पति की सुपारी : भाग 1

बात 8 जुलाई, 2020 की है. सुबह के साढे़ 7 बज गए थे. पंकज गुप्ता स्टील की 2 लीटर वाली डोलची हाथ में लटकाए दूध लेने शहरी बाजार समिति की ओर जा रहा था. वह रोजाना दूध लेने इसी समय पर जाया करता था. ऐसा नहीं था कि मोहल्ले में कोई दूधिया दूध देने नहीं आता था, लेकिन पंकज को आशंका थी कि दूधिए दूध में मिलावट करते हैं, इसलिए वह उन से दूध नहीं लेता था.

दूसरे इसी बहाने उस की मार्निंग वाक भी हो जाती थी. इसलिए वह सुबहसुबह दूध लेने पैदल ही निकल जाता था. पंकज बिजली विभाग में नौकरी करता था.

पंकज जैसे ही शहरी समिति के गेट के सामने पहुंचा, पीछे से तेजी से एक अपाचे मोटरसाइकिल उस के बगल से हो कर गुजरी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. बगल से बाइक गुजरने पर विकास हड़बड़ा गया और गिरतेगिरते बचा.

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संभल कर बुदबुदाते हुए वह आगे बढ़ा. वह थोड़ी दूर ही बढ़ा होगा कि वही बाइक मुड़ कर फिर उसी की ओर आई. बाइक को आता देख पंकज यह सोच कर रुक गया कि शायद बाइक सवार युवकों की नीयत ठीक नहीं है. उन के निकल जाने के बाद ही आगे बढ़ेगा.

पंकज सोच रहा था कि बाइक निकले तो आगे बढ़े, लेकिन बाइक उस के पास आ कर रुक गई. इस से पहले कि पंकज कुछ समझ पाता, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने निशाना साध कर 2 गोलियां उस के सिर में उतार दीं और मौके से फरार हो गए.

गोली लगते ही पंकज धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. चूंकि सुबह का वक्त था, लोग अभी अपनेअपने घरों में ही थे. गोली की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग जमा हो गए. उन्होंने जमीन पर खून से लथपथ पड़े पंकज को पहचान लिया.

पंकज पटना शहर के मोहल्ले अगवानपुर में रहता था. घटनास्थल से उस का घर थोड़ी दूर पर था. भीड़ में से किसी ने वारदात की सूचना बाढ़ थाने को दे दी और पंकज के घर पर भी खबर भिजवा दी. घटना की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. पत्नी शोभा और दोनों मासूम बेटियां चीखचीख कर रोने लगी. शोभा जिस हाल में थी, मासूमों को साथ लिए उसी हाल में घटनास्थल की ओर दौड़ी.

मौके पर पहुंची तो देखा पति पंकज हाथ में बाल्टी लिए चित अवस्था में लहूलुहान पड़ा है. पुलिस के खिलाफ पति की लाश से लिपट कर रोने लगी. मां को रोते देख कर बच्चे भी बिलखबिलख कर रो रहे थे. बच्चों को रोते देख वहां खड़े लोगों का दिल पसीजने लगा.

उसी समय बाढ़ थाने के थानाप्रभारी संजीत कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्थानीय लोग जाने के बजाए वहीं डटे रहे. उन में पुलिस के खिलाफ भारी आक्रोश था. दरअसल, उसी इलाके में कुछ दिनों पहले भी 2 हत्याएं हो चुकी थीं. दोनों घटनाओं के हत्यारे अभी भी फरार थे. अब तीसरी हत्या बिजलीकर्मी पंकज की हो गई थी.

इस हत्या से स्थानीय नागरिकों में पुलिस की भूमिका को ले कर गहरा आक्रोश था. आक्रोश बढ़ने पर लोग पंकज की हत्या के विरोध में राष्ट्रीय राजमार्ग 31 को जाम कर प्रदर्शन करने लगे. नागरिकों के धरने पर बैठते ही पुलिस के हाथपांव फूल गए.

आननफानन में थानाप्रभारी संजीत कुमार ने एएसपी अंबरीश राहुल और एसएसपी उपेंद्र शर्मा को घटना की जानकारी दे दी. स्थिति तनावपूर्ण और विस्फोटक होती जा रही थी. स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने सब से पहले मृतक की लाश अपने कब्जे में ली और कागजी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए पटना मैडिकल कालेज भिजवा दी.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पुलिस को वहां से कारतूस के 2 खोखे मिले, जिन्हें पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर कब्जे में ले लिया. उधर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम की सूचना मिलते ही एएसपी अंबरीश राहुल मौके पर पहुंच कर प्रदर्शनकारियों को मनाने में जुट गए. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि हत्यारों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी हो.

एएसपी ने उन्हें भरोसा दिया कि अपराधी जो भी होंगे, उन की गिरफ्तारी जल्द से जल्द होगी.

एएसपी के आश्वासन पर प्रदर्शनकारियों ने जाम खोला. मृतक की पत्नी शोभा की तहरीर पर थानाप्रभारी संजीत कुमार ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस के लिए पंकज हत्याकांड चुनौती की तरह था, क्योंकि इस के पहले 2 हत्याओं का अब तक खुलासा नहीं हो सका था. हत्यारों को गिरफ्तार करने के लिए नागरिकों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

अगले दिन कुछ सम्मानित लोग बिजली कर्मचारी पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड के खुलासे के लिए एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा से मिले और हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी ने अपने दफ्तर में आपात बैठक बुलाई.

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बैठक में एएसपी अंबरीश राहुल और 4 थानों के थानाप्रभारियों एसओ (बख्तियारपुर) कमलेश प्रसाद शर्मा, एनटीपीसी एसओ अमरदीप कुमार, मोकामा एसओ राजनंदन, एसओ (बाढ़) संजीत कुमार, एएसआई राकेश कुमार रंजन, अनिरुद्ध कुमार, सिपाही अमित कुमार और शिव चंद्र शाह शामिल हुए.

एसएसपी ने शहर में हुई हत्याओं के खुलासे न होने पर नाराजगी जताई और पंकज गुप्ता के केस को खोलने के लिए उसी समय टीम बना दी. टीम का नेतृत्व उन्होंने एएसपी राहुल को सौंपा.

पुलिस टीम जांच में जुट गई. उस के लिए सब से बड़ा सवाल यह था कि पंकज की हत्या क्यों की गई? इस सवाल का जवाब मृतक की पत्नी ही दे सकती थी. पुलिस ने अपनी तफ्तीश मृतक के घर से शुरू की.

पुलिस ने शोभा से पंकज की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने पति की किसी से भी दुश्मनी होने की जानकारी से इनकार कर दिया. ऐसे में यह घटना पुलिस के लिए चुनौती बन गई.

घटना की तह तक पहुंचने के लिए पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई और मदद के लिए मुखबिरों की भी मदद ली. मृतक की काल डिटेल्स में पुलिस को ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से घटना का खुलासा हो पाता.

लेकिन 2 दिनों बाद यानी 10 जुलाई को मुखबिर ने पुलिस को जो चौंकाने वाली जानकारी दी, उसे सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. मुखबिर ने एसओ संजीत कुमार को बताया कि 9 जुलाई को शोभा ने अपने भारतीय स्टेट बैंक के एकाउंट से करीब पौने 3 लाख रुपए निकाले थे.

यह बात पुलिस को खटकी कि आखिर इतनी बड़ी रकम उस ने क्यों निकाली? पुलिस को हैरान करने वाली यह रकम ही सुराग की कड़ी बनी. एएसपी अंबरीश राहुल को शोभा पर शक हुआ कि कहीं पति की हत्या में पत्नी का ही हाथ तो नहीं है? पुलिस ने शोभा का फोन नंबर हासिल किया. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और साथ ही उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

संजीत कुमार ने काल डिटेल्स का बारीकी से अध्ययन किया तो चौंके. उन का शक सही निकला. घटना वाली रात से सुबह घटना के बाद तक शोभा लगातार किसी से फोन पर बात करती रही थी. काल डिटेल्स से घटना की तसवीर साफ होती दिख रही थी.

जिस नंबर पर शोभा ने बात की थी, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवा ली. वह नंबर सन्नी उर्फ गोलू निवासी अगवानपुर का था. मुखबिर के जरिए पुलिस को हत्यारे की सही जानकारी मिल गई थी. पंकज की हत्या में उस की पत्नी शोभा भी शामिल थी. शोभा ने प्रेमी सन्नी को सवा 3 लाख की सुपारी दे कर पति की हत्या करवाई थी.

इस के बाद पुलिस ने हत्या की अलगअलग कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. 12 जुलाई को हत्या की कड़ी पूरी तरह जुड़ गई तो पुलिस ने शोभा और उस के प्रेमी सन्नी दोनों को अगवानपुर से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ शुरू की. जल्द ही दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. गोलू ने पंकज की हत्या में शामिल अन्य साथियों के नाम भी बता दिए. गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 5 और आरोपियों मुकेश (मृतक का सगा साला), मनीष कुमार, मोहित कुमार उर्फ आदित्य, राजा सिंह और आयुष को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश को छोड़ बाकी सभी आरोपी अगवानपुर के ही निवासी थे.

अगले दिन 13 जुलाई, 2020 को एएसपी अंबरीश राहुल ने पुलिस लाइन में पत्रकारवार्ता बुलाई, जिस में पंकज हत्याकांड के सातों आरोपितों को  पत्रकारों के सामने पेश किया. सभी आरोपियों ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया.

इस के बाद उन्होंने हत्या की पूरी कहानी पत्रकारों के सामने परोस दी. वार्ता संपन्न होने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई –

35 वर्षीय पंकज कुमार गुप्ता मूलरूप से पटना जिले के बाढ़ थाने के अगवानपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे. उस का परिवार हर तरह सुखी था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था, जहां से उसे अच्छीभली तनख्वाह मिलती थी. कुछ ऊपर से भी कमाई कर लेता था.

