
लेखिका- कुसुम गुप्ता
‘ठीक है. मैं कल सुबह मांजी से बात करूंगा,’ कह कर प्रदीप ने मुझे अपने अंक में समेट लिया. शारीरिक उत्तेजना और रासरंग की बाढ़ में मेरे अंतर की समस्त कड़वाहट डूब गई.
अगले दिन सुबह मैं तो रसोईघर में नाश्ता बनाने में व्यस्त थी और मांबेटा बाहर मेरे नासिक जाने के प्रश्न पर ऐसी गंभीरता से विचार कर रहे थे जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में निरस्त्रीकरण पर बहस.
मैं नाश्ता ले कर बाहर आई तो महसूस किया जैसे प्रदीप विजय के द्वार पर पहुंच गए हैं. मां उन से कह रही थीं, ‘बीवी का गुलाम हो गया है. उसी के स्वर में बोलने लगा है.’
मुझे देख, उन्होंने बनावटी गुस्से से कहा, ‘बहू, तू 2 हफ्ते के लिए नासिक चली जाएगी तो इस घर और प्रदीप की देखभाल कौन करेगा?’
‘आप जो हैं, मांजी,’ मेरे मुंह से अनायास निकल गया.
मैं नासिक गई. पहुंच कर देखा, मां पीली पड़ गई थीं. एकदम अशक्त और असहाय. पिताजी कैसे उलझे और अस्तव्यस्त से लग रहे थे…और भाई क्लांत. मुझे देखते ही तीनों के चेहरे खिल गए. एक मुक्ति, निश्चिंतता का भाव उन के मुख पर उभर आया.
‘तू आ गई, बेटी. अब कोई चिंता नहीं. तेरे बिना तो यह घर खाने को दौड़ता है, मैं बिस्तर पर पड़ गई. घर के रंगढंग ही बिगड़ गए,’ मां ने उदास स्वर में कहा.
काश, मेरी सास होतीं उस समय और देख पातीं उन लोगों के मुख पर उभरती संतुष्टि, कृतज्ञता तथा संकटमुक्ति की अनुभूति को.
‘‘मीना, क्या बात है? आज तो शाम से तुम गौतम बुद्ध हो गई हो. एकदम समाधिस्थ, चिंतन में डूबी.’’
प्रदीप ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर झकझोर दिया. मैं अतीत की गलियों से लौट कर, वर्तमान के राजपथ पर आ गई. हां, मैं सचमुच खो गई थी. 3 विकल्प थे मेरे सामने. 2 में बेईमानी, संवेदनशून्यता और क्रूरता थी.
अनायास मैं ने दोपहर को बंबई से आया पत्र प्रदीप की ओर बढ़ा दिया. उलझे हुए हावभाव का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने मुझ से पत्र लिया और गौर से पढ़ने लगे. मेरी दृष्टि प्रदीप के मुख पर टिकी थी. कुछ पल पूर्व की प्रफुल्लता उन के चेहरे से काफूर हो गई और उस का स्थान ले लिया, चिंता, ऊहापोह, उलझन और उदासी ने.
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पत्र पढ़ कर प्रदीप ने मेरी तरफ याचक दृष्टि से ताका और बोले, ‘‘यह तो सब गड़बड़ हो गया. अब क्या करना है?
‘‘सीमा की ससुराल वाले भी कमाल के लोग हैं. मायके में इतनी परेशानी है. पर उन्हें तो अपने बेटे के इम्तिहान और बेटी के जापे की चिंता है, बहू की मां चाहे मरे या जिए, उन की बला से.’’
‘‘प्रदीप, हर सास ऐसे ही सोचती है. याद है, पिछले साल, आप का औरंगाबाद तबादला होने से पहले मेरे घर से चिट्ठी आई थी.’’
‘‘मैं ने तुम्हें भेजा था.’’
‘‘हां, प्रदीप. आप ने समझदारी से काम लिया था. पर मैं ने आप को एक बात नहीं बताई.’’
‘‘क्या?’’
‘‘मांजी ने मुझ से बड़ी कड़वी बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि जो लड़कियां बातबेबात मायके दौड़ती हैं, उन का अपना घर कभी सुखी नहीं रह सकता. लड़की की मां, बेटी की समस्याओं के लिए ससुराल वालों की आलोचना करती है, लड़की को भड़काती है. ससुराल वालों के प्रति उन के मन में वितृष्णा उत्पन्न करती है. फल यह होता है कि लड़की अपने घर जा कर स्थापित नहीं हो पाती.’’
‘‘मीना, उस को छोड़ो. अब बताओ, क्या करना है?’’ प्रदीप ने पूछा.
‘‘करना क्या है? हमें कल सुबह ही बंबई रवाना होना है.’’
‘‘और छुट्टी का क्या होगा?’’
‘‘प्रदीप, घूमनेफिरने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. हम मांजी को बीमार और पिताजी तथा भैया को इस संकट में छोड़ कर सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते हैं? मायका हो या पति का घर, बच्चों तथा बहूबेटी का मांबाप, सासससुर की सेवा करना प्रथम कर्तव्य है.’’
‘‘और यह जो सामान बंधा हुआ है, उस का क्या होगा?’’
‘‘उसे भी बंबई लिए चलते हैं.’’
प्रदीप ने मेरी ओर अनुराग भरी दृष्टि डाली. क्या उस में केवल स्नेह था? नहीं, उस में प्रशंसा, गर्व, खुशी और संतोष सब का संगम था.
अगले दिन दोपहर बाद करीब साढ़े 3 बजे हम लोग बंबई पहुंच गए. अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के हमें आया देख कर मां, पिताजी और छोटे भैया के चेहरों पर सूर्योदय के बाद की सी चमक आ गई. वे कितने खुश, मुग्ध और चिंतारहित से लगने लगे थे.
मैं ने मांजी की दशा देखी तो अपने निर्णय की बुद्धिमत्ता का विचार आत्मतुष्टि उत्पन्न कर गया. वास्तव में वह काफी तकलीफ में थीं. साथ ही घर पूरी तरह से अस्तव्यस्त हो चुका था.
‘‘बहू आ गई. अब कोई चिंता नहीं,’’ यह थी पिताजी की प्रतिक्रिया. उन्होंने चैन की सांस ली.
‘‘भाभी, आप अचानक कैसे आ गईं?’’ मेरे देवर ने घोर आश्चर्य से पूछा.
‘‘बहू, तुम लोग तो दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने वाले थे?’’ मांजी ने पूछा.
‘‘हां, मांजी. पर मातापिता की सेवा तो हम सब का प्रथम कर्तव्य है. आप की दुर्घटना की सूचना पा कर हम सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते थे?’’
मांजी कुछ नहीं बोलीं. केवल उन की आंखों में नमी उभर आई.
हमारे आगमन से घर में नवजीवन का संचार हो गया. मैं ने आते ही घर के संचालन की बागडोर संभाल ली. सफाई, धुलाई, रसोईघर का काम, खाना बनाना, मांजी की सेवा और समयसमय पर उन को दवा तथा खानपान देना.
3-4 दिन में ही घर का कायाकल्प हो गया.
चौथे दिन मांजी के मुख से निकल ही गया, ‘‘घर को पुरुष नहीं, औरत ही चला सकती है, चाहे वह बहू हो या बेटी.’’
मैं क्या कहती? शब्दों में नहीं, गरदन को हिला कर मैं ने मांजी के कथन से अपनी सहमति प्रकट कर दी.
‘‘सीमा की ससुराल वाले बड़े मतलबी और स्वार्थी हैं. जोत रखा होगा मेरी बेटी को. 4 दिन पहले ननद के बेटी हुई है. जच्चा का कितना काम फैल जाता है. सास की निर्दयता तो देखो, उसे इतना भी खयाल नहीं कि बहू की मां की टांग टूट गई है और घर पर कोई नहीं है देखभाल करने वाला…’’
मांजी की भुनभुनाहट सुन कर मुझे अंदर से खुशी हुई. इनसान पर जब बीतती है तब उसे पता चलता है. पिछले वर्ष मांजी को क्या हुआ? तब वह सास थीं और आज? केवल मां.
7वें दिन एक अप्रत्याशित घटना घटी. शाम के 7 बजे अचानक, बिना किसी पूर्व सूचना के सीमा आ धमकी. साथ में था अशोक, उस का पति.
घर में खुशी की धूम मच गई. मांजी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. बेटी और दामाद का अनायास आगमन निश्चित रूप से अभूतपूर्व सुख का क्षण था.
हमें देख कर वे दोनों चौंके. उन्होंने हमारे वहां होने की कल्पना तक नहीं की थी.
‘‘चिट्ठी पा कर दौड़े चले आए बेचारे. 1 सप्ताह से बहू ऐसी सेवा कर रही है कि बस पूछो मत,’’ मांजी के स्वर में सच्ची प्रशंसा थी.
‘‘भाभी, कितनी छुट्टियां बची हैं तुम्हारी?’’ सीमा ने पूछा.
‘‘यही 8-10 दिन,’’ मैं ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ कर कहा.
‘‘ठीक है. कल खिसको यहां से. अब मैं संभालती हूं यह मोरचा,’’ सीमा बोली.
‘‘पर अब आरक्षण वगैरह कैसे मिलेगा?’’ प्रदीप के स्वर में निराशा थी.
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‘‘भैया, मतलब तो छुट्टी और सैरसपाटे से है. दक्षिण नहीं जा सकते तो गोआ चले जाओ. बसें जाती हैं. वहां ठहरने के लिए जगह मिल ही जाएगी. कैलनगूट तट की सुनहरी बालू में अर्धनग्न लेट कर मस्ती मारो,’’ सीमा एक सांस में कह गई.
प्रदीप ने मेरी तरफ देखा और मैं ने उस की तरफ.
‘‘हां, बहू. अब सीमा आ गई है. तुम लोग कल चले जाओ. क्यों छुट्टियां बरबाद करते हो,’’ कह कर मांजी ने सीमा से पूछा, ‘‘क्यों री, तेरी सास ने तुझे कैसे छोड़ दिया?’’
‘‘पिताजी की चिट्ठी पढ़ कर उन्होंने खुद कहा कि मैं तुरंत बंबई जाऊं. उन्होंने तो पहले भी मना नहीं किया था. वह तो मुझे ही कहने का साहस नहीं हुआ. इन के इम्तिहान, मंजू बहनजी का जापा और फिर यह भी आप को देखने के लिए चिंतित हो गए.’’
मांजी के मुख पर रुपहली आभा बिखर गई. वह भावातिरेक से कांपने लगीं फिर कुछ क्षण बाद बोलीं, ‘‘सचमुच, मेरे बच्चे और संबंधी इतने उदार, कृपालु और प्रेमी हैं. कितना खयाल रखते हैं हमारा.’’
‘‘बहू,’’ मांजी ने मुझे संबोधित कर के कहा, ‘‘6 मास पूर्व के अपने आचरण पर मैं लज्जित हूं. पहले जमाने में परिवार के अंदर लड़कियों की सेना होती थी. एक गई तो दूसरी उस का स्थान ले लेती थी. पर आज? हम दो, हमारे दो. एकमात्र लड़की चली जाए तो बहुत खलता है. उस पर वह हारीबीमारी, सुखदुख में काम न आए तो बड़ा भावनात्मक कष्ट होता?है,’’ कह कर मांजी ने थकान के कारण आंखें बंद कर लीं.
‘‘आप आराम कीजिए, मांजी,’’ कह कर हम सब बगल के कमरे में चले गए और गप्पें मारने लगे.
मुझे अपने निर्णय पर संतोष था. साथ ही अगले दिन गोआ जाने का मन में उत्साह था. संभवत: मेरे लिए सब से ज्यादा गौरव की बात थी, मेरे अपने घर में मानवीय संबंधों के आधारभूत मूल्यों की पुन: स्थापना…शायद इस का माध्यम मैं ही थी.
पिछले अंक में आप ने पढ़ा:
3 साल बाद अपनी प्रेमिका कामिनी को देख कर प्रभात हैरान था. प्रभात ने बताया कि उस ने अभी तक शादी नहीं की है. कामिनी ने उसे अपने घर बुलाया और उस की हर चाहत पूरी करने का भरोसा दिलाया. दरअसल, प्रभात की कामिनी से पहली मुलाकात कालेज में हुई थी. वह उस से प्यार करने लगा था, लेकिन तब कामिनी ने उस से कहा था कि वह नौकरी मिलने के बाद ही शादी करना चाहेगी. इस के बाद वह प्रभात के प्रस्ताव को बारबार टालती रही. इस से परेशान प्रभात ने कामिनी के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने का फैसला किया.
अब पढ़िए आगे…
कामिनी गांव से लौट कर शहर आ गई. वह रोज कालेज आनेजाने लगी, तो प्रभात पहले की तरह उस से मिलनेजुलने लगा. कामिनी को प्रभात ने यह कह कर यकीन दिला दिया था कि जब वह कहेगी, तभी उस से शादी करेगा.
3 महीने बाद प्रभात को शहर में 3-4 घंटे के लिए एक फ्लैट मिल गया. फ्लैट उस के दोस्त का था. उस दिन उस के घर वाले कहीं बाहर गए हुए थे. दोस्त ने सुबह ही फ्लैट की चाबी प्रभात को दे दी थी. उस दिन प्रभात कालेज के गेट पर समय से पहले ही जा कर खड़ा हो गया. कामिनी आई, तो उसे गेट पर ही रोक लिया. वह बहाने से अपने दोस्त के फ्लैट में ले गया.
प्रभात ने जैसे ही फ्लैट के दरवाजे पर अंदर से सिटकिनी लगाई, कामिनी चौंक गई. वह उस की तरफ घूरते हुए बोली, ‘‘तुम ने दरवाजा बंद क्यों किया?’’ ‘‘मुझे तुम से जो बात करनी है, वह दरवाजा बंद कर के ही हो सकती है. बात यह है कामिनी कि जब तक मैं तुम्हें पा नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा. तुम तो अभी शादी नहीं करना चाहती, इसलिए मैं चाहता हूं कि शादी से पहले तुम मुझ से सुहागरात मना लो. इस में हर्ज भी नहीं है, क्योंकि एक न एक दिन तुम मेरी पत्नी बनोगी ही.’’
प्रभात के चुप होते ही कामिनी बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो क्या? ऐसा करना सही नहीं है. मैं अपना तन शादी के बाद ही पति को सौंपूंगी. इस की कोई गारंटी नहीं है कि मेरी शादी तुम से ही होगी, इसलिए अभी मेरा जिस्म पाने की ख्वाहिश छोड़ दो.’’ ‘‘प्लीज, मान जाओ कामिनी. मैं अब मजबूर हो गया हूं. देखो, तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए प्रभात कामिनी के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.
कामिनी जोर लगा कर उस की पकड़ से छूट गई और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा इरादा समझ गई हूं. तुम्हें यह लगता है कि मेरे साथ जोरजबरदस्ती करोगे, तो मजबूर हो कर मैं अपना मकसद भूल जाऊंगी और तुम से शादी कर लूंगी. मगर ऐसा हरगिज नहीं होगा. ‘‘अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी. मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी. उस के बाद तुम्हारा क्या होगा, यह तुम खुद सोच सकते हो. तुम जेल चले जाओगे, तो क्या तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं हो जाएगी?’’
रेप के खतरे से कामिनी डर गई थी और बचने का तरीका ढूंढ़ने लगी थी. कुछ देर चुप रहने के बाद कामिनी प्रभात को समझाने लगी, ‘‘मेरी मानो तो अभी सब्र से काम लो. 3 महीने बाद हमारे इम्तिहान होंगे. उस के 2-3 महीने बाद रिजल्ट आएगा. फिर हम बैठ कर आपस में बात कर लेंगे.
‘‘मैं जानती हूं कि तुम हर हाल में मुझे पाना चाहते हो. मैं तुम्हारी ख्वाहिश जरूर पूरी करूंगी. मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगी. मैं तुम्हें प्यार करती हूं, तो तुम से ही शादी करूंगी न.’’ कामिनी ने प्रभात को तरहतरह से समझाया, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उस दिन उस के साथ सैक्स करने का इरादा छोड़ कर उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं. रिजल्ट आने तक मैं शादी के लिए तुम्हें परेशान नहीं करूंगा, लेकिन तुम्हें भी मेरी एक बात माननी होगी.’’
‘‘कौन सी बात?’’ कामिनी ने पूछा. ‘‘मेरे पिता से मिल कर तुम्हें यह कहना होगा कि गे्रजुएशन पूरी करने के बाद तुम मुझ से शादी कर लोगी. नौकरी की तलाश नहीं करोगी.’’
कुछ सोच कर कामिनी प्रभात की बात मान गई. 2 दिन बाद प्रभात के साथ कामिनी उस के घर गई. उस के मातापिता से उस ने वह सबकुछ कह दिया, जो प्रभात चाहता था. साथ ही, उस ने उस के पिता से यह भी कहा कि अभी वे उस के घर वालों से न मिलें. रिजल्ट आने के बाद ही मिलें.
प्रभात के मातापिता ने भी कामिनी की बात मान ली. उस के बाद सबकुछ पहले की तरह चलने लगा. इम्तिहान के बाद कामिनी गांव चली गई. उस के बाद प्रभात उस से मिल न सका.
गांव जाते समय कामिनी ने उस से कहा था कि वह उस से मिलने कभी गांव न आए. अगर वह गांव में आएगा. तो उस की बहुत बदनामी होगी. वह उस से फोन पर बात करती रहेगी. रिजल्ट मिलने के एक महीने बाद वह अपने पिता को रिश्ते की बात करने के लिए उस के घर भेज देगी. प्रभात ने उस की बात मान ली. वह उस से मिलने उस के घर कभी नहीं गया.
प्रभात ने सोचा था कि रिजल्ट लेने कामिनी आएगी, तो उसी दिन वह उस से भविष्य की बात कर लेगा. मगर उस का सोचा नहीं हुआ. रिजल्ट लेने कामिनी कालेज नहीं आई. उस का कोई रिश्तेदार आया था और रिजल्ट ले कर चला गया.
प्रभात फर्स्ट डिवीजन में पास हुआ था, जबकि कामिनी सिर्फ पास हुई थी. बधाई देने के लिए प्रभात ने कामिनी को फोन किया, पर उस का फोन स्विच औफ था.
रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले तक कामिनी का फोन ठीक था. प्रभात ने उस से बात की थी. अचानक उस का फोन क्यों बंद हो गया, यह वह समझ नहीं पाया. प्रभात कामिनी से तुरंत मिलना चाहता था, मगर वह उस के गांव इसलिए नहीं गया कि उस ने मना कर रखा था. वह उस के साथ वादाखिलाफी नहीं करना चाहता था.
कई दिनों तक प्रभात ने फोन पर कामिनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. एक महीना बीत गया. वादे के मुताबिक कामिनी ने अपने मातापिता को प्रभात के घर नहीं भेजा, तो एक दिन वह उस के गांव चला गया.
पहली बार जिस औरत के सहयोग से प्रभात कामिनी से मिला था, वह सीधे उसी के घर गया. उस औरत से प्रभात को पता चला कि रिजल्ट मिलने के कुछ दिन बाद कामिनी को मुंबई में नौकरी मिल गई थी. अभी वह मुंबई में है. कामिनी मुंबई में कहां रहती थी, उस औरत को इस की जानकारी नहीं थी.
कामिनी के बिना प्रभात रह नहीं सकता था, इसलिए बेखौफ उस के घर जा कर उस के मातापिता और बहनों से मिला. अपनी और कामिनी की प्रेम कहानी बता कर प्रभात ने उस के पिता से कहा, ‘‘कामिनी को मैं इतना प्यार करता हूं कि अगर उस से मेरी शादी नहीं हुई, तो मैं पागल हो कर मर जाऊंगा. मुंबई में वह कहां रहती है? उस का पता मुझे दीजिए. मैं उस से पूछूंगा कि उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’’
कामिनी का पता देना तो दूर उस के पिता ने दुत्कार कर प्रभात को घर से निकाल दिया. घर आ कर प्रभात ने कामिनी का सारा सच पिता को बता दिया. उस के पिता प्रभात को बरबाद होता नहीं देखना चाहते थे. उन्होंने जल्दी ही उस की शादी करने का फैसला किया. आननफानन उस के लिए लड़की तलाश कर शादी भी पक्की कर दी.
प्रभात के दिलोदिमाग से कामिनी अभी गई नहीं थी. उसे लग रहा था कि अगर वह कामिनी से शादी नहीं करेगा, तो जरूर पागल हो कर रहेगा, इसलिए उस ने मुंबई जा कर कामिनी को ढूंढ़ने की सोची. प्रभात जानता था कि उस ने अपने दिल की बात पिता को बता दी, तो वे खुदकुशी करने की धमकी दे कर शादी करने के लिए मजबूर कर देंगे.
शादी में 2 दिन बच गए, तो किसी को कुछ बताए बिना प्रभात घर से मुंबई चला गया. वहां एक दोस्त के घर में रह कर प्रभात ने नौकरी की तलाश के साथसाथ कामिनी की तलाश भी जारी रखी. 6 महीने बाद प्रभात को एक सरकारी बैंक में नौकरी मिल गई, लेकिन कामिनी का पता नहीं चला.
इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच उस ने चिट्ठी लिख कर अपने पिता को यह बता दिया था कि वह मुंबई में सहीसलामत है. कामिनी से शादी करने के बाद ही वह घर आएगा. 3 साल बाद अचानक प्रभात का ट्रांसफर कोलकाता हो गया. 2 महीने से वह कोलकाता की एक शाखा में अफसर था और इस बात से बेहद चिंतित था कि अब वह कामिनी की तलाश कैसे करेगा?
आज अचानक कामिनी खुद ही उस के पास आ गई. शाम के साढ़े 5 बजे प्रभात की छुट्टी हुई, तो वह कामिनी के पास गया. कामिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अब चलें?’’
‘‘हां, चलो.’’ बैंक से कुछ ही कदम पर कामिनी का घर था. पैदल चलतेचलते प्रभात ने पूछा, ‘‘रिजल्ट आने के बाद तुम मुझ से शादी करने वाली थीं, फिर मुझे बिना बताए घर से चली क्यों गई थीं?’’
‘‘तुम तो जानते ही थे कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होने के बाद ही शादी करना चाहती थी. उस दिन तुम मेरे साथ जिस्मानी हरकत करने पर उतारू हो गए थे, इसलिए मुझे तुम से झूठा वादा करना पड़ा था. ‘‘मैं जानती थी कि रिजल्ट आने के बाद शादी के लिए तुम मुझ पर दबाव डालोगे, इसलिए रिजल्ट निकलने के कुछ दिन बाद ही अपने मामा के पास मुंबई चली गई थी. मेरे मामा वहां एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.
‘‘मामा के पास रह कर ही मैं ने नौकरी पाने की कोशिश की, तो 7-8 महीने बाद मुझे प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. पर पोस्टिंग मुंबई में न हो कर कोलकाता हुई. तब से मैं कोलकाता में ही हूं.’’ बात करतेकरते कामिनी घर पहुंच गई. दरवाजा बंद था. ताला खोलने के बाद कामिनी बोली, ‘‘तुम्हारी पूर्व प्रेमिका के घर में तुम्हारा स्वागत है.’’
‘‘पूर्व क्यों? आज भी तुम मेरी प्रेमिका हो. तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता. जब तक मैं तुम्हें पा नहीं लूंगा, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा,’’ कहते हुए प्रभात अंदर आ गया. ‘‘ऐसी बात है, तो आज मैं पहले तुम्हारी चाहत पूरी करूंगी, उस के बाद कोई बात करूंगी.’’
दरवाजा अंदर से बंद करने के बाद प्रभात की आंखों में आंखें डाल कर कामिनी बोली, ‘‘तुम बैडरूम में जा कर मेरा इंतजार करो. मैं कपड़े बदल कर जल्दी आती हूं.’’ ‘‘मतलब, शादी से पहले ही तुम अपना सबकुछ मुझे सौंप दोगी?’’
‘‘हां,’’ कामिनी चुहलबाजी करते हुए बोली. यह सुन कर प्रभात हैरान था. कामिनी में हुए बदलाव की वजह वह समझ नहीं पा रहा था.
प्रभात को हैरत में देख कामिनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘आज मैं तुम्हारी चाहत पूरी कर देना चाहती हूं, तो तुम्हें हैरानी हो रही है?’’ ‘‘हैरानी इसलिए हो रही है कि पहले मैं कभीकभी तुम्हें चूम लेता था, तो तुम यह कह कर डांट देती थीं कि शादी से पहले यह सब करोगे, तो मिलनाजुलना तो दूर बात करना भी बंद कर दूंगी, फिर अचानक आज तुम ने अपना सबकुछ मेरे हवाले करने का मन कैसे बना लिया?’’
‘‘तुम ने अब तक शादी नहीं की और न ही मेरी तलाश बंद की. इसी वजह से तुम पर मेरा प्यार उमड़ पड़ा है. वैसे, तुम नहीं चाहते हो, तो कोई बात नहीं है. हम यहीं बैठ कर बात कर लेते हैं,’’ कामिनी बोली. प्रभात हाथ आए मौके को गंवाना नहीं चाहता था. पता नहीं, कामिनी का मन कब बदल जाए, इसलिए उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं क्यों नहीं चाहूंगा. तुम्हें पाने के लिए ही तो मैं 3 साल से दरदर भटक रहा था. तुम बताओ कि बैडरूम किधर है?’’
‘‘चलो, मैं साथ चलती हूं,’’ कामिनी के साथ प्रभात बैडरूम में चला गया. वह उसे बांहों में भर कर उस के गालों व होंठों को दीवानों की तरह चूमने लगा. कामिनी उसे सहयोग करने लगी. प्रभात की बेकरारी बढ़ गई, तो उस ने कामिनी के सारे कपड़े उतार दिए.
मंजिल पर पहुंच कर सांसों का तूफान जब थम गया, तो प्रभात ने कहा, ‘‘तुम्हें पा कर आज मेरा सपना पूरा हो गया कामिनी.’’ ‘‘यही हाल मेरा भी है प्रभात. तुम्हारा हक तुम्हें दे कर कितनी खुशी मिली है, यह मैं बता नहीं सकती.’’
‘‘ऐसी बात है, तो तुम मुझ से शादी कर लो. अब मैं तुम से जुदा नहीं रह सकता.’’ ‘‘मैं भी अब कहां तुम से जुदा रहना चाहती हूं. मैं खुद तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर इस में एक अड़चन है.’’
‘‘कैसी अड़चन?’’ ‘‘दरअसल, बात यह है कि मैं प्राइवेट नौकरी से खुश नहीं हूं. नौकरी छोड़ कर मैं खुद की एक फैक्टरी लगाना चाहती हूं. इस के लिए मैं ने एक जगह भी देख रखी है. बस, मुझे पैसों की जरूरत है.
‘‘मैं लोन मांगने के लिए ही बैंक गई थी. वहां तुम मुझे मिल गए. अब अगर तुम मेरी मदद कर दोगे, तो मुझे जरूर लोन मिल जाएगा.’’ ‘‘कितना लोन चाहिए?’’
‘‘कम से कम 5 करोड़ का.’’ ‘‘5 करोड़? तुम पागल हो गई हो क्या? बिना गारंटर के कोई भी बैंक इतनी बड़ी रकम नहीं देता.’’
‘‘क्या तुम मेरे लिए गारंटर बन नहीं सकते?’’ ‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब यह कि बैंक में गारंटर के कागजात ही तो दिखाने हैं. वे तुम नकली बना लो. तुम बैंक में काम करते ही हो. तुम्हारे लिए ऐसा करना कोई मुश्किल नहीं होगा.’’ बात करतेकरते अचानक कामिनी ने प्रभात को बांहों में भर लिया और बोली, ‘‘तुम मुझे लोन दिला दोगे, तो मैं फिर कभी तुम से कुछ नहीं मांगूंगी.’’
प्रभात चिंता में पड़ गया. प्रभात को परेशान देख कामिनी बोली, ‘‘अगर तुम लोन नहीं दिलाना चाहते हो, तो कोई बात नहीं. मैं यह समझ कर अपने दिल को समझा लूंगी कि तुम्हें मुझ से नहीं, मेरे जिस्म से प्यार था. मेरा जिस्म पाने के बाद तुम ने मुझ से किनारा कर लिया.’’
प्रभात ने मन ही मन तय किया कि वह हर हाल में बैंक से कामिनी को लोन दिला कर यह साबित कर देगा कि वह उस के जिस्म का नहीं, बल्कि उस के प्यार का भूखा है. उस ने नकली गारंटर बनने का फैसला किया. बैंक में अकसर ऐसा किया जाता है, जब पैसा महफूज हो. प्रभात ने ऐसा किया भी. नकली गारंटर बना कर 2 महीने में उस ने कामिनी को बैंक से 5 करोड़ रुपए का लोन दिला दिया.
5 करोड़ रुपए पा कर कामिनी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. 2 महीने तक तो ठीक रहा, पर उस के बाद प्रभात के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. कामिनी प्रभात से कम मिलने लगी. लोन का ब्याज नहीं आ रहा था. सारा पैसा निकाल लिया गया था.
कामिनी को लोन दिलाने के 4 महीने बाद बैंक के अफसरों को सचाई का पता चल गया. नतीजतन, प्रभात को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. उस पर मुकदमा चला सो अलग. एक दिन प्रभात ने कामिनी से शादी करने के लिए कहा, तो उस ने शादी करने से साफ मना कर दिया. कामिनी ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सचाई बता रही हूं…’’
‘‘क्या?’’ प्रभात ने पूछा. ‘‘सचाई यह है कि मैं ने तुम्हें कभी प्यार ही नहीं किया. दरअसल, मैं प्यारमुहब्बत में यकीन नहीं करती. कालेज लाइफ में तुम मेरे आगेपीछे घूमने लगे थे, तो टाइम पास के लिए मैं ने तुम्हारा साथ दिया था, पर तुम से प्यार नहीं किया था.
‘‘दरअसल, मेरी मंजिल रुपए कमाना है. होश संभालते ही मैं भरपूर दौलत की मालकिन बनने का सपना देखने लगी थी. सपना पूरा करने के लिए मैं कुछ भी करगुजरने के लिए तैयार थी. इस के लिए मैं कोई शौर्टकट रास्ता ढूंढ़ रही थी कि बैंक में तुम मिल गए और मुझे रास्ता दिखाई पड़ गया. ‘‘मुझे तुम से जो पाना था, मैं पा चुकी हूं. अब तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. तुम मुझ से जो चाहते थे, मैं भी वह तुम्हें दे चुकी
हूं, इसलिए अब हम दोनों के बीच कुछ नहीं रहा. ‘‘तुम से कमाए पैसों से मैं अपनी जिंदगी संवार लूंगी. तुम भी अपनी जिंदगी के बारे में सोचो, अब तुम मुझ से कभी मिलने की कोशिश मत करना.’’
प्रभात यह सुन कर हैरान रह गया. कोई हसीना इतनी खतरनाक भी हो सकती है, वह नहीं जानता था. अब कामिनी से कोई बात करना बेकार था, इसलिए प्रभात चुपचाप उस के घर से बाहर आ गया. कामिनी से उस का मोह भंग हो गया था और वह जल्दी अपने घर लौट जाना चाहता था.
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