ रहेंगे…’ का शोर हुआ.

Friendhsip Day Special: एक अच्छा दोस्त-सतीश से क्या चाहती थी राधा

सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

सतीश और राधा हमउम्र थे. राधा के मन में उधेड़बुन चल रही थी. उसे लग रहा था कि काश, सतीश उस की जिंदगी में 2 साल पहले आया होता.

राधा की शादी 2 साल पहले मोहन के साथ हुई थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर मोहन को कंपनी के काम से अकसर बाहर ही रहना पड़ता था. घर में रहते हुए भी वह राधा पर कम ही ध्यान दे पाता था.

यों तो राधा एक अच्छी बीवी थी, पर मोहन का बारबार शहर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं था. मोहन का सपाट रवैया उसे अच्छा नहीं लगता था. वह तो एक ऐसे पति का सपना ले कर आई थी, जो उस के इर्दगिर्द चक्कर काटता रहे. लेकिन मोहन हमेशा अपने काम में लगा रहता था.

अगले दिन सतीश समय से पहले औफिस पहुंच गया. वह अपनी सीट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि तभी राधा ने अंदर कदम रखा.

सतीश को सामने देख राधा ने उस से पूछा, ‘‘कैसे हैं आप? इस शहर में पहला दिन कैसा रहा?’’

सतीश ने सहज हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं ठीक हूं. पहला दिन तो अच्छा ही रहा. आप कैसी हैं?’’

राधा ने चहकते हुए कहा, ‘‘खुद ही देख लो, एकदम ठीक हूं.’’

इस के बाद राधा लगातार सतीश के करीब आने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे सतीश भी खुलने लगा. दोनों औफिस में हंसतेबतियाते रहते थे.

हालांकि औफिस के दूसरे लोग उन की इस बढ़ती दोस्ती से अंदर ही अंदर जलते थे. वे पीठ पीछे जलीकटी बातें भी करने लगे थे.

राधा के जन्मदिन पर सतीश ने उसे एक बढि़या सा तोहफा दिया और कैंटीन में ले जा कर लंच भी कराया.

राधा एक नई कशिश का एहसास कर रही थी. समय पंख लगा कर उड़ता गया. सतीश और राधा की दोस्ती गहराती चली गई.

राधा शादीशुदा है, सतीश यह बात बखूबी जानता था. वह अपनी सीमाओं को भी जानता था. उसे तो एक अजनबी शहर में कोई अपना मिल गया था, जिस के साथ वह अपने सुखदुख की बातें कर सकता था.

सतीश की मां ने कई अच्छे रिश्तों की बात अपने खत में लिखी थी, मगर वह जल्दी शादी करने के मूड में नहीं था. अभी तो उस की नौकरी लगे केवल 8 महीने ही हुए थे. वह राधा के साथ पक्की दोस्ती निभा रहा था, लेकिन राधा इस दोस्ती का कुछ और ही मतलब लगा रही थी.

राधा को लगने लगा था कि सतीश उस से प्यार करने लगा है. वह पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने मेकअप और कपड़ों पर भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. उस पर सतीश का नशा छाने लगा था. वह मोहन का वजूद भूलती जा रही थी.

सतीश हमेशा राधा की पसंदनापसंद का खयाल रखता था. वह उस की हर बात की तारीफ किए बिना नहीं रहता था. यही तो राधा चाहती थी. उसे अपना सपना सच होता दिखाई दे रहा था.

एक दिन राधा ने सतीश को डिनर पर अपने घर बुलाया. सतीश सही समय पर राधा के घर पहुंच गया.

नीली जींस व सफेद शर्ट में वह बेहद सजीला जवान लग रहा था. उधर राधा भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उस ने नीले रंग की बनारसी साड़ी बांध रखी थी, जो उस के गोरे व हसीन बदन पर खूब फब रही थी.

सतीश के दरवाजे की घंटी बजाते ही राधा की बांछें खिल उठीं. उस ने मीठी मुसकान बिखेरते हुए दरवाजा खोला और उसे भीतर बुलाया.

ड्राइंगरूम में बैठा सतीश इधरउधर देख रहा था कि तभी राधा चाय ले कर आ गई.

‘‘मैडम, मोहनजी कहां हैं? वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे,’’ सतीश ने पूछा.

राधा खीज कर बोली, ‘‘वे कंपनी के काम से हफ्तेभर के लिए हैदराबाद गए हैं. उन्हें मेरी जरा भी फिक्र नहीं रहती है. मैं अकेली दीवारों से बातें करती रहती हूं. खैर छोड़ो, चाय ठंडी हो रही है.’’

सतीश को लगा कि उस ने राधा की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है. बातोंबातों में चाय कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला.

राधा को लग रहा था कि सतीश ने आ कर कुछ हद तक उस की तनहाई दूर की है. सतीश कितना अच्छा है. बातबात पर हंसतामुसकराता है. उस का कितना खयाल रखता है.

तभी सतीश ने टोकते हुए पूछा, ‘‘राधा, कहां खो गई तुम?’’

‘‘अरे, कहीं नहीं. सोच रही थी कि तुम्हें खाने में क्याक्या पसंद हैं?’’

सतीश ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया, ‘‘बस यही राजमा, पुलाव, रायता, पूरीपरांठे और मूंग का हलवा. बाकी जो आप खिलाएंगी, वही खा लेंगे.’’

‘‘क्या बात है. आज तो मेरी पसंद हम दोनों की पसंद बन गई,’’ राधा ने खुश होते हुए कहा.

राधा सतीश को डाइनिंग टेबल पर ले गई. दोनों आमनेसामने जा बैठे. वहां काफी पकवान रखे थे.

खाते हुए बीचबीच में सतीश कोई चुटकुला सुना देता, तो राधा खुल कर ठहाका लगा देती. माहौल खुशनुमा हो गया था.

‘काश, सब दिन ऐसे ही होते,’ राधा सोच रही थी.

सतीश ने खाने की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या खाना बनाया?है, मैं तो उंगली चाटता रह गया. तुम इसी तरह खिलाती रही तो मैं जरूर मोटा हो जाऊंगा.’’

‘‘शुक्रिया जनाब, और मेरे बारे में आप का क्या खयाल है?’’ कहते हुए राधा ने सतीश पर सवालिया निगाह डाली.

‘‘अरे, आप तो कयामत हैं, कयामत. कहीं मेरी नजर न लग जाए आप को,’’ सतीश ने मुसकरा कर जवाब दिया.

सतीश की बात सुन कर राधा झूम उठी. उस की आंखों के डोरे लाल होने लगे थे. वह रोमांटिक अंदाज में अपनी कुरसी से उठी और सतीश के पास जा कर स्टाइल से कहने लगी, ‘‘सतीश, आज मौसम कितना हसीन है. बाहर बूंदों की रिमझिम हो रही?है और यहां हमारी बातोें की. चलो, एक कदम और आगे बढ़ाएं. क्यों न प्यारमुहब्बत की बातें करें…’’

इतना कह कर राधा ने अपनी गोरीगोरी बांहें सतीश के गले में डाल दीं. सतीश राधा का इरादा समझ गया. एक बार तो उस के कदम लड़खड़ाए, मगर जल्दी ही उस ने खुद पर काबू पा लिया और राधा को अपने से अलग करता हुआ बोला, ‘‘राधाजी, आप यह क्या कर रही?हैं? क्यों अपनी जिंदगी पर दाग लगाने पर तुली हैं? पलभर की मौजमस्ती आप को तबाह कर देगी.

‘‘अपने जज्बातों पर काबू कीजिए. मैं आप का दोस्त हूं, अंधी राहों पर धकेलने वाला हवस का गुलाम नहीं.

‘‘आप अपनी खुशियां मोहनजी में तलाशिए. आप के इस रूप पर उन्हीं का हक है. उन्हें अपनाने की कोशिश कीजिए,’’ इतना कह कर सतीश तेज कदमों से बाहर निकल गया.

राधा ठगी सी उसे देखती रह गई. उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई? क्यों सतीश को अपना सबकुछ मान बैठी? क्यों इस कदर उतावली हो गई?

‘अगर सतीश ने मुझे न रोका होता तो आज मैं कहीं की न रहती. बाद में वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता था. मगर वह ऐसा नहीं है. उस ने मुझे भटकने से रोक लिया. कितना महान है सतीश. मुझे उस की दोस्ती पर नाज है.’

Friendship Day Special: दिये से रंगों तक-दोस्ती और प्रेम की कहानी

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