प्यार की परिभाषा : भाग 2

एयरपोर्ट पर रितु को देखते ही अनुशा उस के गले लग गई. दोनों की आंखों में हर्ष और खुशी टपक रही थी. गले लगेलगे ही अनुशा ने पूछा, ‘‘अब तो बताओ, कौन है वह खुशनसीब, यह सब कब तय हुआ?’’

‘‘धीरज रखो, तुम्हारे जीजाजी यहीं हैं. कार लाने पार्किंग में गए हैं. तुम खुद ही देख लेना मेरी पसंद.’’ रितु ने कहा. उस समय उस की आंखों में एक अजीब चमक थी.

दोनों बातें कर रही थीं, तभी उन के पास एक होंडा सिटी कार आ कर रुकी. अंदर से ब्लैक गोगल्स लगाए एक आकर्षक युवक बाहर निकला. वह आकर्षक युवक दोनों के नजदीक आ कर काला चश्मा उतारते हुए अनुशा की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘कैसी हो मिस अनुशा, पहचाना या नहीं?’’

ये भी पढ़ें- जिस्मफरोशी के नए अड्डे

अनुशा चौंकी. उस ने हैरानी से उस युवक को ताकते हुए कहा, ‘‘हर्ष तुम..? तुम कितने बदल गए हो? बहुत हैंडसम लग रहे हो, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘थोड़ी एक्सरसाइज, जिम और थोड़ी स्किन ट्रीटमेंट, क्योंकि आजकल लोगों को किसी चीज की गुणवत्ता की अपेक्षा पैकिंग में ज्यादा रुचि होती है.’’ हर्ष ने कहा और खिलखिला कर हंसने लगा.

रितु ने भी हंसने में उस का साथ दिया. न चाहते हुए अनुशा को भी उन का साथ देना पड़ा क्योंकि वह समझ गई थी कि यह बात हर्ष ने उसी को लक्ष्य बना कर कही थी.

कार में रितु आगे की सीट पर हर्ष के साथ बैठ गई. हर्ष ने उस का सीट बेल्ट बांधा और उस का हाथ पकड़ कर ‘आई लव यू’ कहा तो रितु ने भी उन्हीं शब्दों में जवाब दिया. अनुशा को यह अच्छा नहीं लगा, क्योंकि वह उतनी दूर से उसी के लिए आई थी. वह सोच रही थी कि रितु उस के साथ बैठेगी तो दोनों बातें करेंगी. चूंकि अब उन दोनों की शादी होने जा रही थी, इसलिए अनुशा ने अपने मन को मना लिया.

कार एयरपोर्ट से निकल कर रितु के घर की ओर चल पड़ी. रास्ते में रितु ने अनुशा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘शादी तक तुझे मेरे घर पर ही रहना है. मैं ने अंकलआंटी से बात कर ली है.’’

‘‘ओके डियर रितु, जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा. मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’ इस तरह खुशीखुशी अनुशा ने रितु की मांग मान ली.

दोनों की बातचीत बंद करा कर हर्ष ने एक मैरिज हाल की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘देखो अनुशा, हमारी शादी यहीं होगी.’’

अनुशा ने उत्कंठा से खिड़की के बाहर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘वाव, कितनी सुंदर जगह है. एकदम स्वर्ग जैसी.’’

मैरिज हाल देख कर अनुशा ने तारीफ तो की पर मन में एक अजीब तरह का असमंजस महसूस किया, लेकिन वह समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों हुआ.

अनुशा के आते ही रितु शादी की तैयारी में मशगूल हो गई. अनुशा को साथ ले कर रितु शौपिंग के लिए निकल पड़ती. हर्ष भी उन के साथ होता. रितु के सभी शौपिंग बैग ले कर हर्ष उस के पीछेपीछे चलता. कुछ भी लेने से पहले रितु उस से पूछती और हर्ष सहर्ष उस की पसंद को सम्मान देता.

सभी शौपिंग करतेकरते थक जाते तो हर्ष सब के लिए नाश्तापानी की व्यवस्था करता.

हर्ष और रितु एक ही प्लेट में नाश्ता करते. तब अनुशा को कालेज के दिनों की याद आ जाती. यहां फर्क बस इतना था कि तब हर्ष की आंखों में उस के लिए प्रेम छलकता था, जबकि अब वही प्रेम रितु के लिए था.

शौपिंग कर के शाम को वापस आते तो अपने घर जाते समय हर्ष रितु का हाथ पकड़ कर उसे चूमते हुए ‘आई लव यू’ कहता. थोड़ा शरमाते हुए आंखें झुका कर रितु भी उन्हीं शब्दों को वापस करती. तब अनुशा कहती, ‘‘अरे ओ मेरे लैलामजनूं और रोमियो जूलियट, अब तुम्हारे विरह के कुछ ही दिन बचे हैं.’’

इस के बाद तीनों हंसने लगते. हंसते हुए हर्ष कार में बैठता और खुशीखुशी अपने घर चला जाता.

एक दिन सवेरेसवेरे रितु ने कहा, ‘‘अनुशा, आज जल्दी तैयार हो जाना, शादी का जोड़ा पसंद करने चलना है. मैं तुम्हारी पसंद का जोड़ा लूंगी. लहंगाचोली भी एकदम मस्त पहनूंगी. उसे भी तुम्हें ही पसंद करना है. चलो, आज ही खरीद लेते हैं, क्योंकि फिटिंग में भी तो समय लगेगा.’’

रितु के आदेश के बाद अनुशा समय से तैयार हो गई. अनुशा ने रितु के लिए एक बहुत ही सुंदर शादी का जोड़ा पसंद किया. उस के बाद उस जोड़े को खुद ओढ़ कर दुकान में लगे दर्पण में खुद को देखा तो खयालों में खो गई. तभी रितु उस के लिए एक लहंगा चोली ले कर आई, ‘‘देखो अनुशा, मैं ने तुम्हारे लिए इसे पसंद किया है. कैसा लग रही है?’’

रितु के पुकारने से अनुशा का ध्यान भंग हुआ. उस ने लहंगाचोली की ओर निहारते हुए कहा, ‘‘बहुत सुंदर है. और यह जो मैं ने तुम्हारे लिए पसंद किया है, कैसा है?’’

‘‘बहुत सुंदर है अनुशा, तुम न होती तो शौपिंग करना, मेरे लिए कितना मुश्किल होता.’’

रितु की शौपिंग में अनुशा ने काफी मदद की थी. अनुशा रितु की मदद तो पूरे मनोयोग से कर रही थी, पर सहेली की शादी में जिस तरह खुश होना चाहिए, उस तरह खुश नहीं थी. उस के मन में एक टीस सी उठती रहती थी, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है.

ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार

शादी के कुछ ही दिन बाकी रह गए थे. हर्ष कभीकभी रात को रितु के घर आ जाता और दोनों बालकनी में देर रात तक शीतल चांदनी में बैठ कर बातें करते. अनुशा बिस्तर पर रितु का इंतजार करते हुए करवटें बदलती रहती, साथ ही किसी तरह मन को समझाती रहती.

13 फरवरी की शाम को रितु ने अचानक कहा, ‘‘अरे अनुशा, मैं ने तुम्हें अपनी शादी का कार्ड तो दिखाया ही नहीं. देखो, यह हर्ष की शादी का कार्ड, जिसे मैं ने पसंद किया है और यह देखो मेरी शादी का कार्ड, जिसे हर्ष ने पसंद किया है.’’

अनुशा दोनों कार्ड हाथ में ले कर देखने लगी. एक कार्ड पर लिखा था—डा. हर्ष वेड्स डा. रितु और दूसरे पर लिखा था डा. रितु वेड्स डा. हर्ष. अनुशा ने डा. हर्ष के नाम पर हाथ फेरा. उस दिन अनुशा को अपने मन में होने वाली टीस का पता चल गया था. रितु के प्रति हर्ष का अनहद प्यार अब उस से देखा नहीं जा रहा था, क्योंकि ऐसा प्यार उस ने अब तक के जीवन में देखा नहीं था.

अब शायद उसे अपनी उस बात पर अफसोस हो रहा था, जो उस दिन हर्ष से कही थी. अगर उस ने हर्ष का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो आज उस कार्ड में हर्ष के साथ रितु की जगह उस का नाम होता.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्यार की परिभाषा : भाग 1

एमबीबीएस की पढ़ाई का पहला साल. प्रवेश प्रक्रिया पूरी होते ही हौस्टल में रहने आए सभी छात्र अपनी नई जीवनशैली के अनुकूल ढलने की कोशिश कर रहे थे. सभी के मन में नए साथियों से मिलने का आनंद था, साथ ही घर से दूर आ कर घर की याद भी सता रही थी.

सभी स्टूडेंट घर और हौस्टल में संतुलन साधने का प्रयास कर रहे थे. इसी समिश्रित लगाव को मन में छिपाए हौस्टल से कालेज जा रहे गेट के पास तेजी से चली आ रही एक लड़की हर्ष से टकरा गई.

उस लड़की ने झिझकते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं जरा जल्दी में थी. मेरा एडमिशन आज ही हुआ है. क्या आप बता देंगे कि एमबीबीएस फर्स्ट ईयर का लेक्चर हाल कहां है?’’

ये भी पढ़ें- शादी से पहले दूल्हे का खेल

‘‘इट्स ओके. सेकेंड फ्लोर लेक्चर हाल नंबर 705.’’ हर्ष ने जवाब दिया.

‘‘थैंक्स.’’ कह कर लड़की पलभर में गायब हो गई. जैसेजैसे प्रवेश प्रक्रिया का काम पूरा हो रहा था, वैसेवैसे कालेज में नए चेहरे आते जा रहे थे. उस लड़की के कोमल मुलायम कंधे का स्पर्श और मधुर स्वर में हुआ संवाद हर्ष के हृदय को गति दे रहा था.

लेक्चर हाल में दाखिल होते ही हर्ष की निगाहें स्टूडेंट्स के बीच उसी चेहरे को खोज रही थीं. आखिर पहली ही लाइन में वह चेहरा दिखाई दे गया. उस पर नजर पड़ते ही उस के हृदय की गति तेज हो गई. उस दिन के बाद हर्ष रोजाना उस चेहरे को निहारता रहता और मन ही मन तेज गति से धड़कते दिल की धड़कन को काबू करने की कोशिश करता रहता. इस के पहले उस ने किसी के लिए इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

हर्ष किसी भी तरह उस लड़की से बात करना चाहता था. उस की इस चाहत को पूरा करने में मदद की रितु ने. रितु और हर्ष एक शहर के रहने वाले तो थे ही, एक ही कालेज में साथ पढ़े थे. हर्ष ने रितु को पूरी बात बताई तो उस ने खुश हो कर कहा, ‘‘अनुशा मेरी बेस्ट फ्रैंड है. मैं उस से तुम्हारी बात तो करा दूंगी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘इस के बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘इस के लिए तुम जो कहो, मैं करने को तैयार हूं.’’ हर्ष ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरी एनाटौमी का जर्नल लिखना होगा. इस के अलावा कैंटीन में रोज एक आइसक्रीम खिलानी पड़ेगी.’’

‘‘ओके डन.’’ हर्ष के हिसाब से सौदा बहुत सस्ते में पट गया था.

और रितु ने कैंटीन में हर्ष की मुलाकात अनुशा से करा दी, ‘‘इट इज नाइस टू मीट यू अगेन.’’ कहते हुए हर्ष की आंखों में अपार खुशी छलक रही थी.

‘‘हम दोनों अपने कालेज के पहले दिन मिले थे.’’ अनुशा ने जवाब दिया.

पता चला अनुशा भी उसी शहर की रहने वाली थी, जिस शहर के वे दोनों थे. थोड़ी बातचीत उस के बाद आइसक्रीम पार्टी कर के तीनों हौस्टल के लिए निकल गए.

हर्ष अपने हौस्टल के कमरे की ओर जा तो रहा था, लेकिन उस के मन में अनुशा ही बसी थी. बस, इसी तरह मुलाकातें बढ़ती गईं. कभी कैंटीन में हर्ष और अनुशा के साथ रितु भी होती तो कभी सिर्फ हर्ष और अनुशा ही होते.

हर्ष का मन अनुशा के साथ उत्कट प्रणय संबंध में बंध गया था, पर यह प्रणय एकतरफा था. सौदे के अनुसार हर्ष रितु का काम तो करता ही, अनुशा के भी उसे कई काम करने होते थे. कैंटीन में अनुशा और रितु के लिए नाश्ता और कौफी वही लाता था. पर वह चाह कर भी वह दिल की बात अनुशा से नहीं कह सका.

इसी तरह 3 साल बीत गए. चौथे साल के पहले सेमेस्टर की भी परीक्षा हो गई थी. सभी स्टूडेंट्स फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे. फाइनल एग्जाम अप्रैल-मई में होने थे. इसी बीच फरवरी का महीना आ गया.

प्रेम करने वालों के लिए इस महीने की 14 तारीख महत्त्वपूर्ण होती है. जिन के वैलेंटाइन होते हैं, वे अपनेअपने वैलेंटाइन को गुलाब का फूल और उपहार देते हैं. यानी एक तरह से प्रेम का इजहार करते हैं.

हर्ष ने अनुशा से अपने प्यार का इजहार करने के लिए इसी दिन को चुना, क्योंकि यह उस के लिए अंतिम चांस था. अगर इस बार वह चूक जाता तो फिर जल्दी मौका नहीं मिलता. क्योंकि एग्जाम के दौरान ऐसी बात नहीं की जा सकती थी. एग्जाम खत्म होते ही सब को अपनेअपने घर चले जाना था. हर्ष को पूरी उम्मीद थी कि अनुशा उस के प्यार को अस्वीकार नहीं करेगी.

आखिर 14 फरवरी यानी वैलेंटाइंस डे को कैंटीन में हर्ष ने अनुशा को गुलाब का फूल दे कर सहज रूप से हैप्पी वैलेंटाइंस डे कहा और अपने दिल की बात उस के सामने रखी, ‘‘अनुशा, मैं ने एक सपना देखा है कि शहर की पौश कालोनी में नदी के किनारे एक फ्लैट है. उस फ्लैट की गैलरी में तुम खड़ी हो और मैं शाम को तुम्हारे लिए कौफी बना कर लाता हूं. क्या तुम मुझे ऐसा मौका दोगी कि मैं तुम्हारे लिए रोज कौफी बनाऊं?’’

‘‘मतलब?’’ अनुशा की भौंहें तन गईं.

‘‘आई लव यू अनुशा. कालेज के पहले दिन ही तुम्हें देख कर मेरा दिल धड़कने लगा था. और अब यह हमेशाहमेशा के लिए सिर्फ तुम्हारी खातिर धड़कना चाहता है. तुम्हारे लिए इस में अनहद प्रेम है और सदा इसी तरह अनहद रहेगा.’’ कहते हुए हर्ष ने प्रेमभरी नजरों से अनुशा को देखा और उस के प्रत्युत्तर की राह तकने लगा.

ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार

‘‘हर्ष, मैं जो कहने जा रही हूं, तुम उस का बुरा मत मानना. मैं ने कभी भी तुम्हें एक फ्रैंड से ज्यादा नहीं माना. जीवनसाथी को ले कर मेरे मन में बड़ी अपेक्षाएं हैं, जिस में तुम्हारा साधारण और सामान्य रूप फिट नहीं बैठता. मुझे अपनी सुंदरता पर अभिमान तो नहीं है पर चाहती हूं कि मेरा जोड़ीदार ऐसा हो, जिस के साथ मैं खड़ी होऊं तो लोग कहें कितनी सुंदर जोड़ी है.’’ अनुशा ने अपनी बात स्पष्ट कर दी.

अनुशा के इन शब्दों ने हर्ष के दिल की गति मंद कर दी थी. अनुशा संभवत: उस के प्रणय की परिभाषा नहीं समझ सकी थी. हर्ष को आघात तो लगा, पर वह दुखी होने का समय नहीं था. जिस के लिए वह अपना घरपरिवार छोड़ कर वहां आया था, वह काम जरूरी था. उसी दिन से हर्ष अपनी पढ़ाई में लग गया और उस ने पूरे मन से परीक्षा दी.

परीक्षा दे कर अनुशा अपने मामा के यहां चली गई, क्योंकि उन का अपना नर्सिंगहोम था. रितु और हर्ष अपने शहर लौट गए. क्योंकि उन के घर वालों की उन्हीं के शहर में जमीजमाई प्रैक्टिस थी.

सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए. एक दिन अचानक रितु ने अनुशा को फोन किया, ‘‘हैलो अनुशा, कैसी हो?’’

‘‘हाय वैनवी, बहुत मजे में तो नहीं हूं, फिर भी चल रहा है. बस, वही रूटीन क्लिनिक वर्क. तुम बताओ, आज सवेरेसवेरे कैसे याद कर लिया. कोई गुड न्यूज है क्या? क्योंकि तुम्हारी बातों में ही खुशी झलक रही है.’’

‘‘बहुत होशियार हो गई हो दिल्ली जा कर. तुम्हें तो बातों से सब पता चल जाता है. सुनो, 16 फरवरी को मेरी शादी है. तुम्हें आज ही यहां आना है. अभी मेरी सारी की सारी शौपिंग बाकी है. तुम्हारे आने के बाद ही शौपिंग शुरू करूंगी.’’

‘‘वाव दैट्स ग्रेट न्यूज. कौन है भाई वह भाग्यशाली, जो मेरी रितु को ले जा रहा है?’’ अनुशा के मन में भी खुशी भर गई थी.

ये भी पढ़ें- जिस्मफरोशी के नए अड्डे

‘‘तुम आ जाओ बस, सब बताऊंगी. तुम्हें लेने मैं एयरपोर्ट पर आऊंगी.’’ वर्षों बाद अनुशा से मिल कर सब कुछ बताने की उत्कंठा और खुशी रितु के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्यार की परिभाषा

शादी से पहले दूल्हे का खेल

शादी से पहले दूल्हे का खेल : भाग 3

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं.

गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था.

भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी. उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था.

ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार

हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी.

हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे.

युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी.

युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है.

हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई.

चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया.

किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली.

हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी.

युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी.

उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

ये भी पढ़ें- जिस्मफरोशी के नए अड्डे

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी.

अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी.

9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा. हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया.

इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डडिं्रक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई.

कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया.  चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया.

लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया.

इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

ये भी पढ़ें- विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया. द्य

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शादी से पहले दूल्हे का खेल : भाग 1

दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था.

इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी.

सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की.

लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे.

गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं.

अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी. गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया.

11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई. फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई.

गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे.

गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया.

इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

ये भी पढ़ें- जिस्मफरोशी के नए अड्डे

थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया.

13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं.

वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए.

सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए.

ये भी पढ़ें- विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

शादी से पहले दूल्हे का खेल : भाग 2

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए.

पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना.

ये भी पढ़ें- विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी.

वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी.

गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है.

हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची. कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी.

इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे.

पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए.

युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी.

पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई.

ये भी पढ़ें- जिस्मफरोशी के नए अड्डे

रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई.

इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था.

पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी.

अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था.

युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी.

युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी. सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया.

सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था. हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी.

दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया.

चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

विकास दुबे : भाग 3- नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

यूपी के कई जिलों में विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले चल रहे थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था. लेकिन सामने होने पर भी उसे कोई नहीं पकड़ता था.

कानपुर नगर से ले कर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम हो चुकी थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनाव के वक्त नेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना उस का पेशा बन गया था. विकास दुबे के पास जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, ठेकेदारी और दूसरे कामधंधों से इतना पैसा एकत्र हो गया था कि उस ने एक ला कालेज के साथ कई शिक्षण संस्थाएं खोल ली थीं.

बिकरू, शिवली, चौबेपुर, शिवराजपुर और बिल्हौर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र हैं. यहां के युवा ब्राह्मण लड़के विकास दुबे को अपना आदर्श मानते थे. गर्म दिमाग के कुछ लड़के अवैध हथियार ले कर उस की सेना बन कर साथ रहने लगे थे. आपराधिक गतिविधियों से ले कर लोगों को डरानेधमकाने में विकास इसी सेना का इस्तेमाल करता था.

अपने गांव में विकास दुबे ने एनकाउंटर के डर से पुलिस पर हमला कर के 8 जवानों को शहीद तो कर दिया लेकिन वह ये भूल गया कि पुलिस की वर्दी और खादी की छत्रछाया ने भले ही उसे संरक्षण दिया था, लेकिन जब कोई अपराधी खुद को सिस्टम से बड़ा मानने की भूल करता है तो उस का अंजाम मौत ही होती है.

बिकरू गांव में पुलिस पर हमले के बाद थाना चौबेपुर में 3 जुलाई को ही धारा 147/148/149/302/307/394/120बी भादंवि व 7 सीएलए एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. साथ ही विकास दुबे के साथ उस के गैंग का खात्मा करने के लिए लंबीचौड़ी टीम बनाई गई थी. इस टीम को जल्द से जल्द औपरेशन विकास दुबे को अंजाम तक पहुंचाने के आदेश दिए गए.

पुलिस की कई टीमों ने इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के सहारे काम शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पुलिस ने अगले 2 दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 3 दिन के भीतर उसे बढ़ा कर 5 लाख का इनामी बना दिया.

विकास दुबे के गांव बिकरू में बने किलेनुमा घर को बुलडोजर चला कर तहसनहस कर दिया गया था. गांव में विकास गैंग के दूसरे सदस्यों के घरों पर भी बुलडोजर चले. साथ ही विकास के गांव तथा लखनऊ स्थित घर में खड़ी कारों को बुलडोजर से कुचल दिया गया.

पुलिस की छापेमारी में सब से पहले विकास के साथियों की गिरफ्तारियां और मुठभेड़ में मारे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. विकास के मामा प्रेम प्रकाश और भतीजे अतुल दुबे को उसी दिन मार गिराने के बाद एसटीएफ ने सब से पहले कानपुर से विकास के एक खास गुर्गे दयाशंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार किया.

पुलिस अभियान

उसी से मिली सूचना के बाद एसटीएफ ने 5 जुलाई को कल्लू को गिरफ्तार किया, जिस ने एक तहखाने और सुरंग में छिपा कर रखे हथियार बरामद करवाए. 6 जुलाई को पुलिस ने नौकर कल्लू की पत्नी रेखा तथा पुलिस पर हुए हमले में मददगार विकास के साढू समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया.

7 जुलाई को पुलिस ने विकास के गैंग में शामिल उस के 15 करीबी साथियों के पोस्टर जारी किए. इसी दौरान पुलिस को विकास की लोकेशन हरियाणा के फरीदाबाद में मिली. लेकिन एसटीएफ के वहां पहुंचने से पहले ही विकास गायब हो गया. लेकिन उस के 3 करीबी प्रभात मिश्रा, शराब की दुकान पर काम करने वाला श्रवण व उस का बेटा अंकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

8 जुलाई को एसटीएफ ने हमीरपुर में विकास के बौडीगार्ड व साए की तरह साथ रहने वाले उस के साथी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया. उस पर 25 हजार का इनाम था. अमर दुबे की शादी 10 दिन पहले ही हुई थी. उस की पत्नी को भी पुलिस ने साजिश में शामिल होने के शक में गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस को सूचना मिली थी कि उस रात पुलिस पर हुए हमले में अमर भी शामिल था. उसी दिन चौबेपुर पुलिस ने विकास के एक साथी श्याम वाजपेई को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया.

9 जुलाई को एसटीएफ जब फरीदाबाद में गिरफ्तार अंकुर, श्रवण तथा कार्तिकेय उर्फ प्रभात मिश्रा को ट्रांजिट रिमांड पर कानपुर ला रही थी, तो रास्ते में पुलिस की गाड़ी पंक्चर हो गई. मौका देख कर प्रभात मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की. प्रभात को पकड़ने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर में उस की मौत हो गई.

उसी दिन इटावा पुलिस ने बिकरू गांव शूटआउट में शामिल विकास के एक और साथी 50 हजार के इनामी प्रवीण उर्फ बउआ दुबे को भी एनकाउंटर में मार गिराया. विकास के साथियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां व एनकाउंटर हो रहे थे, लेकिन एसटीएफ को जिस विकास दुबे की तलाश थी, वह अभी तक पकड़ से बाहर था.

फरीदाबाद के एक होटल से फरार होने के बाद पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे पूरे एनसीआर में तलाश रही थी, जबकि विकास दुबे पुलिस को चकमा दे कर मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंच गया था. वहां 9 जुलाई की सुबह उस ने नाटकीय तरीके से महाकाल मंदिर में अपनी पहचान उजागर कर दी और खुद को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया.

इस नाटकीय गिरफ्तारी की सूचना चंद मिनटों में मीडिया के जरिए न्यूज चैनलों के माध्यम से देश भर में फैल गई. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम उसी रात उज्जैन पहुंच गई. उज्जैन पुलिस ने बिना कानूनी औपचारिकता पूरी किए विकास दुबे को यूपी पुलिस की एसटीएफ के सुपुर्द कर दिया.

विकास का अंतिम अध्याय

मगर इस बीच एमपी और यूपी पुलिस ने विकास दुबे से जो औपचारिक पूछताछ की थी, उस में उस ने खुलासा किया कि उसे डर था कि गांव बिकरू आई पुलिस टीम उस का एनकाउंटर कर देगी. चौबेपुर थाने के उस के शुभचिंतक पुलिस वालों ने उसे यह इत्तिला पहले ही दे दी थी. तब उस ने अपने साथियों को बुला कर पुलिस को सबक सिखाने का फैसला किया.

विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह चाहता था कि मारे गए सभी पुलिस वालों के शव कुएं में डाल कर जला दिए जाएं, ताकि सबूत ही खत्म हो जाएं. इसीलिए उस ने पहले ही कई कैन पैट्रोल भरवा कर रख लिया था.

विकास दुबे के साथियों ने शूटआउट में मारे गए 5 पुलिस वालों के शव कुएं के पास एकत्र भी करवा दिए थे, लेकिन जब तक वह उन्हें जला पाते तब तक कानपुर मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ गया और उन्हें भागना पड़ा.

यह बात सच थी, क्योंकि पुलिस को 5 पुलिस वालों के शव विकास के घर के बाहर कुएं के पास से मिले थे. विकास ने पूछताछ में बताया कि वह सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था. चौबेपुर समेत आसपास के सभी थानों के पुलिस वाले उस के साथ मिले हुए थे. लेकिन न जाने क्यों देवेंद्र मिश्रा हमेशा उस का विरोध करते थे.

ताकत और घमंड के नशे में चूर कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत हर किसी को उस के गुनाहों की सजा इसी संसार में देती है. यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को ले कर 4 अलगअलग वाहनों से सड़क के रास्ते उज्जैन से कानपुर के लिए रवाना हुई. मीडिया चैनलों की गाडि़यां लगातार एसटीएफ की गाडि़यों का पीछा करती रहीं. हांलाकि एसटीएफ ने लोकल पुलिस की मदद से कई जगह इन गाडि़यों को चकमा देने का प्रयास किया.

10 जुलाई की सुबह 6 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाडि़यों को सचेंडी थाने की पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक दिया. मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता अभी के लिए बंद कर दिया गया है. इस के साथ ही हाइवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए थे.

इस काफिले को रोके जाने के 15 मिनट बाद सूचना आई कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी बारिश व कुछ जानवरों के सामने आने से कानुपर से 15 किलोमीटर पहले भौती में पलट गई.

पता चला कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया था. तब तक पीछे से दूसरी गाडियां भी पहुंच गईं और विकास दुबे का पीछा कर आत्मसर्मपण के लिए कहा गया, लेकिन वह नहीं रुका और पुलिस पर फायरिंग कर दी.

लिहाजा पुलिस की जवाबी काररवाई में वह घायल हो गया, उसे हैलट अस्पताल भेजा गया. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विकास दुबे आदतन खतरनाक अपराधी था, जिस के सिर पर कई लोगों की हत्या का आरोप था, ऐसे अपराधी की मौत से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती. लेकिन अहम सवाल यह है कि खाकी और खादी के संरक्षण में गैंगस्टर बने विकास दुबे का अंत होने के बाद क्या उन लोगों के खिलाफ कोई काररवाई होगी, जिन्होंने उस के हौसलों को खूनी हवा दी थी?

– कथा पुलिस के अभिलेखों में दर्ज मामलों और पीडि़तों व जनश्रुति के आधार पर एकत्र जानकारी पर आधारित

विकास दुबे : भाग 2- नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर

1990 में गांव नवादा के चौधरियों ने विकास के पिता की बेइज्जती कर दी थी. उसे पता चला तो उस ने उन्हें उन के घर से निकालनिकाल कर पीटा. ऐसा कर के उस ने चौबेपुर क्षेत्र में अपनी दबंगई का झंडा बुलंद कर दिया.

करीब 20 साल पहले विकास ने मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बुढ़ार कस्बे की रिचा निगम उर्फ सोनू से कानपुर में लव मैरिज की थी. रिचा के पिता और घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. उन के विरोध करने पर विकास ने गन पौइंट पर शादी की. फिलहाल उस की पत्नी रिचा जिला पंचायत सदस्य थी.

बुलंद हौसलों के बीच 1991 में उस ने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी. इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन पर कब्जा करना.

इस के बाद विकास ने कौन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू की. उस ने 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया.

झगड़ा, मारपीट, लोगों से रंगदारी वसूलना और कमजोर लोगों की जमीनों पर कब्जे करना उस का धंधा बन चुका था. उस के रास्ते में जो भी आता, वह उसे इतना डरा देता कि वह उस के रास्ते से हट जाता. अगर कहीं कुछ परेशानी होती तो हरिकृष्ण श्रीवास्तव का एक फोन उस का कवच बन जाता.

नेताओं की छत्रछाया में पला गैंगस्टर विकास

1996 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने बीजेपी छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया और उन्हें पार्टी ने चौबेपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. जबकि भाजपा ने संतोष शुक्ला को टिकट दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ.

इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए.

विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया.

बस फिर क्या था विकास दुबे की ख्वाहिशों को पंख लग गए. उस ने हरिकृष्ण श्रीवास्तव को राजनीतिक सीढ़ी बना कर बसपा और भाजपा के कई कद्दावर नेताओं से इतनी नजदीकियां बना लीं कि उस के एक फोन पर ये कद्दावर नेता उस की ढाल बन कर सामने खड़े हो जाते थे, क्योंकि उन सब ने देख लिया था कि विकास राजनीति करने वाले लोगों के लिए वोट दिलाने वाली मशीन है.

विकास ने साल 2000 में ताराचंद इंटर कालेज पर कब्जा करने के लिए शिवली थाना क्षेत्र में कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में गिरफ्तार हो कर जब वह कुछ दिन के लिए जेल गया तो उस ने जेल में बैठेबैठे कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या करा दी. लेकिन जेल में बंद होने के कारण पुलिस इस मामले में उसे दोषी साबित नहीं कर सकी.

सिद्धेश्वर केस में विकास को उम्रकैद की सजा हुई लेकिन उस ने हाईकोर्ट से जमानत हासिल कर ली, जिस के बाद उस की अपील अभी तक अदालत में विचाराधीन है.

दुश्मनी ठानने के बाद विकास गोली से बात करता था

शिवली विकास के गांव बिकरू से 3 किलोमीटर दूर है. यहां के लल्लन वाजपेई 1995 से 2017 तक पंचायत अध्यक्ष रहे. जब उन का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने का फैसला किया.

विकास इस चुनाव में अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहता था. उस ने लल्लन के लोगों को डरानाधमकाना शुरू किया. लल्लन ने उसे रोका तो वह विकास की आंखों में चढ़ गए और उस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास कई नेताओं की नजर में आ गया था और वे उसे संरक्षण देने लगे थे.

इसी क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक थे नेकचंद पांडेय. विकास की दबंगई देख कर उन्होंने उसे राजनीतिक संरक्षण देना शुरू कर दिया. तब वह खुल कर अपनी ताकत दिखाने लगा. उस की दबंगई का कायल हो कर भाजपा के चौबेपुर से विधायक हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने भी उस के सिर पर हाथ रख दिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव उसी इलाके में जनता दल, जनता पार्टी से भी विधायक रह चुके थे. इलाके में उन का दबदबा था. उन्होंने चौबेपुर में अपनी राजनीतिक धमक मजबूत करने के लिए विकास दुबे को अपनी शरण में ले लिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान बीजेपी के नेता संतोष शुक्ला विकास के दुश्मन बन गए. लल्लन और संतोष शुक्ला के करीबी संबंध थे. उन्हीं दिनों भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. कल्याण सिंह ने संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था, जिस से संतोष शुक्ला और लल्लन वाजपेई दोनों की ही इलाके में हनक बढ़ गई थी.

हालांकि लखनऊ के कुछ प्रभावशाली भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. दरअसल, संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर विकास का एनकाउंटर कराने की योजना बना ली थी. एक तो लल्लन वाजपेई की मदद करने के कारण दूसरे अपने एनकाउंटर की साजिश रचने की भनक पा कर विकास को खुन्नस आ गई. उस ने संतोष शुक्ला को खत्म करने का फैसला कर लिया.

नवंबर 2001 में जब संतोष शुक्ला शिवली में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ वहां आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. जान बचाने के लिए वह शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और इंसपेक्टर के रूम में छिपे बैठे संतोष को बाहर ला कर मौत के घाट उतार दिया.

जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में संतोष शुक्ला की हत्या की गई थी, उस ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी, इस के बाद पूरे इलाके में विकास की दहशत फैल गई.

संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई. कई माह तक वह फरार रहा. सरकार ने उस के सिर पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से उस ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल किया. वह अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में चला गया. उन्होंने उसे अपनी कार में बैठा कर लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवा दिया.

कुछ माह जेल में रहने के बाद विकास की जमानत हो गई. बाहर आते ही उस ने फिर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया. विकास के गैंग के लोगों तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में चश्मदीद गवाह बने सभी पुलिसकर्मियों को इतना आतंकित कर दिया कि सभी हलफनामा दे कर गवाही से मुकर गए.

अगला निशाना लल्लन वाजपेई पर

फलस्वरूप विकास दुबे संतोष शुक्ला हत्याकांड से साफ बरी हो गया. लेकिन इस के बावजूद विकास दुबे के मन में लल्लन वाजपेई को सबक ना सिखा पाने की कसक रह गई थी. क्योंकि उस के साथ शुरू हुई राजनीतिक रंजिश में ही उस ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, इसीलिए वह मौके का इंतजार करने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका भी मिल गया. 2002 में पंचायत चुनाव से पहले एक दिन लल्लन के घर पर चौपाल लगी थी. 5 लोग बैठे थे. शाम 7 बजे का समय था. अचानक घर के बगल वाले रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटरसाइकिल से आए और बम फेंकना शुरू कर दिया.

साथ ही फायरिंग भी की. दरवाजे की चौखट पर बैठे लल्लन जान बचाने के लिए अंदर भागे. उन की जान तो बच गई लेकिन इस हमले में 3 लोगों की मौत हो गई. गोली लगने से लल्लन का एक पैर खराब हो गया था.

इस हमले में कृष्णबिहारी मिश्र, कौशल किशोर और गुलाटी नाम के 3 लोग मारे गए. पुलिस में हत्या का मामला दर्ज हुआ, जिस में विकास दुबे का भी नाम था. लेकिन आरोप पत्र दाखिल करते समय पुलिस ने उस का नाम हटा दिया था.

विकास दुबे ने इस हत्याकांड को जिस दुस्साहस से अंजाम दिया था, सब जानते थे. फिर भी वह अपने रसूख से साफ बच गया था. जबकि अन्य लोगों को सजा हुई. इस के बाद तो उस के कहर और डर के सामने सब ने हथियार डाल दिए.

बिकरू और शिवली के आसपास के क्षेत्रों में विकास की दहशत इस कदर बढ़ गई थी कि उस के एक इशारे पर चुनाव में वोट डलने शुरू हो जाते थे. सरकार बसपा, भाजपा या समाजवादी पार्टी चाहे किसी की भी रही  विकास को राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेता खुद उस के पास पहुंच जाते थे.

2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी, तो उस का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथसाथ कानपुर नगर में भी चलने लगा था. विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया.

इस से उस के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए. राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर आसपास के 3 गांवों में उस के परिवार की ही प्रधानी कायम रही. विकास ने राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए लखनऊ में भी घर बना लिया, जहां उस की पत्नी रिचा दुबे के अलावा छोटा बेटा रहता था, जो लखनऊ के एक इंटर कालेज में पढ़ रहा था जबकि उस का बड़ा बेटा ब्रिटेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें