
बेटे अभि को अपने पास बुलाने के लिए उस ने अपने ननदोई राजीव से संपर्क किया. उस ने राजीव को 30 हजार रुपए का लालच देते हुए कहा कि अगर वह उस के बेटे को सुखपाल के पास से ले आए तो उसे 30 हजार रुपए देगी.
लौकडाउन में 30 हजार रुपए मिलने वाली बात सुनते ही राजीव ने सुखपाल को अपने विश्वास में ले कर अभि को साथ लिया और उसे मुरादाबाद पहुंचा दिया.
देश में लौकडाउन लगते ही सभी अपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. शहर या गांव सभी जगह कामकाज मिलना बंद हुआ तो सुखपाल खर्च के लिए पैसेपैसे को तरसने लगा. उस ने गांव की जो जमीन बेची थी उस का बाकी पैसा भी मंजू के पास ही था. मंजू से कुछ खर्च के लिए पैसे मिल जाएं यह सोच कर वह हिम्मत कर के गोविंद नगर जा पहुंचा.
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सुखपाल को अचानक घर आया देख पहले तो मंजू उस से बोलने तक को तैयार न थी. लेकिन पता नहीं उस के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि जल्द ही वह मोम की तरह पिघल गई. उस ने पति को खाना बना कर दिया. फिर वह उस के साथ गांव आ गई.
गांव आ कर वह सुखपाल के साथ हंसीखुशी से रहने लगी. जब राजीव को सुखपाल के गांव आने वाली बात पता चली तो वह भी उस के घर के चक्कर लगाने लगा. मंजू और राजीव के बीच पहले से ही अवैध संबंध थे. राजीव से मंजू का पुनर्मिलन हुआ तो उस का दिल बागबाग हो उठा.
लौकडाउन के चलते राजीव भी अपनी ससुराल में आ कर पड़ा रहने लगा. उसी दौरान मंजू ने अपने ननदोई को विश्वास में लेते हुए कहा कि अगर वह सुखपाल को अपने बीच से हटाने में उस का साथ दे तो उस की 2 बीघा जमीन बेच कर वह सारे पैसे उसे देगी. तब दोनों के मिलने को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होगा.
मंजू की बात सुनते ही राजीव लालच में आ कर अपने साले को ही मौत की नींद सुलाने के लिए साजिश में शामिल हो गया. राजीव को साथ देने के लिए पक्का कर के मंजू फिर से मुरादाबाद पहुंची. मुरादाबाद जाते ही उस ने राजकुमार को भी अपने लटकेझटके दिखाने के बाद उसे भी मकान का लालच दे कर साजिश में शामिल होने को कहा.
राजकुमार तो पहले ही उस मकान पर निगाहें गड़ाए बैठा था. जिस राह की खोज में वह काफी समय से भटक रहा था, वह राह उसे मंजू ने स्वयं दिखा दी. मंजू ने राजकुमार को गोविंद नगर का मकान और उस के साथ सदा के लिए जीवनयापन करने की पट्टी पढ़ा कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.
जब मंजू को पूरा यकीन हो गया कि उस के दोनों दीवाने उस की हर तरफ से सहायता करने को तैयार हैं तो उस ने सुखपाल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.
राजकुमार से बात करने के बाद वह फिर से सुखपाल के पास गांव आ गई. पति के पास आ कर उस ने प्रेम का नाटक करना शुरू किया.
सुखपाल उस की मंशा को जाने बिना उस की मीठीमीठी बातों में फंस कर उस के साथ बिताए बुरे दिनों को पल भर में भुला बैठा.
इस घटना को अंजाम देने से 5 दिन पहले मंजू ने सुखपाल से अपनी ननद ऊषा देवी के पास जाने की मंशा जाहिर की.
सुखपाल अब किसी भी तरह उस के दिल को कोई ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. इसीलिए वह उसे साथ ले कर अपनी बहन ऊषा के गांव खाईखेड़ा पहुंच गया.
अपनी ननद के पास 4 दिन तक मेहमाननवाजी करते हुए वह सुखपाल को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाती रही. लेकिन वह योजना को अंतिम रूप नहीं दे पा रही थी. अपनी ननद के घर से ही उस ने राजकुमार को फोन कर के वहीं पर बुला लिया.
राजकुमार के आते ही ऊषा के घर पर हर रोज दावत होने लगी. राजकुमार ने अपनी शानशौकत दिखाते हुए वहां पर शराब और मीट मछली बनाने खाने में काफी पैसा खर्च कर दिया.
खाना खाने के बाद राजकुमार, राजीव और मंजू को एकांत में ले जा कर सुखपाल को मौत के घाट उतारने की योजना बनाते रहे.
उसी योजनानुसार मंगलवार 14 जुलाई की रात फिर से राजीव के घर पर दावत का प्रोग्राम बना. उस शाम राजकुमार और राजीव ने सुखपाल को जम कर शराब पिलाई. काफी देर तक खानेपीने का प्रोग्राम चलता रहा. जब रात काफी हो गई तो सारे दिन की थकीहारी ऊषा अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर मकान की छत पर चली गई.
ऊषा के छत पर जाते ही मौका पा कर मंजू ने राजीव, राजकुमार व सुखपाल से गांव के पास ही बाग में आम खाने की बात कही और रात 11 बजे उन को साथ ले कर घर से निकल गई. आम खाने की बात सुनते ही सुखपाल नशे में धुत होने के बावजूद उन के साथ जाने को तैयार हो गया था.
चारों एक साथ गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर हसनगंज गांव की सीमा में ईट भट्ठे के पास पीपल के पेड़ से लगे कुएं के पास पहुंचे. कुएं की दीवार पर बैठते ही नशे में डूबा सुखपाल फैल गया. उस के नशे से बेहोश होते ही मंजू अपना आपा खो बैठी. उस ने बड़ी ही फुरती से पति के पैर पकड़े और अपने ननदोई राजीव और राजकुमार से धारदार हथियार से बार करने को कहा.
उस समय वैसे भी रात का अंधेरा छाया हुआ था, ऊपर से राजीव और राजकुमार बुरी तरह नशे में धुत थे. मंजू के कहते ही राजीव और राजकुमार कसाई बन सामने बेहोश पड़े सुखपाल पर ताबड़तोड़ प्रहार करने लगे.
सुखपाल पर पहला प्रहार होते ही वह उठ बैठा था. लेकिन उस के बाद तीनों ने उसे दबोच लिया और तेजधार वाले हथियार से उसे काट कर मार डाला. सुखपाल को मौत की नींद सुलाने के बाद तीनों ने उस की गरदन भी काट दी. फिर उस की लाश कुएं में फेंक दी.
लाश को छिपाने के लिए उन्होंने बाग में से पत्ते इकट्ठे किए और उस की लाश के ऊपर डाल दिए. सुखपाल की हत्या करने के बाद तीनों चोरीछिपे घर पर आ कर सो गए. उस समय तक सुखपाल की बहन ऊषा गहरी नींद में सो चुकी थी. उसे कुछ पता नहीं चल पाया था.
सुबह होने पर उस ने मंजू और अपने पति राजीव से भाई सुखपाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि रात सुखपाल ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उस के बाद वह सो गया था. लेकिन वह रात में पता नहीं कहां गायब हो गया था.
यह सुनते ही ऊषा ने अपने भाई के साथ किसी अनहोनी होने की आशंका के चलते मंजू से थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.
इस केस के खुलते ही पुलिस ने मृतक की बीवी मंजू उस के ननदोई प्रेमी राजीव पर भादंवि की धारा 364/302/201 के अंतर्गत केस दर्ज कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.
कहानी लिखे जाने तक इस मामले का तीसरा अभियुक्त राजकुमार पुलिस की पकड़ से बाहर था. मंजू ने अपने पति की जिंदगी के साथ जो खेल खेला उस से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
पति की हत्या में गिरफ्तार हुई मंजू के चेहरे पर गम की कोई शिकन तक नहीं थी. उस का कहना था कि उसे पति की हत्या का कोई पछतावा नहीं है.
मंजू ने पुलिस को दोटूक जबाव दिया कि वह जेल से आने के बाद भी दोनों प्रेमियों के साथ रहेगी. उसे अपने बच्चों के भविष्य को ले कर किसी तरह की चिंता नहीं थी, जो अनाथ हो गए थे. उस का बेटा अभि उस की तहेरी दादी गंगा देवी के पास रह रहा था. जबकि उस की बेटी उस की नानी के साथ चली गई थी.
15 जुलाई, 2020 की सुबह करीब 9 बजे मंजू नाम की महिला गांव के कुछ लोगों के साथ जनपद मुरादाबाद के थाना मूंडा पांडे पहुंची. उस ने थानाप्रभारी नवाब सिंह को बताया कि वह 4 दिन पहले अपने पति सुखपाल के साथ ननद ऊषा की ससुराल खाईखेड़ा आई थी. कल 14 जुलाई, 2020 की रात को उस का पति वहीं से अचानक गायब हो गया.
पुलिस पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया कि उस का पति देर रात अपने बहनोई राजीव के साथ घर से निकला था. लेकिन उस के बाद उस का बहनोई तो घर वापस आ गया लेकिन उस के पति का कोई अतापता नहीं है.
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किसी मामले में अगर किसी आरोपी का नाम पहले ही सामने आ जाता है तो पुलिस की सिरदर्दी काफी कम हो जाती है. इस मामले में भी पुलिस ने कुछ राहत की सांस ली और सब से पहले इस आरोपी राजीव कुमार को हिरासत में लेना जरूरी समझा. थानाप्रभारी उसी वक्त राजीव के गांव खाईखेड़ा पहुंचे तो राजीव तो घर पर नहीं मिला. लेकिन उस की पत्नी ऊषा ने जो बताया, उस ने इस केस को और भी उलझा दिया.
ऊषा ने बताया कि उस की भाभी के साथ मुरादाबाद निवासी राजकुमार भी था, जिसे वह भैया बता रही थी. 14 जुलाई की देर रात वह सभी मेहमानों को खाना खिलाने के बाद घर का काम खत्म कर अपने बच्चों को ले कर छत पर सोने चली गई थी. उस के बाद उस का भाई सुखपाल अचानक कहां गायब हो गया उसे कुछ नहीं मालूम.
उस रात उस के भाई सुखपाल, राजकुमार ने उस के पति के साथ शराब भी पी थी. जिस के बाद तीनों पर ज्यादा नशा हावी हो गया तो गांव के पास बगीचे में आम खाने की बात कह कर घर से निकल गए थे. वहां पर आम खाने के बाद राजीव और राजकुमार तो घर वापस आ गए, लेकिन सुखपाल अचानक गायब हो गया था.
पुलिस जिस केस को आसान समझ रही थी, इस जानकारी के बाद वह पुलिस के लिए काफी जटिल बन गया. क्योंकि ऊषा ने पुलिस को जो जानकारी दी थी, वह सुखपाल की बीवी मंजू ने ही उस के पूछने पर बताई थी.
इस मामले में पुलिस को सब से पहले सुखपाल की बीवी मंजू की बातों में झोल नजर आ रहा था. लेकिन पुलिस को लिखित तहरीर मंजू ने दी थी. इसलिए पुलिस पहले इस मामले में जानकारी जुटाना चाहती थी. पुलिस ने सब से पहले राजीव कुमार से पूछताछ करना ठीक समझा. उस की तलाश की गई तो वह जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गया.
राजीव ने पुलिस को गुमराह करते हुए बताया कि उस रात वह उन सभी के साथ आम खाने बाग में गया जरूर था, लेकिन आते समय सुखपाल न जाने अचानक कहां गायब हो गया.
राजीव ने पुलिस को यह भी बताया कि उस की बीवी मंजू भी उस के साथ थी. उस के बाद उन्होंने उसे काफी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस का कहीं पता न चला.
उन्होंने सोचा कि उसे शायद कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. जिस के कारण वह पीछे आतेआते कहीं बैठ गया होगा. उन्हें उम्मीद थी कि वह खुद ही घर चला आएगा. लेकिन हम सब देर रात तक उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आया. उस के बाद उसे सुबह में भी सब जगह पर तलाशा लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका.
इस मामले की पूछताछ की हर कड़ी में एक नई जानकारी जुड़ रही थी. जिस से पुलिस को लगने लगा था कि सुखपाल इस दुनिया में नहीं रहा. राजीव कुमार की बातों से पुलिस को सारी कहानी समझ आ गई थी. पुलिस यह भी जानती थी कि यह मामला इतनी जल्दी खुलने वाला नहीं है.
तभी थानाप्रभारी ने अपनी चाल चलते हुए राजीव कुमार से प्रश्न किया, ‘‘लेकिन उस की बीवी मंजू का कहना है कि तुम ने उस की हत्या कर डाली है.’’
यह सुनते ही राजीव बोला, ‘‘वो सरासर झूठ बोल रही है, सर. सुखपाल की हत्या की पूरी योजना तो उसी की थी. इस में वह खुद शामिल थी.’’
इस के बाद पुलिस ने सुखपाल की पत्नी मंजू को भी हिरासत में ले लिया.
इस केस के खुलते ही पुलिस ने मंजू और उस के ननदोई राजीव कुमार की निशानदेही पर कुएं से सुखपाल का शव बरामद कर लिया. शव मिलने के बाद पुलिस ने काररवाई कर के उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस की डैडबौडी सुखपाल के परिवार वालों को सौंप दी. पुलिस पूछताछ में राजीव, मंजू और उस के प्रेमी राजकुमार के जुर्म की जो दास्तान उभर कर सामने आई. वह इस प्रकार थी –
उत्तर प्रदेश के मुरादाबादरामपुर हाईवे से उत्तर दिशा में एक छोटा सा गांव है हरसैनपुर. इस गांव में ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. आज भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही आधुनिक सुखसुविधा प्रदान करने के बाद भी यह गांव पिछड़ा हुआ सा लगता है. यहां के घरों में आज तक बाथरूम और शौचालय तक नहीं है. इसी गांव में रहता था, रतन सिंह का परिवार.
रतन सिंह के पास गांव में लगभग 8 बीघा खेती की जमीन थी, जिस के सहारे उस के परिवार का पालनपोषण होता था. रतन सिंह का सीमित परिवार था. उस के घर में उस की बीवी और 3 बच्चों को मिला कर 5 सदस्य थे. 3 बच्चों में सब से बड़ी बेटी ऊषा थी. उस के बाद राजबाला तथा सुखपाल थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी था. सुखपाल ने बड़े होते ही घर की जिम्मेदारी संभाल ली. सुखपाल राजगीर का काम करता था.
अब से लगभग 6 साल पहले उस का विवाह गांव कनौबी निवासी राजेंद्र की बेटी मंजू के साथ हो गया था. शुरू से मंजू का सपना किसी शहरी युवक से शादी करने का था. जो सुखपाल के साथ शादी होने के बाद एक छोटे से घर में आ कर बिखर गया था. मंजू सुखपाल को कभी भी अपने दिल में जगह नहीं दे पाई थी. दूसरी तरफ सुखपाल उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था.
मांबाप की मौत के बाद सुखपाल अकेला पड़ गया था. उस के घरेलू खर्च भी बढ़ गए थे. लेकिन खेती से सीमित आय ही होती थी. जिस के कारण उसे गांव में राजगीरी करनी पड़ती थी. वह सारे दिन काम करने के बाद शाम को थकाहारा घर लौटता और रात का खाना खा कर जल्दी सो जाता. यह बात मंजू को बिलकुल पसंद नहीं थी.
उस के बावजूद भी वह सुखपाल से तरहतरह की फरमाइशें पूरी कराती रहती थी, जिन्हें वह किसी न किसी तरह से पूरी करता था. लेकिन मंजू को इतने से भी तसल्ली नहीं होती थी. वह जानती थी कि सुखपाल उसे बहुत प्यार करता है. इसी का लाभ उठाते हुए वह उस पर हावी होती गई.
इसी बीच मंजू ने एक बेटे को जन्म दिया. जिस का नाम अभिमन्यु रखा गया. लेकिन प्यार से सब उसे अभि कह कर पुकारते थे. सुखपाल को उम्मीद थी कि बच्चा हो जाने के बाद पत्नी के व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, लेकिन उस का दिमाग और भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था.
घर में तकरार बढ़ी तो सुखपाल शराब का आदी हो गया. एक बच्चे की मां बन जाने के बाद मंजू की खूबसूरती में चार चांद लग गए थे. इअ वह और भी ज्यादा सजसंवर कर रहने लगी थी.
राजीव का गांव सुखपाल के गांव के पास ही था. वह वक्तबेवक्त ससुराल आताजाता रहता था. मंजू के बच्चा होने के समय राजीव काफी समय तक अपनी बीवी ऊषा के साथ वहीं पर रहा था.
सुखपाल दिन निकलते ही अपने काम पर चला जाता, लेकिन राजीव दामाद होने के नाते घर पर ही पड़ा रहता था. मौके का फायदा उठाते हुए वह मंजू के साथ लच्छेदार बातें करने लगा. जो उस के मन को भी भाने लगी थीं.
राजीव मंजू से कभीकभी मजाक भी कर लेता था. मंजू उस की बात का बुरा नहीं मानती थी. उसी दौरान राजीव मंजू के सौंदर्य को देख विचलित हो उठा. यही हाल मंजू का भी था. उस के दिल पर ननदोई हावी हुआ तो उस की खुशी चेहरे पर नजर आने लगी. वैसे भी वह अपने पति के साथ अनचाहा रिश्ता रख रही थी.
मंजू पहले से ही खुले गले का कुरता पहनती थी, जिस में से उस के वक्ष झांकते दिखाई देते थे. मंजू जब कभी घर के कामकाज करती तो वह बिना चुन्नी गले में डाले काम पर लग जाती थी. राजीव घर में अकेला होता तो उस की निगाहें उसी के गले पर टिकी रहतीं. मंजू इतनी अंजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. चूंकि वह भी राजीव की भावनाओं से खेलना चाह रही थी, इसलिए हवा देती रही.
एक दिन मंजू घर में अकेली थी. सुखपाल किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस का बेटा अभि सोया था. घर में बाथरूम न होने के कारण मंजू घर का दरवाजा बंद कर अंदर चारपाई खड़ी कर नहाने लगी. उस वक्त राजीव घर में मौजूद था. मंजू को नहाते देख उस का दिल बेकाबू हो उठा.
मंजू का वह सैक्सी रूप देख राजीव मदहोश सा हो गया. उस के बाद मंजू पेटीकोट और ब्लाज में ही कमरे के अंदर आ गई. राजीव मंजू के आमंत्रण को समझ चुका था. मौका पाते ही राजीव ने मंजू को अपनी आगोश में समेट लिया. राजीव की बाहों में आ कर मंजू का शरीर ढीला पड़ गया. वह रोमांचित हो कर राजीव के शरीर से चिपक गई.
राजीव ने मंजू को कमरे में पड़ी चारपाई पर लिटा दिया और अपने होंठ उस के होठों पर रख दिए. मंजू जिस प्यार के लिए सालों से छटपटा रही थी, राजीव ने उसे पल भर में दे दिया था.
इस के बाद मंजू दूसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. इस बार उस ने एक बच्ची को जन्म दिया था. दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला अनवरत चलता रहा. अपनी पत्नी को भुला कर राजीव ससुराल में पड़ा रहता था. सुखपाल काम में व्यस्त रहता था. इस के बावजूद उसे अपनी बीवी के कारनामों की जानकारी हो गई थी.
सुखपाल ने मंजू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी सुनने को तैयार नहीं थी. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों में आए दिन मनमुटाव रहने लगा.
मनमुटाव के चलते मंजू एक दिन सुखपाल से झगड़ा कर के मुरादाबाद शहर के गोविंद नगर में रहने वाली अपनी मौसी के घर चली गई. उस के बाद वह काफी समय तक मौसी के घर ही रही.
इसी दौरान उस की मुलाकात राजकुमार से हुई. राजकुमार उस की मौसी का पड़ोसी था. उस का मौसी के घर पर पहले से ही आनाजाना था. राजकुमार ने मंजू को देखा तो वह उस की खूबसूरती पर मोहित हो गया. एक दिन उस की मौसी ने राजकुमार को उस के पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी दास्तान सुना दी.
राजकुमार के हाथों में मंजू की कमजोर नस आई, तो वह उस का फायदा उठाने की सोचने लगा. एक दिन राजकुमार ने मंजू के सामने सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि उसे कभी भी कोई मदद चाहिए तो वह हर समय तैयार है. राजकुमार भी सुंदरसजीला युवक था. वह भी मंजू के दिल को भाने लगा था.
जब मंजू को अपनी मौसी के घर गए हुए काफी समय हो गया तो सुखपाल उस से मिलने के लिए गोविंद नगर चला गया. काफी दिन बाद सुखपाल के आने से नाराज मंजू उस से सीधे मुंह नहीं बोली.
दोनों के मनमुटाव को देख मंजू की मौसी ने दोनों को आमनेसामने बिठा कर बात की, ताकि उन की समस्या का समाधान हो सके. लेकिन मंजू ने उस के साथ गांव जाने से साफ मना कर दिया.
मंजू ने सुखपाल को सलाह दी कि अगर वह उसे साथ रखना चाहता है तो गांव छोड़ कर मुरादाबाद आ कर बस जाए. मंजू की बात सुनते ही सुखपाल का पारा हाई हो गया. लेकिन वह अपने बच्चों को बहुत ही प्यार करता था. इसलिए कुछ नहीं बोला. उसी दौरान राजकुमार भी वहां आ गया. राजकुमार ने भी मंजू की हां में हां मिलाते हुए सुखपाल को मुरादाबाद आने की सलाह दे डाली.
राजकुमार ने सुखपाल को यह बात भी बता दी थी कि उस की मौसी के पास एक प्लौट बिक रहा है. अगर वह चाहे तो उसे खरीद कर वहां मकान बना कर रह सकता है. राजकुमार जानता था कि सुखपाल राजगीरी का काम जानता है. उस ने सुखपाल को बताया कि गांव में राजगीरी में काफी कम पैसा मिलता है. अगर शहर में काम करेगा तो अच्छी आमदनी होगी.
अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए सुखपाल का मन बदल गया. बीवी की चाहत और बच्चों के प्यार को देखते हुए उस ने गांव जाते ही अपने खेत की 6 बीघा जमीन बेच दी. उस ने राजकुमार के घर के पास ही गोविंद नगर में 12 लाख रुपए का बनाबनाया मकान खरीद लिया. फिर वह गांव छोड़ कर बीवीबच्चों के साथ मुरादाबाद के गोविंद नगर में रहने लगा था.
सुखपाल के हाथ में जो हुनर था, वह उस के सहारे कहीं भी पैसा कमा सकता था. मुरादाबाद जाने के बाद वह वहीं पर राजगिरि का काम करने लगा. सुखपाल सुबह काम पर निकल जाता और देर रात तक घर लौटता था. राजकुमार ने मंजू के साथ मौज मस्ती करने के लिए जो जाल फैलाया था, वह उस में कामयाब हो गया था. सुखपाल की गैरमौजूदगी में वह मंजू के पास जाने लगा.
मंजू यह तो पहले ही जानती थी कि उस का पति उस की देह को पढ़ने में पूरी तरह नाकाबिल है. गांव में रहते हुए उस ने अपने शरीर का सुख अपने ननदोई के साथ भोगा था. शहर आ कर उस की मुलाकात राजकुमार से हुई तो उस ने उस के साथ भी अवैध संबंध बना लिए. राजकुमार से अवैध संबंध बनने के बाद वह दुनियादारी को भूल गई.
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राजकुमार चालाक युवक था. उस ने अपनी चालाकी से मंजू को फंसा कर उस की गांव की जमीन बिकवा कर मकान भी खरीदवा दिया था. उस का अगला कदम सुखपाल को अपने रास्ते से हटा कर मंजू को पूरी तरह से अपने कब्जे में करना था. अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए उस ने सुखपाल और मंजू के बीच मतभेद बढ़ाने का काम किया.
राजकुमार ने मंजू को चढ़ा कर सुखपाल के नाम की बाकी जमीन बेचने के लिए उस पर दबाव बनाने को कहा. जिसे सुन कर सुखपाल बिगड़ गया. इसे ले कर मियांबीवी के बीच काफी समय तक मनमुटाव रहा. सुखपाल पत्नी के चरित्र को पूरी तरह से समझ चुका था. लेकिन बच्चों की वजह से वह उस से कुछ नहीं कहता था.
एक दिन सुखपाल सुबहसुबह काम के लिए घर से निकला. लेकिन काम नहीं मिला तो वह जल्दी घर लौट आया. उस वक्त मंजू और राजकुमार दोनों एक ही चारपाई पर पड़े हुए थे.
घर पर राजकुमार को देख कर सुखपाल का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उसे आया देख राजकुमार चुपचाप घर से निकल गया. तब उस ने मंजू को काफी खरीखोटी सुनाई. उस दिन पहली बार सुखपाल को शहर में मकान खरीदने का मतलब समझ आया था.
अपनी बीवी की हकीकत सामने आते ही सुखपाल ने गोविंद नगर, मुरादाबाद का मकान बेचने की बात चलाई. यह बात जब मंजू को पता चली तो उस ने राजकुमार के साथ मिल कर उसे काफी मारापीटा. बीवी के इस व्यवहार से तंग आ कर सुखपाल अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने गांव आ गया.
बच्चों के चले जाने के बाद मंजू अकेली पड़ गई. वह बच्चों से मिलने के लिए परेशान रहने लगी. लेकिन बच्चों को वापस लाने का उसे कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था. गांव से उस की बेटी को उस का मामा अपने साथ अपने गांव ले गया. लेकिन उस का बेटा अभि सुखपाल के पास ही था.
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जबसे सोशल मीडिया का आगमन हुआ है ऑनलाइन ठगी के नये नये तरीके भी इजाद हो चलें है. इनमें एक मामला और जुड़ गया है. आप सतर्क हो सकते हैं .
दरअसल, बड़ी होटलों के नाम पर फेसबुक में अकाउंट खोल कर लोगों को आकर्षित करते हुए दाना चुगाने के समान खेल शुरू हो चुका है.अनेक लोग इसमें फंसकर अपने गाढ़ी कमाई के पैसे लूटा चुके हैं.
मला छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का है. जहां यह ठगी का खेल शुरू हुआ और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस विवेचना जारी है. ठग इतने दु:साहसी, चतुर हैं कि पुलिस को धता बताते हुए अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. ऐसे में अब यह और आवश्यक हो गया है कि आप सोशल मीडिया का उपयोग करते समय किसी भी लालच के फंदे में न फंसे.
दरअसल सीधा सरल तरीका अपनाते हुए छत्तीसगढ़ के रायपुर में ठगों ने नामचीन होटलों के नाम का उपयोग करते हुए सोशल मीडिया में लोकलुभावन विज्ञापन जारी कर दिए. फंदे में फंसते ही देखते ही देखते हैं लोग अपने बैंक अकाउंट खाली होने पर ठगा महसूस करने लगे और मामला अंततः साइबर क्राइम के पास पहुंच चुका है.
ऑनलाइन ठगी का नया दांव
राजधानी रायपुर के पुलिस अधिकारी बताते हैं कि यह देश का अपने आप में पहला हथकंडा है. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके सीधे लोगों के बैंक अकाउंट से पैसे गायब किए जा रहे हैं.
राजधानी रायपुर में होम डिलीवरी फूड में एक के साथ दो फ्री का दिया ऑफर फेसबुक में विज्ञापन देकर किया गया इसमें एडवांस पेमेंट करते ही खाते से सारे रुपए निकाल लिए गए. राजधानी रायपुर में कुछ दिन पहले होम डिलीवरी फूड में एक के साथ दो फ्री का ऑफर विज्ञापन सोशल मीडिया में खूब चला. लोगों ने जब फोन किए तो उनसे कहा गया आपको एडवांस पेमेंट करना होगा और जैसे ही पैसे का भुगतान किया की खाते से सारे के सारे रुपए मानो छूमंतर हो गए. पुलिस जानकारी के अनुसार थाना मौदहापारा क्षेत्र में एक स्पोर्ट्स टीचर के साथ ठगी हुई उसके बैंक खाते में जमा सारे रुपए किसी जादू की तरह गोल हो गए जब उसे यह मैसेज आया तो वह भागा भागा पुलिस के पास पहुंचा, रपट लिखाई और अपने खाते को बंद कराने बैंक में जानकारी दी. इस तरह कुल मिलाकर फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया को ठगों ने अपना माध्यम बनाया.
इस ठगी के मामले में हमारे संवाददाता द्वारा खोजबीन करने पर यह तथ्य सामने आए- नयापारा निवासी फारूख अहमद खान स्पोर्ट्स टीचर हैं। उनकी बेटी ने सोशल मीडिया पर महात्मा गांधी रोड स्थित एक नामी रेस्टारेंट का विज्ञापन देखा. उसमें एक थाली के साथ दो थाली फ्री भोजन का ऑफर था. यह विज्ञापन देखकर वह खुश हो गई और उसमें दिए गए नंबर पर कॉल किया तो उधर से एडवांस पेमेंट करने के लिए मधुर स्वर में निवेदन करते हुए कहा गया.
ठगों द्वारा एडवांस पेमेंट के लिए लिंक दी गई. इस लिंक पर क्लिक कर उन्होंने फोन पे के जरिए पेमेंट कर दी गई.इसके बाद बिना ओटीपी डाले उनके खाते से 12291 रुपए निकल गए. जब थोड़ी देर बाद जब बैंक का उनके मोबाइल पर मैसेज आया तो उन्हें इसका पता चला. विज्ञापन में जो नंबर दिया गया, वो भी बंद हो चुका था. प्रारंभ में यह लगा कि ऐसा गलती से हो गया होगा होटल नामचीन है, पैसे कहां जाएंगे? मगर पैसा वापसी के लिए ईमेल किया, लेकिन रुपए नहीं मिले. तब जाकर खोजबीन करने पर धीरे-धीरे यह तथ्य सामने आ गया कि उनके साथ ठगी की गई है. सबसे बड़ी बात यह है कि उक्त नामचीन होटल में फोन आया कि अगर आप एक लाख दोगे तो आपकी होटल का विज्ञापन हटा दिया जाएगा, अब होटल वाले ने भी थाने की शरण ली है.
चीन की कंपनी के नाम पर ठगी
राजधानी रायपुर के डीडी नगर क्षेत्र में एप्पल कंपनी का मोबाइल खरीदने एक युवक ने ऑनलाइन ऑर्डर दिया फिर शुरू हो गया ई-मेल, फिर वॉट्सऐप पर मैसेज भेज कस्टम व जीएसटी के नाम पर लिए गए रुपए और उसे ठगी का शिकार बना दिया गया.
कोरोना संक्रमण के बीच छत्तीसगढ़ में ऑनलाइन ठगी के मामले भी बढ़े हैं. रायपुर में चीन की कंपनी “अलीबाबा डॉट कॉम” के नाम पर 1.58 लाख रुपए की ठगी युवक से हुई. पुलिस बताती है कि ऑनलाइन एप्पल का मोबाइल मंगवाने के लिए ऑर्डर किया गया था.रुपए ट्रांसफर हो गए, लेकिन मोबाइल नहीं आया तो डीडी नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है.
डीडी नगर सेक्टर-2 निवासी प्रथम जैन ने अलीबाबा डॉट कॉम पर दिए मोबाइल नंबर पर एप्पल का मोबाइल खरीदने के लिए ऑर्डर दिया. इस पर मैसेज करने के बाद प्रथम को कंपनी से ई-मेल आया. इसमें एक मोबाइल नंबर था. दिए गए नंबर पर प्रथम ने वॉट्सऐप के माध्यम से बातचीत शुरू की.
दो मोबाइल के दाम 64173 रुपए बताए गए
इस दौरान प्रथम को दो मोबाइल का दाम 64173 रुपए बताया गया। साथ ही पेमेंट के लिए एक खाता नंबर दिया गया. इस पर प्रथम ने एसबीआई खाते से फोन पे के जरिए पैसा ट्रांसफर कर दिया. फिर नए नंबर से कॉल आया और प्रथम को पेमेंट कन्फर्म होने और मोबाइल डिलीवर करने की जानकारी दी गई.
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कस्टम चार्ज और जीएसटी के नाम पर लिए 94 हजार रुपए
दो दिन बाद फिर उसी नंबर से मैसेज आया और कस्टम चार्ज के लिए 50 हजार रुपए मांगे गए. प्रथम जैन ने फिर रुपए ट्रांसफर कर दिए. इसके बाद जीएसटी के नाम पर 44 हजार रुपए ट्रांसफर कराए गए.इतना समय बीत जाने के बाद भी जब मोबाइल नहीं आया तो उसने मोबाइल नंबरों पर संपर्क किया, लेकिन वे बंद मिले. अब पुलिस रिपोर्ट के बाद मामले की जांच कर रही है मगर यहां हम यही कहना चाहेंगे कि सोशल मीडिया और ऑनलाइन खरीदारी में धोखे की संभावना बनी रहती है अतः सावधानी सतत जरूरी है.
बात 8 जुलाई, 2020 की है. सुबह के साढे़ 7 बज गए थे. पंकज गुप्ता स्टील की 2 लीटर वाली डोलची हाथ में लटकाए दूध लेने शहरी बाजार समिति की ओर जा रहा था. वह रोजाना दूध लेने इसी समय पर जाया करता था. ऐसा नहीं था कि मोहल्ले में कोई दूधिया दूध देने नहीं आता था, लेकिन पंकज को आशंका थी कि दूधिए दूध में मिलावट करते हैं, इसलिए वह उन से दूध नहीं लेता था.
दूसरे इसी बहाने उस की मार्निंग वाक भी हो जाती थी. इसलिए वह सुबहसुबह दूध लेने पैदल ही निकल जाता था. पंकज बिजली विभाग में नौकरी करता था.
पंकज जैसे ही शहरी समिति के गेट के सामने पहुंचा, पीछे से तेजी से एक अपाचे मोटरसाइकिल उस के बगल से हो कर गुजरी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. बगल से बाइक गुजरने पर विकास हड़बड़ा गया और गिरतेगिरते बचा.
संभल कर बुदबुदाते हुए वह आगे बढ़ा. वह थोड़ी दूर ही बढ़ा होगा कि वही बाइक मुड़ कर फिर उसी की ओर आई. बाइक को आता देख पंकज यह सोच कर रुक गया कि शायद बाइक सवार युवकों की नीयत ठीक नहीं है. उन के निकल जाने के बाद ही आगे बढ़ेगा.
पंकज सोच रहा था कि बाइक निकले तो आगे बढ़े, लेकिन बाइक उस के पास आ कर रुक गई. इस से पहले कि पंकज कुछ समझ पाता, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने निशाना साध कर 2 गोलियां उस के सिर में उतार दीं और मौके से फरार हो गए.
गोली लगते ही पंकज धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. चूंकि सुबह का वक्त था, लोग अभी अपनेअपने घरों में ही थे. गोली की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग जमा हो गए. उन्होंने जमीन पर खून से लथपथ पड़े पंकज को पहचान लिया.
पंकज पटना शहर के मोहल्ले अगवानपुर में रहता था. घटनास्थल से उस का घर थोड़ी दूर पर था. भीड़ में से किसी ने वारदात की सूचना बाढ़ थाने को दे दी और पंकज के घर पर भी खबर भिजवा दी. घटना की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. पत्नी शोभा और दोनों मासूम बेटियां चीखचीख कर रोने लगी. शोभा जिस हाल में थी, मासूमों को साथ लिए उसी हाल में घटनास्थल की ओर दौड़ी.
मौके पर पहुंची तो देखा पति पंकज हाथ में बाल्टी लिए चित अवस्था में लहूलुहान पड़ा है. पुलिस के खिलाफ पति की लाश से लिपट कर रोने लगी. मां को रोते देख कर बच्चे भी बिलखबिलख कर रो रहे थे. बच्चों को रोते देख वहां खड़े लोगों का दिल पसीजने लगा.
उसी समय बाढ़ थाने के थानाप्रभारी संजीत कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्थानीय लोग जाने के बजाए वहीं डटे रहे. उन में पुलिस के खिलाफ भारी आक्रोश था. दरअसल, उसी इलाके में कुछ दिनों पहले भी 2 हत्याएं हो चुकी थीं. दोनों घटनाओं के हत्यारे अभी भी फरार थे. अब तीसरी हत्या बिजलीकर्मी पंकज की हो गई थी.
इस हत्या से स्थानीय नागरिकों में पुलिस की भूमिका को ले कर गहरा आक्रोश था. आक्रोश बढ़ने पर लोग पंकज की हत्या के विरोध में राष्ट्रीय राजमार्ग 31 को जाम कर प्रदर्शन करने लगे. नागरिकों के धरने पर बैठते ही पुलिस के हाथपांव फूल गए.
आननफानन में थानाप्रभारी संजीत कुमार ने एएसपी अंबरीश राहुल और एसएसपी उपेंद्र शर्मा को घटना की जानकारी दे दी. स्थिति तनावपूर्ण और विस्फोटक होती जा रही थी. स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने सब से पहले मृतक की लाश अपने कब्जे में ली और कागजी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए पटना मैडिकल कालेज भिजवा दी.
घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पुलिस को वहां से कारतूस के 2 खोखे मिले, जिन्हें पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर कब्जे में ले लिया. उधर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम की सूचना मिलते ही एएसपी अंबरीश राहुल मौके पर पहुंच कर प्रदर्शनकारियों को मनाने में जुट गए. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि हत्यारों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी हो.
एएसपी ने उन्हें भरोसा दिया कि अपराधी जो भी होंगे, उन की गिरफ्तारी जल्द से जल्द होगी.
एएसपी के आश्वासन पर प्रदर्शनकारियों ने जाम खोला. मृतक की पत्नी शोभा की तहरीर पर थानाप्रभारी संजीत कुमार ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस के लिए पंकज हत्याकांड चुनौती की तरह था, क्योंकि इस के पहले 2 हत्याओं का अब तक खुलासा नहीं हो सका था. हत्यारों को गिरफ्तार करने के लिए नागरिकों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.
अगले दिन कुछ सम्मानित लोग बिजली कर्मचारी पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड के खुलासे के लिए एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा से मिले और हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी ने अपने दफ्तर में आपात बैठक बुलाई.
बैठक में एएसपी अंबरीश राहुल और 4 थानों के थानाप्रभारियों एसओ (बख्तियारपुर) कमलेश प्रसाद शर्मा, एनटीपीसी एसओ अमरदीप कुमार, मोकामा एसओ राजनंदन, एसओ (बाढ़) संजीत कुमार, एएसआई राकेश कुमार रंजन, अनिरुद्ध कुमार, सिपाही अमित कुमार और शिव चंद्र शाह शामिल हुए.
एसएसपी ने शहर में हुई हत्याओं के खुलासे न होने पर नाराजगी जताई और पंकज गुप्ता के केस को खोलने के लिए उसी समय टीम बना दी. टीम का नेतृत्व उन्होंने एएसपी राहुल को सौंपा.
पुलिस टीम जांच में जुट गई. उस के लिए सब से बड़ा सवाल यह था कि पंकज की हत्या क्यों की गई? इस सवाल का जवाब मृतक की पत्नी ही दे सकती थी. पुलिस ने अपनी तफ्तीश मृतक के घर से शुरू की.
पुलिस ने शोभा से पंकज की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने पति की किसी से भी दुश्मनी होने की जानकारी से इनकार कर दिया. ऐसे में यह घटना पुलिस के लिए चुनौती बन गई.
घटना की तह तक पहुंचने के लिए पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई और मदद के लिए मुखबिरों की भी मदद ली. मृतक की काल डिटेल्स में पुलिस को ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से घटना का खुलासा हो पाता.
लेकिन 2 दिनों बाद यानी 10 जुलाई को मुखबिर ने पुलिस को जो चौंकाने वाली जानकारी दी, उसे सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. मुखबिर ने एसओ संजीत कुमार को बताया कि 9 जुलाई को शोभा ने अपने भारतीय स्टेट बैंक के एकाउंट से करीब पौने 3 लाख रुपए निकाले थे.
यह बात पुलिस को खटकी कि आखिर इतनी बड़ी रकम उस ने क्यों निकाली? पुलिस को हैरान करने वाली यह रकम ही सुराग की कड़ी बनी. एएसपी अंबरीश राहुल को शोभा पर शक हुआ कि कहीं पति की हत्या में पत्नी का ही हाथ तो नहीं है? पुलिस ने शोभा का फोन नंबर हासिल किया. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और साथ ही उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.
संजीत कुमार ने काल डिटेल्स का बारीकी से अध्ययन किया तो चौंके. उन का शक सही निकला. घटना वाली रात से सुबह घटना के बाद तक शोभा लगातार किसी से फोन पर बात करती रही थी. काल डिटेल्स से घटना की तसवीर साफ होती दिख रही थी.
जिस नंबर पर शोभा ने बात की थी, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवा ली. वह नंबर सन्नी उर्फ गोलू निवासी अगवानपुर का था. मुखबिर के जरिए पुलिस को हत्यारे की सही जानकारी मिल गई थी. पंकज की हत्या में उस की पत्नी शोभा भी शामिल थी. शोभा ने प्रेमी सन्नी को सवा 3 लाख की सुपारी दे कर पति की हत्या करवाई थी.
इस के बाद पुलिस ने हत्या की अलगअलग कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. 12 जुलाई को हत्या की कड़ी पूरी तरह जुड़ गई तो पुलिस ने शोभा और उस के प्रेमी सन्नी दोनों को अगवानपुर से गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ शुरू की. जल्द ही दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. गोलू ने पंकज की हत्या में शामिल अन्य साथियों के नाम भी बता दिए. गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 5 और आरोपियों मुकेश (मृतक का सगा साला), मनीष कुमार, मोहित कुमार उर्फ आदित्य, राजा सिंह और आयुष को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश को छोड़ बाकी सभी आरोपी अगवानपुर के ही निवासी थे.
अगले दिन 13 जुलाई, 2020 को एएसपी अंबरीश राहुल ने पुलिस लाइन में पत्रकारवार्ता बुलाई, जिस में पंकज हत्याकांड के सातों आरोपितों को पत्रकारों के सामने पेश किया. सभी आरोपियों ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया.
इस के बाद उन्होंने हत्या की पूरी कहानी पत्रकारों के सामने परोस दी. वार्ता संपन्न होने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई –
35 वर्षीय पंकज कुमार गुप्ता मूलरूप से पटना जिले के बाढ़ थाने के अगवानपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे. उस का परिवार हर तरह सुखी था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था, जहां से उसे अच्छीभली तनख्वाह मिलती थी. कुछ ऊपर से भी कमाई कर लेता था.
पंकज की पत्नी शोभा भले ही खूबसूरत नहीं थी लेकिन वह पढ़ीलिखी और सलीकेदार औरत थी. वह परिवार के अच्छेबुरे का खयाल रखती थी. पंकज और शोभा दोनों एकदूसरे की खुशियों पर पूरा ध्यान देते थे.
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लेकिन कालांतर में पता नहीं उन की खुशियों को किस की बुरी नजर लग गई, जिस ने हंसतेखेलते परिवार को महाभारत का मैदान बना दिया. कल तक जो पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी जान छिड़कते थे, वही अब एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे.
कहानी में जिस दिन से गोलू उर्फ सन्नी नाम के किरदार का प्रवेश हुआ था उसी दिन से पंकज के हंसतेखेलते घर में कलह शुरू हो गई थी. हुआ कुछ यूं था कि पंकज दिन भर ड्यूटी पर घर से बाहर रहता था. उस के 2 छोटे बच्चे थे. उन की देखभाल शोभा ही करती थी.
पंकज पैसे कमा कर पत्नी की हथेली पर रख देता था. उस के बाद घर में क्या हो रहा है, इस से उसे कोई मतलब नहीं रहता था. पति के इस रवैए से शोभा खिन्न रहती थी और दुखी भी.
बात 2 साल पहले की है. शोभा की बड़ी बेटी तान्या की तबियत ज्यादा खराब हो गई थी. उसे अस्पताल ले जा कर डाक्टर को दिखाना था. शोभा पति से कई बार कह चुकी थी कि बेटी को ले जा कर डाक्टर को दिखा दे. लेकिन पंकज नौकरी की दुहाई दे कर उस से कहता कि वही उसे ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाए.
अगवानपुर से कुछ दूरी पर एक नर्सिंगहोम था. शोभा बच्चों के इलाज के लिए यहीं आया करती थी. उस दिन भी वह बेटी को दिखाने इसी नर्सिंगहोम में आई थी. वहीं पर गोलू उर्फ सन्नी नाम का एक युवक भी अपने किसी परिचित को दिखाने आया था.
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बातोंबातों में दोनों के बीच परिचय हुआ. पता चला कि दोनों एक ही मोहल्ले अगवानपुर के रहने वाले हैं. गोलू साधारण शक्लसूरत का गबरू जवान था. लेकिन चपल और बातूनी. अपनी बातों से हर घड़ी सभी को गुदगुदाता रहता था. शोभा उस की बातें सुन कर अपनी हंसी काबू नहीं कर पा रही थी.
वह खिलखिला कर हंस पड़ती थी. शोभा की हंसी गोलू के दिल में मकाम कर गई. हर घड़ी उस की आंखों के सामने शोभा का हंसता चेहरा थिरकता रहता था. कुंवारा गोलू समझ नहीं पा रहा था उसे ये क्या गया है.
शोभा 28 साल की शादीशुदा औरत थी जबकि गोलू उस से 7 साल छोटा यानी 21 साल का नौजवान था. गोलू के दिमाग पर शोभा के अक्स की रंगीन चादर बिछी थी, जो हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. एक ही मुलाकात में गोलू को शोभा के गदराए जिस्म से प्यार हो गया था. वह उस के दीदार के लिए बेचैन रहने लगा.
शोभा गोलू की इस चाहत से अंजान थी. उसे नहीं पता था एक ही मुलाकात में गोलू उस का दीवाना बन जाएगा. उस दिन के बाद शोभा बेटी को ले कर कई बार नर्सिंगहोम गई.
इत्तफाक की बात यह रही कि शोभा जबजब बेटी को दिखाने नर्सिंगहोम पहुंचती, उसे उसे गोलू वहीं मिल जाता था. शोभा गोलू को देखती, उसे देखते ही उस के होंठों पर मीठी सी मुसकान थिरक उठती थी. गोलू भी उसे देख कर मुसकरा देता था.
धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. बाद में ये दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. एक शादीशुदा औरत के इश्क में गोलू ऐसा डूबा कि उसी का हो कर रह गया. उसे देखे बिना गोलू को चैन नहीं मिलता था.
इधर पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद शोभा फोन कर के गोलू को अपने घर बुला लेती और उस के साथ घंटों रंगरेलियां मनाती. बंद दरवाजे के अंदर शोभा और गोलू का प्यार जवां हो रहा था. जमाने की नजरों से बेखबर दोनों मोहब्बत के सागर में गोते लगा रहा थे.
वे समझते थे कि उन की मोहब्बत के बारे में कोई नहीं जानता. हर प्यार करने वाले को यही भ्रम होता है. जबकि मोहल्ले में दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे थे. फिजाओं में फैली उन के प्यार की खुशबू आखिरकार पति पंकज तक पहुंच ही गई.
पंकज को यकीन नहीं हुआ. वह तो पत्नी को बेहद प्यार जो करता था. वह सोच रहा था कि पत्नी उसे धोखा कैसे दे सकती है. किसी की बातों पर उसे यकीन नहीं हो रहा था.
लेकिन वह उन बातों को झुठला भी नहीं पा रहा था. सच सामने लाने के लिए वह पत्नी की जासूसी में जुट गया. जब भी पंकज पत्नी को फोन करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था. अब पंकज को यकीन होने लगा कि जरूर शोभा का किसी के साथ चक्कर है.
समझदारी का परिचय देते हुए एक दिन पंकज ने पत्नी को उस के अफेयर को ले कर अप्रत्यक्ष तौर से समझाया ताकि पत्नी को यह न पता चले कि उसे उस के संबंधों के बारे में पता चल चुका है. पति का बारबार उसी की ओर इशारा कर के बात करने से शोभा समझ गई कि पति को उस पर शक हो गया है.
फिर क्या था, उस दिन के बाद से शोभा संभल गई और प्रेमी गोलू को भी सावधान कर दिया कि पति को उन के संबंधों पर शक हो गया है. जब तक वह उस के शक को मिटा नहीं देती, तब तक हमारा मिलना कम होगा. हम फोन पर ही बातें करेंगे.
शोभा ने पति को विश्वास दिलाने के लिए कई कलाएं पेश कीं, लेकिन पंकज सब समझ रहा था.
उसे उस की बातों पर तनिक भी यकीन नहीं हुआ. एक दिन तो पंकज ने शोभा को फोन पर प्रेमी से बात करते रंगेहाथ पकड़ लिया. यही नहीं उस ने जब पत्नी के हाथ पर गोलू के नाम का लिखा टैटू देखा तो उस का खून खौल उठा.
कोई भी पति यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी अपने जिस्म पर किसी पराए मर्द का नाम लिखाए. उस दिन पंकज का गुस्सा पत्नी के अंगअंग पर टूटा. कई दिनों का गुस्सा पंकज ने उस पर उतार दिया. साथ ही सख्त हिदायत भी दी कि आज के बाद फिर प्रेमी से बात करने या मिलने की कोशिश की तो वह उसे जान से मार देगा.
पति से पिटी शोभा ने भी उस से कह दिया, ‘‘गोलू मेरी जान है. मैं उस से दूर रह कर जिंदा नहीं रह सकती. तुम चाहो तो मेरी जान ही क्यों न ले लो. मुझे मर जाना मंजूर है लेकिन गोलू के बिना जीना मंजूर नहीं.’’
इस के बाद इसी बात को ले कर अकसर रोजाना ही शोभा की पिटाई होने लगी. पति की रोजरोज मारपीट से शोभा ऊब गई थी.
उस ने पति नाम की बीमारी से छुटकारा पाने की योजना बनाई और प्रेमी गोलू से पति को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की बात कही.
शोभा के प्यार में अंधे गोलू ने प्रेमिका की बात मान ली और पंकज को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. इस काम के लिए गोलू ने अपने दोस्त मनीष से मदद मांगी और साजिश में शामिल कर लिया.
मनीष गोलू का साथ देने के लिए तैयार हो गया. गोलू जानता था कि मनीष का एक दोस्त है, जो भाड़े पर हत्या करता है. गोलू के कहने पर मनीष ने क्रिमिनल मोहित से संपर्क साधा और काम करने को कहा लेकिन मोहित ने यह कहते हुए हत्या की सुपारी लेने से इनकार कर दिया कि वह ये काम नहीं करता. लेकिन उस का एक दोस्त राजा सिंह है जो ये काम करता है, उन्हें उस से मिला देगा, काम हो जाएगा.
मोहित ने मनीष को राजा सिंह से मिलवा दिया. राजा ने काम के बदले एडवांस के रूप में 50 हजार रुपए मांगे. मनीष ने यह बात गोलू को बताई और गोलू ने प्रेमिका शोभा से एडवांस के 50 हजार रुपए मांगे. शोभा के पास इतनी रकम नहीं थी. उस ने अपने भाई मुकेश से पैसे मांगे तो उस ने भी हाथ खड़े कर दिए, लेकिन उस की साजिश में शामिल हो कर उस का साथ देने लगा.
शोभा ने पति की हत्या के लिए उस के बनवाए अपने सोने के झुमके 45 हजार रुपए में बेच दिए. यह रकम राजा सिंह को दे दी गई.
उस के बाद आगे की योजना तय हो गई. फिर राजा सिंह ने घटना को अंजाम देने के लिए शूटर आयुष को सुपारी दी. आयुष ने काम के बदले शोभा से 3 लाख रुपए की डिमांड की. लेकिन ये सौदा सवा 3 लाख में तय हुआ.
शोभा ने आयुष को बताया कि वह एडवांस के रूप में राजा सिंह को 50 हजार रुपए दे चुकी है. बाकी के पैसे काम होने के बाद दे देगी. शूटर आयुष को विश्वास दिलाने के लिए शोभा ने दस्तखत कर के एक ब्लैंक चैक उसे दे दिया. चैक पाने के बाद शूटर ने 8 जुलाई को घटना को अमली जामा पहना दिया.
7/8 जुलाई, 2020 की रात शोभा ने पति की हत्या के संबंध में गोलू को फोन में बातें की थीं. रोज की तरह पंकज सुबह दूध लेने स्टील की डोलची ले कर घर से निकला तो शोभा ने गोलू को फोन कर के बता दिया कि पंकज घर से निकल चुका है.
उस ने यह भी कहा कि आयुष पंकज को गोली मारे तो गोली की आवाज उसे जरूर सुनाए. गोलू ने उस से कहा ऐसा ही होगा. पंकज के घर से निकलने की बात गोलू ने शूटर आयुष को बता दी. उस समय आयुष पंकज के घर के आसपास ही मंडरा रहा था.
जैसे ही गोलू का फोन आया वह सतर्क हो गया और अपाचे मोटरसाइकिल ले कर पंकज के पीछेपीछे लग गया. आयुष बाइक पर पीछे बैठा था, जबकि राजा सिंह बाइक चला रहा था. घर से निकल कर पंकज जैसे ही शहर समिति गेट के पास पहुंचा, बाइक पर पीछे बैठे शूटर आयुष ने पंकज को लक्ष्य साध कर उस के सिर में 2 गोलियां उतार दीं.
गोली मारते समय आयुष ने अपना मोबाइल फोन औन किया हुआ था, उधर शोभा अपने फोन को कान से लगाए हुए थी. गोली की आवाज सुन कर शोभा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. इधर गोली मारने के बाद दोनों बदमाश बाइक ले कर फरार हो गए.
घटना के दूसरे दिन शोभा भाई मुकेश को ले कर भारतीय स्टेट बैंक पहुंची और बैंक से 2 लाख 80 हजार रुपए निकाल कर शूटर आयुष को दे दिए. मुखबिर के जरिए यह बात पुलिस को पता चल गई.
एएसपी अंबरीश राहुल की सूझबूझ से पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड से परदा उठ गया और घटना में शामिल सभी अपराधी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. पुलिस ने आरोपियों से हत्या में प्रयुक्त बाइक, पिस्टल और 2 जिंदा कारतूस बरामद किए.
जिस प्रेमी गोलू से शोभा शादी रचाने का ख्वाब देख रही थी, उस ने भी इस घटना के बाद उस से शादी करने से इनकार कर दिया था. शोभा न इधर की रही, न उधर की.
पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कुछ देर तक वह फूलों की क्यारी में बैठा रहा. फिर उठ कर लड़खड़ाते कदमों से लौन से निकलने लगा. उस के दिमाग पर धुंध छाई हुई थी और वह बारबार सिर झटक रहा था. थोड़ी देर के लिए वह एक पेड़ के तने से टेक लगा कर बैठ गया.
वह घंटी की आवाज थी, जो बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी. वह आंखें खोल कर आवाज की दिशा में देखने लगा. वह फायर ब्रिगेड की गाड़ी की घंटी की आवाज थी जो मोड़ घूम कर उसी सड़क पर आ चुकी थी.
विक्रम सिर झटकता हुआ संभल कर बैठ गया. कुछ देर वह फायर ब्रिगेड की आवाज सुनता रहा, फिर रेंगता हुआ झाडि़यों की ओर बढ़ने लगा. मकान के पीछे की ओर कांटों वाली झाडि़यों की बाड़ पार करते हुए उस के हाथ जख्मी हो गए. उस ने होंठ दांतों तले दबा लिया. ठीक उसी समय फायर इंजन ललिता हाउस के सामने आ कर रुका, विक्रम उठ कर लड़खड़ाते कदमों से दूर हटने लगा.
मडप हालांकि उस के लिए अजनबी था. लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उसे शरण मिल सकती थी. वह लड़खड़ाते हुए चलता रहा, उस का रुख शहर के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित के घर की ओर था.
अंधेरी गलियों में छिपतेछिपाते मोहित के घर तक पहुंचने में उसे 45 मिनट लगे. उस ने दरवाजे पर घंटी का बटन दबा दिया और दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया.
मोहित उस समय बिस्तर पर कुछ कागजात फैलाए बैठा था. उन में उस की स्वर्गवासी पत्नी का वसीयतनामा, बैंक की स्लिपें और ललिता हाउस के बीमा के कागजात थे.
वह हिसाब लगा रहा था कि मकान के बीमा के सिलसिले में उस ने अब तक कितना प्रीमियम अदा किया था. उसे बीमा कंपनी से 50 करोड़ की धनराशि में से उस के अदा किए गए प्रीमियम और बाकी खर्चे काट कर उसे क्या बचेगा.
घंटी की आवाज सुन कर मोहित चौंका. उस ने घड़ी देखी 4 बजकर 10 मिनट हुए थे. वह कागजात और पेन बिस्तर पर छोड़ कर उठा और जैसे ही बाहरी दरवाजा खोला, विक्रम को देख बुरी तरह उछल पड़ा.
‘‘माई गौड, तुम…’’ कहने के साथ मोहित ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस बीच विक्रम दरवाजे में पैर फंसा चुका था.
‘‘दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो मोहित.’’ विक्रम ने थके हुए स्वर में कहा.
‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’ मोहित उस के पैर को ठोकर मारते हुए बोला, ‘‘मेरा तुम से कोई संबंध नहीं और न ही मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं. चले जाओ यहां से. अपने साथ तुम मुझे भी फंसाओगे.’’
विक्रम ने अचानक पिस्तौल निकाल लिया और उस की पसलियों पर गड़ाते हुए गुर्राया, ‘‘मुझे अंदर आने दो.’’
पिस्तौल देख कर मोहित की आंखों में डर उभरा और उस ने दरवाजा खोल दिया. डर से उस के हाथ और टांगें कांपने लगी थीं.
‘‘इजी विक्रम,’’ वह थरथराते लहजे में बोला, ‘‘मेरी बात सुनो, भावावेश में आने की आवश्यकता नहीं है. परिस्थिति को समझने की कोशिश करो.’’
विक्रम उसे देखता हुआ अंदर दाखिल हो गया. मोहित ने दरवाजा बंद कर दिया, मगर उस का हाथ अभी तक दरवाजे के हैंडिल पर था. डर के मारे उस के हाथ कांप रहे थे.
‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो विक्रम?’’ उस की बातों में भय झलक रहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’
‘‘मुझे सिर के लिए एक रुमाल और एक चादर चाहिए,’’ विक्रम बोला.
‘‘क्यों नहीं, तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो, मैं देने को तैयार हूं.’’
‘‘इस के अलावा तुम मुझे अपनी गाड़ी में थाणे छोड़ कर आओगे,’’ विक्रम ने कहा.
मोहित को सीने में सांस रुकती हुई महसूस हुई, ‘‘देखो विक्रम…’’ वह शुष्क होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘परिस्थिति को समझने की कोशिश करो. मेरे लिए तुम्हें थाणे ले जाना संभव नहीं है. मैं यहां का इंचार्ज हूं. किसी प्रकार का रिस्क नहीं ले सकता.अगर किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो न सिर्फ सारे किएधरे पर पानी फिर जाएगा बल्कि तुम्हारे साथ मैं भी जेल…..’’
‘‘बंद करो बकवास,’’ विक्रम ने उसे पिस्तौल की नाल से टोहका दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. अगर तुम ने मना किया तो…’’
‘‘ठीक है विक्रम, ठीक है,’’ मोहित हाथ उठाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं, लेकिन इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है.’’
‘‘तकलीफ मेरी बरदाश्त से बाहर हो रही है,’’ विक्रम ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे डाक्टरी मदद की जरुरत है. इस से पहले कि मेरा दम निकल जाए, मुझे थाणे ले चलो, जल्दी करो, गाड़ी निकालो.’’
‘‘एक मिनट मैं कपड़े तो बदल लूं,’’ मोहित बोला.
‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है, मेरे लिए एकएक पल कीमती है गाड़ी निकालो.’’ विक्रम चीखा. मोहित को उस का हुक्म मानना पड़ा. विक्रम उसे दोबारा कमरे में जाने का मौका नहीं देना चाहता था.
रात के सन्नाटे में मोहित की कार थाणे की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी. विक्रम पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था. उस ने मोहित का ओवरकोट और पुराना हैट पहन रखा था. जो उस के सिर की जली हुई त्वचा पर काफी तकलीफ दे रहा था.
कार को लगने वाले झटकों से विक्रम दाएंबाएं झूल रहा था. स्टीयरिंग पर मोहित की पकड़ काफी मजबूत थी, उस की गर्दन पर पसीने की धार बह रही थी. वह बारबार कनखियों से विक्रम की ओर देख रहा था.
‘‘बारबार मेरी तरफ क्या देख रहे हो?’’ विक्रम ने एक बार उसे अपनी तरफ देखते पा कर कहा, ‘‘मैं अभी जिंदा हूं, मरा नहीं हूं. सामने देख कर गाड़ी चलाओ, कहीं गाड़ी को टकरा मत देना, इंचार्ज साहब.’’
मोहित ने कोई जवाब नहीं दिया, वह सामने सड़क पर देखने लगा. भटान सुरंग से एक किलोमीटर पहले उस ने गाड़ी रोक ली.
‘‘विक्रम प्लीज, मुझे थाणे जाने पर मजबूर मत करो. मैं किसी किस्म का खतरा मोल नहीं ले सकता.’’
‘‘मुझे जल्द से जल्द किसी अच्छे डाक्टर के पास पहुंचना है.’’ विक्रम जख्मी होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘और तुम मुझे यहां इस वीराने में छोड़ने के बजाए थाणे ले चलोगे, क्योंकि मेरी इस हालत के जिम्मेदार भी तुम हो. गाड़ी स्टार्ट करो.’’ विक्रम दर्द पर काबू पाने के लिए सीट पर आगेपीछे झूलने लगा.
‘‘गाड़ी स्टार्ट करो’’ वह गला फाड़ कर चिल्लाया.
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मोहित ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की टांगें और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे, जिस से उस के लिए गाड़ी पर कंट्रोल रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन वह जैसेतैसे गाड़ी चला रहा था.