
सौजन्य- मनोहर कहानियां
अतीक अहमद सपा के मुलायम सिंह जैसे बड़े नेताओं की शह पर बारबार विधायक बना और मनमाने अपराध करता, कराता रहा. जिस के बल पर उस ने अरबों की संपत्ति बनाई. लेकिन योगी सरकार ने उस के पर कतर दिए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार उसे रखने के लिए भले ही साबरमती जेल को हर तीसरे महीने 3 लाख रुपए दे रही है, लेकिन अब वह शायद ही…
उत्तर प्रदेश के माफिया डौन अतीक अहमद की 300 करोड़ की 27 से अधिक संपत्तियों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया है. जबकि अतीक अहमद इस समय गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.
यह माफिया डौन 5-5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव जीत कर विधायक, तो एक बार इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद रह चुका है. अतीक अहमद पर इस समय हत्या, अपहरण, वसूली, मारपीट सहित 188 मुकदमे दर्ज हैं. जून, 2019 से अतीक अहमद गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में हाई सिक्युरिटी जोन में बंद है.
माफिया डौन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की 4-4 जेलें उसे संभाल नहीं सकीं. इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डौन को नहीं संभाल सकते.
इस का कारण यह था कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उस ने अपने गुंडों से लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उस से उस की प्रौपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे.
अतीक अहमद ने अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिस से लोगों में उस की दहशत बनी रहे. इस वीडियो को देखने के बाद राज्य में हड़कंप मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली जेल भेजा गया. पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते.
लोकसभा के चुनाव सामने थे. अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना जरूरी था. इसलिए इस के बाद उसे इलाहाबाद की नैनी जेल में शिफ्ट किया गया. उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए.
ये भी पढ़ें- राजनीति की विषबल: भाग 3
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद, उस के बेटे के अलावा 4 सहयोगियों सहित 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. जब अतीक के सारे कारनामों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2019 को यूपी सरकार को अतीक अहमद को राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य की जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भेजा गुजरात
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 3 जून, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुजरात सरकार के नाम 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट जमा करा कर अतीक को फ्लाइट से अहमदाबाद भेजा. फिलहाल वह गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.
यह 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट अतीक अहमद को जेल में रखने का मात्र 3 महीने का खर्च था. उस के बाद हर 3 महीने पर अतीक अहमद को अहमदाबाद की जेल में रखने का खर्च उत्तर प्रदेश का कारागार विभाग गुजरात सरकार को भेजता है.
पिछले 40 सालों में अतीक अहमद ने अपनी धाक राजनीतिक पहुंच के बल पर ऐसी बनाई है कि उस के सामने कोई आंख मिला कर बात करने का साहस नहीं कर सकता. 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई और जबरदस्त शरीर वाले अतीक अहमद की आंखें ही इतनी खूंखार हैं कि किसी को उस के सामने देख कर बात करने का साहस ही नहीं होता.
अतीक अहमद के सामने जो भी सीना तान कर आया, उस की हत्या करा दी गई. उस पर 6 से अधिक हत्या के मामले चल रहे हैं. इस डौन के गैंग में 120 से भी अधिक शूटर हैं. पुलिस ने अतीक अहमद के गैंग का नाम आईएस (इंटर स्टेट) 227 रखा है. इस के गैंग का मुख्य कारोबार इलाहाबाद और आसपास के इलाके में फैला है. अतीक अहमद ने साबित कर दिया है कि पुलिस गुलाम है और सरकार के नेता वोट के लालच में कुछ भी कर सकते हैं. किसी भी डौन को नेता बना सकते हैं. अतीक अहमद की कहानी में मोड़ 1979 से आया.
10 अगस्त, 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद में तांगा चलाते थे. इलाहाबाद के मोहल्ला चकिया के रहने वाले फारुक तांगे वाले के रूप में मशहूर पिता के संघर्ष को अतीक ने करीब से देखा था. हाईस्कूल में फेल हो जाने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी थी. 17 साल की उम्र में उस पर कत्ल का पहला इल्जाम लगा था. उस के बाद वह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा.
यह तब की बात है, जब इलाहाबाद में नए कालेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे. जिस की वजह से खूब ठेके बंट रहे थे. तभी कुछ नए लड़कों में अमीर बनने का ऐसा चस्का लगा कि वे अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. कुछ भी यानी हत्या, अपहरण और रंगदारी की वसूली.
अमीर बनने का चस्का अतीक को भी लग चुका था. 17 साल की उम्र में ही उस पर एक कत्ल का इल्जाम लग चुका था, जिस की वजह से लोगों में उस की दहशत बैठ गई थी. उस का भी धंधा चल निकला. वह ठेके लेने लगा, रंगदारी वसूली जाने लगी.
उस समय इलाहाबाद का डौन चांदबाबा था. पुराने शहर में उस का ऐसा खौफ था कि उस के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. चौक और रानीमंडी के उस के इलाके में पुलिस भी जाने से डरती थी. कहा जाता है कि उस के इलाके में अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला जाता था तो बिना पिटे नहीं आता था.
तब तक अतीक 20-22 साल का ठीकठाक गुंडा माना जाने लगा था. चांदबाबा का खौफ खत्म करने के लिए नेता और पुलिस एक खौफ को खत्म करने के लिए दूसरे खौफ को शह दे रहे थे. इसी का नतीजा था कि अतीक बड़े गुंडे के रूप में उभरने लगा. परिणाम यह निकला कि वह चांदबाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरा बनता गया.
अतीक ने बना लिया अपना गैंग
अतीक अहमद ने इलाहाबाद में अपना गैंग बना लिया था. अपने इसी गैंग की मदद से वह इलाहाबाद के लिए ही नहीं, अगलबगल के कस्बों के लिए भी आतंक का पर्याय बन गया था. केवल गैंग बना लेना ही बहादुरी नहीं होती, गैंग का खर्च, उन के मुकदमों का खर्च, हथियार खरीदने के लिए पैसे आदि की भी व्यवस्था करनी होती है. इस के लिए अतीक गैंग की मदद से इलाहाबाद के व्यापारियों का अपहरण कर फिरौती तो वसूलता ही था, शहर में रंगदारी भी वसूली जाने लगी थी.
इस तरह अतीक अहमद पुलिस के लिए चांदबाबा से भी ज्यादा खतरनाक बन गया था. पुलिस उसे और उस के गैंग के लड़कों को गलीगली खोज रही थी.
आखिर एक दिन पुलिस बिना लिखापढ़ी के अतीक को उठा ले गई. उसे कहां ले जाया गया, कुछ पता नहीं था. यह सन 1986 की बात है.
