मिसफिट पर्सन- भाग 3: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

नरोत्तम ने अपना सिर धुन लिया. वह बारबार कहता रहा कि हवाई अड्डे पर उस का अघोषित सामान पकड़ा था उसी से वह उस को जानती है. और अब जानबूझ कर मजे लेने के लिए ड्रामा कर रही थी. मगर पत्नी को कहां विश्वास करना था.

‘‘सर, नरोत्तम की वजह से कोई भी सहजता से काम नहीं कर पाता,’’ डिप्टी डायरैक्टर, कस्टम ने अपने बौस से कहा.

नरोत्तम को कोई भी विभाग अपने यहां लेने को तैयार नहीं था. एक तो उस का स्वभाव ही ऐसा था, दूसरे, उस के कर्म खोटे थे. वह जहां जाता वहां कोई न कोई पंगा हो जाता था.

कार्गो कौम्प्लैक्स, कस्टम विभाग में सुरक्षा महकमा समझा जाता था. इस विभाग में ऊपर की कमाई के अवसर काफी कम थे. नरोत्तम को इस विभाग में भेज दिया गया.

नरोत्तम कर्तव्यनिष्ठ अफसर था. उस को कहीं भी ड्यूटी करने में संकोच नहीं था.

एक रोज एक शिपमैंट की चैकिंग के दौरान एक पेटी मजदूर के हाथों से गिर कर टूट गई. पेटी में फ्रूट जूस की बोतलें भरी थीं. कुछ बोतलें टूट गईं. उन में से छोटीछोटी पाउचें निकल कर बिखर गईं. सब चौंक पड़े. नरोत्तम ने पाउचें उठा लीं और एक को फाड़ कर सूंघा. उन में सफेद पाउडर भरा था, जो हेरोइन थी.

मामला पहले पुलिस, फिर मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो के हवाले हो गया. शिपमैंट भेजने वाले निर्यातक की शामत आ गई. उस के बाद हर कंटेनर को खोलखोल कर देखा जाने लगा. निर्यात में देरी होने लगी. कई अन्य घपले भी सामने आ गए. कार्गो कौम्प्लैक्स भी अब निगाहों में आ गया.

जिस निर्यातक की शिपमैंट में नशीला पदार्थ पकड़ा गया था उस ने नरोत्तम को मारने के लिए गुंडेबदमाशों को ठेका दे दिया. नरोत्तम नया रंगरूट था. उस को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी मिला था और साथ ही सुरक्षा हेतु रिवौल्वर भी. एनसीसी कैडेट भी रह चुका था. वह दक्ष निशानेबाज था.

एक दिन वह ड्यूटी समाप्त कर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ. मेन रोड पर आते ही उस के पीछे एक काली कार लग गई. बैक व्यू मिरर से उस की निगाहों में वह पीछा करती कार आ गई.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- भूलना मत: नम्रता की जिंदगी में क्या था उस फोन कौल का राज?

वह चौकस हो गया. उस ने कमर से बंधे होलेस्टर का बटन खोल दिया. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल रहा था. सड़क पर ट्रैफिक बढ़ रहा था. दफ्तरों से, दुकानों से घर लौटते लोग अपनेअपने वाहन तेजी से चलाते जा रहे थे.

कार लगातार पीछे चलती बिलकुल समीप आ गई. फिर साथसाथ चलने लगी. नरोत्तम ने देखा, कार में 4 आदमी सवार थे.

एक ने हाथ उठाया, उस के हाथ में रिवौल्वर थी. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल को एक झोल दिया. एक फायर हुआ, झोल देने से निशाना चूक गया. कार आगे निकल गई. उस ने फुरती से अपनी रिवौल्वर निकाली. निशाना साध कर फायर किया.

कार का पिछला एक पहिया बर्स्ट हो गया. कार डगमगाती हुई रुक गई. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल रोक कर सड़क के किनारे खड़ी कर दी. सड़क के किनारे थोड़ीथोड़ी दूरी पर बिजली के खंभे थे. उन के साथ कूड़ा डालने के ड्रम थे. वह लपक कर डम के पीछे बैठ गया. कार रुक गई. 4 साए अंधेरे में आगे बढ़ते उस की तरफ आए. रेंज में आते ही उस ने एक के बाद एक 3 फायर किए. 2 साए लहरा कर नीचे गिर पड़े. नरोत्तम फुरती से उठा और दौड़ कर पीछे वाले खंभे की ओट में जा छिपा.

जैसी उम्मीद थी वैसा हुआ. 2 रिवौल्वरों से ड्रम पर गोलियां बरसने लगीं. मगर नरोत्तम पहले से जगह छोड़ कर पीछे पहुंच गया था. उस ने निशाना साध गोली चलाई. एक साया हाथ पकड़ कर चीखा, फिर दोनों भाग कर कार की तरफ जाने लगे.

नरोत्तम मुकाबला खत्म समझ छिपने के स्थान से बाहर निकल आया. तभी भागते दोनों सायों में से एक मुड़ा और नरोत्तम पर फायर कर दिया. गोली नरोत्तम के कंधे पर लगी. वह कंधा पकड़ कर बैठ गया.

सड़क पर चलता ट्रैफिक लगातार होती गोलीबारी से रुक गया. टायर बर्स्ट हुई कार में बैठ कर चारों बदमाश भाग निकले. नरोत्तम पर बेहोशी छाने लगी. तभी 2 जनाना हाथों ने उसे थाम लिया. पुलिस की गाडि़यों के सायरन गूंजने लगे. नरोत्तम बेहोश हो गया.

नरोत्तम की आंख खुली तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के कंधे और छाती पर पट्टियां बंधी थीं. उस के साथ स्टूल पर उस की पत्नी बैठी थी. दूसरी तरफ उस के मातापिता और संबंधी थे.

होश में आने पर पुलिस उस का औपचारिक बयान लेने आई. नरोत्तम फिर सो गया. शाम को उस की आंख खुली तो उस ने अपने सामने ज्योत्सना को हाथ में छोटा फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा पाया.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’ मुसकराते हुए उस ने पूछा.

उस ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. वह यहां कैसे?

‘‘उस शाम संयोग से मैं आप के पीछेपीछे ही अपनी कार पर आ रही थी. मैं ने ही पुलिस को फोन किया था.’’

तब नरोत्तम को याद आया, बेहोश होते समय 2 जनाना हाथों ने उसे थामा था. ज्योत्सना चली गई.

नरोत्तम 3-4 दिन बाद घर आ गया. उस का कुशलक्षेम पूछने बड़ेछोटे अधिकारी भी आए. ज्योत्सना भी हर शाम आने लगी. उस के यों रोज आने से उस की पत्नी का चिढ़ना स्वाभाविक था.

ये भी पढ़ें- बलात्कारी की हार: भाग 3

पतिपत्नी में बनती पहले से ही नहीं थी. नरोत्तम के ठीक होते पत्नी मायके जा बैठी. उस के मातापिता, दामाद के मिसफिट नेचर की वजह से पहले ही क्षोभ में थे और अब उस की इस खामखां की प्रेयसी के आगमन ने आग में घी का काम किया. पतिपत्नी में संबंधविच्छेद यानी तलाक की प्रक्रिया शुरू हो गई.

बौयफ्रैंड को कमीज के समान बदलने वाली ज्योत्सना को कड़क जवान नरोत्तम जांबाजी के कारण भा गया था. वह अब उस के यहां नियमित आने लगी.

असमंजस में पड़ा नरोत्तम इस सोचविचार में था कि त्रियाचरित्र को क्या कोई समझ सकता था? रिश्वतखोर न होने के कारण उस की पत्नी उस को छोड़ कर चली गई थी. और अब एक तेजतर्रार नवयौवना उस के पीछे पड़ गई थी. एक तरफ जबरदस्ती के प्यार का चक्कर था तो दूसरी तरफ उस की नियति. दोनों पता नहीं भविष्य में क्या गुल खिलाएंगे?

Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 1: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi- फरिश्ता: क्या जीशान ने मोना को धोखा दिया ?

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: नो गिल्ट ट्रिप प्लीज

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 1

लेखक : श्री प्रकाश

तपन रहने वाला तो झारखंड के बोकारो शहर का था, पर किसी काम से कोलकाता गया हुआ था. वह बस से बोकारो आ रहा था. उस की बगल की सीट पर एक हसीन लड़की बैठी थी. उसे भी बोकारो ही आना था. उस की उम्र 25 के आसपास रही होगी. इस हसीना के गोरे रंग, गोल आकर्षक चेहरे पर जिस की भी नजर पड़ती, तारीफ किए बिना नहीं रह सकता था. दोनों अपनीअपनी सीट पर बैठे मैगजीन पढ़ रहे थे. जब उन की बस कोलकाता शहर से बाहर निकल कर हाईवे पर आई तो यात्रियों को अल्पाहार दिया गया. दोनों ने अपनीअपनी मैगजीन रख कर एकदूसरे की ओर मुसकराते हुए देखा.

‘‘हाय, मैं तपन,’’ तपन ने पहल करते हुए कहा, ‘

‘‘और मैं चित्रा,’’ उस लड़की ने कहा.

खाते हुए दोनों कुछ बातें करने लगे.

फिर अपनीअपनी मैगजीन पढ़ने लगे. थोड़ी देर बाद दुर्गापुर आया तो बस 10 मिनट के लिए रुकी. तपन ने उतर कर चाय पी और एक कप चाय चित्रा के लिए ले कर बस में चढ़ गया. चित्रा ने ‘थैंक्स’ कहते हुए चाय ले कर पीना शुरू की.

कुछ देर बाद जब बस आसनसोल के पास पहुंचने वाली थी तभी अचानक बस रुक गई. कुछ यात्री सो रहे थे तो कुछ जगे थे. पर बस के अचानक रुकते ही सोने वाले यात्री भी जग गए. यात्रियों ने पहले तो आपस में एकदूसरे से बस रुकने का कारण जानना चाहा, पर सही कारण किसी को पता नहीं था. तभी कंडक्टर ने यात्रियों को बताया कि किसी बड़ी दुर्घटना के कारण रोड जाम है और यह जाम खत्म होने में काफी समय लग सकता है. यात्री बस के अंदर ही आराम करें. थोड़ी देर में बस का एसी बंद कर दिया गया. गरमी के दिन थे. ज्यादातर लोग बस से नीचे उतर गए.

तपन भी नीचे आ चुका था. पर चित्रा बस में ही बैठी रही. उस ने खिड़की खोल रखी थी. तपन ने उस की ओर देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह चिंतित है. तपन ने उस से नीचे आने को कहा, क्योंकि बस में गरमी बहुत थी पर बाहर अच्छा लग रहा था.

चित्रा बस से नीचे आ गई पर काफी बेचैन लग रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह चिंतित और सहमी थी. तपन ने उस की चिंता का कारण जानना चाहा तो वह बोली, ‘‘मुझे बोकारो बस स्टैंड पर लेने एक दूर के रिश्तेदार आने वाले हैं. अब पता नहीं बस कब पहुंचे. रात भर तो वे बस स्टैंड पर वेट नहीं कर सकते हैं पर आज रात मेरा बोकारो पहुंचना भी बहुत जरूरी है.’’

‘‘इस आपदा के बारे में तो किसी ने नहीं सोचा था. पर तुम चिंता न करो, अपने रिश्तेदार को फोन कर मना कर दो कि वे तुम्हारा वेट न करें. जाम के सुबह के बाद ही खत्म होने की उम्मीद लगती है. वह भी श्योर नहीं है. सुबह होने के बाद ही कोई विकल्प सोचा जा सकता है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- काश, तुम भाभी होती

चित्रा ने फोन कर अपने रिश्तेदार को बस स्टैंड आने से मना तो कर दिया, पर उस की आंखें भर आई थीं जिसे तपन ने आसानी से देख लिया था. उस की परेशानी वैसी ही बनी थी.

तपन ने पूछा, ‘‘क्या बात है तुम कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो? सभी यात्री फंसे हैं, सब को बोकारो ही जाना है… हम सब मजबूर हैं… तुम्हारी कोई खास वजह हो तो चाहो तो बता सकती हो. शायद मैं कुछ मदद कर सकूं?’’

वह कुछ देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘मेरा आज रात बोकारो पहुंचना बहुत जरूरी है. कल सुबह मेरा एक बहुत ही जरूरी काम है…समय पर न पहुंचने से बहुत नुकसान हो सकता है.’’

‘‘वैसे तो मुझे जानने का कोई हक नहीं है, पर अगर कुछ खुल कर कहो तो कोई हल खोजने की कोशिश जरूर करूंगा.’’

अपने को थोड़ा संभालते हुए कहा, ‘‘कल सुबह 7 बजे मुझे कोर्ट में हाजिर होना है और यह दिन कोर्ट का आखिरी वर्किंग डे है. उस के बाद कोर्ट लगभग 2 महीनों के लिए समर वेकेशन के चलते बंद हो जाएंगे.’’

‘‘अगर आज रात तक ही पहुंचना है तो मैं कोई विकल्प देखूं क्या?’’

‘‘मैं आजीवन आप की आभारी रहूंगी. कुछ हो सके तो करें प्लीज.’’

तपन ने बस के कंडक्टर से पूछा कि आखिर जाम क्यों लगा है तो उस ने बताया कि आगे पुलिया पर एक ट्रक खराब हो गया है. वहां बस इतनी जगह बची है कि एक टू व्हीलर ही निकल सकता है… दोनों तरफ से बड़ी गाडि़यों का जाम लगा है. तपन ने जब उस से आगे कहा कि उस का जल्दी आगे जाना बहुत जरूरी है. कोई उपाय सुझाओ तो कंडक्टर ने कहा कि अगर आप के पास सामान ज्यादा नहीं है तो पैदल पुलिया पार कर रिकशे से टैक्सी स्टैंड तक जा कर बोकारो की टैक्सी पकड़ लो पर बस का भाड़ा वह नहीं लौटा सकता.

ये भी पढ़ें- Family Story in Hindi: अम्मां जैसा कोई नहीं

‘‘नहीं, भाड़े कि कोई चिंता नहीं है,’’ बोल कर वह चित्रा के पास गया और बोला, ‘‘चलो, आगे जाने का उपाय हो गया है. तुम्हारे पास कोई हैवी सामान तो नहीं?’’

‘‘नहीं, बस एक बैग ही है.’’

फिर दोनों ने अपना सामान उठाया और पैदल चल कर पुलिया पार कर रिकशा ले कर टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े. रास्ता ऊबड़खाबड़ था. रिकशे के बारबार हिचकोले खाने से चित्रा की बाहों का स्पर्श पा कर उसे मीरा की याद आ गई. उसे 5 साल पहले की बात याद आ गई जब वह अपनी पत्नी मीरा के साथ रिकशे पर होता था और रिकशे के हिचकोले खाने से उस का शरीर मीरा के स्पर्श का आनंद लिया करता था. पर अब मीरा उस की जिंदगी से जा चुकी थी.

खैर दोनों टैक्सी स्टैंड पहुंचे. उन्होंने बोकारो के लिए एक टैक्सी ली. पर बोकारो पहुंचतेपहुंचते रात के 2 बज गए.

तपन ने चित्रा से पूछा कि बोकारो में उसे किस सैक्टर में जाना है तो उस ने कहा, ‘‘मुझे जाना तो सैक्टर 1 में है जो कोर्ट के समीप ही है, पर मुझे उन का फ्लैट नंबर याद नहीं है. दरअसल, मेरे पिताजी एक जरूरी टैंडर के सिलसिले में नेपाल गए हैं. मैं मातापिता की इकलौती संतान हूं,’’ इसलिए अकेले आना पड़ा… काम ही कुछ ऐसा है.

Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 2: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: तू मुझे कबूल

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे?

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: खुल गई पोल

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी. एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: अलविदा काकुल

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को. घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे. दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

‘‘नहींनहीं, मुझे अस्पताल नहीं जाना. मैं ठीक हो जाऊंगी,’’ राजवी बोली.

उलझे रिश्ते- भाग 1: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

Writer- Ravi

दिन भर की भागदौड़. फिर घर लौटने पर पति और बच्चों को डिनर करवा कर रश्मि जब बैडरूम में पहुंची तब तक 10 बज चुके थे. उस ने फटाफट नाइट ड्रैस पहनी और फ्रैश हो कर बिस्तर पर आ गई. वह थक कर चूर हो चुकी थी. उसे लगा कि नींद जल्दी ही आ घेरेगी. लेकिन नींद न आई तो उस ने अनमने मन से लेटेलेटे ही टीवी का रिमोट दबाया. कोई न्यूज चैनल चल रहा था. उस पर अचानक एक न्यूज ने उसे चौंका दिया. वह स्तब्ध रह गई. यह क्या हुआ?

सुधीर ने मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उस का मन किया कि वह जोरजोर से रोए. लेकिन उसे लगा कि कहीं उस का रोना सुन कर पास के कमरे में सो रहे बच्चे जाग न जाएं. पति संभव भी तो दूसरे कमरे में अपने कारोबार का काम निबटाने में लगे थे. रश्मि ने रुलाई रोकने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन काफी देर तक रोती रही. शादी से पूर्व का पूरा जीवन उस की आंखों के सामने घूम गया.

बचपन से ही रश्मि काफी बिंदास, चंचल और खुले मिजाज की लड़की थी. आधुनिकता और फैशन पर वह सब से ज्यादा खर्च करती थी. पिता बड़े उद्योगपति थे. इसलिए घर में रुपयोंपैसों की कमी नहीं थी. तीखे नैननक्श वाली रश्मि ने जब कालेज में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन सुधीर से उस की आंखें चार हो गईं.

‘‘हैलो आई एम रश्मि,’’ रश्मि ने खुद आगे बढ़ कर सुधीर की तरफ हाथ बढ़ाया. किसी लड़की को यों अचानक हाथ आगे बढ़ाता देख सुधीर अचकचा गया. शर्माते हुए उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं सुधीर हूं.’’

‘‘कहां रहते हो, कौन सी क्लास में हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘अभी इस शहर में नया आया हूं. पापा आर्मी में हैं. बी.कौम प्रथम वर्ष का छात्र हूं.’’ सुधीर ने एक सांस में जवाब दिया.

‘‘ओह तो तुम भी मेरे साथ ही हो. मेरा मतलब हम एक ही क्लास में हैं,’’ रश्मि ने चहकते हुए कहा. उस दिन दोनों क्लास में फ्रंट लाइन में एकदूसरे के आसपास ही बैठे. प्रोफैसर ने पूरी क्लास के विद्यार्थियों का परिचय लिया तो पता चला कि रश्मि पढ़ाई में अव्वल है. कालेज टाइम के बाद सुधीर और रश्मि साथसाथ बाहर निकले तो पता चला कि सुधीर को पापा का ड्राइवर कालेज छोड़ गया था. रश्मि ने अपनी मोपेड बाहर निकाली और कहा, ‘‘चलो मैं तुम्हें घर छोड़ती हूं.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- तेरा मेरा साथ

‘‘नहीं नहीं ड्राइवर आने ही वाला है.’’

‘‘अरे, चलो भई रश्मि खा नहीं जाएगी,’’ रश्मि के कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सुधीर उस की मोपेड पर बैठ गया. पूरे रास्ते रश्मि की चपरचपर चलती रही. उसे इस बात का खयाल ही नहीं रहा कि वह सुधीर से पूछे कि कहां जाना है. बातोंबातों में रश्मि अपने घर की गली में पहुंची, तो सुधीर ने कहा, ‘‘बस यही छोड़ दो.’’

‘‘ओह सौरी, मैं तो पूछना ही भूल गई कि आप को कहां छोड़ना है. मैं तो बातोंबातों में अपने घर की गली में आ गई.’’

‘‘बस यहीं तो छोड़ना है. वह सामने वाला मकान हमारा है. अभी कुछ दिन पहले ही किराए पर लिया है पापा ने.’’

‘‘अच्छा तो आप लोग आए हो हमारे पड़ोस में,’’ रश्मि ने कहा

‘‘जी हां.’’

‘‘चलो, फिर तो हम दोनों साथसाथ कालेज जायाआया करेंगे.’’ रश्मि और सुधीर के बाद के दिन यों ही गुजरते गए. पहली मुलाकात दोस्ती में और दोस्ती प्यार में जाने कब बदल गई पता ही न चला. रश्मि का सुधीर के घर यों आनाजाना होता जैसे वह घर की ही सदस्य हो. सुधीर की मम्मी रश्मि से खूब प्यार करती थीं. कहती थीं कि तुझे तो अपनी बहू बनाऊंगी. इस प्यार को पा कर रश्मि के मन में भी नई उमंगें पैदा हो गईं. वह सुधीर को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर कल्पनाएं करती. एक दिन सुधीर घर में अकेला था, तो उस ने रश्मि को फोन कर कहा, ‘‘घर आ जाओ कुछ काम है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: हम दिल दे चुके सनम

जब रश्मि पहुंची तो दरवाजे पर मिल गया सुधीर. बोला, ‘‘मैं एक टौपिक पढ़ रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. सोचा तुम से पूछ लेता हूं.’’

‘‘तो दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? आंटी कहां है?’’

‘‘यहीं हैं, क्यों चिंता कर रही हो? ऐसे डर रही हो जैसे अकेला हूं तो खा जाऊंगा,’’ यह कहते हुए सुधीर ने रश्मि का हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लिया. सुधीर के अचानक इस बरताव से रश्मि सहम गई. वह छुइमुई सी सुधीर की बांहों में समाती चली गई.

‘‘क्या कर रहे हो सुधीर, छोड़ो मुझे,’’ वह बोली लेकिन सुधीर ने एक न सुनी. वह बोला,  ‘‘आई लव यू रश्मि.’’

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 2

लेखक : श्री प्रकाश

‘‘इतनी देर रात में बिना फ्लैट नंबर तो उन्हें ढूंढ़ना संभव नहीं है. बस कुछ घंटों की तो बात है, मेरे घर चलो. अपने रिश्तेदार को इतनी रात में क्यों तंग करोगी?’’

‘‘नहीं, यह ठीक नहीं होगा. मैं टैक्सी स्टैंड में रुक जाऊंगी. सुबह उन्हें फोन कर बुला लूंगी.’’

‘‘नहीं, स्टैंड पर रुकना सेफ नहीं है,’’ कह कर तपन ने अपने घर फोन किया और बोला, ‘‘मां, तुम अभी तक सोई नहीं थीं. एक ही रिंग पर फोन उठा लिया. मां, मैं 10 मिनट के अंदर घर पहुंच रहा हूं,’’ कह कर चित्रा से बोला, ‘‘मेरी बूढ़ी मां अभी तक मेरे लिए जाग रही हैं. तुम्हें कोई प्रौब्लम नहीं होगी. तुम मेरे घर चलो.’’

चित्रा ने सिर हिला कर अपनी सहमति

जाता दी. थोड़ी देर में दोनों घर पहुंचे, तो चित्रा को देख उस की मां बोलीं, ‘‘क्यों, मीरा को मना लाया है क्या?’’

दरअसल, उस की मां की आंखों की रोशनी बहुत कमजोर थी और फिर रात की वजह से और परेशानी होती थी, इसलिए ठीक से नहीं देख पा रही थीं.

तपन बोला, ‘‘मां, आप समझती क्यों नहीं? अब वह यहां क्यों आएगी? आप जा कर सो जाओ.’’

पर मां ने जब उस से चित्रा के बारे में पूछा तो तपन ने संक्षेप में उस के बारे में बता कर मां को सोने के लिए भेज दिया.

फिर उस ने चित्रा को गैस्टरूम में आराम करने को कहा.

चित्रा ने तपन से पूछा, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?’’

फिर तपन के हां कहने पर वह बोली, ‘‘मीरा आप की पत्नी है?’’

‘‘है नहीं थी. हमारा तलाक हो चुका है.’’

‘‘सौरी. क्या इत्तफाक है. कल कोर्ट में मेरे तलाक पर फाइनल फैसला होना है. फैसला क्या बस तलाक पर मुहर लगनी है. मेरा और चेतन का आपसी सहमति से तलाक हो रहा है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: अंधेरे से उजाले की ओर

कुछ देर तक दोनों खामोश एकदूसरे को हैरानी से देखते रहे. फिर तपन ने कहा, ‘‘तुम तो पढ़ीलिखी हो, काफी खूबसूरत भी हो. तुम्हारे पति को तो तुम पर गर्व होना चाहिए.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था. मेरी ससुराल यहीं है, पर अब हमारा तलाक हो रहा है, इसलिए मैं वहां नहीं जा सकती हूं. मेरे पति कोलकाता में बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते हैं. मेरा मायके तो पटना में है. मैं भी सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मैं ने अपने कालेज के 3 सीनियर लड़कों के साथ मिल कर एक स्टार्टअप कंपनी खोली है. शुरू में तो यह कंपनी मेरे पति के गैराज में ही थी. लगभग 1 साल तक ठीकठाक रहा था. हम एक अमेरिकन कंपनी के लिए प्रोडक्ट बना रहे हैं. अकसर देर रात तक गैराज में ही हम चारों काम किया करते थे. बीचबीच में मैं चायकौफी भी बना लाती थी. कभी हम चारों होते तो कभी मैं किसी एक के साथ अकेले भी होती थी. अपना मूड ठीक करने के लिए कभी हंसीमजाक भी कर लेते थे. यह सब मेरे पति चेतन को ठीक नहीं लगा. अकसर झगड़ा होने लगा. इसी बीच हमें अमेरिकन कंपनी से कुछ फंड भी मिला, तो अपने घर की बगल में ही एक छोटा फ्लैट किराए पर ले लिया और कंपनी को वहां शिफ्ट करा लिया, पर अकसर रात में देर हो जाती थी. हालांकि यह नितांत आवश्यक था, क्योंकि प्रोडक्ट को समय पर देना होता है. इस से हम लोगों को लाखों रुपए का लाभ होता.’’

चित्रा ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘पर चेतन हमारी मजबूरी समझने को तैयार नहीं था. एक दिन तो हद हो गई जब उस ने कहा कि काम के साथसाथ वहां रंगरलियां भी मनाते हो तुम लोग… या तो मैं कंपनी छोड़ दूं या हम दोनों को तलाक लेना होगा. मैं ने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की पर वह नहीं माना, उलटे उस ने मेरे चरित्र पर ऊंगली उठाई थी. फिर हम दोनों आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो गए.’’

अब तक सुबह के 5 बज गए थे. तपन चाय ले कर चित्रा के पास गया और बोला, ‘‘अभी चाय के साथ कुछ बिस्कुट या स्नैक्स लोगी? नाश्ते में थोड़ा वक्त लगेगा.’’

चित्रा ने कहा कि फिलहाल सिर्फ चाय ही लेगी. फिर दोनों वहीं बैठ कर चाय पीने लगे. चित्रा ने अपने रिश्तेदार को फोन किया तो पता चला कि उन की ए शिफ्ट ड्यूटी है. प्लांट चले गए हैं. दोपहर 3 बजे तक लौटेंगे. चित्रा ने उन्हें फोन पर बता दिया कि वह थोड़ी देर में कोर्ट जाएगी और फिर वहां का काम कर सीधे कोलकाता लौट जाएगी.

चित्रा ने फिर तपन से कहा, ‘‘अगर उचित समझें तो बताएं कि आप और मीरा क्यों अलग हुए थे?’’

‘‘मैं यहां के प्लांट में इंजीनियर हूं, परचेज डिपार्टमैंट में हूं. मशीनों के पार्ट्स खरीदने के लिए बीचबीच में कोलकाता जाना पड़ता है. मैं मध्यवर्गीय परिवार से हूं. मीरा के पिता का अपना अच्छाखासा बिजनैस है, पर मीरा भी इसी प्लांट में अकाउंट औफिस में काम करती थी. हम दोनों में जानपहचान हुई. आगे चल कर प्यार हुआ और हम ने शादी कर ली. शुरू में 6 महीने काफी अच्छे बीते. उस के बाद उस ने जिद पकड़ ली अलग घर लेने की. उस ने कहा कि मां को किसी अच्छे वृद्धाश्रम में छोड़ देंगे. मैं इस के लिए तैयार नहीं?था. रोज खिचखिच होने लगी. अंत में उस ने कहा कि मुझे मां या मीरा में से किसी एक को चुनना होगा. मैं ने जब कहा कि मैं मां को अकेली नहीं छोड़ सकता तो उस ने कहा कि फिर मुझे छोड़ दो. मैं ने इस रिश्ते को बचाने की बहुत कोशिश की, पर वह नहीं मानी और उस ने तलाक के विकल्प को ही बेहतर समझा.’’

‘‘आजकल हमारे देश में भी तलाक लेने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है. यह दुख की बात है न? लड़कियां भी पढ़लिख कर कमाने लगी हैं मर्दों की तरह तो उन को भी घर में उतनी इज्जत देनी होगी जितना मर्द अपने लिए चाहते हैं. उन्हें भी अपना कैरियर बनाने का हक है न? क्या मैं गलत बोल रही हूं?’’

‘‘नहीं, पर लड़के क्या अपने मातापिता के भले के लिए कुछ करना चाहें तो यह गलत है?’’

आखिर चित्रा और चेतन के तलाक पर कोर्ट ने मुहर लगा दी. तपन ने कहा कि यह एक ऐसा फैसला है जिस पर खुशी भी जाहिर नहीं की जा सकती है. चित्रा और चेतन अब सदा के लिए अलग हो चुके थे.

इस के बाद तपन चित्रा को अपने घर ले कर आया. उस ने उस दिन छुट्टी ले ली थी. मां ने दोनों को भोजन परोसा. मां ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम ने भविष्य के बारे में क्या सोचा है? अभी तुम्हारे आगे लंबी जिंदगी है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- तेरा मेरा साथ

‘‘मैं ने अभी कुछ नहीं सोचा है. अभी मैं कंपनी के जरूरी काम में कुछ महीने इतनी व्यस्त रहूंगी कि कुछ और सोचने की फुरसत ही नहीं है,’’ चित्रा ने कहा.

‘‘चिंता नहीं करना, एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है…’’

Romantic Story in Hindi- रिश्तों की परख: भाग 1

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हर रिश्ते की एक पहचान होती है. हर रिश्ते का अपना एक अलग एहसास होता है और एक अलग अस्तित्व भी. इन में कुछ कायम रहते हैं, कुछ समय के साथ बिखर जाते हैं. बस, उन के होने का एक एहसास भर रह जाता है. समय की धूल परत दर परत कुछ इस तरह उन पर चढ़ती चली जाती है कि वे धुंधले से हो जाते हैं. और जब भी कोई ऐसा रिश्ता अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाता है तो इनसान को एक पल के लिए कुछ नहीं सूझता. उसे क्या नाम दें? कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी हो रही थी. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि 7 वर्ष बाद वह अचानक ही मेरे सामने आ खड़ा होगा.

‘‘टिकट,’’ उस ने हाथ बढ़ाते हुए मुझ से पूछा था. उसे देखते ही मैं चौंक पड़ी थी. चौंका तो वह भी था किंतु जल्दी ही सामान्य हो खाली बर्थ की तरफ देखते हुए उस ने पूछा, ‘‘और आप के साथ…’’

मैं थोड़ा गर्व से बोली थी, ‘‘जी, मेरे पति, किसी कारण से साथ नहीं आ सके.’’

‘‘यह बच्चा आप के साथ है,’’ उस ने मेरे 5 वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

‘‘मेरा बेटा है,’’ मैं उसी गर्व के साथ बोली थी.

वह कुछ देर तक खड़ा रहा, जैसे मुझ से कुछ कहना चाहता हो लेकिन मैं ने ध्यान नहीं दिया, उपेक्षित सा अपना मुंह खिड़की की तरफ फेर लिया. मेरे मन में एक सवाल बारबार उठ रहा था कि नायब तहसीलदार की पोस्ट को तुच्छ समझने वाला कमलकांत वर्मा टी.सी. की नौकरी कैसे कर रहा है?

बड़ी अजीब बात लग रही थी. कभी अपने उज्ज्वल भविष्य…अपनी जिद के लिए अपने प्यार को ठुकराने वाला, क्या अपनी जिंदगी से उस ने समझौता कर लिया है? क्या यह वही आदमी है जिसे मैं लगभग 17 वर्ष पहले पहली बार मिली थी…10 वर्षों का साथ…ढेर सारे सपने…और फिर लगभग 7 वर्ष पूर्व आखिरी बार मिली थी?

17 साल पहले मेरे पापा का तबादला जबलपुर में हुआ था. आयकर विभाग में आयकर निरीक्षक की पोस्ट पर तरक्की हुई थी. नयानया माहौल था. एक अजनबी शहर, न कोई परिचित न कोई मित्र. वह दीवाली का दिन था, अपने घर के बरामदे में ही मैं और मेरे दोनों छोटे भाई फुलझड़ी, अनार और चकरी जला कर दीवाली मना रहे थे कि गेट पर एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. पहले तो मैं ने सोचा कि राह चलते कोई रुक गया होगा, लेकिन जब वह काफी देर तक वहीं खड़ा रहा तो मैं ने जा कर उस से पूछा था, ‘जी, कहिए…आप को किस से मिलना है?’

मुझे देख कर वह नर्वस हो गया था, ‘जी…वह आयकर विभाग वाले निगमजी का घर यही है…’

‘हां, क्यों?’ मैं ने उस की बात भी पूरी नहीं होने दी थी.

ये भी पढ़ें- विश्वास: भाग 2

‘जी…मैं ये प्रसाद लाया था…मुझे उन से…’ वह रुकरुक कर बोला था.

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं ने पापा से ही मिलवाने में भलाई समझी. उस ने पापा को ही अपना परिचय दिया था. पापा के आफिस में कार्यरत वर्माजी का बेटा था वह. वर्माजी पापा के मातहत क्लर्क थे. वह लगभग 10 मिनट तक रुका था. मां ने उसे प्रसाद और मिठाइयां दीं लेकिन वह प्लेट को छू तक नहीं रहा था. मैं उस के सामने बैठी थी. उस का लजानासकुचाना बराबर चालू था. मैं ने मन ही मन कहा था, ‘लल्लू लाल.’

‘आप किस क्लास में पढ़ते हैं?’ मैं ने ही पूछा था.

‘जी…मैं…’ वह घबरा सा गया था, ‘जी हायर सेकंडरी में…’

उस के जाते ही मम्मीपापा में बहस शुरू हो गई थी

उस समय मैं हाईस्कूल में पढ़ रही थी. इस के बाद न तो मैं ने उस से कुछ पूछा और न ही उस ने मुझ से बात की. जातेजाते पापा से कह गया था, ‘अंकल, आप को पापा ने कल लंच पर पूरे परिवार के साथ बुलाया है.’

‘हूं…’ पापा ने कुछ सोचते हुए कहा था, ‘ठीक है, मैं वर्माजी से फोन पर बात कर लूंगा, पर बेटा, अभी कुछ निश्चित नहीं है.’

उस के जाते ही मम्मीपापा में बहस शुरू हो गई थी कि निमंत्रण स्वीकार करें या न करें. पापा को ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था. पापा ने ही बताया था कि वर्माजी बड़े ही ‘पे्रक्टिकल’ इनसान हैं. कलम भर न फंसे, शेष सब जायज है.

पापा ठहरे ईमानदार, ‘केरबेर’ का संग कैसे निभे? पापा के साथ वर्माजी की हालत नाजुक थी. पापा न तो खाते थे न ही वर्माजी को खाने का मौका मिलता था.

ये भी पढ़ें- नैपकिंस का चक्कर

पापा ने मां को समझाया, ‘देखो, यह निमंत्रण मुझे शीशे में उतारने का एक जरिया है.’ लेकिन मां के तर्क के सामने पापा के विचार ज्यादा समय के लिए नहीं टिक पाते थे.

‘इस अजनबी शहर में हमारा कौन है? आप तो दिन भर के लिए आफिस चले जाते हैं, बच्चे स्कूल और मैं बचती हूं, मैं कहां जाऊं? जब कहती थी कि कुछ लेदे कर तबादला ग्वालियर करा लीजिए तो उस समय भी यही ईमानदारी का भूत सवार था, मैं नहीं कहती कि ईमानदारी छोड़ दीजिए, लेकिन हर समय हर किसी पर शक करने का क्या फायदा? आफिस की बात आफिस तक रखिए, हो सकता है मुझे एक अच्छी सहेली मिल जाए.’

मम्मी की बात सही निकली. उन्हें एक अच्छी सहेली मिल गई थी. आंटी का स्वभाव बहुत ही सरल लगा था. हम बच्चों को देख कर तो वह खुशी से पागल सी हो रही थीं. मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा था, ‘कितनी प्यारी बेटी है, इसे तो मुझे दे दीजिए,’ फिर उन की आंखों में आंसू आ गए थे, ‘बहनजी, जिस घर में एक बेटी न हो वह घर, घर नहीं होता.’

हम लोगों को बाद में पता चला कि उन की कमल से बड़ी एक बेटी थी जिस की 3-4 साल पहले ही मृत्यु हुई थी. आंटीजी ने मुझे अपने हाथ से कौर खिलाए थे.

‘मैं खा लूंगी न आंटीजी,’ मैं ने प्रतिरोध किया था.

और उन्होंने स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था, ‘अपने हाथ से तो रोज ही खाती होगी, आज मेरे हाथ से खा ले बेटी.’

अंकल और आंटीजी हमें छोड़ने गेट तक आए थे

हम लोग लगभग 2 घंटे तक उन के घर में रुके थे, इस बीच मुझे कमल की सूरत तक देखने को नहीं मिली थी. मैं ने सोचा था, हो सकता है घर के बाहर हो. जब हम लोग चलने लगे तो अंकल और आंटीजी हमें छोड़ने गेट तक आए थे.

ये भी पढ़ें- पक्षाघात: भाग 2

‘अब आप लोग कब हमारे यहां आ रहे हैं?’ मम्मी ने पूछा था.

‘आप को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी बहनजी,’ आंटीजी ने हंसते हुए कहा था, ‘जब भी अपनी बेटी से मिलने का मन होगा, आ जाऊंगी.’

हमारा घर पास में ही था, अत: पैदल ही हम सब चल पड़े थे. अनायास ही मेरी नजर उन के घर की तरफ गई थी तो देखा कमल खिड़की से हमें जाते हुए देख रहा था. जब तक उस के घर में थे तो जनाब बाहर ही नहीं आए, और अब छिप कर दीदार कर रहे हैं. मेरे मुख से अचानक ही निकल गया था, ‘लल्लू कहीं का.’

फिर तो आनेजाने का सिलसिला सा शुरू हो गया था. दोनों घर के सदस्य एकदूसरे से घुलमिल गए थे. कमल का शरमानासकुचाना अभी भी पूरी तरह से नहीं गया था. हां, पहले की अपेक्षा अब वह छिपता नहीं था. सामने आता और कभीकभी 2-4 बातें भी कर लेता था. आंटीजी का स्नेह तो मुझ पर सदैव ही बरसता रहता था.

छमाही परीक्षा में गणित में मेरे बहुत कम अंक आए थे. पापा कुछ परेशान से थे कि कहीं मैं सालाना परीक्षा में गणित में फेल न हो जाऊं. यह बात जब आंटीजी तक पहुंची तो उन्होंने कहा था, ‘इसे कमल गणित पढ़ा दिया करेगा, वह गणित से ही तो हायर सेकंडरी कर रहा है और वैसे भी उस की गणित बहुत अच्छी है. देख लीजिए, यदि स्नेह की समझ में न आए तो फिर किसी दूसरे को रख लीजिएगा.’

‘लेकिन बहनजी, उस की भी तो बोर्ड की परीक्षा है, उसे भी तो पढ़ना होगा?’ पापा ने अपनी शंका जताई थी पर दूसरे दिन ठीक 6 बजे कमल मुझे पढ़ाने के लिए हाजिर हो गया था. मैं भी अपनी कापीकिताब ले कर बैठ गई. 3-4 दिन तक तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया था कि वह क्या पढ़ा रहा है. कोई सवाल समझाता तो ऐसा लगता जैसे वह मुझे नहीं बल्कि खुद अपने को समझा रहा है. लेकिन धीरेधीरे उस की भाषा मुझे समझ में आने लगी थी. वह स्वभाव से लल्लू जरूर था लेकिन पढ़ने में होशियार था..

तेरा मेरा साथ: भाग 1

आज मुकदमे की आखिरी तारीख थी. पाखी सांस रोके फैसले के इंतजार में थी. उस ने दोनों बच्चों के हाथ कस कर पकड़ रखे थे. वकीलों की दलीलों के आगे वह हर बार टूटती, बिखरती और फिर अपनेआप को मजबूती से समेट कर हर तारीख पर अपनेआप को खड़ा कर देती.

क्याक्या आरोप नहीं लगे थे इन बीते दिनों में. हर तारीख पर जलील होती थी पाखी. 8 साल की शादी. सबकुछ तो ठीक ही था.

अरुण एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. खुद का मकान, खातापीता परिवार, सासससुर और एक छोटा भाई व बहन. एक लड़की को और क्या चाहिए था. फूफाजी ने रिश्ता बताया था. पापा कितने खुश थे. कोई जिम्मेदारी नहीं. एक छोटी बहन है, वह भी शादी के बाद अपने घर चली जाएगी. पाखी उन्हें एक ही नजर में पसंद आ गई थी. पापा बहुत खुश थे.

‘आप लोगों की कोई डिमांड हो तो बता दीजिए…’ पाखी के पिताजी ने  कहा था.

पाखी को आज भी याद है… अरुण ने छूटते ही कहा था, ‘अंकल, मैं इतना कमा लेता हूं कि आप की बेटी को खुश रख लूंगा. आप अपनी बेटी को जो देना चाहें, दे सकते हैं, पर हमें कुछ नहीं चाहिए.’

पाखी की नजर में कितनी इज्जत बढ़ गई थी अरुण के लिए, पर…

‘‘कृपया शांति बनाए रखें. जज साहब आ रहे हैं,’’ इस आवाज ने पाखी की सोच को तेजी से ब्रेक लगा दिया. जज साहब ने बड़ी ही सधी आवाज में फैसला सुनाना शुरू किया.

‘‘वाद संख्या 15, साल 2018, अरुण सिंह बनाम पाखी सिंह के द्वारा याचिका दाखिल की गई थी. कोर्ट द्वारा 6 महीने का वक्त दिए जाने पर भी दोनों पक्ष साथ रहने को तैयार नहीं हैं. सो, यह अदालत तलाक के मुकदमे व बच्चों की कस्टडी के सिलसिले में मुकदमे का फैसला सुनाती है.

ये भी पढ़ें- रिश्तों से परे: क्या था विनी का दर्द

‘‘हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13बी के अनुसार, दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अरुण सिंह व पाखी सिंह दोनों की सहमति से उन का संबंध विच्छेद किया जाता है. चूंकि दोनों की संतानें अभी नाबालिग हैं और पाखी सिंह एक सामान्य गृहिणी हैं व आर्थिक रूप से कमजोर हैं, इसलिए अरुण सिंह पाखी सिंह को उन के भरणपोषण के अलावा बच्चों के पालनपोषण व भरणपोषण के लिए भी 10,000 रुपए खर्चे के तौर पर देंगे. साथ ही, यह अदालत महीने में 2 बार यानी हर 15 दिन पर पिता को अपने बच्चों से मिलने का अधिकार देने का फैसला सुनाती है. पाखी सिंह को इस संबंध में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.’’

जज साहब फैसला सुना कर चले गए. धीरेधीरे सभी लोग कमरे से बाहर निकल गए. पाखी बहुत देर तक यों ही बैठी रही. अरुण ने जातेजाते मुड़ कर उसे देखा. दोनों की आंखें टकरा गईं. न जाने कितने सवाल उन की आंखों में तैर रहे थे मानो दोनों एकदूसरे से पूछ रहे थे, अब तो खुश हो न… यही चाहते थे न हम. पर क्या सचमुच वे दोनों यही चाहते थे…

विवाह की वेदी पर ली गईं सारी कसमें एकएक कर के याद आ रही थीं… हिंदू विवाह सिर्फ एक संस्कार नहीं, सात जन्मों का नाता है. इसे कोई नहीं तोड़ सकता. एकदूसरे का हाथ थामे अरुण और पाखी ने भी तो यही कसमें खाई थीं. पर वक्त के थपेड़ों ने रिश्तों के धागों को तारतार कर दिया था.

पारिवारिक अदालत के बाहर तलाक के लिए खड़े दंपतियों को देख कर मन कैसाकैसा हो गया था. आखिर ऐसा  क्या हो जाता है, जो संभाला नहीं जा सकता. पाखी भी तो यही सोचती थी. पर उसे क्या पता था, जिंदगी उसे ऐसे  मोड़ पर ला कर खड़ा कर देगी.

क्या अधूरा रह गया था

पिताजी ने सबकुछ तो दिया. पर कहीं कुछ अधूरा सा था, जिस की भरपाई पाखी अपने आंसुओं से करती रही. बड़ी बहू… बहुत सारी जिम्मेदारियां उस के कंधों पर थीं. दिनभर वह चकरघिन्नी की तरह नाचती रहती, कभी पापा की दवा तो मांजी का नाश्ता, तो कभी सोनल का प्रोजैक्ट. कहने को तो सोनल उस की हमउम्र थी, पर 2 भाइयों की लाड़ली और एकलौती बहन. लाड़ के चलते वह कभी बड़ी न हो पाई.

पाखी हमेशा सोचती थी… हमउम्र हैं, सहेलियों की तरह चुटकियों में हर काम निबटा देंगे और देवर तो मेरे भाई सोनू की तरह ही है. जब सोनू का काम कर सकती थी, उस का क्यों नहीं. पर लोग सच कहते हैं, ससुराल तो ससुराल ही होती है.

पाखी की बचपन की सहेली हमेशा कहती थी, ‘पाखी किसी रिश्ते में कोई रिश्ता न ढूंढ़ना, तो खुश रहोगी.’ कितनी नादान थी वह. उसे क्या पता था, ससुराल पहुंचने से पहले ही एक छवि वहां बन चुकी थी, बड़े बाप की बेटी है, डिगरी वाली है. इन को कौन सम?ा सकता है.

मांजी अकसर कह देतीं, ‘वह तो अरुण ने शराफत में कह दिया कि दो जोड़ी कपड़ों में विदा कर दीजिए. इस के पापा मान भी गए. कितने अच्छेअच्छे रिश्ते आ रहे थे मेरे लाड़ले के लिए. पर हमारी ही मति मारी गई थी.’

पाखी हैरान सी देखती रह जाती. जिन डिगरियों को देख कर पापा का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था, आज वही उलाहनों और तानों का जरीया बन गई थीं.

ये भी पढ़ें- एक इंजीनियर की मौत: कैसे हुआ ये हादसा

अरुण भी खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. पाखी भरेपूरे घर में अकेली रह गई थी. पाखी और अरुण में न के बराबर बातें होती थीं और जब कभी बातें होती भी थीं, धीरेधीरे बहस, फिर ?ागड़े का रूप ले लेतीं.

पाखी और अरुण के बीच ?ागड़े अपने मसलों को ले कर नहीं होते, पर आखिर पिस तो दोनों ही रहे थे. पाखी… पाखी, तुम ने बच्चों की फीस नहीं जमा  की, स्कूल से नोटिस आया है.

पाखी अरुण की आवाज सुन कर किचन से दौड़ी चली आई, ‘अरे, अभी तक फीस नहीं जमा हुई? मैं ने तो भैया को बोला था.’

‘मु?ा से… मु?ा से कब बोला भाभी?’

‘अरे भैया, आप उस दिन अपने दोस्त से मिलने जा रहे थे उसी तरफ, तब आप ही ने कहा था कि मैं जमा कर दूंगा,’ पाखी की आवाज सुन कर पापा, मांजी, सोनल कमरे से बाहर निकल आए, ‘क्या बात है भाई, सुबहसुबह इतना शोर क्यों मचा रखा है’.

‘पापा, देखिए न, बच्चों के स्कूल से नोटिस आया है कि अभी तक फीस जमा नहीं हुई है. मैं क्याक्या देखूं… घर या बाहर’.

ये भी पढ़ें- सावित्री और सत्य: त्याग और समर्पण की गाथा

अरुण सिर पकड़ कर बैठ गए. मम्मी ने बेटे की ऐसी हालत देख कर पाखी पर ही चिल्लाना शुरू कर दिया, एक काम ठीक से नहीं कर पाती. पता नहीं, दिनभर करती क्या रहती है. हर चीज के लिए आदमी लगा हुआ है, तब भी महारानी को अपनेआप से फुरसत नहीं.’

Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 3: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

अक्षय को लगा कि राजवी कुछ छिपा रही है. कहीं वह मां तो नहीं बनने वाली? पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो कहती रही है कि बच्चे के बारे में तो अभी 5 साल तक सोचना भी मत. पहले मैं कैरियर बनाऊंगी, लाइफ को ऐंजौय करूंगी, उस के बाद ही सोचूंगी. फिर कौन सी बात छिपा रही है यह मुझ से? क्या इस के साथ वाकई रेप हुआ होगा? दुखी हो गया अक्षय यह सोच कर. उसे जीवन का यह नया रंग भयानक लग रहा था. 2 दिन बाद अक्षय जब शाम को घर आया तो देखा कि राजवी फिर से बेहोश जैसी पड़ी थी. उसे तेज बुखार था. अक्षय परेशान हो गया. फिर बिना कुछ सोचे वह उसे अस्पताल ले गया. डाक्टर ने जांचपड़ताल करने के बाद उस के जरूरी टैस्ट करवाए और उन की रिपोर्ट्स निकलवाईं.

लेकिन रिपोर्ट्स हाथ में आते ही अक्षय के होश उड़ गए. राजवी की बच्चेदानी में सूजन थी और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी. डाक्टर ने बताया कि उसे कोई संक्रामक रोग हो गया है.

चेहरा हाथों में छिपा कर अक्षय रो पड़ा. यह क्या हो गया है मेरी राजवी को? वह शुरू से ही कुछ बता देती या खुद ट्रीटमैंट करवा लेती तो बात इतनी बढ़ती नहीं. ये तू ने क्या किया राजवी? मेरे प्यार में तुझे कहां कमी नजर आई कि प्यार की खोज में तू भटक गई? काश तू मेरे दिल की आवाज सुन सकती. अक्षय को डाक्टर ने सांत्वना दी कि लुक मिस्टर अक्षय, अभी भी उतनी देर नहीं हुई है. हम उन का अच्छे से अच्छा ट्रीटमैंट शुरू कर देंगे. शी विल बी औल राइट सून… और वास्तव में डाक्टर के इलाज और अक्षय की केयर से राजवी की तबीयत ठीक होने लगी. लेकिन अक्षय का धैर्य और प्यार भरा बरताव राजवी को गिल्टी फील करा देता था.

ये भी पढ़ें-  Short Story: रीवा की लीना

अस्पताल से घर लाने के बाद अक्षय राजवी की हर छोटीमोटी जरूरत का ध्यान रखता था. उसे टाइम पर दवा, चायनाश्ता व खाना देना और उस को मन से खुश रखने के लिए तरहतरह की बातें करना, वह लगन से करता था. और राजवी की इन सब बातों ने आंखें खोल दी थीं. नासमझी में उस ने क्याक्या नहीं कहा था अक्षय को. दोस्तों के सामने उस का तिरस्कार किया था. उस के रंग को ले कर सब के बीच उस का मजाक उड़ाया था और कई बार गुस्से और नफरत के कड़वे बोल बोली थी वह. यह सब सोच कर शर्म सी आती थी उसे.

अपनी गोरी त्वचा और सौंदर्य के गुमान की वजह से उस ने अपना चरित्र भी जैसे गिरवी रख दिया था. अक्षय सांवला था तो क्या हुआ, उस के भीतर सब कुछ कितना उजला था. उस के इतने खराब ऐटिट्यूड के बाद भी अक्षय के बरताव से ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. वह पूरे मन से उस की केयर कर रहा था. राजवी सोचती थी मेरी गलतियों, नादानियों और अभिमान को अनदेखा कर अक्षय मुझे प्यार करता रहा और मुझे समझाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करती रही. कुछ दिनों में राजवी के जख्म तो ठीक हो गए पर उन्होंने अपने गहरे दाग छोड़ दिए थे. जब भी वह आईना देखती थी सहम जाती थी.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: एक प्यार ऐसा भी

पूरी तरह से ठीक होने के बाद राजवी ने अक्षय के पास बैठ कर अपने बरताव के लिए माफी मांगी. अक्षय गंभीर स्वर में बोला, ‘‘देखो राजवी, मैं जानता हूं कि तुम मेरे साथ खुश नहीं हो. मैं यह भी जानता हूं कि मैं शक्लसूरत में तुम्हारे लायक नहीं हूं. काश मैं अपने शरीर का रंग बदलवा सकता पर वह मुमकिन नहीं है. तब एक ही रास्ता नजर आता है मुझे कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती रहने के बजाय अपना मनपसंद रास्ता खोज लो.’’ इस बात पर राजवी चौंकी मगर अक्षय बोला, ‘‘मेरा एक कुलीग है. मेरे जैसी ही पोस्ट पर है और मेरी जितनी ही सैलरी मिलती है उसे. प्लस पौइंट यह है कि वह हैंडसम दिखता है. तुम्हारे जैसा गोरा और तुम्हारे जैसा ही फ्री माइंडेड है. अगर तुम हां कहो तो मैं बात कर सकता हूं उस से. और हां, वह भी इंडिया का ही है. खुश रखेगा तुम्हें…’’

‘‘अक्षय, यह क्या बोल रहे हो तुम?’’ राजवी चीख उठी. अक्षय ऐसी बात करेगा यह उस की सोच से परे था.

‘‘मैं ठीक ही तो कह रहा हूं. इस झूठमूठ की शादी में बंधे रहने से अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं. मेरी ओर से आज से ही तुम आजाद हो…’’

ये भी पढ़ें- Family Story in Hindi: अगली बार कब

अक्षय के होंठों पर अपनी कांपती उंगलियां रखती राजवी कांपती आवाज में बोली, ‘‘इस बात को अब यहीं पर स्टौप कर दो अक्षय. मैं ने कहा न कि मैं ने जो कुछ भी किया वह मेरी भूल थी. मेरा घमंड और मेरी नासमझी थी. अपने सौंदर्य पर गुमान था मुझे और उस गुमान के लिए तुम जो चाहे सजा दे सकते हो. पर प्लीज मुझे अपने से अलग मत करना. मैं नहीं जी पाऊंगी तुम्हारे बिना. तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी हूं. जिंदगी का और रिश्तों का सच्चा सुख बाहरी चकाचौंध में नहीं होता वह तो आंतरिक सौंदर्य में ही छिपा होता है, यह सच मुझे अच्छी तरह महसूस हो चुका है.’’

इस के आगे न बोल पाई राजवी. उस की आंखों में आंसू भर गए. उस ने हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘मेरी गलती माफ नहीं करोगे अक्षय?’’ राजवी के मुरझाए गालों पर बह रहे आंसुओं को पोंछता अक्षय बोला, ‘‘ठीक है, तो फिर इस में भी जैसी तुम्हारी मरजी.’’  और यह कह कर वह मुसकराया तो राजवी हंस पड़ी. फिर अक्षय ने अपनी बांहें फैलाईं तो राजवी उन में समा गई.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें