विकास दुबे एनकाउंटर : कई राज हुए दफन

आखिरकार एक तथाकथित ऐनकाउंटर में उत्तर प्रदेश एसटीएफ द्वारा गैंगस्टर विकास दुबे के साथ ही एक गहरे सच की भी हत्या कर दी गई. अपराध, राजनीति, कारोबार और पुलिस के नैक्सस के भंडाफोड़ का जो खतरा विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से लगातार कई सफेदपोशों और खाकीधारियों के सिर पर मंडरा रहा था, वह विकास दुबे की हत्या के साथ ही खत्म हो गया है.

विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से ही न जाने कितने सफेदपोशों का ब्लडप्रैशर बढ़ गया था. ऐनकाउंटर से पहले ही अपने बयान में उस ने कई नेताओं, कारोबारियों और पुलिस वालों के नाम बताए थे, जिन्होंने उस की बिठूर से उज्जैन तक पहुंचने में मदद की थी.

अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में विजय दुबे का इस्तेमाल करने वाले नेताओं, कारोबारियों, पुलिस वालों का नाम खुलता तो राजनीति, कारोबार और प्रशासन की दुनिया में भूचाल आ जाता.

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हमें पता है कि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति का इस्तेमाल किस तरह से हरेन पंड्या समेत कितने लोगों को ठिकाने लगाने में किया गया था और जब सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति गिरफ्तार होने के बाद सत्ताधारी सफेदपोशों के लिए खतरा बन गए तो उन्हें नकली ऐनकाउंटर में ढेर कर दिया गया.

विकास दुबे उत्तर प्रदेश का सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति था, जिस का इस्तेमाल तमाम सत्ताधारी दल करते आए हैं. बस, फर्क इतना था कि विकास दुबे के पास ब्राह्मण का ऐक्स फैक्टर था, जो वंचित तबके से होने के नाते सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति के पास नहीं था.

पर सवाल उठता है कि जो गैंगस्टर लगातार कई राज्यों की पुलिस को छकाता हुआ उज्जैन के महाकाल मंदिर में सरैंडर करता है, ताकि उस का ऐनकाउंटर न हो सके, वह भला पुलिस कस्टडी से भाग कर अपने ऐनकाउंटर को न्योता क्यों देगा?

पुलिस की ऐनकाउंटर थ्योरी इतनी हास्यास्पद और लचर है कि इस पर रत्तीभर भी यकीन नहीं किया जा सकता. उत्तर प्रदेश एसटीएफ गाड़ी पलटने की बात कह रही है. गाड़ी पलटने पर बुरी तरह घायल आदमी कैसे भाग सकता है? लेकिन पुलिस की थ्योरी है तो कुछ भी हो सकता है.

पुलिस कह रही है कि गाड़ी पलटी और वही गाड़ी पलटी, जिस में गैंगस्टर विकास दुबे बैठा हुआ था. गाड़ी पलटने के बाद बुरी तरह जख्मी गैंगस्टर ने पुलिस की रिवाल्वर छीन कर भागने की कोशिश की, सरैंडर करने के लिए कहने पर पुलिस पर फायरिंग की और जवाबी कार्यवाही में मारा गया. पुलिस के मुताबिक गोली उस के पेट में लगी थी.

लेकिन, किसी भागते आदमी के पेट में गोली कैसे लग सकती है? वहीं, उत्तर प्रदेश पुलिस कह रही है तो हो भी सकता है. सवाल तो यह भी उठ रहा है कि गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने इतने शातिर अपराधी को हथकड़ी क्यों नहीं पहनाई थी?

गाड़ी का भी गजब कनैक्शन था. फरीदाबाद से गिरफ्तार गैंगस्टर विकास दुबे के गुरगे प्रभात मिश्रा का ऐनकाउंटर जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने किया था, तब भी पुलिस की गाड़ी पंचर हो गई थी और जब पुलिस ने गैंगस्टर विकास दुबे का ऐनकाउंटर किया तो ऐनकाउंटर से पहले उस की गाड़ी पलट गई. उत्तर प्रदेश पुलिस की यह कहानी हिंदी फिल्मों से नकल कर के गढ़ी गई लगती है.

विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से ही समाज के कई तबकों में नाखुशी थी. लोगों को ‘इंसाफ’ नहीं ‘बदला’ चाहिए था. ऐनकाउंटर का बदला ऐनकाउंटर. और सोशल मीडिया पर लगातार इस को ले कर लिखा जा रहा था.

इस से पहले हैदराबाद में पशु डाक्टर के साथ गैंगरेप के तथाकथित 4 आरोपियों को पुलिस ने क्राइम सीन क्रिएट करने के दौरान ही नकली ऐनकाउंटर में मार डाला था और सोशल मीडिया पर उस ऐनकाउंटर के समर्थन में साधारण जन से ले कर बुद्धिजीवी लोग तक न सिर्फ खड़े थे, बल्कि इस के लिए पुलिस की पीठ थपथपा रहे थे.

