
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में लगभग तीन साल पूर्व घटित हत्या के एक मामले का खुलासा जुलाई 2020 में हुआ. अर्थात् 3 वर्ष बाद ही सही मामले का खुलासा हुआ है. इस मामले में चौंकाने वाली बात यह कि रायपुर पुलिस ने मृतक के बेटे को गिरफ्तार किया है. मामला राजधानी रायपुर के डीडी नगर थाना क्षेत्र का है.
अक्सर देखा गया गया है कि जो हत्या होती है, अपराध होते हैं. उनमें आसपास के लोगों का ही हाथ होता है. यहां अपने ही निकटतम जनों के खून से सने हाथों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि जहां वह अपनों के बीच प्रेम, सद्भावना और विश्वास पाता है. आस्था और प्रेम प्राप्त करता है वहीं जब रिश्तो के धागे टूटने लगते हैं तो बात हत्या और अन्य तरह के अपराधों तक पहुंच जाती है. आज हत्या के इस पहलू पर हम इस विशेष लेख में आपसे रूबरू हो रहे हैं.
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आइए! देखते हैं अपनों ही के हाथों से कैसे-कैसे अपराध घटित हो जाते हैं-
पहली घटना- यगढ़ जिला के खरसिया थाना अंतर्गत एक लोमहर्षक हत्या हुई एक पुत्र ने मां की हत्या कर दी. कारण यह था कि मां ने उसे शराब पीने के लिए पैसा देने से अंततः इंकार कर दिया था. कलयुगी पुत्र ने मां की हत्या कर दी.
दूसरी घटना- छत्तीसगढ़ के जिला मुंगेली में एक भाई ने अपने ही बड़े भाई की हत्या कर दी. मामला जमीन जायदाद के मसले को लेकर घटित हुआ था.
तीसरी घटना- कोरबा जिला के पसान थाना अंतर्गत एक गांव में बुजुर्ग शख्स ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि वह उसके कहे मुताबिक भोजन नहीं बना रही थी.
ऐसे ही अनेक घटनाएं हमारे आसपास आए दिन घटित होती रहती है. इन्हें देखकर हम अनदेखा कर देते हैं जबकि सच्चाई यह है कि यह समाज का एक ऐसा पहलू है जिसका निरंतर समाजशास्त्रीय अध्ययन चलता रहता है. यह समाज की एक बड़ी विकृति है, जिसे दुरुस्त करना भी समाज का ही दायित्व है.
पिता की हत्या, राज दफन
दरअसल 11 जनवरी 2017 को राजधानी रायपुर के ग्राम सरोना में सीताराम ध्रुव सर में चोट लगने की वजह से गंभीर रूप से घायल हो गया था. स्वाभाविक रूप से उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया वहीं 24 जनवरी 2017 को इलाज के दरमियान सीताराम की मौत हो गई थी. इस मामले में डीडी नगर पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की थी. सीताराम ग्राम खपरापोल, जिला महासमुंद का रहवासी था.
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सीताराम के सर पर मिले चोट के निशान और शुरुआती पूछताछ में हत्या की आशंका मानते हुए पुलिस जाँच कर रही थी. इस दौरान साढ़े तीन साल में पुलिस मृतक के परिजनों से कई बार पूछताछ करती रही थी. लेकिन कामयाबी अब जाकर जुलाई 2020 में मिली. पुलिस जांच के दरमियान सूक्ष्म रूप से मृतक के बेटे पंकज ध्रुव की गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए हुए थी. पुलिस को जब यह पूरी तरह से यकीन हो गया कि सीताराम का हत्यारा उसका बेटा पंकज ही है, तो पुलिस अधिकारियों ने कड़ाई से पूछताछ की. और जैसा कि होता है, अंततः पूछताछ में पंकज टूट गया उसने अपने पिता की हत्या करना कबूल कर लिया.
पंकज ने आंसू बहाते हुए बताया कि वह पिता से बहुत सारे रुपए चाहता था मगर पिता उसे नालायक समझकर टालते रहते थे. उसने सोचा क्यों नहीं पिता को मारकर सारी संपत्ति का मालिक बन जाए.
कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों का अध्याय लिखा जाने लिखा.
साली को घरवाली बनाने की थी योजना
समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.
अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे.
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आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.
वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.
रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.
पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’
रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए.
डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया.
इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.
तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया.
लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.
संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई.
समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी.
इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.
दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे.
बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क
इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.
आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी.
9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था.
प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.
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आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें.
आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल
प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.
हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो.
वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.
किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था.
आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया.
गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.
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मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.
कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.
आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.
आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.
आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.
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आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.
विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.
दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.
बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.
सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.
बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.
पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.
13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.
आसिफ से की पूछताछ
अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.
हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.
उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.
पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.
चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.
आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.
कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.
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अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.
टूट गया आसिफ
आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’
राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.
‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’
आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’
एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.
थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.
वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.
न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.
फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.
वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.
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चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.
दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी बौर्डर थाना एकदम दिल्ली की सीमा से सटा है. यूपी और दिल्ली की सीमा से सटा होने के कारण लोनी बौर्डर थाने की पुलिस अपराधियों पर नजर रखने के लिए 24 घंटे सतर्क रहती है. आमतौर पर इस थाने के इंचार्ज भी रातरात भर जाग कर क्षेत्र में गश्त करते रहते हैं.
11 और 12 जनवरी, 2020 की रात को लोनी बौर्डर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह अदालत में एक जरूरी एविडेंस के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. थाने के एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह थानाप्रभारी की जिम्मेदारी उठा रहे थे.
रात के करीब 4 बजे का वक्त था जब राजेंद्र पाल सिंह सरकारी जीप में अपने हमराहियों के साथ पूरे क्षेत्र में गश्त कर के थाने की तरफ लौट रहे थे कि उन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष से वायरलैस पर सूचना मिली कि 3-4 बदमाशों ने बेहटा हाजीपुर में मेवाती चौक पर रहने वाले कारोबारी आसिफ अली सिद्दीकी के घर में घुस कर डाका डाला है और लूटपाट का विरोध करने पर व्यापारी की पत्नी समरीन का गला दबा दिया है.
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वायरलैस से मिली सूचना इतनी ही थी, लेकिन इतनी गंभीर थी कि राजेंद्र पाल सिंह ने थाने न जा कर घटनास्थल पर पहुंचने को प्राथमिकता दी. वहां से मेवाती चौक की दूरी करीब 4 किलोमीटर थी, वहां तक पहुंचने में उन्हें महज 10 मिनट का वक्त लगा.
मेवाती चौक पर आसिफ अली सिद्दीकी का घर मुख्य सड़क पर ही था. वहां आसपड़ोस के काफी लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी. घर में रोनेपीटने की आवाजें आ रही थीं.
वहां पहुंचने पर पता चला कि आसिफ अली सिद्दीकी कुछ लोगों के साथ अपनी पत्नी समरीन को जीटीबी अस्पताल ले गया है, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया है. वारदात के बारे में ज्यादा जानकारी तो कोई नहीं दे सका, लेकिन यह जरूर पता चल गया कि पुलिस नियंत्रण कक्ष को वारदात की सूचना पड़ोस में रहने वाले रईसुद्दीन ने दी थी.
रईसुद्दीन ने एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बताया कि रात करीब पौने 4 बजे आसिफ ने अपनी छत पर चढ़ कर ‘‘बचाओ… बचाओ.. डकैत.. डकैत’’ कह कर चिल्लाना शुरू किया था. जिस के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वहां एकत्र हो गए थे. पड़ोसियों ने आसिफ के घर के मुख्यद्वार के बाहर से लगी कुंडी खोली थी, जिसे बदमाश भागते समय बाहर से लगा गए थे.
चूंकि समरीन की हत्या आपराधिक वारदात के दौरान हुई थी, इसलिए उस का पोस्टमार्टम कराने की काररवाई पुलिस को ही करनी थी. इसलिए राजेंद्र पाल सिंह ने अपने सहयोगी एसआई विपिन कुमार को स्टाफ के साथ जीटीबी अस्पताल रवाना कर दिया. विपिन कुमार ने जीटीबी अस्पताल पहुंच कर इमरजेंसी में मौजूद डाक्टरों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि समरीन को जब लाया गया था, उस से पहले ही उस की मृत्यु हो चुकी थी.
विपिन कुमार ने डाक्टरों से बातचीत कर उन के बयान दर्ज किए और शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लिखापढ़ी की औपचारिकताओं को पूरी करने में सुबह के करीब 6 बज चुके थे. आसिफ का रोरो कर बुरा हाल था. विपिन कुमार ने आसिफ को ढांढस बंधाया और उसे अपने साथ ले कर उस के घर मेवाती चौक पहुंच गए.
इस दौरान एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह ने घटना की सूचना से लोनी के सीओ राजकुमार पांडे, एसपी (देहात) नीरज जादौन और एसएसपी कलानिधि नैथानी को अवगत करा दिया था. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एक दिन पहले ही गाजियाबाद में एसएसपी का पद संभाला था. उन के आते ही जिले में गंभीर अपराध की ये पहली घटना थी.
सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी कुछ ही देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. सीओ राजकुमार पांडे ने डौग स्क्वायड की टीम के साथ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और क्राइम टीम को भी मौके पर बुला लिया था. इन सभी टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर अपना अपना काम शुरू कर दिया.
यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसआई विपिन कुमार आसिफ को ले कर उस के घर पहुंच गए. इस के बाद आसिफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. उस ने अपने साथ हुई घटना का ब्यौरा देना शुरू कर दिया.
आसिफ ने सुनाया वाकया
आसिफ ने बताया कि शनिवार रात को वह मकान की पहली मंजिल पर अपनी पत्नी समरीन (32) व 2 बच्चों के साथ सो रहा था. रात करीब एक बजे कमरे में आहट हुई. वह उठा तो सामने मुंह पर कपड़ा बांधे 2 बदमाश खड़े थे. जब तक वह कुछ समझ पाता, बदमाशों ने उस पर तमंचा तान दिया और शोर मचाने पर गोली मारने की धमकी दी.
इस बीच एक बदमाश ने साथ में सो रहे डेढ़ वर्षीय बेटे तैमूर और पत्नी की गरदन पर छुरा रख दिया. इस के बाद बदमाशों ने उस के और पत्नी के हाथ बांध दिए. बदमाशों ने उन से मारपीट करते हुए पूछा कि 5 लाख रुपए कहां हैं.
‘‘कैसे रुपए, कौन से रुपए…’’ उस ने बदमाशों से पूछा.
उस ने बदमाशों को बता दिया कि वह छोटा सा कारोबार करता है, उस के घर में इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी. जब आसिफ ने रुपए न होने की बात कही तो एक बदमाश ने धमकी दी कि तुम्हारी गरदन काट देंगे.
यह सुन कर उस की पत्नी समरीन की चीख निकल गई. इस से घबराए एक बदमाश ने रजाई से समरीन का मुंह दबा दिया. इस के बाद एक बदमाश ने अलमारियों की चाबी ले कर अंदर रखे एक लाख 30 हजार रुपए कैश व करीब 70 हजार रुपए के गहने निकाल लिए. आसिफ ने यह भी बताया कि ये गहने उस ने अपनी साली की शादी में देने के लिए बनवाए थे, जिस की मार्च में शादी है.
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आसिफ ने बताया कि इस बीच एक बदमाश बाहर गया और जीने पर खड़े अपने साथी से बात करने लगा, जीने पर खड़ा बदमाश अंदर नहीं आना चाह रहा था. घर से बाहर गए बदमाश ने उस से कहा कि 5 लाख रुपए नहीं मिल रहे, इस पर बाहर खड़े बदमाश ने कहा कि 5 लाख रुपए घर में ही हैं. ऊपर वाले कमरे में जा कर देखो.
आसिफ ने बताया कि गहने व कैश निकालने के बाद एक बदमाश आसिफ को गनपौइंट पर मकान की तीसरी मंजिल पर ले गया, जबकि दूसरा बदमाश समरीन का मुंह रजाई से दबाए वहीं खड़ा रहा. तीसरी मंजिल पर उन का साला जुनैद (15 साल), बेटी उजमा (12 साल) और बेटा आतिफ (9 साल) सो रहे थे. वहां पहुंच कर बदमाशों ने जुनैद को उठाया और उस के हाथ पैर बांध दिए. उन्होंने जुनैद से 5 लाख रुपए के बारे में पूछा और मारपीट की.
इस बीच पहली मंजिल पर समरीन का मुंह दबाने वाला बदमाश उस के डेढ़ साल के बेटे तैमूर को ऊपर ले कर आया और उस की गरदन पर छुरा रख कर 5 लाख रुपए मांगे. आसिफ का कहना था कि यह देख वह रोते हुए बदमाशों के पैरों मे गिर पड़ा और उसे छोड़ने के लिए कहा.
इस पर बदमाशों ने बच्चे को छोड़ दिया और उन सभी को कमरे में बंद कर के धमकी दी कि यदि आधे घंटे से पहले कमरे से बाहर निकले तो सभी को मार डालेंगे. इस के बाद वे फरार हो गए. जाने से पहले वे घर के मुख्यद्वार की कुंडी भी बाहर से लगा गए.
बदमाशों के जाने के बाद मचाया शोर
आसिफ के साले का कहना था कि डर की वजह से वे लोग 20 मिनट तक चुप रहे. इस के बाद आसिफ ने किसी तरह हाथ की रस्सी खोली और खिड़की के पास जा कर पड़ोसी राशिद को आवाज लगाई. पड़ोसियों ने पहले मुख्यद्वार की कुंडी खोली फिर मकान के भीतर आ कर कमरे को बाहर से खोला.
वह वहां से पहली मंजिल पर पत्नी को देखने गया तो वह बेहोश मिली. पड़ोसियों की मदद से वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
आसिफ के मुंह से पूरी वारदात की कहानी सुनने के बाद एसएसपी ने एसपी (देहात) को इस वारदात का जल्द से जल्द खुलासा करने की हिदायत दी.
जिस के बाद सीओ राजकुमार पांडे के निर्देश पर लोनी बौर्डर थाने में 12 जनवरी की सुबह धारा 452/394/302/34/120बी/ भादंवि के तहत मुकदमा पंजीकृत करा लिया गया. इस केस की जांच का काम एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को सौंपा गया.
घटना का खुलासा करने के लिए सीओ राजकुमार पांडे ने राजेंद्र पाल सिंह के अधीन एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया, जिस में एसआई विपिन कुमार, हैड कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल विपिन कुमार, मनोज और दीपक को शामिल किया गया.
उसी दोपहर पुलिस ने समरीन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया. परिजनों ने उसी शाम गमगीन महौल में समरीन के शव को सुपुर्दे खाक कर दिया.
आसिफ अली सिद्दीकी मूलरूप से मेरठ के जानी कलां गांव का रहने वाला है. उस के पिता अफसर अली गांव में खेतीबाड़ी का काम करते हैं. अफसर अली की 6 संतानों में 5 लड़के और एक लड़की है. आसिफ (43) भाइयों में तीसरे नंबर पर है. सभी भाईबहनों की शादी हो चुकी है.
आसिफ अली ने युवावस्था में बैटरी की प्लेट बनाने का काम सीखा था. सन 2006 में उस की शादी जानी कलां के रहने वाले तनसीन की बेटी समरीन से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए, 2 बेटे और एक बेटी. बड़ा बेटा आतिफ (9) साल का है जबकि सब से छोटा तैमूर अभी डेढ़ साल का है. बेटी उजमा तीनों बच्चों में सब से बड़ी है.
तनसीन अली बेटी समरीन की शादी से कई साल पहले गांव छोड़ कर लोनी के बेहटा की उत्तरांचल विहार कालोनी में आ बसे थे. उन्होंने छोटा सा प्लौट खरीद कर अपना घर बना लिया था.
तनसीन फैक्ट्रियों से माल खरीद कर किराने की दुकानों पर सप्लाई करते थे, जिस से उन के परिवार की गुजरबसर ठीकठाक हो रही थी. बेटी समरीन के निकाह में भी उन्होंने अच्छा पैसा खर्च किया था. शादी के बाद समरीन गांव में पति आसिफ के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रही थी.
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आसिफ भी खूबसूरत पत्नी को बेइंतहा प्यार करता था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. समरीन एक के बाद 2 बच्चों की मां बन गई. पहले उजमा का जन्म हुआ फिर आतिफ पैदा हुआ. 2 बच्चे हो गए तो घर के खर्च भी बढ़ गए, लेकिन कमाई कम थी. इसलिए आसिफ ने गांव छोड़ कर शहर में बसने का फैसला किया.
आसिफ ने लोनी में बढ़ाया अपना धंधा
सन 2014 में सासससुर की सलाह पर आसिफ लोनी के बेहटा आ कर किराए के मकान में रहने लगा. यहीं पर उस ने अपना बैटरी की प्लेट बनाने का कारोबार बढ़ाना शुरू किया. एक साल के भीतर ही उस ने अपने पिता और ससुर की मदद से मेवाती चौक के पास 50 गज का एक प्लौट ले कर उस में तीनमंजिला मकान बना लिया.
जांच एजेंसियां उस की संपत्तियों का पूरा ब्यौरा जुटा रही हैं. इस से जुड़े दस्तावेज भी खंगाल रही हैं. आईबी, रा और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) देविंदर सिंह से सघन पूछताछ कर आतंकियों के साथ उस के कनेक्शन की तह में जाने का प्रयास कर रही हैं.
माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में आतंकियों के साथ गठजोड़ के उस के कई राज सामने आ सकते हैं. पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश में है कि जब आतंकी नावीद ने प्रवासी मजदूरों की हत्या की थी तो क्या देविंदर को इस की जानकारी थी. चूंकि पुलवामा हमले के आसपास भी देविंदर पुलवामा में तैनात था, ऐसे में जांच एजेंसियां अब इन मामलों में भी उस की भूमिका का पता लगाने में जुट गई हैं.
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देविंदर सिंह की गिरफ्तारी से खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी भी सामने आ रही है. दरअसल, सवाल उठ रहे हैं कि जब नौकरी के शुरुआती दौर से ही देविंदर सिंह आपराधिक और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया गया था तो वह लगातार नौकरी क्यों करता रहा और कैसे वह प्रमोशन पा कर डीएसपी जैसे ओहदे तक पहुंच गया. सब से बड़ी चौंकाने वाली बात तो यह है कि करीब 18 साल पहले संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफजल गुरु ने जब डीएसपी देविंदर सिंह का नाम लिया था, तो देश की किसी भी जांच एजेंसी ने देविंदर के साथ अफजल गुरु के कनेक्शन की जांच क्यों नहीं की?
दिल्ली में संसद पर 13 दिसंबर 2001 को आतंकी हमला हुआ था. इस हमले को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खूंखार आतंकियों ने अंजाम दिया था. इस आतंकी हमले में कुल 14 लोगों की जान गई थी. हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी की सजा दी गई थी.
संसद हमले के आरोप में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु फांसी दिए जाने से पहले 2013 में अपने वकील सुशील कुमार को एक लंबा पत्र लिखा था, जिस में उस ने देविंदर सिंह पर गंभीर आरोप लगा कर उसे आतंकवादियों का संरक्षक बताया था. खत में अफजल ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर पुलिस के स्पैशल टास्क फोर्स के डीएसपी देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने संसद पर हुए हमले के आरोपी आतंकी मोहम्मद की मदद की थी, जो हमले के दौरान मारा गया था.
अफजल गुरु ने अपने ट्रायल के दौरान हमेशा माना कि वह मोहम्मद के संपर्क में था. एक फोन के जरिए जो मोहम्मद के शरीर के साथ मिला था. अफजल गुरु ने कहा था कि वह फोन भी स्पैशल टास्क फोर्स ने ही दिया था. अपने वकील को लिखे खत में अफजल गुरु ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर के डीएसपी देविंदर सिंह ने उस का टौर्चर किया, उस से पैसे वसूले और संसद हमले में शामिल एक आतंकी मोहम्मद से उस की जानपहचान करवाई. अफजल गुरु ने खत में लिखा था कि देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने आतंकियों के लिए दिल्ली में किराए पर घर लिया और कार का इंतजाम करवाया.
लेकिन हैरानी की बात है कि उस वक्त देविंदर सिंह के ऊपर जांच नहीं बिठाई गई. लेकिन अब जबकि देविंदर सिंह आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो खुफिया एजेंसियों के लिए अफजल गुरु का यह खत महत्त्वपूर्ण हो गया है, जो अफजल गुरु ने अपने अपने वकील को लिखा था. इस खत में अफजल गुरु ने देविंदर सिंह को द्रविंदर सिंह के नाम से संबोधित किया था.
हालांकि अफजल गुरु के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती. लेकिन 2013 में भी जब अफजल गुरु ने अपने वकील को खत लिखा था, तो उस के तथ्यों की जांच क्यों नहीं हुई, ये गंभीर प्रश्न है? उस वक्त पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने अफजल की बात को देविंदर के खिलाफ साजिश मान कर खारिज क्यों कर दिया था? अफजल गुरु ने डीएसपी देविंदर सिंह पर सनसनीखेज आरोप लगाए थे. अगर जांच हो जाती तो शायद आस्तीन में पल रहे एक सांप का फन 16 साल पहले ही कुचल दिया जाता.
अफजल गुरु ने जो खत लिखा था, उस के बारे में जानना बेहद जरूरी है. मीडिया की सुर्खियां बन चुके इस खत में अफजल ने लिखा था, ‘एक दिन मैं अपने स्कूटर से 10 बजे के करीब कहीं जा रहा था. वह स्कूटर मैंने 2 महीने पहले ही खरीदा था. पैहल्लन कैंप के पास एसटीएफ के जवानों ने अपनी बुलेटप्रूफ जिप्सी में मेरी तलाशी ली और थाने ले गए, वहां मुझे टौर्चर किया गया, मुझ पर ठंडा पानी डाला गया, बिजली के करंट लगाए गए, पैट्रोल और मिर्ची से मेरा टौर्चर हुआ. उन लोगों का कहना था कि मैं अपने पास हथियार रखता हूं. लेकिन शाम तक एक इंसपेक्टर ने मुझे कहा कि अगर मैं 10 लाख रुपए डीएसपी साहब को दे देता हूं तो मैं छूट सकता हूं. अगर मैं पैसे नहीं देता हूं तो ये लोग मुझे मार डालेंगे.’
अफजल ने खत में आगे लिखा, ‘उस के बाद ये लोग मुझे ले कर हुमहमा एसटीएफ कैंप गए. वहां डीएसपी देविंदर सिंह ने भी मेरा टौर्चर किया. टौर्चर करने वाले एक इंसपेक्टर शैंटी सिंह ने 3 घंटे तक उसे नंगा रखा और बिजली के करंट लगाता रहा. इलैक्ट्रिक शाक देते वक्त वे लोग मुझे एक टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए पानी पिलाते रहे. आखिरकार मैं उन्हें 10 लाख रुपए देने को राजी हुआ.
‘इन पैसों के लिए मेरे परिवार ने मेरी बीबी के गहने बेच दिए. लेकिन इस के बाद भी सिर्फ 80 हजार की रकम जमा हो पाई. परिवार ने मेरा वो स्कूटर भी बेच दिया, जिसे मैंने 2 महीने पहले ही 24 हजार रुपए में खरीदा था. एक लाख रुपए ले कर उन लोगों ने मुझे छोड़ दिया. लेकिन तब तक मैं टूट चुका था.’
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अफजल के खत के मुताबिक, ‘हुमहमा एसटीएफ कैंप में ही तारिक नाम का एक पीडि़त बंद था, उस ने मुझे सलाह दी कि मैं हमेशा एसटीएफ के साथ सहयोग करता रहूं . अगर मैं ने ऐसा नहीं किया तो ये लोग मुझे आम जिंदगी जीने नहीं देंगे. हमेशा प्रताडि़त करते रहेंगे.’
खत में देविंदर पर कुछ और सनसनीखेज आरोप लगाते हुए अफजल गुरु ने लिखा था, ‘मैं 1990 से ले कर 1996 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ चुका था. मैं कई कोचिंग संस्थानों में पढ़ाता था और बच्चों को होम ट्यूशन भी देता था. इस बात की जानकारी एक शख्स अल्ताफ हुसैन को हुई. अल्ताफ हुसैन बडगाम के एसएसपी अशफाक हुसैन का रिश्तेदार था. अल्ताफ हुसैन ही हमारे परिवार और डीएसपी देविंदर सिंह के बीच मीडिएटर का काम कर रहा था.
‘एक बार अल्ताफ ने मुझ से अपने बच्चों को ट्यूशन देने के लिए कहा. उस के 2 बच्चों में से एक 12वीं और एक 10वीं में पढ़ रहा था. अल्ताफ ने कहा कि आतंकियों के डर की वजह से वो उन्हें पढ़ने बाहर नहीं भेज सकता. इस दौरान मैं और अल्ताफ काफी करीब आ गए.’
एक दिन अल्ताफ मुझे ले कर डीएसपी देविंदर सिंह के पास गया. उस ने कहा था कि डीएसपी साहब को मुझ से छोटा सा काम है. डीएसपी देविंदर सिंह ने कहा कि मुझे एक आदमी को ले कर दिल्ली जाना होगा. चूंकि मैं दिल्ली से अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए मुझे उस आदमी के लिए किराए के मकान का इंतजाम करना था. मैं उस आदमी को नहीं जानता था. लेकिन उस की बातचीत से लग रहा था कि वो कश्मीरी नहीं है. लेकिन देविंदर सिंह के कहने पर मुझे उसे ले कर दिल्ली आना पड़ा.
‘एक दिन देविंदर सिंह ने मुझ से कहा कि वह एक कार खरीदना चाहता है. मैं उसे ले कर करोल बाग गया. वहां से उस ने कार खरीदी. इस दौरान हम दिल्ली में कई लोगों से मिलते रहे. इस दौरान मेरे और उस शख्स के पास देविंदर सिंह के काल आते रहे. एक दिन उस शख्स ने मुझ से कहा कि अगर मैं कश्मीर लौटना चाहता हूं तो लौट सकता हूं. उस ने मुझे 35 हजार रुपए भी दिए और कहा कि ये उस की तरफ से गिफ्ट है.
‘संसद पर हमले से 6 या 8 दिन पहले मैं ने इंदिरा विहार में अपने परिवार के लिए किराए पर घर लिया था. मैं अपने परिवार के साथ वहीं रहना चाहता था, क्योंकि मैं अपनी मौजूदा जिंदगी से खुश नहीं था. मैं ने अपने घर की चाबी अपने मकान मालकिन को दी और उन्हें कहा कि ईद मनाने के बाद मैं वापस लौट आऊंगा.
‘मैं ने श्रीनगर में तारिक को फोन किया. शाम को उस ने पूछा कि मैं दिल्ली से कब वापस आया. मैं ने कहा कि एक घंटे पहले. अगली सुबह जब मैं सोपोर जाने के लिए निकलने वाला था, श्रीनगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस मुझे पकड़ कर परमपोरा पुलिस स्टेशन गई. वहां तारिक भी मौजूद था. उन्होंने मेरे 35 हजार रुपए ले लिए, बुरी तरह से पीटा और वहां से सीधे एसटीएफ हेडक्वार्टर ले गए. वहां से मुझे दिल्ली लाया गया.’
यह उस खत का मजमून है जो अफजल गुरु ने अपने वकील को लिखा था और मीडिया की सुर्खी बनने के बावजूद इस की जांच नहीं हुई. हो सकता है कि जांच एजेंसियों की कोई मजबूरी रही हो लेकिन जम्मूकश्मीर पुलिस इस खत के आधार पर अंदरूनी जांच कर के हकीकत का पता तो लगा ही सकती थी, ताकि आज खाकी की जो बदनामी हुई है, उस से बचा जा सकता था.
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अफजल गुरु के खत की जांच नहीं होने और देविंदर सिंह पर अब तक लगे सभी आरोपों को नजरअंदाज करने से एक बात यह भी साफ है कि राज्य की पुलिस या केंद्रीय स्तर पर कोई ऐसा अधिकारी जरूर था, जो देविंदर सिंह को लगातार बचा रहा था. सवाल यह भी है कि क्या देविंदर सिंह के आका का नाम जांच एजेंसियों के सामने आएगा या एक बार फिर इन तमाम सवालों पर धूल पड़ जाएगी?
पूछताछ में पता चला कि नावीद खान, इरफान व आसिफ को सुरक्षित जम्मू पहुंचाने के लिए देविंदर सिंह ने उन से 12 लाख रुपए की रकम ली थी. दरअसल, नावीद बाबू की मां और उस का भाई फिलहाल जम्मू में हैं और वह शायद जवाहर टनल के जरिए सुरक्षित जम्मू जाने और वहां कुछ दिन बिताने के लिए सिंह को पैसे देता था. नावीद ने पुलिस को बताया कि उस का एक दूसरा भाई पंजाब में पढ़ाई करता है.
पैसे ले कर डीएसपी आतंकियों को देता था संरक्षण
देविंदर सिंह ने यह भी कबूल कर लिया कि पिछले साल भी इन आतंकियों को ले कर जम्मू गया था. इसीलिए वे एकदूसरे पर भरोसा करते थे. पिछले साल की घटना के बारे में संभवत: किसी को भनक नहीं लग पाई. मीर नाम का व्यक्ति इस डील में बिचौलिए के तौर पर उन से जुड़ा था. पूछताछ में खुलासा हुआ कि देविंदर सिंह इस से पहले पुलवामा में तैनात था, जहां नावीद और वह एकदूसरे के संपर्क में आए थे.
इसी के बाद से समयसमय पर डीएसपी देविंदर सिंह उसे व उस के साथियों को पैसा ले कर सरंक्षण देने लगा. पुलिस के लिए देविंदर सिंह से जुड़ा यह खुलासा इसलिए चौंकाने वाला था क्योंकि उस के पकड़े जाने से एक सप्ताह पहले ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मूकश्मीर के दौरे पर कुछ विदेशी राजदूतों का एक डेलीगेशन आया था. उन्हें रिसीव करने वाले पुलिस अधिकारियों के समूह में देविंदर सिंह भी शामिल था.
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एक डीएसपी के आतंकी कनेक्शन की भनक जैसे ही मीडिया को लगी तो पूरे देश में हंगामा मच गया. आईबी, रा और एनआईए के अधिकारी उस से अलगअलग पूछताछ करने में जुट गए. देविंदर सिंह की अब तक की तमाम नियुक्तियों और उस के गुडवर्क की फाइलों से धूल हटा कर उन्हें दोबारा खंगाला जाने लगा तो देविंदर सिंह का संसद हमले में आतंकी अफजल गुरु से भी कनेक्शन सामने आया.
जांच एजेंसियों को यह भी पता चला कि एक अजीब संयोग रहा कि जहांजहां भी देविंदर सिंह की नियुक्ति रही थी, उन तमाम जगहों पर कोई न कोई बड़ा आतंकी हमला जरूर हुआ था.
जांच एजेंसियों ने पूछताछ के साथ जब देविंदर सिंह की कुंडली खंगालनी शुरू की तो उस के काले अतीत की तमाम परतें उधड़ती चली गईं.
नौकरी के शुरुआती दौर में ही आ गया था शक के दायरे में
देविंदर सिंह रैना मूलरूप से आतंकवादियों के गढ़ के रूप में विख्यात पुलवामा जिले के त्राल कस्बे का रहने वाला है. देविंदर सिंह 1990 में जम्मूकश्मीर पुलिस में सबइंस्पेक्टर के रूप में भरती हुआ था. नौकरी के शुरुआती दौर में ही देविंदर व एक अन्य एसआई के खिलाफ अंदरूनी जांच हुई थी. उन्होंने एक व्यक्ति को भारी मात्रा में अफीम के साथ गिरफ्तार किया था, लेकिन उस मादक पदार्थ तस्कर को पैसे ले कर छोड़ दिया गया.
इस के बाद उन्होेंने बरामद हुई अफीम को भी बेच दिया और मोटा पैसा कमाया. इस मामले का कुछ समय बाद खुलासा हुआ तो जांच शुरू हुई और देविंदर सिंह को नौकरी से बर्खास्त करने का फैसला लिया गया, लेकिन इसी बीच आईजी स्तर के एक अधिकारी ने मानवीय आधार का वास्ता दे कर इस फैसले को रुकवा कर मामले को रफादफा कराया था. लेकिन देविंदर और दूसरे एसआई का वहां से ट्रांसफर कर दिया गया.
लेकिन देविंदर सिंह की हरकतें नहीं रुकीं. 1997 में बडगाम में तैनाती के दौरान भी फिरौती मांगे जाने की शिकायत हुई थी, जिस पर उसे पुलिस लाइन में भेज दिया गया था.
इस के बाद उस की तैनाती स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी में हुई. वहां से कुछ महीनों बाद देविंदर सिंह का तबादला ट्रैफिक पुलिस में कर दिया गया था. इस के बाद देविंदर सिंह 2003 में कोसोवो गए शांति मिशन दल का भी हिस्सा बना. वापस आने के बाद वह आतंकवाद निरोधी दस्ते में शामिल हो गया.
यहीं पर आतंक से जुड़े दहशतगर्दों से उस की जानपहचान हो गई और वह उन्हें संरक्षण देने के लिए पैसा कमाने लगा. 2015 में तत्कालीन डीजीपी के. राजेंद्रा ने उस की तैनाती शोपियां तथा पुलवामा जिला मुख्यालय में की. पुलवामा में गड़बड़ी की शिकायत पर तत्कालीन डीजीपी डा. एस.पी. वैद ने अगस्त, 2018 में उसे एंटी हाइजैकिंग स्क्वायड में भेज दिया. हांलाकि इस की जांच भी हुई थी.
तेजी से मिले प्रमोशन
आतंकवाद निरोधी दस्ते में तैनाती के समय उसे आतंकियों के खिलाफ काररवाई करने के लिए पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया था. इसी दौरान उसे तेजी से प्रमोशन मिले और वह डीएसपी पद तक जा पहुंचा. पुलवामा हमले के वक्त वह वहां का डीएसपी था. वर्तमान में वह श्रीनगर एयरपोर्ट सुरक्षा इंचार्ज के तौर पर काम कर रहा था.
रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके देविंदर सिंह की उम्र इस वक्त 57 साल की है. उस की एक संपत्ति श्रीनगर में दूसरी जम्मू में है. इस का परिवार त्राल कस्बे में रहता है और यहां उस का सेब का बागान है.
देविंदर के मातापिता दिल्ली में उस के भाई के पास रहते हैं. देविंदर सिंह की पत्नी शिक्षक है और इस के 3 बच्चे हैं. 2 बेटियां बांग्लादेश में डाक्टरी पढ़ रही हैं, जबकि बेटा स्कूल जाता है.
देविंदर 10 जनवरी, 2020 को बादामी बाग में इंदिरा नगर स्थित अपने आवास में नावीद व उस के दोनों साथियों को ले कर आया. यहां से वह 11 जनवरी की सुबह अपनी कार में उन्हें बैठा कर जम्मू के लिए रवाना हुआ. देविंदर सिंह का इंदिरा नगर में जो नया आलीशान बंगला बन रहा है, उस का निर्माण कार्य 2017 से चल रहा है.
यह घर श्रीनगर के सब से सुरक्षित और वीआईपी इलाके में है क्योंकि बंगला एकदम कश्मीर में भारतीय सेना के 15वीं कोर के मुख्यालय से सटा है. इसलिए किसी को शक भी नहीं होता था कि यहां एक पुलिस अधिकारी के घर में आतंकवादियों की पनाहगाह है. देविंदर सिंह खुद व उस का परिवार इन दिनों कुछ ही दूरी पर एक रिश्तेदार के घर को किराए पर ले कर रह रहा था.
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पूछताछ में जो खुलासा हुआ है, उस के मुताबिक डीएसपी देविंदर सिंह लंबे समय तक सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकता रहा. इस के खिलाफ कई बार जांच हुई, लेकिन हालात ऐसे रहे कि वह हर बार बच गया. लेकिन देविंदर सिंह इस बार जब श्रीनगर से आतंकियों को ले कर चला तो उस का गुडलक खत्म हो चुका था और वह कानून के शिकंजे में फंस गया.
किसी और की जांच करने के दौरान आ गया पुलिस रडार पर
दरअसल देविंदर सिंह के कानून के शिकंजे में फंसने की कहानी भी काफी रोचक है. वह 2 महीने से पुलिस के रडार पर था. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी को तब अंजाम दिया, जब वह आतंकवादियों के साथ खुद मौजूद था. हुआ यूं था कि शोपियां के डीएसपी संदीप चौधरी के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम कुछ आतंकवादियों के फोन ट्रैक कर रही थी. तभी एक ऐसा नंबर ट्रेस हुआ जो देविंदर सिंह का था.
इस काल में मौजूद सनसनीखेज जानकारियां जब संदीप चौधरी ने सीनियर पुलिस अफसरों को दीं, तो सब चौंक गए. इस के बाद से ही 57 साल के डीएसपी देविंदर सिंह की हर हरकत पर विशेष निगाह रखी जाने लगी. उन की हर काल रिकौर्ड की जाने लगी. आईजी विजय कुमार ने दक्षिण कश्मीर रेंज के डीआईजी अतुल कुमार को देविंदर सिंह को रंगेहाथ पकड़ने के चलाए गए औपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी.
अतुल कुमार ने एक पूरी टीम को इस काम पर लगा दिया. उस के फोन ट्रैक किए जाने लगे. 10 जनवरी को देविंदर सिंह ने जब हिज्बुल के जिला कमांडर नावीद बाबू से बात की तो पुलिस की टीमें एक्टिव हो गईं. उन्हें पूरे प्लान की जानकारी हो गई. पुलिस की टीम को पता था कि पूरी रात दोनों आतंकवादी डीएसपी देविंदर सिंह के घर में ही शरण लिए हुए हैं, लेकिन पुलिस टीम उसे ऐसी जगह पकड़ना चाहती थी जहां सार्वजनिक जगह हो.
पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से किया गिरफ्तार
अगले दिन यानी 11 जनवरी को देविंदर सिंह जैसे ही उन्हें अपनी कार से श्रीनगर से ले कर जम्मू के लिए रवाना हुआ तो कुलगाम के मीर बाजार इलाके में उसे घेर लिया गया. सादे लिबास में कुलगाम पुलिस की 2 टीमें लगातार देविंदर की गाड़ी का पीछा कर रही थीं, जो उच्चाधिकारियों को पलपल की जानकारी दे रही थीं. देविंदर से पूछताछ में पता चला कि आतंकी नावीद बाबू को श्रीनगर से जम्मू ले जाने के लिए उस ने ड्यूटी से छुट्टी ले रखी थी.
फिलहाल हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर नावीद बाबू के साथ गिरफ्तार डीएसपी देविंदर सिंह को जम्मूकश्मीर सरकार ने निलंबित कर दिया है. उसे दिया गया वीरता पदक भी वापस ले लिया गया है. कुलगाम पुलिस ने देविंदर सिंह व उस के 3 अन्य साथियों के खिलाफ अपराध संख्या 5/2020 पर आर्म्स एक्ट की धारा 7/25, विस्फोटक अधिनियम की धारा 3/4 और गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 39, 29 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया है, जिस की जांच नैशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यानी एनआईए को सौंप दी गई है.
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अब तक मामले की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों ने डीएसपी के बैंक खाते और अन्य संपत्तियों की जांच भी शुरू कर दी है, जिस से यह खुलासा हुआ है कि देविंदर सिंह कुछ विदेशी एजेंसियों के संपर्क में था. उस के खातों में विदेशों से कुछ रकम जमा हुई है. माना जा रहा कि डीएसपी कश्मीर पुलिस की वरदी में आईएसआई एजेंट के रूप में डबल एजेंट का रोल निभा रहा था.
कश्मीर के किसी भी हिस्से में पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी संख्या में मौजूदगी वैसे तो कोई नई बात नहीं है. लेकिन दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में 11 जनवरी, 2020 की सुबह से ही पुलिस की गहमागहमी अन्य दिनों से कुछ ज्यादा ही थी. जगहजगह बैरीकेड लगे थे, जहां सीआरपीएफ के जवानों के साथ स्थानीय पुलिस की मौजूदगी बता रही थी कि पुलिस किसी खास शख्स की तलाश में है.
जिले में हर बैरीकेड पर तमाम वाहनों की सघनता से जांच हो रही थी. हर आनेजाने वाले वाहन और उस में सवार लोगों की पहचान के साथ तलाशी ली जा रही थी. हर नाके पर जम्मूकश्मीर पुलिस का कोई न कोई बड़ा अफसर मौजूद था.
करीब सवा 1 बजे का वक्त था, जब काजीकुंड के पास मीर बाजार में तेजी से आ रही एक सफेद रंग की आई-10 कार को सुरक्षा बलों ने रुकने पर मजबूर कर दिया. दरअसल, सुरक्षा बलों ने बैरीकेड कुछ इस तरह लगा रखा था कि तेजी से दौड़ रही कार के ड्राइवर को न चाहते हुए भी कार रोकनी पड़ी.
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‘‘सर, क्या बात है बड़ी तेजी से गाड़ी चला रहे थे, कोई गड़बड़ है क्या?’’ ड्राइविंग सीट के समीप पहुंचे एक सुरक्षाकर्मी ने पूछा.
‘‘कोई गड़बड़ नहीं है डियर, डिपार्टमेंट का आदमी हूं जरा जल्दी में था, यहां इतना बड़ा नाका… कोई खास बात है क्या?’’ ड्राइविंग सीट पर बैठे सिख ने थोड़ा रूआब झाड़ते हुए कहा.
‘‘डिपार्टमेंट के आदमी हैं तो आप को पता ही होगा कि कश्मीर में कुछ खास न भी हो तो भी इतनी सिक्युरिटी जरूरी है.’’ सरदारजी से मुखातिब हुए जम्मूकश्मीर पुलिस के उस अधिकारी ने कहा और बोला, ‘‘आप जरा नीचे आइए, गाड़ी की तलाशी लेनी है और गाड़ी में ये तीनों जनाब कौन हैं?’’
‘‘आप को सीनियर से बात करने की तमीज नहीं है क्या… मैं ने बताया ना कि डिपार्टमेंट का आदमी हूं, ये है मेरा कार्ड डिप्टी एसपी फ्राम एंटी हाइजैकिंग स्क्वायड.’’ नाके पर खड़े पुलिस अफसर ने जब गाड़ी चला रहे सरदारजी की गाड़ी की तलाशी लेने की बात की तो वे भड़क गए और मजबूरी में उन्हें अपना परिचय देना पड़ा और विश्वास दिलाने के लिए पुलिस विभाग का अपना परिचय पत्र भी दिखाया.
सरदारजी की गाड़ी रुकवाने वाले कश्मीर पुलिस के अफसर से वाकई ओहदे में बड़े अफसर निकले, लिहाजा उस ने कार्ड देखने के बाद एक कदम पीछे हटते हुए जोरदार सैल्यूट मारा, ‘‘सौरी सर, लेकिन आप को थोडा कष्ट होगा. ऊपर से और्डर है कि हर गाड़ी की तलाशी लेनी है.’’
पूरा सम्मान देने के बावजूद उस बावर्दी अफसर ने जब गाड़ी की तलाशी लेने की जिद की तो सरदारजी का पारा हाई हो गया. वे ड्राइविंग सीट छोड़ कर बाहर निकल आए और चिल्लाते हुए पूछा, ‘‘कौन है वो ऊपर वाला जिस ने ये और्डर दिया है? आप लोगों को डिपार्टमेंट का भी लिहाज नहीं है.’’
‘‘हम ने दिया है ये और्डर, आप को कोई ऐतराज है.’’ चंद कदम की दूरी पर कुछ सुरक्षाकर्मियों के साथ बातचीत कर रहे दक्षिण कश्मीर के डीआईजी अतुल कुमार गोयल ने सरदारजी को अपने स्टाफ से बहस और ऊंची आवाज में बात करते देखा तो उन्होंने वहां पहुंचते ही कहा.
सामने खड़े अधिकारी की वरदी पर लगे सितारे देख कर खुद को डीएसपी बताने वाले सरदारजी अचानक सकपका गए और बोले ‘‘नो.. सर, नो.. सर.’’ कहते हुए उन्होंने डीआईजी साहब को जोरदार सैल्यूट मारा.
‘‘कहां पोस्टिंग है आप की?’’ डीआईजी अतुल गोयल ने पूछा तो खुद को डीएसपी बताने वाले सरदार ने बताया कि उस का नाम देविंदर सिंह है और वह श्रीनगर में इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर जम्मूकश्मीर पुलिस के एंटी हाईजैकिंग स्क्वायड में डीएसपी है. डीएसपी देविंदर सिंह ने बताया कि इस समय वह छुट्टी पर है और अपनी पहचान वाले दोस्तों के साथ जम्मू जा रहे थे. डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी के अगले शीशे पर जम्मूकश्मीर पुलिस अफसरों को मिलने वाला स्टीकर भी लगा था.
‘‘सौरी डीएसपी, हमें गाड़ी की तलाशी लेनी है.’’ डीआईजी अतुल ने पूरा परिचय जानने के बाद भी जब देविंदर सिंह से कहा तो देविंदर सिंह बोला, ‘‘सर, मैं एक औपरेशन पर हूं आप ये सब कर के मेरा सारा खेल खराब कर दोगे.’’
जब तक डीएसपी देविंदर सिंह डीआईजी अतुल गोयल से ये सब बात कर ही रहे थे कि तभी वहां तेजी से 2 बड़ी प्राइवेट गाडि़यां आ कर रुकीं, जिन में से एक के बाद एक सादे लिबास में हथियारबंद कई लोग उतरे और उन्होंने डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया.
गाड़ी में से उतरे एक शख्स ने डीआईजी अतुल गोयल को सैल्यूट किया और फिर उन के पास जा कर कान में धीमे से कुछ फुसफुसाया. जिस के बाद अचानक डीआईजी अतुल गोयल के तेवर कड़क हो गए, ‘‘बाहर निकालो सब को.’’
डीएसपी की कार में मिले आतंकी
डीआईजी का इतना बोलना था कि बिजली की गति से सुरक्षाकर्मियों ने डीएसपी देविंदर सिंह की गाड़ी में सवार तीनों लोगों को तेजी से खिड़की खोल कर बाहर निकाल लिया. उन के चेहरे पर ढके गर्म मफलर व सिर पर पहनी टोपियां हटवाईं तो वहां खड़े हर सुरक्षाकर्मी तथा पुलिस वालों के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं.
क्योंकि उन में सें एक शख्स का चेहरा काफी हद तक नावीद बाबू से मिलताजुलता था. नावीद बाबू कोई ऐरागैरा शख्स नहीं था, बल्कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का कश्मीर का कमांडर था. कई संगीन हत्याकांडों और आतंकवादी घटनाओं में पुलिस को उस की तलाश थी और उस की गिरफ्तारी पर सुरक्षा एजेंसियों ने 20 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ था.
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गाड़ी की तलाशी ली गई तो उस में से एक हैंडग्रेनेड, एक एके 47 राइफल भी मिली. देविंदर सिंह की गाड़ी में बैठे तीनों लोगों से उन की पहचान से जुड़े दस्तावेज मांगे गए, तो उन की पहचान सैय्यद नवीद अहमद उर्फ नावीद बाबू, उन के सहयोगी आसिफ राथेर और इरफान के रूप में हुई.
‘‘तुम एक आतंकवादी को अपनी गाड़ी में साथ ले कर घूम रहे हो. शर्म नहीं आती… आखिर तुम्हारे इरादे क्या हैं? किस गेम को खेल रहे हो तुम?’’ नावीद अहमद को पहचानते ही डीआईजी अतुल गोयल का पारा चढ़ गया. उन्होंने उसी समय डीएसपी देविंदर सिंह को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया.
डीआईजी अतुल कुमार के इशारे पर डीएसपी देविंदर सिंह और उस के साथ कार में मौजूद तीनों लोगों की तलाशी लेने के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उन की गाड़ी भी कब्जे में ले ली. सभी को कुलगाम की मीर बाजार कोतवाली में ले जाया गया.
थाने में लाते ही डीएसपी देविंदर सिंह समेत हिरासत में लिए गए तीनों लोगों से पूछताछ शुरू हो गई. कई घंटे की पूछताछ के बाद जो सनसनीखेज खुलासा हुआ, उस ने सभी के पांव के नीचे से जमीन जैसे खिसका दी. किसी को पता भी नहीं था कि जम्मूकश्मीर पुलिस की आस्तीन में एक ऐसा सांप पल रहा है, जो आतंकवादियों से मिला हुआ है.
डीआईजी अतुल गोयल ने देविंदर सिंह और उस के साथ गाड़ी में साथ मौजूद दोनों आतंकवादियों से हुई पूछताछ की जानकारी तत्काल कश्मीर जोन के आईजी विजय कुमार को दी. जिन्होंने तत्काल जम्मूकश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह को इस की सूचना दी. डीजीपी के निर्देश पर पुलिस की एक टीम ने श्रीनगर के बादामी बाग इलाके के इंदिरानगर में रहने वाले डीएसपी देविंदर सिंह के निर्माणाधीन बंगले पर छापा मारा.
देविंदर सिंह के घर से मिले हथियार और नकदी
वहां से 2 एके 47 राइफलें और 2 पिस्तौलों के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी जब्त किए गए . इस से साफ हो गया कि देविंदर सिंह का आतंकवादियों के साथ न सिर्फ गठजोड़ है बल्कि वह उन्हें पनाह देने का काम भी करता है.
तलाशी में सेना की 15वीं कोर का पूरा नक्शा, साढ़े 7 लाख रुपए नकद भी बरामद किए गए . देविंदर सिंह के निमार्णाधीन मकान की तलाशी में जो दस्तावेज बरामद किए गए, उस से आतंकवादियों के उस के यहां पनाह लेने के पर्याप्त सबूत थे.
इधर कुलगाम पुलिस को अब तक हुई पूछताछ में पता चल चुका था कि देविंदर सिंह के साथ कार में जो 3 लोग सवार थे, उन में से एक नावीद अहमद शाह उर्फ नावीद बाबू दक्षिणी कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के सब से वांछित कमांडरों में से एक था. पुलिस को काफी समय से उस की तलाश थी. खासतौर से 2018 में सेब बागानों में काम करने वाले गैरकश्मीरी लोगों की हत्या में उस का नाम आने के बाद से पुलिस व सुरक्षाबल सरगर्मी से उस की तलाश में जुटे थे और इसी मामले में उस पर 20 लाख का ईनाम घोषित किया गया था.
बताया जाता है कि नावीद अहमद उर्फ नावीद बाबू पहले जम्मूकश्मीर पुलिस में कांस्टेबल था, लेकिन 2017 में वह पुलिस के 4 हथियार ले कर भाग गया था और जा कर हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था.
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देविंदर सिंह के साथ मौजूद दूसरा आतंकी आसिफ भी आतंक के काम से जुड़ा था. उसे लोगों को फरजी कागजातों के आधार पर पाकिस्तान ले जाने में महारत हासिल थी. आसिफ को दस्तावेज तैयार करने थे, जिस के जरिए वह कानूनी तरीके से पाकिस्तान जाने की तैयारी में था. जबकि तीसरे शख्स का नाम इरफान अहमद था, जो हिज्बुल का कश्मीर में ग्राउंड वर्कर और पेशे से वकील था.
4 नवंबर, 2019 की सुबह से ही अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (स्पैशल न्यायाधीश) बद्री विशाल पांडेय की अदालत के बाहर भारी गहमागहमी थी. अदालत परिसर पुलिस छावनी में बदल गया था. लग रहा था कि कोई बड़ा फैसला होने वाला है.
यही सच भी था. 23 साल पहले 13 अगस्त, 1996 को शाम 7 बजे सिविल लाइंस थानाक्षेत्र के पैलेस सिनेमा हाल और कौफी शौप के बीच समाजवादी पार्टी के झूंसी विधानसभा के बाहुबली विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित, उन के चालक गुलाब यादव और राहगीर कमल कुमार दीक्षित की एके-47 से गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
इस घटना में पंकज कुमार श्रीवास्तव व कल्लन यादव भी घायल हुए थे. कल्लन यादव की मृत्यु गवाही शुरू होने से पहले ही हो गई थी.
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बाहुबली विधायक जवाहर यादव के बड़े भाई और चश्मदीद गवाह सुलाकी यादव ने थाना सिविल लाइंस में मंझनपुर (तब इलाहाबाद लेकिन अब कौशांबी) के रहने वाले करवरिया बंधुओं रामचंद्र मिश्र, श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला, कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूर्यभान करवरिया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
इंसपेक्टर आत्माराम दुबे ने यह मुकदमा धारा 147, 148, 149, 302, 307, 34 भादंवि व क्रिमिनल ला (संशोधन) एक्ट के तहत दर्ज किया था. न्यायाधीश बद्री विशाल पांडेय इसी केस का फैसला सुनाने वाले थे.
हत्या के बाद आरोपी कपिलमुनि करवरिया बसपा से फूलपुर के सांसद, उदयभान करवरिया भाजपा से बारा विधानसभा से विधायक और सूर्यभान करवरिया एमएलसी चुने जा चुके थे, इसलिए यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया था.
बहरहाल, अदालत सुबह से छावनी में तब्दील थी. सुरक्षा के लिहाज से अदालत परिसर को 2 सैक्टरों में बांट दिया गया था. सभी गेटों पर पीएसी का कड़ा पहरा था. यहां तक कि वादियों को भी गहन जांचपड़ताल के बाद ही परिसर में आने दिया गया.
उधर दंगा नियंत्रण वाहनों और आंसू गैस गन ले कर जवान मुस्तैद थे. कर्नलगंज के साथसाथ अतरसुइया, मुट्ठीगंज, जार्जटाउन, खुल्दाबाद, दारागंज समेत यमुनापार व गंगापार के भी कई थानों की फोर्स को अदालत परिसर में लगा दिया गया था. कचहरी के मुख्य गेट पर रस्सा बांध कर बैरिकेडिंग कर दी गई थी. एसपी (सिटी) बृजेश कुमार और सीओ (बेरहना) रत्नेश सिंह गेट पर मोर्चा संभाले थे. सीओ (कर्नलगंज) सत्येंद्र प्रसाद तिवारी एडीजे-5 के कोर्ट के आसपास और इनर सेक्टर की कमान संभाल रहे थे.
प्रयागराज के नैनी जेल में बंद करवरिया बंधुओं कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूर्यभान करवरिया और उन के रिश्तेदार रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू अपराह्न पौने 2 बजे अदालत परिसर में लाए गए.
आरोपियों के परिसर में पहुंचते ही उन के समर्थकों की भारी भीड़ जमा हो गई थी. अभियुक्तों को अदालत कक्ष में ले जाना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. जैसेतैसे एसपी (सिटी) बृजेश कुमार और सीओ रत्नेश सिंह ने चारों आरोपियों को पुलिस घेरे में ले कर एडीजे-5 के कक्ष तक पहुंचाया.
फैसला सुनाए जाने से पहले 31 अक्तूबर, 2019 को अभियोजन पक्ष के सरकारी वकील लल्लन सिंह यादव और बचावपक्ष के वकील ताराचंद गुप्ता के बीच तीखी बहस हुई थी.
आखिरी बहस के दौरान सरकारी वकील लल्लन सिंह यादव ने कहा था, ‘‘योर औनर, यह एक रेयरेस्ट औफ रेयर केस है. करवरिया बंधुओं को फांसी की सजा दी जाए. इस घटना में एके-47 जैसे स्वचालित असलहे का इस्तेमाल कर के भरे बाजार में घटना को अंजाम दिया गया, जिस में 3 लोग मारे गए. मरने वालों में एक राहगीर भी शामिल था. घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई थी. लोग भयभीत हुए और बाजार बंद हो गए थे.’’
बचावपक्ष के अधिवक्ता ताराचंद गुप्ता ने इस बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘सर, यह रेयरेस्ट औफ रेयर का मामला नहीं है. अभियुक्तों का यह पहला अपराध है. अभियुक्तों का इस से पहले का कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है. किस के हाथ में कौन सा असलहा था, इस का जिक्र प्राथमिकी में नहीं है. यह बात अदालत में 23 साल बाद पहली बार बताई गई, इसलिए उदारता बरतते हुए आरोपियों को कम से कम सजा दी जाए.’’
इस घटना में प्रयुक्त सफेद रंग की मारुति वैन को ले कर दोनों पक्षों के बीच बहस हुई. बचावपक्ष के अधिवक्ता ने अभियुक्तों के बचाव में दलील पेश की, ‘‘जिस मारुति वैन संख्या यूपी70-8070 से हमलावरों का आना बताया जा रहा है, उस वैन का इस घटना में इस्तेमाल ही नहीं हुआ. उस समय यह मारुति वैन सुरेंद्र सिंह के पिता के अंतिम संस्कार में शामिल लोग ले गए थे. फिर वह वैन घटनास्थल पर कैसे हो सकती है?’’
बाद में अभियोजन पक्ष के सरकारी अधिवक्ता लल्लन सिंह यादव ने अन्य गवाहों के साथ बहस की. बचावपक्ष की ओर से पेश किए गवाह छेदी सिंह से जब सरकारी वकील यादव ने मारुति वैन की बरामदगी को ले कर पूछताछ की तो उस का बयान विरोधाभासी निकला. गवाहों का कहना था कि घटना के समय वैन रसूलाबाद घाट गई थी. मगर इस का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया. जबकि घटना के कुछ ही देर बाद दर्ज कराई गई एफआईआर में मारुति वैन का नंबर यूपी70-8070 दर्ज किया गया था.
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बहरहाल, बचावपक्ष के अधिवक्ता चारों आरोपियों को बचा पाने में असफल रहे. अपने मुवक्किलों को बचाने के लिए उन्होंने 156 गवाह पेश किए थे, जबकि सरकारी वकील ने अदालत के सामने 18 गवाह पेश किए थे. दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस पूरी होने के बाद जज ने 4 नवंबर, 2019 को इस केस का फैसला सुनाने की तारीख तय कर दी थी. यह मामला क्या था और कैसे इतना चर्चित हुआ, जानने के लिए हमें 23 साल पीछे जाना होगा.
जवाहर यादव का किस्सा कोताह
32 वर्षीय जवाहर यादव उर्फ पंडित मूलत: उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के गांव खैरपाड़ा, थाना बक्शा के रहने वाले थे. उन के पिता भुल्लन यादव अपने तीनों बेटों सुलाकी यादव, जवाहर यादव और मदन यादव को ले कर इलाहाबाद आ गए और मजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करते थे. भुल्लन के तीनों बच्चे काफी छोटे थे.
किशोरावस्था में पहुंचते ही जवाहर यादव इलाहाबाद के नैनी थाना क्षेत्र के अरैल निवासी नामचीन अपराधी और शराब कारोबारी गुलाब मेहरा के संपर्क में आ गए. उन दिनों गुलाब मेहरा की नैनी में तूती बोलती थी. शराब कारोबार के साथसाथ वह गंगा बालू का धंधा भी करते थे.
आगे चल कर जवाहर यादव गुलाब मेहरा का सारा कारोबार देखने लगे. गुलाब मेहरा के ऊपर हत्या, बलात्कार, शराब तस्करी आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. कई मामलों में गुलाब को सजा भी हो चुकी थी. उन्हीं दिनों गुलाब मेहरा की हत्या हो गई. गुलाब मेहरा के कत्ल के बाद जवाहर यादव जरायम की दुनिया में आगे बढ़ते गए.
अब तक जवाहर यादव शराब और बालू का कारोबार अकेले देखते थे. बाद के दिनों में उन के बड़े भाई सुलाकी यादव और साला रामलोचन यादव उन के साथ आ गए. भाई और साले के आ जाने से जवाहर यादव का धंधा और ज्यादा जम गया. जल्द ही जवाहर यादव गांव में दबंग युवकों में शुमार हो गए. उन्होंने आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाया और शराब के धंधे में और तेजी से जुट गए. उस समय झूंसी में गंगा बालू के ठेकों में करवरिया बंधुओं और उन के लोगों का साम्राज्य स्थापित था. बालू के ठेकों को ले कर जवाहर यादव और करवरिया बंधुओं के बीच दुश्मनी हो गई.
शराब के धंधे से की गई अकूत काली कमाई और नौजवानों की टोली से जवाहर यादव बाहुबली बन गए. इसी दम पर जवाहर यादव ने बालू के ठेकों में हाथ डालना शुरू कर दिया. दोनों परिवारों में अनबन की खूनी लकीरों की शुरुआत यहीं से हुई थी. जवाहर यादव ने धीरेधीरे बालू के ठेकों में वर्चस्व जमाना शुरू कर दिया.
1989 के आम चुनावों से पहले जवाहर यादव ने किसी के माध्यम से समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद जवाहर यादव की पौ बारह हो गई.
धीरेधीरे वह इलाहाबाद में मुलायम सिंह यादव के करीबी लोगों में शुमार हो गए. जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो जवाहर यादव ने राजनीति में जाने की ठान ली. धीरेधीरे उन्होंने झूंसी में अपनी सियासी जमीन तैयार की और 1991 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कुछ वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा.
जवाहर यादव को चुनाव में भले ही हार का मुंह देखना पड़ा था, लेकिन खुद का सियासी रसूख स्थापित करने में वह नहीं चूके. रसूख बढ़ते ही बालू के ठेकों में उन का दखल और बढ़ गया. बालू के ठेकों को ले कर करवरिया बंधुओं और जवाहर यादव के बीच दुश्मनी और गाढ़ी होती गई.
जवाहर यादव उर्फ पंडित की किस्मत के सितारे बुलंदियों पर थे. सन 1993 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश में गठबंधन हुआ तो जवाहर यादव पहली बार झूंसी विधानसभा से विधायक चुने गए.
सत्ता की चाबी हाथ आई तो जवाहर यादव का सियासी रसूख तेजी से बढ़ने लगा. बताया जाता है कि उस समय इलाहाबाद की समाजवादी पार्टी की राजनीति जवाहर यादव के इर्दगिर्द ही घूमती थी.
जैसेजैसे विधायक जवाहर यादव का सियासी कद बढ़ा, वैसेवैसे करवरिया बंधुओं की परेशानियां बढ़ती गईं. जवाहर यादव को टक्कर देने के लिए करवरिया बंधुओं ने भी कमर कस ली थी. अब जवाहर यादव और करवरिया बंधुओं की दुश्मनी खुल कर सामने आ गई थी. दुश्मनी की वजह से आखिरकार जवाहर यादव को अपनी जान गंवानी पड़ी.
13 अगस्त, 1996 को जवाहर यादव अपने छोटे भाई सुलाकी और ड्राइवर गुलाब के साथ सिविल लाइंस में एक सभा करने जा रहे थे. उस वक्त शाम के 7 बज रहे थे. जवाहर ने पत्नी को फोन कर के कहा कि पूजा कर लो, मुझे आने में थोड़ी देर होगी.
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जैसे ही विधायक की गाड़ी सिविल लाइंस स्थित पैलेस सिनेमा हाल और कौफीहाउस के बीच पहुंची, तभी एक सफेद रंग की मारुति वैन और एक सफेद रंग की कार आड़ीतिरछी जवाहर यादव के वाहन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. जवाहर यादव जब तक कुछ समझ पाते, तब तक बदमाशों ने एके-47 राइफल से गोलियां बरसा दीं.