आखिरकार एक तथाकथित ऐनकाउंटर में उत्तर प्रदेश एसटीएफ द्वारा गैंगस्टर विकास दुबे के साथ ही एक गहरे सच की भी हत्या कर दी गई. अपराध, राजनीति, कारोबार और पुलिस के नैक्सस के भंडाफोड़ का जो खतरा विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से लगातार कई सफेदपोशों और खाकीधारियों के सिर पर मंडरा रहा था, वह विकास दुबे की हत्या के साथ ही खत्म हो गया है.

विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से ही न जाने कितने सफेदपोशों का ब्लडप्रैशर बढ़ गया था. ऐनकाउंटर से पहले ही अपने बयान में उस ने कई नेताओं, कारोबारियों और पुलिस वालों के नाम बताए थे, जिन्होंने उस की बिठूर से उज्जैन तक पहुंचने में मदद की थी.

अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में विजय दुबे का इस्तेमाल करने वाले नेताओं, कारोबारियों, पुलिस वालों का नाम खुलता तो राजनीति, कारोबार और प्रशासन की दुनिया में भूचाल आ जाता.

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हमें पता है कि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति का इस्तेमाल किस तरह से हरेन पंड्या समेत कितने लोगों को ठिकाने लगाने में किया गया था और जब सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति गिरफ्तार होने के बाद सत्ताधारी सफेदपोशों के लिए खतरा बन गए तो उन्हें नकली ऐनकाउंटर में ढेर कर दिया गया.

विकास दुबे उत्तर प्रदेश का सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति था, जिस का इस्तेमाल तमाम सत्ताधारी दल करते आए हैं. बस, फर्क इतना था कि विकास दुबे के पास ब्राह्मण का ऐक्स फैक्टर था, जो वंचित तबके से होने के नाते सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति के पास नहीं था.

पर सवाल उठता है कि जो गैंगस्टर लगातार कई राज्यों की पुलिस को छकाता हुआ उज्जैन के महाकाल मंदिर में सरैंडर करता है, ताकि उस का ऐनकाउंटर न हो सके, वह भला पुलिस कस्टडी से भाग कर अपने ऐनकाउंटर को न्योता क्यों देगा?

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