कायर : क्या घना को मिल पाया श्यामा का प्यार

घना जानता था कि श्यामा निचली जाति की लड़की है, पर उस के अच्छे बरताव की वजह से वह उस के प्रति खिंचता चला गया था. यहां तक कि वह श्यामा से शादी करने को भी तैयार था.

वैसे, घना जाति प्रथा को भारतीय समाज के लिए अभिशाप मानता था और अकसर अपने दोस्तों के साथ अंधविश्वास, जाति प्रथा जैसी बुराइयों पर बड़ीबड़ी बातें भी करता था.

घना कई बार अपने मन की बात श्यामा तक पहुंचाने की कोशिश कर चुका था, पर श्यामा ने उसे कभी भी आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया था.

आज घना को श्यामा से अकेले में बात करने का मौका मिल गया था और वह इस मौके को खोना नहीं चाहता था.

श्यामा आ रही थी. घना ने अपने गांव के दोस्तों को पहले ही चले जाने के लिए कह दिया था और खुद श्यामा का इंतजार कर रहा था.

जैसे ही श्यामा उस के करीब से गुजरी, घना ने उसे रुकने को कहा.

‘‘श्यामा,’’ घना ने अपना गला साफ करते हुए कहा.

‘‘जी,’’ श्यामा ने एक पल के लिए घना की ओर देखा और आगे बढ़ गई.

‘‘आज मौसम बहुत खराब है,’’ घना बोला.

श्यामा ने कुछ नहीं कहा.

‘‘श्यामा, मैं तुम से कुछ बात कहना चाहता हूं.’’

श्यामा फिर भी चुप रही. घना श्यामा के बहुत करीब आ गया.

श्यामा घना की बात को अच्छी तरह से सम?ा रही थी. उस ने गुस्से से घना की तरफ देखा.

घना थोड़ा सा सहम गया था, पर वह सोचने लगा कि अगर आज नहीं कहेगा, तो वह अपनी बात कभी नहीं कह पाएगा.

‘‘श्यामा… मैं…मैं… तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ जैसे कि श्यामा घना की बात का मतलब न सम?ा हो.

‘‘श्यामा, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि मैं निचली जाति की हूं और आप ऊंची जाति वाले.’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं इस तरह की किसी भी बहस

में नहीं उल?ाना चाहती. अगर किसी ने यह सब सुन लिया, तो आप की बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘श्यामा, मैं तुम से बहुत प्यार

करता हूं और तुम्हीं से शादी भी करना चाहता हूं.’’

‘‘और तुम्हारे गांव के सब बराती निचली जाति वालों के हाथ का पका खाना खाएंगे? जो लोग निचली जाति वालों की छाया से भी दूर रहते हैं, क्या वे एक अछूत लड़की को अपने घर की बहू बनाएंगे?

‘‘घना, मु?ा गरीब पर दया करो. मैं किसी किस्सेकहानी का पात्र नहीं

बनना चाहती हूं. आप ऊंची जाति वालों की नजर में भले ही हमारी कोई इज्जत नहीं है, पर अपनी नजर में हमारी बहुत इज्जत है.

‘‘मेरे पिता एक स्कूल में मास्टर हैं. समाज में उन की भी कुछ इज्जत है. मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं कि मेरे साथ आगे से ऐसी हरकत कभी मत करना.’’

श्यामा का ऐसा चेहरा देख कर घना सकते में आ गया. वह कुछ न बोल सका और चुपचाप वहीं खड़ा रह गया. श्यामा तेज कदमों से आगे बढ़ गई.

श्यामा जा चुकी थी, पर उस के कहे गए शब्द घना के कानों मेें बारबार गूंज रहे थे.

घना ने आसमान की ओर देखा. आसमान में घने बादल छाए हुए थे. वह सोचने लगा कि आज की रात फिर बर्फबारी होने वाली है. वह बहुत निराश था. क्या करे? कहां जाए? खुदकुशी कर ले? समाज की रूढि़यों, जाति प्रथा के चलते ही तो श्यामा ने उस के प्यार

को ठुकरा दिया था, वरना उस में क्या कमी थी.

घना को लगा कि यह जिंदगी ही बेकार है. वह बदहवास सा रास्ते से हट कर ऊपर पहाड़ी पर चढ़ने लगा. चारों तरफ अंधेरा बढ़ने लगा था. जब वह चलतेचलते थक गया, तो सुस्ताने के लिए एक बड़े पत्थर पर बैठ गया.

रात अब काफी हो चुकी थी. काफला और खड़कोट, दोनों गांवों के बीच, जहां पर खेत खत्म हो जाते हैं, वहां पर एक बेसिक स्कूल था. इस के बाद जंगल शुरू हो जाता था. बस्ती से दूर होने के चलते रात में स्कूल में कोई नहीं रहता था.

घना सोचने लगा कि आज की रात वह इसी स्कूल में बिता देगा. कल देखा जाएगा. अंधेरे में चलते, गिरतेपड़ते, ?ाडि़यों से गुजरते हुए उस का बदन बुरी तरह से छिल गया था. कई खरोंचें भी लग गई थीं.

जब घना स्कूल में पहुंचा, तब वहां भयंकर सन्नाटा पसरा हुआ था. वह स्कूल के बरामदे के एक कोने में सिकुड़ कर बैठ गया. ठंड से उस की हड्डियां तक कांप रही थीं. श्यामा का एहसास उस के दिलोदिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था.

घना सोचने लगा कि श्यामा का गांव यहां से थोड़ी ही दूर पर है. क्यों न एक बार फिर कोशिश की जाए. आज उसे किसी बात का डर नहीं था. न मरने का डर, न जंगली जानवरों का डर. लिहाजा, वह श्यामा के घर की तरफ चल पड़ा.

घना मास्टर बिछन दास के घर के सामने रुक गया.

खड़कोट गांव के एक हिस्से में ब्राह्मण और एक हिस्से में दलित रहते हैं. इसी गांव के दलित टोले के बिछन दास मास्टर की बेटी श्यामा सेंदुल कालेज में बीए के आखिरी साल में पढ़ रही थी.

मास्टर बिछन दास नजदीक के ही एक गांव में मिडिल स्कूल के हैडमास्टर थे. खेतीबारी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पत्नी भी अकसर उन के साथ ही

रहती थी.

बिछन दास का स्कूल बहुत ज्यादा दूर न होने के चलते वे हर 15 दिन बाद घर आ जाते थे. श्यामा अपनी बूढ़ी दादी मां के साथ गांव में रहती थी.

करीब के गांव का होने की वजह से और श्यामा में घना की खास दिलचस्पी होने के चलते उसे श्यामा और उस के घर के बारे में बहुतकुछ पता था.

घना जानता था कि श्यामा की मां अकसर उस के पिता के साथ ही रहती हैं. घर में उस की बूढ़ी दादी मां न साफ देखती हैं और न साफ सुनती हैं. उसे यह भी पता था कि श्यामा घर की अलग कोठरी में पढ़ाई करती है. हो सकता है कि वह अभी भी पढ़ रही हो.

घना जब श्यामा के घर के चौक में पहुंचा, तब उस ने देखा कि ऊपरी मंजिल की एक कोठरी में अभी भी रोशनी थी. वह जानता था कि श्यामा इसी कोठरी में पढ़ रही होगी.

घना ने दरवाजा खटखटाया. कमरे में कोई भी हलचल नहीं हुई. उस ने फिर दरवाजा खटखटाया.

‘‘कौन है?’’ कोठरी से श्यामा की आवाज आई.

‘‘मैं… घना.’’

‘‘घना?’’

‘‘हां, घना.’’

‘‘इतनी रात में…’’

‘‘हां, दरवाजा खोल दो. अपनी बात कर के मैं यहां से चला जाऊंगा.’’

श्यामा ने घड़ी की ओर देखा. रात के 2 बज रहे थे. वह सोचने लगी, ‘क्या करूं? दरवाजा खोलूं, तो कहीं यह कोई ?ां?ाट न खड़ा कर दे. अपनी बात कहने के अलावा यह और क्या कर सकता है? यह मेरा घर है. एक दलित लड़की के घर में इतनी रात को… इसे भी तो अपनी इज्जत का खयाल होगा.’

श्यामा ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर घना खड़ा था. कपड़े फटे हुए, चेहरे पर खरोंचों के निशान, जिन से खून निकल रहा था.

श्यामा को उस पर तरस आ गया. उस ने उसे अंदर आने दिया. वह ठंड से बुरी तरह कांप रहा था. उस के चेहरे पर पीड़ा साफ ?ालक रही थी.

‘‘यह सब क्या है?’’ श्यामा ने हैरान होते हुए पूछा.

घना ने श्यामा के साथ कालेज से घर आते समय रास्ते में जो बातचीत हुई थी, उस के बाद की सारी घटना बता दी.

‘‘मैं क्या करूं श्यामा? मैं अपने को संभाल नहीं पा रहा हूं. तुम्हारे बिना मैं अब जी नहीं सकूंगा.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? यह तो जबरदस्ती है. मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती. ऐसा कभी नहीं हो सकता. मैं ने आप से पहले भी कहा था.’’

‘‘ठीक है, तब फिर चलता हूं. मैं तुम्हारा नुकसान नहीं करना चाहता. ज्यादा क्या कहूं… शायद यह मेरी जिंदगी की आखिरी रात है,’’ कह कर घना उठने को हुआ.

‘‘इतनी रात को तुम कहां जाओगे?’’ श्यामा ने डर कर पूछा.

‘‘कहां जाऊंगा? जहां एक दिन सभी को जाना है. क्यों न मैं आज ही भिलंगना नदी में डूब जाऊं. मैं जी कर क्या करूंगा, खुद भी नहीं जानता. पर मैं तुम से माफी मांगता हूं. मैं ने तुम्हें बहुत तकलीफ दी है, मु?ो माफ कर देना.’’

घना ने दरवाजे की तरफ कदम रखा ही था कि श्यामा ने उस की बांह थाम कर उसे कुरसी पर बैठा दिया.

श्यामा सोचने लगी, ‘इसे अगर मैं आज ठुकरा दूं, तो हो सकता है कि यह सचमुच भिलंगना नदी में छलांग मार दे. जो शख्स इस बर्फीली रात में घने जंगल से हो कर मेरे घर आने की हिम्मत कर सकता है, वह खुदकुशी कर ले, तो इस में क्या हैरानी है. और खुदकुशी क्या, इसे तो कोई जंगली जानवर रास्ते में ही अपना निवाला बना सकता है. तब शायद किसी को कुछ पता न चले, पर मैं तो सबकुछ जानती हूं. तब मैं क्या खुद को कभी माफ कर पाऊंगी?

‘नहीं, मैं जिंदगीभर अपने को अपराधी सम?ाती रहूंगी और यह तो मु?ा से प्यार करता है और शादी भी करने को तैयार है. क्या हमारा समाज यह सब होने देगा? नहीं, समाज तो ऐसा कभी नहीं होने देगा. पर हम कहीं दूर दिल्लीमुंबई चले जाएंगे. वहां हमारी जातपांत से किसी को क्या मतलब होगा?’

श्यामा बहुत दूर की बात सोचने लग गई थी.

‘‘श्यामा, तुम डरो मत. मैं तुम्हारा कोई नुकसान करने नहीं आया हूं. मैं तो केवल तुम्हें अपने मन की बात बताने आया था, तुम पर खुद को थोपने नहीं. तुम चिंता मत करो. अब मु?ो जाना ही चाहिए,’’ इतना कह कर घना दोबारा उठ कर जाने लगा.

‘‘रुको…’’ श्यामा ने कहा. घना जैसा था, वैसे ही बैठ गया.

‘‘अच्छा सुनो, आप ने कहा कि आप मु?ा से बहुत प्यार करते हो. क्या आप मु?ा से शादी कर के समाज का सामना कर पाओगे?’’

‘‘हां, जरूर करूंगा. मैं जानता हूं कि यह समाज ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होने देगा, पर हम यहां से कहीं दूर अपनी दुनिया बसाएंगे.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘एक साल बाद मैं कालेज पास कर लूंगा, फिर देखना मु?ो कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी और फिर हम किसी मंदिर में शादी कर लेंगे.’’

‘‘ठीक है, जब आप इतना खतरा मोल ले कर इस बर्फीली रात में मेरे

घर तक आए हो, तब मैं आप पर पूरा

भरोसा करती हूं कि आप अपने वचनों को जरूर निभाओगे…’’ फिर कुछ सोच कर श्यामा ने पूछा, ‘‘आप ने कुछ खाया तो होगा नहीं?’’

‘‘नहीं, कुछ भी नहीं खाया. सुबह कालेज जाते समय खाया था, उस के बाद मुरली की दुकान पर एक कप चाय पी थी. मु?ो बहुत भूख लगी है,’’ भूख और ठंड का असर घना के चेहरे से साफ ?ालक रहा था.

‘‘क्या करूं? रोटी और आलू की सब्जी बची हुई है, पर मैं आप को खाने को दे भी नहीं सकती.’’

‘‘अरे, लाओ न फिर.’’

‘‘यह ठीक नहीं होगा. एक अछूत के घर में ब्राह्मण भोजन करेगा, यह नामुमकिन है. ऐसा नहीं हो सकता.’’

‘‘मैं तो भूख से मरा जा रहा हूं और तुम्हें छुआछूत की पड़ी है.’’

‘‘तुम्हारा धर्म बिगड़ जाएगा. अगर ब्राह्मणों को पता चल गया, तो गजब हो जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साथ जीनेमरने के लिए मैं ने आज इतना बड़ा जोखिम उठाया है. अब जबकि तुम्हारे हाथ का बनाया ही जिंदगीभर खाना है, तब आज की रात परहेज क्यों? और तुम तो जानती हो कि मैं जातपांत, छुआछूत में जरा भी यकीन नहीं करता हूं.’’

‘‘खाओगे?’’ श्यामा ने डरे मन

से पूछा.

‘‘हां, जरूर खाऊंगा. तुम लाओ तो सही.’’

‘‘चलो फिर, रसोईघर में चलो, वहीं गरमागरम खिलाऊंगी…’’ फिर कुछ सोच कर वह बोली, ‘‘अच्छा, मैं यहीं पर लाती हूं. बाहर बहुत ठंड है.’’

श्यामा रसोईघर से खाना लाने चली गई. घना भविष्य के तानेबाने बुनने में खो गया. श्यामा थोड़ी ही देर में सब्जीरोटी ले कर आ गई. घना रोटी खाने लगा.

श्यामा को घना की इस हालत पर तरस आ रहा था. वह घना को देख रही थी और सोच रही थी, ‘यह मु?ो कितना चाहता है? एक ब्राह्मण का बेटा हो कर किस तरह अपने पुरखों के बनाए उसूलों को ताक पर रख कर एक अछूत के घर पर अपने पेट की भूख मिटा रहा है. इस बर्फीली रात में किस तरह भयानक जंगल से हो कर मेरे दरवाजे पर प्यार की भीख मांगने आया है,’ उस का सहज और सरल मन पिघल गया.

सुबह होने से पहले ही घना श्यामा के घर से निकल गया था. लेकिन अब उस के मन में एक उमंग थी, एक जोश था. वह सोचने लगा, ‘घर में कोई भी बहाना बना दूंगा.’

गांव के बीचोंबीच एक छोटी नदी बहती थी. घना ने उस नदी में हाथमुंह धोए और अपने घर की ओर चल पड़ा.

अब घना अकसर रात में बहुत ही सावधानी के साथ श्यामा के घर जाने लगा. दोनों अपनी भावी जिंदगी के बारे में खूब बातें करते, योजनाएं बनाते. इस बीच जब रिजल्ट निकला, तो घना फर्स्ट डिविजन के साथ अपने कालेज में अव्वल आया था. श्यामा की भी फर्स्ट डिविजन आई थी. दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था.

अपने मामा की सलाह पर घना ने दिल्ली में एक साल के कंप्यूटर कोर्स में दाखिला ले लिया. इस बीच घना जब भी गांव आता, दोनों सावधानी से मिलते रहे.

श्यामा ने एमए का पहला साल भी अच्छे नंबरों से पास कर लिया. घना का कंप्यूटर का कोर्स भी पूरा हो गया था. एक कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई. नईनई नौकरी थी, इसलिए वह दिल्ली में बहुत मसरूफ हो गया.

श्यामा ने अब की बार भी बहुत मेहनत की थी, इसलिए उस ने एमए भी फर्स्ट डिविजन से पास किया थी.

श्यामा को लगा कि अब उस के सपने सच होने वाले हैं. वह बहुत

खुश थी. उस के पिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए जल्दबाजी करने लगे, जबकि श्यामा इस बात से बहुत बेचैन थी.

काफला गांव का शिवप्रसाद उर्फ शिबी घना का दोस्त था. वह श्यामा और घना की प्रेम कहानी का एकमात्र गवाह भी था.

शिबी कई बार घना और श्यामा का संदेशवाहक भी रह चुका था, इसलिए श्यामा ने शिबी से अपनी चिंता घना तक पहुंचाने को कहा और घना को तुरंत गांव आने के लिए कहलवाया.

ऋषिकेश और घनसाली के रास्ते पर घनसाली से 5 किलोमीटर पहले भिलंगना नदी के तट पर पिलखी के पिलखेश्वर महादेव के मंदिर में बैसाखी के दिन एक विशाल मेला लगता है. घना इस मेले में श्यामा से मिलने के लिए आया था. वे दोनों इधरउधर की बातें करते हुए मेले से दूर सीढ़ीनुमा खेतों के किनारे जंगल में एक बुरांस के पेड़ के नीचे बैठ गए.

जंगल में सन्नाटा था. दूर नीचे सड़क पर कभीकभार किसी गाड़ी के गूंजने की आवाज आ जाती थी. चीड़ के पेड़ों से हवा छन कर सनसन की आवाज करती हुई बह रही थी और घाटी में बह रही भिलंगना नदी की आवाज से अपनी आवाज मिला रही थी.

धूप अभी भी सुहावनी थी, पर माहौल में बेखुदी का सा आलम था. घना बहुत ही उदास और खोएखोए मन से श्यामा को देख रहा था.

‘‘तुम कैसी हो श्यामा?’’ घना ने बात शुरू की, लेकिन उस के चेहरे पर निराशा झलक रही थी.

आज घना के चेहरे पर श्यामा से मिलने की कोई चमक नजर नहीं आ रही थी. वह पहले की तरह चंचल नहीं लग रहा था.

‘‘ठीक हूं, आप सुनाओ. जब से आप की नौकरी लगी है, आप तो हमारे लिए दुर्लभ जीव हो गए हैं,’’ श्यामा ने शिकायत भरे लहजे में कहा था, पर वह आज बहुत खुश थी, क्योंकि घना को देखते ही वह मानो सारी चिंताओं से छुटकारा पा गई थी.

‘‘अच्छा हुआ, आप ठीक समय पर आ गए. आप को पता है कि पिताजी मेरा रिश्ता एक जगह पक्का कर रहे हैं. मुझे और लड़के को मिलाने भर की देर है. मैं कई दिनों से टाल रही हूं. मैं आप का ही इंतजार कर रही थी. अब आगे का प्लान आज ही तैयार करना है,’’ कह कर उस ने घना की ओर देखा. घना दूर कहीं अपने में ही खोया हुआ था.

‘‘सुन रहे हो… कहां खो गए हो?’’

‘‘काश, खो पाता,’’ घना ने बहुत ही दुखी मन से कहा. ‘‘यह भावुक होने का समय नहीं है. सामने हमारी मंजिल है, बस आगे बढ़ने की देरी है. अब हमारे सपने सच होने वाले हैं,’’ श्यामा ने चुलबुले मन से कहा.

‘‘काश, सच हो पाते.’’

‘‘अब आप ऐन मौके पर ऐसा क्यों बोले जा रहे हैं? आप अब अपने पैरों पर खड़े हो और हम ने जो ख्वाब देखे थे, वे सच होने के लिए हमें देख रहे हैं,’’ श्यामा ने हैरान हो कर कहा.

‘‘अपने पैरों पर तो मैं जरूर खड़ा हूं, पर… पर जिन्होंने इन पैरों पर खड़ा होने के लायक बनाया है, मैं उन का क्या करूं?’’

‘‘क्या मतलब है आप का?’’

‘‘मेरे घर वालों ने भी मेरे लिए एक रिश्ता पक्का कर दिया है.’’

‘‘आप ने मना नहीं किया?’’ श्यामा ने घबराहट में पूछा.

‘‘मैं ने कहा था कि मैं ने अपने लिए एक दलित लड़की पसंद कर ली है और मैं उसी से शादी करूंगा. पर यह सुनते ही घर में भूचाल आ गया था, जैसे घर में कोई मर गया हो. वे गांवबिरादरी की बात करने लगे. मां अपने दूध की कसम देने लगीं. हम कहीं के नहीं रहेंगे और दहाड़ें मारमार कर रोने लगीं.’’

‘‘लेकिन यह सब तो होना ही था. इस की तो हमें पहले से ही जानकारी थी. हम इस ऊंचनीच की दुनिया से दूर अपना घर बसाएंगे. हम ने यही ख्वाब तो देखे थे. और अब तो आप अपने पैरों पर खड़े भी हो गए हो. मुझे भी कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘श्यामा, आज तो हम चले जाएंगे, पर अपनी जड़ों से कट कर हम कब तक अलग रह पाएंगे. कभी न कभी तो हमें यहां वापस आना ही पड़ेगा, और तब… क्या ये लोग हमें भूल जाएंगे? क्या हमें चैन से जीने देंगे?

‘‘मैं भी चाहता था कि हमारे सपने सच हों, पर नदी में रह कर मगर से बैर भी तो नहीं कर सकते. अब भलाई इसी में है कि हम एकदूसरे को भूल जाएं और…’’

‘‘और क्या? आप को यह सब पहले नहीं सूझा था. घना, आप उस रात जिस बहादुरी से मेरे घर प्यार की भीख मांगने आए थे, मैं आप की उस बहादुरी की कायल थी. मैं मरमिटी थी आप पर उस दिन. उस दिन मुझे लगा था कि आप जरूर समाज की इन सड़ीगली रीतियों के खिलाफ लड़ोगे. मुझे क्या पता था कि वह आप की बहादुरी नहीं, बल्कि पागलपन था.

‘‘अच्छा हुआ कि समय से पहले ही आप की औकात का पता चल गया. कितना भरोसा किया था मैं ने आप पर. मैं आप को सामाजिक बुराइयों से लड़ने वाला एक शेर समझती थी, पर आप तो कायर हो. आप ने मेरे साथ विश्वासघात किया है.’’

घना अपराधी की तरह जमीन पर नजरें गड़ाए सुनता रहा. श्यामा के लिए अब वहां पर ठहरना मुश्किल हो गया था. उस ने नफरत से घना की ओर देखा और तेज कदमों से वहां से चली गई.

श्यामा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही थी. वह मेले के बजाय सीधे अपने घर चली गई. उस ने दरवाजा बंद किया. वह आज खूब रोना चाहती थी.

शाम को श्यामा की मां ने उसे रोटी खाने के लिए उठाया, ‘‘श्यामा उठ, रोटी खा ले.’’

‘‘नहीं मां, मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘अरे बेटी, एक रोटी तो खा ले. भूखे पेट सोना अच्छा नहीं होता. कल लड़के वाले भी तुझे देखने आ रहे हैं,’’ मां ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

श्यामा न चाहते हुए भी उठी. उस ने मां का दिल रखने के लिए आधी रोटी खाई और फिर बिस्तर पर पड़ गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. घना के शब्दों से उसे इतनी पीड़ा हो रही थी, मानो उस के कानों में घना के शब्द नहीं, बल्कि गरमगरम सीसा पिघला कर डाला गया हो. उस का मन घना के लिए नफरत से  भर गया.

सुबह जब श्यामा की नींद खुली, तो धूप खिड़की के अंदर आ चुकी थी. उस ने एक अंगड़ाई ली और झटके के साथ पिछली बातों को भुला कर अपनी जिंदगी से दूर फेंकते हुए नए दिन का स्वागत करने के लिए अपने कमरे से बाहर निकल गई.

लड़के वाले दोपहर से पहले ही आ गए थे. उन का स्वागतसत्कार होने लगा. श्यामा मिठाई और चाय ले कर आई. उस ने सभी मेहमानों का स्वागत किया और मां के इशारे से वहीं पर बैठ गई.

श्यामा देखने में खूबसूरत तो थी ही, कदकाठी भी ठीक थी और सब से

बड़ी बात तो यह कि वह पढ़ीलिखी भी खूब थी.

बाद में लड़के के पिता ने कहा, ‘‘भाई, नया जमाना है. पढ़ेलिखे बच्चे हैं. उन्हें भी एकदूसरे के बारे में जानने का हक है.’’

वे सब बाहर चले गए. ‘‘मेरा नाम माधव है. सुना है, आप ने एमए किया है?’’ लड़के ने सन्नाटा तोड़ा.

‘‘जी हां, और मेरा नाम श्यामा है,’’ श्यामा ने सकुचाते हुए जवाब दिया.

‘‘एमए किस विषय में किया है

आप ने?’’

‘‘जी, समाजशास्त्र में.’’

‘‘मैं ने एमफार्मा किया है और मैं एक दवा कंपनी में सर्विस करता हूं,’’ कुछ देर रुक कर और श्यामा की आंखों में झांकते हुए वह हलके से मुसकराते हुए फिर बोला, ‘‘तो क्या विचार है? मेरा मतलब है कि आप मुझे अपने काबिल समझती हैं या नहीं?’’

‘‘जी, जैसा मेरे मांबाप उचित समझेंगे.’’

‘‘जी नहीं, मैं आप की बात से सहमत नहीं हूं. आप के मांबाप को जब ठीक लगा, तभी तो उन्होंने हमें घर पर बुलाया है, आप की पसंदनापसंद जानने के लिए.’’

‘‘जी, पसंदनापसंद…? इस गांव में यह पहली बार हो रहा है कि लड़के और लड़की को उन की पसंदनापसंद जानने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है, वरना आज तक तो लड़का ही लड़की देख कर चला जाता था और अपनी पसंद बता देता था.’’

‘‘कुछ बातें समाज में तेजी से बदल रही हैं. हां, तो बताइए कि आप ने मुझे पसंद किया या नहीं?’’

‘‘जी, मुझे तो आप पसंद हैं…’’ श्यामा ने शरमाते हुए कहा था, ‘‘पर आगे जैसा मेरे पिताजी कहेंगे.’’

‘‘हां, यह हुई न बात. अब ठीक है.’’

उस दिन बात पक्की हो गई और फिर चट मंगनी और पट ब्याह भी हो गया. श्यामा सबकुछ भूल कर अपनी नई जिंदगी में मसरूफ हो गई. इस तरह एक साल कब बीता, पता ही नहीं चला.

श्यामा एक सामाजिक संस्था से जुड़ गई थी. इस बीच माधव को 2 महीने की ट्रेनिंग के लिए विदेश जाना पड़ा. श्यामा बहुत दिनों से मायके नहीं गई थी, इसलिए वह मायके जाने की तैयारी करने लगी.

श्यामा अपने गांव आ गई. इस बीच उसे शिबी से पता चला कि घना पागल हो गया है. दिल्ली में उस के मामा ने उस की शादी किसी अमीर घर की लड़की से करवा दी थी.

बाद में पता चला कि उस की पत्नी का कालेज के दिनों में किसी ईसाई लड़के से चक्कर था. लड़की के घर वालों ने जबरदस्ती उस की शादी घना से करवा दी थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद उन में अनबन शुरू हो गई और एक दिन वह घर से गहनेपैसे ले कर उसी लड़के के साथ भाग गई.

घना यह सदमा सहन न कर सका और दिमागी संतुलन खो बैठा. उस के पिता उसे गांव ले आए. गांव में उस को ठीक करने के लिए कई देवीदेवताओं की पूजा होने लगी.

पागलपन के दौरे में घना लोगों को कभी जाति की खोखली बातों पर और कभी अंधविश्वास पर भाषण देता है, इसलिए लोग समझते हैं कि उस पर भूत का साया है. घना के बारे में सुन कर श्यामा को बहुत दुख हुआ, पर वह कर भी क्या सकती थी?

श्यामा को मायके में 2 महीने से भी ज्यादा समय हो गया था. उस का पति उसे लेने के लिए आ गया था. 1-2 दिन रहने के बाद जब वे लोग जा रहे थे, तो रास्ते में कुछ लोग घना को पकड़ कर अस्पताल ले जा रहे थे. शायद पागलखाने…

अचानक घना की नजर श्यामा पर पड़ी. उस ने गौर से श्यामा को देखा, वह श्यामा को पहचानने की कोशिश कर रह था. उस के साथ के लोग घना को खींच कर ले जा रहे थे. उस ने श्यामा की तरफ हाथ जोड़े, मानो वह श्यामा से माफी मांग रहा हो.

श्यामा फफक कर रो पड़ी. माधव ने उसे रोने दिया. वह जानता था कि श्यामा बहुत ही कोमल मन की है. वह किसी का बुरा नहीं देख सकती.

उन की बस का समय हो रहा था. थोड़ी देर बाद वह उठी और उस ने अपने पति से चलने को कहा.

दिल्ली पहुंच कर एक दिन माधव ने उस से घना के बारे में पूछा. श्यामा ने सच छिपाते हुए बस उस के शादी वाले किस्से को बता दिया.

माधव ने एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ.’’

‘‘हां, एक कायर के साथ इस से ज्यादा और क्या हो सकता था?’’ श्यामा ने बहुत ही लापरवाही से कहा.

माधव को श्यामा का यह जवाब अच्छा नहीं लगा.

‘‘हां, कायर नहीं तो और क्या? जो समस्याओं का सामना मजबूती से न कर सके, वह कायर नहीं तो और क्या है? कभी कालेज के दिनों में बड़ीबड़ी बातें करता था, जब समस्याओं का सामना करने का समय आया, तो हिम्मत ही जवाब दे गई.’’

‘‘परंतु अगर कभी तुम मुझे छोड़ कर चली गई, तो मैं भी पागल हो जाऊंगा,’’ माधव ने मजाक किया.

‘‘मुझ पर इतना ही विश्वास करते हो,’’ फिर एक पल के लिए शरारत भरी नजरों से माधव की ओर देख कर उस ने घुड़की दी, ‘‘कायर कहीं के.’’

इतना कह कर उस ने माधव की छाती पर सिर टिका दिया. माधव ने उसे अपनी बांहों में कस लिया.

तुम टूट न जाना : बचपन की दोस्त से ले कर दिल की रानी तक कौन थी वाणी

‘हैलो… हैलो… प्रेम, मुझे तुम्हें कुछ बताना है.’

‘‘क्या हुआ वाणी? इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’ फोन में वाणी की घबराई हुई आवाज सुन कर प्रेम भी परेशान हो गया.

‘प्रेम, तुम फौरन ही मेरे पास चले आओ,’ वाणी एक सांस में बोल गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो. मैं तुरंत तुम्हारे पास आ रहा हूं,’’ कह कर प्रेम ने फोन काट दिया. वह मोबाइल फोन जींस की जेब में डाल कर मोटरसाइकिल बाहर निकालने लगा.

वाणी और प्रेम के कमरे की दूरी मोटरसाइकिल से पार करने में महज 15 मिनट का समय लगता था. लेकिन जब कोई बहुत अपना परेशानी में अपने पास बुलाए तो यह दूरी मीलों लंबी लगने लगती है. मन में अच्छेबुरे विचार बिन बुलाए आने लगते हैं.

यही हाल प्रेम का था. वाणी केवल उस की क्लासमेट नहीं थी, बल्कि सबकुछ थी. बचपन की दोस्त से ले कर दिल की रानी तक.

दोनों एक ही शहर के रहने वाले थे और लखनऊ में एक ही कालेज से बीटैक कर रहे थे. होस्टल में न रह कर दोनों ने कमरे किराए पर लिए थे. लेकिन एक ही कालोनी में उन्हें कमरे किराए पर नहीं मिल पाए थे. उन की कोशिश जारी थी कि उन्हें एक ही घर में या एक ही कालोनी में किराए पर कमरे मिल जाएं, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा समय एकदूसरे के साथ गुजार सकें.

बहुत सी खूबियों के साथ वाणी में एक कमी थी. छोटीछोटी बातों को ले कर वह बहुत जल्दी परेशान हो जाती थी. उसे सामान्य हालत में आने में बहुत समय लग जाता था. आज भी उस ने कुछ देखा या सुना होगा. अब वह परेशान हो रही होगी. प्रेम जानता था. वह यह भी जानता था कि ऐसे समय में वाणी को उस की बहुत जरूरत रहती है.

जैसे ही प्रेम वाणी के कमरे में घुसा, वाणी उस से लिपट कर सिसकियां भरने लगी. प्रेम बिना कुछ पूछे उस के सिर पर हाथ फेरने लगा. जब तक वह सामान्य नहीं हो जाती कुछ कह नहीं पाएगी.

वाणी की इस आदत को प्रेम बचपन से देखता आ रहा था. परेशान होने पर वह मां के आंचल से तब तक चिपकी रहती थी, जब तक उस के मन का डर न निकल जाता था. उस की यह आदत बदली नहीं थी. बस, मां का आंचल छूटा तो अब प्रेम की चौड़ी छाती में सहारा पाने लगी थी.

काफी देर बाद जब वाणी सामान्य हुई तो प्रेम उसे कुरसी पर बिठाते हुए बोला, ‘‘अब बताओ… क्या हुआ?’’

‘‘प्रेम, सामने वाले अपार्टमैंट्स में सुबह एक लव कपल ने कलाई की नस काट कर खुदकुशी कर ली. दोनों अलगअलग जाति के थे. अभी उन्होंने दुनिया देखनी ही शुरू की थी. लड़की

17 साल की थी और लड़का 18 साल का…’’ एक ही सांस में कहती चली गई वाणी. यह उस की आदत थी. जब वह अपनी बात कहने पर आती तो उस के वाक्यों में विराम नहीं होता था.

‘‘ओह,’’ प्रेम धीरे से बोला.

‘‘प्रेम, क्या हमें भी मरना होगा? तुम ब्राह्मण हो और मैं यादव. तुम्हारे यहां प्याजलहसुन भी नहीं खाया जाता. मेरे घर अंडामुरगा सब चलता है. क्या तुम्हारी मां मुझे कबूल करेंगी?’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो वाणी? मेरी मां तुम्हें कितना प्यार करती हैं. तुम जानती हो,’’ प्रेम ने उसे समझाने की भरपूर कोशिश की.

‘‘पड़ोसी के बच्चे को प्यार करना अलग बात होती?है, लेकिन दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाने में सोच बदल जाती?है,’’ वाणी ने कहा.

वाणी की बात अपनी जगह सही थी. जो रूढि़वादिता, जातिधर्म के प्रति आग्रह इनसानों के मन में समाया हुआ है, वह निकाल फेंकना इतना आसान नहीं है. वह भी मिडिल क्लास सोच वाले लोगों के लिए.

प्रेम की मां भी अपने पंडित होने का दंभ पाले हुए थीं. पिता जनेऊधारी थे. कथा भी बांचते थे. कुलमिला कर घर का माहौल धार्मिक था. लेकिन वाणी के घर से उन के संबंध काफी घरेलू थे. एकदूसरे के घर खानापीना भी रहता था. यही वजह थी कि वाणी और प्रेम करीब आते गए थे. इतने करीब कि वे अब एकदूसरे से अलग होने की भी नहीं सोच सकते थे.

प्रेम को खामोश देख कर वाणी ने दोबारा कहा, ‘‘क्या हमारे प्यार का अंत भी ऐसे ही होगा?’’

‘‘नहीं, हमारा प्यार इतना भी कमजोर नहीं है. हम नहीं मरेंगे,’’ प्रेम वाणी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला.

‘‘बताओ, तुम्हारी मां इस रिश्ते को कबूल करेंगी?’’ वाणी ने फिर से पूछा.

‘‘यह मैं नहीं कह सकता लेकिन हम अपने प्यार को खोने नहीं देंगे,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘आजकल लव कपल बहुत ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं. आएदिन ऐसी खबरें छपती रहती हैं. मुझे भी डर लगता है,’’ वाणी अपना हाथ प्रेम के हाथ पर रखते हुए बोली. वह शांत नहीं थी.

‘‘तुम ने यह भी पढ़ा होगा कि उन की उम्र क्या थी. वे नाबालिग थे. वे प्यार के प्रति नासमझ होते हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए. हर चीज का एक समय होता है. समय से पहले किया गया काम कामयाब कहां होता है. पौधा भी लगाओ तो बड़ा होने में समय लगता है. तब फल आता है. अगर फल भी कच्चा तोड़ लो तो बेकार हो जाता है. उस पर भी आजकल के बच्चे प्यार की गंभीरता को समझ नहीं पाते हैं. एकदूसरे के साथ डेटिंग, फिर शादी. पर वे शादी के बाद की जिम्मेदारियां नकार जाते हैं.’’

‘‘यानी हम लोग पहले पढ़ाई पूरी करें, फिर नौकरी, उस के बाद शादी.’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिन, क्या?’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

अब प्रेम को पूरी बात समझ में आई कि वाणी का डर उस की मां, समाज और जातपांत को ले कर था. थोड़ी देर चुप रह कर वह बोला, ‘‘कोई भी बदलाव विरोध के बिना वजूद में आया है भला? मां के मन में भी यह बदलाव आसानी से नहीं आएगा. मैं जानता हूं. लेकिन मां में एक अच्छी बात है. वे कोई भी सपना पहले से नहीं संजोतीं.

‘‘उन का मानना है कि समय बदलता रहता है. समय के मुताबिक हालात भी बदलते रहते हैं. पहले से देखे हुए सपने बिखर सकते हैं. नए सपने बन सकते हैं, इसलिए वे मेरे बारे में कोई सपना नहीं बुनतीं. बस वे यही चाहती हैं कि मैं पढ़लिख कर अच्छी नौकरी पाऊं और खुश रहूं.

‘‘वे मुझे पंडिताई से दूर रखना चाहती हैं. उन का मानना है कि क्यों हम धर्म के नाम पर पैसा कमाएं जबकि इनसानों को जोकुछ मिलता है, वह उन के कर्मों के मुताबिक ही मिलता है. क्या वे गलत हैं?’’

‘‘नहीं. विचार अच्छे हैं तुम्हारी मां के. लेकिन विचार अकसर हकीकत की खुरदरी जमीन पर ढह जाते हैं,’’ वाणी बोली.

‘‘शायद, तुम मेरे और अपने रिश्ते की बात को ले कर परेशान हो,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘हां, जब भी कोई लव कपल खुदकुशी करता है तो मैं डर जाती हूं. अंदर तक टूट जाती हूं.’’

‘‘लेकिन, तुम तो यह मानती हो कि असली प्यार कभी नहीं मरता है और हमारा प्यार तो विश्वास पर टिका है. इसे शादी के बंधन या जिस्मानी संबंधों तक नहीं रखा जा सकता है.’’

तब तक प्रेम चाय बनाने लगा था. वह चाय की चुसकियों में वाणी की उलझनों को पी जाना चाहता था. हमेशा ऐसा ही होता था. जब भी वाणी परेशान होती, वह चाय खुद बनाता था. चाय को वह धीरेधीरे तब तक पीता रहता था, जब तक वाणी मुसकरा कर यह न कह दे, ‘‘चाय को शरबत बनाओगे क्या?’’

जब पे्रम को यकीन हो जाता कि वाणी नौर्मल?है, तब चाय को एक घूंट में खत्म कर जाता.

‘‘मैं अपनी थ्योरी पर आज भी कायम हूं. मैं ने तुम्हें प्यार किया है. करती रहूंगी. चाहे हमारी शादी हो पाए या नहीं. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या…?’’ चाय का कप वाणी को थमाते हुए प्रेम ने पूछा.

‘‘लड़की हूं न, इसलिए अकसर शादी, घरपरिवार के सपने देख जाती हूं.’’

‘‘मैं भी देखता हूं… सब को हक है सपने देखने का. पर मुझे पक्का यकीन है कि ईमानदारी से देखे गए सपने भी सच हो जाते हैं.’’

‘‘क्या हमारे भी सपने सच होंगे…?’’ वाणी चाय का घूंट भरते हुए बोली.

‘‘हो भी सकते हैं. मैं मां को समझाने को कोशिश करूंगा. हो सकता है, मां हम लोगों का प्यार देख कर मान जाएं.’’

‘‘न मानीं तो…?’’ यह पूछते हुए वाणी ने अपनी नजरें प्रेम के चेहरे पर गढ़ा दीं.

‘‘अगर वे न मानीं तो हम अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे. हमारे प्यार को रिश्ते का नाम नहीं दिया जा सकता तो मिटाया भी नहीं जा सकता. हम टूटेंगे नहीं.

‘‘तुम वादा करो कि अपनी जान खोने जैसा कोई वाहियात कदम नहीं उठाओगी,’’ कहते हुए प्रेम ने अपना दाहिना हाथ वाणी की ओर बढ़ा दिया.

‘‘हम टूटेंगे नहीं, जान भी नहीं देंगे. इंतजार करेंगे समय का, एकदूसरे का,’’ वाणी प्रेम का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर भींचती चली गई, कभी साथ न छोड़ने के लिए.

रूह का स्पंदन: क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

लव इन मालगाड़ी: मालगाड़ी में पनपा मंजेश और ममता का प्यार

देश में लौकडाउन का ऐलान हो गया, सारी फैक्टरियां बंद हो गईं, मजदूर घर पर बैठ गए. जाएं भी तो कहां. दिहाड़ी मजदूरों की शामत आ गई. किराए के कमरों में रहते हैं, कमरे का किराया भी देना है और राशन का इंतजाम भी करना है. फैक्टरियां बंद होने पर मजदूरी भी नहीं मिली.

मंजेश बढ़ई था. उसे एक कोठी में लकड़ी का काम मिला था. लौकडाउन में काम बंद हो गया और जो काम किया, उस की मजदूरी भी नहीं मिली.

मालिक ने बोल दिया, ‘‘लौकडाउन के बाद जब काम शुरू होगा, तभी मजदूरी मिलेगी.’’

एक हफ्ते घर बैठना पड़ा. बस, कुछ रुपए जेब में पड़े थे. उस ने गांव जाने की सोची कि फसल कटाई का समय है, वहीं मजदूरी मिल जाएगी. पर समस्या गांव पहुंचने की थी, दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास गांव है. रेल, बस वगैरह सब बंद हैं.

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तभी उस के साथ काम करने वाला राजेश आया, ‘‘मंजेश सुना है कि आनंद विहार बौर्डर से स्पैशल बसें चल रही हैं. फटाफट निकल. बसें सिर्फ आज के लिए ही हैं, कल नहीं मिलेंगी.’’

इतना सुनते ही मंजेश ने अपने बैग में कपड़े ठूंसे, उसे पीठ पर लाद कर राजेश के साथ पैदल ही आनंद विहार बौर्डर पहुंच गया.

बौर्डर पर अफरातफरी मची हुई थी. हजारों की तादाद में उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले प्रवासी मजदूर अपने परिवार के संग बेचैनी से बसों के इंतजार में जमा थे.

बौर्डर पर कोई बस नहीं थी. एक अफवाह उड़ी और हजारों की तादाद में मजदूर सपरिवार बौर्डर पर जमा हो गए. दोपहर से शाम हो गई, कोई बस नहीं आई. बेबस मजदूर पैदल ही अपने गांव की ओर चल दिए.

लोगों को पैदल जाता देख मंजेश और राजेश भी अपने बैग पीठ पर लादे पैदल ही चल दिए.

‘‘राजेश, सीतापुर 500 किलोमीटर दूर है और अपना गांव वहां से 3 किलोमीटर और आगे, कहां तक पैदल चलेंगे और कब पहुंचेंगे…’’ चलतेचलते मंजेश ने राजेश से कहा.

‘‘मंजेश, तू जवान लड़का है. बस 10 किलोमीटर के सफर में घबरा गया. पहुंच जाएंगे, चिंता क्यों करता है. यहां सवारी नहीं है, आगे मिल जाएगी. जहां की मिलेगी, वहां तक चल पड़ेंगे.’’

मंजेश और राजेश की बात उन के साथसाथ चलते एक मजदूर परिवार ने सुनी और उन को आवाज दी, ‘‘भैयाजी क्या आप भी सीतापुर जा रहे हैं?’’

सीतापुर का नाम सुन कर मंजेश और राजेश रुक गए. उन के पास एक परिवार आ कर रुक गया, ‘‘हम भी सीतापुर जा रहे हैं. किस गांव के हो?’’

मंजेश ने देखा कि यह कहने वाला आदमी 40 साल की उम्र के लपेटे में होगा. उस की पत्नी भी हमउम्र लग रही थी. साथ में 3 बच्चे थे. एक लड़की तकरीबन 18 साल की, उस से छोटा लड़का तकरीबन 15 साल का और उस से छोटा लड़का तकरीबन 13 साल का.

‘‘हमारा गांव प्रह्लाद है, सीतापुर से 3 किलोमीटर आगे है,’’ मंजेश ने अपने गांव का नाम बताया और उस आदमी से उस के गांव का नाम पूछा.

‘‘हमारा गांव बसरगांव है. सीतापुर से 5 किलोमीटर आगे है. हमारे गांव आसपास ही हैं. एक से भले दो. बहुत लंबा सफर है. सफर में थोड़ा आराम रहेगा.’’

‘‘चलो साथसाथ चलते हैं. जब जाना एक जगह तो अलगअलग क्यों,’’ मंजेश ने उस से नाम पूछा.

‘‘हमारा नाम भोला प्रसाद है. ये हमारे बीवीबच्चे हैं.’’

मंजेश की उम्र 22 साल थी. उस की नजर भोला प्रसाद की बेटी पर पड़ी और पहली ही नजर में वह लड़की मंजेश का कलेजा चीर गई. मंजेश की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी.

‘‘भोला अंकल, आप ने बच्चों के नाम तो बताए ही नहीं?’’ मंजेश ने अपना और राजेश का नाम बताते हुए पूछा.

‘‘अरे, मंजेश नाम तो बहुत अच्छा है. हमारी लड़की का नाम ममता है. लड़कों के नाम कृष और अक्षय हैं.’’

मंजेश को लड़की का नाम जानना था, ममता. बहुत बढि़या नाम. उस का नाम भी म से मंजेश और लड़की का नाम भी म से ममता. नाम भी मैच हो गए.

मंजेश ममता के साथसाथ चलता हुआ तिरछी नजर से उस के चेहरे और बदन के उभार देख रहा था. उस के बदन के आकार को देखता हुआ अपनी जोड़ी बनाने के सपने भी देखने लगा.

मंजेश की नजर सिर्फ ममता पर टिकी हुई थी. ममता ने जब मंजेश को अपनी ओर निहारते देखा, उस के दिल में भी हलचल होने लगी. वह भी तिरछी नजर से और कभी मुड़ कर मंजेश को देखने लगी.

मंजेश पतले शरीर का लंबे कद का लड़का है. ममता थोड़े छोटे कद की, थोड़ी सी मोटी भरे बदन की लड़की थी. इस के बावजूद कोई भी उस की ओर खिंच जाता था.

चलतेचलते रात हो गई. पैदल सफर में थकान भी हो रही थी. सभी सड़क के किनारे बैठ गए. अपने साथ घर का बना खाना खाने लगे. कुछ देर के लिए सड़क किनारे बैठ कर आराम करने लगे.

जब दिल्ली से चले थे, तब सैकड़ों की तादाद में लोग बड़े जोश से निकले थे, धीरेधीरे सब अलगअलग दिशाओं में बंट गए. कुछ गिनती के साथी अब मंजेश के साथ थे. दूर उन्हें रेल इंजन की सीटी की आवाज सुनाई दी. मंजेश और राजेश सावधान हो कर सीटी की दिशा में कान लगा कर सुनने लगे.

‘‘मंजेश, रेल चल रही है. यह इंजन की आवाज है,’’ राजेश ने मंजेश से कहा.

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‘‘वह देख राजेश, वहां कुछ रोशनी सी है. रेल शायद रुक गई है. चलो, चलते हैं,’’ सड़क के पास नाला था, नाला पार कर के रेल की पटरी थी, वहां एक मालगाड़ी रुक गई थी.

‘‘राजेश उठ, इसी रेल में बैठते हैं. कहीं तो जाएगी, फिर आगे की आगे सोचेंगे. भोला अंकल जल्दी करो. अभी रेल रुकी हुई है, पकड़ लेते हैं,’’ मंजेश के इतना कहते ही सभी गोली की रफ्तार से उठे और रेल की ओर भागे. उन को देख कर आतेजाते कुछ और मजदूर भी मालगाड़ी की ओर लपके. जल्दबाजी में सभी नाला पार करते हुए मालगाड़ी की ओर दौड़े, कहीं रेल चल न दे.

ममता नाले का गंदा पानी देख थोड़ा डर गई. मंजेश ने देखा कि कुछ दूर लकड़ी के फट्टों से नाला पार करने का रास्ता है. उस ने ममता को वहां से नाला पार करने को कहा. लकड़ी के फट्टे थोड़े कमजोर थे, ममता उन पर चलते हुए डर रही थी.

मंजेश ने ममता का हाथ पकड़ा और बोला, ‘‘ममता डरो मत. मेरा हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आगे बढ़ो.’’

मंजेश और ममता एकदूसरे का हाथ थामे प्यार का एहसास करने लगे.

राजेश, ममता का परिवार सभी तेज रफ्तार से मालगाड़ी की ओर भाग रहे थे. इंजन ने चलने की सीटी बजाई. सभी मालगाड़ी पर चढ़ गए, सिर्फ ममता और मंजेश फट्टे से नाला पार करने के चलते पीछे रह गए थे. मालगाड़ी हलकी सी सरकी.

‘‘ममता जल्दी भाग, गाड़ी चलने वाली है,’’ ममता का हाथ थामे मंजेश भागने लगा. मालगाड़ी की रफ्तार बहुत धीमी थी. मंजेश मालगाड़ी के डब्बे पर लगी सीढ़ी पर खड़ा हो गया और ममता का हाथ पकड़ कर सीढ़ी पर खींचा.

एक ही सीढ़ी पर दोनों के जिस्म चिपके हुए थे, दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. दोनों धीरेधीरे हांफने लगे.

तभी एक झटके में मालगाड़ी रुकी. उस झटके से दोनों चिपक गए, होंठ चिपक गए, जिस्म की गरमी महसूस करने लगे. गाड़ी रुकते ही मंजेश सीढ़ी चढ़ कर डब्बे की छत पर पहुंच गया. ममता को भी हाथ पकड़ कर ऊपर खींचा.

मालगाड़ी धीरेधीरे चलने लगी. मालगाड़ी के उस डब्बे के ऊपर और कोई नहीं था. राजेश और ममता के परिवार वाले दूसरे डब्बों के ऊपर बैठे थे.

भोला प्रसाद ने ममता को आवाज दी. ममता ने आवाज दे कर अपने परिवार को निश्चित किया कि वह पीछे उसी मालगाड़ी में है.

मालगाड़ी ठीकठाक रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. रात का अंधेरा बढ़ गया था. चांद की रोशनी में दोनों एकदूसरे को देखे जा रहे थे. ममता शरमा गई. उस ने अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया.

‘‘ममता, दिल्ली में कुछ काम करती हो या फिर घर संभालती हो?’’ एक लंबी चुप्पी के बाद मंजेश ने पूछा.

‘‘घर बैठे गुजारा नहीं होता. फैक्टरी में काम करती हूं,’’ ममता ने बताया.

‘‘किस चीज की फैक्टरी है?’’

‘‘लेडीज अंडरगारमैंट्स बनाने की. वहां ब्रापैंटी बनती हैं.’’

‘‘बाकी क्या काम करते हैं?’’

‘‘पापा और भाई जुराब बनाने की फैक्टरी में काम करते हैं. मम्मी और मैं एक ही फैक्टरी में काम करते हैं. सब से छोटा भाई अभी कुछ नहीं करता है, पढ़ रहा है. लेकिन पढ़ाई में दिल नहीं लगता है. उस को भी जुराब वाली फैक्टरी में काम दिलवा देंगे.

‘‘तुम क्या काम करते हो, मेरे से तो सबकुछ पूछ लिया,’’ ममता ने मंजेश से पूछा.

‘‘मैं कारपेंटर हूं. लकड़ी का काम जो भी हो, सब करता हूं. अलमारी, ड्रैसिंग, बैड, सोफा, दरवाजे, खिड़की सब बनाता हूं. अभी एक कोठी का टोटल वुडवर्क का ठेका लिया है, आधा काम किया है, आधा पैंडिंग पड़ा है.’’

‘‘तुम्हारे हाथों में तो बहुत हुनर है,’’ ममता के मुंह से तारीफ सुन कर मंजेश खुश हो गया.

चलती मालगाड़ी के डब्बे के ऊपर बैठेबैठे ममता को झपकी सी आ गई और उस का बदन थोड़ा सा लुढ़का, मंजेश ने उस को थाम लिया.

‘‘संभल कर ममता, नीचे गिर सकती हो.’’

मंजेश की बाहों में अपने को पा कर कुछ पल के लिए ममता सहम गई, फिर अपने को संभालती हुई उस ने नीचे

झांक कर देखा ‘‘थैंक यू मंजेश, तुम ने बांहों का सहारा दे कर बचा लिया,

वरना मेरा तो चूरमा बन जाता.’’

‘‘ममता, एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’

‘‘तुम मुझे अच्छी लग रही हो.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता चुप रही. वह मंजेश का मतलब समझ गई थी. चुप ममता से मंजेश ने उस के दिल की बात पूछी, ‘‘मेरे बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’

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ममता की चुप्पी पर मंजेश मुसकरा दिया, ‘‘मैं समझ गया, अगर पसंद नहीं होता, तब मना कर देती.’’

‘‘हां, देखने में तो अच्छे लग रहे हो.’’

‘‘मेरा प्यार कबूल करती हो?’’

‘‘कबूल है.’’

मंजेश ने ममता का हाथ अपने हाथों में लिया, आगे का सफर एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले कट गया.

लखनऊ स्टेशन पर मंजेश, ममता, राजेश और ममता का परिवार मालगाड़ी से उतर कर आगे सीतापुर के लिए सड़क के रास्ते चल पड़ा.

सड़क पर पैदल चलतेचलते मंजेश और ममता मुसकराते हुए एकदूसरे को ताकते जा रहे थे.

ममता की मां ने ममता को एक किनारे ले जा कर डांट लगाई, ‘‘कोई लाजशर्म है या बेच दी. उस को क्यों घूर रही है, वह भी तेरे को घूर रहा?है. रात गाड़ी के डब्बे के ऊपर क्या किया?’’

‘‘मां, कुछ नहीं किया. मंजेश अच्छा लड़का है.’’

‘‘अच्छा क्या मतलब?’’ ममता की मां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

ममता और मां के बीच की इस बात को मंजेश समझ गया. वह भोला प्रसाद के पास जा कर अपने दिल की बात कहने लगा, ‘‘अंकल, हमारे गांव आसपास हैं. आप मेरे घर चलिए, मैं अपने परिवार से मिलवाना चाहता हूं.’’

मंजेश की बात सुन कर भोला प्रसाद बोला, ‘‘वह तो ठीक है, पर क्यों?

‘‘अंकल, मुझे ममता पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. हमारे परिवार मिल कर तय कर लें, मेरी यही इच्छा है.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता की मां के तेवर ढीले हो गए और वे मंजेश के घर जाने को तैयार हो गए.

लौकडाउन जहां परेशानी लाया है, वहीं प्यार भी लाया है. मंजेश और ममता का प्यार मालगाड़ी में पनपा.

सभी पैदल मंजेश के गांव की ओर बढ़ रहे थे. ममता और मंजेश हाथ में हाथ डाले मुसकराते हुए एक नए सफर की तैयारी कर रहे थे.

एक इंच मुसकान : दीपिका-सलोनी की कशमश

‘‘अरे, कहां भागी जा रही हो?’’ दीपिका को तेजतेज कदमों से जाते हुए देख पड़ोस में रहने वाली उस की सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुए बोली.

‘‘मरने जा रही हूं,’’ दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

‘‘अरे वाह, मरने और इतना सजधन कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा,’’ सलोनी चुटकी लेते हुए बोली.

‘‘मैं परेशान हूं और तुझे मजाक सूझ रहा है,’’ दीपिका सलोनी को घूरते हुए बोली, ‘‘अभी मैं औफिस के लिए लेट हो रही हूं, तुझ से शाम को निबटूंगी.’’

‘‘अरे हुस्नेआरा, इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई एतराज न हो तो यह नाचीज उन के साथ चलना चाहती है,’’ सलोनी ने दीनहीन होने की ऐक्टिंग करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.

‘‘चल, बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली,’’ सलोनी की पीठ पर हलका सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली, ‘‘एक तू ही तो है, जो मेरा दुखदर्द समझती है.’’

बातोंबातों में दोनों पड़ोसन सहेलियां बसस्टैंड पहुंच गईं. कुछ ही देर में करोल बाग वाली बस आ गई.

एक तो औफिस टाइम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्कामुक्की के बीच दोनों सहेलियां बस में सवार हो गईं. यह अच्छा था कि 2 सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.

‘‘कुछ तो अच्छा हुआ,’’ कहते हुए दीपिका सलोनी का हाथ पकड़ कर झट से उस खाली बर्थ पर कर बैठ गई.

सलोनी ने पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों बोल रही है? चल, अब साफसाफ बता कि क्या हुआ…? और यह चांद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?’’

दीपिका बोली, ‘‘अरे, क्या बताऊं? घर में किसी को मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं है. मैं सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सब की सेवा करने वाली नौकरानी हूं.’’

‘‘अरे, इतना गुस्सा… क्यों, क्या हो गया?’’ सलोनी उसे प्यार से अपने से चिपकाते हुए बोली.

‘‘आज सुबह मैं थोड़ी ज्यादा देर तक क्या सो गई, घर का पूरा माहौल ही बिगड़ गया. देर हो जाने के चलते भागमभाग में मैं इन के लिए कपड़े निकालना भूल गई, तो महाशय तौलिया लपेटे ही तब तक बैठे रहे, जब तक कि मैं बाथरूम से निकल नहीं आई.

‘‘इस भागदौड़ के बीच इतना मुश्किल से जो नाश्ता बनाया, उसे भी बिना किए यह कहते हुए औफिस चले गए कि आज शर्टपैंट न होने के चलते तैयार होने में देरी हो गई.

‘‘इधर साहबजादे तरुण को आलूगोभी की सब्जी नाश्ते में दी, तो वे जनाब मुंह फुला कर बैठ गए कि रोजरोज एक ही तरह की सब्जी खातेखाते बोर हो गया हूं, मशरूम क्यों नहीं बनाई?

‘‘उधर, बिटिया रानी की रोज यही शिकायत रहती है कि आप रोज एक ही तरह की बहनजी स्टाइल की चोटी करती हो. मेरी फ्रैंड्स की मम्मियां रोज नएनए स्टाइल में उन के हेयर डिजाइन करती हैं.

‘‘बस, सब को अपनीअपनी पड़ी रहती है. कोई यह नहीं पूछता कि मैं ने नाश्ता किया या नहीं? टिफिन में क्या ले जा रही हूं? मेरी डै्रस कैसी है? कहीं मुझे लेट तो नहीं हो रहा है? सब को बस अपनीअपनी चिंता है,’’ कहतेकहते दीपिका की आंखों में आंसू भर गए.

‘‘अरे, परेशान मत हो मेरी ब्यूटी क्वीन, अव्वल तो तू खुद इतनी खूबसूरत है कि कुछ भी पहन ले तो भी हीरोइन ही लगेगी और घर के जो सारे लोग तुझ से फरमाइशें करते हैं, उस की वजह उन का तुझ से लगाव है. वे तुझ पर भरोसा करते है,’’ सलोनी प्यार से समझाते हुए बोली.

‘‘बसबस रहने दो. मैं सब समझती हूं. यह सब कहने की बात है. यहां मेरी जान भी जा रही होगी न, तो किसी न किसी को जरूर मुझ से कोई काम पड़ा होगा,’’ दीपिका का उबाल कम होने का नाम नहीं ले रहा था.

इसी बीच अगले स्टौप पर बस के रुकते ही उस के औफिस में डेली वेज पर काम करने वाली चपरासी कांति किसी तरह जगह बनाते हुए भी उस में दाखिल हो गई. लेडीज सीट की ओर पहुंच कर बस के हैंगिंग हुक को पकड़ कर वह खड़ी हो गई.

अभी वह आंचल से अपना पसीना पोंछ रही थी कि दीपिका ने पूछा, ‘‘अरे कांति, कैसी हो?’’

दीपिका की आवाज सुन कर कांति चौंक कर उस की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘‘अरे मैडम, आप भी इसी बस में… नमस्ते,’’ दीपिका को देख कर उस के चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मुसकान कुछ और खिल आई थी.

दीपिका बोली, ‘‘नमस्ते. तुम तो रोज 9 बजे दफ्तर पहुंच जाती हो, पर आज लेट कैसे?’’

कांति ने कहा, ‘‘दरअसल मैडम, आज से बेटे की 10वीं की बोर्ड परीक्षा शुरू हुई है. वह जिद कर रहा था कि सब के मम्मीपापा उन्हें छोड़ने एग्जाम सैंटर पर आएंगे, तो आप भी मेरे साथ चलिए. वह इतने लाड़ से बोल रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई. उसे पहुंचाने चली गई, इसलिए थोड़ी देर हो गई… सौरी.’’

दीपिका बोली, ‘‘अरे, कोई बात नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी. लेकिन एक बात बताओ, तुम्हारे पति भी तो बेटे के साथ जा सकते थे न?’’

अभी कांति कोई जवाब दे पाती कि दीपिका सलोनी की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘‘देखो, हर घर की यही कहानी है. औरत घर का भी काम करे और बाहर भी मरे और पति एक भी काम ऐक्स्ट्रा नहीं कर सकते, क्योंकि वे मर्द हैं.’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी बात नहीं है,’’ अभी कांति आगे कुछ और बोल पाती कि दीपिका ने कहा, ‘‘अब पति की तरफदारी करना छोड़ो. पति को हमेशा परमेश्वर मानने और उन की ज्यादतियों पर परदा डालने का ही यह नतीजा है कि उन की मनमानी बढ़ती जा रही है,’’ वह बिफरने सी लगी थी.

‘‘नहीं मैडम, मैं उन्हें बचा नहीं रही हूं. दरअसल, पिछले साल आटोरिकशा चलाते समय उन का बुरी तरह से एक्सीडैंट हो गया था, जिस में उन का दाहिना हिस्सा बुरी तरह खराब हो गया था, इसलिए बाहर के काम में उन्हें बहुत ही दिक्कत होती है. पर, वे घरेलू काम में मेरी पूरी मदद करते हैं और मुझे अपने परिवार के लिए कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है.’’

कांति की बात से हैरान दीपिका एकदम सन्नाटे में आ गई. दिव्यांग और बेरोजगार पति, छोटी सी तनख्वाह में पूरे परिवार का गुजारा करने वाली कांति क्या उस से कम चुनौतियों का सामना कर रही है, लेकिन एक इंच की मुसकान लिए घर और बाहर दोनों जगह का काम कितनी हंसीखुशी से संभाल रही है.

इधर कांति बोले जा रही थी, ‘‘मैडम, बच्चे और पति जब अपनी इच्छा और परेशानी मेरे सामने रखते हैं, तो मुझे लगता है कि मैं इस घर की धुरी हूं. उन का मुझ से कुछ उम्मीद रखना मुझे मेरे होने का अहसास कराता रहता है.’’

कांति की सहज बातों ने अनजाने में ही दीपिका के अंदर धधक रही गुस्से की आग को मीठी फुहार से बुझा दिया. सच में कांति ने कितनी आसानी से उसे समझा दिया था कि पति और बच्चों की फरमाइशें और उन का उस पर निर्भर होना उसे परेशान करना नहीं, बल्कि उस से जुड़े रहने की निशानी है.

एक पल के लिए दीपिका ने कल्पना कर यह देखा कि पति और बच्चे अपनाअपना काम करने में बिजी हैं. कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए न तो उस की चिरौरी कर रहा है और न ही कोई तुनक कर मुंह फुलाए बैठा है.

अभी कुछ पल पहले तक इन्हीं फरमाइशों से बुरी तरह खीझी हुई दीपिका का दिल इस कल्पना से ही घबरा उठा था. वह खुद से दृढ़तापूर्वक बोली, ‘‘चलो, आज से ही एक नई शुरुआत करते हैं.’’

पछतावे की बूंदें गुस्से और खीझ से उपजे उस की आंखों के सूखेपन को तर कर रही थीं. तभी उस के मोबाइल फोन की रिंगटोन बजी. देखा तो पति अश्विनी की काल थी. उस के ‘हैलो’ कहते ही वे बोले, ‘दीपू, आज सुबह सोते समय तुम बिलकुल इंद्रलोक की परी लग रही थीं. तुम्हें नींद से जगा कर मैं यह मौका खोना नहीं चाहता था.’

अश्विनी की बातें सुन कर इस भीड़ भरी बस में भी दीपिका के गाल शर्म से गुलाबी हो उठे. वह धीरे से बोली, ‘‘बसबस, ठीक है. शाम को समय से घर आ जाना. आज मैं आप के पसंद के केले के कोफ्ते और लच्छा परांठा बनाऊंगी और तरुण के लिए मशरूम… बाय.’’

अश्विनी ने कहा, ‘बाय स्वीटहार्ट.’

फोन रखते ही उस ने सलोनी के साथ मिल कर 2 सीट वाली बर्थ पर थोड़ी सी जगह बनाई और कांति का हाथ पकड़ कर उसे सीट पर बैठाते हुए बोली, ‘‘आओ, कांति बैठो, तुम भी खड़ेखड़े काफी थक गई होगी. हम सब साथसाथ चलेंगे.’’

कांति पहले थोड़ा सा हिचकी, लेकिन दीपिका के न्योते से उस का संकोच चला गया.

कांति बोली, ‘‘थैक्स दीदी. आप का परिवार बहुत भाग्यशाली है.’’

दीपिका ने कहा, ‘‘धन्यवाद. पर भला वह क्यों?’’

कांति ने कहा, ‘‘जब आप बाहरी लोगों का ही इतना ध्यान रखती हैं, तो आप के घर वालों को तो किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती होगी.’’

कांति की हथेली को धीमे से दबा कर उसे मौन धन्यवाद देते हुए दीपिका बोली, ‘‘थैक्स, कांति. मेरे संसार में मुझे अपने इस वजूद का अहसास कराने के लिए.’’

दीपिका के चेहरे पर भी अब कांति की तरह एक इंच की सच्ची वाली मुसकान खिल आई थी. उसे मुसकराते हुए देख कर सलोनी बोली, ‘‘तुम अब लग रही हो न सच्ची ब्यूटी क्वीन.’’

दुनिया से बेखबर बस की इस लेडीज बर्थ पर एकसाथ 3 मुसकान खिल आईं. इधर अच्छी और चिकनी सड़क पा कर बस की रफ्तार भी तेज हो गई थी.

मैं जीत गई : कौर्ट मैरिज की कहानी

कोर्ट में रुतबा और उस का शौहर आसिम खड़े थे. एक तरफ आसिम के तो दूसरी तरफ रुतबा के अम्मीअब्बू भी वहां मौजूद थे. देखने पर लग रहा था कि शायद वे दोनों कोर्टमैरिज करने यहां आए थे.

जैसे ही वकील ने कोर्टमैरिज के लिए कुछ पेपर दोनों के सामने रखे, रुतबा की आंखों से आंसू बहने लगे.

अम्मी ने रुतबा को संभालते हुए कहा, ‘‘रुतबा, फिक्र मत करो. आसिम बहुत ही नेक लड़का है और तुम्हें बहुत खुश रखेगा. पिछली सारी बातें भूल कर तुम एक नई जिंदगी की ओर कदम आगे बढ़ाओ.’’

आसिम के अम्मीअब्बू ने भी रुतबा के सिर पर प्यार से हाथ रखा और उसे दस्तखत करने की ओर इशारा किया.

रुतबा और आसिम दोनों ने उन पेपरों पर अपनेअपने दस्तखत कर दिए. दोनों के अम्मीअब्बू के चेहरों पर खुशी साफतौर पर देखी जा सकती थी.

कोर्ट से बाहर आ कर आसिम रुतबा और अम्मीअब्बू के साथ एक कार में बैठ गया और रुतबा के मांबाप दूसरी कार में बैठ कर चले गए.

ससुराल में आ कर रुतबा ने जिन 2 बच्चों का सब से पहले सामना किया, वे बच्चे आसिम के थे, जिस की पहली पत्नी मर चुकी थी और अब इन बच्चों को रुतबा को ही संभालना था.

रुतबा ने घर आते ही दोनों बच्चों को अपने गले से लगा लिया और फूटफूट कर रोने लगी. आसिम और उस के मांबाप ने उसे संभाला, अंदर ले गए और खानेपीने का इंतजाम किया.

अगले दिन की शाम को घर में एक पार्टी रखी गई थी, जिस में रुतबा की सहेलियां, कुछ रिश्तेदार और आसिम के भाईबहन व खास मेहमान शामिल होने वाले थे.

रुतबा ने खुद को तैयार करने के साथसाथ बच्चों को भी तैयार किया. लड़के का नाम मुश्ताक था और लड़की मुसकान थी. मुसकान और मुश्ताक दोनों अपनी नई मां को पा कर बेहद खुश थे. वे दोनों रुतबा के साथ थे.

शाम की पार्टी में आसिम, रुतबा और मुसकान व मुश्ताक चारों एकसाथ सब के सामने आए. सब मेहमानों ने आसिम व रुतबा को मुबारकबाद दी और रुतबा की हिम्मत की दाद दी कि उस ने इन दोनों बच्चों को आते ही संभाल लिया.

आसिम ने भी सब के सामने माइक पर रुतबा का शुक्रिया अदा किया, ‘‘रुतबा, तुम्हारा बहुत शुक्रिया. तुम ने मेरे घर को बचा लिया, वरना मेरी जिंदगी वीरान हो चुकी थी.’’

मुसकान 9 साल की थी और मुश्ताक 7 साल का. वे दोनों भी सामने आए. मुसकान खिले चेहरे के साथ बोली, ‘‘आई लव यू नई मम्मा, अब हमें दोबारा छोड़ कर कहीं मत जाना.’’

रुतबा ने बच्चों को गले से लगा लिया. सब मेहमानों ने ताली बजा कर अपनी खुशी जाहिर की. इस के बाद डिनर चला और सब ने खूब ऐंजौय किया.

अगले हफ्ते रुतबा अपनी ससुराल के सभी सदस्यों के साथ कुल्लूमनाली घूमने गई. वहां सब उसे खुश रखने की कोशिश कर रहे थे. रुतबा हंसती, पर फिर गंभीर हो जाती थी.

आसिम ने उसे सम?ाया, ‘‘देखो, अब तुम सबकुछ भूल जाओ. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं. मुसकान और मुश्ताक तुम्हारे साथ हैं. यह परिवार तुम्हारा अपना है. तुम किसी बात की फिक्र मत करो.’’

यह सुन कर रुतबा रोने लगी और आसिम के गले से लग गई. वह बोली, ‘‘आसिम, क्या करूं… वह अंधेरा मु?ो अब भी बहुत डराता है. लगता है, जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा है. मेरा बेटा जो अब भी उस के चंगुल में है.’’

आसिम ने प्यार से रुतबा के सिर को अपने सीने से लगाया और सम?ाया, ‘‘रुतबा, तुम्हारी जान बच गई, यह क्या कम है. तुम कभी परेशान मत होना.’’

आसिम के अम्मीअब्बू भी वहां आ गए. अब्बू बोले, ‘‘बेटी, हम सब तुम्हारे साथ हैं. सब ठीक हो जाएगा.’’

रुतबा को हिम्मत मिली और अब वह कुल्लूमनाली में नया परिवार पा कर खुश रहने लगी.

एक दिन अचानक रुतबा के घर उस की बहुत पुरानी सहेली विमला आई, जो कभी उस के साथ कालेज में पढ़ा करती थी. रुतबा ने उसे सब से मिलवाया और अपने कमरे में ले गई.

विमला ने हैरानी से पूछा, ‘‘रुतबा, तुम आस्ट्रेलिया से कब आई और यह शादी? शब्बीर कहां है?’’

‘‘एकसाथ इतने सवाल… थोड़ा सांस ले लो, फिर एकएक कर के बताती हूं,’’ रुतबा ने मुसकराते हुए कहा.

थोड़ा रुक कर रुतबा ने बताना शुरू किया, जो कुछ इस तरह था :

रुतबा अपने 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. पढ़ाई में ढीली थी. लाड़ली होने के चलते घर में किसी बात का प्रैशर नहीं था. मांबाप दिल खोल कर उस पर खर्च करते थे.

रुतबा खूबसूरत भी बहुत थी. जो देखता, पसंद कर लेता था. पर एक कमी थी कि वह जल्दी लोगों की बातों में आ जाती थी.

विमला और रुतबा एक ही कालेज में पढ़ती थीं. पढ़ाई भी क्या करती थीं, सिर्फ नाम के लिए कालेज जाती थीं. उन्हीं की क्लास में एक लड़का जुबैर भी पढ़ता था.

एक दिन जुबैर ने रुतबा से कहा, ‘‘रुतबा, मेरा भाई शब्बीर अहमद आस्ट्रेलिया में कंप्यूटर इंजीनियर है और उस ने तुम्हें सोशल मीडिया पर पसंद कर लिया है.’’

रुतबा ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘सोशल मीडिया पर कहां?’’

‘‘एक मैट्रीमोनियल साइट पर.’’

‘‘पर, मैं ने तो वहां अपने लिए

ऐसा कुछ भी पोस्ट नहीं डाला,’’ रुतबा बोली.

‘‘शायद तुम्हारे भाइयों या अब्बा ने डाल दिया हो.’’

‘‘हो सकता है.’’

इस के बाद रुतबा ने घर आ कर इस बात का जिक्र किया, तो सब ने ‘हां’ में सिर हिला दिया और उसे बताया भी कि कोई लड़का आस्ट्रेलिया में रहता है, जिस ने तुम्हें पसंद किया है.

रुतबा ने बताया, ‘‘उस लड़के का भाई जुबैर मेरी ही क्लास में है.’’

एक दिन शब्बीर अहमद और उस के अम्मीअब्बा रुतबा को देखने आए और शादी भी पक्की हो गई.

शब्बीर अहमद ने कहा, ‘‘मु?ो आस्ट्रेलिया जल्दी जाना है. प्लीज, यह शादी जल्दी करवा दीजिए. मैं रुतबा को अपने साथ ही ले कर जाऊंगा.’’

शब्बीर अहमद और उस के घर वालों ने मिल कर जितनी जल्दी हो सकता था, रुतबा का पासपोर्ट बनवाया और शादी भी बहुत जल्दी में हुई.

शब्बीर रुतबा को ले कर आस्ट्रेलिया चला गया. रुतबा के परिवार वालों ने शब्बीर के मांबाप से अच्छी तरह से बातचीत की. उन्हें सब बहुत अच्छा लगा.

उधर आस्ट्रेलिया में शब्बीर रुतबा को बहुत प्यार करता था. वह सुबह औफिस जाता था और रुतबा घर में ही रहती थी. शब्बीर रुतबा को अकेले कहीं नहीं जाने देता था और न ही किसी से बात करने देता था. वैसे भी रुतबा को इंगलिश बोलना नहीं आता था.

शब्बीर अहमद ने एक घर खरीदा हुआ था, जो ज्यादा बड़ा तो नहीं था, पर आरामदायक था. एक साल ऐसे ही हंसीखुशी में बीत गया. इस बीच रुतबा और शब्बीर भारत अपने परिवार वालों से मिलने आए.

एक दिन शब्बीर ने रुतबा से कहा, ‘‘रुतबा, हमें मम्मीपापा बन जाना चाहिए. अब हमारी शादी को पूरे 2 साल हो चुके हैं.’’

रुतबा बोली, ‘‘शब्बीर, हम लोग कोई प्रिकोशन भी नहीं ले रहे हैं, जब बेबी हो ही नहीं रहा तो क्या करें?’’

शब्बीर थोड़ा परेशान हो कर बोला, ‘‘नहीं रुतबा, मेरे लिए बच्चा बहुत ही जरूरी है.’’

‘‘मतलब क्या है तुम्हारा?’’ रुतबा हैरान हो कर बोली.

शब्बीर थोड़ा घबरा गया, फिर बात संभालते हुए बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि बच्चा हमारे लिए बहुत खास है.’’

रुतबा मुसकरा कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं, हो जाएगा.’’

रुतबा शब्बीर की मीठीमीठी बातों में आ गई और शादी के तीसरे साल में पेट से हो गई.

शब्बीर रुतबा को अपने घर भारत ले आया और यहां ससुराल में उस की पूरी तरह से देखभाल की गई और यहीं पर रुतबा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आमिर रखा गया.

जब आमिर 4 महीने का हुआ, तो शब्बीर अहमद रुतबा और आमिर को आस्ट्रेलिया ले गया. इस बीच रुतबा कई बार मायके भी आई. कोई भी ऐसी बात नहीं हुई. सबकुछ ठीक चल रहा था. आस्ट्रेलिया में शब्बीर आमिर का पूरा ध्यान रखता था.

अब आमिर स्कूल जाने लगा था. शब्बीर पीटीएम पर जाता था, पर रुतबा को साथ नहीं ले जाता था. शब्बीर का बरताव अब रुतबा की तरफ से थोड़ा बदल चुका था. वह औफिस से घर देर से आने लगा था. रुतबा ने वजह पूछी, तो घर में लड़ाई?ागड़े होने लगे.

रुतबा को अब कुछकुछ सम?ा में आने लगा था कि शब्बीर ने शायद बच्चे के लिए ही उस से शादी की थी.

शब्बीर और रुतबा की एक दिन काफी बहस भी हुई. वजह, रात को शब्बीर घंटों फोन पर किसी से बात करता रहता था. रुतबा पूछती तो कह देता कि उस के औफिस का मामला है, वह बीच में न आए. शब्बीर रुतबा के कमरे में भी रहना पसंद नहीं करता था. उसे लड़ाई करने का कोई बहाना चाहिए होता था.

हद तो तब हो गई, जब शब्बीर चुपके से आमिर को स्कूल से ले आया और यही नहीं, वह 2 दिन घर भी नहीं आया. औफिस फोन किया तो पता चला कि वह भारत चला गया है. वहां से रुतबा को अपनी जिंदगी बरबाद होती नजर आई.

रुतबा ने अपने घर फोन किया, पर घंटी जा ही नहीं रही थी. ससुराल फोन किया, तो वहां किसी ने नहीं उठाया. पता नहीं, शब्बीर आखिर फोन के साथ क्या कर के गया था कि रुतबा का फोन उस के मायके लग ही नहीं रहा था.

विदेश में अकेली रुतबा बुरी तरह से फंस गई थी. 2 घंटे लगातार रोने के बाद उस ने अपनेआप को मजबूत किया और अपने पड़ोस में रहने वाले एक परिवार से मिली. पहले तो वह उन्हें कुछ सम?ा नहीं पाई, पर बाद में धीरेधीरे उस ने उन्हें अपनी परेशानी बताई.

रुतबा एक बात तो अच्छी तरह से सम?ा चुकी थी कि शब्बीर उसे जानबू?ा कर बाहर किसी से भी मिलने इसलिए ही नहीं देता था, जिस से वह सबकुछ सीख न जाए और उस के इरादों पर पानी फेर दे.

रुतबा ने अपने पड़ोसियों की मदद ली और किसी तरह शब्बीर के औफिस पहुंच गई. भाषा की बहुत दिक्कत आई. उसे अपनी बात वहां के स्टाफ को सम?ाने में सुबह से शाम हो गई. बहुत मुश्किल से वह शब्बीर के बारे में कुछ जानकारी जमा कर पाई.

औफिस में एक सफाई मुलाजिम था, जो थोड़ीबहुत हिंदी सम?ा लेता था. उस ने रुतबा की बात सम?ा कर औफिस वालों को बताई.

वहां के बौस ने बताया कि शब्बीर तो नौकरी छोड़ कर चला गया है.

यह सुन कर रुतबा के होश उड़ गए और उसे चक्कर आने लगे. बड़ी मुश्किल से किसी तरह वह अपने घर पहुंची. उसे कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? यह तो सरासर धोखाधड़ी का केस था, जिस में अपराधी का पता लगाना आसान नहीं था.

रुतबा की पूरी रात बेचैनी में निकली. बहुत मुश्किल से उस की आंख लगी होगी कि किसी ने डोरबैल बजा दी.

‘‘इतनी सुबह कौन हो सकता है?’’ बुदबुदाते हुए रुतबा बाहर दरवाजे पर निकल कर आई.

दरवाजा खोलते ही रुतबा ने

2 औरतों और 2 मर्दों को हाथ में कुछ पेपर ले कर सामने खड़ा पाया.

रुतबा ने टूटीफूटी इंगलिश में उन से कुछ पूछा, तो उन्होंने बताया कि शब्बीर अहमद यह घर उन्हें बेच कर चला गया है. शब्बीर अहमद ने बैंक बैलेंस सब अपने नाम करवा लिया है. इस के साथ ही रुतबा से तलाक के कागजात भी वे लोग साथ लाए थे, जो शब्बीर उन्हें दे कर गया था.

यह सुन कर रुतबा को इतना बड़ा ?ाटका लगा कि वह वहीं गिर कर बेहोश हो गई. पड़ोसियों को बुलाया गया और उन से बातचीत की गई.

जब रुतबा को होश आया, तो सब ने सम?ाया कि अब यह घर उस का नहीं रहा, उसे यहां से जाना होगा. पर कहां जाएगी बेचारी? सब तो खत्म ही हो चुका था.

पड़ोसी रुतबा को पुलिस के पास ले गए. उस ने सारी घटना उन्हें सुनाई और शब्बीर अहमद के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई.

आज रुतबा को पढ़ाई की अहमियत का अहसास हो रहा था कि काश, वह अच्छी तरह से पढ़ लेती तो इस तरह शब्बीर अहमद उसे बेवकूफ बना कर यों उस के बेटे आमिर को ले कर अकेले भारत न चला गया होता.

खैर, अब पछताने से क्या फायदा. पुलिस ने रुतबा के पास कोई ठहरने की जगह न हो सकने के चलते उसे वुमन सैल भेज दिया. वहां जा कर उस ने नौकरी की, क्योंकि उस के पास अपने फोन को चार्ज करने तक के पैसे नहीं थे.

उधर पुलिस भी शब्बीर अहमद की तलाश कर रही थी. कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था, क्योंकि वह बहुत चालाक था, जो भोलीभाली खूबसूरत लड़कियों को मैट्रीमोनियल साइट के नाम से ठगा करता था.

एक दिन वुमन सैल में एक औरत ने रुतबा से उस के परिवार के बारे में पूछा, तो रुतबा ने बताया कि भारत में उस का फोन मायके वालों तक पहुंच ही नहीं रहा है. तब फोन चैक करवाया गया, तो पता चला कि शब्बीर ने लौक किया हुआ था.

तकरीबन एक साल बाद जा कर रुतबा की अपने मायके में बात हुई. खूब फूटफूट कर रोई रुतबा ने सब सच बता दिया.

उधर रुतबा के परिवार वाले शब्बीर के घर गए. पता लगा कि 2 साल पहले ही वे लोग कहीं बाहर चले गए थे. उन्हें भी बहुत ?ाटका लगा और रुतबा के भाइयों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

रुतबा के भाइयों ने बिना देर किए आस्ट्रेलिया जाने की फ्लाइट बुक करवाई और सीधे वुमन सैल पहुंचे. वहां से सारी जानकारी ली, फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई और शब्बीर अहमद व उस के परिवार के बारे में सारी जानकारी दी.

एक पुलिस वाले ने कहा, ‘‘यह मामला भारत का है. हम वहां जा कर तो कुछ नहीं कर पाएंगे, पर अगर शब्बीर अहमद यहां आएगा, तो हम उसे गिरफ्तार जरूर करेंगे.’’

रुतबा के भाइयों ने वुमन सैल वालों का बहुत शुक्रिया अदा किया और रुतबा को अपने साथ भारत ले आए.

भारत आ कर रुतबा को ऐसा लगा मानो किसी जेल से छूट कर आई हो. वह बहुत रोई. सब को शब्बीर अहमद पर बहुत गुस्सा आ रहा था. पुलिस उस की जांच में जुट गई.

धीरेधीरे वक्तगुजरता गया, पर रुतबा के जख्म हमेशा हरे रहे. अब तक हंसतीखेलती रुतबा बहुत शांत हो चुकी थी. उस की सारी नादानियां खत्म हो चुकी थीं. इतना बड़ा ?ाटका, वह भी इतनी कम उम्र में, कोई छोटी बात नहीं थी रुतबा के लिए. ऊपर से उस का बच्चा उस से छीन लेना कहां का इंसाफ था?

अपने गम को कम करने के लिए रुतबा ने अपने अब्बू से कह कर वहीं कालेज में दाखिला ले लिया और अब उस ने पढ़ाई की अहमियत को सम?ाते हुए लगन के साथ पढ़ना शुरू कर दिया.

रुतबा के कालेज में एक टीचर थे, जो रूतबा की मेहनत से काफी प्रभावित थे. वे रुतबा के बारे में सबकुछ जानते थे. जब रुतबा की पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी हुई, तब उन्होंने रुतबा के अब्बू से अपने भतीजे आसिम के लिए रुतबा की शादी की बात की.

आसिम की बीवी की 4 साल पहले मौत हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे थे. पहले तो रुतबा के भाइयों और परिवार वालों ने मना कर दिया, पर बाद में घर की औरतों ने आपस में सलाह करते हुए कहा कि अभी रुतबा की पूरी जिंदगी पड़ी है. कैसे काटेगी अकेले?

‘‘पर, 2 बच्चों के बाप के साथ शादी? नहीं, हम बहन को एक अंधेरे से निकाल कर दूसरे अंधेरे में नहीं डाल सकते,’’ बड़े भाई ने कहा.

अम्मी बोलीं, ‘‘एक बार रुतबा को उन बच्चों से मिलवा देते हैं और आसिम से बात करवा देते हैं.’’

पहले तो रुतबा ने भी मना कर दिया, पर जब बच्चों ने आ कर उस से बात की और उस की गोद में बैठ गए, तब उसे अपना बेटा आमिर याद आ गया और वह रोने लगी.

आसिम ने रुतबा को सम?ाया और कहा कि वह उसे जिंदगी में कभी दुख नहीं देगा और वह अपनी इच्छा से रह सकती है, जी सकती है.

देखते ही देखते कुछ महीने और निकल गए. अब रुतबा शादी के लिए तैयार थी. वह बच्चों के चलते ही शादी के लिए राजी हुई थी. उस ने शादी में कोई सजावट नहीं करवाई. उस की साधारण तरीके से शादी हुई और आज अपनी दोस्त विमला को वह यह सब बता रही थी, जिस को सुन कर विमला की आंखों में आंसू आ गए.

इतने में मुश्ताक और मुसकान वहां आ गए. विमला उन के लिए गिफ्ट लाई थी. उस ने उन्हें गिफ्ट दिया. खाना खा कर वह अपने घर चली गई.

रुतबा ने आसिम को अपनी सहेली विमला के आने के बारे में बताया.

आसिम ने खुश हो कर कहा, ‘‘अगर कहीं बाहर जाने का मन किया करे, तो चली जाया करो.’’

रुतबा ने ‘हां’ कहा और वहां से बाहर आ गई.

एक दिन अचानक रुतबा के घर पुलिस आई, क्योंकि शब्बीर वाला केस चल रहा था और रुतबा, आसिम और उस के भाइयों को पूछताछ के लिए थाने ले गई. वहां एक आदमी को पुलिस ने पकड़ा हुआ था, जिस को देख कर रुतबा को बताना था कि क्या यही शब्बीर है?

रुतबा ने उसे देखा और उस के नजदीक जा कर उस के गाल पर एक चांटा मारते हुए पूछा, ‘‘मेरा बेटा आमिर कहां है?’’

आसिम सम?ा गया कि यही शब्बीर है. पुलिस ने शब्बीर को जेल में डाल दिया और बच्चे के बारे में पूछने लगी.

केस अदालत में पहुंच गया. शब्बीर ने अपना बयान दिया, ‘‘रुतबा से शादी करने से पहले मैं शादीशुदा था. मेरी बीवी को बच्चा नहीं हो सकता था, इसलिए मु?ो उसे बच्चा देना था.

‘‘मैं ने उसे सम?ाया कि बच्चा अनाथालय से ले लेते हैं, पर वह मेरा ही बच्चा चाहती थी, इसलिए मैं ने ?ाठा नाटक रचा और रुतबा से शादी कर ली.

‘‘रुतबा से पहले भी मैं ने कई लड़कियों को अपने जाल में फंसाया था. कालेज में मेरा कोई भाई नहीं था, न ही मेरे सगे मांबाप थे, वे तो दूर गांव में रहते हैं, जिन को इन सब बातों का पता भी नहीं है.

‘‘मैं ने रुतबा से बच्चा पैदा करवाया और अपनी बीवी को ला कर दे दिया. मु?ो नहीं पता था कि एक मां को उस के बच्चे से अलग करने का नतीजा कितना बुरा होगा.

‘‘पिछले साल मेरी बीवी को कैंसर हुआ और वह मर गई. बच्चे को मैं ने गांव में छोड़ दिया और बाहर दूसरे देश जाने की सोच ही रहा था कि पुलिस ने मु?ो पकड़ लिया.’’

जज साहब ने पुलिस को तुरंत गांव जा कर बच्चे को लाने का और्डर दिया. 2 दिन बाद अदालत में सब के सामने बच्चा रुतबा को सौंप दिया गया.

आसिम, उस के अम्मीअब्बा और रुतबा का पूरा मायका आज सब साथ में थे. मुश्ताक और मुसकान ने आमिर का हाथ थामा और उसे गले से लगा लिया.

रुतबा आज खुश थी. एक अपराधी को उस के किए की सजा मिली और उस का बेटा आमिर उसे मिल चुका था.

रुतबा ने आसिम से कहा, ‘‘आसिम, आप ने मेरे लिए बहुत परेशानी उठाई. आप की मेहनत व कोशिश का फल है, जो आज मैं आमिर से मिल पाई. मै जीत गई,’’ कहते हुए रुतबा आसिम के गले से लग गई और रोने लगी.

सब ने कहा कि अब रोने के दिन गए, अपने नए परिवार के साथ हंसीखुशी रहो. रुतबा अपने शौहर व तीनों बच्चों के साथ अपनी ससुराल आ गई.

बदनाम गली : संतो के नाम

दरवाजा खुला तो उस की नजरें बाहर की ओर उठ गईं. हलकी रोशनी में एक आदमी साफ दिखाई दे रहा था. वह सहम कर सिकुड़ गई थी. एक कोने में दुबकी डरीडरी आंखों से वह उसे घूरने लगी.

‘‘क्यों घबरा रही हो संतो रानी?’’ उस आदमी की आवाज में हवस की बू थी. शराब के नशे में झूमता हुआ एक हाथ में बोतल थामे और दूसरे में एक गजरा लिए वह आदमी उस की ओर बढ़ रहा था.

‘‘मैं कहती हूं, चले जाओ. चले जाओ यहां से,’’ संतो चीख रही थी.

लेकिन संतो की चीख की अहमियत ही कितनी थी. वह किसी परकटे परिंदे की तरह फड़फड़ा रही थी और वह आदमी शातिर बहेलिए की तरह खुश हो रहा था.

वह आदमी आला दर्जे का घटिया इनसान था. संतो की चीखों का उस पर कोई असर न हुआ. उस पर तो वहशीपन सवार था. वह बोला, ‘‘चला जाऊंगा, जरूर चला जाऊंगा… बस तू एक बार ‘हां’ कह दे.’’

‘‘नहीं… मैं हरगिज तेरे इशारे पर काम नहीं करूंगी. नहीं करूंगी वह काम, जो मुझे पसंद नहीं.’’

‘‘करेगा तो तुम्हारा मरा हुआ बाप भी. देखता हूं, कब तक इनकार करती हो?’’ उस आदमी की आवाज सख्त हो उठी थी, आंखें लाल हो उठी थीं. वह आगे बोला, ‘‘और 4 दिन भूखीप्यासी रही तो होश ठिकाने आ जाएगा. जब भूख से अंतडि़यां कुलबुलाएंगी, तब सबकुछ मंजूर हो जाएगा.’’

इतना कह कर वह आदमी बाहर चला गया. संतो ने दरवाजा बंद कर दिया. पर उस के जाने के बाद भी उस की आवाज कमरे में गूंज रही थी.

संतो फूटफूट कर रोने लगी, पर उस की फरियाद घुट कर रह गई. वह सोचने लगी, ‘एक हद तक उस ने ठीक ही तो कहा है. भूख की वजह से ही तो मैं यहां तक आई हूं.’

संतो बीते दिनों को याद करने लगी. 2-3 महीने पहले उस के गांव केशवगढ़ और आसपास के इलाके में सूखा पड़ा था. खेतों की खड़ी फसलें झुलस कर बरबाद हो गईं. धरती फट गई. कुओं, तालाबों का पानी नीचे जमीन में समा गया. अन्न के साथसाथ पानी की परेशानी भी होने लगी.

जानवरों ने भी अपने मालिकों से विदा ले ली. बूढ़ों में चंद कदम चलने भर की ताकत न रही. मदद के नाम पर जोकुछ मिला, वह बहुत थोड़ा था.

लोग उस इलाके को छोड़ कर जाने लगे. ऐसे में कुछ दलाल किस्म के लोग जवान लड़कियों को पैसों का लालच दे कर शहरों में ले गए. उन से कहा गया था कि वे उन्हें काम पर लगाएंगे. वे मेहनत करेंगी और अपना और अपने घर वालों का पेट भरेंगी. इन बातों पर उन्हें यकीन हो गया था.

केशवगढ़ में सब से खराब हालत संतो की थी. उस का बूढ़ा पिता भूख से तड़पतड़प कर मर गया था. तंगी तो यों ही बनी रहती थी, उस पर बाप का साया भी उठ गया. अब वह बिलकुल टूट सी गई थी.

अचानक एक दिन सेवादास नाम का एक आदमी उस के पास आया. उस ने बताया कि वह उस के दूर के रिश्ते का चाचा है. वह बनारस में रहता है और केशवगढ़ में अकाल की खबर पा कर उस से मिलने आया है.

तब संतो मुसीबत में फंसी हुई थी. फरेबी सेवादास भी उसे बिलकुल अपना लगने लगा.

अगले दिन सेवादास उसे ले कर बनारस चला आया था. रास्ते में उसे अच्छे कपड़े भी खरीद दिए और खूब खातिरदारी करता रहा था.

उस ने संतो को पहले अपने घर में रखा. वह भी इतमीनान से उस के साथ रहने लगी.

एक दिन सेवादास के पास एक मोटी सी औरत आई. आते ही वह संतो का आगापीछा देखने लगी.

उस की निगाहें संतो को चुभ रही थीं. उस से रहा न गया तो पूछ बैठी, ‘‘चाचा, यह कौन है? यह मुझे ऐसे क्यों देख रही है?’’

सेवादास शरारतभरी मुसकान होंठों पर लाते हुए बोला, ‘‘चाचा नहीं संतो रानी, हमारा नाम तो सेवादास है… सेवादास. लोगों की सेवा करना ही हमारा काम है. क्यों चमेलीबाई?’’

चमेलीबाई बोली, ‘‘कहां से लाया रे सेवादास, इस हीरे के टुकड़े को? अनारकली है, अनारकली. अब देखना, पूरे बनारस में चमेलीबाई का ही सिक्का चलेगा.’’

संतो सकते में आ गई थी. उस की अजीब हालत थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी.

चमेलीबाई उस की ओर निगाहें फेर कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारे जिस्म का मुआयना कर रही हूं. क्या तुम्हें सेवादास ने कुछ नहीं बताया?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘क्यों रे, इसे कुछ बताया नहीं?’’ चमेलीबाई ने सवाल किया.

‘‘बताने की तो जरूरत ही नहीं है चमेलीबाई. सुना है, यह बहुत अच्छा गाती है. जब यह नाचती है तो समय भी ठहर जाता है. तुम्हारे कोठे पर तो नोटों की बरसात हो जाएगी… बरसात…’’

‘कोठा’ लफ्ज सुनते ही संतो कांप उठी. उस ने यह शब्द भी सुन रखा था और वहां की घिनौनी करतूतों को भी खूब समझती थी. उसे लगा कि वह बुरी फंसी है.

संतो का गुस्सा फूट पड़ा, ‘‘चाचा बने फिरते थे. सेवादास, तुम तो मुझे काम दिलाने के लिए लाए थे. क्या यही काम कराना था? कोठे पर नचवाना था… मेरे जिस्म का सौदा करना था? पर, कान खोल कर सुन लो तुम दोनों, मैं कोठे पर हरगिज नहीं नाचूंगी.’’

फिर उसी दिन से संतो पर जुल्म ढाना शुरू हो गया. पहले तो उसे डरायाधमकाया गया, पर बाद में पीटा भी गया और भूखाप्यासा भी रखा गया. आखिर पेट की आग के आगे वह टूटती चली गई.

भूख और प्यास से संतो तिलतिल कर मर रही थी. वह एक बार में ही मर जाना चाहती थी, पर सेवादास न उसे मरने दे रहा था और न जीने. एक दिन वह बेहोश हो गई. तब उस ने मजबूर हो कर सेवादास की बात मान ली.

देखते ही देखते संतो के पैरों में घुंघरू बंध गए. पर उन की झंकार से उस का दिल चकनाचूर हो गया. टूटे दिल के तारों से जो दर्दीला स्वर फूटा तो लोग झूम उठे. उस पर नोटों की बारिश करने लगे. पर असलियत किस ने जानी थी. काश, कोई आंखों के झरोखे से उस के दिल में झांक कर देखता तो उसे सचाई का पता चलता.

कितने अरमान संजोए थे संतो ने. सोचा था कि कोई साजन होगा, कोई मनमीत होगा, जिस के सीने पर वह अपना सिर रख कर अपना हर गम भूल जाएगी. उस का बालम हौलेहौले उस की जुल्फों को संवारेगा, उस में फूल लगाएगा, तब खिले गुलाब की तरह उस का तनमन महक उठेगा.

कोठे पर हर तरह के लोग आते थे. पर ज्यादातर की आंखों में संतो ने जिस्म की भूख ही देखी थी. उसे लगता, हर कोई उस के बदन को नोचना चाहता है, उसे कच्चा निगल जाने को तैयार है.

उन्हीं दिनों सुंदर नाम का एक नौजवान भी चमेलीबाई के कोठे पर आने लगा था. वह अपने नाम की तरह सुंदर भी था. दिल का बेहद भोला, फरेब नाम की किसी भी चीज से अनजान.

संतो धीरेधीरे सुंदर की ओर खिंचती चली गई. सुंदर से आंखें मिलते ही उस के दिल में हलचल होने लगती, पर किसी को कुछ बताना भी बेकार था. सुंदर आता तो संतो को नाचने का मन होता, नहीं तो वह उदास ही रहती.

एक दिन सुंदर नहीं आया. संतो सिंगार करने के बावजूद अपने कमरे में बैठी रही. चमेलीबाई के बुलावे पर बुलावे आते रहे, पर उस पर कोई असर न हुआ. मजबूर हो कर चमेलीबाई को खुद बुलाने आना पड़ा, क्योंकि कई लोग वहां बैठे उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘आजकल नखरे बहुत करने लगी है हमारी महारानी. बाहर हुस्न के मतवाले तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं और तुम यहां सजधज कर बैठी हो,’’ आते ही चमेलीबाई बरस पड़ी.

‘‘आज नाचने का मेरा दिल नहीं है,’’ संतो बोली.

‘‘नाचेगी नहीं, तो इतने लोगों का पेट कैसे भरेगा? क्या तेरा बाप पैसे दे जाएगा?’’ चमेलीबाई बोली.

फिर रुक कर वह बोली, ‘‘चल, जल्दी… नखरे मत दिखा.’’

संतो ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरा असली कद्रदान तो आज आया ही नहीं.’’

‘‘असली कद्रदान… किस की बातें कर रही है?’’ चमेलीबाई चौंक उठी.

‘‘उस की आंखों में मैं ने प्यार देखा है,’’ संतो भावुक हो उठी थी.

पर चमेलीबाई को यह गवारा न था. उस का पेशा चौपट हो जाता. वह उबल पड़ी, ‘‘सुन संतो, हमारे पेशे में प्यारमुहब्बत नाम की कोई चीज ही नहीं है. यहां लोग प्यार करते हैं, सिर्फ एक रात के लिए. सुबह बीच चौराहे पर छोड़ कर चले जाते हैं. एक रात की दुलहन हर कोई बना लेता है, पर उम्रभर के लिए कोई नहीं अपने घर ले जाता.

‘‘कोठे तक तो चारों ओर से रास्ते आते हैं, पर यहां से कोई रास्ता ‘घर’ तक नहीं जाता. फिर हमारा पेशा ही ऐसा है कि हम ऐसा करने की हिमाकत कर ही नहीं सकतीं. दिन में ख्वाब देखना छोड़ दो और चलो उठो.’’

चमेलीबाई ने कोई सख्त धमकी तो नहीं दी, पर बहुतकुछ कह गई थी. संतो बेमन से लोगों का मनोरंजन करने लगी. पर उस के तौरतरीकों से चमेलीबाई को मालूम हो गया कि वह सुंदर से बेहद प्यार करने लगी है.

चमेलीबाई को लग रहा था कि दबाने से संतो बगावत करने पर उतर आएगी, इसलिए वह सिर्फ इतना बोली, ‘‘संतो, अगर तुम समझती हो कि बाहर की दुनिया में जा कर तुम खुश रह सकोगी, तो जा सकती हो. पर सबकुछ इतना आसान नहीं है. लोग तुम्हें वहां जीने नहीं देंगे.’’

पर प्यार तो अंधा होता है. संतो ने अपनी दुलहन बनने की सब से बड़ी ख्वाहिश पूरी कर ली. सुंदर की बीवी बन कर वह उस के घर आ गई.

सुंदर भी अकेला था. संतो की नजरों से प्यार का पैगाम पा कर उस का दिल भी बेकाबू हो गया. वह संतो के प्यार के सागर में गोते लगाने लगा.

यों ही मजे से प्यार भरे दिन बीत रहे थे. अचानक एक दिन संतो की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. उस दिन शाम को सुंदर शराब पी कर आया था. आते ही वह घर के सामान को इधरउधर फेंकने लगा और चीखने लगा.

‘‘यह आप को क्या हो गया है?’’ संतो तड़प उठी.

‘‘कुछ नहीं… यह शराब है जानी, शराब, यह बेवफा नहीं होती. यह धोखा नहीं देती. यह जूठन नहीं होती,’’ सुंदर बड़बड़ाता गया.

‘‘आखिर हुआ क्या है…? आप ने शराब क्यों पी?’’

‘‘यह तुम मुझ से पूछ रही हो? अपनी औकात मत भूलो. निकल जाओ, मेरे घर से. तुम एक धंधेवाली हो… धंधेवाली. तुम्हारी वजह से मेरा जीना मुश्किल हो गया है.’’

संतो को लगा कि जिस तख्ते को पकड़ कर वह जिंदगी का दरिया पार करना चाहती थी, वह डूबता जा रहा है. आगे का रास्ता अंधेरों से भरा है.

सुंदर ने संतो को घर से निकाल दिया. अब चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. उसे कुछ दरिंदे अपनी ओर बढ़ते महसूस हुए. उस के आगे एक ही रास्ता बचा था, कोठे का रास्ता. पर वहां वह जाना नहीं चाहती थी.

वह तेज कदम उठाती चलने लगी. पर अगले ही मोड़ पर सेवादास ने उस की बांह पकड़ ली और उसे दोबारा उसी बदनाम गली में पहुंचा दिया.

‘‘आओ मेरी संतो रानी, आओ,’’ चमेलीबाई मुसकराते हुए बोली.

संतो नजरें नीची किए खड़ी थी. ‘‘संतो, हम कोठेवालियों का यही अंजाम होता है. यह दुनिया हमें किसी की ‘घरवाली’ बन कर चैन से जीने नहीं देती. हमारा पेशा ही ऐसा है. अगर कोई हिम्मत कर के हाथ थाम भी लेता है, तो साथ नहीं निभा पाता.

‘‘बदनाम गली में रहनेवालियों के लिए घर एक सपना हो सकता है, हकीकत नहीं, क्योंकि दुनिया का नजरिया जब तक नहीं बदलता, तब तक कुछ नहीं हो सकता.’’

संतो को दोबारा उसी गली में जिंदगी के बाकी दिन गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थोड़ा सा इंतजार: क्या मिल पाया तनुश्री और वेंकटेश को परिवार का प्यार

बरसों बाद अभय को उसी जगह खड़ा देख कर तनुश्री कोई गलती नहीं दोहराना चाहती थी. कई दिनों से तनुश्री अपने बेटे अभय को कुछ बेचैन सा देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी छोटी से छोटी बात मां को बताने वाला अभय अपनी परेशानी के बारे में कुछ बता क्यों नहीं रहा है. उसे खुद बेटे से पूछना कुछ ठीक नहीं लगा.

आजकल बच्चे कुछ अजीब मूड़ हो गए हैं, अधिक पूछताछ या दखलंदाजी से चिढ़ जाते हैं. वह चुप रही. तनुश्री को किचन संभालते हुए रात के 11 बज चुके थे. वह मुंहहाथ धोने के लिए बाथरूम में घुस गई. वापसी में मुंह पोंछतेपोंछते तनुश्री ने अभय के कमरे के सामने से गुजरते हुए अंदर झांक कर देखा तो वह किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह एक पल को रुक कर फोन पर हो रहे वार्तालाप को सुनने लगी. ‘‘तुम अगर तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं…नहीं मानते न सही…नहीं, अभी मैं ने अपने मम्मीपापा से बात नहीं की…उन को अभी से बता कर क्या करूं? पहले तुम्हारे घर वाले तो मानें…रोना बंद करो. यार…उपाय सोचो…मेरे पास तो उपाय है, तुम्हें पहले ही बता चुका हूं…’’ तनुश्री यह सब सुनने के बाद दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ गई. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरी.

अभय की बेचैनी का कारण उस की समझ में आ चुका था. इतिहास अपने आप को एक बार फिर दोहराना चाहता है, पर वह कोशिश जरूर करेगी कि ऐसा न हो, क्योंकि जो गलती उस ने की थी वह नहीं चाहती थी कि वही गलती उस के बच्चे करें. तनुश्री अतीत की यादों में डूब गई. सामने उस का पूरा जीवन था. कहने को भरापूरा सुखी जीवन. अफसर पति, जो उसे बेहद चाहते हैं. 2 बेटे, एक इंजीनियर, दूसरा डाक्टर. पर इन सब के बावजूद मन का एक कोना हमेशा खाली और सूनासूना सा रहा. क्यों? मांबाप का आशीर्वाद क्या सचमुच इतना जरूरी होता है? उस समय वह क्यों नहीं सोच पाई यह सब? प्रेमी को पति के रूप में पाने के लिए उस ने कितने ही रिश्ते खो दिए. प्रेम इतना क्षणभंगुर होता है कि उसे जीवन के आधार के रूप में लेना खुद को धोखा देने जैसा है. बच्चों को भी कितने रिश्तों से जीवन भर वंचित रहना पड़ा.

कैसा होता है नानानानी, मामामामी, मौसी का लाड़प्यार? वे कुछ भी तो नहीं जानते. उसी की राह पर चलने वाली उस की सहेली कमला और पति वेंकटेश ने भी यही कहा था, ‘प्रेम विवाह के बाद थोड़े दिनों तक तो सब नाराज रहते हैं लेकिन बाद में सब मान जाते हैं.’ और इस के बहुत से उदाहरण भी दिए थे, पर कोई माना? पिछले साल पिताजी के गुजरने पर उस ने इस दुख की घड़ी में सोचा कि मां से मिल आती हूं. वेंकटेश ने एक बार उसे समझाने की कोशिश की, ‘तनु, अपमानित होना चाहती हो तो जाओ. अगर उन्हें माफ करना होता तो अब तक कर चुके होते. 26 साल पहले अभय के जन्म के समय भी तुम कोशिश कर के देख चुकी हो.’ ‘पर अब तो बाबा नहीं हैं,’ तनुश्री ने कहा था.

‘पहले फोन कर लो तब जाना, मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं.’ तनुश्री ने फोन किया. किसी पुरुष की आवाज थी. उस ने कांपती आवाज में पूछा, ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ ‘मैं तपन सरकार बोल रहा हूं और आप?’ तपन का नाम और उस की आवाज सुनते ही तनुश्री घबरा सी गई, ‘तपन… तपन, हमारे खोकोन, मेरे प्यारे भाई, तुम कैसे हो. मैं तुम्हारी बड़ी दीदी तनुश्री बोल रही हूं?’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा सी गई थी. ‘मेरी तनु दीदी तो बहुत साल पहले ही मर गई थीं,’ इतना कह कर तपन ने फोन पटक दिया था. वह तड़पती रही, रोती रही, फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. पति और बच्चों ने दिनरात उस की सेवा की. सामाजिक नियमों के खिलाफ फैसले लेने वालों को मुआवजा तो भुगतना ही पड़ता है. तनुश्री ने भी भुगता. शादी के बाद वेंकटेश के मांबाप भी बहुत दिनों तक उन दोनों से नाराज रहे. वेंकटेश की मां का रिश्ता अपने भाई के घर से एकदम टूट गया.

कारण, उन्होंने अपने बेटे के लिए अपने भाई की बेटी का रिश्ता तय कर रखा था. फिर धीरेधीरे वेंकटेश के मांबाप ने थोड़ाबहुत आना- जाना शुरू कर दिया. अपने इकलौते बेटे से आखिर कब तक वह दूर रहते पर तनुश्री से वे जीवन भर ख्ंिचेख्ंिचे ही रहे. जिस तरह तनुश्री ने प्रेमविवाह किया था उसी तरह उस की सहेली कमला ने भी प्रेमविवाह किया था. तनुश्री की कोर्ट मैरिज के 4 दिन पहले कमला और रमेश ने भी कोर्ट मैरिज कर ली थी. उन चारों ने जो कुछ सोचा था, नहीं हुआ. दिनों से महीने, महीनों से साल दर साल गुजरते गए. दोनों के मांबाप टस से मस नहीं हुए. उस तनाव में कमला चिड़चिड़ी हो गई. रमेश से उस के आएदिन झगड़े होने लगे. कई बार तनुश्री और वेंकटेश ने भी उन्हें समझाबुझा कर सामान्य किया था. रमेश पांडे परिवार का था और कमला अग्रवाल परिवार की. उस के पिताजी कपड़े के थोक व्यापारी थे. समाज और बाजार में उन की बहुत इज्जत थी. परिवार पुरातनपंथी था. उस हिसाब से कमला कुछ ज्यादा ही आजाद किस्म की थी.

एक दिन प्रेमांध कमला रायगढ़ से गाड़ी पकड़ कर चुपचाप नागपुर रमेश के पास पहुंच गई. रमेश की अभी नागपुर में नईनई नौकरी लगी थी. वह कमला को इस तरह वहां आया देख कर हैरान रह गया. रमेश बहुत समझदार लड़का था. वह ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहता था, पर कमला घर से बाहर पांव निकाल कर एक भूल कर चुकी थी. अब अगर वह साथ न देता तो बेईमान कहलाता और कमला का जीवन बरबाद हो जाता. अनिच्छा से ही सही, रमेश को कमला से शादी करनी पड़ी. फिर जीवन भर कमला के मांबाप ने बेटी का मुंह नहीं देखा. इस के लिए भी कमला अपनी गलती न मान कर हमेशा रमेश को ही ताने मारती रहती. इन्हीं सब कारणों से दोनों के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी. तनुश्री के बाबा की भी बहुत बड़ी फैक्टरी थी. वहां वेंकटेश आगे की पढ़ाई करते हुए काम सीख रहा था. भिलाई में जब कारखाना बनना शुरू हुआ, वेंकटेश ने भी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. नौकरी लगते ही दोनों ने भाग कर शादी कर ली और भिलाई चले आए. बस, उस के बाद वहां का दानापानी तनुश्री के भाग्य में नहीं रहा.

सालोंसाल मांबाप से मिलने की उम्मीद लगाए वह अवसाद से घिरती गई. जीवन जैसे एक मशीन बन कर रह गया. वह हमेशा कुछ न कर पाने की व्यथा के साथ जीती रही. शादी के बाद कुछ महीने इस उम्मीद में गुजरे कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. जब अभय पेट में आया तो 9 महीने वह हर दूसरे दिन मां को पत्र लिखती रही. अभय के पैदा होने पर उस ने क्षमा मांगते हुए मां के पास आने की इजाजत मांगी. तनुश्री ने सोचा था कि बच्चे के मोह में उस के मांबाप उसे अवश्य माफ कर देंगे. कुछ ही दिन बाद उस के भेजे सारे पत्र ज्यों के त्यों बंद उस के पास वापस आ गए.

वेंकटेश अपने पुराने दोस्तों से वहां का हालचाल पूछ कर तनुश्री को बताता रहता. एकएक कर दोनों भाइयों और बहन की शादी हुई पर उसे किसी ने याद नहीं किया. बड़े भाई की नई फैक्टरी का उद्घाटन हुआ. बाबा ने वहीं हिंद मोटर कसबे में तीनों बच्चों को बंगले बनवा कर गिफ्ट किए, तब भी किसी को तनु याद नहीं आई. वह दूर भिलाई में बैठी हुई उन सारे सुखों को कल्पना में देखती रहती और सोचती कि क्या मिला इस प्यार से उसे? इस प्यार की उसे कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी. एक वेंकटेश को पाने के लिए कितने प्यारे रिश्ते छूट गए. कितने ही सुखों से वह वंचित रह गई.

बाबा ने छोटी अपूर्वा की शादी कितने अच्छे परिवार में और कितने सुदर्शन लड़के के साथ की. बहन को भी लड़का दिखा कर उस की रजामंदी ली थी. कितनी सुखी है अपूर्वा…कितना प्यार करता है उस का पति…ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हुआ होता. प्यार…प्यार तो शादी के बाद अपने आप हो जाता है. जब शादी की बात चलती है…एकदूसरे को देख कर, मिल कर अपनेआप वह आकर्षण पैदा हो जाता है जिसे प्यार कहते हैं. प्यार करने के बाद शादी की हो या शादी के बाद प्यार किया हो, एक समय बाद वह एक बंधाबंधाया रुटीन, नमक, तेल, लकड़ी का चक्कर ही तो बन कर रह जाता है. कच्ची उम्र में देखा गया फिल्मी प्यार कुछ ही दिनों बाद हकीकत की जमीन पर फिस्स हो जाता है पर अपने असाध्य से लगते प्रेम के अधूरेपन से हम उबर नहीं पाते. हर चीज दुहराई जाती है. संपूर्ण होने की संभावना ले कर पर सब असंपूर्ण, अतृप्त ही रह जाता है. अगले दिन सुबह तनुश्री उठी तो उस के चेहरे पर वह भाव था जिस में साफ झलकता है कि जैसे कोई फैसला सोच- समझ कर लिया गया है. तनुश्री ने उस लड़की से मिलने का फैसला कर लिया था. उसे अभय की इस शादी पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता है कि अभय बहुत समझदार है. उस का चुनाव गलत नहीं होगा. अभय भी वेंकटेश की तरह परिपक्व समझ रखता है.

पर कहीं वह लड़की उस की तरह फिल्मों के रोमानी संसार में न उड़ रही हो. वह नहीं चाहती थी कि जो कुछ जीवन में उस ने खोया, उस की बहू भी जीवन भर उस तनाव में जीए. अभय ने मां से काव्या को मिलवा दिया. किसी निश्चय पर पहुंचने के लिए दिल और दिमाग का एकसाथ खड़े रहना जरूरी होता है. तनुश्री काव्या को देख सोच रही थी क्या यह चेहरा मेरा अपना है? किस क्षण से हमारे बदलने की शुरुआत होती है, हम कभी समझ नहीं पाते. तनुश्री ने अभय को आफिस जाने के लिए कह दिया. वह काव्या के साथ कुछ घंटे अकेले रहना चाहती थी. दिन भर दोनों साथसाथ रहीं.

काव्या के विचार तनुश्री से काफी मिलतेजुलते थे. तनु ने अपने जीवन के सारे पृष्ठ एकएक कर अपनी होने वाली बहू के समक्ष खोल दिए. कई बार दोनों की आंखें भी भर आईं. दोनों एकमत थीं, प्रेम के साथसाथ सारे रिश्तों को साथ ले कर चलना है. एक सप्ताह बाद उदास अभय मां के घुटनों पर सिर रखे बता रहा था, ‘‘काव्या के मांबाप इस शादी के खिलाफ हैं. मां, काव्या कहती है कि हमें उन के हां करने का इंतजार करना होगा. उस का कहना है कि वह कभी न कभी तो मान ही जाएंगे.’’ ‘‘हां, तुम दोनों का प्यार अगर सच्चा है तो आज नहीं तो कल उन्हें मानना ही होगा. इस से तुम दोनों को भी तो अपने प्रेम को परखने का मौका मिलेगा,’’ तनुश्री ने बेटे के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘मैं भी काव्या के मांबाप को समझाने का प्रयास करूंगी.’’ ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आता, मैं क्या करूं, मां,’’ अभय ने पहलू बदलते हुए कहा. ‘‘बस, तू थोड़ा सा इंतजार कर,’’ तनुश्री बोली. ‘‘इंतजार…कब तक…’’ अभय बेचैनी से बोला.

‘‘सभी का आशीर्वाद पाने तक का इंतजार,’’ तनुश्री ने कहा. वह सोचने लगी कि आज के बच्चे बहुत समझदार हैं. वे इंतजार कर लेंगे. आपस में मिलबैठ कर एकदूसरे को समझाने और समझने का समय है उन के पास. हमारे पास वह समय ही तो नहीं था, न टेलीफोन और न मोबाइल ताकि एकदूसरे से लंबी बातचीत कर कोई हल निकाल सकते. आज बच्चे कोई भी कदम उठाने से पहले एकदूसरे से बात कर सकते हैं…एकदूसरे को समझा सकते हैं. समय बदल गया है तो सुविधा और सोच भी बदल गई है. जीवन कितना रहस्यमय होता है. कच्चे दिखने वाले तार भी जाने कहांकहां मजबूती से जुड़े रहते हैं, यह कौन जानता है.

दिल का बोझ : दीदी लाई थी कौन सी खुशियां

मंजू अपनी मां के साथ फर्स्ट फ्लोर पर रहती थी. वह अपने फ्लैट के नीचे वाली दुकान से दूध लाने गई थी. वह जैसे ही दूध ले कर आई, अपने साथ एक नन्हा सा गोलमटोल बच्चा भी गोद में ले आई थी.

‘‘अरे, यह किस का बच्चा उठा लाई?’’ मां ने हैरानी से देख कर पूछा.

‘‘विनोद अंकल की दुकान पर खेल रहा था. उन्हीं के घर का कोई होगा… मैं ज्यादा नहीं जानती,’’ मंजू ने हंसते हुए अपनी मां को सफाई दी.

विनोद ने मंजू के घर के नीचे मोटर पार्ट्स की दुकान खोल रखी है. दुकान में भीड़ कम ही रहती है.

बच्चा बहुत खूबसूरत था. मां की भी ममता जाग गई. उन्होंने उसे गोद में ले लिया.

बच्चा घंटाभर वहां खेलता रहा. बच्चे की किलकारी से मंजू की मां के चेहरे पर खुशी की लकीरें उभर आई थीं. वे उस का खास खयाल रख रही थीं. बच्चा एक कटोरी दूध भी पी गया था.

एक घंटे बाद मां मंजू से बोलीं, ‘‘जा कर बच्चे को दुकान पर पहुंचा दे.’’

मंजू बच्चे को विनोद अंकल की दुकान पर छोड़ आई. इस तरह से वह बच्चा कई दिन तक मंजू के घर आता रहा. उस की मां बच्चे का ध्यान रखतीं. बच्चा वहां खेलता, घंटे 2 घंटे बाद मंजू दुकान में छोड़ आती. कई दिनों से यह सिलसिला चल रहा था.

उस दिन रात के 10 बज रहे थे. मंजू अपनी मां के बगल में सोई हुई थी. मंजू को नींद नहीं आ रही थी. वह सोच रही थी कि कैसे बात को शुरू करे.

‘‘बच्चा कितना खूबसूरत है न मां?’’ मंजू बोली.

‘‘अरे, तू किस की बात कर रही है?’’

‘‘उसी बच्चे की मां जो विनोद अंकल की दुकान से लाई थी.’’

‘‘सो जा. क्या तुझे नींद नहीं आ रही है? अभी भी तेरा ध्यान उस बच्चे पर अटका है?’’ मां ने मंजू को हिदायत दी.

‘‘दीदी का बच्चा भी ऐसा ही होता न मां?’’ मंजू अचानक बोली.

यह सुन कर मां गुस्से में बिफर पड़ीं, इसलिए वे बिस्तर से उठ कर बैठ गईं.

‘‘तेरे बड़े चाचा ने मना किया था न कि दीदी का नाम कभी मत लेना? वह हम लोगों के लिए मर गई है…’’ मां गुस्से में बोलीं.

अब तक मंजू भी चादर फेंक कर उठ कर बैठ गई थी और बोली, ‘‘मानती हूं कि दीदी हम लोगों के लिए मर गई हैं, लेकिन सचमुच में तो नहीं मरी हैं न?’’ उस ने मां से सवाल किया.

मां के पास कोई जवाब नहीं था. वे मंजू का मुंह ताकती रह गईं.

मंजू का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जो कहने वाली है, उस का क्या नतीजा होने वाला है? अपना दिल मजबूत कर के वह मां से बोली, ‘‘मां, वह जो बच्चा रोज आ रहा है न, वह अपनी दीदी का ही बच्चा है. तुम उस की नानी हो और वह तुम्हारा नाती है. तुम्हारी अपनी बेटी का बेटा है,’’ मंजू हिम्मत कर के सबकुछ एक ही सांस में बोल गई.

मां को यह सुन कर ऐसा लगा, जैसे वे आसमान से जमीन पर गिर गई हैं. वे कुछ भी नहीं बोल पा रही थीं, सिर्फ मंजू को देखे जा रही थीं. मंजू अपनी मां के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. मां पुरानी यादों में खोने लगी थीं.

3 साल पहले की घटी हुई वह घटना. उन की बड़ी बेटी सोनी कालेज में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते वह अमर डिसूजा नाम के एक ईसाई लड़के के इश्क में पड़ गई थी.

अमर बहुत खूबसूरत था. वह सोनी से बहुत प्यार करता था. दोनों घंटों एकदूसरे से मोबाइल पर बात किया करते थे. सोनी उस के प्यार में पागल हो गई थी. उसे इस बात का कहां ध्यान रहा कि वह एक हिंदू ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती है, जबकि अमर एक ईसाई परिवार से था.

जैसे ही सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता को मालूम हुआ, सोनी को काफी भलाबुरा सुनना पड़ा था. घर के लोगों के साथसाथ बाहर के लोगों ने भी उसे खूब जलील किया था. लोग यही कह रहे थे कि सोनी को कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था? उस ने अपना धर्म भ्रष्ट कर दिया था, इसीलिए उस के बड़े चाचा ने उसे घर से बाहर निकलने से मना कर दिया था. अमर से भी दूर रहने की हिदायत दे दी थी.

उस के चाचा ने चेतावनी दी थी, ‘अब से तुम्हारी पढ़ाईलिखाई बंद रहेगी. बहुत हो गया पढ़नालिखना.’

सोनी की शादी की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. कई जगह लड़के देखे जा रहे थे, लेकिन वह पढ़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां और अपने पिता से काफी गुजारिश की थी. कुछ दिन बाद उस के पिता ने सिर्फ कालेज में एडमिशन लेने और फार्म भरने की इजाजत दी थी. धीरेधीरे सोनी कालेज आनेजाने लगी थी.

एक दिन अचानक थाने से खबर आई कि सोनी अमर के साथ थाने में पहुंच गई है. दोनों ने एकदूसरे से प्यार करने की बात स्वीकार ली थी.

सोनी 18 साल की हो चुकी थी और अमर भी 21 साल का था. दोनों की पहले से ही गुपचुप तरीके से शादी करने की तैयारियां चल रही थीं, वे सिर्फ बालिग होने का इंतजार कर रहे थे.

सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता ने शादी रुकवाने की कई तरह से कोशिश की, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. जब लड़कालड़की ही राजी थे, तो भला उन्हें कौन रोक सकता था. थानेदार की मदद से दोनों की शादी करवा दी गई थी. प्रशासन ने उन्हें प्रोटैक्शन दे कर अमर के घर तक पहुंचाया था.

बड़े चाचा ने गुस्से में आ कर सोनी का पुतला बना कर दाह संस्कार करवा दिया. पिता ने खास हिदायत दी थी, ‘वह हमारे लिए मर गई है. घर में कोई अब उस का नाम तक नहीं लेगा.’

तब से ले कर आज तक किसी ने भी सोनी का नाम इस घर में नहीं लिया था. आज जब मंजू उस के बच्चे की बात कर रही थी, तो मां सुन कर सन्न रह गई थीं.

मां मन ही मन सोनी से रिश्ता खत्म हो जाने के चलते दुखी रहती थीं. वे इस दुख को किसी के साथ जाहिर भी नहीं कर पाती थीं. आज वे अपने नाती को अनजाने में ही दुलार चुकी थीं.

जब मंजू ने मां को जोर से झुकझुरा, तो वे अपनी यादों से बाहर आ गईं, ‘‘ऐसा तू ने क्यों किया मंजू?’’ मां गुस्से में बोलीं.

‘‘तुम दीदी के जाने के बाद क्या कभी उन्हें भुला पाई हो मां? अपने दिल पर हाथ रख कर सच बताना?’’

मां के चेहरे पर बेचैनी देखी जा सकती थी. उन के पास कोई जवाब नहीं था. जैसे वे सच का सामना कर ही नहीं सकती थीं. वे मंजू से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे उन की चोरी पकड़ी गई है. चोरी पकड़ने वाला कोई और नहीं, बल्कि उन की अपनी बेटी की थी.

यह तो सच था कि जब से सोनी चली गई थी, मां दुखी थीं. वे कैसे जिंदा बेटी को मरा मान सकती थीं? उसे जितना भी भुलाने की कोशिश की थी, वे अपनी बेटी की यादों में खो जाती थीं. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को खूब प्यार दिया था.

बड़ी बेटी के गम में पिता उदास रहने लगे थे. कुछ दिन बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे. तब से मां अकेली हो गई थीं. वे चाहती थीं कि किसी तरह मंजू की भी शादी हो जाए.

‘‘मंजू, तुम कब से यह सब जानती हो?’’ मां ने सवाल किया.

‘‘एक दिन अचानक दीदी बाजार में मिल गई थीं. दीदी ने मुझे से नजरें फेर ली थीं, लेकिन मैं ने ही उन का पीछा किया था. बात करने पर उन्हें मजबूर कर दिया था. वे कहने लगी थीं कि मैं तो तुम्हारे लिए मर गई हूं. मैं ने उन्हें बहुत समझाया, तब जा कर वे बात करने के लिए तैयार हुई थीं.

‘‘दीदी भी यह जान कर बहुत दुखी थीं कि हम सब ने उन्हें मरा समझे लिया है. दीदी के गम में पिताजी नहीं रहे, उन्हें यह जान कर काफी दुख हुआ. लेकिन मैं ने उन्हें बताया कि यह सब बड़े चाचा का कियाधरा है. पिताजी तो उन की हां में हां मिलाते रहे. मां तो कुछ समझे ही नहीं पाई थीं. वे आज भी आप के लिए दुखी रहती हैं.

‘‘यह सुन कर दीदी रोने लगी थीं. वे आप को बहुत याद करती हैं. मैं उन से लगातार फोन पर बातचीत करती रहती हूं. तभी मैं जान पाई थी कि दीदी को एक बच्चा हुआ है और यह मेरी ही योजना थी कि किसी तरह से आप को और दीदी को मिला दूं. दीदी का बच्चा उन का देवर ले कर आता है. वह विनोद अंकल की दुकान पर सेल्समैन है.’’

मां मंजू के सिर पर हाथ फेरने लगीं. उन की आंखों से आंसू बहने लगे. ऐसा लग रहा था, दिल का बोझे आंखों से बाहर निकल रहा था.

मंजू अपनी मां से आज ये सब बातें कर के हलका महसूस कर रही थी. वह बहुत खुश थी. रात के 11 बज गए थे, इसलिए वह अपनी दीदी को परेशान नहीं करना चाहती थी, वरना यह खुशखबरी दीदी तक अभी पहुंचा देती, पर वह खुश थी कि अब उस की दीदी मां से बात कर सकेंगी. अब उस के घर में एक नन्हा बच्चा खेलेगा. वह सालों से 2 परिवारों में आई दरार को पाटने में कामयाब हो गई थी.

छल: आशिक की मारी रोमा

रोमा सारे घरों का काम जल्दीजल्दी निबटा कर तेज कदमों से भाग ही रही थी कि वनिता ने आवाज लगाई, ‘‘अरी ओ रोमा… नाश्ता तो करती जा. मैं ने तेरे लिए ही निकाल कर रखा है.’’‘‘रख दीजिए बीबीजी, मैं शाम को आ कर खा लूंगी. अभी बहुत जरूरी काम से जा रही हूं,’’ कहते हुए रोमा सरपट दौड़ गई. रोमा यहां सोसाइटी के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन, साफसफाई का काम करती थी. इस समय वह इतनी तेजी से अपने प्रेमी रौनी से मिलने जा रही थी. रौनी बगल वाली सोसाइटी में मिस्टर मेहरा के यहां ड्राइवर था.

पिछले 2 साल से रोमा और रौनी में गहरी जानपहचान हो गई थी. वे दोनों अगलबगल की सोसाइटी में काम करते थे और एक दिन आतेजाते उन की निगाहें टकरा गईं. फिर देखते ही देखते उन के बीच प्यार की शहनाई बज उठी.जवानी की दहलीज पर अभीअभी कदम रखने वाली रोमा पूर्णमासी के चांद की तरह बेहद ही खूबसूरत और मादक लगती थी. उस की हिरनी जैसी आंखें, सुराहीदार गरदन, पतली कमर और गदराया बदन देख कर हर कोई उसे रसभरी निगाहों से देखता था, लेकिन रोमा की जिंदगी का रस रौनी था, जिस से शादी कर के वह अपना घर बसाना चाहती थी. रौनी दिखने में बांका जवान था.

बिखरे बाल, आंखों पर चश्मा, शर्ट के सामने के 2 बटन हमेशा खुले, गले में चेन और कलाई में ब्रैसलेट… रौनी का यह स्टाइल किसी हीरो से कम नहीं था और रोमा उस के इसी स्टाइल पर मरमिटी थी.अकसर रोमा ही सारे घरों का काम निबटा कर रौनी को पास वाले पार्क में मिलने के लिए फोन किया करती थी, लेकिन आज पहली बार रौनी ने फोन कर के रोमा को ‘जरूरी काम है’ कह कर बुलाया था.रोमा भागीभागी पार्क में पहुंची, तो देखा कि रौनी वहां उस का इंतजार कर रहा था.

रोमा को सामने देखते ही रौनी ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया. रोमा खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यही था तेरा जरूरी काम, जो तू ने मुझे यहां इतनी जल्दी में बुलाया… तुझे पता है कि मैं बनर्जी के घर का काम छोड़ कर आई हूं…

अब जल्दी से बोल कि यहां मुझे क्यों बुलाया?’’रोमा की कमर पर अपना हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच कर करीब लाने के बाद उस के होंठों पर अपनी उंगली फेरते हुए रौनी बोला, ‘‘हमारी शादी के लिए रुपयों का जुगाड़ हो गया…’’यह सुनते ही रोमा उछल पड़ी और बोली, ‘‘अरे वाह… यह सब तू ने कैसे किया? तेरा मालिक तुझे रुपए उधार देने के लिए तैयार हो गया क्या?’’रोमा के ऐसा पूछने पर रौनी के चेहरे पर एक राजभरी मुसकान और आंखों पर एक अजीब सी शरारत तैर गई और वह रोमा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले कर उस के होंठों को चूमने लगा. रोमा झुंझला कर रौनी से अलग होते हुए बोली,

‘‘छोड़ मुझे… पहले यह बता कि रुपए कहां से आएंगे?’’अपने हाथों से अपने ही होंठों को पोंछते हुए रौनी बोला, ‘‘तुझे हमारे साहब के बच्चे को जन्म देना होगा.’’इतना सुनते ही रोमा चिढ़ गई और बोली, ‘‘तुझे शर्म नहीं आती, कैसी बेशर्मों जैसी बात करता है. मैं भला तेरे साहब के बच्चे की मां क्यों बनूंगी…’’

रोमा के ऐसा कहने पर रौनी हंसते हुए बोला, ‘‘अरे, तुझे साहब के बच्चे की मां नहीं बनना है, बच्चे की मां तो उन की बीवी ही रहेगी, तुझे तो बस उन के बच्चे को अपनी कोख में 9 महीने के लिए रखना है. इस के लिए साहब हमें 2 लाख रुपए देंगे, मकान किराए पर ले कर देंगे और खानापीना सब का खर्चा साहब ही उठाएंगे.’’पहले तो रोमा मानी नहीं, लेकिन जब रौनी ने उसे सरोगेसी मां के बारे में अच्छी तरह से समझाया, अपने प्यार का वास्ता दिया और जल्द ही शादी करने का वादा किया, तो 20 साल की भोलीभाली रोमा सरोगेसी मां बनने के लिए तैयार हो गई.

रोमा ने सारे घरों का काम छोड़ दिया. इतना ही नहीं, अपना घर भी छोड़ दिया. वैसे भी घर पर उस का अपना कोई था नहीं. बाप पूरा दिन शराब के नशे में पड़ा रहता. उसे अपना होश नहीं रहता था, तो वह अपनी बेटी की फिक्र कहां से करता. सौतेली मां के लिए रोमा बोझ ही थी. रोमा के आगेपीछे कोई नहीं था. जो था रौनी ही था, जिस पर उसे अंधा भरोसा था और वह रौनी पर जान छिड़कती थी.रौनी कोलकाता से रोमा को उत्तराखंड ले आया.

यहां आ कर रोमा को पता चला कि जहां वह रहने वाली है वह कोई घर नहीं, बल्कि एक आश्रम है, जहां उस के जैसी और भी बहुत सी लड़कियां और औरतें दिखाई दे रही थीं, जो मां बनने वाली थीं. आश्रम में कुछ जवान लड़कियां और बुजुर्ग औरतें भी थीं, जो साध्वी और सेवादार थीं. यह आश्रम एक जानेमाने आचार्य द्वारा चलाया जा रहा था, जिन का देशविदेश में हर दिन प्रवचन होता था और वे धर्म से जुड़ी कहानियां भक्तों से साझा करते थे.

रोमा को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था, लेकिन वह रौनी का साथ पा कर इन सभी को नजरअंदाज कर रही थी. रोमा की दुनिया अब बदल गई थी. रौनी हर समय उस के साथ रहता, उस का पूरा खयाल रखता. एक महीने के भीतर डाक्टर की निगरानी में रोमा पेट से भी हो गई, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह सब हुआ कैसे? न रौनी के साहब यहां आए और न ही साहब की पत्नी.इस बीच रोमा ने न कभी आश्रम में रह रही किसी लड़की या औरत से कोई बात की और न ही यह जानने की कोशिश की कि वे सब कहां से आई हैं, उन के पति कहां हैं और वे इस आश्रम में कब से हैं.

एक रात अचानक खाना खाने के बाद रौनी कहीं जाने की तैयारी करने लगा. यह देख कर रोमा बोली, ‘‘रौनी, तू कहीं जा रहा है क्या?’’रोमा के ऐसा कहने पर रौनी बोला, ‘‘हां, काम पर तो लौटना होगा. शादी की तैयारी जो करनी है.’’यह सुन कर रोमा का चेहरा उतर गया. वह रोआंसी हो गई और रौनी के गले लगते हुए बोली, ‘‘तू मत जा, रौनी. मैं तेरे बगैर यहां नहीं रह पाऊंगी.

फिर अभी तो बच्चे के होने में पूरे 9 महीने हैं. मैं यहां अकेली तेरे बगैर कैसे रहूंगी… मैं भी तेरे साथ चलती हूं.’’रोमा को इस तरह रोते और साथ चलने की जिद करते देख रौनी उसे समझाते हुए बोला, ‘‘देख, साहब और मेमसाहब की पहली शर्त यही थी कि उन का बच्चा इसी आश्रम में पैदा हो, ताकि बच्चे में अच्छे गुण और संस्कार आएं, इसलिए तुझे यहीं रहना होगा और मुझे तो जाना ही होगा. ‘‘शादी के लिए और भी रुपयों की जरूरत पड़ेगी. तुझे दुखी होने की कोई जरूरत नहीं.

तू यहां अकेली कहां है. इस आश्रम में इतने सारे लोग हैं. सब तेरा ध्यान रखेंगे और मैं भी तो आताजाता ही रहूंगा,’’ ऐसा कह कर रौनी जाने लगा. रोमा उसे भारी मन से आश्रम के बाहर तक छोड़ने के लिए साथ चलने लगी. अभी वे दोनों आश्रम के मेन गेट से कुछ दूर ही पहुंचे थे कि एक लड़की दौड़ती हुई आई और रौनी से लिपट गई. यह देख कर रोमा हैरान थी, क्योंकि वह लड़की बारबार रौनी को अपने साथ ले चलने की बात कह रही थी.वह लड़की कह रही थी,

‘‘रौनी, यह आश्रम, आश्रम नहीं है. यहां लड़कियों की दलाली होती है. उन का शारीरिक शोषण होता है. जबरन उन्हें पेट से किया जाता है और उन से पैदा होने वाले बच्चों को उन पैसे वाले और विदेशी जोड़ों को बेच दिया जाता है, जिन के बच्चे नहीं हैं.’’उस लड़की की बातों को सुन कर रोमा को यह समझने में समय नहीं लगा कि उस के साथ छल हुआ है और वह भी उस लड़की की ही तरह रौनी के हाथों ठगी जा चुकी है. वह रौनी के किसी भी साहब या उन की पत्नी के लिए सरोगेसी मां नहीं बनाई जा रही है, बल्कि इस आश्रम में बच्चों का व्यापार होता है और उसे इसीलिए इस आश्रम में लाया गया है.

रोमा उस लड़की से कोई सवाल करती या फिर रौनी से पूछती कि उस ने उस के साथ यह छल क्यों किया, उस से पहले एक साध्वी तेज कदमों से वहां आई और उस लड़की के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ने के बाद उसे वहां से खींच कर ले जाने लगी. वह लड़की चीखचीख कर रौनी को पुकारती रही और उस से कहती रही, ‘‘रौनी, मुझे इस नरक से ले चलो…’’लेकिन रौनी उस लड़की को अनसुना और रोमा को अनदेखा कर आश्रम के गेट से बाहर अपने नए शिकार की तलाश में निकल गया. रोमा हैरान सी खड़ी रौनी को अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रही.

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