Best of Manohar Kahaniya: जैंट्स पार्लरों में चलता गरम जिस्म का खेल

बिहार की राजधानी पटना के तकरीबन हर इलाके में जैंट्स पार्लरों की भरमार सी है. चमचमाते और रंगबिरंगे पार्लर मनचले नौजवानों और मर्दों को खुलेआम न्योता देते रहते हैं. इन पार्लरों के आसपास गहरा मेकअप किए इठलातीबलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानैंट ग्राहकों को सैक्सी बातों से रिझातीपटाती नजर आ ही जाती हैं. वैसे, इन पार्लरों में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है. कुरसी के हैडरैस्ट के बजाय लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनवाने और फेस मसाज का मजा लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए.

फेस मसाज, हाफ बौडी मसाज से ले कर फुल बौडी मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस यानी पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशे में शामिल हो कर जिस्मानी सुख का भरपूर मजा उठाइए.

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जैंट्स पार्लरों में ग्राहकों से मनमाने दाम वसूले जाते हैं. शेव बनवाने की फीस 5 सौ से एक हजार रुपए तक है. फेस मसाज कराना है, तो एक हजार से 2 हजार रुपए तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3 हजार से 5 हजार रुपए देने पड़ेंगे और फुल बौडी मसाज के तो कोई फिक्स दाम नहीं हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, ऐक्जिबिशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुआं, पीरबहोर, मौर्यलोक कौंप्लैक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर वगैरह इलाकों में जैंट्स मसाज पार्लरों की भरमार है.

पिछले कुछ महीनों में पुलिस की छापामारी से जैंट्स पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ?है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों की मिलीभगत से जैंट्स पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों में नेपाली और बंगलादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उन की तादाद कम हुई है. बिहार और उत्तर प्रदेश की  लड़कियां अब उन में काम कर रही हैं. इन में ज्यादातर गरीब घरों की लड़कियां ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए यह धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती है कि उस का शौहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मजबूरी में मसाज पार्लर में काम करना पड़ा.

इसी तरह पति की मौत हो जाने के बाद ससुराल वालों की मारपीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी, पर उसे कोई काम नहीं मिला. बाद में उस की सहेली ने उसे जैंट्स पार्लर में काम दिलाया.

सोनी बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सैक्सी निगाहों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर अब इन सब की आदत हो गई है.

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समाजसेवी प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि ऐसे पार्लरों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती है. कुछ लड़कियां ही ऐसी होती हैं, जो ऐशमौज करने और महंगे शौक पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

वहां आसपास रहने वाले लोगों की कई शिकायतों के बाद कभीकभार पुलिस जागती है और एकसाथ कई मसाज पार्लरों पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर चलाने वालों और दर्जनों ग्राहकों को पकड़ कर ले जाती है.

पुलिस देह धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिनों तक तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद ही पुलिस छापामारी करती है. प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जबरदस्ती या लालच दे कर काम कराया जा रहा है. वे तो पुलिस को यही बयान देती हैं कि वे अपनी मरजी से काम कर रही हैं. अगर वे देह बेचने को मजबूर नहीं की गई हैं, तो प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट बेमानी हो जाता है. इस से कानून कुछ नहीं कर पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड अफसर की मानें, तो ऐसे पार्लरों पर छापामारी पुलिस के लिए पैसा उगाही का जरीया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लरों पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है, वह महज रोबधौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी की जाती है.

पटना हाईकोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्यवाही तभी हो सकती है, जब वह दबाव बना कर कराया जा रहा हो. जब किसी औरत का जबरन या खरीदफरोख्त के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन देह धंधा नहीं माना जाएगा.

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मसाज पार्लरों से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती हैं कि उन से जबरन कोई काम कराया जा रहा है, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी जैंट्स पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है?

कातिल कौन

कातिल कौन : भाग 3

लेखक- अहमद यार खान

इस पर दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. लड़कों ने बीचबचाव कराया. सफदर ने धमकी दी कि वह उसे जान से मारेगा. सफदर वहां से चला आया.

अरशद की बात सुन कर मुझे खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सफदर ने अपनी मां की हत्या खुद ही कर दी हो. अगर ऐसा हुआ हो तो फिर सवाल यह था कि सफदर की हत्या किस ने की? जबकि जो पग चिह्न शादो की लाश के पास पाए गए थे, वही सफदर के घर के सहन में पाए गए. दोनों क ी हत्या भी एक ही तरह से की गई थी.

मुझे यह देखना था कि वह आदमी कौन था. सब से पहले मैं ने परवीन से बात करने के बारे में सोचा. मैं ने नंबरदार से कहा कि वह परवीन को बुलाए. उस ने अपनी नौकरानी को परवीन को बुलाने भेज दिया.

वह लड़की आ कर मेरे सामने बैठ गई. वह करीब 16-17 साल की होगी. वह मामूली सी लड़की घबराई हुई थी. मैं ने सब से पहले उस से अपनी कलाई दिखाने के लिए कहा. उस ने कलाई आगे कर दी. उस में लाल रंग की बची हुई चूडि़यां थीं और उस की कलाई पर चूड़ी के कुछ घाव भी थे.

मैं ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘चूड़ी तो बहुत अच्छी पहन रखी हैं. लगता है कहीं गिरने से टूट गई हैं.’’

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‘‘हां, मैं गिर गई थी.’’ वह कलाइयों को देख कर बोली, ‘‘चोट भी लगी और चूडि़यां भी टूट गईं.’’

‘‘कहां गिरी थीं?’’

वह एकदम घबरा गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘वो…एक सहेली के घर गिरी थी.’’

‘‘कौन सी सहेली?’’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘उस का नाम बताओ?’’

वह सोच में पड़ गई. सीधीसादी देहाती लड़की थी. उस में चालाकी नहीं थी. कोई चालाक लड़की होती तो तुरंत कोई नाम बता देती.

‘‘मैं तुम्हारी सहेली का नाम बता देता हूं, जिस के घर में तुम्हारी चूडि़यां टूटी थीं.’’ मैं ने जेब से रूमाल में बंधे चूडि़यों के टुकड़े उस के सामने रख दिए और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सहेली के घर से उठा लाया हूं.’’

चूडि़यों के टुकड़े देख कर उस की हालत ऐसी हो गई जैसे अभी बेहोश हो कर गिर जाएगी. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. किसी से मिलना कोई पाप नहीं है और न ही यह कोई अपराध है.’’

वह फिर संभल गई.

‘‘सफदर की हत्या हो गई है और मुझे उस के हत्यारे को पकड़ना है. तुम इस मामले में मेरी मदद करो. यह बताओ, वहां कौन आया था, तुम्हारा बाप या भाई?’’ मैं ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा.

‘‘उन में से कोई नहीं आया था. उन्हें तो इस मामले की खबर भी नहीं है. वह अब्बास था.’’

सुन कर मुझे झटका सा लगा. उस ने कहा, ‘‘वह वहां पहले से मौजूद था.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने वहां जो कुछ देखा, वह मुझे सचसच बताओ.’’

उस के जवाब में परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया. अपने और सफदर के संबंध के बारे में भी.

उस ने बयान में बताया कि वह सफदर से चोरीछिपे मिलती थी. जब सफदर की मां की हत्या हो गई तो वह उस के घर जा कर मिलती थी. घटना वाले दिन भी वह रात में सफदर के घर गई. दरवाजा खुला था.

वह अंदर गई तो देखा सफदर जमीन पर पड़ा था और उस की गरदन में कपड़ा पड़ा हुआ था. फिर वह आदमी सीधा खड़ा हो गया.

यह देख कर परवीन की चीख निकल गई. चीख सुन कर वह उस की ओर पलटा. वह अब्बास था. परवीन उसे देख कर भागना चाहती थी, लेकिन उस के कदम वहीं जम गए. अब्बास ने उस की कलाई पकड़ कर खींचा तो चूडि़यां टूट गईं.

उस के बाद अब्बास ने पूरी ताकत से उस की गरदन अपनी बाजुओं में दबा ली, जिस से उस की आंखें निकल आईं और सांसें उखड़ने लगीं. वह अपनी गरदन छुड़ाने की कोशिश करने लगी. अपने नाखूनों से उस की कलाई को नोचा लेकिन अब्बास पर उस का कोई असर नहीं हुआ. मौत उस की आंखों के सामने नाचने लगी.

फिर अब्बास ने उस की गरदन छोड़ दी और वह सफदर के ऊपर गिर गई. अब्बास बोला, ‘‘यह केवल नमूना था, अगर तूने अपनी जबान खोली तो तुझे भी मार दूंगा.’’

वह इतना डर गई थी कि कुछ बोल नहीं सकी.

‘‘एक बात याद रखना परवीन,’’ अब्बास ने उस से कहा, ‘‘अगर तूने जबान खोली तो फिर मैं पूरे गांव को बता दूंगा कि तू सफदर के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. सोच ले, तेरे मांबाप का क्या हाल होगा. उन में जरा भी शर्म होगी तो डूब मरेंगे.’’

अब्बास ने परवीन को इतना डरा दिया था कि वह बिलकुल चुप रहने लगी थी. मैं ने परवीन को भेज दिया और थाने आ कर एएसआई और एक कांस्टेबल को अब्बास को गिरफ्तार करने के लिए भेज दिया. यह दोहरे हत्याकांड की कहानी थी. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि अब्बास ने मांबेटे की हत्या क्यों की थी, जबकि वह शादो और उस के बेटे से बहुत प्यार करता था.

एएसआई अब्बास को हथकड़ी लगा कर ले आया. वह बहुत गुस्से में था. दोनों मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गए. अब्बास बोला, ‘‘यह ज्यादती है. आप मुझे कहते, मैं दौड़ा चला आता.’’

मैं ने रूखेपन से कहा, ‘‘कोई ज्यादती नहीं है अब्बास, हत्यारों को इसी तरह थाने लाया जाता है.’’

‘‘लगता है तुम्हें अब भी मेरे ऊपर शक है?’’ अब्बास अकड़ में बोला.

मैं ने कहा, ‘‘शक नहीं है, दोनों हत्याएं तुम ने की हैं. मेरे पास पक्के सबूत हैं. कहो तो एकएक तुम्हारे सामने रख दूं. अच्छा यही है कि तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो और बयान दे दो.’’

मेरी बात सुन कर पहले तो वह घबराया और फिर हर अपराधी की तरह अपने आप को निर्दोष बताने लगा. मैं ने उस से क हा, ‘‘अपनी आस्तीन ऊपर करो.’’

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उसने बांह ऊपर की तो परवीन के नाखूनों से लगे घाव दिखाई दे गए.

वह घबरा गया, ‘‘वो…वो…’’

‘‘झूठ मत बोलना, परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया है. बोलो, अपना अपराध स्वीकार करते हो?’’

वह ऐसे ढीला पड़ गया, जैसे गुब्बारे से हवा निकल गई हो. मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने दोनों की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने केवल सफदर की हत्या की है. शादो की हत्या उस के बेटे सफदर ने की थी. वह हमारा मिलना पसंद नहीं करता था.’’ अब्बास ने कहा.

उस के इस बयान से सारा मामला समझ में आ गया. सफदर को उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह उस लड़के के तानों से दुखी था.

अब्बास ने बताया कि जब सफदर के पिता की मृत्यु हो गई थी तब सफदर छोटा था. लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो उसे उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. कई बार वह इस मामले में अपनी मां से लड़ा भी था.

घटना वाली रात शादो और अब्बास खंडहर में बैठे थे कि सफदर वहां आ गया. अब्बास ने मुझ से झूठ कहा था कि वह अंधेरे में आने वाले को पहचान नहीं सका था. शादो ने सफदर को देखते ही कहा, ‘‘तुम पीछे से निकल जाओ, मैं सफदर को संभाल लूंगी.’’

बाद में पता लगा शादो की हत्या हो गई.

शादो के मरने के बाद अब्बास बहुत दुखी हुआ और मौके की तलाश में रहा कि सफदर को ठिकाने लगाए. फिर एक रात उस ने सफदर को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए वह उस के घर गया.

सफदर उसे देख कर हैरान हुआ. उस ने कहा कि वह उस से कुछ बात करने आया है, लेकिन सफदर को पता नहीं था कि अब्बास के रूप में उस की मौत आई है.

सफदर उसे ले कर अंदर कमरे में जाने लगा. अब्बास ने मौका देख कर पीछे से उस के गले में पड़े गमछे को उस की गरदन में लपेट कर खींच लिया और उसे दबाता चला गया.

सफदर बहुत उछला कूदा, लेकिन अब्बास ताकतवर था. उस ने सफदर को नीचे गिरा कर उस पर पैर रख दिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक उस का दम नहीं निकल गया.

अब्बास ने गमछा गरदन में ही रहने दिया. उस ने अपनी शादो का बदला बिलकुल वैसे ही लिया था, जैसे उस ने अपनी मां को गले में दुपट्टे का फंदा डाल कर मारा था. फिर परवीन दिखाई दी. उस के बाद की कहानी परवीन सुना चुकी थी. यह बयान दे कर वह बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा. मैं उस की भावनाओं को समझ रहा था. वह मांबेटे से बहुत प्यार करता था.

केस तैयार कर के मैं ने अदालत में दाखिल कर दिया. अब्बास अपने बयान पर कायम रहा. मैं ने परवीन की गवाही भी दिलवाई, जिस के कारण वह गांव में बदनाम भी हो गई. अदालत ने उसे मृत्युदंड दिया. उस के वकील ने अपील के लिए कहा, लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि शादो के बिना अब वह जीना नहीं चाहता.

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इस कहानी का एक दुखद पहलू यह भी रहा कि बदनामी की वजह से परवीन ने नहर में कूद कर जान दे दी. मुझे इस का बहुत दुख हुआ. लेकिन मैं क्या करता, क्योंकि बिना गवाही के अदालत सजा नहीं देती.

कातिल कौन : भाग 2

लेखक- अहमद यार खान

मेरी इस बात से सलामत के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने सोचा भी नहीं होगा कि मैं इतना सब कुछ जान गया हूं. वह घबरा कर मेरी ओर देखने लगा. उस के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था. मैं ने उसे कमजोर पा कर और दबाव बनाया, ‘‘फिर तुम ने अपनी धमकी पर अमल कर दिया. अब्बास कैसे बच निकला?’’

‘‘वह तो…वह तो…’’ उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘मैं ने उसे डराने के लिए कहा था. अगर हत्या ही करनी होती तो मैं अब्बास की करता.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है जब तुम वहां पहुंचे तब तक अब्बास आया ही न हो और शादो को अकेला पा कर तुम ने उस के साथ जबरदस्ती की हो. जब वह तुम्हारे काबू में नहीं आई तो तुम ने उसी के दुपट्टे से गला दबा कर उसे मार डाला, जिस से वह किसी को कुछ बता न सके.’’

मैं ने पुलिसिया लहजे में कहा तो वह कसमें खाखा कर मुझे यकीन दिलाने लगा कि हत्या उस ने नहीं की. लेकिन मैं उस की कसमों पर विश्वास नहीं कर सकता था.

मैं ने उस से पूछा कि घटना वाली रात वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर में ही था. मैं ने सलामत से कहा कि वह झूठ बोलने की कोशिश न करे, क्योंकि वह जो कुछ भी कहेगा, मैं उस की पुष्टि अपना आदमी भेज कर करा लूंगा.

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कांस्टेबल ने आ कर इशारे से बताया कि अब्बास आ गया है.

मैं ने कहा, ‘‘सलामत को ले जा कर लौकअप में बंद कर दो और उसे यहां भेज दो.’’

पूछताछ के दौरान अब्बास ने बताया कि हत्या वाली रात वह शादो के साथ ही था. उसे जरा भी अनुमान नहीं था कि वह मर जाएगी, नहीं तो वह उसे छोड़ कर नहीं आता.

अब्बास के अनुसार, शादो ने अपनी जिंदगी के अकेलेपन में उस पर भरोसा किया और उस से शादी भी करना चाहती थी. लेकिन उस के घर वाले उस की शादी अपनी जानपहचान में कराना चाहते थे. जबकि शादो को वह आदमी बिलकुल पसंद नहीं था. उस ने बहाना बनाया कि मैं अपने बेटे पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देना चाहती.

अब्बास उस से सच्चा प्रेम करता था. उस ने शादो से कई बार शादी के लिए कहा लेकिन उस ने मना कर दिया. शादो ने उसे बताया कि जिस आदमी से उस का रिश्ता उस के घर वाले चाहते थे, वह पहले से ही शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. साथ ही शादो की छोटी बहन की शादी उस आदमी के छोटे भाई से हुई थी. अगर शादो उस आदमी को छोड़ कर कहीं और शादी करती तो उस आदमी के घर वाले उस की बहन का घर बरबाद कर देते. इसलिए उस ने शादी न करने का फैसला कर लिया था.

जब कोई राह नहीं मिली तो शादो और अब्बास ने खुदा को गवाह बना कर एकदूसरे को पतिपत्नी मान लिया था. लेकिन उस की कानूनी और सामाजिक हैसियत कोई नहीं थी. वे दोनों खंडहर में मिला करते थे. उस रात भी वे दोनों साथ थे. अचानक पत्तों के चरमराने की आवाज सुन कर अब्बास ने शादो से कहा कि वह दूसरी ओर से निकल जाए. अब्बास भी खंडहर के दूसरी ओर से निकल कर गांव आ गया.

अगली सुबह पता लगा कि शादो की हत्या हो गई. यह दास्तां सुनाने के बाद अब्बास ने फिर से अफसोस जाहिर किया, ‘‘अगर उसे पता होता तो वह शादो को अकेला नहीं छोड़ता और कायरों की तरह गांव नहीं आता.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर शक है? सलामत ने तुम दोनों को मारने की धमकी दी थी.’’

लेकिन अब्बास ने यह कह कर सलामत को शक के दायरे से बाहर कर दिया कि उस रात जो आदमी आ रहा था, उस का साया छोटा था और सलामत कद में लंबा है.

उस के बयान से यह बात तो साफ हो गई कि सलामत निर्दोष है. मैं ने उस से बहुत से सवाल किए और यह कह कर उसे जाने दिया कि अगर इस मामले में उसे कुछ पता लगे तो हमें सूचित करे. मैं ने सलामत को भी जाने दिया.

अगले दिन सूचना मिली कि शादो के मांबाप और भाई रफीक अकसर उस से मिलने आया करते थे. जब उस के घर वालों को शादो और अब्बास के संबंधों का पता लगा तो रफीक ने शादो से सख्ती से पूछताछ की. शादो ने कसम खा कर उसे यकीन दिलाया कि उस के किसी से भी संबंध नहीं हैं.

हत्या से एक दिन पहले रफीक ने शादो से कहा था कि अगर उसे पता लगा कि लोग जो कुछ कहते हैं, वह सच है तो अपने हाथों से उस का गला घोंट देगा. और अगली ही रात शादो की गला घोंट कर हत्या कर दी गई.

शादो के घर वाले उस के क्रियाकर्म के लिए गांव में ही रुके हुए थे. मैं ने कांस्टेबल को भेज कर शादो के भाई रफीक को थाने बुलवा लिया.

पूछताछ के दौरान रफीक ने यह तो मान लिया कि उस का शादो से झगड़ा हुआ था. लेकिन उस की हत्या की बात से साफ इनकार करते हुए बोला कि वह उस दिन अपने एक दोस्त की शादी में गया हुआ था.

मुझे उस की बात में सच्चाई लग रही थी. मैं ने एक कांस्टेबल को शहर भेज कर सच्चाई पता करने के लिए कहा. उस के बाद मैं ने रफीक को इस ताकीद के साथ जाने दिया कि बिना इजाजत वह गांव छोड़ कर न जाए.

2 घंटे बाद कांस्टेबल लौट आया और उस ने रफीक की बात की पुष्टि कर दी. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया. हत्या हुए 2 दिन हो गए थे, लेकिन मेरी जांच एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी थी.

अगली सुबह एक कांस्टेबल ने घर आ कर जो खबर सुनाई, उस ने मेरे होश उड़ा दिए. उस ने बताया कि नंबरदार खबर लाया है. शादो का बेटा सफदर घर में मरा पड़ा है. किसी ने उसे गला घोंट कर मार दिया है.

मैं तुरंत थाने पहुंचा. मैं ने नंबरदार से पूछा तो उस ने बताया कि शादो के क्रियाकर्म के बाद सब लोग अपनेअपने घर चले गए. सफदर के नानानानी और मामा ने उस से साथ शहर चलने के लिए कहा तो उस ने मना कर दिया कि वह कुछ दिन बाद आ जाएगा.

वह हर रोज सुबह को योगा करने जाता था. उस दिन सुबह को उस का एक दोस्त उसे बुलाने घर गया. सफदर घर में अकेला रहता था. उस ने दरवाजा खटखटाया. जब काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला तो उस ने दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा खुला हुआ था. उस ने अंदर जा कर देखा तो सफदर मरा पड़ा था.

वह डर गया और सीधा नंबरदार की हवेली जा कर उसे पूरी बात बताई. नंबरदार तुरंत उस के साथ आया और अंदर सफदर की लाश देखी. उस ने घर की कुंडी लगा दी और सीधा थाने आया. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

घर के अंदर जा कर लाश को देखा. जैसे मां को गला घोंट कर मारा गया था, उसी तरह बेटे को भी मारा गया था. सफदर अपने गले में एक गमछा डाले रखता था, उसी गमछे से पीछे की ओर खींच कर उस की हत्या की गई थी. मैं ने वहां कांच की चूडि़यों के टुकड़े बिखरे हुए देखे.

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उन टुकड़ों को मैं ने जेब में रख लिया. मैं ने लाश की बहुत बारीकी से जांच की. उस के शरीर पर कोई घाव नहीं था. कमरे का सामान भी ज्यों का त्यों था, कोई चीज बिखरी हुई नहीं थी.

इस का मतलब उसे अचानक ही मारा गया था. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद मैं ने सहन में जा कर देखा, वहां मुझे पैरों के निशान दिखाई दिए. वे निशान बिलकुल वैसे थे जो शादो की लाश के पास मिले थे. इस का मतलब यह था कि दोनों हत्याएं एक ही आदमी ने की थीं. अब इस हत्या में एक नई बात यह हुई कि इस में एक औरत भी शामिल हो गई थी, क्योंकि वहां से चूडि़यों के टुकड़े पाए गए थे.

मैं ने सफदर के दोस्त अरशद को अपने पास बिठा लिया. फिर उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त की हत्या का बड़ा दुख है. मैं उस के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं. मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. तुम्हारा दोस्त किसी लड़की के चक्कर में मारा गया है. यह बताओ उस का किसी लड़की के साथ संबंध था?’’

उस ने कहा, ‘‘यह मेरे और मेरे दोस्त के बीच का राज है. मैं किसी को बताना नहीं चाहता था, लेकिन अब जब मेरा यार ही नहीं रहा तो छिपाने से क्या फायदा. गांव की एक लड़की परवीन उस पर मरती थी और दोनों चोरीछिपे मिलते थे. सफदर उस लड़की के साथ सीरियस नहीं था, जबकि परवीन उस से शादी करना चाहती थी. सफदर उसे धोखा दे रहा था, उस के साथ प्रेम के नाम पर पाप का खेल खेल रहा था.’’

अरशद ने बताया कि सफदर ने उसे बताया था कि परवीन उस की वजह से कुंवारी मां बनने वाली है. वह सफदर से मिन्नतें करती थी कि जितनी जल्दी हो सके, उस से शादी कर ले, जिस से वह बदनामी से बच जाए. लेकिन सफदर उसे टालता रहा. उस का परवीन से शादी करने का कोई इरादा नहीं था.

अब देखिए मां भी प्रेम जाल में फंस कर मारी गई और बेटा भी उसी खेल में मारा गया. मैं ने अरशद से पूछा कि लड़की के घर वालों को पता था तो उस ने कहा पता नहीं. वैसे उस ने कहा कि सफदर रोज योगा करने जाया करता था. वहां एक नीची जाति के लड़के ने सफदर को कुछ कह दिया तो उस ने कहा, ‘‘छोटा मुंह, बड़ी बात न कर.’’

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जवाब में उस लड़के ने कहा, ‘‘हम गरीब जरूर हैं लेकिन बेशर्म नहीं हैं. इतने ही शर्मदार हो तो पहले अपनी मां और अब्बास को मारो, फिर हम से बात करना.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कातिल कौन : भाग 1

लेखक- अहमद यार खान  

पंजाब के एक बड़े शहर से 5 किलोमीटर दूर एक दोहरा हत्याकांड हुआ था. वह इलाका मेरे थाने के अंदर आता था. एक दिन सुबह अंधेरे ही मुझे जगा कर बताया गया कि एक हत्या की सूचना आई है. मैं तुरंत तैयार हो कर थाने पहुंचा. वहां गांव का नंबरदार और एक आदमी बैठा हुआ था. उन्होंने बताया हमारे गांव की एक औरत शादो की लाश गांव में ईंटों के पुराने भट्ठे के पास पड़ी है.

‘‘लाश किस ने देखी थी,’’ मेरे पूछने पर नंबरदार ने उस आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह अपने खेतों पर जा रहा था. इसने लाश पड़ी देखी.’’

मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. रास्ते में नंबरदार से मृतका के बारे में पूछताछ करता रहा. उस ने बताया कि शादो पास के शहर से ब्याह कर गांव आई थी. शादी के 5 साल बाद उस के एक बेटा हुआ. जब बेटा 2 साल का हुआ तो उस का पति टाइफाइड की बीमारी से मर गया.

वह बहुत सुंदर थी, जवान थी. बहुत से लोगों ने इशारों में उस से शादी करने की बात की. कुछ ने लूट का माल समझ कर हड़पना चाहा, लेकिन उस ने सब को ठुकरा दिया. उस ने कहा कि वह अपने बेटे पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देगी.

अब उस का बेटा 18 साल का जवान हो गया है. लेकिन शादो की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई. वह 40 साल की उमर में भी आकर्षक लगती थी. कुछ लोग उस के बारे में कई तरह की बातें करते थे. इन बातों में 2 आदमियों का नाम अकसर लिया जाता था. एक तो जमींदार और दूसरा गांव का ही एक सब्जी का कारोबार करने वाला, जो गांव से शहर सब्जियां सप्लाई करता है.

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कुछ ही देर में हम घटनास्थल पर पहुंच गए. वह ईंटों का एक पुराना भट्ठा था, जो टूटफूट चुका था. उस भट्ठे के बीच में ईंट पकाने की जगह बनी थी. उस व्यक्ति ने वह जगह दिखाई. मैं लाश के पास पहुंचा. वहां एक औरत की लाश करवट के बल पड़ी थी. उस ने फूलदार कमीज पहन रखी थी और पैरों में चमड़े की कीमती जूती थी.

ऐसी जूती गांव की औरतें नहीं पहनती थीं, केवल शहरों में पहनी जाती थी. उस का दुपट्टा उस के गले में ऐसे लिपटा था, जिस से साफ जाहिर था कि उस को गला घोंट कर मारा गया है. मृतका की आंखें बाहर को निकली हुई थीं. दुपट्टे के कारण उस का मुंह खुल गया था और जुबान बाहर निकली हुई थी.

मैं ने लाश की बारीकी से जांच की. शरीर पर कहीं भी कोई चोट या घाव का निशान नहीं था. उस की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई थी. आसपास की जमीन पर 3 जोड़ी जूतों के निशान थे. एक तो जनाना जूती जो मृतका की थी. 2 जोड़ी जूतों के निशान मरदाना था.

मरदाना जूते अलगअलग प्रकार के थे, जो साफ पहचाने जा रहे थे. एक निशान देसी जूती का था जो गांव में पहने जाते हैं और दूसरा शहरी जूते का था जो अकसर गांव में नहीं पहने जाते. ये तीनों निशान गांव की ओर से आए थे. इन में से एक निशान पिछली ओर को जा रहा था, दूसरा गांव की ही ओर से वापस आ रहा था.

मैं ने निशानों के मोल्ड बनवा लिए. नंबरदार गांव से चारपाई ले आया और लाश को गांव में ले आए. शादो की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. तभी एक जवान लड़का तेजी से वहां आया और लाश से लिपट कर रोने लगा. नंबरदार ने बताया यह शादो का बेटा है. वह भी अपनी मां की तरह आकर्षक था.

नंबरदार ने अपनी बैठक में हमारे बैठने का प्रबंध कर दिया. मैं ने हत्या के बारे में सोचना शुरू किया.

सब से पहले मैं ने नंबरदार से शादो के लड़के सफदर को बुलवाया. वह आ कर मेरे सामने बैठ गया. मैं ने देखा, उस के चेहरे पर अब ऐसा दुख दिखाई नहीं दे रहा था, जैसा मां की हत्या पर होना चाहिए था. अभी थोड़ी देर पहले तो वह दहाड़ें मार कर रो रहा था और अब ऐसा लग रहा था जैसे वह रोया ही न हो. मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’’

उस ने कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. हमारी किसी से कोई लड़ाईझगड़ा नहीं है.’’

‘‘जायदाद का कोई झगड़ा?’’ मेरे पूछने पर उस ने कहा, ‘‘हमारे बाप के कोई भाईबहन नहीं थे, इसलिए जायदाद का कोई झगड़ा नहीं है.’’

‘‘देखो सफदर, मुझे हत्यारे को पकड़ना है और मुझे तुम से तुम्हारी मां के बारे में कुछ ऐसे सवाल करने हैं, जो एक बेटा सहन नहीं कर सकता. लेकिन यह मेरी मजबूरी है. मुझे पता लगा है कि तुम्हारे पिता के मरने के बाद तुम्हारी मां से कुछ लोग शादी करना चाहते थे, लेकिन तुम्हारी मां ने सब को जवाब दे दिया था,’’ मैं सफदर के चेहरे पर आतेजाते भावों को गौर से देख रहा था.

कुछ रुक कर मैं ने कहा, ‘‘अब भी 2 आदमी ऐसे हैं जो तुम्हारी मां में रुचि रखते थे. क्या ऐसा नहीं हो सकता, उन में से किसी ने गुस्से में आ कर तुम्हारी मां की हत्या कर दी हो?’’

वह कुछ नहीं बोला. बस खालीखाली नजरों से मेरे मुंह को ताकता रहा. मैं ने फिर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारी जानकारी में ऐसा कोई आदमी है?’’

‘‘यह सब बकवास है.’’ कह कर उस ने मुंह दूसरी ओर फेर लिया. वह मेरे से नजरें मिलाना नहीं चाहता था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरी ओर देख कर बात करो.’’

उस ने गरदन नीची कर के धीमी आवाज में कहा, ‘‘जैसा आप ने सुना है, वैसा मैं ने भी सुना है. लोग मेरी मां के बारे में उलटीसीधी बातें करते हैं.’’

‘‘कैसी बातें?’’

‘‘यही कि मेरी मां के अब्बास के साथ संबंध हैं. सब बकवास करते हैं.’’

अब्बास के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह मंडी में सब्जी फलों का काम करता है. मुझे याद आया, यह वही सब्जी वाला है जिस के बारे में नंबरदार ने बताया था. लेकिन अब्बास शादो की हत्या क्यों करेगा. एक सवाल और था, शादो ईंटों के भट्ठे पर अगर अब्बास से मिलने गई थी तो फिर दूसरा आदमी कौन था. शादो की हत्या अब्बास या उस दूसरे आदमी में से किसी ने की होगी, क्योंकि वहां 2 आदमियों के पैरों के निशान मिले थे.

मैं ने सफदर से 2-3 सवाल पूछने के बाद उसे भेज दिया और थाने आ गया. लाश को मैं ने पहले ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.

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मैं ने अपने मुखबिरों को खबर लाने के लिए लगा दिया, जिन में 2 औरतें थीं जो अंदर तक का भेद निकाल लाती थीं. मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. साथ ही 2 आदमियों से तफ्तीश भी करनी थी. एक तो अब्बास और दूसरा जमींदार सलामत.

मैं ने अब्बास और सलामत को लाने के लिए एक कांस्टेबल को भेज दिया. लेकिन उस के आने से पहले ही 2 मुखबिर आ गए और उन्होंने जो रिपोर्ट दी, उस में अब्बास और सलामत पर शक किया गया था.

एक मुखबिर ने बताया शुरू में तो शादो अपने शादी न करने के निर्णय पर डटी रही और अपना पूरा ध्यान बेटे के पालनपोषण पर लगाती रही. इस बीच उस के चाहने वाले एकएक कर के खिसकते चले गए. लेकिन अब्बास और सलामत ने उम्मीद नहीं छोड़ी. वे शादो की सहायता के बहाने उस से संबंध बनाने की कोशिश में लगे रहे.

इन्हीं कोशिशों के दौरान अब्बास का शादो के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर वे बाहर भी एक साथ देखे जाने लगे. इस पर लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दीं तो अब्बास ने यह कह कर उन्हें चुप कर दिया कि उस का शादो के साथ भाईबहन का संबंध है.

दूसरी ओर सलामत ने शादो से निराश हो कर अब्बास को धमकी देनी शुरू कर दी कि वह शादो से दूर रहे वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. अब्बास ने भी उसी लहजे में जवाब दिया कि हमारे बीच में टांग अड़ाई तो टांगें तोड़ दूंगा.

मुखबिर ने यह भी बताया कि एक बार दोनों की तूतूमैंमैं भी हुई थी. तब सलामत ने अब्बास को धमकी दी थी कि वह और शादो गंदे कामों से दूर रहें, नहीं तो उन्हें रंगेहाथों पकड़ कर उन की हत्या कर देगा.  यह जानकारी देने के बाद दोनों मुखबिर चले गए.

एक कांस्टेबल सलामत को ले कर आ गया था. दूसरा अब्बास को लेने गया हुआ था. मैं ने उस से कह दिया था कि अगर वह अब्बास को ले कर आ जाए तो उस को अलग कमरे में बैठा दे. उसे यह पता नहीं चलना चाहिए कि सलामत यहां आया हुआ है.

सलामत मेरे सामने था. वह गठे शरीर का स्वस्थ जवान था. बस एक ही कमी थी कि उस के चेहरे पर चेचक के बड़ेबड़े निशान थे. शायद इसी वजह से शादो ने उस की बजाय अब्बास से दोस्ती की होगी. मैं ने उस से इधरउधर की बातें करने के बाद शादो का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘शादो के साथ बुरा हुआ.’’

वह बोला, ‘‘बुरे काम का अंत भी बुरा ही होता है.’’

मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

उस ने कहा, ‘‘पूरे गांव को पता है, अब्बास और शादो गंदा काम करते थे.’’

‘‘सचसच बताओ, तुम्हारी अब्बास से क्या दुश्मनी है?’’ मैं ने उसे सोचने का मौका दिए बगैर सीधा सवाल किया तो उस ने यकीन से कहा, ‘‘मेरी उस से कोई दुमश्नी नहीं है.’’

‘‘फिर तुम ने उसे धमकी क्यों दी थी?’’

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‘‘कौन सी धमकी सरकार?’’

‘‘यही कि गंदे काम बंद करो नहीं तो दोनों को रंगेहाथों पकड़ कर दोनों की हत्या कर दूंगा. यही धमकी दी थी न तुम ने?’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शौहर की साजिश : भाग 3

इशहाक की बड़ी बेटी नसरीन खूबसूरत थी. उस ने जब सोलह साल की उम्र पार कर ली तो उस का रूप रंग ओस में नहाई बूंदों की तरह दमकने लगा. बेटी सयानी हो गई तो इश्हाक ने उस की शादी रियाज अली से कर दी, उस का परिवार बहराइच जिले के इटकौरी गांव का रहने वाला था, पिता सादिक अली खेतीबाड़ी करते थे. सादिक का छोटा बेटा मेराज मुंबई में रह कर नौकरी करता था, जबकि रियाज अली खेतीकिसानी में हाथ बंटाता था.

गांवकस्बों की विडंबना यह है कि वहां की महिलाएं किसी भी बात को मुद्दा बना कर उलटीसीधी बातें करने लगती हैं. नसरीन के बारे में भी ऐसी ही बातें शुरू हो गईं. नसरीन की सास सायरा को ऐसी बातें सुनने को मिलती तो वह नसरीन से चिढ़ जाती. शायरा ने इस मुद्दे पर नसरीन से बात की तो उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी बच्चा बातों से तो होने से रहा, जब अल्ला की मर्जी होगी हो जाएगा.’’

एक वर्ष और बीत गया. लेकिन नसरीन मां नहीं बन सकी तो सायरा का नजरिया बदल गया. वह नसरीन को बांझ समझ कर उसे प्रताडि़त करने लगी. अब वह नसरीन के हर काम में नुक्ताचीनी करने लगी थी. बातबेबात नसरीन से उलझने लगी. नसरीन कुछ कह देती तो वह उस पर हाथ भी उठा देती थी. वह शौहर रियाज अली से शिकायत करती तो वह मां का ही पक्ष लेता.

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उन्हीं दिनों रियाज अली रिश्तेदारी की एक खूबसूरत लड़की पर रीझ गया. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उस लड़की का घर आनाजाना शुरू हो गया. नसरीन की सास सायरा भी उसे तवज्जों देने लगी. नसरीन को इस बढ़ती प्रेम कहानी की जानकारी हुई तो वह विरोध करने लगी. इस पर रियाज उसे पीटता और कभीकभी रात में ही उसे मारपीट कर घर से भी निकाल देता. तब नसरीन घर के बाहर पेड़ के नीचे रात गुजारती.

एक दिन किसी बात को ले कर सासबहू में झगड़ा हुआ तो सायरा ने साफसाफ कह दिया, ‘‘कान खोल कर सुन ले नसरीन. तू बांझ है, इसलिए मैं रियाज की दूसरी शादी करूंगी. तू या तो मेरे बेटे का पीछा छोड़ दे या फिर मायके चली जा. अब मैं और मेरा बेटा तुझे घर में नहीं रख सकते.’’

सास की बात सुन कर नसरीन सन्न रह गई. उस ने इस शादी का विरोध किया तो उस की जम कर पिटाई हुई. उस ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार की जानकारी मातापिता को दी तो इशहाक आया और रियाज और उस की मां से बात की. लेकिन उस की बातों का मांबेटे पर कोई असर नहीं हुआ.

तब तक रियाज का बाप सादिक अली भी नसरीन के विरोध में खड़ा हो गया.

जब रियाज अली को लगा कि घर वाले उस की दूसरी शादी को राजी हैं तब उस ने उस लड़की से निकाह की बात की. लेकिन उस ने यह कहकर इनकार कर दिया कि जब तक उस की पत्नी घर में हैं, वह निकाह के बारे में सोच भी नहीं सकती. उस की इस बात से रियाज दुखी हो गया.

सउदी अरब चला गया रियाज

रियाज की शादी उस लड़की से हो पाती उस के पहले ही रियाज का पासपोर्ट बन गया और वह नौकरी के लिए सउदी अरब चला गया. शौहर के परदेश जाने के बाद नसरीन कभी मायके में रहती तो कभी ससुराल में. जब नसरीन ससुराल में होती तो सासससुर उसे प्रताडि़त करते, भूखाप्यासा रखते. देवर मेराज का भी रवैया बदल गया था. अब वह जब भी मुंबई से घर आता तो नसरीन से बात नहीं करता था. वह उसे नफरत की नजरों से देखता.

लेकिन ससुराल वालों की नफरत के बावजूद नसरीन ने न ससुराल छोड़ी और न ही शौहर का साथ. रियाज अली जब भी परदेश से बात करता तब वह नसरीन को धमकाता कि वह उस का घर छोड़ कर चली जाए. लेकिन नसरीन इनकार कर देती.

वर्ष 2019 के जनवरी माह में रियाज जब परदेश से घर आया तो उस ने नसरीन को खूब मारापीटा, कईकई दिन तक भूखाप्यासा रखा. लेकिन नसरीन न घर छोड़ने को तैयार हुई और न ही उस का साथ. कुछ दिन रहने के बाद रियाज अली वापस सउदी अरब चला गया. उस के जाने के कुछ माह बाद नसरीन भी मायके आ गई.

रियाज अली अब तक जान चुका था कि नसरीन उस का पीछा नहीं छोड़ेगी और उस के रहते वह दूसरी शादी नहीं कर पाएगा. अत: उस ने नसरीन से पीछा छुड़ाने के लिए परदेश में ही उस की हत्या की साजिश रची. साजिश के तहत उस ने मोबाइल फोन पर नसरीन से मीठीमीठी बातें करना शुरू कर दिया. यही नहीं वह उसे खर्चा भी भेजने लगा. नसरीन उस की मीठी बातों में उलझ गई और उस पर यकीन करने लगी.

2 मार्च, 2020 को रियाज अली ने अपने भाई मेराज से मोबाइल फोन पर बात  कर के नसरीन की हत्या की योजना बनाई. मेराज एक सप्ताह पहले ही मुंबई से अपने गांव इटकौरी आया था. भाई के कहने पर मेराज ने अपने मातापिता तथा फुफेरे भाई नन्हे उर्फ सलमान को हत्या की योजना में शामिल कर लिया.

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नन्हे बहराइच के राम गांव थाने के शेखनपुर का रहने वाला था. योजना के तहत मेराज ने फरवरपुर बाजार से एक तेजधार वाला चाकू तथा रस्सी खरीदी और मोटर साइकिल की साइड में लगी डिक्की में रख ली फिर यह बात सउदी अरब में बैठै भाई को बता दी.

5 मार्च, 2020 की सुबह रियाज अली ने सउदी अरब से मोबाइल फोन से नसरीन से बात कर के बताया कि उस के अब्बू की तबीयत ज्यादा खराब है.

वह उसे लाने के लिए छोटे भाई मेराज को भेज रहा है. तुरंत चली आओ. ससुर की तबीयत खराब होने की जानकारी पा कर नसरीन ने ससुराल जाने की हामी भर ली. फिर वह तैयारी में जुट गई.

दोपहर बाद मेराज नसरीन को लेने उस के गांव आ गया. योजना के तहत मेराज के साथ उस का पिता सादिक अली तथा फुफेरा भाई नन्हे उर्फ सलमान भी आया था. उन दोनों को वह अड़गोड़वा गांव के बाहर छोड़ आया था.

नसरीन सजसंवर कर मेराज की मोटर साइकिल पर बैठ गई. वह 2 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. शाम 5 बजे उस ने रूपईडीहा थाने के गांव अड़गोड़वा के बाहर चक रोड़ पर मोटर साइकिल रोकी और बोला, ‘‘भाभी, तुम अपने घर फोन कर दो कि हम लोग घर पहुंच गए. वरना तुम्हारे घर वाले परेशान होंगे.’’

जाल में फंसी नसरीन

देवर की बात मान कर नसरीन ने अपनी बहन राजदा खातून को फोन पर बता दिया कि वह ससुराल पहुंच गई है. तब तक आसमान पर काले बादल छा गए थे, जिस से अंधेरा घिरने लगा था.

नसरीन और मेराज बात में मशगूल थे तभी इशारा पा कर कुछ दूरी पर घात लगाए बैठे सादिक और नन्हे आ गए. उन दोनों ने नसरीन को दबोच लिया और पास वाले अरहर के खेत में घसीट ले गए. पीछे से मेराज रस्सी और चाकू ले कर आ गया. मेराज और नन्हे ने मिल कर नसरीन के हाथ पैर बांधें. इस बीच सादिक अली खेत के बाहर रखवाली करने लगा. नसरीन को जब लगा कि उस की जान को खतरा है तो उस ने देवर से जान बख्श देने की गुहार लगाई. इस पर मेराज बोला, ‘‘भाई का आदेश है. मैं कुछ नहीं कर सकता.’’

इस के बाद मेराज और नन्हे ने मिल कर नसरीन के शरीर से सारे गहने उतारे और फिर मेराज ने चाकू से नसरीन का सिर धड़ से अलग कर दिया. नसरीन का शरीर कुछ क्षण तड़पा फिर ठंडा हो गया. मेराज ने कटे सिर को प्लास्टिक की बोरी में रखा, फिर तीनों मोटर साइकिल पर सवार हो कर कुछ दूर बह रही सरयू नदी के किनारे पहुंचे और सिर बहती नदीं में फेंक दिया.

इस के बाद मेराज घर आया उस ने गहने और चाकू भूसे की कोठरी में छिपा दिए. खून सनी शर्ट पुराने कपड़ों के बीच छुपा दी. फिर उस ने नसरीन की हत्या की सूचना भाई रियाज को दे दी और परिवार सहित फरार हो गया.

दूसरे दिन अज्ञात महिला की सिर कटी लाश की सूचना रूपईडीहा पुलिस को मिली तो थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय मौके पर पहुंचे. बाद में उस लाश की शिनाख्त नसरीन के रूप में हुई. पुलिस ने जांच शुरू की तो परदेश में बैठे शौहर की साजिश का पर्दाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 15 मार्च, 2020 को थाना रूपईडीहा पुलिस ने अभियुक्त सादिक अली, मेराज तथा नन्हे उर्फ सलमान को बहराइच की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन सब को जेल भेज दिया गया.

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सायरा फरार थी. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के प्रयास में जुटी थी. रियाज अली विदेश में है. उस की गिरफ्तारी इंटरपोल की मदद से की जाएगी.

– (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

शौहर की साजिश : भाग 2

इशहाक ने पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा को बताया कि उस ने अपनी बेटी नसरीन की शादी रिसिया थाने के गांव ईटकौरी निवासी सादिक अली के बेटे रियाज अली के साथ की थी. रियाज अली और उस का परिवार मेरी बेटी को बहुत परेशान करता था. उस को मारतेपीटते भी थे और भूखाप्यासा भी रखते थे. कभीकभी वह उसे मारपीट कर घर से बाहर निकाल देते थे. यह सब रियाज इसलिए करता था ताकि नसरीन से उस का पीछा छूट जाए.

दरअसल रियाज अली किसी दूसरी युवती से मोहब्बत करने लगा था. वह नसरीन से पीछा छुड़ा कर उस से शादी करना चाहता था. लेकिन नसरीन यातना सहने के बावजूद शौहर का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी.

पिछले 3 साल से रियाज अली सउदी अरब में नौकरी कर रहा है. वह जब भी आता है नसरीन को मारतापीटता है और तलाक देने को कहता है. लेकिन नसरीन इस के लिए राजी नहीं थी. नसरीन की सास साजिया और ससुर सादिक अली अपने बेटे का ही साथ देते थे और नसरीन को प्रताडि़त करते थे. नसरीन कभी मायके में तो कभी ससुराल में रहती.

5 मार्च की सुबह रियाज अली का सउदी अरब से फोन आया कि अब्बा जान की तबीयत खराब है. मेराज को भेज रहा हूं, फौरन उस के साथ चली आओ. फोन पर बात होने के बाद नसरीन ससुराल जाने को तैयार हो गई. दोपहर बाद मेराज आया और नसरीन को मोटर साइकिल पर बैठा कर अपने साथ ले गया.

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लगभग 5 बजे नसरीन ने अपनी छोटी बहन राजदा खातून को फोन पर बताया कि वह ससुराल पहुंच गई है.

यह जान कर राजदा निश्चिंत हो गई. लेकिन कुछ देर बाद सउदी अरब से रियाज का फिर फोन आया. उस ने बताया कि नसरीन अभी तक घर नहीं पहुंची है.

इस पर राजदा खातून ने कहा, ‘‘तुम अपनी रिश्तेदारी में पता करो हम अपनी रिश्तेदारी में पता करते हैं. हम ने नसरीन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन नसरीन का कुछ पता न चला.’’ राजदा ने आगे बताया कि दूसरे रोज जब अखबार में अज्ञात महिला की सिर कटी लाश की फोटो छपी तब हमें शक हुआ और शिनाख्त करने के लिए आ गए.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है, जिस ने तुम्हारी बेटी की हत्या की है.’’ एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने इशहाक से पूछा, ‘‘हां हुजूर, मुझे बेटी के शौहर रियाज अली और उस के परिवार पर शक है.’’

‘‘वह कैसे?’’ एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने मृतका के पिता से पूछा.

‘‘हुजूर, रियाज अली दूसरी शादी करने की कोशिश में था. लेकिन मेरी बेटी नसरीन उस के रास्ते की बाधा थी. इस बाधा को दूर करने के लिए रियाज अली ने विदेश में साजिश रची और अपने भाई मेराज और मांबाप के सहयोग से मेरी बेटी की हत्या करा दी.

शव पहचान में न आए इसलिए उन्होंने सिर काट कर गायब कर दिया और शरीर से जेवर उतार लिए. हुजूर आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी बेटी के गुनहगारों को सजा दिलाएं. हमें और किसी चीज की चाह नहीं है.’’

इशहाक की व्यथा सुनने के बाद एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने रूपईडीहा थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय को आदेश दिया कि वह इशहाक की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज करें और मुल्जिमों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के कटा हुआ सिर बरामद करें. काररवाई में कोई बाधा पहुंचाए तो उसे भी गिरफ्तार कर लें.

शुरू हुईं गिरफ्तारियां

आदेश मिलते ही थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय इशहाक को थाना रूपईडीहा ले आए. फिर उस की तहरीर पर भा.दं.वि. की धारा 302/ 201 के तहत मृतका के शौहर रियाज अली, ससुर सादिक अली, सास सायरा, देवर मेराज तथा फुफेरे देवर नन्हे उर्फ सलमान के खिलाफ रिर्पोट दर्ज कर ली. तत्काल नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी गई.

पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा को बहराइच जिले का चार्ज संभाले अभी 20 दिन ही हुए थे कि उन्हें कई हत्याओं का खुलासा करने की चुनौती स्वीकार करनी पड़ी. इन में नसरीन की हत्या खास थी. नसरीन के गुनहगारों को पकड़ने के लिए उन्होंने ए.एस.पी रवींद्र सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में रूपईडीहा थाना प्रभारी मनीष कुमार शर्मा, सब इंस्पेक्टर ए.के. सिंह, सी.ओ. जंग बहादुर सिंह तथा एस. ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटना स्थल का मुआयना किया. साथ ही कटा सिर खोजने का प्रयास भी किया. इस टीम ने मृतका के पिता इशहाक, बहन राजदा खातून तथा खेत मालिक सुरेंद्र प्रताप सिंह का बयान भी दर्ज किया. अब तक पुलिस टीम को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक मृतका के साथ दुराचार नहीं हुआ था. न ही उस के साथ मारपीट की गई थी. उस की मौत गला रेतने से हुई थी.

पुलिस टीम के लिए मृतका के शौहर रियाज अली को गिरफ्तार करना आसान नहीं था क्योंकि वह सउदी अरब में था. पुलिस टीम ने अन्य नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया और 11 मार्च को रात 10 बजे रिसिया थाने की पुलिस के साथ इटकौरी गांव में सादिक अली के घर पहुंची, लेकिन उस के घर के दरवाजे पर ताला पड़ा था.

सादिक अली अपनी पत्नी सायरा तथा पुत्र मेराज के साथ फरार था. पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई. इस के बाद पुलिस टीम ने अन्य हत्याभियुक्तों को पकड़ने के लिए कई संभावित जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस गिरफ्त में नहीं आए. इस के बाद एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा ने हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए अपने खास मुखविरों का जाल बिछाया.

13 मार्च 2020 की रात 8 बजे एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा को उन के खास मुखविर द्वारा सूचना मिली कि नसरीन की हत्या के नामजद आरोपी पीर मड़ंग बाबा की मजार पर मौजूद है.

मुखविर की सूचना पर विश्वास कर पुलिस टीम सादे कपड़ों में मजार पर पहुंची और नाटकीय ढंग से सादिक अली, उस के पुत्र मेराज और भांजे नन्हे उर्फ सलमान को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सादिक अली की पत्नी सायरा नकाब डाल कर पुलिस को चकमा दे गई. उन तीनों को बंदी बना कर थाना रूपईडीहा लाया गया.

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पुलिस टीम ने मेराज, सादिक अली तथा नन्हे उर्फ सलमान से जब नसरीन की हत्या के बारे में पूछा, तो वे तीनों मुकर गए जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो वे टूट गए और नसरीन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मेराज ने बताया कि भाभी नसरीन की हत्या की साजिश उस के शौहर रियाज अली ने सउदी अरब में रची थी. इस योजना में उस ने मातापिता के अलावा फुफेरे भाई नन्हे उर्फ सलमान को भी शामिल कर लिया.

‘‘तुम लोगों ने नसरीन का कटा सिर, आभूषण और आला कत्ल कहां छुपाया है?’’ एस.ओ.जी. प्रभारी मधुप नाथ मिश्रा ने पूछा. तो मेराज बोला, ‘‘साहब, नसरीन का कटा सिर हम ने सरयू नदी में फेंक दिया था और गहने और आला कत्ल घर में छुपा रखा है.’’

यह पता चलते ही पुलिस टीम मेराज को साथ ले कर रात में ही उस के गांव इटकौरी स्थित उस के घर पहुंची.

मेराज की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से आला कत्ल चाकू और पायल, बाली, मांग टीका, हाथ फूल, अंगूठी, नाक की कील आदि चीजों के साथसाथ मोबाइल फोन, वोटर कार्ड और  आधार कार्ड भी बरामद किया. इस के अलावा खून लगी शर्ट, हत्या में इस्तेमाल मोटर साइकिल भी बरामद कर ली. बरामद सामान को जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया गया.

14 मार्च, 2020 की सुबह पुलिस हत्यारोपियों को साथ ले कर उस स्थान पर पहुंची जहां उन्होंने मृतका नसरीन का कटा सिर सरयू नदी में फेंका था. पुलिस ने कई गोताखोरों को नदी में उतारा, लेकिन गोताखोर कटा सिर नहीं खोज पाए. हताश हो कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पुलिस ने फरार सायरा को भी पकड़ने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन वह गिरफ्त में नहीं आई.

नहीं मिला सिर

थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय ने नसरीन के हत्यारों को पकड़ने तथा आला कत्ल बरामद करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो वह थाना रूपईडीहा आ गए. पुलिस अधिकारियों ने कातिलों से विस्तृत पूछताछ की, फिर पुलिस कप्तान विपिन कुमार मिश्रा ने प्रैस में कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर केस का खुलासा कर दिया.

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बहराइच जिले के फरवरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है, औसान पुरवा. मुस्लिम बाहुल्य इस गांव में इशहाक अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी साजिया के अलावा 2 बेटियां नसरीन और राजदा खातून थीं. इशहाक के पास जमीन नाममात्र की थी. वह दूसरों की जमीन पर काम कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था. इशहाक गरीब जरूर था, लेकिन दिल का पाक साफ था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शौहर की साजिश : भाग 1

उस दिन मार्च 2020 की 6 तारीख थी. सुबह के 9 बज चुके थे. अड़गोड़वां गांव का रहने वाला सुरेंद्र प्रताप सिंह ओलावृष्टि से फसल को हुए नुकसान का आकलन करने अपने खेत पर पहुंचा. पहले उस ने गेहूं की बरबाद हुई फसल को देख कर माथा पीटा फिर अरहर के खेत पर पहुंचा. जब वह अरहर के खेत में घुसा तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

खेत के अंदर एक महिला की सिर कटी लाश पड़़ी थी. सिर विहीन लाश देख कर सुरेंद्र प्रताप नुकसान का आंकलन करना भूल गया. वह बदहवास हालत में गांव की ओर भागा. गांव पहुंच कर उस ने लोगों को लाश के बारे में जानकारी दी. 8-10 लोग उस के साथ खेत पर पहुंचे.

लाश की हालत देख कर सब की आंखें फटी रह गईं. गांव के चौकीदार जिमींदार को सिर विहीन महिला की लाश पाए जाने की खबर लगी तो वह भी वहां पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद खेत मालिक सुरेंद्र प्रताप सिंह तथा अन्य लोगों से जानकारी हासिल की.

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उस ने सिर विहीन महिला की लाश को गौर से देखा, फिर कर्तव्य का पालन करते हुए सूचना देने थाना रूपईडीहा जा पहुंचा.

जिस समय जिमींदार थाने पहुंचा उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. जिला बहराइच के थाना रूपईडीहा के प्रभारी निरीक्षक मनीष कुमार पांडेय थाने में ही मौजूद थे. पहरे पर तैनात सिपाही ने उन के कक्ष में आ कर खबर दी, ‘सर अड़गोड़वां गांव का चौकीदार आया है. आप से मिलना चाहता हैं.’

‘‘ठीक है, उसे भेज दो’’ मनीष कुमार पांडेय ने कहा, वह चौकीदार से परिचित थे.

जिमींदार ने थाना प्रभारी के कक्ष में पहुंच कर सलाम किया. पांडेय ने उसे गौर से देखा फिर पूछा, ‘‘चौकीदार कोई खास बात है क्या साफसाफ बताओ.’’

‘‘हां, साहब, खास बात है, तभी भाग कर थाने आया हूं. हमारे गांव अड़गोड़वा में सुरेंद्र प्रताप सिंह के अरहर के खेत में एक महिला की सिर विहीन लाश पड़ी हैं. महिला हमारे गांव या आसपास के गांवों की नहीं है.

भीड़ जुटी है, लेकिन कोई उसे पहचान नही पा रहा है.’’

महिला की सिर विहीन लाश पड़ी होने की सूचना से मनीष कुमार पांडेय विचलित हो उठे. उन्होंने चौकीदार की सूचना से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया फिर सिपाहियों और एक सब इंस्पेक्टर को साथ ले कर घटना स्थल की ओर रवाना हो गए. चौकीदार जिमींदार भी उन के साथ था.

पुलिस जब घटना स्थल पर पहुंची तो वहां भीड़ जुटी थी. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय भीड़ को परे हटा कर अरहर के खेत में पहुंचे, जहां महिला की सिर कटी लाश पडं़ी थी. लाश देख कर पांडेय सिहर उठे. हत्यारों ने महिला का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. हत्या से पूर्व उन्होंने महिला के हाथपैर रस्सी से बांधें थे. फिर पूरी बरबरता के साथ किसी तेज धारदार हथियार से सिर को धड़ से अलग कर दिया था. सिर को काट कर वह अपने साथ ले गए थे.

मृतका के हाथों में हरे रंग की चूडि़यां और लाल रंग के कंगन थे. वह हरा सलवार जंफर पहने थी और उस का काले रंग का नकाब वहीं पड़ा था. लग रहा था कि मृतका मुस्लिम है. सिर न होने से उस की उम्र का सही अंदाजा लगाना तो कठिन था, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह विवाहित थी और उस की उम्र 30 वर्ष से कम थी.

मृतक मुस्लिम समाज की थी

थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा, ए.एस.पी. रविंद्र सिंह और सी.ओ. जंगबहादुर सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने भी युवती के शव को हर नजरिए से देखा.

पुलिस ने मृतका के कटे सिर की तलाश अरहर, गेहूं व लाही के खेतों में कराई पर सिर नहीं मिला. पहनावे और काले नकाब से पुलिस अधिकारियों का मानना था कि मृतका  मुस्लिम समुदाय की है. वह खूबसूरत और जवान थी. पानी और ओला वृष्टि के कारण खेत के बाहर चक रोड की मिट्टी गीली थी, जिस पर किसी 2 पहिया वाहन के पहियों के निशान थे.

लगता था युवती को हत्या के इरादे से मोटर साइकिल पर बिठा कर खेत तक लाया गया था. पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार मिश्रा ने घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद मृतका के रस्सी से बंधे हाथ पैर खुलवाए, फिर विभिन्न कोणों सें उस के फोटो खिचवाए. युवती की शिनाख्त के लिए उन्होंने घटना स्थल पर मौजूद महिलाओं और युवकों को बुला कर उस की पहचान करवाने की कोशिश की, लेकिन उस की पहचान नहीं हो सकी. घटनास्थल की कार्रवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए बहराइच के जिला अस्पताल भेज दिया गया.

अगले दिन 7 मार्च, 2020 को सभी समाचार पत्रो में रूपईडीहा थाना क्षेत्र में युवती का सिर विहीन शव मिलने का समाचार सुर्खियों में प्रकाशित हुआ. इस समाचार को जब राजदा खातून ने पढ़ा तो उस का माथा ठनका. राजदा खातून बहराइच जिले के फरवरपुर थाना क्षेत्र के औसान पुरवां गांव की रहने वाली थी.

उस की बड़ी बहन का नाम नसरीन था. 5 मार्च को नसरीन का देवर मेराज उसे यह कह कर विदा करा कर ले गया था कि उस के अब्बू बीमार हैं. लेकिन वह अपनी सुसराल इटकौरी नहीं पहुंची थी. समाचारपत्रों में शव की जो पहचान छपी थी. हरी चूडियां, लाल कंगन , हरा सलवार जंफर, काला नकाब. यही सब पहनओढ़ कर उस की बहन ससुराल रवाना हुई थी.

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राजदा खातून ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, लेकिन थी तेज तर्रार और व होशियार. उस ने समाचार पत्र में छपी खबर कई बार पढ़ी और सिर विहीन छपी फोटो देखी तो उसे लगा फोटो उस की बहन नसरीन की ही है. उस ने यह सारी जानकारी अपने पिता इशहाक व परिवार के अन्य लोगों को दी, फिर शिनाख्त के लिए थाना रूपईडीहा जाने का निश्चय कर लिया.

होली के एक दिन पहले 8 मार्च को राजदा खातून अपने पिता इशहाक व परिवार के अन्य लोगों के साथ थाना रूपईडीहा जा पहुंची. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय उस वक्त थाने में थे.

उन्होंने इशहाक से थाने आने का कारण पूछा तो इशहाक ने बताया, ‘‘मेरी बेटी नसरीन 5 मार्च से लापता है. मैं बेहद परेशान हूं. हर जगह उस की खोज की, लेकिन कुछ पता न चला. उसे उस का देवर मेराज अपने वालिद की तबियत खराब बता कर साथ ले गया था.

उस के बाद उन दोनों का पता नहीं है. कल अखबार में मेरी छोटी बेटी ने खबर पढ़ी तब हम शव के बारे में जानकारी लेने आए हैं.

इशहाक के बगल में ही राजदा खातून खड़ी थी. थाना प्रभारी मनीष कुमार पांडेय उस की और मुखातिब हुए, ‘‘राजदा खातून, तुम यह यकीन के साथ कैसे कह सकती हो कि अखबार में छपी  फोटो तुम्हारी बहन नसरीन की है?’’

‘‘हुजूर, अखबार में शव का जो हुलिया, पहनावा, वेशभूषा छपा है, वह सब मेरी बहन नसरीन से मेल खाता है. दूसरी बात ससुराल विदाई से पहले मैं ने ही उस का साजश्रृंगार किया था. मैं ने ही हरी चूडि़या, लाल कंगन उस की कलाई में पहनाए थे. हरा सलवार और जंफर भी उस ने मेरी ही पसंद का पहना था. इसलिए मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि अखबार में छपी शव की तस्वीर नसरीन की ही है.

हो गई शिनाख्त

थाना प्रभारी मनीष कुमार को लगा कि शायद अज्ञात शव की पहचान हो जाएगी. अत: वह इशहाक तथा उस की बेटी राजदा खातून को साथ ले कर पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए.

युवती के शव के करीब पहुंचते ही इशहाक थोड़ा सहम गया. मृतका के शरीर पर हरे रंग का सलवार जंफर देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने तेजी से युवती के शव पर ढकी चादर हटाई तो सिर विहीन बेटी का शव देख उन के मुंह से चीख निकल गई.

वह उन की बेटी नसरीन ही थी. इशहाक फफक कर रो पड़े. बहन के शव की शिनाख्त राजदा खातून ने भी की. वह भी दहाड़ मार कर रो पड़ी. परिवार के अन्य लोगों ने भी शव की पहचान नसरीन के रूप में की. परिवार के लोग अपने आंसू नही रोक पा रहे थे. जैसेतैसे मनीष कुमार पांडेय ने उन लोगों को धैर्य बंधाया फिर शिनाख्त करवा कर इशहाक को पुलिस अधीक्षक कार्यालय ले गए, जहां उस से एस.पी. विपिन कुमार मिश्रा ने पूछताछ की. जो भी जानकारी इशहाक को थी, वह उस ने एस.पी. के सामने बयां कर दी.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शौहर की साजिश

पुष्पा का प्रेम ‘रतन’ : भाग 1

सांवले रंग का धनंजय सामान्य कदकाठी वाला युवक था. उस की एकमात्र खूबी यही थी कि वह सरकारी नौकरी में था. कहने का अभिप्राय यह कि वह जिंदगी भर अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता था.

बिहार के जिला गोपालगंज के बंगरा बाजार निवासी रामजी मिश्रा ने धनंजय की यही खूबी देख कर उस से अपनी बेटी ब्याही थी. मांबाप ने कहा और खूबसूरत पुष्पा शादी के बंधन में बंध कर मायके की ड्योढ़ी छोड़ ससुराल आ गई. लेकिन उसे धक्का तब लगा, जब उस ने पति को देखा. वह जरा भी उस के जोड़ का नहीं था.

पत्नी यदि खूबसूरत हो तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन ही जाता है. धनंजय भी पुष्पा का शैदाई बन गया. पुष्पा ने धनंजय की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया.

पुष्पा को धनंजय चाहे जैसा लगा हो, लेकिन धनंजय खूबसूरत, पढ़ीलिखी बीवी पा कर खुश था.

धनंजय सुबह 9 बजे घर से निकलता था, तो फिर रात 8 बजे के पहले घर नहीं लौटता था. पीडब्ल्यूडी में लिपिक के पद पर कार्यरत धनंजय की ड्यूटी पड़ोसी जिले सीवान में थी. धनंजय को अपने गांव अमवां से सीवान आनेजाने में 2 घंटे लग जाते थे. धनंजय को जितनी पगार मिलती थी, वह पूरी की पूरी पुष्पा के हाथ पर रख देता था.

धंनजय के 2 भाई और थे, बड़ा रंजीत और छोटा राजीव. रंजीत मुंबई में तो राजीव दिल्ली में नौकरी करता था. विवाह के बाद से ही धनंजय पुष्पा के साथ अलग घर में रह रहा था. कालांतर में पुष्पा 2 बच्चों की मां बनी. एक बेटा था सौरभ और एक बेटी साक्षी.

गत वर्ष मई महीने में धनंजय के साले का विवाह देवरिया की भुजौली कालोनी में हुआ था. विवाह में धनंजय पांडे की मुलाकात दुलहन के चचेरे भाई रतन पांडे से हुई. मुलाकात के दौरान दोनों की काफी बातें हुई.

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इसी बातचीत के दौरान धनंजय ने उस से देवरिया में मकान किराए पर दिलाने को कहा तो रतन ने हामी भर दी. विवाह में शामिल  होने के बाद धनंजय और पुष्पा बच्चों के साथ वापस लौट आए.

रतन पांडे देवरिया के थाना गौरीबाजार के सिरजम हरहंगपुर निवासी सुभाष पांडेय का बेटा था. सुभाष पांडेय टीवी मैकेनिक थे. 24 वर्षीय रतन 4 बहनों में दूसरे नंबर का था. इंटर पास रतन देवरिया में मोबाइल कंपनी ‘एमआई’ के कस्टमर केयर सेंटर में नौकरी करता था और देवरिया खास में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

धनंजय से बात होने के कुछ ही दिनों के अंदर रतन ने धनंजय को शहर के इंदिरा नगर मोहल्ले में सौरभ श्रीवास्तव का मकान किराए पर दिलवा दिया. धनंजय अपनी पत्नी पुष्पा और दोनों बच्चों के साथ उसी मकान में रहने लगा.

बिहार का सीवान जिला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की सीमा से सटा है. इसलिए धनंजय को वहां से सीवान जाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी, वह अपनी ड्यूटी पर रोजाना आनेजाने लगा. बच्चों का एडमीशन भी पास के एक स्कूल में करा दिया था.

धनंजय रोजाना सुबह निकल जाता और देर रात वापस लौटता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. पुष्पा घर पर अकेली रह जाती थी. ऐसे में रतन का पुष्पा के पास आनाजाना बढ़ गया. रतन पुष्पा की खूबसूरती पर पहले ही मर मिटा था. इसीलिए उस ने पुष्पा के नजदीक रहने के लिए धनंजय को देवरिया में किराए पर मकान दिलवाया था. धनंजय के कहने पर वह उस के बच्चों सौरभ और साक्षी को ट्यूशन पढ़ाने लगा था.

बच्चों के जन्म के बाद से धनंजय अब पुष्पा में पहले जैसी रुचि नहीं लेता था. वैसे भी जैसेजैसे वैवाहिक जीवन आगे बढ़ता है, कई पतिपत्नी एकदूसरे में दोष खोजने लगते हैं, जो उन के बीच विवाद की जड़ बनते हैं. धनंजय भी पुष्पा में कमियां निकालने लगा था. वैसे भी पुष्पा को तो वह कभी नहीं भाया था, किसी तरह उस के साथ अपनी जिंदगी काट रही थी.

जब धनंजय उस के दोष और गलतियां निकालता था तो पुष्पा के अंदर दबा गुस्सा गुबार बन कर बाहर निकल पड़ता था, जिस पर धनंजय उस की पिटाई कर देता था. ऐसा अधिकतर धनंजय के शराब के नशे में होने पर ही होता था. धनंजय मारपिटाई पर उतर आया तो पुष्पा को उस से हद से ज्यादा नफरत हो गई.

रतन ने उस के घर आना शुरू किया तो पुष्पा की नजर उस पर टिकने लगीं. रतन गोराचिट्टा, स्मार्ट और कुंवारा था. पुष्पा ने ऐसे ही युवक की कामना की थी.

विवाह से पहले उस की 2 ही इच्छाएं थीं, एक तो उस का जीवनसाथी सरकारी नौकरी वाला हो और दूसरा वह खूबसूरत व स्मार्ट हो. उस की जोड़ी उस के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी हो. उस की एक इच्छा तो पूरी हो गई थी लेकिन दूसरी इच्छा ने उसे रूला दिया.

धनंजय ने कभी भी पुष्पा की तारीफ  नहीं की थी, लेकिन रतन पुष्पा की जम कर तारीफ करता था, साथ ही हंसीमजाक भी. पुष्पा सोचती थी कि रतन को सुंदरता की कद्र करनी आती है, लेकिन धनंजय को नहीं.

रतन लतीफे सुना कर पुष्पा को खूब हंसाता था. उस की पसंदनापसंद की चीजों का ख्याल रखता था. पुष्पा साड़ी या सलवारसूट पहनती तो उसे अपनी राय बताता. इन बातों से पुष्पा मन ही मन बहुत खुश होती. धीरेधीरे पुष्पा को भी रतन की आदत पड़ गई. उस के बिना अब उसे अच्छा नहीं लगता, घर में सब सूनासूना सा महसूस होता.

रतन ने पुष्पा को इतनी खुशियां दीं कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि काश! मेरा पति रतन जैसा होता, तो कितना अच्छा होता…?

एकांत क्षणों में पुष्पा, रतन की तुलना धनंजय से करने लगती और यह सोच कर मायूस हो जाती कि धनंजय रतन के आगे किसी मामले में नहीं ठहरता. पुष्पा रतन के बारे में ज्यादा सोचती तो उस का मन उस की बांहों में ही सिमटने को मचल उठता.

पुष्पा और रतन की निगाहों में एकदूसरे के लिए तड़प भरी रहती थी. पानी का गिलास, चाय का कप लेतेदेते हुए दोनों की अंगुलियों का स्पर्श होता तो दोनों ही ओर चिंगारियां छूटने लगतीं.

पुष्पा का रतन

रतन का व्यक्तित्व पुष्पा के दिल में हलचल मचाए हुए था तो पुष्पा की आकर्षक देहयष्टि रतन के युवा मन में सरसराहट भरती रहती थी. वह पुष्पा से बिना नजरें मिलाए उस का दीदार करता रहता. उसे पूरी तरह पा कर न सही, स्पर्श कर के ही सुख लूटता रहता.

रतन कुछ कारणों से अपने गांव चला गया तो पुष्पा खुद को फिर तन्हा महसूस करने लगी. उसे ऐसा लगा, जैसे उस की रूह निकल कर चली गई हो और मुरदा जिस्म वहां रह गया हो.

धनंजय सीवान से अपनी ड्यूटी से वापस लौटता, रात में जब वह उस से संसर्ग करता, तब भी वह मुर्दों की तरह निष्क्रिय पड़ी रहती. धनंजय उस के व्यवहार से इसलिए स्तब्ध नहीं हुआ, क्योंकि वह जानता था कि पुष्पा उस से बिलकुल खुश नहीं है.

उधर गांव गए रतन का हाल भी ऐसा ही था. पुष्पा को याद कर के वह रात भर करवटें बदलता रहता, आंखें बंद करता तो सपने में पुष्पा ही नजर आती. जो वह हकीकत में करने की ख्वाहिश रखता था, उसे कल्पना में ही कर के खुद को तसल्ली दे लेता था.

आखिर रतन गांव से शहर लौटा तो पुष्पा से मिलने गया. पुष्पा उस समय अकेली थी. उसे रतन की यादों ने बेहाल कर रखा था. रतन को देखते ही पुष्पा का चेहरा खिल उठा.

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रतन के अंदर आते ही पुष्पा ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. फिर नाराजगी प्रकट करते हुए बोली, ‘‘क्या इस तरह मुझे तड़पाना अच्छा लगता है तुम्हें?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’ रतन अंजान बनते हुए बोला.

‘‘कितने दिन हो गए तुम्हें. मैं तुम्हारी सूरत देखने को तरस गई थी.’’ पुष्पा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘सच,’’ रतन खुश होते हुए बोला,‘‘मैं यही सुनने को तो गैरहाजिर था. मैं देखना चाहता था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितनी चाहत है. अगर ऐसा नहीं करता, तो तुम शायद आज अपने दिल की बात मुझ से न कहतीं.’’

‘‘तुम सच कह रहे हो रतन. तुम ने मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया है कि मैं हर पल तुम्हारे बारें में ही सोचती रहती हूं.’’ कहते हुए उस ने रतन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यही हाल मेरा भी है पुष्पा. जिस दिन तुम्हारा दीदार नहीं होता, वह दिन पहाड़ सा लगता है.’’ पुष्पा की पतली कमर में हाथ डालते हुए रतन ने उसे अपने करीब खींचा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

पुष्पा के होंठों में ऐसी तपन थी, कि रतन को लगा जैसे उस ने अंगारों को छू लिया हो. पुष्पा के होंठों से अपने होंठ अलग करते हुए उस ने पुष्पा की सुरमई आंखों में झांका, तो लगा जैसे उन में पूरा मयखाना समाया हो. पुष्पा की नशीली आंखों, फूलों जैसे रुखसार, सुराही जैसी गरदन और उस के नाजुक अंगों को देख कर रतन के रोमरोम में लहर सी दौड़ गई.

गजब तो तब हुआ, जब पुष्पा ने अपने बंधे हुए गेसू खोल दिए. थोड़ी देर पहले ही उस ने सिर धोया था. सावन की घटाओं से भी श्यामवर्ण गेसू कमर के नीचे उभारों को छूने लगे, तो रतन बोल पड़ा, ‘‘वाह पुष्पा, क्या लाजवाब हुस्न है तुम्हारा.’’

पुष्पा ने खिलखिला कर हंसते हुए पूछा, ‘‘वो कैसे?’’

‘‘आइने में देख लो, खुद समझ जाओगी.’’

‘‘वो तो मैं तुम्हारी आंखों में देख कर समझ रही हूं.’’

‘‘क्या देख रही हो मेरी आंखों में?’’ रतन ने पूछा.

‘‘बेईमानी. किसी का माल हड़पने के लिए नीयत खराब कर रहे हो.’’ पुष्पा ने हौले से रतन के गाल पर चपत लगाई.

‘‘अगर वह माल लाजवाब और मीठा हो तो उसे उठा कर मुंह में रख लेने में कैसी झिझक. सच में दिल कर रहा है कि आज मैं तुम्हें लूट ही लूं.’’

‘‘तो रोका किस ने है?’’ कहते हुए पुष्पा रतन के गले से झूल गई और बोली,‘‘आओ लूट लो मेरे हुस्न के इस अनमोल खजाने को. मैं तो कब से तुम्हें सौंपने को बेताब थी.’’

रतन का गला सूखने लगा था, ‘‘कोई आ गया तो?’’

‘‘कोई नहीं आ रहा अभी, तुम निश्चिंत रहो.’’

इस के बाद दोनों वासना के खेल में डूबते चले गए. घर की तनहाई दोनों के दिलों की ही नहीं जिस्मों के मिलन की भी साक्षी बन गई. इस के बाद तो रोज ही उन के बीच यह खेल खेला जाने लगा.

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रतन ने पुष्पा को दिया अपने नाम वाला सिम

रतन ने पुष्पा को एक सिम खरीद कर दे दिया. उस ने सिम को अपने मोबाइल में डाल लिया. पुष्पा इस सिम का इस्तेमाल केवल रतन से बात करने के लिए करती थी.

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