लेखक- अहमद यार खान
इस पर दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. लड़कों ने बीचबचाव कराया. सफदर ने धमकी दी कि वह उसे जान से मारेगा. सफदर वहां से चला आया.
अरशद की बात सुन कर मुझे खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सफदर ने अपनी मां की हत्या खुद ही कर दी हो. अगर ऐसा हुआ हो तो फिर सवाल यह था कि सफदर की हत्या किस ने की? जबकि जो पग चिह्न शादो की लाश के पास पाए गए थे, वही सफदर के घर के सहन में पाए गए. दोनों क ी हत्या भी एक ही तरह से की गई थी.
मुझे यह देखना था कि वह आदमी कौन था. सब से पहले मैं ने परवीन से बात करने के बारे में सोचा. मैं ने नंबरदार से कहा कि वह परवीन को बुलाए. उस ने अपनी नौकरानी को परवीन को बुलाने भेज दिया.
वह लड़की आ कर मेरे सामने बैठ गई. वह करीब 16-17 साल की होगी. वह मामूली सी लड़की घबराई हुई थी. मैं ने सब से पहले उस से अपनी कलाई दिखाने के लिए कहा. उस ने कलाई आगे कर दी. उस में लाल रंग की बची हुई चूडि़यां थीं और उस की कलाई पर चूड़ी के कुछ घाव भी थे.
मैं ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘चूड़ी तो बहुत अच्छी पहन रखी हैं. लगता है कहीं गिरने से टूट गई हैं.’’
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‘‘हां, मैं गिर गई थी.’’ वह कलाइयों को देख कर बोली, ‘‘चोट भी लगी और चूडि़यां भी टूट गईं.’’
‘‘कहां गिरी थीं?’’
वह एकदम घबरा गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘वो…एक सहेली के घर गिरी थी.’’
‘‘कौन सी सहेली?’’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘उस का नाम बताओ?’’
वह सोच में पड़ गई. सीधीसादी देहाती लड़की थी. उस में चालाकी नहीं थी. कोई चालाक लड़की होती तो तुरंत कोई नाम बता देती.
‘‘मैं तुम्हारी सहेली का नाम बता देता हूं, जिस के घर में तुम्हारी चूडि़यां टूटी थीं.’’ मैं ने जेब से रूमाल में बंधे चूडि़यों के टुकड़े उस के सामने रख दिए और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सहेली के घर से उठा लाया हूं.’’
चूडि़यों के टुकड़े देख कर उस की हालत ऐसी हो गई जैसे अभी बेहोश हो कर गिर जाएगी. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. किसी से मिलना कोई पाप नहीं है और न ही यह कोई अपराध है.’’
वह फिर संभल गई.
‘‘सफदर की हत्या हो गई है और मुझे उस के हत्यारे को पकड़ना है. तुम इस मामले में मेरी मदद करो. यह बताओ, वहां कौन आया था, तुम्हारा बाप या भाई?’’ मैं ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा.
‘‘उन में से कोई नहीं आया था. उन्हें तो इस मामले की खबर भी नहीं है. वह अब्बास था.’’
सुन कर मुझे झटका सा लगा. उस ने कहा, ‘‘वह वहां पहले से मौजूद था.’’
मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने वहां जो कुछ देखा, वह मुझे सचसच बताओ.’’
उस के जवाब में परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया. अपने और सफदर के संबंध के बारे में भी.
उस ने बयान में बताया कि वह सफदर से चोरीछिपे मिलती थी. जब सफदर की मां की हत्या हो गई तो वह उस के घर जा कर मिलती थी. घटना वाले दिन भी वह रात में सफदर के घर गई. दरवाजा खुला था.
वह अंदर गई तो देखा सफदर जमीन पर पड़ा था और उस की गरदन में कपड़ा पड़ा हुआ था. फिर वह आदमी सीधा खड़ा हो गया.
यह देख कर परवीन की चीख निकल गई. चीख सुन कर वह उस की ओर पलटा. वह अब्बास था. परवीन उसे देख कर भागना चाहती थी, लेकिन उस के कदम वहीं जम गए. अब्बास ने उस की कलाई पकड़ कर खींचा तो चूडि़यां टूट गईं.
उस के बाद अब्बास ने पूरी ताकत से उस की गरदन अपनी बाजुओं में दबा ली, जिस से उस की आंखें निकल आईं और सांसें उखड़ने लगीं. वह अपनी गरदन छुड़ाने की कोशिश करने लगी. अपने नाखूनों से उस की कलाई को नोचा लेकिन अब्बास पर उस का कोई असर नहीं हुआ. मौत उस की आंखों के सामने नाचने लगी.
फिर अब्बास ने उस की गरदन छोड़ दी और वह सफदर के ऊपर गिर गई. अब्बास बोला, ‘‘यह केवल नमूना था, अगर तूने अपनी जबान खोली तो तुझे भी मार दूंगा.’’
वह इतना डर गई थी कि कुछ बोल नहीं सकी.
‘‘एक बात याद रखना परवीन,’’ अब्बास ने उस से कहा, ‘‘अगर तूने जबान खोली तो फिर मैं पूरे गांव को बता दूंगा कि तू सफदर के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. सोच ले, तेरे मांबाप का क्या हाल होगा. उन में जरा भी शर्म होगी तो डूब मरेंगे.’’
अब्बास ने परवीन को इतना डरा दिया था कि वह बिलकुल चुप रहने लगी थी. मैं ने परवीन को भेज दिया और थाने आ कर एएसआई और एक कांस्टेबल को अब्बास को गिरफ्तार करने के लिए भेज दिया. यह दोहरे हत्याकांड की कहानी थी. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि अब्बास ने मांबेटे की हत्या क्यों की थी, जबकि वह शादो और उस के बेटे से बहुत प्यार करता था.
एएसआई अब्बास को हथकड़ी लगा कर ले आया. वह बहुत गुस्से में था. दोनों मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गए. अब्बास बोला, ‘‘यह ज्यादती है. आप मुझे कहते, मैं दौड़ा चला आता.’’
मैं ने रूखेपन से कहा, ‘‘कोई ज्यादती नहीं है अब्बास, हत्यारों को इसी तरह थाने लाया जाता है.’’
‘‘लगता है तुम्हें अब भी मेरे ऊपर शक है?’’ अब्बास अकड़ में बोला.
मैं ने कहा, ‘‘शक नहीं है, दोनों हत्याएं तुम ने की हैं. मेरे पास पक्के सबूत हैं. कहो तो एकएक तुम्हारे सामने रख दूं. अच्छा यही है कि तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो और बयान दे दो.’’
मेरी बात सुन कर पहले तो वह घबराया और फिर हर अपराधी की तरह अपने आप को निर्दोष बताने लगा. मैं ने उस से क हा, ‘‘अपनी आस्तीन ऊपर करो.’’
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उसने बांह ऊपर की तो परवीन के नाखूनों से लगे घाव दिखाई दे गए.
वह घबरा गया, ‘‘वो…वो…’’
‘‘झूठ मत बोलना, परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया है. बोलो, अपना अपराध स्वीकार करते हो?’’
वह ऐसे ढीला पड़ गया, जैसे गुब्बारे से हवा निकल गई हो. मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने दोनों की हत्या क्यों की?’’
‘‘मैं ने केवल सफदर की हत्या की है. शादो की हत्या उस के बेटे सफदर ने की थी. वह हमारा मिलना पसंद नहीं करता था.’’ अब्बास ने कहा.
उस के इस बयान से सारा मामला समझ में आ गया. सफदर को उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह उस लड़के के तानों से दुखी था.
अब्बास ने बताया कि जब सफदर के पिता की मृत्यु हो गई थी तब सफदर छोटा था. लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो उसे उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. कई बार वह इस मामले में अपनी मां से लड़ा भी था.
घटना वाली रात शादो और अब्बास खंडहर में बैठे थे कि सफदर वहां आ गया. अब्बास ने मुझ से झूठ कहा था कि वह अंधेरे में आने वाले को पहचान नहीं सका था. शादो ने सफदर को देखते ही कहा, ‘‘तुम पीछे से निकल जाओ, मैं सफदर को संभाल लूंगी.’’
बाद में पता लगा शादो की हत्या हो गई.
शादो के मरने के बाद अब्बास बहुत दुखी हुआ और मौके की तलाश में रहा कि सफदर को ठिकाने लगाए. फिर एक रात उस ने सफदर को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए वह उस के घर गया.
सफदर उसे देख कर हैरान हुआ. उस ने कहा कि वह उस से कुछ बात करने आया है, लेकिन सफदर को पता नहीं था कि अब्बास के रूप में उस की मौत आई है.
सफदर उसे ले कर अंदर कमरे में जाने लगा. अब्बास ने मौका देख कर पीछे से उस के गले में पड़े गमछे को उस की गरदन में लपेट कर खींच लिया और उसे दबाता चला गया.
सफदर बहुत उछला कूदा, लेकिन अब्बास ताकतवर था. उस ने सफदर को नीचे गिरा कर उस पर पैर रख दिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक उस का दम नहीं निकल गया.
अब्बास ने गमछा गरदन में ही रहने दिया. उस ने अपनी शादो का बदला बिलकुल वैसे ही लिया था, जैसे उस ने अपनी मां को गले में दुपट्टे का फंदा डाल कर मारा था. फिर परवीन दिखाई दी. उस के बाद की कहानी परवीन सुना चुकी थी. यह बयान दे कर वह बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा. मैं उस की भावनाओं को समझ रहा था. वह मांबेटे से बहुत प्यार करता था.
केस तैयार कर के मैं ने अदालत में दाखिल कर दिया. अब्बास अपने बयान पर कायम रहा. मैं ने परवीन की गवाही भी दिलवाई, जिस के कारण वह गांव में बदनाम भी हो गई. अदालत ने उसे मृत्युदंड दिया. उस के वकील ने अपील के लिए कहा, लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि शादो के बिना अब वह जीना नहीं चाहता.
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इस कहानी का एक दुखद पहलू यह भी रहा कि बदनामी की वजह से परवीन ने नहर में कूद कर जान दे दी. मुझे इस का बहुत दुख हुआ. लेकिन मैं क्या करता, क्योंकि बिना गवाही के अदालत सजा नहीं देती.