Romantic Story: परिंदे प्यार के – अब्दुल लड़कियों को देखकर क्यों घबराता था?

Romantic Story: अब्दुल आज पहली बार कालेज जा रहा है, इसलिए थोड़ा सा नर्वस था.

“यार, क्या हुआ? तू तो लड़कियों के जैसे कर रहा है… इतना क्यों घबरा रहा है?” हामिद ने पूछा.

“यार, पता नहीं क्यों मुझे घबराहट क्यों हो रही है, वहां इतनी सारी लड़कियां होंगी न…”

“तो? लड़कियां तुझे खा जाएंगी क्या? चल, अब चलें. देर हो रही है.”

वे दोनों जैसे ही कालेज में एंटर हुए कि सामने से कुरतीसलवार पहने, दुपट्टा ओढ़े एक लड़की आई, जिस के लंबेघने बाल, गोराचिट्टा रंग, बड़ीबड़ी आंखों में काजल, चांद जैसे मुखड़े पर छोटा सा काला तिल था और अचानक से वह अब्दुल से टकरा गई. अब्दुल के हाथ से किताबें गिर गईं.

“ओह, सौरी. दरअसल, मैं जल्दी में थी. शायद बस से उतरते समय मेरा पर्स कहीं गिर गया, वही ढूंढ़ने जा रही हूं,” वह लड़की हड़बड़ाहट में बोली.

हामिद ने धीरे से कहा, “जी मोहतरमा, कहीं यह तो नहीं है… मुझे यह कालेज के गेट पर पड़ा मिला था. मैं ने उठा लिया और सोचा कि अंदर औफिस में जमा करा दूंगा, जिस का भी होगा खुद ले जाएगा.”

“जीजी, यही है…” पर्स लेते हुए वह लड़की बोली, “थैंक्स मिस्टर…”

“हामिद नाम है मेरा और यह मेरा दोस्त है… अब्दुल.”

“हामिदजी, अब्दुलजी… आप दोनों का शुक्रिया,” वह लड़की बोली.

“आप पर्स चैक कर लीजिए,” अब्दुल ने कहा.

“इस की कोई जरूरत नहीं. इस में पैसे तो थे ही नहीं.”

“पैसे नहीं थे… फिर क्या आप एक खाली पर्स के लिए इतनी परेशान हो रही थीं?”

“किसी की निशानी है, इसलिए… बहुत सी यादें जुड़ी हैं इस पर्स के साथ.”

अब्दुल ने कहा, “लगता है कोई बहुत खास शख्स है, जिस की यादें इस पर्स से जुड़ी हैं. मिस, क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?”

अचानक अब्दुल को इतना ज्यादा बोलता देख कर हामिद हैरान रह गया कि जो लड़का आज लड़कियों के नाम से घबरा रहा था, वह बेतकल्लुफ हो कर इस लड़की से बात कर रहा था.

“जी हां, बहुत ही खास. वैसे, सब मुझे खुशी कहते हैं,” इतना कह कर वह लड़की चली गई.

अब्दुल उसे जाते हुए देखता रह गया.

“अमा यार अब्दुल, अब चलो भी… क्लास का समय हो गया है,” हामिद ने कहा.

यह क्या… अब्दुल ने क्लास में जा कर देखा तो खुशी वहीं नजर आई.

“हामिद भाई, मुझे कुछ हो गया है, जो हर जगह मुझे खुशी ही नजर आ रही है,” अब्दुल ने कहा.

“यार, यह तेरा वहम नहीं है, सच है. खुशी भी इसी क्लास में पढ़ती है.”

यह सुन कर तो अब्दुल को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. वह खुशी के साथ बैंच पर बैठ गया.

हामिद अब्दुल के बरताव पर हैरान था. वह हर पल खुशी से या खुशी के बारे में ही बात करता था. खुशी भी अब्दुल की बातों से प्रभावित होती थी.

वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे. साथ में बैठना, साथ में खाना, बस हर समय मन कहता कि दोनों साथ रहें, अकसर फोन पर भी काफी देर तक बातें करते रहते.

“अब्दुल, क्या हुआ रे तुझे, तू आजकल बाकी सब से कटा सा रहता है, बस खुशी का ही नाम रटता है… लगता है कि तुझे प्यार हो गया है,” हामिद ने कहा.

“अमा हामिद, कैसी बात करते हो… प्यार और मैं… यह प्यार किस परिंदे का नाम है, मुझे तो यह भी नहीं मालूम,” अब्दुल बोलता.

इधर खुशी की सहेलियां उसे छेड़ती कि तुझे अब्दुल से प्यार हो गया है.

“हां शायद, मुझे भी ऐसा ही लगता है. उसे न देखूं तो मुझे चैन नहीं आता है,” खुशी भी बोलती.

फरवरी का महीना था. 2 दिन बाद वैलेंटाइन डे था. खुशी ने सोचा कि शायद अब्दुल उसे अपना वैलेंटाइन बनाएगा, लेकिन जब अब्दुल ने कुछ नहीं कहा, तो खुशी ही उसे लाल गुलाब दे दिया और बोली, “अब्दुल,
आई लव यू.”

“खुशी, मैं भी तुम्हें बहुत ज्यादा मुहब्बत करता हूं, लेकिन अभी मुझे आगे पढ़ना है और अपने अब्बा का सपना पूरा करना है.

“लेकिन क्या तुम्हारे घर वाले इस शादी के लिए मान जाएंगे? और क्या तुम मेरा इंतजार करोगी? वैसे, मैं ने अपने अम्मीअब्बू को सब बता दिया है. उन्हें कोई एतराज नहीं है.”

“मेरे मम्मीपापा भी नए खयालात के हैं, उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं होगा,” खुशी ने कहा.

उस दिन खुशी और अब्दुल बहुत खुश थे. मनचाही मुराद जो मिल गई थी. घूमतेफिरते शाम ढल गई. अचानक से बहुत जोरों से बारिश होने लगी. कोई बस भी नहीं रुक रही थी.

वे दोनों भीगतेभागते पैदल चलते जा रहे थे कि जहां कोई सवारी मिलेगी तो चढ़ जाएंगे, लेकिन कहीं कुछ नहीं रुक रहा था. वे बुरी तरह से थके हुए थे, उस पर भूख और बारिश से भीगने के चलते उन्हें ठंड महसूस हो रही थी.

रास्ते में एक गैस्ट हाउस नजर आया. वे थोड़ी देर वहीं रुके. कमरे में अकेले, जवानी का जोश, बारिश ने भी आग लगा दी थी, लिहाजा रोक नहीं पाए वे खुद को. एक तूफान आया और बहा दिया सबकुछ, छीन लिया दोनों का कुंआरापन.

खैर, जो होना था हो चुका था. उन दोनों ने अपनेअपने घर में पहले से बताया हुआ था कि वे शादी करना चाहते हैं. दोनों के घर वाले राजी थे.

अचानक कुछ दिनों बाद एक महामारी आई कोरोना, जिस में हिंदूमुसलिम जमात के बीच दंगाफसाद हुआ, एकदूजे पर तलवार, गोली, पत्थर चले.
सब का प्यार नफरत में बदल गया.

अब्दुल चीख रहा था, “अब्बा, उन्हें मत मारिए, वे खुशी के परिवार वाले हैं. खुशी आप की होने वाली बहू है… कुछ तो सोचिए.”

उधर खुशी चिल्ला रही थी, “पापा, अब्दुल मेरा प्यार है. आप उस के परिवार को कैसे मार सकते हैं…”

लेकिन कोई उन दोनों की नहीं सुन रहा था. सब के नए खयालात पीछे छूट गए थे, बस नजर आ रहा था तो केवल हिंदू या मुसलिम.

वे दोनों सब को मना करते हुए, समझातेसमझाते बीच में आ गए और मारे गए. अब दोनों परिवार अपने बच्चों की लाशें देख कर रो रहे थे, अपनेआप को धिक्कार रहे थे कि हिंदूमुसलिम के झगड़े में प्यार के 2 परिंदे उड़ गए, छोड़ गए यह मतलबी दुनिया.

अब वे दोनों आसमान में आजाद परिंदे बन कर अब उड़ेंगे, जहां न कोई हिंदू होगा, न मुसलिम, बस प्यार ही प्यार होगा.

Romantic Story: तेरी मेरी कहानी – कैसे बदल गई रिश्तों की परिभाषा

Romantic Story: नींद कोसों दूर थी. कुछ देर बिस्तर पर करवटें बदलने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे के आगे की छोटी सी बालकनी में जा खड़ा हुआ. पूरा चांद साफ आसमान में चुपड़ी रोटी की तरह दमक रहा था… कुछ फूला सा कुछ चकत्तों वाला, लेकिन बेहद खूबसूरत, दूरदूर तक चांदनी छिटकाता… धुले हुए से आसमान में तारे बिखरे हुए थे, बहुत चमकीले, हवा के संग झिलमिलाते. मंद बयार उस के कपोलों को सहला गई थी, आज हवा की उस छुअन में एक मादकता थी जो उसे कई बरस पीछे धकेल गई थी.

तब वह युवा था, बहुत से सपने लिए हुए… जिंदगी को दिशा न मिली थी पर मन में उत्साह था. आज जिंदा तो था पर जी कहां रहा था… एक आह के साथ वह वहां पड़ी कुरसी पर बैठ गया. सिगरेट बहुत दिन से छोड़ दी थी पर आज बेहद तलब महसूस हो रही थी, कमरे में गया और माचिस व सिगरेट की डिबिया उठा लाया, लौटते हुए दोनों बच्चों और पत्नी पर नजर पड़ी. वे अपनी स्वप्नों की दुनिया में गुम थे. अब वे ही उस की दुनिया थे पर आज जाने क्यों दिल हूक रहा था यह सोच कर कि उस की दुनिया कितनी अलग हो सकती थी…

ऐसी ही दूरदूर तक फैली चांदनी वाली रात तो थी, वह उन दिनों हारमोनियम सीखता था. सभी स्वर सधे हुए न थे पर कर्णप्रिय बजा लेता था. जाने चांदनी ने कुछ जादू किया था या फिर दबी हुई कामना ने पंख फैलाए थे. न जाने क्या सोच कर उस ने हारमोनियम उठाया था और बजाने लगा था… ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है…’ गीत का दर्द सुरों में पिघल कर दूर तक फैलता रहा था… रात गहरा चुकी थी, चांदनी को चुनौती देती कोई बिजली कहीं नहीं टिमटिमा रही थी पर शब्द जहां भेजे थे वहां पहुंच गए थे.

उस ने क्यों मान लिया था कि गीत उस के लिए बजाया गया था. चार शब्द कानों में बस गए थे… तेरी मेरी कहानी है और तब से दुनिया उस के लिए अपनी और उस की कहानी हो गई थी. वे बचपन में साथ खेले थे, वह लड़का था हमेशा जीतता पर वह कभी अपनी हार न मानती. वह हंसता हुआ कहता, ‘‘कल देखेंगे…’’ तो वह भी, ‘‘हांहां, कल देखेंगे,’’ कह कर भाग जाती. उसे यकीन था एक दिन वह जीतेगी. लड़की थी लेकिन बड़ेबड़े सपने देखती थी. वह उन दिनों की कुछ फिल्मों की नायिका की तरह बनना चाहती थी जो सबला व आत्मनिर्भर थी, एक ऐसी स्त्री जिस पर उस के आसपास की दुनिया टिकी हो.

कसबे के उस महल्ले में ज्यादातर घर एकमंजिले थे. बड़ेबड़े आंगन, एक ओर लाइन से कुछ कमरे, एक कोने में रसोई व भंडार जिस का प्रयोग सामान रखने के लिए अधिक होता था और खाना रसोई के बाहर अंगीठी रख कर पकाया जाता था, वहीं पतलीपतली दरियां बिछा कर खाना खाया जाता था. कोई मेहमान आता तो आंगन में चारपाई के आगे मेज रख दी जाती, गरमगरम रोटियां सिंकतीं और सीधे थाली में पहुंचतीं.

आंगन के बाहर वाले कोने की ओर 2 छोटे दरवाजे थे, शौच व गुसलखाने के. लगभग सभी घरों का ढांचा एकसा था. उस महल्ले में बस एक एकलौता घर तीनमंजिला था उस का. तीसरी मंजिल पर एक ही कमरा था, जिसे उस की पढ़ाई के लिए सब से उपयुक्त माना गया. आनेजाने वालों के शोर से परे वहां एकांत था. मामा के निर्देश थे कि मन लगा कर पढ़ाई की जाए. उस के और पढ़ाई के बीच कुछ न आए. मामा पुलिस में थे. ड्यूटी के कारण हफ्तों घर न आते थे. मामी और उन के 2 बच्चे उन के साथ रहते थे. घर में कुल मिला कर वह, उस की मां, उस के दादाजी, जिन्हें वह बाबा पुकारता था और मामी व उन के बच्चे रहते थे. वह समझ न पाता था कि मामा ने उस की विधवा मां को अकेले न रहने दे कर उसे सहारा दिया या अपना घोंसला न होने के कारण कोयल का चरित्र अपनाया. खैर जो भी कारण रहा हो, मामा उसे बहुत प्यार करते थे. घर में पित्रात्मक सत्ता प्रदान करते थे पर मामी ऐसी न थीं. मामा न होते तो मां से खूब झगड़तीं, शायद उन के मन में कुछ ग्रंथियां थीं. तीनमंजिला घर के भूतल पर वे रहते थे, बाहर बैठक थी और उस के साथ में एक गलियारा आंगन में ला छोड़ता था जहां एक ओर रसोई, सामने एक कमरा और कमरे के भीतर एक और कमरा था. बैठक में बाबाजी रहते थे, अंदर के कमरों में वे सब. पहली और दूसरी मंजिल के कुल 4 कमरों में कभी 3 किराएदार रहते तो कभी 4. उन कमरों का किराया उस के परिवार के लिए पर्याप्त था.

