मौत के आगोश में समाया ‘फूल’ : भाग 2

लगभग एक घंटे बाद अनुपम लौटा तो मिठाई, मटन के अलावा शराब की बोतल थी. पहले सब ने मिठाई खाई. फिर मुन्नी ने अपने हाथ से मीट और चावल पकाए. खाना तैयार हो गया तो अनुपम शराब की बोतल खोल कर पीने बैठ गया. जानबूझ कर वह धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था ताकि बच्चे खापी कर सो जाएं. रही मुन्नी तो अनुपम ने उसे रसीली बातों से जगा रखा था.

मुन्नी जानती थी कि अनुपम के मन में क्या है. लिहाजा रतजगा के लिए उस ने खुद को मानसिक तौर पर तैयार कर लिया था और अनुपम की बातों का खूब आनंद ले रही थी.

मुन्नी ने की पहल

बच्चे सो गए, लेकिन अनुपम शराब की चुस्कियां लेते हुए मुन्नी से गपशप करता रहा. मुन्नी को उम्मीद थी कि अनुपम उस पर हाथ डालेगा, लेकिन जब उस ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया तो उस ने ही पहल की, ‘‘बस करो, शराब बहुत हो गई है.’’

ये भी पढ़ें- फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

‘‘एक पैग और पी लूं,’’ अनुपम उस के हसीन बदन को लालच से देखने लगा, ‘‘उस के बाद गोश्त खाऊंगा.’’

मुन्नी भी कम नहीं थी. आंखें नचाते हुए उस ने पूछा, ‘‘कैसा गोश्त, कच्चा या पका हुआ.’’

अनुपम रोमांच से भर गया, ‘‘आदमी जब भूखा हो, तब कच्चा गोश्त भी हलाल होता है.’’

‘‘गोश्त खाना है तो सामने से शराब की बोतल हटा दो.’’ मुन्नी ने बड़े मदमाते अंदाज में कहा, ‘‘कहीं ऐसा न हो कि शराब ज्यादा हो जाए और तुम बोटियां चबाने लायक ही न रहो.’’

अनुपम ने ढक्कन बंद कर के बोतल सामने से हटा दी और मुन्नी की कलाई पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा. मुन्नी झट से उस की गोद में आ गिरी और अनुपम के गले में बांहों का हार डाल दिया.

कुछ देर आंखों से आंखें मिलीं, फिर होंठों से होंठ मिल गए. शराब अनुपम ने पी थी, गंध मुन्नी की सांसों में आने लगी. इस के बाद उन के बीच कोई दीवार न रही. वे दोनों एकदूसरे में समा गए. आनंद की मंजिल पर पहुंचने के बाद ही दोनों अलग हुए. कम उम्र के कुंवारे युवा जोश को अपने अंदर महसूस कर के मुन्नी निहाल हो गई.

इस के बाद तो उन के बीच बेरोकटोक संबंधों का यह सिलसिला चलता रहा.

देश में लौकडाउन हुआ तो सब काम रुक गए. इस वजह से फूलचंद्र भी होशियारपुर से अपने गांव आ गया.

27 मई की रात अचानक फूलचंद्र गायब हो गया. उस का पता न लगने पर रात करीब साढ़े 9 बजे मुन्नी ने गांव में ही रहने वाले अपने देवर हुकुमचंद्र को फोन कर के बताया कि उन के भाई कहीं चले गए हैं उन का पता नहीं चल रहा है. इस पर हुकुमचंद्र चौंक गए. उस की गांव में तलाश की लेकिन कुछ पता नहीं चला.

अगले दिन सुबह गांव के लोगों ने बीरबल कुट्टी में हनुमान मंदिर के प्रांगण में फूलचंद्र की लाश पड़ी देखी तो परिजनों को सूचना दी. घटनास्थल से फूलचंद्र के मकान की दूरी लगभग 500 मीटर थी. पता चलते ही मुन्नी बच्चों के साथ वहां पहुंच गई. फूलचंद्र के तीनों भाई भी मौके पर पहुंच गए. मुन्नी अपने पति की लाश देख कर रोनेबिलखने लगी.

इसी बीच किसी ने मल्हीपुर थाने में घटना की सूचना दे दी थी. सूचना मिलने पर थाने के इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी. फिर अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक फूलचंद्र के सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार से प्रहार किए गए थे, जिन के गहरे घाव हो गए थे और काफी खून बह गया था. लाश के आसपास काफी मात्रा में खून पड़ा था.

लाश का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने मृतक की पत्नी मुन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति शाम घर से निकले थे, लेकिन देर रात होने पर भी वापस नहीं लौटे तो उसे चिंता हुई. उस ने अपने देवर हुकुमचंद्र को यह बात बताई. रात में ही उन्होंने खोजा लेकिन कुछ पता नहीं चला, सुबह लाश मिल गई.

मुन्नी ने अपना शक गांव के भुजौली, अलखराम, कब्बे और मंशाराम पर जताया कि इन चारों ने ही उस के पति की हत्या की है. उन से साल भर पहले छप्पर डालने को ले कर विवाद हुआ था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पांडेय ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

फिर थाने आ कर मुन्नी की तहरीर पर भुजौली, अलखराम, कब्बे और मंशाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. प्रारंभिक जांच में इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय को गांव के लोगों से मुन्नी के अवैध संबंध अनुपम वर्मा नाम के युवक से होने की बात पता चली.

इस लाइन पर उन्होंने अपनी जांच आगे बढ़ाई. उन्होंने मुन्नी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की एक नंबर पर घंटों बात होने का पता चला. वह नंबर अनुपम वर्मा का था.

दोनों के फोन नंबरों की लोकेशन ट्रेस की गई तो घटना की रात एक साथ मिली. इस का मतलब यह था कि फूलचंद्र की हत्या में मुन्नी और उस के प्रेमी अनुपम का हाथ है.

30 मई, 2020 को इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने गौहनिया गांव से अनुपम वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद मुन्नी को घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने में कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों का साथ देने वाले श्रीराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

लौकडाउन के कारण फूलचंद्र घर लौट आया तो मुन्नी और अनुपम की मौजमस्ती पर ब्रेक लग गए थे. फूलचंद्र की मौजूदगी उन्हें खलने लगी. अब उन के संबंधों के बीच में फूलचंद्र नाम की दीवार खड़ी थी. इस दीवार को हटाए बिना उन का मिलन संभव नहीं था. ऐसे में मुन्नी और अनुपम ने फूलचंद्र को मौत के आगोश में सुलाने का फैसला कर लिया.

23 मई को अनुपम अपने एक साथी के साथ फूलचंद्र के घर आया. तीनों ने साथ बैठ कर शराब पी. तभी अनुपम ने चाकू से उस का गला रेतने के लिए फूलचंद्र के गले पर हलका चलाया ही था कि मुन्नी ने उसे यह कह कर रोक दिया कि घर के अंदर ऐसा करना ठीक नहीं.

ये भी पढ़ें- 2 किरदारों का चरित्र : भाग 1

फूलचंद्र के गले में घाव हो गया था, जिस से खून बहने लगा. इस पर मुन्नी उसे गांव के ही एक झोलाछाप डाक्टर के पास ले गई और उस के जख्म की मरहमपट्टी कराई. फिर उसे ले कर वापस घर आ गई. अनुपम उस दिन चला गया.

मुन्नी के साथ मिल कर उस ने फिर फूलचंद्र की हत्या की योजना बनाई. अनुपम ने इस योजना में अपने दोस्त श्रीराम को भी शामिल कर लिया. श्रीराम भिनगा कोतवाली के इटवरिया गांव का रहने वाला था. अनुपम के गौहनिया गांव में मोबाइल की दुकान चलाता था. अनुपम उस का विवाह अपनी ममेरी बहन से करा रहा था. दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की पूरी तैयारी थी. अनुपम ने उस से फूलचंद्र की हत्या में साथ देने को कहा तो वह मना न कर सका.

27 मई, 2020 को अनुपम श्रीराम के साथ घर से निकला. उस ने 3 बीयर की केन खरीदीं और एक मैडिकल शौप से उस ने नशीला इंजेक्शन और सीरिंज खरीदी. सीरिंज के जरिए उस ने वह नशीली दवाई एक बीयर की केन में डाल दी. वह बीयर की केन अनुपम ने खुद अपने पास रख ली और बाकी दोनों केन श्रीराम ने रख लीं. इस के अलावा एक कुल्हाड़ी भी ले ली.

फूलचंद्र के मकान से करीब 500 मीटर की दूरी पर बीरबल कुट्टी में हनुमान मंदिर के प्रांगण में पहुंच कर अनुपम ने रात 9 बजे फूलचंद्र को फोन कर के बीयर पीने के लिए बुलाया. उस के बुलावे पर फूलचंद्र घर से निकल लिया. उस के पीछेपीछे मुन्नी भी चली गई.

फूलचंद्र के पहुंचने पर अनुपम ने उसे नशीली दवा मिली हुई बीयर की केन पीने को दी. बाकी दोनों बीयर अनुपम और श्रीराम उस के साथ बैठ कर पीने लगे. बीयर पीतेपीते नशीली दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो बेहोश हो कर फूलचंद्र एक ओर लुढ़क गया. इस के बाद मुन्नी भी वहां आ गई. तीनों ने मिल कर कुल्हाड़ी से फूलचंद्र के सिर व गले पर कई प्रहार किए, जिस से उस की मौत हो गई. इस के बाद अनुपम श्रीराम के साथ वापस घर लौट गया.

मुन्नी ने घर लौट कर अपने देवर हुकुमचंद्र को फूलचंद्र के लापता होने की झूठी बात फोन पर बताई. फिर अपने विरोधियों को फंसा कर मुन्नी साफ बच निकलना चाहती थी, लेकिन उस की चाल किसी काम न आई. वह प्रेमी और उस के दोस्त के साथ पकड़ी गई.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 2

इंसपेक्टर देवेंद्र पांडेय ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित कुल्हाड़ी, एक खाली सीरिंज, बीयर की 3 खाली केन और घटना के समय अनुपम द्वारा पहनी गई खून से सनी शर्ट बरामद कर ली. इस के बाद कानूनी लिखापढ़ी कर के तीनों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौत के आगोश में समाया ‘फूल’ : भाग 1

आदमी को जब कोई मुसीबत अचानक आ घेरे तो उसे ऐसे में किसी अपने की याद आती है जो उस का मददगार या सहारा बन सके. फूलचंद्र की पत्नी मुन्नी अचानक बीमार हुई तो उसे अनुपम की याद आई. अनुपम और फूलचंद्र की उम्र में दोगुने का अंतर था. फूलचंद्र 40 वर्ष का था तो अनुपम 20 वर्ष का. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर गहरी दोस्ती हो गई.

फूलचंद्र ने तुरंत अनुपम को फोन किया, ‘‘अनुपम, तुम्हारी भाभी मुन्नी की तबियत बहुत खराब है, अस्पताल ले जाना पड़ेगा. मैं बच्चों को संभालूं या मुन्नी को. इस वक्त मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है, आ जाओ.’’

ये भी पढ़ें- ऑनलाइन ठगी का संजाल: सतर्कता परमो धर्म

‘‘मुसीबत हो या परेशानी, दोस्त ही दोस्त के काम आता है. तुम चिंता न करो, मैं आ रहा हूं.’’ अनुपम बोला.

अनुपम से जितना जल्दी संभव हो सकता था, फूलचंद्र के घर पहुंच गया. वे दोनों मुन्नी को अस्पताल ले गए. मुन्नी के उपचार के लिए जिन दवाओं व संसाधनों की जरूरत थी, वे उस अस्पताल में नहीं थे. उसे समुचित इलाज के लिए शहर जाने को कहा.

मुन्नी की जिंदगी और मौत का सवाल था, इसलिए वे दोनों उसे शहर ले गए. शहर के अस्पताल में मुन्नी का सही एवं बेहतर इलाज हुआ. समय तो लगा, पर पैसा काफी खर्च हो गया.

मुन्नी ठीक हो कर घर आ गई, मगर फूलचंद्र को आर्थिक अभावों ने घेर लिया. जो पैसा था, उस ने मुन्नी के इलाज में लगा दिया था. इस के अलावा भी उस ने कुछ लोगों से पैसा उधार लिया था. फूलचंद्र तनाव में रहने लगा कि कैसे वह घर का खर्च उठाएगा और उधार लिया पैसा कैसे वापस करेगा.

मुन्नी की खैरखबर लेने और फूलचंद्र से मिलने के लिए रोज शाम को अनुपम उस के घर आता था. फूलचंद्र उसे अपने दुखड़े में शामिल कर लेता, ‘‘अनुपम, मुझे चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है. समझ में नहीं आता कि कहां से पैसा आए और देनदारी चुकता करूं. गांव में मेहनतमशक्कत के अलावा ऐसा कोई काम भी तो नहीं है, जिस से चार पैसे ज्यादा कमा सकूं.’’

यह सुन कर शातिर अनुपम के होंठों पर मुसकान आ गई. दरअसल वह मुन्नी के रूपलावण्य पर फिदा था और उस का उपभोग करना चाहता था. फूलचंद्र से दोस्ती भी उस ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए की थी. अनुपम ने मुन्नी पर डोरे डालने शुरू ही किए थे कि वह बीमार पड़ गई. अब मुन्नी पहले जैसी स्वस्थ हो गई थी तो फूलचंद्र उसे घेरे बैठा रहता था.

अनुपम ने लगाई तिकड़म

अनुपम के मन में खुद यह बात थी कि किसी तिकड़म से फूलचंद्र को घर से दूर भेज दिया जाए, तभी मुन्नी को हासिल किया जा सकता है. मुन्नी उस के अहसानों तले दबी है, इसलिए उसे पटाने में अधिक मेहनत नहीं करनी पडे़गी. अत: फूलचंद्र से सुहानुभूति जताते हुए वह बोला, ‘‘तुम सही कहते हो, तुम गांव रहोगे तो कुछ नहीं कर पाओगे. कुछ करना है तो तुम्हें गांव छोड़ना पडे़गा.’’

‘‘अनुपम, मैं गांव तो छोड़ दूं, पर यह समझ नहीं आ रहा कि जाऊं कहां और क्या करूं?’’ फूलचंद्र बोला.

‘‘मेरे गांव के कुछ लोग पंजाब के होशियारपुर में रह कर छोटेमोटे काम कर रहे हैं. उन के काम जरूर छोटे हैं, पर आमदनी अच्छी है.’’ अनुपम ने ऐसी तरकीब सुझाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, ‘‘अगर तुम होशियारपुर जा कर काम करना चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’

फूलचंद्र ऐसा काम करना ही चाहता था, जिस में ज्यादा कमा सके. अत: वह राजी हो गया. वह बोला, ‘‘होशियारपुर तो मैं चला जाऊंगा, लेकिन यहां पर मुन्नी और तीनों बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हें उठानी पडे़गी.’’

अनुपम के लिए यह बात मलाई भरी कटोरी की रखवाली बिल्ले से कराने जैसी थी, लेकिन फूलचंद्र को अनुपम की नीयत पता नहीं थी, इसलिए उस ने हां कह दी. अनुपम ने भी यह जिम्मेदारी फौरन लपक ली, ‘‘तुम बेफिक्र हो कर होशियारपुर जाओ, भाभी और बच्चों की देखभाल मैं करता रहूंगा.’’

अनुपम ने होशियारपुर में रह कर कमाने वाले एक परिचित का नामपता और मोबाइल नंबर फूलचंद्र को लिखवा दिया. इतना ही नहीं, फूलचंद्र की उस परिचित से बात भी करा दी.

दूसरे ही दिन फूलचंद्र होशियारपुर के लिए रवाना हो गया. इधर मलाई भरी कटोरी पर झपटने के लिए बिल्ला तैयार था.

ये भी पढ़ें- मनीत का आत्मघाती कदम

उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के मल्हीपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है— ओरीपुरवा. इसी गांव में रहता था 40 वर्षीय फूलचंद्र वर्मा. उस के परिवार में पत्नी मुन्नी के अलावा 3 बच्चे थे, बेटे प्रदीप (11) व सूरज (9) और बेटी लक्ष्मी (7).

दूसरी युवतियों की तरह मुन्नी ने भी विवाह से पहले फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी. तमन्ना करने मात्र से चांद मिल तो नहीं जाता. मुन्नी को जो पति मिला, वह उस की अपेक्षाओं के वितरीत था. अनपढ़, न बोलने का सलीका, न पहननेओढ़ने का.

कुछ ही दिनों में मुन्नी समझ गई कि फूलचंद्र जिंदा है तो केवल खाने के लिए और कमाता इसलिए है ताकि दोनों टाइम भर पेट भोजन मिलता रहे. न सिनेमा में रुचि, न सैरसपाटे में. मुन्नी उस से सिनेमा देखने या घूमने की फरमाइश करती तो वह उसे झिड़क देता, ‘‘ये सब उन के चोंचले हैं, जिन के पास अनापशनाप पैसा होता है. मैं ठहरा गरीब मजदूर, इसलिए यह सब मेरे भाग्य में कहां. तुम भी हैसियत की चादर देख कर पांव पसारना सीखो.’’

पति के मुंह से इस तरह की बातें सुनसुन कर मुन्नी ऊब गई और शादी के चंद हफ्तों में ही मुन्नी को पति से अरुचि हो गई. लेकिन शादी हुई थी, इसलिए निभाना ही था. मुन्नी फूलचंद्र का साथ निभातेनिभाते 3 बच्चों की मां बन गई. फूलचंद्र को उस ने बदलने की बहुत कोशिश की लेकिन बदल न सकी.

हां, मुन्नी ने अपने शौक नहीं मारे. सीमित साधनों में वह पहले की ही तरह अपने शौकशृंगार करती रही. 3 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस ने अपना फिगर खराब नहीं होने दिया था.

इसी बीच फूलचंद्र की दोस्ती अनुपम वर्मा उर्फ अन्नू से हो गई. वह उस के घर आनेजाने लगा. 20 वर्षीय अनुपम वर्मा भिनगा थाना कोतवाली अंतर्गत गौहनिया राजगांव निवासी सुभाषचंद्र पटेल का बेटा था. सुभाषचंद्र खेतीकिसानी करते थे. अनुपम के हाईस्कूल तक पढ़ने के बाद उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो सुभाषचंद्र ने उसे अपने साथ खेती के कामों में रमा लिया. वह अविवाहित था.

एक दिन किसी काम से अनुपम ओरीपुरवा आया तो मुन्नी को देख कर उस का मन डोल गया. उस ने अपने स्तर से मुन्नी के बारे में पता किया तो जाना कि मुन्नी चरित्र की कमजोर नहीं है, इसलिए आसानी से हाथ आने वाली नहीं है. अनुपम भी जल्दी निराश होने वाला शख्स नहीं था. मुन्नी को सेट करने के लिए उस ने उस के पति फूलचंद्र को सीढ़ी बनाने का फैसला किया और उस से दोस्ती कर ली.

अनुपम जब भी आता, मुन्नी और बच्चों के लिए कुछ न कुछ खानेपीने की चीजें ले आता था. कुछ ही दिनों में मुन्नी समझ गई कि फूलचंद्र से तो दोस्ती एक आड़ है, असल में अनुपम उस के यौवन का फल चखना चाहता है, तभी उन पर मेहरबानियां कर रहा है.

अनुपम सुंदर, सजीला, पढ़ालिखा और मौजमस्ती में यकीन रखने वाला शख्स था. हंसमुख और जिंदादिल. मुन्नी ने बिलकुल ऐसे ही जीवनसाथी की तमन्ना की थी. वैसे भी फूलचंद्र उम्र के ढलान पर था तो अनुपम नई चढ़ती उम्र का था युवा जोश से भरपूर. फूलचंद्र उस के सामने कुछ भी नहीं था. तमाम बातों पर गौर करने के बाद मुन्नी भी अनुपम की ओर आकर्षित होने लगी.

मुन्नी हो या अनुपम दोनों के दिलों में चाहत की आग बराबर लगी थी. तय था कि जल्द ही चाहत का इजहार हो जाएगा, लेकिन तभी मुन्नी बीमार हो गई. मुन्नी पर प्रभाव जमाने के लिए वह बराबर उस के इलाज के लिए साथ लगा रहा. फूलचंद्र को होशियारपुर भेज कर काम पर लगवा दिया.

काम पर लगने के बाद फूलचंद्र ने फोन कर के मुन्नी को यह बात बताई तो वह खुश हो गई. शाम को अनुपम आया तो मुन्नी ने उसे बताया, ‘‘तुम्हारी मेहरबानी से वह काम पर लग गए हैं.’’

‘‘इस खुशी में तो आज जश्न होना चाहिए.’’ अनुपम बोला.

ये भी पढ़ें- फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

मुन्नी के चेहरे पर उदासी छा गई, ‘‘अभी तो मेरे हाथ खाली हैं. ‘वह’ जब कमा कर लौटेंगे या पैसे भेजेंगे, तब मैं तुम्हारी दावत करूंगी.’’

‘‘दावत के लिए फूलचंद्र की वापसी का इंतजार क्या करना,’’ अनुपम ने मौके का लाभ उठाने का मन बना लिया, ‘‘वह नहीं है, मैं तो हूं और मेरे रहते हुए किसी चीज के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ उस ने फौरन 200 रुपए जेब से निकाल कर मुन्नी के हाथ पर रखे, ‘‘इसे तुम अपने पास रखो. जश्न का सामान ले कर मैं अभी आया.’’ कह कर वह बाहर चला गया.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

ऑनलाइन ठगी का संजाल: सतर्कता परमो धर्म

पहला मामला- सेवानिवृत्त हो चुके पुलिस अधिकारी रघुनंदन प्रसाद कि मोबाइल में कॉल आता है- हम पुलिस मुख्यालय से बोल रहे हैं फलां फलां जानकारी दीजिए. रघुनंदन प्रसाद पुलिस मुख्यालय से जानकारी मांगने पर सब कुछ बताते चले जाते हैं और लूट जाते हैं.

दूसरा मामला- सेवानिवृत्त पुलिस कर्मचारी के पास कॉल आता है और कहां जाता है आपको कुछ जानकारी देनी है। हम  आपके विभाग से ही बोल रहे हैं.कर्मचारी जैसे ही जानकारी देता है उसके बैंक खाते से लाखों रुपए उड़ा लिया जाता है.

ये भी पढ़ें- मनीत का आत्मघाती कदम

वस्तुतः आज हर एक इंसान की मजबूरी है सोशल मीडिया का इस्तेमाल. और इस मजबूरी का फायदा लेते हैं चतुर ठग. जिनसे आपको बचना होगा. आज जिस तरह से ठगी का कारोबार उजागर हो रहा है उसे देखकर यही कहा जा सकता है की ऑनलाइन परमो धर्मा बन चुका है तो सतर्कता भी आपके लिए परमो धर्मा: है.

अब आपको यह तय करना है कि कैसे आप  चतुर ठगों से अपनी रात दिन की कमाई गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं.यह सच है कि आज के दौर में अपराध के तरीके भी आधुनिक हो गए हैं जहां तक सोशल मीडिया और ऑनलाइन ठगी के मामले की बात करें तो यह लगातार बढ़ते जा रहे हैं. ऑनलाइन ठग नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने का  एक तरह से रिकॉर्ड बना रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में  ऑनलाइन ठगों ने सेवानिवृत पुलिसकर्मियों को अपना निशाना बनाया है. लेकिन कहते हैं ना  कानून के हाथ लंबे होते हैं  तो यह एक बार फिर  सिद्ध हो गया . इन शातिर ठगों को  पुलिस ने ढूंढ निकाला और अपनी गिरफ्त में ले, जेल के सिखचों के पीछे  पहुंचा दिया है.

और पुलिस फंस गई फेर में

हमारी इस रिपोर्ट  के केंद्र में है पुलिस .वह पुलिस जो  लोगों को सतर्क रहने का आह्वान करती है. लोगों को  ठगों से बचाती है,  लुटेरों से बचाती है.  मगर छत्तीसगढ़ में  पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी भी  शातिर ठगों के फेर में फंस गए. ऐसे में यह समझा जा सकता है कि  जब पढ़े-लिखे पुलिस अधिकारी  जो  24 घंटे  अपराधिक लोगों से दो-चार होते हैं.  लोगों को राहत देते हैं… बचाते हैं  इन सोशल मीडिया के ठगों के संजाल में फंस गए तो आम आदमी  कि  बखत क्या है.

ये भी पढ़ें- फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

छत्तीसगढ़ के महासमुंद, कांकेर, राजनांदगांव, दंतेवाड़ा, रायपुर, सरगुजा, बिलासपुर सहित कुछ नगरों में सेवानिवृत्त पुलिस कर्मियों को शातिर ठगों ने कुछ  दिनों में  तकरीबन  40 लाख रुपए की ठगी की. इसी  माह 16 जुलाई को राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी थाने में सेवनिवृत्त पुलिसकर्मी भगवान सिंह सलामे ने रपट  दर्ज कराई कि एक फोन कॉल में अपने आप को पेंशन अधिकारी बताकर उनसे एक शख्स  ने एटीएम कार्ड की संपूर्ण जानकारी  ली और उनके खाते में जमा 18 लाख 33 हजार रूपये  देखते ही देखते उड़ा लिए .

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव सहित  अन्य जिलों से भी इसी तरह  के  प्रकरण  सामने आये। राजनांदगांव  पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला के  तत्परता से  शातिर आरोपियों की  तलाशी की जाने लगी .

छत्तीसगढ़ राजधानी पुलिस मुख्यालय भी इन प्रकरणों को लेकर सतर्क हुआ. जांच तेजी से होने लगी. महासमुंद और दंतेवाड़ा पुलिस की एक संयुक्त टीम बनाकर आरोपियों की तलाश में लग गई.

इस  दरमियान पुलिस को कुछ सुराग मिले और पुलिस आरोपियों तक पहुंच गई. पुलिस ने सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों के साथ ठगी करने वाले बिहार के लीलावरण थाना बंधवापुरूवा निवासी आरोपी बाबर अली हेम्ब्राम, मनोज कुमार, रोहित कुमार यादव, पिंटू कुमार मंडल, जितेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया है। राजनांदगांव पुलिस ने इस मामले का  खुलासा कर दिया.

ये भी पढ़ें- 2 किरदारों का चरित्र : भाग 1

पुलिस की गिरफ्त में आए ये शातिर ठग सेवा निवृत्त  पुलिसकर्मियों से पेंशन अधिकारी बनकर उन्हें पेंशन राशि, पीएफ सहित अन्य मामलों में उलझाते  थे और एटीएम कार्ड पर अंकित नंबर पुछकर उनके बैंक खाते से सारे रुपए निकाल लेते थे. मजे की बात यह है कि ठगी करने वाले आज के तेजी से प्रचलन में आई सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते रहे. यह  सेवानिवृत्ति पुलिस कर्मियों के बारे में ऑनलाइन ही जानकारी इकट्ठा करते थे.पुलिस ने सभी आरोपियों को झारखंड और बिहार के अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया है. पकड़े गए आरोपियों के पास से दर्जनों मोबाइल सिम, वहीं 2 दर्जन से अधिक मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड,  लैपटॉप, कलर प्रिंटर सहित कई फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं. इस तरह छत्तीसगढ़ में पुलिस ने एक अंतर राज्य ऑनलाइन शातिर ठग गिरोह का पर्दाफाश किया है.

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 3

जिस कमरे में वे बैठे थे, वह उन की बैठक थी. एकएक सामान औसत दर्जे वाले कमरे में अपनीअपनी जगह बड़े कायदे से सजा कर रखा हुआ था, जहां उसे होना चाहिए था.

घर में कोई हलचल होती न देख मनीत से रहा नहीं गया. उस ने संध्या से पूछा, ‘‘घर में सन्नाटा फैला है. अंकलआंटी या कोई और नहीं है क्या?’’

‘‘फिलहाल, घर में सभी हैं लेकिन इस वक्त मम्मी किसी काम से बाहर गई हैं. उन्हीं के साथ भाईबहन भी गए हैं. और मैं आप के सामने बैठी हूं.’’ संध्या ने बिंदास हो कर जवाब दी.

‘‘ओह, तभी तो घर सूनासूना लग रहा है वरना हलचल तो जरूर रहती यहां.’’

‘‘जी, हलचल की बात कर रहे हैं. घर में भूचाल मची रहती है जब छोटी बहन यहां होती है.’’

ये भी पढ़ें- जब मुरदे ने दे दी खुद की गवाही : अपराधी चाहे जितनी चालाकियां कर ले, कानून से नहीं बच सकता

‘‘वो कोई अफलातून है क्या?’’

‘‘नहीं, पर उस से कम भी नहीं है.’’

कुछ देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. फिर वे अपने मुद्दे पर आ गए. संध्या ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘जिंदगी के दोराहे पर ला कर मुझे तुम अकेला छोड़ तो नहीं दोगे?’’

‘‘ऐसे क्यों कह रही हो संध्या. क्या मैं तुम्हें छिछोरा दिखता हूं?’’

‘‘नहीं, बात छिछोरेपन वाली नहीं है मनीत. जमाना बहुत खराब चल रहा है और फिर किसी के चेहरे पर तो कुछ लिखा नहीं है.’’ संध्या ने आशंका जताई.

‘‘ऐसी बात नहीं है संध्या. मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारा इतना इंतजार नहीं करता. और न मैं ऐसावैसा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं संध्या. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम्हारे लिए जमाने से लड़ना भी पड़ा तो मैं उस में पीछे हटने वालों में से नहीं हूं. तुम्हारे लिए जमाने से भी लड़ जाऊंगा. लेकिन मुझे गलत मत समझना, प्लीज.’’ मनीत ने सफाई दी.

‘‘तुम तो बुरा मान गए.’’

‘‘इस में बुरा मानने वाली क्या बात है. जो सवाल तुम ने किया, उस क ा जवाब मैं ने दिया.’’

‘‘मेरी बातों को दिल पर मत लेना प्लीज. मेरे मन में जो आया, सो मैं ने कह दिया.’’

‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’ कलाई पर नजर डालते मनीत ने आगे कहा, ‘‘काफी देर हो गई है मुझे आए हुए.’’

‘‘अरे अभी तो आए हो और अभी जाने के लिए कह रहे हो. मैं अपने दिल के शहजादे को जाने के लिए कैसे कह दूं. अभी तो नजर भर आप को देखा तक नहीं.

कुछ देर और बैठो, तो मेरे दिल को सुकून मिल जाए. फिर चले जाइएगा.’’ ऐसी अनोखी अदा से संध्या ने मनीत के सामने बातों को परोसा कि मनीत चाह कर भी अपनी जगह से हिल नहीं सका.

प्यार के निवेदन पर मनीत कुछ देर और बैठा रहा. थोड़ी देर दोनों प्यार भरी बातें करते रहे फिर मनीत अपने कमरे पर लौट आया.

संध्या से विदा लेते वक्त उस ने उसे भी अपने कमरे पर आने के लिए कहा. मनीत के आग्रह पर एक दिन शाम के समय संध्या मनीत के कमरे पर उस के साथ पहुंची. उस समय कमरे पर उस के दोनों दोस्त अनिल और जमील थे. दोनों उन के प्यार के बारे में जानते थे.

कुछ देर रुकने के बाद संध्या घर लौट गई थी. इस के बाद संध्या को जब भी मौका मिलता था, वह मनीत से मिलने उस के किराए के कमरे पर आ जाती थी. इसी दौरान दोनों सामाजिक मर्यादा तोड़ कर एक हो गए थे. उन के बीच में जिस्मानी संबंध बन चुके थे.

धीरेधीरे उन का प्यार दोनों के घर वालों तक पहुंच चुका था. संध्या और मनीत दोनों के घर वालों ने उन्हें चेतावनी दे दी थी कि वे एकदूसरे से मिलना बंद कर दें.

मनीत के घर वालों ने साफ शब्दों में कह दिया था उस की शादी वहीं होगी, जहां वे लोग चाहेंगे. संध्या हरगिज इस घर की बहू नहीं बन सकती है. वह न तो हमारी जातिबिरादरी की है और न ही हमारे हैसियत की.

मनीत और संध्या के बीच के रिश्ते इतने आगे बढ़ चुके थे कि वहां से वापस लौटना नामुमकिन था. संध्या मनीत से कह चुकी थी कि वह उसे धोखा नहीं देगा. अगर उस ने धोखा देने की कोशिश की तो इस का परिणाम भयानक हो सकता है, क्योंकि वह आज की नारी है. अपने हक के लिए वह कुछ भी कर सकती है.

मनीत रिश्तों के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ कर रह गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस ओर जाए. संध्या को अपनाता है तो उस के घर वाले नाराज होते हैं और संध्या को छोड़ता है तो वह नाराज होती है.

मनीत न तो घर वालों को नाराज करना चाहता था और न ही संध्या को. कई दिनों से वह इसी उलझन में जकड़ा हुआ था. मोहब्बत करना कोई गुनाह नहीं होता है, मोहब्बत में मर्यादा लांघना गुनाह होता है जो दोनों कर चुके थे.

संध्या मनीत पर जल्द से जल्द शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी. दोनों ने जो गुनाह किया था उस का बीज संध्या की कोख में पल रहा था. सामाजिक मर्यादा को बचाने के लिए उस के पास एक ही विकल्प था जल्द से जल्द शादी कर के गुनाह को छिपा लेना.

ये भी पढ़ें- इश्किया आग : भाग 1

घर वालों के दबाव में आ कर मनीत संध्या से पीछा छुड़ाने के लिए उस से कट कर रहने लगा. संध्या मनीत के भाव समझ गई थी. संध्या ने मनीत को समझा दिया कि आसानी से पीछा छूटने वाला नहीं है.

फिर क्या था 3 जून, 2020 को संध्या ने कटघर थाने में प्रेमी मनीत के खिलाफ शादी का झांसा दे कर दुष्कर्म करने की शिकायत दर्ज करा दी. मनीत के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज होते ही हड़कंप मच गया.

संध्या के उठाए कदम से मनीत डर गया था. उस ने जैसेतैसे कर के संध्या को मना लिया. उस ने उस से अपनी शिकायत वापस लेने को कहा. वह जानता था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे जेल की हवा खानी पड़ सकती है. जिस से उस के कैरियर पर एक बड़ा धब्बा लग जाएगा.

काफी मानमनौव्वल के बाद संध्या अपनी शिकायत वापस लेने के लिए तैयार हो गई. मनीत ने उस से वादा किया कि अगले 5 जून को दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे.

शादी की बात सुन कर संध्या की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वह बहुत खुश थी. 4 जून की शाम मनीत ने फोन कर के संध्या को अपने कमरे पर बुला लिया. संध्या घर वालों से यह झूठ बोल कर आई थी कि वह अपनी एक सहेली के घर जा रही है. रात वहीं रुकेगी, अगली सुबह घर वापस लौटेगी.

शाम को जब संध्या कमरे पर आई तो दोनों शहर घूमने गए. रात को घर लौटे और मैगी बना कर खाई और कोल्डड्रिंक पी. पूरी रात बातें करते रहे. रात 2 बजे के करीब मनीत ने शादी के सिलसिले में बात करने के लिए घर फोन किया था. घर वालों ने शादी करने से साफ मना कर दिया. इस बात को ले क र मनीत बुरी तरह नरवस हो गया और सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

बहरहाल, जांचपड़ताल में यह बात सिद्ध हो गई थी कि पारिवारिक दबाव और प्रेम उलझन में परेशान हो कर मनीत प्रताप सिंह ने सरकारी कारबाइन से गोली मार कर आत्महत्या की है.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

कटघर थाने में पुलिस ने आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की काररवाई बंद कर दी थी. संध्या की जिंदगी एक चक्रव्यूह में उलझ कर रह गई है, जिसे सुलझाने की कोशिश में वह जुटी हुई है.

– कथा में संध्या नाम और स्थान परिवर्तित किया गया है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 2

मौके पर पहुंचे एसपी (सिटी) अमित आनंद और सीओ पूनम सिरोही ने दोनों सिपाहियों जमील खान, अनिल कुमार गौतम और युवती संध्या से पूछताछ करना शुरू किया.

दोनों सिपाहियों जमील और अनिल ने अधिकारियों को बताया कि रात खाना खाने के बाद दोनों छत पर सोने चले गए थे. कमरे में रात भर मनीत और संध्या ही थे. गोलियों की आवाज सुन क र नींद खुली तो उठ कर बैठ गए. मोबाइल औन किया तो उस समय रात के 2 बज रहे थे.  हम दोनों भागेभागे नीचे कमरे में आए तो देखा मनीत खून में डूबा नीचे फर्श पर पड़ा था. उस की कारबाइन बिस्तर पर पड़ी हुई थी. उस पर खून लगा था. एक किनारे दूर खड़ी बदहवास सी संध्या मनीत को देखे जा रही थी.

उस के बाद अधिकारियों ने संध्या से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो दोनों सिपाहियों ने कुछ देर पहले पुलिस अधिकारियों को बताया था.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. खून से सनी कारबाइन बिस्तर पर एक ओर पड़ी थी. प्रथमदृष्टया यह मामला आत्महत्या का लग रहा था. मामला हत्या का होता तो मौके पर संघर्ष के निशान जरूर मिलते, लेकिन ऐसा नहीं था.

फिर क्या था, पुलिस अधिकारियों ने मनीत के घर वालों को बुलंदशहर फोन कर के घटना की जानकारी दी. सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. घर में रोनापीटना जारी था. परिवार का कमाऊ बेटा था मनीत. मौत की खबर से उस की मां और भाई बुरी तरह टूट गए.

खैर, सूचना मिलते ही मां और बड़ा भाई बीरू सिंह बुलंदशहर से मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए थे. करीब 2 घंटे बाद वे मुरादाबाद की आदर्श कालोनी पहुंच गए, जहां घटना घटी थी. तब तक सुबह का उजाला फैल चुका था.

घटना की सूचना पा कर पासपड़ोस के लोग धीरेधीरे वहां एकत्र होने लगे थे. बेटे की लाश देख कर मांबेटे का कलेजा मुंह को आ गया था. मनीत द्वारा उठाए गए आत्मघाती कदम के बारे में जिस ने भी सुना अवाक रह गया. वह अपने उत्तम व्यवहार और शानदार व्यक्तित्व के लिए कालोनी में मशहूर था. अपने काम से काम रखने वाला युवक था वह.

बहरहाल, पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजवा दिया.

बीरू सिंह भाई की आत्महत्या के लिए संध्या को दोषी ठहराने लगा कि उस ने शादी के लिए उस पर दबाव बना रखा था. वह उसे झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे रही थी. इसी के दबाव में आ कर भाई ने आत्महत्या की है.

बीरू के बयान को पुलिस ने गंभीरता से लिया और पूछताछ के लिए संध्या को हिरासत में ले लिया. संध्या से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

24 वर्षीय मनीत प्रताप सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के रसूलपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप, 2 भाई और एक बहन थी. बहन बड़ी थी. उस की शादी हो चुकी थी. दूसरे नंबर पर बीरू सिंह और सब से छोटा मनीत प्रताप सिंह था. अमूमन परिवार के सब से छोटे बच्चे मांबाप और भाईबहनों के दुलारे होते हैं, मनीत भी पूरे परिवार का दुलारा था.

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ मनीत के साथ भी हुआ था. छरहरे बदन वाले मनीत को बचपन से ही खाकी वर्दी से बेहद प्रेम था. बालपन से ही वह मांबाप से पुलिस में जाने को कहता था. वह कहता था बड़ा हो कर पुलिस बनेगा और पीडि़तों के साथ न्याय करेगा.

ईश्वर ने उस के दिल की बात सुन ली थी. 22 साल की उम्र में पहुंचते ही मनीत की मुराद पूरी हो गई थी. साल 2018 में उस ने अपनी मेहनत और काबिलियत के चलते पुलिस की नौकरी हासिल कर ली. खुली आंखों से उस ने अपने लिए जो सपने देखे थे, वह पूरे हो गए थे. वह बेहद खुश था.

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मनीत की पहली पोस्टिंग मुरादाबाद में हुई थी. मनीत मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में कमल गुलशन के यहां किराए का कमरा ले कर रहता था. उस के साथ कटघर थाने के 2 और सिपाही जमील खान और अनिल कुमार गौतम भी रहते थे. तीनों एक ही कमरे में रहते थे. इन दिनों मनीत की ड्यूटी पुलिस लाइन में चल रही थी. वहीं से उस की तैनाती मुरादाबाद देहात के विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में लगाई थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. रात का खाना खा कर मनीत बिस्तर पर गया तो उसे नींद नहीं आ रही थी. सोचा थोड़ा मोबाइल चला लूं और फेसबुक वाले दोस्तों को मैसेज कर दूं. हो सकता है, नींद आ जाए.

ये भी पढ़ें- इश्किया आग : भाग 1

यही सोच कर वह फोन ले कर बिस्तर पर लेट गया और फेसबुक औन कर लिया. उस के कई दोस्तों के मैसेज आए थे. उस में कई लोगों के फ्रैंड रिक्वेस्ट भी थे. उन रिक्वेस्ट में एक नाम संध्या का भी था.

संध्या की खूबसूरत तसवीर पर मनीत की नजर पड़ी तो कुछ पल के लिए उस की नजर ठहर गई. उस की तसवीर पर से नजर हट ही नहीं रही थी. फिर क्या था. मनीत ने संध्या के रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया. एकदो दिनों बाद उस ने ‘हाय’ लिख कर मैसेज किया तो मनीत ने भी उस के मैसेज का जवाब दे दिया.

धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बातचीत के जरिए मनीत ने संध्या का पता और मोबाइल नंबर लिया और अपना पता तथा मोबाइल नंबर उसे दे दिया. संध्या पुत्री सुरेंद्र कुमार मुरादाबाद के गलशहीद इलाके के रुद्रपुर में रहती थी. मध्यमवर्गीय परिवार की संध्या 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी.

उस के पिता दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे. बीचबीच में वह घर आ कर परिवार को देख जाते. वैसे भी पिता सुरेंद्र ने परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी संध्या के कंधों पर डाल दी थी ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों को निभा सके.

संध्या पिता के विश्वास पर पूरी तरह से खरी उतर रही थी. घर के राशन से ले कर भाईबहन के स्कूल की फीस, किताब तक का वह हिसाब रखती थी. मतलब संध्या समय से पहले समझदार और सयानी हो चुकी थी. उस के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है, सब समझती थी.

बातचीत के जरिए संध्या और मनीत के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. आगे चल कर दोनों ने एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया था.

चूंकि संध्या और मनीत एक ही शहर में रहते थे. एक दिन संध्या ने मनीत को मिलने के लिए अपने घर बुलाया. इत्तफाक की बात यह थी कि उस दिन न तो उस की मां घर पर थी और न ही भाईबहन.

मनीत सादे कपड़ों में अनिल को साथ ले कर संध्या के घर रुद्रपुर पहुंचा. दोपहर का समय हो रहा था. प्यार होने के बाद पहली बार दोनों आमनेसामने बैठे थे.

संध्या ने दोनों का स्वागत किया. फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ. सामने बैठी संध्या को देख कर मनीत का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. वह आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. उस ने मनीत के साथ आए दूसरे युवक के बारे में पूछा तो मनीत ने उस का परिचय अपने रूम पार्टनर के रूप में दिया. फिर मनीत ने नजर उठा कर कमरे के चारों ओर दौड़ाया.

ये भी पढ़ें- जब मुरदे ने दे दी खुद की गवाही : अपराधी चाहे जितनी चालाकियां कर ले, कानून से नहीं बच सकता

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मनीत का आत्मघाती कदम

मनीत का आत्मघाती कदम : भाग 1

4 जून, 2020 की शाम 7 बजे 24 वर्षीय सिपाही मनीत प्रताप सिंह ड्यूटी कर के जब वापस अपने कमरे पर लौटा तो वह अकेला नहीं था, बल्कि उस के साथ उस की खूबसूरत और कमसिन प्रेमिका संध्या भी थी.

उस के साथ संध्या को देख कर मनीत के दोनों दोस्त सिपाही जमील खान और सिपाही अनिल कुमार गौतम हौले से मुस्कराए तो वह भी मुसकरा दिया और संध्या को ले कर कमरे में चला गया.

वे तीनों दोस्त मुरादाबाद के कटघर थाने की आदर्श नगर कालोनी में स्थित कमल गुलशन के मकान में किराए पर रहते थे. वे तीनों रूम पार्टनर थे और एक ही कमरे में रहते थे. जिन में जमील खान और अनिल गौतम कटघर थाने में तैनात थे और मनीत पुलिस लाइन में आमद था. वैसे मनीत सिंह मूलरूप से बुलंदशहर के कोतवाली थाने के रसूलपुर का रहने वाला था. उस की जौइनिंग 2018 बैच की थी. हालफिलहाल उस की ड्यूटी मुरादाबाद (देहात) विधानसभा से विधायक हाजी इकराम कुरैशी की सुरक्षा में चल रही थी.

बहरहाल, संध्या को ले कर पहुंचे मनीत ने वर्दी बदल कर सादे कपड़े पहन लिए और दोनों दोस्तों से कहा कि वह संध्या को ले कर शहर घूमने जा रहा है. लौटने में उसे देर हो सकती है. आप दोनों अपना खाना बना कर खा लेना. हम घूम कर वापस लौटने के बाद अपना खाना बना लेंगे.

ये भी पढ़ें- फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

इतना कह कर उस ने बरामदे में खड़ी बाइक बाहर निकाली और संध्या को पीछे बिठा कर निकल गया.

करीब 3 घंटे दोनों बाहर घूमे और रात 10 बजे के करीब कमरे पर लौटे. चूंकि कमरा एक ही था. वहां संध्या रुकी हुई थी इसलिए मनीत के दोनों दोस्त उन्हें कमरे में छोड़ कर छत पर सोने चले गए.

मनीत घर आ कर दुकान से 2 बड़े पैकेट मैगी और 1 लीटर वाली कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. संध्या ने मैगी बनाई और 2 कटोरियों में मैगी ले कर कमरे में आई, जहां मनीत उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फिर मनीत ने पहले से ला कर रखी कोल्डड्रिंक स्टील के 2 खाली गिलासों में भर कर एक गिलास संध्या की ओर बढ़ा दिया और दूसरा गिलास खुद लिया.

दोनों ने मैगी खा कर कोल्डड्रिंक पी. थोड़ी भूख शांत हुई. मनीत और संध्या दोनों एकदूसरे के हाथों को थामे और आंखों में आंखें डाले नीचे फर्श पर चादर बिछा कर बैठे थे. एकदूसरे को करीब पा कर वे दोनों बेहद खुश थे. खुश होते भी क्यों नहीं, एक होने में उन के बीच में बस एक रात की दूरी थी.

अगले दिन यानी 5 जून, 2020 को दोनों कोर्टमैरिज करने वाले थे. मैरिज के बाद दोनों जनमजनम के लिए एकदूसरे के हो जाने वाले थे.

कहते हैं, आग और फूस पासपास हो, तो वहां अकसर आग लग ही जाती है. मनीत और संध्या सामाजिक मानमर्यादाओं की सीमाएं लांघते हुए जिस्मानी रिश्तों से एक हो चुके थे, इसीलिए संध्या प्रेमी मनीत पर शादी के लिए दबाव बनाए हुए थी.

दबाव में आ कर ही उस ने संध्या से शादी के लिए हामी भरी थी और उसे कमरे पर बुलाया था. खानेपीने के बाद नीचे फर्श पर बिछे चादर पर दोनों बैठे हुए थे. मनीत संध्या की हथेली थामे उस की झील सी गहरी आंखों में डूबता जा रहा था.

संध्या के मखमली स्पर्श से मनीत का रोमरोम खिल उठा था. वे दोनों मर्यादाओं में बंधे थे, भविष्य के सपनों को ले कर दोनों देर तक बातें करते रहे. इस बीच मनीत फोन पर अपने घर वालों से अपनी शादी के सिलसिले में बात भी करता रहा.

फोन पर बात करतेकरते मनीत अचानक से गंभीर हो गया और नीचे फर्श से उठ कर बैड पर बैठ गया. तो संध्या भी नीचे से उठ कर बैड पर बैठ गई और उस की गोद में अपना सिर रख कर बिस्तर पर पसर गई.

‘‘क्या हुआ? अचानक से गंभीर क्यों हो गए?’’ संध्या ने मनीत की आंखो में आंखें डाल कर सवाल किया.

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही…’’ कहतेकहते मनीत रुक गया.

‘‘मुझ से कोई भूल हो गई है क्या या मैं ने कुछ ऐसावैसा कह दिया, जिस से तुम्हें बुरा लग गया. अगर ऐसा है तो मुझे माफ कर दो. सौरी बाबा आइ एम वैरी सौरी.’’ दोनों कान पकड़ते हुए संध्या बोली.

‘‘तुम क्यों सौरी कह रही हो?’’ कान से संध्या का हाथ हटाते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है और न ही तुम ने कुछ कहा है. सौरी तो उन्हें बोलना चाहिए जो हमारे प्यार के दुश्मन हैं. माफी तो उन्हें मांगनी चाहिए, जो हमें एक होने से रोकते हैं. लेकिन संध्या तुम चिंता मत करना, हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता. चाहे हमें जमाने से ही क्यों न लड़ना पडे. हम लड़ेंगे और एक भी होंगे. मनीत ने कभी हारना नहीं सीखा है. दुश्मन चाहे हमारे अपने ही क्यों न हों, मोहब्बत की जंग हम उन से जीत के रहेंगे.’’

‘‘घर वालों से तुम्हारी बात हुई है क्या? उन्होंने तुम्हें कुछ कहा है?’’

‘‘वे हमारी शादी के खिलाफ हैं. कहते हैं ये शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘तो फिर क्या होगा?’’

ये भी पढ़ें- 2 किरदारों का चरित्र

‘‘होगा क्या, मैं ने जो निश्चय किया है, वही होगा. मेरा निश्चय पत्थर पर खींची लकीर जैसा है, उसे कोई भी नहीं मिटा सकता.’’

कहते हुए मनीत ने बैड पर पड़ी कारबाइन दोनों हाथों से उठाई, उसे देखा. संध्या कुछ समझ पाती इस से पहले मनीत ने कारबाइन अपने सीने से सटा कर उस का ट्रिगर दबा दिया. कारबाइन से निकली गोली मनीत के दिल और फेफड़े को चीरती हुई शरीर के पार निकल गई. मनीत बिस्तर से नीचे फर्श पर धड़ाम से जा गिरा.

मनीत ने आत्महत्या कर ली थी. गोलियों की तड़तड़ाहट सुन कर मकान की छत पर सो रहे जमील और अनिल दौड़ेभागे नीचे कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य देख कर दोनों हैरान रह गए. मनीत खून में डूबा बिलकुल शांत पड़ा था. उस से 2 कदम दूर खड़ी संध्या थरथर कांप रही थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था.

उस के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था. जिस यार की बांहों में थोड़ी देर पहले वह झूल रही थी. जिन हाथों से अपने मांग में सिंदूर भरने के ख्वाब देख रही थी, वह सब रेत के मकान की तरह भरभरा कर ढह गया था.

बदहवास संध्या मनीत को देखे जा रही थी. जमील और अनिल कमरे के अंदर दाखिल हुए तो संध्या डर गई, ‘‘मैं ने नहीं मारा इन्हें…मैं ने नहीं मारा.’’ कहती चली गई.

‘‘ये सब कैसे हुआ संध्या?’’ अनिल ने सवाल किया.

‘‘थोड़ी देर पहले मनीत ने फोन पर अपने घर वालों से बात की. उस के बाद न जाने ऐसा क्या हुआ, वह एकदम से गंभीर हो गया. जब मैं ने पूछा कि क्या बात है, तुम अचानक से क्यों गंभीर हो गए तो उस ने बताया उस के घर वाले शादी के खिलाफ हैं, वे शादी करने पर ऐतराज जता रहे हैं. उस के बाद मैं कुछ समझ पाती कि मनीत ने खुद को गोली मार ली.’’ कह कर संध्या बिलखबिलख कर रोने लगी.

संध्या के कथनानुसार, मनीत ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. उसी वक्त जमील ने फोन कर के थानेदार (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही, एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, एसएसपी अमित पाठक और आईजी रमित शर्मा को घटना की सूचना दी थी.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

चूंकि मामला विभाग से जुड़ा हुआ था, इसलिए सूचना मिलते ही कुछ ही देर में एसओ (कटघर) विकास कुमार, सीओ (कटघर) पूनम सिरोही और एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद घटनास्थल पहुंच गए थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

फिरौती वसूलने साथ आये पति पत्नी

‘हेलो’

‘हेलो’ फोन आने पर गोंडा जिले के रहने वाले बीड़ी कारोबारी हरी गुप्ता ने कहा.

फोन पर धमकाते हुए एक महिला की आवाज आती है “आवाज न आ रही हो तो बताओ, आवाज न आ रही हो तो बताओ, आपका लड़का किडनैप हो चुका है.”

हरी गुप्ता ‘अच्छा, तो क्या करना पड़ेगा?’

महिला : 4 करोड़ की व्यवस्था करो, हम शाम तक फोन करेंगे. ज्यादा दिमाग लगाने की कोशिश न करना. जो करोगे हमको सब पता चल जाएगा, अभी तक सब ठीक है वरना कानपुर वाला मैटर तो जानते हो न..?

ये भी पढ़ें- 2 किरदारों का चरित्र : भाग 1

हरी गुप्ता : हां… कौन कानपुर वाला..?

महिला :  विकास दुबे वाला… जानते ही हो पुलिस किसका कितना साथ देती है… पुलिस के पास जाना चाहो तो जाओ…मै मना नहीं कर रही है.. बस आपका लड़का आपको नहीं मिलेगा.

हरी गुप्ता : हमें हमारा लड़का चाहिए बस.

महिला : आपको अपना लड़का चाहिए ? दो तीन घंटे बाद मैं फोन करूंगी… बस हां या न में जवाब देना…. और अगर आपने कुछ भी कदम उठाने की कोशिश की तो लड़के की उम्मीद छोड़ दीजिए.

हरी गुप्ता :  जी जी… नहीं हम कोई कदम नहीं उठाएंगे.

हरी गुप्ता : ‘जी ठीक है’. फोन सुनने के बाद हरी गुप्ता के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई. बच्चे के ना मिलने से परेशान हरी गुप्ता की आंखों के सामने बच्चे के अपहरण करने का पूरा घटनाक्रम  घूम गया. किस तरह कुछ ही घण्टे पहले उनकी आंखों के सामने से 8 साल के बेटे का अपहरण हो गया था.

मास्क देने के बहाने हुआ अपहरण

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 200 किलोमीटर दूर गोंडा जिले में करनैलगंज कोतवाली क्षेत्र में गाड़ी बाजार में रहने वाले बीड़ी कारोबारी राजेश गुप्ता के घर पर गुरुवार 23 जुलाई 2020 की दोपहर अल्ट्रो कार से कुछ लोग आते है. राजेश गुप्ता के घर के सामने उनके बेटे हरि गुप्ता अपने 8 साल के बेटे आयुष उर्फ नामो के साथ खड़े थे. उन लोगो ने हरी गुप्ता से उनका मोबाइल नम्बर मंगा और खुद को स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी बता कर कहा कि ‘किसी को गाड़ी तक भेज दीजिये मास्क दे दे’.

यह बात सुनकर 8 साल का आयुष उनके साथ चला गया. जब कुछ देर आयुष नही वापस आया तब उसकि खोजबीन की गई. वँहा लगे सीसीटीवी में देखा गया कि आयुष को उसी मास्क देने वाली कार में बैठा कर ले जाया गया है. कुछ देर तो गाड़ी दिखती है पर फिर कच्चे रास्ते मे उतर जाती है जंहा से वो दिखना बन्द हो जाती है. शाम को करीब 4 बजे हरिगुप्ता के मोबाइल पर फोन आने के बाद पता चलता है कि आयुष का अपहरण कर लीया गया है और अपहरण करने वाले 4 करोड़ की फिरौती मांग रहे है.

एसटीएफ ने संभाली कमान

हरी गुप्ता और उनका परिवार उहापोह के बाद पूरी जानकारी करनैलगंज थाने की पुलिस को देता है. अपहरण की बात पता चलते ही राजधानी लखनऊ तक पुलिस विभाग को इसकी सूचना मिलती है. पुलिस विभाग ने अपहरण करने वालो का पता लगाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स को लगाती है. इसके बाद पुलिस 17 घण्टो की कड़ी मेहनत के बाद बच्चे को सकुशल बरामद करने में सफल हो जाती है.

यूपी एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने बताया कि पुलिस कार्रवाई में दो बदमाश उमेश यादव और दीपू कश्यप घायल हुए हैं. सूरज पांडेय, छवि पांडेय को गिरफ्तार किया गया है. घटना में एक ऑल्टो गाड़ी बरामद की गई है. अपराधियों से पिस्टल और दो तमंचे भी बरामद हुए हैं. घायल बदमाशों का इलाज चल रहा है. पुलिस की ओर से बदमाशों का मेडिकल कराया जाएगा और आगे की कार्रवाई की जाएगी. जो अन्य लोग शामिल होंगे उनके विरुद्ध भी कार्रवाई होगी.

पति पत्नी है मुख्य आरोपी

अपहरण की इस घटना में मुख्य आरोपी के रूप में सूरज पांडये और उसकी पत्नी छवि पांडये का नाम लिया जा रहा है. पुलिस के अनुसार छवि की जिम्मेदारी फोन करके फिरौती मांगने की थीं. इस घटना में सूरज पांडे पुत्र राजेंद्र पांडे निवासी शाहपुर थाना परसपुर गोंडा, सूरज का भाई राज, उमेश यादव पुत्र रमाशंकर यादव निवासी सकरोड़ा पूर्वी थाना करनैलगंज गोंडा, दीपू कश्यप पुत्र राम नरेश कश्यप निवासी सोनवारा थाना करनैलगंज गोंडा  शामिल थे.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

अनाड़ी निकली छवि

छवि पाण्डेय सूरज पाण्डेय की पत्नी है. छवि भी इस किडनैपिंग केस में शामिल थी. उसने ही बच्चे के कारोबारी पिता को फिरौती के लिए फोन किया था. उसने फोन करके चार करोड़ रुपये की फिरौती मांगी थी.

फिरौती की कॉल रिकॉर्डिंग से पुलिस को यह पता लगा की अपराधी पेशेवर नहीं है.  बच्चे का अपहरण करने वाले बदमाशो ने जब फिरौती के लिए जब कारोबारी को फोन आया तो उन्होंने इस कॉल को अपने मोबाइल पर रिकॉर्ड कर लिया. फिरौती की कॉल रिकॉर्डिंग पुलिस को दी. पुलिस ने जब इसे सुना तो उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि किडनैपर्स कोई प्रोफेशनल नहीं हैं. छवि फोन पर कारोबारी से बात हुए अटक भी रही थी. छवि और कारोबारी के बीच हुई बातचीत के वायरल ऑडियो में छवि ने फिरौती के लिए कारोबारी को धमकी दी. अपहरणकर्ता ने कहा कि पुलिस के पास जाना चाहो तो जाओ लेकिन फिर आपका लड़का नहीं मिलेगा. उसने ये भी कहा कि फिरौती का जवाब हां या ना में ही मिलना चाहिए.

छवि का पति सूरज पांडे  राजेंद्र पांडे का पुत्र है और शाहपुर थाना परसपुर, जनपद गोंडा का रहने वाला है. जानकारी के मुताबिक छवि उन्नाव की है लेकिन उसकी शादी सूरज के साथ हुई है, तबसे वे गोंडा में ही रह रहे हैं.

तीसरे आरोपी का नाम उमेश यादव है जो रमाशंकर यादव का बेटा है और सकरोड़ा पूर्वी थाना करनैलगंज जनपद गोंडा का रहने वाला है. चौथा आरोपी दीपू कश्यप है जो राम नरेश कश्यप का बेटा है और सोनवारा, थाना करनैलगंज, जनपद गोंडा का निवासी है. पुलिस ने सभी को पकड़ लिया है.

ये भी पढ़ें- इश्किया आग : भाग 1

2 किरदारों का चरित्र : भाग 3

एक दिन उस ने पति को रानी से बात करते सुन लिया. उस रात इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ था. उस ने खुल कर पति से कह दिया कि वह अपने जीते जी सिंदूर का बंटवारा नहीं कर सकती है. उस औरत से अपने संबंध तोड़ ले, वरना इस का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है.

रानी को ले दोनों के बीच घर में एक बार जो संग्राम छिड़ा तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. पत्नी के लाख मना करने के बावजूद संदीप रानी से अलग होने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस ने साफ तौर पर पत्नी से कह दिया था कि चाहे जो हो जाए, वह रानी का साथ नहीं छोड़ सकता. पति का दोटूक जवाब सुन कर प्रियंका ठगी रह गई थी, पर हार मानने वालों में से वह नहीं थी.

एक छत के नीचे दोनों किसी अजनबी की तरह रह रहे थे. दोनों के बीच धीरेधीरे मतभेद बढ़ता गया. प्यार की जगह नफरत का साम्राज्य बढ़ता गया. यहां तक कि उन के बीच बातें भी बंद हो गई थीं. प्रियंका ने पति से तलाक लेने के लिए अपने वकील के जरिए पारिवारिक न्यायालय में भरणपोषण की एक याचिका दायर करा दी थी. उस ने याचिका में दोनों बेटियों की परवरिश के लिए गुजारा भत्ता के लिए 14 हजार रुपए महीने के खर्चे और 25 लाख का दावा किया था.

ये भी पढ़ें- हम खो जाएंगे : भाग 2

भले ही उन के बीच बातचीत होनी बंद हो गई थी, पर इतना जरुर था कि वह घर की जरूरतों को पूरी करता था. बेटियों को भरपूर प्यार देने में कोताही नहीं करता था.

प्रियंका के भी बहक गए कदम

इसी बीच प्रियंका के जीवन में एक नए किरदार ने एंट्री ली. प्रियंका की बड़ी बेटी रिया बोनांजा स्कूल में पढ़ती थी. बेटी को स्कूल पहुंचाने प्रियंका ही जाती थी. जातेआते रास्ते में सगमनिया के रहने वाले अनूप कुमार सिंह (21 साल) से उस का परिचय हो गया. वह भी अपने भाई की बेटी को स्कूल पहुंचाने जाता था.

अनूप देखता था कि वह जब भी उस से मिलता था प्रियंका उदास और दुखी रहती थी. एक दिन बातोंबातों में अनूप ने उस के हर घड़ी उदास रहने की बात पूछ ली.

प्रियंका की दुखती रग पर पहली बार किसी ने हाथ रखा था. वह भावुक हो गई और अपने घर की कहानी उसे सुना बैठी. उस की कारुणिक कथा सुन कर अनूप का मन द्रवित हो उठा.

बातों से उस ने उसे सहारा दिया तो प्रियंका अपने से 9 साल छोटे अनूप की ओर अनायास ही खिंची चली गई. अनूप से बात कर के उस के मन को शांति मिलती थी और खुद को काफी हलका महसूस करती थी.

धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया था. पति के ड्यूटी चले जाने के बाद प्रियंका प्रेमी अनूप को अपने कमरे पर बुलाती और दिन भर रंगरलियां मनाती थी.

बात घटना से 15 दिन पहले 16 मई, 2020 की है. उस दिन संदीप ड्यूटी से छुट्टी ले कर जल्दी घर वापस लौट आया था. घर में एक अजनबी युवक को पत्नी के साथ देख कर उस का खून खौल उठा. भले ही पतिपत्नी के बीच अनबन चल रही थी. लेकिन प्रियंका अभी भी उस की पत्नी थी. पत्नी को किसी और की बांहों में देख कर कोई भी पुरुष आपा खो सकता था. संदीप भी आपा खो चुका था. उस ने जम कर दोनों पर लातघूंसे बरसाए.

अनूप किसी तरह अपनी जान बचा कर वहां से भाग गया लेकिन प्रियंका की तो शामत आ चुकी थी. संदीप ने अपना सारा गुस्सा उस पर उतार दिया था. पति द्वारा प्रेमी की पिटाई करना प्रियंका को अच्छा नहीं लगा था.

प्रियंका और उस के प्रेमी ने रची साजिश

फिर क्या था? दोनों ने संदीप को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी योजना में अनूप ने अपने जिगरी यार सनी कुमार (20 साल) को थोड़ा पैसों का लालच दे कर मिला लिया, जो उसी के गांव का रहने वाला था.

उस दिन के बाद घटना से 3 दिन पहले 28, 29 और 30 मई तक अनूप और सनी दोनों ने मिल कर संदीप की रेकी की. उन्होंने पता लगा लिया कि संदीप घर से कब निकलता है? घर वापस कब लौटता है? किसकिस से मिलता है?

वैसे भी प्रियंका ने पति की सारी गतिविधियों के बारे में उसे विस्तार से बता दिया था. बस योजना को अंजाम देना था.

प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप ने योजना ऐसी बनाई थी कि संदीप की मौत हत्या नहीं वरन स्वाभाविक मौत लगे ताकि किसी का उन पर शक न जाए. यानी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

योजना के अनुसार, 31 मई, 2020 की रात 11 बजे प्रियंका ने अनूप को फोन कर के बता दिया कि उस ने घर का मुख्यद्वार खोल दिया है. अनूप अपने दोस्त सनी के साथ प्रियंका के घर पहुंचा. उस ने सनी से बाहर ही रह कर देखभाल करने को कहा. फिर वह चुपके से आ कर घर की सीढि़यों के नीचे छिप गया और प्रियंका को अपने आने की सूचना फोन पर दे दी.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. संदीप को अपना फोन ले कर छत पर जाने के करीब डेढ़ घंटे बाद रात साढ़े 12 बजे प्रियंका और उस का प्रेमी अनूप दबे पांव छत पर पहुंचे. संदीप फोन पर रानी से बात करने में मशगूल था. उस ने जैसे ही दोनों को एक साथ अपनी ओर आते देखा, वहां से भागना चाहा. तब तक दोनों ने झपट्टा मार कर उसे अपने काबू में ले लिया.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

प्रियंका ने उस के हाथ से फोन छीन कर अपने कब्जे में ले लिया. फिर दोनों ने मिल कर संदीप को छत से नीचे गिरा दिया. संदीप के नीचे गिरते ही अनूप सीढि़यों से तेजी से नीचे आया और प्रियंका फोन ले कर अपने कमरे में चली गई ताकि किसी को शक न हो. फिर वह तेजी से वहां पहुंच गया, जहां संदीप दर्द के मारे कराह रहा था. लेकिन अभी वह जिंदा था.

प्लानिंग से की थी हत्या

तब तक प्रियंका भी वहां पहुंच गई थी. उस समय सनी वहां मौजूद नहीं था. अनूप और प्रियंका दोनों मिल कर उसे वहां से घसीटते हुए कुछ और दूर लाए, जहां एक बड़ा पत्थर मौजूद था. फिर प्रियंका की आंखों के सामने अनूप ने वह पत्थर उठा कर संदीप के सिर पर जोरदार वार किया.

संदीप के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली और वह मौत की आगोश में समा गया. उस के बाद उसे स्वाभाविक मौत का रूप देने के लिए उस के पास उस का मोबाइल फोन रख दिया. फिर अपने फोन से सनी को फोन कर उसे मौके पर बुलाया ताकि वह अनूप को वहां से घर ले जा सके.

अनूप के मौके से जाने के बाद प्रियंका अपने कमरे में वापस लौट आई. उस ने यही सोचा था कि थोड़ी देर बाद वह पति को ढूंढते हुए छत पर जाएगी. जब वहां उस का पति नहीं मिलेगा तो साक्ष्य के तौर पर मकान मालिक को ले कर पति को ढूंढेगी ताकि किसी को उस पर शक न हो और वह बेदाग बच जाए.

योजना के अनुसार प्रियंका ने वही किया. पहले पति को ढूंढने का नाटक किया. जब उस का पता नहीं चला तो 2 बजे रात में मकान मालिक कैलाश गुप्ता को नींद से जगा कर अचानक पति के गायब होने की जानकारी दे उसे ढुंढवाने में उन से मदद मांगी.

कैलाश गुप्ता ने प्रियंका के साथ पूरा घर छान मारा, लेकिन संदीप का कहीं पता नहीं चला था. जब वे दोनों उसे तलाशते हुए मकान के पीछे गए तो वहां संदीप की लाश मिली.

कहते हैं, कातिल लाख शातिर क्यों न हो, वह कोई न कोई गलती कर बैठता है. प्रियंका और उस के प्रेमी अनूप से भी एक गलती हो चुकी थी. कानून के शातिर खिलाडि़यों ने जांच कर उसी गलती की डोर पकड़ ली और पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी सुलझा दी.

वह गलती थी संदीप के शरीर को मौके से करीब 15 फीट दूर घसीट कर ले आना और फोन का सुरक्षित पाया जाना.

जिद्दी प्रियंका थोड़ी सूझबूझ और धैर्य से काम लेती तो शायद उस के रिश्ते सुधर सकते थे. उस का सुहाग भी जिंदा रहता और बेटियां पिता के प्यार से महरूम भी न होतीं, लेकिन उस के गुस्से की सनक ने उसी के हाथों उस के परिवार में आग लगा दी और भरापूरा आशियाना जल कर खाक हो गया.

ये भी पढ़ें- इश्किया आग : भाग 1

खैर कथा लिखे जाने तक प्रियंका सिंह, अनूप कुमार सिंह और सनी कुमार तीनों गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए, जहां वे सलाखों के पीछे कैद अपने गुनाहों की सजा काट रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 किरदारों का चरित्र : भाग 2

घटना वाली रात प्रियंका ने 2 अलगअलग फोन नंबरों पर बात की थी. एक काल रात करीब 11 बजे की थी और दूसरी काल दूसरे नंबर पर रात डेढ़ बजे के आसपास की थी. ये कौन हो सकते हैं, इस का पता तो प्रियंका से पूछताछ करने पर ही चल सकता था.

पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर शक के आधार पर प्रियंका के नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. उधर दोनों नंबरों की डिटेल्स पुलिस के हाथ लग चुकी थी. उन दोनों नंबरों में एक नंबर अनूप कुमार सिंह का था और दूसरा नंबर सनी कुमार सिंह का. दोनों एक ही मोहल्ले सगमनिया के रहने वाले थे.

वैज्ञानिक साक्ष्यों और काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पटवारी संदीप सिंह की मौत की गुत्थी करीबकरीब सुलझा ली थी. साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका था पति की मौत में पत्नी का हाथ है.

इसी बीच एक चौंकाने वाली बात पुलिस को पता चली. प्रियंका ने अपने नंबर से अनूप को फोन किया था. सर्विलांस पर लगे उस के नंबर पर हुई बातचीत को साइबर सेल प्रभारी दीपेश पटेल ने सुन लिया था. प्रियंका अनूप से कह रही थी कि पुलिस को उस पर शक हो गया है. अब क्या होगा? अब तो हम पकड़े जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- जब मुरदे ने दे दी खुद की गवाही : अपराधी चाहे जितनी चालाकियां कर ले, कानून से नहीं बच सकता

इस के बाद प्रियंका के बचने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी. 5 जून को दोपहर इंसपेक्टर मोहित सक्सेना पूरी टीम के साथ संतोषी माता मंदिर स्थित कैलाश गुप्ता के घर पहुंचे, जहां प्रियंका रहती थी. उस समय घर पर संदीप के घर वाले और पत्नी प्रियंका मौजूद थी. सामने खड़ी पुलिस को देख कर प्रियंका के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. उसी वक्त इंसपेक्टर मोहित सक्सेना ने कहा, ‘‘आप का खेल खत्म हुआ, प्रियंका. अब हमारे साथ चलिए.’’

‘‘क…कहां चलें? आप के कहने का क्या मतलब है?’’ हकलाती हुई प्रियंका ने पूछा.

‘‘थाने चल कर सब पता चल जाएगा. अरेस्ट हर सरला.’’ इंसपेक्टर सक्सेना ने साथ आई दोनों महिला सिपाहियों सरला शर्मा और प्रियंका चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

पुलिस प्रियंका सिंह को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के गिरफ्तार होने की सूचना उन्होंने एसपी रियाज इकबाल, एएसपी गौरव सिंह सोलंकी और सीएसपी विजय को दे दी थी.

प्रियंका ने कबूला गुनाह

सूचना मिलते ही पूछताछ करने के लिए एसपी इकबाल थाने पहुंच गए. प्रियंका कोई हार्डकोर क्रिमिनल तो थी नहीं कि घंटों पुलिस को यहांवहां घुमाती. पुलिस को देखते ही उस की हालत पतली हो गई थी. फिर क्या था. उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उसी ने अपने प्रेमी अनूप कुमार सिंह और उस के दोस्त सनी के साथ मिल कर पति की हत्या कराई थी. अगर वो उसे नहीं मरवाती तो पति अपनी प्रेमिका के साथ मिल कर उस की हत्या करवा देता.

प्रियंका का सनसनीखेज बयान सुन कर पुलिस चौंकी. दोनों ही नैतिक पतन चरित्र वाले किरदार थे. दोनों के ही चरित्र मैले हो चुके थे. मैले चरित्र वाले पति और पत्नी दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन बने हुए थे. आगे की कहानी प्रियंका पुलिस के सामने परत दर परत खोलती चली गई. पूछताछ के बाद पटवारी की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

कहते हैं, जोडि़यां ऊपर से बन कर आती हैं, यहां तो सिर्फ फेरे लेते हैं 7 वचनों के बंधन में बंधने के लिए. संदीप और प्रियंका के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सामान्य कदकाठी और सुदर नैननक्श वाली प्रियंका के गोरे बदन पर संदीप की जब पहली बार नजर पड़ी थी, वह अपलक उसे निहारता रह गया था.

दोनों की मुलाकात एक शादी की पार्टी में हुई थी. जहांजहां प्रियंका जाती, उस की हसरत भरी निगाहें उस का पीछा करती रहतीं. इस बात से बेखबर अल्हड़ प्रियंका मदमस्त बिंदास हो कर पार्टी का लुत्फ उठाती रही.

प्रियंका पहली ही नजर में संदीप के दिल में मुकाम कर गई थी. पार्टी में जब तक वह रहा, उस की नजरें सिर्फ प्रियंका पर टिकी हुई थीं. जब पार्टी समाप्त हुई तभी वह अपने घर वापस लौटा. तब वह गांव में रह रहा था और वहीं से अपनी बाइक से ड्यूटी करने सगौनी जाया करता था. ये 6 साल पहले की बात है.

प्रियंका के इश्क में संदीप इस कदर डूब चुका था कि उसे इस के अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा था. उस दिन के बाद से संदीप प्रियंका की तलाश में जुट गया था. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई और उस ने उसे ढूंढ ही लिया.

दरअसल, संदीप जिस दोस्त की पार्टी में शरीक हुआ था, उसी से प्रियंका का हुलिया बता कर उस के बारे में पूछ लिया था. दोस्त ने ही उस लड़की का नाम प्रियंका बताया था. वह भी सतना की रहने वाली थी.

संदीप को भा गई थी प्रियंका

संदीप दोस्त के जरिए प्रियंका से मिलने पहली बार उस के घर पहुंच गया था. प्रियंका के घर वालों से उस के दोस्त ने ही संदीप का परिचय करवाया था. बातोंबातों में प्रियंका के घरवालों ने जाना कि संदीप सरकारी नौकरी करता है. वह चकबंदी विभाग में पटवारी के पद पर कार्यरत है.

ये भी पढ़ें- अपराधी आगे आगे, पुलिस पीछे पीछे

खैर, संदीप को देख कर प्रियंका चकित रह गई थी. वह वही लड़का था, जो उस दिन पार्टी में उसे ही घूर रहा था और आज उस के घर तक पहुंच गया था. यह देख कर वह नतमस्तक थी. ऐसा नहीं था कि वह पार्टी में इतना बेसुध थी कि उसे कुछ दिख नहीं रहा था बल्कि वो संदीप की नजरों पर अपनी नजरें गड़ाए बैठी थी. वह देख रही थी कि संदीप की नजरें बड़ी शिद्दत उसे देख रही थीं. यह देख कर वह मन ही मन मुसकराए जा रही थी.

प्रियंका अपने घर में सब से बड़ी थी. उस से 2 छोटे भाईबहन और थे. प्रियंका ग्रैजुएशन कर चुकी थी. ग्रैजुएशन करने के बाद खाली समय में उस ने कंप्यूटर कोर्स करना शुरू कर दिया था.

काफी खुशमिजाज और खुले विचारों वाली वह आधुनिक युवती थी. एक लड़की को कितनी मर्यादा में रहना चाहिए, वह अच्छी तरह जानती थी और उसी मर्यादा के दायरे में रहती थी. उस दिन के बाद संदीप को जब भी मौका मिलता था, अंकल आंटी से मिलने के बहाने प्रियंका के घर आ जाया करता था.

घर पहुंचते ही उस की नजरें प्रियंका की खोज में जुट जाती थीं. जब तक वह उसे देख नहीं लेता था, उस के मन को सुकून नहीं मिलता था.

प्रियंका संदीप की नजरों को पहचानती थी. वह उस से बेहद मोहब्बत करता था. वह भी चुपकेचुपके संदीप से प्यार करने लगी थी और अपने दिल के कोरे कागज पर अपने महबूब संदीप का नाम लिख लिया था.

मौका देख कर दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार भी कर चुके थे. इश्क के रथ पर सवार मोहब्बत के शहजादे खुले आसमान में पंख फैलाए ऊंचीऊंची कुलांचे भर रहे थे. जल्द ही दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया था.

दोनों ने की थी कोर्टमैरिज

फिर क्या था संदीप और प्रियंका ने घर वालों की मरजी के खिलाफ कोर्ट मैरिज कर ली. संदीप के घर वालों ने प्रियंका को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, लेकिन प्रियंका के घर वालों ने बेटी से अपने संबंध हमेशा के लिए तोड़ लिए थे. प्रियंका को पा कर संदीप बेहद खुश था. खुश भला क्यों न हो, उस के मन की मुराद जो पूरी हुई थी.

आहिस्ताआहिस्ता दोनों के जीवन की गाड़ी पटरी पर चल रही थी. रिया और प्रिया नाम के 2 फूल उन की बगिया में खिल चुके थे. दोनों बेटियों को पा कर उन के जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गई थीं. उन का जीवन खुशी से बीत रहा था. पता नहीं दोनों के खुशहाल जीवन में किस की बुरी नजर लगी कि उन के घर से सुख और चैन दोनों काफूर हो गए थे. कल तक एकदूसरे के बिना न रह पाने वाले प्रेमी से पतिपत्नी बने आज एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए थे.

धीरेधीरे संदीप के सिर से प्रियंका के इश्क का भूत उतर चुका था. उस की जिंदगी में एक नई युवती दखल दे चुकी थी. दरअसल, हुआ यूं कि संदीप जहां नौकरी करता था, उसी के साथ रीवा जिले की रहने वाली रानी (परिवर्तित नाम) नाम की एक कुंवारी युवती भी पदस्थ थी. वह भी पटवारी थी. दोनों में गहरी दोस्ती थी. उस का दिल रानी पर आ गया था.

संदीप की जिंदगी में आई रानी

शाम को छुट्टी मिलते ही संदीप घर वापस लौट आता था. रात को खाना खाने के बाद वह अपना फोन ले कर छत पर चला जाता था. वहां इत्मीनान से घंटों तक रानी से बातें करता. देर रात 12-1 बजे के करीब कमरे में लौटता. ये संदीप का रोजाना का रुटीन बन चुका था. शुरू के दिनों में प्रियंका यही समझती रही कि औफिस के किसी साथी से जरूरी बात करते होंगे.

ये भी पढ़ें- हम खो जाएंगे : भाग 2

लेकिन जब महीनों तक यही रुटीन बन गया था तो प्रियंका को पति पर कुछ शक हुआ. उसे लगा कि दाल में कुछ काला है. यह बात दिमाग में आने के बाद से प्रियंका ने पति पर अपनी नजर पैनी कर दी थी. पति फोन ले कर जब भी रात में छत पर पहुंचता था, बिल्ली के मानिंद वह भी दबेपांव उस के पीछेपीछे हो लेती थी. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें