ए सीक्रेट नाइट इन होटल, झांसे में न आएं लड़कियां

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

कीबोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया.

आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती.

प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. ट्रेनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में.

ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी.

यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे?

एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे.

सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली.

जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी.

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

पिता बन गया दुश्मन, ओनर किलिंग का खौफनाक किस्सा

उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ की कोतवाली पट्टी का एक गांव है असुढ़ी. इसी गांव के रहने वाले भास्कर पांडेय का बेटा सौरभ प्रतापगढ़ शहर में रह कर बीकौम कर रहा था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज में गांव धनगढ़ सराय छिवलहां के रहने वाले राकेश कुमार सिंह की बेटी संजू सिंह भी बीएड कर रही थी. सौरभ और संजू आसपास के गांवों के रहने वाले थे, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. दोनों की यह जानपहचान जल्दी ही दोस्ती में बदली तो दोनों अकसर मिलनेजुलने लगे. लगातार मिलने से दोनों में प्यार हो गया. धीरेधीरे उन का प्यार बढ़ता गया. फिर तो यह हाल हो गया कि जब तक दोनों एकदूसरे को देख न लेते, बातचीत न कर लेते, उन्हें चैन न मिलता.

सौरभ और संजू का यह प्यार परवान चढ़ा तो उन्होंने साथसाथ जीनेमरने की कसमें ही नहीं खाईं, बल्कि निश्चय कर लिया कि कुछ भी हो, लोग कितना भी विरोध करें, वे शादी जरूर करेंगे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सच है, प्यार न तो जाति देखता है और न ही धर्म. संजू और सौरभ के साथ भी यही हुआ था. उन के प्यार को जमाने की नजर न लगे, उन्हें किसी तरह जुदा न कर दिया जाए, यह सोच कर उन्होंने शादी करने का फैसला ही नहीं किया, बल्कि पड़ोसी जिला इलाहाबाद जा कर पानदरीबा स्थित आर्यसमाज मंदिर में वहां की रीतिरिवाज के अनुसार विवाह कर लिया. यह 1 जुलाई, 2016 की बात है.

विवाह करने के बाद संजू अपने घर आ गई थी. उस के विवाह की भनक घर के किसी भी आदमी को नहीं लग पाई थी. शादी के बाद सौरभ आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चला गया. वहां वह पढ़ाई के साथसाथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था.

सौरभ के लखनऊ चले जाने के बाद संजू की उस से मोबाइल पर बातें जरूर हो रही थीं, लेकिन वह खुद को अकेली महसूस कर रही थी. उसे सौरभ की दूरी बहुत परेशान कर रही थी. संजू भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, इसलिए सौरभ ने आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर में उस का एमएड में रजिस्ट्रेशन करा दिया.

कानपुर आने के बाद संजू सौरभ के साथ रहने की जिद करने लगी और 18 सितंबर, 2016 को वह लखनऊ आ गई. सौरभ लखनऊ के आशियाना में रहता था. संजू उसी के साथ उस के कमरे पर रहने लगी.

आगे चल कर कोई परेशानी न हो, इस के लिए 20 सितंबर, 2016 को सौरभ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संजू के साथ कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद संजू के घर वालों को सौरभ के साथ उस की शादी का पता चल गया. चूंकि सौरभ उन की जाति का नहीं था, इसलिए पूरा परिवार आगबबूला हो उठा. बेटी द्वारा लिया गया यह निर्णय किसी को स्वीकार नहीं था. खास कर संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को.

बेटी की इस हरकत से वह काफी नाराज थे. जबकि सौरभ के घर वाले बेटे के इस प्यार के बारे में जानते तो थे ही, उन्हें संजू बहू के रूप में स्वीकार भी थी. संजू के पिता राकेश सिंह जनता इंटर कालेज उड़ैयाडीह के प्रधानाचार्य थे. ऐसे में अपनी इज्जत को ले कर वह काफी परेशान थे. किसी भी कीमत पर वह इस शादी के लिए तैयार नहीं थे.

बेटी की इस हरकत से वह काफी तनाव में रहने लगे थे. वैसे भी वह काफी उग्र स्वभाव के थे. यही कारण था कि उन के घर के अन्य लोग संजू का प्रेम विवाह चाह कर भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

संजू के लखनऊ आने के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहते हुए अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे थे और भविष्य के सपनों में खोए रहते थे. उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि एक ऐसा तूफान आने वाला है, जो उन की जिंदगी को झकझोर कर रख देगा.

सौरभ और संजू के दिन अच्छी तरह से कट रहे थे. लेकिन 10 अक्तूबर, 2016 को संजू के पिता राकेश कुमार सिंह अचानक सौरभ के कमरे पर आ धमके तो उन्हें देख कर पहले तो दोनों डरे, लेकिन जब उन्होंने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, उन्होंने उन्हें माफ कर दिया है तो दोनों को थोड़ी राहत मिली.

राकेश कुमार सिंह ने कहा, ‘‘बच्चो, तुम्हारी शादी से हमें कोई परेशानी नहीं है. जो होना था, वह हो गया है. अब हम चाहते हैं कि समाज के जो रीतिरिवाज हैं, उन का पालन किया जाए.’’

इस के बाद संजू और सौरभ को विश्वास में ले कर गांव में धूमधाम से दोनों की शादी की बात कह कर राकेश कुमार सिंह संजू को अपने साथ ले कर गांव लौट आए.

सौरभ भी खुश था कि चलो देर ही सही, उस के ससुरजी ने नाराजगी त्याग कर बेटी को और उसे अपना लिया है. लेकिन संजू के गांव जाने के बाद जब उस ने उस से बात करने की कोशिश की तो बात नहीं हो सकी. क्योंकि संजू को उस से बात नहीं करने दी जा रही थी.

संजू पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई थीं. एक तरह से उसे बंधक बना लिया गया था. 10 अक्तूबर, से 31 अक्तूबर, 2016 तक जब संजू से बात न हो पाई तो सौरभ अपनी ससुराल जा पहुंचा. लेकिन संजू से मिलने की कौन कहे, उसे घर पर रुकने तक नहीं दिया गया. उसे दुत्कार कर भगा दिया गया.

ऐसा कई बार हुआ तो सौरभ ने पत्नी को पाने के लिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से गुहार लगाई. इस का नतीजा यह निकला कि 3 नवंबर, 2016 को हाईकोर्ट ने संजू को उसे सौंपने का आदेश तो दे दिया, साथ ही हाईकोर्ट में भी पेश करने को कहा. लेकिन निर्धारित तारीख पर संजू को हाईकोर्ट में पेश नहीं किया गया.

इस के बाद पट्टी कोतवाली पुलिस ने राकेश कुमार सिंह को संजू के साथ थाने बुलाया, जहां हुई पंचायत में संजू अपने पिता के साथ जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार अपने पति सौरभ के साथ जाने की बात कर रही थी. उस का कहना था कि उस ने सौरभ को ही अपना सब कुछ मान लिया है, अब वह मरेगी तो उसी के साथ और जिएगी भी तो उसी के साथ.

थाने में हुई पंचायत में संजू के फैसले एवं हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राकेश कुमार सिंह पुलिस पर दबाव डलवा कर संजू को अपने साथ घर ले आए. जबकि सौरभ ने पुलिस को हाईकोर्ट का आदेश दिखाने के साथ कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र भी दिखाया था. लेकिन पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी थी.

30 अक्तूबर को दीपावली का त्यौहार था, जिस की वजह से कुछ नहीं हो सका. अगले दिन 31 अक्तूबर को पट्टी कोतवाली में सौरभ ने अपनी पत्नी संजू की जान का खतरा बताते हुए उस के पिता राकेश कुमार सिंह समेत 3 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर देते हुए न्याय की गुहार लगाई.

इस के अलावा सौरभ एसपी माधवप्रसाद वर्मा से मिला और उन्हें भी तहरीर दे कर पत्नी की जान बचाने की गुहार लगाई. एसपी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल संजू को सौरभ के सुपुर्द कराने के निर्देश दिए, बल्कि सौरभ की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर काररवाई करने का भी आदेश दिया.

उन के आदेश का यह असर हुआ कि पट्टी कोतवाली पुलिस ने 2 नवंबर, 2016 को सौरभ की तहरीर पर राकेश कुमार सिंह, उस के छोटे भाई धीरेंद्र सिंह और छोटे बेटे शुभम के खिलाफ अपराध संख्या 376/2016 पर भादंवि की धारा 368 के तहत मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन तुरंत कोई काररवाई नहीं की.

2 नवंबर को गांव धनगढ़ के लोगों से पट्टी पुलिस को पता चला कि संजू की मौत हो गई है तो पुलिस के हाथपांव फूल गए. पुलिस तुरंत गांव पहुंची और आननफानन संजू की लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही अपहरण के मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ कर नामजद लोगों की तलाश शुरू कर दी.

3 नवंबर, 2016 की सुबह संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को उड़ैयाडीह मोड़ से गिरफ्तार कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि संजू की मौत जहर से हुई थी. थाने ला कर राकेश कुमार सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि संजू ने उन की इज्जत से खिलवाड़ किया था, जिस की सजा जहर दे कर उस की हत्या कर के दी गई.

पूछताछ के बाद पटटी कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर राजकिशोर ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद वह संजू के चाचा धीरेंद्र सिंह तथा भाई शुभम की तलाश में लगे थे. कथा लिखे जाने तक दोनों पकड़े नहीं जा सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म के दलालों के बीच बिकती गई एक लड़की

राजस्थान के कंजर समुदाय के बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं है. धारणा यह है कि कंजर आमतौर पर अपराधी होते हैं. इस जाति का हालांकि अपना एक अलग इतिहास है, पर उस से वास्ता न रखते हुए लोग यही मानते हैं कि अपराधी प्रवृत्ति के कंजर मेहनत के बजाय लूटपाट कर के गुजारा करते हैं. इस जाति के पुरुष नशे में धुत रहते हैं और औरतें बांछड़ा जाति की तरह देहव्यापार करती हैं. ये लोग असभ्य, अशिक्षित और जंगली हैं, इसलिए सभ्य समाज इन से दूर ही रहता है.

हालांकि यह पूरा सच नहीं है, लेकिन एक हद तक बात में दम इस लिहाज से है कि कंजरों को कभी आदमी समझा ही नहीं पाया और न ही इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोई उल्लेखनीय कोशिश ही की गई.

राजस्थान के जिला बूंदी के एक गांव शंकरपुरा में जन्मी कंजर युवती पिंकी की दास्तान दुखद और फिल्मी सी है. पिंकी बेइंतहा खूबसूरत थी, पर उस की बदकिस्मती यह थी कि जब वह 15 साल की हुई तो मांबाप का साया सिर से उठ गया. लेकिन वह लावारिस कहलाने से इसलिए बच गई, क्योंकि उस के पिता ने 2 शादियां की थीं. जब सगे मांबाप की मौत हो गई तो सौतेली मां ने उसे सहारा दिया.

सौतेली मां के पास भी स्थाई आमदनी का कोई जरिया नहीं था, इसलिए वह पिंकी को साथ ले कर शंकरपुरा में ही रहने वाले अपने भाई राजा उर्फ ठेला के घर ले गई. इस तरह पिंकी को छत तो मिल गई, पर प्यार नहीं मिला. सौतेले मामा राजा के घर की भी माली हालत ठीक नहीं थी. जैसेतैसे खींचतान कर तीनों का गुजारा होता था. कई बार तो फांकों की भी नौबत आ जाती थी.

15 साल की पिंकी पर यौवन कुछ इस तरह मेहरबान हो गया था कि जो भी उसे देखता, बस देखता ही रह जाता. कंजरों में उस की जितनी खूबसूरत लड़कियां कम ही होती हैं. वह लोगों की चुभती निगाहों से नावाकिफ नहीं थी. हालांकि पिंकी कहने भर को पढ़ीलिखी थी, पर समझ उस में जमाने भर की आ गई थी.

सौतेले मामा के घर का माहौल पिंकी को रास नहीं आ रहा था, इसलिए अकसर उसे अपने मांबाप की याद आती रहती थी, जिन्होंने उसे ले कर ढेरों सपने संजोए थे. खुशी क्या होती है, यह पिंकी सौतेले मामा के घर आ कर भूल सी चुकी थी. जहां अभाव था, रोज की जरूरतों को ले कर मारामारी थी और उन्हें पूरा करने के लिए ढेर सारे समझौते करने पड़ते थे. एकलौती अच्छी बात यह थी कि सौतेली मां और मामा उस पर अत्याचार नहीं करते थे.

कुछ दिनों की तंगहाली के बाद पिंकी ने महसूस किया कि अब घर में पैसा आने लगा है. इस का मतलब यह नहीं था कि पैसा बरसने लगा था, बल्कि यह था कि अभाव कम हो चले थे और जरूरतें पूरी होने लगी थीं. अब किसी चीज के लिए तरसना नहीं पड़ता था.

पैसा कहां से और कैसे आ रहा है, यह पता करने के लिए पिंकी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. गांव और आसपास के कुछ रसूखदार पैसे वाले लोगों का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

उन लोगों के आते ही सौतेली मां उन के साथ एक कमरे में बंद हो जाती और 4-6 घंटे बाद जब उन के जाने पर बाहर निकलती तो उस का जिस्म भले ही निढाल होता, पर चेहरे पर रौनक होती थी. यह रौनक उन पैसों की देन थी, जो उसे शरीर बेच कर मिलते थे. पिंकी अब पहले सी नासमझ और मासूम नहीं रह गई थी. वह इस सब का मतलब समझने लगी थी.

अब कभीकभी बड़ीबड़ी कारें भी सौतेली मां को लेने आती थीं. 3-4 दिन बाहर रह कर वह लौटती तो उस के पास नोटों की गड्डियां होती थीं. इस पर पिंकी को गुस्सा और तरस दोनों आता था कि क्या जरूरत है देह बेचने की, तीनों मिल कर मेहनतमजदूरी कर के इतना कमा सकते हैं कि इज्जत से गुजारा कर सकें. उसे इस माहौल में घुटन सी होने लगी थी. अब वह कोठेनुमा इस घर से आजाद होने की सोचने लगी थी. पर यह आसान काम नहीं था. शंकरपुरा के बाहर की दुनिया इस से जुदा नहीं होगी, यह भी पिंकी की समझ में आने लगा था. कहीं भाग जाना या चले जाना उस के वश की बात नहीं थी.

आनेजाने वाले ग्राहकों की नजरें पिंकी के खिलते यौवन पर पड़ने लगी थीं. इस से वह और घबरा जाती थी कि कहीं ऐसा न हो कि उसे भी देहधंधे की दलदल में धकेल दिया जाए. हालांकि अभी तक मां या मामा की तरफ से इस तरह की कोई बात नहीं की गई थी, पर उस का डर अपनी जगह स्वाभाविक था क्योंकि अकसर मामा खुद मां के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाता था.

कोई 3 साल पहले एक दिन राजा ने बताया कि अब उसे ग्वालियर के रेशमपुर,जो बदरपुरा के नाम से जाना जाता है, में रहने वाले मौसा के यहां जाना है, जो उसे वहां कोई अच्छा काम दिला देंगे. मुद्दत से आजादी के लिए छटपटा रही पिंकी ने जब यह खबर सुनी तो खुशी से झूम उठी कि चलो अब जिंदगी रास्ते पर आ जाएगी. वह ग्वालियर में मेहनत कर के कमाएगी, इसलिए वह झट से राजी हो गई. जल्द ही मामा ने उसे मौसा के पास ग्वालियर पहुंचा दिया.

ग्वालियर में 4 दिन भी चैन से नहीं गुजरे थे कि मौसा, जिस का नाम पान सिंह उर्फ पप्पू था, ने अपना असली रूप दिखा दिया. अपनी बेटी समान पिंकी से यह कहते उसे कतई शरम नहीं आई कि अब उसे यहां रह कर धंधा करना होगा.

अब पिंकी को समझ में आया कि क्यों कुछ दिनों से मामा उस से नरमी से पेश आ रहा था. लेकिन जब धंधा ही करवाना था तो उसे यहां ला कर क्यों छोड़ा गया. यह काम तो वह गांव में भी करवा सकता था. यह बात पिंकी की समझ में तुरंत नहीं आई. चूंकि वह इस पेशे में नहीं आना चाहती थी, इसलिए वह पान सिंह के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाई कि उस से यह पाप न करवाया जाए.

उस के गिड़गिड़ाने का पान सिंह पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उस ने पिंकी को बताया कि उस का मामा उसे 9 लाख रुपए में बेच गया है. यह सुन कर पिंकी के होश फाख्ता हो गए. अब उस की समझ में आ गया कि सौतेली मां और मामा ने किस्तों में पैसा कमाने के बजाय एकमुश्त मोटी रकम कमा ली है. अपनी किस्मत पर वह खूब रोई.

भागने या बचने का कोई रास्ता उसे दिखाई नहीं दिया, इसलिए वह पान सिंह के इशारों पर नाचने लगी. रोज ग्राहक आते थे, जिन से पान सिंह अच्छे पैसे वसूल कर के उसे उन के साथ कमरे में बंद कर देता था. ग्राहक उसे तबीयत से नोचतेखसोटते थे और पूरी कीमत वसूल कर चलते बनते थे. धीरेधीरे पिंकी को पता चला कि उस इलाके के ज्यादातर मकानों में यही काम होता है.

पिंकी को अहसास हो गया कि उस की जिंदगी की यही नियति है. गांव में रहते वह सपने देखा करती थी कि उस की शादी हो गई है और उस का एक अच्छाखासा देवता समान पति है, जिस के लिए वह सुबहशाम खाना बनाती है, उस के कपड़े प्रैस करती है और उस का खूब ध्यान रखती है. वह भी उसे खूब प्यार करता है.

लेकिन यहां रोज एक नए मर्द से उस की शादी होती थी, जो प्यार के नाम पर 2-4 घंटे में अपनी जिस्मानी प्यास बुझा कर चलता बनता था. कभीकभी पिंकी को अपने जिस्म से घिन आती थी. शरीर ही नहीं, बल्कि उसे तो अपनी आत्मा से भी घिन आने लगी थी, पर वह कुछ कर नहीं सकती थी.

पान सिंह के लिए वह टकसाल या नोट छापने की मशीन थी, जो रोज हजारों रुपए उगलती थी. एवज में उसे अच्छा खानापानी, कपड़े और कौस्मेटिक का सामान मिलता था. वह एक ऐसी कठपुतली थी, जिस की डोर रिश्ते के इस मौसा पान सिंह की अंगुलियों में बंधी थी.

ग्वालियर में रहते पिंकी ने हजारों ग्राहकों को निपटाया. कुछ ही महीनों में वह एक माहिर कालगर्ल या वेश्या बन गई. उस के भीतर की भोलीभाली अल्हड़ लड़की वक्त से पहले ही एक तजुर्बेकार औरत में तब्दील हो गई. वह खुद इस बदलाव को महसूस कर रही थी, पर दिल की बात साझा करने के लिए कोई साथी नहीं था. एक ऐसे मर्द की चाहत उसे हमेशा रहती थी, जो ग्राहक न हो, शरीर से परे उसे एक औरत समझे. पर इस धंधे में आमतौर पर ऐसा नहीं होता इसलिए वह ऐसी बातें सोचने से भी घबराने लगी थी.

लेकिन पिंकी की यह गलतफहमी गलत साबित हुई कि 16-17 साल की उम्र में ही उस ने दुनिया देख ली है. एक दिन पान सिंह ने उसे नागपुर की 2 मशहूर तवायफों बंटी और परवीन के हाथों 15 लाख रुपए में बेच दिया. यह सौदा कब और कैसे हो गया, पिंकी को इस की हवा भी नहीं लगी. देहव्यापार के जिस धंधे की महज साल भर में ही वह खुद को प्रोफेसर समझने लगी थी, वह उस की नर्सरी क्लास था.

चूंकि पिंकी जवान थी और शरीर अभी तक कसा हुआ था, इसलिए परवीन ने ठोकबजा कर पान सिंह को 15 लाख रुपए दे दिए. पान सिंह ने उसे बेच कर 6 लाख रुपए का मुनाफा तो कमाया ही, इस से भी ज्यादा उस ने साल भर में उस से ग्राहकों के जरिए कमा लिए थे.

इस तरह पिंकी औरेंज सिटी के नाम से मशहूर नागपुर चली गई. ग्वालियर से नागपुर के रास्ते भर में उस की समझ में आ गया था कि एक तवायफ की जिंदगी में न कोई अहसास होता है न जज्बात. वह दलालों की जायदाद होती है, इस से आगे या ज्यादा कुछ नहीं.

नागपुर की गंगाजमुना गली देहव्यापार के लिए उसी तरह जानी जाती है, जैसे मुंबई का रेडलाइट इलाका कमाठीपुरा. परवीन वहां की जानीमानी तवायफ थी. उस की जानपहचान देश भर की देहमंडियों के कारोबारियों और दलालों से थी. इस गली में दाखिल होते ही पिंकी को अहसास हो गया कि उमराव जान जैसी फिल्मों में कुछ गलत नहीं दिखाया गया था. जो कुछ बदलाव आए हैं, वे लोगों को दिखते नहीं या लोग जानबूझ कर उन से वास्ता नहीं रखते. ये एक ही सिक्के के  2 पहलू हैं.

नागपुर आ कर पिंकी को लगा कि इस से बेहतर तो ग्वालियर ही था, क्योंकि परवीन की सरपरस्ती में उसे कई बार लगातार 20 ग्राहकों को निपटाना पड़ता था. परवीन जल्द से जल्द पान सिंह को दिए 15 लाख रुपए उस की चमड़ी से वसूल लेना चाहती थी. यहां की कालगर्ल्स के बीच भद्दे हंसीमजाक होते थे, जिन से शुरू में तो पिंकी परहेज करती रही, लेकिन बाद में उसे लगा कि एकाकीपन से बचने के लिए इसी माहौल का हिस्सा बन जाना बेहतर है.

परवीन की उम्र और जिस्म दोनों ढलान पर थे, फिर भी वह जितना हो सकता था, अपना शरीर बेचती थी. पर बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वह अब लड़कियों की खरीदफरोख्त भी करने लगी थी. एक तरह से उस का रोल कोठों की मौसियों सरीखा था, जो लड़कियों से जरूरत के मुताबिक नरमी और सख्ती दोनों से पेश आना जानती हैं.

परवीन के यहां सुबह से ही ग्राहक आने लगते थे. यहां देश के हर इलाके के लोग आते थे, जिन में से कुछ शौकिया तो कुछ आदी थे. इन लोगों और दलालों की भाषा में पिंकी नया माल थी, इसलिए उस की पूछपरख और कीमत ज्यादा थी. वह एक मशीन की तरह उठती थी और बुत की तरह जब वक्त मिलता, सो जाती थी.

पिंकी की समझ में अच्छी तरह आ गया था कि उस की हालत जहाज के उस पंछी जैसी है, जो बीच समुद्र में है. जहाज से उड़ कर पंछी कितनी भी दूर चला जाए, कोई ठौरठिकाना न मिलने पर उसे झख मार कर जहाज पर ही वापस आना है.

अब सब कुछ उस के सामने खुली किताब की तरह था. जिस दिन परवीन अपने 15 के 50 लाख बना लेगी, उस दिन उसे 10-20 लाख रुपए में किसी और के हाथ बेच देगी. यह किस्मत की बात होगी कि तब वह कहां जाएगी, हैदराबाद, मुंबई, पुणे या फिर कोलकाता. जल्दी ही वह गंगाजमुना गली की ऐसी रौनक बन गई थी, जिस की खुद की जिंदगी स्याह थी.

भागने का खयाल भी इन बदनाम गलियों में किसी गुनाह से कम नहीं होता. इसलिए पिंकी आजादी के सपने नहीं देखती थी. पर उस का एक राजकुमार वाला सपना अभी भी टूटा नहीं था. शायद कालगर्ल्स की जिंदगी का सहारा यही सपना होता है, मकसद भी, जिस के बारे में वही बेहतर जानती हैं.

ऐसी फिल्मी और किताबी बातें सोचतेसोचते वे बूढ़ी हो जाती हैं और फिर खुद की जैसी दूसरी मजबूर और वक्त की मारी लड़कियों को इस दलदल में धकेल कर धंधा करवाने लगती हैं, जिस से बुढ़ापा चैनसुकून और आराम से कट सके. उन के इस लालच या स्वार्थ से कितनी लड़कियों का सुकून और चैन छिन जाता है, वे उस से कोई वास्ता नहीं रखतीं.

नागपुर आने के बाद पिंकी ने साफ महसूस किया था कि उस पर कई मर्दानी नजरों का सख्त पहरा रहता है. वे नजरें सीसीटीवी कैमरों की तरह हैं, जो खुद मुश्किल से दिखते हैं, पर उन की नजर दूर तक रहती है. वहां से भागने की कोशिश करने वाली लड़कियों का कितना बुरा हश्र हुआ, इस के किस्से इतने डरावने तरीके से सुनाए जाते थे कि कोई लड़की ऐसा सोच भी रही हो तो वह खयाल दिलोदिमाग से निकालने में ही अपनी भलाई समझे.

कुछ ही दिनों में पिंकी ने परवीन का इतना भरोसा जीत लिया था. अब उस की निगरानी पहले जैसी नहीं होती थी. उसे नियमित और भरोसेबंद ग्राहकों के साथ अकेला छोड़ा जाने लगा था. लेकिन ग्राहक के साथ कहीं बाहर जाने की इजाजत अभी भी उसे नहीं थी.

एक दिन विपिन पांडे नाम का ग्राहक उस के पास आया तो पिंकी को वह वही शख्स लगा, जिस के सपने वह ग्वालियर आने के पहले से देख रही थी. विपिन में कई बातें ऐसी थीं, जो पिंकी को भा गई थीं. वह आम ग्राहकों की तरह उस पर टूट नहीं पड़ा था. उस ने कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाई थी. पहली बार में ही दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई, जिस से पिंकी को लगा कि विपिन का औरतों को देखने का नजरिया दूसरों से अलग है. उस दिन पहली बार पिंकी का दिन किसी 22 साल की लड़की की तरह धड़का तो वह सिर से ले कर पांव तक सिहर उठी. उस की समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है.

विपिन जाने लगा तो पिंकी मायूस हो उठी. वह अपने मजबूर दिल को संभाल नहीं पाई. उस ने विपिन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘फिर आना.’’

पेशे से ड्राइवर विपिन छिंदवाड़ा के एक प्रतिष्ठित परिवार का बेटा था. छिंदवाड़ा से नागपुर तक का कोई 2 घंटे का रास्ता है, जिसे अब विपिन पिंकी के लिए नापने लगा था. वह अकसर पिंकी के पास जाने लगा तो पिंकी ने उसे अपनी जिंदगी की कहानी विस्तार से सुना दी, जो राजस्थान के बूंदी जिले के गांव शंकरपुरा से ग्वालियर होते हुए नागपुर के बदनाम इलाके गंगाजमुना गली के उस कोठे पर आ कर खत्म होती थी.

प्यार अकेली पिंकी को ही नहीं हुआ था, बल्कि विपिन भी उस से प्यार करने लगा था. यह प्यार ठीक वैसा ही था, जो सन 1991 में प्रदर्शित महेश भट्ट की देहव्यापार पर बनी फिल्म ‘सड़क’ में दिखाया गया था. इस फिल्म में नायक संजय दत्त टैक्सी ड्राइवर होता है और मजबूरी की मारी एक कालगर्ल पूजा भट्ट से प्यार कर बैठता है. इस फिल्म में महारानी वाली भूमिका सदाशिव अमरापुरकर ने निभाई थी,जो खूब चर्चित रही थी.

यहां तो कदमकदम पर महारानियां थीं, लेकिन प्यार भी कहां आसानी से हार मानता है. पिंकी और विपिन ने तय कर लिया था कि भाग कर शादी कर लेंगे और कहीं भी बस जाएंगे. अच्छी बात यह थी कि विपिन हिम्मत वाला युवक था, जो दूसरों की तरह बदनाम गलियों और इलाकों के गुंडों और दलालों से नहीं डरता था.

विपिन के प्यार में डूबी पिंकी भूल गई थी कि तवायफ को प्यार करने की इजाजत न बाजार देता है और न समाज. फिर किसी से शादी कर के गृहस्थी बसाना तो कालगर्ल्स के लिए ख्वाब जैसी बात होती है.

पिंकी जानती थी कि रसूख वाली परवीन के हाथ बहुत लंबे हैं और उस के संबंध कुछ रसूखदार लोगों से भी हैं. गुंडे और दलाल पालना तो कोठों की परंपरा है, जिन का काम यही होता है कि कोई लड़की कोठों की परंपरा को तोड़ कर भागने की कोशिश न करे और करे तो उस का इतना बुरा हाल करो कि वह दूसरी लड़कियों के लिए सबक बन कर रह जाए.

नागपुर में सालों से कोठा चला रही परवीन सिर्फ एक बार ही पीटा एक्ट के तहत गिरफ्तार हुई थी. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह इस कारोबार की कितनी सधी हुई खिलाड़ी थी. कई पुलिस वालों से उस के दोस्ताना संबंध थे.

एक दिन परवीन का सारा सयानापन और तजुरबा धरा रह गया, जब उस के पिंजरे से पिंकी नाम की एक मैना अपने तोते विपिन के साथ भाग निकली. वह 3 मार्च की दोपहर थी, जब हमेशा की तरह विपिन ग्राहक बन कर आया. वह समय परवीन के नहाने का होता था, इसलिए वह विपिन और पिंकी को कमरे में छोड़ कर नहाने चली गई.

दरअसल, भागने की योजना पिंकी और विपिन पहले ही बना चुके थे. पिंकी ने विपिन को बताया था कि गहमागहमी और दलालोंगुंडों की मौजूदगी के चलते रात में भागना कतई मुमकिन नहीं है, इसलिए दिन का समय इस के लिए ठीक रहेगा. उस समय बाजार के ज्यादातर लोग और लड़कियां सोई रहती हैं.

पिंकी भागी तो परवीन तिलमिला उठी. न केवल परवीन, बल्कि देहव्यापार से जुड़े तमाम लोग हैरान रह गए. चंद घंटों में ही पिंकी के भागने की खबर आग की तरह देहव्यापार के राष्ट्रीय बाजार में फैल गई. फिर तो परवीन के गुर्गों ने उसे शिकारी कुत्तों की तरह ढूंढना शुरू कर दिया.

2 दिलों में प्यार का जज्बा एक बार पैदा हो जाए तो उसे रोका नहीं जा सकता. यही पिंकी और विपिन के साथ हुआ था. दोनों ज्यादा दूर नहीं भागे. उन्होंने नागपुर से 100 किलोमीटर दूर मुलताई के कोर्ट में शादी कर ली. मुलताई बैतूल जिले की तहसील है, आदिवासी बाहुल्य यह शहर ताप्ती नदी के किनारे बसा है.

मुद्दत बाद पिंकी को नरक से छुटकारा मिला था. वह तो हार मार चुकी थी, लेकिन विपिन की मर्दानगी और मोहब्बत ने उसे नई जिंदगी दी, इसलिए वह उसे दिल ही दिल में देवता का दरजा दे चुकी थी. किसी तवायफ को जीवनसंगिनी बनाने का फैसला भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता.

दूसरी ओर परवीन घायल शेरनी की तरह अपनी शिकस्त और लापरवाही पर तिलमिला रही थी. उस ने ग्वालियर में बैठे पान सिंह की भी खिंचाई की और देश भर के नएपुराने अड्डों पर खबर पहुंचा दी कि पिंकी कहीं दिखाई दे तो तुरंत इस की सूचना नागपुर दी जाए. परवीन की टीम ढूंढती भी रही और हाथ भी मलती रही कि आखिरकार दोनों को जमीन निगल गई या आसमान खा गया.

मुलताई में शादी करने के बाद विपिन पिंकी को भोपाल ले आया. भोपाल के पौश इलाके शिवाजीनगर में उस के मौसा प्रकाश शर्मा रहते हैं, जो सीआईडी के एडीजी कैलाश मकवान के स्टाफ में दारोगा हैं.

विपिन जब पिंकी को ले कर उन के घर पहुंचा तो वह चौंके कि यह कैसी शादी है. इस पर विपिन ने उन्हें बताया कि उस ने नागपुर की रहने वाली पिंकी से लवमैरिज की है. चूंकि मातापिता पिंकी को सहज स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए वह उन दोनों को पनाह दे दें. कुछ दिनों बाद हालात ठीक हो जाएंगे तो वह खुद छिंदवाड़ा जा कर मांबाप को सच बता देगा.

विपिन ने प्रकाश को यह नहीं बताया था कि पिंकी कौन है. प्रकाश शर्मा को पत्नी के भांजे पर दया आ गई और कुछ सोच कर उन्होंने दोनों को अपने घर रहने की इजाजत दे दी. मौसा के इस फैसले से दोनों खुशी से झूम उठे कि उन की अभी तक की कवायद बेकार नहीं गई. चूंकि इन का प्यार सच्चा है, इसलिए मौसाजी भी आसानी से मान गए. जल्द ही विपिन ने खुद के लिए किराए का मकान ढूंढ लिया.

प्रकाश शर्मा के घर उन की पत्नी कविता और बेटा गौरव रहते थे. उन की बेटी रूपाली की शादी हो चुकी है. गौरव भोपाल के कैरियर कालेज से ग्रैजुएशन कर रहा था. जब ठिकाना मिल गया तो जुगाड़ू विपिन ने खुद के लिए एक ट्रैवल एजेंसी में नौकरी भी ढूंढ ली. शिवाजीनगर में सरकारी क्वार्टरों और बंगलों की भरमार है, लिहाजा वहां का माहौल आमतौर पर शांत ही रहता है. पिंकी यह सब देख कर हैरान थी कि दुनिया इतनी अच्छी है, जिस में इतने अच्छे लोग भी रहते हैं.

2 हफ्ते में ही पिंकी ने अपने मौसेरे सासससुर का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सिर पर पल्लू रखे वह आदर्श बहू की तरह रहती थी और कोशिश करती थी कि घर के सारे कामकाज खुद निपटा डाले. यह वह जिंदगी थी, जो पिंकी का सपना थी.

घरगृहस्थी पिंकी ने पहली बार देखी थी. देवर गौरव भाभी के इर्दगिर्द मंडराता रहता था. हालांकि पिंकी को परवीन का खौफ सताता रहता था, पर प्रकाश शर्मा के पुलिस में होने की वजह से वह खुद को महफूज समझ रही थी. इस के अलावा यहां मिल रहे लाड़प्यार के चलते वह अपनी पुरानी जिंदगी को भी भूलने लगी थी.

23 मार्च की सुबह रोजाना की तरह प्रकाश शर्मा अपने औफिस चले गए. विपिन भी अपनी ड्यूटी पर जा चुका था. जिस ट्रैवल एजेंसी में उसे नौकरी मिली थी, उस ने उस की ड्यूटी प्रदेश के रसूखदार मंत्री रामपाल सिंह के बंगले पर लगा रखी थी. वह भी शिवाजीनगर में ही रहते थे.

कालेज जाने को तैयार बैठे गौरव का टिफिन किचन में तैयार कर रही पिंकी उस समय चौंकी, जब उसे बाहर गाडि़यों के रुकने की आवाज सुनाई दी. वह कुछ सोचसमझ पाती, उस के पहले ही ड्राइंगरूम से मौसिया सास कविता और देवर गौरव के चीखने की आवाजें उसे सुनाई दीं.

पिंकी को समझते देर नहीं लगी कि परवीन के गुर्गे उसे सूंघते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं. लिहाजा वह दूसरे दरवाजे से भाग निकली. उस घर में जहां वह 20 दिनों तक एक आदर्श बहू की तरह रही, में क्या हो रहा है यह उसे कुंछ घंटों बाद पता चला.

वहां एक भयानक हादसा अंजाम ले चुका था. पिंकी का यह अंदाजा गलत साबित हुआ कि देहव्यापार की दुनिया के दलाल और खतरनाक गुंडे उसे ढूंढ नहीं पाएंगे. अगर जैसेतैसे ढूंढ भी लिया तो मौसा ससुर प्रकाश शर्मा के पुलिसकर्मी होने के चलते कुछ नहीं कर पाएंगे.

उस दिन एक टवेरा और एक स्कौर्पियो प्रकाश शर्मा के घर के बाहर आ कर रुकी. एकदम फिल्मी स्टाइल में धड़ाधड़ 14 लोग उन में से निकले, जिन में 4 महिलाएं भी थीं. सभी सीधे उन के घर में दाखिल हो गए. वे लोग विपिन और पिंकी को ढूंढ रहे थे. एकाएक कुछ लोगों को आया देख कविता और गौरव हकबका गए कि ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं.

पिंकी के बारे में उन से पूछा गया, जिस का मतलब दोनों समझ नहीं पाए. आगंतुकों ने पूरा घर छान मारा, पर पिंकी नहीं मिली. वे गौरव और कविता को मारने लगे. दोनों चिल्लाए तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. माजरा क्या है, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था. आखिर इतनी सुबहसुबह शिवाजीनगर जैसे शांत इलाके में कुछ गुंडेबदमाश एक पुलिस वाले के घर घुस कर गदर क्यों मचा रहे हैं.

बदमाशों ने गौरव को काबू कर के गाड़ी में बिठाया और जातेजाते कविता को धमकी दे गए कि विपिन को भेज कर अपने बेटे को ले आना. उन के जाते ही न केवल शिवाजीनगर, बल्कि पूरे भोपाल में कोहराम मच गया कि दिनदहाड़े एक पुलिस वाले का बेटा अगवा कर लिया गया.

मामला खुद के विभाग के मुलाजिम का था, इसलिए पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. गाडि़यों के नंबर चूंकि एक किशोर ने नोट कर लिए थे, इसलिए उस का काम एक हद तक आसान हो गया था. भोपाल के चारों तरफ नाकाबंदी कर दी गई. जल्दबाजी में बदमाश गौरव के मोबाइल से बेखबर थे, इसलिए उस के जरिए पुलिस को उन की लोकेशन मिल रही थी.

घर पर हुए इस हादसे की खबर मिलते ही प्रकाश और विपिन अपनी ड्यूटी छोड़ कर आ गए. इस के बाद विपिन के सच बताने पर सारी कहानी सामने आई कि उन बदमाशों का मकसद क्या था. मामला वाकई गंभीर था, जिस में बदमाश गौरव को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकते थे. इसलिए पुलिस के सामने यह चुनौती पेश आ गई कि कैसे भी गौरव को सकुशल उन के चंगुल से छुड़ाया जाए.

गौरव के मोबाइल की लोकेशन से पता चला कि बदमाशों की गाडि़यां नरसिंहगढ़ और कुरावरमंडी की ओर जा रही हैं. यह रास्ता राजगढ़ होते हुए राजस्थान की तरफ जाता है. पुलिस वालों ने फुरती दिखाते हुए कुछ ही घंटों में नरसिंहगढ़ और कुरावर के बीच मलावर थाने के पास बदमाशों की गाडि़यों को घेर लिया, जो बदमाशों के लिए अप्रत्याशित था.

खुद को घिरा देख कर बदमाशों ने गौरव को गाड़ी से धकेल कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. गौरव को पुलिस ने अपनी गाड़ी में बिठाया और कुछ दूर जा कर बदमाशों को समर्पण करने पर मजबूर कर दिया.

गिरफ्तार हुए अपराधियों में पिंकी के मौसा पान सिंह के अलावा रामसिंह, हर्ष, राहुल, चेन सिंह, मंगल सिंह और हरीश ग्वालियर के थे. जबकि आशा, मौसमी और विचाराम राजस्थान के थे. नागपुर के जो लोग पकड़े गए थे, उन के नाम मोहम्मद सादिक, जगन, कविता और प्रवीण थे.

जाहिर है देहव्यापार से जुड़े 3 राज्यों के दलाल एकजुट हो कर पिंकी और विपिन को पागल कुत्तों की तरह ढूंढ रहे थे. आखिर उन्होंने देश भर में फैले नेटवर्क के जरिए विपिन के बारे में सारी जानकारियां जुटा ही ली थीं.

पकड़े गए लोगों को भोपाल ला कर पुलिस ने इन की मेहमाननवाजी की तो पूरा सच सामने आ गया. गौरव पर उन्होंने अपना गुस्सा गाड़ी में बैठाते ही निकालना शुरू कर दिया था. उसे खूब मारा गया था. जब उस ने विरोध करने की कोशिश की तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई.

गौरव की समझ में सिर्फ इतना ही आया कि वे विपिन भैया और पिंकी भाभी के बारे में बातें कर रहे थे. गौरव को कोई गंभीर चोट नहीं आई थी, फिर भी ऐहतियातन उस का मैडिकल कराया गया, जो कानूनन भी जरूरी था.

जब सब कुछ साफ हो गया तो सुनने वाले हैरत में पड़ गए. यह एक अलग तरह की प्रेमकथा थी, जिस के चलते प्रकाश शर्मा के परिवार पर खतरे के बादल मंडराए थे. लेकिन अंत भला तो सब भला की तर्ज पर बात आईगई हो गई. आखिर बदमाशों को जेल में ठूंस दिया गया. इस के बाद पुलिस टीमें नागपुर, ग्वालियर और राजस्थान गईं.

विपिन के बयान और मंशा से सामने आया कि उस ने एक मजबूर लड़की को गंदगी के दलदल से निकाल कर अपनाया था. वह उस से प्यार करता है और करता रहेगा. समाज के कुछ कहनेसुनने की परवाह उसे नहीं है. विपिन ने माना कि वे लोग बहुत खतरनाक हैं और उस की व पिंकी की जान भी ले सकते हैं. पर अब वह किसी से नहीं डरेगा.

विपिन की मंशा पिंकी को समाज में सम्मान दिलाने की है. इस में वह कितना कामयाब होगा, कह पाना मुश्किल है, क्योंकि कोई भी समाज तवायफ को नहीं अपनाता. उस के प्रति नजरिया कैसा होता है, यह हर कोई जानता है. फिर भी कई लोग विपिन की पहल का स्वागत कर रहे हैं, इसलिए वह अभी भी पिंकी का हाथ मजबूती से थामे हुए है.

निश्चित रूप से विपिन सच्चा मर्द है और शाबाशी का हकदार भी, जिस ने पिंकी को गृहिणी बना कर जीने का सपना पूरा किया और अभी भी आने वाली दिक्कतों से दृढ़ता से जूझ रहा है.

काले इल्म का काला कारोबार, कितना खतरनाक

Crime News in Hindi: भोपाल, मध्य प्रदेश के पिपलानी इलाके में रहने वाली ममता बाई (बदला नाम) की शादी को 10 साल हो चुके थे. उस के कोई औलाद नहीं थी. एक दिन वह अखबार में छपे गारंटी व मनचाही औलाद देने का दावा करने वाले एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी समस्या बताई. अगले दिन ही तांत्रिक उस के घर आया और पूजापाठ, तंत्रमंत्र का पाखंड कर के ममता से बोला, ‘‘घर में रखे जेवरों में खराबी आ गई है. उन में खतरनाक ब्रह्म राक्षस का वास हो गया है. उन्हें शुद्ध करना पड़ेगा.’’

तांत्रिक के कहने पर ममता घर में रखे सारे जेवर ले आई. जेवर देख कर तांत्रिक ने कहा, ‘‘घर में और भी जेवर रखे हैं, उन्हें भी ले आओ.’’

ममता ने बताया, ‘‘वे जेवर तो मेरी सास के हैं.’’ लेकिन तांत्रिक ने उन जेवरों को भी लाने के लिए कहा.

ममता ने सास के जेवरों का बौक्स ला कर तांत्रिक के सामने रख दिया. तांत्रिक ने जेवरों की पूजा की, जिस से कमरे में धुआं हो गया.

पूजा करने के बाद तांत्रिक ने जेवरों का बौक्स लौटाते हुए कहा, ‘‘3 दिन बाद तुम इस डब्बे को खोलना.’’

3 दिन बाद जब ममता ने जेवरों का बौक्स खोला, तो देखा कि उस में जेवर नहीं थे. वह तांत्रिक 6 लाख रुपए के जेवर ले कर चलता बना था.

मुंबई के एक तांत्रिक ने खुद को काले इल्म का जानकार बताया और एक तलाकशुदा औरत की परेशानी दूर करने के बहाने उस से रुपए ऐंठता रहा. इस के साथ ही वह उस का जिस्मानी शोषण भी करता रहा.

यही नहीं, उस तांत्रिक ने उस औरत की 2 बेटियों को भी नहीं छोड़ा. जब वे नाबालिग बेटियां पेट से हो गईं, तो वह वहां से फरार हो गया.

पुलिस ने जब उसे पकड़ा, तो पता चला कि वह करोड़ों रुपयों का मालिक है. मुंबई, सूरत और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में उस की आलीशान कोठियां हैं, जिन की कीमत करोड़ों रुपए में है.

आज के जमाने में भी लोगों का  वशीकरण व काला जादू जैसी बातों पर यकीन है. इस के चलते काले इल्म का कारोबार काफी बढ़ रहा है.

भारत के छोटेबड़े शहरों से निकलने वाले अखबारों, पत्रिकाओं और टैलीविजन में टोनाटोटका करने वाले बाबाओं के इश्तिहार सब से ज्यादा छपते हैं.

ऐसे इश्तिहारों में सौ फीसदी गारंटी, तुरंत असर, काम न होने पर पैसा वापस करने जैसी बातें कही जाती हैं. इन बातों को पढ़ कर लोग तांत्रिकों के पास दौड़ेदौड़े पहुंच जाते हैं. एक बार जो इन के पास पहुंच गया, तो समझो वह बरबाद हो गया.

बाबा समस्या दूर करने के बजाय उस की जिंदगी में नई समस्या पैदा कर देते हैं. वे पूजापाठ के नाम पर लोगों से पैसा वसूलते हैं.

समस्या का समाधान न होने पर बड़ी समस्या बता कर बड़ी पूजा यानी बड़ा खर्च बताते हैं. पूजा न करवाने पर उलटा लोगों पर असर होने का डर दिखा कर पैसा ऐंठते हैं.

ये तथाकथित बाबा अपने नाम के आगे मुल्ला, फकीर, तांत्रिक, पंडित, भक्त, उपासक, सूफी, काले इल्म के माहिर, आलिमों के आलिम, सच्चा फकीर, पहुंचे हुए तांत्रिक, खानदानी मियां जैसी बातें लिखते हैं.

इस के अलावा मुठमारन विशेषज्ञ, काली शक्ति के उपासक, बाबा सम्राट जैसी बातें लिखी होती हैं. इन्हें पढ़ कर लगता है, जैसे ये उन की डिगरियां हैं.

अब तो ये बाबा 100 परसैंट की गारंटी नहीं, बल्कि 5000-11000 परसैंट की गारंटी देते हैं. मेरे से पहले जो काम कर के दिखाएगा, उसे

51 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. और तो और एक तांत्रिक ने तो 54 टाइम गोल्ड मैडल विजेता लिख रखा था. पता नहीं, इन्हें कौन गोल्ड मैडल बांट रहा है.

एक बाबा ने दावा किया है कि अब तक वह 76,586 केस हल कर चुका है. उस की बात पर यकीन करें, तो कह सकते हैं कि उस के पास इतने बेवकूफ पहुंच चुके हैं.

इन बाबाओं के चेले शहर या महल्ले में घूमघूम कर प्रचार करते हैं. पान की गुमटी, चाय की दुकान वगैरह जगहों पर इन बाबाओं की झठी खूबियों का बखान कर के वे लोगों को अपनी ओर करते हैं.

इन बाबाओं का टारगेट ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जिन के पास खूब पैसा होता है, पर परेशान रहते हैं. जो  पति से परेशान हैं, प्यार में नाकाम हैं,  जिस लड़की की शादी नहीं हो रही है,  उन्हें अपनी बातों में ले कर वे बाबाओं तक पहुंचा देते हैं.

बाबा धीरेधीरे उसे अपने असर में लेने लगता है. इन बाबाओं की बातों के जाल में फंसा शख्स अगर इन्हें छोड़ने की कोशिश भी करता है, तो वे इतना डरा देते हैं कि उन से अलग होने की वह सोच भी नहीं सकता है.

ऐसे बाबाओं की नजर उस शख्स की जमीनजायदाद और औरतों के जिस्म पर भी होती है. अनेक बाबा तो मांबेटी के जिस्म लूटते पाए गए हैं.

काले इल्म की काट व पलट के बेताज बादशाह, बुखरी खानदान की खिदमत में 163 साल, बुजुर्गों के ताबे (काबू) में लिए हुए जिन्नात (जिन) के जरीए एक खास अमल (सिद्ध क्रिया) करता है, जिस में जीत के तमाम रास्ते खुल जाते हैं.

मेरी अमल से संगदिल से संगदिल महबूब बेपनाह मुहब्बत करने वाला बन जाएगा. आलिमों के आलिम, जिन्नात द्वारा मनचाहा काम करवाने की बात लिखी होती है. उन का दावा है कि किसी की आवाज, हाथ से लिखा परचा, पहना हुआ कपड़ा, शरीर के किसी भी हिस्से के बाल या नाखून, फोटो होने पर उस के ऊपर कोई भी काम किया जा सकता है.

कहा जाता है, बेवकूफ बनने के लिए लोग तैयार बैठे हैं. बस, उन्हें बेवकूफ बनाने वाला चाहिए. इस की वजह से काले इल्म वाले बाबाओं की काली दुकानदारी जम कर चल रही है.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

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सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

रूपाली का घिनौना रूप, कौन बना उस का शिकार

Crime News in Hindi: 13 जून, 2017 को पुलिस कंट्रोलरूप (Control Room) द्वारा उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर (Jaunpur) की कोतवाली मड़िया हूं पुलिस को गांव सुभाषपुर में एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार सिंह पुलिस बल के साथ सुभाषपुर गांव (Subhashpur Village) स्थित उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. घटनास्थल केडीएस स्कूल के पीछे था. अब तक वहां गांव वालों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. लेकिन पुलिस को देखते ही लोग एक किनारे हो गए थे. नरेंद्र कुमार सिंह ने लाश का निरीक्षण शुरू किया. मृतक की हत्या किसी धारदार हथियार से बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस की उम्र यही कोई 27-28 साल थी. देखने से ही वह गांव का रहने वाला लग रहा था.

पुलिस कंट्रोलरूम से इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी. उसी सूचना के आधार पर एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. काफी प्रयास के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में भी कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी, तभी कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार सिंह एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से करने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लाश से कुछ दूरी पर उन्हें एक टूटा हुआ सिम मिला. इस से जांच में मदद मिल सकती थी, इसलिए उन्होंने उसे सुरक्षित रख लिया.

एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का आदेश दे कर चले गए थे. इस के बाद नरेंद्र कुमार सिंह भी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने में उन्होंने अपराध संख्या 461/2017 पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय ने थाना पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. जांच को आगे बढ़ाते हुए नरेंद्र कुमार सिंह ने घटनास्थल से मिले सिमकार्ड पर लिखे नंबर के आधार पर संबंधित कंपनी से पता किया तो जानकारी मिली कि वह सिम महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी के रहने वाले पंकज का था. वह सिम महाराष्ट्र से खरीदा गया था.

इस का मतलब यह हुआ कि मृतक का आसपास के रहने वाले किसी से कोई संबंध था या फिर वह यहां घूमने आया था. उस का किस से क्या संबंध था, यह पता करने के लिए पुलिस ने नंबर पता कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से अंतिम नंबर पर जिस से बात हुई थी, उस का नाम सत्यम था.

13 जून को सत्यम की पंकज से कई बार बात हुई थी. यही नहीं, उस के नंबर की लोकेशन भी 13 जून को घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. नरेंद्र कुमार सिंह ने सत्यम के नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर उस की लोकेशन पता कराई, क्योंकि फोन करने पर उसे शक हो जाता और फरार हो सकता था.

सर्विलांस के आधार पर ही उन्होंने 24 जुलाई, 2017 की सुबह इटाए बाजार के आगे नहर की पुलिया के पास से सत्यम और उस के साथ एक युवक तथा एक युवती को गिरफ्तार कर लिया. तीनों एक मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे. बाद में पूछताछ में पता चला कि तीनों कहीं दूर भाग जाना चाहते थे, जिस से पुलिस उन्हें पकड़ न सके.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम सत्यम उर्फ छोटू गौड़, सचिन गौड़ उर्फ चिंटू और रूपाली बताए. इन में सत्यम और सचिन वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव के रहने वाले थे. युवती का नाम रूपाली था. वह मृतक पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू की पत्नी थी. वह महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी की रहने वाली थी.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ शुरू की तो थोड़ी हीलाहवाली के बाद उन्होंने पंकज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने उन की मोटरसाइकिल संख्या यूपी65बी क्यू 7062 जब्त कर ली थी. इस के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, दस्ताने भी बरामद कर लिए गए थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने पंकज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी का रहने वाला 28 साल का पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव में आ कर रह रहा था. वह यहां शादीविवाहों या किसी अन्य कार्यक्रमों में डांस करता था. इसी से होने वाली आमदनी से उस का और उस के परिवार वालों का भरणपोषण हो रहा था. वह डांस कर के इतना कमा लेता था कि उस का और उस के परिवार का गुजारा आराम से हो रहा था.

करियांव में ही सत्यम उर्फ छोटू गौड़ भी रहता था. पंकज से उस की दोस्ती हो गई तो वह उस के घर भी आनेजाने लगा, घर आनेजाने से उन की दोस्ती तो गहरी हुई ही, पंकज की पत्नी रूपाली से भी उस की अच्छी पटने लगी. वह उसे भाभी कहता था. चूंकि सत्यम की शादी नहीं हुई थी, इसलिए जल्दी ही रूपाली पर उस का दिल आ गया. इस के बाद वह पंकज की अनुपस्थिति में भी उस के घर जाने लगा, क्योंकि उस के सामने वह दिल की बात नहीं कह सकता था.

आखिर एक दिन पंकज की अनुपस्थिति में सत्यम ने रूपाली से दिल की बात कह ही नहीं दी, बल्कि दिल की मुराद भी पूरी कर ली. एक बार मर्यादा भंग हुई तो सिलसिला चल निकला. दोनों को जब भी मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. पंकज इस सब से अंजान था. जिस पत्नी को ले कर वह अपने घरपरिवार से इतनी दूर आ गया था, उसी पत्नी ने उस से बेवफाई करने में जरा भी संकोच नहीं किया था.

पंकज की गैरमौजूदगी में सत्यम का आनाजाना कुछ ज्यादा बढ़ गया तो लोगों की नजरों में यह बात खटकने लगी. लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया तो उन्हें मामला गड़बढ़ लगा. लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे तो यह बात पंकज के कानों तक पहुंची. पहले तो उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब लोगों ने टोकाटाकी शुरू की तो उस ने सच्चाई का पता करना चाहा. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई.

एक दिन वह रूपाली से कार्यक्रम में जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक वापस आ गया. अचानक पंकज को देख कर रूपाली घबरा गई. इस की वजह यह थी कि उस समय सत्यम उस के घर में ही मौजूद था. पंकज को देख कर सत्यम तो पिछवाड़े से भाग निकला, लेकिन रूपाली पकड़ी गई. उस की हालत ने सच्चाई उजागर कर दी. पंकज ने उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, इतने से मन नहीं माना तो पिटाई भी कर दी.

रूपाली ने उस समय वादा किया कि अब वह फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगी. पंकज ने भी उस की बात पर विश्वास कर लिया. माफ करना उस की मजबूरी भी थी. आखिर उसे भी तो अपना घर बचाना था. उसे लगा कि गलती सभी से हो जाती है, रूपाली से भी हो गई. अब संभल जाएगी.

लेकिन रूपाली संभली नहीं, कुछ दिनों तक तो वह सत्यम से बिलकुल नहीं मिली. लेकिन धीरेधीरे दोनों लोगों की नजरें बचा कर फिर चोरीचुपके मिलने लगे. रूपाली पंकज से ऊब चुकी थी. वह पूरी तरह से सत्यम की हो कर रहना चाहती थी, इसलिए वह जब भी सत्यम से मिलती, एक ही बात कहती, ‘‘सत्यम, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. इस तरह छिपछिप कर मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. मैं पूरी तरह तुम्हारी हो कर रहना चाहती हूं. चलो, हम कहीं भाग चलते हैं.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रूपाली, लेकिन थोड़ा शांति से काम लो. देखो, मैं कोई उपाय करता हूं.’’ जवाब में सत्यम कहता.

सत्यम उपाय सोचने लगा. उस ने जो उपाय सोचा, उस के बारे में एक दिन रूपाली से कहा, ‘‘रूपाली, क्यों न हम पंकज को हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दें. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’

रूपाली पहले तो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘कहीं हम पकड़े न जाएं?’’

‘‘इस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. उसे तो मैं ऐसा निपटा दूंगा कि किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ सत्यम ने कहा.

इस के बाद सत्यम ऐसा मौका ढूंढने लगा, जब वह अपना काम कर सके. 12 जून, 2017 को पंकज को कार्यक्रम में डांस करने के लिए थाना मडि़याहूं के गांव सुभाषपुर जाना था. वह अपनी पार्टी के साथ निकल भी गया.

पंकज के घर से निकलते ही रूपाली ने सत्यम को बता दिया. चूंकि वाराणसी और जौनपुर की सीमा सटी हुई है और मडि़याहूं तथा फूलपुर के बीच की दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है, इसलिए सत्यम रूपाली के सूचना देते ही अपने साथी सचिन के साथ सुभाषपुर गांव के लिए निकल पड़ा.

आधी रात के बाद लोगों की नजरें बचा कर सत्यम ने बहाने से पंकज को गांव के बाहर केडीएस स्कूल के पीछे बुलाया और सचिन की मदद से चाकू से उस की हत्या कर दी. इस के बाद पंकज के मोबाइल से उस का सिम निकाल कर तोड़ कर झाडि़यों में फेंक दिया और मोबाइल ले कर चला गया.

पंकज के अचानक गायब होने से उस के साथियों ने सोचा, शायद किसी बात से नाराज हो कर वह घर चला गया होगा और अपना मोबाइल भी बंद कर लिया होगा. पति के इस तरह गायब होने से रूपाली रोनेधोने का नाटक करती रही. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस हत्यारों तक नहीं पहुंची तो उचित मौका देख कर उस ने सत्यम के साथ भाग जाने की योजना बना डाली.

संयोग से पुलिस ने उन्हें उसी दिन पकड़ लिया, जिस दिन सत्यम और रूपाली भाग रहे थे. मामले का त्या कर रूपाली और सत्यम को मिला क्या? पंकज तो जान से गया, लेकिन अब उन दोनों की जिंदगी भी अबखुलासा होने के बाद पुलिस ने अज्ञात की जगह सत्यम, सचिन और रूपाली को नामजद कर तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. सोचने वाली बात तो यह है कि पंकज की ह जेल में ही कटेगी?

खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो, लाखों कमाओ, पर जरा संभल कर जनाब

Crime News in Hindi: आज सोशल मीडिया (Social Media) हमारी जिंदगी पर इतना ज्यादा हावी हो गया है कि हम उस पर आंख मूंद कर भरोसा (Trust) करने लगे हैं, फिर भले हमें ही चूना क्यों न लग जाए. लेकिन अगर किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट (Pregnant) कर के लाखों कमाने की बात आए, तो बांके नौजवानों की तो यह सुन कर ही बांछें खिल जाएंगी. पर अगर आप को भी यह ललचाता औफर आया है, तो सावधान हो जाएं. अगर यकीन नहीं होता तो चलो आप को बताते हैं एक ऐसा ही मामला जहां ठगों ने लोगों के सामने एक ऐसा जोरदार आइटम पेश किया है कि कहने ही क्या. हद तो यह है कि ऐसे शातिरों ने ठगी के इस नएनवेले कांड को एक और्गेनाइजेशन का नाम दिया हुआ था.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, बिहार में एक ऐसा स्कैम चल रहा है कि किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो और उस के बदले में लाखों रुपए कमाओ. मामला बेशक बिहार का लग रहा है, पर इस गिरोह का जाल पूरे देश में फैला है.

एक जानकारी के मुताबिक, बिहार में नवादा पुलिस ने साइबर अपराधियों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही की है. पुलिस ने जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में छापेमारी की और 8 साइबर ठगों को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से 9 मोबाइल फोन और एक प्रिंटर मिला.

इस मामले पर पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए आरोपी ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब (बेबी बर्थ सर्विस)’ के नाम पर पैसों का लालच देते थे और लोगों को ठगी का शिकार बनाते थे.

शातिरों का यह ग्रुप लोगों को फंसाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा था. ठगों ने मर्दों को इस लच्छेदार स्कीम के बारे में बता कर उन्हें फंसाया, इस के बाद उन से रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसे वसूले.

इन ठगों ने मर्दों से कहा कि ‘बेबी बर्थ सर्विस’ में आप को बेऔलाद औरतों को प्रैग्नैंट करना होगा, जिस के लिए आप को बड़ी रकम मिलेगी. झांसे में आए मर्दों से शुरू में 799 रुपए लिए गए. इस के बाद उन से बतौर सिक्योरिटी मनी 5,000 से 20,00 रुपए मांगे जाते थे.

नवादा पुलिस की एसआईटी ने मुन्ना कुमार नाम के शख्स के यहां छापा मारा. पुलिस के मुताबिक, मुन्ना कुमार ही इस पूरे गिरोह का सरगना है. दरअसल, आज से तकरीबन 5 साल पहले नवादा के गांव गुरम्हा का रहने वाला मुन्ना कुमार नौकरी के लिए राजस्थान के मेवाड़ में गया था. वहां उस की मुलाकात जामताड़ा जैसे कुछ गिरोहबाजों से हुई, जहां उस ने बाकायदा साइबर ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

गांव लौट कर मुन्ना कुमार ने अपना दफ्तर खोला. इसी बीच उस ने गांव के 20-30 लड़कों को चुपचाप से ट्रेनिंग दी ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस ने कंपनी शुरू की और सोशल मीडिया की मदद से ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब’ के इश्तिहार जारी किए, जिन में लिखा होता था कि कुछ ऐसी औरतें हैं, जो शादी के बरसों बाद भी मां नहीं बन पा रही हैं. वे मां बनना चाहती हैं.

हमारी संस्था ऐसी औरतों के लिए काम करती है. यह सारा काम कानूनी होता है. जो भी इच्छुक हैं, वे ऐसी औरतों को प्रैग्नैंट कर उन्हें मां बनने का सुख दे सकते हैं. इस के लिए उन्हें बाकायदा पैसे भी मिलेंगे. यह रकम 10 से 13 लाख की होगी. अगर औरत प्रैग्नैंट नहीं हो पाती, तो भी 5 लाख रुपए तो मिलेंगे ही.

क्यों फंसते हैं नौजवान

आज देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि नौजवान किसी भी खबर पर बिना सोचेसमझे यकीन कर लेते हैं और अगर उन्हें किसी खूबसूरत औरत से मजे ले कर उसे मां बनाने का औफर मिले तो वे लार टपकाने लगते हैं. उन्हें लगता है कि यह तो पैसे कमाने का गरमागरम तरीका है. फिर सरकार भी तो किसी को रोजगार नहीं दे पा रही है, यहीं पर ही अपनी भड़ास निकाल लेते हैं.

ठग बेरोजगार लोगों की इसी दुखती नस पर हाथ रखते हैं और रोजगार देना तो दूर, उन्हें ही अपना शिकार बना लेते हैं. इस तरह उन्हें न तो देह सुख मिलता है और न ही वे पैसा कमा पाते हैं. लुट भले ही जाते हैं.

शादी जो मौत बन कर आई, कौन लाया यह तबाही

Crime News in Hindi: किसी परिवार में विवाह की तैयारियां चल रही हों तो खुशियां देखते ही बनती है. लियाकत का परिवार भी ऐसी ही खुशियों से सराबोर था. क्योंकि उस ने अपने बेटे आदिल का रिश्ता न सिर्फ पक्का कर दिया था, बल्कि चंद रोज बाद वह बारात ले कर भी जाने वाला था. लियाकत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सहारनपुर जिले के कस्बा मिर्जापुर (Mirzapur) में परिवार के साथ रहता था. उस के पास गुजारे लायक खेती की जमीन थी. बेटे आदिल की शादी उत्तराखंड (Uttrakhand) के देहरादून (Dehradun) के थाना विकासनगर (Vikas Nagar) के गांव कुंजाग्रांट की हिना से तय हुई थी.

14 मार्च, 2017 को उन के निकाह की तारीख भी तय कर दी गई थी. 19 फरवरी को हिना के लिए शादी का जोड़ा भी जाना था. इन खुशियों से हर कोई खुश था, लेकिन खुशियां किसी की मोहताज नहीं होतीं. वक्त कब कौन सी करवट ले ले, इस बात को कोई नहीं जानता. दुलहन के जोड़ा खुलने की रश्म पूरी हो पाती उस से पहले ही लियाकत का परिवार एक नाउम्मीद मुसीबत में फंस गया.

18 फरवरी की शाम आदिल अचानक लापता हो गया. वह शाम को घर से कुछ देर में आने की बात कह कर गया था, लेकिन वापस नहीं आ सका. उस का मोबाइल फोन भी स्विच औफ आ रहा था. वह इस तरह अचानक कहां लापता हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रहा थी.

घर वालों ने अपने स्तर से उसे बहुत खोजा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. थकहार कर उन्होंने इस की सूचना थाना मिर्जापुर को दे दी. थानाप्रभारी पंकज त्यागी ने उस के बारे में पूरी जानकारी ले कर पूछा, ‘‘किसी से कोई झगड़ा या रंजिश तो नहीं थी?’’

‘‘नहीं साहब, हम सीधेसादे लोग हैं. आदिल का स्वभाव भी ऐसा नहीं था.’’ जवाब में लियाकत ने कहा.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस लड़की से तुम आदिल की शादी कर रहे हो, वह लड़की उसे पसंद न हो.’’ थानाप्रभारी ने अगला सवाल किया.

‘‘बिलकुल नहीं साहब. उस ने ऐसा कभी जाहिर नहीं किया. वह तो बहुत खुश था. वह खुद भी शादी का जोड़ा खुलने की रस्म की तैयारियों में लगा था.’’ लियाकत ने कहा.

‘‘फिर तुम लोगों को क्या लगता है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, लगता है, हमारे बेटे का अपहरण किया गया है.’’ लियाकत ने आशंका जताई.

‘‘यह अंदाजा किस बात से लगाया?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, हमें कुछ लोगों ने बताया है कि आदिल को 2 लोगों के साथ मोटरसाइकिल पर जाते देखा गया है.’’

‘‘कौन थे वे लोग?’’

‘‘यह पता नहीं साहब.’’ लियाकत ने कहा.

आदिल के दोस्तों आदि के बारे में जानकारी ले कर थानाप्रभारी ने लियाकत को जरूरी काररवाई का आश्वासन दे कर घर भेज दिया.

लियाकत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि फिरौती के लिए आदिल का अपहरण करता. जांच में पता चला कि आदिल जिस मोटरसाइकिल पर गया था, उस पर स्पोर्ट्स लिखा था. गांव वालों से पूछा गया तो लोगों ने बताया कि पूरे गांव में किसी के पास ऐसी मोटरसाइकिल नहीं है.

आदिल के लापता होने से लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा था. एसएसपी लव कुमार को इस की जानकारी हुई तो उन्होंने केस के खुलासे के लिए अपराध शाखा की टीम को भी थाना पुलिस के साथ लगा दिया.

पुलिस ने आदिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन हासिल कर ली थी. उस की अंतिम लोकेशन नजदीकी गांव सोफीपुर की पाई गई थी. इस के बाद उस का मोबाइल औन नहीं हुआ था.

आदिल की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. पुलिस अभी माथापच्ची कर ही रही थी कि सी ने बताया कि स्पोर्ट्स लिखी मोटरसाइकिल गांव के एक व्यक्ति के रिश्तेदार अफरोज की थी, जो देहरादून के पास स्थित गांव कुंजाग्रांट में रहता था. वह गांव आताजाता भी रहता था. कुंजाग्रांट की ही हिना से आदिल की शादी होने वाली थी.

अब पुलिस को यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा लगने लगा. पुलिस ने किसी तरह अफरोज का मोबाइल नंबर हासिल कर के काल डिटेल्स निकलवा ली. जिस दिन आदिल लापता हुआ था, उस दिन अफरोज की 2 नंबरों पर बातें हुई थीं. खास बात यह थी कि वे दोनों नंबर अफरोज के ही गांव के शाकिर और मारुफ के थे. इतना ही नहीं, उन की लोकेशन भी उस शाम मिर्जापुर गांव की पाई गई.

सुराग और सबूत पुख्ता होते ही अगले दिन यानी 20 फरवरी, 2017 को एक पुलिस टीम कुंजा ग्रांट के लिए रवाना हो गई और अफरोज, शाकिर तथा मारुफ को शक के आधार पर हिरासत में ले कर थाने आ गई. उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 18 फरवरी को वे मिर्जापुर आए ही नहीं थे.

पुलिस के पास उन के फोन नंबरों की लोकेशन और डिटेल्स थी. इस से साफ था कि वे झूठ बोल रहे थे. पुलिस ने सख्त रुख अख्तियार किया तो अफरोज टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. क्योंकि वे तीनों आदिल के खून से अपने हाथ रंग चुके थे.

तीनों ने आदिल की हत्या कर के उस के शव को सफीपुरा गांव के जंगल के एक गड्ढे में छिपा दिया था. पुलिस ने उन की निशानदेही पर आदिल का शव बरामद कर लिया. उस के सिर व चेहरे पर घावों के निशान थे. शव के नजदीक ही खून से सने पत्थर पड़े थे. पुलिस ने बतौर सबूत उन्हें कब्जे में ले लिया.

आदिल की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया. पुलिस ने उस के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही तीनों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे प्रेमी की कहानी निकल कर सामने आई, जो नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका किसी और के नाम का शादी का जोड़ा पहने. उस की प्रेमिका भी मौत के इस षडयंत्र में शामिल थी.

करीब 2 साल पहले अफरोज और हिना की आंखें चार हुईं तो दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. दोनों ने प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत कर दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. जब कोई इंसान किसी को प्यार करे तो उस के लिए ढेरों सुनहरे ख्वाब सजाता है. उन्होंने भी ख्वाबों का एक महल बना लिया था.

जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिरा दी और हमेशा एक होने का फैसला भी कर लिया. दोनों ही अक्सर एकदूसरे का हमसफर होने की कसमें खाते थे. एक दिन दोनों मिले तो अफरोज ने हिना से पूछा, ‘‘हिना यह बताओ कि तुम कभी मेरा सथ तो नहीं छोड़ दोगी?’’

‘‘कैसी बात करते हो अफरोज, तुम तो मेरी सांसों में बसे हो. मैं कभी बुरे ख्वाबों में भी ऐसा नहीं सोच सकती. एक दिन मुझे पूरी तरह तुम्हारी होना है.’’ हिना ने कहा.

‘‘लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे डर लगता है कि वक्त आने पर तुम बदल न जाओ.’’ अफरोज ने कहा.

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. मैं तुम से सच्चा प्यार करती हूं.’’ हिना ने उस की आंखों में हसरतों से देखते हुए जवाब दिया तो अफरोज बेहद खुश हुआ.

जनवरी, 2017 में हिना का रिश्ता सहारनपुर के कस्बा मिर्जापुर के आदिल के साथ तय हो गया. घर वालों से वह इस रिश्ते का विरोध करने का साहस नहीं कर सकी. उस की मरजी के खिलाफ रिश्ता तो पक्का हो गया, पर वह दिल से इस रिश्ते के लिए खुश नहीं थी.

रिश्ता तय होने पर हिना और अफरोज दोनों ही परेशान थे. अब अफरोज को अपने ख्वाब टूटते नजर आने लगे. वह परेशान रहने लगा. हिना के घर वालों के सामने हकीकत बयां करने की हिम्मत उस में भी नहीं थी. बावजूद इस के वह किसी भी सूरत में हिना को खोना नहीं चाहता था. इस मुद्दे पर एक दिन उस ने हिना से बात की, ‘‘यह सब क्या हो गया हिना? हम दोनों ने तो साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं.’’

‘‘मैं खुद भी परेशान हूं अफरोज. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’ हिना बोली, ‘‘कुछ तो करना ही पड़ेगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे दिल में अपने मंगेतर के लिए जगह बन गई हो?’’ अफरोज ने मायूसी के साथ कहा.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो, क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रहे हो?’’ हिना ने नाराजगी जाहिर की.

उधर रिश्ता तय हो जाने पर आदिल हिना के ख्वाब देखने लगा था. वह बेहद खुश था और अक्सर हिना से फोन पर बातें किया करता था. हिना के दिल में अफरोज की तसवीर थी. वह नाखुशी से आदिल से बात करती थी. उस ने आदिल को जरा भी शक नहीं होने दिया था कि वह उस के बजाय किसी और से प्यार करती है.

जैसे जैसे समय बीत रहा था, अफरोज और हिना की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अफरोज के कई दिन इसी उधेड़बुन में बीत गए कि वह इस रिश्ते को कैसे तुड़वाए. उसे सीधा कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मन ही मन उस ने खतरनाक निर्णय ले लिया.

एक दिन उस ने अपने दिल की बात हिना से भी जाहिर कर दी, ‘‘हिना मैं ने सोच लिया है कि अब क्या करना है?’’

‘‘क्या?’’ वह चौंकी.

‘‘मैं आदिल को रास्ते से हटा दूंगा.’’

‘‘इस में खतरा हो सकता है?’’ हिना ने आशंका जाहिर की.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं काम पूरी प्लानिंग से करूंगा.’’ अफरोज ने आत्मविश्वास से कहा.

हिना इस कदर बहक चुकी थी कि उसे अंदाजा भी नहीं था कि किस खतरनाक षडयंत्र का हिस्सा बन रही है और बाद में उसे इस की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने अफरोज से कहा, ‘‘अफरोज, मुझे नहीं लगता कि अब हम कभी एक हो पाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ अफरोज ने पूछा.

‘‘देखो, चंद दिनों बाद 20 तारीख को मेरी  शादी का जोड़ा खुलने की रश्म होने जा रही है.’’ हिना मायूस हो कर बोली.

यह सुन कर अफरोज आगबबूला हो गया. उस ने तिलमिला कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं जल्दी ही कुछ करता हूं. मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें किसी और के नाम का शादी का जोड़ा नहीं पहनने दूंगा.’’

अफरोज आदिल को रास्ते से हटाने का फैसला तो कर चुका था, लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. गांव में ही उस के रिश्ते का मामा शाकिर और दोस्त मारुफ रहते थे. उस ने उन दोनों को अपना इरादा बता कर उन से आदिल को रास्ते से हटाने में मदद मांगी. वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

अफरोज की आदिल के गांव में रिश्तेदारी थी. वह वहां अपनी मोटरसाइकिल से आताजाता रहता था. इस नाते उस की आदिल से भी अच्छी जानपहचान थी. कई बार ऐसा भी हुआ था कि दोनों ने साथ बैठ कर शराब भी पी थी. फरवरी के दूसरे सप्ताह में वह मिर्जापुर गया तो रास्ते में उस की मुलाकात आदिल से हो गई. वह उस से काफी खुशमिजाज अंदाज में मिला, ‘‘मुबारक हो आदिल भाई, तुम्हारा निकाह हमारे ही गांव में होने जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया भाईजान.’’ आदिल मुसकरा दिया.

‘‘चलो अच्छा है इस बहाने मुलाकात होती रहेगी. किसी दिन फुरसत में आऊंगा तो साथ बैठ कर दावत करेंगे.’’ अफरोज ने कहा तो वह खुश हो गया.

यह अफरोज की योजना का एक हिस्सा था. वह नहीं चाहता था कि अचानक साथ बैठने में आदिल उस पर शक करे. योजना के मुताबिक 18 फरवरी की शाम ढले अफरोज शाकिर और मारुफ अलगअलग मोटरसाइकिलों से मिर्जापुर पहुंच गए. इत्तेफाक से उन्हें सड़क पर ही आदिल मिल गया. शराब की दावत के बहाने उन्होंने उसे अपने साथ ले लिया.

आदिल आसानी से उन के झांसे में आ गया. ठेके से उन्होंने शराब तथा दुकान से सोडे की बोतल आदि सामान लिया और सफीपुर गांव के जंगल में पहुंच गए. वहां सभी ने बैठ कर शराब पी. उन्होंने जानबूझ कर आदिल को ज्यादा शराब पिलाई थी. उसे पता नहीं था कि जिन्हें वह अपना दोस्त समझ रहा है, वास्तव में वे उस के दुश्मन हैं.

अधिक शराब पीने से वह नशे में हो गया. अफरोज बहाने से उठा और एक पत्थर उठा कर आदिल के सिर पर पीछे से दे मारा. अचानक हुए हमले से आदिल चीख कर  लुढ़क गया. इस के बाद बाकी ने भी उस के सिर व मुंह पर पत्थरों से प्रहार किए.

आदिल लहूलुहान हो गया. वह जिंदा न बच सके, इस के लिए उन्होंने उस का गला भी दबा दिया. कुछ ही देर में आदिल की सांसों की डोर टूट गई. जब उन्हें विश्वास हो गया कि उस की मौत हो चुकी है तो उन्होंने उस के शव को गड्डे में ठिकाने लगा दिया. उस का मोबाइल भी स्विच औफ कर के फेंक दिया.

इस के बाद तीनों देहरादून चले गए. अफरोज ने सोचा था कि उस की राह का कांटा आदिल हमेशा के लिए हट गया. मामला शांत होने के बाद वह मौका देख कर हिना के परिवार वालों से अपने रिश्ते की बात कर के अपने प्यार की दुनिया आबाद करेगा. उस की सोच थी कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा.

लेकिन पुलिस के पहुंचते ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका हिना को भी गिरफ्तार कर लिया. अपने प्यार को पाने की गरज में अफरोज का कदम सरासर गलत था. प्यार को पाने का यह कोई तरीका नहीं था. जबकि आदिल तो हर हकीकत से पूरी तरह अंजान था. न उस का कोई गुनाह था न कोई अफरोज से सीधी रंजिश.

अफरोज के गलत निर्णय से न सिर्फ एक घर का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया, बल्कि खुद उस का और हिना का भविष्य भी खराब हो गया. दोनों भविष्य में एक हो भी जाएं तो भी यह कसक दिलों से कहां जाएगी कि उन के हाथ किसी निर्दोष के खून से रंगे हैं.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हो सकी थी. आदिल के परिवार वाले उन्हें सख्त सजा दिलाए जाने की मांग कर रहे थे.

हिजड़ों की गुंडागीरी, हो जाएं सावधान

हिजड़ा समाज सभी जगह अपनी मनमानी करने के लिए बहुत बदनाम है. अंधश्रद्धा में डूबा हमारा समाज भी न जाने क्यों इन से इतना डरता है कि जानेअनजाने में ही इन की हर बात चुपचाप सहन कर लेता है. शायद लोगों को डर रहता है कि कहीं इन का दिया हुआ शाप लग गया, तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी. यही वजह है कि हिजड़े भी इसी बात का भरपूर फायदा उठाने लगे हैं.

ये हर जगह दादागीरी करते दिखाई देते हैं. ये कभी सिगनल पर पैसा मांगते खड़े मिल जाते हैं, कभी बसों में, तो कभी ट्रेन में. कभीकभी तो ये घरों में घुस कर तीजत्योहार पर पैसा मांगने चले आते हैं.

अगर इन को न कह दिया जाए, तो ये गालीगलौज पर उतर आते हैं. रास्ते में ये उलटीसीधी व बेहूदा हरकतें करने लगते हैं और लोग डर के मारे इन की बात मान कर खिसकने में ही अपनी भलाई समझते हैं.

जवानी में तो हर तरह की दादागीरी से हर हिजड़े का काम हो जाता है, लेकिन ढलती उम्र में जिंदगी दोजख सी हो जाती है. अपने गुजारे के लिए तो इन्हें भीख मांगने तक की नौबत आ जाती है. अपने ही समाज से ये दुत्कार दिए जाते हैं. इन्हें नौजवान हिजड़ों की दया पर जीना पड़ता है.

इस के नतीजे में इन के द्वारा सैक्स, चोरी, लूटपाट, अपहरण जैसे किस्से ज्यादा बढ़ने लगे हैं.

हाल ही में भावनगर के तलाजा तालुका के सोसिया और कठवा गांव में हिजड़ों ने 2 नौजवानों को बहलाफुसला कर उन का अपहरण कर लिया. बाद में उन्हें भुज ले जा कर प्राइवेट अस्पताल में हिजड़ा बना दिया.

पूरे भावनगर इलाके में चर्चा का मुद्दा बनी इस वारदात में सोसिया गांव के 18 साला लालजी बाबूभाई वेगड और कठवा गांव के 18 साला मुकेश भगवानभाई सरवैया को रामदेवपीर व्याख्यान मंडल के सदस्य जतीन चीथरभाई गोहिल ने रामदेवपीर के आख्यान के बहाने भुज चलने को कहा. साथ में भावनगर से फिरोज और कड़ला नाम के 2 और हिजड़ों को भी ले लिया.

भुज ले जा कर उन्हें कैद में रखा. वहां से सानिया नाम के एक दूसरे हिजड़े की मदद से किसी प्राइवेट अस्पताल में डाक्टर से उन को हिजड़ा बनवा दिया. बाद में जोरजबरदस्ती से सौ रुपए के स्टांप पेपर पर उन दोनों से लिखवा लिया कि वे खुद अपनी मरजी से हिजड़े बने हैं.

15 दिनों तक उन की कैद में बंद दोनों नौजवान जैसेतैसे इन के चंगुल से भाग कर भावनगर लौट आए. परिवार के लोग इन दोनों को इलाज के लिए भावनगर के सर टी. अस्पताल ले कर गए, तब जा कर बात का भांड़ा फूटा.

भावनगर की पुलिस गुनाहगारों को पकड़ने में नाकाम रही, तब जा कर केस भुज ट्रांसफर किया गया.

भुज पुलिस ने सानिया हिजड़े को गिरफ्तार कर लिया है. इस मामले की तहकीकात अभी चल रही है. पुलिस को इस मामले में और लोगों के भी शामिल होने का शक है. पुलिस जानना चाहती है कि इन लोगों के अंगों को कहां रखा गया है? अस्पताल और डाक्टर के बारे में भी पता लगाना बाकी है.

यह समाज में किसी भी शख्स का दिल दहला देने वाली घटना है. पुलिस की लापरवाही और ढीली कार्यवाही से ही ऐसे असामाजिक लोगों को खुली छूट मिलती है.

गुजरात में चोरी, बलात्कार, अपहरण, हत्या, गुंडागीरी के किस्से रोजाना बढ़ते जा रहे हैं. केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेने वाले मुख्यमंत्री अपने राज्य की तरफ कब देखेंगे?

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