News Story: देखा तेरा वादा – विजय और अनामिका की प्रेम कहानी

News Story: विजय की मम्मी की मुराद पूरी हो गई थी. उन के कहने पर विजय कांवड़ ले कर आया था. कांवड़ लाने से ज्यादा खुशी तो इस बात की थी कि विजय जब लौट रहा था, तब किसी मंत्री ने कांवडि़यों पर फूलों की बारिश की थी. विजय ने कुछ फूल चुन कर उठा लिए थे और अपनी मम्मी को दे दिए थे.

‘‘ये फूल तो मैं संभाल कर रखूंगी,’’ मम्मी ने विजय का माथा चूमते हुए कहा था.

‘‘मम्मी, मैं कांवड़ तो ले आया, पर मेरे पैरों में छाले पड़ गए हैं. बहुत दर्द हो रहा है,’’ विजय ने अपने पैरों की हालत दिखाते हुए बताया.

‘‘अरे बेटा, यह तो भोले बाबा का प्रसाद है. तू ऐसा कर कुछ दिन के लिए वर्क फ्रौम होम कर ले,’’ मम्मी ने सलाह दी.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर न जाने क्यों अनामिका ने मुंह फुला रखा है,’’ विजय बोला.

‘‘कोई बात नहीं. जब तुम दोनों मिलोगे तो सारे गिलेशिकवे दूर कर लेना,’’ मम्मी ने कहा और विजय के लिए हलदी वाला दूध बनाने रसोईघर में चली गईं.

आज विजय ने अनामिका को मिलने के लिए बुलाया था. वह पिछले एक घंटे से कैफे में बैठा था, पर अनामिका अभी तक नहीं आई थी.

विजय ने अनामिका को फोन मिलाया, पर फोन भी स्विच औफ बता रहा था. विजय मन ही मन कुढ़ रहा था और उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था.

अगले दिन विजय अनामिका के घर चला गया. वह घर पर ही थी, पर बात करने के मूड में नहीं लग रही थी.

विजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ मेरी जान? किस बात पर मुझे इग्नोर कर रही हो?’’

‘‘कुछ भी नहीं. मैं कौन होती हूं तुम्हें इग्नोर करने वाली. तुम अपनी कांवड़ यात्रा में ही मगन रहो. मुझे भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने दो,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या बात है? हमारे बीच कांवड़ यात्रा कहां से आ गई?’’ विजय ने कुढ़ते हुए पूछा.

‘‘बीच में आई है तभी तो बोल रही हूं. तुम ने कहा था कि हम कुंभलगढ़ किला देखने जाएंगे. बारिश के मौसम में वहां के नजारे शानदार होते हैं. पर अब सब चौपट हो गया. तुम ने अपना किया वादा नहीं निभाया,’’ अनामिका ने कहा.

यह सुन कर विजय का भी पारा चढ़ गया. वह बोला, ‘‘वाह, क्या ताना मारा है. ऐसा क्या नहीं है, जो मैं ने तुम्हारे लिए नहीं किया है. तुम्हारे घर का किराया भरा, महंगे कपड़े खरीद कर दिए, अच्छे से अच्छे रैस्टोरैंट में खाना खिलाया… और जहां तक वादे की बात है, तो तुम ने भी बहुत बार अपना वादा नहीं निभाया…’’

यह सुनते ही अनामिका का भी पारा बढ़ गया. वह चिल्लाई, ‘‘बहुत खूब. तुम ने मेरे लिए इतना कुछ किया, तो क्या मैं ने तुम्हारी रातें रंगीन नहीं कीं… आज तुम मुझे खर्चे गिना रहे हो. तुम तो नरेंद्र मोदी की तरह हो गए हो. अपने अलावा किसी दूसरे की उपलब्धियां दिखाई ही नहीं देती हैं…’’

‘‘इस में नरेंद्र मोदी कहां से आ गए. उन्होंने जो कहा है, वह कर के भी दिखाया है. तुम अपनी बहस में हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री को मत घसीटो,’’ विजय बोला.

विजय नरेंद्र मोदी का फैन था, तो उसे अनामिका की यह बात चुभ गई. पैर के छालों से ज्यादा तो आज दिल के छाले फूट गए थे.

‘‘किया ही क्या नरेंद्र मोदी और उन की सरकार ने? बस, पिछली सरकारों को कोसना और अपने गुणगान करना. डबल इंजन की सरकार के सारे वादे कोरे साबित हुए हैं,’’ अब तो अनामिका एकदम लड़ाई के मूड में आ गई थी.

‘‘बताओ, कहां फेल हुई यह सरकार? मुझे भी तो पता चले…’’ विजय ने पूछा.

‘‘केंद्र सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया है, पर इस पर ज्यादा कुछ काम नहीं हुआ है. कल ही मैं एक पुराना अखबार देख रही थी. लेबर ब्यूरो रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुशल कामगारों की तादाद महज 2 फीसदी है, जबकि दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी स्किल्ड कर्मचारी हैं और जापान में इन की तादाद 80 फीसदी तक है. सरकार के ही आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात की उम्मीद काफी कम बताई गई है कि भविष्य में कुशल कामगारों का लक्ष्य पूरा हो सकेगा.

‘‘यहां एक तरफ लोगों को काम नहीं मिल रहा है, दूसरी तरफ संघ परिवार से जुड़ी विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के कई सांसद हिंदुओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं, ताकि हिंदुओ की आबादी तेजी से बढ़ सके.’’

‘‘तो क्या हिंदुओं की आबादी नहीं बढ़नी चाहिए?’’ विजय ने पूछा.

‘‘पर ऐसा करने का मकसद क्या है? बात सिर्फ आबादी की नहीं है, पर यह हिंदुत्व का कार्ड खेलना बड़ा खतरनाक है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तो कहा भी कि भाजपा और संघ द्वारा समाज में नफरत, धमकी और डर का वातावरण फैलाने की कोशिश लगातार जारी है.

‘‘महंगाई पर लगाम लगाने पर भी यह सरकार एकदम फेल हुई है. पैट्रोलडीजल के बढ़े दाम से देश में हाहाकार है. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पैट्रोल सब से ज्यादा महंगा हुआ है, जबकि मोदी सरकार सत्ता में आने से पहले यह कहती रही कि उन की सरकार पैट्रोलडीजल के दाम कांग्रेस की सरकार से भी कम कर देगी. भारत में तेल की कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं यानी मोदी सरकार का महंगाई कम करने का वादा भी सिर्फ वादा ही साबित हुआ.’’

‘‘लेकिन इस सरकार ने धारा 370 हटा कर ऐतिहासिक काम किया है,’’ विजय बोला.

‘‘सत्ता में आने से पहले भाजपा के 2 सब से बड़े हथियार थे कश्मीर मुद्दा और पाकिस्तान. इन 2 मुद्दों में से एक कश्मीर घाटी में मोदी सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद वहां लंबे समय से आशांति और हिंसक माहौल अब भी जारी है.

‘‘कांग्रेस की सरकार से अगर तुलना करें तो मोदी सरकार के कार्यकाल में घाटी की हालत बद से बदतर हुई है. पहलगाम कांड इस सरकार की सब से बड़ी नाकामी है. क्या कश्मीरी पंडित दोबारा घाटी में लौटे? नहीं न, फिर किस मुंह से यह दावा किया जा रहा है कि धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर में शांति बहाल हो गई है?

‘‘ऐसे ही नोटबंदी का फैसला लिया गया था. याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले के नरेंद्र मोदी के भाषण को. चुनावी रैलियों में उन का एक भी भाषण ऐसा नहीं होता था, जो बिना कालेधन के जिक्र के पूरा हो जाए. मगर आज हकीकत सब के सामने है.

‘‘नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कहा करते थे कि उन की सरकार जब सत्ता में आएगी तो विदेशों में जमा भारतीय लोगों का कालाधन वे ले आएंगे, मगर अब भी लोगों को इस बात का इंतजार है कि विदेशों से कालाधन कब आएगा. इस मामले पर मोदी सरकार की यह सब से बड़ी नाकामी है कि अभी तक न सरकार को पता है कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है और वह कब तक देश में वापस आएगा,’’

अनामिका आज बहस के फुल मूड में लग रही थी.

‘‘तुम कांग्रेस की जबान बोल रही हो,’’ विजय ने तुनक कर कहा.

‘‘जब कोई तर्क न बचे तो कांग्रेस के सिर पर ठीकरा फोड़ दो. तुम लोगों की यही आदत है. याद है कि मोदी सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा किया था, मगर नए रोजगार पैदा करने के मामले में मोदी सरकार औंधे मुंह गिरी है. यही वजह है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार बैकफुट पर नजर आती है.

‘‘बेरोजगारी के मुद्दे पर जब मोदी सरकार फंसी तो पकौड़े बेचने को भी रोजगार की श्रेणी में ले आई और अपनी उपलब्धि बताने लगी. सच तो यह है कि नए रोजगार पैदा करने का वादा मोदी सरकार नहीं निभा पाई है.

‘‘कहां गई ‘आदर्श ग्राम योजना’, जिस के तहत हर सांसदों के द्वारा 5 गांवों को गोद लेने की व्यवस्था है, जिस में से एक भी गांव आदर्श ग्राम की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया है?

‘‘छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके भूपेश बघेल ने तो संवादाताओं से बातचीत में आरोप लगाया, ‘नरेंद्र मोदी के 11 साल विफलताओं और जन विरोधी नीतियों का शानदार स्मारक हैं. उन्होंने शुरुआत में लोगों को सपने दिखाए और 11 साल पूरे होतेहोते सिंदूर उजाड़ने तक पहुंच गए.’

‘‘उन्होंने आगे कहा कि भाजपा के नेता इन 11 सालों का खूब ढोल पीट रहे हैं, लेकिन अगर देखें कि 11 साल में आप को क्या मिला है, तो पाएंगे कि भाजपा सरकार की सारी योजनाएं नाकाम हो गई हैं.

‘‘भाजपा सरकार के 11 साल के कार्यकाल में पूरा देश असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी कभी कहते हैं कि लोगों की कपड़ों से पहचान हो जाती है, कभी पंचर बनाने वाली बातें करते हैं, कभी श्मशान और कब्रिस्तान की बात करते हैं.

‘‘आदिवासीदलितों पर अत्याचार से वे विचलित नहीं होते, लोगों का अपमान करने में उन्हें मजा आता है और उन के लोग जनता को प्रताडि़त करते हैं, फिर भी किसी के ऊपर कोई ऐक्शन नहीं होता.

‘‘भूपेश बघेल ने यह भी कहा कि जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल से ले कर मनमोहन सिंह तक विदेश नीति में कभी कोई बदलाव नहीं आया, जिस के कारण पूरी दुनिया के लोग भारत की आवाज को गंभीरता से सुनते भी थे और जुड़ते भी थे, लेकिन हाल ही में जो आतंकवादी घटना घटी, पूरी दुनिया ने उस की आलोचना तो की, लेकिन कोई देश हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ.

‘‘उन्होंने यह भी दावा किया कि जब भारतपाकिस्तान के बीच संघर्ष चल रहा था, तब अमेरिका के राष्ट्रपति ने आधे घंटे पहले कहा कि ‘मैं ने संघर्ष विराम करवा दिया’. अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात को कई बार कहा, जिस के कारण पूरा देश अपमानित महसूस कर रहा है, क्योंकि इस के पहले भारत ने कभी
दूसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की थी.

‘‘छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके भूपेश बघेल ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने की बात कही थी, लेकिन आज किसान अपनी फसल को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर हैं. आज हालात ये है कि पूरे देश में डीएपी नहीं मिल रहा, कई राज्यों में बीज उपलब्ध नहीं हैं…

‘‘है कोई जवाब तुम्हारे पास? जब तुम्हारा नेता जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पा रहा है, तो तुम से क्या उम्मीद रखी जाए. कांवड़ लाने से तुम्हें क्या मिला? आस्था का मतलब यह नहीं है कि अंधे बन जाओ.

‘‘तुम्हारे लिए और भी जरूरी काम हैं. कल को आईएएस बनोगे तो क्या नई पीढ़ी को देश को बांटने वाली शिक्षा दोगे? नहीं न?’’ अनामिका ने अपने दिल की पूरी भड़ास निकाल दी.

विजय चुप था. एक तो उस ने वादाखिलाफी की थी, दूसरा उस ने अनामिका का यह कह कर दिल दुखाया था कि उस ने अनामिका के लिए कई काम किए हैं. यही बात अनामिका को चुभ गई थी और उस ने सरकार के बहाने विजय को लपेट दिया था. कमरे में अब भी चुप्पी छाई हुई थी. News Story

Story In Hindi: आजादी का जिहाद

Story In Hindi: ‘‘निशा, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए?’’ मुनार ने कहा.

‘‘हां, लेकिन इस से पहले हमें बहुतकुछ सोचना पड़ेगा,’’ निशा बोली.

‘‘क्या सोचना पड़ेगा?’’ मुनीर ने सवाल किया.

‘‘यही कि तुम मुसलिम हो, मैं हिंदू हूं. वैसे तो न तुम मुसलिम हो. न मैं हिंदू. न तुम ने कभी दिन में 5 बार नमाज पढ़ी है, न रमजान में पूरे रोजे रखे हैं, न कभी हज किया है, न कभी जकात (दान) देने के बारे में सोचा है.

‘‘मैं भी न कभी मंदिर जाती हूं, न पूजापाठ करती हूं, न गंगा नहाने किसी तीर्थ पर गई हूं. लेकिन हमारे समाज का कानून कहता है कि जिस धर्म के मानने वाले मांबाप ने तुम्हें जन्म दिया है, वही तुम्हारा धर्म है,’’ निशा ने अपनी बात रखी.

‘‘यह हिंदूमुसलिम की बात कहां से आ गई हमारे बीच? सच तो यह है कि हम दोनों का धर्म अगर कोई है तो वह है इश्क का धर्म और इश्क का धर्म समाज के किसी भी बंधन को नहीं मानता,’’ मुनीर बोला.

‘‘लेकिन हमें लोगों की चिंता तो करनी पड़ेगी. हम शादी करेंगे तो हो सकता है कि हिंदू समाज तुम पर लव जिहाद का इलजाम लगा कर तुम्हारी हत्या कर दे और हो सकता है कि तुम्हारा परिवार मुझे कलमा पढ़ाने पर जोर देने लगे,’’ निशा ने कहा.

‘‘हां, हो तो सकता है. होने को तो कुछ भी हो सकता है,’’ मुनीर ने मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मुनीर, तुम मुनीर हो. मुनीर का मतलब होता है प्रकाश. मैं निशा हूं. निशा का मतलब होता है रात, अंधकार. न अंधेरे के बिना प्रकाश की कल्पना की जा सकती है, न प्रकाश के बिना अंधेरे की. हमें कोई जुदा नहीं कर सकता, लेकिन रहना तो हमें इसी समाज में है. हम दोनों हिंदुओं की कंपनियों में काम करते हैं. हो सकता है कि हमारी शादी को लव जिहाद कह कर हम दोनों को नौकरी से निकाल दिया जाए. तब
हम पेट भरने के लिए किस के सामने हाथ फैलाएंगे?

धर्म की हिफाजत के नाम पर कोई कट्टरपंथी तुम्हारे खिलाफ एफआईआर लिखा सकता है. तुम जेल चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी? किस की मां को मौसी कहूंगी? राज्य सरकार ने लव जिहाद विरोधी कानून भी तो बना रखा है,’’ निशा ने कहा.

‘‘लेकिन यह सब होता क्यों है?’’ मुनीर ने सवाल किया.

‘‘इसलिए कि जो लोग अपने धर्म को खतरे में पड़ा हुआ महसूस करते हैं, उन को धर्म का मतलब पता ही नहीं है. धर्म की परिभाषा है ‘धर्मो धारयते प्रजा:’ यानी जिस तरह से लोग बरताव करते हैं, वही उन का धर्म होता है. इन लोगों ने अपने विश्वास को अपना धर्म मान लिया है.

‘‘धर्म कोई पवित्र शब्द नहीं है. पवित्र शब्द होता तो औरत की माहवारी को मासिक धर्म न कहा जाता. चोरधर्म, वेश्याधर्म, राजधर्म जैसे शब्द न बनते.

‘‘मुनीर, किसी का अपना विश्वास जब कट्टरता बन जाता है तब उसे लगता है कि उसी का धर्म दुनिया का सब से अच्छा धर्म है. वही एक सच्चा धर्म है. सब को उसी का धर्म अपनाना चाहिए. जो इसे अपनाने से इनकार करता है, उसे जिंदा रहने का हक नहीं है. दूसरे किसी विश्वास को वजूद में रहने का हक नहीं है.

यह धर्म नहीं, धर्मांधता है,’’ निशा बोली.

निशा ने भाषण सा ही दे दिया था. मुनीर एकटक उस की ओर देखता रहा.

तनिक दम ले कर निशा फिर बोली, ‘‘इन लोगों ने धर्म को जिस मतलब में लिया है, उस का नतीजा देखो. अमेरिका में ईसाई यहूदियों को मार रहे हैं. भारत में गोहत्या के शक में हिंदू मुसलिम को मार रहे हैं.

लखनऊ में शिया और सुन्नी एकदूसरे को मार रहे हैं. अफगानिस्तान में मुसलिम ही मुसलिम को मार रहे हैं. पाकिस्तान में नमाज पढ़ रहे लोगों पर बम गिराया जाता है.’’

‘‘यह धर्म नहीं, पागलपन है निशा. सरासर पागलपन,’’ मुनीर ने कहा.

‘‘लेकिन इस पागलपन का शिकार हम क्यों बनें?’’ निशा बोली.

‘‘निशा, न हम निकाह करने के लिए किसी मौलवी के पास जाएंगे, न फेरे लेने के लिए किसी पंडित को बुलाएंगे. हम कोर्टमैरिज करेंगे,’’ मुनीर ने राय दी.

‘‘कोर्टमैरिज से पहले नोटिस भी लगेगा मैरिज औफिस में. उसे कोई भी पढ़ सकता है,’’ निशा बोली.

मुनीर का दिमाग भन्ना गया. उस से कुछ कहते नहीं बन रहा था. वह उठ कर खिड़की के पास खड़ा हो गया. बाहर आसमान में घने बादल छाए हुए थे. बीचबीच में बिजली कड़क रही थी.

आसमान की ओर उंगली उठा कर मुनीर ने कहा, ‘‘यहां आओ निशा, देखो घने बादलों ने जो अंधेरा कर रखा है, उस के बीच चमक कर बिजली कैसी रोशनी फैला रही है.’’

निशा जहां बैठी थी, वहीं बैठी रही. वह बोली, ‘‘यह शायरी करने का समय नहीं है मुनीर. हम इस तरह तुम्हारे दोस्त के कमरे में चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे?’’

‘‘तो हम ऐसा करते हैं, एकसाथ खुदखुशी कर के यह साबित कर देते हैं कि समाज तो क्या, मौत भी हमें अलग नहीं कर सकती.’’

‘‘फिर वही शायराना बात. खुदकुशी किसी समस्या का हल नहीं होती. बुजदिली की हद है खुदखुशी,’’ निशा बोली.

‘‘तुम तो संजीदा हो गईं. मैं तो पलों के बोझ को हलका करने के लिए मजाक कर रहा था,’’ मुनीर ने कहा.

‘‘यह मजाक का समय भी नहीं है,’’ निशा बोली.

मुनीर आ कर कुरसी पर बैठ गया. सोचता रहा, सोचता रहा. अपने प्यार और अपनी हिम्मत को आंकता रहा. बाहर बादलों ने झमाझम बारिश शुरू कर दी थी. खिड़की के शीशे पर धड़ाधड़ बारिश की बौछारें पड़ रही थीं. उन के शोर में उसे अपने और निशा के ऊपर छोड़े जाने वाले तानों की आवाज सुनाई दे रही थी.

निशा भी चुपचाप बैठी सोचती रही. आज पहली बार ऐसा हुआ था कि दोस्त के कमरे के एकांत में उन्होंने न एकदूसरे को छुआ था, न गले लगे थे, न एकदूसरे को चूमा था.

मुनीर ने एक भरपूर नजर निशा पर डाली और कहा, ‘‘हम यह देश छोड़ कर किसी और देश में जा कर रहेंगे. यहां के समाज से, यहां के लोगों से कोई वास्ता ही नहीं रखेंगे.’’

‘‘यह इतना आसान नहीं है मुनीर. कहीं पर भी हमें वर्कपरमिट कैसे मिलेगा? रहेंगे कहां? खाएंगे क्या?’’

फिर बहुत ज्यादा गंभीर हो कर निशा ने कहा, ‘‘तुम में हिम्मत है तो समाज से लोहा लो. यह लड़ाई अपने घर से शुरू करो. अपने मातापिता को समझाओ कि वे मुझे बगैर कलमा पढ़ाए अपना लें. इधर मैं भी यही लड़ाई लड़ती हूं. और अगर उन को तुम स्वीकार नहीं हो, तो मैं उन से नाता तोड़ लूंगी.’’

अब तक मुनीर भी किसी फैसले पर पहुंचने की पूरी तैयारी कर चुका था. वह बोला, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं साबित कर दूंगा कि कोई कितना ही कट्टरतावादी क्यों न हो, न मुझ से मेरा प्यार छीन सकता है, न ही मेरी जिंदगी.’’

दोनों के चेहरों पर एक उदास सी मुसकराहट दौड़ी. वे दोनों उठ खड़े हुए. निशा ने लपक कर मुनीर को आगोश में ले लिया.

मुनीर ने उसे भींच कर छाती से लगाते हुए कहा, ‘‘चलो देखें, बाहर धरती अपने बाल खोले बारिश के झरने में नहा रहा होगी. बस, तुम धरती बनी रहना, मैं बारिश का पानी बन कर तुम्हारे अंदर समा जाऊंगा.’’

मुनीर की बांहों में से निकलते हुए निशा ने कहा, ‘‘चलो, हम जिहाद शुरू करते हैं. लव जिहाद नहीं, इनसानी हकों की हिफाजत का जिहाद, इश्क करने की आजादी का जिहाद.’’ Story In Hindi

Social Story In Hindi: होंठ लाल काली आंखें

Social Story In Hindi: सागर अपने दोस्तों के साथ घुमक्कड़ी पर निकला. हाईवे पर कुछ जवान लड़कियां भड़कीले कपड़ों में खड़ी थीं. एक ढाबे वाले ने बताया कि बांछड़ा समाज की ये लड़कियां सड़क किनारे अपने डेरों में देह धंधा करती हैं. सागर एक डेरे में गया. वहां धंधा करने वाली एक लड़की ने उसे एक कड़वे सच से रूबरू कराया.

तकरीबन 3 साल पहले की बात है. अपने दोस्तों नागेंद्र, बृजेंद्र और अरविंद के साथ 10 दिन की घुमक्कड़ी के दौरान मेरा एक ऐसे सच से सामना हुआ, जिसे देखसुन कर मेरी रूह तक कांप गई.

उस दिन शाम का समय था. रतलाम से मंदसौरनीमच की ओर हमारा अभी 7 किलोमीटर तक का सफर ही तय हुआ था कि सड़क किनारे खड़ी जवान लड़़कियों को देख कर हमें हैरानी हुई. कार की रफ्तार धीमी कर मीलों दूर तक हम यह नजारा देख रहे थे.

कुछ देर के बाद हम ने एक ढाबे पर रुकने की सोची. कार से उतर कर ढाबे पर पड़ी खाट पर हम चारों दोस्त बैठ गए. हमारे मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे.

तभी ढाबे का एक वेटर हाजिर हो गया.

अरविंद ने खाने का और्डर करते हुए उस वेटर से पूछा, ‘‘हाईवे पर ये जवान लड़कियां क्यों खड़ी रहती हैं?’’

यह सवाल सुनते ही उस वेटर ने अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘साहब, आप को चाहिए क्या? रातभर के लिए लड़की मिल जाएगी. मालिक से बात कर लीजिएगा.’’

उस वेटर का जवाब सुन कर हम लोग सकपका से गए. इस के बाद हम लोगों ने काउंटर पर जा कर ढाबे के मालिक जगदीश मीणा से उन लड़कियों के बारे में पूछा, तो उस ने बताया, ‘‘साहब, ये लड़कियां यहां के बांछड़ा समुदाय की हैं, जो अपने जिस्म का सौदा करने के लिए रोजाना ही सड़़कों पर उतर आती हैं.’’

‘‘इन्हें किसी का डर नहीं लगता, जो इस तरह खुलेआम सड़कों पर ग्राहक ढूंढ़ती हैं?’’ नागेंद्र ने पूछा.

‘‘ऐसा नहीं है कि ये लड़कियां चोरीछिपे किसी मजबूरी में इस तरह का धंधा करती हैं. इन जवान लड़कियों के मांबाप बड़े शौक से इन से यह घिनौना काम करवाते हैं. कई बार तो मांबाप ही इन लड़कियों के लिए ग्राहक ढूंढ़ कर लाते हैं.’’

जगदीश मीणा से सड़कों पर खड़ी लड़कियों के बारे में यह सच जान कर हम हैरान रह गए. खाने के समय भी हम लोगों की चर्चा में यही लड़कियां रहीं.

मध्य प्रदेश में मंदसौर से नीमच की ओर जाने वाले नैशनल हाईवे पर सफर के दौरान सड़कों पर भड़कीले कपड़ों में सजीधजी लड़कियों को देख कर गाडि़यों की रफ्तार अपनेआप ही धीमी हो जाती है.

होंठों पर लाल रंग की चटक लिपस्टिक और काजल भरी आंखों से इशारा करती लड़कियां ट्रक और कार चलाने वालों का ध्यान अपनी ओर अनायास ही खींच लेती हैं.

अपनी अदाओं से लोगों को लुभाती ये जवान लड़कियां अपने जिस्म का सौदा करती हैं. जिस्मफरोशी के इस बाजार में रोजाना न जाने कितनी ही लड़कियां चंद सौ रुपयों के लिए अपनी बोली लगाती हैं.

जिन लोगों ने महूनीमच नैशनल हाईवे का सफर किया है, उन्होंने कभी न कभी बांछड़ा समाज की इन लड़कियों को जरूर देखा होगा. भले ही किसी की गाड़ी न रुकी हो, लेकिन सड़क किनारे खड़ी 16-17 साल की उन लड़कियों को जरूर देखा गया होगा जो होंठों पर लिपस्टिक पोते, आंखों में काजल मले, खुले बालों के साथ, कमर मटकाती खुद के बिकने का इंतजार करती हैं.

रतलाम में मंदसौर, नीमच की ओर जाने वाले महूनीमच नैशनल हाईवे पर जावरा से तकरीबन 7 किलोमीटर दूर गांव बगाखेड़ा से बांछड़ा समुदाय के डेरों की शुरुआत होती है.

यहां से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर हाईवे पर ही परवलिया डेरा है. इस डेरे में बांछड़ा समुदाय के तकरीबन 50 परिवार रहते हैं.

महूनीमच नैशनल हाईवे पर डेरों की यह हालत नीमच जिले के नयागांव तक है. रतलाम जिले के दूरदराज के गांव भी इन के डेरों से आबाद हैं.

यह समुदाय हमेशा ग्रुप में रहता है, जिन्हें डेरा कहते हैं. बांछड़ा समुदाय के ज्यादातर लोग झोंपड़ीनुमा कच्चे मकानों में रहते हैं. इन की बस्ती को आम बोलचाल की भाषा में डेरा कहते हैं.

इन लोगों के बारे में यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ की गद्दी से उतारे गए राजा राजस्थान के जंगलों में छिप कर अपने अलगअलग ठिकानों से मुगलों से लोहा लेते रहे थे. यह भी माना जाता है कि उन के कुछ सिपाही नरसिंहगढ़ में छिप गए थे और फिर वहां से मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में चले गए.

जब सेना बिखर गई तो उन लोगों के पास रोजीरोटी चलाने का कोई जरीया नहीं बचा. गुजारे के लिए मर्द डकैती डालने लगे, तो औरतों ने देह धंधे को अपना पेशा बना लिया. ऐसा कई पीढि़यों तक चलता रहा और आखिर में यह मजबूरी एक परंपरा बन गई.

शाम हो चली थी. अभी हम लोग सड़क से उतर कर एक डेरे की तरफ बढ़ रहे थे. टिमटिमाते बल्बों की रोशनी में अपने डेरे के सामने खड़ी उन लड़कियों को देख ही रहे थे. हर उम्र के मर्दों की मौजूदगी वहां दिखाई दे रही थी. किसी के कदम नशे में डगमगाते थे, तो कोई तयशुदा चाल में अंधेरे में खुलते दरवाजों की ओर बढ़ता था. हर दरवाजे पर सजी औरतें इशारों से ग्राहकों को बुला रही थीं और हम लोग थोड़ा सहमे हुए से थे.

तभी किसी नन्ही उंगली की हलकी सी पकड़ ने मेरी सोच की डोरी को झकझोर दिया.

‘‘अंकल, मेरी दीदी आप को बुला रही है,’’ 6-7 साल की मासूम सी एक बच्ची बोली. उस की आंखों में विजयी मुस्कान थी, चेहरा दमक रहा था.

‘‘कहां है तुम्हारी दीदी?’’

‘‘वह घर के अंदर, आप मेरे साथ चलो न.’’

उस लड़की के चेहरे में छिपी मासूमियत ने मुझे झकझोर दिया. क्या वह अपनी बहन के लिए ग्राहक ढूंढ़ रही है? यह खयाल आते ही मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

‘‘चलो न अंकल फिर मुझे खाना भी खाना है,’’ कह कर उस लड़की ने मेरा हाथ थाम लिया.

पहले तो मैं अकेले जाने से झिझका, मगर अपने अखबार के लिए एक खास रिपोर्ट बनाने के लिहाज से मेरे कदम अपनेआप उस लड़की के साथ चल पड़े.

मेरे दोस्त मुझे जाते हुए देख रहे थे. अरविंद बोला, ‘‘चले जाओ सागर, हम लोग यहीं हैं.’’

वह बच्ची फुरती में आगेआगे भागती, गलियों से होते हुए एक दरवाजे तक मुझे ले गई. उस ने दरवाजे पर हलकी सी दस्तक दी और मुझे देख कर मुसकराई.

दरवाजा खुला. एक अधेड़ सा आदमी बाहर निकला. बच्ची मुझे भीतर तक ले गई और कमरे के एक ओर इशारा कर के बोली, ‘‘यह मेरी दीदी है.’’

सामने एक पलंग पर बैठी औरत की तरफ मैं ने अपनी नजरें दौड़ाईं. वह औरत 28-30 साल की रही होगी. चेहरा खूबसूरत नहीं, मगर थका हुआ भी नहीं, बल्कि ऐसा, जिस में वक्त ठहर गया हो.

‘‘बैठिए,’’ कहते हुए वह औरत मुसकराई, मगर मुसकराहट से ज्यादा उस की आंखों में कई सवाल थे.

‘‘पानी या चाय कुछ लेंगे आप?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘जी नहीं, शुक्रिया.’’

‘‘ठीक है, पहले पैसे दीजिए.’’

मैं ने 500 रुपए का एक नोट उस के सामने कर दिया. उस ने नोट उठाया, माथे से लगाया और सामने टंगे एक पर्स में डाल दिया.

‘‘कहां तक पढ़ी हैं आप? आप को यह घिनौना काम अच्छा लगता है क्या?’’ मेरे इन सवालों पर वह औरत कुछ सकपकाई, मगर दूसरे ही पल आंखों में शरारत लिए बोली, ‘‘मैं तो खूब पढ़ना चाहती थी साहब, मगर मांबाप ने परंपरा की दुहाई दी. फिर भी नहीं मानी तो कहा गया कि तुम्हारी नानी और मां ने भी यही काम किया है.

‘‘आखिर में दो जून की रोटी का वास्ता दिया गया, तो मेरी आंखों के सामने अपने छोटेछोटे भाईबहनों के चेहरे घूमने लगे और घुटने टेकते हुए मैं ने समझौता कर लिया.

‘‘साहब, बांछड़ा समुदाय की लड़कियों को परंपरा का हवाला दे कर छोटी उम्र में ही देह धंधे के दलदल में धकेल दिया जाता है.’’

‘‘यह नन्ही गुडि़या आप की बहन है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्यों वक्त बरबाद कर रहे हैं साहब. जिस काम के लिए आए हैं, उसी से मतलब रखिए,’’ उस औरत ने अपनी बांहें मेरी गरदन पर डालते हुए कहा.

मैं ने कहा, ‘‘देखिए, मैं उस नीयत से नहीं आया. मैं एक पत्रकार हूं और तुम लोगों के इस घिनौने पेशे के खिलाफ पत्रिका में लिखना चाहता हूं. मैं आप से कुछ कहना और पूछना चाहता हूं.’’

‘‘तो कहिए मगर. वक्त की कीमत है. आप घंटे के पैसे रख लीजिए, मेरी बात सुन लीजिए.’’

मैं ने फिर एक 200 का नोट उस की तरफ बढ़ा दिया. उस ने थोड़ी देर मुझे देखा और नोट रखते हुए बोली, ‘‘हां, बताइए?’’

‘‘तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस बच्ची का जन्म शाप बन कर रह गया है?’’ मेरे इस सवाल पर उस औरत की हंसी बाहर निकल आई. अपनेआप को संभालते हुए उस ने जो बताया, उस ने मेरी रूह को झकझोर कर रख दिया.

‘‘साहब, देश का पढ़ालिखा तबका भले ही बेटी को मां के पेट में ही मारने पर उतारू है, मगर हमारे यहां तो बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है. मगर इस जश्न के पीछे छिपा है एक शर्मनाक सच.

एक बेटी यानी कम से कम 2 पुश्तों की आमदनी का जरीया. बांछड़ा समाज में, जो बेटियों की देह पर जिंदा है, देह धंधा बुरा नहीं है, बल्कि वह लघु उद्योग बन गया है.’’

मैं ने एक सांस में कह दिया, ‘‘आप यह काम छोड़ क्यों नहीं देतीं और शादी कर लीजिए. एक नई जिंदगी
शुरू कीजिए.’’

वह औरत इस तरह हंसी जैसे मैं ने कोई बचकाना सवाल कर दिया हो. वह बोली, ‘‘शादी? हम तो हर रोज शादी करते हैं साहब… कभी घंटेभर की, कभी पूरी रात की. शादी हमारे लिए एक सौदा है, सौगात नहीं.’’

‘‘आप के मातापिता को पता है कि आप यह धंधा करती हैं?’’

मेरा सवाल पूरा होने से पहले ही उस ने जवाब दिया, ‘‘अभी जो इस डेरे से दरवाजा खोल कर बाहर जाने वाला आदमी आप ने देखा… वही मेरा बाप है.’’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘और वह छोटी सी गुडि़या?’’

‘‘वह मेरी बेटी है.’’

‘‘बेटी? लेकिन वह आप को दीदी क्यों बुलाती है?’’

‘‘मैं ने उसे मां कहना कभी सिखाया ही नहीं, क्योंकि अगर वह जा कर बोलेगी कि मेरी ‘मां’ बुला रही है, तो कौन मेरे पास आएगा?’’

अब मैं बुत बन गया था. उस का जवाब मेरे जेहन में गूंज गया.

वह औरत बोली, ‘‘यहां लड़कियां सिर्फ अपनी होती हैं. उन के बाप कौन हैं, यह भी हम नहीं जानते. बेटियां हमारी जगह लेती हैं और बेटे दलाल बनते हैं. यही उसूल है इस बांछड़ा डेरे का.’’

तभी बाहर से फिर वही आवाज आई, ‘‘दीदी, टाइम हो गया.’’

मुझे लगा जैसे मेरी धड़कन वहीं अटक गई.

‘‘इस बच्ची का नाम क्या है?’’

‘‘मुसकान.’’

‘‘इस का क्या सोचा है?’’

‘‘बांछड़ा समुदाय में प्रथा के मुताबिक घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को जिस्मफरोशी करनी ही पड़ती है. वह मेरी तरह ही यही करेगी और मेरा सहारा बनेगी. आप यों ही वक्त बरबाद कर रहे हो.’’

अब मैं खड़ा हो गया और बाहर निकल आया. मुसकान बाहर खड़ी थी. वह मुसकराते हुए मुझ से बोली, ‘‘मेरी बख्शीश?’’

आंखों में आई नमी को पोंछते हुए मैं ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए?’’

‘‘बस 50 रुपए,’’ उस लड़की ने मासूमियत से हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं ने चुपचाप उस लड़की की हथेली पर 50 रुपए रख दिए. वह फुदकती हुई, चिडि़या की तरह उन्हीं गलियों में गुम हो गई. Social Story In Hindi

Story In Hindi: हत्यारा मांझा

Story In Hindi: हमारे छोटे से कसबे में करीम चाचा जैसा पतंगबाज कोई नहीं था, लेकिन अब वे काफी उम्रदराज हो चुके थे. उन्होंने पतंग उड़ाना बंद कर दिया था. अब वे अपनी किराना की दुकान चलाते थे और पतंगों को उड़ते देख कर बहुत खुश होते थे.

करीम चाचा के बेटे का नाम सलीम था, जो शादीशुदा थे और एक 8 साल के बेटे फजल के बाप भी. फजल को पतंगें उड़ती देखने का बड़ा शौक था. सलीम पेंच लड़ाते, पर सामने वाले की पतंग नहीं काट पाते.

एक दिन सलीम ने अपने अब्बा से पूछा, ‘‘मेरी पतंग क्यों कट जाती है?’’

‘‘पतंग उड़ाना भी एक कला है सलीम,’’ करीम चाचा ने बताया.

‘‘आप तो अपने समय के माने हुए पतंगबाज रहे हैं, फिर मुझे यह हुनर क्यों नहीं आया?’’ सलीम बोले.

‘‘हां, रहा हूं,’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा.

‘‘हमें भी बताइए पेंच लड़ाने की कला,’’ सलीम ने कहा.

तभी महल्ले के कुछ और लड़के भी वहां आ गए. उन में से एक लड़के राकेश ने कहा, ‘‘चाचा, हमें भी बताइए. ज्ञान पर सब का हक होता है. द्रोणाचार्य ने अपने बेटे और शिष्यों में कभी फर्क नहीं किया. उन के बेटे अश्वत्थामा से ज्यादा काबिल उन का शिष्य अर्जुन था.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं…’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा, ‘‘लेकिन यह सीखने वाले की लगन पर होता है.’’

‘‘चलिए, हमें बताइए. आप हम लोगों के भी गुरु हुए,’’ राकेश ने कहा.

करीम चाचा ने पतंग में कन्नी बांधने के तरीके से ले कर पतंग छोड़ने, उड़ाने और पेंच लड़ाने के एक से एक तरीके बताए, जिन्हें सुन कर सब दंग रह गए और यह मान गए कि वाकई पतंग उड़ाना और दूसरे की पतंग काटना एक कला है. जैसे तलवारबाजी, तीरंदाजी, वैसे ही पतंगबाजी.

आजकल देशभर में चीनी मांझे की चर्चा जोरों पर है. वैसे तो भारत और चीन के बीच कोई भाईचारा नहीं है खासकर लड़ाई के बाद. लेकिन वर्ल्ड ट्रेड और्गैनाइजेशन की संधि के तहत भारतीय सरकार सीधेतौर पर चीनी सामान का बहिष्कार नहीं कर सकती. उस पर कोई अंकुश नहीं लगा सकती.

चीन में तो हर चीज बनने लगी है, जिस का इस्तेमाल भारत कर रहा है. लोग जम कर खरीदते हैं, क्योंकि चीन का बना माल सस्ता होता है, पर टिकाऊ तो बिलकुल नहीं.

इस का नतीजा यह हो रहा है कि होली दीवाली से ले कर तकरीबन हर बड़े त्योहार पर चीन की बनी चीजें बिकने लगी हैं और स्वदेशी चीजों को कोई कौडि़यों के भाव पर भी नहीं खरीद रहा है.

टैक्नोलौजी के मामले में चीन ने कमाल कर रखा है. आज बाजारों में बिकने वाले सस्ते, आकर्षक, शानदार मोबाइल फोन सब चीन की ही देन हैं. कुछ देशभक्त स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देने के लिए जब चीनी सामान का विरोध करते हैं, लोगों से चीनी सामान खरीदने के बहिष्कार की बात कहते हैं, तो उधर से चीन के अखबार गरजते हुए बयान देते हैं कि भारत के लोग बुजदिल और कामचोर हैं. उन की देशभक्ति का नशा जल्दी उतर जाता है और फिर वे हम से ही सामान खरीदते हैं.

इसी बीच करीम चाचा ने सलीम से कहा, ‘‘चीनी सामान की कोई गारंटी नहीं होती. ये कारोबारी हैं. इन्हें अपने फायदे से मतलब है. इन की बनाई चीजें खरीदना ठीक नहीं है. हमारे यहां के पटाके और चीन से आए पटाकों में बहुत फर्क है. उन के पटाकों से प्रदूषण और तरहतरह की बीमारियां फैलती हैं.’’

इस पर सलीम ने कहा, ‘‘चीनी हो या देशी, होता तो दोनों के पटाकों में बारूद ही न. अब्बू, आप भी कहां अखबार की खबरों पर ध्यान देते हैं… अगर चीन का सामान खरीदने से कोई हमें देशद्रोही कहता है, तो कहता रहे. सभी खरीदते हैं. ज्यादा ही दर्द है तो सरकार पाबंदी लगा दे, इसे गैरकानूनी बता दे. तब ये सामान अपनेआप बिकना बंद हो जाएंगे. फिर हम ही क्यों सोचें? क्या हिंदू नहीं खरीदते हैं? वे तो सब से ज्यादा खरीदते हैं. दीवाली उन का त्योहार है. वे तो देवीदेवताओं की मूर्तियों से ले कर दीए तक चीन द्वारा बनाए खरीदते हैं.’’

सलीम की बात काटते हुए करीम चाचा ने कहा, ‘‘बेटा, इस में हिंदूमुसलिम वाली बात कहां से आ गई? हम एक देश में रहते हैं. उन की गलती हमारी गलती एक ही बात है और इस का बुरा नतीजा दोनों को ही भुगतना पड़ता है.’’

सलीम ने कहा, ‘‘लेकिन अब्बू, क्याक्या बंद करवाएंगे स्वदेशी के समर्थक? सारे स्वदेशी समर्थकों के पास चीनी मोबाइल हैं. कोई दूसरा रास्ता नहीं है चीनी सामान से बचने का. एक से एक डैकोरेटिव स्टाइलिश लाइट चर्च में भी लगती है, मंदिर में भी और मसजिद में भी. लोग सस्ता और सुंदर सामान ही खरीदते हैं.

देशभक्ति का इन सब से क्या लेनादेना?’’

‘‘बेटा, ये चीनी कारोबारी हैं. इन का करोड़ोंअरबों का कारोबार है. इन से हमारे देश की कंपनियां और फैक्टरियां पिछड़ रही हैं. लोगों का रोजगार छीना जा रहा है,’’ करीम चाचा ने कहा.

‘‘हमारे यहां के लोग टैक्नोलौजी में सस्ता, सुंदर सामान बनाने में पिछड़े हैं, तो यह हमारे कारोबारियों की गलती है. इस में किसी दूसरे को कुसूरवार क्यों ठहराना?’’ सलीम बोले.

‘‘अब तो पतंग और मांझा भी चीनी आने लगा है, तो क्या तुम उसे भी खरीदोगे?’’ करीम चाचा ने कहा.

‘‘क्यों नहीं?’’ सलीम ने लापरवाही से कहा और बाहर निकल गए.

‘‘सस्ते के चक्कर में किसी दिन मुसीबत में मत फंस जाना. याद रखना, सब से ज्यादा नुकसान इस्तेमाल करने वाले का होता है,’’ करीम चाचा ने कहा.

लेकिन यह सुनने के लिए सलीम उस वक्त उन के पास नहीं थे. वे घर से बाहर निकल चुके थे.

अगस्त का महीना था. आसमान में उड़ती पतंगें, लहराती पतंगें. कटती पतंगें, गिरती पतंगें. अब पहले की तरह पतंग लूटने वाले तो नहीं थे, लेकिन पतंग उड़ाने और काटने का जुनून अब भी लोगों में था.

दोपहर से शाम तक सलीम की कई पतंगें कट चुकी थीं. हर कटती पतंग पर उन का बेटा फजल उदास हो जाता. बेटे की उदासी देख कर उन्हें शर्म आने लगी. वे बेटे के सामने खुद को हारा हुआ सा महसूस करने लगे.

सलीम ने अपने बेटे फजल को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर. कल तुम्हें खुश कर दूंगा. जितनी कहोगे, उतनी पतंगें काट कर दिखाऊंगा.’’

सलीम यह कह कर बाजार की ओर निकले. वे अपने पिता की दुकानदारी भी संभालते थे, लेकिन पतंग उड़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे. पतंग उड़ाने के गुर अपने अब्बू से पूछ लेते थे. अब्बू तो पुराने पतंगबाज थे, सो मना नहीं करते थे.

रात में फजल ने अपने दादा करीम मियां से कहा, ‘‘दादाजी हमारी 10 पतंगें कट गईं.’’

करीम मियां ने कहा, ‘‘पतंगबाजी कला है, जो अभी तुम्हारे अब्बू को नहीं आई है. मैं होता तो 10 क्या 20 पतंगें काट देता.’’

यह सुन कर सलीम ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘पतंगबाजी अब कोई कला नहीं रही अब्बा. सब मांझे का कमाल है. कल देखना, मैं ऐसा मांझा लाऊंगा कि आसमान में उड़ने वाली सारी पतंगें जमीन पर नजर आएंगी.’’

सलीम की बात खत्म होने से पहले अब्बू ने यह जरूर कहा, ‘‘मांझे की ताकत से पतंग काटने में अपना क्या हुनर? हमें बाजार से सावधान रहना चाहिए.’’

लेकिन सलीम तब तक अपने कमरे में जा चुके थे.

अगली सुबह सलीम ने पतंग दुकानदार से कहा, ‘‘मुझे सब से मजबूत मांझा चाहिए.’’

दुकानदार ने धीरे से कहा, ‘‘मजबूती का तो बाप है, लेकिन पुलिस छापा मार कर जब्त कर रही है. बैन लगा दिया है प्रशासन ने.’’

‘‘यहां कौन देख रहा है. तुम चुपके से दे दो.’’

‘‘लेकिन दाम थोड़े ज्यादा लगेंगे,’’ दुकानदार ने कहा.

‘‘चलेगा, लेकिन मांझा मजबूत होना चाहिए.’’

‘‘चीनी मांझा है, जो तलवार का काम करेगा. एक नहीं सौ पतंगें काटने की हैसियत रखता है, लेकिन सावधानी से बरतना,’’ दुकानदार ने धीरे से कहा.

चीनी मांझा सुन कर सलीम को यकीन आ गया कि आज तो वे बेटे को कई पतंगें काट कर दिखाएंगे और खुश करेंगे. कल अपनी हार और बेटे के उतरे चेहरे को देख कर उन्हें बहुत मायूसी हुई थी.

शाम को 4 बजे घर की छत पर फजल ने पतंग छोड़ी. पिता ने मांझा खींचा. हलकीहलकी हवा में पतंग ऊपर की ओर उठी. सलीम ने ढील दी, फिर मांझा खींचा, फिर ढील दी, फिर मांझा खींचा. थोड़ी देर में पतंग आसमान से बातें करने लगी थी.

करीम मियां भी छत पर आ गए. उन्होंने मांझे की ओर देख कर कहा, ‘‘यह बड़ा खतरनाक है. मांझा है या हथियार.’’

‘‘अब्बू, बस आज आप कुछ मत बोलना,’’ सलीम ने कहा.

तभी सलीम की पतंग का पेंच लड़ गया. सलीम ने एक जोरदार झटका दिया और सामने वाले की पतंग कट गई.

‘‘ये काटा…’’ फजल खुशी से चहक उठा.

‘‘अभी और पतंगें कटेंगी बेटा. तुम देखते जाओ अपने बाप का कमाल,’’ सलीम बोले.

‘‘यह तुम्हारा कमाल नहीं, बल्कि इस मांझे का है. मैं कहता हूं बंद करो यह तमाशा. यह पतंगबाजी नहीं, मांझाबाजी है,’’ करीम मियां ने कहा.

‘‘क्या अब्बू, आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे आप ने कभी पतंग नहीं उड़ाई…’’

‘‘हम ने पतंगें उड़ाई हैं. मैं तुम्हें भी नहीं रोकता, लेकिन यह मांझा खतरनाक है. किसी को लग गया तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘एक दिन मैं कुछ नहीं बिगड़ता अब्बू,’’ इस के बाद सलीम ने एक और पतंग काटी.

फजल खुशी से चीख पड़ा, ‘‘वाह अब्बू, कमाल कर दिया आप ने.’’

बेटे की तारीफ से सलीम का सीना फख्र से चौड़ा हो गया. आसमान में जितनी पतंगें थीं, 1-1 कर के जमीन की धूल चाटती नजर आ रही थीं.

करीम मियां ने फिर चेतावनी दी, ‘‘ऐसी ही धूल चीन ने हमें युद्ध में चटाई है अपने आधुनिक हथियारों के दम पर. बंद करो यह अनीति से, चीनी मांझे से पतंगबाजी का खेल.’’

‘‘आज नहीं दादाजी, कल हमारी 10 पतंगें कटी थीं. हम बदला ले कर रहेंगे,’’ फजल की बात सुन कर करीम मियां ने कहा, ‘‘बेटे, दूसरे के हथियार से युद्ध जीता तो क्या जीता? इस में अपना हुनर, अपना जौहर कहां है? मैं फिर कह रहा हूं कि यह खतरनाक हो सकता है.’’

‘‘अब्बू, यह युद्ध नहीं पतंगबाजी है. हुनर किसी का हो, जीत तो अपनी है. फिर यह युद्ध नहीं महज खेल है. आप अपने पोते के चेहरे की खुशी देखिए,’’ सलीम बोले.

करीम मियां अपने पोते की खुशी को देख कर चुप हो गए. सलीम धड़ाधड़ पतंगें काट रहे थे और फजल खुशी से किलकारी मार कर हंस रहा था.

सलीम कम से कम 20 पतंगें काट चुके थे और अब थक गए थे.

फजल ने कहा, ‘‘अब्बू, अब मैं पतंग काटूंगा.’’

‘‘क्यों नहीं, लेकिन जरा संभल कर,’’ सलीम बोले.

इस के बाद सलीम ने चरखी पकड़ ली. पतंग आसमान में थी. मांझा अब फजल के हाथ में था.

सलीम ने कहा, ‘‘ढील दो और अपनी पतंग दूसरी पतंग के पास ले जाओ’’

फजल ढील देता गया.

‘‘अब खींचो,’’ सलीम ने कहा.

फजल ने मांझा खींचा. दोनों पतंगें आपस में उलझ चुकी थीं. सलीम चरखी में लिपटा मांझा ले कर पीछे
खड़े थे.

‘‘यह आखिरी पतंग है. इसे हर हाल में काटना है फजल,’’ सलीम ने कहा.

‘‘जी अब्बू, ऐसा ही होगा,’’ फजल बोला.

‘‘फजल, यही मौका है. मांझे आपस में लिपट चुके हैं. एक जोरदार झटका मारो. मांझा अपनी ओर खींचो.’’

सलीम के कहे मुताबिक फजल ने झटका दिया, लेकिन 8 साल के बच्चे के हाथ का झटका काफी नहीं था.

यह देख कर सलीम ने चरखी नीचे रखी और मांझे को अपने हाथ में ले कर पूरी ताकत से खींचा. पतंग कट चुकी थी. सलीम खुशी से चीखे. लेकिन तभी फजल कराह कर जमीन पर गिर पड़ा. सलीम ने जब मांझे को झटका दिया,

तो वह फजल के गले को चीरता निकल गया.

फजल की गरदन से खून की धार बह रही थी. उसे मौत के मुंह में जाता देख कर सलीम बेहोश हो गए और करीम मियां को तो जैसे लकवा मार गया. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: बड़े घर का कुत्ता

Funny Story In Hindi: वैसे तो हमारा महल्ला मिडिल और लोअर मिडिल क्लास फैमिलियों का तरतीबबेतरतीब जमघट है, जहां छोटीछोटी जरूरतें एकदूसरे से छीनते हम एकदूसरे से मौकेबेमौके, बहानेशहाने लड़ते रहते हैं, पर हमारे इसी महल्ले में परम पूजनीय, अति सम्माननीय समाजसेवक चिट्टा टाइकून भी रहते हैं. उन की बड़ेबड़े लोगों से दोस्ती है. उन्होंने एक कुत्ता रखा हुआ है. बीच में वे कुछ दिनों के लिए बेकुत्ता भी हो गए थे, पर अपने गेट पर उन्होंने आम आदमियों को डराने के लिए बोर्ड फिर भी लगाए रखा ‘कुत्तों से सावधान’.

लगता है कि अब आदमी से आदमी का डर जा रहा है, इसलिए बिन कुत्तों के भी सज्जनों को कुत्ते से फेक सावधान कराना पड़ता है.

छोटे घरों में तब तक शांति नहीं होती, जब तक उन में दिन में 2-4 बार तूतूमैंमैं न हो ले और बड़े घर तब तक बड़े नहीं लगते, जब तक उन में से दिन में 5-7 बार राजयोगी कुत्ते का भूंकना न सुनाई दे. बड़े घरों के कुत्ते राजयोगी होते हैं, तो छोटे घरों का आदमी खाजयोगी.

कायदे से जिन ऊंचे लोगों की फैमिली में कुत्ता नहीं होता, उन्हें ऊंचे समाज में ऊंची फैमिली होने के बाद भी साधारण फैमिली ही माना जाता है. समाज में आम आदमियों के बीच बड़ा आदमी होने की पहचान कुत्ता दिलाता है. बड़े लोगों की शान कुत्ता होता है. बड़े घरों में घर वालों से महान कुत्ता होता है. बड़े लोगों का आखिरी अरमान कुत्ता होता है. बड़े घरों की मुसकान कुत्ता होता है.

तो साहब, अब हुआ यों कि मुझे भी इंस्टाग्राम हैंडल से ही पता चला कि हमारे महल्ले के सब से बड़े लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है कि उन के परिवार में सभी का लाड़ला नहीं रहा. परिवारजनों का रोरो कर हुआ बुरा हाल.

इंस्टाग्राम हैंडल पर यह दुखद समाचार पढ़ कर मेरे हाथपैर फूल गए, दिल की नसें फटने लगीं. दिमाग तो मेरे पास बरसों से नहीं है, सो उस की नसें नहीं फटीं. बदन पर रोंगटे थे, सो वे भी खड़े हो गए.

बंधुओ, छोटा आदमी तो होता ही दुखों के पहाड़ के नीचे आने को है. वह पैदा ही दुखों के पहाड़ के नीचे जीने को होता है. दुखों के पहाड़ उस की जिंदगी होते हैं, उस की बंदगी होते हैं. बड़ी से बड़ी सरकारी जेसीबी उसे दुखों के पहाड़ के नीचे से नहीं निकाल सकती.

पर बड़े आदमियों पर दुख का पहाड़ तो छोडि़ए, उस की मुट्ठीभर मिट्टी भी गिर जाए, तो उन से ज्यादा मीडिया हायतोबा मचा देता है, इसलिए दुख के पहाड़ों से मेरा विनम्र निवेदन है कि उन्हें बड़े आदमियों पर टूटने से पहले सौ बार नहीं, हजार बार सोच लेना चाहिए, ताकि कल को दुख के पहाड़ को कोई दिक्कत न हो. बड़े आदमी रोने के लिए नहीं, बल्कि रुलाने के लिए पैदा होते हैं.

मैं ने आननफानन में इंस्टाग्राम हैंडल की खबर की हकीकत की जांचपरख के लिए अपने प्रिय पड़ोसी शर्माजी को फोन लगाया.

सोशल मीडिया के जमाने में खुशी की खबर की जांच की जानी चाहिए या नहीं, पर गम की खबर की हकीकत की जांच जरूर की जानी चाहिए. शर्माजी सोएसोए भी महल्ले के पलपल की खबर पर अपनी पैनी नजर रखते हैं.

‘‘और शर्माजी, क्या हाल हैं महल्ले के? महल्ले में सब खैरियत तो है न?’’

‘नहीं यार, सब से बुरी खबर यह है कि अपने महल्ले के सब से बड़े आदमी का डियरैस्ट कुत्ता स्वर्ग सिधार गया है,’ शर्माजी ने हद से ज्यादा इमोशनल हो कर बताया. इतने इमोशनल तो वे अपनी मां के मरने पर भी नहीं हुए थे.

‘‘तो?’’ मैं ने पूछा.

‘तो क्या? मैं तो उन के घर जा रहा हूं, इसी वक्त उन के कुत्ते के स्वर्गवास की प्रार्थना सभा में शरीक होने.’

‘‘पर कुत्ते को हुआ क्या था?’’ उस वक्त मैं पिछली दफा जो हमारे महल्ले में मेरे पड़ोस के कोई मरे थे, उन की मौत की वजह को जानने को ले कर उतना उतावला नहीं हुआ था, जितना इस कुत्ते की मौत को ले कर हुआ. कोई आसपड़ोस का आम आदमी थोड़े था भाई साहब ये.

‘होना क्या यार, खास सूत्रों से पता चला कि वह कई दिनों से बीमार चल रहा था. उन्होंने उस का इलाज कहांकहां नहीं करवाया. इलाज से ले कर झाड़फूंक तक सब करवाया, पर उन के हाथ कुछ न लगा. ऐसा इलाज अगर हमारे महल्ले के कोने वाले गणेशी प्रसाद का होता, तो वह जरूर बच जाता.’

‘‘तो अब आगे का क्या प्रोग्राम है?’’

‘कुत्ते की प्रार्थना सभा में भावभीनी श्रद्धांजलि दी जाएगी.’

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘मतलब क्या… उन के पीआरओ ने सूचित किया है कि वे सिर्फ अपने बच्चों के बाप नहीं थे, एक डौग फादर भी थे. होगा वह महल्ले के लिए एक कुत्ता, पर उन के लिए परिवार का एक सदस्य था. वे उस से महल्ले वालों से भी ज्यादा प्यार करते थे. इस बात का अंदाजा

इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इस कुत्ते को अपना सरनेम तक दे दिया था.’

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘उन के लिए वह केवल कुत्ता नहीं था, बल्कि निष्क्रिय परिवार के मैंबरों के बीच सब से सक्रिय मैंबर था.’

‘‘तो?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘मैं तो रोटी बीच में खानी छोड़ कर वहां पहुंच रहा हूं, सब से पहले. बड़े लोग हैं यार… नहीं जाऊंगा तो कल को बुरा नहीं, बहुत बुरा मान जाएंगे,’ शर्माजी ने कहा और फोन काट दिया.

बेशर्म कहीं के… पिछली दफा जब शर्माजी के पड़ोस में उन के खास दोस्त की मौत हुई थी, तो मेरे सौ बार कहने के बाद भी वे बुखार का बहाना बना कर श्मशान घाट जाने से कन्नी काट गए थे. Funny Story In Hindi

Love Story In Hindi: खूबसूरत को धोखा

Love Story In Hindi: पप्पू रसिया किस्म का था. वह शादीशुदा था, लेकिन पराई औरत उस की बहुत बड़ी कमजोरी थी. वह जहां भी कोई खूबसूरत औरत देखता, लार टपकाने लगता, उसे फांसने के लिए जाल फेंकने लगता. कई औरतें उस के जाल में फंस चुकी थीं. कलावती भी उन्हीं में से एक थी, जो बहुत खूबसूरत थी.

कलावती अपने पति शंकर के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. शंकर उसे बहुत चाहता था. वह एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. इतनी पगार मिल जाती थी कि गुजारा ठीक से हो जाता था. कलावती घर में सिलाईबुनाई का काम करती थी और कुछ कमा भी लेती थी.

सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया. बरसात का मौसम था. शंकर काम पर जा रहा था. तभी रास्ते में गरजचमक के साथ बारिश होने लगी. शंकर साइकिल खड़ी कर के एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया. तभी आसमानी बिजली गिरी और वह बुरी तरह झुलस गया. उसे अस्पताल लाया गया.

सूचना मिलने पर कलावती भी रोतीबिलखती अस्पताल पहुंची. इलाज चल रहा था, लेकिन शंकर बुरी तरह जल गया था, इसलिए कुछ घंटों बाद उस की मौत हो गई.

कलावती की सारी खुशियां लुट गईं. शहर में उस का कोई सगासंबंधी नहीं था. गांव से मायके और ससुराल वाले आए. सब के सहयोग से गांव में शंकर का क्रियाकर्म हुआ.

ससुर ने तो कलावती को गांव में रहने के लिए कहा, लेकिन वह बोली, ‘‘कंपनी के मालिक ने नौकरी देने का भरोसा दिया है. जब नौकरी नहीं मिलेगी तो मैं गांव चली आऊंगी. अभी शहर जा कर मालिक से मिलती हूं.’’

‘‘ठीक है बहू. जो तुम्हें ठीक लगे, वह करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’

ससुर बोले.

कुछ दिन ससुराल और मायके में रह कर कलावती शहर चली आई.

कंपनी का मालिक अच्छा आदमी था. उस ने कलावती का खूब साथ दिया. शंकर का पूरा भुगतान कर दिया और कलावती को चायपानी पिलाने का काम दे दिया. इस से कलावती का गुजारा चलने लगा. समय निकाल कर वह सिलाईबुनाई भी कर लेती थी.

कलावती का कमरा सड़क के किनारे ही था. पप्पू उधर से ही आयाजाया करता था. वह कलावती की खूबसूरती पर फिदा था और जानपहचान बनाने की कोशिश कर रहा था.

एक दिन कलावती पैदल कंपनी से घर लौट रही थी. रास्ते में उसे पप्पू मिल गया. उस ने स्कूटर रोक कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए. आप को घर छोड़ दूंगा. आप ने देखा होगा, मैं आप के घर से हो कर ही आताजाता हूं. आप के पति का देहांत हो गया. मुझे बहुत दुख हुआ. लेकिन चिंता न कीजिए, सब ठीक हो जाएगा. आइए, बैठिए.’’

‘‘नहीं भैया, मैं पैदल ही चली जाऊंगी. आप जाइए. आप ने इतना कह दिया, यही बहुत है,’’ कलावती बोली.

‘‘अरे, आप मुझे गलत आदमी न समझें. आप की कंपनी के पास ही मेरी लोहे की दुकान है. आप के पति मेरी दुकान में आते थे. वे बड़े भले आदमी थे. आइए, बैठिए,’’ पप्पू बोला.

पहले तो कलावती मना करती रही, लेकिन जब पप्पू ने बहुत अपनापन दिखाया, तो वह मान गई. पप्पू ने उसे घर के पास छोड़ दिया. जाते समय वह बोला, ‘‘कभी कोई जरूरत पड़े तो बताइएगा, मैं पूरी मदद करूंगा.’’

उस दिन के बाद पप्पू अकसर कलावती से मिलने लगा. वह खूब हमदर्दी दिखाया करता था. कलावती अब सहज ढंग से उस के स्कूटर पर बैठ जाया करती थी. हंसीमजाक की बातें भी होने लगी थीं.

समय बीतता गया. धीरेधीरे पप्पू और कलावती के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. कलावती उस से घुलमिल गई.

एक दिन कलावती के मकान मालिक परिवार सहित गांव चले गए थे. उन के परिवार में शादी थी. उस दिन कलावती ने पप्पू को घर में आ कर बैठने के लिए कह दिया. वह यही तो चाहता था.

कलावती ने चाय बनाई. दोनों ने चाय पी. प्यार भरी बातें होने लगीं. पप्पू बहकने लगा. कलावती भी खुद को संभाल नहीं पाई. वह भी फिसलती गई. वह उस की बांहों में समा गई.

उस रात पप्पू अपने मकसद में कामयाब हो गया. वह संतुष्ट हो कर देर रात अपने घर गया.

पप्पू ने कलावती को बताया था कि वह कुंआरा है. उस ने कलावती से शादी करने की बात कह दी थी. वह मौका देख कर कलावती के घर आता रहा. कलावती भी उसे खूब चाहने लगी थी. वह दोबारा शादी करने का सपना देख रही थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि जिस शख्स पर उस ने भरोसा किया है, वह मक्कार है.

पप्पू का जब कलावती से जी भर गया तो वह धीरेधीरे उस से दूर होने लगा. जब मिलता और कलावती शादी के लिए कहती तो टाल देता. एक दिन तो दोनों के बीच शादी को ले कर झगड़ा हो गया. तब से पप्पू बहुत कम उस से मिलनेजुलने लगा.

बाद में कलावती को कंपनी के किसी आदमी ने बताया कि पप्पू तो शादीशुदा है और काफी बिगड़ा हुआ आदमी है. शराब पीता है, सट्टाजुआ खेलता है और औरतों की जिंदगी बरबाद करता है.

कलावती यह जान कर बहुत पछताई, बहुत रोई. अब वह पप्पू को सबक सिखाना चाहती थी. उस ने थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

पप्पू को जब यह पता चला तो उस ने कलावती को डरायाधमकाया, लेकिन वह डरने वाली न थी. इस से डर कर पप्पू फरारी काटने लगा. लेकिन कब तक बचता? एक दिन मुखबिर ने थानेदार को उस की सूचना दी.

पुलिस ने पप्पू को दबोच लिया. वह अकड़ा तो हवालात में बंद कर के उस की जम कर कुटाई की गई. डंडे पड़े तो उस का सारा भूत उतर गया. अगले दिन उसे कोर्ट में पेश कर जेल भिजवा दिया गया.

कलावती को बड़ा सबक मिला. वह बहुत बड़ा धोखा खा चुकी थी. दोबारा उस ने ऐसी गलती कभी नहीं की. वह चुपचाप अपना काम कर रही थी.

मालिक ने उस का पूरा साथ दिया, क्योंकि वे शंकर को बेटे जैसा मानते थे. मालकिन भी भली थीं. उन्होंने अपने घर में ही उसे एक कमरा दे दिया. वह मालकिन का घरेलू काम भी कर दिया करती थी. Love Story In Hindi

Story In Hindi: चंगाई सभा

Story In Hindi, लेखक – आर. सेलट

पूरन पाल चुपचाप अपने सरकारी क्वार्टर के पीछे वाले दरवाजे की चौखट पर बैठा गहरी चिंता में डूबा हुआ था. उस के 3 बच्चे थे, 2 लड़कियां, जो नर्स बनने वाली थीं और एक लड़का.

पूरन पाल का एकलौता लड़का 14 साल का था, जो गूंगा ही पैदा हुआ था. पूरन पाल सोचता था, लड़कियों की शादी हो जाए और लड़के का बंदोबस्त हो जाए, तो उस की नैया भी पार लग जाए.

तकरीबन 2 महीने पहले पूरन पाल को पता चला कि शहर में विदेश से एक पादरी साहब आ कर ‘चंगाई सभा’ करने वाले हैं. चर्च के पादरी ने भी सब को इस बारे में बता दिया था. शहर में भी पोस्टर लगे थे.

फैक्टरी की दीवार पर भी एक पोस्टर चिपका था. हैरी ने बताया था, ‘‘बहुत बड़े पादरी आ रहे हैं.’’

पूरन पाल सोच रहा था कि उस के पिताजी भी तो अंगरेजों के समय में चर्च में बैरा थे. पर पहले पादरी छोटेबड़े नहीं होते थे. हां, अब समय भी तो बदल गया है. अब ऐरू को देखो, वह लालू चाचा का लड़का था और लालू चाचा तो उस के पिताजी के साथ चर्च में बैरा थे. पूरन पाल के पिताजी और लालू चाचा आपस में अच्छे दोस्त थे. दोनों मिशन के अनाथ आश्रम में पले थे.

ऐरू ने पूरन पाल के सामने ही गिरजे की किताबें बेचीं. फिर पादरी बनने की ट्रेनिंग ले ली और विदेश हो आया. वह बिशप भी बन गया है.

‘चंट था ससुरा, पर हम रहे भोंदू के भोंदू,’ सोचते हुए पूरन ने सिर झटक दिया, ‘अब तो ऐरू की बात ही और है. बंगला है, 2 कारें हैं, पत्नी शहर के बड़े अंगरेजी स्कूल में प्रिंसिपल है. लोग उसे रेवरंड ऐरन कहते हैं. कभी साथ हौकी खेलता था. अब अकेले में मिलता है, तो दुआसलाम कर लेता है, नहीं तो वह भी नहीं. कलक्टर, पुलिस कप्तान के साथ उठताबैठता है, उस के बच्चे भी तो मिशन स्कूल में ही पढ़ते हैं.’

बहरहाल, ‘चंगाई सभा’ की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. सुनने में आया था कि 4-5 लाख रुपए भेजे हैं, विदेशी पादरी ने इंतजाम के लिए. गिरजे का सचिव डगलस बता रहा था कि विदेशी पादरी बहुत पहुंचे हुए हैं. वह सब को चंगा कर देते हैं. लंगड़े दौड़ने लगते हैं, गूंगे बोलने लगते हैं और बहरे सुनने लगते हैं.

डगलस ने कहा था, ‘‘तेरे लड़के की जीभ से ‘शैतानी बंधन’ भी खुल जाएगा. बस, यकीन पक्का होना चाहिए.’’

पूरन पाल बहुत खुश था. उसे ऐसा लग रहा था, मानो सारा तामझाम उसी के लिए हो रहा है. गिरजे के मैदान में हजारों लोगों के बैठने का इंतजाम किया गया था. दर्जनों लाउडस्पीकर और सैकड़ों बल्ब लगे थे. पूरन पाल को एक रात सपना भी आया कि उस का लड़का गोलू बोल रहा है.

आखिर वह दिन भी आ गया, जब ‘चंगाई सभा’ होनी थी. पूरन पाल सुबह से ही शाम होने का इंतजार करने लगा. उस दिन इतवार था, सो फैक्टरी तो जाना नहीं था. शाम होते ही वह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले गया.

पूरा मैदान रंगबिरंगी रोशनियों से नहा रहा था. माइक पर भाषण चालू था. विदेशी पादरी के आने से पहले, जिस को जितना मौका मिला, मंच पर आ कर बोल लिया. हजारों लोग बैठे थे. कुछ बाहर से भी आए थे.

हैरिसन भी आया था, चमकीली कमीज और टाई लगा कर. पूरन पाल को हंसी आ गई. हैरिसन फैक्टरी में कुली था. घर में भले खाने को न हो, पर बड़े दिन पर रम की 3-4 बोतलें जरूर लाता था. तभी लोगों में हलचल होने लगी.

3-4 कारों का काफिला मंच के सामने रुका. गोरे विदेशी पादरी स्टेज पर चढ़ गए. बिशप ऐरू भी साथ में था.

रमेश चंद्र नामक एक नेता, जो पहले ब्याज पर पैसा देता था, वह भी वहां आया हुआ था. पूरन ने सोचा कि यह यहां क्या कर रहा है? अब भोले पूरन पाल को क्या समझ कि ऐसे ‘वोट बैंक’ बारबार तो नहीं मिलते.

एकदम सन्नाटा छा गया था. आधा घंटा ‘दुआ’ हुई. फिर चंदा इकट्ठा किया गया. कुछ लोग स्टेज पर जा कर लिफाफे दे रहे थे, कुछ नीचे घुमाए जा रहे दान के डब्बे में पैसे डाल रहे थे.

जब चंदे का डब्बा पूरन पाल के सामने आया तो उस ने 10 रुपए का सिक्का पेटी में डाल दिया. नीचे
नोट थे, इसलिए सिक्के की आवाज भी नहीं आई.

पीतल की नक्काशी वाला बड़ा सुंदर डब्बा था, जिस पर बाइबिल की आयत लिखी थी, ‘जब तुम दाएं हाथ से दान करो तो तुम्हारे बाएं हाथ को भी पता न चले’.

फिर ऐलान हुआ, ‘जो लोग चंगाई चाहते हैं, सामने आ जाएं.’

पूरन पाल भी गोलू का हाथ पकड़ कर स्टेज के सामने जा पहुंचा. चंगाई शुरू हुई तो चाय वाले एलबर्ट के लंगड़े बच्चे का हाथ पकड़ कर धकियाते हुए दौड़ाया गया. अगला नंबर गोलू का था. पूरन उसे ले कर स्टेज पर पहुंचा.

विदेशी पादरी अंगरेजी में बोलता था और देशी पादरी हिंदी में उस की बात बताता था. बिशप ऐरू और नेता रमेश चंद्र अपनी बातचीत में मशगूल थे. शायद ईसाई कब्रिस्तान के पीछे पड़ी लंबीचौड़ी जमीन की बात कर रहे थे.

विदेशी पादरी ने गोलू के सिर पर हाथ रख कर ‘दुष्ट आत्माओं’ को भगाने की दुआ की. लोग हैरानी से देख रहे थे.

पादरी ने पूछा, ‘‘लड़का बचपन से गूंगा है?’’

पूरन पाल ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. फिर पादरी धीरे से कुछ बुदबुदाने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘बेटा, अब बोलो, ‘जीसस लवस यू’…’’

गोलू के गले से वही पुरानी घुटी सी आवाज निकली, ‘‘इसस अम ऊ.’’

विदेशी पादरी जोर से चिल्लाया, ‘‘आलेलुइया… थैंक्स द लार्ड.’’

मंच पर बैठे लोग भी चिल्लाने लगे. उन की देखादेखी नीचे बैठे और खड़े लोग भी चिल्लाने लगे.

चर्च के पादरी ने कहा, ‘‘अब शैतानी बंधन जीभ से टूट चुका है. अब यह लड़का जल्दी ही बोलने लगेगा. बस, एक हफ्ते के अभ्यास की जरूरत है.’’

कुछ लोग अब भी चिल्ला रहे थे. पादरी साहब ने पूरन पाल को धीरे से धकियाते हुए स्टेज के दूसरी तरफ से उतरने का इशारा किया.

एक घंटे बाद ‘चंगाई सभा’ खत्म हुई. इतवार को गिरजे में पादरी ने ‘चंगाई सभा’ की बातें बढ़ाचढ़ा कर बताई.

पूरन पाल के लड़के और दूसरे लोगों के ‘चंगे’ होने की बातें बताईं.

जो लोग ‘चंगाई सभा’ में नहीं आ पाए थे, उन्हें इस बात का दुख था. गिरजे के सचिव डगलस ने नया स्कूटर खरीद लिया था.

2 महीने बाद भी पूरन पाल को थोड़ी उम्मीद थी कि शायद गोलू ठीक हो जाए. किंतु उस की आवाज में सुधार नहीं हुआ था. शाम को फैक्टरी से लौटते वक्त एलबर्ट चाय वाले के लड़के को देखा, जो ‘चंगाई सभा’ में ‘चंगा’ हो गया था, वह सड़क के किनारेकिनारे पहले की तरह बैसाखी के सहारे लंगड़ाते हुए चला आ रहा था. पूरन का दिल बैठ सा गया था.

अब वह घर के पिछवाड़े बैठा बेटे के बारे में सोच रहा था. सोचता था, गोलू ठीकठाक कहीं लग जाए,
तो बुढ़ापे में सहारा हो जाए या गोलू को ही सहारा…?

गरमियों के दिनों में शाम को पीछे बैठना पूरन को बहुत सुहाता था, ठंडीठंडी हवा उसे अच्छी लगती थी.
पर सच ही है. दिल अच्छा न हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तभी पीछे के कमरे में लगा कलैंडर हवा में फड़फड़ाया.

पूरन पाल ने अलसाई नजरों से देखा, कलैंडर पर हल चला रहे किसान की तसवीर थी और नीचे बाइबिल की आयत याकुब 2.26 लिखी थी, ‘निदान, जैसे देह ‘आत्मा’ के बिना मरी हुई है, वैसे ही विश्वास भी कर्म के बिना मरा हुआ है’.

पूरन पाल को मानो निदान मिल गया. सुबह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले जाने लगा तो पत्नी सारा ने पूछा, ‘‘कहां…?’’

‘‘गूंगेबहरे बच्चों के सरकारी स्कूल…’’ पूरन पाल ने जवाब दिया. Story In Hindi

Hindi Family Story: मैं सुहागिन हूं – क्यों पति की मौत के बाद भी सुहागन रही वो

Hindi Family Story: जटपुर गांव के चौधरी देशराज के 5 बेटे बेगराज, लेखराज, यशराज, मोहनराज और धनराज और 4 बेटियां कमला, विमला, सुफला और निर्मला हुईं. भरापूरा परिवार, लंबीचौड़ी खेतीबारी और चौधरी देशराज का दबदबा. दालान पर बैठते तो किसी महाराजा की तरह. बड़े चौधरियों की तरह हुक्के की चिलम कभी बुझने का नाम न ले. दालान पर 4 चारपाई और दर्जनभर मूढ़े उन की चौधराहट की शान बढ़ाते थे. शाम को दालान का नजारा किसी पंचायत का सा होता था.

चौधरी देशराज ने सब से छोटे बेटे धनराज को छोड़ कर अपने सभी बेटे और बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. चौधरी देशराज का उसूल था कि बेटियों की शादियां बड़े चौधरियों में करो, तो वे अपने से बड़ा घराना पा कर खुश रहेंगी और अपने पिता व किस्मत पर फख्र करेंगी. बहुएं हमेशा छोटे चौधरियों की लाओ तो वे कहने में रहेंगी और बेटों का अपनी ससुरालों में दबदबा बना रहेगा.

सब से छोटे बेटे धनराज के कुंआरे रहने की कोई खास वजह नहीं थी. कितने ही चौधरी अपनी बहनबेटियों के रिश्ते धनराज के लिए ले कर आ चुके थे, लेकिन देशराज सदियों से चली आ रही गांव की ‘पांचाली प्रथा’ के मकड़जाल में फंसे हुए थे.

गांव की परंपरा के मुताबिक, वे चाहते थे कि धनराज अपने किसी बड़े भाई के साथ सांझा कर ले, जिस से जोत के 4 ही हिस्से हों, 5 नहीं. गांव के अनेक परिवार अपनी जोत के छोटा होने से इसी तरह बचाते चले आ रहे थे.

धनराज के बड़े भाइयों ने भी यही कोशिश की, लेकिन धनराज की अपनी किसी भाभी से नहीं पटी. हालांकि ‘पांचाली प्रथा’ के मुताबिक भाभियों ने धनराज पर अपनेअपने हिसाब से डोरे डाले, लेकिन धनराज कभी भाभियों के चंगुल में फंसा ही नहीं.

अब देशराज के सामने धनराज की शादी करने का दबाव था, क्योंकि बड़े बेटे बेगराज का बड़ा बेटा प्रताप भी शादी के लायक हो गया था.

असल में जब धनराज पैदा हुआ था, उस के कुछ दिनों बाद ही प्रताप का जन्म हुआ था. चाचाभतीजे के आगेपीछे जन्म लेने पर देशराज की बड़ी जगहंसाई हुई थी.

गांव के हमउम्र लोग मजाक ही मजाक में कह देते थे, ‘चौधरी साहब, अब तो होश धरो. हुक्के की गरमी ने आप के अंदर की गरमी बढ़ा रखी है, लेकिन उम्र का तो खयाल करो.’

इस के बाद चौधरी देशराज ने बच्चे पैदा करने पर रोक लगा दी. दादा बनने के बाद अपने बरताव में बदलाव लाए और दूसरी जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ा लिया.

बेगराज ने अपने बड़े बेटे का नाम प्रताप जरूर रखा था, लेकिन प्रताप का मन पढ़ाईलिखाई, खेतीबारी में कम लगता था, मौजमस्ती में ज्यादा था. दिनभर खुले सांड़ की तरह प्रताप गांवभर में घूमताफिरता. उस के इस बरताव को देख कर गांव वालों ने उस का दूसरा नाम ‘सांड़ू’ ही रख दिया.

बड़ा परिवार होने के नाते घर में काम तो बहुत थे, लेकिन प्रताप ने न तो उन में कभी कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही कोई जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की कोशिश की. इस वजह से बेगराज उस की जल्दी से जल्दी शादी कर के परिवार का जिम्मेदार सदस्य बनाना चाहता था.

गांव से उस की शिकायतें कोई न कोई ले कर आता रहता था. इस से भी बेगराज परेशान था. लेकिन पहले धनराज की शादी हो, तब वे प्रताप की शादी के बारे में सोचें.

देशराज ने जल्दी ही इस समस्या का हल निकाल दिया. धनराज की शादी पास के ही गांव जगतपुर के चौधरी शक्ति सिंह की बेटी सविता के साथ हुई.

धनराज और सविता सुखभरी जिंदगी गुजारने लगे. धनराज के हिस्से में जो जमीन आई, उस में वह जीतोड़ मेहनत करने लगा. सविता भी उस का खूब साथ निभाने लगी.

धनराज खेतों में बैल बना खूब पसीना बहाता. उस की कोशिश थी कि वह भी जल्दी से जल्दी अपने भाइयों के लैवल पर पहुंच जाए.

इस जद्दोजेहद में वह भूल गया कि उस के घर में छुट्टे सांड़ प्रताप ने घुसपैठ शुरू कर दी है. वह छुट्टा सांड़ कब उस की गाय सविता के पीछे लग गया, उसे पता ही नहीं चला. गांव में भी एक खुला सांड़ था, जो इस और उस के खेत में मुंह मारता फिरता था.

धनराज की शादी में आया दहेज का सामान अभी नया था. प्रताप कभी गाने सुनने के बहाने और कभी फिल्म देखने के बहाने दहेज में आई नई एलईडी पर कार्यक्रम देखने के बहाने धनराज के कमरे में आ धमकता था.

सविता नईनवेली दुलहन थी, इसलिए वह कुछ कह पाने में हिचक रही थी. कोई और भी प्रताप को नहीं टोकता था. धनराज का वह हमउम्र भी था और बचपन का साथी था, इसलिए धनराज को भी कोई एतराज नहीं था.

सविता भी इस की आदी हो गई. उस ने सोचा कि जब किसी को प्रताप के इस बरताव से कोई एतराज नहीं तो वही क्यों प्रताप पर एतराज करे. सविता और प्रताप धीमेधीमे आपस में बातचीत भी करने लगे. अगर सविता प्रताप से कभी किसी बात को कहती तो प्रताप उसे कभी न टालता.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी. प्रताप पहले से ज्यादा समय सविता के कमरे में गुजारने लगा. आग और घी का यह रिश्ता धीरेधीरे चाचीभतीजे के रिश्ते को पिघलाने लगा. हवस की आंधी में एक दिन यह रिश्ता पूरी तरह से उड़ गया.

जब तक सविता और प्रताप के इस नए रिश्ते का एहसास धनराज और परिवार के दूसरे सदस्यों को होता, तब तक बात बहुत आगे तक बढ़ गई थी.

धनराज और परिवार के दूसरे लोगों ने सविता और प्रताप पर रोक लगाने की कोशिश की, तो उन दोनों ने दूसरे तरीके ढूंढ़ लिए. हर कोई तो 24 घंटे चौकीदार बन कर घूम नहीं सकता. दोनों का मिलन कभी खेतों में तो कभी खलिहानों में, कभी गौशाला में तो कभी बिटौड़ों के पीछे होने लगा. गांव के खुले सांड़ को भी कहीं भी आनेजाने की आजादी थी.

देशराज तजरबेकार थे. वे जानते थे कि एक खुला सांड़ किसी औरत के लिए सब से अच्छा प्रेमी होता है. उस के पास अपनी प्रेमिका के लिए वह अनमोल वक्त होता है, जो किसी कामकाजी बैल के पास कभी नहीं हो सकता है. यही वजह है कि ज्यादातर लड़कियों के प्रेमी आवारा और लफंगे होते हैं. सांड़ के पास यहांवहां मुंह मारने के लिए बहुत सा खाली वक्त होता है, जबकि कामकाजी बैल की गरदन हमेशा काम के तले दबी रहती है.

देशराज ने एक दिन बेगराज को बुला कर कहा, ‘‘बेगराज, अपने प्रताप को संभाल ले. इसे कामधंधे में लगा, नहीं तो जो आग घर में सुलग रही है, पूरे परिवार को ले डूबेगी. भविष्य में इस घर में कोई रिश्ता नहीं आएगा. आगे की सोच, प्रताप घर को आग लगा रहा है.’’

‘‘बाबूजी, मैं ने कितनी ही कोशिश कर ली, लेकिन लगता है ऐसे बात बनने वाली नहीं.’’

‘‘बेगराज, पहले समझाबुझा. बात न बने तो सख्ती से परहेज मत करना. नहीं तो तेरा प्रताप पूरे परिवार का सत्यानाश कर देगा. पहले ही गांव में काफी फजीहत हो चुकी है. कैसे भी कर, प्रताप पर लगाम लगा.’’

‘‘जी बाबूजी.’’

उधर धनराज ने सविता को हर तरह से समझा लिया. लेकिन हर बात पर वह धनराज की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाती या चुप्पी साध जाती. धनराज के सामने वह ऐसी नौटंकी करती, जैसे वह इस दुनिया में धनराज के लिए ही आई है और बाकी सब बातें बेसिरपैर की हैं. लेकिन धनराज के घर से बाहर कदम रखते ही वह गिरगिट की तरह रंग बदलती.

धनराज और परिवार के लोग जितना सविता और प्रताप को समझाते, उन की इश्क की आग उतनी ही ज्यादा भड़कती. समझानेबुझाने की सीमा जब पार हो गई, तो बेगराज और लेखराज ने एक दिन प्रताप को कमरे में बंद कर के जम कर तुड़ाई की, तो सविता ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत का मरहम लगा दिया. यही हाल एक दिन धनराज ने सविता का किया, तो प्रताप ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत के फूल बरसा दिए.

धनराज ने सविता को घर छोड़ने से ले कर तलाक देने तक की धमकियां दे डालीं, लेकिन सविता के सिर चढ़ा इश्क का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था.

एक दिन धनराज घर में रखी पुराने समय की तलवार उठा लाया और गुस्से में नंगी तलवार से सविता की ‘बोटीबोटी’ काट डालने की धमकी देने लगा, तो सविता ने नंगी तलवार के आगे गरदन करते हुए कहा, ‘‘काटो. पहले मेरी गरदन काटो, फिर मेरे शरीर की बोटीबोटी काट डालो. लेकिन, यह याद रखना, मेरे मरने के बाद इस घर में तबाही मचेगी, कलह मचेगा, मौत नाचेगी, किसी को जरा सा भी चैन न मिलेगा.’’

‘‘बदजात…’’ कह कर जैसे ही धनराज ने तलवार प्रहार के लिए उठाई, परिवार के लोगों ने उसे किसी तरह रोका. इस आपाधापी में यशराज और उस की घरवाली तलवार से घायल हो गए.

लेकिन सविता लाख गालियां खा कर भी टस से मस न हुई. इश्क की ताकत का भी उसे अब एहसास हुआ कि इतना सबकुछ होने पर भी उस पर किसी बात का कोई असर क्यों नहीं हो रहा है. वह चाहे तो एक पल में सबकुछ ठीक कर सकती है, लेकिन इश्क की गुलामी उसे कुछ करने दे तब न.

इन सब बातों से धनराज की गांव में इतनी जगहंसाई हो रही थी कि उस का गांव में निकलना दूभर हो गया था. उसे हर कोई ऐसा लगता था मानो वह सविता और प्रताप की ही मुहब्बत की बातें कर रहा हो.

धनराज की यह हालत हो गई कि न तो वह किसी के पास जाता था और न ही किसी को अपने पास बुलाता था. दुनिया से उस का मन उचटने लगा था. न तो उसे अच्छे कपड़े पहनना सुहाता था और न ही फैशन करना. अच्छा खाना तो उसे जहर की तरह लगता था.

उस का शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. घर उसे खाने को दौड़ता था, इसलिए वह अपना ज्यादातर समय खेतों में गुजारता था. कोई उस को समझाने की कोशिश करता, तो उस को ऐसा लगता जैसे वह उस के जले पर नमक छिड़क रहा हो. परिवार के लोगों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था.

खेतीबारी के काम में भी उस का मन अब बिलकुल नहीं लगता था. गांव में जो एक खुला सांड़ था पहले वह उस के खेत में घुसता था तो उसे डंडा मार कर भगाता और अपनी फसल को बचाता, लेकिन अब वह उस सांड़ को फसल चरने देता और बैठाबैठा उसे देखता रहता.

धनराज बड़ी उलझन में था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. हताशा और निराशा ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था. उस ने सुना था कि आदमी को अपने कर्मों की सजा भुगतनी पड़ती है.

काफी सोचने के बाद भी उसे यह समझ में नहीं आया कि आखिर उस ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया था, जिस की उसे इतनी बड़ी सजा मिली?है.

फिर उसे खेत में बैठेबैठे ध्यान में आया कि सारी समस्या की जड़ सविता ही है, तो फिर क्यों न उसे ही रास्ते से हटा दिया जाए. आज रात को उसे खाने में धतूरे के बीज पीस कर खिला दूं तो सारे खटराग की जड़ ही खत्म.

वह इसी मंशा के साथ खलिहान में गया, जहां बहुत सारे धतूरे के पौधे थे. वहां से वह बहुत सारे धतूरे के बीज ले आया. एक पेड़ की छाया में बैठ कर धनराज उन्हें पीसने लगा.

धतूरे के बीज पीसते हुए उसे खयाल आया कि सविता को रास्ते से हटा कर क्या वह चैन की बंसी बजा सकेगा? क्या इस के बाद उस की नाक ऊंची हो जाएगी? लोग क्या उसे इज्जत की नजर से देखने लगेंगे? प्रताप के सामने क्या वह सिर उठा सकेगा?

इन सवालों ने उस के दिमाग में घमासान मचा दिया. सचाई पता चलने पर लोग उसे पत्नी का हत्यारा भी बताएंगे. फिर कौन औरत उस से शादी करेगी? वह अपने भाइयों और भाभियों पर बोझ बन जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि वह अपनी ही जान दे दे. कितना आसान तरीका है इन सभी मुसीबतों से छुटकारा पाने का.

यह इनसान की फितरत होती है कि वह हमेशा हर समस्या के आसान उपाय ढूंढ़ता है. धनराज ने भी यही किया. पिसे हुए धतूरे के बीज उस ने खुद फांक लिए, लेकिन तुरंत कुछ नहीं हुआ. इस से धनराज की परेशानी और बढ़ गई. वह मरने का इंतजार देर तक नहीं कर सकता था. उस ने आम के एक ऊंचे पेड़ में रस्सी लटकाई, फांसी का फंदा बनाया और उस पर झूल गया.

धनराज को किसी ने फांसी के फंदे पर झूलता देखा, तो गांव में जा कर शोर मचा दिया. ग्राम प्रधान ने हकीकत जानने पर पुलिस को सूचना दी और गांव वालों को चेतावनी दी कि पुलिस के आने तक कोई भी उस पेड़ के पास न फटके, जहां धनराज फांसी के फंदे पर लटका पड़ा है.

आननफानन ही पुलिस की जीप आ गई. धनराज की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

इस बीच देशराज के परिवार पर पुलिस ने अपनी हनक दिखानी शुरू की. महक सिंह के बीच में पड़ने से 2 लाख रुपए में मामला तय हो गया, नहीं तो पुलिस को खुदकुशी का केस हत्या में बदलने में कितनी देर लगती.

दोपहर के बाद धनराज के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस ने परिवार के सुपुर्द कर दिया. पूरा गांव देशराज के घर पर इकट्ठा हो गया. शाम ढलने को थी इसलिए शव को गंगाघाट पर ले जाने की जल्दी थी.

परिवार की औरतें सविता को ले कर अंतिम दर्शनार्थ धनराज के शव के पास ले कर पहुंची, तो भीड़ में हलचल पैदा हो गई. शव के पास जब घर की औरतों ने सविता की कलाई की चूड़ी तोड़ने और बिछुवे उतारने की कोशिश की, तो उस ने अपनी कलाई छुड़ाते हुए चीख कर कहा, ‘‘मुझ से नहीं होगा यह सब पाखंड. जब तक प्रताप जिंदा है, मैं सुहागिन हूं. यह बात मैं नहीं कह रही सारा गांव जानता है. न मैं अपनी मांग का सिंदूर मिटाऊंगी, न चूडि़यां तुड़वा कर अपनी कलाई नंगी करूंगी और न ही बिछुवे उतारूंगी.

‘‘प्रताप जिंदा है, तो मैं सधवा हूं, विधवा नहीं. धनराज तो मुझे मंझधार में छोड़ कर चला गया. अब प्रताप ही मेरा सहारा है.’’

सविता की बात सुन कर भीड़ ने अपनेअपने तरीके से खुसुरफुसुर की, लेकिन किसी औरत के ऐसे तेवर उन्होंने पहली बार देखे थे. दुख की इस घड़ी में कोई अड़चन नहीं डालना चाहता था.

सविता के विरोध में कुछ आवाजें उठीं, तो उन्हें समझदारी से दबा दिया गया. धनराज का शव चार कंधों पर उठा तो सब की आंखें गमगीन हो गईं. गांव में कौन ऐसा था, जो धनराज की शवयात्रा में न रोया हो.

तेरहवीं और शोक के दिन गुजरने के बाद सविता और प्रताप ने कोर्टमैरिज कर ली. सविता और प्रताप गांव की अपनी जमीनजायदाद बेच कर दूर के किसी गांव में जा बसे.

सविता प्रताप के साथ वहां रहने लगी. उन के जाने के बाद गांव वालों ने राहत की सांस ली. गांव का खुला सांड़ अब बैल बन के रह गया था. Hindi Family Story

Story In Hindi: एहसान – रुक्मिणी ने कैसे किया गोविंद पर एहसान

Story In Hindi: अंधेरा हो चला था. रुक्मिणी ने सब से पहले तो बैलगाड़ी जोती और अनाज के 2 बोरे गाड़ी में रख अपने गांव की तरफ चल दी. अंधेरे को देखते हुए रुक्मिणी ने लालटेन जला कर लटका ली थी. इस बार फसल थोड़ी अच्छी हो गई थी, इसलिए वह खुश थी.

खेत से निकल कर रुक्मिणी की गाड़ी रास्ते पर आ गई थी. अभी वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि उसे पेड़ से टकराई हुई मोटरसाइकिल दिखी. उस को चलाने वाला वहीं खून से लथपथ पड़ा था.

रुक्मिणी ने गाड़ी रोकी और लालटेन निकाल कर उस के चेहरे के पास ले गई. उस आदमी की नब्ज टटोली, जो अभी चल रही थी. इस के बाद उस का चेहरा देख कर एक पल के लिए तो रुक्मिणी का भी सिर घूम गया. वह सरपंच का बेटा मंगल सिंह था.

मंगल सिंह को देख कर रुक्मिणी का एक बार मन हुआ कि उसे ऐसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाए, लेकिन आखिर वह भी एक औरत थी और न चाहते हुए भी उस ने गाड़ी के सामान को एक तरफ किया और फिर मंगल सिंह को उठा

कर गाड़ी में डाल लिया. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी मंगल सिंह को वह सरपंच के हवाले कर दे. इसी के साथ पुरानी यादों ने रुक्मिणी के जख्म को ताजा कर दिया.

सीतापुर गांव में रामलाल अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था. उस के पास छोटा सा खेत था, इसी के साथ उस की पत्नी त्रिवेणी सरपंच गोविंद सिंह के यहां झाड़ूपोंछे का काम करती थी. त्रिवेणी के साथ उस की बेटी रुक्मिणी भी आती थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी की उम्र बढ़ने के साथसाथ उन के दिलों में प्यार की कोंपलें भी फूटने लगी थीं और अकसर वे दोनों गांव व खेतों में निकल जाया करते थे.

रुक्मिणी के भरते शरीर, उभार और जवानी का रसपान गोविंद सिंह भी दूर से करने लगा था. रुक्मिणी इन सब बातों से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी.

गंगू ने जब सरपंच गोविंद सिंह को रुक्मिणी और मंगल सिंह की प्रेम कथा बताई, तो वह आगबबूला हो गया.

पहले तो गोविंद सिंह ने मंगल सिंह को समझाया, ‘मैं तुम्हारी शादी दूसरी जगह कर दूंगा, जहां से अच्छा दहेज मिल जाएगा और वैसे भी रुक्मिणी हमारी बराबरी की नहीं है.’

जब मंगल सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ, तब उस ने रुक्मिणी के पीछे अपने आदमी छोड़ दिए. वे उसे बदनाम करने लगे.

एक बार रुक्मिणी के पिता रामलाल ने उस से उस की शादी की बात की, तो वह उसे टाल गई.

समय धीरेधीरे गुजर रहा था. आखिर गोविंद सिंह ने एक दिन रुक्मिणी को उठवा लिया और मंगल सिंह से कहा कि वह गांव के किसी लड़के के साथ भाग गई है. कुछ दिन बाद जब गोविंद सिंह ने उसे छोड़ा, तब तक मंगल सिंह उस से दूर चला गया था.

रुक्मिणी में जिंदगी जीने और हालत से जूझने का हौसला था, इसलिए वह इतने पर भी टूटी नहीं. थोड़े दिन बाद इसी गम में रुक्मिणी के मांबाप भी इस दुनिया से चल बसे. लेकिन इन सब हालात ने उसे और भी जुझारू बना दिया था. इस के बाद रुक्मिणी ने खेतीबारी को खुद संभाल लिया और पास के दूसरे गांव में रहने चली गई. अमीर घराने की लड़की मंगल सिंह के साथ ज्यादा दिन नहीं निभा सकी और एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चली गई.

इस के बाद मंगल सिंह पागल जैसा हो गया, क्योंकि बाद में उसे भी रुक्मिणी के साथ हुए गलत बरताव के बारे में मालूम पड़ा था.

इस के बाद मंगल सिंह अपने को कुसूरवार मानता था, उस से माफी मांगना चाहता था. इस के बाद उस ने भी अपने पिता सरपंच गोविंद सिंह का घर छोड़ दिया था और अलग रहने लगा था.

उस दिन भी मंगल सिंह रुक्मिणी से माफी मांगने के लिए उस के खेत पर ही जा रहा था. दिमागी परेशानी से उस का ध्यान सड़क से भटक गया था और सामने से आते हुए ट्रैक्टर ने उस की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी.

तभी मंगल सिंह ने कराहते हुए अपनी आंखें खोलीं. अब रुक्मिणी भी यादों से वापस आ गई थी. सरपंच का घर अभी थोड़ी दूर था, इसलिए मंगल सिंह की हालत देखने के लिए उस ने बैलगाड़ी रोकी और उस के पास गई.

रुक्मिणी ने मंगल सिंह के सिर पर अपनी चुनरी कस कर बांध दी. तभी मंगल सिंह के हाथ माफी मांगने के लिए जुड़ गए थे. इन सब बातों का रुक्मिणी पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने बैलगाड़ी तेजी से चलाई और सरपंच के घर के सामने गाड़ी रोक कर पूरी बात गोविंद सिंह को बताई और वापस जाने लगी.

गोविंद सिंह उस के पैरों पर गिर गया और बोला, ‘‘रुक्मिणी, मुझे किसी गरीब को नहीं सताना चाहिए था. मुझे माफ कर दे.’’

गोविंद सिंह मंगल सिंह को जीप में डाल शहर के अस्पताल में ले जाने लगा, तब मंगल सिंह ने रुक्मिणी का हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे भी साथ चलने के लिए इशारा किया.

अस्पताल में मंगल सिंह का इलाज शुरू हो गया और उसे तुरंत खून देना था. परिवार में से किसी का खून मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. साथ ही, वहां आए लोगों का खून भी मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. रुक्मिणी एक बार फिर यादों की दुनिया में चली गई थी.

मंगल सिंह और रुक्मिणी एक बार शहर घूमने गए थे. तब रुक्मिणी ने कहा था, ‘देख मंगल, हमारा प्यार एकदम सच्चा और पक्का है कि तू भले ही न माने, लेकिन हमारा खून भी एक ही है.’

तब मंगल सिंह ने हंसते हुए कहा था, ‘हट पगली, ऐसे थोड़े न होता है. सभी के खून का ग्रुप अलगअलग ही होता है.’

मजाक की बात शर्त में बदल गई और दोनों ने पास के एक अस्पताल में जा कर जब खून को चैक करवाया, तब दोनों का ग्रुप एक ही निकला.

तभी डाक्टर ने आ कर कहा, ‘‘गोविंद सिंह, जल्दी खून का इंतजाम करो. मंगल सिंह की हालत खराब होती जा रही है. खून काफी बह गया है.’’

तब रुक्मिणी ने विश्वास से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा खून ले लीजिए.’’

गोविंद सिंह हैरानी से रुक्मिणी को देख रहा था और एहसान तले दबा जा रहा था. Story In Hindi

Story In Hindi: एक नजर – क्या हुआ था छोटी बहू के साथ?

Story In Hindi: जनाजे की तैयारी हो रही थी. छोटी बहू की लाश रातभर हवेली के अंदर नवाब मियां के कमरे में ही बर्फ पर रखी हुई थी. रातभर जागने से औरतों और मर्दों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी छाई हुई थी.

रातभर दूरदराज से लोग आतेजाते रहे और दुख जताने का सिलसिला चलता रहा.

पूरी हवेली मानो गम में डूबी हुई थी और घर के बच्चेबूढ़ों की आंखें नम थीं. मगर कई साल से खामोश और अलगथलग से रहने वाले बड़े मियां जान यानी नवाब मियां के बरताव में कोई फर्क नहीं पड़ा था. उन की खामोशी अभी भी बरकरार थी.

उन्होंने न तो किसी से दुख जताने की कोशिश की और न ही उन से मिल कर कोई रोना रोया, क्योंकि सभी जानते थे कि पिछले 2-3 सालों से वे खुद ही दुखी थे.

नवाब मियां शुरू से ऐसे नहीं थे, बल्कि वे तो बड़े ही खुशमिजाज इनसान थे. इंटर करने के बाद उन्हें अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एलएलबी पढ़ने के लिए भेज दिया गया था.

अभी एलएलबी का एक साल ही पूरा हो पाया था कि अचानक नवाब मियां अलीगढ़ से पढ़ाई छोड़ कर हमेशा के लिए वापस आ गए. घर में किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उन से यह पूछता कि मियां, पढ़ाई अधूरी क्यों छोड़ आए?

अब्बाजी यानी मियां कल्बे अली 2 साल पहले ही चल बसे थे और अम्मी जान रातदिन इबादत में लगी रहती थीं.

घर में अम्मी जान के अलावा छोटे मियां जावेद रह गए थे, जो पिछले साल ही अलीगढ़ से बीए करने के बाद जायदाद और राइस मिल संभालने लगे थे. वैसे भी जावेद मियां की पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इधर पूरी हवेली की देखरेख नौकर और नौकरानियों के भरोसे चल रही थी.

हवेली में एक बहू की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाने लगी थी. नवाब मियां के रिश्ते आने लगे थे. शायद ही कोई दिन ऐसा जाता था कि घर में नवाब मियां के रिश्ते को ले कर कोई दूर या पास का रिश्तेदार न आता हो. लेकिन अपने ही गम में डूबे नवाब मियां ने आखिर में सख्ती से फैसला सुना दिया कि वे अभी शादी करना नहीं चाहते, इसलिए बेहतर होगा कि जावेद मियां की शादी कर दी जाए.

हवेली के लोग एक बार फिर सकते में आ गए. कानाफूसी होने लगी कि नवाब मियां अलीगढ़ में किसी हसीना को दिल दे बैठे हैं, मगर इश्क भी ऐसा कि वे हसीना से उस का पताठिकाना भी न पूछ पाए और वह अपने घर वालों के बुलावे पर ऐसी गई कि फिर वापस ही न लौटी. उन्होंने उस का काफी इंतजार किया, मगर बाद में हार कर वे भी हमेशा के लिए घर लौट आए.

बरसों बाद हवेली जगमगा उठी. जावेद मियां की शादी इलाहाबाद से हुई. छोटी बहू के आने से हवेली में खुशियां लौट आई थीं.

छोटी बहू बहुत हसीन थीं. वे काफी पढ़ीलिखी भी थीं. नौकरचाकर भी छोटी बहू की तारीफ करते न थकते थे. मगर नवाब मियां हर खुशी से दूर हवेली के एक कोने में अपनी ही दुनिया में खोए रहते. न तो उन्हें अब कोई खुशी खुश करती थी और न ही गम उन्हें अब दुखी करता था. वे रातदिन किताबों में खोए रहते या हवेली के पास बाग में चहलकदमी करते रहते.

सालभर होने को आया, मगर किसी की हिम्मत न हुई कि नवाब मियां के रिश्ते की कोई बात भी करे, क्योंकि हर कोई जानता था कि नवाब मियां जिद के पक्के हैं और जब तक उन के दिल में यादों के जख्म हरे हैं, तब तक उन से बात करना बेमानी है.

अभी एक साल भी न होने पाया था कि छोटी बहू के पैर भारी होने की खबर से हवेली में एक बार फिर खुशियां छा गईं. सभी खुश थे कि हवेली में बरसों बाद किसी बच्चे की किलकारियां गूंजेंगी.

वह दिन भी आया. हवेली में छोटी बहू की तबीयत काफी बिगड़ गई थी. जैसेतैसे उन्हें शहर के बड़े अस्पताल में दाखिल कराया गया. मगर होनी को कौन टाल सकता है. सो, छोटी बहू नन्हे मियां को पैदा करने के बाद ही चल बसीं.

हवेली में कुहराम मच गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो छोटी बहू हवेली में खुशियां ले कर आई थी, वे इतनी जल्दी हवेली को वीरान कर जाएंगी. नौकरचाकरों का रोरो कर बुरा हाल था. जावेद मियां तो जैसे जड़ हो गए थे. उन की आंख में आंसू जैसे रहे ही न थे.

लाश को नहलाने के बाद जनाजा तैयार किया गया. जनाजा उठाते समय हवेली के बड़े दरवाजे पर नौकरानियां दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं. सभी औरतें हवेली के दरवाजे तक आईं और फिर वापस हवेली में चली गईं.

छोटी बहू को कब्र में रखने के बाद किसी ने बुलंद आवाज में कहा, ‘‘जिस किसी को छोटी बहू का मुंह आखिरी बार देखना है, वह देख ले.’’

नवाब मियां कब्रिस्तान में लोगों से दूर पीपल के पेड़ के पास खड़े थे. उन के दिल में भी खयाल आया कि आखिरी समय में छोटी बहू का एक बार चेहरा देख लिया जाए. आखिर वे उन के घर की बहू जो थीं.

कब्र के सिरहाने जा कर नवाब मियां ने थोड़ा झुक कर छोटी बहू का मुंह देखना चाहा. छोटी बहू का चेहरा बाईं तरफ थोड़ा घूमा हुआ था.

नवाब मियां ने जब छोटी बहू के चेहरे पर नजर डाली, तो वे बुरी तरह तड़प उठे. दोनों हाथों से अपना सीना दबाते हुए वे सीधे खड़े हुए. उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने सोचा कि अगर वे जल्द ही कब्र के पास से नहीं हटे, तो इस कब्र में ही गिर पड़ेंगे.

कब्र पर लकड़ी के तख्ते रखे जाने लगे थे और लोग कब्र पर मुट्ठियों से मिट्टी डालने लगे. नवाब  मियां ने भी दोनों हाथों में मिट्टी उठाई और छोटी बहू की कब्र पर डाल दी.

जिस चेहरे की तलाश में वे बरसों से बेकरार थे, आज उसी चेहरे पर वे हमेशा के लिए 2 मुट्ठी मिट्टी डाल चुके थे. Story In Hindi

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