Serial Story : अजनबी मुहाफिज- भाग 1

लेखक: शकीला एस हुसैन

उन दिनों मैं जिला गुजरांवाला के थाना सदर में तैनात था. मेरा थाना जीटी रोड के मोड़ पर था. सर्दी का मौसम था. जब मैं थाने पहुंचा तो 2 लोग मेरे इंतजार में बैठे मिले. उन्होंने खबर दी कि नहर के किनारे एक लाश बरामद हुई है.

जिन दिनों अपर चिनाब नहर अपने किनारों तक भर कर बह रही होती है, उस वक्त उस की गहराई करीब 20 फीट होती है. मैं फौरन एएसआई नबी बख्श और एक हवलदार को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गया. मेरी तजुर्बेकार निगाहों ने लाश को देखने के बाद अंदाजा लगा लिया कि मृतक को एक झटके में मौत के घाट उतारा गया है.

कातिल जो भी था, पहलवान या कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, क्योंकि मकतूल को गरदन का मनका तोड़ कर मौत के घाट उतारा गया था. यह टैक्निक किसी आम आदमी के बस की बात नहीं है. मकतूल की उम्र 30 के आसपास थी. वह मजबूत जिस्म का स्मार्ट आदमी था, शानदार मूंछों वाला. उस के बदन पर गरम लिबास था, स्वेटर भी पहन रखा था.

पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद मृतक के कपड़ों में ऐसी कोई चीज नहीं मिल सकी जो काम की होती. उस के जिस्म पर कोई जख्म भी नहीं था. अब तक वहां काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने सभी से लाश के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. एक बूढ़े आदमी ने गौर से देखने के बाद कहा, ‘‘सरकार, मैं इसे पहचनता हूं. मैं ने इसे देखा है. यह फरीदपुर के चौधरी सिकंदर अली के यहां काम करता था.’’

मैं चौधरी सिकंदर को जानता था. उस से 2-3 मुलाकातें हो चुकी थीं. अच्छा आदमी था. कुछ अरसे पहले उसे फालिज का अटैक हुआ था. तब से वह बिस्तर का हो कर रह गया था. मैं ने हवलदार को लाश के पास छोड़ा और खुद घोड़े पर सवार हो कर एएसआई के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. मैं ने हवलदार को कह दिया था कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेजने का बंदोबस्त कर ले.

फरीदपुर वहां से करीब 8 मील दूर था. हम घोड़ों पर सवार थे. अभी हम ने कुछ ही रास्ता तय किया था कि सामने से 2-3 घुड़सवार आते दिखाई दिए. हम उन्हें देख कर रुक गए. मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम लोग कहां जा रहे हो?’’

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‘‘हम लोग आप के पास ही आ रहे थे. आप को हमारे साथ चलना पड़ेगा. बड़ा हादसा हो गया है.’’ एक नौजवान ने कहा.

‘‘कहां चलना पड़ेगा और क्यों?’’

‘‘फरीदपुर, सरकार. वहां के चौधरी का किसी ने कत्ल कर दिया है. हम यही खबर ले कर आए थे.’’

‘‘तुम चौधरी सिकंदर की बात कर रहे हो?’’

‘‘नहीं जनाब, उन्हें कौन कत्ल करेगा. हम उन के बेटे चौधरी रुस्तम की बात कर रहे हैं.’’ उसी नौजवान ने जिस का नाम राशिद था, जवाब दिया.

‘‘किस ने कत्ल किया है और कब?’’

‘‘कातिल के बारे में तो कुछ पता नहीं सरकार. घटना पिछली रात की है. छोटे चौधरी साहब की लाश उधर डेरे पर पड़ी हुई है.’’

फरीदपुर छोटा सा गांव था. 60-70 घरों की आबादी वाला. मैं ने राशिद से पूछा, ‘‘इस हादसे के बाद से फरीदपुर से कोई गायब है क्या?’’

‘‘हां सरकार. आप को कैसे पता लगा? कल रात से कादिर गायब है. उस की ड्यूटी डेरे पर छोटे चौधरी के साथ होती थी, पर रात को वह ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं.’’

‘‘अब वह पहुंचेगा भी नहीं. वह मारा जा चुका है. तुम लोग मेरे साथ नहर पर चलो और लाश पहचान कर तसदीक कर दो.’’

वे लोग मेरे साथ घटनास्थल पर आए. उन्होंने तसदीक कर दी कि लाश कादिर की थी जोकि छोटे चौधरी का खास आदमी था. मैं ने उन्हें बताया, ‘‘लाश नहर में बहती हुई आई है. किसी ने गरदन का मनका तोड़ कर उसे कत्ल किया है.’’

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मैं उन लोगों के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. चौधरी सिकंदर तो फालिज की वजह से बिस्तर पर पड़े थे. उन का एकलौता बेटा रुस्तम ही कामकाज देखता था. पहले हम डेरे पर पहुंचे. वे तीनों आदमी मेरे साथ  थे.

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डेरा नहर के किनारे खेत के बीचोबीच बना था. इस में फलों के कुछ पेड़ भी लगे थे. यहां नीची छत वाले 3 कमरे थे. सामने बड़ा बरामदा था. डेरे के आसपास भी कुछ लोग खड़े हुए थे. डेरे के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे थे.

राशिद मुझे उस कमरे में ले गया, जिस कमरे में लाश थी. यह देख कर मुझे हैरत हुई कि कमरा आलीशान बैडरूम का मंजर पेश कर रहा था. दीवार की एक साइड में बड़ा पलंग बिछा था और उस पर चौधरी की लाश पड़ी थी. मैं ने रुस्तम की लाश की बारीकी से जांच की.

चौधरी की खोपड़ी पर पीछे से किसी भारी चीज से वार किया गया था, जिस से सिर बुरी तरह जख्मी हो गया था. बिस्तर और कपड़े खून में भीगे हुए थे. वार इतना करारा था कि पड़ते ही चौधरी मर गया. उस के बाद मैं ने कमरे का जायजा लिया. मेज पर कच्ची शराब की बोतल और शराब से भरा एक गिलास रखा था. बोतल भी खुली हुई थी. इस का मतलब मकतूल मरने से पहले शराब पी रहा था. यह कमरा शायद अय्याशी के लिए ही बनाया गया था.

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पलंग के नजदीक फर्श पर मुझे लाल हरी चूडि़यों के टुकड़े दिखाई दिए. मैं ने ऐहतियात से टुकड़े जमा कर लिए. इस का मतलब था चौधरी के साथ कोई औरत मौजूद थी. चूडि़यों के टुकड़े इस बात की गवाही दे रहे थे कि औरत अपनी मरजी से नहीं आई थी. उसे जबरदस्ती चौधरी की अय्याशी के लिए लाया गया था.

मेरे जहन में एक खयाल आया कि कहीं उस औरत ने ही तो चौधरी को मौत के घाट नहीं उतारा. यह मुमकिन भी था. मैं ने राशिद और ममदू से पूछा, ‘‘रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर कौन था?’’

‘‘हुजूर, यहां तो सिर्फ कादिर ही होता है. पिछली रात भी वहीं था.’’

मैं ने टूटी हुई चूडि़यों की तरफ इशारा करते हुए पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी, जिस की जबरदस्ती में चूडि़यां टूटी हैं?’’

‘‘जनाब हमारी बात का यकीन करें. हमें इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम. कादिर जानता है. पर अब तो वह मर चुका है.’’

उन की बात में सच्चाई थी. रुस्तम एक अय्याश आदमी था. वह शराब के नशे में था और किसी औरत के साथ उस ने जबरदस्ती की थी. राशिद ने बताया, ‘‘चौधरी रुस्तम अकसर डेरे पर ही रातें गुजारता था. सुबहसवेरे वह हवेली पहुंच जाता था. पर आज जब वह हवेली नहीं पहुंचा तो चौधरी सिकंदर ने हमें यहां भेजा. यहां चौधरी रुस्तम की लाश मिली. हम ने फौरन आप को खबर की.’’

Serial Story : अजनबी मुहाफिज- भाग 2

लेखक: शकीला एस हुसैन

उसी वक्त एएसआई लोहे का रेंच और पाना उठा लाया. उस पर खून और कुछ बाल चिपके हुए थे. यही आलाएकत्ल था, जिस की मार ने चौधरी का काम तमाम कर दिया. यह रेंच पाना पलंग के नीचे से बरामद हुआ था.

उसे ऐहतियात से रखने के बाद मैं ने राशिद से कहा, ‘‘जल्दी ही चौधरी की लाश को अस्पताल ले जाने का बंदोबस्त करो.’’

इस डेरे पर 3 कमरे थे. दूसरे कमरे में कादिर का मुकाम था. तीसरा कमरा स्टोर की तरह काम में आता था. कहीं से कोई भी काम की चीज बरामद नहीं हुई. मैं चौधरी सिकंदर के पास पहुंच गया. वह अपाहिज था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. जवान बेटे की मौत ने उसे हिला कर रख दिया था.

मैं ने उसे तसल्ली दी और वादा किया कि मैं बहुत जल्द कातिल को गिरफ्तार कर लूंगा. वह रोते हुए बोला, ‘‘रुस्तम मेरा एकलौता बेटा था. मेरी तो नस्ल ही खत्म हो गई. उस की शादी का अरमान भी दिल में रह गया. उस से छोटी तीनों बहनों की शादियां हो गईं. बस यही रह गया था. मेरी बीवी का भी इंतकाल हो गया है. अब मैं बिलकुल तनहा रह गया.’’

मैं ने उसे तसल्ली दे कर डेरे के हाल सुनाए और पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है क्या?’’

‘‘नहीं जनाब. मुझे कुछ अंदाजा नहीं है.’’

‘‘कादिर को गरदन का मनका तोड़ कर ठिकाने लगाया गया था और लाश नहर में बहा दी गई थी, जबकि रुस्तम को खोपड़ी पर वार कर के खत्म किया गया था. यह किसी ऐसे इंसान का काम है जो दोनों से नफरत करता था. क्या आप फरीदपुर की तमाम औरतों को हवेली में जमा कर सकते हैं, साथ ही अगर आप के गांव में कोई पहलवान हो या कबड्डी का खिलाड़ी हो तो उसे भी बुलवाइए.’’

‘‘मैं अभी इंतजाम करता हूं. हमारे गांव में एक ही पहलवान है सादिक, जो गांव की शान और हमारा मान है. बड़ा ही भला आदमी है.’’

थोड़ी देर में गांव की सभी औरतें हवेली में पहुंच गईं. मैं ने चौधरी को बताया, ‘‘मुझे उस औरत की तलाश है जो रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर मौजूद थी. उस की चूडि़यां टूटी थीं. उस के हाथ पर खरोंच या जख्म जरूर होगा.’’

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मैंने चौधरी को चूड़ी के टुकड़े भी दिखाए. मेरी बात सुन कर चौधरी सारा मामला समझ गया. मैं ने हवेली में बुलाई जाने वाली तमाम औरतों की कलाइयां बारीकी से चैक कीं पर किसी की कलाई पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला. मुझे बताया गया बस एक औरत इस परेड में शामिल नहीं है, क्योंकि उसे बुखार है.

मैं ने उस औरत से मिलना जरूरी समझा. उसे सब नूरी मौसी कहते थे. मैं उस के घर पहुंचा. नूरी कोई 50 साल की मामूली शक्ल की औरत थी. उसे देख कर मेरी उम्मीद खत्म हो गई पर उस से बात करना जरूरी समझा. मैं ने उसे सारी बात बताई. उस ने अपनी कलाई आगे की.

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं नूरी मौसी, तुम्हारी कलाई चैक करने की जरूरत नहीं है. अगर तुम मुझे यह बता सकती हो कि रात चौधरी के डेरे पर कौन औरत थी, जिस ने चौधरी की जान ली तो बड़ी मेहरबानी होगी. वैसे मुझे एक मर्द की भी तलाश है जिस ने कादिर को मौत के घाट उतारा है.’’

नूरी बहुत समझदार औरत थी. सारी बात समझ गई. कहने लगी, ‘‘सरकार, मेरा अंदाजा है चौधरी के साथ जो औरत डेरे पर थी, वह जरूर बाहर की होगी. फरीदपुर की नहीं हो सकती. क्योंकि यहां आप ने सभी को चैक कर लिया है.’’

‘‘तुम्हारे इस अंदाजे की कोई वजह है?’’

‘‘जी सरकार, मैं ने कल दिन में 2 अजनबी औरतों को कादिर से बात करते देखा था.’’

नूरी की बात सुन कर आशा की एक किरण जगी. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम ने उन औरतों को कहां देखा था?’’

‘‘डेरे के करीब, नहर के किनारे.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘ओह. क्या तुम बता सकती हो कि वे क्या बातें कर रहे थे?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं जरा फासले पर थी. बात नहीं सुन सकी. पर यह पक्का है वे फरीदपुर की नहीं थीं.’’

‘‘नूरी, तुम ने बड़े काम की बात बताई. मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं. बस एक काम और करो, उन के हुलिए और कद के बारे में तफसील से बताओ जिस से उन्हें ढूंढने में आसानी हो जाए. तुम ने उन की शक्लें तो गौर से देखी होंगी?’’

‘‘जी देखी थीं. साहब वे 2 औरतें थीं. उस में से एक जवान 19-20 की होगी. लंबा कद, गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें बहुत खूबसूरत थी. उस ने फूलदार सलवार कुरते पर काली शौल ओढ़ रखी थी. उस के साथ वाली औरत अधेड़ थी. काफी मोटी, कद छोटा, रंग सांवला बिलकुल फुटबाल जैसे लगती थी. उस की नाक पर एक मस्सा था. उस ने भूरे रंग का जोड़ा और नीला स्वेटर पहन रखा था.’’

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शुक्रिया कह कर मैं उस के घर से निकल आया. फरीदपुर में मेरा काम करीबकरीब खत्म हो गया था. पहलवान सादिक से आज मुलाकात मुमकिन न थी. क्योंकि वह बाहर गया हुआ था.

अगले दिन सुबह मैं ने सरकारी फोटोग्राफर और आर्टिस्ट को थाने बुलवाया और उन दोनों औरतों का हुलिया बता कर स्केच बनाने को कहा. स्केच तैयार होने पर मैं ने उस स्केच के 10-12 प्रिंट बनवाए. साथ ही बताने वालों को भी जता दिया कि ये दोनों औरतें अगर कहीं भी दिखाई दें तो मुझे फौरन खबर करें.

फिर उन तसवीरों के आने पर मैं ने उन्हें जरूरी जगहों पर तलाश करने के लिए सिपाहियों की ड्यूटी लगा दी. शाम को दोनों पोस्टमार्टम शुदा लाशें थाने पहुंच गईं. दोनों की मौत का वक्त 10 और 11 बजे के बीच का था.

रुस्तम की मौत खोपड़ी पर लगने वाली करारी चोट से हुई थी, जब वह शराब के नशे में धुत था. रेंच पाने पर उसी का खून और बाल थे और कादिर की गरदन का मनका एक खास टैक्निक से तोड़ा गया था और फिर उसे नहर में डाल दिया गया था. मैं ने लाशें कफनदफन के लिए चौधरी साहब के यहां भिजवा दीं.

अब मुझे उन दोनों औरतों की तलाश थी. फोटो बन कर आ गए थे. सिपाही उन की तलाश में भटक रहे थे. दूसरे दिन शाम को एक सिपाही खबर ले कर आया कि इन दोनों औरतों को रेलवे प्लेटफार्म पर देखा गया है.

मैं फौरन रेलवे स्टेशन रवाना हो गया. स्टेशन मास्टर ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मैं ने उन दोनों औरतों के बारे में पूछताछ शुरू कर दी. उस ने बताया, ‘‘वह लड़की गलती से इस स्टेशन पर उतर गई थी. वह बहुत परेशान थी. उसी दौरान यह मोटी औरत उसे मिल गई. दोनों काफी देर तक एक बेंच पर बैठ कर बातें करती रहीं. उस के बाद मोटी औरत उस का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर ले गई. हो सकता है, वे एकदूसरे को जानती हों पर पक्का नहीं है.’’

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मैं ने पूछा, ‘‘आप ने कहा वह लड़की गलती से उतर गई थी. वह जा कहां रही थी?’’

‘‘जिस गाड़ी से वह उतरी थी, वह रावलपिंडी से लाहौर जा रही थी. मुझे यह नहीं पता वह कहां जा रही थी क्योंकि मेरी उस से कोई बातचीत नहीं हुई थी. फिर वह मोटी औरत के साथ बाहर चली गई थी.’’

कहीं अंधकार में न धकेल दे आनंद की यह छलांग!

हिमांशी हाय!

कुनाल : हैलो— आप—?

हिमांशी : मेरा नाम हिमांशी है और आपका?

कुनाल : मेरा नाम कुनाल है, क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी?

हिमांशी : क्यों नहीं? अगर न करनी होती तो तुम्हारे चैट बौक्स में थोड़े आती.

कुनाल : ओ, तो ये बात है.

हिमांशी : हां, यही बात है.

कुनाल : सो, ये बताओ तुम्हें किस चीज में दिलचस्पी है?

हिमांशी : लड़कों से दोस्ती करने में.

कुनाल : अच्छा अगर मैं लड़की होती तो तुम मुझसे दोस्ती नहीं करती ?

हिमांशी : नहीं, ऐसा नहीं है। फिर मैं उसे दूसरे तरह से ट्रीट करती—।

कुनाल : इसका क्या मतलब है?

हिमांशी : जाने दो, तुम नहीं समझोगे—।

कुनाल : तुम्हें मैं पागल लगता हूं क्या? मैं इतना भी नासमझ नहीं हूं।

हिमांशी : अच्छा काफी समझदार हो—।

कुनाल : आजमा लो

हिमांशी :  देख लो! मौके में धोखा तो नहीं दोगे।

कुनाल : कुछ भी करवा लो। अगर बीच चैराहे पर छोड़ जाऊं तब तुम मुझे लड़का ही मत समझना–

हिमांशी : क्या! क्या! क्या! लड़का ही न समझूं. कहीं वाकई कोई अबनॉर्मलिटी तो नहीं है? मुझे तो लग रहा है कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरुर है.

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कुनाल : यहां कुछ दिखा नहीं सकता वरना सब कुछ दिखा देता.

हिमांशी : कर तो सकते हो

कुनाल : करवा लो, इंतजार किस बात का कर रही हो? चले क्या बेडरूम में.

हिमांशी : मैं कब से इसी बात का तो इंतजार कर रही हूं.

कुनाल : चलो फिर. मेरे बेडरूम में राउंड बेड है और मैंने चारो तरफ कैंडल जलायी हुई है. धीमे स्वर में संगीत बज रहा है.

हिमांशी : वाव! मुझे यहां सुकून मिल रहा है. मैंने कभी इतनी खूबसूरत डेटिंग नहीं की. तुम्हारी खिड़की खुली हुई है.

कुनाल : रुक जाओ लगाकर आता हूं.

हिमांशी : नहीं रहने दो. यहां से बहुत प्यारी हवा आ रही है। ये हवा मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फैला रही है.

कुनाल : तुम्हें अच्छा लग रहा है तो ठीक है. मैं नहीं लगा रहा हूं. मैं तो तुम्हें घूर रहा हूं.

हिमांशी : मेरी आंखें शर्म से नीचे हो रही हैं.  मुझमें तुम्हारी आंखों से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही.

कुनाल : कोई बात नहीं. ऐसा तो लड़कियों के साथ होता ही है.

हिमांशी : तुम्हें तो लड़कियों के बारे में काफी जानकारी है.

कुनाल : हां, खैर ये बताओ कि तुमने पहना क्या है? मुझे उतारना है.

हिमांशी : मैंने मिनी स्कर्ट: ऊपर टॉप है. पीछे से इसके हुक है और तुमने—?

कुनाल : मैंने जीन्स पहना है, ब्लू कलर का और शर्ट है, व्हाईट कलर की. मेरी हाइट 5-10 इंच है. शौर्ट हेयर है, फेयर कलर है.

हिमांशी : मेरी हाइट 5-5 इंच है. 34, 26, 34 मेरा साइज है.

कुनाल : क्या बात है. तुम तो बहुत सेक्सी हो.

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हिमांशी : हां, कोई लड़का कॉम्पलीमेंट करता है तो ऐसा ही लगता है. मैंने अपने होंठों पर लाल रंग की लिपस्टिक लगाई है और बालों में पोनी बना रखी है. मेरी लटें मेरी आंखों में गिर रही है.

कुनाल : तुम्हारी लटें जो हवा से तुम्हारे चेहरे पर आ गिरी, उसे मैंने धीरे से तुम्हारे कान के पीछे कर दिया है और अब तुम्हारे गालों पर एक किस कर रहा हूं.

हिमांशी : हाय! मै शर्म से लाल हो गई.

कुनाल : मेरी जान इतना शर्माओगी तो आगे के काम कैसे करोगी?

हिमांशी : मैं तुम्हारे होंठों का रस पी रही हूं.

कुनाल : मजेदार है. तुम्हारे होंठ बड़े मीठे हैं. साथ ही तीखापन भी मौजूद है. जाने अंदर का माल कितना स्वादिष्ट होगा?

हिमांशी : चुप नालायक.

कुनाल : मैं अपने हाथ तुम्हारे पीठ पर सहला रहा हूं.

हिमांशी : मुझे गुदगुदी हो रही है. मैंने अपनी उंगलियां तुम्हारे बालों में फंसायी हुई है.

कुनाल : मैंने अपना हाथ तुम्हारी टॉप के अंदर घुसा दिया.

हिमांशी : हां, मुझे ठंडक महसूस हो रही है.

कुनाल : चेन खोल दिया. तुम्हारी ब्रा का हुक मुझे चुभ गया

हिमांशी : ध्यान से करो. मैंने ब्लैक कलर की ब्रा पहनी है.

कुनाल : लगता है तुम्हारी हुक टूटी हुई हैं

हिमांशी : हां, आज सुबह हैंगर से निकाल रही थी तभी टूट गई थी.

कुनाल : तुम बिना टॉप के कितनी खूबसूरत लग रही हो. मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता.

हिमांशी : मैं तुम्हारी शर्ट के बटन खोल रही हूं. मैं तुम्हारे अंदर के माचो मैन को देखना चाहती हूं.

कुनाल : मैं भी चाहता हूं कि तुम जल्द से जल्द खोल दो. तुम खोलती रहो. मैं तुम्हारे गर्दन का रस चूस रहा हूं.

हिमांशी : मुझे बहुत मजा आ रहा है. मैं, मानों सातवें आसमान पर हूं. मैंने तुम्हारी पूरी शर्ट खोल दी है. तुम्हारा सीना तेरे सामने है. मैं तुम्हारे सीने को चूम रही हूं.

कुनाल : मैं गीला हो रहा हूं. मुझसे रहा नहीं जा रहा. मैं तुम्हारी स्कर्ट के बटन खोल रहा हूं.

हिमांशी : मुझे भी तुम्हारे खूबसूरत औजार को देखने का मन हो रहा है. मैं अपना हाथ तुम्हारे पैंट के अंदर डाल रही हूं.

कुनाल : तुम्हारी स्कर्ट मेरे हाथ में है.

हिमांशी : क्या!

कुनाल : हां, तुम टू पीस में बिल्कुल मेरी मल्लिका लग रही हो.

हिमांशी : मेरे हाथ में कुछ आ गया. यह बहुत टाइट है.

कुनाल : तुम्हारे प्यार का नतीजा है. इतनी देर जो कर रही हो, उसके चलते यह सब हो रहा है.

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हिमांशी : तुम तो बिल्कुल गीले हो चुके हो. तुम अब और किसका इंतजार कर रहे हो जो करना है जल्दी कर लो. मैं और इंतजार नहीं कर सकती. मेरे सब्र का इम्तहान मत लो. मेरी धड़कनें और मत बढ़ाओ. मैं तुम्हारी पूरी पैंट उतार रही हूं.

कुनाल : जल्दी करो.

हिमांशी : कर दिया. अमेजिंग. मैंने ऐसा आज से पहले कभी महसूस नहीं किया था.

कुनाल : मैं तुम्हारे सीने को दो उभारों को ब्रा से निकाल चुका हूं और उन्हें दबाने में बेहद आनंद आ रहा है. बिल्कुल ऐसा लग रहा है मानो मुलायम बॉल्स हैं.

हिमांशी : खोल दो!

कुनाल : खोल चुका हूं. लगता है तुम तो मुझसे भी ज्यादा उत्तेजना महसूस कर रही हो.

हिमांशी : मेरे गले से आवाज नहीं निकल रही.

कुनाल : मैं तुम्हें अपने बाहों में भरकर बेड में लिटा रहा हूं. तुम मेरी गोद में बिल्कुल एक बच्ची जैसी लग रही हो. सिर्फ तुम्हारी पैंटी उतारने की देरी थी. शिट! पैंटी क्यों नहीं उतारी?

हिमांशी : अब उतार दो. मैं तो कह ही रही थी कि उतार दों

कुनाल : मैं चलता हूं तो तुम्हारे दो उभार हिलते हैं, ऐसा नजारा प्रकृति की और किसी चीज में मौजूद नहीं हैं.

हिमांशी : हां, तुम चल रहे हो और तुम्हारा औजार सीधा खड़ा है.

कुनाल : बिल्कुल सही पहचाना, उसे अपनी जगह चाहिए

हिमांशी : लेकिन उससे पहले मेरा मुंह सूख रहा है. क्या मेरी प्यास नहीं बुझाओगे.

कुनाल : मैं कौन होता हूं तुम्हें रोकने वाला. तुम तो मेरी रानी हो, मेरी शहजादी हो.

हिमांशी : ये कितना नमकीन है. कितना रसीला है.

कुनाल : तेजी से करो और तेज और भी—

हिमांशी : कर रही हूं. इससे तेज नहीं कर सकती.

कुनाल : रुक जाओ. अब इसे इसकी जगह पर पहुंचा दो. हमारे प्यार को अंतिम सीमा तक पहुंचा दो.

हिमांशी : अरे, लगता है कुछ गिर गया.

कुनाल : क्या?

हिमांशी : एक कैंडल गिर गई.

कुनाल : जाने दो. फिलहाल यहां-वहां नजर मत दौड़ाओ.

हिमांशी : अरे मेरे राजकुमार अगर आग लग गई तो?

कुनाल : लो मैंने मोमबत्ति बुझा दी.

हिमांशी : मुझे प्यास लग रही है.

कुनाल : तुम क्या चाहती हो.

हिमांशी : वही जो तुम चाहते हो.

कुनाल : तो करने क्यों नहीं देती?

हिमांशी : मैं तो बस तुम्हारा सब्र देख रही थी.

कुनाल : फिलहाल मैं हार चुका हूं. करने दो मुझे

हिमांशी : मैं भी! और तेज और तेज और भी—. मुझे दर्द हो रहा है.

कुनाल : सॉरी! क्या तुम्हें दुख रहा है.

हिमांशी : हां, बहुत तेजऋ लेकिन मुझे मजा आ रहा है. तुम लगे रहो. करो और भी तेज. अपनी पूरी ताकत लगा दो. अपने अंदर का जंगली जानवर जगा दो. अअअअअअ—-.

कुनाल : तुम्हारी ये सिसकियां मेरी जान लेकर रहेंगी.

हिमांशी : मैं रुक नहीं सकती. अअअअअअअअ.

……और ये बातें अंत तक चलती रहीं जब तक दोनों क्लाइमेक्स पर पहुंच गए.

आज से करीब सात साल पहले यह मुंबई के दो टीनएजर की इंटीमेट चैट थी, जो वायरल हो गई थी. इसमें नाम काल्पनिक हैं बाकी बातचीत वही है, जो उस समय दोनों के बीच हुई थी. हिमांशी और कुनाल यूं तो फेसबुक के मैसेज बाक्स में उन दिनों बातचीत कर रहे थे, मगर ये सिर्फ बातचीत नहीं थी. दोनों इसके जरिये अपनी सेक्सअुल फंतासी इंज्वॉय कर रहे थे. वास्तव में ऐसी ही अंतरंग बातचीत के जरिये साइबर सेक्स की शुरुआत हुई थी, जो आज वर्चुअल इंटरकोर्स तक पहुंच चुका है. साइबर सेक्स को कम्पयूटर सेक्स, इंटरनेट सेक्स, नेट सेक्स, मड सेक्स, टाइनी सेक्स आदि कई नामों से जाना जाता है. इसके तहत हम व्यवहारिक तौरपर भले कुछ नहीं करते हैं, लेकिन वर्चुअल तौरपर या कहें कि बातों और कल्पनाओं में सारी हदें तोड़ देते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि नेट सेक्स में लोग अपने नेट फ्रेंड के जरिये तो यह सब करते ही हैं, साथ ही अजनबी लोगों के साथ भी अंगतरंगता का लुत्फ उठाते हैं. नेट सेक्स दरअसल फीलिंग की दुनिया है. बातों से और अब तो लाइव होकर बिल्कुल असली की तरह यह सब किया जाता है. नेट सेक्स महज झूठमूठ की एक्टिंग भर नहीं होता बल्कि इससे लोग वैसे ही संतुष्ट होते हैं, जैसे सचमुच का सेक्स करने से होते हैं.

मीठे मीठे दर्द की अनुभूति, सिसकियों की धीमी धीमी आवाज निकालकर और बदन के वैसे ही हाव भाव निकालकर साइबर सेक्स के जरिये भरपूर संतुष्ट हुआ जाता है. यही नहीं साइबर सेक्स अपनी फंतासियों के पूरा करने का भी एक कृत्रिम जरिया है. वास्तव में साइबर जगत एक ऐसी दुनिया बन गई है, जहां अपनी किसी भी कल्पना को वर्चुअल तरीके से अंजाम दे दिया जाता है. हालांकि अब इसमें कई तरह के अपराधिक तौर तरीके भी जुड़ गये है मसलन- कुछ पॉर्न वेबसाइटें सचमुच में लाइव सेक्स का प्रसारण करते हैं. मतलब यह कि लोग सेक्स की जो तमाम फंतासियां पहले पॉर्न फिल्मों के जरिये देखते थे, अब उन्हें न केवल लाइव भी दिखाया जाता है बल्कि दोहरे कम्युनिकेशन की व्यवस्था से दूर बैठे देखने वाले लोग इस पूरी प्रक्रिया को अपनी इच्छा के मुताबिक करने के लिए कह सकते हैं.

लेकिन जब इस दोहरे संवाद की सुविधा नहीं थी, तब भी साइबर सेक्स के दीवाने वेबकैम और हैड फोन का इस्तेमाल करते हुए, लाइव तरीके से हस्तमैथुन तक करने लगते थे. हालांकि आज पूरी दुनिया में बढ़ते साइबर सेक्स को लेकर बहुत चिंताएं जतायी जा रही हैं, लेकिन समाजशास्त्रियों का नजरिया इसमें बंटा हुआ है. कुछ का मानना है कि इस पर तुरंत सख्त पाबंदी लगनी चाहिए. क्योंकि यह बलात्कार की घटनाओं के लिए माहौल तैयार करता है. जबकि कुछ समाजशास्त्रियों का मानना है कि इसके जरिये तमाम यौन अपराध होने से बच जाते हैं, क्योंकि लोग कृत्रिम तरीके से अपनी सेक्सुअल जरूरतें पूरी कर लेते हैं. हालांकि यह कभी न खत्म होने वाली बहस है. लेकिन जिस तरह साइबर सेक्स धीरे धीरे ड्रग्स की तरह लत बन जाता है, उसके मद्देनजर इससे एक अनुशासित दूरी बनाकर रखना जरूरी है. पॉर्न तब तक बीमारी नहीं है बल्कि तरोताजा होने का उपाय है, जब तक पॉर्न देखने की फ्रीक्वेंसी पर हमारी इच्छा का नियंत्रण है. लेकिन अगर हम पॉर्न देखने की इच्छा पर नियंत्रण रखने में असफल हों तो इसके जबरदस्त नुकसान हैं. असल में तब यह एक ऐसी लाइलाइज बीमारी में तब्दील हो जाती है, जिससे उबरना मुश्किल होता है.

पिछला दशक पूरी दुनिया में साइबर सेक्स की फंतासियों का इंज्वाय करने वाला दशक था. लेकिन पिछले पांच छह सालों से पूरी दुनिया में साइबर पॉर्न के तमाम जाने अंजाने खतरे सामने आये हैं, जिनसे समाजशास्त्री बहुत चिंतित हैं. वास्तव में अमरीका और यूरोप जहां आज हर एक लाख की आबादी के बीच औसतन एक ऐसा क्लिनिक खुल गया है, जहां साइबर सेक्स के एडिक्शन का इलाज हो रहा है, उससे इसके खतरे का जबरदस्त तरीके से भान हुआ है. समाजशास्त्रियों के मुताबिक साइबर सेक्स एक ऐसी लत है, जो हमें तमाम व्यवहारिक दुनिया से न सिर्फ काट देती है बल्कि उस दुनिया का आनंद लेने में भी अरूचि पैदा कर देती है. हाल के सालों में अमरीकी हाईवेज में पांच से सात फीसदी रोड एक्सीडेंट बढ़े हैं. समाजशास्त्रियों का मानना है कि इनमें कार चलाते हुए, पॉर्न देखने की लत का एक बड़ा हिस्सा है. यही नहीं पॉर्न देखने में औसतन हर व्यक्ति दिन के कम से कम दो घंटे बरबाद करता है. इस श्रम का एक मौद्रिक मूल्य तो है ही. इसका एक भावनात्मक मूल्य भी है. हर दिन औसतन दो घंटे पॉर्न देखने वाले 90 फीसदी लोग निराशा और बेचैनी से घिरे रहते हैं. इनकी उत्पादन क्षमताओं पर साफ साफ इसका असर दिखता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यूरोपियन साइक्रेटिक एसोसिएशन का मानना है कि इसके कारण बहुत तेजी से मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ी है. कुल मिलाकर साइबर सेक्स एकांत में भले मजा देने का सुरक्षित तरीका हो, लेकिन इसके जो नुकसान सामने आ रहे हैं, उसको देखते हुए तो यही ठीक है कि इससे बचा जाए.

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 2

कुछकुछ आभास श्वेता को उन की डायरी से ही हुआ था. एक बार उन की डायरी में कुछ कविताओं के अंश नोट किए हुए मिले थे.

‘तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा यहां भी रह जाओगे, जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी सी गंध.’

एक पृष्ठ पर लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर तो श्वेता भौचक ही रह गई थी…सब कुछ बीत जाने के बाद भी बचा रह गया है प्रेम, प्रेम करने की भूख, केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों सा… सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहेगा प्रेम, …दीपशिखा ही नहीं, उस की तो पूरी देह ही बन गई है दीपक, प्रेम में जलती हुई अविराम…

मम्मी अचानक ही आ गई थीं और डायरी पढ़ते देख एक क्षण को सिटपिटा गई थीं. बात को टालने और स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए श्वेता खिसियायी सी हंस दी थी, ‘‘यह कवि आप को बहुत पसंद आने लगे हैं क्या, मम्मी?’’

‘‘नहीं, तुम गलत समझ रही हो,’’ मम्मी ने व्यर्थ हंसने का प्रयत्न किया था, ‘‘एक छात्रा को शोध करा रही हूं नए कवियों पर…उन में इस कवि की कविताएं भी हैं. उन की कुछ अच्छी पंक्तियां नोट कर ली हैं डायरी में. कभी कहीं भाषण देने या क्लास में पढ़ाने में काम आती हैं ऐसी उजली और दो टूक बात कहने वाली पंक्तियां.’’ फिर मां ने स्वयं एक पृष्ठ खोल कर दिखा दिया था, ‘‘यह देखो, एक और कवि की पंक्तियां भी नोट की हैं मैं ने…’’ वह बोली थीं.

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उस पृष्ठ को वह एक सांस में पढ़ गई थी, ‘‘धीरेधीरे जाना प्यार की बहुत सी भाषाएं होती हैं दुनिया में, देश में और विदेश में भी लेकिन कितनी विचित्र बात है प्यार की भाषा सब जगह एक ही है और यह भी जाना कि वर्जनाओं की भी भाषा एक ही होती है…प्यार की भाषा में शब्द नहीं होते सिर्फ अक्षर होते हैं और होती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियां और उन्हीं को जोड़ कर बनती है प्यार की भाषा…’’

मां के उत्तर से वह न सहमत हुई थी, न संतुष्ट पर वह व्यर्थ उन से और इस मसले पर उलझना नहीं चाहती थी. शायद यह सोच कर चुप लगा गई थी कि मां भी आखिर हैं तो एक स्त्री ही और स्त्री में प्रेम पाने की भूख और आकांक्षा अगर आजीवन बनी रह जाए तो इस में आश्चर्य क्या है?

पिता के साथ मां ने एक लंबा वैवाहिक जीवन जिया था. उस दुर्घटना में वह अचानक मां को अकेला छोड़ कर चले गए थे. शरीर की कामनाएंइच्छाएं तो अतृप्त रह ही गई होंगी…55-56 साल की उम्र थी तब मम्मी की. इस उम्र में शरीर पूरी तरह मुरझाता नहीं है. फिर पिता महीने 2 महीने में ही घर आ पाते थे. पूरा जीवन तो मां ने एक अतृप्ति के साथ बियाबान रेगिस्तान में प्यासी हिरणी की तरह मृगतृष्णा में काटा होगा…आगे और आगे जल की तलाश में भटकी होंगी…और वह जल उन्हें मिला होगा अमन अंकल में या हो सकता है मिल रहा हो प्रभु अंकल में.

एक शहर के महाविद्यालय में किसी व्याख्यान माला में भाषण देने गई थीं मम्मी. उन के परिचय में जब वहां बताया गया कि साहित्य में उन का दखल एक डायरी लेखिका के रूप में भी है तो उन के भाषण के बाद एक सज्जन उन से मिलने उन के निकट आ गए, ‘‘आप ही

डा. कुमुदजी हैं जिन की डायरियों के कई अंश…’’ मम्मी उठ कर खड़ी हो गई थीं, ‘‘आप का परिचय?’’

‘‘यहां निकट ही एक नेशनल पार्क है… मैं उस में एक छोटामोटा अधिकारी हूं.’’ इसी बीच महाविद्यालय के एक प्राध्यापकजी टपक पड़े थे, ‘‘हां, कुमुदजी यह छोटे नहीं मोटे अधिकारी हैं. वन्य जीवों पर इन्होंने अनेक शोध कार्य किए हैं. हमारे जंतु विज्ञान विभाग में यह व्याख्यान देने आते रहते हैं. यह विद्यार्थियों को जानवरों से संबंधित बड़ी रोचक जानकारियां देते हैं. अगर आप के पास समय हो तो आप इन का नेशनल पार्क अवश्य देखने जाएं… आप को वहां कई नए अनुभव होंगे.’’

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श्वेता को मां ने बताया था, ‘‘यह महाशय ही प्रभुनाथ हैं.’’

मां की डायरी में बाद में श्वेता ने पढ़ा था.

‘किसीकिसी आदमी का साथ कितना अपनत्व भरा होता है और उस के साथ कैसे एक औरत अपने को भीतर बाहर से भरीभरी अनुभव करती है. क्या सचमुच आदमी की उपस्थिति जीवन में इतनी जरूरी होती है? क्या इसी जरूरीपन के कारण ही औरत आदमी को आजीवन दुखों, परेशानियों के बावजूद सहती नहीं रहती?’

खालीपन और अकेलेपन, भीतर के रीतेपन को भरने के लिए जीवन में क्या सचमुच किसी पुरुष का होना नितांत आवश्यक नहीं है…कहीं कोई आदमी आप के जीवन में होता है तो आप को लगता रहता है कि कहीं कोई है जिसे आप की जरूरत है, जो आप की प्रतीक्षा करता है, जो आप को प्यार करता है…चाहता है, तन से भी, मन से भी और शायद आत्मा से भी…

प्रभुनाथ के साथ पूरे 7 दिन तक नेशनल पार्क के भीतर जंगल के बीच में बने आरामदेय शानदार हट में रही… तरहतरह के जंगली जंतु तो प्रभुनाथ ने अपनी जीप में बैठा कर दिखाए ही, थारू जनजाति के गांवों में भी ले गए और उन के बारे में अनेक रोचक और विचित्र जानकारियां दीं, जिन से अब तक मैं परिचित नहीं थी.

‘दुनिया में कितना कुछ है जिसे हम नहीं जानते. दुनिया तो बहुत बड़ी है, हम अपने देश को ही ठीक से नहीं जानते. इस से पहले हम ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि यह नेशनल पार्क…यह मनोरम जंगल, जंगल में जानवरों, पेड़पौधों की एक भरीपूरी विचित्र और अद्भुत आनंद देने वाली एक दुनिया भी होती है, जिसे हर आदमी को जीवन में जरूर देखना और समझना चाहिए.’

प्रभुनाथ ने चपरासी को मोटर- साइकिल से भेज कर भोजन वहीं उसी आलीशान हट में मंगा लिया था. साथ बैठ कर खाया. खाने के बाद प्रभुनाथ उठे और बोले, ‘‘तो ठीक है मैडम…आप यहां रातभर आराम करें. हम अपने क्वार्टर में जा कर रहेंगे.’’

‘‘नहीं. मैं अकेली हरगिज इस जंगल में नहीं रहूंगी,’’ मैं हड़बड़ा गई थी, ‘‘रात हो आई है और जानवरों की कैसी डरावनीभयावह आवाजें रहरह कर आ रही हैं. कहीं कोई आदमखोर यहां आ गया और उस ने इस हट के दरवाजे को तोड़ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’’

‘‘क्या आप को इस हट का कोई दरवाजा टूटा या कमजोर नजर आता है? हर तरह से इसे सुरक्षित बनाया गया है. इस में देश और प्रदेश के मंत्री, सचिव और आला अफसर, उन के परिवार आ कर रहते हैं. मैडम, आप चिंता न करें. बस रात को कोई जानवर या आदमी दरवाजे को धक्का दे, पंजों से खरोंचे तो आप दरवाजा न खोलें. यहां आप को पीने के लिए पानी बाथरूम में मिलेगा. चाय-कौफी बनाना चाहेंगी तो उस के लिए गैसस्टोव और सारी जरूरी क्राकरी व सामग्री किचन में मिलेगी. बिस्तर आरामदेय है. हां, रात में सर्दी जरूर लगेगी तो उस के लिए 2 कंबल रखे हुए हैं.’’

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‘‘वह सब ठीक है प्रभु…पर मैं यहां अकेली नहीं रहूंगी या तो आप साथ रहें या फिर हमें भी अपने क्वार्टर की तरफ के किसी क्वार्टर में रखें.’’

‘‘नहीं मैडम,’’ वह मुसकराए, ‘‘आप डायरी लेखिका हैं. हिंदी की अच्छी वक्ता और प्रवक्ता हैं. हम चाहते हैं कि आप यहां के वातावरण को अपने भीतर तक अनुभव करें. देखें कि कैसा लगता है. बिलकुल नया सुख, नया थ्रिल, नया अनुभव होगा…और वह नया थ्रिल आप अकेले ही महसूस कर पाएंगी…किसी के साथ होने पर नहीं.

‘‘आप देखेंगी, जीवन जब खतरों से घिरा होता है…तो कैसाकैसा अनुभव होता है…जान बचे, इस के लिए ऐसेऐसे देवता आप को मनाने पड़ते हैं जिन की याद भी शायद आप को अब तक कभी न आई हो…बहुत से लेखक इस अनुभव के लिए ही यहां इस हट में आ कर रहना पसंद करते हैं.’’

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 3

‘‘वह तो सब ठीक है…पर आप को मैं यहां से जाने नहीं दूंगी.’’ फिर कुछ सोच कर पूछ बैठीं, ‘‘बाहर गेट के क्वार्टरों में आप की प्रतीक्षा पत्नीबच्चे भी तो कर रहे होंगे? अगर ऐसा है तो आप जाएं पर हमें भी वहीं किसी क्वार्टर में रखें.’’

गंभीर बने रहे काफी देर तक प्रभुनाथ. फिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में किसी को मैं कम ही बताता हूं. यहां बाईं तरफ जो छोटा कक्ष है उस में एक अलमारी में जहां वन्य जीवजंतुओं से संबंधित पुस्तकें हैं वहीं मेरे द्वारा लिखी गई और शोध के रूप में तैयार पुस्तक भी है. अकसर यहां मंत्री लोग और अफसर अपनी किसी न किसी महिला मित्र को ले कर आते हैं और 2-3 दिन तक उस का जम कर देह सुख लेते हैं. उन के लिए हम लोग यहां हर सुविधा जुटा कर रखते हैं. क्या करें, नौकरी करनी है तो यह सब भी इंतजाम करने पड़ते हैं…’’

झेंप गईं डा. कुमुद, ‘‘खैर, वह सब छोडि़ए. आप अपने परिवार के बारे में बताइए.’’

‘‘एक बार हम पिकनिक मनाने यहां इसी हट पर अपने परिवार के साथ आए हुए थे. अधिक रात होने पर पता नहीं पत्नी को क्या महसूस हुआ कि बोली, ‘यहां से चलिए, बाहर के क्वार्टरों में ही रहेंगे. यहां न जाने क्यों आज अजीब सा भय लग रहा है.’ हम जीप में बैठ कर वापस बाहर की तरफ चल दिए. पत्नी, लड़की और लड़का. हमारे 2 ही बच्चे थे. अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि खतरे का आभास हो गया. एक शेर बेतहाशा घबराया हुआ भागता हमारे सामने से गुजरा. पीछे कुछ बदमाश, जिन्हें हम लोग पोचर्स कहते हैं. जंगली जानवरों का चोरीछिपे शिकार करने वाले उन पोचरों से हमारा सामना हो गया.’’

‘‘निहत्थे नहीं थे हम. एक बंदूक साथ थी और साहसी तो मैं शुरू से रहा हूं इसीलिए यह नौकरी कर रहा हूं. बदमाशों को ललकारा कि अगर किसी जानवर को तुम लोगों ने गोली मारी तो हम आप को गोली मार देंगे. जीप को चारों ओर घुमा कर हम ने उस की रोशनी में बदमाशों की पोजीशन जाननी चाही कि तभी उन्होंने हम पर अपने आधुनिक हथियारों से हमला बोल दिया. हम संभल तक नहीं पाए… पत्नी और बेटी की मौत गोली लगने से हो गई. लड़का बच गया क्योंकि वह जीप के नीचे घुस गया था.

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‘‘मैं उन्हें ललकारता हुआ अपनी बंदूक से फायर करने लगा. गोलियों की आवाज ने गार्डों को सावधान कर दिया और वे बड़ीबड़ी टार्चों और दूसरी गाडि़यों को ले कर तेजी से इधर की तरफ हल्ला बोलते आए तो बदमाश नदी में उतर कर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए.’’

‘‘फिर दूसरी शादी नहीं की,’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़के को हमारी ससुराल वालों ने इस खतरे से दूर अपने पास रख कर पाला…साली से मेरी शादी उन लोगों ने तय की पर एकांत में साली ने मुझ से कहा कि वह किसी और को चाहती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. मैं बीच में न आऊं तो ही अच्छा है. मैं ने शादी से इनकार कर दिया…’’

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‘‘लड़का कहां है आजकल?’’

डा. कुमुद ने पूछा.

‘‘बस्तर के जंगलों में अफसर है. उस की शादी कर दी है. अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है.’’

‘‘मैं ने तो सुना है कि बस्तर में अफसर अपनी पत्नी को ले कर नहीं जाते. एक तो नक्सलियों का खतरा, दूसरे आदिवासियों की तीरंदाजी का डर… तीसरे वहां आदमी को बहुत कम पैसों में औरत रात भर के लिए मिल जाती है.’’ इतना कह कर डा. कुमुद मुसकरा दीं.

‘‘जेब में पैसा हो तो औरत सब जगह उपलब्ध है…यहां भी और कहीं भी… इसलिए मैं ने शादी नहीं की. जरूरत पड़ने पर कहीं भी चला जाता हूं.’’ प्रभु मुसकराए.

‘‘हां, पुरुष होने के ये फायदे तो हैं ही कि आप लोग बेखटके, बिना किसी शर्म के, बिना लोकलाज की परवा किए, कहीं भी देहसुख के लिए जा सकते हैं…पैसों की कमी होती नहीं है आप जैसे बड़े अफसरों को…अच्छी से अच्छी देह आप प्राप्त कर सकते हैं. मुश्किल तो हम संकोचशील औरतों की है. हमें अगर देह- सुख की जरूरत पड़े तो हम बेशर्मी लाद कर कहां जाएं? किस से कहें?’’

‘‘वक्त बहुत बदल गया है कुमुदजी…अब औरतें भी कम नहीं हैं. वह बशीर बद्र का शेर है न… ‘जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें पर क्या करें हौसला नहीं होता, रात का इंतजार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता.’’’

मुसकराती रहीं कुमुद देर तक, ‘‘बड़े दिलचस्प इनसान हैं आप भी, प्रभुनाथजी.’’

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श्वेता डायरी के अगले पृष्ठ को पढ़ कर अपने धड़कते दिल को मुश्किल से काबू में कर पाई थी…

मां ने लिख रखा था… ‘7 दिन रही उस नेशनल पार्क में और जो देहसुख उन 7 दिनों में प्राप्त किया शायद अगले 7 जन्मों में प्राप्त न हो सके. आदमी का सुख वास्तव में अवर्णनीय, अव्याख्य और अव्यक्त होता है…इस सुख को सिर्फ देह ही महसूस कर सकती है…उम्र और पदप्रतिष्ठा से बहुत दूर और बहुत अलग…’.

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 1

श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

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‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

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कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

Serial Story वसीयत- आखिर सीमा और जेम्स वारन के बीच क्या रिश्ता था

Serial Story वसीयत- आखिर सीमा और जेम्स वारन के बीच क्या रिश्ता था : भाग 2

‘यह सबकुछ सुन कर मैं धम्म से सोफे पर धंस गया तो विलियम मेरा आशय समझ मुसकरा कर कहने लगा, कि ‘डैडी, आप अकेले हो जाएंगे, इसलिए हम दोनों यह प्रस्ताव अस्वीकार कर देते हैं. वैसे तो यहां भी सबकुछ है.

‘मैं ने अपनेआप को संभाला और कहा कि वाह, मेरा बेटा और बहू इतने बड़े पद पर जा रहे हैं तो मेरे लिए यह गर्व की बात है. सच, मुझे इस से बड़ी खुशी क्या होगी?

‘जाने की तैयारियां होने लगीं. दिन तो बीत जाता पर रात में नींद न आती. कभी विलियम और जैनी तो कभी जार्ज के स्वास्थ्य की चिंता बनी रहती.

‘वह दिन भी आ गया जब लंदन एअरपोर्ट पर विलियम, जैनी और जार्ज को विदा कर भीगे मन से घर वापस लौटना पड़ा. विलियम और जैनी ने जातेजाते भी अपने वादे की पुष्टि की कि वे हर सप्ताह फोन करते रहेंगे और मुझ से आग्रह किया कि मैं उन से मिलने के लिए आस्टे्रलिया अवश्य आऊं. वे टिकट भेज देंगे.

‘मन में उमड़ते हुए उद्गार मेरे आंसुओं को संभाल न पाए. जार्ज को बारबार चूमा. एअरपोर्ट से बाहर आने के बाद वापस घर लौटने के लिए दिल ही नहीं करता था. कार को दिन भर दिशाहीन घुमाता रहा. शाम को घर लौटना ही पड़ा. सामने जार्ज की दूध की बोतल पड़ी थी. उठा कर सीने से चिपका ली और ऐथल की तसवीर के सामने फूटफूट कर रोया.

‘चार दिन बाद फोन की घंटी बजी तो दौड़ कर रिसीवर उठाया, ‘हैलो डैडी,’ यह स्वर सुनने के लिए कब से बेचैन था. मैं भर्राए स्वर में बोला, ‘तुम सब ठीक हो न, जार्ज अपने दादा को याद करता है कि नहीं?’ जैनी से भी बात की और यह जान कर दिल को बड़ा सुकून हुआ कि वे सब स्वस्थ और कुशलपूर्वक हैं.

‘विलियम ने टेलीफोन को जार्ज के मुंह के आगे कर दिया तो उस की ‘आउं आउं’ की आवाज ने कानों में अमृत सा घोल दिया. थोड़ी देर बाद फोन पर आवाजें बंद हो गईं.

‘3 महीने तक उन के टेलीफोन लगातार आते रहे, फिर यह गति धीमी हो गई. मैं फोन करता तो कभी विलियम कह देता कि दरवाजे पर कोई घंटी दे रहा है और फोन काट देता. बातचीत शीघ्र ही समाप्त हो जाती. 6 महीने इसी तरह बीत गए. कोई फोन नहीं आया तो घबराहट होने लगी.

‘एक दिन मैं ने फोन किया तो पता लगा कि वे लोग अब सिडनी चले गए हैं. यह भी कहने पर कि मैं उस का पिता हूं, नए किराएदार ने उस का पता नहीं दिया. उस की कंपनी को फोन किया तो पता चला कि उस ने कंपनी की नौकरी छोड़ दी थी. यह जान कर तो मेरी चिंता और भी बढ़ गई थी.

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‘मेरा एक मित्र आर्थर छुट्टियां मनाने 3 सप्ताह के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा था. मैं ने अपनी समस्या उसे बताई तो बोला कि वह 2 दिन सिडनी में रहेगा और यदि विलियम का पता कहीं मिल गया तो मुझे फोन कर के बता देगा. पर आर्थर का फोन नहीं आया. 3 सप्ताह की अंधेरी रातें अंधेरी ही रहीं.

‘3 सप्ताह के बाद जब आर्थर आस्टे्रलिया से वापस आया तो आशा दुख भरी निराशा में बदल गई. विलियम और जैनी उसे एक रेस्तरां में मिले थे किंतु वे किसी आवश्यक कार्य के कारण जल्दी में उसे अपना पता, टेलीफोन नंबर यह कह कर नहीं दे पाए कि शाम को डैडी को फोन कर के नया पता आदि बता देंगे.

‘उस के फोन की आस में अब हर शाम टेलीफोन के पास बैठ कर ही गुजरती है. जिस घंटी की आवाज सुनने के लिए इन 6 सालों से बेजार हूं वह घंटी कभी नहीं सुनी. हो सकता है कि उसे डर लगता हो कि कहीं बाप आस्टे्रलिया न धमक जाए.’

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जेम्स ने एक लंबी सांस ली. मुझ से पता पूछा तो मैं ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर दे दिया और बोला, ‘मिस्टर जेम्स, किसी भी समय मेरी जरूरत हो तो अब बिना किसी झिझक के मुझे फोन कर देना. आइए, मैं आप को आप के घर छोड़ देता हूं. मेरी कार बराबर की गली में खड़ी है.’

‘धन्यवाद, मैं पैदल ही जाऊंगा क्योंकि इस प्रकार मेरा व्यायाम भी हो जाता है.’

घर आने पर देखा तो डाक में कुछ चिट्ठियां पड़ी थीं. मैं ने कोर्बी टाउन के एक स्कूल में गणित विभाग के अध्यक्ष पद के लिए साक्षात्कार दिया था. पत्र खोला तो पता चला कि मुझे नियुक्त कर लिया गया है.

नए स्कूल के लिए मैं ने अपनी स्वीकृति भेज दी. जाने में केवल एक सप्ताह शेष था. जाते हुए जेम्स से विदा लेने के लिए उस के मकान पर गया पर वह वहां नहीं था. पड़ोसी से पता लगा कि वह अस्पताल में भरती है. इतना समय नहीं था कि अस्पताल जा कर उस का हाल देख लूं.

एक दिन की मुलाकात मस्तिष्क की चेतना पर अधिक समय नहीं टिकी. समय के साथ मैं जेम्स को बिलकुल भूल गया.

वकील के पत्रानुसार नियत समय पर जेम्स के घर पर पहुंच गया. उसी दरवाजे पर घंटी का बटन दबाया जहां से 30 साल पहले जेम्स से मिले बिना ही लौटना पड़ा था. आज बड़ा विचित्र सा लग रहा था. लगभग 45 वर्षीय एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला.

Serial Story वसीयत- आखिर सीमा और जेम्स वारन के बीच क्या रिश्ता था : भाग 3

मैं ने अपना और सीमा का परिचय दिया तो वकील ने भी अपना परिचय दे कर हमें अंदर ले जा कर एक सोफे पर बैठा दिया. वहां 3 पुरुष और 1 महिला पहले ही मौजूद थे. तीनों ही अंगरेज थे.

मार्टिन ने हम सब का परिचय कराया. एक सज्जन आर.एस.पी.सी.ए. (दि रायल सोसाइटी फार दि प्रिवेंशन आफ क्रूएल्टी टु ऐनिमल्स) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अन्य 3, विलियम वारन (जेम्स वारन का पुत्र), उस की पत्नी जैनी वारन तथा जेम्स का पौत्र जार्ज वारन थे, जो आस्टे्रलिया से आए थे.

बाईं ओर छोटे से नर्म गद्दीदार गोल बिस्तर में एक बड़ी प्यारी सी काली और सफेद रंग की बिल्ली कुंडली के आकार में सोई पड़ी थी, जिस का नाम ‘विलमा’ बताया गया.

मार्टिन ने अपनी फाइल से वसीयत के कागज निकाल कर पढ़ने शुरू किए. अपनी संपत्ति के वितरण के बारे में कुछ कहने से पहले जेम्स ने अपनी सिसकती वेदना का चित्रण इन शब्दों में किया था:

‘लगभग 4 दशक पहले मेरे अपने बेटे विलियम और उस की पत्नी जैनी ने लंदन छोड़ कर मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मैं फोन पर अपने पोते और इन दोनों की आवाज सुनने को तरस गया. मैं फोन करता तो शीघ्र ही किसी बहाने से काट देते और एक दिन इस फोन ने मौन धारण कर यह सहारा भी छीन लिया. किसी कारण स्थानांतरण होने पर बेटे ने मुझे अपने नए पते या टेलीफोन नंबर की सूचना तक नहीं दी. मैं इस अकेलेपन के कारण तड़पता रहा. कोई बात करने वाला नहीं था. कौन बात करेगा, जिस का अपना ही खून सफेद हो गया हो.

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‘6 साल जीभ बिना हिले पड़ीपड़ी बेजान हो गई थी कि एक दिन एक भारतीय सज्जन राकेश वर्मा ने पार्क में मेरी इस मौन व्यथा को देखा और समझा. मेरे उमड़ते हुए उद्गारों को इस अनजान आदमी ने पहचाना. विडंबना यह रही कि वह भी व्यक्तिगत कारणों से लंदन से दूर चले गए.

‘राकेश वर्मा के साथ एक दिन की भेंट मेरे सारे जीवन की धरोहर बन यादों में सुकून देती रही. फिर इस भयावह अकेलेपन ने धीरेधीरे भयानक रूप ले लिया. आयु और शारीरिक रोगों के अलावा मानसिक अवसाद ने भी मुझे घेर लिया.

‘इस अभिशप्त जीवन में आशा की एक लहर मेरे मकान के बाग में न जाने कहां से एक बिल्ली के रूप में आ गई. कौन जाने इस का मालिक भी देश छोड़ गया हो और इसे भी इस के भाग्य पर मेरी तरह ही अकेला छोड़ गया हो. बिल्ली को मैं ने एक नाम दिया ‘विलमा.’

‘2-3 दिनों में विलमा और मैं ऐसे घुलमिल गए जैसे बचपन से हम दोनों साथ रहे हों. मैं उसे अपनी कहानी सुनाता और वह ‘मियाऊंमियाऊं’ की भाषा में हर बात का उत्तर देती. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं नन्हें जार्ज से बात कर रहा हूं.

‘एक दिन वह जब बाहर गई और रात को वापस नहीं लौटी तो मैं बहुत रोया, ठीक उसी तरह जैसे जार्ज, विलियम और जैनी को छोड़ने के बाद दिल की पीड़ा को मिटाने के लिए रोया था. मैं रात भर विलमा की राह देखता रहा. अगले दिन वह वापस आ गई. बस, यही अंतर था विलमा और विलियम में जो वापस नहीं लौटा.

‘विलमा के संग रहने से मेरे मानसिक अवसाद में इतना सुधार हुआ जो अच्छी से अच्छी दवाओं से नहीं हो पाया था. उस ने मुझे एक नया जीवन दिया. वह कब क्या चाहती है, मैं हर बात समझ लेता था. यह सब वर्णन से बाहर है, केवल अनुभूति ही हो सकती है.’

विलियम, जैनी और जार्ज, तीनों के चेहरों पर उतारचढ़ाव कभी रोष तो कभी पश्चात्ताप के लक्षणों का स्पष्टीकरण कर रहे थे.

जेम्स ने अपनी वसीयत में मुख्य रूप से कहा था कि मेरी सारी चल और अचल संपत्ति में से समस्त टैक्स तथा हर प्रकार के वैध खर्च, बिल आदि देने के बाद शेष बची रकम का इस प्रकार वितरण किया जाए :

‘मिस्टर राकेश वर्मा, जिन का पुराना पता था : 23 रैले ड्राइव, वैटस्टोन, लंदन एन 20, को 2 हजार पौंड दिए जाएं और उन से मेरी ओर से विनम्रतापूर्वक कहा जाए कि यह राशि उन के उस एक दिन का मूल्य न समझा जाए जिस के कारण मेरे जीवन के मापदंड ही बदल गए थे. उन अमूल्य क्षणों का मूल्य तो चुकाने की सामर्थ्य किसी के भी पास न होगी. यह क्षुद्र रकम तो मेरे उद्गारों का केवल टोकन भर है.

‘मेरे उक्त वक्तव्य से, स्पष्ट है कि विलियम वारन, जैनी वारन या जार्ज वारन इस संपत्ति के उत्तराधिकारी होने के अयोग्य हैं.’

वकील कहतेकहते कुछ क्षणों के लिए रुक गया. विलियम, जैनी और जार्ज की मुखाकृति पर एक के बाद एक भाव आजा रहे थे. वे कभी आंखें नीची करते हुए दांत पीसते तो कभी अपने कठोर व्यवहार का पश्चात्ताप करते.

विलियम अपने क्रोध को वश में न रख सका और खड़े हो कर सामने रखी मेज पर जोर से हाथ मार कर जाने को खड़ा हो गया तो जैनी ने उसे समझाबुझा कर बैठा लिया.

वकील ने पुन: वसीयत पढ़नी शुरू की तो यह जान कर सभी आश्चर्यचकित हो गए कि शेष समस्त संपत्ति ‘विलमा’ बिल्ली के नाम कर दी गई थी और साथ ही कहा गया था कि आर.एस.पी.सी.ए. को ‘विलमा’ के शेष जीवन के पालनपोषण का अधिकार दिया जाए और इसी संस्था को प्रबंधक नियुक्त किया जाए. साथ ही एक सूची थी जिस में ‘विलमा’ को जेम्स किस प्रकार रखता था, उस का पूरा वर्णन था. आगे लिखा था, ‘विलमा के निधन पर उस का एक स्मारक बनाया जाए. उस के बाद शेष धन को राह भटके हुए, प्रताडि़त पशुओं की दशा सुधारने पर व्यय किया जाए.’

मैं ने मार्टिन से कहा, ‘‘यदि आप अनुमति दें तो ये 2 हजार पौंड, जो वसीयत के अनुसार जेम्स वारन मुझे दे रहे हैं, इस राशि को भी ‘विलमा’ की वसीयत की राशि में ही मिला दें तो मुझे हार्दिक सुख मिलेगा.’’

वकील ने कहा, ‘‘इस को विधिवत बनाने में थोड़ी अड़चन आ सकती है. हां, इसी राशि का एक चैकआर.एस.पी.सी.ए. को अपनी इच्छानुसार देना अधिक सुगम होगा.’’

अंत में औपचारिक शब्दों के साथ मार्टिन ने वसीयत बंद कर बैग में रख ली. बिल्ली, जो अभी भी सारी काररवाई से अनजान सोई हुई थी, आर.एस.पी.सी.ए. के प्रतिनिधि को सौंप दी गई. इस प्रकार वकील का भी प्रतिदिन ‘विलमा’ की देखरेख का भार समाप्त हो गया. सब मकान से बाहर आ गए.

मैं ने सीमा से कहा कि मैं तुम्हें उस मकान पर ले चलता हूं जहां लंदन में विवाह से पहले मैं रहता था. कार 10 मिनट में 23 रैले ड्राइव के सामने पहुंच गई. कार एक ओर खड़ी की और न जाने क्यों बिना सोचेसमझे ही उंगली उस मकान की घंटी के बटन पर दबा दी.

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एक अंगरेज वृद्ध ने छोटे से कुत्ते के साथ दरवाजा खोला. कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया. मैं ने उस वृद्ध को बताया कि लगभग 30 वर्ष पहले मैं इस मकान में किराएदार था. बस, इधर से गुजर रहा था तो पुरानी याद आ गई…इस से पहले कि मैं आगे कुछ कहता, बूढ़े ने बड़े रूखेपन से कहना शुरू कर दिया.

‘‘यदि तुम इस मकान को खरीदने के विचार से आए हो तो वापस चले जाओ. इन दीवारों में केरी और चार्ल्स की यादें बसी हुई हैं. चार्ल्स की मां, मेरी पत्नी तो मुझे कब की छोड़ गई…चार्ल्स अमेरिका से एक दिन अवश्य आएगा… हां, कहीं उस का फोन न आ जाए?’’

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इतना कहतेकहते उस ने दरवाजा बंद कर लिया. अंदर से कुत्ता अभी भी भौंक रहा था. सीमा की नजर दरवाजे पर अटकी हुई थी. कह रही थी.

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