मूलरूप से मध्य प्रदेश के सिंगरौली की रहने वाली संध्या सिंह की शादी रीवा के एक संपन्न परिवार के व्यक्ति संतोष सिंह से हुई थी. लेकिन स्वच्छंदता से जीवन व्यतीत करने वाली पढ़ीलिखी संध्या की अपनी ससुराल वालों और पति से अनबन रहने लगी. शादी के कुछ समय बाद वह अपने पति के साथ रीवा से छिंदवाड़ा आ गई. उस ने वहां दुर्गा महिला शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ संचालित करना शुरू कर दिया.
बाद में संध्या सिंह की महत्त्वाकांक्षाएं उड़ान भरने लगीं. वह देर रात तक पार्टियों में अपना वक्त बिताने लगी तो संतोष सिंह से उस का मनमुटाव शुरू हो गया और संतोष सिंह संध्या से अलग हो गए और अपने शहर वापस चले गए. इस के बाद संध्या सिंह खुला और एकाकी जीवन बसर करने लगी. इसी दौरान 10 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की नियुक्ति छिंदवाड़ा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के पद पर हो गई. महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी भाग्य त्रिपाठी मध्य प्रदेश के एक सरकारी विभाग में नौकरी करती थीं. उन के दोनों बेटे भी उन्हीं के साथ भोपाल में रहते थे. कभी त्रिपाठी अपने परिवार से मिलने भोपाल चले जाते थे तो कभी उन का परिवार मिलने के लिए उन के पास आ जाता था. एक तरह से महेंद्र त्रिपाठी छिंदवाड़ा में अकेले रहते थे.
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तैनाती के कुछ महीने बाद ही एक समारोह में संध्या सिंह की मुलाकात जज महेंद्र त्रिपाठी से हुई. त्रिपाठी और संध्या सिंह दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए और पहली ही मुलाकात में उन की दोस्ती हो गई. ये दोस्ती इस कदर आगे बढ़ी कि कुछ ही दिनों में उन के रिश्ते आत्मीय हो गए.
दरअसल संध्या सिंह को लगा कि न्यायिक अधिकारी होने के कारण उसे महेंद्र कुमार त्रिपाठी के बडे़ लोगों के साथ रसूख का लाभ मिल सकता है और उन के जरिए वह अपने एनजीओ के लिए बहुत से लाभ ले सकती है.
इंसान भले ही किसी भी पेशे से जुड़ा हो लेकिन प्रकृति का एक नियम है कि जब वह किसी महिला के आकर्षण या रूप जाल में फंस जाता है तो उस का विवेक काम करना बंद कर देता है. वह इस बात को भी भूल जाता है कि वह जिस पेशे से जुड़ा है, उस की मर्यादा क्या है.
संध्या के जाल में फंसे जज साहब
जैसे ही महेंद्र त्रिपाठी की संध्या सिंह के साथ आसक्ति बढ़ी तो संध्या की तरक्की भी होने लगी. उस ने अब त्रिपाठीजी को अपनी तरक्की की सीढ़ी बना कर पूरी तरह अपने आकर्षण के जाल में फंसा लिया था. उस ने त्रिपाठीजी से आर्थिक मदद ले कर कपड़ों का कारोबार भी शुरू कर दिया था.
संध्या सिंह ने दुर्गा महिला शिक्षा समिति के नाम से जो एनजीओ बना रखा था, उस के लिए वह त्रिपाठीजी के सहयोग से सरकारी प्रोजेक्ट भी हासिल करने लगी. चूंकि उस वक्त त्रिपाठीजी छिंदवाड़ा में सीजेएम जैसे महत्त्वपूर्ण ओहदे पर तैनात थे. संध्या सिंह ने छिंदवाड़ा की उसी हाउसिंग बोर्ड कालोनी में किराए का मकान भी ले कर अपना निवास बना लिया, जहां सीजेएम महेंद्र कुमार त्रिपाठी रहते थे.
उन दिनों नगर निगम छिंदवाड़ा ने त्रिपाठीजी के कहने पर संध्या सिंह को आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण देने का लाखों रुपए का एक प्रोजेक्ट भी दिया था. इस के अलावा संध्या सिंह महेंद्र त्रिपाठी के रसूख का इस्तेमाल कर जम कर फायदे उठाने लगी.
संध्या सिंह और महेंद्र त्रिपाठी के बीच के दोस्ताना रिश्तों की भनक उन की पत्नी व परिवार के दूसरे सदस्यों को भी लग गई थी. जिस के कारण उन के घर में कलह रहने लगी. इसी दौरान 2 साल पहले महेंद्र त्रिपाठी की पदोन्नति हो गई और वे एडीजे बन कर छिंदवाड़ा से बैतूल आ गए.
महेंद्र त्रिपाठी के बैतूल आ जाने के बाद संध्या सिंह की मुश्किलें बढ़ गईं. उन के ज्यादा व्यस्त रहने की वजह से न तो आसानी से उस की उन से मुलाकात हो पाती थी और न ही वह उन से कोई फायदा ले पाती थी.
हां, इतना जरूर था कि वह महेंद्र त्रिपाठी से मिलने के लिए महीने में 1-2 बार बैतूल आती रहती थी. एडीजे त्रिपाठी उस के लिए सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था करा देते थे. जहां 1-2 दिन उन से मिलने के बाद वह वापस चली जाती थी.
लेकिन संध्या सिंह से महेंद्र त्रिपाठी के इस मेलजोल की खबर भी उन के परिवार तक पहुंचने लगी, जिस के कारण उन की अपनी पत्नी व बच्चों से कलह होती रहती थी. आखिरकार महेंद्र त्रिपाठी की पत्नी ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए कुछ महीने पहले अपनी नौकरी से वीआरएस ले लिया और वे जज साहब के पास बैतूल आ कर रहने लगीं. इस दौरान बड़ा बेटा अभियान भी इंदौर से उन्हीं के पास बैतूल आ कर रहने लगा. वह बैतूल में नौकरी की तलाश कर रहा था. छोटा बेटा आशीष पहले से ही मां के पास रहता था.
इधर 4 महीने से जब से महेंद्र त्रिपाठी का परिवार उन के पास आया था, तब से संध्या सिंह का न तो महेंद्र त्रिपाठी से मिलनाजुलना होता था, न ही त्रिपाठीजी उस की आर्थिक मदद करते थे. इतना ही नहीं, अब महेंद्र त्रिपाठी ने अपने बच्चों को सैटल करने के लिए संध्या सिंह से अपने दिए पैसों का हिसाबकिताब लेना भी शुरू कर दिया था. वे संध्या से अकसर कहते थे कि उन्हें अपने बच्चों को कामधंधा कराना है, इसलिए वह उन से लिए गए पैसे वापस करे.
पिछले 10 सालों में महेंद्र त्रिपाठी से संध्या सिंह की दोस्ती आत्मीयता की इस हद तक पहुंच गई थी कि 4 महीने की दूरी उसे सालों की दूरी सी लगने लगी. अब वह महेंद्र त्रिपाठी से कतई दूर नहीं रहना चाहती थी. जबकि महेंद्र त्रिपाठी उस से दूरी बनाना चाहते थे.
जब महेंद्र त्रिपाठी से उस ने कटेकटे रहने और दूरी बनाने का कारण पूछा तो उन्होंने साफ कह दिया कि उस की वजह से उन के परिवार में कलह रहने लगी है, लिहाजा अब वे एकदूसरे से दूर ही रहे तो अच्छा है, साथ ही उन्होंने संध्या से उन पैसों की मांग फिर से कर दी जो संध्या ने उन से लिए थे.
संध्या नहीं लौटाना चाहती थी जज साहब के पैसे
इन बातों से उपजे तनाव से संध्या सिंह को लगने लगा कि अगर उसे महेंद्र त्रिपाठी का पैसा लौटाना पड़ा तो कहां से इंतजाम करेगी. वैसे भी अब उसे महेंद्र त्रिपाठी से अपनी दोस्ती पहले जैसी होने की कोई उम्मीद नहीं बची थी.
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