क्या इसी को प्यार कहते हैं?

कमरे के अंदर घुसते ही जगमोहन ने चुपके से दरवाजा बंद कर के रेवती को अपनी बांहों में भरा और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

रेवती छिटकती हुई बोली, ‘‘क्या करते हो, रुको तो…’’

‘‘रेवती, अब मुझे कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि अब तो हम ने शादी भी कर ली है…’’

रेवती ने ताना कसा, ‘‘वाह जी वाह, तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे शादी के इंतजार में ही अब तक रुके हुए थे…’’

‘‘तुम हो ही ऐसी कि देख कर मेरा मन बेकाबू हो जाता है, लेकिन अब तुम बाकायदा मेरी दुलहन हो. आज से हम एकदम नए ढंग से जिंदगी शुरू करेंगे. पहले तुम सज लो…

‘‘अच्छा रुको, मैं खुद तुम्हें सजा कर दुलहन बनाऊंगा, फिर हम दोनों आज अपनी सुहागरात मनाएंगे…’’

यह सुन कर रेवती का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया. उस ने मना करना चाहा, पर जगमोहन उस के कपडे़ उतारने लगा. ब्लाउज उतारने के बाद जगमोहन उसे अपने दहकते होंठों से चूमने लगा.

रेवती के पूरे बदन में जैसे आग सुलग उठी. वह तड़प कर जगमोहन से लिपट गई.

जगमोहन ने रेवती को उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के साथ ही रेवती ने गलबहियां डाल कर उसे भी अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अचानक दरवाजे पर आहट सुन कर जगमोहन ने चौंक कर धीमे से पूछा, ‘‘कौन आया है?’’

‘‘मैं हूं… धर्मशाला का मैनेजर,’’ बाहर से आवाज आई, ‘‘जल्दी से दरवाजा खोलो. बाहर पुलिस वाले खड़े हैं…’’

पुलिस का नाम सुनते ही रेवती एक बार तो डर के मारे पीली पड़ गई. जगमोहन का भी सारा जोश ठंडा पड़ गया. वह बुझबुझ आवाज में रेवती से बोला, ‘‘लगता है, तुम्हारे घर वालों ने थाने में रिपोर्ट कर दी है…’’

इतनी देर में रेवती भी संभल चुकी थी. झटके से उठ कर वह जल्दीजल्दी कपड़े पहनती हुई बोली, ‘‘तो तुम डरते क्यों हो? मैं तुम्हारे साथ हूं न.

‘‘हम दोनों बालिग हैं और कचहरी में शादी कर के कानूनन पतिपत्नी बन चुके हैं. हमें अब कोई नहीं अलग कर सकता…’’

लेकिन दरवाजा खोलते ही रेवती को जैसे सांप सूंघ गया. 2 पुलिस वालों के साथ अपने पिता रमाशंकर और चाचा कृपाशंकर को देखते ही उस की नजर जमीन में गड़ गई.

रेवती के पिता रमाशंकर एक प्राइवेट कंपनी में हिसाबकिताब देखा करते हैं. रेवती उन की सब से बड़ी बेटी है. उस से छोटी 3 और बेटियां थीं शांति, मालती व कांति.

रमाशंकर की पत्नी सालों से बीमार थी, इसलिए अब वे बेटे की ओर से निराश हो चुके थे और बेटियों को ही अपना बेटा सम?ा कर पालपोस रहे थे. उन की सब से छोटी बेटी कांति 8वीं जमात में पढ़ती थी. शांति और मालती इंटर में पढ़ रही थीं. रेवती ने भी घर से भागने के कुछ दिनों पहले ही बीए में दाखिला लिया था.

रमाशंकर चाहते थे कि उन की लड़कियां खूब पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. वे समाज को दिखा देना चाहते थे कि बेटियां बेटों से किसी मामले में कम नहीं होतीं और वे भी सच्चे माने में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं, इसलिए उन्होंने इंटर पास करने के बाद रेवती को आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में भेज दिया था.

बस, यही उन से चूक हो गई. वे यह भूल गए कि जवान लड़केलड़कियों का रिश्ता आग व फूस जैसा होता है और जहां ये दोनों साथ होंगे, कभी न कभी चिनगारी जरूर उठेगी.

रेवती भी जगमोहन का साथ पा कर सुलग उठी. जगमोहन उस से एक साल सीनियर था. देखने में स्मार्ट और घर से अमीर.

देखते ही देखते मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों में प्यार हो गया. रेवती सुबह के 9 बजतेबजते कालेज जाने के लिए तैयार होने लगती और शाम को अकसर लाइबे्ररी या जीरो पीरियड लगने का बहाना कर के देर से घर लौटती, लेकिन बीच का सारा समय जगमोहन के साथ घूमने में बीतता था.