पंकज की पत्नी शोभा भले ही खूबसूरत नहीं थी लेकिन वह पढ़ीलिखी और सलीकेदार औरत थी. वह परिवार के अच्छेबुरे का खयाल रखती थी. पंकज और शोभा दोनों एकदूसरे की खुशियों पर पूरा ध्यान देते थे.

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लेकिन कालांतर में पता नहीं उन की खुशियों को किस की बुरी नजर लग गई, जिस ने हंसतेखेलते परिवार को महाभारत का मैदान बना दिया. कल तक जो पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी जान छिड़कते थे, वही अब एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे.

कहानी में जिस दिन से गोलू उर्फ सन्नी नाम के किरदार का प्रवेश हुआ था उसी दिन से पंकज के हंसतेखेलते घर में कलह शुरू हो गई थी. हुआ कुछ यूं था कि पंकज दिन भर ड्यूटी पर घर से बाहर रहता था. उस के 2 छोटे बच्चे थे. उन की देखभाल शोभा ही करती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पति की सुपारी : भाग 2

पंकज पैसे कमा कर पत्नी की हथेली पर रख देता था. उस के बाद घर में क्या हो रहा है, इस से उसे कोई मतलब नहीं रहता था. पति के इस रवैए से शोभा खिन्न रहती थी और दुखी भी.

बात 2 साल पहले की है. शोभा की बड़ी बेटी तान्या की तबियत ज्यादा खराब हो गई थी. उसे अस्पताल ले जा कर डाक्टर को दिखाना था. शोभा पति से कई बार कह चुकी थी कि बेटी को ले जा कर डाक्टर को दिखा दे. लेकिन पंकज नौकरी की दुहाई दे कर उस से कहता कि वही उसे ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाए.

अगवानपुर से कुछ दूरी पर एक नर्सिंगहोम था. शोभा बच्चों के इलाज के लिए यहीं आया करती थी. उस दिन भी वह बेटी को दिखाने इसी नर्सिंगहोम में आई थी. वहीं पर गोलू उर्फ सन्नी नाम का एक युवक भी अपने किसी परिचित को दिखाने आया था.

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बातोंबातों में दोनों के बीच परिचय हुआ. पता चला कि दोनों एक ही मोहल्ले अगवानपुर के रहने वाले हैं. गोलू साधारण शक्लसूरत का गबरू जवान था. लेकिन चपल और बातूनी. अपनी बातों से हर घड़ी सभी को गुदगुदाता रहता था. शोभा उस की बातें सुन कर अपनी हंसी काबू नहीं कर पा रही थी.

वह खिलखिला कर हंस पड़ती थी. शोभा की हंसी गोलू के दिल में मकाम कर गई. हर घड़ी उस की आंखों के सामने शोभा का हंसता चेहरा थिरकता रहता था. कुंवारा गोलू समझ नहीं पा रहा था उसे ये क्या गया है.

शोभा 28 साल की शादीशुदा औरत थी जबकि गोलू उस से 7 साल छोटा यानी 21 साल का नौजवान था. गोलू के दिमाग पर शोभा के अक्स की रंगीन चादर बिछी थी, जो हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. एक ही मुलाकात में गोलू को शोभा के गदराए जिस्म से प्यार हो गया था. वह उस के दीदार के लिए बेचैन रहने लगा.

शोभा गोलू की इस चाहत से अंजान थी. उसे नहीं पता था एक ही मुलाकात में गोलू उस का दीवाना बन जाएगा. उस दिन के बाद शोभा बेटी को ले कर कई बार नर्सिंगहोम गई.

इत्तफाक की बात यह रही कि शोभा जबजब बेटी को दिखाने नर्सिंगहोम पहुंचती, उसे उसे गोलू वहीं मिल जाता था. शोभा गोलू को देखती, उसे देखते ही उस के होंठों पर मीठी सी मुसकान थिरक उठती थी. गोलू भी उसे देख कर मुसकरा देता था.

धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. बाद में ये दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. एक शादीशुदा औरत के इश्क में गोलू ऐसा डूबा कि उसी का हो कर रह गया. उसे देखे बिना गोलू को चैन नहीं मिलता था.

इधर पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद शोभा फोन कर के गोलू को अपने घर बुला लेती और उस के साथ घंटों रंगरेलियां मनाती. बंद दरवाजे के अंदर शोभा और गोलू का प्यार जवां हो रहा था. जमाने की नजरों से बेखबर दोनों मोहब्बत के सागर में गोते लगा रहा थे.

वे समझते थे कि उन की मोहब्बत के बारे में कोई नहीं जानता. हर प्यार करने वाले को यही भ्रम होता है. जबकि मोहल्ले में दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे थे. फिजाओं में फैली उन के प्यार की खुशबू आखिरकार पति पंकज तक पहुंच ही गई.

पंकज को यकीन नहीं हुआ. वह तो पत्नी को बेहद प्यार जो करता था. वह सोच रहा था कि पत्नी उसे धोखा कैसे दे सकती है. किसी की बातों पर उसे यकीन नहीं हो रहा था.

लेकिन वह उन बातों को झुठला भी नहीं पा रहा था. सच सामने लाने के लिए वह पत्नी की जासूसी में जुट गया. जब भी पंकज पत्नी को फोन करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था. अब पंकज को यकीन होने लगा कि जरूर शोभा का किसी के साथ चक्कर है.

समझदारी का परिचय देते हुए एक दिन पंकज ने पत्नी को उस के अफेयर को ले कर अप्रत्यक्ष तौर से समझाया ताकि पत्नी को यह न पता चले कि उसे उस के संबंधों के बारे में पता चल चुका है. पति का बारबार उसी की ओर इशारा कर के बात करने से शोभा समझ गई कि पति को उस पर शक हो गया है.

फिर क्या था, उस दिन के बाद से शोभा संभल गई और प्रेमी गोलू को भी सावधान कर दिया कि पति को उन के संबंधों पर शक हो गया है. जब तक वह उस के शक को मिटा नहीं देती, तब तक हमारा मिलना कम होगा. हम फोन पर ही बातें करेंगे.

शोभा ने पति को विश्वास दिलाने के लिए कई कलाएं पेश कीं, लेकिन पंकज सब समझ रहा था.

उसे उस की बातों पर तनिक भी यकीन नहीं हुआ. एक दिन तो पंकज ने शोभा को फोन पर प्रेमी से बात करते रंगेहाथ पकड़ लिया. यही नहीं उस ने जब पत्नी के हाथ पर गोलू के नाम का लिखा टैटू देखा तो उस का खून खौल उठा.

कोई भी पति यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी अपने जिस्म पर किसी पराए मर्द का नाम लिखाए. उस दिन पंकज का गुस्सा पत्नी के अंगअंग पर टूटा. कई दिनों का गुस्सा पंकज ने उस पर उतार दिया. साथ ही सख्त हिदायत भी दी कि आज के बाद फिर प्रेमी से बात करने या मिलने की कोशिश की तो वह उसे जान से मार देगा.

पति से पिटी शोभा ने भी उस से कह दिया, ‘‘गोलू मेरी जान है. मैं उस से दूर रह कर जिंदा नहीं रह सकती. तुम चाहो तो मेरी जान ही क्यों न ले लो. मुझे मर जाना मंजूर है लेकिन गोलू के बिना जीना मंजूर नहीं.’’

इस के बाद इसी बात को ले कर अकसर रोजाना ही शोभा की पिटाई होने लगी. पति की रोजरोज मारपीट से शोभा ऊब गई थी.

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उस ने पति नाम की बीमारी से छुटकारा पाने की योजना बनाई और प्रेमी गोलू से पति को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की बात कही.

शोभा के प्यार में अंधे गोलू ने प्रेमिका की बात मान ली और पंकज को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. इस काम के लिए गोलू ने अपने दोस्त मनीष से मदद मांगी और साजिश में शामिल कर लिया.

मनीष गोलू का साथ देने के लिए तैयार हो गया. गोलू जानता था कि मनीष का एक दोस्त है, जो भाड़े पर हत्या करता है. गोलू के कहने पर मनीष ने क्रिमिनल मोहित से संपर्क साधा और काम करने को कहा लेकिन मोहित ने यह कहते हुए हत्या की सुपारी लेने से इनकार कर दिया कि वह ये काम नहीं करता. लेकिन उस का एक दोस्त राजा सिंह है जो ये काम करता है, उन्हें उस से मिला देगा, काम हो जाएगा.

मोहित ने मनीष को राजा सिंह से मिलवा दिया. राजा ने काम के बदले एडवांस के रूप में 50 हजार रुपए मांगे. मनीष ने यह बात गोलू को बताई और गोलू ने प्रेमिका शोभा से एडवांस के 50 हजार रुपए मांगे. शोभा के पास इतनी रकम नहीं थी. उस ने अपने भाई मुकेश से पैसे मांगे तो उस ने भी हाथ खड़े कर दिए, लेकिन उस की साजिश में शामिल हो कर उस का साथ देने लगा.

शोभा ने पति की हत्या के लिए उस के बनवाए अपने सोने के झुमके 45 हजार रुपए में बेच दिए. यह रकम राजा सिंह को दे दी गई.

उस के बाद आगे की योजना तय हो गई. फिर राजा सिंह ने घटना को अंजाम देने के लिए शूटर आयुष को सुपारी दी. आयुष ने काम के बदले शोभा से 3 लाख रुपए की डिमांड की. लेकिन ये सौदा सवा 3 लाख में तय हुआ.

शोभा ने आयुष को बताया कि वह एडवांस के रूप में राजा सिंह को 50 हजार रुपए दे चुकी है. बाकी के पैसे काम होने के बाद दे देगी. शूटर आयुष को विश्वास दिलाने के लिए शोभा ने दस्तखत कर के एक ब्लैंक चैक उसे दे दिया. चैक पाने के बाद शूटर ने 8 जुलाई को घटना को अमली जामा पहना दिया.

7/8 जुलाई, 2020 की रात शोभा ने पति की हत्या के संबंध में गोलू को फोन में बातें की थीं. रोज की तरह पंकज सुबह दूध लेने स्टील की डोलची ले कर घर से निकला तो शोभा ने गोलू को फोन कर के बता दिया कि पंकज घर से निकल चुका है.

उस ने यह भी कहा कि आयुष पंकज को गोली मारे तो गोली की आवाज उसे जरूर सुनाए. गोलू ने उस से कहा ऐसा ही होगा. पंकज के घर से निकलने की बात गोलू ने शूटर आयुष को बता दी. उस समय आयुष पंकज के घर के आसपास ही मंडरा रहा था.

जैसे ही गोलू का फोन आया वह सतर्क हो गया और अपाचे मोटरसाइकिल ले कर पंकज के पीछेपीछे लग गया. आयुष बाइक पर पीछे बैठा था, जबकि राजा सिंह बाइक चला रहा था. घर से निकल कर पंकज जैसे ही शहर समिति गेट के पास पहुंचा, बाइक पर पीछे बैठे शूटर आयुष ने पंकज को लक्ष्य साध कर उस के सिर में 2 गोलियां उतार दीं.

गोली मारते समय आयुष ने अपना मोबाइल फोन औन किया हुआ था, उधर शोभा अपने फोन को कान से लगाए हुए थी. गोली की आवाज सुन कर शोभा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. इधर गोली मारने के बाद दोनों बदमाश बाइक ले कर फरार हो गए.

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घटना के दूसरे दिन शोभा भाई मुकेश को ले कर भारतीय स्टेट बैंक पहुंची और बैंक से 2 लाख 80 हजार रुपए निकाल कर शूटर आयुष को दे दिए. मुखबिर के जरिए यह बात पुलिस को पता चल गई.

एएसपी अंबरीश राहुल की सूझबूझ से पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड से परदा उठ गया और घटना में शामिल सभी अपराधी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. पुलिस ने आरोपियों से हत्या में प्रयुक्त बाइक, पिस्टल और 2 जिंदा कारतूस बरामद किए.

जिस प्रेमी गोलू से शोभा शादी रचाने का ख्वाब देख रही थी, उस ने भी इस घटना के बाद उस से शादी करने से इनकार कर दिया था. शोभा न इधर की रही, न उधर की.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति की सुपारी

50 करोड़ की आग

50 करोड़ की आग : भाग 3

कुछ देर तक वह फूलों की क्यारी में बैठा रहा. फिर उठ कर लड़खड़ाते कदमों से लौन से निकलने लगा. उस के दिमाग पर धुंध छाई हुई थी और वह बारबार सिर झटक रहा था. थोड़ी देर के लिए वह एक पेड़ के तने से टेक लगा कर बैठ गया.

वह घंटी की आवाज थी, जो बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी. वह आंखें खोल कर आवाज की दिशा में देखने लगा. वह फायर ब्रिगेड की गाड़ी की घंटी की आवाज थी जो मोड़ घूम कर उसी सड़क पर आ चुकी थी.

विक्रम सिर झटकता हुआ संभल कर बैठ गया. कुछ देर वह फायर ब्रिगेड की आवाज सुनता रहा, फिर रेंगता हुआ झाडि़यों की ओर बढ़ने लगा. मकान के पीछे की ओर कांटों वाली झाडि़यों की बाड़ पार करते हुए उस के हाथ जख्मी हो गए. उस ने होंठ दांतों तले दबा लिया. ठीक उसी समय फायर इंजन ललिता हाउस के सामने आ कर रुका, विक्रम उठ कर लड़खड़ाते कदमों से दूर हटने लगा.

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मडप हालांकि उस के लिए अजनबी था. लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उसे शरण मिल सकती थी. वह लड़खड़ाते हुए चलता रहा, उस का रुख शहर के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित के घर की ओर था.

अंधेरी गलियों में छिपतेछिपाते मोहित के घर तक पहुंचने में उसे 45 मिनट लगे. उस ने दरवाजे पर घंटी का बटन दबा दिया और दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया.

मोहित उस समय बिस्तर पर कुछ कागजात फैलाए बैठा था. उन में उस की स्वर्गवासी पत्नी का वसीयतनामा, बैंक की स्लिपें और ललिता हाउस के बीमा के कागजात थे.

वह हिसाब लगा रहा था कि मकान के बीमा के सिलसिले में उस ने अब तक कितना प्रीमियम अदा किया था. उसे बीमा कंपनी से 50 करोड़ की धनराशि में से उस के अदा किए गए प्रीमियम और बाकी खर्चे काट कर उसे क्या बचेगा.

घंटी की आवाज सुन कर मोहित चौंका. उस ने घड़ी देखी 4 बजकर 10 मिनट हुए थे. वह कागजात और पेन बिस्तर पर छोड़ कर उठा और जैसे ही बाहरी दरवाजा खोला, विक्रम को देख बुरी तरह उछल पड़ा.

‘‘माई गौड, तुम…’’ कहने के साथ मोहित ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस बीच विक्रम दरवाजे में पैर फंसा चुका था.

‘‘दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो मोहित.’’ विक्रम ने थके हुए स्वर में कहा.

‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’ मोहित उस के पैर को ठोकर मारते हुए बोला, ‘‘मेरा तुम से कोई संबंध नहीं और न ही मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं. चले जाओ यहां से. अपने साथ तुम मुझे भी फंसाओगे.’’

विक्रम ने अचानक पिस्तौल निकाल लिया और उस की पसलियों पर गड़ाते हुए गुर्राया, ‘‘मुझे अंदर आने दो.’’

पिस्तौल देख कर मोहित की आंखों में डर उभरा और उस ने दरवाजा खोल दिया. डर से उस के हाथ और टांगें कांपने लगी थीं.

‘‘इजी विक्रम,’’ वह थरथराते लहजे में बोला, ‘‘मेरी बात सुनो, भावावेश में आने की आवश्यकता नहीं है. परिस्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

विक्रम उसे देखता हुआ अंदर दाखिल हो गया. मोहित ने दरवाजा बंद कर दिया, मगर उस का हाथ अभी तक दरवाजे के हैंडिल पर था. डर के मारे उस के हाथ कांप रहे थे.

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो विक्रम?’’ उस की बातों में भय झलक रहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मुझे सिर के लिए एक रुमाल और एक चादर चाहिए,’’ विक्रम बोला.

‘‘क्यों नहीं, तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो, मैं देने को तैयार हूं.’’

‘‘इस के अलावा तुम मुझे अपनी गाड़ी में थाणे छोड़ कर आओगे,’’ विक्रम ने कहा.

मोहित को सीने में सांस रुकती हुई महसूस हुई, ‘‘देखो विक्रम…’’ वह शुष्क होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘परिस्थिति को समझने की कोशिश करो. मेरे लिए तुम्हें थाणे ले जाना संभव नहीं है. मैं यहां का इंचार्ज हूं. किसी प्रकार का रिस्क नहीं ले सकता.अगर किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो न सिर्फ सारे किएधरे पर पानी फिर जाएगा बल्कि तुम्हारे साथ मैं भी जेल…..’’

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‘‘बंद करो बकवास,’’ विक्रम ने उसे पिस्तौल की नाल से टोहका दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. अगर तुम ने मना किया तो…’’

‘‘ठीक है विक्रम, ठीक है,’’ मोहित हाथ उठाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं, लेकिन इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तकलीफ मेरी बरदाश्त से बाहर हो रही है,’’ विक्रम ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे डाक्टरी मदद की जरुरत है. इस से पहले कि मेरा दम निकल जाए, मुझे थाणे ले चलो, जल्दी करो, गाड़ी निकालो.’’

‘‘एक मिनट मैं कपड़े तो बदल लूं,’’ मोहित बोला.

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है, मेरे लिए एकएक पल कीमती है गाड़ी निकालो.’’ विक्रम चीखा. मोहित को उस का हुक्म मानना पड़ा. विक्रम उसे दोबारा कमरे में जाने का मौका नहीं देना चाहता था.

रात के सन्नाटे में मोहित की कार थाणे की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी. विक्रम पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था. उस ने मोहित का ओवरकोट और पुराना हैट पहन रखा था. जो उस के सिर की जली हुई त्वचा पर काफी तकलीफ दे रहा था.

कार को लगने वाले झटकों से विक्रम दाएंबाएं झूल रहा था. स्टीयरिंग पर मोहित की पकड़ काफी मजबूत थी, उस की गर्दन पर पसीने की धार बह रही थी. वह बारबार कनखियों से विक्रम की ओर देख रहा था.

‘‘बारबार मेरी तरफ क्या देख रहे हो?’’ विक्रम ने एक बार उसे अपनी तरफ देखते पा कर कहा, ‘‘मैं अभी जिंदा हूं, मरा नहीं हूं. सामने देख कर गाड़ी चलाओ, कहीं गाड़ी को टकरा मत देना, इंचार्ज साहब.’’

मोहित ने कोई जवाब नहीं दिया, वह सामने सड़क पर देखने लगा. भटान सुरंग से एक किलोमीटर पहले उस ने गाड़ी रोक ली.

‘‘विक्रम प्लीज, मुझे थाणे जाने पर मजबूर मत करो. मैं किसी किस्म का खतरा मोल नहीं ले सकता.’’

‘‘मुझे जल्द से जल्द किसी अच्छे डाक्टर के पास पहुंचना है.’’ विक्रम जख्मी होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘और तुम मुझे यहां इस वीराने में छोड़ने के बजाए थाणे ले चलोगे, क्योंकि मेरी इस हालत के जिम्मेदार भी तुम हो. गाड़ी स्टार्ट करो.’’ विक्रम दर्द पर काबू पाने के लिए सीट पर आगेपीछे झूलने लगा.

‘‘गाड़ी स्टार्ट करो’’ वह गला फाड़ कर चिल्लाया.

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मोहित ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की टांगें और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे, जिस से उस के लिए गाड़ी पर कंट्रोल रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन वह जैसेतैसे गाड़ी चला रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

50 करोड़ की आग : भाग 4

लोनावाला पहुंच कर उस ने गाड़ी सिटरस होटल के अंदर मोड़ दी. मनमोहन इसी होटल में ठहरा हुआ था. वह चंद पल स्टीयरिंग व्हील के सामने बैठा रहा, फिर विक्रम की ओर मुड़ कर बोला, ‘‘देखो विक्रम, हम यहां पहुंच गए हैं. तुम कोई ऐसी हरकत नहीं करोगे, जिस से मुझे या तुम्हें पछताना पड़े.

‘‘मैं एक जिम्मेदार आदमी हूं. मेरे 3 बेटे हैं जो हौस्टल में रहते हैं. मैं समझता हूं तुम एक अच्छा आदमी होने का सबूत दोगे और मुझे किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करोगे. वैसे भी तुम मुझे नुकसान पहुंचाओगे ही क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम कमीने आदमी हो.’’ विक्रम ने होंठ चबाते हुए कहा, ‘‘मेरी यह हालत देख कर भी तुम ने घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की थी. तुम इतने बेगैरत हो कि मरते हुए आदमी के हलक में पानी की बूंद भी नहीं डाल सकते. अगर मेरे पास पिस्तौल न होता तो तुम कभी मेरी मदद नहीं करते.’’

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‘‘मेरे सब से छोटे बेटे की उम्र 5 साल है’’ मोहित घिघियाया, ‘‘क्या तुम 5 साल के बच्चे के सिर से उस के बाप का साया छीन सकते हो? विक्रम तुम जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

‘‘तुम झूठ बोलते हो,’’ विक्रम दहाड़ा, ‘‘मैं जानता हूं तुम्हारी कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी बीवी कई साल पहले मर गई थी. तुम ने ललिता हाउस के बीमा की रकम हासिल करने के लिए इमारत को आग लगवाई है, क्योंकि तुम जानते हो कि चंद माह बाद तुम्हें इस मकान का कुछ भी नहीं मिलेगा.

‘‘मुझे शक है कि तुम्हारी बीवी भी अपनी मौत नहीं मरी होगी. उस की दौलत पर कब्जा करने के लिए तुम ने उस की हत्या ही की होगी. बहरहाल, मैं इस समय तुम से किसी किस्म की बहस करने के मूड में नहीं हूं, मनमोहन को बुला कर लाओ, मैं कार में बैठा हूं.’’

मोहित छलांग लगा कर कार से उतर गया और तेजतेज कदमों से होटल में दाखिल हो गया. उस की वापसी में चंद मिनट से अधिक का समय नहीं लगा. उस के साथ मनमोहन और श्याम भी थे. मनमोहन ने कार का दरवाजा खोल कर जब अंदर झांका तो विक्रम के जख्मी होंठों पर मंद मुसकान आ गई.

‘‘खूब… बहुत खूब!’’ मनमोहन सीटी बजाते हुए बोला.

‘‘ओहो!’’ श्याम ने कहा, ‘‘लगता है यह सीधे मोर्चे से आ रहा है.’’

‘‘अगर तुम उस मकान को जा कर देखोगे तो मुझे भूल जाओगे,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘तुम बेहोश होने की तैयारी तो नहीं कर रहे हो विक्रम?’’ श्याम आगे झुकते हुए बोला.

विक्रम आगेपीछे झूल रहा था. उस की आंखें बंद थीं, फिर एकाएक उस का सिर डैशबोर्ड से टकराया और वह दाईं ओर झूल गया.

दोबारा होश आने पर उस ने खुद को ऐसे कमरे में पाया, जिस की दीवारों पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे. छत पर मद्धिम रोशनी का बल्ब झूल रहा था. उसी पल मनमोहन की आवाज उस के कानों से टकराई जो डाक्टर को संबोधित करते हुए कह रहा था, ‘‘सुनो डाक्टर, यह मरना नहीं चाहिए. इसे हर हालत में जिंदा रखना है क्योंकि लाश को ठिकाने लगाना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसलिए इस की दोनों टांगें और दोनोंं हाथ भी काटने पड़ें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘मैं इसे बचाने की कोशिश करूंगा,’’ डाक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘नौजवान है, इसे खुद भी जिंदा रहने की ख्वाहिश होगी.’’

‘‘अब तुम जाओ मोहित, इसे हम संभाल लेंगे.’’ मनमोहन ने कहा.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी बेवकूफी हो गई,’’ मोहित ने जवाब दिया, ‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने अपना मानसम्मान, अपनी जिंदगी सब दांव पर लगा रखी है. अगर यह मर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. बहरहाल, मैं जा रहा हूं.’’

विक्रम की आंखें बंद थीं. उस ने मोहित के जाते कदमों की आवाज सुनी और एकाएक गहरीगहरी सांस लेने लगा.

मोहित जब वहां से निकला तो दिन की रोशनी छा चुकी थी. सुबह की ताजा हवा में उस ने लंबीलंबी सांस ली और कार में बैठ गया.

कार तेज गति से हाइवे पर दौड़ रही थी. मोहित के चेहरे पर सुकून था. अब उसे विक्रम की ओर से कोई चिंता नहीं थी. मरे तो मर जाए. उसे यकीन था कि मनमोहन और श्याम उसे संभाल लेंगे. वह मन ही मन ललिता हाउस और उस के बीमा की रकम के बारे में सोचने लगा, 50 करोड़ बड़ी रकम थी. वह बाकी की जिंदगी आराम से गुजार सकता था.

मोहित को यकीन था कि बीमा कंपनी का स्थानीय एजेंट भी सूचना पा कर मकान के मलबे के पास पहुंच गया होगा. स्थानीय एजेंट से उस का अच्छा परिचय था. वह अपने संबंधों के आधार पर उसे मजबूर कर सकता था कि दुर्घटना की जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द पूरी कर के कंपनी को भेज दे ताकि क्लेम की अदायगी में देर न लगे.

जब उस ने कार हाइवे से ललिता हाउस की तरफ मोड़ी तो धूप फैल चुकी थी. फैक्ट्री एरिया से आगे निकलते ही उस ने कार का रुख अपने घर की ओर मोड़ दिया. उस ने सोचा था कि कपड़े बदल कर ललिता हाउस की तरफ जाएगा.

मोहित भविष्य की योजनाएं बनाता हुआ घर पहुंच गया. कार रोक कर वह नीचे उतरा और आगे बढ़ कर जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा तो चौंका. दरवाजा हलके से दबाव से खुल गया. अचानक उसे याद आया कि विक्रम के साथ जाते हुए उस ने दरवाजा लौक नहीं किया था.

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वह होंठ सिकोड़े धीमे सुर में सीटी बजाता हुआ अपने बैडरूम में दाखिल हुआ लेकिन पहला कदम रखते ही वह इस तरह रुक गया जैसे जमीन ने उस के पैर पकड़ लिए हों. उस का दिल उछल कर हलक में आ गया और सीने में सांस रुकता हुआ महसूस होने लगा.

कमरे में उस का एक मातहत इंसपेक्टर, एक सबइंसपेक्टर और 2 कांस्टेबल के अलावा बीमा कंपनी का एजेंट भी मौजूद था, जिस के हाथ में वे तमाम कागजात नजर आ रहे थे, जिन्हें वह रखा छोड़ गया था.

‘‘हैलो बौस,’’ इंसपेक्टर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रात आप के मकान को आग लगने के बाद हम ने कई बार फोन कर के संपर्क करना चाहा मगर कामयाब न हो सके. मैं ने सोचा संभव है आप घर पर मौजूद न हों, लगभग एक घंटे पहले मिस्टर ठाकुर…’’ उस ने बीमा कंपनी के एजेंट की ओर इशारा किया, ‘‘मिस्टर ठाकुर भी आग लगने की सूचना पा कर ललिता हाउस पहुंच गए थे. यह फौरी तौर पर आप से मिलना चाहते थे.

इस बार भी फोन पर संपर्क नहीं हो पाया तो हम स्वयं यहां चले आए और यहां आप के बिस्तर पर बिखरे हुए ये कागजात…’’ उस ने ठाकुर के हाथ में पकड़े कागजात की तरफ इशारा करते हुए वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘यह तुम्हारी ही हैंड राइटिंग है न मिस्टर मोहित?’’ ठाकुर ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हां.’’ आवाज मोहित के हलक से फंसीफंसी सी निकली.

‘‘इस सिलसिले में हम आप से कुछ पूछना चाहेंगे बौस.’’ इंसपेक्टर बोला.

उस के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी, ‘‘और मेरा खयाल है, यह बातचीत पुलिस स्टेशन पहुंच कर ही होना चाहिए, वहां एसपी साहब भी इंतजार कर रहे हैं, चलिए बौस.’’

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औफिसर इंचार्ज मोहित सिर झुकाए अपने मातहतों के आगेआगे चल दिया. वह जान गया था कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

50 करोड़ की आग : भाग 1

उस कमरे में 3 लोग थे, मनमोहन, श्याम और विक्रम. मनमोहन मोटा जरूर था, लेकिन उस का दिमाग बहुत तेज था. वैसे उस का मोटापा एक तरह से उस की पर्सनैलिटी पर भी सूट करता था और पेशे पर भी. वह आपराधिक कामों की पेशगी ले कर काम कराता था, लेकिन छोटेमोटे नहीं, बड़ेबड़े. हालांकि खूंखार दिखने वाला मनमोहन खुद कोई अपराध नहीं करता था.

श्याम उस का सहयोगी भी था और ड्राइवर भी. हाल ही में मनमोहन ने छोटे शहर मडप के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित से 2 करोड़ की डील की थी. काम था बंद पड़ी एक पुरानी इमारत को इस तरह आग लगाने का कि सब कुछ जल कर खाक हो जाए.