जब से उसे ऊपर वाला कमरा मिला था वह वहीं पर पढ़ाई करने लगा था. कमरे के बाहर छोटी सी 4 ईंटों की मुंडेर वाले छज्जे पर छोटी मेजकुरसी लगा कर वह पढ़ता… जानता था उसे कोई देख रहा है, पर वह किताब से नजरें न हटाता. बहुत होशियार न था पर पढ़ाई तो पूरी करनी ही थी. वह भटक भी नहीं सकता था, मां को दुख नहीं देना चाहता था. मामा प्रेरणा देते थे पर पिता की कमी को कब कोई पूरा कर पाया है? उस का मन पढ़ने में बहुत न था, उसे डाक्टर इंजीनियर न बनना था. कोई बड़े ख्वाब भी न थे, मामा जैसी नौकरी न करनी थी जिस में महीने के 25 दिन शहर से बाहर काटने पड़ें और बाकी के 5 दिन आप के घर वाले छठे दिन का इंतजार करें. उसे पिता सी पुरोहिताई भी नहीं करनी थी. एक समय इंटर पास बड़े माने रखता था. पर अब ऐसा न था. उस पर घर के गुजारे का बोझ न था पर जिंदगी बिताने को कुछ करना जरूरी था… भविष्य के विषय में संशय ही संशय था.

वह बारबार चबूतरे तक चक्कर लगा आती. चबूतरे से छज्जा साफ दिखाई पड़ता था, लेकिन उसे शाम को 8 से 9 बजे तक का बिजली की कटौती वाला समय पसंद था, क्योंकि मिट्टी के तेल के लैंप की आभा में पढ़ने वाले का चेहरा चमक उठता था. वह स्वयं अनदेखा रह कर उसे देख पाती. अब वे बच्चे न रहे थे, किशोरवय को बड़ी निगरानी में रखा जाता था, कोई बंदिश तो न थी, लेकिन पहले की उन्मुक्तता समाप्त हो गई थी. तब वह 10वीं में थी और वह 12वीं में था. वह अकसर सोचती, ‘काश, दोनों एक ही कक्षा में होते तो वह पढ़ाई और किताबों के आदानप्रदान के बहाने ही एकदूसरे से बात कर पाते. यदाकदा मां के काम से ताईजी के पास जाने में सामना हो जाता, पर बात न हो पाती,’ शायद मन के भीतर जो था, वह सामान्य बातचीत करने से भी रोकता था. संस्कारों में बंधे वे 2 युवामन कभी खुल न पाए. उस दिन भी नहीं जब अम्मां ने उसे गला बुनने की सलाई लेने भेजा था लेकिन ताईजी घर पर नहीं थीं और वह बैठक में अकेला था. वह चाह कर भी कह नहीं पाया कि दो पल रुको और वह मन होते भी रुक नहीं पाई. शायद वह तब भी सोच रहा था, ‘कल देखेंगे.’

दादाजी के गुजर जाने के बाद बहुत दिन तक बैठक खाली रही, फिर मां के कहने पर उस ने उसे अपना कमरा बना लिया. दादाजी के कमरे में आते ही उसे लगा वह बड़ा हो गया है. दोस्त पहले ही बहुत न थे, जो थे वे भी धीरेधीरे छूटते गए. मन बहलाव को कुछ तो चाहिए सो उस ने तीसरी मंजिल के कमरे में कबूतरों के दड़बे रख दिए थे. सुबहशाम वह कबूतरों को दानापानी देने ऊपर चढ़ता, कबूतरों को पंख पसारने के लिए ऊपर छोड़ता… और जब उन्हें वापस बुलाने को पुकारता आ आ आ… तो उसे लगता वह पुकार उस के लिए है. वह किसी न किसी बहाने छत पर चढ़ती, कभी कपड़े सुखाने, कभी छत पर सूख रहे कपड़े इकट्ठे करने तो कभी छोटे भाईबहनों को खेल खिलाने.

वह जिस अंगरेजी स्कूल में पढ़ती थी वह कक्षा 12वीं से आगे न था. वह शुरू से अंगरेजी स्कूल में पढ़ी थी. सरकारी स्कूल में जाने का स्वभाव न था… मौसी दिल्ली रहती थीं, उसे वहीं भेज दिया गया. वह भारी मन से चली थी, जाने से पहले की रात चांद पूरा खिला था, उस के कान हारमोनियम की आवाज को तरसते रहे… काश, एक बार वह सुन पाती पर उस रात कहीं कोई संगीत न था.

रात आंखों में कटी और सुबह तैयार हो गई. मां मौसी के घर छोड़ने गई थी. वह पिता की बात गांठ बांध कर साथ ले गई थी. मन लगा कर पढ़ना और कुछ बन कर लौटना.

वह पढ़ती रही, बढ़ती रही, यह संकल्प लिए कि कुछ बन कर ही लौटेगी. आज 10 बरस बाद लौटी. पिता बहुत खुश, मां बारबार आंख के कोने पोंछतीं, उसे देखती निहाल हो रही हैं. लड़की पढ़लिख कर सरकारी अफसर बन गई, आला अधिकारी. मौका लगते ही वह छत पर जा पहुंची. सब बदल गया था… कहीं कोई न था. महल्ले के ज्यादातर घर दोमंजिले हो गए थे, दूर कुछ तीनचार मंजिले घर भी दिखाई दे रहे थे.

शाम को बाहर चबूतरे पर निकली ही थी कि देखा एक छोटा बालक तीनमंजिले घर की देहरी पार कर बाहर निकल आया था, घुटनों के बल चलते उस बालक को उठाने का लोभ वह संवरण न कर पाई, ‘कहीं यह?’

वह उसे पहुंचाने के बहाने घर के भीतर ले गई थी. तेल चुपड़े बालों की कसी चोटी, सिर पर पल्ला, गोरी, सपाट चेहरे वाली एक महिला सामने आई और अपने मुन्ना को उस की बांहों में झूलते देख सकपका गई.

एक अजब सा क्षण, जब आमनेसामने दोनों के प्रश्न चेहरे पर गढ़े होते हैं किंतु शब्द खो जाते हैं… और एक मसीहा की तरह ताईजी आ गई थीं… ‘अरे, बिट्टो तुम, अभी तो शन्नो की अम्मां से सुना कि तुम आई हो… कितने बरस बाहर रहीं, आंखें तरस गईं तुम्हें देखने को… बहुत बड़ा कलेजा है तुम्हारी मां का जो इत्ती दूर छोड़े रही… बहू, रजनी जीजी के पैर छू कर आशीर्वाद लो, जानो कौन हैं ये?’ हां अम्मां, मैं समझ गई थी.

वह अचानक जिज्जी और बूआ बन गई.

तभी वह आया था, सामने के बाल उड़ चुके थे, सुना था किसी दुकान पर सहायक लगा था… खबरें तो कभीकभार मिलती रही थीं, उस के ब्याह की खबर भी मिली थी पर खबर मिलने और प्रत्यक्ष देखने में बड़ा अंतर होता है. इस सच से अब रूबरू हुई. 2 बच्चों का पिता 30-32 वर्ष का वह आदमी उस की कल्पना के पुरुष से बिलकुल अलग था.

पल भर के लिए वह वहां नहीं थी, मानो 10 सदी से लगने वाले 10 बरसों में उसे खोजने का प्रयास कर रही थी, देखना चाह रही थी कि उस के चेहरे की लकीरें इतना कैसे गहरा गईं.

उस ने नाम से संबोधित करते हुए कहा था… ‘‘रजनी, बैठो. खाना खा कर जाना…’’ उफ्फ, वह औपचारिकता भरी आवाज उस का कलेजा चीर गई थी. कसी चोटी वाली एक आत्मीयता भरी नजर भर तुरंत रसोई में चली गई थी, वह समझ नहीं पाई कि वह भोजन लगाने का निमंत्रण था या उस के लिए प्रस्थान करने का संकेत. वह क्षमा याचना सी करती, मां के इंतजार का बहाना कर ताईजी को प्रणाम कर लौट आई थी.

एक गहरी निश्वास के साथ उस के मुंह से निकला… ‘अब कल न होगी.’

वह समझ गया था कि कहीं कुछ चटका है, भीतर या बाहर, यह अंदाजा नहीं कर पा रहा था.

Romantic Story: जीत – क्या मंजरी को अपना पाया पीयूष का परिवार?

Romantic Story: वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को छेड़ रहे थे. बारबार लटें उस के गालों पर आ कर झूल जातीं, जिन्हें वह बहुत ही प्यार से पीछे कर देता. ऐसा करते हुए जब उस के हाथ उस के गालों को छूते तो वह सिहर उठती. कुछ कहने को उस के होंठ थरथराते तो वह हौले से उन पर अपनी उंगली रख देता. गुलाबी होंठ और गुलाबी हो जाते और चेहरे पर लालिमा की अनगिनत परतें उभर आतीं.

मात्र छुअन कितनी मदहोश कर सकती है. वह धीरे से मुसकराई. पेड़ से कुछ पत्तियां गिरीं और उस के सिर पर आ कर इस तरह बैठ गईं मानो इस से बेहतर कोमल कालीन कहीं नहीं मिलेगा. उस ने फूंक मार कर उन्हें उड़ा दिया जैसे उन लहराते गेसुओं को छूने का हक सिर्फ उस का ही हो.

वह पेड़ के तन से सट कर खड़ी हो गई और अपनी पलकें मूंद लीं. उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अप्रतिम प्रतिमा, जिस के अंगअंग को बखूबी तराशा गया हो. उसे देख कौन पुरुष होगा जो कामदेव नहीं बन जाएगा. उसे चूमने का मन हो आया. पर रुक गया. बस उसे अपलक देखता रहा. शायद यही प्यार की इंतहा होती है… जिसे चाहते हैं उसे यों ही निहारते रहने का मन करता है. उस के हर पल में डूबे रहने का मन करता है.

‘‘क्या सोच रही हो,’’ उस ने कुछ क्षण बाद पूछा.

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’ वह थोड़ी चौंकी पर पलकें अभी भी मुंदी हुई थीं.

‘‘चलें क्या? रात होने को है. तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

‘‘मन नहीं कर रहा है तुम्हें छोड़ कर जाने को. बहुत सारी आशंकाओं से घिरा हुआ है मन. तुम्हारे घर वाले इजाजत नहीं देंगे तो क्या होगा?’’

‘‘वे नहीं मानेंगे, यह बात मैं विश्वास से कह सकता हूं. गांव से बेशक आ कर मैं इतना बड़ा अफसर जरूर बन गया हूं और मेरे घर वाले शहर में आ कर रहने लगे हैं, पर मेरे मांबाबूजी की जड़ें अभी भी गांव में ही हैं. कह सकती हो कि रूढि़यों में जकड़े, अपने परिवेश व सोच में बंधे लोग हैं वे. पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बहू को स्वीकारना अभी भी उन के लिए बहुत आसान नहीं है. पर चलो इस चीज को स्वीकार भी कर लें तो भी दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाना… संभव ही नहीं है उन का मानना.’’

‘‘तुम खुल कर कह सकते हो यह बात पीयूष… दूसरी अन्य कोई जाति होती तो भी कुछ संभावना थी… पर मैं तो मायनौरिटी क्लास की हूं… आरक्षण वाली…’’ उस के स्वर में कंपन था और आंखों में नमी तैर रही थी.

‘‘कम औन मंजरी, इस जमाने में ऐसी बातें… वह भी इतनी हाइली ऐजुकेटेड होने के बाद. तुम अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़ी हो. फिलौसफी की लैक्चरर के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती हैं. ऊंची जाति नीची जाति सदियों पहले की बातें हैं. अब तो ये धारणाएं बदल चुकी हैं. नई पीढ़ी इन्हें नहीं मानती…

‘‘पुरानी पीढ़ी को बदलने में ज्यादा समय लगता है. दोष देना गलत होगा उन्हें भी. मान्यताओं, रिवाजों और धर्म के नाम पर न जाने कितनी संकीर्णताएं फैली हुई हैं. पर हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा.’’

मंजरी ने पीयूष की ओर देखा. ढेर सारा प्यार उस पर उमड़ आया. सही तो कह रहा है वह… पर न जाने क्यों वही बारबार हिम्मत हार जाती है. शायद अपनी निम्न जाति की वजह से या पीयूष की उच्च जाति के कारण. वह भी ब्राह्मण कुल का होने के कारण. बेशक वह जनेऊ धारण नहीं करता. पर उस के घर वालों को अपने उच्च कुल पर अभिमान है और इस में गलत भी कुछ नहीं है.

वह भी तो निम्न जाति की होने के कारण कभीकभी कितनी हीनभावना से भर जाती है. उस के पिता खुद एक बड़े अफसर हैं और भाई भी डाक्टर है. पर फिर भी लोग मौका मिलते ही उन्हें यह याद दिलाना नहीं भूलते कि वे मायनौरिटी क्लास के हैं. उन का पढ़ालिखा होना या समाज में स्टेटस होना कोई माने नहीं रखता. दबी जबान से ही सही वे उस के परिवार के बारे में कुछ न कुछ कहने से चूकते नहीं हैं.

मंजरी ने पेड़ के तने को छुआ. काश, वह सेब का पेड़ होता तो जमाने को यह तो कह सकते थे कि सेब खाने के बाद उन दोनों के अंदर भावनाएं उमड़ीं और वे एकदूसरे में समा गए. खैर, सेब का पेड़ अगर दोनों ढूंढ़ने जाते तो बहुत वक्त लग जाता, शहर जो कंक्रीट में तबदील हो रहे हैं. उस में हरियाली की थोड़ीबहुत छटा ही बची रही, यही काफी है.

उस ने अपने विश्वास को संबल देने के लिए पीयूष के हाथों पर अपनी पकड़ और

कस ली और उस की आंखों में झांका जैसे तसल्ली कर लेना चाहती हो कि वह हमेशा उस का साथ देगा.

इस समय दोनों की आंखों में प्रेम का अथाह समुद्र लहरा रहा था. उन्होंने मानों एकदूसरे को आंखों ही आंखों में कोई वचन सा दिया. अपने रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगाई और आलिंगनबद्ध हो गए. यह भी सच था कि पीयूष मंजरी को चाह कर भी आश्वस्त नहीं कर पा रहा था कि वह अपने घर वालों को मना लेगा. हां, खुद उस का हमेशा बना रहने का विश्वास जरूर दे सकता था.

मंजरी को उस के घर के बाहर छोड़ कर बोझिल मन से वह अपने घर की

ओर चल पड़ा. रास्ते में कई बार कार दूसरे वाहनों से टकरातेटकराते बची. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे घर में इस बारे में बताए. वह अपने मांबाबूजी को दोष नहीं दे रहा था. उस ने भी तो जब परंपराओं और आस्थाओं की गठरी का बोझ उठाए आज से 10 वर्ष पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कदम रखा था तब कहां सोचा था कि उस की जिंदगी इतनी बदल जाएगी और सड़ीगली परंपराओं की गठरी को उतार फेंकने में वह सफल हो पाएगा… शायद मंजरी से मिलने के बाद ऐसा करने की हिम्मत जुटा पाया था.

जातिभेद किसी दीवार की तरह समाज में खड़े हैं और शिक्षित वर्ग तक उस दीवार को अपनी सुलझी हुई सोच और बौद्धिकता के हथौड़े से तोड़ पाने में असमर्थ है. अपनी विवशता पर हालांकि यह वर्ग बहुत झुंझलाता भी है… पीयूष को स्वयं पर बहुत झुंझलाहट हुई.

‘‘क्या बात है बेटा, कोई परेशानी है क्या?’’ मां ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बस ऐसे ही,’’ उस ने बात टालने की कोशिश की.

‘‘कुछ लड़कियों के फोटो तेरे कमरे में रखे हैं. देख ले.’’

‘‘मैं आप से कह चुका हूं कि मैं शादी नहीं करना चाहता,’’ पीयूष को लगा कि उस की झुंझलाहट चरम सीमा पर पहुंच रही है.

‘‘तू किसी को पसंद करता है तो बता दे,’’ बाबूजी ने सीधेसीधे सवाल फेंका. अनुभव की पैनी नजर शायद उस के दिल की बात समझ गई थी.

‘‘है तो पर आप उसे अपनाएंगे नहीं और मैं आप लोगों की मरजी के बिना अपनी गृहस्थी नहीं बसाना चाहता. मुझे लायक बनाने में आप ने कितने कष्ट उठाए हैं और मैं नहीं चाहता कि आप लोगों को दुख पहुंचे.’’

‘‘तेरे सुख और खुशी से बढ़ कर और कोई चीज हमारे लिए माने नहीं रखती है. लड़की क्या दूसरी जाति की है जो तू इतना हिचक रहा है बताने में?’’ बाबूजी ने यह बात पूछ पीयूष की मुश्किल को जैसे आसान कर दिया.

‘‘हां.’’

उस का जवाब सुन मां का चेहरा उतर गया. आंखों में आंसू तैरने लगे. बाबूजी अभी चिल्लाएंगे यह सोच कर वह अपने कमरे की ओर जाने के लिए मुड़ा ही था कि बोले, ‘‘किस जाति की?’’

‘‘बाबूजी वह बहुत पढ़ीलिखी है. लैक्चरर है और उस के घर में भी सब हाइली क्वालीफाइड हैं. जाति महत्त्व नहीं रखती, पर एकदूसरे को समझना ज्यादा जरूरी है,’’ बहुत हिम्मत कर वह बोला.

‘‘बहुत माने रखती है जाति वरना क्यों बनती ऐसी सामाजिक व्यवस्था. भारत में जाति सीमा को लांघना 2 राष्ट्रों की सीमाओं को लांघना है. अभी सुबह के अखबार में पढ़ रहा था कि पंजाब में एक युवक ने अपनी शादी के महज 1 हफ्ते बाद केवल इस कारण आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे शादी के बाद पता चला कि उस की पत्नी दलित जाति की है. उस की शादी एक बिचौलिए के माध्यम से हुई थी. इस बात का खुलासा तब हुआ जब वह अपनी ससुराल गया. दलित पत्नी पा कर वह आत्मग्लानि और अपराधबोध से इस कदर व्यथित हो गया कि ससुराल से लौट कर उस ने आत्महत्या कर ली. तुम भी कहीं प्यार के चक्कर में पड़ कर कोई गलत कदम मत उठा लेना.’’

बाबूजी की बात सुन पीयूष को अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई. मंजरी ने जब यह सुना तो उदास हो गई.

पीयूष बोला, ‘‘एक आइडिया आया है. मैं अपनी कुलीग के रूप में तुम्हें उन से मिलवाता हूं. तुम से मिल कर उन्हें अवश्य ही अच्छा लगेगा. फिर देखते हैं उन का रिएक्शन. रूढि़यां हावी होती हैं या तुम्हारे संस्कार व सोच.’’

मंजरी ने मना कर दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस का अपमान हो. उस के बाद से मंजरी अपनेआप में इतनी सिमट गई कि उस ने पीयूष से मिलना तक कम कर दिया. संडे को अपने डिप्रैशन से बाहर आने के लिए वह शौपिंग करने मौल चली गई. एक महिला जो ऐस्कलेटर पर पांव रखने की कोशिश कर रही थी, वह घबराहट में उस पर ही गिर गई. मंजरी उन के पीछे ही थी. उस ने झट से उन्हें उठाया और हाथ पकड़ कर उन्हें नीचे उतार लाई.

‘‘आप कहें तो मैं आप को घर छोड़ सकती हूं. आप की सांस भी फूल रही है.’’

‘‘बेटा, तुम्हें कष्ट तो होगा पर छोड़ दोगी तो अच्छा होगा. मुझे दमा है. मैं अकेली आती नहीं पर घर में सब इस बात का मजाक उड़ाते हैं. इसलिए चली आई.’’

घर पर मंजरी को देख पीयूष बुरी तरह चौंक गया. पर मंजरी ने उसे इशारा किया कि

वह न बताए कि वे एकदूसरे को जानते हैं. पीयूष की मां तो बस उस के गुण ही गाए जा रही थीं. बहुत जल्द ही वह उन के साथ घुलमिल गई. पीयूष की बहन ने तो फौरन नंबर भी ऐक्सचेंज कर लिए. जबतब वे व्हाट्सऐप पर चैट करने लगीं. मां ने कहा कि वह उसे घर पर आने के लिए कहे. इस तरह मंजरी के कदम उस आंगन में पड़ने लगे, जहां वह हमेशा के लिए आना चाहती थी.

पीयूष इस बात से हैरान था कि जाति को ले कर इतने कट्टर रहने वाले उस के मातापिता ने एक बार भी उस की जाति के बारे में नहीं पूछा. शायद अनुमान लगा लिया होगा कि उस जैसी लड़की उच्च कुल की ही होगी. उस के पिता व भाई के बारे में जान कर भी उन्हें तसल्ली हो गई थी.

मंजरी को लगा कि उस दिन पीयूष ने ठीक ही कहा था कि हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा. पीयूष जब उस के साथ है तो उसे भी लगातार कोशिश करते रहना होगा. मांबाबूजी का दिल जीत कर ही वह अपनी और पीयूष दोनों की लड़ाई जीत सकती है.

हालांकि जब भी वह पीयूष के घर जाती थी तो यही कोशिश करती थी कि उन की रसोई में न जाए. उसे डर था कि सचाई जानने के बाद अवश्य ही मां को लगेगा कि उस ने उन का धर्म भ्रष्ट कर दिया है. एक सकुचाहट व संकोच सदा उस पर हावी रहता था. पर दिल के किसी कोने में एक आशा जाग गई थी जिस की वजह से वह उन के बुलाने पर वहां चली जाती थी.

कई बार उस ने अपनी जाति के बारे में बताना चाहा पर पीयूष ने यह कह कर मना कर दिया कि जब मांबाबूजी तुम्हें गुणों की वजह से पसंद करने लगे हैं तो क्यों बेकार में इस बात को उठाना. सही वक्त आने पर उन्हें बता देंगे.

‘‘तुझे मंजरी कैसी लगती है?’’ एक दिन मां के मुंह से यह सुन पीयूष हैरान रह गया.

‘‘अच्छी है.’’

‘‘बस अच्छी है, अरे बहुत अच्छी है. तू कहे तो इस से तेरे रिश्ते की बात चलाऊं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो मां. पता नहीं कौन जाति की है. दलित हुई तो…’’ पीयूष ने जानबूझ कर कहा. वह उन्हें टटोलना चाह रहा था.

‘‘फालतू मत बोल… अगर हुई भी तो भी बहू बना लूंगी,’’ मां ने कहा. पर उन्हें क्या पता था कि उन का मजाक उन पर ही भारी पड़ेगा.

‘‘ठीक है फिर मैं उस से शादी करने को तैयार हूं. उस के पापा को कल ही बुला लेते हैं.’’

‘‘यानी… कहीं यह वही लड़की तो नहीं जिस से तू प्यार करता है,’’ बाबूजी सशंकित हो उठे थे.

‘‘मुझे तो मंजरी दीदी बहुत पसंद हैं मां,’’ बेटी की बात सुन मां हलके से मुसकराईं.

मंजरी नीची जाति की कैसे हो सकती है… उन से पहचानने में कैसे भूल हो गई. पर वह तो कितनी सुशील, संस्कारी और बड़ों की इज्जत करने वाली लड़की है. बहुत सारी ब्राह्मण लड़कियां देखी थीं, पर कितनी अकड़ थी. बदमिजाज… कुछ ने तो कह दिया कि शादी के बाद अलग रहेंगी. कुछ के बाप ने दहेज दे कर पीयूष को खरीदने की कोशिश की और कहा कि उसे घरजमाई बन कर रहना होगा.

‘‘क्या सोच रही हो पीयूष की मां?’’ बाबूजी के चेहरे पर तनाव की रेखाएं नहीं थीं जैसे वे इस रिश्ते को स्वीकारने की राह पर अपना पहला कदम रख चुके हों.

‘‘क्या हमारे बदलने का समय आ गया है? आखिर कब तक दलित बुद्धिजीवी अपनी जातीय पीड़ा को सहेंगे? हमें उन्हें उन की पीड़ा से मुक्त करना ही होगा. तभी तो वे खुल कर सांस ले पाएंगे. हमारी बिरादरी में हमारी थूथू होगी. पर बेटे की खुशी की खातिर मैं यह भी सह लूंगी.’’

पीयूष अभी तक अचंभित था. रूढि़यों को मंजरी के व्यवहार ने परास्त कर दिया था.

‘‘सोच क्या रहा है खड़ेखड़े, चल मंजरी को फोन कर और कह कि मैं उस से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, तुम कितनी अच्छी हो, मैं अभी भाभी को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर सरप्राइज देती हूं,’’ पीयूष की बहन ने चहकते हुए कहा.

वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को इस बार भी छेड़ रहे थे. उसे अपलक निहारतेनिहारते उसे चूमने का मन हो आया. पर इस बार वह रुका नहीं.

उस ने उस के गालों को हलके से चूम लिया. मंजरी शरमा गई. अपनी सारी आशंकाओं को उतार फेंक वह पीयूष की बांहों में समा गई. उसे उस का प्यार व सम्मान दोनों मिल गए थे. पीयूष को लगा कि वह जैसे कोई बहुत बड़ी लड़ाई जीत गया है.

Romantic Story: लिव टुगैदर का मायाजाल – हर सुख से क्यों वंचित थी सपना

Romantic Story: ‘अभी तुम 10-15 मिनट हो न यहां?’’ वैभव ने गार्डन में निशा के करीब जा कर पूछा.

‘‘कुछ काम है?’’ निशा ने पलट कर सवाल किया.

निशा का यह औपचारिक व्यवहार वैभव को अजीब लगा. वह झेंपता हुआ बोला, ‘‘कोई काम नहीं है. बस, तुम्हें न्यू ईयर का गिफ्ट देना है. तुम्हारे लिए एक डायरी खरीद कर रखी है. तुम पहली जनवरी को तो आई नहीं, 10 को आई हो. मैं कई दिन डायरी ले कर गार्डन आया, लेकिन आज नहीं ले कर आया. रुकना, मैं डायरी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम डायरी लेने घर जाओगे? रहने दो, मुझे नहीं चाहिए. कई डायरियां हैं घर में,’’ निशा बोली.

‘‘यह मैं ने कब कहा कि तुम्हारे पास डायरी नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ है. बस, मेरी खुशी के लिए ले लो. मैं ने बड़े प्रेम से उसे तुम्हारे लिए रखा है. मैं लेने जा रहा हूं,’’ निशा के जवाब को सुने बिना वैभव वहां से चला गया.

कुछ देर बाद वह बतौर गिफ्ट डायरी ले कर गार्डन में वापस आया. तब तक निशा के आसपास काफी लोग आ गए थे. वहां उस ने गिफ्ट देना उचित नहीं समझा, लेकिन जब निशा गार्डन से जाने लगी तो वैभव रास्ते में उस से मिला.

‘‘लो,’’ वैभव ने डायरी आगे बढ़ाते हुए बड़े प्रेम से कहा.

लेकिन निशा ने डायरी लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया. वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘लो,’’ वैभव ने दोबारा कहा.

‘‘नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती,’’ निशा ने सीधे शब्दों में इनकार कर दिया.

‘‘आखिर क्यों?’’ वैभव ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए जानना चाहा.

‘‘मैं घरपरिवार वाली हूं, मैं इसे किसी भी हालत में नहीं ले सकती,’’ निशा यह कह कर आगे बढ़ गई.

इस बार वैभव ने भी कुछ नहीं कहा. उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा. वह डायरी को अपनी कमीज के नीचे छिपाते हुए विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा. उस की आंखों में आंसू उमड़ आए थे. कुछ दूर चलने के बाद वह एकांत में बैठ गया और सोचने लगा कि वह उस डायरी का क्या करे?

तभी उस के मन में आया कि डायरी को वह योग सिखाने वाले गुरुजी को दे देगा. तत्काल उस ने उस पृष्ठ को फाड़ा, जिस पर बड़े प्यार से निशा को संबोधित करते हुए नववर्ष की शुभकामना लिखी थी. उस ने जा कर गुरुजी को डायरी दे दी. गुरुजी ने गिफ्ट सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसे आशीर्वाद दिया, लेकिन उसे वह खुशी नहीं मिली, जो निशा से मिलती. अभी भी उस का मन अशांत था और वह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक छोटी सी डायरी स्वीकार करने में निशा ने इतनी हठ क्यों दिखाई.

वह तरहतरह की बातें सोच रहा था, ‘चलो, इस गिफ्ट के बहाने हकीकत पता लग गई. जिस निशा को मैं जीजान से चाहता हूं, उस के मन में मेरे प्रति इतनी भी भावना नहीं है कि वह मेरा गिफ्ट तक ले सके. मैं भ्रम में जी रहा था.

‘अब उस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. आज से सारा रिश्ता खत्म…नहीं…नहीं, लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊंगा? क्या मैं उस से दूर रह कर जी पाऊंगा…शायद नहीं…क्यों नहीं जी पाऊंगा? उस से दूरी तो बना ही सकता हूं. दूर से देख लिया करूंगा, लेकिन मिलूंगा नहीं और न ही बात करूंगा. वह यही तो चाहती है. कब उस ने मुझ से मन से बात की? मैं ही तो उस से बात करता था. 10 शब्द बोलता था तो ‘हांहूं’ वह भी कर देती थी. कोई लगाव थोड़े ही था. लगाव तो मेरा था कि उस के बिना रातदिन बेचैन रहा करता था. उस के लिए तड़पता रहा, जिस ने आज मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया.

‘अगर ऐसा मालूम होता तो मैं उसे गिफ्ट देने का विचार ही मन में न लाता. ऐसी बेइज्जती मेरी इस से पहले कभी नहीं हुई. अब मैं उस से नजरें मिलाने लायक भी नहीं रहा. क्या मुंह ले कर उस के सामने जाऊंगा? अब तो दूरी ही ठीक है.’

लेकिन क्या ऐसा सोचने से मन बदल सकता था वैभव का? उस का प्यार बारबार उस पर हावी हो जाता और वह निशा से दूर रहने का निर्णय ले पाने में असफल हो जाता.

दिनभर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह बेचैन रहा. उसे रात को ठीक से नींद भी नहीं आई. तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे.

वह उस बात को अपनी पत्नी सरिता से भी शेयर नहीं कर सकता था. हालांकि निशा के बारे में वह सरिता को बताया करता था, लेकिन यह बताने की उस की हिम्मत न थी. उसे डर था कि सरिता उस का मजाक उड़ाएगी. अंदर ही अंदर वह घुट रहा था.

अगले दिन सुबह 5 बजे वह जागा. रात को उस ने निश्चय किया था कि कुछ दिन तक वह गार्डन नहीं जाएगा, लेकिन सुबह खुद को रोक नहीं सका. निशा की एक झलक पाने के लिए वह बेचैन हो उठा और घर से चल पड़ा.

रास्ते में तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे, ‘आज निशा मिलेगी तो उस से बात नहीं करूंगा. अभिवादन भी नहीं. वह अपनेआप को समझती क्या है? उसे खुद पर घमंड है, तो मैं भी किसी मामले में उस से कम नहीं हूं. उस से मेरा कोई स्वार्थ नहीं है. बस, एक लगाव है, अपनापन है, जिसे वह गलत समझती है.’

लेकिन जब गार्डन आती हुई निशा अचानक दिखी, तो वैभव खुद को रोक नहीं पाया. वह उसे देखने लगा. निशा भी उसी की ओर देख रही थी. वैभव के मन में आया कि वह रास्ता बदल ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

निशा वैभव के करीब आ गई, लेकिन वह उस की ओर न देख कर सामने देख रही थी. वैभव की निगाहें उसी पर थीं. वह सोच रहा था, ‘देखो न, आज इस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. जाओजाओ, मैं ही कौन सा मरा जा रहा हूं, तुम से बात करने के लिए. मैं आज निशा की तरफ बिलकुल नहीं देखूंगा आखिर वह अपनेआप को समझती क्या है और ऐसे ही कब तक अपनी मनमरजी चलाती है.‘

तभी निशा उस की ओर पलटी. वैभव के हाथ तत्काल अभिवादन की मुद्रा में जुड़ गए. निशा ने भी अभिवादन का जवाब दिया, लेकिन आगे उन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

इस के बाद गार्डन में दोनों अपनेअपने क्रियाकलाप में लग गए, लेकिन वैभव का मन बारबार निशा की ओर भाग रहा था.

ऐसे ही कई दिन गुजर गए. वैभव को निशा के बिना चैन नहीं था, लेकिन वह ऊपर से खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करता कि जैसे उस का निशा से कोई सरोकार ही नहीं है.

निशा सबकुछ समझ रही थी. एक दिन उस ने वैभव को रोका और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘नाराज हो क्या?’’

‘‘नहीं. नाराज उन से हुआ जाता है, जो अपने हों. आप से मैं क्यों नाराज होने लगा?’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ‘‘कुछ भी कहो, लेकिन नाराज तो हो. तुम्हारा चेहरा, दिल का हाल बयान कर रहा है, लेकिन तुम ने मेरी मजबूरी नहीं समझी.’’

‘‘एक छोटा सा गिफ्ट लेने में क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने तल्खी के साथ पूछा.

‘‘मजबूरी थी, वैभव. तुम ने समझने की कोशिश नहीं की,’’ निशा ने कहा.

‘‘मैं भी जानूं कि क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने जानना चाहा.

‘‘वैभव, सिर्फ भावनाओं से ही काम नहीं चलता. आगेपीछे भी सोचना पड़ता है. मैं ने कहा था न कि मैं घरपरिवार वाली हूं. तुम ने इस पर तो विचार नहीं किया और नाराज हो कर बैठ गए,’’ निशा ने कहा, ‘‘मैं अगर तुम्हारा गिफ्ट ले कर घर जाती तो घर के लोगपूछते कि किस ने दिया? सोचो, मैं क्या जवाब देती?

‘‘डायरी में तुम ने अपना नाम तो जरूर लिखा होगा. तुम्हारा नाम देख कर घर वाले क्या सोचते? इस बारे में तो तुम ने कुछ सोचा नहीं. बस, मुंह फुला लिया. बेवजह शक पैदा होता और मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाती. ऐसा भी हो सकता था कि मेरा गार्डन में आना हमेशा के लिए बंद हो जाता. तब हम दोनों मिल भी न पाते.’’

यह सुन कर वैभव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और वह बोला, ‘‘तुम अपनी जगह सही थी, निशा.

‘‘तुम ने तो बड़ी समझदारी का काम किया. मुझे माफ कर दो. तुम्हारा फैसला ठीक था.

‘‘अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. एक छोटा सा गिफ्ट तुम्हें वाकई परेशानी में डाल सकता था.’’

Romantic Story: विराम – क्यों मोहिनी अपने पति को भूल गई?

Romantic Story: आज महेश सुबह बिना नहाएधोए ही उपन्यास पढ़ने बैठ गया. यकायक उस की नजर एक शब्द पर आ कर रुक गई और चेहरे का उजास उदासी में बदल गया. ‘उस का’ नाम उपन्यास की एक पंक्ति में लिखा हुआ था. उदास मन से वह सोचने लगा कि आज मोहिनी को उस से बिछड़े हुए एक अरसा हो गया और आज उस का नाम इस तरह से क्यों उस के मन में दस्तक दे रहा है? यह मात्र संयोग है या और कुछ? वैसे तो एक जैसे हजारों नाम होते हैं मगर महेश ने लंबे समय से उस का नाम कहीं पढ़ासुना नहीं था, तो इस प्रकार की बेचैनी स्वाभाविक थी. अचानक ही उस का बेचैन मन उस से मिलने की हूंक भरने लगा. मगर यह इतना आसान कहां था? उस ने दिल की इस अभिलाषा को पूरा करने का काम दिमाग को सौंप दिया. उस को अपने रणनीति विशेषज्ञ दिमाग पर पूरा भरोसा था.

महेश की एक कजिन थी विशाखा. विशाखा मोहिनी की पड़ोसिन थी. वह मोहिनी की खास सहेली थी मगर महेश कभी उस से मोहिनी के विषय में बात करने का साहस नहीं जुटा पाया. पर एक दिन बातोंबातों में ही उस ने विशाखा से मोहिनी के पति का नाम वगैरह जान लिया. फिर महेश ने मोहिनी के पति शाम को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. श्याम ने उस की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. उस की हसरतों को एक खुशनुमा ठहराव मिला. यहां से महेश और श्याम फेसबुकफ्रैंड बन गए. अब मिशन शुरू हो चुका था.

महेश श्याम की फेसबुक पोस्ट्स पर कमैंट्स या लाइक्स जरूर देता. अब लाइक और कमैंट की वजह से महेश और श्याम में जानपहचान भी हो चुकी थी. वैचारिक रूप से भी काफी करीब आ चुके थे दोनों.

एक दिन महेश ने श्याम से उस का पर्सनल नंबर मांगा, ‘‘मेरे सभी फेसबुक फ्रैंड्स का नंबर मेरे पास है. आप भी दे दें. कभी न कभी मुलाकात भी होगी.’’

इस पर श्याम ने कहा, ‘‘कभी हमारे शहर आना हो तो जरूर मिलिएगा. मुझे खुशी होगी.’’ महेश तो इसी मौके की तलाश में था. अगले हफ्ते सैकेंड सैटरडे था. महेश को वह दिन उपयुक्त लगा और उस दिन महेश उस के शहर पहुंच गया. उस ने मोहिनी के पति को कौल किया कि मैं अपनी कंपनी के किसी काम से आया हुआ था. सोचा आप से भी मिलता चलूं. आप कृपया अपना पता बता दें.’’ ‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ कह कर श्याम ने फोन रख दिया.

‘‘बस चंद मिनट का फासला है मेरे और मोहिनी के बीच,’’ महेश सोच रहा था. इसी मौके का तो बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह. एक सपना सच होने जा रहा था. ‘‘उसे करीब से देखूंगा तो कैसा महसूस होगा, वह अब कैसी दिखती होगी, उस ने क्या पहना होगा…?’’ ढेर सारी अटकलों में घिरा उस का बावरा मन व्याकुल हुआ जा रहा था.

तभी श्याम उसे लेने आ गए. दोनों ने एकदूसरे के हालचाल पूछे. फिर वे महेश को ले कर अपने साथ अपने घर पहुंचे और पानी लाने के लिए अपनी पत्नी को आवाज दी.

अपने दिल की धड़कनों पर काबू करते हुए महेश ने दरवाजे की ओर आंखें गड़ा दी

थीं कि अब मोहिनी ही पानी ले कर आएगी. लेकिन पल भर में ही उम्मीदों पर पानी फिर गया. पानी नौकरानी ले कर आई. इतने में

श्याम बोले, ‘‘मैं ने आप की फेसबुक प्रोफाइल देखी है. आप तो राजनीति पर अच्छाखासा लिख लेते हैं.’’ ‘‘आप भी तो कहां कम हैं जनाब,’’ महेश ने हंसते हुए जवाब दिया.

फिर सिलसिला चल पड़ा चर्चाओं का… लोकल पौलिटिक्स, गांव और शहर की समस्या, आतंकवाद और न जाने क्याक्या. बातों ही बातों में महेश का स्वर एकदम से रुक गया. आंखें पथरा गईं. चेहरे पर सन्नाटा छा गया. सोफे और कुरसी की हलचल थम सी गई. श्याम महेश की भावभंगिमा परख तो पा रहे थे, मगर समझ नहीं पा रहे थे.

यह क्या? अपने हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए वह महेश के सामने खड़ी थी. उस की आंखों में अनुराग की अकल्पनीय असीमता थी. उस का चेहरा चंचलता की स्वाभाविक आभा से अलौकित हो रहा था और उस के होंठों पर मधुरिमा मुसकान थी. महेश की रगों में उसे छूने की अतिउत्सुकता जाग उठी. उस का मन कर रहा था कि इसी पल उसे आलिंगनबद्ध कर ले. किंतु यह संभव नहीं था. वह ज्योंज्यों महेश के करीब आ रही थी त्योंत्यों महेश की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. ‘‘कैसे हो?’’ उस ने महेश को चाय का प्याला थमाते हुए पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं और आप कैसी हो?’’ महेश ने पूछा. उस का जी और महेश का आप नाटकीयता का प्रकर्ष था.

मोहिनी ने कहा, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’ मोहिनी के पति आश्चर्य से दोनों का चेहरा देख रहे थे. उन के मन में उठते हुए भावों को मोहिनी पढ़ चुकी थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं आप को बताना भूल गई, मैं इन को जानती हूं… मेरी जो सहेली है विशाखा, जिस से मैं ने आप को अपनी शादी में मिलवाया था, ये उस के कजिन हैं. इन से एकदो बार विशाखा के घर पर ही मुलाकात हुई थी. तभी से जानती हूं.’’

प्रेम अपने वास्तविक धरातल पर आ ही जाता है. महेश को यकीन नहीं हो रहा था और शायद मोहिनी को भी. 2 प्रेमी आमनेसामने खड़े थे और महेश चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था. दोनों के बीच अब समाज की दीवार थी. महेश श्याम से बात कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि सब सही रहे. फिर भी महेश की आंखें उसी की चंदन सी काया को निहार रही थीं. ‘‘ढेर सारी बातें और किस्से हो गए. अब चलूंगा, आज्ञा दीजिए,’’ कह कर महेश जाने के लिए उठने लगा.

‘‘अरे, कहां जा रहे हो? खाना तैयार है. आप पता नहीं फिर कब आओगे,’’ श्याम ने कहा. एक अजब सी कशमकश थी मन में. महेश आत्मीय निवेदन ठुकराने का दुस्साहस नहीं कर सका और बैठ गया. महेश को जब भोजन परोसा जा रहा था तब वह रसोई से आतीजाती मोहिनी को बड़े ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था, ‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है… वैसे ही तेज कदमों से चलना, हाल बदले थे पर चाल वैसी ही थी… उस के हाथ का बना खाना बहुत स्वादिष्ठ था.’’

भोजन किया और निकलने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप अपना नंबर दे दो. विशाखा को दे दूंगा. आप को बहुत मिस करती है.’’ मोहिनी ने पति की तरफ देखा और स्वीकृति मिलने पर नंबर दे दिया. इसी के साथ महेश की यह अंतिम इच्छा भी पूरी हो गई.

पूरी रात मोहिनी सोचती रही कि महेश उस का नंबर ले कर गया है तो कौल भी जरूर करेगा. महेश से कैसे मिले और कैसे उस को समझाए कि अब हालात बदल गए हैं? महेश उस को अगले दिन से ही फोन करने लगा. मोहिनी 4-7 दिन तक तो उस की कौल को अवौइड करती रही, पर बाद में महेश से बात करने का निश्चय किया.

महेश, ‘‘क्या इतनी पराई हो गई हो कि मिलने भी नहीं आ सकतीं?’’ मोहिनी, ‘‘अब मेरा नाम किसी और के नाम के साथ जुड़ चुका है.’’

महेश, ‘‘ये दूरियां जिंदगी भर की होंगी, ये सोचा न था.’’ मोहिनी, ‘‘तुम ही तो चाहते थे ऐसा. याद करो तुम ने ही कहा था कि यह मेरी गलतफहमी है. प्यार नहीं है तुम्हें मुझ से. और हो भी नहीं सकता. साथ ही यह भी कहा था कि मुझ से प्यार कर के कुछ नहीं पाओगी. क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रही हो. अच्छा लड़का देखो और शादी कर के जाओ यहां से. मेरा क्या है.’’

महेश, ‘‘सब याद है मुझे,’’ कई बार जिंदगी में कुछ ऐसे फैसले करने पड़ते हैं कि आप चाह कर भी उन को बदल नहीं सकते. मेरे पास कुछ नहीं था उस समय तुम्हें देने के लिए, खोखला हो चुका था मैं.’’ मोहिनी, ‘‘ऐसा क्यों हुआ अब सोचने से कोई फायदा नहीं.’’

महेश, ‘‘तुम तो जानती हो मेरे मातापिता अपनी पसंद की लड़की से ही मेरा विवाह कराना चाहते थे. मां की जिद थी कि उन की सहेली की लड़की से ही मेरा विवाह हो.’’ मोहिनी, ‘‘तुम ने उन्हें मेरे बारे में नहीं बताया.’’

महेश, ‘‘बताना चाहता था, पर उन को अपनी जिद के आगे मेरी खुशी नहीं दिखाई दे रही थी. मुझे उन्हें समझाने के लिए कुछ वक्त चाहिए था. मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहता था.’’ मोहिनी, ‘‘और मेरे दिल का क्या होगा? मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा.’’

महेश, ‘‘सोचा था, बहुत सोचा था, लेकिन जिंदगी के भंवर में बुरी तरह फंस चुका था. जब तक वे मानते तब तक तुम्हारा विवाह हो चुका था. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. अब तो इस भंवर से बाहर आ कर मेरे साथ चल पड़ो. तुम भी अपने पति से प्यार नहीं करती हो, यह मैं जान गया हूं.’’ मोहिनी, ‘‘वे बहुत अच्छे हैं. अब मैं उन का साथ नहीं छोड़ सकती.’’

महेश, ‘‘क्यों बेनामी के रिश्ते को जी रही हो, घुटघुट के जीना मंजूर है तुम्हें?’’ मोहिनी, ‘‘समाज ने नाम दिया है इस रिश्ते को. तो बेनामी कैसे हुआ? मैं उन के साथ बहुत खुश हूं.’’

महेश, ‘‘प्लीज छोड़ दो सब कुछ और भाग चलो मेरे साथ. हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे. चले जाएंगे यहां से बहुत दूर. मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगा जितना किसी ने आज तक न किया हो.’’ मोहिनी, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. अब मेरे साथ मेरी ही नहीं, किसी और की भी जिंदगी जुड़ी है.’’

महेश, ‘‘इस का मतलब तुम मेरा प्यार भूल गई हो या फिर वह सब झूठ था.’’ मोहिनी, ‘‘प्यार एक एहसास होता है उन ओस की बूंदों की तरह जो धरती में समा जाती हैं और फिर किसी को नजर नहीं आतीं. हमारा प्यार भी ओस की बूंदों की तरह था, जो हमेशा मेरे दिल की जमीन पर समाहित रहेगा. इस एहसास को किसी रिश्ते का नाम देना जरूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ कुछ पलों के लिए जिस राह पर चली थी. वह बहुत ही खुशगवार थी. उन राहों में लिखी कहानी शायद मैं कभी नहीं मिटा पाऊंगी. लेकिन अब और उन राहों पर नहीं चल पाऊंगी. मैं तुम से बहुत प्यार करती थी और शायद आज भी करती हूं और करती रहूंगी पर…’’

महेश, ‘‘पर क्या?’’ मोहिनी, ‘‘अब हम एक नहीं हो सकते. तुम्हारा प्यार हमेशा याद बन कर मेरे दिल में रहेगा. अब तुम कोई दूसरा हमसफर ढूंढ़ लो. मैं 4 कदम चली तो थी मंजिल पाने के लिए पर कुदरत ने मेरी राह ही बदल दी.’’

महेश, ‘‘तुम चाहो तो फिर से राह बदल सकती हो.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार का एहसास ही काफी है मेरे लिए. प्यार को प्यार ही रहने दो. कभीकभी जीवन में कुछ रिश्तों को नाम देना जरूरी नहीं होता. क्या हम दोनों के लिए इतना ही काफी नहीं कि हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया.’’

‘‘सब कह दिया है तुम ने. बस एक आखिरी सवाल का जवाब भी दे दो,’’ महेश ने कहा. ‘‘हां, पूछो,’’ मोहिनी बोली.

‘‘आज तक, कभी एक मिनट या एक सैकंड के लिए भी तुम मुझे भूल पाईं,’’ महेश ने पूछा. ‘‘नहीं,’’ अपनी हिचकियों को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए मोहिनी बोली.

महेश, ‘‘एक वादा चाहता हूं तुम से.’’ मोहिनी, ‘‘क्या?’’

महेश, ‘‘वादा करो जिंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत महसूस होगी, तुम मुझे फौरन याद करोगी. मैं दुनिया के किसी भी कोने में होऊंगा, तो भी जरूर आऊंगा. चलो खुश रहना. कोशिश करूंगा कि दोबारा कभी तुम्हें परेशान न करूं. लेकिन दोस्त बन कर तो तुम से मिलने आ ही सकता हूं?’’ मोहिनी, ‘‘नहीं अब हम कभी नहीं मिलेंगे. दोस्ती को प्यार में बदल सकते हैं पर प्यार दोस्ती में नहीं. मेरे जीवन की आखिरी सांस तक मैं तुम्हें नहीं भूलूंगी.’’

मोहिनी, इतने पर ही नहीं रुकी, ‘‘सवाल तो बहुत से थे, मन में. बस आज उन सवालों पर विराम लगाती हूं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि तुम मुझे प्यार करते हो.’’ महेश, ‘‘यह कैसा प्यार है. चाह कर भी मैं तुम्हें छू नहीं सकता. तुम्हें देख नहीं सकता. तुम से बात नहीं कर सकता.’’

मोहिनी, ‘‘यह फैसला तुम्हारा था. अब तुम्हें अपने फैसले का सम्मान करना चाहिए. बहुत देर हो गई. बस यही चाहूंगी कि तुम सदा खुश रहो और कामयाबी की ओर बढ़ते रहो, बाय.’’ महेश, ‘‘बाय.’’

महेश को दूर से आते एक गीत के बोल सुनाई दे रहे थे, ‘क्यों जिंदगी की राह में मजबूर हो गए इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए…’

Romantic Story: धोखा – काश वासना के उस खेल को समझ पाती शशि

Romantic Story: घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’ ‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था. ‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’ ‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’ कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’ ‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली. ‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’ ‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा. ‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’ ‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’ शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा. शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’ ‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया. ‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’ ‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’ थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’ ‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’ ‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा. ‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’ ‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’ 1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’ जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’ शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई. सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’ ‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे. शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया. राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप रहना पड़ा था. ‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा. अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

Romantic Story: सबक – आखिर कैसे बदल गई निशा?

Romantic Story, Writer- Nima Sharma

सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास 2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया.

‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

News Story: क्रिकेट और फिक्सिंग का गड़बड़झाला

News Story: अनामिका ने सोचा, ‘मैं ने केक का कोई और्डर नहीं दिया था और न ही किसी और से कहा था, तो फिर यह किस ने सरप्राइज दिया? विजय से तो अभी कहासुनी हुई है. कहीं उसी ने तो यह केक नहीं भिजवाया है?’

अनामिका ने दरवाजा खोला, तो विजय को डिलीवरी बौय की ड्रैस में देख कर हंसने लगी और बोली, ‘‘तुम पागलवागल तो नहीं हो… यह क्या हुलिया बना रखा है. पर, सच कहूं, तो इस ड्रैस में जंच रहे हो…’’

‘‘हो गई तुम्हारी मसखरी. यार, जैसे तुम नाक फुला कर आई हो न, मु झे तो लगा था कि तुम मु झे भगा दोगी. सौरी, मैं ने वह सब कहा, जो तुम से कहना नहीं चाहिए था,’’ विजय ने ईमानदारी के साथ कहा.

‘‘अरे बेबी, ठीक है. बहस अपनी जगह है और रिश्ता अपनी जगह. लेकिन कभी किसी को उस की जाति से जज नहीं करना चाहिए. मु झे दुख हुआ था, क्योंकि तुम ने मानो मेरे पापा की सारी मेहनत को एकदम से ही खारिज कर दिया था.’’

‘‘अनामिका, आई लव यू. चलो, अब मुंह मीठा करते हैं. तुम्हारा फेवरेट केक लाया हूं,’’ विजय बोला.

‘‘हमारी कैफे वाली डेट तो खराब हो गई थी, पर आज यह केक वाली डेट नहीं खराब होनी चाहिए. तुम अंदर आओ. मैं 5 मिनट में तैयार होती हूं. हम यह केक किसी पार्क में खाएंगे. मौसम भी अच्छा है और आज संडे भी है,’’ अनामिका बोली और सीधा अपने बाथरूम में जा घुसी.

थोड़ी देर के बाद अनामिका तैयार हो कर आई, तो उसे याद आया कि विजय तो डिलीवरी बौय की ड्रैस में है. वह बोली, ‘‘चलें, डिलीवरी बौय…’’

‘‘यार, तुम मेरी ज्यादा टांग मत खींचो. वैसे भी पार्क में किस के पास टाइम होगा मेरी ड्रैस पर ध्यान देने का.’’

पर विजय की एक ड्रैस वहां रखी थी. उस ने कपड़े बदल लिए थे. थोड़ी देर के बाद अनामिका और विजय एक बड़े से पार्कनुमा ग्राउंड में बैठे थे. चूंकि छुट्टी का दिन था, तो वहां कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. वे दोनों एक बैंच पर जा कर बैठ गए और केक का लुत्फ उठाने लगे. रास्ते में उन्होंने कोल्डड्रिंक और कुछ चिप्स भी खरीद लिए थे.

‘‘अनामिका, याद है, जब उस दिन हम दोनों में जाति को ले कर तीखी बहस हुई थी, तब तुम्हारे जाने के बाद मैं ने सुधा दीदी को फोन कर के सब बता दिया था. यह केक लाने का आइडिया उन्हीं का था,’’ विजय ने कहा.

‘‘वही मैं सोचूं कि तुम में तो इतनी अक्ल है नहीं कि मेरे लिए केक ले आओ,’’ अनामिका हंसते हुए बोली.

‘‘वैरी फनी… और मारो ताना,’’ इतना कह कर विजय बच्चों का क्रिकेट मैच देखने लगा.

अनामिका जानती है कि विजय को क्रिकेट बहुत पसंद है. खेलना भी और देखना भी. वह बोली, ‘‘यार, इन बच्चों को देखो. सस्ते से बैट, गेंद भी ज्यादा महंगी नहीं, 3 विकेट और वे भी बिना बेल्स की… फिर भी इन सब के चेहरे ध्यान से देखो… कितना ऐंजौय कर रहे हैं ये सब.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, पर जब मैच स्टेडियम में हो, जहां लाखों की भीड़ अपने पसंदीदा खिलाड़ी को चीयर कर रही हो, हर चौकेछक्के पर चीयरलीडर्स डांस कर रही हों, डीजे पर गाने बज रहे हों, तो मजा ही कुछ और आता है,’’ विजय ने अपनी ही धुन में कह दिया.

‘‘ओ हैलो, खेल तो खेल है. ये सामने खेल रहे बच्चे भी वही कर रहे हैं, जो स्टेडियम में स्टार क्रिकेटर करते हैं. वैसे भी मु झे यह खेल समझ ही नहीं आता है. मैदान पर अंपायर मिला कर 15 लोग होते हैं, पर हरकत में या तो गेंदबाज दिखता है या फिर बल्लेबाज. ज्यादा से ज्यादा वह फील्डर, जो बल्लेबाज के शौट पर गेंद उठाने जाता है. बाकी सब तो बुत ही बने खड़े रहते हैं.

‘‘सच कहूं, तो मु झे तो क्रिकेट पसंद ही नहीं है. इस से अच्छे खेल तो हमारे गुल्लीडंडा और पिट्ठू हैं. हर खिलाड़ी चौकस रहता है. थोड़ी ही देर में सब पसीनापसीना.’’

‘‘क्या तुम ने कभी आईपीएल का मैच स्टेडियम में देखा है? माहौल ही अलग होता है, जैसे कोई उत्सव.

नएनए खिलाड़ी एक मैच में बढि़या खेल कर रातोंरात स्टार बन जाते हैं,’’ विजय ने थोड़ा मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘पर, फिर भी मु झे इस खेल से बढि़या तो स्विमिंग लगता है. हर तैराक को अपना बैस्ट देना होता है. सब को बराबर का मौका मिलता है. जो ज्यादा बड़ा और तेज तैराक, वही जीतता है.

‘‘अमेरिका का महान तैराक माइकल फेल्प्स का नाम तो याद होगा ही. उन्होंने ओलिंपिक खेलों में अकेले कुल 28 मैडल जीते हैं. इन में कुल 23 गोल्ड मैडल, 3 सिल्वर मैडल और 2 ब्रौंज मैडल शामिल हैं.

‘‘और सिंक्रोनाइज्ड स्विमिंग तो सुना ही होगा. माइकल फेल्प्स तो अकेला तैराक था, जिस ने अपने दम पर इतना ज्यादा नाम कमाया, पर सिंक्रोनाइज्ड स्विमिंग में तो टीम वर्क होता है. इस में कई तैराकों को संगीत की लय पर पानी में अपनी तैराकी का प्रदर्शन करना पड़ता है, जिस में डांस और जिमनास्टिक शामिल रहते हैं.’’

‘‘तुम क्रिकेट पसंद नहीं करती तो क्या इस की वैल्यू खत्म हो जाती है… इस खेल में पैसा है, नाम है, इज्जत है… और क्या चाहिए किसी को…’’ विजय ने कहा.

‘‘और मैच फिक्सिंग भी… सट्टेबाजी भी… क्यों?’’ अनामिका बोली, ‘‘अभी आईपीएल में भी यही खबर चल रही है. इस पर भी थोड़ी रोशनी डालिए विजय सरजी…’’ अनामिका बोली.

विजय पहले तो चुप रहा, पर अनामिका के ज्यादा जोर देने पर वह बोला, ‘‘खबरों के मुताबिक तो इंडियन प्रीमियर लीग पर मैच फिक्सिंग का साया मंडरा रहा है. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने मैच फिक्सिंग के डर को देखते हुए सभी फ्रैंचाइजी मालिकों, खिलाडि़यों और सहयोगी स्टाफ ही नहीं, बल्कि कमेंटेटर्स तक को चेतावनी जारी कर दी है.

‘‘बीसीसीआई की भ्रष्टाचार निरोधक सुरक्षा इकाई का मानना है कि हैदराबाद का एक तथाकथित कारोबारी के सट्टेबाजों से संबंध हैं. ऐसे में कोई भी उस के लालच के झांसे में न आए.

‘‘इतना ही नहीं, उस कारोबारी को टीम के होटलों और मैचों में भी देखा गया है, जहां वह खिलाडि़यों और कर्मचारियों से दोस्ती करने की कोशिश करता है और उन्हें निजी पार्टियों में इनवाइट करता है. ऐसी घटनाएं भी हुई हैं, जब उस ने न केवल खिलाडि़यों को, बल्कि उन के परिवारों को भी उपहार दिए हैं.

‘‘रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि इस शख्स द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरीए विदेश में रहने वाले खिलाडि़यों या कोचों के रिश्तेदारों से संपर्क करने की भी कोशिश की गई है.’’

‘‘पर आईपीएल के छठे सीजन में भी तो एक टीम के प्रदर्शन से ऐसा महसूस हुआ था कि मैच फिक्स किया गया था. यह क्या मामला था?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘अच्छा, वह मामला. आईपीएल के छठे सीजन में मैच फिक्सिंग के आरोप के बाद राजस्थान रौयल्स टीम के 3 खिलाड़ी एस. श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

हालांकि, लीग तो चलती रही थी, लेकिन राजस्थान रौयल्स पर 2 साल का बैन लगा था. खिलाडि़यों को कोर्ट से लंबी लड़ाई के बाद क्लीन चिट मिल गई थी, लेकिन उस के बाद उन का कैरियर चौपट हो गया था.

‘‘चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक एन. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन पर भी धोखाधड़ी के आरोप लगे थे. इस के चलते इस टीम पर 2 साल का बैन भी लगा था. हालांकि, बाद में कोर्ट ने इस मामले में भी क्लीन चिट दे दी थी.’’

‘‘इस बार भी राजस्थान रौयल्स टीम पर आरोप लगे हैं. राजस्थान क्रिकेट संघ की तदर्थ समिति के संयोजक जयदीप बिहानी ने टीम पर मैच फिक्सिंग में शामिल होने का आरोप लगाया था,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘यह खबर भी आई थी. इंडियन प्रीमियर लीग की फ्रैंचाइजी राजस्थान रौयल्स टीम लखनऊ सुपर जायंट्स के खिलाफ चौंकाने वाली हार के बाद विवादों में घिर गई थी.

‘‘मैच नंबर 36 में 181 रनों के टारगेट का पीछा करते हुए संजू सैमसन की अगुआई वाली टीम को आखिरी ओवर में जीत के लिए सिर्फ 9 रन चाहिए थे और उस के पास 6 विकेट भी हाथ में थे, लेकिन सभी को चौंकाते हुए टीम 2 रन से मुकाबला हार गई थी.

‘‘इस से पहले भी राजस्थान रौयल्स टीम दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ एक और मैच में आखिरी ओवर में 9 रन नहीं बना सकी थी, जबकि 7 विकेट बाकी थे. राजस्थान रौयल्स यह मुकाबला सुपर ओवर में हार गई थी.

‘‘पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगने से क्रिकेट की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. आज भी लोग क्रिकेट मैच देखने के लिए हजारों रुपए खर्च करते हैं,’’ विजय बोला.

‘‘पर, यह गलत है. खेल मनोरंजन के लिए होता है. और अगर कोई मैच फिक्स है या उस पर सट्टा लग रहा है, तो यह खेल प्रेमियों के साथ चीटिंग है. उन्हें भरमाया जा रहा है. खेल पर पैसा हावी है और यह क्रिकेट की साख पर बट्टा लगा रहा है,’’ अनामिका बोली और विजय के पास से उठ कर उन बच्चों के पास जा बैठी, जो उस क्रिकेट मैच का मजा ले रहे थे. उन बच्चों में से एक मायूस बैठा था. अनामिका ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम्हें क्रिकेट देखना पसंद नहीं है क्या?’’

वह बच्चा बोला, ‘‘ऐसा नहीं है दीदी, पर ये बड़े बच्चे मुझे खेलने का मौका ही नहीं देते हैं. हर रविवार को बुला लेते हैं, पर सिर्फ फील्डिंग करा कर भगा देते हैं. न बल्लेबाजी करने देते हैं और न ही गेंदबाजी.’’

इतने में एक बल्लेबाज ने एक ऐसा जोरदार शौट लगाया कि गेंद सीधा अनामिका के कंधे पर आ कर लगी. वह दर्द से बिलबिला उठी.

बल्लेबाज ने वहीं से कहा, ‘‘सौरी दीदी…’’

पर तब तक विजय भागता हुआ उस बल्लेबाज के पास पहुंच गया और उस का कान उमेठते हुए बोला, ‘‘खेलने की तमीज नहीं है. भला कोई इतनी तेज शौट मारता है क्या…’’

वह लड़का शर्मिंदा हो कर बोला, ‘‘भैया, मैं ने जानबू झ कर नहीं मारा.’’

इतने में अनामिका भी वहां पहुंच गई और विजय से बोली, ‘‘बच्चे को क्यों डांट रहे हो? अपनी भड़ास इस पर मत निकालो. खेल में तो छोटीमोटी चोट लगती रहती है. तुम इन्हें धमका कर इन सब का खेल मत खराब करो.’’

‘‘तुम्हारा दर्द कैसा है अब?’’ विजय ने पूछा.

‘‘तुम्हारी इस हरकत ने और बढ़ा दिया है. तुम्हें बच्चे को नहीं डांटना चाहिए था. मैं जा रही हूं,’’ इतना कह कर अनामिका वहां से जाने लगी.

विजय को लगा कि इतनी मुश्किल से तो अनामिका मानी थी, पर अब फिर नाराज हो गई है. वह उस के पीछे भागा और उस बच्चे से बोला, ‘‘सौरी, तुम सब खेलो. पर, आगे से ध्यान रखना कि किसी को चोट न लगे.’’

वह लड़का बोला, ‘‘कोई बात नहीं भैया, आप पहले दीदी को मनाओ. कहीं आप क्लीन बोल्ड न हो जाओ.’’

उस लड़के के इतना कहते ही बाकी बच्चे भी हंसने लगे. यह बात अनामिका ने भी सुन ली थी. वह मुसकराई जरूर, पर पलट कर नहीं देखा.

Funny Story: स से सरकारी शिक्षक, स से सत्यानाश

Funny Story: शर्माजी दिल्ली से पटना जाने वाली ट्रेन में सवार हुए. विंडो सीट पर बैठा साथी मुसाफिर हथेली पर खैनी रगड़ रहा था. तय समय पर ट्रेन चल पड़ी. थोड़ी देर बाद उस साथी मुसाफिर ने शर्माजी से बातचीत करना शुरू कर दिया और बीचबीच में खैनी मिले थूक को खिड़की से बाहर ट्रांसफर कर रहा था.

नाम, पता और मंजिल की जानकारी लेने के बाद वह साथी मुसाफिर पूछ बैठा, ‘‘और बताइए शर्माजी, क्या करते हैं आप?’’

शर्माजी ने कहा, ‘‘भाई, आज की तारीख में धरती पर कौन सा ऐसा काम है, जो हम नहीं करते.’’

साथी मुसाफिर ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप का मतलब…?’’

शर्माजी ने बताया, ‘‘भाई साहब, हम लोगों के घर जाजा कर उन के परिवार की पूरी जानकारी जमा करते हैं. मसलन, परिवार में कितने लोग हैं, उन की उम्र, पढ़ाईलिखाई वगैरह…’’

साथी मुसाफिर ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘अजी, हम सम झ गए… आप जनगणना महकमे में काम करते हैं.’’

शर्माजी ने हलकी मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘अरे, नहीं भाई. कैंप लगा कर कभी बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाते हैं, तो कभी अपने संस्थान में पेट के कीड़ों की गोली, एनीमिया की गोली, तो कभी हैपेटाइटिस का टीका भी लगवाते हैं.’’

साथी मुसाफिर तपाक से बोला, ‘‘सम झ गए, आप हैल्थ महकमे में कंपाउंडर हैं.’’

शर्माजी दोबारा मुसकराते हुए बोले, ‘‘अभी भी आप नहीं सम झे… हम न छोटेछोटे बच्चों को अपने संस्थान में दोपहर में मुफ्त भोजन करवाते हैं,

हर साल कपड़े, साइकिल वगैरह भी बांटते हैं…’’

साथी मुसाफिर ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘तो ऐसा बोलिए न कि आप एनजीओ चलाते हैं. वाकई, बड़ा नेक काम कर रहे हैं भाई आप.’’

शर्माजी खिलखिला कर हंसते हुए बोले, ‘‘भैया, हम कोई एनजीओ या रिलायंस जियो नहीं चलाते हैं. हम तो संस्थान के लिए कपड़ा, चावल, अंडा, कौपीकिताब, जूताचप्पल, राजमा वगैरह की खरीदारी करते हैं और उस का हिसाबकिताब रखते हैं.’’

वह साथी मुसाफिर फिर बोला, ‘‘अच्छाअच्छा, आप अकाउंटैंट हैं.’’

शर्माजी भी अपनी गरदन हिलाते हुए बोले, ‘‘नहीं, वह भी नहीं हैं. दरअसल, मैं पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव से ले कर संसदीय चुनाव तक करवाता हूं.’’

साथी मुसाफिर मुसकराते हुए बोला, ‘‘तो ऐसे बोलिए न महाराज कि इलैक्शन कमीशन में काम करते हैं.’’

शर्माजी फिर बोले, ‘‘न… अभी भी आप नहीं सम झ पाए. हम वह भी नहीं हैं. वैसे, हम छात्रों को हर महीने स्कौलरशिप भी बांटते हैं.’’

साथी मुसाफिर ने चौंकते हुए कहा, ‘‘कहीं आप जनकल्याण महकमे में बड़े अफसर तो नहीं हैं…’’

शर्माजी ने गरदन उचकाते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं भाई, बड़ा अफसर बनना हमारे नसीब में कहां… वैसे, कभीकभी हम अपने हक के लिए सरकार के खिलाफ मोरचा खोल कर अधनंगा आंदोलन भी करते हैं. हालांकि, इस के एवज में हम पुलिस की लाठियां भी खा लेते हैं.’’

साथी मुसाफिर ने सिर खुजाते हुए कहा, ‘‘मतलब, आप या तो क्रांतिकारी हैं या फिर समाजसेवी…’’

शर्माजी तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘कमाल करते हैं भाई, क्या मैं आप को असामाजिक तत्त्व दिख रहा हूं? आप की जानकारी के लिए मैं बता दूं कि असामाजिक तत्त्वों और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कभीकभी हमें दंडाधिकारी भी बनना पड़ता है.’’

साथी मुसाफिर हैरानी से देखते हुए बोला, ‘‘तो फिर आप किसी कोर्ट में मजिस्ट्रेट हैं…’’

शर्माजी ने यह सुन कर भी ‘न’ के संकेत में मुंह बनाया.

साथी मुसाफिर ने झुं झलाते हुए कहा, ‘‘गजब है जनाब, आप तो अपनेआप में एक पहेली हैं जी. आखिर आप किस महकमे में और किस पद पर काम करते हैं भाई?’’

शर्माजी ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘देखिए, जब हम इन कामों से फ्री होते हैं, तो कभीकभी बच्चों को पढ़ालिखा भी देते हैं.’’

साथी मुसाफिर खैनी को खिड़की से बाहर थूकते हुए धीरे से कहा, ‘‘मतलब, कहीं आप सरकारी स्कूल मास्टर…’’

शर्माजी ने उस आदमी के कंधे पर हाथ रख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘एकदम सही पकड़े हैं आप. दरअसल, मैं ‘शिक्षक दिवस’ पर हुए एक कार्यक्रम में सम्मानित होने के लिए दिल्ली आया था.’’

Hindi Story: एक अंबर सूना सा

Hindi Story: ‘‘अंबर, क्या कह रहे हो तुम… बहू को तलाक चाहिए… पर अभी तुम्हारी शादी को तो सिर्फ 4 महीने ही हुए हैं,’’ मां ने हैरान होते हुए कहा.

‘‘आप लोगों के कहने पर मैं ने शादी कर ली थी, पर अब दिल्ली की एक लड़की यहां इस छोटे से शहर में खुश नहीं रह पा रही है, तो मैं क्या करूं,’’ अंबर ने झल्लाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मैं बहू से बात करती हूं… देखती हूं कि माजरा क्या है,’’ मां ने कहा और अंदर चली गईं.

दिल्ली से 800 किलोमीटर की दूरी पर तराई के इलाके में बसा हुआ यह छोटा सा शहर था. यहां पर गन्ने की फसल ज्यादा होने के चलते लोग इसे ‘चीनी का कटोरा’ भी कहते थे.

इस जगह पर आज से 20 साल पहले देव रायजादा ने एक इंगलिश मीडियम स्कूल की स्थापना की थी और इसी जगह को अपनी कर्मभूमि भी बनाया था.

अच्छे स्कूलों की कमी के चलते देव रायजादा का ‘स्टार इंटरनैशनल स्कूल’ खूब चलने लगा था और देव रायजादा ने इस छोटी सी जगह पर अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था.

देव रायजादा के 2 बेटे थे. बड़े बेटे का नाम अंबर और छोटे बेटे का नाम धीरज था. दोनों की पढ़ाईलिखाई नैनीताल में हुई थी. जब बड़ा बेटा अंबर नैनीताल में मैनेजमैंट का कोर्स पूरा कर के आया, तो देव रायजादा ने अपना स्कूल का बिजनैस उसे सौंपने में जरा भी देर नहीं की.

इस के बाद अंबर ने स्कूल में कई मौडर्न बदलाव किए. पहले से बेहतर स्टाफ बहाल किया और कुछ दिनों में ही ‘स्टार इंटरनैशनल स्कूल’ की गिनती शहर के ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के अच्छे स्कूलों में होने लगी.

स्कूल चलने लगा, तो देव रायजादा निश्चिंत हो गए और अंबर की शादी के लिए लड़की तलाशने लगे. अब अगर लड़का अच्छी पढ़ाई कर के आया है, तो लड़की भी पढ़ीलिखी और ऊंचे घराने की होनी चाहिए.

अंबर ने शादी के लिए बहुत नानुकर भी की, पर देव रायजादा को अपने बेटे की शादी कराने की बड़ी हसरत थी, इसलिए अंबर भी कुछ कह न सका.

अंबर की शादी दिल्ली से हुई थी. लड़की विद्या भी बड़े घराने से थी. विदाई के बाद वह ससुराल आ गई.

जहां ससुराल आने के बाद लड़की के चेहरे पर चमक आनी चाहिए, वहां विद्या का चेहरा मुरझाने लगा.

सभी घर के लोगों ने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि शादी के बाद पहली बार ससुराल आने पर थोड़ाबहुत एडजस्ट करने में समय तो लगता ही है.

पर आज अचानक से बहू के द्वारा तलाक दिए जाने की बात ने सब को हिला कर रख दिया था, पर अंबर अब भी सामान्य ही दिख रहा था.

मां ने जब बहू से तलाक की वजह जाननी चाही, तो उस ने नपेतुले शब्दों में उन से यह कह दिया, ‘‘तलाक के पीछे की वजह आप अपने बेटे से ही पूछिएगा,’’ कह कर विद्या अपने मायके जाने की तैयारी करने लगी.

सब को लग रहा था कि हो सकता है कि पतिपत्नी में कोई ?ागड़ा हुआ हो और बहुत मुमकिन है कि विद्या वापस आ जाए, पर काफी समय बीतने के बाद भी विद्या तो नहीं आई, अलबत्ता तलाक के लिए उस के वकील का फोन जरूर आ गया.

तलाक देने के लिए अंबर भी उत्सुक दिखा. इस तरह अंबर और विद्या में तलाक हो गया.

कितने नाजों से अंबर की शादी कराई थी देव रायजादा ने और शादी के बाद इतनी जल्दी बेटे का तलाक हो जाने से देव रायजादा और उन की पत्नी बहुत दुखी हो रहे थे. पूरे कसबे में उन की किरकिरी हो रही थी.

अपनी पूरी जिंदगी में देव रायजादा ने औरतों को दोयम दर्जे की निगाह से ही देखा था और अपने स्कूल में
काम करने वाली हर औरत का जिस्मानी और दिमागी शोषण करने में भी देव रायजादा का कोई सानी नहीं था.

स्कूल के होस्टल में महिला वार्डन के पद पर जो भी महिला आती, देव रायजादा उस से पहले तो बहुत शालीनता से पेश आते, फिर धीरेधीरे उस से हंसीठिठोली और मजाक का मौका देख कर उसे अपनी हवस का शिकार बना लेते.

अगर महिला वार्डन को अपना जिस्मानी शोषण कराना मंजूर होता, तो वह चुपचाप काम करती रहती और अगर कोई इस के खिलाफ आवाज उठाती तो देव रायजादा उस पर ?ाठे आरोप लगा कर उसे नौकरी से ही निकाल देते थे.

कुछ इस तरह की नजर देव रायजादा रखते थे अपने महिला स्टाफ पर और आज उसी का लड़का ऐसा नकारा निकेलगा, जिस से अपनी एक खूबसूरत बीवी भी नहीं संभाली जाएगी, यह बात देव रायजादा के लिए बहुत बेइज्जती वाली थी.

एक तरफ तो देव रायजादा कसबे के एक इज्जतदार आदमी के रूप में अपनेआप को दिखाते थे, तो वहीं दूसरी तरफ उन का असली चेहरा एक ऐयाश का था, पर उन की बीवी मालिनी उतनी ही अंधविश्वासी और तंत्रमंत्र में यकीन करने वाली थीं. अपने विशाल भवन में वास्तु के आधार पर कुछ न कुछ तोड़फोड़ कराना व साधु और तांत्रिकों को अनुष्ठान के नाम पर घर पर बुलवाना और कुछ न कुछ देते रहना देव रायजादा के परिवार का पसंदीदा काम था.

‘‘देखो, हमारा अंबर कितना हैंडसम है. शादी में घोड़ी पर बैठा हुआ कितना बांका जवान लग रहा था. मैं तो कहती हूं कि हो न हो, उसे किसी की बुरी नजर लग गई है,’’ मालिनी ने अपने पति देव रायजादा से चिंता जाहिर की, तो उन की हां में हां मिलाते हुए देव रायजादा भी सोच में पड़ गए.

‘‘आप कहें तो हम एक तांत्रिक को बुला कर अंबर की बुरी नजर उतरवा दें, ताकि उस की जिंदगी भी दोबारा पटरी पर आ सके?’’ मालिनी ने कहा, तो देव रायजादा भी उन का खुल कर विरोध नहीं कर सके. उस दिन सुबह से ही मालिनी और देव रायजादा ज्यादा जोश में नजर आ रहे थे. होते भी क्यों न, आज उन के यहां एक बड़े तांत्रिक जो आने वाले थे… स्वर्णकांत महाराज.