ऐसे ही एकांत के क्षणों में एक दिन भावनाओं में बह कर रेवती ने अपना सबकुछ जगमोहन को सौंप दिया था. इस के बाद यह तकरीबन रोज का सिलसिला बन गया था.

एक दिन अचानक रेवती ने बताया कि वह मां बनने वाली है. यह सुन कर जगमोहन चौंका जरूर था, पर उस ने रेवती का हाथ थाम कर कहा था, ‘पहले हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते, तो ठीक रहता. लेकिन जो भी हो, बदनामी होने के पहले ही हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्या तुम तैयार हो?’

‘मैं तो तैयार हूं, लेकिन मेरे घर वाले इस रिश्ते को कभी नहीं मानेंगे. अब तो बस एक ही उपाय है कि तुम मुझे ले कर यहां से कहीं दूर ले चलो…’

‘यह क्या कह रही हो रेवती? इस से हमारी कितनी बदनामी होगी? हमें घर वालों को मुंह दिखाना भी मुश्किल हो जाएगा…’

‘यानी कि तुम को मुझ से ज्यादा अपने घर वालों की इज्जत प्यारी है? लेकिन एक बात याद रखो, अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं भी कम नहीं हूं, अपनी जान दे दूंगी…’

रेवती के कहने पर ही जगमोहन उसे ले कर ग्वालियर चला गया और एक महीना इधरउधर छिपता हुआ दिन काटता रहा. आखिर एक वकील की मदद से उस की अदालत में शादी हो गई, तब जा कर वह बेफिक्र हो पाया.

लेकिन पकड़े जाते ही रेवती ने अपना असली रंग दिखा दिया और पुलिस के पूछने पर वह सिसकती हुई कहने लगी, ‘‘जगमोहन कई महीनों से डराधमका कर मेरे साथ मुंह काला कर रहा था, फिर जान से मारने की धमकी दे कर वह मुझे यहां भगा लाया. आज डराधमका कर उस ने मेरे साथ कोर्ट में शादी भी कर ली.’’

यह सुनते ही जगमोहन के पैरों तले जमीन सरक गई. वह चिल्ला पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो रेवती, हमारे प्यार को बदनाम मत करो. तुम नहीं जानती कि तुम्हारे बयान से मेरी जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाएगी.’’

लेकिन रेवती ने आंख उठा कर उस की ओर देखा भी नहीं. पुलिस वालों के एक सवाल के जवाब में उस ने अपने पिता और चाचा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं अपने घर जाना चाहती हूं.’’

अदालत के आदेश पर रेवती को उस के पिता के हवाले कर दिया.

जगमोहन अपहरण और बलात्कार के आरोप में हिरासत में जेल में बंद है.

रेवती के इस बरताव ने जगमोहन को जैसे गूंगाबहरा बना दिया है. वह हरदम एक ही बात सोचता रहता है, ‘क्या इसी को प्यार कहते हैं?’

बाबा का सच : अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं.

हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था.

लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी.

मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया.

इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका. मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी.

जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’

उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी.

यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा.

एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया.

जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा.

मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी.

मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं?

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव – भाग 1

अजय कुछ दिन से चुपचुप सा है. समझ नहीं पा रही हूं कि क्या वजह है. मैं मानती हूं कि 18-20 साल की उम्र संवेदनशील होती है, मगर यही संवेदनशीलता अजय की चुप्पी का कारण होगी यह मानने को मेरा दिल नहीं मान रहा. अजय हंसमुख है, सदा मस्त रहता है फिर उस के मन में ऐसा क्या है, जो उसे गुपचुप सा बनाता जा रहा है.

‘‘क्या अकेला बच्चा स्वार्थी हो जाता है, मां?’’

‘‘क्या मतलब…मैं समझी नहीं?’’

सब्जी काटतेकाटते मेरे हाथ रुक से गए. अजय हमारी इकलौती संतान है, क्या वह अपने ही बारे में पूछ रहा है?

‘‘मैं ने मनोविज्ञान की एक किताब में पढ़ा है कि जो इनसान अपने मांबाप की इकलौती संतान होता है वह बेहद स्वार्थी होता है. उस की सोच सिर्फ अपने आसपास घूमती है. वह किसी के साथ न अपनी चीजें बांटना चाहता है न अधिकार. उस की सोच का दायरा इतना संकुचित होता है कि वह सिर्फ अपने सुखदुख के बारे में ही सोचता है…’’ कहताकहता अजय तनिक रुक गया. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा तो मुझे लगा मानो वह कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘मां, आप भी तो उस दिन कह रही थीं न कि आज का इनसान इसीलिए इतना स्वार्थी होता जा रहा है क्योंकि वह अकेला है. घर में 2 बच्चों में अकसर 1 बहन 1 भाई होने लगा है और बहन के ससुराल जाने के बाद बेटा मांबाप की हर चीज का एकमात्र अधिकारी बन जाता है.’’

‘‘बड़ी गहरी बातें करने लगा है मेरा बच्चा,’’ हंस पड़ी मैं, ‘‘हां, यह भी सत्य है, हर संस्कार बच्चा घर से ही तो ग्रहण करता है. लेनादेना भी तभी आएगा उसे जब वह इस प्रक्रिया से गुजरेगा. देने का सुख क्या होता है, यह वह कैसे जान सकता है जिस ने कभी किसी को कुछ दिया ही नहीं.’’

‘‘तो फिर दादी आप से इतनी घृणा क्यों करती हैं? क्या आप उन का अपमान करती रही हैं? जिस का फल वह आप से नफरत कर के आप को देना चाहती हैं?’’

अवाक् रह गई मैं. अजय का सवाल कहां से कहां चला आया था. कुछ दिन पहले वह अपनी दादी के साथ रहने गया था. मैं चाहती तो बेटे को वहां जाने से रोक सकती थी क्योंकि जिस औरत ने कभी मुझ से प्यार नहीं किया वह मेरे खून से प्यार कैसे करेगी? फिर भी भेज दिया था. मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा मेरे कहने पर अपना व्यवहार निर्धारित करे.

20 साल का बच्चा इतना भी छोटा या नासमझ नहीं होता कि उसे रिश्तों के बारे में उंगली पकड़ कर चलाया जाए. रिश्तों की समझ उसे उन रिश्तों के साथ जी कर ही आए तो वही ज्यादा अच्छा है. अजय जितना मेरा है उतना ही वह अपनी दादी का भी है न.

‘‘मां, दादी तुम से इतनी नफरत क्यों करती हैं?’’ अजय ने अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘तुम दादी से ही पूछ लेते, यह सवाल मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’

हंस पड़ी मैं, यह सोच कर कि 3-4 दिन अपनी दादी के साथ रह कर मेरा बेटा यही बटोर पाया था. अब समझी मैं कि अजय इतना चुप क्यों है.

‘‘4 दिन मैं वहां रहा था मां. दादी ने जब भी आप से संबंधित कोई बात की उन की जबान की मिठास कड़वाहट में बदलती रही. एक बार भी उन के मुंह से आप का नाम नहीं सुना मैं ने. बूआ आईं तो उन्होंने भी आप के बारे में कुछ नहीं पूछा. पिछले दिनों आप अस्पताल में रहीं, आप का इतना बड़ा आपरेशन हुआ था. आप का हालचाल ही पूछ लेतीं एक बार.’’

‘‘तुम पूछते न उन से… पूछा क्यों नहीं…तुम्हारे पापा से भी मैं अकसर पूछती हूं पर वह भी कोई उत्तर नहीं देते. मुझे तो इतना ही समझ में आता है कि तुम्हारे पापा की पत्नी होना ही मेरा सब से बड़ा दोष है.’’

‘‘क्यों? क्या तुम्हारी शादी दादी की इच्छा के खिलाफ हुई थी?’’

‘‘नहीं तो. तुम्हारी दादी खुद गई थीं मेरा रिश्ता मांगने क्योंकि तुम्हारे पापा को मैं बहुत पसंद थी.’’

‘‘क्या पापा ने अपनी मां और बहन को मजबूर किया था इस शादी के लिए?’’

‘‘यह बात तुम अपने पापा से पूछना क्योेंकि कुछ सवालों का उत्तर मेरे पास है ही नहीं. लेकिन यह सच है कि तुम्हारी दादी ने हमारे 22 साल के विवाहित जीवन में कभी मुझ से प्यार के दो मीठे बोल नहीं बोले.’’

‘‘तुम तो उन के साथ भी नहीं रहती हो जो गिलेशिकवे की गुंजाइश उठती हो. जब भी हम घर जाते हैं या दादी यहां आती हैं वह आप से ज्यादा बात नहीं करतीं. हां, इतना जरूर है कि उन के आने से पापा का व्यवहार  बहुत अटपटा सा हो जाता है…अच्छा नहीं लगता मुझे… इसीलिए इस बार मैं उन के साथ रहने चला गया था यह सोच कर कि शायद मैं अकेला जाऊं तो उन्हें अच्छा लगे.’’

‘‘तो कैसा लगा उन्हें? क्या अच्छा लगा तुम्हें उन का व्यवहार?’’

‘‘मां, उन्हें तो मैं भी अच्छा नहीं लगा. एक दिन मैं ने इतना कह दिया था कि मां आलू की सब्जी बहुत अच्छी बनाती हैं. आप भी आज वैसी ही सब्जी बना कर खिलाएं. मेरा इतना कहना था कि दादी को गुस्सा आ गया. डोंगे में पड़ी सब्जी उठा कर बाहर डस्टबिन में गिरा दी. भूखा ही उठना पड़ा मुझे. रोेटियां भी उठा कर फेंक दीं. कहने लगीं कि इतनी अच्छी लगती है मां के हाथ की रोटी तो यहां क्या लेने आया है, जा, चला जा अपनी मां के पास…’’

अवाक् रह गई थी मैं. एक 80 साल की वृद्धा में इतनी जिद. बुरा तो लगा था मुझे लेकिन मेरे लिए यह नई बात नहीं थी.

‘‘क्या मैं अपनी मां के हाथ के खाने की तारीफ भी नहीं कर सकता हूं… आप का नाम लिया उस का फल यह मिला कि मुझे पूरी रात भूखा रहना पड़ा, ऐसा क्यों, मां?’’

मैं अपने बच्चे को उस क्यों का क्या उत्तर देती. मन भर आया मेरा. मेरा बच्चा पूरी रात भूखा रहा इस बात का अफसोस हुआ मुझे, मगर इतना संतोष भी हुआ कि मेरे सिवा कोई और भी है जिसे मेरी ही तरह अपमानित कर उस वृद्धा ने घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया. इस का मतलब अजय इसी वजह से जल्दी वापस चला आया होगा.

‘‘मेरे साथ तो तेरी दादी का व्यवहार ऐसा ही है. डोली से निक ली थी उस पल भी उन्होंने ऐसा ही व्यवहार किया था. तुम्हारे पापा ने तुम्हारी बूआ से बस, इतना ही कहा था कि दीदी, जरा शुभा को कुछ खिला देना, उस ने रास्ते में भी कुछ नहीं खाया. पर भाई के शगुन करना तो दूर, मांबेटी ने रोनापीटना शुरू कर दिया और उन के रोनेधोने से घर आए तमाम मेहमान जमा हो गए थे.’’

वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं. वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’, कोई परेशानी तो नहीं…?” उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर. वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…? वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन… शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बस रुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं… यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो… मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे, तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो… और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

अब कोई नाता नहीं : अतुल-सुमित में से कौन बना अपना

Story in Hindi

ए सीक्रेट नाइट इन होटल, झांसे में न आएं लड़कियां

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

कीबोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया.

आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती.

प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. ट्रेनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में.

ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी.

यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे?

एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे.

सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली.

जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी.

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

कोई लौटा दे मेरे: कैसे उजड़ी अशफाक की दुनिया

‘अशफाक अंसारी, वल्द एसआर अंसारी, ऐशबाग, भोपाल, आप को रिहा किया जाता है और पुलिस की गलती के लिए अदालत आप से खेद जाहिर करती है,’ जज साहब का लिखा यह वाक्य पढ़ कर जेलर ने अशफाक को सुना दिया और शाम के 4 बजे उसे रिहा कर दिया गया.

पुलिस द्वारा दिए गए 15 सौ रुपए के साथ जब अशफाक भोपाल लौटा, तो वहां की दुनिया देख कर दंग रह गया. महज 4 सालों में ही उस की दुनिया उजड़ गई थी.

पुलिस की एक छोटी सी भूल ने अशफाक को सड़क पर ला कर पटक दिया था. वह खो गया यादों में…

आज से 4 साल पहले 45 साला अशफाक मंडी में आलू का कारोबार करता था और अपनी बीवी व 4 बच्चों के साथ सुख की जिंदगी गुजार रहा था.

अशफाक की बड़ी बेटी तकरीबन 18 साल की थी, जिस का निकाह उस ने सलमान भाई के बेटे के साथ ठीकठाक किया था. दोनों परिवारों में हंसीखुशी का माहौल था.

उस दिन मंगनी की रस्म अदा होनी थी कि अचानक अशफाक पर मानो तूफान आ गया. वह मंडी से आलू का कारोबार कर दोपहर के एक बजे नमाज अदा कर के उठा ही था कि एक पुलिस वाले ने उसे झट से पकड़ लिया और बोला, ‘अशफाक मियां, तुम्हें थाने में बुलाया गया है.’

अशफाक घर पर सब को बताता हुआ थाने पहुंचा, पर वहां उस से नाम पूछ कर हवालात में डाल दिया गया.

‘थानेदार साहब, मैं ने किया क्या है?’ अशफाक ने मासूमियत से पूछा. ‘ज्यादा भोला मत बन. लड़कियों को छेड़ना, उन की सोने की चेनें छीनना तुम्हारा काम है,’ इंस्पैक्टर उसे धमकाते हुए बोला.

‘साहब, वह अशफाक दूसरा है. वह गुंडा हमारे साथ वाली गली में रहता है. मैं तो आलू वाला हूं,’ अशफाक अपने बारे में सफाई देते हुए बोला.

‘अबे चुप, मैं तेरी नसनस से वाकिफ हूं. भोला बन कर लूटता है,’ यह कहते हुए इंस्पैक्टर ने अशफाक को मजिस्ट्रेट के पास भेजा, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

उस के बाद तारीख पर तारीख और महीनों गुजरते गए. अशफाक को पहले भोपाल और फिर जबलपुर की जेल में भेज दिया गया. इसी बीच एक दिन उसे पता चला कि उस की बेटी की मंगनी टूट गई है.

‘हमें किसी अपराधी की बेटी ब्याह कर नहीं लानी,’ यह बात खुद सलमान ने उसे जेल में मिल कर बताई.

‘आप को तो पता है कि मैं अपराधी नहीं हूं. मुझे दूसरे शख्स की जगह जेल में डाला गया है,’ यह सफाई देते हुए अशफाक थक गया.

‘कुछ भी कह लो भाई. मुझे माफ करना, लेकिन एक अपराधी की बेटी घर में ला कर मुझे अपनी इज्जत का जनाजा नहीं निकलवाना. आप हमें तो माफ ही करना,’ इतना कह कर बगैर उस की बात सुने सलमान लौट गया.

अब तो अशफाक को दोहरी मार झेलनी पड़ी. बीवी और बच्चे जैसेतैसे कर के घर की गाड़ी खींच रहे हैं और वह जेल में सड़ रहा है.

अशफाक ने मुश्किल से अपनी बात जज साहब को बता डाली, ‘साहब, मेरा नाम अशफाक अंसारी, मेरे पिता का नाम एसआर अंसारी है, जबकि दूसरा अशफाक फइमुद्दीन अंसारी का बेटा है. वह ऐशबाग की गली नंबर 412 में रहता है, जबकि मैं 214 में रहता हूं.

मेरा 20 सालों से सब्जी मंडी में आलू का कारोबार है, जबकि वह गुंडागर्दी करता है.’ अशफाक ने जब इतनी बातें बताईं, तो जज साहब ने पूछा, ‘तुम्हारे पास इस बात का कोई सुबूत है?’

‘जज साहब, आप के रिकौर्ड की सारी बातें उस गुंडे से मेल खाती हैं, जबकि मेरा वोटर आईडी कार्ड, राशनकार्ड वगैरह तमाम कागजात घर से मंगवा कर सचाई पता की जा सकती है,’ अशफाक रोते हुए अपनी बात रख रहा था.

‘देखो मियां, हमें तुम से पूरी हमदर्दी है. अगर तुम सही हो, तो हम तुम्हें यकीनन रिहा कर देंगे,’ जज साहब ने उसे हौसला देते हुए कहा.

अब उसे बाइज्जत वापस जेल भेज दिया गया. इस से जेलर और सभी मुलाजिम इज्जत से पेश आने लगे. फिर तो 3-4 तारीख में मामला साफ हो गया. कोर्ट में वकील की दलीलों ने उसे बेकुसूर और इंस्पैक्टर की गलती साबित कर दी.

इंस्पैक्टर को जब पता चला, तो वह असली मुजरिम की खोज में जुट गया, पर इस सब में 4 साल बीत गए.

अशफाक बीती यादों से बाहर निकल आया. अब उस के बीवीबच्चे झुग्गी में बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. मां तो पागल सी हो गई थी.

‘‘घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. मैं काजी साहब से मिल कर सबकुछ सुधार दूंगा. धंधा भी ठीक हो जाएगा.’’ वह सब को दिलासा दे रहा था, पर खुद इंस्पैक्टर पर झंझला रहा था.

जब अशफाक ऐशबाग थाने के सामने से गुजर रहा था, तो वहां उस ने लिखा देखा, ‘पुलिस आप की सुरक्षा में’. हकीकत में पुलिस ने उसे इतनी सुरक्षा दी, जिस की हद नहीं.

यहां नाम ने उसे बदनाम कर दिया. कौन कहता है कि नाम कुछ नहीं है. बस, एकजैसे नाम ने उसे जेल और दूसरे को मौका दिया.

‘बेटीबेटा एकसमान’. इस नारे को पढ़ कर अशफाक टूट गया. उस की बेटी तो बिना गलती के ही पिस गई.

बेटी नहीं होती है, तो सबकुछ ठीक होता है. इस तरह ये सारे फूल उसे शूल की तरह चुभने लगे और वह बिस्तर पर लेट कर फूटफूट कर रोने लगा.

मैडमजी: गीता ने किसे सबक सिखाया

‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोली.

‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.

‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’

‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…

‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन समझाए.’’

प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.

छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी. पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है. आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.

‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर झूठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?

‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझ रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.

जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.

मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.

‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’

घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.

अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.

मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.

‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’

‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चला गया.

समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’

‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है…अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.

मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थी. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोद को भी सबक मिल जाए.

अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ समझाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.

फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.

वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ समझाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.

अब इंतजार था प्रमोदजी का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.

दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अलग पल्लू ठीक कर लिया.

‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.

‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.

उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले, ‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’

‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.

मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आया.

‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’

‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’

‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.

‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.

‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.

प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.

‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.

मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.

मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.

प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…

‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.

‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’

प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.

‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’

प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.

‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मुझे इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मुझ पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’

इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.

‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.

शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

गणतंत्र दिवस स्पेशल: एक 26 जनवरी ऐसी भी

हर रविवार की तरह आज भी मयंक देर तक सोता रहा. दोपहर के तकरीबन 12 बजे आंख खुली तो उस ने अपना मोबाइल फोन टटोलना शुरू किया. मोबाइल फोन का लौक ओपन कर के ह्वाट्सएप चैक किया. देखा कि आज कुछ ज्यादा ही लोगों ने स्टेट्स अपडेट कर रखा है.

देखने से पता चला कि आज 26 जनवरी है, जिस की वजह से सब ने देशभक्ति से जुड़े स्टेटस डाले. तब उसे याद आई कि आज तो उस की पत्नी स्नेहा ने सोसाइटी में एक रंगारंग कार्यक्रम भी रखा है.

हर रविवार को उठने से पहले ही बिस्तर पर चाय मिल जाया करती थी, आज स्नेहा लेट कैसे हो गई? कुछ देर इंतजार करने के बाद उस ने आवाज लगाई, ‘‘स्नेहा, मेरी चाय कहां है?’’

पर कोई जवाब न मिलने से मयंक खीज गया. बैडरूम से निकल कर बाहर जा कर देखा तो कोई था ही नहीं. न बच्चे और न ही स्नेहा. मयंक और ज्यादा गुस्सा होते हुए तेज कदमों से वापस कमरे में गया और फोन उठाया.

जैसे ही उस ने स्नेहा को फोन लगाया, उस की नजर स्टडी टेबल पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से सजाए हुए एक लिफाफे पर पड़ी, जिस पर बहुत ही खूबसूरत तरीके से लिखा हुआ था, ‘एक त्योहार ऐसा भी’.

मयंक ने बिना समय गंवाए वह लिफाफा खोला और पढ़ना शुरू किया:

‘डियर हसबैंड,

‘आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मैं यह घर छोड़ कर जा रही हूं. हमेशा के लिए नहीं, लेकिन 2 महीने के लिए जरूर. कल रात तुम ने मुझ पर हाथ उठाया था. मुझे उस का कोई गम नहीं है, क्योंकि यह कोई पहली दफा नहीं हुआ था जो तुम ने मुझ पर हाथ उठाया, पर कल रात तुम ने बिना मुझे समझे यह दर्द दिया.

‘आप यह भी मत सोचो कि मैं आप से नाराज हूं, इसलिए जा रही हूं. मैं आप से नाराज नहीं हूं. बस मैं जा रही हूं लौट आने के लिए, क्योंकि जब हम बीमार होते हैं तो न चाहते हुए भी कड़वी दवा लेते हैं, क्योंकि हम अच्छे से जानते हैं कि कड़वी दवा ही हमें ठीक कर सकती है. शायद कुछ दिन की ये दूरियां हमारी जिंदगी में हमेशा के लिए नजदीकियां ला दें.

‘कल से जब आप औफिस जाएंगे, तो शायद आप को आप का सामान देने वाला कोई नहीं होगा. बाथरूम में तौलिया भी खुद ले जाना पड़ेगा. शायद आप की जुराब भी जगह पर न मिले, गाड़ी की चाबी भी खुद ही ढूंढ़नी पड़े, शाम को घर आते ही आप की नाइट डै्रस भी जगह पर न हो कर बाथरूम में ही उलटी टंगी मिले. बैड पर एक भी सिलवट पसंद न करने वाले को वैसा ही बैड मिलेगा, जैसा कि वह छोड़ कर गया था.

‘एक आवाज पर चायपानी हाथ में न मिले, खाना खाते वक्त कोई नहीं होगा जो रिमोट ढूंढ़ कर आप को दे दे, रात को नींद खुलने पर प्यास लगने पर पानी का जग भरा हुआ न मिले, सुबह मोबाइल फोन भी डिस्चार्ज मिले, क्योंकि कोई नहीं होगा, जो तुम्हारा मोबाइल फोन चार्ज कर दे.

‘मैं आप को यह नहीं जता रही हूं कि आप मेरे बिना यह काम नहीं कर पाएंगे. बेशक, आप सब हैंडल कर लेंगे, बस यही कि यह सब करते वक्त आप को अहसास होगा कि कोई था जो मेरे बिना कहे सब समझाया करता था कि मुझे कब किस चीज की जरूरत है. क्या मुझे भी उसे पूरा नहीं तो थोड़ा तो समझने की जरूरत है.

‘पिछले 8 सालों से मैं हर रोज तुम्हें और अपने बच्चों को हर तरह की खुशियां देने में ही लगी हूं. मैं तुम से शिकायत नहीं कर रही हूं. बस एक गुजारिश है कि मैं तुम्हारे लिए ही आई हूं, तो क्या तुम मुझे थोड़ा भी नहीं सम झ सकते.

‘मांबाबा के गुजर जाने के बाद जब भैयाभाभी ने मेरी तुम से शादी की थी, तब से तुम ही मेरे लिए सबकुछ हो. तुम्हारे औफिस में बिजी रहने के चलते इस अनजान शहर मैं हर सामान लेने के लिए भटकती हूं.

‘‘मैं तुम्हें कोई दोष नहीं दे रही हूं, बस यही कहना चाहती हूं कि तुम मुझे समझ जाओ, क्योंकि तुम ही हो जो मुझे समझ सकते हो. मेरे लिए भी यहां से जाना इतना आसान नहीं था, पर मैं यहां से जा रही हूं. अपना खयाल रखना.

‘तुम्हारी संगिनी.’

यह चिट्ठी पढ़ने के बाद मयंक के चेहरे का तो जैसे रंग ही उड़ गया. उस ने फौरन मोबाइल पर स्नेहा का नंबर डायल किया और आवाज आई, ‘जिस नंबर से आप संपर्क करना चाहते हैं, वह या तो अभी बंद है या नैटवर्क क्षेत्र से बाहर है. लगातार डायल करने पर भी यही जवाब मिला.

अलमारी चैक की तो स्नेहा का पर्स भी नहीं था. स्कूटी भी घर में ही थी. घर से बाहर निकल कर पड़ोसी मिश्राजी से पूछा कि स्नेहा कुछ बोल कर गई है क्या?

मिश्राजी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं मयंक बेटा, कुछ बोल कर तो नहीं गई, पर जाते वक्त मैं ने उसे देखा था. दोनों बच्चों के साथ और एक बैग ले कर गई है.’’

मयंक के तो हाथपैरों ने जैसे जवाब ही दे दिया. उसे हर वह बात याद आ रही थी, जब उस ने स्नेहा पर अपना गुस्सा निकाला. उसे अपशब्द बोले.

बालों में हाथ फेरता हुआ मयंक वहीं बरामदे में बैठ गया. न जाने कौनकौन सी बातें उस के जेहन में आ रही थीं. वक्त का तो जैसे उसे पता ही नहीं चला. बेमन से उठ कर रूम में आया तो देखा कि गैलरी का गेट खुला होने के चलते रूम पर जैसे मच्छरों ने ही कब्जा कर लिया हो. मच्छर भागने की मशीन चालू करने गया तो देखा रिफिल खत्म हो चुकी है और कमरे में तो मच्छरों की पार्टी शुरू हो गई थी.

बहुत ढूंढ़ने के बाद फास्ट कार्ड मिला, उसे जलाया और लेट गया. पर फास्ट कार्ड की बदबू उसे और भी गुस्सा दिला रही थी. कुछ अजीब सा मुंह बनाने के बाद उसे अहसास हुआ कि कुछ अच्छी महक आ रही है. उस ने तेज कदमों के साथ नीचे जा कर देखा तो स्नेहा किचन में काम कर रही थी. उसे कुछ भी समझ नहीं आया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि खुश होवे या गुस्सा करे.

