कुंठा : महेश के मन में आखिर क्या थी कुंठा

महेश की नौकरी भारतीय वायु सेना में बतौर मैडिकल अटैंडैंट लगी थी. वायु सेना सिलैक्शन सैंटर के कमांडर ने कहा, ‘‘बधाई हो महेश, तुम्हें एक नोबेल ट्रेड मिला है. तुम नौकरी के साथसाथ इनसानियत के लिए भी काम कर सकोगे. किसी लाचार के काम आ सकोगे.’’

जो भी हो, महेश की समझ में तो यही आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है बस.

अस्पताल में तकरीबन 3 महीने की ट्रेनिंग चल रही थी. सबकुछ करना था. मरीजों का टैंपरेचर, ब्लडप्रैशर, नाड़ी वगैरह के रिकौर्ड रखने से ले कर उन्हें बिस्तर पर सुलाने तक की जिम्मेदारी थी. हर बिस्तर तक जा कर मरीजों को दवा खिलानी पड़ती थी. लाचार मरीजों को स्पंज बाथ देना पड़ता था.

महेश तो एक पिछड़े इलाके से था, जहां के अस्पताल के नर्स से ले कर कंपाउंडर, डाक्टर तक मरीजों को डांटते रहते थे. एकएक इंजैक्शन लगाने के लिए नर्स फीस लेती थी. डाक्टरों से बात करने में डर लगता था कि कहीं डांटने न लगें. स्पंज बाथ का तो नाम भी नहीं सुना था. कभी कोई सगा अस्पताल में भरती हुआ, तो उसे एकएक रिलीफ के लिए दाम देते देखा था.

पर यहां तो नर्सों का ‘इंटरनैशनल एथिक्स’ हम पर लागू था. हमें पहले ही ताकीद कर दी गई थी कि किसी मरीज से कभी भी चाय मत पीना, वरना कोर्ट मार्शल हो सकता है. पलपल यही खयाल रहता था कि कैसे नौकरी महफूज रखी जाए.

एक दिन जब महेश अपनी शिफ्ट ड्यूटी पर गया, तो उस से पहले काम कर रहे साथी ने बताया, ‘‘एक मरीज भरती हुआ है. उस का आपरेशन होना है और उसे तैयार करना है.’’

यह कह कर वह साथी चला गया. महेश ने देखा, तो वह बवासीर का मरीज था. महेश ने उसे नुसखे के मुताबिक समझा दिया और दवा दे दी. पर एक बात के लिए महेश दुविधा में पड़ गया कि उस मरीज के गुप्त भाग की शेविंग करनी थी.

उस की शेविंग कैसे की जाए? अब महेश को अफसोस होने लगा कि यह कैसी नौकरी में वह फंस गया. ड्यूटी उस की थी. उस से पूछा जाएगा.

महेश ने एक उपाय निकाला. मरीज को बुलाया. रेजर में ब्लेड लगा कर उस से कहा, ‘‘अंदर से दरवाजा बंद कर लो और पूरा समय ले कर शेविंग कर डालो.’’

उस मरीज ने हामी में सिर हिलाया और रेजर ले कर चला गया. महेश ने संतोष की सांस ली.

दूसरे दिन जब उस मरीज को औपरेशन के लिए जाना था, तब महेश ही ड्यूटी पर था. वह सोच रहा था कि सब ठीक हो. उस के सीनियर ने उस से पूछा, ‘‘क्या मरीज का ‘प्रीऔपरेटिव’ केयर फालो हुआ?’’

महेश ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

उस सीनियर ने स्क्रीन पर लगा कर मरीज की जांच की. महेश के पास आ कर वह चिल्लाया, ‘‘यह क्या है? तुम ने तो मरीज का कोई केयर ही नहीं किया है?’’

यह सुन कर महेश के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने उसे समझा दिया था.’’

वह सीनियर महेश पर बिगड़ा, ‘‘तुम्हारी समझाने की ड्यूटी नहीं है. तुम्हें खुद करना है और यह तय करना है कि मरीज को तुम्हारी लापरवाही के चलते कोई इंफैक्शन न हो.’’

महेश की बोलती बंद हो गई. अगले ही महीने उसे छुट्टी पर घर जाना था. उसे बड़ी कुंठा होने लगी कि यही सब जा कर घर पर बताऊंगा.

अब वह अपनेआप को बड़ा बेबस महसूस कर रहा था. वह पूरी तरह हार मान कर सीनियर के पास चला गया, ‘‘सर, मुझे तो अपनेआप को नंगा देखने में शर्म आती है और आप मुझ से उस के गुप्त भाग की शेविंग करने को कह रहे हैं.’’

वह सीनियर तुरंत मुड़ा और मरीज को आवाज दी. उस ने शेविंग का सामान उठाया और कमरे में चला गया. थोड़ी देर बाद वे दोनों बाहर आए.

सीनियर ने महेश से कहा, ‘‘मैं ने इस मरीज की शेविंग कर दी है. किसी लाचार की सेवा करना छोटा या घटिया काम नहीं होता. मैडिकल के प्रोफैशन में औरतमर्द या अंगगुप्तांग नहीं होता, बस एक मरीज होता है और उस का शरीर होता है. तो फिर इस शरीर की साफसफाई करने में किस बात की दिक्कत?’’

इतना कह कर सीनियर चला गया. कितनी आसानी से बिना किसी हीनभावना के उस ने सब कर दिया था. यह देख कर महेश को दुख होने लगा कि उस ने पहले ही ये सब क्यों नहीं किया? उस के अंदर कितनी कुंठा है. उस की नौकरी का असली माने तो यही था. यही तो उस का असली काम था, जिसे करने से वह चूक गया था.

सफर में हमसफर : सुमन की उस रात की कहानी

रात के तकरीबन 8 बजे होंगे. यों तो छोटा शहर होने पर सन्नाटा पसरा रहता है, पर आज भारत पाकिस्तान का क्रिकेट मैच था, तो काफी भीड़भाड़ थी. वैसे तो सुमन के लिए कोई नई बात नहीं थी. यह उस का रोज का ही काम था.

‘‘मैडम, झकरकटी चलेंगी क्या?’’

सुमन ने पलट कर देखा. 3-4 लड़के खड़े थे.

‘‘कितने लोग हो?’’

‘‘4 हैं हम.’’

‘‘ठीक है, बैठ जाओ,’’ कहते हुए सुमन ने आटोरिकशा स्टार्ट किया.

सुमन ने एक ही नजर में भांप लिया था कि वे सब किसी कालेज के लड़के हैं. सभी की उम्र 20-22 साल के आसपास होगी. आज सुबह से सवारियां भी कम मिली थीं, इसलिए सुमन ने सोचा कि चलो एक आखिरी चक्कर मार लेते हैं, कुछ कमाई हो जाएगी और शकील चाचा को टैक्सी का किराया भी देना था.

अभी कुछ ही दूर पहुंच थे कि लड़कों ने आपस में हंसीमजाक और फब्तियां कसना शुरू कर दिया. तभी उन में से एक बोला, ‘‘यार, तुम ने क्या बैटिंग की… एक गेंद में छक्का मार दिया.’’

‘‘हां यार, क्या करें, अपनी तो बात ही निराली है. फिर मैं कर भी क्या सकता था. औफर भी तो सामने से आया था,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘हां, पर कुछ भी कहो, कमाल की लड़की थी,’’ तीसरा बोला और सब एकसाथ हंसने लगे.

सुमन ने अपने ड्राइविंग मिरर से देखा कि वे सब बात तो आपस में कर रहे थे, पर निगाहें उसी की तरफ थीं. उस ने ऐक्सलरेटर बढ़ाया कि जल्दी ही मंजिल पर पहुंच जाएं. पता नहीं, क्यों आज सुमन को अपनी अम्मां का कहा एकएक लफ्ज याद आ रहा था.

पिताजी की हादसे में मौत हो जाने के चलते उस के दोनों बड़े भाइयों ने मां की जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया था. सुमन ग्रेजुएशन भी पूरी न कर पाई थी, मगर रोजरोज के तानों से तंग आ कर वह भाइयों का घर छोड़ कर अपने पुराने घर में अम्मां को साथ ले कर रहने आ गई, जहां से अम्मां ने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की थी और उस बंगले को भाईभाभी के लिए छोड़ दिया.

ऐसा नहीं था कि भाइयों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की, पर सिर्फ एक दिखावे के लिए. अम्मां और सुमन आ तो गए उस मकान में, पर कमाई का कोई जरीया न था. कितने दिनों तक बैठ कर खाते वे दोनों?

मुनासिब पढ़ाई न होने के चलते सुमन को नौकरी भी नहीं मिली. तब पिताजी के करीबी दोस्त शकील चाचा ने उन की मदद की और बोले, ‘तुम पढ़ने के साथसाथ आटोरिकशा भी चला सकती हो, जिस से तुम्हारी पैसों की समस्या दूर होगी और तुम पढ़ भी लोगी.’

पर जब सुमन ने अम्मां को बताया, तो वे बहुत गुस्सा हुईं और बोलीं, ‘तुम्हें पता भी है कि आजकल जमाना कितना खराब है. पता नहीं, कैसीकैसी सवारियां मिलेंगी और मुझे नहीं पसंद कि तुम रात को सवारी ढोओ.’ ‘ठीक है अम्मां, पर गुजारा कैसे चलेगा और मेरे कालेज की फीस का क्या होगा? मैं रात के 8 बजे के बाद आटोरिकशा नहीं चलाऊंगी.’

कुछ देर सोचने के बाद अम्मां ने हां कर दी. अब सुमन को आटोरिकशा से कमाई होने लगी थी. अब वह अम्मां की देखभाल अच्छे से करती और अपनी पढ़ाई भी करती.

सबकुछ ठीक से चलने लगा, पर आज का मंजर देख कर सुमन को लगने लगा कि अम्मां की बात न मान कर गलती कर दी क्या? कहीं कोई ऊंचनीच हो गई, तो क्या होगा…

तभी अचानक तेज चल रहे आटोरिकशा के सामने ब्रेकर आ जाने से झटका लगा और सुमन यादों की परछाईं से बाहर आ गई.

‘‘अरे मैडम, मार ही डालोगी क्या? ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता, तो चलाती क्यों हो? वही काम करो, जो लड़कियों को भाता है,’’ एक लड़के ने कहा.

तभी दूसरा बोला, ‘‘बैठ यार रोहित. ठीक है, हो जाता है कभीकभी.’’

‘‘सौरी सर…’’ पसीना पोंछते हुए सुमन बोली. अभी वे कुछ ही दूर चले थे कि उन में से चौथा लड़का बोला, ‘‘हैलो मैडम, मैं विकास हूं. आप का क्या नाम है?’’

सुमन ने डरते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुमन है.’’

‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘बीए में.’’

‘‘कहां से?’’

‘‘जेएनयू से.’’

‘‘ओह, तभी मुझे लग रहा है कि मैं ने आप को कहीं देखा है. मैं वहां लाइब्रेरी में काम करता हूं,’’ वह लड़का बोला.