उस समय राज्य में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी तो केंद्र में राजीव गांधी की. अतीक को पुलिस कहां ले गई, इस की किसी को खबर नहीं थी. सभी को लगा कि अब उस का खेल खत्म हो चुका है.
काफी खोजबीन की गई. जब कहीं उस का कुछ पता नहीं चला तो इलाहाबाद के ही एक कांग्रेसी सांसद को सूचना दी गई. कहा जाता है कि वह सांसद राजीव गांधी के बहुत करीबी थे. उन्होंने राजीव गांधी से बात की. दिल्ली से लखनऊ फोन आया और लखनऊ से इलाहाबाद.
ये भी पढ़ें- माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 1
उस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. लेकिन ऐसे ही नहीं. अतीक भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा. उस ने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वा कर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया. उस के जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उस पर एनएसए लगा दिया. इस से लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है.
एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया. उसे कांग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिस की वजह से वह जिंदा बचा था. इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है. फिर उस ने किया भी यही.
1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था. अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया. सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा. चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी.
अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी. चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया. परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया. इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया.
विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी. इस के बाद चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया हो गया. कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए. जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए.
अब इलाहाबाद पर एकलौते डौन अतीक अहमद का राज हो गया. अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया. उसे राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया.
अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक छा गया था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे.
राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरेधीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इस का उल्टा था. अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उस ने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली.
सफेदपोश बनने के बाद उस के द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे. राजनीति की आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमे विधायक, सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए.
वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता था. कोई एक अपराध नहीं था उस का. 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या उस के खाते में दर्ज हुईं.
जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता था. इलाहाबाद के कसारी मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके में उस की अक्सर गैंगवार होती रहती थी.
विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था. 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया.
1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अतीक अहमद को अपनी समाजवादी पार्टी से टिकट दिया. इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया.
बाद में किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया. सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा. 1999 में उस ने अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया. उस के बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना.
विदेशी गाडि़यों और हथियारों का शौक
जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे. कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाडि़यां थीं. लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इस का चस्का लग गया. विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उस ने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. जल्दी ही उस का नाम सांसद से भी बड़ा हो गया.
सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाडि़यां रखनी ही छोड़ दीं. गाडि़यों के बाद नंबर था हथियारों का. इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है. उस ने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए. उस ने विदेशी गाडि़यों का तो पूरा काफिला ही खड़ा कर दिया था. अतीक किया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था.
अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है. वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डराधमका कर नहीं मांगता था. वह शहर के पौश इलाके में बैनर लगवा देता था कि आप का प्रतिनिधि आप से सहयोग की अपेक्षा रखता है. इस के बाद लोग खुद ही अतीक के औफिस में चंदा पहुंचा देते थे.
अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता तो वह बाकायदा अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता कि क्या करना है और क्या नहीं करना.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं की जरूरत थी. मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया. अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया.
अगले भाग में पढ़ें- अतीक अहमद एक बार फिर हुआ गिरफ्तार
सौजन्य- मनोहर कहानियां
अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई. इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे. इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया.
राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के औफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. दिसंबर में उस की गाड़ी पर फायरिंग हुई. पर इन दोनों हमलों मे वह बच गया.
25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ. इस में राजू पाल को कई गोलियां लगीं. हमलावर फरार हो गए. गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैंपो से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया. इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं. जब तक राजू जीवनज्योति अस्पताल पहुंचता, उस की मौत हो चुकी थी. उसे 19 गोलियां लगी थीं.
इस हत्या का एक कारुणिक पहलू यह था कि हत्या के 9 दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी. उस की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उस के भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया.
एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.
2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.
कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.
अतीक का टूटा किला
इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.
अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.
2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.
उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.
एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.
देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.
गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.
माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 5
जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.
अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.
औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.
इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.
2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.
बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.
मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.
2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.
पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
एक बार फिर हुआ गिरफ्तार
फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.
अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.
उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.
ये भी पढ़ें- माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 4
2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.
ढह गया अतीक अहमद का किला
कभी प्रयागराज में अतीक के नाम की तूती बोतली थी. लोग उस का नाम सुन कर कांपने लगते थे. पर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आते ही प्रदेश के माफिया डौनों की तो जैसे शामत आ गई है.
इन्हीं माफिया डौनों में प्रदेश के सब से कुख्यात माफिया डौन अतीक अहमद की अरबों की संपत्ति कुर्क कर के ढहा दी गई है या फिर सील कर दी गई है.
अगले भाग में पढ़ें- अतीक का बेटा उमर रेंज का सब से बड़ा इनामी अपराधी बना
सौजन्य- मनोहर कहानियां
जिलाधिकारी के आदेश पर पहले प्रशासन ने प्रयागराज स्थित अतीक अहमद की अरबों की कीमत की कुल 37 संपत्तियां कुर्क कीं. उस के बाद प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने इन संपत्तियों को गिराना शुरू किया.
सब से पहले 5 सितंबर को सिविल लाइंस स्थित अतीक के साढ़ू इमरान का मद्रास होटल गिराया गया. इस के बाद 7 सितंबर को नवाब यूसुफ रोड पर अतीक का गोदाम, 9 सितंबर को झूंसी स्थित कटका गांव में बने कोल्डस्टोरेज को गिराया गया.
इसे गिराने में 2 दिन लगे. करीब 10 हजार वर्गमीटर में बने इस कोल्डस्टोरेज का निर्माण अवैध रूप से कराया गया था. प्राधिकरण से इस का नक्शा भी पास नहीं कराया गया था. यह कोल्डस्टोरेज अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन के नाम था, जिस की कीमत करीब 30 करोड़ रुपए थी.
10 सितंबर को अतीक के करीबी असद की करेली के बाजूपुर गांव में की गई प्लौटिंग को जमींदोज किया गया. इस के बाद 11 सितंबर को मेहंदौरी में अतीक के चचेरे भाई हमजा की संपत्तियों पर बुलडोजर चला.
12 सितंबर को सिविल लाइंस में हाईकोर्ट हनुमान मंदिर के पास स्थित अतीक के दोमंजिला व्यावसायिक भवन को ध्वस्त किया गया. 13 सितंबर को लूकरगंज में अतीक द्वारा कराए गए अवैध निर्माण को हटाया गया.
20 सितंबर को करबला स्थित कार्यालय के एक हिस्से से अतिक्रमण हटाया गया. थाना खुल्दाबाद क्षेत्र के करबला स्थित अतीक का यह औफिस पुलिस द्वारा कुछ दिनों पहले ही गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कुर्क किया गया था. पीडीए ने कार्यालय का जो हिस्सा तोड़ा था, वह बिना नक्शा पास कराए ही बनवाया गया था.
22 सितंबर को अब तक की सब से बड़ी काररवाई करते हुए चकिया स्थित अतीक के आलीशान आशियाने को गिराया गया. करीब 3 हजार वर्गमीटर में बने इस आवास को गिराने के लिए 4 जेसीबी लगाई गई थीं. करीब साढ़े 5 घंटे में अतीक का किले जैसा मकान गिरा दिया गया. प्रशासन वहां इतना पुलिस बल ले कर आया था कि किसी की विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई.
इस के अलावा प्रयागराज से सटे कौशांबी जिले के पिपरी थाना क्षेत्र के रहीमाबाद में अतीक अहमद ने करोड़ों रुपए के खेत खरीदे थे. पास ही एयरपोर्ट और कई बड़े शैक्षणिक संस्थान होने की वजह से अतीक की यह जमीन काफी महंगी है.
ये भी पढ़ें- Crime Story: औनलाइन गेम्स- खिलाड़ी बन रहे हैं
इस जमीन को खेती वाली दर्शाया गया था. जिलाधिकारी के आदेश पर इस जमीन को भी कुर्क करने की तैयारी चल रही है. इस के अलावा अतीक का एक मकान प्रयागराज के नीमसराय की आवासीय योजना में भी है. यह मकान अतीक अहमद के ही नाम है.
इस मकान को भी कुर्क किया जा चुका है. यह सारी काररवाई इसलिए की जा रही है, क्योंकि अतीक ने यह सारी संपत्ति आपराधिक और समाज विरोधी कृत्यों के जरिए अर्जित की थी.
इतना ही नहीं, अतीक अहमद के ड्रीम प्रोजेक्ट अलीना सिटी पर भी 10 सालों बाद एक बार फिर प्रशासन की बड़ी काररवाई हुई है. अलीना सिटी में बने दरजनों अर्धनिर्मित मकानोें को गिरा दिया गया है. प्रयागराज शहर के करेली स्थित अतीक अहमद और उस के करीबियों के हजारों बीघे जमीन पर फैले अलीना सिटी प्रोजेक्ट पर प्रशासन ने कड़ी काररवाई की है.
10 साल पहले शुरू हुई अलीना सिटी के पूरे निर्माण को मायावती सरकार में ध्वस्त कर दिया गया था. सपा सरकार में एक बार फिर अतीक ने अपनी जमीनों पर कब्जा कर के निर्माण कार्य शुरू किया. योगी सरकार बनने के बाद एक बार फिर अलीना सिटी पर जांच शुरू हुई. जांच में अलीना सिटी विवादित पाई गई तो इसे गिरा दिया गया.
यह सारी काररवाई केवल अतीक अहमद पर ही नहीं हो रही है. उस के गुर्गों की सपत्तियों को भी कुर्क कर के गिराया जा रहा है. प्रशासन की काररवाई से अतीक ही नहीं उस के गैंग के तमाम अपराधी परेशान हैं.
मजे की बात यह है कि पीडीए ने अतीक और उस के गुर्गों के खिलाफ जो काररवाई की है, प्रशासन उस में आए खर्च को अतीक एंड कंपनी से वसूलने की तैयारी कर रहा है.
ये भी पढ़ें- Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 4
अब तक की सारी काररवाइयों का हिसाब तैयार किया जा रह है. एक मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग 5 सौ रुपए है. जेसीबी का प्रति घंटे का किराया एक हजार रुपए है. हिसाब बन जाने के बाद अतीक अहमद और उस के गुर्गों को रकम जमा कराने का नोटिस भेजा जाएगा.
अतीक का बेटा और भाई
अतीक अहमद के बड़े बेटे मोहम्मद उमर जो कानून की पढ़ाई कर रहा है, पर सीबीआई ने 2 लाख रुपए का इनाम घोषित किया है. इस तरह अतीक का बेटा उमर रेंज का सब से बड़ा इनामी अपराधी बन गया है. साबीआई द्वारा 2 लाख का इनाम घोषित करने से अतीक सहित उस का पूरा परिवार परेशान है. घर में एक साथ दोदो इनामी होने की वजह से आए दिन एसटीएफ और क्राइम ब्रांच का छापा पड़ता रहता है, जिस से परिवार को काफी परेशानी होती है.
पूर्व सांसद अतीक अहमद के भाई अशरफ और बेटे उमर तक पहुंचने के लिए एसटीएफ और क्राइम ब्रांच जगहजगह छापेमारी करती रहती है.
अतीक के भाई अशरफ पर पुलिस ने एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा है. अतीक अहमद के बेटे उमर पर आरोप है कि देवरिया जेल में बंद अतीक ने जब लखनऊ के प्रौपर्टी डीलर मोहित अग्रवाल की पिटाई कर के जबरन प्रौपर्टी के पेपर साइन कराए थे और धाक जमाने के लिए इस पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था. इस मामले में उस का बेटा भी शामिल था. उमर अतीक अहमद के सांसद का चुनाव लड़ते समय चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार सब के सामने आया था. उस पर मोहित अग्रवाल से करोड़ों रुपए की जमीन और कंपनियों को जबरदस्ती अपने नाम कराने का आरोप है. काफी दिनों तक वह मेरठ के नौचंदी इलाके के भवानीनगर में रहने वाली अपनी बुआ के यहां छिपा रहा. एसटीएफ को जब इस की जानकारी हुई तो वहां छापा मारा गया. पर उमर को इस बात की भनक लग चुकी थी, जिस से वह फरार हो गया था. एक लाख के इनामी अतीक के भाई पूर्व विधायक अशरफ की किसान नेता की हत्या, झलवा में एक सीमेंट व्यवसाई के साथ बेरहमी से मारपीट, अल्कमा हत्याकांड, विधायक राजू पाल हत्याकांड, रंगदारी के लिए धमकी समेत अन्य कई मुकदमों में पुलिस को तलाश है. अशरफ के घर की 4 बार कुर्की हो चुकी है. अशरफ की गिरफ्तारी पर अगस्त, 2017 को पहली बार 5 हजार, फिर 15 हजार, उस के बाद 50 हजार और अब एक लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया है.
सौजन्य: मनोहर कहानियां
विपिन शर्मा मोदी नगर सौंदा रोड का रहने वाला था, जबकि अर्पण चौधरी गांव खुशहाल, गुलावठी का रहने वाला था. विपिन और अर्पण मोदीनगर में एक साथ पढ़े थे, उन की पुरानी दोस्ती थी. दोनों ही सुपारी ले कर हत्या करने के पेशे से जुड़े थे.
विपिन मनोज के साथ जितेंद्र को भी जानता था. इसी कारण साजिश करने वालों और सुपारी किलर की कडि़यां आपस में जुड़ गई थीं. विपिन अपनी बहन के साथ दिल्ली के अशोक नगर में रहता था. दोनों जितेंद्र को पहले से जानते थे.
जितेंद्र से उन्होंने इस काम के लिए 5 लाख मांगे. लेकिन बाद में सौदेबाजी करने के बाद 2 लाख रुपए में हत्या करने की बात तय हो गई. जितेंद्र ने विपिन तथा अर्पण को 50 हजार रुपए एडवांस दे दिए और कहा कि जल्द ही मनोज के हाथों इस काम को करने के लिए हथियार उन तक भिजवा देगा.
जितेंद्र ने दोनों को नरेश त्यागी की फोटो दे दी साथ ही यह भी बता दिया कि वह हर सुबह साढ़े 5 बजे से 6 बजे के बीच लोहिया नगर के औफिसर पार्क में घूमने के लिए जाता है. उस ने एक दिन सुबह के वक्त दोनों को अपने साथ कार में ले जा कर नरेश त्यागी को दिखा भी दिया.
हत्यारों तक पहुंचाए हथियार
जितेंद्र ने मनोज के जरिए दोनों को एक .30 बोर का पिस्तौल तथा एक तमंचा और कुछ कारतूस भिजवा दिए थे. साथ ही जितेंद्र ने बता दिया कि काम होने के बाद वे उस से संपर्क न करें बल्कि मनोज को मैसेज भेज कर काम होने की बात बता दें. उन की बाकी की डेढ़ लाख की रकम उन्हें पुहंचा दी जाएगी.
9 अक्तूबर, 2020 को हत्या करने का दिन मुकर्रर हो गया. साजिश के मुताबिक अपने को सेफ करने के लिए 2 दिन पहले ही जितेंद्र त्यागी गिरीश त्यागी को ले कर लखनऊ चला गया, ताकि वारदात के वक्त उस की मौजूदगी घटनास्थल से दूर रहे.
इधर, विपिन और अर्पण ने 9 अक्तूबर, 2020 की सुबह लोहिया नगर जा कर नरेश की हत्या कर दी. वारदात के बाद उस ने मनोज को फोन करके काम होने की इत्तिला दे दी थी. हत्या करने के बाद दोनों स्कूटी से ही राजनगर एक्सेंटशन होते हुए दिल्ली चले गए.
पुलिस बेहद गोपनीय ढंग से काम करते हुए विपिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाल कर मनोज व जितेंद्र के संपर्क तक पहुंची.
ये भी पढ़ें- Crime Story: भयंकर साजिश
जितेंद्र की घटना वाले दिन लखनऊ में गिरीश के साथ मौजूदगी से साफ होने लगा कि नरेश त्यागी हत्याकांड की साजिश में दोनों की मिलभगत हो सकती है. इस के बाद जब पुलिस ने जितेंद्र के परिवार पर दबाव बनाया तो उसे पुलिस के सामने पेश होना पड़ा.
दरअसल, जितेंद्र को यह गलतफहमी थी कि उस के खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है. इसी खुशफहमी का शिकार हो कर वह पुलिस के सामने आया था. लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडों का इस्तेमाल कर उस से पूछताछ की तो उस ने पूरी साजिश का खुलासा कर दिया.
इधर जितेंद्र की गिरफ्तारी की खबर सुन कर विपिन और अर्पण घबरा गए. उन्होंने मनोज से फोन पर संपर्क किया और बाकी रकम की मांग की. वे चाहते थे कि पुलिस की पकड़ में आने से पहले पैसा ले कर उत्तराखंड में कहीं जा कर छिप जाएं .
20 नवंबर को मनोज से संपर्क कर विपिन तथा अर्पण रुपए लेने के लिए जब गाजियाबाद आ रहे थे, तभी उन्हें पुलिस ने दबोच लिया. उन से पूछताछ के बाद मनोज को भी पकड़ लिया गया. बाद में तीनों ने जितेंद्र के साथ रची गई नरेश त्यागी हत्याकांड की पूरी कहानी का खुलासा कर दिया.
सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद जांच अधिकारी कृष्णगोपाल शर्मा ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन पुलिस गिरीश त्यागी के सामने नहीं आने के कारण अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है कि गिरीश त्यागी के हाथ वाकई अपने मामा नरेश त्यागी की हत्याकांड के खून के छींटों से सने हैं.
ये भी पढ़ें- Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 4
पुलिस फिलहाल गिरीश त्यागी को अभी तक पकड़े गए आरोपियों के बयान के आधार पर आरोपी मान कर उस की सरगर्मी से तलाश कर रही है.
—कहानी पुलिस की जांच, अभियुक्तों के बयान व जनसूत्रों पर आधारित
सौजन्य: मनोहर कहानियां
नरेशपाल त्यागी न सिर्फ बड़े कौन्ट्रैक्टर थे बल्कि अपने भांजे विधायक अजीतपाल त्यागी के राजनीतिक सलाहकार भी थे. विधायक अजीत त्यागी भी अपने घर वालों के बजाय मामा नरेश त्यागी को ज्यादा अहमियत देते थे. विधायक के बड़े भाई गिरीश त्यागी ने ऐसी साजिश रची कि…
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में महानगर की पौश कालोनियों में शुमार लोहिया नगर में सुबह की सैर करने वालों की हलचल शुरू हो चुकी थी. मूलरूप से निवाड़ी थाना क्षेत्र के गांव सारा के रहने वाले नरेश त्यागी (60) पत्नी व 2 बेटों अभिषेक त्यागी उर्फ शेखर एवं अविनाश त्यागी उर्फ शैंकी के साथ पिछले 30 सालों से लोहिया नगर में रह रहे थे. वह नगर निगम, पीडब्लूडी समेत कई सरकारी विभागों में कौन्ट्रैक्टर थे.
उम्र बढ़ने के साथ वह अपनी सेहत को ले कर काफी संजीदा थे, इसलिए खुद को चुस्तदुरुस्त और स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने सुबह की सैर को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया था.
लोहिया नगर में ज्यादातर कोठियां और बंगले पूर्व नौकरशाहों और राजनीति से जुड़े लोगों के हैं, इसलिए इलाके में एक बड़ा सा पार्क भी है. इसी औफिसर पार्क में इलाके के लोग सुबह की सैर के लिए जाते हैं.
9 अक्तूबर, 2020 की सुबह के करीब पौने 6 बजे का वक्त था. हमेशा की तरह नरेश त्यागी अपने घर से निकले और करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोहिया नगर के औफिसर पार्क की तरफ जा रहे थे. नरेश त्यागी जैसे ही पूर्व सांसद के.सी. त्यागी की कोठी के सामने स्थित पार्क के पास पहुंचे तो उसी समय ग्रे कलर की स्कूटी उन के पास आ कर रुकी. पल भर के लिए वह ठिठक गए.
स्कूटी पर 2 युवक सवार थे, दोनों ने हेलमेट और मास्क पहने थे, जिस से वह उन का चेहरा तो नहीं देख पाए, लेकिन बदमाशों ने स्कूटी रुकते ही जब उन से कहा, ‘राम राम जी’ तो प्रत्युत्तर में उन की राम राम का जवाब देते हुए नरेश सोचने लगे कि शायद वे कोई जानकार होंगे और कोई पता पूछने के लिए उन के पास रुके होंगे.
नरेश त्यागी यह सोच ही रहे थे कि अचानक स्कूटी पर पीछे बैठे युवक ने कमर में खोंसा पिस्तौल निकाल कर उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं. स्कूटी ड्राइव कर रहे युवक ने भी कमर में लगा तमंचा निकाला और नरेश त्यागी पर फायर झोंक दिए.
एक के बाद एक 6 फायरों की आवाज से इलाका गूंज उठा. सुबह की सैर करने वाले जो इक्कादुक्का लोग उस वक्त सड़क पर मौजूद थे, उन्होंने दूर से यह माजरा देखा तो सहम गए.
ये भी पढ़ें- Crime Story: माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर
सब कुछ इतनी जल्दी घटित हुआ था कि नरेश त्यागी को संभलने का मौका नहीं मिला. उन के शरीर में पिस्तौल की गोलियां पेवस्त हो चुकी थीं, फिर भी वह जान बचाने के लिए करीब 70 मीटर तक भागे, लेकिन स्कूटी पर बैठे बदमाश ने उतर कर पीछा करते हुए जब उन के सिर में 2 गोलियां उतार दीं तो उन की हिम्मत जवाब दे गई. खून से सराबोर हो चुके नरेश त्यागी लहरा कर वहीं जमीन पर गिर गए.
भाजपा विधायक के मामा
गोलियों की गूंज सुन कर कुछ राहगीर तथा आसपास की कोठियों में रहने वाले लोग बाहर निकल आए थे. नरेश त्यागी मुरादनगर विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के विधायक अजीत पाल त्यागी के सगे मामा थे और उन के राजनीतिक कामकाज भी वे ही संभालते थे. लिहाजा लोहिया नगर इलाके में उन्हें सब अच्छी तरह पहचानते थे.
किसी ने फोन कर के जब यह सूचना उन के बेटों को दी तो वे भी दौड़ते हुए मौके पर पहुंच गए. कुछ लोगों ने तब तक पुलिस को फोन कर दिया. उन का बेटा शैंकी गाड़ी ले आया था. गाड़ी में लाद कर नरेश त्यागी को समीप के एक बड़े नर्सिंगहोम ले जाया गया. लेकिन वहां के डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
वारदात की जानकारी मिलने के बाद सिहानी गेट थाने के प्रभारी निरीक्षक कृष्णगोपाल शर्मा, एसआई ब्रजकिशोर व स्टाफ को ले कर मौके पर पहुंच गए.
मामला चूंकि एक सत्तारूढ़ पार्टी के पदासीन विधायक के मामा की हत्या का था, लिहाजा कुछ ही देर में सीओ (सिटी) अवनीश कुमार, एसपी (सिटी) अभिषेक मिश्रा और एसएसपी कलानिधि नैथानी आसपास के थानों की पुलिस और उच्चाधिकारी मौके पर पहुंच गए.
नरेश त्यागी की हत्या की खबर पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई. वैसे भी लोहिया नगर में जहां पर नरेश त्यागी की हत्या हुई, वह गाजियाबाद की पुरानी पौश कालोनी है. यहां पर जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व सांसद के.सी. त्यागी, पूर्व कांग्रेसी विधायक के.के. शर्मा समेत कई पुलिस अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारियों के आवास भी हैं. वहां हुई एक रसूखदार व्यक्ति की हत्या ने लोगों को चौंका दिया था.
सुबह का सूरज चढ़ने के साथ लोहिया नगर में उन के आवास पर लोगों का हुजूम उमड़ आया. पुलिस ने तब तक घटनास्थल पर लोगों से पूछताछ कर ली थी. वारदात पर कोई भी चश्मदीद नहीं मिला था. संयोग से पुलिस को घटनास्थल के पास एक सीसीटीवी कैमरा जरूर मिल गया, जिस में पूरी वारदात कैद हो गई थी.
इस बीच सिहानी गेट पुलिस ने अस्पताल जा कर नरेश त्यागी का शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. वारदात की गंभीरता को भांप कर मेरठ परिक्षेत्र के आईजी प्रवीन कुमार भी नरेश त्यागी के घर पहुंचे. उन के द्वारा पूछने पर परिजनों ने सीधे तौर पर किसी पर भी हत्या का शक नहीं जताया.
इस बीच उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सिहानी गेट थाने में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंसं संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
एसएसपी के निर्देश पर एसपी सिटी ने एक विशेष टीम का गठन कर दिया, जिस की निगरानी का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अवनीश कुमार को सौंपा गया. विशेष टीम में थानाप्रभारी कृष्णगोपाल शर्मा के साथ स्वाट टीम के प्रभारी इंसपेक्टर संजय पांडेय व उन के सहयोगी एसआई अरुण मिश्रा, सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर लक्ष्मण वर्मा व उन के सहयोगी एसआई नरेंद्र कुमार, एसआई ब्रजकिशोर गौतम, हैडकांस्टेबल बालेंद्र, राजेंद्र, कांस्टेबल मनोज, रविंद्र, अखिलेश व खुर्शीद को शामिल किया गया.
सब से पहले पुलिस ने सर्विलांस टीम के जरिए मृतक नरेश त्यागी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उसे खंगालना शुरू किया. साथ ही उन के वाट्सऐप की चैट से भी कातिलों का सुराग लगाने की कोशिश शुरू कर दी.
सर्विलांस टीम ने घटनास्थल से एक्टिव मोबाइल नंबरों के डंप डाटा भी खंगालना शुरू कर दिया, जिस से पता चल सके कि वहां उस वक्त कौन लोग मौजूद थे.
सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से पता चला कि कातिल जिस स्कूटी पर सवार हो कर घटनास्थल पर पहुंचे थे, उस का नंबर यूपी14 सी जेड 7446 था. ग्रे कलर की वह स्कूटी मोदी नगर के सौंदा रोड निवासी ज्योति शर्मा के नाम पंजीकृत थी.
ये भी पढ़ें- माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 2
पुलिस की एक टीम जब उक्त पते पर पहुंची तो पता चला कि ज्योति अपने भाई विपिन शर्मा के साथ दिल्ली के न्यू अशोक नगर में रहती है और दिल्ली में जौब करती है.
ज्योति से पूछताछ की गई तो जानकारी मिली कि वह यदाकदा ही स्कूटी का उपयोग करती थी. अधिकांशत: उस का भाई विपिन ही उस का उपयोग करता है.
9 अक्तूबर, 2020 की सुबह स्कूटी उस का भाई विपिन ले कर गया था. कुछ घंटों बाद वह स्कूटी घर पर खड़ी कर के कहीं चला गया था. साथ ही वह यह हिदायत भी दे गया था कि कुछ दिन तक स्कूटी को ले कर कोई बाहर न जाए. उस के बाद से परिवार में किसी को नहीं पता कि विपिन कहां और किस हाल में है.
ज्योति ने बताया कि उस के भाई का मोबाइल नंबर भी तभी से बंद आ रहा है. उस के बाद पुलिस टीम के सादा लिबास पुलिस वालों ने विपिन शर्मा के घर की निगरानी शुरू करा दी.
सर्विलांस टीम ने विपिन के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकाल कर उस के बारे में छानबीन शुरू की. लेकिन मोबाइल फोन बंद होने के कारण लोकेशन ट्रेस नहीं हो सकी.
पुलिस ने विपिन के बारे में और जानकारी एकत्र की तथा उस की जानपहचान वाले लोगों को भी पकड़ कर पूछताछ शुरू की. मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इसलिए जांच विपिन से आगे नहीं बढ़ सकी.
पुलिस की सभी टीमें अलगअलग ऐंगल पर जांच कर रही थीं. पुलिस इस मामले में लगातार मृतक के भांजे विधायक अजीत पाल त्यागी के संपर्क में भी थी. क्योंकि अगर इस हत्याकांड के पीछे कोई राजनीतिक रंजिश रही होगी तो जाहिर है उस का आभास अजीत पाल त्यागी को जरूर होगा.
नरेश त्यागी पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी के साले भी थे. 6 बार विधायक रहने के बाद राजपाल त्यागी ने बढ़ती उम्र के कारण राजनीति से किनारा कर लिया था. जिस के बाद मुरादनगर विधानसभा क्षेत्र में कई नेता सक्रिय हो गए थे.
ये नेता क्षेत्र में राजपाल की विरासत को संभालने के प्रयास में थे, लेकिन राजपाल ने अपने पुराने राजनीतिक संबंधों का फायदा उठाते हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने छोटे बेटे और जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके अजीत पाल त्यागी को न केवल बीजेपी से टिकट दिलवाने में सफलता हासिल कर ली बल्कि उम्रदराज होने के बाद भी धुआंधार प्रचार कर उन्हें विधायक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
नरेश की व्यक्तिगत रंजिश के साथसाथ पुलिस पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी की 3 दशकों से चल रही रंजिश की भी जांच कर रही थी.
राजनैतिक दुश्मनी पर शुरू की जांच
दरअसल, राजपाल त्यागी की ब्राह्मणों के प्रभावशाली नौरंग पंडित परिवार से दुश्मनी चल रही थी. इस रंजिश के कारण ही राजपाल त्यागी के 2 भाइयों गाजियाबाद बार असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष कुशल पाल त्यागी और फिर कानपुर विकास प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर रहे टी.पी.एस. त्यागी की हत्या हो चुकी थी.
हालांकि राजपाल त्यागी के लोगों पर भी पंडित परिवार के रिश्तेदारों और करीबियों की हत्या कराने के आरोप लगे हैं. लेकिन बाद में कुछ लोगों ने कई हत्याओं के बाद दोनों परिवारों में समझौता करवा कर इस 3 दशक पुरानी दुश्मनी को खत्म कर दिया था.
पुलिस को भनक मिली थी कि अक्तूबर 2009 में 50 हजार के इनामी पूर्व ब्लौकप्रमुख रविंद्र त्यागी की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के बाद रविंद्र की पत्नी ने राजपाल त्यागी की भूमिका पर अंगुलियां उठाई थीं. लेकिन इस बिंदु पर जांच के बाद भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी.
पूछताछ चल रही थी कि इसी बीच 9 नवंबर को इस मामले में अचानक एक नया मोड़ आया. हुआ यूं कि पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी ने अपने छोटे बेटे भाजपा विधायक अजीत पाल त्यागी पर गंभीर आरोप लगा दिए. उन्होंने मीडिया से कहा कि अजीत अपने बड़े भाई गिरीश त्यागी को इस हत्याकांड में फंसाने के प्रयास में है.
राजपाल त्यागी ने कहा कि उन का बड़ा बेटा गिरीश त्यागी अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए शस्त्र लाइसैंस व गनर की मांग को ले कर 7 अक्तूबर से लखनऊ में था.
इस बारे में पूछने पर राजपाल त्यागी ने साफ कर दिया कि उन का छोटा विधायक बेटा अजीत पाल त्यागी नहीं चाहता कि गिरीश त्यागी का परिवार राजनीतिक रूप से सक्रिय हो. गिरीश के बेटे मोहित की पत्नी रश्मि जिला पंचायत चुनाव लड़ना चाहती थी. जबकि अजीत पाल ऐसा नहीं चाहता. उन्होंने कहा कि अब मेरे सगे साले नरेश त्यागी की हत्या के बाद पुलिस के साथ मिल कर मेरे बेटे गिरीश त्यागी को फंसाने की साजिश रची जा रही है.
राजपाल त्यागी ने पुलिस को यह भी बताया कि अजीत ने मेरे और गिरीश के ऊपर यह भी आरोप लगाए थे कि 2017 व 2019 में चुनावों में हम ने उस की मुखालफत की थी. जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने अजीत को पूरी ताकत और सहयोग के साथ चुनाव लड़वाया.
अगले भाग में पढ़ें- फूलप्रूफ रची थी साजिश
सौजन्य: मनोहर कहानियां
हत्या का हुआ खुलासा
मामला चूंकि अब राजनीतिक रंग लेने लगा था और पुलिस की मुश्किल यह थी कि पीडि़त परिवार जो राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली था. उसी परिवार में एक दूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगने शुरू हो गए थे. इसलिए एसएसपी ने इस मामले में सभी टीमों को निर्देश दिया कि कातिलों पर हाथ डालने से पहले वे बेहद सावधानी से पुख्ता सबूत एकत्र कर लें और जांच की प्रक्रिया को पूरी तरह गोपनीय रखें.
इसी बीच सिहानी गेट पुलिस टीम के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण सुराग लगे और उस ने 18 नवंबर को अचानक नरेश त्यागी की हत्या का खुलासा करते हुए हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र त्यागी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का कहना था कि विधायक के बड़े भाई गिरीश त्यागी और हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र त्यागी ने घटना से 2 महीने पहले नरेश त्यागी की हत्या की रूपरेखा तैयार कर ली थी.
हालांकि पुलिस ने 18 नवंबर को भाड़े के हत्यारों और हत्या के मकसद के बारे में विस्तार से तो कुछ नहीं बताया, जिस के बाद इस बात के कयास व आरोप लगाए जाने लगे कि कहीं किसी दबाव में तो पुलिस ने बेगुनाहों को बलि का बकरा नहीं बना दिया.
लेकिन 2 दिन बाद ही पुलिस ने इस मामले में जब 3 अन्य लोगों की गिरफ्तारी की तो सारे कयास व आरोप निराधार साबित हो गए.
पुलिस ने विपिन शर्मा निवासी सौंदा रोड, मोदीनगर व हाल निवासी न्यू अशोक नगर दिल्ली, अर्पण चौधरी निवासी गांव खुशहाल, बुलंदशहर और मनोज कुमार निवासी सद्दीक नगर, थाना सिहानी गेट को गिरफ्तार किया. उन के कब्जे से .30 बोर का एक पिस्तौल तथा 315 बोर का कारतूसों के साथ एक तमंचा बरामद किया गया.
ये वही हथियार थे, जिन का इस्तेमाल नरेश त्यागी की हत्या में किया गया था. दोनों के कब्जे से वो स्कूटी भी बरामद हो गई, जिस का इस्तेमाल नरेश त्यागी की हत्या में किया गया था. पुलिस ने बरामद हथियार सीएफएल भेज दिए.
इन तीनों आरोपियों से पुलिस ने पूछताछ के बाद जो जानकारी हासिल की तो नरेश त्यागी हत्याकांड में उन के भांजे गिरीश त्यागी का नाम मुख्य खलनायक के किरदार के रूप में सामने आया. हालांकि गिरीश त्यागी पुलिस की पकड़ में नहीं आया था, इसलिए इस बात की तत्काल पुष्टि नहीं हो सकी कि पकड़े गए चारों आरोपियों ने जो आरोप लगाए हैं, उन में कितनी सच्चाई है.
मुख्य आरोपी जितेंद्र त्यागी के मुताबिक नरेश त्यागी की हत्या की पूरी साजिश का असली सूत्रधार गिरीश त्यागी था. जो अपने छोटे भाई अजीत त्यागी के बढ़ते प्रभाव के कारण मन ही मन अजीत त्यागी से जलने लगा था. अजीत के विधायक बन जाने के बाद से रिश्तेदार व बिरादरी के लोग भी परिवार का बड़ा बेटा होने के बावजूद उसे नहीं, बल्कि अजीत को ही पूछते थे. इस से गिरीश खुद को अपमानित महसूस करता था.
कुछ साल पहले तक अजीत अपने पिता व भाई से राजनीतिक मामलों में सलाहमशविरा करता तथा अपने लोगों को कहां किस पद पर चुनाव लड़ाना है या पार्टी संगठन में फिट कराना ये सब सलाह लेता था. मगर पिछले 1-2 सालों में यह जगह मामा नरेश त्यागी ने ले ली थी.
गिरीश ने मामा नरेश त्यागी से 1-2 बार कहा भी था कि वे अजीत को समझाएं कि वह उन की बात सुना करें, लेकिन मामा ने उस की बात को यह कह कर हवा में उड़ा दिया कि अजीत में उस से कहीं ज्यादा राजनीति की समझ है. बस, कुछ ऐसी ही छोटी बातें थीं जिन के कारण गिरीश मानने लगा कि मामा के कारण उस का व उस के बच्चों का रातनीतिक भविष्य नहीं बन सकता.
मामा नरेश के लिए मन में पल रही रंजिश उस वक्त अपने आखिरी मुकाम पर पहुंच गई, जब एक दिन परिवार के बीच विचारविमर्श के दौरान गिरीश ने जिला पंचायत सदस्य के लिए अपने बेटे मोहित की पत्नी रश्मि को चुनाव लड़ाने की बात कही. लेकिन अजीत ने इस बात का विरोध कर दिया और इस में मामा ने अहम भूमिका निभाई.
ये भी पढ़ें- माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 5
विधायक के भाई का सामने आया नाम
इस के बाद गिरीश ने मामा नरेश त्यागी को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. जितेंद्र त्यागी ने बताया कि वह गिरीश त्यागी का पुराना दोस्त है.
सिहानी गांव के सद्दीक नगर का रहने वाला जितेंद्र त्यागी मार्च 2018 तक गाजियाबाद जिले का हिंदू युवा वाहिनी का अध्यक्ष रह चुका है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक अध्यक्ष हैं.
बीजेपी के कई बड़े नेताओं से उस के करीबी संबध थे. गिरीश त्यागी से भी उस के बेहद करीबी संबध थे.
दरअसल, उसे युवा वाहिनी के अध्यक्ष पद से हर्ष फायरिंग करने के आरोप में हटाया गया था. दीपावली के दिन अपने बेटे से फायरिंग करवाते उस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. इस मामले में पुलिस ने उस के खिलाफ मामला दर्ज किया था. बाद में मार्च 2019 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.
जितेंद्र त्यागी का भाई अमित राणा मुरादनगर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस ने छात्रों के बीच विवाद में मोदीनगर के एक कौन्वेंट स्कूल में अपने 2 साथियों के साथ गोलीबारी की थी.
अमित राणा भी अपने भाई के साथ हिंदू युवा वाहिनी से जुड़ा था. जितेंद्र त्यागी से पूछताछ में पता चला कि भाई अमित के कारण ही वह अजीत पाल त्यागी से रंजिश रखता था. क्योंकि विधायक अजीत पाल त्यागी के पुलिस पर दबाव के कारण ही अमित 2-3 मामलों में गिरफ्तार हुआ था.
जितेंद्र ने पुलिस को बताया कि गिरीश से उस की दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई थी कि गिरीश बेहिचक अपने मन की बात जितेंद्र से कह लेता था. बस एक दिन अपने मामा के बारे में बता कर गिरीश ने जब अपने मामा नरेश को खत्म करने की इच्छा जताई. इस से जितेंद्र त्यागी को लगा कि यही मौका है, जब वो अजीत पाल त्यागी को कमजोर कर सकता है. लिहाजा उस ने गिरीश को भरोसा दिलाया कि वह उस के लिए ये काम जरूर करेगा .
बस उसी दिन जितेंद्र त्यागी हत्याकांड की साजिश रचने में जुट गया. नरेश त्यागी की हत्या की पूरी योजना घटना से करीब 2 माह पहले तैयार हो गई थी.
फूलप्रूफ रची थी साजिश
जितेंद्र ने गिरीश के कहने पर भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर लिया. और ऐसी साजिश तैयार की जिस से हत्याकांड में उस का या गिरीश का कहीं भी नाम न आए.
जितेंद्र ने सिहानी गेट के ही सद्दीक नगर में रहने वाले अपने खास साथी मनोज कुमार को इस काम को करने के लिए चुना. जितेंद्र ने उसे बताया लोहिया नगर में नरेश नाम के एक आदमी की हत्या करनी है, इस के लिए कुछ लड़कों का इंतजाम करने में मदद करें. अच्छीखासी रकम मिलेगी.
मनोज ने कहा, ‘‘भैया लड़के तो हैं और आप उन को जानते भी हो.’’
‘‘कौन है?’’ जितेंद्र ने पूछा.
‘‘अरे भैया विपिन और अर्णव है… लौकडाउन के कारण आजकल कोई कामधाम नहीं है, इसलिए कमाई करने के लिए फड़फड़ा रहे हैं.’’ मनोज ने कहा.
ये भी पढ़ें- माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 4
इस के कुछ दिन बाद मनोज ने दिल्ली में विपिन और अर्पण चौधरी से जितेंद्र की मीटिंग करवा दी.
अगले भाग में पढ़ें- हत्यारों तक कैसे पहुंचे हथियार
सौजन्य- मनोहर कहानियां
लेखक- सुनील वर्मा
बड़ी बात यह है कि अपराध से शुरू हुआ इन माफिया सरगनाओं का सफर एक दिन पुलिस की गोली खा कर खत्म होता है. लेकिन ऐसे सरगनाओं की भी एक बड़ी फेहरिस्त है, जो अपने इसी बाहुबल के सहारे सियासत की ऊंचाइयों तक पहुंच गए.
पूर्वांचल की धरती पर कई माफियाओं का जन्म हुआ है. कुछ माफिया तो ऐसे हैं, जिन की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. राजनीति के गलियारों में इन की धमक अकसर सुनाई देती रहती है. इन माफियाओं ने प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी आतंक का खूनी खेल खेला.
अपराध की संगीन वारदातों को अंजाम दे कर पूर्वांचल की धरती दहलाने वाले इन्हीं माफिया में एक नाम है बृजेश सिंह का, जिन्होंने जुर्म की दुनिया को दहलाने के बाद अब सियासत में अपनी जमीन तैयार कर ली है. लेकिन राजनीति का लबादा ओढ़ने के बाद भी बृजेश सिंह के ऊपर जेल में रह कर रंगदारी वसूलने, ठेके पर हत्या कराने और टेंडर सिंडीकेट चलाने के आरोप लगते रहे हैं.
बृजेश सिंह की कहानी किसी फिल्म की स्टोरी से कम नहीं है. वह एक ऐसा माफिया सरगना रहा, जिस का आतंक उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी देखा जाता था.
बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी के धरहरा गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उस के पिता रविंद्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे. सियासी तौर पर भी उन का रुतबा कम नहीं था और इलाकाई राजनीति में सक्रिय रहते थे. बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होनहार था.
सन 1984 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में उस ने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे. उस के बाद बृजेश ने बनारस के यूपी कालेज से बीएससी की पढ़ाई की. वहां भी उस का नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था.
बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह को अपने होनहार बेटे से काफी लगाव था और इसीलिए वह चाहते थे कि बृजेश पढ़लिख कर अच्छा इंसान बने. समाज में उस का नाम हो.
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 27 अगस्त, 1984 को वाराणसी के धौरहरा गांव में बृजेश के पिता रविंद्र सिंह की इलाके की राजनीति की रंजिश में हत्या कर दी गई. इस काम को उन के सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया था.
राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया. इसी भावना के चलते बृजेश ने जानेअनजाने में अपराध की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया.
बृजेश सिंह अपने पिता की हत्या का बदला लेने लिए तड़प रहा था. उस ने बदला लेने के लिए एक साल तक इंतजार किया. आखिर वह दिन आ ही गया, जिस का बृजेश को इंतजार था. 27 मई, 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा बृजेश के सामने आ गया. उसे देखते ही बृजेश का खून खौल उठा और उस ने दिनदहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया.
बदले की आग ने बदला जीवन
यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ थाने में मामला दर्ज हुआ. लेकिन वारदात के बाद बृजेश सिंह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा बल्कि फरार हो गया. क्योंकि उस का इंतकाम अभी पूरा नहीं हुआ था.
हरिहर को मौत के घाट उतारने के बाद भी बृजेश सिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ, उसे उन लोगों की भी तलाश थी, जो उस के पिता की हत्या में हरिहर के साथ शामिल थे. जल्द ही उसे अपना बदला लेने का मौका मिल गया.
9 अप्रैल, 1986 को चंदौली जिले का सिकरौरा गांव तब गोलियों की आवाज से गूंज उठा, जब बृजेश सिंह ने अपने साथियों के साथ पिता रविंद्र सिंह की हत्या में शामिल रहे गांव के पूर्वप्रधान रामचंद्र यादव सहित उन के परिवार के 6 लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला.
इस वारदात को अंजाम देने के बाद बृजेश सिंह पहली बार गिरफ्तार हुआ. दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में बृजेश पर 32 साल तक मुकदमा चला.
इसे बृजेश का बाहुबल और राजनीतिक रसूख ही मान सकते हैं कि इस घटना में चश्मदीद गवाह होने के बावजूद स्थानीय अदालत ने 32 साल बाद 2018 में गवाहों के बयानों को विरोधाभासी बताते हुए बृजेश को बरी कर दिया.
बहरहाल, पिता के हत्यारों को मौत की नींद सुलाने के बाद जब बृजेश सिंह सलाखों के पीछे पहुंचा तो यहीं से उस की जिंदगी की दिशा और दशा बदल गई.
कहते हैं जेल की सलाखों के पीछे एक ऐसी पाठशाला होती है, जहां इंसान की जिंदगी एक नया मोड़ लेती है. जो कैदी यहां आ कर अपने गुनाह का प्रायश्चित करना चाहता है, वह सुधर जाता है. और जिस कैदी की मंजिल अपराध की डगर पर आगे बढ़ने की होती है, वह जेल की सलाखों के पीछे अपराध के नए गुर सीखने और नए साथी बनाने में जुट जाता है.
अगले भाग में पढ़ें- बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना