Social Story : फर्जी पहचानपत्र
वह पलंग पर सोया हुआ था. सूरज निकलने ही वाला था कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. वह उठा और दरवाजा खोला. सामने पुलिस के 2 सिपाही थे. वह भौचक्का रह गया.‘‘जी, कहिए...’’ उस ने बड़े ही अदब से पूछा.
‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ पहले सिपाही ने पूछा.
‘‘जी, रामलाल.’’
‘‘बकवास मत करो. अपना सही नाम बताओ.’’
‘‘जी, मेरा नाम रामलाल ही है.’’
‘‘पुलिस से मजाक करने का नतीजा जानते हो?’’
‘‘जी, मैं सच बोल रहा हूं.’’
‘‘अच्छा, पिता का नाम बताओ,’’ दूसरे सिपाही ने पूछा.
‘‘जी, कुंदनलाल...’’ वह बोला.
‘‘लेकिन, ऐसा कैसे हो सकता है?’’ पहले सिपाही ने दूसरे सिपाही से कहा. फिर दोनों किसी सोच में डूब गए.
‘‘क्या हुआ साहब, आप के चेहरे पर चिंता...’’ उस ने पूरी बात जानने की कोशिश की.
‘‘देखो, हमारे हिसाब से तुम आज रात एक सड़क हादसे में मारे जा चुके हो. हम उसी की सूचना देने यहां आए हैं?’’ पहले सिपाही ने कहा.
‘‘लेकिन, ऐसा कैसे हो सकता है साहब?’’
‘‘हमें नहीं पता. हमारे रिकौर्ड में तो तुम मर चुके हो, बस.’’
‘‘लेकिन, मैं तो जिंदा खड़ा हूं.’’
‘‘तो, हम क्या करें. हम अब अपना फैसला नहीं बदल सकते. पूरी कागजी कार्यवाही कर चुके हैं. अब क्या रजिस्टर के पन्ने फाड़ेंगे. हमारे अफसर क्या सोचेंगे. कुछ ले लिया होगा.
‘‘और, अब तो लाश भी पोस्टमार्टम के लिए जा चुकी है. अब तुम सीधे जा कर अपनी लाश को ले लो,’’ पहले सिपाही ने कहा.
‘‘मगर...’’
‘‘अगरमगर कुछ नहीं. चुपचाप हमारे साथ चलो. कागजों पर साइन करो और मुरदाघर से अपनी लाश उठा लाओ. उस के बाद जो मन में आए, अगरमगर करना. हमारा काम खत्म, बस.’’
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