ऐसा प्यार कहां : क्या रेशमा ही पवन की गीता थी

Romantic Story in Hindi: पवन जमीन पर अपने दोनों हाथों को सिर पर रखे हुए ऊकड़ू बैठा था. वह अचरज भरी निगाहों से देखता कि कैसे जयपुर की तेज रफ्तार में सभी अपनी राह पर सरपट भागे जा रहे थे. अचानक एक गरीब लड़का, जो भीख मांग रहा था, एक गाड़ी के धक्के से गिर गया. मगर उस की तरफ मुड़ कर देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. थोड़ी देर तक तो उस लड़के ने इधरउधर देखा कि कोई उस की मदद करने आएगा और सहारा दे कर उठाएगा, मगर जब कोई मदद न मिली तो वह खुद ही उठ खड़ा हुआ और आगे बढ़ गया. उस लड़के को देख पवन ने कुछ देर सोचा और फिर उठ कर सामने रखी बालटी के पानी से मुंह धोया और जेब से कंघी निकाल कर बालों को संवारा.

तभी चाय की दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग आदमी बोले, ‘‘पवन, तुम यहां 2 महीने से चक्कर काट रहे हो. देखो जरा, तुम ने अपना क्या हाल बना रखा है. तुम्हारा शरीर भी कपड़े की तरह मैला हो गया है. यह जयपुर है बेटा, यहां तो सिर्फ पैसा बोलता है. तुम जैसे गांव से आए हुए अनपढ़ और गरीब आदमी की बात कौन सुनेगा. मेरी बात मानो और तुम अपने गांव लौट जाओ.’’

‘‘काका, मुझे किसी की जरूरत नहीं है. मैं अपनी पत्नी को खुद ही ढूंढ़ लूंगा,’’ पवन ने कहा.

‘‘यह हुई न हीरो वाली बात… यह लो गरमागरम चाय,’’ रमेश चाय वाला बोला.

चाय की दुकान और रमेश ही पवन का ठिकाना थे. उस का सारा दिन थाने के चक्कर काटने में बीतता और रात होते ही वह इसी दुकान की बैंच को बिस्तर बना कर सो जाता. वह तो रमेश चाय वाला भला आदमी था जो उसे इस तरह पड़ा रहने देता था और कभी उस पर दया आ जाती तो चायबिसकुट भी दे देता.

अकेले में पवन को उदासी घेर लेती थी. हर दिन जब वह सुबह उठता तो सोचता कि आज तो गीता उस के साथ होगी, मगर उसे नाकामी ही हाथ लगती.

उस दिन की घटना ने तो पवन को एकदम तोड़ दिया था. लंबे समय तक हर जगह की खाक छानने के बाद उसे एक घर में गीता सफाई करते हुए मिली तो उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. वह भाग कर गीता से लिपट गया.

गीता की आंखों में भी पानी आ गया था. तभी गार्ड आ गया और उन दोनों को अलग कर के पवन को धक्के मार कर बाहर कर दिया.

बेचारा पवन बहुत चिल्लाया, ‘यह मेरी गीता है… गीता… गीता… तुम घबराना नहीं, मैं तुम्हें यहां से ले जाऊंगा,’ मगर आधे शब्द उस की जबान से बाहर ही न आ पाए कि कोई भारी चीज उस के सिर पर लगी और वह बेहोश हो गया.

आंखें खुलीं तो देखा कि पवन की जिंदगी की तरह बाहर भी स्याह अंधेरा फैल गया. किसी तरह अपने लड़खड़ाते कदमों से पुलिस स्टेशन जा कर वह मदद की गुहार लगाने लगा और थकहार कर वहीं सड़क किनारे सो गया.

सुबह होते ही पवन फिर पुलिस स्टेशन जा पहुंचा, तभी उन में से एक पुलिस वाले को उस की हालत पर तरस आ गया. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे कहने पर चलता हूं, पर यह बात झूठ नहीं होनी चाहिए.’’

पुलिस को ले कर पवन उसी घर में पहुंचा और गीता के बारे में पूछा. वहां के मालिक ने कहा, ‘हमारे यहां गीता नाम की कोई लड़की काम नहीं करती.’

‘आप उसे बुलाएं. हम खुद ही उस से बात करेंगे,’ हवलदार ने डंडा लहराते हुए रोब से कहा.

अंदर से डरीसहमी एक लड़की आई. उसे देखते ही पवन चिल्लाया, ‘साहब, यही मेरी गीता है. गीता, तुम डरना नहीं, इंस्पैक्टर साहब को सबकुछ सचसच बता दो.’

‘क्या नाम है तेरा?’

‘साहब, मेरा नाम सपना है.’

‘क्या यह तुम्हारा पति है?’

‘नहीं साहब, मैं तो इसे जानती तक नहीं हूं.’

पवन भौचक्का सा कभी गीता को तो कभी पुलिस वाले को देखता रहा.

तभी पुलिस वाला बोला, ‘सौरी सर, आप को तकलीफ हुई.’

सभी लोग बाहर आ गए.

पवन कहता रहा कि वह उस की पत्नी है, पर किसी ने उस की न सुनी. सब उस से शादी का सुबूत मांगते रहे, पर वह गरीब सुबूत कहां से लाता.

‘‘पवन… ओ पवन, कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं,’’ रमेश चाय वाले की यह बात सुन कर पवन अपने दिमाग में चल रही उथलपुथल से बाहर आ गया. वह अपना सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘हां, बोलो.’’

तभी रमेश चाय वाले ने उसे चाय का गरमागरम प्याला पकड़ाते हुए कहा, ‘‘कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं और वे गीता जैसी लड़कियों की मदद के लिए एनजीओ चलाती हैं. हो सकता है कि वे हमारी कुछ मदद कर सकें.’’

थोड़ी देर बाद ही वे दोनों मैडम के सामने बैठे थे. मैडम ने पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें पहचानने से क्यों मना कर दिया? अपना नाम गलत क्यों बताया?’’

‘‘मैडम, मैं ने गीता की आंखों से लुढ़कता हुआ प्यार देखा था. उन लोगों ने जरूर मेरी गीता को डराया होगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, तुम शुरू से अपना पूरा मामला बताओ.’’

यह सुन कर पवन उन यादों में खो गया था, जब गीता से उस की शादी हुई थी. दोनों अपनी जिंदगी में कितना खुश थे. सुबह वह ट्रैक्टर चलाने ठाकुर के खेतों में चला जाता और शाम होने का इंतजार करता कि जल्दी से गीता की बांहों में खो जाए.

इधर गीता घर पर मांबाबूजी को पहले ही खाना खिला देती और पवन के आने पर वे दोनों साथ बैठ कर खाना खाते और फिर अपने प्यार के पलों में खो जाते.

मगर कुछ दिनों से पवन परेशान रहने लगा था. गीता के बहुत पूछने पर वह बोला, ‘पहले मैं इतना कमा लेता था कि 3 लोगों का पेट भर जाता था, पर अब 4 हो गए और कल को 5 भी होंगे. बच्चों की परवरिश भी तो करनी होगी. सोचता हूं कि शहर जा कर कोई कामधंधा करूं. कुछ ज्यादा आमदनी हो जाएगी और वहां कोई कामकाज भी सीख लूंगा. उस के बाद गांव आ कर एक छोटी सी दुकान खोल लूंगा.’

‘आप के बिना तो मेरा मन ही नहीं लगेगा.’

‘क्या बात है…’ पवन ने शरारत भरे अंदाज में गीता से पूछा तो गीता भी शरमा गई और दोनों अपने भविष्य के सपने संजोते हुए सो गए.

कुछ दिनों बाद वे दोनों शहर आ गए. वहां उन्हें काम ढूंढ़ने के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा. जल्दी ही एक जगह काम और सिर छिपाने की जगह मिल गई. रोजमर्रा की तरह जिंदगी आगे बढ़ने लगी.

पवन को लगा कि गीता से इतनी मेहनत नहीं हो पा रही है तो उस ने उस का काम पर जाना बंद करा दिया. वैसे भी फूल सी नाजुक और खूबसूरत लड़की ईंटपत्थर ढोने के लिए नहीं बनी थी.

अभी बमुश्किल एक हफ्ता ही बीता था कि जहां पवन काम करता था वहां उस दिन बहुत कम लोग आए थे. वहां के मालिक ने पूछा, ‘क्या हुआ पवन, आजकल तेरी घरवाली काम पर नहीं आ रही है?’

पवन ने अपनी परेशानी बताई तो मालिक बोले, ‘कुछ दिनों से मेरे घर पर कामवाली बाई नहीं आ रही है, अगर तुम चाहो तो तुम्हारी घरवाली हमारे यहां काम कर सकती है और तुम इस काम के अलावा हमारी कोठी में माली का काम भी कर लो.’

पवन को जैसे मनचाहा वरदान मिल गया. सोचा कि इस से पैसा भी आएगा और गीता इस काम को कर भी पाएगी. उस ने गीता को बताया तो वह खुशीखुशी राजी हो गई.

इस तरह कुछ महीने आराम से बीत गए. कुछ ही समय में उन्होंने अपना पेट काट कर काफी पैसे इकट्ठा कर लिए थे और अकसर ही बैठ कर बातें करते कि अब कुछ ही समय में अपने गांव लौट जाएंगे.

मगर वे दोनों अपने ऊपर आने वाले खतरे से अनजान थे. गीता जहां काम करती थी, उन के ड्राइवर की नजर गीता पर थी. उधर मालकिन को गीता का काम बहुत पसंद था. वे अकसर पूरा घर गीता के भरोसे छोड़ कर चली जाती थीं.

रोज की तरह एक दिन पवन जब गीता को लेने पहुंचा और बाहर खड़ा हो कर इंतजार करने लगा. तभी ड्राइवर ने उसे साजिशन अंदर जाने के लिए कहा.

डरतेडरते पवन ने ड्राइंगरूम में पैर रखा तभी गीता आ गई और वे दोनों घर चले गए.

सुबह जब दोनों जैसे ही काम पर निकलने लगे कि देखा, मालिक पुलिस को लिए उन के दरवाजे पर खड़े थे.

‘क्या हुआ?’

‘इंस्पैक्टर, गिरफ्तार कर लो इसे.’

पुलिस ने पवन को पकड़ लिया तो उस ने पूछा, ‘मगर, मेरा कुसूर क्या है?’

‘जब तुम कल इन के घर गए थे तब तुम ने इन के घर से पैसे चुराए थे.’

वे दोनों बहुत समझाते रहे कि ऐसा नहीं है, मगर उन गरीबों की बात किसी ने नहीं सुनी और पवन को 2 महीने की सजा हो गई.

उधर गीता को मालिक ने घर से निकाल दिया. उस का तो बस एक ही ठिकाना रह गया था, वह बरसाती वाला घर और पवन की यादें.

उधर पवन के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत न होने के चलते कोर्ट ने उसे 2 महीने बाद निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

जब पवन जेल से बाहर आया तो सीधे अपने घर गया, मगर वहां गीता का कोई अतापता नहीं था.

आसपास पूछने पर भी कोई बताने को तैयार नहीं हुआ. मगर उसी जगह काम करने वाली एक बुजुर्ग औरत को दया आ गई, ‘बेटा, मैं तुम्हें सबकुछ बताती हूं. तुम जब जेल में थे, उसी दौरान गीता के पास न कोई सहारा, न ही कोई काम रह गया था. तभी यहां के एक ठेकेदार ने उसे अपने घर के कामकाज के लिए रख लिया, क्योंकि वह अकेला रहता था.

‘तन और मन से टूटी गीता की मदद करने के बहाने वह करीब आने लगा. पहले तो वह मन से पास आया, फिर धीरेधीरे दोनों तन से भी करीब आ गए. गीता को अकसर उस के साथ बनसंवर कर घूमते देखा गया.

‘अब तुम्हीं बताओ, कोई अपनी काम वाली के साथ ऐसे घूमता है क्या? मैं ने तो यहां तक सुना है कि काम करतेकरते उस के साथ सोने भी लगी थी. अब इतनी बला की खूबसूरत लड़की के साथ यही तो होगा.

‘जब लोगों ने बातें करना शुरू कर दिया तो एक दिन रात के अंधेरे में सारा सामान ले कर चली गई. पर कुछ समय पहले ही मुझे बाजार में मिली थी. कह रही थी कि यहीं कालोनी के आसपास घरों में काम करती है.’

यह सब सुन कर पवन को बहुत दुख हुआ, पर उन की कही किसी बात पर उसे यकीन नहीं हुआ.

इतना जानने के बाद एनजीओ वाली मैडम ने पवन से आगे की कहानी पूछी.

पवन ने कहा, ‘‘मैं उसे ढूंढ़ता हुआ वहां पहुंच ही गया. मैं ने गीता को एक घर के अंदर जाते हुए देखा. उस ने पहचानने से मना कर दिया,’’ और पवन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

‘‘यह लो पवन, पानी पी लो,’’ मैडम ने कहा, ‘‘तुम ने उस से दोबारा मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?’’

‘‘आप को क्या लगता है कि मैं ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की होगी. पुलिस का कहना है कि जब तक तू शादी का सुबूत नहीं लाता तब तक उस घर क्या गली में भी दिखाई दिया तो तुझे फिर से जेल में डाल देंगे.

‘‘मैं गरीब कहां से शादी का सुबूत लाऊं? मेरी शादी में तो एक फोटो तक नहीं खिंचा था.’’

‘‘ठीक है पवन, हम तुम्हारी जरूर मदद करेंगे,’’ मैडम ने कहा.

कुछ दिन बाद वे मैडम पवन और पुलिस को साथ ले कर गीता से मिलने गई और वहां जा कर पूछा कि आप के यहां गीता काम करती?है क्या?

उन लोगों में से एक ने एक बार में ही सच बयां कर दिया, ‘‘गीता ही हमारे यहां काम करती थी, मगर उस ने अपना नाम सपना क्यों बताया, यह हम नहीं जानते. जिस दिन पवन पुलिस को ले कर आया था. उसी दिन से वह बिना बताए कहीं चली गई और कभी वापस भी नहीं आई.’’

‘‘मैडम, ये सब झूठ बोल रहे हैं. आप इन के घर की तलाशी लीजिए.’’

मगर गीता सचमुच जा चुकी थी. तभी पुलिस ने गार्ड से पूछा, ‘‘क्या तुम ने गीता को जाते हुए देखा था?’’

‘‘हां साहब… उसी दिन रात 10 बजे के आसपास उसे ड्राइवर से बातें करते हुए देखा था.’’

पुलिस ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘कौन सा ड्राइवर?’’

गार्ड बोला, ‘‘साहब, जहां वह पहले काम करती थी वहीं का कोई ड्राइवर अकसर उस से मिलने आताजाता था.’’

पुलिस ने ड्राइवर का पताठिकाना निकाला. पहले तो उस ने मना कर दिया कि वह गीता को नहीं जानता, पर जब सख्ती की गई तो ड्राइवर ने पुलिस को बताया, ‘‘गीता इस घर के पास ही एक और घर में काम करती थी. उस का वहां के आदमी से अफेयर था. वह आदमी गीता की मजबूरी का फायदा उठाता रहा. उस के उस से नाजायज संबंध थे. उस ने तो गीता को अपने ही मकान में एक छोटा कमरा भी दे रखा था.

‘‘रोजाना गहरी होती हर रात को शराब के नशे में धुत्त वह गीता पर जबरदस्ती करता था. गीता चाहती तो गांव वापस जा सकती थी, पर वहां गांव में कुनबे के लिए रोटी बनाने से बेहतर काम उसे यह सब करना ज्यादा अच्छा लगने लगा था, क्योंकि उसे तो पाउडर और लिपस्टिक से लिपेपुते शहरी चेहरे की आदत हो गई थी.

‘‘मगर जब प्रेमी का मन भर गया और उस में कोई रस नहीं दिखाई देने लगा तो एक दिन चुपचाप अपने घर में ताला लगा कर चला गया.

‘‘जब वह 2-4 दिन बाद भी वापस नहीं आया तो गीता ने उस बन रही बिल्डिंग में जा कर उसे ढूंढ़ा लेकिन वहां पर भी उसे निराशा ही हाथ लगी. उस के रहने का ठिकाना भी न रहा.

‘‘उस के जाने के बाद अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह देह धंधे में उतर गई.’’

इतना सुनते ही पवन के होश उड़ गए और वह अपने उस दिन के फैसले पर पछताने लगा कि वे दोनों शहर क्यों आए थे. लेकिन पवन अच्छी तरह जानता था कि ऐसी औरतों के ठिकाने कहां होते हैं.

कुछ दिनों में पुलिस ने फौरीतौर पर छानबीन कर फाइल भी बंद कर दी और मैडम ने भी हार मान ली.

वे पवन को समझाने लगीं, ‘‘उस दुनिया में जाने के बाद सारे प्यार और जज्बात मर जाते हैं. वहां से कोई वापस नहीं आता. जब हम और पुलिस मिल कर कुछ नहीं कर पाए तो तुम अकेले क्या कर पाओगे? अच्छा होगा कि तुम भी गांव वापस चले जाओ और नई जिंदगी शुरू करो.’’

पर, पवन पर तो जैसे भूत सवार था. वह अपनी गीता को किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. वह सारा दिन काम करता और रातभर रैडलाइट एरिया में भटकता रहता.

इसी तरह कई महीने बीत गए, मगर उस ने हार नहीं मानी. एक दिन रात को ढूंढ़ते हुए उस की निगाह ऊपर छज्जे पर खड़ी लड़की पर पड़ी. चमकीली साड़ी, आंखों पर भरपूर काजल, होंठो पर चटक लाल रंग की लिपस्टिक और उस पर से अधखुला बदन. अपने मन को मजबूत कर उस ने उस से आंखें मिलाने की हिम्मत की तो देखा कि तो गीता थी.

पवन दूसरे दिन मैडम को ले कर रैडलाइट एरिया के उसी मकान पर गया और लकड़ी की बनी सीढ़ियों के सहारे झटपट ऊपर पहुंचा और बोला, ‘‘गीता, तुम यहां…’’ और यह कहते हुए उस के करीब जाने लगा, तभी उस ने उसे झटक कर दूर किया और कहा, ‘‘मैं रेशमा हूं.’’

पवन बोला, ‘‘मैं अब तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगा. तुम मेरी गीता हो… केवल मेरी… गीता घर लौट चलो… मैं तुझ से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हें वह हर खुशी दूंगा जो तुम चाहती हो. अब और झूठ मत बोलो.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गीता हो, तुम अपने पवन के पास वापस लौट आओ. तुझे उस प्यार की कसम जो शायद थोड़ा भी कभी तुम ने किया हो. यहां पर तुम्हारा कोई नहीं है. सब जिस्म के भूखे हैं. चंद सालों में यह सारी चमक खत्म हो जाएगी.’’

गीता भी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘पवन, मैं चाह कर भी तुम्हारे साथ नहीं चल सकती. तुम्हारी गीता उसी दिन मर गई थी जिस दिन उस ने यहां कदम रखा था. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हो कि मैं गंदी हो चुकी हूं.’’

पवन उस के और करीब जा कर उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम औरत नहीं, मेरी पत्नी हो, तुम कभी गंदी नहीं हो सकती. जहां वह रहती है वो जगह पवित्र हो जाती है, तुम यहां से निकलने की कोशिश तो करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारा पवन सबकुछ भुला कर नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.’’

गीता भी शायद कहीं न कहीं इस जिंदगी से तंग आ चुकी थी. पवन की बातों से वह जल्दी ही टूट गई. वे दोनों एकदूसरे से लिपट गए और फफक कर रो पड़े. पवन और गीता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने वहां से वापस चल दिए.

मैडम उन को जाते देख बोली, ‘‘जहां न कानून कुछ कर पाया और न ही समाज, वहां इस के प्यार की ताकत ने वह कर दिखाया जो नामुमकिन था. सच में… ऐसा प्यार कहां…’’

प्यार अपने से : झारखंड के शहर की अनोखी कहानी

झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाडि़यों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झाल, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं.

हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी.

उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झांकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी.

लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

हजारीबाग से जाने के पहले लक्ष्मी ने सोमेन से अकेले में कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ सोमेन ने कहा.

‘‘गोपाल आप का ही खून है.’’

सोमेन बोले, ‘‘यह तो मैं यकीनी तौर पर नहीं मान सकता हूं. जो भी हो, पर तुम मुझ से चाहती क्या हो?’’

‘‘बाबूजी, मैं बेटे की कसम खा कर कहती हूं, गोपाल आप का ही खून है.’’

‘‘ठीक है. बोलो, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं. बस, यह भी पढ़लिख कर अच्छा इनसान बने. मैं किसी से कुछ नहीं बोलूंगी. आप इतना भरोसा तो मुझ पर कर सकते हैं,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘ठीक है. तुम लोगों के बच्चों का तो हर जगह आसानी से रिजर्वेशन कोटे में दाखिला हो ही जाता है. फिर भी मुझ से कोई मदद चाहिए तो बोलना.’’

इस के बाद सोमेन रांची चले गए. समय बीतता गया. सोमेन की बेटी रिया 10वीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई थी.

बीचबीच में इंस्पैक्शन के लिए सोमेन को हजारीबाग जाना पड़ता था. वे वहीं आ कर बंगले में ठहरते थे. लक्ष्मी भी उन से मिला करती थी. उस ने सोमेन से कहा था कि गोपाल भी 10वीं क्लास के बाद दिल्ली के अच्छे स्कूल और कालेज में पढ़ना चाहता है. उसे कुछ माली मदद की जरूरत पड़ सकती है.

सोमेन ने उसे मदद करने का भरोसा दिलाया था. गोपाल अब बड़ा हो गया था. वे उसे देख कर खुश हुए. शक्ल तो मां की थी, पर रंग गोरा था. छरहरे बदन का साधारण, पर आकर्षक लड़का था. उस के नंबर भी अच्छे आते थे.

रिया के दिल्ली जाने के एक साल बाद गोपाल ने भी दिल्ली के उसी स्कूल में दाखिला ले लिया. सोमेन ने गोपाल की 12वीं जमात तक की पढ़ाई के लिए रुपए उस के बैंक में जमा करवा दिए थे.

रिया गोपाल से एक साल सीनियर थी. पर एक राज्य का होने के चलते दोनों में परिचय हो गया. छुट्टियों में ट्रेन में अकसर आनाजाना साथ ही होता था. गोपाल और रिया दोनों का इरादा डाक्टर बनने का था.

रिया ने 12वीं के बाद कुछ मैडिकल कालेज के लिए अलगअलग टैस्ट दिए, पर वह कहीं भी पास नहीं कर सकी थी. तब उस ने एक साल कोचिंग ले कर अगले साल मैडिकल टैस्ट देने की सोची. वहीं दिल्ली के अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में कोचिंग शुरू की.

अगले साल गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए टैस्ट दिए. इस बार दोनों को कामयाबी मिली थी. गोपाल के नंबर कुछ कम थे, पर रिजर्वेशन कोटे में तो उस का दाखिला होना तय था.

गोपाल और रिया दोनों ने बीएचयू मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. सोमेन गोपाल की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे थे. अब दोनों की क्लास भी साथ होती थी. आपस में मिलनाजुलना भी ज्यादा हो गया था. छुट्टियों में भी साथ ही घर आते थे.

वहां से शेयर टैक्सी से हजारीबाग जाना आसान था. हजारीबाग के लिए कोई अलग ट्रेन नहीं थी. जब कभी सोमेन रिया को लेने रांची स्टेशन जाते थे, तो वे गोपाल को भी बिठा लेते थे और अगर सोमेन को औफिशियल टूर में हजारीबाग जाना पड़ता था, तो गोपाल को वे साथ ले जाते थे. इस तरह समय बीतता गया और गोपाल व रिया अब काफी नजदीक आ गए थे. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा. ’’ कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझे. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझाती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज

है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं

बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझा लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरा तुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

उसका घर: खामोश और वीरान क्यों थी प्रेरणा की जिंदगी

Romantic Story in Hindi : बहुत अजीब थी वह सुबह. आवाजरहित सुबह. सबकुछ खामोश. भयानक सन्नाटा. किसी तरह ही आवाज का नामोनिशान न था. उस ने हथेलियां रगड़ीं, सर्दी के लिए नहीं, सरसराहट की आवाज के लिए. खिड़की खोली, सोचा, हवा के झोंके से ही कोई आवाज हो सकती है. लकड़ी के फर्श पर भी थपथपाया कि आवाज तो हो. कुछ भी, कहीं से सुनाई तो पड़े. पेड़ भी सुन्न खड़े थे, आवाजरहित. उस ने अपनी घंटी बजाई, थोड़ी आवाज हुई…आवाज होती थी, मर जाती थी, कोई अनुगूंज नहीं बचती थी. ये कैसे पेड़ थे. कैसी हवा थी, हरकतरहित जिस में न सुर, न ताल. उस ने खांस कर देखा. खांसी भी मर गई थी जैसे प्रेरणा, उस की दोस्त…अब उस की कभी आवाज नहीं आएगी. वह क्या गई, मानो सबकुछ अचानक मर गया हो. यह सोच कर उस के हाथपैर ठंडे पड़ने लगे. शायद वह प्रेरणा की मौत की खबर को सहन नहीं कर पा रहा था. पिछले सप्ताह ही तो मिली थी उसे वह.

अब तक तो अंतिम संस्कार भी हो गया होगा. हैरान था वह खुद पर. अब तक हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाया उस के घर जाने की. शायद लोगों को उस की मौत का मातम मनाते देख नहीं सकता था, या फिर प्रेरणा की छवि जो उस के जेहन में थी उसे संजो कर रखना चाहता था. अंतिम संस्कार हुए 4 दिन हो चुके थे. तैयार हो कर उस ने गैराज से कार निकाली और भारी मन से चल दिया. रास्तेभर यही सोचता रहा, वहां जा कर क्या कहेगा. आज तक वह किसी शोकाकुल माहौल में गया नहीं. वह नहीं जानता था कि ऐसी स्थिति में क्या कहना चाहिए, क्या करना चाहिए. यही सोचतेसोचते प्रेरणा के घर की सड़क भी आ गई.

उस का दिल धड़कने लगा. दोनों ओर कतारों में पेड़ थे. उस का मन तो धुंधला था ही, धुंध ने वातावरण को भी धुंधला कर दिया था. उस ने अपना चश्मा साफ किया, बड़ी मुश्किल से उस के घर का नंबर दिखाई दिया. घर बहुत अंदर की तरफ था. उस ने कार बाहर ही पार्क कर दी. कार से पांव बाहर रखते ही उस के पांव साथ देने से इनकार करने लगे. बाहर लगे लोहे के गेट की कुंडी हटाते ही, लोहे के टकराव से, कुछ क्षणों के लिए वातावरण में एक आवाज गूंजी. वह भी धीरेधीरे मरती गई. पलभर को उसे लगा, मानो प्रेरणा सिसकियां भर रही हो…

वहां 3 कारें खड़ी थीं. घर के चारों ओर इतने पेड़ लगे थे कि उस के मन के अंधेरे और बढ़ने लगे. एक भयानक नीरवता चारों ओर घिरी थी. लगता था हमेशा की तरह ब्रिटेन की मरियल धूप कहीं दुबक कर बैठ गई थी. बादल बरसने को तैयार थे. मन के भंवर में धंसताधंसता न जाने कब और कैसे उस के दरवाजे पर पहुंचा. दिल की धड़कन बढ़ने लगी. एक पायदान दरवाजे के बाहर पड़ा था. उस ने जूते साफ किए और गहरी सांस ली. उस ने घंटी बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दरवाजा खुला. शायद लोहे के गेट की गुंजन ने इत्तला दे दी होगी. प्रेरणा के पति ने उस के आगे बढ़े हाथ को अनदेखा कर, रूखेपन से कहा, ‘‘अंदर आओ.’’

उस ने अपना हाथ पीछे करते कहा, ‘‘आई एम राहुल. प्रेरणा और मैं एक ही कंपनी में काम करते थे.’’ ‘‘आई एम सुरेश, बैठो,’’ उस ने सोफे की ओर इशारा करते कहा.

सोफे पर बैठने से पहले राहुल ने नजरें इधरउधर दौड़ाईं और कुछ बिखरी चीजें सोफे से हटा कर बैठ गया. राहुल को विश्वास नहीं हुआ, हैरान था वह, क्या सचमुच यह प्रेरणा का घर है. यहां तो उस के व्यक्तित्व से कुछ भी तालमेल नहीं खाता. दीवारें भी सूनीसहमी खड़ी थीं. उन पर न कोई पेंटिंग, न ही कोई तसवीर. अखबारों के पन्ने, कुशन यहांवहां बिखरे पड़े थे. टैलीविजन व फर्नीचर पर धूल चमक रही थी. बीच की मेज पर पड़े चाय के खाली प्यालों में से चाय के सूखे दाग झांकझांक कर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे थे. हर तरफ वीरानगी थी. लगता था मानो घर की दीवारें तक मातम मना रही हों. दिलों के विभाजन की गंध सारे घर में फैली थी. अचानक उस की नजर एक कोने में बैठे 2 उदास कुत्तों पर पड़ी जो सिर झुकाए बैठे थे. शायद वे भी प्रेरणा की मौत का मातम मना रहे थे.

‘‘राहुल, चाय?’’ ‘‘नहींनहीं, चाय की आवश्यकता नहीं, आ तो मैं पहले ही जाता, सोचा, अंतिम संस्कार के बाद ही जाऊंगा, तब तक लोगों का आनाजाना कुछ कम हो जाएगा.

‘‘वैसे, प्रेरणा ने आप का जिक्र तो कभी किया नहीं. हां, अगर आप पहले आ जाते तो अच्छा ही रहता, आप का नाम भी उस के चाहने वालों की सूची में आ जाता. सच पूछो तो मैं नहीं जानता था कि हिंदी में कविता और कहानियों की इतनी मांग है. क्या आज के युग में भी सभ्य इंसान हिंदी बोलता या पढ़ता है?’’ प्रेरणा के पति ने बड़े पस्त और व्यंग्यात्मक लहजे में कहा. ‘‘प्रेरणा तो बहुत अच्छा लिखती थी. उस की एकएक कविता मन को छू लेने वाली है. व्यक्तिगत दुखसुख व प्रेम के रंगों की सुगंध है. ऐसी संवदेनाएं हैं जो पाठकों व श्रोताओं को आपबीती लगती हैं. आप ने तो पढ़ी होंगी,’’ राहुल ने कहा.

इतना सुनते ही एक कुटिल छिपी मुसकराहट उस के चेहरे पर फैल गई. उस ने राहुल की बात को तूल न देते हुए संदर्भ बदल कर कहना शुरू किया, ‘‘अच्छा हुआ, आप वहां नहीं थे. कैसे बेवकूफ बना गई वह मुझे, मैं जान ही नहीं पाया कि मेरी पार्टनर कितनी फ्लर्ट थी. कितने दोस्त आए थे अंतिम संस्कार के मौके पर. उस वक्त हमारे परिवार का समाज के सामने नजरें उठाना दूभर हो गया था. उम्रभर मना करता रहा, ऐसी प्रेमभरी कविताएं मत लिखो, बदनामी होगी, लोग क्या कहेंगे. वही हुआ जिस का डर था. लोग कानाफूसी कर रहे थे, बुदबुदा रहे थे, ‘पति हैं, बच्चे हैं…’ किस के लिए लिखती थी?’’ इतना कह कर कुछ क्षण वह चुप रहा, फिर बिफरता सा बोला, ‘‘राहुल, कहीं वह तुम्हारे लिए तो…’’ उस की जबान बेलगाम चलती रही.

राहुल हैरान था, क्या यह वही दरिंदा है जिस से वह एक बार कंपनी के सालाना डिनर पर मिला था. राहुल कसमसाता रहा, तय नहीं कर पा रहा था कि उस की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए. पलभर को उस का मन किया कि उठ कर चला जाए, फिर मन को समझाते बुदबुदाया, ‘मैं उस के स्तर पर नहीं गिर सकता.’ वक्त की नजाकत को देखते वह गुस्से को पी गया. मन में तो उस के आया कि इस पत्थरदिल से साफसाफ कह दे, हां, हां, था रिश्ता. मानवता के रिश्ते को जो नाम देना चाहो, दे दो. जीवन का सच तो यह है कि प्रेरणा मेरे जीवन में रोशनी बन कर आई थी और आंसू बन कर चली गई.

वहां बैठेबैठे राहुल को एक घंटा हो चुका था. अभी तक घर में अक्षुब्ध शांति थी. चुप्पी को भंग करते राहुल ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, बच्चे दिखाई नहीं दे रहे?’’ ‘‘श्रुति तो कालेज गई है, रुचि सहेलियों के साथ बाहर गई है. सारा दिन घर में बैठ कर करेगी भी क्या. मैं उस की मां की मौत को बड़ा मुद्दा बना कर उन की पढ़ाई में विघ्न नहीं डालना चाहता. घर को बिखरते नहीं देख सकता. मेरा घर मेरे लिए सबकुछ है, इसे बनाने में मैं ने बहुत पैसा और जान लगाई है. प्रेरणा ने तो पीछा छुड़ा लिया है सभी जिम्मेदारियों से. बच्चों की पढ़ाई, विवाह, घर का लोन सब मुझे ही तो चुकाना है. इस के लिए पैसा भी तो चाहिए,’’ वह भावहीन बोलता गया.

राहुल ने सबकुछ जानते हुए भी विरोध का नहीं, मौन के हथियार को अपनाना सही समझा. सोचने लगा, जो तुम नहीं जानते, मैं वह जानता हूं. मैं ने ही तो करवाया था प्रेरणा के मकान के लिए इतना बड़ा लोन सैंक्शन. फिर लोन का इंश्योरैंस कराने के लिए उसे बाध्य भी किया. इस सुरेश पाखंडी ने प्रेरणा को बदले में क्या दिया? आंसू, यातनाएं, उम्रभर आजादी से कलम न उठा पाने की बंदिशें? एक मैं ही था जिसे वह पति के नुकीले शब्दों के कंकड़ों से पड़े दाग दिखा सकती थी. उस की हंसी तक खोखली हो चुकी थी. अकसर वह कहती थी कि उसे अपना घर कभी अपना नहीं लगा.

वह सीखती रही अशांति में भी शांति से जीने की कला. वह खुद पर मुखौटा चढ़ा कर उम्रभर खुद को धोखा देती रही. राहुल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह प्रेरणा की लिखनेपढ़ने की जगह देखने को उतावला हो रहा था. अभी तक उसे कोई सुराग नहीं मिला था. कभी बाथरूम इस्तेमाल करने का बहाना कर के दूसरे कमरों में झांक कर देखा, कहीं भी स्टडी टेबल दिखाई नहीं दी. राहुल टटोलता रहा. चाय पीतेपीते जब राहुल से रहा नहीं गया, तो हिम्मत बटोर कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, क्या मैं प्रेरणा का अध्ययन करने का स्थान देख सकता हूं. आई मीन, जहां बैठ कर वह पढ़ालिखा करती थी?’’

‘‘क्यों नहीं,’’ वह व्यंग्यात्मक लहजे में बोला, ‘‘आओ मेरे साथ, वह देखो, सामने,’’ उस ने गार्डन में एक खोके की ओर इशारा किया और फिर बोला, ‘‘वह जो आखिर में कमरा है वही था उस का स्टडीरूम.’’ राहुल भलीभांति जानता था कि जिसे वह कमरा कह रहा है वह कमरा नहीं, 5×8 फुट का लकड़ी का शैड है. मुरगीखाने से भी छोटा. शैड को खोलते ही राहुल का दिमाग चकरी की तरह घूमने लगा. शैड के चारों और मकड़ी के जाले लगे थे. सीलन की गंध पसरी थी. शैड फालतू सामान से भरा था. उस की दीवारों पर फावड़ा, खुरपी, कैंची, फौर्क वगैरह टंगे थे.

एकदो पुराने सूटकेस और पेंट के खाली डब्बे पड़े थे. आधा हिस्सा तो घास काटने वाली मशीन ने ले लिया था, बाकी थोड़ी सी जगह में पुराना लोहे का बुकशैल्फ था, जिस पर शायद प्रेरणा किताबें, पैन, पेपर रखती रही होगी. कुछ मोमबत्तियां और बैट्री वाली हैलोजन की बत्तियां पड़ी थीं. दीवार से टिकी 2 फुट की फोल्डिंग मेज और फोल्डिंग गार्डनकुरसी पड़ी थीं.

एक छोटा सा पोर्टेबल हीटर भी पड़ा था. फर्श पर चूहे व कीड़ेमकोडे़ दौड़ रहे थे. बिजली का वहां कोई प्रबंध नहीं था. हां, एक छोटी सी प्लास्टिक की खिड़की जरूर थी जहां से दिन की रोशनी झांक रही थी. अविश्वसनीय था कि कैसे एक इंसान दूसरे से किस हद तक क्रूर हो सकता है. डरतेडरते राहुल ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘भला बिना बिजली के कैसे लिखती होगी? डर भी तो लगता होगा?’’

‘‘डर, वह सामने 2 कुत्ते देख रहे हो, प्रेरणा के वफादार कुत्ते. उस की किसी चीज को हाथ लगा कर तो देखो, खाने को दौड़ पड़ेंगे.

‘‘प्रेरणा के अंगरक्षक या बौडीगार्ड, जो चाहे कह लो. यह कहावत तो सुनी होगी तुम ने, ‘जहां चाह वहां राह? मेरे सामने उसे लिखने की इजाजत ही कहां थी. मुझे तो बच्चों की मां और मेरी पत्नी चाहिए थी, लेखिका नहीं. मैं नहीं चाहता था मेरे घर में कविताओं के माध्यम से प्रेम का इजहार हो. देखो न, अब बेकार हैं उस की सब किताबें. कौन पढ़ना चाहेगा इन्हें? बच्चे तो पढ़ेंगे नहीं. नौकर से कह कर बक्से में रखना ही है. तुम चाहो तो ले जा सकते हो वरना रद्दी वाला ले जाएगा या फिर मैं गार्डन में लोहड़ी जला दूंगा,’’ उस ने क्रूरता से कहा.

राहुल को लगा उस के कानों में किसी ने किरचियां डाल दी हों. राहुल उसे कह भी क्या सकता था, वह प्रेरणा का पति था. बस, बड़बड़ाता रहा, ‘जा, थोड़ा सा दिल खरीद कर ला, कैसा मर्द है समानता का दर्जा तो क्या, उसे उस के हिसाब से जीने का हक तक न दे सका. तुम क्या जानो कुबेर का खजाना. लेखन का भी एक अनूठा नशा होता है. पत्रिका या किताबों पर अपना नाम देख कर अपने लिखे शब्दों को देख कर जो शब्द धुएं की तरह मन में उठते हैं और हमेशा के लिए कागज पर अंकित हो जाते हैं, दुनिया में कोई और चीज उन से अधिक स्थायी नहीं हो सकती.’

‘‘सर, कुछ किताबें तो रख लेते यादगार के लिए.’’ ‘‘यादगार, बेकार की बातें क्यों करते हो. औरत भी कोई याद रखने की चीज है क्या. हां, प्रेरणा ने 2 बच्चियां जरूर दी हैं, उन के लिए मैं आभारी हूं. जानवर भी घर में रहता है तो उस से मोह हो ही जाता है.’’

राहुल अब वहां पलभर भी रुकना नहीं चाहता था. सोचने लगा, इतनी तौहीन, कठोर शब्दों के बाण. शाबाशी है प्रेरणा को, जो ऐसी बंदिशों व घुटनभरी जिंदगी की रेलपेल से पिस्तेपिस्ते भी अपना काम करती रही. भारी मन से गार्डन से अंदर आतेआते राहुल का पांव हाल में पड़े एक खुले गत्ते के डब्बे से टकराया, जिस में से प्रेरणा का सभी सामान और ट्रौफियां उचकउचक कर झांक रहे थे.

‘‘लगी तो नहीं तुम्हें? मैं तो इन्हें देख कर आपे से बाहर हो जाता हूं. नौकर से कह कर इन्हें बक्से में रखवा दिया है. इन्हें कबाड़ी वाले को धातु के भाव दे दूंगा.’’ उस की हृदयहीन बातें राहुल के हृदय को बींधती रहीं. कितनी आसानी से समेट लिया था सुरेश ने सबकुछ. प्रेरणा की 25 वर्षों की मेहनत के अध्याय को चार दिन में अपने जीवन से निकाल कर फेंक दिया था उस ने. अभी तो उस की राख भी ठंडी नहीं हुई थी, उस का तो नामोनिशान तक मिटा दिया इस बेदर्द ने.

इतनी नफरत, आखिर क्यों? फिर वह मन ही मन ही बड़बड़ाने लगा, ‘हो सकता है प्रेरणा की तरक्की से जलता हो. इस का क्या गया, खोया तो मैं ने है अपना सोलमेट. अब किस से करूंगा मन की बातें. कौन सुनेगा एकदूसरे की कविताएं,’ बहुत रोकतेरोकते भी राहुल की आंखें भर्रा गईं. राहुल की भराई आंखें देख कर सुरेश का चेहरा तमतमा उठा, भौंहों पर बल पड़ गए, माथे की रेखाएं गहरा गईं. उस के स्वर में कसैलापन झलका, वह बोला, ‘‘आई सी, राहुल, कहीं तुम वह तो नहीं हो जिस के साथ वह रात को देरदेर तक बातें करती रहती थी, आई मीन उस के बौयफ्रैंड?’’

इतना सुनते ही राहुल की सांस रुक गई. निगाह ठहर गई. उसे लगा जैसे किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो या फिर पंजा डाल कर उस का दिल चाकचाक कर दिया हो. प्रेरणा तो उस की दोस्त थी, केवल दोस्त जिस में न कोई शर्त, न आडंबर, खालिस अपनेपन की गहनता. प्रेरणा के पास नई राह पर चलने का हौसला नहीं था. उस की खामोशी शब्दों में परिभाषित रहती थी. ऐसी थी वह.

राहुल वहां से भाग जाना चाहता था. वह अपनी खामोश गीली आंखों में चुपचाप प्रेरणा की असहनीय पीड़ा को गले लगाए, उस की कुर्बानियों पर कुर्बान महसूस करता अपने घर को निकलने की तैयारी करने लगा. उसे संतुष्टि थी कि अब प्रेरणा आजाद है. उसे याद आया प्रेरणा अकसर कहा करती थी, ‘भविष्य क्या है, मैं नहीं जानती. इतना जरूर जानती हूं कि सीतासावित्री का जीवन भी इस देश में गायभैंस के जीवन जैसा है, जिन के गले की रस्सी पर उस का कोई अधिकार नहीं.’’ जैसे ही राहुल अपना पैर चौखट के बाहर रखने लगा, उस ने दोनों बक्सों की ओर देखा और सोचा, ‘प्रेरणा की 25 वर्षों की अमूल्य कमाई मैं इस विषैले वातावरण में दोबारा मरने के लिए नहीं छोड़ सकता.’’

राहुल ने प्रेरणा के पति की ओर देखते इशारे से पूछा, ‘‘सर, क्या मैं इन्हें ले जा सकता हूं?’’ ‘‘शौक से, लेकिन इन कुत्तों से इजाजत ले लेना?’’

राहुल ने दोनों बक्सों को छूते हुए, कुत्तों की ओर देखा. कुत्ते पूंछ हिला रहे थे. उस ने बक्से कार में रखे. कुत्ते उस के पीछेपीछे कार तक गए, मानो, कह रहे हों प्रेरणा का घर तो कभी उस का था ही नहीं.

एक और अध्याय: आखिर क्या थी दादी मां की कहानी

Story in Hindi

वक्त की साजिश : अनबुझी प्यास

Social Story in Hindi : आज भी वह नौकरी न मिलने की हताशा के साथ घर लौटा. कल ही गांव से खत आया कि आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है. पिताजी से अब काम नहीं होता. वहां कुछ जल्दी करो वरना यहीं आ जाओ. जो 3-4 बीघा जमीन बची है उसी पर खेती करो, उसी को संभालो. आखिर बिट्टी की शादी भी तो करनी है. अब जल्दी कुछ भी करो. उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. 3-4 बीघा जमीन में क्या होगा? कितनी हसरतों से इधरउधर से कर्ज ले कर उस के पिता ने उसे शहर भेजा था कि बेटा पढ़लिख जाएगा तो कोई नौकरी कर लेगा और फिर बिट्टी की शादी खूब धूमधाम से करेंगे…पर सोचा हुआ कभी पूरा होता है क्या?

‘आखिर मेरी भी कुछ अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियां हैं. मैं उन से मुंह तो नहीं मोड़ सकता न. और कब तक यहां नौकरी की तलाश में भटकता रहूंगा. कुछ करना ही पडे़गा.’ वह सोचने लगा, ‘मैं कल ही घर चला जाऊंगा.’

‘पर रंजना?’ खयालों में यह नाम आते ही वह कांप सा गया, ‘क्या कहूंगा रंजना से? क्या मैं उस से अलग रह पाऊंगा?’

‘अलग रहने की जरूरत क्या है, वह भी मेरे साथ चलेगी,’ मन ने सहज उत्तर दिया.

‘साथ चलेगी?’ जैसे उस के मन ने प्रतिप्रश्न पूछा, ‘तुम उसे क्या दे पाओगे. एक उदास, बोझिल सी जिंदगी.’

‘तो क्या उसे छोड़ दूं?’ यह सवाल मन में आते ही वह सिहर सा गया, पर यह तो करना ही पड़ेगा. आखिर मेरे पास है ही क्या जो मैं उसे दे सकता हूं. उसे अपने से अलग करना ही पडे़गा.’

‘पर कैसे?’ वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. इन्हीं खयालों में डूबतेउतराते उसे अपनी छाया से डर लगने लगा था.

कितनी अजीब बात थी कि वह अपनेआप से ही भयभीत था. उसे ऐसा लगने लगा था कि खोना ही उस की नियति है. जो इच्छा उस के मन में पिछले 7 सालों से कायम थी, आज उसी से वह डर रहा था.

कोई नदी अविरल कितना बह सकती है, अगर उस की धारा को समुद्र स्वीकार न करे तो? हर चीज की एक सीमा होती है.

उसे लगा कि वह कमरे में नहीं बल्कि रेत के मैदान पर चल रहा हो. दिमाग में रेगिस्तान याद आते ही उसे वह कहानी याद आ गई.

एक मुसाफिर रास्ता भटक कर रेगिस्तान में फंस गया. उस का गला प्यास से सूखा जा रहा था. वह यों ही बेदम थके कदमों से अपने को घसीटता हुआ चला जा रहा था. वह प्यास से बेहाल हो कर गिरने ही वाला था कि उसे लगा कोई सोता बह रहा है. उस के कदम पुन: शक्ति के साथ उठे दूर कहीं पानी था वह तेजी से उस तरफ बढ़ चला. पास जाने पर पता चला कि वह तो मरीचिका थी.

निराश, थकाहारा वह तपती रेत पर घुटनों के बल बैठ गया. तभी दूर उसे एक झोंपड़ी दिखाई दी. उस ने सोचा शायद उस की प्यास वहां बुझ जाए. वह झोंपड़ी तक पहुंचतेपहुंचते गिरने ही वाला था कि तभी किसी के कोमल हाथ उसे सहारा दे कर झोंपड़ी के अंदर तक ले आए और पूछा, ‘ऐ अजनबी, तू क्यों भटक रहा है? और तुझे किस की चाह है?’

उस के मुंह से केवल 2 शब्द निकले,  ‘पानी, प्यासा.’ इन्हीं शब्दों के साथ वह गिर पड़ा.

उस कोमल हाथ वाले व्यक्ति ने अपनी अंजलि में जल भर कर उसे पिलाया. पानी की चंद बूंदों से उसे होश आ गया पर उस की प्यास अभी बुझी नहीं थी. वह अभी और पानी पीना चाहता था. तभी एक वहशी आवाज उस के कानों में गूंज उठी :

‘कौन है, और यहां क्या कर रहा है? तू किसे पानी पिला रही है? क्या तुझे पता नहीं है कि यह पानी कितनी मुश्किल से यहां तक आता है?’ इतना कह कर उस वहशी आवाज के मालिक ने उस अजनबी को झोपड़ी से बाहर धकेल दिया, और वह फिर उसी रेगिस्तान में भटकने लगा. कहते हैं मरते वक्त उस भटके युवक के होंठों पर यही बात थी कि ऐ अजनबी, जब तुझे प्यासा ही मारना था तो फिर दो घूंट भी क्यों पिलाया?

इस कहानी की तरह ही उसे अपना हाल भी लगा. कहीं वही तो उस कहानी के 2 पात्र नहीं हैं? और वे कोमल हाथ रंजना ही के तो नहीं जो दो घूंट पी कर फिर प्यासा मरेगा इस जन्म में.

उस का मन उस के वश में नहीं हो पा रहा था. वह अपने मन को शांत करने के लिए रैक से कोई पुस्तक तलाशने लगा. एक पुस्तक निकाल कर वह बिस्तर पर लेट गया और किताब के पन्नों को पलटने लगा. तभी पुस्तक से एक सूखा फूल उस की छाती पर गिरा, वह जैसे अपनेआप से ही चीख उठा, ‘यार, यादें भी मधुमक्खियों की तरह होती हैं जो पीछा ही नहीं छोड़तीं.’

अतीत की एक घटना आंखों में साकार हो उठी.

रंजना का हाथ उस की तरफ बढ़ा और उस ने मुसकरा कर उसे सफेद गुलाब यह कहते हुए पकड़ा दिया, ‘मिस्टर अभिषेक, आप के जन्मदिन का तोहफा.’

उस ने हंसते हुए रंजना से फूल ले लिया.

‘जानते हो अभि, मैं ने तुम्हें सफेद गुलाब क्यों दिया? क्योंकि इट इज ए सिंबल आफ प्योर स्प्रिचुअल लव.’

उस ने मुड़ कर बिस्तर पर देखा तो वही फूल पड़ा था. पर अब सफेद नहीं, सूख कर काला हो चुका था.

‘इस ने भी रंग बदल दिया,’ यह सोच कर वह हंसा, ‘प्योरिटी चेंज्ड वोन कलर. काला रंग अस्तित्वविहीनता का प्रतीक है. प्रेम के अस्तित्व को शून्य करने के लिए…जाने क्यों रातें काली ही होती हैं, जाने क्यों उजाले का अपना कोई रंग नहीं होता और कितनी अजीब बात है कि उजाले में ही सारे रंग दिखाई देते हैं. मुझे भी तो रंजना की आंखों में अपने सारे रंग दिखाई देते हैं, क्योंकि वह सुबह के उजाले की तरह है. और मैं…काली रात की कालिमा की तरह हूं.’

‘मिस्टर अभिषेक, यू आर एलोन विद योर ग्रेट माइंड’ जैसे शब्दों के सहारे उस ने खुद अपनी ही पीठ थपथपाई पर हर जगह दिमाग काम नहीं आता. बहुत कुछ होता है प्योर हार्टिली. मैं क्यों नहीं कर पाता ऐसा.

मैं क्यों समझ रहा हूं स्थितियों को. क्यों नहीं बन पाता एक अबोध शिशु, जो चांद को भी खिलौना समझ कर लेने की जिद कर बैठता है.

‘मेरा घर आने वाला है, कब तक साथ चलते रहोगे?’ रंजना ने पूछा.

‘तुम्हारे साथ चलना कितना अच्छा लगता है.’

‘हां, अभी तक तो.’

‘क्या कहा, अभी तक, इस का क्या मतलब?’

‘कुछ नहीं ऐसे ही,’ वह हंसी.

‘मैं तुम्हारे साथ सदियों तक बिना रुके चल सकता हूं, समझी.’

‘कौन जाने,’ रंजना ने माथे पर बल डाल कर कहा.

वह यह सोच कर कांप सा गया, क्या रंजना अपने भविष्य को जानती थी?

कुछ लोगों को भविष्य के बारे में स्वप्न आते हैं तो कुछ चेहरे के भावों को देख कर सामने वाले का भविष्य बता देते हैं. रंजना ने भी मुझे पढ़ कर बता दिया था. पर अब मैं क्या कर सकता हूं. उस ने सोचा, मैं अपने हाथों से अपने ही सपनों को आग लगाऊंगा. फिर उसे लगा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं लेकिन ऐसा करना ही पड़ेगा. और कोई चारा भी तो नहीं है.

दीवार पर लटकी घड़ी में घंटे की आवाज से वह घबरा सा गया. उसे हाथों में गीलापन सा महसूस हुआ. जैसे उस ने अभीअभी रंजना का हाथ छोड़ा हो और रंजना की हथेली की गरमाहट से उस के हाथ में पसीना आ गया है.

उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और उंगलियों के एकएक पोर को रंगड़रगड़ कर पोंछने लगा. फिर भी वह संतुष्ट नहीं हो पा रहा था. उसे बराबर अपना हाथ गीला महसूस होता रहा. गीले हाथों से ही तो कच्ची मिट्टी के बरतनों को संवारा जाता है. उस ने अपने गीले हाथों से उस समय की मिट्टी को सजासंवार तो लिया था पर सहेज कर रखने के लिए पका नहीं पाया.

‘मैं क्यों नहीं कर पाया ऐसा? क्यों मैं एक ऐसी सड़क का मुसाफिर बन गया जो कहीं से चल कर कहीं नहीं जाती.’

उस ने किताब को अपने से परे किया और बिस्तर पर पड़ी चादर से खुद को सिर से ले कर पांव तक ढंक लिया. उसे याद आया कि लाश को भी तो इसी तरह पूरापूरा ढंकते हैं. वह अपने पर हंसा. उसे अपना दम घुटता सा लगा. मुझे यह क्यों नहीं याद रहा कि मैं अभी तक जिंदा हूं. उसे अपने हाथ ठंडे से लगे. वह अपने हाथों के ठंडेपन से परेशान हो उठा. नहीं, मेरा हाथ ठंडा नहीं है, इसे ठंडा नहीं होना चाहिए. इसे गरम होना ही चाहिए.

‘ठंडे हाथ वाले बेवफा होते हैं,’ रंजना की आवाज उस के कानों में पड़ी.

‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता?’

‘मैं ने एक किताब में पढ़ा था,’ रंजना बोली.

‘क्या किताबों में लिखी सारी बातें सच ही होती हैं?’

‘पर सब गलत भी तो नहीं होती हैं,’ रंजना जैसे उस के अंदर से ही बोली.

‘नहीं, मेरे हाथ ठंडे कहां हैं,’ उस ने फिर छू कर देखा और उठ कर बैठ गया. चादर को उस ने अपने दोनों हाथों पर कस कर लपेट लिया. पर उसे लगा जैसे उस ने अपने दोनों हाथ किसी बर्फ की सिल्ली में डाल दिए हैं. उस ने घबरा कर चादर उतार दी, ‘क्या मेरे हाथ वाकई ठंडे हैं? पर न भी होते तो क्या,’ उस ने सोचा, ‘मेरे माथे पर जो ठप्पा लगने वाला था, उस से कैसे बच सकता हूं.’

‘यह मुझे क्या हो रहा है?’ उस ने सोचा, ‘मैं पागल होता जा रहा हूं क्या?’ उस की आवाज गहरे कु एं से निकल कर आई.

‘तुम तो बिलकुल पागल हो,’ रंजना हंसी.

‘क्यों?’

‘अरे, यह तक नहीं जानते कि रूठे को कै से मनाया जाता है,’ रंजना बोली.

‘मैं क्या जानूं. यू नो, इट इज माई फर्स्ट लव.’

फिर इसी बात पर वे कितनी देर तक हंसते रहे.

हंसना तो जैसे वह भूल ही गया. उसे ठीक से याद नहीं आ रहा था कि वह आखिरी बार कब खुल कर हंसा था. वह उठा और खिड़की खोल दी. खिड़की के पल्ले चरमरा कर खुल गए.

‘काश, मैं इसी तरह जिंदगी में खुशी की खिड़की खोल पाता.’

उस ने कहा, कितनी बातें जीवन में ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों में नहीं ढाला जा सकता. वे बातें तो मन के किसी कोने में अपने होने का एहसास दिलाती रहती हैं बस. ठीक उसी खिड़की के नीचे कुछ गमले रखे हुए थे. हर बार बरसात में उन गमलों में फूलों के आसपास अपनेआप कुछ उग आता जो समय के साथ अपनेआप सूख भी जाता.

अरेंजमेंट: क्या आयुषी को दोबारा अपना पाया तरंग

Romantic Story in Hindi: आयुषी सब काम खत्म कर के लैपटौप खोल कर बैठ गई थी. आयुषी ने देखा घड़ी में 1 बज रहे थे. अभी सायशा के आने में 1 घंटा शेष था. उस ने बहुत दिनों बाद फेसबुक पर लौगइन किया था. स्क्रौल करतेकरते अचानक से एक फ्रैंड रिक्वैस्ट को देख कर आयुषी का दिल धक से रह गया. तरंग की फ्रैंड रिक्वैस्ट आई हुई थी. उस नाम पर हाथ रखते हुए भी उस की उंगलियां कांप रही थीं. 10 साल बीत गए थे. एक तरह से वह इस नाम को भूल चुकी थी. पर जब कभी भी उस की अपने पति से अनबन होती थी तो रहरह कर उसे तरंग की याद आती थी. आयुषी को लगता था कि यह तरंग का संताप है जिस की वजह से इतने सालों बाद भी उसे अपने घर में सुकून नहीं मिलता है.

बहुत देर तक वह तरंग की प्रोफाइल पिक्चर को देखती रही थी. गुलाब का फूल था और कोई जानकारी नहीं थी. इतने साल तो बीत गए हैं, अब कहां तरंग को उस की याद होगी. फिर एक मीठी सी शरारत भरी मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. कितने अच्छे दिन थे वे. आयुषी को पता था कि तरंग उस का दीवाना था पर न जाने क्यों आयुषी कभी हिम्मत ही न जुटा पाई कि वह अपने परिवार के खिलाफ जा कर तरंग के प्यार को स्वीकार कर पाए.

न जाने क्या सोचते हुए उस ने तरंग नामक प्रोफाइल की फेसबुक रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. फिर आयुषी
खो गई साल 2000 में…

आयुषी उन दिनों कालेज के फाइनल ईयर में थी. वह और उस की दोस्त अनुपम प्रैक्टिकल क्लास के बाद वापस घर की ओर जा रहे थे. तभी उस ने ध्यान दिया कि एक लंबा, सांवला और पतला लड़का बारबार मोटरसाइकिल से उस के इर्दगिर्द घूम रहा है. आयुषी का उस के परिवार में कहीं भी सुंदरता में नंबर न लगता था, इसलिए उस ने विचार को झटक दिया और तेजी से घर की तरफ कदम बढ़ा दिए.

पर अब यह रोज की बात हो गई थी. आयुषी के साथ उस लड़के ने कभी कोई बदतमीजी नहीं की थी. इसलिए आयुषी को समझ नहीं आ रहा था कि वह शिकायत करे भी तो क्या करे? न जाने कैसे उस लड़के को आयुषी के टाइमटेबल का पता था. जैसे ही आयुषी घर से निकलती चौराहे पर वह लड़का इंतजार करता हुआ मिल जाता था. फिर जब वह कालेज से निकलती तो वह कालेज के गेट पर भी मिलता था. यह सिलसिला चलते हुए लगभग 1 माह हो गए थे.आयुषी को भी अब उस लड़के का इंतजार रहने लगा था. फिर आयुषी की सहेली चारू ने ही बताया कि उस का नाम तरंग है और वह इंजीनियरिंग के बाद प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहा है.

पर तरंग की काफी कोशिशों के बाद भी आयुषी की उस से बात करने की कभी हिम्मत नहीं हुई थी. अपने घर के माहौल का उसे अच्छे से ज्ञान था. पर सबकुछ जानने के बाद भी आयुषी का मन तरंग की ओर खींचने लगा था. धीरेधीरे आयुषी की खास सहेलियों और तरंग के दोस्तों को भी यह बात पता चल गई थी. पर बड़ा अजीब सा रिश्ता था दोनों के बीच, न कभी बातचीत हुई थी और न ही मिले थे पर फिर भी एकदूसरे को देख कर उन्हें चैन आ जाता था.

समय गुजरता गया और लगभग 1 साल के बाद 14 फरवरी, 2001 को तरंग ने बहुत मुश्किल से आयुषी को मिलने के लिए तैयार किया था. आयुषी ने बड़ी मुश्किल से अपनी बड़ी बहन का फिरोजी सूट मांगा, साथ में मोतियों की माला. उन दिनों मोबाइल का चलन आमतौर पर नहीं था, न ही कोई पिज्जा या बर्गर सैंटर होते थे. आयुषी को उस की सहेली चारू लजीज तक छोड़ कर चली गई. बाहर ही तरंग खड़ा था. दोनों अंदर बैठ गए. तरंग बारबार आयुषी का पलकें झपकाना देख रहा था. दोनों इतने डरे हुए थे कि 5 मिनट में 4 गिलास पानी पी गए थे.

तरंग ने झिझकते हुए आयुषी को एक छोटा सा ताजमहल दिया और साथ मे एक छोटा सा पर्स. फिर डोसा खाते हुए तरंग बोला,”आयुषी, मुझे पता है तुम शायद पहली बार किसी लड़के से मिलने आई हो…”

आयुषी कुछ नहीं बोल पाई थी. पर फिर धीरेधीरे दोनों मिलने लगे थे. तरंग और लड़कों की तरह कोई भी
अनुचित मांग नहीं करता था. बेहद ही सुलझा हुआ और जहीन लड़का था. हमेशा आयुषी को छोटेछोटे सरप्राइज देता रहता था. आयुषी के घर वालों को इस बात की भनक भी नहीं थी. तरंग के साथ आयुषी को यह अरैंजमैंट बहुत अच्छा लगने लगा था.

1 वर्ष बीत गया था. तरंग ने एक प्रवेश परीक्षा भी पास कर ली थी. तब तरंग ने आयुषी से कहा,”अगर तुम्हें ठीक लगे तो मैं मम्मीपापा को तुम्हारे यहां रिश्ते के लिए भेज दूं?”

आयुषी ने शरमा कर पलकें झुका ली थीं. 1 हफ्ते आयुषी के सपनों की दुनिया में बीत गए. तरंग का परिवार आया और बेइज्जत हो कर चला गया. तरंग के परिवार के जाते ही पापामम्मी ने उसे आड़े हाथों ले लिया,”तुझे शर्म नहीं आई, ठाकुर की बेटी हो और शूद्रों की बहू बनना चाहती हो?”

आयुषी बोली,”पापा, तरंग ब्राह्मण है…”

पापा बोले,”अरे बेवकूफ लड़की, इन छोटी जातियों वालों का तो यही काम रहता है कि कैसे हमारी लड़कियों को उल्लू बनाए. खबरदार अगर आगे से उस से मिली तो. हम अपने खानदान में नीच जात का खून किसी भी कीमत पर मिलने नहीं देंगे. ”

आयुषी का तो सुबकना बंद ही नहीं हो रहा था. क्या सोचा था और क्या हो गया है. उसे तरंग पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों तरंग ने उस से यह बात छिपाई थी?

22 फरवरी, 2002 में उस की तरंग से आखिरी मुलाकात थी. आयुषी पत्थर की तरह कठोर थी तो तरंग की आंखे गीली थीं. तरंग का परिवार पढ़ालिखा था और उसे सपने में भी भान नही था कि आज भी पढ़ाईलिखाई और काबिलियत से अधिक जातपात को महत्त्व देते हैं. आयुषी गुस्से में बोली,”तुम ने मुझ से झूठ बोला था. अगर मुझे पता होता कि तुम शूद्र तो मैं तुम से कभी न मिलती. ”

तरंग एकदम से हतप्रभ रह गया,”आयुषी, मेरे प्यार का अपमान तो मत करो मैं और मेरा परिवार तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखेंगे. ”

आयुषी को तरंग पसंद था पर उस के प्यार में इतनी गहराई नहीं थी कि वह अपने घर वालों के खिलाफ खड़ी हो पाती. उसे लगा अगर कुछ गलत हो गया तो वह क्या करेगी? अब तक तो यह अरैंजमैंट सही चल रहा था पर अब जब स्टैंड लेने का समय आया तो वह पीछे हट गई.

उस के बाद तरंग ने कुछ नहीं कहा पर उस की आंखों में एक दर्द था जो रहरह कर आयुषी को आज भी याद आ जाता है. बस, उसे इतना पता था कि उस के बाद तरंग दिल्ली चला गया. वे दिन और आज का दिन, आयुषी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

डोरबेल से आयुषी की तंद्रा टूटी. रात में फिर से आयुषी फेसबुक पर तरंग का प्रोफइल चैक कर रही थी. अचानक से मैसेंजर पर मैसेज दिखा,”कैसी हो और खुश तो हो न?”

आयुषी ने लिख दिया,”ठीक हूं…”

आयुषी का पति रोहित बेहद ही रूखा इंसान था. उस के साथ आयुषी का मन कभी भीग नहीं पाया था. रोहित के साथ आयुषी एक पत्नी थी पर कभी आयुषी नहीं बन पाई. जरूरतें पूरी हो रही थीं और जिंदगी कट रही थी.

न जाने कैसे और कब आयुषी और तरंग रोज चैट करने लगे थे. अगर तरंग पिंग नहीं करता तो आयुषी बेचैन हो उठती थी. करीब 1 माह बाद आयुषी ने तरंग को अपना नंबर दे दिया था. धीरेधीरे रोज बातें होने लगीं. तरंग को लगा जैसे उसे सब मिल गया हो.

एक दिन तो तरंग की पत्नी शुभांगी ने बोल भी दिया,”तरंग, कहां खोएखोए रहते हो?”

तरंग एकदम से सकपका गया,”नहीं तो, ऐसा क्यों कह रही हो…?

शुभांगी से तरंग बहुत प्यार करता था. जब तरंग टूटे हुए दिल और हौसले के साथ दिल्ली आया था तो शुभांगी ने ही उसे संभाला था. पर कहते हैं न पहला प्यार भूलना बहुत मुश्किल होता है.

22 दिसंबर की वह सर्द शाम थी जब तरंग और आयुषी कनाट प्लेस में मिले थे. आयुषी कैब से पहुंच गई थी. ब्लू जींस, ग्रे लौंग कोट में वह आज भी ऐसी ही लग रही थी जैसे पहले लगती थी. आयुषी जैसे ही कार में बैठी उस का दिल धकधक कर रहा था. तरंग ने कार में गुलाब की पंखुड़ियां बिछा रखी थीं. तरंग आयुषी से उस के घरपरिवार के बारे में पूछता रहा और आयुषी जवाब देती रही. तरंग यह सोच कर मन ही मन हंस रहा था कि आज भी आयुषी उतना ही डर रही है जितना पहले डरती थी.

धीरेधीरे आयुषी को महसूस होने लगा कि तरंग के साथ विवाह न कर के उस ने बहुत बड़ी गलती करी है.
तरंग के आने के बाद आयुषी को अब अपनी लाइफ परफैक्ट लगने लगी थी. अब रोहित की किचकिच पर वह ध्यान नहीं देती थी. ऐसा लगने लगा था कि दोबारा से उस के जीवन मे बहार आ गई है. आयुषी को जिंदगी का यह अरैंजमैंट अच्छा लगने लगा था. रोमांटिक बातों के लिए तरंग आयुषी को स्पैशल फील कराने के लिए था, तो सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के लिए रोहित था.

तरंग के साथ आयुषी आउटस्टैशन ट्रिप भी कर आई थी. तरंग ने आयुषी से प्यार किया था इसलिए वह
समझता था कि यह सफर अगर इतनी रफ्तार से चलता रहा तो दोनों परिवार जल जाएंगे. वह आयुषी की
बहुत इज्जत करता था इसलिए इस रिश्ते पर अब मित्रता का ब्रेक लगाना चाहता था. पर आयुषी थी कि कुछ समझने को तैयार नहीं थी. वह इन रूमानी पलों को अपनी रुकी हुई जिंदगी की सचाई मानने लगी थी. उसे तरंग के परिवार से कोई सरोकार नहीं था. जब भी उस का मन करता वह तरंग के साथ घूमने निकल जाती. बहुत बार तरंग ने आयुषी की जिद के कारण अपने परिवार को नाराज कर दिया था.

जब तरंग आयुषी को यह कहता तो वस मुसकरा कर कहती,”जब प्यार किया तो डरना क्या. ”

उस दिन सुबह से आयुषी का मूड खराब था. उस ने फटाफट तरंग को मैसेज किया,’लेट्स मीट फौर कौफी…’

तरंग ने कोई जवाब नहीं दिया. आयुषी ने कुछ देर सब्र किया और कुछ जवाब न आने पर फोन घुमा
दिया. जब तरंग ने फोन काट दिया तो आयुषी का खराब मूड और खराब हो गया. वह तबतक फोन मिलाती रही जब तक तरंग ने उठा नहीं लिया. तरंग के फोन उठाते ही आयुषी गुस्से में बोली,”सुबह से कोशिश कर रही हूं. कैसे प्रेमी हो?”

तरंग ठंडे स्वर में बोला,”आयुषी, मैं पति और पिता भी हूं. शुभांगी ठीक नहीं है. ”

आयुषी को लगा कि तरंग उस के सामने अपनी पत्नी को अधिक अहमियत दे रहा है. इसलिए गुस्से में चिल्ला कर बोली,”क्यों? तुम तो बड़ेबड़े प्यार के दावे करते थे. तुम ने ही मुझे ऐप्रोच किया था, मैं ने नहीं. ”

तरंग को भी गुस्सा आ गया. बोला, “हां, गलती हो गई थी. मैं तुम से शादी करना चाहता था, पर तब तो तुम्हें मेरी जाति से समस्या थी,” यह सुन कर आयुषी फट पड़ी,”तुम ने क्या मुझे तब बताया था कि तुम ब्राह्मण नहीं हो? बताओ मैं क्या करती तब? अब जब मिले हैं तो तुम्हें तो अपनी पत्नी से फुरसत नहीं है…”

तरंग समझाते हुए बोला,”आयुषी, जब समय था तुम हिम्मत न कर पाई और अब तुम्हें लगता है यह सब ठीक है? इस में शुभांगी या रक्षित का क्या कुसूर है बोलो?”

आयुषी की ईगो बहुत अधिक हर्ट हो गई थी. तरंग की इतनी हिम्मत कि अपनी पत्नी को प्रेमिका से अधिक
अहमियत दे रहा है. बहुत रुखाई से बोली,”तरंग, ब्लौक कर दो मुझे. ”

तरंग को आयुषी का व्यवहार बेहद बचकाना लग रहा था. उसे लगा पहले आयुषी में हिम्मत नहीं थी और अब वह जबरदस्ती बिना किसी बात के धौस जमा रही है. तरंग ने बिना कोई जवाब दिए मोबाइल बंद कर दिया था.

शाम को तरंग ने आयुषी को कौल लगाया तो आयुषी ने मोबाइल उठा कर रूखी सी आवाज में कहा,”क्या
बात है?”

तरंग ने प्यार से कहा,”आयुषी, तुम्हारी जगह मेरी जिंदगी में कोई नहीं ले सकता है. मैं बस तुम से यह कहना चाहता हूं कि एक मित्र और हितैषी की तरह मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहता हूं. पर अगर तुम यह सोच रही हो कि मैं अपने परिवार या पत्नी को ननजरअंदाज कर के तुम्हें तरजीह दूंगा तो तुम गलत हो. जैसे रोहित और तुम्हारी बेटी को तुम्हारी जरूरत है, वैसे ही शुभांगी और मेरे बेटे को मेरी जरूरत है. ”

आयुषी बिना कुछ सोचे बोली,”अरे, कितना अच्छा अरैंजमैंट चल रहा है. हमलोग माह में एकाध बार मिल लेते थे, घूमफिर लेते थे और तुम यह अपनी बीबी का रोना ले कर बैठे हो. अब देखो, मैं औरत हूं, मैं तो 24 घंटे उपलब्ध नहीं रह सकती हूं पर तुम तो थोड़ा कोशिश कर सकते हो न…”तरंग को समझ आ गया था कि आयुषी के लिए वह बस एक ऐंटरटेनर, उस की फीमेल ईगो को सहलाने का एक जरीया है. तरंग बोला,”तुम्हारे लिए मैं टाइमपास और अरैंजमैंट हूं पर मुझे अब यह अरैंजमैंट सूट नहीं कर रहा है,” यह कह कर तरंग ने फोन काट दिया. उसे गुस्सा आ रहा था. पहले भी वह आयुषी के लिए टाइमपास और अरैंजमैंट था और आज भी उस की यही स्थिति थी. पर अब उसे यह अरैंजमैंट पसंद नहीं है.

इसमें बुरा क्या है : बेला की बेबसी

Social Story in Hindi: एक जवान लड़की का खूबसूरत होना उस के लिए इतना घातक भी हो सकता है… और अगर वह दलित हो, तो कोढ़ में खाज जैसी हालत हो जाती है. आज बेला इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी. बौस के चैंबर से निकलतेनिकलते उस की आंखें भर गई थीं. भरी आंखों को स्टाफ से चुराती बेला सीधे वाशरूम में गई और फूटफूट कर रोने लगी. जीभर कर रो लेने के बाद वह अपनेआप को काफी हलका महसूस कर रही थी. उस ने अपने चेहरे को धोया और एक नकली मुसकान अपने होंठों पर चिपका कर अपनी सीट पर बैठ गई.

बेला टेबल पर रखी फाइलें उलटनेपलटने लगी, फिर उकता कर कंप्यूटर चालू कर ईमेल चैक करने लगी, मगर दिमाग था कि किसी एक जगह ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा था. रहरह कर बौस के साथ कुछ देर पहले हुई बातचीत पर जा कर रुक रहा था.

तभी बेला का मोबाइल फोन बज उठा. देखा तो रमेश का मैसेज था. लिखा था, ‘क्या सोचा है तुम ने… आज रात के लिए?’

बेला तिलमिला उठी. सोचा, ‘हिम्मत कैसे हुई इस की… मुझे इस तरह का वाहियात प्रस्ताव देने की… कैसी नीच सोच है इस की… रसोईघर और पूजाघर में घुसने पर दलित होना आड़े आ जाता है, मगर बिस्तर पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता…’

मगर यह कोई नई बात तो है नहीं… यह तो सदियों से होता आया है… और बेला के साथ भी बचपन से ही… बिस्तर पर आतेआते मर्दऔरत में सिर्फ एक ही रिश्ता बचता है… और वह है देह का…

बेला अपनेआप से तर्क करते हुए तकरीबन 6 महीने पहले के उस रविवार पर पहुंच गई, जब वह अपने बौस रमेश के घर उन की पत्नी को देखने गई थी. बौस की 3 महीने से पेट से हुई पत्नी सीमा सीढ़ियों से नीचे गिर गई थी और खून बहने लगा था. तुरंत डाक्टरी मदद मिलने से बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ था, मगर डाक्टर ने सीमा को बिस्तर पर ही आराम करने की सलाह दी थी, इसीलिए बेला उस दिन सीमा से मिलने उन के घर चली गई थी.

रमेश ने बेला के सामने चाय का प्रस्ताव रखा, तो वह टाल नहीं सकी. बौस को रसोईघर में जाते देख बेला ने कहा था, ‘सर, आप मैडम के पास बैठिए. मैं चाय बना कर लाती हूं.’ रमेश ने सीमा की तरफ देखा, तो उन्होंने आंखों ही आंखों में इशारा करते हुए उन की तरफ इनकार से सिर हिलाया था, जिसे बेला ने महसूस कर लिया था.

खैर… उस ने अनजान बनने का नाटक किया और चाय रमेश ही बना कर लाए. बाद में बेला ने यह भी देखा कि रमेश ने उस का चाय का जूठा कप अलग रखा था. हालांकि दूसरे ही दिन दफ्तर में रमेश ने बेला से माफी मांग ली थी. उस के बाद धीरेधीरे रमेश ने उस से नजदीकियां बढ़ानी भी शुरू कर दी थीं, जिन का मतलब अब बेला अच्छी तरह समझने लगी थी.

उन्हीं निकटताओं की आड़ ले कर आज रमेश ने उसे बड़ी ही बेशर्मी से रात में अपने घर बुलाया था, क्योंकि सीमा अपनी डिलीवरी के लिए पिछले एक महीने से मायके में थी. क्या बिस्तर पर उस का दलित होना आड़े नहीं आएगा? क्या अब उसे छूने से बौस का धर्म खराब नहीं होगा?

बेला जितना ज्यादा सोचती, उतनी ही बरसों से मन में सुलगने वाली आग और भी भड़क उठती. सिर्फ रमेश ही क्यों, स्कूलकालेज से ले कर आज तक न जाने कितने ही रमेश आए थे, बेला की जिंदगी में… जिन्होंने उसे केवल एक ही पैमाने पर परखा था… और वह थी उस की देह. उस की काबिलीयत को दलित आरक्षण के नीचे कुचल दिया गया था.

बेला की यादों में अचानक गांव वाले स्कूल मास्टरजी कौंध गए. उन दिनों वह छठी जमात में पढ़ती थी. 5वीं जमात में वह अपनी क्लास में अव्वल आई थी.

बेला खुशीखुशी मिठाई ले कर स्कूल में मास्टरजी को खिलाने ले गई थी. मास्टरजी ने मिठाई खाना तो दूर, उसे छुआ तक नहीं था. ‘वहां टेबल पर रख दो,’ कह कर उसे वापस भेज दिया था. बेला तब बेइज्जती से गड़ गई थी, जब क्लास के बच्चे हंस पड़े थे.

बेला चुपचाप वहां से निकल आई थी, मगर दूसरे ही दिन मास्टरजी ने उसे स्कूल की साफसफाई में मदद करने के बहाने रोक लिया था. बेला अपनी क्लास में खड़ी अभी सोच ही रही थी कि शुरुआत कहां से की जाए, तभी अचानक मास्टरजी ने पीछे से आ कर उसे दबोच लिया था.

बेला धीरे से बोली थी, ‘मास्टरजी, मैं बेला हूं…’

‘जानता हूं… तू बेला है… तो क्या हुआ?’ मास्टरजी कह रहे थे.

‘मगर, आप मुझे छू रहे हैं… मैं दलित हूं…’ बेला गिड़गिड़ाई थी.

‘इस वक्त तुम सिर्फ एक लड़की का शरीर हो… शरीर का कोई जातधर्म नहीं होता…’ कहते हुए मास्टरजी ने उस का मुंह अपने होंठों से बंद कर दिया था और छटपटाती हुई उस मासूम कली को मसल डाला था. बेला उस दिन आंसू बहाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकी थी. बरसों पुरानी यह घटना आज जेहन में आते ही बेला का पूरा शरीर झनझना उठा. वह दफ्तर के एयरकंडीशंड चैंबर में भी पसीने से नहा उठी थी.

स्कूल से जब बेला कालेज में आई, तब भी यह सिलसिला कहां रुका था. उस का सब से पहला विरोध तो गांव की पंचायत ने किया था. पंचायत ने उस के पिता को बुला कर धमकाया था, ‘भला बेला कैसे शहर जा कर कालेज में पढ़ सकती है? जो पढ़ना है, यहीं रह कर पढ़े… वैसे भी अब लड़की सयानी हो गई है… इस के हाथ पीले करो और गंगा नहाओ…’ पंचों ने सलाह दी, तो बेला के पिता अपना सा मुंह ले कर घर लौट आए थे.

उस दोपहर जब बेला अपने पिता को खेत में खाना देने जा रही थी, तब रास्ते में सरपंच के बेटे ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘बेला, तेरे शहर जा कर पढ़ने की इच्छा मैं पूरी करवा सकता हूं… बस, तू मेरी इच्छा पूरी कर दे.’

बेला बड़ी मुश्किल से उस से पीछा छुड़ा पाई थी. तब उस ने पिता के सामने आगे पढ़ने की जिद की थी और ऊंची पढ़ाई से मिलने वाले फायदे गिनाए थे. बेटी की बात पिता को समझ आ गई और पंचायत के विरोध के बावजूद उन्होंने उस का दाखिला कसबे के महिला कालेज में करवा दिया और वहीं उन के लिए बने होस्टल में उसे जगह भी मिल गई थी.

हालांकि इस के बाद उन्हें पंचायत की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी. मगर बेटी की खुशी की खातिर उन्होंने सब सहन कर लिया था.  शहर में भी होस्टल के वार्डन से ले कर कालेज के क्लर्क तक सब ने उस का शोषण करने की कोशिश की थी. हालांकि उसे छूने और भोगने की उन की मंशा कभी पूरी नहीं हुई थी, मगर निगाहों से भी बलात्कार किया जाता है, इस कहावत का मतलब अब बेला को अच्छी तरह से समझ आने लगा था.

फाइनल प्रैक्टिकल में प्रोफैसर द्वारा अच्छे नंबर देने का लालच भी उसे कई बार दिया गया था. उस के नकार करने पर उसे ताने सुनने पड़ते थे. ‘इन्हें नंबरों की क्या जरूरत है… ये तो पढ़ें या न पढ़ें, सरकारी सुविधाएं इन के लिए ही तो हैं…’

ऐसी बातें सुन बेला तिलमिला जाती थी. उस की सारी काबिलीयत पर एक झटके में ही पानी फेर दिया जाता था. मगर बेला ने हार नहीं मानी थी. अपनी काबिलीयत के दम पर उस ने सरकारी नौकरी हासिल कर ली थी. पहली बार जब बेला अपने दफ्तर में गई, तो उस ने देखा कि उस का पूरा स्टाफ एकसाथ लंच कर रहा है, मगर उसे किसी ने नहीं बुलाया था. बेला ने स्टाफ के साथ रिश्ता मजबूत करने के लिहाज से एक बार तो खुद ही उन की तरफ कदम बढ़ाए, मगर फिर अचानक कुछ याद आते ही उस के बढ़ते कदम रुक गए थे.

बेला के शक को हकीकत में बदल दिया था उस के दफ्तर के चपरासी ने. वह नादान नहीं थी, जो समझ नहीं सकती थी कि उस के चपरासी ने उसे पानी डिस्पोजल गिलास में देना शुरू क्यों किया था.

क्याक्या याद करे बेला… इतनी सारी कड़वी यादें थीं उस के इस छोटे से सफर में, जिन्हें भूलना उस के लिए नामुमकिन सा ही था. मगर अब उस ने ठान लिया था कि वह अब और सहन नहीं करेगी. उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी सरकारी नौकरी छोड़ देगी और दुनिया को दिखा देगी कि उस में कितनी काबिलीयत है. अब वह सिर्फ प्राइवेट नौकरी ही करेगी और वह भी बिना किसी की सिफारिश या मदद के.

बेला के इस फैसले को बचकाना फैसला बताते हुए उस के पिता ने बहुत खिलाफत की थी. उन का कहना भी सही था कि अगर दलित होने के नाते सरकार हमें कोई सुविधा देती है, तो इस में इतना असहज होने की कहां जरूरत है… हम अपना हक ही तो ले रहे हैं.

मगर, बेला ने किसी की नहीं सुनी और सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. बेला को ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. उस का आकर्षक बायोडाटा देख कर इस कंपनी ने उसे अच्छे सालाना पैकेज पर असिस्टैंट मैनेजर की पोस्ट औफर की थी. रमेश यहां मैनेजर थे. उन्हीं के साथ रह कर बेला को कंपनी का काम सीखना था.

शुरूशुरू में तो रमेश का बरताव बेला के लिए अच्छा रहा था, मगर जब से उन्होंने कंपनी में उस की पर्सनल फाइल देखी थी, तभी से उन का नजरिया बदल गया था. पहले तो वह समझ नहीं सकी थी, मगर जब से उन के घर जा कर आई थी, तभी से उसे रमेश के बदले हुए रवैए की वजह समझ में आ गई थी.

औरत के शरीर की चाह मर्द से कुछ भी करवा सकती है, यह सोच अब बेला की निगाहों में और भी ज्यादा मजबूत हो चली थी. पत्नी से जिस्मानी दूरियां रमेश से सहन नहीं हो रही थीं, ऐसे में बेला ही उसे आसानी से मिलने वाली चीज लगी थी. बेला का सालभर का प्रोबेशन पीरियड बिना रमेश के अच्छे नोट के क्लियर नहीं हो सकता और इसी बात का फायदा रमेश उठाना चाहते हैं.

‘जब यहां भी मेरी काबिलीयत की पूछ नहीं है, तो फिर सरकारी नौकरी कहां बुरी थी? कम से कम इस तरह के समझौते तो नहीं करने पड़ते थे वहां… नौकरी छूटने का मानसिक दबाव तो नहीं झेलना पड़ेगा… ज्यादा से ज्यादा स्टाफ और अफसरों की अनदेखी ही तो झेलनी पड़ेगी… वह तो हम आजतक झेलते ही आए हैं… इस में नई बात क्या होगी…

‘वैसे भी जब आम सोच यही है कि दलितों को सरकारी नौकरी उन की काबिलीयत से नहीं, बल्कि आरक्षण के चलते मिलती है, तो यही सही… ‘इस सोच को बदलने की कोशिश करने में मैं ने अपने कीमती 2 साल बरबाद कर दिए… अब और नहीं… यह भी तो हो सकता है कि सरकारी पावर हाथ में होने से मैं अपनी जैसी कुछ लड़कियों की मदद कर सकूं,’ बेला ने अब अपनी सोच को एक नई दिशा दी.

इस के बाद बेला ने अपने आंसू पोंछे… आखिरी बार रमेश के चैंबर की तरफ देखा और इस्तीफा लिखने लगी.

अनोखा संबंध: क्या विधवा औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती?

Romantic Story in Hindi : ‘‘इस औरत को देख रही हो… जिस की गोद में बच्चा है?’’

‘‘हांहां, देख रही हूं… कौन है यह?’’

‘‘अरे, इस को नहीं जानती तू?’’ पहली वाली औरत बोली.

‘‘हांहां, नहीं जानती,’’ दूसरी वाली औरत इनकार करते हुए बोली.

‘‘यह पवन सेठ की दूसरी औरत है. पहली औरत गुजर गई, तब उस ने इस औरत से शादी कर ली.’’

‘‘हाय, कहां पवन सेठ और कहां यह औरत…’’ हैरानी से दूसरी औरत बोली, ‘‘इस की गोद में जो लड़का है, वह पवन सेठ का नहीं है.’’

‘‘तब, फिर किस का है?’’

‘‘पवन सेठ के नौकर रामलाल का,’’ पहली वाली औरत ने जवाब दिया.

‘‘अरे, पवन सेठ की उम्र देखो, मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं…’’ दूसरी वाली औरत ने ताना मारते हुए कहा, ‘‘दोनों में उम्र का कितना फर्क है. इस औरत ने कैसे कर ली शादी?’’

‘‘सुना है, यह औरत विधवा थी,’’ पहली वाली औरत ने कहा.

‘‘विधवा थी तो क्या हुआ? अरे, उम्र देख कर तो शादी करती.’’

‘‘अरे, इस ने पवन सेठ को देख कर शादी नहीं की.’’

‘‘फिर क्या देख कर शादी की?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘उस की ढेर सारी दौलत देख कर.’’

आगे की बात निर्मला न सुन सकी. जिस दुकान पर जाने के लिए वह सीढि़यां चढ़ रही थी, तभी ये दोनों औरतें सीढि़यां उतर रही थीं. उसे देख कर यह बात कही, तब वह रुक गई. उन दोनों औरतों की बातें सुनने के बाद दुकान के भीतर न जाते हुए वह उलटे पैर लौट कर फिर कार में बैठ गई.

ड्राइवर ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मेम साहब, आप दुकान के भीतर क्यों नहीं गईं?’’

‘‘जल्दी चलो बंगले पर,’’ निर्मला ने अनसुना करते हुए आदेश दिया.

आगे ड्राइवर कुछ न बोल सका. उस ने चुपचाप गाड़ी स्टार्ट कर दी.

निर्मला की गोद में एक साल का बच्चा नींद में बेसुध था. मगर कार में बैठने के बाद भी उस का मन उन दोनों औरतों के तानों पर लगा रहा. उन औरतों ने जोकुछ कहा था, सच ही कहा था. निर्मला उदास हो गई.

निर्मला पवन सेठ की दूसरी ब्याहता है. पहली पत्नी आज से 3 साल पहले गुजर गई थी. यह भी सही है कि उस की गोद में जो लड़का है, वह रामलाल का है. रामलाल जवान और खूबसूरत है.

जब निर्मला ब्याह कर के पवन सेठ के घर में आई थी, तब पहली बार उस की नजर रामलाल पर पड़ी थी. तभी से उस का आकर्षण रामलाल के प्रति हो गया था. मगर वह तो पवन सेठ की ब्याहता थी, इसलिए उस के खूंटे से बंध गई थी.

यह भी सही है कि निर्मला विधवा है. अभी उस की उम्र का 34वां पड़ाव चल रहा है. जब वह 20 साल की थी, तब उस की शादी राजेश से कर दी गई थी. वह बेरोजगार था. नौकरी की तलाश जारी थी. मगर वह इधरउधर ट्यूशन कर के अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहा था.

निर्मला की सास झगड़ालू थी. हरदम वह उस पर अपना सासपना जताने की कोशिश करती, छोटीछोटी गलतियों पर बेवजह चिल्लाना उस का स्वभाव बना हुआ था. मगर वह दिन काल बन कर उस पर टूट पड़ा, जब एक कार वाला राजेश को रौंद कर चला गया. अभी उन की शादी हुए 7 महीने भी नहीं बीते थे और वह विधवा हो गई. समाज की जरूरी रस्मों के बाद निर्मला की सास ने उसे डायन बता दिया. यह कह कर उसे घर से निकाल दिया कि आते ही मेरे बेटे को खा गई.

ससुराल से जब विधवा निकाली जाती है, तब वह अपने मायके में आती है. निर्मला भी अपने मायके में चली आई और मांबाबूजी और भाई के लिए बो झ बन गई. बाद में एक प्राइवेट स्कूल में टीचर बन गई. तब उसे विधवा जिंदगी जीते हुए 14 साल से ऊपर हो गए.

समाज के पोंगापंथ के मुताबिक, विधवा की दोबारा शादी भी नहीं हो सकती है. उसे तो अब जिंदगीभर विधवा की जिंदगी जीनी है. ऐसे में वह कई बार सोचती है कि अभी मांबाप जिंदा हैं लेकिन कल वे नहीं रहेंगे, तब भाई कैसे रख पाएगा? यही दर्द उसे हरदम कचोटता रहता था.

निर्मला कई बार यह सोचती थी कि वह मांबाप से अलग रहे, मगर एक विधवा का अकेले रहना बड़ा मुश्किल होगा. मर्दों के दबदबे वाले समाज में कई भेडि़ए उसे नोचने को तैयार बैठे हैं. कई वहशी मर्दों की निगाहें अब भी उस पर गड़ी रहती हैं. मां और बाबूजी भी उसे देख कर चिंतित हैं. ऐसी कोई बात नहीं है कि सिर्फ  वही अपने बारे में सोचती है.

मां और बाबूजी भी सोचते हैं कि निर्मला की जिंदगी कैसे कटेगी? वे खुद भी चाहते थे कि निर्मला की दोबारा शादी हो जाए, मगर समाज की बेडि़यों से वे भी बंधे हुए थे.

इसी कशमकश में समाज के कुछ ठेकेदार पवन सेठ का रिश्ता ले कर निर्मला के बाबूजी के पास आ गए.

बाबूजी को मालूम था कि पवन सेठ बहुत पैसे वाला है. उस का बड़ा भाई मनोहर सेठ के नाम से मशहूर है. मगर दोनों भाइयों के बीच 30 साल पहले ही घर की जायदाद को ले कर रिश्ता खत्म हो गया था. आज तक दोनों के बीच बोलचाल बंद है.

बाबूजी यह भी जानते थे कि पवन सेठ 64 साल के ऊपर है. यह बेमेल गठबंधन कैसे होगा? तब समाज के ठेकेदारों ने एक ही बात बाबूजी को सम झाने की कोशिश की थी कि यह निर्मला की जिंदगी का सवाल है. पवन सेठ के साथ वह खुश रहेगी.

तब बाबूजी ने सवाल उठाया था कि पवन सेठ नदी किनारे खड़ा वह ठूंठ है कि कब बहाव में बह जाए. फिर निर्मला विधवा की विधवा रह जाएगी. तब समाज के ठेकेदारों ने बाबूजी को सम झाया कि देखो, वह विधवा जरूर हो जाएगी, मगर सेठ की जायदाद की मालकिन बन कर रहेगी.

तब बाबूजी ने निर्मला से पूछा था, ‘निर्मला तुम्हारे लिए रिश्ता आया है.’

वह सम झते हुए भी अनजान बनते हुए बोली, ‘रिश्ता और मेरे लिए?’

‘हां निर्मला, तुम्हारे लिए रिश्ता.’

‘मगर बाबूजी, मैं एक विधवा हूं और विधवा की दोबारा शादी नहीं हो सकती,’ अपने पिता को सम झाते हुए निर्मला बोली थी.

‘हां, नहीं हो सकती है, मैं जानता हूं. मगर जब सोचता हूं कि तुम यह लंबी उम्र कैसे काटोगी, तो डर जाता हूं.’

‘जैसे, कोई दूसरी विधवा काटती है, वैसे ही काटूंगी बाबूजी,’ निर्मला ने जब यह बात कही, तब बाबूजी सोचविचार में पड़ गए थे.

तब निर्मला खुद ही बोली थी, ‘मगर बाबूजी, मैं आप की भावनाओं को भी अच्छी तरह सम झती हूं. आप बूढ़े पवन सेठ के साथ मेरा ब्याह करना चाहते हैं.’

‘हां बेटी, वहां तेरी जिंदगी अच्छी तरह कट जाएगी और विधवा की जिंदगी से छुटकारा भी मिल जाएगा,’ बोल कर बाबूजी ने अपने मन की सारी बात कह डाली थी. तब वह भी सहमति देते हुए बोली थी, ‘बाबूजी, आप किसी तरह की चिंता मत करें. मैं यह शादी करने के लिए तैयार हूं.’

यह सुन कर बाबूजी का चेहरा खिल गया था. फिर पवन सेठ के साथ निर्मला की बेमेल शादी हो गई.

निर्मला पवन सेठ के बंगले में आ गई थी. दुकान के नौकर अलग, घर के नौकर अलग थे. घर का नौकर रामलाल 20 साल का गबरू जवान था. बाकी तो वहां अधेड़ औरतें थीं.

जब पवन सेठ के साथ निर्मला हमबिस्तर होती थी, वह बहुत जल्दी ठंडा पड़ जाता था. राजेश के साथ जो रातें गुजारी थीं, पवन सेठ के साथ वैसा मजा नहीं मिलता था.

पवन सेठ ने कई बार उस से कहा था, ‘निर्मला, तुम मेरी दूसरी पत्नी हो. उम्र में बेटी के बराबर हो. अगर मेरी पहली पत्नी से कोई औलाद होती, तब वह तुम्हारी उम्र के बराबर होती. मैं तु झ से औलाद की आस रखता हूं. तुम मु झे एक औलाद दे दो.’

‘औलाद देना मेरे अकेले के हाथ में नहीं है,’ निर्मला अपनी बात रखते हुए बोली, ‘मगर, मैं देख रही हूं…’

‘क्या देख रही हो?’ उसे रुकते देख पवन सेठ ने पूछा.

‘हमारी शादी के 6 महीने हो गए हैं, मगर जितना जोश पैदा होता, वह पलभर में खत्म हो जाता है.’

‘अब मैं उम्र की ढलान पर हूं, फिर भी औलाद चाहता हूं,’ पवन सेठ की आंखों का इशारा वह सम झ गई. तब उस ने नौकर रामलाल से बातचीत करना शुरू किया.

निर्मला उसे बारबार किसी बहाने अपने कमरे में बुलाती, आंखों में हवस लाती. कभी वह अपना आंचल गिराती, कभी ब्लाउज का ऊपरी बटन खोल देती, तो कभी पेटीकोट जांघों तक चढ़ा लेती. मर्द कैसा भी पत्थरदिल हो, आखिर एक दिन पिघल ही जाता है.

रामलाल ने कहा, ‘मेम साहब, आप का मु झे देख कर बारबार आंचल गिराना मु झे अच्छा नहीं लगता. आप क्यों ऐसा करती हैं?’

‘अरे बुद्धू, इतना भी नहीं समझता है,’ निर्मला मुसकरा कर बोली और उस के गाल को चूम लिया.

‘सम झता तो मैं सबकुछ हूं, मगर मालिक…’

‘मालिक कुछ भी नहीं कहेंगे,’ बीच में ही उस की बात काट कर निर्मला बोली, ‘मालिक से क्यों घबराता है?’

यह सुन कर रामलाल पहले तो हैरान हुआ, फिर धीरे से मुसकरा दिया. उस ने आव न देखा न ताव निर्मला को दबोच लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

निर्मला ने कुछ नहीं कहा. फिर क्या था, निर्मला की शह पा कर जब भी मौका मिलता, वे दोनों हमबिस्तर हो जाते. इस का फायदा यह हुआ कि निर्मला का जोश शांत होने लगा था और एक दिन वह पेट से हो गई.

पवन सेठ बहुत खुश हुआ और जब पहला ही लड़का पैदा हुआ, तब पवन सेठ की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा.

निर्मला और बच्चे की देखरेख के लिए एक आया रख ली गई. जब भी बाजार या कहीं दूसरी जगह जाना होता, निर्मला अपने बच्चे को आया के पास छोड़ जाती है. मगर आज उस की ममता जाग गई थी, इसलिए साथ ले गई थी.

‘‘मेम साहब, बंगला आ गया,’’ जब ड्राइवर ने यह कहा, तब निर्मला पुरानी यादों से लौटी. जब वह कार से उतरने लगी, तब ड्राइवर ने पूछा, ‘‘मेम साहब, जिस दुकान पर आप खरीदारी करने पहुंची थीं, वहां से बिना खरीदारी किए क्यों लौट आईं?’’

‘‘मेरा मूड बदल गया,’’ निर्मला ने जवाब दिया.

‘‘मूड तो नहीं बदला मेम साहब, मगर मैं सब समझ गया,’’ कह कर ड्राइवर मुसकराया.

‘‘क्या सम झे मानमल?’’ गुस्से से निर्मला बोली.

‘‘इस बच्चे को ले कर उन औरतों ने…’’

‘‘देखो मानमल, तुम अपनी औकात में रहो,’’ बीच में ही बात काट कर निर्मला बोली.

‘‘हां मेम साहब, मैं भूल गया था कि मैं आप का ड्राइवर हूं,’’ माफी मांगते हुए मानमल बोला, ‘‘मगर, सच बात तो होंठों पर आ ही जाती है.’’

‘‘क्या सच बात होंठों पर आ जाती है?’’ निर्मला ने पूछा.

‘‘यही मेम साहब कि उन दोनों औरतों ने बच्चे को देख कर कहा होगा कि यह बच्चा सेठजी का खून नहीं है, बल्कि उन के नौकर रामलाल का है,’’ मानमल ने साफसाफ कह दिया.

तब निर्मला गुस्से से बोली, ‘‘देखो मानमल, तुम हमारे नौकर हो और अपनी हद में रहो. औरों की तरह हमारे संबंधों को ले कर बात करने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर निर्मला कार से उतर गई.

अभी निर्मला दालान पार कर रही थी कि आया ने आ कर बच्चे को उस से ले लिया. मानमल फिर मुसकरा दिया.

शन्नो की हिम्मत: एक बेटी ने कैसे बदली अपने पिता की जिंदगी

Family Story in Hindi: शन्नो थी तो 10 साल की ही, पर उस का बाप फिरोज खान उस से सख्त नफरत करता था. वजह यह थी कि बेटा पैदा न करने के जुर्म में वह शन्नो की मां को अकसर मारतापीटता था, जिस की शन्नो जम कर खिलाफत करती थी. शन्नो की मां अनवरी मजबूरी के चलते पति के सितम चुपचाप सह लेती थी, लेकिन एक दिन शन्नो का सब्र जवाब दे गया और उस ने बाकरपुर थाने जा कर बाप की शिकायत कर डाली. थाना इंचार्ज एसआई पूनम यादव ने सूझबूझ से काम लेते हुए फिरोज खान को हिरासत में ले लिया.

लेकिन जब पुलिस वाले फिरोज खान की कमर पर रस्सा बांधने लगे, तो शन्नो यह देख कर तड़प उठी. वह एसआई पूनम यादव से रोते हुए बोली, ‘‘मैडमजी, पापा को माफ कर दीजिए. आप इन्हें सिर्फ समझा दीजिए कि अब दोबारा कभी अम्मी को नहीं सताएंगे.

‘‘मैं यह नहीं जानती थी कि पापा इतनी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे. प्लीज, पापा को छोड़ दीजिए,’’ कह कर वह उन से लिपट कर रोने लगी.

‘‘घबराओ नहीं बेटी, तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा. हम इन्हें समझाबुझा कर जल्दी छोड़ देंगे,’’ एसआई पूनम यादव ने शन्नो को काफी समझाया, लेकिन वह रोतीबिलखती रही.

पापा के बगैर शन्नो थाने से बाहर नहीं आना चाहती थी. बड़ी मुश्किल से उसे घर पहुंचाया गया. इस वाकिए के बाद शन्नो हंसना ही भूल गई. पापा को उस की वजह से जेल जाना पड़ा था. इस बात का उसे बहुत अफसोस था. एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान की माली हालत के मद्देनजर उस पर बहुत कम जुर्माना लगाया, जिस से वह एकाध महीने में ही जेल से छूट गया.

एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान को जेल से बाहर आने के बाद समझाया, ‘‘देखो फिरोज, तुम ने बेटा पाने की चाहत में बेटियों की जो लाइन लगा रखी है, उस का बोझ तुम्हें अकेले ही उठाना पड़ेगा, इसलिए अब भी वक्त है कि तुम अपनी बेटियों को ही बेटा समझो. उन्हें प्यारदुलार दो.

‘‘अगर तुम्हारे घर बेटा पैदा नहीं हुआ, तो इस की जिम्मेदार तुम्हारी पत्नी नहीं है, बल्कि तुम खुद हो.

‘‘तुम्हारे घर में कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं है, बल्कि तुम सब के दुश्मन हो और अपनी जिंदगी के साथ भी दुश्मनी कर रहे हो.

‘‘अब क्या तुम अपनी बेटी शन्नो से इस बात का बदला लोगे कि तुम्हारे द्वारा उस की मां पर ढाए जाने वाले जुल्म से घबरा कर वह थाने चली आई?’’

फिरोज खान सिर झुकाए चुपचाप एसआई पूनम यादव की बातें सुनता रहा.

‘‘खबरदार फिरोज, अब भूल से भी कोई ऐसीवैसी हरकत मत करना.’’

फिरोज खान ने एसआई पूनम यादव की बात को अनसुना कर दिया, क्योंकि उस के मन में शन्नो के लिए बदले की आग सुलग रही थी. घर में कदम रखते ही फिरोज ने शन्नो की पिटाई की.

बेटी को पिटता देख अनवरी बचाने आई, तो फिरोज ने उसे भी खूब मारापीटा, फिर दोनों मांबेटी को घर से निकाल दिया. इस दुखद मंजर को अड़ोसपड़ोस के लोग चुपचाप देखते रहे. किसी के लफड़े में पड़ने की क्या जरूरत है, इस सोच के चलते महल्ले वाले अपनेअपने जमीर को मुरदा बनाए हुए थे. कोई भी यह नहीं सोचना चाहता था कि कल उन के साथ भी ऐसा हो सकता है.

अनवरी शन्नो को साथ ले कर अपने मायके समस्तीपुर चली आई और अपनी बेवा मां से लिपट कर खूब रोई. सारा दुखड़ा सुनाने के बाद अनवरी बोली, ‘‘अम्मां, आज से शन्नो का जीनामरना आप को ही करना होगा.’’

सुबह होते ही अनवरी बस में सवार हो कर ससुराल लौट गई. इस बात को 10 साल बीत गए. शन्नो के ननिहाल वाले गरीब थे, इस के बावजूद मामूमौसी वगैरह ने मिलजुल कर शन्नो की परवरिश की. उसे अच्छी से अच्छी तालीम दे कर कुछ इस तरह निखारा कि अपनेपराए, सभी उस पर नाज करने लगे.

आज शन्नो 18-19 बरस की हो चली थी. इस दौरान फिरोज खान ने उस की कोई खोजखबर नहीं ली, क्योंकि वह उस से बहुत चिढ़ता था. उसी की वजह से उसे जेल जाना पड़ा था. शन्नो की मां अनवरी अकसर मायके आ कर बेटी को देख लेती थी.

इस बार अनवरी मायके आई, तो उस ने मायके के तमाम रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और अपनी लाचारी बयान करते हुए शन्नो के हाथ पीले करने की गुहार लगाई. इस पर मायके वालों ने भरपूर हमदर्दी जताई.

शन्नो के बड़े मामू साबिर ने तो मीटिंग के दौरान ही अपनी जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं ने शन्नो के लिए एक अच्छा सा लड़का देख रखा है. वह शरीफ है, कम उम्र का है, पढ़ालिखा है और नौकरी भी बहुत अच्छी करता है.’’

लेकिन जब लड़के की असलियत पता की गई, तो मालूम हुआ कि वह किसी भी नजरिए से शन्नो के लायक नहीं था. वह 50 साल से ऊपर का था और 2 बीवियों को तलाक दे चुका था. नौकरी करने के नाम पर वह दिल्ली में रिकशा चलाता था.

साबिर द्वारा पेश किया गया ऐसा बेमेल रिश्ता किसी को पसंद नहीं आया. नतीजतन, उस रिश्ते को नकार दिया गया. इस पर साबिर ने नाराजगी जताई, तो उस की बड़ी बहन नरगिस बानो ने साबिर को तीखा जवाब दिया, ‘‘लड़का जब इतना ही अच्छा है, तो शन्नो को दरकिनार करो और उस से अपनी बेटी को ब्याह दो.’’

नरगिस बानो के इस फिकरे ने साबिर के होश ठिकाने लगा दिए. वह तिलमिला कर फौरन मीटिंग से उठ गया. शन्नो के लिए एक मुनासिब लड़के की तलाश जारी थी और जल्दी ही नरगिस बानो ने एक लायक लड़के को देख लिया, जो सब को पसंद आया. शादी की तारीख एक महीने के अंदर तय की गई. चंद ननिहाली रिश्तेदारों ने माली मदद में पहल की. इस में नरगिस बानो खासतौर से आगे रहीं.

लड़का पेशे से वकील होने के अलावा एक सच्चा समाजसेवी भी था. उस के स्वभाव में करुणा कूटकूट कर भरी थी. उस ने लड़की वालों से किसी चीज की मांग नहीं की थी.

शन्नो की बरात आने में 10 दिन बाकी रह गए थे. इसी बीच एक दिन शन्नो के होने वाले पति रिजवान ने नरगिस बानो को फोन कर शादी से इनकार करने का संकेत दिया. वजह पूछने पर उस ने बताया कि लड़की अपने बाप को जेल की हवा खिलवा चुकी है. इस वजह से कोई भी शरीफ लड़का ऐसी लड़की को अपना हमसफर बनाना पसंद नहीं करेगा.

शन्नो के ननिहाल वालों की आंखों में मायूसी का अंधेरा पसर गया. वे आपस में मिलबैठ कर सोचविचार कर रहे थे कि बिगड़ी बात कैसे बनाई जाए, तभी नरगिस बानो के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. रिजवान का फोन था.

नरगिस बानो ने झट से फोन रिसीव किया और बोलीं, ‘‘तुम्हारे शुभचिंतकों ने हमारी शन्नो के खिलाफ और जो कुछ भी शिकायतें की हैं, तो वे भी हम से कह कर भड़ास निकाल लो.’’

‘ऐसी बात नहीं है, बल्कि मैं ने तो आप लोगों से माफी मांगने के लिए फोन किया है. मुझे माफ कर दीजिए प्लीज.’

नरगिस बानो ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर दिया, ताकि लड़के की बात उन के अलावा घर के दूसरे लोग भी सुन सकें.

‘आप के ही कुछ सगेसंबंधी मेरे कान भर कर मुझे गुमराह करने पर तुले थे. लेकिन भला हो एसआई पूनम मैडम का, जिन्होंने आप के रिश्तेदारों द्वारा रची गई झूठी कहानी का परदाफाश कर मेरी आंखें खोल दीं.’

‘‘लेकिन, कौन पूनम मैडम?’’ नरगिस बानो ने चौंक कर पूछा.

‘जी, वे एक पुलिस वाली होने के अलावा समाजसेवी भी हैं. उन से मेरी अच्छी जानपहचान है. मैं ने उन से शन्नो और उस के अब्बू फिरोज खान साहब से संबंधित थानापुलिस वाली बात जब बताई, तो उन्हें वह सारा माजरा याद आ गया. तब उन की पोस्टिंग बाकरपुर थाने में थी. उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है, जिस से सारी बात साफ हो गई और मेरा दिल साफ हो गया.’

शन्नो के ननिहाल वाले गौर से रिजवान की बातें सुन रहे थे. रिजवान ने आगे कहा, ‘बड़े अफसोस की बात है कि अपने लोग भी कितने दुश्मन होते हैं. ऐसे लोग अगर किसी मजबूर का भला नहीं कर सकते, तो कम से कम बुराई करने से परहेज करें.’

और फिर देखते ही देखते शन्नो की शादी रिजवान के साथ करा दी गई. शादी में एसआई पूनम यादव भी दूल्हे की तरफ से शरीक हुई थीं. विदाई के दौरान शन्नो की रोती हुई आंखें किसी को तलाश रही थीं. एसआई पूनम यादव उस की बेचैनी को समझ रही थीं. वे थोड़ी देर के लिए भीड़ से निकल गईं और जब लौटीं, तो उन के साथ शन्नो के अब्बू फिरोज खान थे. उस के हाथ में एक छोटी सी थैली थी.

अपने अब्बू को देखते ही शन्नो उन से लिपट गई और रोने लगी. फिरोज खान ने थैली शन्नो की तरफ बढ़ा दी. इसी बीच एसआई पूनम यादव शन्नो से मुखातिब हुईं, ‘‘तुम्हारे पापा ने कड़ी मेहनत और अरमान से तुम्हारे लिए ये गहने बनवाए हैं, इस की गवाह मैं हूं. मैं चाहे जहां भी रहूं, लेकिन ये कोई भी काम मुझ से मशवरा ले कर ही करते हैं.

‘‘तुम्हारे पापा अब बेटी को मुसीबत समझने की नासमझी से तोबा कर चुके हैं. तुम्हारी सारी बहनें अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं और खूब नाम रोशन कर रही हैं.’’

‘‘मैडमजी ठीक बोल रही हैं बेटी,’’ यह शन्नो की मां अनवरी बानो थीं.

एसआई पूनम यादव बोलीं, ‘‘बस यह समझो कि शन्नो बेटी के अच्छे दिन आ गए हैं. मुबारक हो.’’

शन्नो बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी मैडमजी. आप ने मेरे घर वालों को बिखरने से बचा लिया,’’ इतना कह कर वह एसआई पूनम यादव से लिपट कर इस तरह रो पड़ी, जैसे वह बरसों पहले बाकरपुर थाने में उन से लिपट कर रोई थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें