वह बेचैनी से पहलू बदलते हुए बोला, ‘‘मैं बिना किसी जांच के उन मांबेटी को धोखेबाज कहना नहीं चाहता. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही हों.’’
‘‘मेरे विचार में यह कुछ अधिक मुश्किल काम नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘2-4 दिनों लड़की पर नजर रखी जाए. होशियारी से उस का पीछा किया जाए तो पता चल जाएगा कि वह कहीं बोलती है या नहीं?’’
अर्पित गले को साफ करते हुए बोला, ‘‘यही तो समस्या है कि मैं तुम्हें 4 दिन तो क्या, 2 दिन का समय भी नहीं दे सकता. असल में मुझे विश्वास था कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा. इसलिए अंतिम क्षणों तक मैं ने किसी डिक्टेटिव या खोजी की तलाश शुरू नहीं की. इस बुधवार को 10 बजे अदालत में इस दावे की सुनवाई होनी है. हो सकता है पहली ही पेशी में निर्णय भी हो जाए.’’
इस का मतलब था कि मेरे पास केवल एक दिन का समय था, जिस में मुझे कोई ऐसा सबूत तलाश करना था, जिस की वजह से दावेदार अपना दावा वापस लेने पर विवश हो जाए.
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‘‘सौरी मिस्टर अर्पित, एक दिन में भला क्या हो सकता है?’’ मैं ने कहा.
‘‘इस परिस्थिति में अगर कोई समझौता हो भी जाए तो वह भी मेरे लिए जीत की तरह ही होगा,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं कह चुका हूं कि मुझे अपनी गलती की भरपाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इतनी सी बात पर मैं अपनी कुल संपत्ति का एक चौथाई उन मांबेटी को नहीं दे सकता.’’
एक बार फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. मतलब अर्पित की कुल संपत्ति का एक चौथाई 100 करोड़ था. इस का मतलब था कि अर्पित मेरे अनुमान से कहीं अधिक धनवान था. संभवत: उन मांबेटी को अंदाजा था कि वह कितना मोटा आसामी है. तभी उन्होंने ज्यादा गहराई तक दांत गड़ाने का प्रोग्राम बनाया था.
आखिर मैं ने अपनी पूरी कोशिश करने की हामी भरते हुए उसे अपनी फीस के बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं केवल एक ही दिन के लिए तुम्हारी सेवाएं ले रहा हूं और इस का भुगतान पेशगी दे रहा हूं. अगर तुम कोई सबूत तलाश करने में कामयाब हो गईं तो मैं सारे खर्चों के अलावा तुम्हें 5 लाख रुपए का इनाम दूंगा. अगर तुम असफल रहीं तो मेरे कानूनी सलाहकार इस मसले से अपने हिसाब से निपटेंगे.’’
बातचीत के बाद मैं लौट आई. सब से पहले मैं ने उन मांबेटी के बारे में सूचना इकट्ठी की. बेटी का नाम रूपा सरकार था और मां का नाम सुषमा सरकार. वे द्वारका के सिंगल बैडरूम के छोटे से फ्लैट में रह रही थीं. मैं ने अपनी गाड़ी एक ऐसी जगह पार्क की, जहां से मैं उन के फ्लैट पर नजर रख सकती थी.
अर्पित मुझे उन के नाम और ठिकाने से अधिक कुछ नहीं बता सका था. मैं ने अपने तौर पर जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की तो पता चला कि सुषमा सरकार यानी मां और रूपा सरकार किसी न किसी तरह के दावे कर के माल बटोरने में लगी रहती थीं. अगर मामला केवल उस औरत का होता तो शायद मैं उसे दे दिला कर राजी करने की कोशिश करती, लेकिन मसला उस की बेटी के अजीबोगरीब और अविश्वसनीय नुकसान का था. मैं ने उस डाक्टर से बात की, जो उस का इलाज कर रहा था. ऐसा मालूम होता था कि उस ने भी मांबेटी के दावे को सही साबित करने की बात को अपनी प्रेस्टीज का मसला बना लिया था.
9 बजे तक मैं अपनी कार में बैठेबैठे न्यूजपेपर पढ़ती रही. जब थक गई तो मैं ने गाड़ी से निकल कर हाथपांव सीधे किए और बिल्डिंग के चारों ओर एक चक्कर लगाया. मांबेटी के ग्राउंड फ्लोर स्थित फ्लैट का नंबर 7 था. उस के पीछे की तरफ एक पुरानी सी मारुति कार खड़ी थी, जिस पर लगे चंद निशानों से पता चल रहा था कि हाल ही उस का मामूली एक्सीडेंट हुआ है.
फ्लैट नंबर 7 में झांकने का मेरा प्रयास सफल नहीं हो सका. खिड़कियां बंद थीं और उन पर परदे पड़े हुए थे. अंदर तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. अंतत: मायूस हो कर मैं दोबारा अपनी कार में जा बैठी.
आखिर 10 बजे मांबेटी फ्लैट से बाहर निकलीं और गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर चल दीं. उन्होंने एकदूसरे से बिलकुल भी बात नहीं की. मैं ने उचित दूरी बना कर उन का पीछा करना शुरू कर दिया.
पहले दोनों एक बहुत अच्छे डिपार्टमेंटल स्टोर पर रुकीं और अंदर जा कर आधे घंटे तक बिना किसी मकसद के घूमती रहीं. उन्होंने महंगे फर्नीचर से ले कर मंगनी की अंगूठी तक का जायजा लिया. वे यकीनन उस दौलत को खर्च करने के तरीके सोच रही थीं, जो उन के ख्याल में उन्हें छप्पर फाड़ कर मिलने वाली थी. वे एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन उन की पसंद ऊंची लगती थी.
कुछ देर की आवारागर्दी के बाद आखिरकार वे एक ब्यूटीपार्लर में जा घुसीं. वे रिसैप्शन पर रुकीं तो मैं पीछे मुडे़ बिना सुषमा की आवाज सुन रही थी. मोटी सुषमा बाल सैट कराने के लिए एक कुरसी पर जा बैठी, जबकि दुबलीपतली रूपा वेटिंग रूम में बैठ गई. मुझे कुछ उम्मीद नजर आई कि संभवत: मुझे भाग्य आजमाने का अवसर मिलने वाला है.
मैं ने रिसैप्शन पर मौजूद लड़की से अपने बाल शैंपू और सैट कराने की बात की तो उस ने बताया कि करीब 10 मिनट बाद हेयर डे्रसर फ्री हो जाएगी.
मैं वेटिंग रूम में रूपा के सामने जा बैठी. वह सच्चे प्रेमप्रसंग प्रकाशित करने वाली एक पत्रिका के पृष्ठों पर नजरें जमाए बैठी थी. मैं ने भी मेज पर पड़ी 2-3 मैगजीनें उलटपलट कर देखने के बाद साधारण लहजे में कहा, ‘‘ऐसी जगहों पर हमेशा पुरानी मैगजीनें ही पड़ी रहती हैं.’’
रूपा ने मैगजीन से नजर हटा कर मेरी तरफ देखा, लेकिन बोली कुछ नहीं. मैं ने मुसकराते हुए मित्रवत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें शायद कोई अच्छी मैगजीन मिल गई है.’’
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उस ने इनकार में सिर हिलाया तो मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘किसी खास ब्यूटीशियन के साथ अपाइंटमेंट है क्या?’’
उस ने कोई जवाब नहीं दिया और दोबारा उसी मैगजीन पर नजरें जमा कर बैठ गई. इतने में एक ब्यूटीशियन ने फ्री हो कर मुझे बुला लिया. जब इंसान को फास्ट सर्विस की कोई खास जरूरत नहीं होती तो उसे अनचाहे ही फास्ट सर्विस मिल जाती है.
मैं कुरसी पर जा बैठी. हेयरड्रेसर ने मेरे चारों ओर काला कपड़ा लपेटा और मैं ने शैंपू के लिए सिंक पर सिर झुका लिया. जब मेरे बाल संवारे जा रहे थे तो मैं ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘मैं ने किसी इतनी नौजवान लड़की को इतना रफटफ रहते हुए नहीं देखा.’’
हेयर ड्रेसर समझ गई कि मेरा इशारा किस ओर था. वह सिर घुमा कर रूपा की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मैं इस लड़की से दोस्ताना तरीके से बात करना चाहती थी. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक शब्द भी नहीं बोली.’’
हेयरड्रेसर मेरी ओर झुकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, वह बेचारी बोल नहीं सकती. 2 महीने पहले एक अमीर आदमी ने अपनी कार से इन मांबेटी की कार में टक्कर मार दी थी. तब से इस बेचारी की बोलने की शक्ति चली गई है.’’
‘‘ओह… यह तो बड़ी अफसोसजनक बात है. मुझे यह बात मालूम नहीं थी?’’ मैं ने जल्दी से कहा. इस बीच सुषमा मुझ से कुछ दूर दूसरी कुरसी पर बाल सैट कराते हुए तेज रफ्तार से ब्यूटीशियन से बातें कर रही थी. ऐसा जान पड़ता था कि जैसे उसे आसपास का कुछ पता ही नहीं था.
‘‘मां की कमर में भी चोट आई थी,’’ ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘ये अमीर लोग समझते हैं, जो चाहे कर गुजरें, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं.’’
इस का मतलब था कि इन लोगों की कहानी को और लोग भी जानते थे और कुछ लोगों की हमदर्दियां भी इन के साथ थीं. मेरे बाल सैट हो चुके तो मेरे पास वहां ठहरने का कोई बहाना नहीं रहा.
मैं ब्यूटीपार्लर से निकल आई और सामने सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई. सड़क लगभग सुनसान थी. मैं सुबह 5 बजे की उठी थी. नींद मेरी आंखों में उतरने की कोशिश कर रही थी. मैं ने अपना सिर बैंच की बैक से टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ देर में मुझे एक अजीबोगरीब सुखद अहसास हुआ. लेकिन उस अहसास का मैं ज्यादा देर आनंद नहीं उठा सकी.
‘‘शालिनी…’’ किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं हड़बड़ा कर सीधी हो गई.
एक घबराया हुआ सा युवक मेरे ऊपर थोड़ा सा झुका हुआ खड़ा था. उस की आंखों में शरारत साफ झलक रही थी. मुझे सड़क किनारे की एक बैंच पर ऊंघते देख कर संभवत: वह बहुत ही खुश हो रहा था.
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मुझे केवल शालिनी के नाम से संबोधित कर के शायद उसे तसल्ली नहीं हुई थी. उस ने मेरा पूरा नाम लिया, ‘‘शालिनी चौहान…?’’ लेकिन यह मेरा शादी से पहले का नाम था. अब तो मुझे अपने पति से अलग हुए भी जमाना गुजर गया था. मैं हैरान हुए बिना न रह सकी कि यह कौन है, जो इस तरह मेरा नाम ले रहा है.