कुछ खट्टा कुछ मीठा: वीर के स्वभाव में कैसे बदलाव आया?

फोन की घंटी लगातार बज रही थी. सब्जी के पकने से पहले ही उस ने तुरंत आंच बंद कर दी और मन ही मन सोचा कि इस समय किस का फोन हो सकता है. रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो ममा,’’ उधर मिनी थी.

मिनी का इस समय फोन? सोच उस ने पूछा, ‘‘तू अभी तक औफिस नहीं गई?’’

‘‘बस जा रही हूं. सोचा जाने से पहले आप को फोन कर लूं,’’ मिनी का उत्तर था.

‘‘कोई खास बात?’’ उस ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, वैसे ही. आप ठीक हैं न?’’ मिनी ने पूछा.

‘‘लो, मुझे क्या हुआ है? भलीचंगी हूं,’’ उस ने हैरान हो कर कहा.

‘‘आप ने फोन देर से उठाया न, इसलिए पूछ रही हूं,’’ मिनी बोली.

‘‘मैं किचन में काम कर रही थी,’’ उस ने कहा.

‘‘और सुनाइए कैसा चल रहा है?’’ मिनी ने बात बढ़ाई.

‘‘सब ठीक है,’’ उस ने उत्तर दिया, पर मन ही मन सोच रही थी कि मिनी को क्या हो गया है. एक तो सुबहसुबह औफिस टाइम पर फोन और उस पर इतने इतमीनान से बात कर रही है. कुछ बात तो जरूर है.

‘‘ममा, पापा का अभी फोन आया था,’’ मिनी बोली.

‘‘पापा का फोन? पर क्यों?’’ सुन कर वह हैरान थी.

‘‘कह रहे थे मैं आप से बात कर लूं. 3-4 दिन से आप का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा है,’’ मिनी ने संकोच से कहा.

अच्छा तो यह बात है, उस ने मन ही मन सोचा और फिर बोली, ‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा थक जाती हूं. अच्छा तू अब औफिस जा वरना लेट हो जाएगी.’’

‘‘आप अपना ध्यान रखा करो,’’ कह कर मिनी ने फोन काट दिया.

वह सब समझ गई . पिछले हफ्ते की बात है. वीर टीवी देख रहे थे. उस ने कहा, ‘‘आज दोपहर को आनंदजी के घर चोरी हो गई है.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘आनंदजी की पत्नी बस मार्केट तक ही गई थीं. घंटे भर बाद आ कर देखा तो सारा घर अस्तव्यस्त था. चोर शायद पिछली दीवार फांद कर आए थे. आप सुन रहे हैं न?’’ उस ने टीवी की आवाज कम करते हुए पूछा.

‘‘हांहां सब सुन रहा हूं. आनंदजी के घर चोरी हो गई है. चोर सारा घर अस्तव्यस्त कर गए हैं. वे बाहर की दीवार फांद कर आए थे वगैरहवगैरह. तुम औरतें बात को कितना खींचती हैं… खत्म ही नहीं करतीं,’’ कहते हुए उन्होंने टीवी की आवाज फिर ऊंची कर दी.

सुन कर वह हक्कीबक्की रह गई. दिनदहाड़े कालोनी में चोरी हो जाना क्या छोटीमोटी है? फिर आदमी क्या कम बोलते हैं? वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

उस दिन से उस के भी तेवर बदल गए. अब वह हर बात का उत्तर हां या न में देती. सिर्फ मतलब की बात करती. एक तरह से अबोला ही चल रहा था. तभी वीर ने मिनी को फोन किया था. उस का मन फिर अशांत हो गया, ‘जब अपना मन होता तो घंटों बात करेंगे और न हो तो जरूरी बात पूछने पर भी खीज उठेंगे. बोलो तो बुरे न बोलो तो बुरे यह कोई बात हुई. पहले बच्चे पास थे तो उन में व्यस्त रहती थी. उन से बात कर के हलकी हो जाती थी, पर अब…अब,’ सोचसोच कर मन भड़क रहा था.

उसे याद आया. इसी तरह ठीक इसी तरह एक दिन रात को लेटते समय उस ने कहा,  ‘‘आज मंजू का फोन आया था, कह रही थी…’’

‘‘अरे भई सोने दो. सुबह उठ कर बात करेंगे,’’ कह कर वीर ने करवट बदल ली.

बहुत बुरा लगा कि अपने घर में ही बात करने के लिए समय तय करना पड़ता है, पर चुपचाप पड़ी रही. सुबह वाक पर मंजू मिल गई. उस ने तपाक से मुबारकबाद दी.

‘‘किस बात की मुबारकबाद दी जा रही है. कोई हमें भी तो बताए,’’ वीर ने पूछा.

‘’पिंकू का मैडिकल में चयन हो गया है. मैं ने फोन किया तो था,’’ मंजू तुरंत बोली.

‘‘पिंकू के दाखिले की बात मुझे क्यों नहीं बताई?’’ घर आ कर उन्होंने पूछा.

‘‘रात आप को बता रही थी पर आप…’’

उस की बात को बीच ही में काट कर वीर बोल उठे,  ‘‘चलो कोई बात नही. शाम को उन के घर जा कर बधाई दे आएंगे,’’ आवाज में मिसरी घुली थी.

शाम को मंजू के घर जाने के लिए तैयार हो रही थी. एकाएक याद आया कुछ दिन पहले शैलेंद्र की शादी की वर्षगांठ थी.

‘‘जल्दी से तैयार हो जाओ, हम हमेशा लेट हो जाते हैं,’’ वीर ने आदेश दिया था.

‘‘मैं तो तैयार हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम यह ड्रैस पहन कर जाओगी…और कोई अच्छी ड्रैस नहीं है तुम्हारे पास? अच्छे कपड़े नहीं हैं तो नए सिलवा लो,’’ वीर की प्रतिक्रिया थी.

उस ने तुरंत उन की पसंद की साड़ी निकाल कर पहन ली.

‘‘हां? अब बनी न बात,’’ आंखों में प्रशंसा के भाव थे.

अपनी तारीफ सुनना कौन नहीं चाहता. इसीलिए  तो भी उस दिन उस ने 2-3 साडि़यां निकाल कर पूछ लिया, ‘‘इन में से कौन सी पहनूं?’’

‘‘कोई भी पहन लो. मुझ से क्यों पूछती हो?’’ वीर ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

कहते हैं मन पर काबू रखना चाहिए, पर वह क्या करे? यादें थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस पर मिनी के फोन ने आग में घी का काम किया था. कड़ी से कड़ी जुड़ती जा रही थी. मंजू और वह एक दिन घूमने गईं. रास्ते में मंजू शगुन के लिफाफे खरीदने लगी. उस ने भी एक पैकेट ले लिया. सोचा 1-2 ले जाऊंगी तो वीर बोलेंगे कि जब खरीदने ही लगी थी तो पूरा पैकेट ले लेती.

उस के हाथ में पैकेट देखते ही वीर पूछ बैठे, ‘‘कितने में दिया.’’

‘‘30 में.’’

इतना महंगा? पूरा पैकेट लेने की क्या जरूरत थी? 1-2 ले लेती. कलपरसों हम मेन मार्केट जाने वाले हैं.’’

सुनते ही याद आया. ठीक इसी तरह एक दिन वह लक्स की एक टिक्की ले रही थी.

‘‘बस 1?’’ वीर ने टोका.

‘‘हां, बाकी मेन मार्केट से ले आएंगे,’’ वह बोली.

‘‘तुम क्यों हर वक्त पैसों के बारे में सोचती रहती हो. पूरा पैकेट ले लो. मेन मार्केट पता नहीं कब जाना हो,’’ उन का जवाब था.

वह समझ नही पा रही थी कि वह कहां गलत है और कहां सही या क्या वह हमेशा ही गलत होती है. यादों की सिलसिला बाकायदा चालू था. आज उस पर नैगेटिव विचार हावी होते जा रहे थे. पिछली बार मायके जाने पर भाभी ने पनीर के गरमगरम परांठे बना कर खिलाए थे. वीर तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे. सुनसुन कर वह ईर्ष्या से जली जा रही थी. परांठे वाकई स्वादिष्ठ थे. पर जो भी हो, कोई भी औरत अपने पति के मुुंह से किसी दूसरी औरत की प्रशंसा नहीं सुन सकती. फिर यहां तो मामला ननदभाभी का था. उस ने भी घर आ कर खूब मिर्चमसाला डाल कर खस्ताखस्ता परांठे बना डाले. पर यह क्या पहला टुकड़ा मुंह में डालते ही वीर बोल उठे,  ‘‘अरे भई, कमाल करती हो? इतना स्पाइसी… उस पर लगता है घी भी थोक में लगाया है.’’

सुन कर वह जलभुन गई. दूसरे बनाएं तो क्रिस्पी, वह बनाए तो स्पाइसी…पर कर क्या सकती थी. मन मार कर रह गई. कहते हैं न कि एक चुप सौ सुख.

मन का भटकाव कम ही नहीं हो रहा था. याद आया. उस के 2-4 दिन इधरउधर होने पर जनाब उदास हो जाते थे. बातबात में अपनी तनहाई का एहसास दिलाते, पर पिछली बार मां के बीमार होने पर 15 दिनों के लिए जाना पड़ा. आ कर उस ने रोमांचित होते हुए पूछा, ‘‘रात को बड़ा अकेलापन लगता होगा?’’

‘‘अकेलापन कैसा? टीवी देखतेदेखते कब नींद आ जाती थी, पता ही नहीं चलता था.’’

वाह रे मैन ईगो सोचसोच कर माथा भन्ना उठा सिर भी भारी हो गया. अब चाय की ललक उठ रही थी. फ्रिज में देखा, दूध बहुत कम था. अत: चाय पी कर घड़ी पर निगाह डाली, वीर लंच पर आने में समय था. पर दुकान पर पहुंची ही थी कि फोन बज उठा, ‘‘इतनी दोपहर में कहां चली गई हो? मैं घर के बाहर खड़ा हूं. मेरे पास चाबी भी नहीं है,’’ वीर एक ही सांस में सब बोल गए. आवाज से चिंता झलक रही थी.

‘‘घर में दूध नहीं था. दूध लेने आई हूं.’’

‘‘इतनी भरी दोपहर में? मुझे फोन कर दिया होता, मैं लेता आता.’’

उस के मन में आया कह दे कि फोन करने पर पैसे नहीं कटते क्या? पर नहीं जबान को लगाम लगाई .

‘‘ बोली सोचा सैर भी हो जाएगी.’’

‘‘इतनी गरमी में सैर?’’ बड़े ही कोमल स्वर में उत्तर आया.

आवाज का रूखापन पता नहीं कहां गायब हो गया था. मन के एक कोने से आवाज आई कह दे कि मार्च ही तो चल रहा है. कौन सी आग बरस रही है पर नहीं बिलकुल नहीं दिमाग बोला रबड़ को उतना ही खींचना चाहिए जिस से वह टूटे नहीं.

रहना तो एक ही छत के नीचे है न. वैसे भी अब यह सब सुनने की आदत सी हो गई है. फिर इन छोटीछोटी बातों को तूल देने की क्या जरूरत है? उस ने अपने उबलते हुए मन को समझाया और चुपचाप सुनती रही.

‘‘तुम सुन रही हो न मैं क्या कह रहा हूं?’’

‘‘हां सुन रही हूं.’’

‘‘ठीक है, तुम वहीं ठहरो. मैं गाड़ी ले कर आता हूं. सैर शाम को कर लेंगे,’’ शहद घुली आवाज में उत्तर आया.

‘‘ठीक है,’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

‘‘इतनी मिठास. इतने मीठे की तो वह आदी नहीं है. नहीं, ज्यादा मीठा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, यह सोच कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ी मन का सारा बोझ उतर चुका था. वह पूरी तरह हलकी हो चुकी थी.

बिमला महाजन

मास्साबों का दर्द : गांवभर की भौजाई क्यों हो गए हैं मास्साब

हमारे गांवदेहात में एक कहावत मशहूर है कि ‘गरीब की लुगाई गांवभर की भौजाई’. कुछ यही हाल हमारे देश के मास्साबों का हो गया है. सरकार ने इन्हें भी गांवभर की भौजाई समझ लिया है. जनगणना से ले कर पशुगणना तक, ग्राम पंचायत के पंच से ले कर संसद सदस्य तक के चुनाव मास्साबों के जिम्मे है.

किस गांव में कितने कमउम्र बच्चों को पोलियो की खुराक देनी है, गांव के कितने मर्दऔरतों ने नसबंदी कराई है, कितने बच्चों के जाति प्रमाणपत्र कचहरी में धूल खा रहे हैं, कितनों की आईडी रोजगार सहायक के कंप्यूटर में कैद है, कितने परिवार गरीबी की रेखा के नीचे दब कर छटपटा रहे हैं और कितने गरीबी की रेखा को पीछे सरकाते हुए आगे निकल गए हैं, कितने परिवार घर में शौचालय न होने के चलते खुले में शौच करते हैं. कितने लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं, कितनों के बैंक में लिंक नहीं हुए, बच्चों का वजीफा, साइकिल, खाता खोलने के लिए बैंकों के कितने चक्कर लगाने हैं, इन सब बातों की जानकारी भला मास्साबों से बेहतर कौन जान सकता है. सरकार ने मास्साबों के इसी हुनर को देख कर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारे काम उन्हें दे रखे हैं. सरकार जानती है कि पढ़ाई का क्या है, वह तो बच्चे को जिंदगीभर करनी है. पढ़ाईलिखाई के महकमे की बैठकों में अफसर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारी बातें करते हैं. किसी गांव को पूरी तरह पढ़ालिखा बनाना मास्साबों को बाएं हाथ का खेल लगता है.

मास्साब कहते हैं कि हम तो सरकारी आदेशों के गुलाम हैं. सरकार जो चाहे खुशीखुशी कर देते हैं. आखिर पगार काहे की लेते हैं. सरकार द्वारा दिए गए लोगों के भले के कामों की वजह से मास्साब की ईमानदारी पर शक किया जाने लगा है. जब सरकारी स्कूलों में मास्साब कभी किचन शैड, शौचालय या ऐक्स्ट्रा कमरा बनाने का काम कराते हैं, तो वे देश के लिए इंजीनियर और ठेकेदार का रोल भी निभाते हैं. यही बात गांव वालों को खलती है और वे मास्साब की ईमानदारी पर भी बेवजह शक करने लगते हैं. गांवों में अकसर ही लोगों को यह शिकायत रहती है कि मास्साब नियमित स्कूल नहीं आते, बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाते, घर में कोचिंग क्लास चलाते हैं.

अरे जनाब, आप को पता होना चाहिए कि बच्चे मास्साब के कंधों पर कितना बड़ा बोझ हैं. बच्चे भी क्या कम हैं, वे स्कूल पढ़ने नहीं रिसर्च करने आते हैं. बच्चे मास्साब के स्मार्टफोन का मजा लेते हैं. ह्वाट्सऐप पर भेजे वीडियो व फोटो को भी वे शेयर करते हैं. मास्साब की फेसबुक पर वे कमैंट करने में भी पीछे नहीं हैं. कभी मास्साब को समय मिलता है और वे लड़कों को भारत का इतिहास पढ़ाते हैं, तो भी क्लास की लड़कियों के इतिहास की जानकारी लेने में बिजी रहते हैं. लड़कियों के इतिहास पर लड़कों

की रिसर्च चलती रहती है. इस के लिए थीसिस, जिसे नासमझ प्रेमपत्र भी कहते हैं, लिखने का काम भी करते हैं, तभी उन्हें पीएचडी यानी शादी बतौर अवार्ड मिल पाती है. यह बात और है कि ज्यादातर लड़कों का इस काम में भूगोल बिगड़ने का खतरा रहता है. रिजल्ट भी खराब आता है, जिस की जिम्मेदारी मास्साबों पर थोपी जाती है. लड़कों की गलतियों की सजा मास्साबों की वेतन वृद्धि रोक कर वसूल की जाती है.

यही वजह है कि मास्साब कभीकभी नकल की खुली छूट दे देते हैं. इस से रिजल्ट भी अच्छा बन जाता है और छात्रों की नजर में मास्साब की इज्जत भी बढ़ जाती है. इस तरह मास्साब एक पंथ दो काज निबटा लेते हैं. मास्टरी के क्षेत्र में औरतों की चांदी है. मैडमजी सुबहसवेरे ही सजसंवर कर स्कूल चली जाती हैं और चूल्हाचौका सासूजी के मत्थे मढ़ जाती हैं.

कुमारियां तो स्कूल को किसी फैशन परेड का रैंप समझती हैं, तो श्रीमतियां अपने घर के काम निबटा लेती हैं. वे स्कूल समय में मटर छील लेती हैं, पालकमेथी के पत्तों को तोड़ कर सब्जी बनाने की पूरी तैयारी कर लेती हैं. कभीकभार जब समय नहीं रहता, तो स्कूल के मिड डे मील की बची हुई रेडीमेड सब्जीपूरी भी घर ले जाती हैं. ठंड के दिनों में स्वैटर बुनने की सब से अच्छी जगह सरकारी स्कूल ही होती है, जहां पर कुनकुनी धूप में बच्चों को मैदान में बिठा कर उन्हें जोड़घटाने के सवालों में उलझा कर मैडम अपने पति के स्वैटर के फंदों का जोड़घटाना कर ह्वाट्सऐप के मजे लेती हैं.

कुछ मैडमें अपने नन्हेमुन्ने बच्चों को भी साथ में स्कूल ले आती हैं, जिन के लालनपालन की जिम्मेदारी क्लास के गधा किस्म के बच्चों की होती है. उन की इस सेवा के बदले उन का प्रमोशन अगली क्लास में कर दिया जाता है. जब से सरकार ने मास्साबों की भरती में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन व उम्र की सीमा को खत्म किया है, तब से सास बनी बैठी औरतों ने भी मास्टरनी बनने की ठानी है. अब देखना यही है कि रसोई की कमान मर्दों के हाथों में आती है या नहीं?

देश के महामहिम राष्ट्रपति रह चुके डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है. स्कूली बच्चे चंदा कर के मास्साब के लिए शाल और चायबिसकुट का इंतजाम करते हैं.

देश के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन दिल्ली में होनहार मास्साबों को सम्मानित किया जाता है. कुछ मास्साब यहां भी अपने हुनर को दिखा कर टैलीविजन चैनलों पर अवार्ड लेते दिख जाते हैं. अवार्ड लेने के बाद मास्साबों को गांवगांव, गलीगली में सम्मानित किया जाता है. इसी चक्कर में मास्साब कईकई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंच पाते. पर कभीकभार स्कूल के हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत कर उसे भी गौरवान्वित कर आते हैं.

ठीक ही तो है कि सारी ईमानदारी का बोझ अकेले मास्साबों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता. जब से देश को बनाने की जिम्मेदारी अंगूठा लगाने वाले जनप्रतिनिधि निभाने लगे हैं, तब से मास्साबों को शर्म आने लगी है. इतनी पढ़ाई के बाद भी मास्साब अंगूठे की छाप नहीं बदल सके? काश, मास्साबों का यह दर्द कोई समझ पाता.

वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

फर्क कथनी और करनी का : सुच्चामल फैला रहा था रायता

सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोड़िए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

मायके जाने की धमकी : मिर्जा को आया गुस्सा

उस दिन मिर्जा इस तरह से फुफकारते हुए चले आ रहे थे, जैसे जलेबी का खमीर उबाल खा रहा हो. बाल ऐसे बिखरे हुए थे, जैसे तूफान आने के बाद पेड़ गिरे होते हैं. जुमे का दिन और… दिन के 11 बजे मिर्जा मैलेकुचैले कपड़ों में? देखते ही मुझ पर तो जैसे आसमान की बिजली गिर पड़ी.

मैं ने अपनेआप को बड़ी मुश्किल से काबू में किया और मन ही मन कहा. ‘जलते जलाल तू, कुदरत कमाल तू, आई बला को टाल तू,’ फिर झपट कर मिर्जा का हाथ थामा और कहा, ‘‘मिर्जा, यह तुम ही हो…’’

ऐसा सुनना था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘तो क्या तुझे मोनिका लेवेंस्की दिखाई दे रही है?’’

मैं ने मौके की नजाकत को समझा और कहा, ‘‘यार, मैं ने तो यों ही कहा था. पहले अंदर आओ.’’

उन्हें सोफे पर बैठाते हुए मैं बोला, ‘‘देख मिर्जा, मैं तेरा लंगोटिया यार हूं. मुझे बता कि आज तू ने जुमे की तैयारी क्यों नहीं की? जुमे के दिन 11 बजे तक तो तुम दूल्हे की तरह सजसंवर कर जामा मसजिद में इमाम साहब के सामने खड़े हो कर अजान पढ़ा करते थे. लेकिन आज यहां पर, वह भी इस हालत में… कहीं भाभी ने…’’

मैं बात पूरी उगल भी न पाया था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘अगर तू वाकई मेरा सच्चा यार है, तो बता कि शादी पर औरत ही क्यों ब्याह कर लाई जाती है? मर्द को ब्याह कर ससुराल क्यों नहीं ले जाया जाता?’’

यह सुनते ही मेरा दिमाग घूम गया. मैं ने हंस कर कहा, ‘‘यार मिर्जा, तू यह बता कि पान की लत तो खैर तुम्हें विरासत में ही मिली है, अब कहीं भांग वगैरह तो नहीं लेनी शुरू कर दी?’’

मिर्जा तमतमा उठे और बोले, ‘‘एक मुसलमान पर इस तरह की तुहमत लगाते हो. क्या तू ने मुझे काफिर समझा है? मैं पक्का मुसलमान हूं और सात वक्त की नमाज पढ़ता हूं.’’

अब तो मेरा वहम यकीन में बदल चुका था. शायद खुदा ने दो वक्त अलग से मिर्जा को दिए हैं. तभी मिर्जा बोले, ‘‘मैं इशराक व तहज्जुद 12 महीने की पढ़ता हूं.’’ इस के बाद मिर्जा खड़े होते हुए बोले, ‘‘तू भी मेरा दुख बांटने वाला वह सच्चा यार नहीं रहा.’’

मिर्जा की आवाज भर्रा गई थी और गला रुंध गया था. मैं ने सोफे पर बैठाते हुए मिर्जा को समझाया, ‘‘तुम गलत समझ रहे हो. मुझे आज भी तुम से उतनी ही हमदर्दी है, जितनी कभी कुंआरेपन में भी नहीं रही होगी.’’

‘‘तो क्या औरतों के मायके जाने की धमकी जायज है?’’ मिर्जा बोले. मेरी समझ में अब सारा माजरा आ रहा था कि आज जरूर इन की बेगम ने मायके जाने की धमकी दी है और यह जोरू का परमानैंट गुलाम मिर्जा उसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा है.

मैं ने कहा, ‘‘जायज तो नहीं है, पर मर्दों से लड़ने के वास्ते फर्स्ट क्वालिटी का हथियार तो यही है न?’’ इतना सुनते ही मिर्जा एकदम आपे से बाहर हो गए और बोले, ‘‘तो क्या दूसरा हथियार भी होता है?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां मिर्जा, तुम तो खुशनसीब हो, जो भाभी ने अपना दूसरा हथियार यानी बेलन तुम्हें नहीं दिखाया.’’

मिर्जा गुस्से में भड़क कर चिल्लाए, ‘‘अरे बेवकूफ, मत पूछ कि आज तो उस ने अमेरिका इराक युद्ध की तरह अपने बड़े हथियार का भी इस्तेमाल कर लिया. यह तो अच्छा हुआ कि मैं किवाड़ के पास खड़ा था, फुरती से उस की आड़ ले ली, नहीं तो जुमे की नमाज के साथ आज तो अपनी भी नमाजे जनाजा अदा की जाती.’’

मैं ने मिर्जा से कहा, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, लेकिन अभी तक तुम्हारी दूल्हा ब्याह कर ले जाने वाली बात समझ में नहीं आई.’’

यह सुन कर मिर्जा कुछ संजीदा हो कर बोले, ‘‘देख, ध्यान से सुन. घर में तकरार होने पर बीवी हमेशा मायके जाने की धमकी देती है और यह धमकी अच्छेअच्छे मर्द को मेमने की तरह मिमियाने को मजबूर कर देती है.

‘‘अगर दूल्हा ब्याह कर ससुराल ले जाया जाता, तो बेलन वगैरह का खतरा होने पर मायके जाने की धमकी को काम में ला सकता था और मर्द सीना तान कर ससुराल में शान से राज करता.’’

मैं ने मिर्जा की बात पर दिखावटी हमदर्दी दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो, जैसे एक जीभ बत्तीस दांतों से घिरी हो कर काबू में नहीं रह सकती, उसी तरह औरत ससुराल में अकेली सभी पर भारी पड़ती है. ‘‘अगर तुम्हारे चालू फार्मूले पर समाज चलता, तो बच्चू मिर्जा, खोपड़ी का नटबोल्ट कस कर समझ ले कि अगर दूल्हा ससुराल में रहता, तो पता है क्या होता? होता यह कि पत्नी बेलन से तुम्हारा सिर तोड़ती.

‘‘अगर जीजा साले की बहन को घूर कर भी धमकाता, तो वे उसे लठिया देते. सासससुर के उपदेश अलग से दिमाग चाट कर रख देते.‘‘सालियां अमरबेल की तरह तुम्हारे जेबरूपी पेड़ को परजीवी बन कर सुखा देतीं. सालों के बच्चों को जिद करने पर न जाने महीने में कितनी बार फिल्म दिखाने ले जाना पड़ता और तब भी वे घर आ कर कहते, ‘पापापापा, फूफाजी ने फिल्म तो दिखाई, पर हमें वहां चाट नहीं खिलाई.’

‘‘इस तरह तुम्हें बेकार में ही कंजूस मक्खीचूस की उपाधि मिल जाती. भले ही तुम ने चाट पर मक्खियों का परमानैंट कब्जा होने के चलते न खिलाई हो, पर इसे कोई नहीं मानता.

‘‘अगर चाट खिलाने से बच्चे बीमार पड़ जाते, तो सास ऐसे लताड़ती जैसे कि पता नहीं क्या खिला लाया. बड़ी मनौतियां मान कर 2 पोते हुए, इन्हें तो मार कर ही इस का कलेजा ठंडा होगा.

‘‘इसलिए मिर्जा, जो कायदेकानून हमारे बड़ों ने बनाए हैं, वे जरूर सोचसमझ कर ही बनाए हैं, इसलिए तू अपना दिल छोटा न कर और भाभी को अपने मन की भड़ास निकाल लेने दिया कर… समझे हजरत मिर्जा?’’

अब मिर्जा धीरेधीरे मुसकराए और बोले, ‘‘यार, वाकई आज तो तू ने कमाल कर दिया. इतने काम की बात मेरे दिमाग में आज तक क्यों नहीं आई? मैं ने इतनी उम्र यों ही गंवाई.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, अब जा कर घर में जुमे की नमाज अदा कर. और हां, दुआ में मुझे मत भूल जाना और भाभी की अच्छी सेहत की दुआ जरूर मांगना.’’ यह सुन कर मिर्जा झेंपते हुए अपने घर की तरफ चल दिए.

नो प्रौब्लम : रितिका के साथ राघव ने क्या किया..

‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी.

राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था. रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था.

रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी.

फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था.

आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया.

कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की हीमंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहींकिया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा.

‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’

रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघवको गुस्सा आ रहा था.

रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है.

उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे.

उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया. रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’

‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था.

‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

रहिमन दाढ़ी राखिए : आम आदमी का गणित

मैं जवानी के दिनों में कंजूस नस्ल का आदमी था, इसलिए आदतन हमेशा बचत की तरकीबों के बारे में ही सोचता रहता था. एक दिन जब मैं अपने पड़ोसी वर्माजी से अखबार मांग कर पढ़ रहा था, तो अखबार में छपी एक खबर देख कर मुझे झटका सा लगा. सूचना इस तरह से थी, ‘एक आदमी अपनी पूरी जिंदगी में दाढ़ी बनाने पर तकरीबन एक लाख रुपए और एक साल बरबाद कर देता है’. खबर पढ़ते ही मैं अपने दूसरे पड़ोसी शर्माजी के घर भागा.

उन से कैलकुलेटर ले कर अपनी दाढ़ी बनाने पर खर्च किए गए पैसों का हिसाब लगाने लगा. हिसाब लगाने के बाद मुझे थोड़ी राहत मिली कि मैं ने दाढ़ी बनाने पर ज्यादा खर्च नहीं किया है, क्योंकि मैं हमेशा अपनी दाढ़ी दूसरों के घर बनाना पसंद करता हूं. लेकिन, जज्बाती आदमी होने की वजह से मुझे अफसोस भी हुआ कि मेरी दाढ़ी के चक्कर में मेरा न सही, पर दूसरों का ही खर्च तो हुआ.

यह बात मेरे दिल में कील की तरह चुभ गई. इसलिए मैं ने उसी दिन तय कर लिया कि आज से दाढ़ी नहीं बनाऊंगा. इरादे पर अमल करते हुए 2 महीने बीत गए. मेरी दाढ़ी अच्छीखासी बढ़ गई थी. मैं चेहरे से आतंकवादी नजर आने लगा. इस का फायदा उठा कर मेरे एक दुश्मन पड़ोसी ने थाने में मेरी शिकायत कर दी कि मेरा चेहरा ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ में दिखाए गए एक दुर्दांत अपराधी से मिलता है. बस, पुलिस को और क्या चाहिए. पहुंच गई मेरे दरवाजे पर. पुलिस मुझे पकड़ कर ले जाने लगी.

किसी तरह एक हजार रुपए दे कर इस मुसीबत से पीछा छुड़ाया, लेकिन फिर भी मैं अपने इरादे पर डटा रहा. अचानक एक दिन मेरी मुलाकात पुरानी प्रेमिका रितु से हो गई, जो कुकिंग कोर्स करने के लिए अमेरिका गई हुई थी. वह तो मुझे देखते ही डर गई. उसे लगा कि मैं ने उस की जुदाई में ही देवदास की तरह दाढ़ी बढ़ा ली है. रितु अचानक चिल्लाते हुए बोली, ‘‘अगर इसी तरह मजनूछाप चेहरा बनाए रहे, तो मुझ से शादी करना तो दूर, तुम सगाई भी नहीं कर पाओगे.’’ दाढ़ी बनाने के लिए 2 रुपए का सिक्का मेरे हाथ में थमा कर वह पैर पटकती हुई चली गई. लेकिन, मैं भी धुन का पक्का था. मैं ने भी सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, मैं अपने इरादे पर डटा रहूंगा, इसलिए मैं ने रितु का दिल तोड़ दिया. अब लोगों में मेरी अलग ही पहचान बन चुकी थी. मैं संन्यासी निरोधानंद के नाम से जाना जाने लगा था.

बढ़ी हुई दाढ़ी मेरे लिए वरदान साबित हुई. जैसा कि अपने देश में होता है, अचानक मेरे चमत्कार के चर्चे दूरदूर तक फैलने लगे. औरत, मर्द, बच्चे और बूढ़े मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लेने लगे. इस से मैं खुशी से फूला न समाता था. लोग मेरी बातें सुनने के लिए बेचैन रहते थे. कोई मुझ से अपनी दिमागी तकलीफ का हल पूछता, तो कोई दूसरी तकलीफों से नजात पाने के बारे में पूछता. कोई अपने गुजरे समय के बारे में पूछता, तो कोई आने वाली जिंदगी के बारे में पूछता. ज्यादातर लोग तो इस लोक से ज्यादा परलोक के बारे में पूछते. मैं सभी को अपने जवाब से खुश कर के भेजता.

पहली बार मेरा संन्यासियों की ऐश्वर्य भरी जिंदगी से परिचय हुआ था. कल तक जो लड़कियां मुझे देखते ही मुंह बिदका कर भाग जाती थीं, अब वे मेरे पैर छू कर हंसते हुए अपना कोमल हाथ मेरे हाथ में दे कर अपनी तकदीर के बारे में जानना चाहती थीं. मैं उन की तकदीर बतातेबताते अपनी तकदीर पर फख्र कर उठता था. कभीकभी तो मुझे अपनेआप पर गुस्सा भी आता था कि मैं और पहले संन्यासी क्यों नहीं बना. अब तो यह हाल है कि मेरे महल्ले में कोई भी जलसा, मीटिंग या फिर किसी तरह का फंक्शन हो, मेरे बिना अधूरा समझा जाता है. किस लड़के या लड़की का रिजल्ट कैसा होगा? किस के घर लड़का होगा या लड़की होगी? किस की नौकरी लगेगी या नहीं? किस की शादी कब होगी? सभी का हिसाब मेरे पास है. अब तो कोई भी चढ़ावा चढ़ा कर अपनी तकदीर जान सकता था.

इस साल के चुनाव में तो गजब हो गया. मेरे इलाके के सांसद के पास मेरी जानकारी पहुंच गई. सुबह से ही वह मेरे आश्रम में पहुंच गए और सकुचाते हुए बोले, ‘‘देखिए स्वामीजी, अब आप के ऊपर ही मेरा सबकुछ टिका है. अगर आप चाहें, तो मुझे इस बार भी जनता की सेवा करने का मौका दिला सकते हैं. इस के बदले में आप को मुंहमांगा चढ़ावा मिलेगा.’’ मैं उन का दुख देख कर पिघल गया और उन्हें एक यज्ञ करने की नेक सलाह दे डाली. यज्ञ खत्म होतेहोते वह जीत भी गए. अब वह मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं. अब मैं उन का पारिवारिक सदस्य हूं व राजनीतिक सलाहकार भी.

पिछले दिनों उन के लड़के ने एक राह चलती लड़की के साथ बलात्कार कर दिया. लेकिन मेरी पहुंच की वजह से कोई उन का और उन के लड़के का बाल भी बांका न कर सका. अब धीरेधीरे मेरी पहुंच विदेशों में भी होने लगी है. माफिया वालों से तो मेरा संपर्क पहले से ही था. फिल्म वाले भी अब अपनी फिल्मों के मुहूर्त पर मुझे बुलाने लगे हैं. वहां जाने का मैं महज 5 लाख रुपए लेता हूं.

बहुत सारी हीरोइनें भी मेरी चेलियां बन गई हैं. कौन सी फिल्म पिटेगी या चलेगी, यह मेरे दिए गए ज्योतिष काल की तारीख पर फिल्म को रिलीज करने पर निर्भर करता है. मैं तकरीबन पूरी दुनिया घूम चुका हूं. देशविदेश में मेरे चेले बढ़ते जा रहे हैं. मेरे एयरकंडीशंड आश्रम की लंबाईचौड़ाई तकरीबन 3 एकड़ में है. फिलहाल तो मेरे पास 15 विदेशी गाडि़यां हैं. देश के सभी महानगरों में मेरी कोठियां भी हैं. मेरी जिंदगी बहुत ही अच्छे ढंग से गुजर रही है. अब तो बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह अमेरिका का राष्ट्रपति भी मेरा चेला बन जाए.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

सोचा न था: अमन के साथ क्या हुआ था

सोचा न था इंजीनियरिंग करने के बावजूद अमन इतना ज्यादा लापरवाह था कि लगीलगाई नौकरी छोड़ आता था. इस बात से उस के पिता रामचरण इस कदर परेशान हुए कि उन्हें लकवा मार गया. अमन को मजबूरन ड्राइवर बनना पड़ा. तभी उस की मुलाकात एक रूसी लड़की सोफिया से हुई, जो उस के करीब आती चली गई.

दफ्तर से घर आते ही रामचरण चारपाई पर लेट गया और अपनी पत्नी शांति को आवाज लगाते हुए बोला, ‘‘एक गिलास पानी पिला दे. बड़ी थकान हो रही है.’’

‘‘यह लो…’’ पानी का गिलास रामचरण के सामने बढ़ाते हुए शांति बोली, ‘‘क्या हुआ? आज घर जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘हां, वह जरा तबीयत ठीक नहीं लग रही थी, तो…’’ बोलतेबोलते रामचरण जोर से खांसने लगा, तो शांति ने पानी का गिलास उस के मुंह में ही लगा दिया.

‘‘आह…’’ कर के रामचरण ने फिर चारपाई पर लेटते हुए पूछा, ‘‘अमन कहां है? अभी तक घर नहीं आया क्या?’’

‘‘घर पर ही है. सोया हुआ है,’’ पानी का जूठा गिलास पास पड़े स्टूल पर रखते हुए बड़े उदास मन से शांति बोली, ‘‘पता नहीं, क्या लिखा है इस लड़के के भविष्य में? जहां पर भी नौकरी करता है, 2-4 महीने से ज्यादा टिक ही नहीं पाता.’’

‘‘तो क्या यह नौकरी भी छूट गई उस की?’’ चिंता के मारे रामचरण को फिर जोर से खांसी उठ गई, तो शांति पानी लेने भागी.

‘‘नहीं चाहिए,’’ अपने हाथ के इशारे से रामचरण ने पानी लेने से मना करते हुए कहा, ‘‘थोड़ा जहर दे दे, ताकि चैन से मर पाऊं मैं. अरे, जिंदगी तो हमारी खराब हो गई है, जो हम ने ऐसे कपूत को जन्म दिया. इस से तो अच्छा होता कि वह पैदा होते ही मर…’’ रामचरण बोलने ही जा रहा था कि शांति ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया कि वह ऐसी बातें अपने मुंह से न निकाले.

‘‘अरे, तो और क्या कहूं मैं… बोल न? 30 की उम्र पार कर चुका है, पर अब तक इस की शादी नहीं हुई है. कोई ढंग की नौकरी नहीं करता. ऐसे लड़के को कौन अपनी बेटी देगा? इस लड़के का खुद का ही ठौरठिकाना नहीं है?’’

‘‘अच्छा, तुम ज्यादा परेशान मत हो. करेगा कुछ न कुछ,’’ शांति ने उसे ढाढ़स बंधाया. पर फिक्र तो अब उसे भी होने लगी थी कि अमन की उम्र के लड़कों की शादी हो चुकी है, वे अपने घरपरिवार संभालने लगे हैं और यह लड़का अब भी ऐसे ही निठल्ला पड़ा है. कहीं नौकरी लगती भी है, तो उसे भी लात मार आता है. आखिर यह चाहता क्या है?

‘‘कुछ बोलो, समझओ, तो अपने मांबाप पर ही चढ़ बैठता है. पूरे घर में क्लेश मचा देता है और खुद बाहर निकल जाता है. इस नवाबजादे की ऐश तो देखो, बढि़याबढि़या स्वादिष्ठ खाना और फैंसी कपड़े ही चाहिए, मगर करना कुछ नहीं है.’’

रोज की तरह आज भी अमन रात के तकरीबन 12 बजे घर आया और खाना खा कर मोबाइल ले कर बैठ गया, तो रामचरण गुस्से से तमतमा उठा, क्योंकि उसे पता था कि वह कहीं किसी अड्डे पर बैठ कर अपने आवारा दोस्तों के साथ ताश और जुआ खेल रहा होगा. जब भूख और नींद ने आ घेरा तो इसे घर की याद आ गई होगी और मुंह उठा कर यहां चला आया. लेकिन यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है कि जिसे जब मन करे मुंह उठा कर चला आए.

रामचरण गुस्से में बकबक किए जा रहा था और अमन उस की बातों को अनसुना कर मोबाइल पर लगा पड़ा था.

बेटे की इस हरकत पर रामचरण गुस्से से उबल पड़ा और अमन के हाथ से फोन छीनते हुए गरजते हुए बोला, ‘‘सम?ाता क्या है तू अपनेआप को? कहीं का नवाब है क्या या इस घर में कोई खजाना गड़ा है, जो तू नहीं भी कमाएगा तो जिंदगी आराम से चल जाएगी? आखिर कब तक मैं तुझे कमाकमा कर खिलाता रहूंगा?’’

रामचरण की बातों को समझने के बजाय अमन उस पर ही चिल्लाते हुए कहने लगा कि उन्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह अपना देख लेगा.

‘‘हां, तो निकल जा इस घर से,’’ रामचरण भी गरजा, ‘‘इस घर में तुझ जैसे निठल्ले के लिए अब कोई जगह नहीं है. बाहर जा कर खाक छानेगा न, तब अक्ल ठिकाने आएगी,’’ बोलतेबोलते रामचरण जोर से हांफने लगा.

शांति जब तक रामचरण के लिए पानी ले कर आती, तब तक वह वहीं जमीन पर नीचे गिर पड़ा. पति को जमीन पर छटपटाते देख कर शांति बिलख कर रोने लगी.

पिता को इस हालत में देख अमन भी परेशान हो उठा कि अचानक से इन्हें क्या हो गया. एंबुलैंस को फोन लगाया, तो फोन नहीं उठाया गया.

तब अमन ने अपने एक दोस्त दीपक को फोन किया और वह जल्द ही अपनी गाड़ी ले कर पहुंच गया. आननफानन में ही रामचरण को अस्पताल में भरती कराया गया, तब जा कर उस की जान बच पाई. पर उसे लकवा मार गया और उस ने हमेशा के लिए खटिया पकड़ ली.

घर में एक रामचरण ही कमाने वाला था, लेकिन अब वही बिछावन पर पड़ गया, तो घर कैसे चलेगा? घर में शादी लायक जवान बेटी है, सब कैसे होगा? इस सोच में शांति घुली जा

रही थी. इधर पिता की बिगड़ती हालत देख कर अब अमन को लगा कि बाहर जा कर कुछ कमानाधमाना पड़ेगा, इसलिए वह अपनी इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर फिर नौकरी की तलाश में निकल पड़ा. मगर लाख हाथपैर मारने के बाद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिली.

मिलती भी कैसे, जब अमन ने खुद लगीलगाई नौकरी को लात मार दी थी, लेकिन अब उसे अपनी गलती का  एहसास होने लगा था. भले ही नौकरी उस की पसंद की नहीं थी, मगर हर महीने तनख्वाह तो मिलती थी, जिस से वह दोस्तों के साथ मजे करता था, अपनी पसंद के कपड़े पहनता था. मगर अब तो एकएक पाई के लिए वह तरस रहा था.

शांति भी अमन को कहां से पैसे देती, जब उस का खुद ही घर चलाना मुश्किल हो रहा था. पास रखे पैसों से किसी तरह घर चल रहा था और रामचरण की दवादारू हो पा रही थी, पर यह पैसा भी कब तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता.

अमन के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह अपने दोस्त दीपक से कुछ मदद मांगे. जब उस ने अपनी परेशानी दीपक को बताई, तो दीपक कहने लगा कि वह उसे ड्राइवर की नौकरी पर लगा सकता है.

‘‘ड्राइवर की नौकरी… पर यार, मैं तो इंजीनियर…’’ अमन को लगा कि क्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के वह ड्राइवर की नौकरी करेगा?

‘‘हां, तो क्या हो गया. काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, काम काम होता है और अभी तो तुझे काम की बहुत जरूरत है, क्योंकि तेरे पिता बीमार हैं. कोई कमाने वाला नहीं है तेरे घर में. तो सोच ले कि क्या करना है तुझे.. और वैसे भी, अब तेरी उम्र नहीं रही कि कोई तुझे नौकरी दे, तो क्या इंजीनियरिंग की डिगरी  ले कर चाटेगा?’’ दीपक ने अमन को साफसाफ समझ दिया.

दीपक कोई बहुत पढ़ालिखा नहीं था. 12वीं पास था, वह लेकिन समझदार था. वह जानता था कि जीने के लिए पैसा कमाना जरूरी है.

दीपक का यहीं दिल्ली में अपना गैराज था, जहां नईपुरानी गाडि़यों की मरम्मत होती थी. उस की कई लोगों से अच्छी जानपहचान बन चुकी थी. अब मरता क्या न करता. हार कर अमन ने ड्राइवर की नौकरी पकड़ ली. मगर वहां भी वह गाड़ी के मालिक की बेटी पर ही डोरे डालने लगा, तो मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया.

इसी तरह 1-2 जगहों पर उस ने ऐसी ही हरकत की और अपनी नौकरी से हाथ धो बैठा.

इस बार दीपक ने अमन को एक विधायक के यहां ड्राइवर की नौकरी पर लगवा दिया, जो उन की 23 साल की बेटी आयशा को कालेज से ला और पहुंचा सके.

लेकिन अमन ने अपने मन में कुछ और ही सोच रखा था. वह चाहता था कि विधायक साहब की बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस से शादी कर के पूरी जिंदगी उन के पैसों पर ऐश करेगा. फिर उसे कहीं नौकरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

अमन आयशा को रिझाने के लिए रोज तरहतरह की हरकतें करता. समय से पहले उसे कालेज लेने पहुंच जाता. रोज धुले और चमकदार कपड़े पहनता. अपने हाथ में वह सलमान खान की तरह ब्रेसलेट पहनता, परफ्यूम लगाता, आंखों पर धूप के काले चश्मे चढ़ा लेता और फिर गाड़ी चलाते हुए रोमांटिक गाने लगा कर पूरे रास्ते आयशा को घूरता रहता था.

मगर आयशा उस पर ध्यान ही नहीं देती थी. वह अपने काम से काम रखती थी. वह बहुत ही सम?ादार लड़की थी, इसलिए अमन की बेवकूफियों को नजरअंदाज कर दिया करती थी और अमन को लगता था कि वह भी उसे पसंद करती है, इसलिए कुछ बोलती नहीं है.

लेकिन जब एक दिन अमन को अचानक से यह कह कर नौकरी से निकाल दिया गया कि अब उन्हें उस की जरूरत नहीं है, तो वह ठगा सा रह गया. लड़की तो गई ही हाथ से, नौकरी भी चली गई उस की. मुंगेरीलाल के हसीन सपने, सपने ही रह गए और वह फिर कोई दूसरी नौकरी की तलाश में जुट गया, क्योंकि घर के खर्च, रामचरण की दवाओं का खर्चा, सब तो अमन के जिम्मे ही था.

अमन ने फिर दीपक के सामने अपनी परेशानी रखी, तो इस बार दीपक ने उसे दूरिज्म टैक्सी में लगवा दिया.

एक दिन अमन की टैक्सी में एक रशियन लड़की सोफिया आ कर बैठी और बोली कि वह यहां इंडिया घूमने आई है, तो क्या वह उसे घुमाएगा? अमन ने हां बोल दी.

सोफिया अमन के साथ दिल्ली में कई जगहों पर घंटों घूमती रही और फिर शाम को एक होटल

के बाहर रुक कर अमन को भाड़े के पैसे देते हुए मुसकरा कर बोली कि वह कल भी उसे यहां से पिकअप कर ले. अमन को तो ग्राहक से मतलब था. वह कौन है, कहां से आई है, उस से उसे क्या लेनादेना, इसलिए दूसरे दिन भी वह अपनी टैक्सी उसी होटल के सामने ले आया, जहां सोफिया पहले से ही उस का इंतजार कर रही थी.

इसी तरह यह रोज का सिलसिला बन गया. सोफिया उसी होटल के सामने उस का इंतजार करती और अमन तय समय पर उसे लेने वहां पहुंच जाया करता था.

एक दिन सोफिया ने अमन को अपने परिवार के बारे में सबकुछ बताया कि उस के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक छोटा भाई है, जो यूरोप में रहते हैं. वहां उस के पापा डाक्टर हैं और उस की मम्मी एक एनजीओ चलाती हैं. उस ने यह भी बताया कि उसे बचपन से ही इंडिया और यहां के लोग बहुत पसंद हैं. वह अपने मम्मीपापा के साथ अकसर इंडिया आती रहती थी.

‘‘अमन, अब तुम बताओ, तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं? और तुम्हारे फादर, मतलब तुम्हारे ‘पिटाजी’ क्या काम करते हैं? तुम लोग अपने फादर को ‘पिटाजी’ ही बुलाते हो न?’’

सोफिया की बात पर अमन को जोर की हंसी आ गई.

‘‘अरे, तुम हंस क्यों रहे हो? मैं ने कुछ ‘गलट’ कहा क्या?’’

‘नहीं, कुछ गलत नहीं कहा आप ने. लेकिन ‘पिटाजी’ कहा न, उस पर मुझे हंसी आ गई,’’ बोल कर अमन फिर हंसने लगा, तो सोफिया भी हंस पड़ी और बोली, ‘‘तुम मुझे हिंदी बोलना सिखा दोगे क्या?’’

अमन ने हां कहते हुए जैसे ही गाड़ी घुमाई, तो सोफिया उस के ऊपर गिरतेगिरते बची.

‘‘ओह, आप को लगी तो नहीं?’’ अमन ने पूछा.

‘‘लगी है, यहां पर,’’ अपने दिल पर हाथ रख कर सोफिया मुसकरा पड़ी, तो अमन भी मुसकरा उठा.

अब सोफिया अकसर फोन पर अमन से प्यार भरी बातें करती और कहती कि उस के सपने में अकसर वही दिखता है, तो इस का यह मतलब हुआ कि वह अमन से प्यार करने लगी है.

इस बात पर अमन कुछ कहता तो नहीं था, पर उसे भी सोफिया अच्छी लगने लगी थी, इसलिए वह अब बिना बुलाए भी सोफिया को लेने उस के होटल पहुंच जाता था.

अमन जबतब अपने घर से अपनी मां के हाथ का बना खाना सोफिया के लिए ले आता था, जिसे खा कर सोफिया काफी खुश होती थी. सोफिया भी कई बार उसे टीशर्ट, जूते वगैरह गिफ्ट कर चुकी थी.

बेटे को अच्छे से कमातेधमाते देख कर रामचरण खुश तो होता, पर सोचता कि काश, वह कोई अच्छी नौकरी कर रहा होता, क्योंकि उस ने बड़े अरमानों से बेटे को इंजीनियरिंग की तालीम दिलवाई थी और सोचा था कि अमन भी एक दिन उस का नाम रोशन करेगा. खैर, अब जो है उसी में खुश रहना पड़ेगा. यह सोच कर रामचरण बिस्तर पर पड़ापड़ा राहत की सांस लेता था.

रामचरण एक सरकारी बैंक में टैंपरेरी मैसेंजर का काम करता था, जहां उसे बंधीबंधाई और वह भी बहुत कम तनख्वाह मिलती थी, जिस से ही पूरे घर का खर्चा चलता था. उन्होंने सोचा था कि बेटा अच्छा कमाने लगेगा, तो उस के भी दिन फिरेंगे. मगर यहां तो बेचारे की उसी नौकरी पर आफत आ पड़ी थी. पता नहीं, अब दोबारा से नौकरी कर भी पाएगा या नहीं.

बैंक मैनेजर साहब भले इनसान थे, जिन्होंने रामचरण की काफी मदद की थी. बैंक के बाकी सब स्टाफ ने भी चंदा कर के उस की पैसों से मदद की थी. तभी तो उतने दिन उस का घर और डाक्टर और दवा का खर्चा चल पाया, वरना तो क्या होता नहीं पता.

अमन और सोफिया के बीच अब केवल ड्राइवर और ग्राहक तक ही रिश्ता नहीं रह गया था, बल्कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ चुके थे.

इसी तरह 6 महीने बीत गए. अब अमन को सोफिया पर और सोफिया को अमन पर भरोसा होने लगा था. वे एकदूसरे से बेझिझक अपनी बात शेयर करते और साथ में समय गुजारते थे.

एक दिन सोफिया ने अमन को होटल बुला कर उसे एक बैग देते हुए कहा कि यह बैग उसे इस पते पर पहुंचाना है.

अमन ने उस से पूछा भी नहीं कि उस बैग में है क्या. उस ने उस बैग को उसी पते पर पहुंचा दिया और यह सिलसिला चल पड़ा.

अब अकसर सोफिया अमन को दूसरेतीसरे पते पर बैग पहुंचाने के लिए कहती और इस के लिए वह उसे डबलट्रिपल पैसे भी देती थी.

एक दिन फिर सोफिया ने अमन को अर्जेंट बुलाया और एक काला बैग पकड़ाते हुए कहा कि यह बैग उसे अभी इसी समय इस पते पर पहुंचाना है.

‘‘मगर, इस में है क्या और इतना अर्जेंट क्यों पहुंचाना है? कल नहीं पहुंचा सकते क्या? आज मुझे अपने पापा को डाक्टर के पास ले कर जाना है.’’

सोफिया बोली, ‘‘नहीं, यह बैग अभी इसी समय इस पते पर पहुंचाना होगा और इस के लिए मैं तुम्हें 5,000 रुपए दूंगी.’’

‘‘पैसे की बात नहीं है. मुझे आज पापा को डाक्टर के पास लेना जाना बहुत जरूरी है, इसलिए कह रहा हूं,’’ अमन ने अपनी परेशानी फिर दोहराई, मगर इस बार सोफिया झल्लाते हुए बोली, ‘‘नहीं. अर्जेंट है तो अर्जेंट है.’’

आज सोफिया के चेहरे पर वह मासूमियत नहीं दिख रही थी, बल्कि घबराहट दिख रही थी, एक डर दिख रहा था.

अमन को अब सोफिया पर कुछ शक होने लगा कि ऐसा क्या है इस बैग में, जो उसे अभी ही पहुंचाना है? आज तक वह बैग लेने वाले आदमी का चेहरा नहीं देख पाया था, क्योंकि उस के चेहरे पर मास्क लगा होता था.

खैर, अमन ने अपना माथा झटका और बैग ले कर होटल से निकल गया, क्योंकि उसे भी पैसों की जरूरत थी और फिर सोफिया को वह नाराज नहीं करना चाहता था.

अभी अमन की टैक्सी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि तेज आवाज में पुलिस की गाड़ी सायरन बजाते हुए उसे रुकने को बोली.

‘‘जी… इंस्पैक्टर साहब…’’ गाड़ी रोक कर अमन ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नीचे उतरो और गाड़ी की डिक्की खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने डंडा घुमाते हुए कहा.

‘‘पर इंस्पैक्टर साहब, गाड़ी में कुछ भी नहीं है,’’ अमन ने सफाई दी.

‘‘अभी पता चल जाएगा. इस बैग में क्या है? खोलो इसे…’’ पुलिस इंस्पैक्टर ने अपने सिपाही को और्डर दिया, तो उस ने बैग खोला, जिसे देख कर अमन के पसीने छूट गए, क्योंकि उस बैग में कोई मामूली सामान या कपड़े वगैरह नहीं थे, बल्कि ड्रग्स थी.

पुलिस को पक्की जानकारी मिली थी कि इसी टैक्सी से ड्रग्स की तस्करी हो रही है. घबराहट में अमन ने सोफिया को फोन लगाया, मगर उस का फोन स्विच औफ आ रहा था. दोबारा उसे फोन मिलाने ही लगा कि पुलिस ने उस के हाथ से फोन छीन लिया और पकड़ कर उसे पुलिस की गाड़ी में धकेल दिया.

स्पैशल टास्क फोर्स ने अमन से पूछताछ शुरू कर दी कि उस के इस धंधे में और कौनकौन लोग शामिल हैं, मगर हर बार वह एक ही बात दोहराता कि उसे कुछ नहीं पता.

अमन के फोन से सोफिया का नंबर मिला और जब उन्होंने पूछा कि यह लड़की कौन है और उस से उस का क्या रिश्ता है, तो अमन कहने लगा कि सोफिया ही उसे बैग अलगअलग पतों पर पहुंचाने को बोलती थी और वह पहुंचा दिया करता था. इस से ज्यादा उसे कुछ नहीं पता है.

स्पैशल टास्क फोर्स को यह तो समझ में आ गया कि इस का मास्टरमाइंड कोई और ही है और अमन केवल एक मुहरा है.

अमन से तो सोफिया यही बोल कर बैग पहुंचाने को कहती थी कि इस बैग में खानेपीने का सामान है. लेकिन उस में ड्रग्स हो सकती है, यह तो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था. काश, वह एक बार बैग खोल कर देख लेता, तो आज इतनी बड़ी मुसीबत में न फंसता.

ड्रग्स सप्लाई कोई मामूली बात नहीं, बल्कि यह एक अपराध है और ऐसे केस में लोगों को 10 से

20 साल तक की सजा हो सकती है. लेकिन, उस ने सपने में भी सोचा न था कि एक दिन जिंदगी उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देगी. वह तो पैसे कमा कर अपने मांबाप की मदद करना चाहता था. सोच रहा था कि पैसे जमा कर के वह अपनी बहन की शादी करेगा, फिर अपना घर बसाएगा. मगर यहां तो सब गलत हो गया.

उधर अमन के मांबाप को जब पता चला कि उन के बेटे को ड्रग्स सप्लाई के केस में गिरफ्तार कर लिया गया है, तो अमन की मां तो खड़ेखड़े ही बेहोश हो कर गिर पड़ी और रामचरण के प्राण पखेरू उड़ गए. क्या मिला उन्हें जिंदगी में… न अच्छे बेटे का सुख और न समाज में इज्जत.

मगर दीपक जानता था कि अमन लाख बुरा सही, मगर वह इतना घटिया काम कभी नहीं कर सकता. वह उसे बचपन से जानता है. उस ने गाड़ी के मालिक को भी यकीन दिलाया कि अमन ऐसा कर ही नहीं सकता,, बल्कि उसे फंसाया है किसी ने.

पुलिस की मार से तो बड़े से बड़ा अपराधी अपना गुनाह कबूल कर लेता है, मगर इतनी मार खाने के बाद भी अमन एक ही बात दोहरा रहा था कि उसे कुछ नहीं पता. पुलिस की शक की सूई अब सोफिया पर जा अटकी, तो तुरंत उस ने होटल का दरवाजा खटखटाया. लेकिन पता चला कि सोफिया अभी कुछ देर पहले ही चैकआउट कर के जा चुकी है.

अभी सोफिया हवाईजहाज पर बैठने ही वाली थी कि स्पैशल टास्क फोर्स ने उसे धर दबोचा. अब सोफिया के पास कोई चारा नहीं था सबकुछ बताने के सिवा. उस ने जो बताया, वह सुन कर अमन के पैरों के नीचे से भी जमीन खिसक गई, क्योंकि सोफिया ने उसे अपने और अपने परिवार के बारे में सब ?ाठ बताया था. उस के मांबाप कई साल पहले एक हादसे में गुजर चुके थे.

सोफिया के पास रहनेखाने को कुछ नहीं बचा, तो किसी तरह वह इंडिया आ गई और यहां एक डांस बार में काम कर के अपना गुजारा चलाने लगी. मगर असली धंधा उस का ड्रग्स सप्लाई करना था.

सोफिया दिल्ली के अलगअलग हुक्का बार और क्लब में ड्रग्स सप्लाई करती थी और उस के लिए वह अमन जैसे मजबूर, सीधेसाधे लड़के को फंसा कर उस के साथ प्यार का नाटक करती थी, ताकि उस का काम आसानी से होता रहे. लेकिन इस बार वह पकड़ी गई.

पता चला कि सोफिया के साथ और 4 लोग ड्रग्स तस्करी के धंधे से जुड़े हुए थे और स्पैशल टास्क फोर्स अब उन की तलाश में जुटी है. पुलिस ने सोफिया के पास से साढ़े 6 लाख रुपए नकद भी बरामद किए.

अमन को पुलिस ने चेतावनी दे कर छोड़ दिया, क्योंकि उस की कोई गलती नहीं थी. उसे फंसाया गया था. मगर अपनी जिंदगी में उस ने जोकुछ भी खोया, क्या अब वह उसे वापस कभी मिल सकता है? शायद नहीं, क्योंकि चिडि़या खेत जो चुग चुकी थी.

एक भाई ऐसा भी

नौ शाद अपने 6 भाइयों में दूसरे नंबर पर था, जो शारीरिक रूप से तो कमजोर था ही, मानसिक रूप से भी अपने बाकी भाइयों के मुकाबले काफी कमजोर था. बचपन से ले कर बुढ़ापे तक उस ने अपना सबकुछ अपने भाइयों और उन के बच्चों पर कुरबान कर दिया, पर जब आज उस की बीवी नजमा की मौत हो गई, तो उस के भाइयों ने उसे एक वक्त का खाना भी देना गवारा न समझ. उसे ऐसे झिड़क कर भगा दिया मानो वह कोई भिखारी हो. पर नौशाद का दिल इतना बड़ा था कि उसे उन की इन बातों का बुरा नहीं लगा और वह उन के छोटेछोटे मासूम बच्चों को अपनी औलाद की तरह घुमाताफिराता, खिलाता और अपनी जमापूंजी उन पर लुटाता रहा.

नौशाद अपने भाइयों के साथ बिजनौर जिले के नगीना शहर में रहता था. घर की माली हालत काफी कमजोर थी. नौशाद की अम्मी की मौत के बाद उस के अब्बा काफी टूट गए थे. अब उन का कामकाज में मन नहीं लगता था.

नौशाद की उम्र उस समय महज 14 साल थी, जब उस ने मजदूरी कर के अपने घर का सारा खर्चा तो उठाया ही, साथ ही अपने बड़े भाई और छोटे भाइयों की पढ़ाई का भी ध्यान रखा.

वक्त गुजरता गया. नौशाद अपने भाइयों को पढ़ाता रहा. मेहनतमजदूरी कर के घर में खानेपीने का सारा इंतजाम नौशाद की कमाई से चलता रहा.

नौशाद अपने भाइयों पर जान छिड़कता था और उन सब को कामयाब इनसान बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करता था. उस ने जैसेतैसे खुद भी इंटर पास कर लिया था.

नौशाद के बड़े भाई आरिफ का बीएएमएस में एडमिशन हो गया और वे पढ़ने के लिए जयपुर चले गए. उस से छोटा भाई जुबैर डीएमएलटी करने दिल्ली चला गया. उस से छोटा भाई शान का मन पढ़ाई में न लगा तो वह रोजगार की तलाश में मुंबई निकल गया. बाकी 2 भाई अभी नगीना में रह कर पढ़ाई कर रहे थे.

बड़े भाई आरिफ की अभी पढ़ाई पूरी भी नहीं हुई थी कि उन की शादी हो गई. कमाई का कोई जरीया नहीं था, जिस से घर में काफी दिक्कतें आ रही थीं, पर नौशाद जीतोड़ मेहनत कर के घर के खर्चे पूरे कर रहा था.

वक्त के साथसाथ बड़े भाई आरिफ डाक्टर बन गए और नौशाद से छोटा भाई जुबैर अपना कोर्स पूरा कर के मुरादाबाद में नौकरी करने लगा.

2 भाइयों के कामयाब होने के बाद नौशाद ने चैन की सांस ली और अब नौशाद ने अपना भी निकाह कर लिया. बचपन से जीतोड़ मेहनत कर के आधी खुराक में जिंदगी गुजारतेगुजारते वह काफी कमजोर हो गया था. वक्त के साथसाथ सब भाई कामयाब हो गए और सब की शादी भी हो गई. वे सब अच्छी तरह जिंदगी गुजारने लगे.

सभी भाई शादी के बाद अपनीअपनी बीवियों के साथ जिंदगी गुजार रहे थे. किसी ने भी कभी यह नहीं सोचा कि जिस भाई ने उन के लिए इतना बलिदान किया है, उस के क्या हाल हैं.

घर के ज्यादातर हिस्सों पर नौशाद के बाकी भाइयों का कब्जा था, जबकि नौशाद के हिस्से में नाममात्र के लिए एक कमरा ही था और उस में भी और भाइयों के दहेज का सामान रखा रहता या मोटरसाइकिल खड़ी रहती, जिस से नौशाद और उस की बीवी को काफी दिक्कत होती, पर वे कभी कुछ न बोलते थे.

नौशाद अब काफी कमजोर हो चुका था. वक्त की मार ने उसे वक्त से पहले ही बूढ़ा बना दिया था. जैसेतैसे वह अपना और अपनी बीवी का खर्चा उठा रहा था. कभीकभी उसे और उस की बीवी को भूखे ही रहना पड़ता था, क्योंकि कमजोरी के चलते वह अब काम भी नहीं कर पाता था.

इस गरीबी के चलते नौशाद की बीवी भी बीमार रहने लगी और जल्द ही उस ने चारपाई पकड़ ली. अब नौशाद का ज्यादा वक्त अपनी बीवी की देखभाल और घर के कामकाज में बीतने लगा.

नौशाद के अब्बा का पुश्तैनी बाग था, जो अब बेच दिया गया, पर उस का सारा पैसा नौशाद के भाइयों के हाथों में ही सिमट कर रह गया और उन्होंने उस के हिस्से के पैसे भी अपने घर और दुकान बनाने में लगा लिए.

नौशाद के हिस्से में तकरीबन 7 लाख रुपए आए, पर उसे वह पैसा मिलना तो दूर देखना भी गवारा न हुआ. जब भी नौशाद अपने भाइयों से पैसे मांगता, तो वे कोई न कोई बहाना बना कर अपना पीछा छुड़ा लेते और कहते कि ‘तुम्हें क्या पैसे की जरूरत? न तुम्हारे कोई औलाद है, न तुम्हारा कोई खर्चा है.’

भाइयों का यह जवाब सुन कर नौशाद मन मार कर रह जाता. फिर नौशाद ने जब अपने पैसे पाने के लिए अपने अब्बा से अपने भाइयों पर जोर देने को कहा, तो उन्होंने उन से बात की और नौशाद के पैसे देने के लिए कहा.

वक्त बदल चुका था. नौशाद के अब्बा अब बूढ़े हो चुके थे और औलाद काबिल बन चुकी थी. उन्होंने अपने अब्बा की कोई बात नहीं सुनी और कह दिया कि ‘अभी हमारे पास पैसा नहीं है, जब होगा, तब दे देंगे’.

नौशाद की माली हालत काफी खराब हो गई थी. उस के अब्बा ने अपनी औलादों से नौशाद का खयाल रखने और उस का पैसा देने के लिए कहा, तो वे बड़ी मुश्किल से इस बात पर राजी हुए कि ‘हम उसे इकट्ठा पैसा तो नहीं देंगे, हां 50 रुपए रोजाना दे दिया करेंगे’.

अब नौशाद को खर्चे के लिए 50 रुपए मिलने लगे. उस की बीवी की तबीयत खराब रहती थी. उन पैसों से वह घर चलाए या अपनी बीवी का इलाज कराए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. एक भाई 50 रुपए दे रहा था, जबकि बाकी भाई बोले कि ‘जब हमारे पास होंगे दे देंगे. अभी हमारे पास पैसा नहीं है’. नौशाद घंटों उन के घर पैसे के लिए एक भिखारी की तरह पड़ा रहता.

आज अपने हिस्से के पैसे लेने के लिए नौशाद भिखारी की तरह हाथ फैलाता, पर उसे कभी पैसे मिलते, तो कभी ?िड़क कर भगा दिया जाता.

कुछ ही महीनों में उस की बीवी की तबीयत ज्यादा खराब होने की वजह से वह इस दुनिया से चल बसी.

अब नौशाद तनहा हो कर रह गया. अभी तक भाईभाभियों ने उस का साथ छोड़ा था, पर अब उस की बीवी भी उसे इस बेरहम दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई थी.

नौशाद खर्चे से पहले ही परेशान था और अब तो उस के भाइयों ने उसे पैसा देना बिलकुल बंद कर दिया था. वह उन से पैसे मांगता, तो वे बोलते कि ‘तुझे क्या पैसों की जरूरत? तेरे कौन से बीवीबच्चे हैं. हां, अगर तुझे खाना खाना है, तो यहां आ कर खा लेना और हमारे बच्चों का खयाल रखना.’

नौशाद अब दिनभर अपने भाइयों के बच्चों की देखभाल करता, उन्हें हर वक्त गोद मे टांगे फिरता और उन का खयाल अपने बच्चों की तरह रखता, तब जा कर उसे रूखासूखा कुछ खाने को मिलता. अगर कभी तबीयत खराब होने की वजह से वह बच्चों को नहीं ले जा पाता, तो उसे बुराभला कह कर भगा दिया जाता और उसे उस दिन भूखे ही रहना पड़ता.

नौशाद के भाई जुबैर की बीवी एक नेक औरत थी. वह जब भी गांव आती, नौशाद का खयाल रखती, उसे अच्छा खाना खिलाती और इज्जत भी करती. वैसे, जुबैर ने नौशाद का कोई हक नहीं मारा. बस वह गांव से दूर अपने परिवार के साथ रहता था. गांव आनाजाना कम था, जिस वजह से वह नौशाद की कोई खास मदद नहीं कर पाता था.

जब भी जुबैर की बीवी गांव आती, नौशाद के लिए कपड़े लाती, उसे अच्छे से अच्छा खाना खिलाती और कुछ पैसे भी दे कर जाती थी.

नौशाद का छोटा भाई शान तो मुंबई में ही शिफ्ट हो गया था. वह कभी गांव नहीं आता था. उस ने अपने भाई नौशाद का कोई पैसा नहीं खाया, पर उस की इतनी गलती तो थी ही कि कभी गांव आ कर अपने भाई के हालात नहीं देखे और न ही उस की कोई मदद की.

नौशाद ने परेशान हो कर एक दुकान पर नौकरी की. वहां से उसे इतना पैसा मिल जाता, जिस से उसे दो वक्त की रोटी मिल जाती थी.

नौशाद बड़ा ही कमअक्ल इनसान था. उसे जो पैसे मिलते, वह उन्हें अपने भाइयों के छोटेछोटे बच्चों को खिलाने मे खर्च कर देता और खुद भूखा रहता.

नौशाद की भाभी हमेशा उसे बेइज्जत करती रहती और दानेदाने को मुहताज बनने पर मजबूर करती रहती. नौशाद का दिल साफ था. वह कभी अपने ऊपर हुए ज़ुल्म को दिल में नहीं रखता था और तनमन से अपने परिवार की सेवा करता था. साथ ही, सब के बच्चों को एक आया की तरह हर वक्त देखता था.

नौशाद के भाई और भाभी उसे बेवकूफ समझ कर उस का मजाक बनाते और उस की विरासत में मिली दौलत

को लूट कर अपनेआप को अक्लमंद समझते. वे लोग क्या जानें भाई के रिश्ते को. उन्हें तो ढंग से भाई शब्द का मतलब भी नहीं मालूम.

ऐसा है एक भाई जो अपनी जानमाल से अपने परिवार वालों की खिदमत कर रहा है और उन के दुख को अपना दुख समझ कर अपनी जिंदगी उन पर कुरबान कर रहा है.

ऐसे भाई लाखों में एक होते हैं, जो परिवार के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देते हैं और ऐसे भाई भी लाखों हैं, जो अपने भाई का खून चूसने में पीछे नहीं हटते.

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