यह सीधेसीधे न्याय व्यवस्था का नकारापन है. हो सकता है, न्याय व्यवस्था में कुछ खामियां हों, लेकिन भ्रष्टाचारी पुलिस तंत्र द्वारा ऐनकाउंटर में हत्या करने को तो सही नहीं ठहराया जा सकता है न.

ये वही पुलिस वाले थे, जिन की आंखों के सामने गैंगस्टर विकास दुबे ने साल 2001 में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या की थी और सभी पुलिस वाले कोर्ट में बयान से मुकर गए थे.

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ये वही पुलिस वाले थे, जो 2 जुलाई को 8 पुलिस वालों द्वारा गैंगस्टर के हाथों ऐनकाउंटर कराने के लिए विकास दुबे के मुखबिर बने हुए थे.

ये वही पुलिस वाले थे, जिन्होंने पावर हाउस फोन कर के बिठूर गांव और आसपास के इलाके की लाइट कटवाई थी.

इन पुलिस वालों ने अपराधी विकास दुबे का ऐनकाउंटर नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था और सच का ऐनकाउंटर किया है.

सुबह साढ़े 6 बजे ‘आज तक’ चैनल बताता है कि विकास दुबे कानपुर के पास टोल तक पहुंच गया है, साथ ही ‘आज तक’ ने यह भी बताया कि यहां पर मीडिया वालों की गाडि़यां रोक दी गई हैं. इस के बावजूद ‘आज तक’ की गाड़ी आगे निकली.

विकास दुबे वाली गाड़ी ने उसे ओवरटेक किया. उस के एक घंटे बाद खबर आई कि आगे विकास की गाड़ी पलट गई. स्पीड से चलती गाड़ी ने एक ही पलटा खाया. उस में सवार पुलिस वालों और विकास ने थोड़ीबहुत चोट खाई और डेढ़ घंटे बाद फिर खबर आई कि विकास पुलिस वालों का हथियार छीन कर भागा. ऐसे में जो होता है, वही हुआ. विकास मारा गया.

विकास दुबे मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक वकील घनश्याम उपाध्याय ने याचिका दायर की है. उस में कहा गया है कि मीडिया रिपोर्ट से लग रहा है कि विकास दुबे ने महाकाल मंदिर में गार्ड को खुद ही जानकारी दी.

मध्य प्रदेश पुलिस को विकास दूबे ने खुद ही गिरफ्तारी दी, ताकि मुठभेड़ से बच सके. याचिका में आशंका जताई गई थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस विकास का ऐनकाउंटर कर सकती है.

याचिका में मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से कराने की मांग की गई है. इस में कहा गया है कि  विकास दुबे का घर, शौपिंग माल व गाडि़यां तोड़ने पर उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो. मामले की जांच के लिए समय सीमा तय की जाए. यह तय किया जाए कि पुलिस विकास दुबे का ऐनकाउंटर न कर सके और उस की जान बचाई जा सके.

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शक की फांस बनी नासूर

शक की फांस बनी नासूर : भाग 3

राजेंद्र गिरि अपनी लाडली बेटी का सपना पूरा करना चाहते थे, सो वह उसे भरपूर सहयोग कर रहे थे. शालू खूबसूरत थी. उस ने जब 17 बसंत पार किए तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था.

इसी दौरान राहुल गिरि से उस की दोस्ती हो गई. राहुल शालू के पड़ोस में ही रहता था और किसान इलम चंद्र का बेटा था. शालू के पिता राजेंद्र गिरि तथा राहुल के पिता इलम चंद्र की आपस में खूब पटती थी. राजेंद्र जहां अपनी बेटियों का भविष्य बनाने में जुटे थे, वही इलम चंद्र अपने बेटे राहुल का भविष्य बनाने को प्रयासरत थे.

राहुल उन का होनहार बेटा था. उस ने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड की परीक्षा पास कर ली थी और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास कर शिक्षक बनना चाहता था.

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शालू और राहुल एक ही गली में खेलकूद कर जवान हुए थे. दोनों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण था. यह आकर्षण धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. प्यार परवान चढ़ा तो एक रोज राहुल ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘शालू, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मैं ने तुम्हें अपना बनाने का सपना संजोया है. क्या मेरा यह सपना पूरा होगा?’’

‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा. पर अभी नहीं. अभी समय है अपना कैरियर बनाने का. तुम्हारा सपना है शिक्षक बनने का और मेरा सपना है पुलिस में नौकरी करने का. अपनाअपना सपना पूरा करो फिर हम जीवनसाथी बन जाएंगे. हम दोनों मजे से जीवन गुजारेंगे.’’

शालू की यह बात राहुल को पसंद आ गई. इस के बाद दोनों अपना कैरियर बनाने में जुट गए. कालांतर मे राहुल ने टीईटी की परीक्षा पास की, उस के बाद उस का चयन शिक्षक पद पर हो गया. वह फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने लगा.

इधर शालू का भी चयन पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर जनवरी 2019 में हो गया. उस की ट्रेनिंग इटावा में हुई. उस के बाद 16 दिसंबर, 2019 को शालू की पहली पोस्टिंग औरैया जिले के विधूना कोतवाली में हो गई. थाने में ड्यूटी के दौरान शालू की मुलाकात सिपाही आकाश से हुई. कुछ दिनों बाद ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

आकाश हर तरह से शालू की मदद करने लगा. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ गई. 20 मार्च, 2020 को शालू गिरि एक सप्ताह की छुट्टी पर अपने गांव लतीफपुर दत्त नगर आई. पर 24 मार्च की रात से देश में लौकडाउन घोषित हो गया, जिस से शालू भी लौकडाउन में फंस गई. शालू का प्रेमी शिक्षक राहुल भी फैजाबाद से घर आया था. वह भी लौकडाउन में गांव में ही फंस गया था.

सादगी से हुई लवमैरिज

गांव में रहते शालू और राहुल का आमनासामना हुआ तो दोनों का प्यार उमड़ पड़ा. अब तक दोनों अपना कैरियर बना चुके थे. अत: जब राहुल ने शालू के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो शालू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इधर शालू जब लौकडाउन में फंस गई तो पुलिस विभाग ने उसे बालौनी थाने में जौइन करा दिया.

गांव से थाना 9 किलोमीटर दूर था और घर से रोज थाने आनाजाना मुश्किल था. अत: शालू ने बालौनी थाने के पास ही कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रह कर ड्यूटी करने लगी. इसी कमरे में आ कर राहुल उस से मिलने लगा. कुछ दिन बाद शालू और राहुल ने अपने घर वालों से शादी की इच्छा जताई तो दोनों के घर वालों ने उन की बात मान ली. दरअसल शालू की मां सुमित्रा देवी को शालू और सिपाही आकाश के बीच बढ़ती दोस्ती की बात पता चल गई थी. वह शालू की शादी गैर बिरादरी में नहीं करना चाहती थीं, सो वह जातिबिरादरी के युवक राहुल से शादी को राजी हो गई थीं.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद 26 अप्रैल, 2020 को लौकडाउन के दौरान ही शालू और राहुल ने एकदूसरे के गले में वर माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. दोनों परिवारों की मौजूदगी में प्रेम विवाह बालौनी के उसी कमरे में संपन्न हुआ, जिस में शालू रहती थी. शादी के बाद राहुल और शालू पतिपत्नी की तरह उसी कमरे में रहने लगे.

पतिपत्नी के बीच दरार तब पड़ी जब सिपाही आकाश का नाम शालू की जुबान पर आया. दरअसल शालू देर रात तक सिपाही आकाश से बतियाती थी. पूछने पर वह आकाश को अपना दोस्त बताती थी.

आकाश को ले कर राहुल के मन में शंका पैदा हो गई, जिस से वह उस के चरित्र पर शक करने लगा. शक के कारण दोनों के बीच तनाव की स्थिति रहने लगी.

3 मई, 2020 को बालौनी थाने से शालू को रिलीव कर दिया गया और 5 मई को उस ने वापस विधूना कोतवाली में ड्यूटी जौइन कर ली. इस के बाद उस ने विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रूम ले लिया और रहने लगी. शालू शादी कर जब से वापस थाने आई थी तब से वह गुमसुम रहने लगी थी.

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लेकिन वह अपना दर्द किसी से बयां नहीं करती थी. इस दर्द का कारण उस का पति राहुल ही था. वह जब भी शालू से फोन पर बात करता था. उस के चरित्र पर उंगली उठाता था.

इधर जब से शालू ब्याह रचा कर वापस लौटी थी, तब से उस का सिपाही दोस्त आकाश भी उस से कतराने लगा था. उस में अब न पहले जैसी दोस्ती थी और न ही प्यारसम्मान. वह अब दोजख में फंस गई थी.

एक ओर उस का पति मानसिक चोट पहुंचा रहा था, उस के चरित्र पर शक कर रहा था, तो दूसरी ओर सिपाही दोस्त आकाश भी उसे पीड़ा पहुंचा रहा था. ऐसे में शालू परेशान हो उठी. आखिर में उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय कर लिया.

पहली जून, 2020 को शालू ड्यूटी गई और रात 9 बजे वापस अपने रूम पर आई. उस रोज भी वह परेशान थी और निराशा उसे घेरे थी.

रात 11 बजे बड़ी बहन सपना का फोन आया तो उस ने उस से बहकीबहकी बातें कीं. फिर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.  उस के बाद उस ने सिपाही आकाश को फोन किया, लेकिन उस ने फोन रिसीव ही नहीं किया. इस के बाद शालू ने अपनी डायरी के 3 पन्नों पर सुसाइड नोट लिखा, फिर रात लगभग 12 बजे फांसी के फंदे पर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब सपना ने सुबह विधूना थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला के मोबाइल पर जानकारी दी और शालू से बात कराने का आग्रह किया. इस के बाद विनोद कुमार शुक्ला जब शालू के रूम पर पहुंचे, तब शालू फांसी के फंदे पर झूलती मिली.

उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो शालू की हताश जिंदगी की व्यथा सामने आई. चूकि शालू के पति राहुल के खिलाफ शालू के घर वालों ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, अत: विधूना पुलिस ने इस प्रकरण को बंद कर दिया था.

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– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक की फांस बनी नासूर : भाग 2

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा.

शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

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दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है.

पति करता था शक

चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा.

पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी.

राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी.

पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी.

शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं.

शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी. आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे.

सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था.

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उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है.

वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था.

राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई.

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सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शक की फांस बनी नासूर : भाग 1

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

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‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया.

शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी.

इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई.

उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी.

जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए.

फंदे पर झूलती मिली शालू

श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था.

थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे.

कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया.

चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

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घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था,

‘मेरे प्यारे मांपिताजी,

आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’

पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह

डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते.

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पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 3

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

कभी वह मसजिदों के इर्दगिर्द नजर आती है तो कभी गुरुद्वारे के आसपास. फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलती ही है , मराठी और हिंदी में भी उस के तेवर तने रहते हैं. उस के जीवन में 4 लोगों के नाम प्रमुखता से जुड़े हैं. इन में एक मराठी, दूसरे कारोबारी हैं तो 2 मुसलिम हैं. चर्चा है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस ने संदीप दुधे, महेश गुप्ता, रफीक अहमद व मकसूद शेख से अलगअलग शादी रचाई. फिर उन को उस ने छोड़ दिया.

शिकायतकर्ता गुड्डू की शिकायत में इन नामों का जिक्र है. फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रीति अपने पति से क्यों और कैसे दूर हुई. परिवार में उस की बुजुर्ग मां व बेटा है. खबर है कि प्रीति के पिता सेना में थे. पिता की मृत्यु के बाद उस की मां को अब पेंशन मिलती है.

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घर में अनुशासन व शिष्टाचार का पाठ तो मिलता रहा, लेकिन कहा जाता है कि प्रीति की हसरतों ने उसे नई राह पर ला दिया. उस की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक तसवीर पर लिखा है, ‘मेरी सादगी ही गुमनाम रखती है मुझे, जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं.’

उसे करीब से जानने वालों का कहना है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति की नहीं थी. लेकिन शोहरत और दौलत पाने का जुनून कुछ ऐसा सवार है कि वह हर हद से गुजर जाने का दंभ भरती है. वह अपनी सोशल इमेज चमकाने का निरंतर प्रयास करती रही. हालत यह है कि अब भी कुछ लोग उसे धोखेबाज मानने को तैयार नहीं है.

प्रीति एक भाजपा पार्षद की सामाजिक संस्था से भी जुड़ी थी. लौकडाउन में जरूरतमंदों को राहत सामग्री देने के अभियान में वह पूरी ताकत के साथ जुटी रही. लिहाजा उस संस्था से जुड़े नेता ने तो उसे निर्दोष ठहराने का अभियान ही शुरू कर दिया है. दावे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है— हमारी ताई को फंसाया जा रहा है. उस ने कोई अपराध नहीं किया है.

यह भी सुना जा रहा है कि प्रीति स्वयं को बैंकर बताती रही है. वह खुद को एक राजनीतिक दल के पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बैंक की संचालक के रूप में भी प्रचारित करती रही है. सदर क्षेत्र में उस बैंक के कार्यालय में उस के कारनामों के किस्से हैं.

बैंक का मैनेजर भी सिर पर हाथ धरे रहता है. बैंक अधिकारी बताते हुए सीज किए हुए वाहन सस्ते में दिलाने के दावे के साथ धोखाधड़ी करने के उस के किस्से भी सुने जा रहे हैं. खास बात है कि प्रीति अकसर सादे लिबास में रहती है. उस का बर्ताव उच्चशिक्षित सा आकर्षक है.

हमपेशेवर सहेलियों ने की चुगली

यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रीति के कारनामों की चुगली उस की हमपेशेवर सहेलियों ने की. राजनीति से ले कर सामाजिक कार्यों में ऐसी कई नईपुरानी कार्यकर्ता हैं, जिन की पहचान वसूली एजेंट के तौर पर है. अब सब के काम और सोच के तरीके अलगअलग हो गए हैं.

इन में से कुछ को केवल यह बात खटक रही है कि प्रीति कम समय में बहुतों की चहेती बन गई. नेता, पुलिस से ले कर अन्य क्षेत्र के बड़े लोग भी उस के साथ उठनेबैठने लगे. प्रीति का सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने का तरीका भी कइयों की आंखों में चुभने लगा था.

लिहाजा प्रीति की चुगली भी होने लगी थी. कभी वह इंसपेक्टर स्तर के अफसर के साथ बदनाम होती तो कभी नेता के घर उस के नाम पर पारिवारिक झगड़ा होता था. बताते हैं कि चुगली के चक्कर में एक पुलिस वाले ने प्रीति से कुछ बातों को ले कर सवाल किए थे, जिस पर वह थाने में ही भड़क गई थी. उस ने उस अफसर को भी खरीखोटी सुनाते हुए ज्यादा चूंचपड़ नहीं करने को कहा था. थाने में सिपाहियों के सामने हुए उस अपमान को अफसर भूल नहीं पाया.

शहर में हनीट्रैप के कारनामों में लिप्त कुछ महिलाओं के लिए भी प्रीति आंख का कांटा बनी है. उन्हें लगता है कि यह कल की आई महिला सब को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है.

सेक्स रैकेट, भोजनालयों, अवैध धंधों के अड्डों से पुलिस के नाम पर वसूली कर गुजारा करने वालों के लिए यह बात और भी खटकने वाली है कि प्रीति तो सीधे पुलिस अफसरों की गाडि़यों में ही घूमने लगी.

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आइडियाज क्वीन

प्रीति को पहचानने वाले उसे अवैध वसूली की आइडियाज क्वीन भी कहते हैं. अपनी सोशल इमेज बनाते हुए वह सत्कार कार्यक्रम का आयोजन करती रही है. चर्चा के अनुसार वह सत्कार के लिए ऐसे लोगों की तलाश करती रहती है जो कार्यक्रम में  शौल, श्रीफल मिलने के बदले 10 से 20 हजार रुपए खर्च कर सकें.

कार्यक्रम आयोजन के नाम पर सहयोग के तौर पर वह हजारों रुपए जमा कर लेती है. उन कार्यक्रमों में पुलिस के बड़े अधिकारी या अन्य क्षेत्र के सम्मानित लोगों को आमंत्रित करती रही है. सत्कार कराने के इस खेल में भी वह मोटी रकम बटोरती है. बड़े पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी कर के भी वह अपने स्वार्थ साधती रही है.

इस के अलावा विविध मामलों को ले कर वह अफसरों व नेता, मंत्री को निवेदन सौंपने में भी आगे रही है. पुलिस मित्र के तौर पर शहर के सभी 33 पुलिस थानों में उस की खास पहचान है. अफसरों की निजी पार्टी के अलावा नेताओं की पर्सनल बैठकों में वह शामिल होती रही है.

खुशियों के मौकों पर मनपा के बड़े नेता भी उस के साथ ठुमके लगाते दिखे. लिहाजा कइयों को यही लगता है कि प्रीति की प्रीत केवल उस से है. उसे होनहार कार्यकर्ता मानने वालों की भी कमी नहीं है. सत्कार करनेकराने का दौर कुछ ऐसा चला है कि शहर में जिम्मेदार वर्ग कहलाने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठितों के साथ वह मंच साझा कर चुकी है. नगर सेवक, महापौर, विधायक स्तर के जनप्रतिनिधि उस की खास मित्रमंडली में शामिल हैं.

वह सब से पहले अपने शिकार के बारे में जानकारी लेती है. मनचाही खुशियों का दाना फेंक कर शिकार फांसने का गुर वह जान चुकी है. हनीट्रैप के मामलों में उत्तर नागपुर में ही एक गिरोह चर्चा में रहा है. प्रीति का नाम आते ही वह हवा हो गया था. इस के अलावा कुछ आपराधिक मामलों में उस का नाम थानों तक पहुंचा, लेकिन पुलिस के रिकौर्ड में दर्ज नहीं हो पाया.

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बहरहाल कहा जा रहा है कि प्रीति के चक्कर में दास बने लोगों की लंबी कतार है. इन में कई सफेदपोश लोग भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सारी हकीकत सामने आने लगेगी.

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 2

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

गिरफ्तारी के बाद प्रीति को पुलिस रिमांड पर लिया गया. उस के खिलाफ पुलिस ने सबूत जुटाने शुरू किए. जांच में जुटी पुलिस यह जान कर दंग रह गई कि कुछ समय पहले तक मामूली मोपेड पर घूमने वाली प्रीति अब करोड़पति हो गई है. वह महंगी कारों से घूमती है. उस ने अपने करीबियों व रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीद रखी है.

बंगला, खेती की जमीन के अलावा वह एक कंपनी की भी संचालक भी थी. अवैध वसूली के लिए उस ने बाकायदा एक संस्था रजिस्टर्ड करा रखी थी. लिहाजा पुलिस ने धर्मदाय आयुक्तालय, विजिलैंस विभाग के अलावा अन्य विभागों को पत्र लिख कर उस के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी.

घर में हुआ अपमान तो कर लिया सुसाइड

प्रीति के कारनामों की जानकारी जुटाई ही जा रही थी कि पुलिस अधिकारियों तक एक गुहार और पहुंची. गुहार यह कि एक व्यक्ति ने प्रीति और उस के साथियों के डर से सुसाइड कर लिया था. मृतक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए यह शिकायत जूनी मंगलवारी निवासी वैशाली पौनीकर की थी.

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शिकायत के अनुसार वैशाली के पति सुनील पौनीकर ने अक्तूबर 2019 में सतीश सोनकुसरे से कुछ रकम कर्ज ली थी. सुनील पौनीकर मेस संचालक था. काम में घाटे के कारण उसे कर्ज लेना पड़ा था. सतीश सोनकुसरे ने कर्ज वापसी के लिए सुनील पर दबाव बनाया. लेकिन समय पर रुपए नहीं लौटा पाने पर उस ने प्रीति की मदद ली.

प्रीति यह भी दावा करती थी कि वह कर्ज वसूली का काम भी करती है. शहर के सारे बड़े पुलिस अफसर व नेता उस के पहचान के हैं. बतौर वैशाली पौनीकर, प्रीति ने सतीश सोनकुसरे से कर्ज वसूली की सुपारी ली थी. वह कुछ पुलिस कर्मचारियों की मदद से सुनील को प्रताडि़त करती थी.

प्रीति की धमकी से किया सुसाइड

एक दिन प्रीति सतीश सोनकुसरे और मंगेश पौनीकर को साथ ले कर सुनील के घर पर पहुंच गई. प्रीति ने सुनील को कर्ज नहीं लौटाने पर धमकी दी. उस के साथ कुछ पुलिस वाले भी थे, जो घर में आ कर मांबहन की गालियां दे गए. यहीं नहीं, वह बस्ती में नंगा घुमाने की धमकी दे रहे थे. धमकी और घिनौनी बातों से सुनील बुरी तरह आहत हुआ. लिहाजा उस ने 27 नवंबर, 2019 की दोपहर ढाई बजे लकड़गंज थाना क्षेत्र के बाबुलवन प्राथमिक शाला के मैदान में जहर पी लिया. मेयो अस्पताल में उपचार के दौरान 30 नवंबर, 2019 को सुनील ने दम तोड़ दिया था.

पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच जारी रखी. अब वैशाली पौनीकर की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर लकड़गंज थाने की पुलिस ने प्रीति व उस के साथियों के खिलाफ सुनील आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर तलाश शुरू कर दी.

मेस संचालक को आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण लकड़गंज थाने में दर्ज हो ही रहा था कि जरीपटका थाने में एक और शिकायत पहुंची. शिकायत यह थी कि आरोपी प्रीति ने धौंस दिखा कर 25 हजार रुपए ऐंठ लिए. शिकायतकर्ता पूर्णाबाई सडमाके का बेटा नीतेश वायुसेना में लिपिक था. 8 मार्च, 2019 को उस की प्रणिता से शादी हुई थी.

शादी के 2 माह बाद ही प्रणिता की अपनी सास पूर्णाबाई से अनबन होने लगी. प्रणिता अपना सामान ले कर मायके चली गई. समझाने पर भी वह नहीं मानी. उस ने पुलिस के भरोसा सेल में पूर्णाबाई की शिकायत दर्ज करा दी. भरोसा सेल में पूर्णाबाई की प्रीति से भेंट हुई.

प्रीति भरोसा सेल की एजेंट बन कर घूमती थी. उस ने विवाद निपटाने का झांसा दे कर पूर्णाबाई से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए नहीं देने पर उस के बेटे की नौकरी जाने का भय बताया. लिहाजा 17 अक्तूबर, 2019 को पूर्णाबाई ने प्रीति को 25 हजार रुपए दे दिए. पूर्णाबाई ने प्रीति को फोन कर पूछताछ की. प्रीति ने बताया कि तुम्हारे बेटे का काम हो गया है. मैं ने मैडम को पैसे दे दिए हैं.

बेटे से जुड़े मामले को ले कर एक बार पूर्णाबाई को भरोसा सेल की इंचार्ज इंसपेक्टर शुभदा शंखे ने पूछताछ के लिए बुलाया. उस दौरान पूर्णाबाई ने इंसपेक्टर शुभदा से सहज ही कह दिया कि मैं ने तो आप को 25 हजार रुपए दिए थे, फिर आप मुझ से इस तरह घुमावदार सवाल क्यों कर रही हो.

इंसपेक्टर शुभदा चौंकी. वह यह जान कर हैरान थी कि जिस प्रीति दास को वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सम्मान देती रही, वह तो उस के नाम पर ही अवैध वसूलियां करने लगी है. लिहाजा, इंसपेक्टर शंखे ने पूर्णाबाई को शहर पुलिस के जोन-5 के उपायुक्त नीलोत्पल के पास भेजा.

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पूर्णाबाई की शिकायत पर जरीपटका पुलिस ने आरोपी प्रीति के खिलाफ हफ्ता वसूली का मामला दर्ज कर लिया. 2 दिन बाद शहर पुलिस के पास एक और शिकायत पहुंची. शिकायतकर्ता युवती उच्चशिक्षित थी. उस के अनुसार उस के साथ एक युवक ने विवाह का झांसा दे कर दुष्कर्म किया था.

प्रीति दास ने युवती को यह कह कर मदद का आश्वासन दिया था कि उस की पुलिस के बड़े अधिकारियों से खासी पहचान है. वह दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिलाएगी.

इस कार्य के लिए उस ने युवती से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए मिलने के बाद प्रीति उस युवती से मिलती भी नहीं थी. ऐसे में एक रोज युवती ने प्रीति से तल्खी के साथ सवाल किया तो वह उसे धमकाने लगी. साथ ही यह औफर देने लगी कि उस की गैंग में शामिल हो जाए.

उस युवती का आरोप था कि प्रीति अकसर खूबसूरत युवतियों की मजबूरियों का फायदा उठाती है. युवतियों को पेश कर के वह रसूखदारों से मनचाहा माल वसूलती रहती है. 2 से 3 पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को हनीट्रैप में फंसा देने का डर दिखा कर उसने कथित तौर पर लाखों की वसूली की है.

उस ने यह भी बताया कि नागपुर में पश्चिम महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारी बैचलर रहते हैं. उन का परिवार उन के गांव या शहर में है. लिहाजा उन्हें रात रंगीन कराने के एवज में प्रीति लगातार ब्लैकमेल करती रही है.

भंडारा पुलिस थाने में प्रीति के विरुद्ध दर्ज धोखाधड़ी के मामले में बताया गया कि वह नागपुर के बाहर के जिलों में खुद को बैंकर के तौर पर प्रचारित करती रही है. जरूरतमंदों को आसानी से लाखों का कर्ज दिलाने का झांसा देती रही है. उस के इस चक्रव्यूह में कुछ बैंक कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल रहे हैं.

दीवाने ही दीवाने

प्रीति अपना पूरा नाम प्रीति ज्योतिर्मय दास लिखती है. 40 की उम्र की हो चली इस महिला के चेहरे से ही सादगी व शिष्टता झलकती है. लेकिन उस के शिकायतकर्ताओं की मानें, तो वह जैसी दिखती है वैसी है नहीं. उस की मित्रमंडली की फेहरिस्त में दीवाने ही दीवाने हैं.

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उस के कारनामों के तराने न जाने कहांकहां गूंज रहे हैं. शिकायतकर्ता गुड्डू तिवारी की सुनें तो प्रीति कपड़ों की तरह रिश्ते बदलती है. लिबास ही नहीं, जरूरत हो तो वह जाति और धर्म भी बदल लेती है.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्रीति की कड़वी गोली : भाग 1

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी 

लौकडाउन से अनलौक की ओर कदम बढ़ते ही महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में यूं तो अपराध की जबरदस्त ताक धिना धिन सुनी जा रही थी. हत्याओं का सिलसिला सा बन गया था. राज्य के गृहमंत्री के गृहनगर की इस हालत पर राजनीतिक तीरतलवार चलाने वाले तरकश कसने लगे थे. पुलिस और प्रशासन पर तोहमत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.

कोरोना योद्धा के तौर पर शाबासी लूट चुकी शहर पुलिस ऐसी किसी तोहमत को तवज्जो नहीं देना चाहती थी. दावा यही कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की न जरूरत थी न ही होनी चाहिए.

शहर पुलिस ने बड़ेबड़े अपराधियों के अपराध के आशियानों को कुछ समय में ही बड़े स्तर पर ध्वस्त कर दिया था. ऐसे में एक मामला अचानक चर्चा में हौट हुआ. यह मामला चार सौ बीसी के खेल में पकड़ी गई प्रीति का.

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राजनीति के गलियारे में चहलकदमी के साथ समाजसेवा का नया मौडल बनी घूमती उस महिला के बारे में बड़ी चर्चा ये थी कि कई पुलिस वाले साहब उस के दबेल यानी उस के दबाव में थे. लिहाजा उस ने शहर व शहर के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दबावतंत्र बना कर कइयों की जिंदगी में जहर घोल दिया. पुलिस कभी उस का सत्कार करती थी तो कभी उस से सत्कार कराती थी.

समाजसेवा के चोले में हनी ट्रैपर

घटना 5 जून, 2020 की है. एक शिकायतकर्ता पांचपावली पुलिस स्टेशन में बेबस मुद्रा में मदद की याचना ले कर पहुंचा. शिकायतकर्ता का नाम था उमेश उर्फ गुड्डू तिवारी. पांचपावली क्षेत्र में ही रहने वाले गुड्डू ने बताया कि उस का जीवन एकदम सामान्य था. वह एक स्कूल का कर्मचारी है. हर माह मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का हंसीखुशी गुजारा हो रहा था. लेकिन जब से वह प्रीति की सोहबत में आया, उस की दुनिया लुटने लगी.

उमेश उर्फ गुड्डू ने उस वक्त को कोसा है, जब वह फेसबुक पर प्रीति से जुड़ा था. प्रीति का आकर्षक फोटो देख गुड्डू ने उस पर सहज कमेंट किया था. उस कमेंट के जवाब में प्रीति ने फेसबुक पर ही गुड्डू को पर्सनल मैसेज भेज कर मोबाइल फोन नंबर का आदानप्रदान कर लिया. गुड्डू इस बात को ले कर भी खुद को दोष देता है कि एकदो बार फोन पर बात के बाद वह उस अनजानी महिला के सामने पूरी तरह से खुल गया.

उस ने अपने घरपरिवार की बातें साझा कर दीं. यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी उस ने अरमानों के सूखे कंठ की वेदना को स्वर दे दिया.

प्रीति ने गुड्डू को बताया कि नागपुर के जिस इलाके में वह रहता है, उस के पास ही वह भी रहती है. उस ने अपनी पहचान के दायरे के ट्रेलर के तौर पर कुछ लोगों के नाम गिनाए.

कुछ दिनों बाद दोनों के मिलने का सिलसिला मोहब्बत की परवाज भरने लगा. कभी प्रीति मिलने पहुंचती तो कभी गुड्डू को बुला लेती थी.

एक दिन प्रीति ने गुड्डू से साफ कह दिया कि वह उस के साथ जीवन गुजारने को तैयार है. बशर्ते उसे अपनी पत्नी को तलाक देना होगा. भविष्य की योजना भी उस ने गुड्डू से साझा की. 50 वर्षीय गुड्डू जिंदगी के नए सफर पर चलने के लिए न केवल राजी हुआ बल्कि अति उत्साहित भी था.

माल मिलते ही बदला रंग

गुड्डू की शिकायत का लब्बोलुआब यह था कि प्रीति मनचाहा धन मिलते ही तेवर बदलने लगती थी. बतौर गुड्डू प्रीति ने उस से फ्लैट खरीदने के लिए रुपयों की मांग की थी. उस का कहना था कि जब तक गुड्डू की पत्नी का तलाक नहीं हो जाता, तब तक दोनों उस फ्लैट में मिलतेजुलते रहेंगे.

गुड्डू ने अग्रिम के तौर पर प्रीति को फ्लैट के लिए 2.60 लाख रुपए दे दिए. तय समय पर फ्लैट नहीं लिया गया तो गुड्डू ने रुपए वापस मांगे. बस यहीं से गुड्डू पर दबाव का नया सिलसिला चल पड़ा. फ्लैट के नाम पर लिए गए रुपए वापस लौटाना तो दूर प्रीति ने रुपयों की नई पेशकश रख दी.

उस ने कहा कि सोशल मीडिया पर जितनी भी हौट बातें हुई हैं और फोन पर लाइव चैटिंग हुई है, उन का सारा हिसाब उस के पास है. अगर वह उस रिकौर्डिंग को पुलिस को सौंप दे तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.

प्रीति की सीधी धमकी यह भी थी कि ज्यादा चूंचपड़ मत करना. मेरे हाथ काफी लंबे हैं. चुटकी बजा कर ऐसी जगह पर घुसेड़वा दूंगी, जहां से जीवन भर नहीं निकल पाएगा. और हां, अपनी इज्जत बचानी हो तो 5 लाख रुपए तैयार रखना.

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प्रीति के ठग अंदाज का जिक्र करते हुए गुड्डू ने बताया कि उस ने डर के मारे प्रीति को 2.42 लाख रुपए और दिए, जिस से वह कहीं मुंह न खोले. लेकिन माल पाने के बाद तो वह और भी रंग बदलने लगी. रुपए और गिफ्ट ले कर यहांवहां बुलाने लगी.

उस से दूर होने का प्रयास किया तो वह घर में आ कर पिटवा देने की धमकी देने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने नकदी और गिफ्ट के रूप में 14.87 लाख रुपए ऐंठ लिए. आखिरकार उसे अपने बचाव में पुलिस की शरण लेनी पड़ी.

पुलिस ने उस की शिकायत की शुरुआती पड़ताल करने के बाद प्रीति के खिलाफ भादंवि की धारा 420 व धारा 384 हफ्तावसूली के तहत केस दर्ज कर लिया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने प्रीति के कामठी रोड स्थित प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के घर पर छापेमारी की. प्रीति वहां से चंपत हो गई थी. पुलिस ने उस के घर से काफी सामान और दस्तावेज बरामद किए.

खुला भेद तो पुलिस भी रह गई दंग

जिस पांचपावली पुलिस स्टेशन में प्रीति का आनाजाना लगा रहता था, उसी थाने की पुलिस उस के कारनामों की फेहरिस्त देख कर दंग रह गई. रिकौर्ड खंगालने पर पता चला कि प्रीति धोखाधड़ी के मामले में जेल की यात्रा कर चुकी है. उस के आपराधिक क्षेत्र के छोटेबड़े लोगों से भी करीबी संबंध है. उस के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 420, 406, 468, 467, 506, 507, 34 के  तहत प्रकरण दर्ज है.

धोखाधड़ी का वह प्रकरण शहर में काफी चर्चित हुआ था. इस के अलावा भंडारा के पुलिस स्टेशन में भी भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज था. शहर पुलिस के बड़े अधिकारियों के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी कि जिस महिला को वे केवल सामाजिक कार्यकर्ता समझ रहे थे वह ब्लैकमैलर है. यही नहीं वह पुलिस से संबंधों का नाजायज फायदा उठाती रहती है.

शहर पुलिस की ओर से प्रीति के अपराधों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई. बाकायदा प्रैस नोट जारी कर आह्वान किया गया कि इस महिला ने किसी से धोखाधड़ी की हो, तो तत्काल पुलिस से संपर्क करे.

इस बीच प्रीति फरार हो गई थी. पुलिस उसे ढूंढती रही. करीब हफ्ते भर प्रीति बचाव का रास्ता खोजती रही. उस ने वकील के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोशिश यही थी कि पुलिस गिरफ्तारी से बचते हुए उसे न्यायालय से जमानत मिल जाए. लेकिन उस की कोशिशों पर पानी फिर गया. न्यायालय ने उस की अरजी खारिज कर दी.

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लिहाजा उस ने 13 जून को पांचपावली पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. उसे पुलिस तक पहुंचाने वालों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस के कुछ नुमाइंदे भी शामिल थे.

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प्रीति की कड़वी गोली

मौत के आगोश में समाया ‘फूल’

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