इस काम के लिए उस ने विक्रम को चुना था. वह ऐसे कामों का मास्टर था. दोनों के बीच इस काम का सौदा 50 लाख रुपए में तय हुआ था. 10 लाख उसे दे भी दिए गए थे. लेकिन किन्हीं कारणों से विक्रम यह काम नहीं कर पाया था, उस का पहला प्रयास ही विफल रहा था.

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फिलहाल विक्रम मनमोहन के सामने बैठा था. हाथ में रिवौल्वर थामे मनमोहन उसे गालियां देते हुए लानतमलामत कर रहा था, जबकि विक्रम सफाई देते हुए कह रहा था कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह किसी काम में हाथ डाले और वह न हो. वह कभी फेल नहीं होता. जबकि मनमोहन बता रहा था कि पुलिस अफसर मोहित का फोन आया था. उस ने बताया कि बिल्डिंग जस की तस खड़ी है.

काफी जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि मौके पर जा कर बिल्डिंग को देखा जाए. मनमोहन, श्याम और विक्रम कार से मडप के लिए रवाना हो गए. कार श्याम चला रहा था. चलने से पहले मनमोहन ने मोहित को फोन कर के रास्ते में मिलने को कह दिया था.

कार सड़क पर दौड़ रही थी. अपने काम का मंथन करते हुए विक्रम खिड़की से बाहर अंधेरे में देख रहा था. थोड़ीथोड़ी दूरी पर सड़क के दोनों ओर फैक्ट्रियों की रोशनी दिख रही थी.

मनमोहन अब भी गुस्से में था और विक्रम को गालियां बक रहा था. 20 मिनट की दूरी तय करने के बाद कार शिवगंगा वाटर पार्क की ओर मुड़ गई. थोड़ा आगे जा कर घने पेड़ों वाला जंगल था.

वहां पहुंच कर श्याम ने कार को हलका सा झटका दिया तो पेड़ों के झुरमुट में से एक मानवीय साया निकला और कार के पास आ गया. उस ने बेतकल्लुफी से कार का दरवाजा खोला और अंदर आ कर बैठ गया. यह मोहित था जो सादे कपड़ों में था. कार आगे बढ़ गई.

‘‘मेरा खयाल है, तुम इसी तरह काम करते हो?’’ मोहित ने विक्रम की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं पुलिस स्टेशन में बैठा सूखता रहा और तुम लोगों का दूरदूर तक कोई पता नहीं था. क्या हुआ, कहां मर गए थे तुम लोग?’’

‘‘गुस्से की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा.’’ मनमोहन बोला.

‘‘सब कुछ प्लानिंग के अनुसार हुआ था,’’ मोहित मनमोहन की तरफ देख कर हाथ पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘पौने 11 बजे शहर के उत्तरी इलाके में आग लगने की सूचना मिलते ही तमाम फायर इंजन उस तरफ चले गए थे. वहां झाडि़यों में आग लगी थी. यह सब फायर इंजनों को व्यस्त रखने के लिए किया गया था ताकि दूसरी तरफ हम इस अवसर का लाभ उठा सकें, लेकिन 2 घंटे बाद भी ललिता हाउस में आग लगने की सूचना नहीं मिली. मैं ने इस काम के लिए तुम्हें 2 करोड़ रुपए देने की पेशकश की थी, एडवांस भी दिए, लेकिन तुम लोग बिलकुल नाकारा साबित हुए. आखिर चाहते क्या हो तुम लोग?’’

‘‘इसे देख रहे हो?’’ मनमोहन ने विक्रम की ओर इशारा किया, ‘‘यह हमारा फायर एक्सपर्ट है, जिस की वजह से आज हमें नाकामी का मुंह देखना पड़ा.’’

‘‘मैं ने हर काम बड़ी ऐहतियात से किया था. लेकिन कहीं कोई न कोई गड़बड़ हो गई होगी. इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है.’’ विक्रम ने एक बार फिर अपनी सफाई दी.

‘‘सुनो विक्रम, मैं इस कस्बे का औफिसर इंचार्ज हूं. मैं किसी किस्म की गड़बड़ी या गलती को सहन नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं तुम्हारा यह काम करूंगा.’’ विक्रम ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘यकीन रखो, इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी.’’

‘‘श्याम, गाड़ी ललिता हाउस की ओर मोड़ दो.’’

‘‘उसी तरफ जा रहा हूं,’’ कहते हुए श्याम ने गाड़ी एक दूसरी सड़क पर मोड़ दी.

कुछ देर बाद गाड़ी ललिता हाउस के सामने रुक गई. विक्रम दरवाजा खोल कर नीचे उतर गया.

‘‘हम 10 मिनट में वापस आएंगे,’’ मनमोहन ने दरवाजा बंद करते हुए कहा, ‘‘इस दौरान पता लगाओ,क्या गड़बड़ हुई थी.’’

गाड़ी आगे बढ़ गई. विक्रम कंधे उचका कर रह गया. फिर वह ललिता हाउस की ओर देखने लगा. उस के हिसाब से इस पुरानी पर आलीशान इमारत को अब तक राख के ढेर में बदल जाना चाहिए था. लेकिन इमारत जस की तस खड़ी थी. उसे हैरत थी कि बिल्डिंग में आग क्यों नहीं लगी.

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विक्रम अंधेरे लौन को पार करते हुए 50 लाख रुपए के बारे में सोच रहा था, जो बिल्डिंग के जलने की स्थिति में उसे मिलने थे.

विक्रम खिड़की पर चढ़ कर बहुत खामोशी से ललिता हाउस के अंदर कूद गया. यह खिड़की वह उस वक्त खुली छोड़ गया था, जब पहली बार यहां आया था. लाइब्रेरी रूम से निकल कर वह गैलरी में आ गया और टौर्च की रोशनी में आगे बढ़ने लगा.

गैलरी में बिछे पुराने कालीन से अब भी नेफ्थलीन की हलकी सी बू उठ रही थी. वह टौर्च की रोशनी में उस फ्यूज का निरीक्षण करने लगा जो खिड़की के रास्ते बाहर कूदने से पहले उस ने लगाया था. फ्यूज जल चुका था और वहां राख की छोटी सी ढेरी नजर आ रही थी.

राख की इस ढेरी के नीचे उस ने कालीन को छू कर देखा. वह बिलकुल शुष्क था. विक्रम अपना सिर पीटते हुए खिड़की की ओर चल दिया. कुछ देर बाद वह ललिता हाउस से निकल कर सड़क के दूसरी ओर पेड़ों के अंधेरे में छिप गया और मनमोहन वगैरह की वापसी का इंतजार करने लगा.

अंधेरे की चादर में लिपटी उस इमारत की ओर देखते हुए वह सोच रहा था कि यह बिल्डिंग उस का भाग्य बदल सकती है.

कार के इंजन की आवाज उसे ख्वाबों की दुनिया से बाहर ले आई. कार सड़क पर रुकते ही विक्रम पेड़ों की ओट से निकल कर सामने आ गया.

‘‘क्या रहा विक्रम?’’ मनमोहन ने खिड़की पर झुकते हुए पूछा.

‘‘मेरा अंदाजा सही निकला, वाकई गड़बड़ी हो गई थी.’’ विक्रम ने बहुत धीमे लहजे में कहा.

‘‘कोई कहानी सुनाने वाले हो क्या?’’ मनमोहन ने उसे गुस्से से घूरा. मोहित के कहने पर विक्रम कार में बैठ गया ताकि आराम से बात हो सके.

‘‘अपनी बकवास बंद रखो मनमोहन, जो कुछ कहनासुनना है जल्दी से कहो और यहां से निकल चलो.’’ कहते हुए मोहित ने सड़क पर इधरउधर देखा, ‘‘मेरे अंदाजे के मुताबिक ड्यूटी कांस्टेबल गश्त करते हुए इस ओर आने वाला होगा.’’

‘‘यह इस इलाके का पुलिस इंचार्ज है, जो एक मामूली कांस्टेबल से डरता है.’’  मनमोहन ने उस का मजाक उड़ाया.

‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई जो इस काम के लिए तुम लोगों से बात कर बैठा.’’ मोहित नागवारी से बोला, ‘‘बहरहाल, क्या गड़बड़ी हुई थी?’’

‘‘मैं ने 2 घंटे का फ्यूज लगाया था, जबकि वक्त ज्यादा होने की वजह से इस दौरान नेफ्थलीन हवा में उड़ गया.’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘क्या हवा में उड़ गया?’’ श्याम ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हमारा यह फायर एक्सपर्ट साइंस का स्टूडेंट है, बातचीत में बड़े कठिन शब्दों का प्रयोग करता है, जो दूसरों के सिर से गुजर जाते हैं. तुम्हें तो किसी होटल में बरतन धोने का काम करना चाहिए था विक्रम.’’ मनमोहन ने आखिरी शब्द विक्रम को संबोधित करते हुए कहे.

‘‘सवाल यह है कि अब क्या किया जाए?’’ मोहित ने दखल देते हुए कहा.

‘‘सुनो विक्रम, तुम इमारत में वापस जाओगे और आग लगाने के बाद उस वक्त तक बाहर नहीं निकलोगे जब तक शोले तुम्हारे कद से ऊपर न उठने लगें.’’ मनमोहन ने विक्रम को आदेश सा दिया.

‘‘हां, सुन लिया,’’ विक्रम की आवाज गुस्से से कांप रही थी, ‘‘सुन लिया है मैं ने.’’

‘‘अब तुम न कोई फ्यूज इस्तेमाल करोगे और न कोई ऐसी चीज जो हवा में उड़ जाए. आग अपने हाथ से लगाओगे, समझे.’’ मनमोहन बोला.

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विक्रम को उतार कर कार झटके से आगे बढ़ गई और मोहित पीछे मुड़ कर विक्रम को देखने लगा जो अब भी सड़क पर खड़ा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

50 करोड़ की आग : भाग 2

मोहित मडप का पुलिस इंचार्ज था. ललिता हाउस उस की ही मिल्कियत थी, जो कई साल पहले उस की पत्नी की मृत्यु के बाद उसे विरासत में मिली थी. उस की पत्नी ने मरने से कुछ साल पहले 50 करोड़ में ललिता हाउस का बीमा करवाया था, जिस का प्रीमियम अब मोहित भर रहा था. लेकिन आमदनी सीमित होने की वजह से उस के लिए प्रीमियम की अदायगी जारी रखना मुश्किल हो रहा था.

वैसे भी 60 साल पुराना ललिता हाउस उस की जरूरत से कहीं ज्यादा बड़ा था. लंबे समय से देखभाल न होने की वजह से इमारत की हालत भी खराब हो गई थी. चंद महीने पहले उस ने ललिता हाउस को बेचने की कोशिश की तो पता चला कोई भी इस इमारत के 20 करोड़ से ज्यादा देने को तैयार नहीं था.

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फिर 6 सप्ताह पहले जब उस ने अखबार में यह खबर पढ़ी कि बीमा कंपनी बीमाशुदा पुरानी इमारतों की मौजूदा हालत का पुनर्निरीक्षण कर के उन की बीमा की रकम का दोबारा निर्धारण करेगी तो मोहित चौंका. उसे विश्वास था कि उस के मकान की हालत देखने के बाद बीमा कंपनी उस की पौलिसी खत्म कर देगी और इस तरह उसे बड़ी रकम से वंचित होना पड़ेगा. यह सब सोच कर उस ने ललिता हाउस को आग लगाने का फैसला कर लिया और इस के लिए 2 करोड़ की रकम के बदले मनमोहन की सेवाएं ले लीं.

मनमोहन या उस के साथियों का मडप से कोई संबंध नहीं था. इस तरह उन पर किसी किस्म का शक भी नहीं किया जा सकता था. मोहित को विश्वास था कि इमारत जलने के बाद ज्यादा से ज्यादा 2 सप्ताह में बीमा कंपनी अपनी जांच पूरी कर के उसे 50 करोड़ की अदायगी कर देगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर गोवा या कहीं और चला जाएगा.

मकान को आग लगाने के लिए मोहित ने बड़ी उम्दा प्लानिंग की थी लेकिन पहली ही स्टेज पर गड़बड़ हो गई थी. अब वह बारबार पीछे मुड़ कर देखते हुए विक्रम की कामयाबी की दुआएं मांग रहा था.

कार निगाहों से ओझल हो चुकी थी. विक्रम ने हाथ से चेहरा पोंछते हुए मनमोहन को 2-4 गालियां दीं और सड़क पार कर के ललिता हाउस के लौन में दाखिल हो गया. रात के 3 बजने वाले थे, हर तरफ गहरा सन्नाटा और अंधेरा था.

अचानक झाडि़यों में से किसी पक्षी के फड़फड़ाने की आवाज से वह बुरी तरह उछल पड़ा. उस के मुंह से चीख निकलतेनिकलते रह गई. वह अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार फिर मनमोहन की शान में कसीदे पढ़ने लगा.

ललिता हाउस में दाखिल होते ही वह होशियार हो गया. बिना नीचे रुके वह ऊपर वाली मंजिल पर चला गया, जहां पिछली बार उस ने ज्वलनशील पदार्थ नेफ्थलीन के 2 डिब्बे रखे थे.

दोनों डिब्बे उठा कर वह नीचे ले आया, फिर सारी खिड़कियों, दरवाजों के परदे उतार कर उन्हें चौड़ी गैलरी के आखिरी सिरे पर स्थित लाउंज में ढेर कर दिया. वहां का फर्नीचर बाबा आदम के जमाने का था. उस ने फर्नीचर पर चढ़े कपड़े के सारे कवर उतार कर उन के ऊपर डाल दिए.

उस ने मेजें और कुर्सियां भी कपड़ों के ढेर के पास जमा कर दीं. फटे पुराने कालीन भी उस जगह पहुंचा दिए. फिर नेफ्थलीन का एक डिब्बा खोल कर कपड़ों के उस ढेर और फर्नीचर पर ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने लगा.

खिड़कियों और दरवाजों पर भी उस ने ज्वलनशील पदार्थ छिड़क दिया. इस भागदौड़ में उस का जिस्म पसीने से भीग गया था. नेफ्थलीन की गंध दिमाग में चढ़ी जा रही थी. अपने अब तक के काम का निरीक्षण कर के उस ने निश्चिंत होने वाले अंदाज में सिर हिलाया.

इधरउधर निगाह दौड़ाने पर उसे लगभग 4 फीट लंबा बांस का एक टुकड़ा मिल गया. उस ने ढेर पर से एक परदा उठा कर फाड़ा और कपड़े का एक टुकड़ा बांस के सिरे पर लपेटने लगा. फिर उसे नेफ्थलीन में कुछ इस तरह गीला किया कि तरल पदार्थ नीचे टपकने लगा.

जेब से माचिस निकालते हुए वह गहरी नजरों से गैलरी का निरीक्षण करने लगा. गैलरी लगभग 35 फीट लंबी थी. वह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इस ढेर को आग लगाने के बाद कितनी देर में गैलरी के सिरे वाली खिड़की तक पहुंच पाएगा. चांस कम है, यह सोचते हुए उस ने लाउंज की एक खिड़की खोल दी और माचिस जला कर बांस के सिरे पर लिपटे ज्वलनशील पदार्थ में डूबे कपड़े को दिखा दी.

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मशाल भड़क उठी. वह कुछ क्षण तक अपने और खिड़की के बीच की दूरी का अंदाजा लगाता रहा. फिर मशाल को पूरी ताकत के साथ कपड़ों के ढेर की ओर उछाल दिया. मशाल ठीक कपड़ों के ढेर के ऊपर गिरी. एक क्षण को कुछ भी नहीं हुआ. विक्रम जलती हुई मशाल को देखते हुए खिड़की से छलांग लगाने को तैयार खड़ा था. उसे हैरत थी कि फर्नीचर और कपड़ों के ढेर पर फैले ज्वलनशील पदार्थ ने आग क्यों नहीं पकड़ी.

लेकिन फिर अचानक भक की आवाज हुई और कपड़ों का ढेर आतिशबाजी की तरह उड़ गया. शोलों में लिपटे हुए भारी परदे चारों ओर उड़ते हुए नजर आ रहे थे. एक जलता हुआ परदा उस के सिर के ऊपर से होता हुआ खिड़की के बाहर चला गया. एक परदे ने विक्रम को अपनी लपेट में लेने की कोशिश की.

विक्रम अपने आप को बचाने के लिए फर्श पर गिर गया. बचाव के बावजूद परदे का एक कोना उस के सिर पर लिपट गया था. उस ने हाथ मार कर परदा एक तरफ झटक दिया. उस के बाल जल गए थे, उस ने उठना चाहा लेकिन उस का पैर रपट गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया.

उस का सिर जोरों से फर्श से टकराया तो उसे अपनी आंखों के सामने नीलीपीली चिंगारियां सी निकलती दिखाई दीं. और फिर उस का दिमाग अंधेरे में डूबता चला गया.

होश में आते ही वह बुरी तरह बदहवास हो गया, उस के सिर के नीचे कालीन सुलग रहा था. सिर के आधे से ज्यादा बाल जल चुके थे और 1-2 जगह से खाल भी जल गई थी. वह बुरी तरह सिर पटकने लगा. फिर खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ, लेकिन दूसरे ही क्षण उसे फिर गिरना पड़ा. अगर उसे एक पल की भी देर हो जाती तो कुरसी से टूटी हवा में जलती हुई लकड़ी उस के सिर पर लगती.

हाल में धुंआ भर चुका था. हर तरफ आग ही आग नजर आ रही थी. वह कालीन पर रेंगता हुआ पास के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा. उस के हाथों की खाल भी बुरी तरह जल चुकी थी. चेहरे पर भी 1-2 जगह जख्म आए थे. उसे लग रहा था, जैसे वह यहां से नहीं निकल पाएगा.

दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने जोर से टक्कर मारी, दरवाजा खुल गया और वह कलाबाजी खाता हुआ बाहर लौन में आ गिरा. ठीक उसी क्षण एक जोरदार धमाका हुआ और ललिता हाउस की छत का एक सिरा नीचे गिर गया. विक्रम ने बदहवासी में अपनी जगह से छलांग लगा दी और दूर फूलों की क्यारी में जा कर गिरा.

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विक्रम फूलों की क्यारी में पड़ा गहरीगहरी सांस ले रहा था. पीठ पर जलन महसूस हो रही थी. उस ने गरदन घुमा कर पीछे देखा और दूसरे ही क्षण उछल पड़ा. उस के कोट में आग लगी हुई थी, जिस से उस की त्वचा भी जल गई थी. उस ने जल्दी से कोट उतार दिया और पीठ को उस जगह सहलाने लगा, जहां तेज जलन महसूस हो रही थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हत्यारा हमसफर : भाग 3

छोटी बहन का दर्द सुन कर सपना बहुत दुखी हुई. उस ने सारी बात मांबाप को बताई. तब सुरेश कुमार मिश्रा ने दामाद रोहित तथा उस के मांबाप से बात की और अनुरोध किया कि वे लोग श्वेता को प्रताड़ित न करें.

इतना ही नहीं उन्होंने श्वेता को भी समझाया कि वह परिवार में सामंजस्य बनाए रहे. लेकिन सुरेश कुमार के अनुरोध का रोहित और उस के परिजनों पर कोई असर न पड़ा, उन की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही.

इसी तनाव भरी जिंदगी के बीच रोहित का तबादला उदयपुर के महाराणा प्रताप एयरपोर्ट पर हो गया. श्वेता दिल्ली छोड़ कर पति के साथ उदयपुर चली गई. उदयपुर में ही श्वेता ने अप्रैल 2018 में बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम श्रीयम रखा गया. बेटे के जन्म के बाद श्वेता को लगा कि अब उस की खुशियां वापस आ जाएंगी और पति के स्वभाव में भी परिवर्तन आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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श्रीयम के जन्म से न तो रोहित को खुशी हुई और न ही उस के स्वभाव में परिवर्तन आया. उस की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही. रोहित के मातापिता भी श्रीयम के जन्म से खुश नजर नहीं आए.

उदयपुर एयरपोर्ट पर तैनाती के दौरान रोहित तिवारी की मुलाकात सह कर्मी हरीसिंह से हुई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. हरी सिंह अपनी पत्नी सुधा सिंह को साथ ले कर रोहित के घर आने लगा. सुधा सिंह मिलनसार थी. इसलिए श्वेता और सुधा अपना सुखदुख एकदूसरे से शेयर कर लेती थीं. श्वेता ने प्रताडि़त किए जाने की बात भी सुधा से शेयर की थी.

सौरभ चौधरी हरीसिंह का साला था. वह भरतपुर में रहता था, और हैंडीक्राफ्ट का काम करता था. हरीसिंह के मार्फत सौरभ की जानपहचान रोहित से हुई. वह रोहित के घर आने लगा. उस ने श्वेता से भी पहचान बना ली, और उस से खूब बतियाने लगा. सौरभ जब भी रोहित से मिलने आता था, वह उसे शराब पिलाता था.

इधर श्रीयम के जन्म के बाद रोहित तिवारी का ट्रांसफर उदयपुर से जयपुर हो गया. जयपुर में रोहित ने प्रताप नगर थाना क्षेत्र के जगतपुरा में स्थित यूनिक टावर सेक्टर 26, आई ब्लौक में फ्लैट संख्या 103 किराए पर ले लिया और पत्नी श्वेता तथा बेटे श्रीयम के साथ रहने लगा.

जयपुर आ कर भी श्वेता और रोहित के बीच तनाव बरकरार रहा. दोनों का छोटीछोटी बातों में झगड़ा और मारपीट होती रहती थी. हरीसिंह का साला सौरभ चौधरी यहां भी रोहित से मिलने आता था. उसे दोनों की तनाव भरी जिंदगी के बारे में जानकारी थी. रोहित कभीकभी शराब के नशे में कह भी देता था कि वह झगड़ालू श्वेता से छुटकारा पाना चाहता है.

दिसंबर 2019 की बात है. रोहित को कंपनी के काम से 8 से 21 दिसंबर के बीच शहर से बाहर जाना था. इसलिए वह श्वेता को अपने मांबाप के पास दिल्ली छोड़ गया. पहले वह कोलकाता गया फिर मुंबई. 21 दिसंबर को वह मुंबई से दिल्ली आया. घर वालों ने हमेशा की तरह उसे श्वेता के खिलाफ भड़काया. तब दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ.

इस के बाद वह श्वेता को ले कर जयपुर आ गया. दोनों कार से आए थे. घर आ कर श्वेता ने अपनी मां माधुरी को फोन पर बताया कि रोहित ने 272 किलोमीटर के सफर में उसे पानी तक नहीं पीने दिया और वह झगड़ता रहा.

अब तक रोहित अपनी शादीशुदा जिंदगी से ऊब चुका था. वह दूसरी शादी रचा कर अपनी नई जिंदगी की शुरूआत करने के सपने देखने लगा, लेकिन एक पत्नी के रहते वह दूसरी शादी नहीं कर सकता था. उस ने श्वेता की हत्या के साथ मासूम श्रीयम की भी हत्या कराने का फैसला किया, ताकि शादीशुदा जिंदगी का नामोनिशान मिट जाए. वह जिंदगी की बैक हिस्ट्री को ही डिलीट करना चाहता था.

3 जनवरी, 2020 को रोहित ने सौरभ चौधरी को फोन कर जयपुर एयरपोर्ट के पास स्थित होटल फ्लाइट व्यू में बुलाया. वहां रोहित ने सौरभ के साथ बैठ कर पत्नी व बेटे की हत्या की साजिश रची. साजिश इस तरह रची गई कि रोहित का नाम सामने नहीं आए. रोहित ने हत्या के लिए सौरभ को 20 हजार रुपए भी दे दिए.

दरअसल सौरभ चौधरी शादीशुदा था. रोहित की तरह सौरभ भी पत्नी से परेशान रहता था और पत्नी से छुटकारा पाना चाहता था. इसलिए दोनों में तय हुआ कि पहले वह रोहित का साथ देगा. फिर रोहित उस की पत्नी की हत्या में उस का साथ देगा. यही कारण था कि मात्र 20 हजार में सौरभ डबल मर्डर को राजी हो गया था.

5 जनवरी, 2020 को मोबाइल रिचार्ज न कराने को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. इस के बाद उस ने श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा को फोन कर के झगड़े की जानकारी दी और गुस्से में कहा, ‘‘पापा जी, आप श्वेता को ले जाइए. मैं उस का मुंह नहीं देखना चाहता. आप को जितना पैसा चाहिए ले लीजिए. अन्यथा मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

दामाद की धमकी से सुरेश कुमार मिश्रा घबरा उठे. उन्होंने दामाद को भी समझाया और बेटी को भी. लेकिन समझाने के बावजूद रोहित का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उस ने फोन कर सौरभ चौधरी को जयपुर बुला लिया और श्वेता तथा उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या की पूरी योजना तैयार कर के हत्या का दिन तारीख और समय तय कर दिया.

योजना के मुताबिक 7 जनवरी, 2020 की सुबह 9 बजे रोहित जयपुर एयरपोर्ट पहुंच गया और अपने काम पर लग गया. वह वहां एक मीटिंग में भी शामिल हुआ. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के सामने भी वह आताजाता रहा, ताकि उस का फोटो कैमरों में कैद हो जाए.

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इधर योजना के मुताबिक सौरभ चौधरी भी 7 जनवरी को दोपहर बाद लगभग 2 बजे रोहित के यूनिक टावर अपार्टमेंट स्थित फ्लैट पर पहुंचा और डोरवेल बजाई. श्वेता ने दरवाजा खोला तो सामने सौरभ खड़ा था.

चूंकि सौरभ को श्वेता जानतीपहचानती थी, इसलिए उसे घर के अंदर ले गई और कमरे में बिठाया. फिर उस ने 2 कप चाय बनाई और दोनों ने बैठ कर चाय पी. चाय पी कर दोनों ने कप प्लास्टिक की टेबल पर रख दिए.

इसी बीच श्वेता दूसरे कमरे में चली गई, जहां उस का बेटा श्रीयम सो रहा था. तभी मौका पा कर सौरभ रसोई में गया और अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली उठा लाया. चंद मिनट बाद श्वेता वापस आई तो सौरभ ने अकस्मात श्वेता के सिर पर मूसली से वार कर दिया. श्वेता सिर पकड़ कर पलंग पर गिर पड़ी.

इस के बाद सौरभ ने श्वेता को दबोच लिया, और मूसली से उस का सिर व चेहरा कूट डाला. इस के बाद वह पुन: रसोई में गया और चाकू ले आया और चाकू से श्वेता का गला रेत दिया. उस ने चाकू पलंग पर तथा मूसली पलंग के नीचे फेंक दी.

श्वेता की हत्या करने के बाद सौरभ चौधरी दूसरे कमरे में पहुंचा, जहां मासूम श्रीयम पलंग पर सो रहा था. सौरभ को उस मासूम पर जरा भी दया नहीं आई और न ही उस का कलेजा कांपा. उस ने श्रीयम को गला दबा कर मार डाला तथा उस का सिर भी कूट डाला. इस के बाद सौरभ ने उस का शव तौलिए में लपेटा और बाउंड्री वाल के पीछे झाडि़यों में फेंक दिया.

श्रीयम का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने फिर से कमरे में आ कर श्वेता का मोबाइल फोन अपनी जेब में डाला और मुंह पर कपड़ा ढक कर फ्लैट से निकल गया. बाद में उस ने श्वेता का मोबाइल फोन तोड़ कर सांगानेर से शिकारपुरा की ओर बहने वाले नाले में फेंक दिया और दूसरा फोन खरीद कर फिरौती के लिए रोहित को मैसेज भेजा.

इधर शाम 4 बजे नौकरानी काम करने फ्लैट पर आई तब घटना की जानकारी हुई. इस के बाद तो कोहराम मच गया. थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना मिली तो पुलिस मौके पर पहुंची.

11 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त रोहित तिवारी तथा सौरभ चौधरी को जयपुर कोर्ट में पेश किया. पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन व सिम कार्ड बरामद करने के लिए अदालत में अभियुक्तों की 3 दिन के रिमांड की अरजी लगाई. अदालत ने 2 दिन की रिमांड अरजी मंजूर कर ली.

रिमांड मिलने पर जब पुलिस ने सौरभ से श्वेता के मोबाइल फोन व सिम के बारे में पूछा तो उस ने सिम तो बरामद करा दिया, लेकिन मोबाइल फोन के बारे में बताया कि उस ने मोबाइल तोड़ कर सांगानेर के नाले में फेंक दिया था. रिमांड के दौरान पुलिस मोबाइल बरामद नहीं कर सकी. जिस से उन दोनों को 13 जनवरी को अदालत में पेश करना पड़ा.

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पुलिस की अरजी पर अदालत ने 15 जनवरी, 2020 तक फिर से रिमांड अवधि बढ़ाई लेकिन पुलिस मोबाइल फोन फिर भी बरामद नहीं कर सकी. इसलिए उन्हें अदालत में पेश कर जयपुर की जिला जेल भेज दिया गया. हरीसिंह को पुलिस ने उदयपुर से हिरासत में जरूर ले लिया था, परंतु बाद में उसे इस मामले में क्लीन चिट दे दी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हत्यारा हमसफर : भाग 1

उस दिन जनवरी 2020 की 7 तारीख थी. शाम के 7 बज रहे थे. हर रोज की तरह घरेलू नौकरानी पूजा, जयपुर की यूनिक टावर सोसायटी के आई ब्लौक स्थित रोहित तिवारी के फ्लैट नंबर 103 पर काम करने के लिए पहुंची. उस ने डोरबैल बजाई तो मालकिन श्वेता तिवारी ने दरवाजा नहीं खोला और न ही अंदर कोई हलचल सुनाई दी.

पूजा ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला तो वह खुल गया. नौकरानी कमरे के अंदर पहुंची तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर पलंग पर मालकिन श्वेता तिवारी मृत पड़ी थीं. उन का मुंह खून से लाल था.

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पूजा चीखतेचिल्लाते बाहर निकली और पासपड़ोस के फ्लैट्स में रहने वाले लोगों को जानकारी दी. मर्डर की खबर से सोसायटी में हडकंप मच गया, लोगों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच किसी ने थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना दे दी.

पौश सोसायटी के फ्लैट में हत्या की सूचना पा कर प्रताप नगर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. उन्होंने यह खबर वरिष्ठ अधिकारियों को दी और पूछताछ में जुट गए. पूछताछ से पता चला कि जिस फ्लैट में मर्डर हुआ है उस में रोहित तिवारी किराए पर रहते हैं. रोहित इंडियन औयल कारपोरेशन में सीनियर मैनेजर हैं और जयपुर एयर पोर्ट पर बतौर फ्यूल इंचार्ज तैनात हैं. मर्डर उन की पत्नी श्वेता तिवारी का हुआ है.

हत्या का मामला हाई प्रोफाइल था. सूचना पा कर पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव, डीआईजी सुभाष बघेल, एएसपी डा. अवधेश सिंह, एसपी डा. सतीश कुमार, डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा सीओ संजय शर्मा घटना स्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जयपुर एयरपोर्ट पर तैनात रोहित तिवारी को उन की पत्नी श्वेता की हत्या की सूचना दी तो कुछ देर में वह भी फ्लैट पर आ गए.

रोहित ने फ्लैट के अंदर देख कर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बेड पर पड़ी लाश उस की पत्नी श्वेता की है, लेकिन उस के 21 माह के मासूम बेटे श्रीयम का पता नहीं है. लगता है, हत्यारों ने श्वेता की हत्या के बाद श्रीयम का अपहरण कर लिया है. रोहित की बात सुन कर पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. क्योंकि अभी तक जानकारी हत्या की थी लेकिन अब श्रीयम के अपहरण की बात सामने आई थी.

पुलिस अधिकारियों ने हत्या और अपहरण के इस मामले को गंभीरता से लेते हुए घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. कमरे के अंदर पड़े बेड पर 30-32 वर्षीय श्वेता तिवारी की लाश पड़ी थी. उस के सिर से खून रिस रहा था, जिस से उस का चेहरा खून से लाल था. उस का गला भी रेता गया था. सिर पर भी जख्म था.

बेड पर खून से सना चाकू पड़ा था, बेड के नीचे अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली पड़ी थी. बिस्तर भी खून से तरबतर था. खून की बूंदे दीवार पर भी दिखाई दे रही थीं. कमरे में रखी प्लास्टिक टेबल पर चाय के 2 कप रखे थे. जिस में कुछ चाय बची हुई थी. श्वेता का मोबाइल फोन भी गायब था.

घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि श्वेता का हत्यारा कोई करीबी ही रहा होगा, जिस के आने पर श्वेता ने दरवाजा खोला और उसे कमरे में बिठा कर चाय पिलाई. इसी बीच हत्यारे ने अदरक कूटने वाली मूसली से उस के सिर पर प्रहार कर उसे पलंग पर गिरा दिया होगा, फिर चाकू से उस का गला रेता होगा. इस के बाद वह श्रीयम का अपहरण कर ले गया होगा. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू व मूसली को सुरक्षित कर लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटना स्थल का निरीक्षण किया और दीवार, प्याले, फर्श व बेड से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड टीम ने सुराग के लिए खोजी कुत्ते को छोड़ा. खोजी कुत्ता घटना स्थल को सूंघ कर भौंकते हुए बाहर निकला और रोहित की कार के 2 चक्कर काटे. कुछ देर वह रोहित के आसपास भी मंडराता रहा. इस से टीम को रोहित पर शक हुआ. किंतु उस के खिलाफ कोई पक्का सुबूत न मिलने से उस से ज्यादा कुछ पूछताछ नहीं की गई.

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्वेता का शव पोस्टमार्टम के लिए जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल भिजवा दिया.

श्वेता तिवारी का मायका उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर स्थित सर्वोदय नगर में था और ससुराल गांधी नगर, दिल्ली में थी. रोहित ने फोन कर के श्वेता की हत्या और मासूम श्रीयम के अपहरण की जानकारी अपने माता पिता तथा ससुराल वालों को दे दी. बेटी की हत्या की खबर पा कर श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा उन की पत्नी माधुरी मिश्रा घबरा गईं.

परिवार में कोहराम मच गया. वह पत्नी, बेटे शुभम व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ निजी वाहन से जयपुर के लिए रवाना हो लिए. अब तक श्वेता की हत्या की खबर टीवी चैनलों पर भी प्रसारित होने लगी थी. वह मोबाइल फोन पर रास्ते भर हत्या की जानकारी लेते रहे.

पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव ने इस हत्या और अपहरण के मामले को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने 22 महीने के श्रीयम का पता लगाने के लिए 6 थाना प्रभारियों, 3 सीओ तथा पुलिस के 100 जवानों को लगा दिया. भारीभरकम पुलिस फोर्स ने डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा एसपी डा. सतीश कुमार के निर्देशन में श्रीयम की खोज आरंभ की.

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इस बारे में पुलिस ने तकरीबन डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की. दरजनों संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. सैकड़ों संदिग्ध नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, तकनीक का सहारा लिया. लेकिन श्रीयम का कोई सुराग नहीं मिला और न ही श्वेता के हत्यारों का.

पुलिस अधिकारी रात भर रोहित तिवारी के फ्लैट पर जुटे रहे. एसपी डा. सतीश कुमार एएसपी डा. अवधेश सिंह तथा सीओ संजय शर्मा  अन्य पुलिस कर्मियों के साथ जांच में जुटे थे.

वह सीसीटीवी फुटेज खंगाल चुके थे और कमरे की हर चीज का निरीक्षण कर रहे थे. तभी रोहित तिवारी के मोबाइल फोन पर एक मैसेज आया. मैसेज देख कर वह चीख पड़ा, ‘‘सर, यह देखो श्रीयम के अपहर्त्ता का मैसेज आया है. उस ने 30 लाख रुपए फिरौती की मांग की है.’’

फिरौती का मैसेज मृतका श्वेता के मोबाइल नंबर से भेजा गया था. रोहित ने उसी नंबर पर काल बैक कर अपहर्त्ता से कहा कि वह फिरौती की रकम देने को तैयार है लेकिन पहले श्रीयम का चेहरा दिखाए. लेकिन फोन करने वाले ने चेहरा नहीं दिखाया और फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

पुलिस अधिकारियों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अपहर्त्ता को रोहित का मोबाइल नंबर कैसे मिला. क्या अपहर्त्ता रोहित की जान पहचान का है?

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि सुबह मृतका श्वेता के मांबाप व अन्य परिजन रोहित के फ्लैट पर आ गए. श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा मां माधुरी मिश्रा ने आते ही एसपी डा. सतीश कुमार को बताया कि उन की बेटी की हत्या उन के दामाद रोहित ने ही की है.

5 जनवरी को मोबाइल रिचार्ज न करवाने की बात को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा हुआ था. मारपीट करने के बाद रोहित ने उन के मोबाइल पर फोन किया था. उस ने गुस्से में कहा था, ‘‘पापा जी, हम बहुत परेशान हैं. आप को जितना रुपया चाहिए, ले लो लेकिन श्वेता को अपने साथ ले जाओ. नहीं तो मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

इस पर उन्होंने रोहित को समझाने का प्रयास किया तो उस ने फोन काट दिया. इस के बाद उन्होंने श्वेता को काल कर के समझाया था. लेकिन यह नहीं सोचा था कि रोहित हत्या कर ही देगा.

रोहित जिस तरह से बारबार अपनी बेगुनाही का सबूत दे रहा था और हत्या के समय अपनी मौजूदगी औफिस में बता रहा था, उस से पुलिस अधिकारियों को उस पर शक बढ़ता जा रहा था. लेकिन जब मृतका के मांबाप ने भी उस पर सीधे तौर पर हत्या का आरोप लगाया तो पुलिस का भी शक उस पर गहराने लगा.

8 जनवरी, 2020 की दोपहर 3 बजे हल्ला मचा कि एक बच्चे का शव रोहित के फ्लैट की बाउंड्रीवाल के पीछे झाडि़यों में पड़ा है. पुलिस ने झाडि़यों से शव को बाहर निकाला, शव तौलिया में लिपटा था. तौलिया हटाया गया तो सभी अवाक रह गए, शव श्रीयम का ही था. उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. श्रीयम का सिर भी कुचला गया था. जिस श्रीयम को खोजने के लिए पुलिस के 100 जवान पसीना बहा रहे थे, उस का शव उसी के घर के पीछे झाडि़यों में पड़ा था. नाती की लाश देख कर सुरेश कुमार मिश्रा व उन की पत्नी माधुरी मिश्रा फफक पड़ी. बेटे शुभम ने मांबाप को धैर्य बंधाया.

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मासूम श्रीयम की हत्या की जानकारी पाते ही पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव तथा डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन वहां आ गए. उन्होंने मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों से कहा कि मां के बाद बेटे की हत्या दिल को झकझोर देने वाली है. ऐसे क्रूर हत्यारों को वह जल्द से जल्द सलाखों के पीछे देखना चाहते हैं. इस के बाद उन्होंने श्रीयम का शव भी पोस्टमार्टम के लिए महात्मा गांधी अस्पताल भेज दिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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