मयंक ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘तुम तो चली गई थी न, फिर वापस क्यों आई?’’

स्नेहा बोली, ‘‘कहां चली गई थी? मुझे कुछ सम झ नहीं आ रहा है. क्या बोल रहे हो? कहां चली गई थी?’’

मयंक चिढ़ते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो दिनभर से कहां थी? बैग ले कर गई थी न, और वह चिट्ठी जो मेरे लिए छोड़ कर गई थी.’’

स्नेहा फिर बोली, ‘‘मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो और कौन सी चिट्ठी की बात कर रहे हो?’’

मयंक और गुस्से में आ कर बोला, ‘‘स्नेहा, अब मुझे गुस्सा मत दिलाओ. सचसच बताओ.’’

स्नेहा थोड़ा सा चिढ़ते हुए बोली, ‘‘क्या बताऊं?’’

मयंक ने बिना देर लगाए जेब से चिट्ठी निकाल कर स्नेहा को पकड़ाई और कहा, ‘‘यह चिट्ठी.’’

चिट्ठी हाथ में लेते ही स्नेहा की तो मानो हंसी ही नहीं रुक रही थी. मयंक आंखें फाड़फाड़ कर देख रहा था. कुछ देर तक स्नेहा को हंसते हुए देखकर मयंक ने कहा, ‘‘स्नेहा, जवाब दो मुझे.’’

स्नेहा कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘मैनेजर साहब, यह चिट्ठी आप के लिए नहीं है. यह तो आज 26 जनवरी पर हमारी महिला मंडली ने सुबह झंडा फहराने और उस के बाद उसे सैलिब्रेट करने और उस में मेहंदी या बैस्ट डै्रस प्रतियोगिता की जगह एक कहानी प्रतियोगिता रखी है, जिस में सब को एक कहानी लिखनी है.

‘‘जो चिट्ठी तुम ने पकड़ रखी है, वह मेरी लिखी हुई कहानी है. सुबह से सब 26 जनवरी को सैलिब्रेट करने की तैयारी के लिए इकट्ठा हुए थे, तो मैं वहां गई थी. और वैसे भी आज छुट्टी थी, तो बच्चे ख्वाहमख्वाह तुम्हें परेशान करते, तो मैं इन्हें भी अपने साथ ले गई.

‘‘पास में ही जाना था तो स्कूटी भी नहीं ले गई. अब प्रतियोगिता टाइम हुआ है तो तैयार होने और यह लिफाफा लेने आई हूं.

‘‘वैसे, तुम्हें क्या हो गया है? ऐसे क्यों बरताव कर रहे हो? चाय नहीं मिली इसलिए क्या? तुम सोए थे तो मैं ने तुम्हें जगाया नहीं… सौरी.’’

कुछ सोचने के बाद मयंक बोला, ‘‘तुम्हारा फोन क्यों स्विच औफ आ रहा था?’’

स्नेहा खीजते हुए बोली, ‘‘यह है न तुम्हारी औलाद, गेम खेलखेल कर बैटरी ही खत्म कर देती है.’’

मयंक मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओके, कोई बात नहीं. तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हें छोड़ आऊंगा और बच्चों को भी मैं संभाल लूंगा. वैसे भी आज तो तुम्हें थोड़ा ज्यादा ही सजना होगा.’’

स्नेहा तैयार हो कर जब सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी, तो मयंक ने कुछ आशिकाना अंदाज में कहा, ‘‘नजर न लग जाए मेरी जान को. बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

स्नेहा हलकी सी मुसकराहट के साथ बोली, ‘‘वैसे, मैं ने कुछ कहा ही नहीं, उस से पहले ही बोल दिए जनाब.’’

पूरे रास्ते मयंक मंदमंद मुसकराता रहा. स्नेहा के पूछने पर भी कुछ नहीं बोला.

जैसे ही स्नेहा कार्यक्रम वाली जगह पर पहुंची, तो मयंक ने पीछे से आवाज लगाई और उस का हाथ पकड़ कर माथे को चूम कर कहा, ‘‘आज तुम यह प्रतियोगिता जीतो या न जीतो, पर आज तुम ने मुझे जरूर जीत लिया है. तुम ने अपने नाम की तरह मुझे बहुत स्नेह दिया है. मैं भी आज तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कभी कोई दुख नहीं दूंगा. हमेशा तुम्हें खुश रखूंगा.’’

स्नेहा की आंखों से आंसू आ रहे थे. वह कुछ भी बोल नहीं पाई. बस उस का मन यही कह रहा था. एक 26 जनवरी ऐसी थी, जिस ने मुझे समझने वाला मेरा हमसफर लौटा दिया.

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