Family Story

लेखक- ध्रूव कुमार ‘निर्भीक’

नैकसा दुखी मन से अपने गांव लौट रहा था. जुगल के बुरे बरताव ने उसे तोड़ दिया था. वह मन ही मन सोच रहा था कि वह उस के पास क्यों गया?  ऐसी क्या मजबूरी थी उस की? उस ने तो उस के घर की खैरखबर तक नहीं पूछी. मां कैसी हैं? बहन वीरो कैसी है? छोटा काकू कैसा है? कुछ भी तो नहीं पूछा जुगल ने.

उसे पता होता कि जुगल ऐसा बरताव करेगा, तो वह वहां कभी नहीं जाता. वीरो मर जाए तो मर जाए, जुगल का क्या?

नैकसा ने सोचा नहीं था कि जुगल इतना बदल जाएगा. जुगल को कितनी गरीबी में पढ़ाया, तन काटा, पेट काटा और उसे पढ़ायालिखाया, बड़ा किया. सोचा कि बड़ा बेटा है, कुछ बन गया तो घर की काया पलट जाएगी, लेकिन…

भला हो नैकसा की पत्नी नन्ही का, जो साहब से कहसुन कर जुगल को सरकारी मुलाजिम बनवा दिया. भला हो सरकार का कि उस ने रिजर्वेशन का इंतजाम कर दिया है, जिस का फायदा दिलाते हुए साहब ने भी देर नहीं की और पुलिस में सिपाही लगवा दिया.

नन्ही साहब के घर पर रोटी न बनाती, तो साहब से जानपहचान न होती. साहब नन्ही से खुश थे. उन्होंने जुगल को सरकारी नौकरी दिलवा दी थी. अब उसी जुगल को उसे मां कहने में शर्म आती है.

सरकार ने गरीब, दबेकुचले लोगों की जिंदगी के लिए ऊंचनीच, छुआछूत, भेदभाव, गरीबअमीर की खाई पाटने के लिए अनेक सुविधाएं मुहैया कराई हैं, लेकिन छुआछूत, भेदभाव, जातपांत और ऊंचनीच की खाई पटने के बजाय और भी गहरी होती जा रही है. पहले अमीर गरीब से छुआछूत, भेदभाव का बरताव करते थे, आज न जाने कितने जुगल अपने मांबाप, भाईबहन, चाचाताऊ के बीच भेदभाव शुरू कर चुके हैं.

रिजर्वेशन की सीढ़ी पर चढ़ कर सरकारी मुलाजिम बना बेटा अपने बाप को बाप, मां को मां, बहन को बहन, भाई को भाई कहने में शरमाता है. उन के पहनावे से, उन की चालढाल से, उठनेबैठने से, उन के आचारविचार से, भाषाबोली से नफरत करता है.

नैकसा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सरकारी मुलाजिम बनने के बाद बेटा जुगल उसे बाप मानने से इनकार करते हुए घर का नौकर बता देगा.

नैकसा ने तो सोचा था कि जब जुगल सरकारी मुलाजिम बन जाएगा तो घर की गरीबी दूर हो जाएगी और बुढ़ापे में चैन की जिंदगी गुजरेगी, लेकिन उस ने तो वीरो के बारे में भी नहीं पूछा.

वही वीरो जो हर साल भाईदूज और रक्षाबंधन पर भाई जुगल को राखी बांध कर, माथे पर तिलक कर के ही कुछ खातीपीती है. वह उसे ‘दादादादा’ कहती फिरती है. उस के आने का इंतजार करती है. लेकिन जुगल ने उस बेचारी को  झूठे मुंह पूछा तक नहीं कि कैसी है? आज वह गंभीर बीमार है. उसे इलाज की सख्त जरूरत है. वह भी ठीक होना चाहती है, लेकिन क्या वह ठीक हो कर अपनी खुशहाल जिंदगी जी पाएगी?

नैकसा दुखी और भारी मन से घर लौट आया, तो नन्ही ने पूछा, ‘‘कैसा है अपना जुगल… बहुत खुश हुआ होगा वह… बहुत सेवा की होगी उस ने…’’

नैकसा बोला, ‘‘अरी, बहुत बड़ा आदमी बन गया है वह… अब वह जुगल नाई नहीं, ठाकुर जुगल प्रताप सिंह है. अब उसे जुगल नाई मत कहना… अब तो उसे मुझे अपना बाप कहने में भी शर्म आती है.’’

‘‘क्या…?’’ चौंक कर नन्ही बोली.

‘‘मेरी बहुत बेइज्जती की है उस ने…’’ नैकसा ने कहा, ‘‘कहता था, यह हमारा नौकर है. खेत में गेहूं बो दिया है. खादपानी के लिए पैसे लेने आया है…’’

‘‘क्या…? ऐसा बोला वह? इतना बदल गया है जुगल…’’ नन्ही ने चौंक कर कहा, फिर बोली,’’ क्या इसलिए पैदा किया था उस नाशपीटे को?’’

3 भाइयों में सब से छोटा था नैकसा. 3 बच्चे थे और पत्नी नन्ही. जुगल सब से बड़ा बेटा था, वीरो म झली और काकू छोटा. जमीनजायदाद तो थी नहीं, लोगों की हजामत बना कर ही घर का खर्च चलता था.

नैकसा गांव में लोगों के बाल काटता और जब फसल आती तो खेतखेत जा कर गेहूं वगैरह अनाज के पूले इकट्ठा करता, फिर तिमाहीछमाही धड़ी लेता. धड़ी में पक्की तोल का 5 सेर अनाज आता. गांव में एक हजार परिवार थे. हर परिवार से 5 सेर तो एक हजार परिवारों से 5 क्ंिवटल अनाज जमा हो जाता. खाने के लिए तो अनाज मिल जाता, लेकिन दूसरे घरेलू खर्च के लिए पैसा नहीं था. अनाज बेच कर ही वह दूसरे खर्च चलाता था.

नैकसा की पत्नी नन्ही शहर में रहती थी और दूसरों का खाना बना कर घर चलाने में उस का सहयोग करती थी.

नन्ही शहर में एक पुलिस अफसर रमाशंकर तिवारी की कोठी में भी खाना बनाने जाती थी. वह खाना अच्छा बनाती थी, जिस से रमाशंकर खुश थे. एक दिन उस ने रमाशंकर से जुगल की नौकरी लगवाने की गुजारिश की. उन्होंने हां कह दी और मौका मिलते ही उन्होंने जुगल की सिपाही के पद पर भरती करा दी.

पुलिस में नौकरी लगते ही जुगल की शादी भी हो गई. शादी के बाद जुगल शहर में रहने लगा. उस ने अपना नाम जुगल नाई से बदल कर ठाकुर जुगल प्रताप सिंह प्रचारित कर दिया था. अब सब उसे ठाकुर साहब के नाम से बुलाते थे.

जब जुगल गांव आता तो खुद को दारोगा बताता था. नैकसा नाई भी उसे दारोगाजी कह कर और छाती फुला कर बात करता था. अब वह साधारण आदमी नहीं था. उस का बेटा दारोगा जो बन गया था. वह मन ही मन सोचता कि उस का बेटा थाने में दारोगा है. अब वह किसी के दबाव में नहीं आएगा. किसी के सामने अब वह पैसे के लिए नहीं गिड़गिड़ाएगा.

बेटे से सौ मांगेगा, तो वह हजार देगा. फिर क्यों मांगेगा किसी से? मांगने पर उस के बेटे की बेइज्जती होगी. नहीं… नहीं, वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिस से उस के बेटे की बेइज्जती हो.

एक दिन बेटी वीरो बीमार हो गई. पहले तो गांव में इलाज कराया, लेकिन जब वह ठीक नहीं हुई तो गांव वालों ने शहर ले जाने की सलाह दी. शहर ले जाने के लिए पैसों का बंदोबस्त नहीं था.

नैकसा गांव में किसी से उधार नहीं लेना चाहता था. उधार मांगेगा तो लोग क्या कहेंगे? बेटा दारोगा है और बाप कर्ज मांगता फिर रहा है, बेटी के इलाज के लिए. बेटे के पास पैसों की कमी नहीं है. हजारपांच सौ तो मिनटों में वह कमा लेता होगा. वह उस के पास जाएगा और 5-10 हजार रुपए ले आएगा.

अगले दिन ही नैकसा उस थाने में पहुंचा, जिस में जुगल तैनात था. एक पुलिस वाले ने उस से पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

नैकसा ने कहा ‘‘दारोगाजी से…’’

‘‘कौन से दारोगाजी से?’’ पुलिस वाले ने सवाल किया.

नैकसा ने सरल स्वभाव में जवाब दिया, ‘‘जुगल दारोगाजी से…’’

पुलिस वालों ने एकदूसरे को देखा, फिर दूसरा पुलिस वाला बोला, ‘‘यहां तो कोई जुगल दारोगा नहीं है. हां… सिपाही जरूर है.’’

नैकसा बोला, ‘‘हांहां, वही…’’

पहले पुलिस वाले ने हंसी के लहजे में जुगल को बुलाया, ‘‘अरे दारोगाजी, आप को ये बाबा याद कर रहे हैं.’’

जुगल आया और नैकसा को देखते ही आगबबूला हो गया. उस ने नैकसा को अकेले में खूब डांटा, ‘‘यहां क्यों आ गए? करा दी न बेइज्जती. जाओ यहां से. चले आए. तमीज नहीं है जरा भी,’’ कहता हुआ जुगल नैकसा को थाने से बाहर ले जाने लगा, तो एक पुलिस वाले ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये? क्यों डांट रहे हो ठाकुर साहब?’’

जुगल ने कहा, ‘‘नौकर है घर का. पैसा लेने आया है. खेत में गेहूं बो दिया है. अब खादपानी को पैसा चाहिए. मैं मनीऔडर भेजने वाला था, पर यह चला आया मुंह उठाए…’’

नैकसा को यह सुन कर बहुत दुख हुआ. वह तुरंत बोला, ‘‘साहब, मैं नाई हूं. कौम का खानदानी हूं.  झूठ नहीं बोलूंगा. जो बात कहूंगा सोलह आने सच कहूंगा. मैं इस का तो नौकर नहीं हूं, इस की मां का नौकर जरूर हूं. मेरी बात का यकीन न हो, तो गांव में चल कर जांच कर लो.’’

नैकसा की बात सुन कर पुलिस वाले हैरान रह गए और जुगल को नफरत से देखने लगे.

थके कदमों और हताश मन से नैकसा गांव की तरफ चल दिया.

देखतेदेखते नैकसा और जुगल की बातें पूरे थाने में फैल गईं. थाने में तैनात हर पुलिस वाले को जुगल की असलियत पता चल गई. अब उस के साथी पुलिस वालों का बरताव पहले जैसा नहीं रहा था. ठाकुर साहब का संबोधन जुगल में बदल गया था. जो पहले उस की इज्जत करते थे, पर अब आगेपीछे उस का मजाक उड़ाते थे.

एक दिन जुगल सोच में डूबा हुआ था. वह साथी पुलिस वालों के बदले बरताव के लिए खुद को कुसूरवार मान रहा था. काश, उस दिन पिताजी के साथ अच्छा बरताव करता, तो आज उस की यह हालत नहीं होती.

अगले दिन जुगल ने दारोगाजी को 15 दिन की छुट्टी की अर्जी दी, तो उन्होंने मंजूर कर ली. जुगल ने सोचा कि वह गांव जाएगा, पिताजी से माफी मांगेगा. छुट्टियों के दौरान अपना तबादला किसी दूसरे थाने में करा लेगा, फिर भविष्य में कभी ऐसी गलती नहीं करेगा.

गांव में वीरो की बीमारी बढ़ती गई. पैसे की कमी के चलते नैकसा वीरो का इलाज नहीं करा सका. उस ने इलाज के लिए किसी से उधार इसलिए नहीं मांगा कि लोग क्या कहेंगे, बेटा थानेदार है और बाप बेटी के इलाज के लिए उधार मांग रहा है.

इलाज की कमी में एक दिन वीरो ने तड़पतड़प कर दम तोड़ दिया.

वीरो की मौत की खबर रुई की तरह गांवभर में फैल गई. लोगों को पैसे की कमी के चलते वीरो की मौत का पता चला तो सभी हमदर्दी जताने लगे.

नैकसा के पास वीरो के अंतिम संस्कार के लिए पैसे का इंतजाम नहीं था. जब गांव के लोगों को पता चला तो घंटेभर में अंतिम संस्कार की तैयारी हो गई. वीरो का शव अर्थी पर कसा जाने लगा. उसी समय सेवाराम बोला, ‘‘दारोगाजी भी आ गए.’’

‘‘कौन दारोगा?’’ नैकसा ने पूछा.

‘‘अरे वही अपने जुगल…’’ सेवाराम ने बताया.

अर्थी पर वीरो के शव को कस रहे नैकसा ने शव कसना रोक दिया. जुगल वीरो के शव को देख कर हैरान रह गया. मां का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले पल लोगों ने वीरो की अर्थी उठाने की तैयारी की तो एक ओर जुगल दूसरी ओर नैकसा ने कंधा दिया.

वीरो का अंतिम संस्कार कर के लोग लौट आए. इस बीच जुगल को वीरो की बीमारी, घर की माली हालत और नैकसा की मजबूरी का पता चला तो वह धम्म से जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.

जुगल के बेहोश होते ही लोगों में खलबली मच गई. बाद में किसी तरह जुगल होश में आया, तो लोगों को राहत महसूस हुई.

नैकसा को पता चला, तो लोगों की भीड़ को चीरते हुए आगे आ कर बोला, ‘‘बेटा, मु झे पता है. जिस दिन से मैं तेरे पास आया हूं, उसी दिन से तू परेशान है, लेकिन एक दिन सचाई सामने आ ही जाती है. बनावटी बातों से खून के रिश्ते नहीं मिटाए जा सकते.

‘‘जो हुआ सो हुआ बेटा. अफसोस मत कर बेटा. तू मु झे पिता माने न माने, लेकिन तू मेरा बेटा है और हमेशा रहेगा. मेरा तुझ पर कोई हक नहीं, लेकिन तेरा मुझ पर हक कोई नहीं छीन सकता. तू मेरा बेटा था और रहेगा.’’

नैकसा की बात सुन कर जुगल रोते हुए माफी मांगने लगा. नैकसा आगे बढ़ा और जुगल को सीने से लगा कर बोला, ‘‘पगले, जो हुआ सो हुआ. गलतियां बच्चों से ही होती हैं और बच्चे गलतियां नहीं करेंगे तो क्या बूढ़े करेंगे.’’

लोगों की भीड़ जा चुकी थी. जुगल को ले कर नैकसा भी अपने घर में चला गया.

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