‘‘अच्छा… पर मैं ने तो आप को कभी नहीं देखा,’’ सुमन बेरुखी से बोली.

तभी सारे लड़के खिलखिला कर हंस दिए. रोहित बोला, ‘‘क्या लाइन मार रहा है? ऐ लड़की, जरा चौराहे से लैफ्ट ले लेना, वहां से शौर्टकट है.’’ चौराहे से मुड़ते ही सुमन के होश उड़ गए. वह रास्ता तो एकदम सुनसान था.

सुमन ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘पहले वाला रास्ता तो काफी अच्छा था, पर यह तो…’’

‘‘नहीं, हम को तुम उसी रास्ते से ले चलो,’’ रोहित बोला. अब तो सुमन का बड़ा बुरा हाल था. उस के हाथपैर डर से कांप रहे थे.

आज सुमन को अम्मां की एकएक बात सच होती दिख रही थी. अम्मां कहती थीं कि इतिहास में औरतें दर्ज कम, दफन ज्यादा हुई हैं. वे रहती पिंजरे में ही हैं, बस उन के आकार और रंग अलग होते हैं. समाज को औरतों का रोना भी मनोरंजन लगता है. हम औरतों को चेहरे और जिस्म के उतारचढ़ाव से देखा और पहचाना जाता है, इसलिए तुम यह फैसला करने से पहले सोच लो…

तभी पीछे से उन में से एक लड़के ने अपना हाथ सुमन के कंधे पर रखा और बोला, ‘‘जरा इधर से राइट चलना. हमें पैसे निकालने हैं.’’ सुमन की तो जैसे सांस ही हलक में अटक गई. उस का पूरा शरीर एक सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ा गया.

सुमन ने कहा, ‘‘आप लोगों ने आटोरिकशा नहीं खरीदा है. मैं अब झकरकटी में ही छोड़ूंगी, नहीं तो मैं आप सब को यहीं उतार कर वापस चली जाऊंगी.’’

‘‘कैसे वापस चली जाओगी तुम?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘क्या बोला?’’ सुमन ने अपनी आवाज में भारीपन ला कर कहा.

‘‘अरे, मैं यह कह रहा हूं कि इतनी रात को सुनसान जगह में हम सभी कहां भटकेंगे. हमें आप सीधे झकरकटी ही छोड़ दो,’’ रोहित बोला.

‘‘ठीक है… अब आटोरिकशा सीधा वहीं रुकेगा,’’ सुमन बोली.

सुमन के जिंदा हुए आत्मविश्वास से उन का सारा डर पानी में पड़ी गोलियों की तरह घुल गया. उसे लगा कि उस के चारों ओर महकते हुए शोख लाल रंग खिल गए हों और वह उन्हें दुनिया के सामने बिखेर देना चाहती है. अभी तो उस के सपनों की उड़ान बाकी थी, फिर भी उस ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक लिया और सामने दिखे एटीएम पर आटोरिकशा रोक दिया. विकास हैरानी से सुमन के चेहरे पर आतेजाते भाव को अपलक देखे जा रहा था. सुमन इस से बेखबर गाड़ी का मिरर साफ करती जा रही थी. वह पैसा निकाल कर आ गया और सभी फिर चल पड़े.

बमुश्किल एक किलोमीटर ही चले होंगे, तभी सुमन को सामने खूबसूरत सफेद हवेली दिखाई दी. आसपास बिलकुल वीरान था, पर एक फर्लांग की दूरी पर पान की दुकान थी और मैच भी अभीअभी खत्म हुआ था. भारत की जीत हुई थी. सब जश्न मना कर जाने की तैयारी में थे.

सुमन ने हवेली से थोड़ी दूर और पान की दुकान से थोड़ा पहले आटोरिकशा रोक दिया. सभी वहां झूमते हुए उतर गए, पर विकास वहीं खड़ा उसे देख रहा था.

सुमन गुस्से से बोली, ‘‘ऐ मिस्टर… क्या देख रहे हो? क्या कभी लड़की नहीं देखी?’’

‘‘देखी तो बहुत हैं, पर तुम्हारी सादगी और हिम्मत का दीवाना हो गया यह दिल…’’ विकास बोला.

उन सब लड़कों ने खूब शराब पी रखी थी. तभी उस में से एक लड़के ने पीछे मुड़ कर देखा कि विकास वहीं खड़ा है और उसे पुकारते हुए सभी उस के पास वापस आने लगे.

यह देख सुमन घबरा गई. उधर पान वाला भी दुकान पर ताला लगा कर जाने वाला था.

सुमन तेजी से पलट कर जाने लगी, मगर विकास ने पीछे से उस का हाथ पकड़ लिया और घुटनों के बल बैठ कर बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर सारे दोस्त ताली बजाने लगे. गहराती हुई रात और चमकते हुए तारों की झिलमिल में विकास की आंखों में सुमन को प्यार की सचाई नजर आ रही थी.

पता नहीं, क्यों सुमन को विकास पर ढेर सारा प्यार आ गया. शायद इस की वजह यह रही होगी कि बचपन से एक लड़की प्यार और इज्जत से दूर रही हो.

सुमन अपने जज्बातों पर काबू पाते हुए बोली, ‘‘चलो, कल कालेज में मिलते हैं. तब तक तुम्हारा नशा भी उतर जाएगा.’’

तभी उन में से एक लड़का बोला, ‘‘सुमन, हम ने शराब जरूर पी रखी है, पर अपने होश में हैं. हम इतने नशे में भी नहीं हैं कि यह न समझ पाएं कि औरत का बदन ही उस का देश होता है और हमारे देश में हमेशा से औरतों की इज्जत की जाती रही है. चंद खराब लोगों की वजह से सारे लोग खराब नहीं होते.’’

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो… कल मिलते हैं कालेज में.’’

इस के बाद सुमन ने आटोरिकशा स्टार्ट किया, मगर उसे ऐसा लग रहा था जैसे चांदसितारे और बदन को छूती ठंडी हवा उस के प्यार की गवाह बन गए हों और वह इस छोटे से सफर में मिले हमसफर के ढेरों सपने संजोए और खुशियां बटोरे अपने घर चल दी.

साहब की चतुराई : चपरासी की बीवी के साथ मस्ती

तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था.

नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, ‘‘यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’

‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहन बेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’

इतना सुन कर नितिन मन ही मन उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’ चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’

‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’

उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली.

जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई.

उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है.

चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’

‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’

‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’

‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई.

शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया.

साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी.

सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’

यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें.

‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’

शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’

यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे.

कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे.

एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था.

रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं.

अनोखा बंधन : संगीता और अमन का रिश्ता

अमर को रात के 8 बजे मेघदूत होटल में पहुंच जाना था. उस की कंपनी के एक क्लाइंट ने उसे मिलने के लिए यही समय दिया था, पर किसी दूसरे काम में फंस जाने के चलते वह समय पर नहीं पहुंच पाया था.

अमर जब होटल में पहुंचा, तो रात के साढ़े 9 बज गए थे. क्लाइंट कमरा नंबर 12 में ठहरा हुआ था.

अमर ने डोरबैल बजाई, तो खुद क्लाइंट ने दरवाजा खोला. अमर का परिचय पा कर उसे दोचार सुनाते हुए क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप को समय पर आना चाहिए था. अभी मैं एक लड़की के साथ बिजी हूं.’’

‘‘सौरी सर, मैं कल दोबारा आ जाऊंगा. बताइए, कितने बजे आऊं?’’

‘‘कल मैं किसी दूसरे काम में बिजी हूं…’’ कुछ सोच कर क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप ऐसा कीजिए कि भीतर आ जाइए. फाइल तैयार है. सिर्फ मेरा दस्तखत करना बाकी रह गया है.’’

अमर कमरे में आ गया. जैसे ही अमर की बैड पर नजर पड़ी, तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. बैड पर कोई और नहीं, बल्कि उस की प्रेमिका रह चुकी संगीता थी. वह अपने बदन पर चादर लपेटे हुए थी.

अमर का मन कमरे से भाग जाने को हुआ, मगर उस ने ऐसा नहीं किया. थोड़ी देर बाद फाइल ले कर अमर क्लाइंट के साथ दरवाजे पर आया. न चाहते हुए भी उस ने पूछ लिया, ‘‘सर, यह लड़की आप की गर्लफ्रैंड है क्या?’’

‘‘नहीं, कालगर्ल है. आज शाम को ही एक दलाल से इसे बुक किया था.’’

अमर को लगा, जैसे किसी ने उसे बहुत ऊंचाई से नीचे फेंक दिया हो. अमर को संगीता से बिछड़े हुए 2 साल हो गए थे. इस बीच उस ने न जाने कहांकहां उसे ढूंढ़ा, मगर वह उसे नहीं मिली.

अमर बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव का रहने वाला था. ग्रेजुएशन करते ही उसे दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. वह कुंआरा था, इसलिए अपने मातापिता, भाईबहन को गांव में छोड़ कर दिल्ली अकेले ही आया था.

नौकरी जौइन करने के बाद अमर को जिस बिल्डिंग में किराए का फ्लैट मिला था, उसी में संगीता अपने पिता के साथ दूसरी मंजिल पर रहती थी. घर से अमर का दफ्तर बहुत दूर था, इसलिए आनेजाने के लिए उस ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी. शुरू में तो नहीं, मगर बाद में अमर ने इस बात पर ध्यान दिया कि शाम को जैसे ही उस की मोटरसाइकिल बिल्डिंग के अहाते में आती है, दूसरी मंजिल की बालकनी में झट से 20-22 साला एक खूबसूरत लड़की आ कर उसे देखने लगती है.

पता करने पर मालूम हुआ कि उस लड़की का नाम संगीता है. धीरेधीरे अमर को लगने लगा कि वह संगीता को प्यार करने लगा है, उस के बिना नहीं रह पाएगा. एक दिन अमर संगीता को अपने दिल का हाल बताने के लिए बेचैन हो गया. जैसे ही वह शाम को दफ्तर सेआया, संगीता को बालकनी में देखा.

अमर ने संकेत से उसे बताया कि वह उस के पास आ रहा है. संगीता ने उसे मना नहीं किया. फिर वह खुश हो कर उस के फ्लैट पर पहुंच गया. संगीता दरवाजे पर खड़ी थी. उस ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया, फिर उसे अंदर ले गई.

अमर को बैठा कर संगीता चायनाश्ता लाने के लिए जाने लगी, तो उस ने उसे रोक कर अपने पास बैठा लिया. अमर ने पहले उसे अपने बारे में बताया, फिर कहा कि वह उसे प्यार करता है और शादी करना चाहता है.

‘‘क्या आप को पता है कि मैं विधवा हूं? मेरा डेढ़ साल का एक बेटा है?’’

अमर को संगीता की इस बात पर यकीन नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘अभी तुम्हारी उम्र 22 साल की होगी. इतनी कम उम्र में तुम्हारी शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और विधवा भी हो गई…’’

‘‘मुझे लगता है कि तुम मुझ से शादी नहीं करना चाहती हो, इसलिए ऐसा कह रही हो.’’ संगीता कुछ कहती, उस से पहले ही एक कमरे से बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पड़ी.

संगीता उठ कर उस कमरे में चली गई. जब वह आई, तो उस की गोद में एक खूबसूरत बच्चा था.

‘‘यही मेरा बेटा है. इस का नाम रोहित है.’’

यह सुन कर अमर दुखी हो गया.

वह जानता था कि उस के घर वाले हरगिज किसी विधवा से उस की शादी नहीं होने देंगे. ऊपर से वह एक बच्चे की मां भी थी.

‘‘दरअसल, बात यह है कि जब मैं 11वीं कक्षा में पढ़ती थी, तो मुझे एक लड़के से प्यार हो गया था. वह मेरे साथ ही पढ़ता था. ‘‘मेरे पिता को पता चल गया था कि मैं प्यारमुहब्बत के चक्कर में फंस गई हूं. उन्होंने उस लड़के के पिता से शादी की बात कर डाली, फिर मेरी पढ़ाई छुड़वा कर उस लड़के से शादी कर दी गई.

‘‘शादी का एक साल होतेहोते मैं विधवा हो गई. एक सड़क हादसे में मेरे पति की मौत हो गई थी. उस समय मैं पेट से थी. ‘‘उस के बाद मुझ पर कहर टूट पड़ा. ससुराल वालों ने ‘डायन’ कह कर घर से निकाल दिया और मैं मायके आ गई.

‘‘मेरे पिता ने तो इस सदमे को बरदाश्त कर लिया, मगर मेरी मां बरदाश्त न कर सकीं. दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई.

‘‘मां की मौत के बाद मैं ने खुदकुशी करने की कोशिश की, मगर पिता ने मुझे बचा लिया. मुझे समझाया कि बच्चे को हर हाल में जन्म देना होगा और उस के लिए जीना होगा.

‘‘उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं खुदकुशी कर लूंगी, तो उन का क्या होगा? इस बुढ़ापे में उन्हें कौन देखेगा?

‘‘पिता की बात बिलकुल ठीक थी. मैं अपने मातापिता की एकलौती औलाद थी. मैं खुदकुशी कर लेती, तो उन्हें देखने वाला कोई नहीं बचता.

‘‘समय पर मैं ने बच्चे को जन्म दिया और पूरा ध्यान उस की परवरिश पर लगा दिया.

‘‘मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन पिता हर हाल में मेरी दूसरी शादी करना चाहते थे. उन का कहना था कि उन की मौत के बाद मुझे कौन देखेगा? ‘‘मजबूर हो कर मैं ने पिता को अपनी दूसरी शादी की सहमति दे दी. लेकिन मेरी यह शर्त थी कि मैं उसी से शादी करूंगी, जो मेरे बेटे को अपना नाम देगा.

‘‘लड़के की तलाश शुरू होती, उस से पहले मैं ने अचानक एक दिन आप को देखा और दिल में बसा लिया.

‘‘मैं चाहती थी कि पहले आप मुझे अपने दिल का हाल बताएं, उस के बाद मैं अपने बारे में सबकुछ आप को बता दूंगी. अब आप जो फैसला करेंगे, मुझे मंजूर होगा.’’

संगीता की आपबीती सुन कर अमर चिंता में पड़ गया. वह आननफानन कोई फैसला नहीं करना चाहता था. घर वालों को मनाने की बात कह कर वह वहां से चला गया. अमर संगीता से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने गांव जा कर अपने घर वालों को मनाने का फैसला किया, पर वह गांव न जा सका. 2 दिन बाद ही उस का ट्रांसफर दिल्ली से कोलकाता हो गया.

कोलकाता में उसे तुरंत दफ्तर जौइन करना था, इसलिए वह संगीता को ट्रांसफर की सूचना दिए बिना दिल्ली से चला गया. अमर ने सोचा था कि कोलकाता में दफ्तर जौइन करने के बाद वह छुट्टी ले कर गांव जाएगा. उस के बाद खुशखबरी ले कर संगीता से मिलेगा. लेकिन उस का सोचा नहीं हुआ. नए दफ्तर में इतना ज्यादा काम था कि उसे अगले 4 महीने तक छुट्टी नहीं मिली.

संगीता का कोई फोन नंबर उस के पास नहीं था, इसलिए वह उस से बात भी न कर सका. 4 महीने बाद जब अमर को छुट्टी मिली, तो उस ने पहले संगीता से मिलने का विचार किया.

संगीता से मिल कर वह उसे बता देना चाहता था कि वह उस से हर हाल में शादी करेगा और उस के बेटे को अपना नाम देगा. अमर संगीता के फ्लैट पर गया, तो वहां कोई दूसरा था. पूछताछ करने पर पता चला कि उस के जाने के एक महीने बाद ही संगीता के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.

उस के बाद संगीता फ्लैट बेच कर अपने मामा के साथ चली गई. उस का मामा कहां रहता था, यह किसी को पता नहीं था. गांव न जा कर अमर उसी दिन से संगीता की तलाश में लग गया. छुट्टी रहने तक उस ने बहुत सी जगहों पर उस की तलाश की, उस के बाद वह कोलकाता चला गया.

अमर कोलकाता आ गया था, मगर उस ने संगीता की तलाश बंद नहीं की थी. इसी तरह 2 साल बीत गए थे. आज अमर क्लाइंट से मिलने मेघदूत होटल गया, तो वहां संगीता को कालगर्ल के रूप में देख कर उसे गहरा धक्का लगा था.

बहुत सोचने के बाद अमर ने संगीता से मिलने का फैसला किया. कुछ दिनों की कोशिश के बाद एक दलाल से अमर को संगीता के घर का पता चल गया. एक दिन शाम के 5 बजे अमर संगीता के फ्लैट पर गया. कालबैल बजाने पर नौकरानी ने दरवाजा खोला.

अमर ने जब उसे अपना परिचय दिया, तो वह उसे दरवाजे पर खड़ा कर संगीता से पूछने चली गई. थोड़ी देर बाद नौकरानी आई और अमर को अपने साथ भीतर ले गई. संगीता एक कमरे में बैठी थी. उस के पास ही उस का बेटा रोहित था. वह खिलौनों के साथ खेल रहा था.

संगीता ने उसे बैठने के लिए कहा, तो वह सोफे पर उस के पास ही बैठ गया.

अमर के कुछ कहने से पहले संगीता ने ही कहा, ‘‘आप तो मुझे छोड़ कर चले गए थे, फिर 2 साल बाद मुझ से मिलने क्यों आए हैं?’’

‘‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, फिर तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं…’’

अमर ने अपनी ट्रांसफर वाली बात बता दी. उस ने उसे यह भी बताया कि वह उस की तलाश में कैसे और कहांकहां भटकता रहा था. संगीता चिंता में पड़ गई. अब तक जिसे वह बेवफा समझ रही थी, वह तो उसे अटूट प्यार करता था. उस के लिए उस ने किसी से शादी भी नहीं की थी.

कुछ सोचने के बाद संगीता ने कहा, ‘‘उस दिन आप मुझ से मिल कर गए तो लगा कि आप जरूर अपने घर वालों को मना कर मुझ से शादी करेंगे. लेकिन जब 2 दिन बाद आप एकदम लापता हो गए, तो मुझे शक हुआ.

‘‘पता करने पर मालूम हुआ कि आप तो अपना ट्रांसफर करा कर कोलकाता चले गए हैं. आप ने फ्लैट भी छोड़ दिया है.

‘‘आप का कोई फोन नंबर भी मेरे पास नहीं था, जो आप से कुछ पूछती. मैं चाहती तो कोलकाता के दफ्तर में जा कर आप से मिल सकती थी, मगर किस हक से मिलती? आप की मैं थी ही कौन?

‘‘एक महीने बाद पिता ने आप के बारे में पूछा, तो छिपा न सकी. कह दिया कि आप मुझ से शादी नहीं करेंगे. ‘‘मैं ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि अब मैं किसी से भी शादी नहीं करूंगी. बेटे की परवरिश में मैं अपनी सारी जिंदगी बिता दूंगी.

‘‘मैं ने अपना फैसला भी पिता को बता दिया. मेरे इस फैसले से पिता को जबरदस्त सदमा पहुंचा और उन की मौत हो गई. ‘‘पिता की मौत पर मामा आए थे. मुझे समझाबुझा कर उन्होंने फ्लैट बेच दिया, फिर मुझे अपने साथ ले गए.

‘‘मेरा ननिहाल कानपुर में था. वहां 2-3 महीने तक सबकुछ ठीकठाक चला, उस के बाद मुझे घर की नौकरानी बना दिया गया. ‘‘मेरा एक ममेरा भाई था. वह मुझ से 2 साल छोटा था. उस की मुझ पर बुरी नजर थी. मैं उस से बच कर रहती थी.

‘‘एक दिन उसे मौका मिल ही गया. घर के सारे लोग किसी रिश्तेदार की शादी में गए थे. वह भी गया था. मगर न जाने कैसे थोड़ी देर बाद ही वह लौट आया और मुझ पर टूट पड़ा.

‘‘उस शैतान से मैं अपनी लाज बचा न सकी. उस ने मेरा रेप कर के ही छोड़ा.

‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं थी. घर वाले जब रिश्तेदार के यहां से लौट कर आए, तो मैं ने उस की करतूत सभी को बता दी.

‘‘उस के बाद मुझ पर कहर टूट पड़ा. सभी ने मुझे ही कुसूरवार माना.

‘‘फ्लैट का रुपया मामा के पास था. मामा ने बगैर रुपए दिए धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

‘‘मैं अपने बेटे के साथ इस उम्मीद से दिल्ली गई थी कि पिता की कंपनी में मुझे नौकरी मिल जाएगी, पर वहां नौकरी नहीं मिली. ‘‘कंपनी में काम कर रहे एक शख्स ने एक पता दे कर यह कह कर मुझे कोलकाता भेज दिया कि वहां नौकरी जरूर मिल जाएगी.

कोलकाता आ कर पता चला कि उस शख्स ने मुझे जिस के पास भेजा था, वह सैक्स रैकेट चलाता था. ‘‘मेरी जिंदगी तो बरबाद हो चुकी थी, अब मैं बेटे की जिंदगी बरबाद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए सैक्स रैकेट से जुड़ गई.

‘‘एक साल बाद मैं उस रैकेट टीम से अलग हो गई. अब मैं अपना काम खुद करती हूं.’’ संगीता चुप हो गई, तो अमर ने कहा, ‘‘जो होना था, वह हो गया. अब तुम मुझ से शादी कर लो.’’ यह सुन कर संगीता हैरान रह गई. संगीता को हैरत में पड़ा देख अमर ने ही कहा, ‘‘मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं, इसलिए सबकुछ जानने के बाद भी तुम से शादी करूंगा.

‘‘तुम्हारे लिए मुझे अपने घर वालों से रिश्ता तोड़ना होगा तो तोड़ दूंगा…’’ संगीता ने सोचनेसमझने के लिए अमर से एक दिन का समय लिया. अगले दिन सुबह जब अमर संगीता के घर गया, तो वहां का अजीब सा मंजर देख कर परेशान हो गया.

फ्लैट पर पुलिस थी. संगीता की नौकरानी भी वहां थी. पूछताछ करने पर अमर को पता चला कि संगीता ने रात के किसी पहर में खुदकुशी कर ली थी. सुबहसवेरे जब नौकरानी काम करने आई, तो फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था. जब संगीता ने दरवाजा नहीं खोला, तो नौकरानी ने पड़ोसी को बताया और उस ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस आई और फ्लैट का दरवाजा तोड़ कर अंदर गई. संगीता सीलिंग फैन से झूल रही थी. संगीता ने पुलिस के नाम सुसाइड नोट लिखा था. उस में लिखा था कि वह अपने काम से खुश नहीं है, इसलिए खुदकुशी कर रही है. संगीता ने एक खत अमर के नाम भी लिखा था. उस खत में लिखा था, ‘पाप का बोझ ले कर अब मैं जीना नहीं चाहती, इसलिए दुनिया से विदा ले रही हूं. उम्मीद है कि मेरे बेटे रोहित को आप अपना नाम देंगे.’

अमर ने पुलिस को बताया कि संगीता उस की बिनब्याही पत्नी थी और रोहित उन दोनों के प्यार की निशानी है. पुलिस ने रोहित को अमर के हवाले कर दिया.

नया द्वार: नये दरवाजे पर खुशियों ने दी दस्तक

एक दिन रास्ते में रेणु भाभी मिल गईं. बड़ी उदास, दुखी लग रही थीं. मैं ने कारण पूछा तो उबल पड़ीं. बोलीं, ‘‘क्या बताऊं तुम्हें? माताजी ने तो हमारी नाक में दम कर रखा है. गांव में पड़ी थीं अच्छीखासी. इन्हें शौक चर्राया मां की सेवा का. ले आए मेरे सिर पर मुसीबत. अब मैं भुगत रही हूं.’’

भाभी की आवाज कुछ ऊंची होती जा रही थी, कुछ क्रोध से, कुछ खीज से. रास्ते में आतेजाते लोग अजीब नजरों से हमें घूरते जा रहे थे. मैं ने धीरे से उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो न, भाभी, पास ही किसी होटल में चाय पी लें. वहीं बातें भी हो जाएंगी.’’

भाभी मान गईं और तब मुझे उन का आधा कारण मालूम हुआ.

रेणु भाभी मेरी रिश्ते की भाभी नहीं हैं, पर उन के पति मनोज भैया और मेरे पति एक ही गांव के रहने वाले हैं. इसी कारण हम ने उन दोनों से भैयाभाभी का रिश्ता जोड़ लिया है.

मनोज भैया की मां मझली चाची के नाम से गांव में काफी मशहूर हैं. बड़ी सरल, खुशमिजाज और परोपकारी औरत हैं. गरीबी में भी हिम्मत से इकलौते बेटे को पढ़ाया. तीनों बेटियों की शादी की.

अब पिछले कुछ वर्षों से चाचा की मृत्यु के बाद, मनोज भैया उन्हें शहर लिवा लाए. कह रहे थे कि वहां मां के अकेली होने के कारण यहां उन्हें चिंता सताती रहती थी. फिर थोड़ेबहुत रुपए भी खर्चे के लिए भेजने पड़ते थे.

‘‘तभी से यह मुसीबत मेरे पल्ले पड़ी है,’’ रेणु भाभी बोलीं, ‘‘इन्हीं का खर्चा चलाने के लिए तो मैं ने भी नौकरी कर ली. कहीं इन्हें बुढ़ापे में खानेपीने, पहनने- ओढ़ने की कमी न हो. पर अब तो उन के पंख निकल आए हैं,’’

‘‘सो कैसे?’’

‘‘तुम ही घर आ कर देख लेना,’’ भाभी चिढ़ कर बोलीं, ‘‘अगर हो सके तो समझा देना उन्हें. घर को कबाड़खाना बनाने पर तुली हुई हैं. दीपक भैया को भी साथ लाएंगी तो वह शायद उन्हें समझा पाएंगे. बड़ी प्यारी लगती हैं न उन्हें मझली चाची?’’

चाय खत्म होते ही रेणु भाभी उठ खड़ी हुईं और बात को ठीक तरह से समझाए बिना ही चली गईं.

मैं ने अपने पति दीपक को रेणु भाभी के वक्तव्य से अवगत तो करा दिया था, लेकिन बच्चों की परीक्षाएं, घर के अनगिनत काम और बीचबीच में टपक पड़ने वाले मेहमानों के कारण हम लोग चाची के घर की दिशा भूल से गए.

तभी एक दिन मेरी मौसेरी बहन सुमन दोपहर को मिलने आई. उस ने एम.ए., बी.एड कर रखा था, पर दोनों बच्चे छोटे होने के कारण नौकरी नहीं कर पा रही थी. हालांकि उस के परिवार को अतिरिक्त आय की आवश्यकता थी. न गांव में अपना खुद का घर था, न यहां किराए का घर ढंग का था. 2 देवर पढ़ रहे थे. उन का खर्चा वही उठाती थी. सास बीमार थी, इसलिए पोतों की देखभाल नहीं कर सकती थी. ससुर गांव की टुकड़ा भर जमीन को संभाल कर जैसेतैसे अपना काम चलाते थे.

फिर भी सुमन की कार्यकुशलता और स्नेह भरे स्वभाव के कारण परिवार खुश रहता था. जब भी मैं उसे देखती, मेरे मन में प्यार उमड़ पड़ता. मैं प्रसन्न हो जाती.

उस दिन भी वह हंसती हुई आई. एक बड़ा सा पैकेट मेरे हाथ में थमा कर बोली, ‘‘लो, भरपेट मिठाई खाओ.’’

‘‘क्या बात है? इस परिवार नियोजन के युग में कहीं अपने बेटों के लिए बहन के आने की संभावना तो नहीं बताने आई?’’ मैं ने मजाक में पूछा.

‘‘धत दीदी, अब तो हाथ जोड़ लिए. रही बहन की बात तो तुम्हारी बेटी मेरे शरद, शिशिर की बहन ही तो है.’’

‘‘पर मिठाई बिना जाने ही खा लूं?’’

‘‘तो सुनो, पिछले 2 महीने से मैं खुद के पांवों पर खड़ी हो गई हूं. यानी कि नौ…क…री…’’ उस ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया. बिना मिठाई खाए ही मेरा मुंह मीठा हो गया. तभी मुझे उस के बच्चों की याद आई, ‘‘और शरद, शिशिर उन्हें कौन संभालता है? तुम कब जाती हो, कब आती हो, कहां काम करती हो?’’

‘‘अरे…दीदी, जरा रुको तो, बताती हूं,’’ उस ने मिठाई का पैकेट खोला, चाय छानी, बिस्कुट ढूंढ़ कर सजाए तब कुरसी पर आसन जमा कर बोली, ‘‘सुनो अब. नौकरी एक पब्लिक स्कूल में लगी है. तनख्वाह अच्छी है. सवेरे 9 बजे से शाम को 4 बजे तक. और बच्चे तुम्हारी मझली चाची के पास छोड़ कर निश्ंिचत हो जाती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘जी हां. मझली चाची कई बच्चों को संभालती हैं. बहुत प्यार से देखभाल करती हैं.’’

खापी कर पीछे एक खुशनुमा ताजगी में फंसे हुए प्रश्न मेरे लिए छोड़ कर सुमन चली गई. मझली चाची ऐसा क्यों कर रही थीं? रेणु भाभी क्या इसी कारण से नाराज थीं?

‘‘बात तो ठीक है,’’ शाम को दीपक ने मेरे प्रश्नों के उत्तर में कहा, ‘‘फिर भैयाभाभी दोनों कमाते हैं. मझली चाची के कारण उन्हें समाज की उठती उंगलियां सहनी पड़ती होंगी. हमें चाची को समझाना चाहिए.’’

‘‘दीपक, कभी दोपहर को बिना किसी को बताए पहुंच कर तमाशा देखेंगे और चाची को अकेले में समझाएंगे. शायद औरों के सामने उन्हें कुछ कहना ठीक नहीं होगा,’’ मैं ने सुझाव दिया.

दीपक ने एक दिन दोपहर को छुट्टी ली और तब हम अचानक मनोज भैया के घर पहुंचे.

भैयाभाभी काम पर गए हुए थे. घर में 10 बच्चे थे. मझली चाची एक प्रौढ़ा स्त्री के साथ उन की देखभाल में व्यस्त थीं. कुछ बच्चे सो रहे थे. एक को चाची बोतल से दूध पिला रही थीं. उन की प्रौढ़ा सहायिका दूसरे बच्चे के कपड़े बदल रही थी.

चाची बड़ी खुश नजर आ रही थीं. साफ कपड़े, हंसती आंखें, मुख पर संतोष तथा आत्मविश्वास की झलक. सेहत भी कुछ बेहतर ही लग रही थी.

‘‘चाचीजी, आप ने तो अच्छीखासी बालवाटिका शुरू कर दी,’’ मैं ने नमस्ते कर के कहा.

चाची हंस कर बोलीं, ‘‘अच्छा लगता है, बेटी. स्वार्थ के साथ परमार्थ भी जुटा रही हूं.’’

‘‘पर आप थक जाती होंगी?’’ दीपक ने कहा, ‘‘इतने सारे बच्चे संभालना हंसीखेल तो नहीं.’’

‘‘ठहरो, चाय पी कर फिर तुम्हारी बात का जवाब दूंगी,’’ वह सहायिका को कुछ हिदायतें दे कर रसोईघर में चली गईं, ‘‘यहीं आ जाओ, बेटे,’’ उन्होंने हम दोनों को भी बुला लिया.

‘‘देखो दीपक, अपने पोतेपोती के पीछे भी तो मैं दौड़धूप करती ही थी? तब तो कोई सहायिका भी नहीं थी,’’ चाची ने नाश्ते की चीजें निकालते हुए कहा, ‘‘अब ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की उम्र है न मेरी? इन सभी को पोतेपोतियां बना लिया है मैं ने.’’

फिर मेरी ओर मुड़ कर कहा, ‘‘तुम्हारी सुमन के भी दोनों नटखट यहीं हैं. सोए हुए हैं. दोपहर को सब को घंटा भर सुलाने की कोशिश करते हैं. शाम को 5 बजे मेरा यह दरबार बरखास्त हो जाता है. तब तक मनोज के बच्चे शुचि और राहुल भी आ जाते हैं.’’

‘‘पर चाची, आप…आप को आराम छोड़ कर इस उम्र में ये सब झमेले? क्या जरूरत थी इस की?’’

‘‘तुम से एक बात पूछूं, बेटी? तुम्हारे मांपिताजी तुम्हारे भैयाभाभी के साथ रहते हैं न? खुश हैं वह?’’

मेरी आंखों के सामने भाभी के राज में चुप्पी साधे, मुहताज से बने मेरे वृद्ध मातापिता की सूरतें घूम गईं. न कहीं जाना न आना. कपड़े भी सब की जरूरतें पूरी करने के बाद ही उन के लिए खरीदे जाते. वे दोनों 2 कोनों में बैठे रहते. किसी के रास्ते में अनजाने में कहीं रोड़ा न बन जाएं, इस की फिक्र में सदा घुलते रहते. मेरी आंखें अनायास ही नम हो आईं.

चाची ने धीरे से मेरे बाल सहलाए. ‘‘बेटी, तू दीपक को मेरी बात समझा सकेगी. मैं तेरी आंखों में तेरे मातापिता की लाचारी पढ़ सकती हूं, लेकिन जब तुझ पर किसी वयोवृद्ध का बोझ आ पड़े, तब आंखों की इस नमी को याद रखना.’’

दीपक के चेहरे पर प्रश्न था.

‘‘सुनो बेटे, पति की कमाई या मन पर जितना हक पत्नी का होता है उतना बेटे की कमाई या मन पर मां का नहीं होता. इस कारण से आत्मनिर्भर होना मेरे लिए जरूरी हो गया था. रही काम की बात तो पापड़बडि़यां, अचारमुरब्बे बनाना भी तो काम ही है, जिन्हें करते रहने पर भी करने वालों की कद्र नहीं की जाती. घर में रह कर भी अगर ये काम हम ने कर भी लिए तो कौन सा शेर मार दिया? बहू कमाएगी तो सास को यह सबकुछ तो करना ही पड़ेगा,’’ चाची ने एक गहरी सांस ली.

‘‘कब आते हैं बच्चे?’’ दीपक ने हौले से पूछा.

‘‘9 बजे से शुरू हो जाते हैं. कोई थोड़ी देर से या जल्दी भी आ जाते हैं कभीकभी. मेरी सहायिका पार्वती भी जल्दी आ जाती है. उसे भी मैं कुछ देती हूं. वह खुशी से मेरा हाथ बंटाती है.’’

‘‘और भी बच्चों के आने की गुंजाइश है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पूछने तो आते हैं लोग, पर मैं मना कर देती हूं. इस से ज्यादा रुपयों की मुझे आवश्यकता नहीं. सेहत भी संभालनी है न?’’

चाय खत्म हो चुकी थी. सोए हुए बच्चों के जागने का समय हो रहा था. इसलिए ‘नमस्ते’ कह कर हम चलना ही चाहते थे कि चाची ने कहा, ‘‘बेटी, दीवाली के बाद मैं एक यात्रा कंपनी के साथ 15 दिन घूमने जाने की बात सोच रही हूं. अगर तुम्हारे मातापिता भी आना चाहें तो…’’

मैं चुप रही. भैयाभाभी इतने रुपए कभी खर्च न करेंगे. मैं खुद तो कमाती नहीं.

चाची को भी मनोज भैया ने कई बहानों से यात्रा के लिए कभी नहीं जाने दिया था. उन की बेटियां भी ससुराल के लोगों को पूछे बिना कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अब चाची खुद के भरोसे पर यात्रा करने जा रही थीं.

‘‘सुनीता के मातापिता भी आप के साथ जरूर जाएंगे, चाची,’’ अचानक दीपक ने कहा, ‘‘आप कुछ दिन पहले अपने कार्यक्रम के बारे में बता दीजिएगा.’’

रेणु भाभी और मनोज भैया की नाराजगी का साहस से सामना कर के मझली चाची ने एक नया द्वार खोल लिया था अपने लिए, देखभाल की जरूरत वाले बच्चों के लिए और सुमन जैसी सुशिक्षित, जरूरतमंद माताओं के लिए.

हरेक के लिए इतना साहस, इतना धैर्य, इतनी सहनशीलता संभव तो नहीं. पर अगर यह नहीं तो दूसरा कोई दरवाजा तो खुल ही सकता है न?

जीवन बहुत बड़ा उपहार है हम सब के लिए. उसे बोझ समझ कर उठाना या उठवाना कहां तक उचित है? क्यों न अंतिम सांस तक खुशी से, सम्मान से जीने की और जिलाने की कोशिश की जाए? क्यों न किसी नए द्वार पर धीरे से दस्तक दी जाए? वह द्वार खुल भी तो सकता है.

Holi 2024: सतरंगी रंग

Story in Hindi

बड़ा जिन्न: क्या सकीना वाकई में जिन्न से मिली थी

सकीना बी.ए. पास थी और शक्ल ऐसी कि लाखों में एक. कई जगह से उस की शादी के पैगाम आए परंतु उस के मांबाप ने सब नामंजूर कर दिए. कारण यह था कि सभी लड़के साधारण घरानों के थे. कुछ नौकरी करते थे तो कुछ का छोटामोटा व्यापार था. उन का रहनसहन भी साधारण था.

सकीना के बाप कुरबान अली चाहते थे कि सकीना को ऊंचे खानदान, धनी लड़का और ऊंचा घर मिले. ऐसा लड़का उन्हें जल्दी ही मिल गया. हालांकि समाज की मंडियों में ऐसे लड़कों के ग्राहकों की कमी नहीं होती, मगर कुरबान अली की बोली इस नीलामी में सब से ऊंची थी.

कुरबान अली बेटी के लिए जो लड़का लाए, वह खरा सैयद था. लड़के के बाप ठेकेदार थे, लंबाचौड़ा मकान था और हजारों की आमदनी थी. लड़का कुछ भी नहीं करता था. बस, बाप के धन पर मौज उड़ाता था.

वह लड़का भी कुरबान अली को 80 हजार रुपए का पड़ा. स्कूटर, रंगीन टीवी, वी.सी.आर., फ्रिज सबकुछ ही देना पड़ा. कुरबान अली का दिवाला निकल गया. उन के होंठों पर से वर्षों के लिए मुसकराहट गायब हो गई. ऊंचे लड़के के लिए ऊंची कीमत देनी पड़ी थी. छोटू ठेकेदार का एक ही बेटा था. अच्छे पैसे बना लिए उस के. क्यों न बनाते? जब देने वाले हजार हों तो लेने वाले क्यों तकल्लुफ करें? बब्बन मियां एक बीवी के मालिक हो गए और 80 हजार रुपए के भी.

एक वर्ष बीत गया. स्कूटर भी पुराना हो गया और बीवी भी. पुरानी वस्तुओं पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना नई पर दिया जाता है. बब्बन मियां की दिलचस्पी सकीना में न होने के बराबर रह गई.

सकीना सबकुछ सह लेती परंतु उस की गोद खाली थी. सासननदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. बच्चा होने के दूरदूर तक आसार नहीं थे. सकीना जानती थी कि औरत का पहला फर्ज बच्चा पैदा करना है.

आसपास की बूढ़ियों ने सकीना की सास से कहा, ‘‘बहू पर असर है. इसे जलालशाह के पास ले जाओ.’’

सकीना स्वयं पढ़ीलिखी थी और उस का घराना भी जाहिल नहीं था. ससुराल में तो अंधेरा ही अंधेरा था, जहालत और अंधविश्वास का.

उस ने बहुत सिर मारा. ससुराल वालों को समझाया, ‘‘जिन्नआसेब, भूतप्रेत, असर, जादूटोना ये सब जहालत की बातें हैं. जिस का जो काम है उसे ही करना चाहिए. घड़ी में खराबी हो जाए तो उसे घड़ीसाज ही ठीक करता है. टूटे हुए जूतों को मोची संभालते हैं. मोटरकार की मरम्मत मिस्तरी करता है परंतु मेरा इलाज डाक्टर की जगह पीर क्यों करेगा?’’

सास खीज कर बोलीं, ‘‘जबान बंद कर. क्या इसीलिए पढ़ालिखा है तू ने कि पीरफकीरों पर भी कीचड़ उछाले? जानती नहीं कि हजारों लोग पीर जलालशाह की खानकाह में हाजिरी दे कर अपनी खाली झोलियां मुरादों से भर कर लौटते हैं? क्या वे सब पागल हैं?’’

एक बूढ़ी ने सास के कान में कहा, ‘‘यह सकीना नहीं बोल रही है, यह तो इस पर सवार जिन्न की आवाज है. इस पर न बिगड़ो.’’

सकीना ने मजबूर हो कर बब्बन मियां से कहा, ‘‘यह क्या जहालत है? मुझे पीर साहब के पास खानकाह भेजा जा रहा है. वैसे तो औरतों से इतना सख्त परदा कराया जाता है, लेकिन पीर साहब भी तो गैर आदमी हैं. आप शायद नहीं जानते कि ये लोग खुद भी किसी जिन्न से कम नहीं होते. मुझे किसी डाक्टर को दिखा दीजिए या फिर मुझे घर भिजवा दीजिए.’’

बब्बन मियां ने साफसाफ कह दिया, ‘‘पीर साहब को खुदा ने खास ताकत दी है. उन्होंने सैकड़ों जिन्न उतारे हैं. वह किसी औरत के लिए भी गैरमर्द नहीं हैं क्योंकि उन की आंखें औरत के बदन को नहीं, उस की रूह को देखती हैं. तुम पर असर है, इसलिए तुम अपने घर भी नहीं जा सकतीं. कान खोल कर सुन लो, तुम्हें पीर साहब से इलाज कराना ही होगा. अगर तुम्हारे बच्चा न हुआ तो फिर मुझे इस खानदान के वारिस के लिए दूसरी शादी करनी पड़ेगी.’’

सकीना कांप उठी. जुमेरात के दिन वही औरतें खानकाह में जाती थीं जो बच्चे की मुराद मानती थीं. पीर साहब की यह पाबंदी थी कि उन के साथ कोई मर्द नहीं जा सकता था.

जब सकीना बुरका ओढ़ कर खानकाह पहुंची तो दिन छिप रहा था. रास्ते के दोनों तरफ मर्द और औरतें हाथों में सुलगते हुए पलीते लिए बैठे थे. एक ओर फकीरों की भीड़ थी. वहां हार, फूल और मिठाई की दुकानें भी थीं. हवा में लोबान और अगरबत्तियों की खुशबू बिखरी पड़ी थी.

खानकाह की बड़ी सी इमारत औरतों से भरी पड़ी थी. चौड़े मुंह वाले भारीभरकम पीर साहब कालीन पर बैठे थे. घनी दाढ़ी और लाललाल आंखें. वह औरतों को देखदेख कर उन्हें पलीते पकड़ा रहे थे.

सकीना की बारी आई तो उन की लाल आंखों में चमक आ गई.

‘‘बहुत बड़ा जिन्न है,’’ वह दाढ़ी पर हाथ फेर कर बोले, ‘‘2 घंटे बाद सामने वाले दरवाजे से अंदर चली जाना. एक आदमी तुम्हें बता देगा.’’

सकीना यह सुन कर और भी परेशान हो गई.

‘न जाने क्या चक्कर है?’ वह सोच रही थी, ‘अगर कोई ऐसीवैसी बात हुई तो मैं अपनी जान तो दे ही सकती हूं.’ और उस ने गिरेबान में रखे चाकू को फिर टटोल कर देखा.

2 घंटे बीतने पर एक भयंकर शक्ल वाले आदमी ने सकीना के पास आ कर कहा, ‘‘उस दरवाजे में से अंदर चली जाओ. वहां अंधेरा है, जिस में पीर साहब जिन्न से लड़ेंगे. डरना नहीं.’’

सकीना कांपती हुई अंदर दाखिल हुई. घुप अंधेरा था.

उस के कानों में सरसराहट की सी आवाज आई और फिर घोड़े की टापों की सी धमक के बाद सन्नाटा छा गया.

उस के कानों के पास किसी ने कहा, ‘‘मैं जिन्न हूं और तुझे उस दिन से चाहता हूं जब तू छत पर खड़ी बाल सुखा रही थी. मैं ने ही तेरे बच्चे होने बंद कर रखे हैं. सुन, मैं तो हवा हूं. मुझ से डर कैसा?’’

सकीना पसीने में नहा गई. उसे किसी की सांसों की गरमी महसूस हो रही थी.

उस ने थरथर कांपते हुए गिरेबान से चाकू निकाल लिया.

किसी ने सकीना से लिपटना चाहा. मगर अगले ही पल उस का सीधा हाथ ऊपर उठा. चाकू ‘खचाक’ से किसी नरम वस्तु में धंस गया. उलटा हाथ बालों से टकराया. उस ने झटका दिया. बालों का गुच्छा मुट्ठी में आ गया. उसी के साथ एक करुणा भरी चीख कमरे में गूंज गई.

सकीना पागलों के समान उलटे पैरों भाग खड़ी हुई, भागती ही रही.

अगले दिन वह पुलिस थाने में अपना बयान लिखवा रही थी और पीर साहब अस्पताल में पड़े थे. उन के पेट में गहरा घाव था और दाढ़ी खुसटी हुई थी.

दर्द: क्यों आजर ने एक्सिडेंट का नाटक किया

‘‘तुम अभी तक गई नहीं हो…’’ छोटी बहन हया ने हैरान हो कर जोया से पूछा.

‘‘कहां…?’’ जोया ने भी हैरान होते हुए कहा.

‘‘आजर भाई को अस्पताल में देखने,’’ हया ने कहा.

‘‘मैं क्यों जाऊं…’’ जोया ने लापरवाही से कहा.

‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं, लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गईं… आखिर वे तुम्हारे मंगेतर हैं…’’

‘‘मंगेतर… मंगेतर था… लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मु झे उस की बैसाखी नहीं बनना,’’ जोया आईने के सामने खड़ी अपने बाल संवार रही थी और छोटी बहन हया के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी.

जब बाल सैट हो गए तो जोया ने खुद को आईने में नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाते हुए दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे और शायद इसी रिवाज को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में ही उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी जोया से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था और जोया को उसकी मां के बेजा लड़ाप्यार ने जिद्दी बना दिया था.

शायद यही वजह थी कि बचपन में दोनों साथ खेलतेखेलते  झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद ही हो गई थी. आजर पुरानी कौपी का कवर लिए हुए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी. शायद उसे पसंद थी.

जोया की नजर उस कवर पर पड़ गई. वह चिल्लाने लगी. ‘यह मेरा है… इसे मैं लूंगी…’’

आजर भी बच्चा था. बजाय उसे देने के दोनों हाथ पीछे कर के छिपा लिया. वह चीखती रही, चिल्लाती रही… यहां तक कि बड़े लोग भी वहां आ गए.

‘तोबा… कागज के टुकड़े के लिए जिद कर रही है… अभी अगर यह आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता… क्या लड़की है. कयामत बरपा कर दी इस ने तो…’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाई थीं.

यों ही लड़ते झगड़ते दोनों बड़े हो गए और बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई… नजर अपनेआप  झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब सम झ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती… उस की बातों में शरीक होती… उस के नाम पर हंसती… घर वालों को इतमीनान हो गया था कि चलो, सबकुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की सना थी, जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी… अब उस के भी 4 बच्चे थे… बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चाचा थे… जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए. ‘किसी की मां न मरे…’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली, ‘पर, आप इसे हमारे साथ भेज दीजिए,’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा था.

अंधा क्या चाहे दो आंखें… वे खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह न जाने देगी और जब नजर उठाई तो वह दरवाजे पर खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा… जो सही निशाने पर जा बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ भी नहीं था. वह आंखें बंद कर के कर लेती और उसे सौतेली मां के जुल्मों से भी नजात मिल गई थी. वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांड़ी से निकलती खुशबू फैलती तो भूख अपनेआप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता, ‘अरे, गैस खत्म हो गई. अब क्या करें…  भाभी सिलैंडर वाला आया क्या…’ फिर बाजार से पार्सल आते, तब जा कर खाना मिलता.

और अगर कभी मिर्ची पाउडर खत्म हो जाता, तो सना खड़ी मिर्च निकाल लेती और उन्हें सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता था कि मिर्ची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘न बाबा न, मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया, तुम इसे पीस लो.’

हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो… कहां से आई हो… सादगी की मूरत… जिंदगी की आइडियल सना… तुम्हारी किन लफ्जों में तारीफ करूं…

यह सुन कर आजर का दिल बिछबिछ जाता… फिर उसे जोया का खयाल आता… वह तो उस का मंगतेर है. कल को उस की उस से शादी हो जाएगी, फिर यह कशिश क्यों? वह सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा है? अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

एक दिन आजर गाड़ी से लौट रहा था कि रास्ते में उस का ऐक्सिडैंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘अब ये अपने पैरों पर चल नहीं सकेंगे.’

सारा घर वहां जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था.

जब से आजर का ऐक्सिडैंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख सम झाने पर भी उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से लाचार लेटा हुआ था… हर आहट पर देखता… शायद वह आ जाए… जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है… वफा के सिलसिले हैं…लेकिन दूर तक जोया का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से सना को देख रहा था. फुल आस्तीन वाला कुरता, चूड़ीदार पाजामा, सिर पर चुन्नी डाले वह खामोश बैठी थी.

‘काश, इस की जगह जोया होती,’ आजर ने सोचा, फिर जल्दी से नजरें  झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें… और मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा.

जब आजर खाने से फारिग हो गया, तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए. मैं कर लूंगी,’’ सना की महीन सी आवाज आई. उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई.

जब सना बरतन उठा रही थी तो खुशबू का  झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह घर के अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. अब सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखने लगी थी.

एक दिन देवरानीजेठानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ़ रही थी, ‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं…’’ कहते हुए उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से निकाह नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा ही छोड़ दिया और उठ कर चली आईं.आजर ने नोटिस किया था कि अम्मी बहुत बु झीबु झी सी रहती हैं. आखिर आजर पूछ ही बैठा, ‘‘अम्मी, क्या बात है… आप बहुत उदास रहती हैं…

‘‘कुछ नहीं… बस ऐसे ही… जरा तबीयत ठीक नहीं है…’’‘‘मैं जानता हूं कि आप क्यों परेशान हैं… जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर आजर की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मु झे मालूम है… वह मु झे देखने तक नहीं आई… अगर रिश्ता नहीं करना था तो इनसानियत के नाते तो आ सकती थी. जिस का इनसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मु झे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे,’’ अम्मी की आंखों से आंसू निकल पड़े. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी, मेरी शादी होगी… उसी वक्त पर होगी…’’ अम्मी ने उस की आंखों में देखा, जिस का मतलब था, ‘अब तु झ से कौन शादी करेगा…’

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. मैं ने सना से बात कर ली है.’’

यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया.

आजर को कुछ याद आया. एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था कि शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विस्ट्जरलैंड जाएगी…

आजर ने स्विट्जरलैंड जाने की ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज आजर हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी और कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की तरफ मुसकरा कर देखा और कहा, ‘‘आइए न…’’ इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ. उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, यह सब क्या है?’’ उन्होंने आगे बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं… पहले आप बैठिए तो सही…’’ आजर ने दोनों हाथ पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप बड़े लोग अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी, उन के खयालात कैसे होंगे, उन का नजरिया कैसा होगा और मु झे सच्चे हमदर्द की तलाश थी, जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो. एकदूसरे के लिए तड़प हो. और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं… इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया. वह ऐक्सिडैंट  झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. यह मेरा सिर्फ नाटक था… नतीजा आप के सामने है.

‘‘जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया… सना ने मुझ अपाहिज को कुबूल किया… मैं सना का हूं…’’

दरवाजे पर खड़ी जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था कि सबकुछ तोड़फोड़ डाले.

बस एक भूल: जब एक पत्नी ने पति को बना दिया नामर्द

जब बड़ी बेटी मधु की शादी में विद्यासागर के घर शहनाई बज रही थी, तो खुशी से उन की आंखें भर आईं. उधर बरातियों के बीच बैठे राजेश के पिता की भी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, क्योंकि उन के एकलौते बेटे की शादी मधु जैसी सुंदर व सुशील लड़की से हो रही थी. लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह शादी उन के लिए सिरदर्द बनने वाली है. शादी को अभी 2 दिन भी नहीं हुए थे कि मधु राजेश को नामर्द बता कर मायके आ गई.

यह बात दोनों परिवारों के गांवों में जंगल में लगी आग की तरह फैल गई. सब अपनीअपनी कहानियां बनाने लगे. कोई कहता कि राजेश ज्यादा शराब पी कर नामर्द बन गया है, तो कोई कहता कि वह पैदाइशी नामर्द था. इस से दोनों परिवारों की इज्जत धूल में मिल गई.

राजेश जहां भी जाता, गांव वालों से यही सुनने को मिलता कि उन्हें तो पहले से ही मालूम था कि आजकल की लड़की उस जैसे गंवार के साथ नहीं रह सकती.

विद्यासागर के दुखों का तो कोई अंत ही नहीं था. वे बस एक ही बात कहते, ‘मैं अपनी बेटी को कैसी खाई में धकेल रहा था…’

मधु के घर में मातम पसरा हुआ था, पर जैसे उस के मन में कुछ और ही चल रहा था.

मधु की ससुराल वाले बस यही चाहते थे कि वे किसी तरह से मधु को अपने यहां ले आएं, क्योंकि गांव वाले उन को इतने ताने मार रहे थे कि उन का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

राजेश के पिता विद्यासागर से बात करना चाहते थे, पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

कुछ दिनों बाद मधु की ससुराल वाले कुछ गांव वालों के साथ मधु को लेने आए, तो मधु ने जाने से साफ इनकार कर दिया.

विद्यासागर ने भी मधु की ससुराल वालों की उन के गांव वालों के सामने जम कर बेइज्जती कर दी और धमकाते हुए कहा, ‘‘आज के बाद यहां आया, तो तेरी टांगें तोड़ दूंगा.’’

यह सुन कर राजेश के पिता भी उन्हें धमकाने लगे, ‘‘अगर तुम अपनी बेटी को मेरे साथ नहीं भेजोगे, तो मैं तुम पर केस कर दूंगा.’’

विद्यासागर ने कहा, ‘‘जो करना है कर ले, पर मैं अपनी बेटी को तेरे घर कभी नहीं भेजूंगा.’’ मामला कोर्ट में पहुंच गया. मधु तलाक चाहती थी, पर राजेश उसे रखना चाहता था.

कुछ दिनों तक केस चला, लेकिन दोनों परिवारों की माली हालत कमजोर होने की वजह से उन्होंने आपस में समझौता कर लिया व तलाक हो गया. मधु बहुत खुश थी, क्योंकि वह तो यही चाहती थी.

एक दिन जब मधु सुबहसवेरे दुकान पर जा रही थी, तो वहां उसे दीपक दिखाई दिया, जो उस के साथ पढ़ता था. मधु ने दीपक को धीरे से कहा, ‘‘आज शाम को मैं तेरा इंतजार मंदिर में करूंगी. वहां आ जाना.’’

दीपक ने कुछ जवाब नहीं दिया. मधु मुसकरा कर चली गई.

जब शाम को वे दोनों मंदिर में मिले, तो मधु ने खुशी से कहा, ‘‘देख दीपक, मैं तेरे लिए सब छोड़ आई हूं. वह रिश्ता, वह नाता, सबकुछ.’’

‘‘मेरे लिए… तुम कहना क्या चाहती हो मधु?’’ दीपक ने थोड़ा चौंक कर उस से पूछा.

‘‘दीपक, मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं और तुम से ही शादी करना चाहती हूं,’’ मधु ने थोड़ा बेचैन अंदाज में कहा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो मधु?’’ दीपक ने फिर पूछा.

मधु ने कहा, ‘‘मैं सच कह रही हूं दीपक. मैं तुम से प्यार करती हूं. कल यह समाज मेरे फैसले का विरोध करे, इस से पहले हम शादी कर लेते हैं.’’

‘‘मधु, तुम पागल तो नहीं हो गई हो. जब गांव वाले सुनेंगे, तो मुझे जान से मार देंगे और पता नहीं, मेरी मां मेरा क्या हाल करेंगी?’’ दीपक ने थोड़ा घबरा कर कहा.

‘‘क्या तुम गांव वालों और अपनी मां से डरते हो? क्या तुम ने मुझ से प्यार नहीं किया?’’

‘‘हां मधु, मैं ने तुम से ही प्यार किया है, पर तुम से शादी करूंगा, ऐसा कभी नहीं सोचा.’’

मधु ने गुस्से में कहा ‘‘धोखेबाज, तू ने शादी के बारे में कभी नहीं सोचा, पर मैं सिर्फ तेरे बारे में ही सोचती रही. ऐसा न हो कि मैं कल किसी और की हो जाऊं. चल, शादी कर लेते हैं,’’ मधु ने दीपक का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘नहीं मधु, मुझे अपनी मां से बहुत डर लगता है. अगर हम दोनों ने ऐसा किया, तो गांव में हम दोनों की बदनामी होगी,’’ दीपक ने समझाते हुए कहा.

मधु ने बोल्ड अंदाज में कहा, ‘‘तुम अपनी मां और गांव वालों से डरते होगे, पर मैं किसी से नहीं डरती. मैं करूंगी तुम्हारी मां से बात.’’ दीपक ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर मधु ने अपनी जिद के आगे उस की एक न सुनी.

अगले दिन जब मधु दीपक की मां से बात करने गई, तो उस की मां ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतनी गिरी हुई लड़की हो. तुम ने इस नाजायज प्यार के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.’’

‘‘मैं अपना घर उजाड़ कर नहीं आई मांजी, बल्कि दीपक के लिए सब छोड़ आई हूं. मेरे लिए दीपक ही सबकुछ है. मुझे अपनी बहू बना लीजिए, वरना मैं मर जाऊंगी,’’ मधु ने गिड़गिड़ा कर कहा. ‘‘तो मर जा, लेकिन मुझे सैकंडहैंड बहू नहीं चाहिए,’’ दीपक की मां ने दोटूक शब्दों में कहा.

‘‘मैं सैकंडहैंड नहीं हूं मांजी. मैं वैसी ही हूं, जैसी गई थी,’’ मधु ने कहा.

‘‘लगता है कि शादी के बाद तुझ में कोई शर्मलाज नहीं रही है. अंधे प्यार ने तुझे पागल बना दिया है. दीपक तेरे गांव का है… तेरा भाई लगेगा. मैं तेरे पापा को सब बताऊंगी,’’ दीपक की मां ने मधु को धमकाते हुए कहा. इस के आगे मधु ने कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप वहां से चली गई.

दीपक की मां ने विद्यासागर से कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी दीपक के प्यार के चलते ही अपनी ससुराल में न बस सकी. अपनी बेटी को बस में रखो, वरना एक दिन वह तुम्हारी नाक कटा देगी.’’ यह सुनते ही विद्यासागर का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

विद्यासागर ने घर जाते ही मधु से गुस्से में पूछा, ‘‘मधु, वह लड़का सच में नामर्द था या फिर तुम ने उसे नामर्द बना दिया?’’

‘‘वह मुझे पसंद नहीं था,’’ मधु ने बेखौफ हो कर कहा.

‘‘इसलिए तुम ने उसे नामर्द बना दिया,’’ विद्यासागर ने गुस्से में कहा.

‘‘हां,’’ मधु बोली.

‘‘मतलब, तुम ने पहले ही सोच लिया था कि यह रिश्ता तोड़ना है?’’

‘‘हां.’’

फिर विद्यासागर उसे बहुतकुछ सुनाने लगे, ‘‘जब तुम्हें रिश्ता तोड़ना ही था, तो यह रिश्ता जोड़ा ही क्यों? जब रिश्ते की बात हो रही थी, तो मैं ने बारबार पूछा था कि यह रिश्ता पसंद है न? हर बार तू ने हां कहा था. क्यों? ‘‘तेरी ससुराल वाले मुझ से बारबार एक ही बात कह रहे थे कि राजेश नामर्द नहीं है, पर मैं ने तुझ पर भरोसा कर के उन की एक न सुनी.

‘‘वह मेरी मजबूरी थी, क्योंकि आप से कहीं रिश्ता हो ही नहीं रहा था. बड़ी मुश्किल से आप ने मेरे लिए एक रिश्ता तय किया, तो मैं उसे कैसे नकार देती?’’ मधु ने शांत लहजे में कहा.

‘‘जानती हो कि तुम्हारे चलते मैं आज कितनी बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तेरी शादी का कर्ज अभी तक मेरे सिर पर है. सोचा था कि इस साल तेरी छोटी बहन की शादी कर देंगे, पर तुझ से छुटकारा मिले तब न.’’ मधु पिता की बात ऐसे सुन रही थी, जैसे उस ने कुछ गुनाह ही न किया हो.

‘‘जेब में एक पैसा नहीं है. तेरा छोटा भाई अभी 10 साल का है. उस से अभी क्या उम्मीद करूं? आसपास के लोग तो बस हम पर हंसते हैं. ‘‘पता नहीं, आजकल के बच्चों को हो क्या गया है. वे रिश्तों की अहमियत क्यों नहीं समझते हैं. रिश्ता तोड़ना तो आजकल एक खेल सा बन गया है. इस से मांबाप की कितनी परेशानी बढ़ती है, यह आजकल के बच्चे समझें तब न.

‘‘वैसे भी लड़कियों को रिश्ता तोड़ने का एक अच्छा बहाना मिल गया है कि लड़का पसंद न हो, तो उसे नामर्द बता दो. यह एक ऐसी बीमारी है, जिस का कोई इलाज ही नहीं है,’’ इस तरह एकतरफा गरज कर मधु के पिता बाहर चले गए.

यह बात धीरेधीरे पूरे गांव में फैल गई. गांव वाले मधु के खिलाफ होने लगे. अब तो उस का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया. दीपक भी अपनी मां के कहने पर नौकरी के लिए शहर चला गया. विद्यासागर ने मधु की दूसरी शादी कराने की बहुत कोशिश की, पर कहीं बात नहीं बनी. वे जानते थे कि लड़की की एक बार शादी होने के बाद उस की दूसरी शादी कराना बड़ा ही मुश्किल होता है.

इस तरह एक साल गुजर गया. मधु को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था. वह बारबार यही सोचती, ‘मैं ने क्यों अपना घर उजाड़ दिया? मेरे चलते ही परिवार वाले मुझ से नफरत करते हैं.’ फिर बड़ी मुश्किल से मधु के लिए एक रिश्ता मिला. उस आदमी की बीवी कुछ महीने पहले मर गई थी. वह विदेश में रह कर अच्छा पैसा कमाता था.

मधु की मां ने उस से पूछा, ‘‘सचसच बताना कि तुझे यह रिश्ता मंजूर है?’’

मधु ने धीरे से कहा, ‘‘हां.’’

मां ने कहा, ‘‘इस बार कुछ गड़बड़ की, तो अब इस घर में भी जगह नहीं मिलेगी.’’

मधु बोली, ‘‘ठीक है.’’

फिर मधु की शादी गांव से दूर एक शहर में कर दी गई. वह आदमी भी मधु को देख कर बहुत खुश था. जब मधु एयरपोर्ट पर अपने पति के साथ विदेश जाने लगी, तो उस के परिवार वालों ने सबकुछ भुला कर उसे विदा किया. उस की मां ने नम आंखों से जातेजाते मधु से पूछ ही लिया, ‘‘क्या तुम इस रिश्ते से खुश हो?’’ मधु ने भी नम आंखों से कहा, ‘‘खुश हूं. एक गलती कर के पछता रही हूं. अब मैं भूल से भी ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगी.’’

विद्यासागर ने मधु से भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मधु, मैं ने गुस्से में तुम से जोकुछ भी कहा, उसे भूल जाना.’’

कुछ देर बाद पूरे परिवार ने नम आंखों से मधु को विदा कर दिया.

शौक : अखिलेश क्या अपना शौक पूरा कर पाया

‘‘यह नया पंछी कहां से आया है?’’ जैम की शीशियां गत्ते के बड़े डब्बे में पैक करते हुए सुरेश ने सामने कुरसी पर बैठे अखिलेश की तरफ देखते हुए अपने साथी रमेश से पूछा.

‘‘उत्तर प्रदेश का है,’’ रमेश ने कहा.

‘‘शहर?’’ सुरेश ने फिर पूछा.

‘‘पता नहीं,’’ रमेश ने जवाब दिया.

‘‘शक्ल से तो मास्टरजी लगता है,’’ अखिलेश की आंखों पर चश्मे को देख हलकी हंसी हंसते हुए सुरेश ने कहा.

‘‘खाताबही बनाना मास्टरजी का ही काम होता है,’’ रमेश बोला.

फलोें और सब्जियों को प्रोसैस कर के जूस, अचारमुरब्बा और जैम बनाने की इस फैक्टरी में दर्जनों मुलाजिम काम करते थे.

सुरेश, रमेश और कई दूसरे पुराने लोग धीरेधीरे काम सीखतेसीखते अब ट्रेंड लेबर में गिने जाते थे. फैक्टरी में सामान्य शिफ्ट के साथ दोहरी शिफ्ट में भी काम होता था, जिस के लिए ओवर टाइम मिलता था. इस का लेखाजोखा अकाउंटैंट रखता था.

अखिलेश एमए पास था. वह इस फैक्टरी में अकाउंटैंट और क्लर्क भरती हुआ था. मुलाजिमों के कामकाज के घंटे और दूसरे मामलों का हिसाबकिताब दर्ज करना और बिल पास करना इस के हाथ में था.

अपने फायदे के लिए फैक्टरी के सभी मुलाजिम अकाउंटैंट से मेलजोल बना कर रखते थे.

‘‘पहले वाला बाबू कहां गया?’’ रामचरण ने पूछा.

‘‘उस का तबादला कंपनी की दूसरी ब्रांच में हो गया है.’’

‘‘ये सब बाबू लोग ऊपर से सीधेसादे होते हैं, पर अंदर से पूरे चसकेबाज होते हैं,’’ रमेश ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘इन का चसकेबाज होने में अपना फायदा है. सारे बिल फटाफट पास हो जाते हैं.’’

शाम को शिफ्ट खत्म हुई. दूसरे सब चले गए, पर सुरेश, रमेश और रामचरण एक तरफ खड़े हो गए.

अखिलेश उन को देख कर चौंका.

‘‘सलाम बाबूजी,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सलाम, क्या बात है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, आप से दुआसलाम करनी थी. आप कहां से हो?’’

अखिलेश ने गांव के बारे में बताया.

‘‘साहब, एकएक कप चाय हो जाए?’’ रमेश ने जोर दिया.

अखिलेश उन के साथ फैक्टरी की कैंटीन में चला आया. चाय के दौरान हलकीफुलकी बातें हुईं. कुछ दिनों तक यह सिलसिला चला, फिर धीरेधीरे मेलजोल बढ़ता गया.

‘‘साहब, आज कुछ अलग हो जाए…’’ एक शाम सुरेश ने मुसकराते हुए अखिलेश से कहा.

‘‘अलग… मतलब?’’ अखिलेश ने हैरानी से पूछा.

सुरेश ने अंगूठा मोड़ कर मुंह की तरफ शराब पीने का इशारा किया.

‘‘नहीं भाई, मैं शराब नहीं पीता,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘साहब, थोड़ी चख कर तो देखो.’’

उस शाम सुरेश के कमरे में शराब का दौर चला. नया पंछी धीरेधीरे लाइन पर आ रहा था.

कुछ दिन के बाद सुरेश ने अखिलेश से पूछा, ‘‘साहब, आप ने सवारी की है?’’

‘‘सवारी…?’’

‘‘मतलब, कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं भाई, अभी तो मैं कुंआरा हूं. मेरी पिछले महीने ही मंगनी हुई है,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘सुहागरात को अगर आप चुक गए, तो सारी उम्र आप की बीवी आप का रोब नहीं मानेगी,’’ रामचरण बोला.

इस पर अखिलेश सोच में पड़ गया. वह 25 साल का था, लेकिन अभी तक किसी लड़की से सैक्स नहीं किया था.

‘‘साहब, आज आप को जन्नत की सैर कराते हैं,’’ सुरेश ने कहा.

इस सोच के साथ कि सुहागरात को वह ‘अनाड़ी’ या ‘नामर्द’ साबित न हो जाए, अखिलेश सहमत हो कर उन के साथ चल पड़ा.

वे चारों एक सुनसान दिखती गली में पहुंचे. गली के मुहाने पर ही एक पान वाले की दुकान थी.

‘‘4 पलंगतोड़ पान बनाना,’’ एक सौ रुपए का नोट थमाते हुए सुरेश ने कहा. पान बंधवा कर वे सब आगे चले.

‘‘यह पलंगतोड़ पान क्या होता है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘साहब, यह बदन में जोश भर देता है. औरत भी ‘हायहाय’ करने लगती है. अभी आप भी आजमाना,’’ रामशरण ने समझाते हुए कहा.

एक दोमंजिला मकान के बाहर रुक कर सुरेश ने कालबैल बजाई. एक औरत ने खिड़की से बाहर झांका. अपने पक्के ग्राहकों को देख कर उस औरत ने राहत की सांस ली.

दरवाजा खुला. सभी अंदर चले गए. एक बड़े से कमरे में 3-4 पलंग बिछे थे. कई छोटीबड़ी उम्र की लड़कियां, जिन में से कई नेपाली लगती थीं, मुंह पर पाउडर पोते, होंठों पर लिपस्टिक लगाए बैठी थीं.

‘‘सोफिया नजर नहीं आ रही?’’ अपनी पसंदीदा लड़की को न देख सुरेश कोठे की आंटी से पूछ बैठा.

‘‘बाहर गई है वह.’’

‘‘इस को सब से ज्यादा ‘मस्त’ वही नजर आती है,’’ रामचरण बोला.

‘‘नए साहब आए हैं. इन को खुश करो,’’ आंटी ने लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा.

सभी लड़कियां एक कतार में खड़ी हो गईं. कइयों ने अपनेअपने उभारों को यों तान दिया, जैसे फौज में आया जवान अपनी छाती फुला कर दिखाता है.

‘‘साहब, आप को कौन सी जंच रही है?’’ रामचरण ने अखिलेश से पूछा.

अखिलेश के लिए यह नया तजरबा था. सैक्स के लिए उस को एक लड़की छांटनी थी, जबकि उस को तो ठेले पर सब्जी छांटनी नहीं आती थी. आंटी तजरबेकार थी. वह समझ गई थी कि नया चश्माधारी बाबू अनाड़ी है. उस ने लड़कियों की कतार में खड़ी मीनाक्षी की तरफ इशारा किया.

मीनाक्षी अखिलेश की कमर में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आओ, अंदर चलें.’’

इस के बाद वह अखिलेश को एक छोटे केबिननुमा कमरे में ले गई.

बाकी तीनों भी अपनीअपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअलग केबिनों में चले गए. कमरे की सिटकिनी बंद कर लड़की ने अपने नए ग्राहक की तरफ देखा. अखिलेश ने भी उसे देखा. नेपाली मूल की उस लड़की का कद औसत से छोटा था. उस के मुंह पर ढेरों पाउडर पुता था. होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी.

लड़की ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए, फिर अखिलेश के पास आ कर खड़ी हो गई.

अखिलेश ने चश्मे में से ही उस की तरफ देखा. उस के उभार ब्लाउज उतर जाने के बाद ढीलेढाले से लटके थे. उभारों, बांहों, जांघों पर दांतों के काटने के निशान थे.

उसे देख कर अखिलेश को जोश की जगह तरस आने लगा था.

‘‘अरे बाबू, क्या हुआ? सैक्स नहीं करोगे?’’ उस लड़की ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे जोश नहीं आ रहा,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘कपड़े उतार दो, जोश अपनेआप आ जाएगा,’’ वह लड़की बोली.

‘‘मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘पनवाड़ी से पान तो लाए होगे?’’

‘‘हां है. तुम खा लो,’’ पान की पुड़िया उसे थमाते हुए अखिलेश ने कहा.

‘‘आप खा लो… गरमी आ जाएगी.’’

‘‘तुम खा लो.’’

लड़की ने पान चबाया. अखिलेश पछता रहा था कि वह यहां क्यों आया.

‘‘तुम्हें कितने पैसे मिलते हैं?’’

‘‘यह आंटी को पता है.’’

‘‘मुझ से क्या लोगी?’’

‘‘यह भी आंटी बताएगी. तुम कुछ करोगे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मैं कपड़े पहन लूं?’’

अखिलेश चुप रहा. लड़की ने कपड़े पहने और बाहर चली गई. अखिलेश भी बाहर चला आया.

इतनी जल्दी ग्राहक निबट गया था. आंटी ने टेढ़ी नजरों से उस की तरफ देखा. मीनाक्षी ने भद्दा इशारा किया. पलंग पर बैठी सभी लड़कियां हंस पड़ीं.

आधेपौने घंटे बाद बाकी तीनों भी बाहर आ गए.

अखिलेश को बाहर आया देख वे सभी चौंके.

‘‘क्या बात है साहब?’’ सुरेश बोला.

‘‘मुझ से नहीं हुआ,’’ अखिलेश ने बताया.

‘‘पहली बार आए हो न साहब. धीरेधीरे सीख जाओगे.’’

आंटी को पैसे थमा कर वे सब बाहर चले आए.

अगले कई दिनों तक उन तीनों ने अखिलेश को उकसाने की कोशिश की, मगर उस ने वहां जाने से मना कर दिया. एक शाम मौसम सुहावना था. शराब के 2 पैग पीने के बाद अखिलेश घूमने निकल पड़ा.

अचानक ही अखिलेश के कदम उस गली की तरफ मुड़ गए. चश्माधारी बाबूजी को देख आंटी पहले चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आओ बाबूजी.’’

मीनाक्षी भी मुसकराई. वह उस को अपने केबिन में ले गई.

‘‘आप फिर आ गए?’’

‘‘मौसम ले आया.’’

‘‘अकेले?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं अपने कपड़े उतारूं?’’

अखिलेश खामोश रहा. लड़की ने कपड़े उतार दिए. पहले की तरह अखिलेश ने उस के बदन को देखा.

‘‘अब आप भी अपने कपड़े उतारो,’’ लड़की बोली.

अखिलेश ने भी अपने कपड़े उतारे और उस के करीब आया. उसे अपनी बांहों भरा और चूमा, फिर बिस्तर पर खींच लिया. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अखिलेश में जोश नहीं आया.

आखिरकार तंग आ कर मीनाक्षी ने पूछा, ‘‘क्या तुम ने पहले कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘अगले महीने मेरी शादी है. वहां खिलाड़ी साबित करने के लिए मैं यहां आया हूं.’’

यह सुन कर मीनाक्षी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम से कुछ नहीं हो सकता. तुम चले जाओ.’’

कपड़े पहन कर अखिलेश बाहर जाने को हुआ, तभी मीनाक्षी बोली, ‘‘अपना पर्स, घड़ी और अंगूठी उतार कर मुझे दे दो,’’

‘‘क्यों?’’ अखिलेश ने पूछा.

तभी एक कद्दावर गुंडे ने वहां आ कर चाकू तान दिया.

अखिलेश ने अपने पर्स की सारी नकदी, अंगूठी और घड़ी उतार कर पलंग पर रख दी और चुपचाप बाहर चला आया. आते वक्त भी मौसम खुशगवार था, लौटते वक्त भी. मगर आते समय अखिलेश शराब के नशे में था, लौटते समय उस का नशा उतर चुका था.

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