
इस केस में अभियोजन पक्ष की ओर से कई गवाह भी पेश किए गए थे. पिछले महीने यानी सितंबर में सारी गवाहियां पूरी हो चुकी थीं और अदालत ने फैसले की तारीख 10 अक्तूबर, 2019 तय कर दी थी. इस मामले में रविंदर कौर को सजा होनी तय थी.
23 सितंबर, 2019 को जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल को फैजाबाद की फैमिली कोर्ट से एक फैक्स प्राप्त हुआ. उस फैक्स में लिखा था कि रविंदर कौर बनाम जगजीत सिंह उर्फ सोनू पुत्र मंजीत सिंह बग्गा निवासी 13, गुरुनानक नगर, रायबरेली, उत्तर प्रदेश.
केस नंबर 104/2009 धारा 125 में उस के खिलाफ 4 लाख 32 हजार रुपए का कंडीशनल वारंट जारी किया गया है. आरोपी जालंधर देहात क्षेत्र में कहीं छिपा बैठा है. तत्काल प्रभाव से उसे गिरफ्तार कर फैजाबाद की अदालत में पेश किया जाए.
दरअसल, फैजाबाद की अदालत में जज के सामने केस की बहस के दौरान रविंदर कौर के वकील विजय शंकर पांडेय ने कहा था कि जगजीत सिंह जिंदा है और वह जालंधर में किसी स्थान पर छिपा बैठा है. इस के बाद फैजाबाद, उत्तर प्रदेश की अदालत ने फैक्स द्वारा जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल को रविंदर कौर के पति जगजीत सिंह बग्गा को ढूंढने का आदेश दिया था.
अदालत के आदेश पर पंजाब पुलिस का एक्शन
उक्त फैक्स मिलने के बाद एसएसपी नवजोत सिंह माहल ने जालंधर देहात क्षेत्र के थाना लांबड़ा के थानाप्रभारी एसआई पुष्प बाली को उक्त फैक्स देते हुए आरोपी को शीघ्र तलाश कर अरेस्ट करने के आदेश दिए. एसआई पुष्प बाली को यह आदेश 24 सितंबर, 2019 को प्राप्त हुआ और उसी दिन से उन्होंने आरोपी की तलाश शुरू कर दी.
25 सितंबर को रविंदर कौर थाना लांबड़ा पहुंची और एसआई पुष्प बाली से मिल कर हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की कि अगर उस के पति जगजीत को शीघ्र न ढूंढा गया तो निर्दोष होते हुए भी आने वाली 10 अक्तूबर को अपने पति की हत्या के आरोप में उसे और उस के परिवार को जेल जाना पड़ेगा. रविंदर कौर ने जांच अधिकारी को अपने पति जगजीत सिंह के लापता होने का शुरू से अंत तक का सारा मामला समझाया और वह फोन नंबर भी दिया, जिस से कुछ दिन पहले उसे जालंधर से पति का फोन आया था.
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एसआई पुष्प बाली ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा कर जांच की. वह फोन किसी आटो वाले का था. उन्होंने आटो वाले को बुला कर उस से लंबी पूछताछ की.
आटो वाले ने बताया, ‘‘साहब, गांव सिंघा में हरनेक ढाबे पर काम करने वाले एक आदमी ने उस से फोन मांग कर काल की थी.’’
समय न गंवाते हुए पुष्प बाली हरनेक ढाबे पर पहुंच गए. उन के साथ रविंदर कौर भी थी. जांच अधिकारी ने ढाबे पर काम करने वाले सभी लोगों को अपने सामने खड़ा किया तो रविंदर कौर एक आदमी को बड़े गौर से देखने लगी. वह उस के पति की तरह लग रहा था, लेकिन वह उसे एकाएक नहीं पहचान पा रही थी.
वजह यह कि जगजीत सिंह 11 साल पहले जब घर से लापता हुआ था, तब उस के सिर पर बाल और पगड़ी थी और वह पूरी तरह तंदुरुस्त था, जबकि सामने खड़ा कमजोर सा मोना व्यक्ति किसी भी रूप में उस का पति नहीं लग रहा था. काफी देर तक दोनों मौन खड़े एकदूसरे को देखते रहे. यह दृश्य किसी की भी आत्मा को झकझोर देने वाला था. कुछ देर बाद उस व्यक्ति ने रविंदर कौर को पुकारा, ‘‘सोनी…’’
सामने खड़े व्यक्ति के मुंह से यह शब्द सुनते ही रविंदर कौर के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोते हुए जगजीत सिंह से लिपट गई. इस के बाद पुलिस ने जगजीत सिंह को हिरासत में ले लिया.
जब रविंदर और जगजीत की शादी हुई थी, तब वे हनीमून मनाने शिमला गए थे और जगजीत ने प्यार से रविंदर कौर का नाम सोनी रखा था. इतना ही नहीं, उस ने अपनी बाजू पर सोनू और सोनी गुदवाया भी था. पुरानी यादें एक बार फिर से ताजा हो गई थीं.
पति के मिल जाने के बाद रविंदर कौर ने थाने से ही फोन कर जगजीत की बात अपने बेटों हरप्रीत बग्गा और हरमीत बग्गा से करवाई. बेटों की आवाज सुन कर जगजीत काफी भावुक हो गया था. जिस समय उस ने घर छोड़ा था, तब हरप्रीत 5 साल का था जो अब 17 साल का गबरू जवान हो गया था.
थानाप्रभारी पुष्प बाली ने किया कमाल
इस मामले को हल करने में थानाप्रभारी पुष्प बाली को इतनी खुशी और आत्मसंतोष मिला, जितना उन्हें अपनी पूरी नौकरी के दौरान नहीं मिला था. दो बिछड़े हुओं को मिलाना और 4 निर्दोषों को सजा से बचाना बहुत बड़ी बात थी.
वैसे तो इस मामले में थानाप्रभारी पुष्प बाली का कोई वास्ता नहीं था. उन का काम सिर्फ इतना था कि वे अदालत के आदेश को मान कर जगजीत सिंह को फैजाबाद की अदालत तक पहुंचाएं. पर मामला इतना दिलचस्प था कि उन्होंने इस पूरे प्रकरण की जगजीत सिंह और रविंदर कौर से पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी.
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गुरुनानक नगर, थाना कोतवाली, रायबरेली, उत्तर प्रदेश में करोड़ों की चलअचल संपत्ति का मालिक जगजीत सिंह बग्गा उर्फ सोनू सिर्फ अपनी पत्नी को फंसाने के लिए ढाबे पर बरतन साफ कर रहा था. सोनू के पिता का वहां पर कपड़े का बड़ा कारोबार था. खुद की फैक्ट्री लगी हुई थी. वहां पर वह ऐश की जिंदगी जीता था.
शादी के कुछ सालों बाद पत्नी के साथ विवाद शुरू हुआ तो उस ने पत्नी से तलाक मांगा. पत्नी ने तलाक देने से मना कर दिया तो वह वहां से भाग कर जालंधर आ गया और थाना लांबड़ा के अंतर्गत मुद्दा गांव में एक ढाबे पर बरतन मांजने की नौकरी करने लगा.
3 साल तक मुद्दा गांव में ढाबे पर काम करने के बाद वह नौकरी छोड़ कर गांव सिंघा में हरनेक ढाबे पर बरतन मांजने का काम करने लगा. ढाबे पर उसे 4 हजार रुपए पगार के साथसाथ खाना और कपड़े मिल रहे थे, जिन से वह अपना गुजारा कर रहा था.
जांच में सामने आया कि जगजीत के परिजनों को पता था कि वह जालंधर, लांबड़ा के सिंघा गांव में है. उस ने अपने परिवार वालों से अपनी बदहाली की बात इसलिए कभी नहीं बताई थी कि कहीं वे आर्थिक मदद न भेज दें और फंस जाए. यहां तक कि वह अपने पिता या परिवार के किसी सदस्य से जब भी बात करता था तो रिश्तेदारों के फोन पर करता था. उसे डर था कि कहीं परिवार के फोन के जरिए पुलिस उस तक न पहुंच जाए.
जगजीत कुछ महीने पहले से अपनी पत्नी रविंदर कौर को अलगअलग नंबरों से फोन करता रहता था. इस के लिए वह ढाबे पर आने वाले ट्रक ड्राइवरों से मोबाइल मांग लेता था. इसीलिए पुलिस उस का फोन ट्रेस नहीं कर पाई थी. आखिरी काल उस ने एक आटो वाले के फोन से की थी, उसी के जरिए वह पकड़ में आ गया था.
अपनी ही गलती से पकड़ा गया जगजीत
आखिरी काल में जगजीत ने रविंदर कौर से कहा था, ‘‘तुम मेरे घर वालों को बिना वजह क्यों तंग कर रही हो. मैं जिंदा हूं. इस समय कहां हूं, यह नहीं बताऊंगा. अगर किसी में दम है तो ढूंढ कर दिखाए.’’ इतनी बात कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी थी.
दरअसल रविंदर कौर ने जगजीत और उस के परिवार वालों पर खर्चे का जो केस डाल रखा था, वह जीत गई थी और उस के पिता को अदालत में साढ़े 4 लाख रुपए जमा करने थे.
इस से पहले जगजीत सिंह जब भी पत्नी को फोन करता था तो वह अपना नाम नहीं बताता था. रविंदर कौर केवल आवाज से ही पहचान पाती थी कि वह उस के पति की आवाज है. लेकिन इस बार उस ने रविंदर से बात करते समय साबित कर दिया था कि वह जगजीत ही है.
पति के जीवित होने की पुष्टि हो जाने के बाद रविंदर कौर बहुत खुश हुई क्योंकि 10 अक्तूबर को इस मामले में सजा जो सुनाई जाने वाली थी. रविंदर ने पति के जीवित होने की बात अपने वकील के माध्यम से फैजाबाद कोर्ट को बता दी. कोर्ट ने इस बाबत जालंधर देहात के एसएसपी को फैक्स भेज कर जगजीत सिंह का पता लगाने के आदेश दिए.
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जगजीत सिंह के मिल जाने के बाद जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल ने इस की जानकारी फैजाबाद की अदालत को दे दी. फैजाबाद अदालत की तरफ से एसएसपी माहल को ईमेल आया कि वह पुलिस कस्टडी में पूरी सुरक्षा के साथ जगजीत सिंह व रविंदर कौर को फैजाबाद अदालत में पेश करें, इस का पूरा खर्च अदालत वहन करेगी.
थानाप्रभारी ने कागजी काररवाई पूरी करने के बाद 28 सितंबर, 2019 को जगजीत सिंह को फैमिली कोर्ट, फैजाबाद में पेश किया. वहां से उसे रायबरेली की ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया.
हर अपराधी को यह गलतफहमी होती है कि उस ने जो अपराध किया है, उसे कोई पकड़ नहीं सकता. जैसेजैसे समय गुजरता है, वैसेवैसे अपराधी का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगता है. यही गलतफहमी जगजीत सिंह उर्फ सोनू को भी थी और वह गलती कर बैठा. लेकिन उस की इस गलती ने 4 निर्दोष लोगों को जेल जाने से बचा लिया था. – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
छाया से की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी. सिवाय इस के कि पुष्पेंद्र पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत पुष्पेंद्र जैसे तगड़े मर्द का न तो अकेले गला घोंट सकती थी और न अकेले घर से 20 किलोमीटर दूर ले जा कर शिकोहाबाद की भूड़ा नहर में फेंक सकती थी. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.
मृतक पुष्पेंद्र के दोनों बेटे आलोक व आकाश अपने पिता के साथ रहते थे. उन दोनों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि जब पापा घर नहीं लौटे तो उन्होंने समझा कि वह मम्मी के पास कबीरनगर गए होंगे. 12 जून की सुबह 7 बजे मम्मी का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि त्यौहार का दिन है, मेरे पास आ जाओ.
हम लोग मम्मी के पास कबीरनगर पहुंच गए. वहां पापा को न देख हम ने मम्मी से पूछा कि पापा कहां हैं, इस पर उस ने बताया कि वे रात में आए थे और कुछ देर रुक कर वापस चले गए थे. इस के थोड़ी देर बाद ही उन्हें पता चला कि पापा की मौत हो गई है.
मृतक के भाई महेश ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि 11 जून को रात लगभग 11 बजे पुष्पेंद्र पत्नी के पास जा रहा था. रास्ते में पुष्पेंद्र का रिश्ते का साढ़ू मिल गया. उस ने पुष्पेंद्र को इतनी रात में छाया के पास जाने से मना भी किया, लेकिन पुष्पेंद्र नहीं माना. ससुराल में ही उस की हत्या कर लाश मोटरसाइकिल से ले जा कर नहर में फेंक दी गई.
पुलिस को मिला सुराग
इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने इंसपेक्टर को बताया कि छाया चोरीछिपे अब भी अपने प्रेमी संतोष से मिलती है. दोनों के नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. जाहिर था, हत्या अगर छाया ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों की भनक लगते ही छाया और उस का प्रेमी संतोष फरार हो गए.
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दोनों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के 2 महीने बाद 12 अगस्त को सीओ अजय सिंह चौहान और थानाप्रभारी अजय किशोर ने छाया व उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को शिकोहाबाद स्टेशन रोड से हिरासत में ले लिया. दोनों फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.
थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. छाया पुलिस को दिए अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने कहा कि पति ने उस का जीना हराम कर दिया था. वह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था.
इस के साथ ही दोनों बच्चों को भी उस से छीन लिया था. ऐसे में उस के सामने यह कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, इस तरह थी—
पुष्पेंद्र 3 भाइयों महेश और नरेश के बाद तीसरे नंबर का था. ये लोग गांव रैमजा, थाना नारखी, जिला फिरोजाबाद के मूल निवासी थे. लगभग 14 साल पहले पुष्पेंद्र की शादी फिरोजाबाद के थाना उत्तर के कबीरनगर खेड़ा निवासी इश्लोकी राठौर की पुत्री छाया से हुई थी. इश्लोकी की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. इन में छाया सब से बड़ी थी. उस के बाद वर्षा और 2 भाई सोनू व मोनू थे.
पुष्पेंद्र के पास अपनी मैक्स गाड़ी थी. वह वाहनों के टायर खरीदने व बेचने का व्यवसाय करता था. 3 साल पहले उस ने फिरोजाबाद के कृष्णानगर में एक मकान खरीद लिया था और परिवार सहित गांव से आ कर उसी मकान में रहने लगा था. शादी के बाद उस के 2 बेटे हुए, इन में 13 वर्षीय आलोक 8वीं में पढ़ रहा था, जबकि 11 वर्षीय आकाश 6ठीं में था.
पुष्पेंद्र की गृहस्थी हंसीखुशी चल रही थी. करीब डेढ़ साल पहले जैसे उस के परिवार को किसी की नजर लग गई. हुआ यह कि कृष्णानगर में भागवतकथा का आयोजन हुआ. भागवतकथा में भजन गायक संतोष शास्त्री का छोटा भाई राजकुमार कृष्ण बना और छाया रुक्मिणी. भजन गायक संतोष भी छाया का हमउम्र था.
भरेपूरे बदन की छाया को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में भी वह खासी जवान दिखती थी. संतोष के गले से निकली उस की सुरीली आवाज पर छाया रीझ गई. वहीं संतोष भी उस की सुंदरता का दीवाना हो गया.
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भागवतकथा में एक सप्ताह तक रुक्मिणी का अभिनय करने के दौरान ही छाया का संतोष शास्त्री से परिचय हुआ. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. संतोष हंसीठिठोली के दौरान छाया से कहता, ‘‘रुक्मिणी तो अब संतोष की है.’’
आसपास जहां भी भागवतकथा के आयोजन में संतोष आता, फोन कर के छाया को भी बुला लेता था. धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. इस बीच दोनों के अवैध संबंध भी बन गए थे. अब छाया फोन पर संतोष से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.
घरेलू हिंसा का केस करा दिया
पुष्पेंद्र को जब इस की जानकारी मिली तो इसे ले कर पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. लेकिन छाया ने संतोष से बात करना या मिलना नहीं छोड़ा. इस से पुष्पेंद्र अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करने लगा. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में पुष्पेंद्र छाया की पिटाई भी कर देता था. गृह क्लेश के चलते पिछले डेढ़ साल से छाया पति पुष्पेंद्र से अलग रहने लगी थी.
छाया 3 महीने दिल्ली में अपने मामा के पास रही. वहां वह फोन पर प्रेमी संतोष से बात करती रहती थी. इस बीच उस ने कोर्ट में पुष्पेंद्र पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था. यह मुकदमा जिला फिरोजाबाद के न्यायालय में चल रहा था.
पिछले 6 महीने से छाया अपने मायके कबीरनगर में रह रही थी. इस बीच उस के पास संतोष का आनाजाना लगा रहा. जब भी छाया का प्रेमी से मिलने का मन होता, वह उसे फोन कर देती. दोनों एकदूसरे से मिल कर संतुष्ट हो जाते थे. संतोष छाया के पति की कमी पूरी कर देता था. एक दिन छाया ने संतोष से कहा कि हम लोग इस तरह कब तक तड़पते रहेंगे, रास्ते का कांटा हटा दो.
साजिश को ऐसे दिया अंजाम
इस के बाद छाया व उस के प्रेमी संतोष ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर पुष्पेंद्र और छाया की बातचीत हो जाती थी. जबतब दोनों मोबाइल पर भी बात कर लेते थे. छाया ने पुष्पेंद्र को मीठीमीठी बातों के झांसे में ले लिया था.
10 जून की रात को छाया ने फोन कर पुष्पेंद्र को अपने मायके बुलाया था. लेकिन उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी. इस पर छाया ने 11 जून की शाम को पुष्पेंद्र को फोन किया और कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर रात में आने को कहा. पुष्पेंद्र पत्नी की चाल समझ नहीं सका और 11 बजे जब दोनों बच्चे सो रहे थे, उस ने छोटे बेटे आकाश को जगा कर कहा कि तुम्हारी मम्मी ने बुलाया है, मैं कुछ देर में आ जाऊंगा.
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रात 11 बजे वह कोल्डड्रिंक ले कर छाया के पास पहुंच गया. छाया ने पुष्पेंद्र से बोतल ले ली. वह बोतल ले कर किचन में गई और 2 गिलासों में कोल्डड्रिंक ले कर आ गई. उस ने पुष्पेंद्र वाले कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां घोल दी थीं.
दोनों पलंग पर लेट कर प्यारमोहब्बत की बातें करने लगे. कोल्डड्रिंक पीने के बाद पुष्पेंद्र को नींद आ गई. जब वह गहरी नींद में सो गया तो छाया ने योजनानुसार अपने प्रेमी संतोष शास्त्री को फोन कर के घर बुला लिया.
संतोष छाया के फोन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फोन आते ही वह छाया के घर पहुंच गया. दोनों ने मिल कर सो रहे पुष्पेंद्र को दबोच लिया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. गला घोंटने के दौरान छाया पुष्पेंद्र के दोनों हाथ पकड़े रही.
रात में ही शव को ठिकाने लगाना था, क्योंकि दूसरे दिन गंगा दशहरा था. संतोष ने पुष्पेंद्र की मोटरसाइकिल पर लाश इस तरह बैठी स्थिति में रखी, जिस से वह जिंदा लगे. छाया उस के पीछे बैठ गई.
रात में ही संतोष और छाया उसे बाइक से शिकोहाबाद भूड़ा नहर पर लाए और बालाजी मंदिर की ओर ले गए रात में वह जगह सुनसान रहती थी. दोनों ने पुष्पेंद्र के शरीर से कपड़े उतारने के बाद उस के कपड़े और मोबाइल बाइक पर रख दिए. फिर दोनों ने शव को नहर में फेंक दिया. जल्दबाजी में उन्होंने लाश नहर के किनारे पर ही डाल दी थी, जिस से वह पानी के तेज बहाव में नहीं बह सकी.
सुबह नहर पर मेला लगा और लोग नहर में नहाने के लिए पहुंचे. युवकों की एक टोली जब नहा रही थी, तभी एक युवक के पैर के नीचे पुष्पेंद्र का शव आ गया, जिसे नहर के बाहर निकाल कर पुलिस को सूचना दी गई.
पुलिस ने पुष्पेंद्र हत्याकांड में उस की पत्नी छाया, उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुष्पेंद्र के दोनों बच्चे अपने ताऊ महेशचंद्र के पास रह रहे हैं.
छाया ने वासना में अंधी हो कर पति की हत्या कर अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं अपनी हंसतीखेलती गृहस्थी के साथ अबोध बच्चों से भी दूर हो गई. -कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद का एक थाना है शिकोहाबाद. इस थाना क्षेत्र में एक गांव है भूड़ा, जो हाइवे के किनारे बसा है. भोगनीपुर नहर इस गांव से हो कर गुजरती है. इसी वजह से अधिकतर लोग इस नहर को भूड़ा नहर के नाम से जानते हैं.
हर साल देश भर में ज्येष्ठ माह की 10वीं तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है, खासकर उन जगहों पर जहां गंगा या गंगनहर पास होती है. हर साल की तरह इस साल भी भूड़ा नहर पर गंगा दशहरे का भव्य मेला लगा था. इस मौके पर लोग स्नान के लिए सुबह से ही भूड़ा नहर पर आने लगे थे. मेले में धीरेधीरे भीड़ बढ़ने लगी थी.
सुबह लगभग 8 बजे शिकोहाबाद नगर के रहने वाले युवकों की एक टोली नहाने के लिए नहर पर पहुंची. नहर किनारे की पूर्वी पटरी से कुछ ही दूरी पर बालाजी मंदिर है. उन युवकों ने बालाजी मंदिर से थोड़ा पहले नहर की पटरी के किनारे एक मोटरसाइकिल खड़ी देखी.
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मोटरसाइकिल पर कपड़ों के अलावा एक मोबाइल भी रखा था. युवकों ने सोचा कि मोटरसाइकिल वाला नहर में नहाने गया होगा. उस ने अपनी मोटरसाइकिल, कपड़े और मोबाइल यहां छोड़ दिया होगा.
युवकों की टोली नहर की पटरी पर कपड़े रख कर नहाने के लिए नहर में उतर गई. नहाते समय एक युवक के पैर में कुछ उलझा तो उस ने अपने साथियों से कहा कि नहर में कुछ है, जो उस के पैरों से टकराया है.
इस पर उस के साथी वहां आ गए. पास आने पर उन के पैरों में भी कुछ टकराया. उन्हें लगा कि वहां कोई डूबा है. संभव है बाइक वाला ही हो. युवकों में से मनोज ने अपने साथियों की मदद से उसे पानी से बाहर निकाला तो सभी के बदन में पांव से सिर तक शीतलहर सी दौड़ गई.
नहर के पानी से एक युवक की लाश निकली थी, जिस के बदन पर केवल अंडरवियर था. उन लोगों ने अनुमान लगाया कि मोटरसाइकिल डूबने वाले युवक की ही है. उन्हें लगा कि वह मोटरसाइकिल से आया होगा. कपड़े उतार कर नहर में उतर गया होगा, जहां डूबने से उस की मौत हो गई.
मनोज के साथी बंटू ने डायल 100 नंबर पर पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही पुलिस की गाड़ी घटनास्थल पर पहुंच गई. तत्कालीन थानाप्रभारी शिवकुमार शर्मा ने लाश का निरीक्षण किया तो उन्हें युवक की गरदन पर चोट के निशान दिखाई दिए.
साथ ही उस की नाक से खून भी बह रहा था. मनोज ने पुलिस को नहर की पटरी किनारे खड़ी मोटरसाइकिल व उस पर कपड़े व मोबाइल रखा होने की बात बताई.
पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. यह 12 जून, 2019 की सुबह की बात है. लाश देख कर पहली नजर में ही पुलिस को समझ में आ गया था कि मामला हत्या का है.
क्योंकि मृतक की गरदन पर चोट के निशान दिख रहे थे, जिस से यह समझने में देर नहीं लगी कि हत्या को हादसे का रूप देने के लिए ही मृतक की मोटरसाइकिल नहर की पटरी के किनारे सुनसान जगह पर खड़ी की गई थी.
बाइक पर मृतक के कपड़े और मोबाइल भी इसी उद्देश्य से रखे गए थे ताकि देखने पर लगे कि युवक नहाते समय डूब गया. जाहिर है, कोई भी अपनी मोटरसाइकिल और मोबाइल इस तरह लावारिस छोड़ कर नहाने नहीं जा सकता. थानाप्रभारी शिवकुमार शर्मा ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.
शिनाख्त कराने की कोशिश
मृतक कौन और कहां का रहने वाला था, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवक की हत्या कर लाश को रात में नहर में फेंका गया था. जाहिर है यह काम अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता. सूचना मिलने पर सीओ अजय सिंह चौहान और एसडीएम डा. सुरेशचंद्र भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.
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मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू कर दी. इसी प्रयास में महेशचंद्र नाम के एक व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के छोटे भाई पुष्पेंद्र कुमार का है, जो अपने दोनों बच्चों के साथ फिरोजाबाद के थाना उत्तर के कृष्णानगर में रहता है.
वह कल रात घर से मोटरसाइकिल ले कर अपनी ससुराल जाने के लिए निकला था, लेकिन अब तक वापस नहीं आया है. पुलिस ने भाई से घटनास्थल पर पहुंचने को कहा ताकि लाश की शिनाख्त हो सके.
महेशचंद्र की बातों से यह निश्चित हो गया कि लाश उस के भाई पुष्पेंद्र की ही है, साथ ही मोबाइल और बाइक भी. कुछ ही देर में महेशचंद्र ग्राम प्रधान सुनील बघेल व अन्य गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया.
लाश देख कर महेशचंद्र ने रोतेरोते उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पुष्पेंद्र के रूप में कर दी. महेश ने पुलिस को बताया कि पुष्पेंद्र की पत्नी छाया का डेढ़ साल से एक युवक से अफेयर चल रहा है. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था.
बात बढ़ी तो मामला मारपीट तक पहुंच गया. छाया ने पुष्पेंद्र पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था. फिलहाल दोनों के बीच कोर्ट में मुकदमा चल रहा था. मुकदमे के बाद से छाया दोनों बच्चों को छोड़ कर फिरोजाबाद में कबीरनगर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. महेश ने पुष्पेंद्र की हत्या में उस की पत्नी छाया और उस के प्रेमी संतोष का हाथ होने की बात कही.
महेश ने इन दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की पुलिस को एक तहरीर भी दी, लेकिन पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद ही स्थिति स्पष्ट होने पर केस दर्ज करने को कहा. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने पुष्पेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.
मायके में रह रही पत्नी छाया को जब पति की हत्या की जानकारी मिली तो वह सुबह ही घर आए अपने दोनों बेटों आलोक व आकाश को साथ ले कर रोतेबिलखते जिला अस्पताल पहुंच गई. दोनों बच्चे भी पिता की मौत से सदमे में थे.
पति की मौत पर छाया का रोरो कर बुरा हाल था. इस हत्या की खबर सुन कर प्रिंट व इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकार भी पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंच गए थे. छाया ने उन्हें बताया कि 11 जून को मेरे पिता ने बच्चों को फोन कर के कह दिया था कि कल दशहरा है, घर आ जाना.
दशहरे के दिन यानी 12 जून को बच्चों के न आने पर उस ने सुबह फोन किया, लेकिन न तो पति पुष्पेंद्र ने फोन उठाया और न बच्चों ने. इस पर उस ने घर के पड़ोस में रहने वाली रिश्ते की बहन को फोन कर के पूछा कि कोई फोन नहीं उठा रहा है, आप बात करा दो. इस के बाद उस बहन ने छोटे बेटे आकाश को बुला कर बात कराई. उस ने छोटे बेटे से पूछा कि आकाश, पापा और तुम कोई भी फोन नहीं उठा रहे हो, क्या बात है?
आकाश ने कहा कि पापा रात को कहीं गए थे. कह रहे थे, सुबह आएंगे लेकिन अभी तक नहीं आए. छाया ने बताया कि उस ने आकाश से कहा कि तुम दोनों आ जाओ. पापा भी आ जाएंगे, बस इतनी ही बात हुई थी.
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सुबह उसे खबर मिली कि पति का शव शिकोहाबाद भूड़ा नहर में मिला है. छाया ने खुद को बेकसूर बताते हुए कहा कि उस का पति से इसलिए विवाद था कि वह उस के चरित्र पर शक करते थे. पारिवारिक हिंसा की वजह से वह करीब डेढ़ साल से पति से अलग रह रही थी. पहले वह दिल्ली में अपने मामा के घर चली गई थी. लेकिन पिछले 6 महीने से मायके में रह रही थी.
दोनों में हो गया था राजीनामा
पिछले 2 महीनों से मोबाइल पर पति से रात में बात होती थी. मंगलवार 11 जून को भी बात हुई थी. छाया ने बताया कि हम दोनों के बीच राजीनामा हो गया था. मंगलवार को कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई थी, लेकिन जज नहीं बैठे और अगली तारीख मिल गई.
वहां से हम दोनों शिकोहाबाद स्थित बालाजी मंदिर के दर्शन करने चले गए थे. मंगलवार की रात में भी दोनों की मोबाइल पर बातचीत हुई थी. पुष्पेंद्र ने पूछा था कि तुम डेढ़ साल बाद आ रही हो, खाने में क्या बनाओगी? जवाब में छाया ने पति से उस के मनपसंद व्यंजन बनाने की बात कही थी. छाया ने खुद को निर्दोष बताया.
घटना के 2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में पुष्पेंद्र की हत्या का कारण गला घोंटना बताया गया. इस पर पुलिस ने नरेश की ओर से छाया व उस के प्रेमी संतोष शास्त्री, निवासी झलकारी नगर, थाना उत्तर, फिरोजाबाद के विरुद्ध पुष्पेंद्र की हत्या की रिपोर्ट भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत दर्ज कर ली.
इसी दौरान थानाप्रभारी शिव कुमार शर्मा का स्थानांतरण हो गया. इस चक्कर में पुष्पेंद्र की हत्या हुए एक महीने का समय बीत गया, लेकिन पुलिस नामजद हत्याभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर सकी.
यह देख मृतक के भाई महेश ने अपने गांव रैमजा के प्रधान सुनील बघेल के साथ थाना शिकोहाबाद जा कर पुलिस अफसरों से बात कर के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की. उस ने अफसरों के औफिसों के कई चक्कर काटे. साथ ही एसएसपी सचींद्र पटेल से भी गुहार लगाई. उन्होंने अधीनस्थ अफसरों को पुष्पेंद्र की हत्या के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करने के आदेश दिए.
एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने भी नए थानाप्रभारी अजय किशोर द्वारा थाने का चार्ज लेने के तुरंत बाद पुष्पेंद्र हत्याकांड के आरोपियों के विरुद्ध सबूत जुटा कर उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया. साथ ही सर्विलांस टीम की मदद लेने को भी कहा. एसपी के निर्देश पर तत्काल काररवाई शुरू हो गई.
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पुलिस ने मृतक की पत्नी छाया के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. जब पुलिस ने उस नंबर को ट्रैस किया तो वह संतोष शास्त्री का नंबर निकला. पुष्पेंद्र के मोबाइल की आखिरी लोकेशन कबीरनगर की थी. उस के फोन पर रात में जो अंतिम काल आई थी, वह छाया की थी.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
11 सितंबर, 2019 को सुबह के समय तिलोनिया गांव के कुछ लोग जब गांव के बाहर स्थित तालाब के पास पहुंचे तो उन्हें कीचड़ में फंसी एक कार दिखाई दी. यह गांव राजस्थान के अजमेर जिले के थाना बांदरसिंदरी के अंतर्गत आता था. कार किस की है और यहां कैसे फंस गई, यह सोचते हुए लोग जब कार के पास पहुंचे तो वह लावारिस निकली. कार के ड्राइवर या मालिक का कोई पता नहीं था.
कीचड़ से कार निकालना आसान नहीं था, इसलिए गांव वालों ने गांव से एक ट्रैक्टर ला कर कार को कीचड़ से बाहर निकाला. कार के शीशों पर खून के धब्बे लगे दिखे तो ग्रामीणों को किसी गड़बड़ी का अंदेशा हुआ. उन्होंने कार के शीशों से अंदर झांक कर देखा. सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. आननफानन में फोन कर के यह सूचना थाना बांदरसिंदरी को दी गई.
कार में लाश मिलने की सूचना पा कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. तब तक लाश देखने के लिए आसपास के गांवों के तमाम लोग आ चुके थे. पुलिस ने जांच की तो मृतक का चेहरा किसी वजनदार चीज से कुचला हुआ मिला. इस के अलावा उस के शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे, शरीर कई जगह से गुदा हुआ था.
थानाप्रभारी ने लोगों से मृतक के बारे में पूछा तो तिलोनिया के एक व्यक्ति ने लाश पहचान ली. उस ने बताया कि यह लाश माला गांव के रहने वाले फौजी प्रधान गुर्जर की है, कार भी उसी की है. पुलिस ने किसी तरह मृतक के घर वालों का फोन नंबर हासिल कर उन्हें सूचना दे दी.
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सूचना पा कर मृतक के पिता गोप गुर्जर अपने परिचितों के साथ मौके पर आ गए. माला गांव से आए गोप गुर्जर ने मृतक की शिनाख्त अपने 35 वर्षीय बेटे प्रधान गुर्जर के रूप में की.
प्रधान गुर्जर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में था. इन दिनों उस की पोस्टिंग सिक्किम में थी. वह कुछ दिन पहले छुट्टी ले कर गांव आया था. गोप गुर्जर ने बताया कि प्रधान 10 सितंबर, 2019 की सुबह अजमेर जाने को कह कर करीब साढ़े 8 बजे घर से कार ले कर निकला था. उस के 2 छोटे भाई अजमेर के पास भूणाबाय स्थित एक डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे थे. प्रधान उन से ही मिलने गया था.
पुलिस को पता चला कि भाइयों से मिलने के बाद प्रधान जब गांव लौट रहा था. तब उस के साथ उस का रिश्ते का भतीजा जीतू उर्फ जीतराम गुर्जर और 2 अन्य लोग थे. पुलिस को यह जानकारी डिफेंस एकेडमी के संचालक शंकर थाकण ने दी थी. प्रधान गुर्जर और उस के तीनों साथी रात के करीब साढ़े 8 बजे एकेडमी से निकले थे, लेकिन घर नहीं पहुंचे थे.
बीएसएफ जवान की हत्या की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया. उन का कहना था कि प्रधान गुर्जर को तो मार ही डाला, साथ ही उस के भतीजे जीतू गुर्जर का भी कोई अतापता नहीं है. कहीं उस का भी तो मर्डर नहीं कर दिया गया.
गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि पुलिस हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी.
डिफेंस एकेडमी से खबर मिलते ही मृतक के छोटे भाई भी घटनास्थल पर आ गए. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. वे समझ नहीं पा रहे थे कि प्रधान की हत्या किस ने और क्यों की.
कार में एक डंडा भी पड़ा हुआ था, जिस पर खून लगा था. मृतक की पैंट उतरी हुई थी और उस की गुदा खून से सनी थी. इस से लगा कि हत्यारों ने वह डंडा मृतक की गुदा में डाला था. मतलब साफ था कि हत्यारा मृतक से बहुत ज्यादा नफरत करता था, तभी उस ने प्रधान की गुदा में लकड़ी का डंडा डालने के अलावा उस के शरीर को जगहजगह से गोद दिया था.
मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोपहर करीब सवा 12 बजे शव को पोस्टमार्टम के लिए किशनगढ़ के राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल भेज दिया. सैकड़ों गांव वाले अस्पताल भी पहुंच गए.
दोपहर करीब 2 बजे ग्रामीणों की भीड़ अचानक बिफर गई. उन्होंने पोस्टमार्टम करने का विरोध किया. उन का कहना था कि मृतक का भतीजा जीतू गुर्जर भी लापता है. पुलिस उस का भी पता लगाए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.
भीड़ कोई हंगामा खड़ा न कर दे, इसलिए एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी भी अस्पताल पहुंच गए. मृतक के घर वाले और अन्य लोग जीतू गुर्जर का पता लगाने तक पोस्टमार्टम न कराने की बात पर अड़े थे.
बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की सूचना मिलने पर क्षेत्रीय विधायक सुरेश टांक और सांसद भागीरथ चौधरी भी राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल पहुंचे. दोनों नेताओं ने मृतक के परिजनों को ढांढस बंधाया और पुलिस अधिकारियों से घटना की जानकारी ली. सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक सुरेश टांक के समझाने के बाद मृतक के परिजन और ग्रामीण पोस्टमार्टम के लिए राजी हुए.
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इस के बाद पुलिस ने डा. गुरुशरण चौधरी, डा. सुनील बैरवा और डा. श्यामसुंदर के मैडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम कराया. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद प्रधान गुर्जर का शव परिजनों को सौंप दिया.
मामला बीएसएफ जवान की हत्या का था, इसलिए एसपी कुंवर राष्ट्रदीप ने इस केस के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी के निर्देशन और सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में थाना बांदरसिंदरी के थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा, थानाप्रभारी (अरांई) विक्रम सेवावत, एसआई इंद्र सिंह, एएसआई कुलदीप सिंह, हैडकांस्टेबल श्रवणलाल, भंवर सिंह, सिपाही जय सिंह, गोपाल, रामगोपाल जाट वगैरह शामिल थे.
लोगों की बातों में कई पेंच थे
एसपी कुंवर राष्ट्रदीप का आदेश पाते ही टीम जांच में जुट गई. मृतक के परिवार वालों से मृतक के अजमेर जाने और शाम को अजमेर से वापस आने की बात सामने आई. इस पर पुलिस ने गेगल और जीवी के टोल बूथों पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाले.
पुलिस टीम ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर यह पता करने की कोशिश कि वह आखिरी बार किस के साथ रहा और किस के संपर्क में था. प्रधान गुर्जर अजमेर के भूणाबाय स्थित जीत डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे अपने भाइयों से भी मिलने गया था. इस बारे में पुलिस ने एकेडमी संचालक शंकर थाकण से भी पूछताछ की.
शंकर थाकण ने बताया कि रात 8 बजे प्रधान गुर्जर के साथ 3 लोग कार से आए थे. इन में एक उन का भतीजा जीतू था. जीतू कार से नीचे उतरा था, जबकि 2 युवक कार में ही बैठे रहे. वे दोनों कार से नीचे नहीं उतरे थे. प्रधान ने शंकर थाकण से अपने भतीजे जीतू का परिचय कराया था.
शंकर ने पुलिस को बताया कि उस ने प्रधान गुर्जर और उस के साथियों को चाय पिलाई थी. कार में बैठे 2 लोगों के लिए चाय कार में ही भेजी गई थी. उन से एकेडमी में आ कर चाय पीने का आग्रह किया गया था, मगर वे कार से नहीं उतरे थे.
चाय पीते समय प्रधान गुर्जर के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. उन्होंने फोन करने वाले से कहा था कि वह तुरंत किशनगढ़ जा कर मिलते हैं. इस के बाद वह उसी समय किशनगढ़ के लिए रवाना हो गए थे. तब तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे.
जबकि प्रधान गुर्जर के पिता गोपी गुर्जर ने पुलिस को बताया कि प्रधान के मोबाइल पर फोन कर के उन्होंने ही उस के घर आने के बारे में पूछा था. तब उस ने बताया था कि वह अजमेर से निकल गया है और थोड़ी देर में घर पहुंच जाएगा. इस के बाद प्रधान का फोन बंद हो गया था.
इस पूछताछ एवं घटनाक्रम से पुलिस को लगा कि प्रधान गुर्जर के साथ जो लोग मौजूद थे, उन्होंने ही रास्ते में उस की हत्या की होगी.
मृतक प्रधान गुर्जर शादीशुदा था. उस के 2 बेटे भी थे, जिन की उम्र क्रमश: 3 साल और डेढ़ साल थी. ऐसे में किसी अवैध संबंध की गुंजाइश भी कम थी.
जांच में पुलिस को पता चला कि प्रधान गुर्जर 10 सितंबर, 2019 को अपने भतीजे जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर निवासी माला गांव और उस के दोस्त रामअवतार व हनुमान निवासी किशनगढ़ के साथ अजमेर दरगाह और पुष्कर घूमने आया था. पुलिस ने तीनों की तलाश की तो वे अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने उन के फोन की कालडिटेल्स और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर आखिर उन्हें ढूंढ ही लिया.
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पुलिस ने जीतू को जयपुर से और उस के दोनों दोस्तों रामअवतार और हनुमान को किशनगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के संबंध में उन तीनों से अलगअलग पूछताछ की. अंतत: उन्होंने अपना अपराध कबूल कर लिया.
पुलिस टीम ने रातदिन एक कर के 24 घंटे में प्रधान फौजी की हत्या के रहस्य से परदा उठा दिया. पूछताछ करने के बाद आरोपियों ने बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी-
24 घंटे में आई पूरी कहानी सामने
अजमेर जिले के उपखंड किशनगढ़ के अंतर्गत एक गांव है माला. यह गांव गुर्जर बाहुल्य है. यहां के अधिकांश गुर्जर खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं दूध का कारोबार करते हैं. गोपी गुर्जर परिवार के साथ इसी गांव में रहते थे. वह खेतीबाड़ी करते थे.
गोपी का बड़ा बेटा प्रधान गुर्जर हंसमुख स्वभाव का गबरू जवान था. पढ़ाई के दौरान ही वह बीएसएफ में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था. बेटे की नौकरी से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई थी. इस के बाद उन्होंने प्रधान की शादी रूपा से कर दी.
इस परिवार की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. प्रधान को जब भी छुट्टी मिलती, वह घर आ जाता था. प्रधान का एक भतीजा था जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर. प्रधान गुर्जर और जीतू गुर्जर के परिवारों में काफी सालों से बोलचाल बंद थी. लेकिन प्रधान और जीतू की आपस में बोलचाल थी.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
अपराध चाहे जैसा भी हो, अपराध ही होता है, सामाजिक समन्वय के विरुद्ध उठाया हुआ कदम, मानवीयता पर प्रहार, हर अपराध की सजा होती है. एक दिन से ले कर आजीवन तक. कालकोठरी से ले कर फांसी तक. वैसे यह भी सही है कि कुछ अपराधी कानून के बारीक छिद्रों का सहारा ले कर बच निकलते हैं और कई अपने दांवपेंचों से कानून की चौखट तक जाते ही नहीं. अश्विनी उर्फ जौनी ऐसा तो नहीं था, लेकिन उस की सोच जरूर कुछ ऐसी ही थी अपने बारे में.
अश्विनी उर्फ जौनी जिला बिजनौर के कस्बा बढ़ापुर का रहने वाला था. पढ़ालिखा, स्वस्थ सुंदर युवक. पिता सुभाष धामपुर की गन्ना सहकारी समिति में नौकरी करते थे. शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले सुभाष ने अश्विनी को एमकौम तक पढ़ाया था. उस ने इंटरमीडिएट श्योहारा के स्कूल से किया. आगे की पढ़ाई के लिए उस के पिता सुभाष ने जौनी को उस के मामा हर्ष के घर दौलताबाद भेज दिया था. वहीं रह कर जौनी ने नजीबाबाद के कालेज से बीकौम और एमकौम की डिग्रियां हासिल कीं.
इस के अलावा मामा के घर रह कर उस ने कई डिप्लोमा भी किए, ताकि मौका मिलने पर किसी अच्छी नौकरी में निकल जाए. पढ़ाई के दौरान ही निकिता से उस की घनिष्ठता बढ़ी. निकिता दौलताबाद की रहने वाली थी. मतलब उस के मामा के गांव की. जौनी और निकिता की निकटता कई सालों तक बनी रही. बाद में यह बात भी सामने आई कि जौनी ने निकिता को प्रपोज किया था, लेकिन उस ने मना कर दिया था.
करीब 4-5 साल पहले की बात है, जब जौनी को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह दिल्ली से सटी औद्योगिक नगरी नोएडा चला गया था. वहां उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अगले 4 साल उस ने नोएडा में ही गुजारे. बीचबीच में घर भी चला जाता था. इस बीच निकिता को एयरहोस्टेस की नौकरी मिल गई थी और वह दुबई चली गई. कहते हैं जौनी और निकिता की फोन पर बराबर बातें होती थीं.
अश्विनी उर्फ जौनी दादा बीचबीच में बढ़ापुर स्थित अपने घर आता रहता था. करीब डेढ़ साल पहले अश्विनी जब घर आया हुआ था, तो उस के साथ एक बड़ा पंगा हो गया था. दरअसल, बढ़ापुर के ही मोहल्ला नोमी में भाजपा नेता भीमसेन का घर था. नेता होने के नाते भीमसेन की इलाके में तो दबंगई तो चलती ही थी, पुलिस विभाग में भी अच्छी पैठ थी.
भीमसेन के बेटे राहुल ने एक अनुसूचित जाति की लड़की से प्रेम विवाह किया था. जौनी और राहुल हमउम्र थे. साथसाथ उठनेबैठने और खानेपीने वाले. जौनी कभीकभी मजाक में राहुल की शादी को ले कर कमेंट कर देता था, जो गलत था. यह बात राहुल को बुरी लगती थी. इसी बात को ले कर एक दिन दोनों में विवाद हो गया.
बात बढ़ी तो राहुल और उस का चचेरा भाई कृष्णा जौनी से उलझ गए. दोनों ओर से मारपीट हुई. एक तरफ 2 भाई थे, दूसरी तरफ अकेला जौनी. इस के बावजूद जौनी दोनों पर भारी पड़ा तो भीमसेन के परिवार के लोग भी झगड़े में कूद पड़े और अश्विनी को नंगा कर के पिटाई कर दी.
बात थाने तक गई. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज न कर के दोनों पार्टियों को थाने बुलाया. यहां भीमसेन की नेतागिरी काम आई. पुलिस ने नेताजी के साथ आए लोगों, उन के बेटे राहुल और भतीजे कृष्णा को सम्मानपूर्वक कुरसियों पर बैठाया, जबकि अश्विनी को न केवल फर्श पर बैठाया गया, बल्कि 2-4 पुलिसिया हाथ भी जमाए गए. बातचीत के बाद पुलिस ने दोनों पार्टियों का लिखित समझौता करा दिया. इतना ही नहीं, पुलिस ने अश्विनी से नेताजी के पैर छू कर माफी भी मंगवाई.
अश्विनी को इस बेइज्जती से गहरी चोट पहुंची. उसे लगा कि इस बेइज्जती को ले कर वह गांव में नहीं रह पाएगा. इसलिए अपनी बेइज्जती का बोझ उठाए वह अपनी नौकरी पर नोएडा चला गया. नोएडा में फिर से काम शुरू करते हुए अश्विनी ने तय किया था कि गालों पर पड़े बेइज्जती के थप्पड़ को वहअपनी मेहनत के बोझ के नीचे दबा देगा.
अश्विनी कालेज टाइम से ही निकिता से प्यार करता था. हो सकता है यह उस का एकतरफा प्यार रहा हो लेकिन यह भी सच है कि उस की उम्मीद टूटी नहीं थी. वजह यह कि निकिता उस से बराबर बात करती थी. दोनों की बातचीत तब भी चलती रही, जब वह एयरहोस्टेस बन कर दुबई चली गई.
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अश्विनी को अपनी मां से बहुत प्यार था. वह मां की हर बात मानता था. इसी साल जून में जब अश्विनी की मां का निधन हो गया तो उसे गांव आना पड़ा. मां की मृत्यु के बाद अश्विनी को लगने लगा था कि वह अनाथ हो गया है. यही वजह थी कि घर में उस का मन नहीं लगता था.
कभी वह कस्बा श्योहारा चला जाता, कभी नजीबाबाद तो कभी नगीना. या फिर वह गांव के हमउम्र लड़कों के साथ उठताबैठता. इस बीच उस ने उन राहुल और कृष्णा से भी दोस्ती गांठ ली थी, जिन की वजह से उस की बेइज्जती हुई थी और वह गांव छोड़ कर नोएडा चला गया था. अश्विनी को जब भी राहुल और कृष्ण मिलते तो वह उन से घुलमिल कर बातें करता, उन्हें नोएडा और दिल्ली की कहानियां सुनाता.
अश्विनी को घर आए 3 महीने हो गए थे. इस बीच उस ने निकिता को कई बार फोन किया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. निकिता दौलताबाद की थी. उस की जानकारी रखने के लिए अश्विनी ने उसी गांव की एक लड़की को बहन बना रखा था.
जब निकिता ने बात नहीं की तो अश्विनी ने अपनी तथाकथित बहन से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह कई महीने पहले दुबई से लौट आई है. उसे यह भी जानकारी मिली कि निकिता की शादी मुरादाबाद के एक लड़के से तय हो गई है.
जौनी के खतरनाक इरादे
इस जानकारी से अश्विनी के दिल को गहरी चोट लगी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि निकिता की शादी से पहले उस से एक बार मिलेगा जरूर. 26 सितंबर, 2019 को अश्विनी और कृष्णा की मुलाकात हुई तो उस ने कृष्णा से कहा, ‘‘मैं पुरानी बातें भूल चुका हूं, तुम भी भूल जाओ. शाम को पीनेपिलाने की महफिल जमाते हैं. राहुल को भी बुला लो.’’
‘‘पार्टी होगी कहां?’’ कृष्णा ने पूछा तो अश्विनी बोला, ‘‘उस की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो. खानेपीने और जगह का इंतजाम मैं खुद कर लूंगा. बस तुम लोग पहुंच जाना. जगह के बारे में मैं फोन कर के बता दूंगा.’’
बातचीत के बाद कृष्णा चला गया. उस ने राहुल से मिल कर कहा, ‘‘जौनी काफी पैसे कमा कर लौटा है. पुरानी बातें भुला देना चाहता है. शाम को पार्टी देने की बात कर रहा था. क्यों न हम भी सब भूलभाल कर उस की पार्टी में शामिल हों, चलेगा न?’’
‘‘ठीक है, पुरानी बातों को भुला देना ही बेहतर है. बता देना, कब कहां चलना है.’’ राहुल ने उस की बातों पर मुहर लगा दी.
शाम को अश्विनी ने फोन कर के कृष्णा को जगह बता दी, साथ ही कह दिया कि उस ने खानेपीने का सारा इंतजाम कर लिया है. अश्विनी ने जो जगह बताई थी, वह बढ़ापुर-जाखरी मार्ग किनारे के जंगल में थी.
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नशा सिर चढ़ कर बोला
कृष्णा और राहुल अपने चाचाताऊ के लड़कों दीपक और रवि को ले कर अश्विनी की बताई जगह पर पहुंच गए. अश्वनी उन सब को मुख्यमार्ग से करीब 200 मीटर अंदर जंगल में ले गया. वहां शराब, बीयर और खानेपीने की चीजों का पूरा इंतजाम था.
थोड़ी देर में पीनापिलाना शुरू हो गया. सब ने जम कर नशा किया. इस बीच छोटीछोटी बातों को ले कर अश्विनी और राहुल में झगड़ा होने लगा. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ी कि नौबत मारपिटाई की आ गई. दोनों ओर के लोग बीयर की बोतलें तोड़ कर खूनखराबे पर उतर आए.
यह देख कृष्णा और राहुल को छोड़ कर बाकी युवक भाग खड़े हुए. ज्यादा नशे की वजह से राहुल और कृष्णा के पैर लड़खड़ा रहे थे. इसी बीच अश्विनी ने कमर से पिस्तौल निकाल कर पहले राहुल को 4 गोलियां मारीं, जिन में से 2 गोलियां उस के सिर में, एक सीने में और 1 पेट में लगी. फिर उस ने 3 गोलियां कृष्णा को मारीं, जो उस के सिर, सीने और पेट में लगीं. कृष्णा और राहुल को मौत के घाट उतार कर अश्विनी वहां से भाग गया.
खूनखराबे में लिपटी इस घटना की जानकारी दीपक ने पुलिस और कृष्णा राहुल के घर वालों को दी. सूचना मिलते ही थाना बढ़ापुर की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल पर पड़ी शराब, बीयर की बोतलों, 2 लाशों और बिखरे खून से अनुमान लगाया जा सकता था कि वहां क्या और कैसे हुआ होगा.
घटना की सूचना मिलने पर नगीना की सीओ अर्चना सिंह और बिजनौर के एसपी (देहात) विश्वजीत श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल की भयावहता को देख कर उन्होंने कई थानों की पुलिस को जंगल में अश्विनी उर्फ जौनी को तलाशने का काम सौंपा.
प्राथमिक काररवाई से निपटने के बाद पुलिस ने राहुल और कृष्णा की लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस बीच भीमसेन ने थाना बढ़ापुर में राहुल और कृष्णा की हत्या का केस दर्ज कराया, जिस में अश्विनी उर्फ जौनी, उस के भाई रंजीत, पिता सुभाष, जौनी के चचेरे भाई रवि और मुरादाबाद निवासी बहनोई को नामजद किया गया.
घटना के अगले दिन बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी और मुरादाबाद रेंज के आईजी रमित शर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह हत्याएं हुई थीं, उस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हर जगह पुलिस तैनाती की वजह से अश्विनी भाग नहीं पाया होगा. संभावना थी कि वह कहीं जंगल में छिपा होगा.
आईजी के निर्देश पर बिजनौर के 20 थानों की पुलिस को अश्विनी को खोजने के लिए लगा दिया गया. जंगल को खंगालने के लिए ड्रोन कैमरे का भी सहारा लिया गया. लेकिन घरपरिवार और रिश्तेदारियों में कहीं भी अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. दरअसल दिनदहाड़े हुए इस हत्याकांड ने बिजनौर के पुलिस महकमे को हिला दिया था. ऊपर से दोनों मृतक भाजपा नेता के सगेसंबंधी थे, जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था.
पुलिस ने अश्विनी को पकड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इस कवायद से हासिल कुछ नहीं हुआ. अश्विनी एक तरह से पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. पुलिस ने शराब पार्टी में शामिल दीपक से भी हर तरह से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया.
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जौनी ने निकिता को उतारा मौत के घाट
पुलिस हर तरह की कोशिशों में लगी थी. इस बीच 5 दिन बीत गए. 30 सितंबर को अश्विनी श्योहारा के निकटवर्ती गांव दौलताबाद पहुंचा और एयरहोस्टेस निकिता के घर में घुस गया. निकिता उस वक्त घर में बैठी टीवी देख रही थी. अंदर जा कर अश्विनी ने निकिता को गोलियों से भून डाला.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
प्रधान वैसे भी कम समय के लिए छुट्टी पर घर आता था, इसलिए वह दुश्मनी नहीं रखता था. प्रधान का कहना था कि भाइयों में अनबन हो सकती है, दुश्मनी नहीं पालनी चाहिए. जीतू की पत्नी बहुत खूबसूरत थी. वह रिश्ते के हिसाब से प्रधान की बहू लगती थी, मगर जीतू की शादी के बाद प्रधान जब छुट्टी पर गांव आया, तब उस ने जीतू की पत्नी को देखा था.
वह पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गया था. वह इतनी खूबसूरत थी कि देखने वाला अपलक देखता रह जाता था. फौजी प्रधान गुर्जर भी उसे देखता रह गया था. जीतू की पत्नी पढ़ीलिखी थी और सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती थी. प्रधान से पहली मुलाकात में ही जीतू की पत्नी खुल गई थी. एक बार बातचीत हुई तो अकसर फौजी उस के आगेपीछे घूमने लगा.
दोनों सोशल मीडिया पर भी एकदूसरे से जुड़े थे. उन दोनों की नजदीकियां देख कर जीतू को जलन होने लगी थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी प्रधान से दूर रहे. जीतू ने पत्नी से कहा भी कि वह प्रधान से बात न किया करे, मगर पत्नी खुले विचारों की थी. उस का कहना था कि बात करना गलत नहीं है. गलत तो बुरी सोच होती है.
पत्नी ने जीतू से कहा कि प्रधान अच्छा आदमी है. वैसे भी वह गांव में रहता कितने दिन है. चंद दिनों के लिए फौज से छुट्टी पर घर आता है. जीतू को ऐसा लग रहा था कि प्रधान से उस की पत्नी के अवैध संबंध हैं, इसीलिए वह उस की बात नहीं मान रही है. पति के सामने ही वह फौजी की प्रशंसा कर रही थी. इस से जीतू को पत्नी पर शक हो गया.
एक बार शक का कीड़ा दिमाग में घुसा तो वह तब तक कुलबुलाता रहा, जब तक उस ने कहर नहीं ढा दिया. पत्नी की जिद और व्यवहार की वजह से जीतू ने पिछले डेढ़दो साल से अपनी पत्नी से बात तक बंद कर रखी थी. कुछ ही दिन पहले जीतू का पत्नी से राजीनामा हुआ था.
पत्नी ने भी सोचा कि पति के कहे मुताबिक चलना सही है, इसलिए उस ने पति को विश्वास दिलाया कि वह प्रधान से बात नहीं करेगी. साथ ही प्रधान से भी कह देगी कि वह उस से बात न करे. पत्नी के इस आश्वासन पर जीतू फिर से पत्नी से हंसनेबोलने लगा.
लेकिन पति से वादा करने के बावजूद जीतू की पत्नी ने प्रधान गुर्जर से बातचीत करना बंद नहीं किया. वह चोरीछिपे मोबाइल पर भी प्रधान से बात कर लेती थी. यह सब बातें जीतू से छिपी न रह सकीं. इस से उसे विश्वास हो गया कि उस की पत्नी जरूर प्रधान के प्यार में फंस गई है.
बस जीतू ने उसी दिन मन ही मन अंतिम निर्णय कर लिया कि अब वह अपने चाचा प्रधान गुर्जर को मौत के घाट उतार कर ही शांत होगा. क्योंकि वह पत्नी को समझासमझा कर वह थक चुका था.
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संदेह के दायरे बड़े होते गए
सितंबर, 2019 के पहले हफ्ते में प्रधान गुर्जर शिलौंग से छुट्टी ले कर गांव आया. प्रधान जीतू की पत्नी से भी मिला. जीतू से यह सहन नहीं हो रहा था. हद तो तब हो गई, जब प्रधान जीतू की पत्नी को अजमेर से अपनी गाड़ी में गांव लाने लगा.
जीतू की पत्नी कोचिंग करने अजमेर जाती थी. प्रधान स्वयं कार ले कर अजमेर जाता और कोचिंग की छुट्टी होने पर जीतू की पत्नी को अपनी कार में बैठा कर गप्पें मारते हुए गांव आता.
जीतू ने यह देखा तो उस का खून खौल उठा. उस ने निर्णय कर लिया कि वह प्रधान गुर्जर को इस तरह योजना बना कर मारेगा कि उस पर किसी को शक तक नहीं होगा.
जीतू ने इस काम को आसान करने के लिए अपने अजीज दोस्तों रामअवतार और हनुमान निवासी किशनगढ़ को अपने साथ मिला लिया. इन लोगों ने फौजी की हत्या के लिए 10 सितंबर, 2019 का दिन चुना गया.
10 सितंबर, 2019 को प्रधान गुर्जर अकेला ही दरगाह जाने के लिए घर से निकला था. किशनगढ़ में उसे उस का भतीजा जीतू मिला. अजमेर दरगाह और पुष्कर दर्शन के लिए वह भी उस के साथ चल दिया. योजना के अनुसार जीतू ने रामअवतार और हनुमान को अजमेर भेज दिया था.
जब प्रधान और जीतू अजमेर पहुंचे तो जीतू के दोस्त रामअवतार और हनुमान उन के साथ हो लिए. जीतू ने प्रधान से कहा, ‘‘चाचा, ये मेरे दोस्त हैं. दोनों जिगरी यार हैं. मैं ने ही इन्हें अजमेर दरगाह और पुष्कर में दर्शन को कहा था.’’
‘‘कोई बात नहीं जीतू, एक से भले दो और दो से भले चार. गाड़ी पर वजन थोड़े ही पड़ेगा.’’ प्रधान ने हंस कर कहा.
प्रधान गुर्जर की कार से चारों पहले अजमेर दरगाह गए. दर्शन के बाद पुष्कर गए और पूजाअर्चना की. पुष्कर से अजमेर लौटने के दौरान सब ने शराब पी और एक होटल पर खाना खाया. इस के बाद प्रधान अपने छोटे भाइयों से मिलने डिफेंस एकेडमी गया.
जीतू तो उस के साथ डिफेंस एकेडमी में गया, लेकिन रामअवतार और हनुमान गाड़ी में ही बैठे रहे. उन्हें डर था कि कोई पहचान न ले. इसलिए दोनों गाड़ी से नहीं उतरे. उन दोनों ने एकेडमी संचालक द्वारा भेजी चाय भी गाड़ी में ही पी थी.
योजनानुसार सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. डिफेंस एकेडमी से चारों गाड़ी में सवार हो कर गांव के लिए रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने फिर शराब पी. इस के बाद मंडावरिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोकी. चारों शराब के नशे में टल्ली थे. तेज आवाज में टेपरिकौर्डर चला कर सब ने जम कर डांस किया. इस के बाद जीतू ने फौजी प्रधान गुर्जर के चेहरे पर पीछे से बेसबाल बैट से हमला कर दिया. वह जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.
बेहोश फौजी की पैंट खोल कर इन लोगों ने उस की गुदा में डंडा चढ़ाया. फौजी तड़प कर रह गया. उस की गुदा से काफी खून भी निकला. इस के बाद इन लोगों ने फौजी को बुरी तरह मारापीटा और जमीन पर घसीटने के बाद गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया.
फौजी की मौत के बाद इन लोगों ने उस की लाश गाड़ी में डाल दी. फिर फौजी की जेबों की तलाशी ली, कार की भी तलाशी ली गई ताकि कोई सबूत न छूट जाए. गाड़ी की आरसी जीतू ने जेब में रख ली. इस के बाद गाड़ी ले कर तिलोनिया की तरफ निकल गए.
हत्यारों की योजना थी कि लाश का चेहरा कुचल कर सुनसान जगह पर फेंक देंगे ताकि शव की शिनाख्त न हो सके. पहचान छिपाने के लिए ही मृतक का चेहरा कुचला गया था. फौजी की हत्या के बाद शव ठिकाने लगाने के बाद हत्यारे तिलोनिया से हरमाड़ा, सुरसुरा होते हुए नागौर और अन्य रास्तों से जयपुर की ओर जाने वाले थे.
आगे की योजना यह थी कि कहीं सुनसान जंगल में शव को ठिकाने लगा दिया जाएगा, लेकिन कार तिलोनिया के तालाब के पास कीचड़ में फंस गई. गाड़ी फंसने से मामला बिगड़ गया और वे सब प्रधान का शव और गाड़ी छोड़ कर चले गए. जातेजाते इन लोगों ने गाड़ी की चाबी, फौजी का मोबाइल फोन साथ ले लिया था.
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तीनों अंधेरे में ही पैदल चल पड़े. रास्ते में इन्होंने गाड़ी की चाबी और आरसी फेंक दी. मोबाइल भी तोड़ कर फेंक दिया. 4-5 किलोमीटर साथ चलने के बाद जीतू जयपुर की तरफ चला गया, जबकि रामअवतार और हनुमान किशनगढ़ चले गए. तीनों अपने घर नहीं गए.
फेसबुक का जहर बना कारण
जीतू ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी और मृतक फौजी प्रधान गुर्जर के अवैध संबंध थे. प्रधान उस से सोशल मीडिया पर चैटिंग कर अश्लील वीडियो भेजने लगा था. इस की जानकारी हुई तो उस ने यह बातप्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को बता दी, लेकिन इस के बावजूद फौजी का रवैया नहीं सुधरा तो मजबूरी में फौजी को ठिकाने लगाना पड़ा.
पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्तों से पूछताछ के बाद प्रैसवार्ता करने का निर्णय लिया. उस दिन एसपी आईजी कार्यालय में एक मीटिंग में व्यस्त थे. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी को शाम 4 बजे प्रैस कौन्फ्रैंस करनी थी, लेकिन इस से पहले ही सोशल मीडिया पर प्रैस नोट की प्रति आ गई. एसपी कुंवर राष्ट्रदीप को जब यह जानकारी मिली तो इस में सिपाही रामगोपाल का नाम सामने आया. उन्होंने रामगोपाल को निलंबित कर दिया.
दरअसल, इस केस को 24 घंटे के अंदर खोलने में सिपाही रामगोपाल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था. इसलिए जैसे ही उस के हाथ इस मामले की प्रैस रिलीज की कौपी लगी तो उस ने वह सोशल साइट पर डाल दी जो वायरल होती हुई प्रैस कौन्फ्रैंस शुरू होने से पहले ही पत्रकारों के पास पहुंच गई थी. सिपाही रामगोपाल का अतिउत्साह उसी को महंगा पड़ गया.
पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के आरोपियों जीतू गुर्जर, रामअवतार और हनुमान को 14 सितंबर, 2019 को अजमेर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 3 दिन के पुलिस रिमांड पर जांच टीम को सौंप दिया गया.
रिमांड के दौरान पुलिस ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद अन्य सबूत जुटाए. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने प्रधान गुर्जर की लाश और गाड़ी दोनों को ठिकाने लगाने की योजना बना रखी थी.
प्रधान की लाश को वे लोग गांव की किसी सुनसान जगह पर ठिकाने लगाना चाहते थे. वहीं गाड़ी को भी गहरी नाड़ी (तालाब) में डुबोने की योजना थी, ताकि वारदात का किसी को पता न चले, लेकिन उन की योजना पर पानी फिर गया.
उधर 16 सितंबर, 2019 को सीमा सुरक्षा बल के जवान प्रधान गुर्जर के परिवार को विभाग की ओर से सहायता राशि सौंप दी गई. बल की ओर से आए अधिकारी ने मृतक प्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को चैंक सौंपा.
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17 सितंबर को पुलिस ने जीतराम, रामअवतार एवं हनुमान को न्यायालय में पेश कर 3 दिन का पुलिस रिमांड बढ़वाया. रिमांड अवधि पूरी होने के बाद तीनों आरोपियों को फिर से 19 सितंबर, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
अश्विनी के पिस्तौल की 7 गोलियां लगने के बाद निकिता दूसरे गेट की ओर भागी, लेकिन गिर पड़ी. जातेजाते उस ने धमकी दी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा.
निकिता पर गोलियां बरसाने के बाद अश्विनी दूसरे गेट से बाहर निकल कर पास ही सड़क पर जाते हुए एक बैटरी रिक्शा में बैठ गया. थोड़ा आगे जा कर वह उतरा और गन्ने के खेत में घुस गया.
निकिता 2 महीने पहले ही शादी के लिए दुबई से घर लौटी थी. उस की शादी मुरादाबाद के मोहल्ला कांशीराम नगर में रहने वाले नीतीश कुमार से तय हुई थी. नीतीश सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर हैं और विशाखापट्टनम में तैनात हैं. नीतीश के कहने पर निकिता ने अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था.
निकिता के पिता हरिओम शर्मा श्योहारा के विदुर ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे. घर वालों ने इस घटना की सूचना हरिओम शर्मा को दी. शर्माजी की बैंक के पास ही थाना था. उन्होंने थाने जा कर यह बात थानाप्रभारी उदय प्रताप को बताई. उदय प्रताप उसी समय पुलिस टीम के साथ दौलताबाद के लिए रवाना हो गए.
बुरी तरह घायल निकिता को श्योहारा के एक प्राइवेट डाक्टर को दिखाया गया. उस डाक्टर ने निकिता को तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने की राय दी. इस के बाद उसे मुरादाबाद के मशहूर कौसमोस अस्पताल ले जाया गया.
भरती होने के बाद अस्पताल के मशहूर डाक्टर अनुराग अग्रवाल ने निकिता का इलाज शुरू किया. उसे 7 गोलियां लगी थीं, जिन में गले में फंसी एक गोली घातक थी. बहरहाल, डा. अनुराग अग्रवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद रात 9 बजे निकिता ने दम तोड़ दिया.
दूसरी ओर पुलिस ने ईरिक्शा के ड्राइवर द्वारा बताए गए गन्ने के खेत के साथसाथ आसपास के सभी गन्ने के खेतों में कौंबिंग की. लेकिन अश्विनी का कोई पता नहीं चला. उसी दिन आईजी (मुरादाबाद जोन) रमित शर्मा ने अश्विनी उर्फ जौनी को पकड़ने या पकड़वाने पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.
पुलिस ने आसपास के शहरों के बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों के अलावा अन्य तमाम जगहों के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
जब 2 दिन और बीत गए तो मुरादाबाद, बरेली परिक्षेत्र के एडीजे अविनाश चंद्र ने अश्विनी पर ईनाम राशि 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख कर दी. इस के बाद पुलिस ने जौनी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं. उस के फोन की लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की गई. लेकिन उस का फोन 26 सितंबर से ही बंद था.
जब पुलिस की सभी कोशिशें बेकार गईं तो बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी ने जिले के सभी पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग की, जिस में तय हुआ कि बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों और आटोरिक्शा, ईरिक्शा के अड्डों पर विशेष रूप से नजर रखी जाए. इस अभियान में संजीव त्यागी खुद भी शामिल हुए.
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3 अक्तूबर को किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि अश्विनी उर्फ जौनी को नगीना के तुलाराम हलवाई की दुकान पर रसगुल्ले खाते देखा गया है. तुलाराम के रसगुल्ले जिला भर में मशहूर हैं.
सूचना मिलते ही पुलिस चौराहे के पास स्थित तुलाराम की दुकान पर पहुंच गई, लेकिन तब तक जौनी वहां से जा चुका था. पूछताछ में पता चला कि जौनी ने वहां बैठ कर 8 रसगुल्ले खाए थे. बाद में वह बराबर में स्थित मोहन रेस्टोरेंट में भी गया था, जहां वह काफी देर बैठा रहा.
पुलिस ने रात में ही तुलाराम हलवाई की दुकान के आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस से यह जानकारी मिली कि चौराहे से जौनी हरिद्वार जाने वाली बस में सवार हुआ था. पुलिस ने हरिद्वार वाली बस को रुकवा कर चैक किया.
साथ ही पूरे नगीना को भी छान मारा. लेकिन अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. वह एक बार फिर पुलिस को चकमा दे गया था. अश्विनी को पकड़ने के लिए बिजनौर पुलिस जो भी कर सकती थी, उस ने किया. फिर भी रही खाली हाथ ही.
5/6 अक्तूबर की रात को बढ़ापुर के थानाप्रभारी कृपाशंकर सक्सेना ने बढ़ापुर की ओर आने वाले वाहनों की चैकिंग के लिए बैरिकेड लगा रखे थे. रात करीब 12 बजे पुलिस ने दिल्ली से आ रही एक बस को रोका. ड्राइवर ने बस सड़क किनारे लगा दी. बस में करीब एक दरजन यात्री थे.
10 दिन के खेल के बाद
कृपाशंकर सक्सेना ने 2 सिपाहियों मोनू यादव और बादल पंवार से बस की चैकिंग करने को कहा. चैकिंग के दौरान यात्री अलर्ट हो कर बैठ गए. कंडक्टर के आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा था. बस के किसी यात्री, यहां तक कि पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि वह एक लाख का ईनामी अश्विनी उर्फ जौनी हो सकता है.
मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा युवक नींद में था, नींद में उस का सिर एक ओर को झुका हुआ था. सिपाही मोनू और बादल ने उस के कंधे पर हाथ रख कर मुंह से कपड़ा हटाया तो वह चौंक कर जागा. वह अश्विनी ही था.
सामने पुलिस को देख अश्विनी को लगा कि उस का खेल खत्म हो गया है. उस ने बिना देर किए कमर से पिस्तौल निकाली और दाईं कनपटी पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. एक धमाके के साथ खून का फव्वारा छूटा और वह एक ओर को लुढ़क गया. पुलिस वाले समझ गए कि वह अश्विनी उर्फ जौनी ही था.
आंखों के सामने एक युवक को सुसाइड करते देख पूरी बस के यात्री सन्न थे. वैसे असलियत यह थी कि अगर अश्विनी के चेहरे पर कपड़ा न होता तो निस्संदेह पुलिस वाले उसे पहचान ही नहीं पाते. वजह यह कि वह पिछले 10 दिनों से छिपताछिपाता घूम रहा था, न खानापीना और न आराम. नहानाधोना तो दूर की बात थी.
बहरहाल, बस खाली करा कर पुलिस ने कंडक्टर से पूछताछ की. उस ने बताया कि जौनी नगीना रेलवे फाटक पर पैट्रोलपंप चौराहे से बस में सवार हुआ था. वह कंडक्टर से आगे वाली सीट पर बैठ गया. उस के पास केवल एक छोटा सा बैग था. कंडक्टर से टिकट लेते समय उस ने कहा था कि उसे बढ़ापुर से पहले उतरना है. इस पर कंडक्टर ने कहा, ‘‘जहां उतरना हो, उतर जाना लेकिन टिकट बढ़ापुर का ही लगेगा.’’
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कंडक्टर से टिकट लेने के बाद उस ने मुंह पर सफेद कपड़ा लपेट लिया था.
पुलिस ने जौनी की लाश की तलाशी ली तो उस के पास यूएस मेड पिस्तौल के अलावा एक बैग मिला. उस के बैग में जैकेट व एक जोड़ी कपड़े थे. साथ ही सैमसंग का मोबाइल, 67 रुपए, 16 कारतूस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और इनकम टैक्स का एक सर्टिफिकेट भी बैग में मिले.
दरअसल, जौनी कहीं से पिस्तौल हासिल कर के अकेला ही अपने दुश्मनों को खत्म करने निकला था. लेकिन उस के सामने 2 दिन में ही कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं. न उस के पास खाना खाने को पैसा था और न सोनेछिपने की जगह. किसी से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी. 26 सितंबर के बाद से उस ने अपना मोबाइल फोन भी इस्तेमाल नहीं किया था. कह सकते हैं कि वह किसी के भी संपर्क में नहीं था.
बहरहाल, जौनी की मौत के बाद पुलिस ने चैन की सांस ली. यह रहस्य ही रहा कि जौनी ने अपनी बेइज्जती के मामले को इतनी लंबी अवधि तक क्यों पाले रखा. जाहिर है जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जो उस के दिल में कांटे की तरह नहीं चुभी, बल्कि छुरी बन कर दिल में उतरी होगी. वरना उच्चशिक्षा प्राप्त जौनी इतना बड़ा खूनी खेल नहीं खेलता.
जो भी हो, जौनी ने 3 कत्ल किए थे. पकड़ा जाता तो निस्संदेह या तो उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती या फिर उस के गले में फांसी का फंदा पड़ता.
लगता है कि इस बात को जौनी अच्छी तरह समझता था और उस ने अपनी मौत की राह पहले ही तय कर ली थी.
जौनी के 2 पत्र
26 सितंबर को राहुल और कृष्णा की हत्या के बाद भीमसेन कश्यप की शिकायत पर पुलिस ने अश्विनी उर्फ जौनी के अलावा उस के पिता, भाई और अन्य को भले ही केस में शामिल कर लिया था, लेकिन हकीकत यह थी कि जौनी खुद अपने घर वालों के व्यवहार से आहत था.
पुलिस को जौनी के लिखे 2 पत्र मिले थे, जिन में से एक उस की पैंट की जेब से मिला था और दूसरा उस के घर से. घर से मिले पत्र में यह बात साफ हो गई कि घर वाले उसे पसंद नहीं करते थे. उसे इस बात का दुख था कि घर वालों ने भी उस की भावनाओं को नहीं समझा.
घर से मिले पत्र में जौनी ने लिखा, ‘मेरी बहन को एक युवक ने छेड़ा तो मैं ने उसे सबक सिखाया. डांस करते हुए बहन की वीडियो बना ली गई तो मैं वीडियो बनाने वाले से भिड़ गया. बहन की शादी में जो बाइक दी गई, वह मैं ने अपने पैसों से, अपने नाम से खरीदी थी. बहन ने दूसरी जगह शादी की तब भी मैं ने पूरी तरह उस का साथ दिया. इस के बावजूद बहन ने मुझे गलत ठहराया.’
इस पत्र में जौनी ने और भी कई मामलों का जिक्र करते हुए घर वालों के गिलेशिकवों का जिक्र किया था. जबकि वह शुरू से ही उन की मदद करता आया था. जौनी की जेब से जो पत्र मिला, उस पत्र को वह पुलिस थाने तक पहुंचाना चाहता था. इस पत्र में उस ने लिखा कि वह जानता है कि उस ने 3 हत्याएं की हैं. लेकिन इस अपराध के लिए वह सरेंडर करना चाहता है.
उस ने आगे लिखा, बढ़ापुर थाने के कुछ पुलिसकर्मी बहुत अच्छे हैं. उन की वह इज्जत करता है. वह सरेंडर करना चाहता है, लेकिन उस के साथ मारपीट न हो, बेइज्जत न किया जाए. पुलिस अच्छा काम कर रही है, मुझे ढूंढ रही है. मैं सरेंडर करने को तैयार हूं.
लेकिन वह अपने इस पत्र को पुलिस तक पहुंचा नहीं पाया. हो सकता है, सुसाइड वाली रात वह सरेंडर करने के लिए ही बढ़ापुर जा रहा हो.
जो भी हो, मामला पत्रों का हो या फेसबुक का, अश्विनी उर्फ जौनी ने स्वयं को पीडि़त साबित करने की कोशिश की. लेकिन पीडि़त होने का मतलब यह नहीं है कि अपराधों की राह पर उतर जाओ.
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