‘‘अरे, कहां भागी जा रही हो?’’ दीपिका को तेजतेज कदमों से जाते हुए देख पड़ोस में रहने वाली उस की सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुए बोली.
‘‘मरने जा रही हूं,’’ दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.
‘‘अरे वाह, मरने और इतना सजधन कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा,’’ सलोनी चुटकी लेते हुए बोली.
‘‘मैं परेशान हूं और तुझे मजाक सूझ रहा है,’’ दीपिका सलोनी को घूरते हुए बोली, ‘‘अभी मैं औफिस के लिए लेट हो रही हूं, तुझ से शाम को निबटूंगी.’’
‘‘अरे हुस्नेआरा, इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई एतराज न हो तो यह नाचीज उन के साथ चलना चाहती है,’’ सलोनी ने दीनहीन होने की ऐक्टिंग करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.
‘‘चल, बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली,’’ सलोनी की पीठ पर हलका सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली, ‘‘एक तू ही तो है, जो मेरा दुखदर्द समझती है.’’
बातोंबातों में दोनों पड़ोसन सहेलियां बसस्टैंड पहुंच गईं. कुछ ही देर में करोल बाग वाली बस आ गई.
एक तो औफिस टाइम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्कामुक्की के बीच दोनों सहेलियां बस में सवार हो गईं. यह अच्छा था कि 2 सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.
‘‘कुछ तो अच्छा हुआ,’’ कहते हुए दीपिका सलोनी का हाथ पकड़ कर झट से उस खाली बर्थ पर कर बैठ गई.
सलोनी ने पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों बोल रही है? चल, अब साफसाफ बता कि क्या हुआ...? और यह चांद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?’’