इन तांत्रिक का रुतबा और अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती थी, क्योंकि ये एक ‘पुण्यात्मा’ नाम के टैलीविजन चैनल पर आते थे और देखने वालों को तंत्रमंत्र की जानकारी देते थे.

पूरे घर में स्वर्णकांत महाराज के लिए खास इंतजाम किए गए थे. गुरुजी के लिए फूस की एक कुटिया बना दी गई थी, पर उन्हें गरमी न लग जाए, इसलिए उसी कुटिया में एक एयरकंडीशनर लगा दिया गया था और नौकरचाकरों को भी उन की सेवा में रहने के लिए आदेश दे दिया गया था.

ये कोई ऐसे तांत्रिक नहीं थे, जो हवनकुंड के सामने बैठ कर धुएं में कुछ नशीली चीज मिला कर लोगों को ठगते हों, बल्कि तांत्रिक स्वर्णकांत का लोगों को ठगने का तरीका कुछ मौडर्न सा था.

तांत्रिक स्वर्णकांत लोगों का हाथ पकड़ते, उन से कुछ सवाल पूछते और उस के बारे में सबकुछ जान लेने का दावा करते थे. अंबर को भी आज शाम को उन के पास लाया जाना था.

अपनी फूस की झांपड़ी में आंखों को बंद किए हुए स्वर्णकांत महाराज बैठे हुए थे. रायजादा दंपती अपने बेटे अंबर को ले कर आए और तांत्रिक को प्रणाम करते हुए अंबर को उन के पास जाने को कहा.

तांत्रिक स्वर्णकांत ने अंबर की ओर देखा, उस का दायां हाथ अपने हाथ में पकड़ा और कुछ देर तक बुदबुदाने का नाटक किया और रायजादा दंपती की ओर देख कर बोले, ‘‘अंबर कुछ परेशान है. इसे कुछ समय चाहिए. मैं इसे कुछ क्रियाएं बता दूंगा, जिन्हें करने से इसे आराम मिलेगा.’’

‘‘पर स्वामीजी, शादी के 4 महीने बाद ही बहू का इस तरह मेरे बेटे से मोह भंग हो जाना कैसे हुआ?’’ देव रायजादा ने हाथ जोड़ते हुए पूछा.

‘‘कुलटा थी वह…’’ स्वर्णकांत ने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘किसी दूसरे मर्द के चक्कर में थी तेरी बहू… वह भी एक शादीशुदा मर्द के साथ, इसीलिए तेरे इस राजमहल जैसे घर में भी उसे अच्छा नहीं लगा और वह भाग गई.’’

अपनी बहू के बारे में ऐसी बातें सुन कर रायजादा दंपती सन्न रह गए और दांतों तले उंगली दबाने लगे.

‘‘चलो, अच्छा हुआ, जो ऐसी लड़की से पिंड छूट गया,’’ मालिनी ने धीरे से कहा.

तकरीबन एक हफ्ते तक तांत्रिक स्वर्णकांत ‘रायजादा हाउस’ में रुके और उन की तमाम तरह की समस्याओं का कुछ न कुछ हल बताते रहे. जाते समय पूरे 5 लाख रुपए का चैक देव रायजादा ने स्वर्णकांत महाराज के चरणों में अर्पित कर दिया.

स्वर्णकांत महाराज ने जातेजाते यह भी बताया कि ‘रायजादा हाउस’ में पौजिटिव ऊर्जा की कमी है, इसीलिए उन पर आएदिन कुछ न कुछ संकट आता रहता है. इस पौजिटिव एनर्जी को बढ़ाने के लिए अपने घर के बीचोंबीच एनर्जी बढ़ाने वाले लाल रंग के बड़ेबड़े पत्थर लगवाने होंगे, जो सिर्फ स्वर्णकांत के आश्रम में ही अभिमंत्रित किए जाते हैं.

स्वर्णकांत ने यहां से पहुंचते ही उन पत्थरों को तैयार कर के देव रायजादा को भेजने की बात कह दी और स्वर्णकांत के एक चेले ने उन पत्थरों को अभिमंत्रित कर के यहां तक भेजने का खर्चा साढ़े 3 लाख रुपए बताया, जिस का भुगतान भी बड़ी ही श्रद्धा के साथ चैक के रूप में देव रायजादा ने तुरंत ही कर दिया था.

अगले कुछ महीनों में देव रायजादा ने अंबर के अंदर कुछ पौजिटिव से बदलाव होते देखे. अब अंबर ने अपनी जिंदगी को थोड़ा संवारने की कोशिश की थी और अपनेआप को स्कूल के कामकाजों में बिजी कर लिया था.

अंबर के पापा को उस का यह बदला हुआ रूप देख कर बहुत अच्छा लग रहा था और वे मन ही मन एक बार फिर से अंबर की शादी बड़े ही धूमधाम से कराने की बात सोच रहे थे.

देव रायजादा इस बार एक ऐसी बहू लाना चाहते थे, जो कम पैसे वाली हो, ताकि इस घर में अपना मुंह न खोल सके और हर हाल में रहने को तैयार रहे.

इस बाबत उन्होंने सब से पहले अपने गुरुजी से बात की और उन्हें बताया कि वे अंबर के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं.

इतना सुनते ही तांत्रिक स्वर्णकांत ने उन्हें तुरंत अपने एक भक्त की लड़की के बारे में बताते हुए कहा कि वे उस के पूरे परिवार को जानते हैं और लड़की व परिवार बहुत शालीन है और अंबर के साथ जोड़ी एकदम परफैक्ट रहेगी.

अंबर को लड़की की तसवीर दिखाई गई, पर वह अब भी शादी करने के लिए राजी नहीं था. देव रायजादा ने समझा कि एक बार शादी नाकाम हो जाने के चलते बेटा दोबारा शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, पर धीरेधीरे नई बहू सब सही कर देगी, ऐसा मान कर स्वर्णकांत द्वारा बताई गई लड़की के साथ शादी की बात आगे बढ़ानी शुरू कर दी गई.

ठीक उसी दौरान देश में कोरोना की दूसरी लहर आई, जिस में लौकडाउन लगा दिया गया और शादी जैसे कार्यक्रमों में भीड़ के जमा होने पर भी रोक लगा दी गई.

देव रायजादा इस बात से परेशान हो उठे, क्योंकि वे अपने लड़के की शादी बड़े ही धूमधाम से करना चाहते थे. उन की यह परेशानी दूर करते हुए स्वर्णकांत ने कहा कि वरवधू एक सादा समारोह में तंत्र विद्या से शादी कर लेंगे और तांत्रिक स्वर्णकांत के चारों ओर फेरे ले लेंगे तो शादी हो जाएगी.

तांत्रिक के रंग में रंगे हुए रायजादा दंपती को भला इस से अच्छी बात और क्या लग सकती थी. स्वर्णकांत के बताए मुताबिक ही अंबर की शादी रूही नाम की लड़की से हो गई. इस शादी में घर के लोगों को छोड़ कर और किसी को न्योता नहीं दिया गया था.

शादी के बाद देव रायजादा ने अंबर और रूही से हनीमून पर जाने को कहा, तो रूही तपाक से बोल पड़ी, ‘‘पापाजी, ये हनीमून वगैरह तो अंगरेजों के चोंचले हैं. हमें तो यहां रह कर आप लोगों की सेवा करनी है बस.’’

नईनवेली बहू के इस तरह से प्यार जताने पर रायजादा दंपती बहुत खुश हुए.

रूही दूसरी बहुओं की तरह शरमा कर घर के अंदर बैठने वाली नहीं थी, बल्कि उस ने तो स्कूल के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया था और बहुत जल्दी ही वह सारा कामकाज भी समझ गई थी.

रूही की लगन और टैलेंट को देख कर देव रायजादा ने उसे स्कूल का मैनेजिंग डायरैक्टर बना दिया था.

इस दौरान कई बार तांत्रिक स्वर्णकांत भी अपनी मरजी से ‘रायजादा हाउस’ में आता और अपनी एसी वाली कुटिया में कई दिन तक रहता. देव रायजादा खुश थे कि गुरुजी का आशीर्वाद भी उन्हें भरपूर मिल रहा है.

अंबर की दूसरी शादी हुए तकरीबन 7 महीने बीत गए थे. रात के 11 बजे होंगे. अंबर अपने मम्मीपापा के पास आया. वह बहुत परेशान सा लग रहा था. उस ने अपने पापा की ओर देखा और बताया, ‘‘पापा, वह बात ऐसी है कि रूही पेट से हो गई है.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है,’’ देव रायजादा अंबर को गले लगाने के लिए आगे बढ़े, तो अंबर दो कदम पीछे हट गया, ‘‘पर पापा, दिक्कत वह नहीं है.’’

‘‘अरे, इस में दिक्कत की क्या बात है, मेरा शेर आज पापा बन गया है. यह तो खुशी की बात है.’’

‘‘नहीं पापा, मैं इस बच्चे का बाप नहीं हूं, बल्कि मैं तो बाप बन ही नहीं सकता, क्योंकि मैं गे हूं,’’ कह कर अंबर ने अपना सिर नीचे ?ाका लिया था और उस का स्वर भी एकदम धीमा पड़ गया था.

‘‘तो फिर उस बच्चे का बाप कौन है? तुम ने यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई?’’ देव रायजादा ने पूछा, तो अंबर ने उन्हें बताया कि वह तो पहले ही उन्हें सब सच बताना चाहता था, पर आप ने सुनने की कोशिश ही नहीं की. अपनी पहली बीवी को जिस दिन अंबर ने यह राज बताया था, वह उसी दिन उसे छोड़ कर चली गई थी.

‘‘पर, गुरुजी तो कह रहे थे कि वह कुलटा है,’’ मां ने कहा.

गुरुजी का नाम आने पर अंबर ने कहना शुरू किया, ‘‘दरअसल, आप लोग जब उस दिन मुझे गुरुजी के सामने ले कर गए थे और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा था, तभी मैं ने अपने बारे में उन्हें सब सचसच बता दिया था, जिस को सुनने के बाद उन्होंने मुझे निश्चिंत करते हुए कहा था कि मैं चिंता नहीं करूं, वे अपनी शक्ति से मुझे सही कर देंगे और जैसा वे कहते हैं, मैं वैसा ही करता चलूं,’’ कहते हुए अंबर की आंखों में आंसू तैरने लगे थे.

‘‘फिर तो तुम्हारे गे होने की बात गुरुजी को हम लोगों को भी बतानी चाहिए थी. शायद हम लोग तुम पर दूसरी शादी का दबाव ही नहीं डालते,’’ पापा ने कहा.

‘‘हमें अभी चल कर गुरुजी से इन सारी बातों और समस्याओं का हल पूछना होगा और फिर यह भी जानना होगा कि जब वह बच्चा तुम्हारा नहीं है, तो भला किस का है?’’ मां ने कहा.

वे तीनों स्वर्णकांत महाराज की कुटिया की ओर चल दिए, पर कुटिया के पास पहुंच कर उन्हें ठिठक जाना पड़ा, क्योंकि अंदर से रूही की आवाज आ रही थी, ‘‘मान गई तुम को… कितनी आसानी से इन पढ़ेलिखे और पैसे वाले लोगों को अंधविश्वास के चक्कर में फंसा कर बेवकूफ बनाते हो…

‘‘मैं ने अंबर के बैंक अकाउंट को खाली कर दिया है. जल्दी बताओ, अब हमें और क्या करना है?’’

बाहर खड़े रायजादा परिवार के कान यह सुनते ही सन्न रह गए थे.

‘‘करना क्या है मेरी मैना… यहां से सबकुछ बटोर कर किसी और मुरगे को तलाशना है, जो पैसे वाला भी हो और अंधविश्वासी भी. आखिर तुम्हें मेरे होने वाले बच्चे के लिए पैसे भी तो चाहिए,’’ स्वर्णकांत के बोलने का लहजा एकदम बदला हुआ था.

इतना सब सुनने के बाद अब और सहन कर पाने की ताकत देव रायजादा में नहीं थी. वे अंदर घुस गए और अपनी पिस्तौल स्वर्णकांत पर तान कर बोले, ‘‘मैं सब समझ गया. यह सब तुम दोनों का बनाबनाया खेल है. मैं अभी पुलिस को बुलाता हूं और तुम दोनो का गंदा खेल खत्म कराता हूं.’’

देव रायजादा कुछ और बोलते, इस से पहले ही स्वर्णकांत उलटा उन्हें ही धमकी देते हुए बोला कि अगर वे पुलिस को बुलाएंगे तो उन की ही बदनामी होगी कि उन का लड़का गे है और उन की बहू के पेट में एक तांत्रिक का बच्चा पल रहा है.

स्वर्णकांत महाराज की इस बात पर देव रायजादा खामोश ही रहे. इतना ही नहीं, अपनी इज्जत बचाने के लिए देव रायजादा को 10 लाख रुपए और देने पड़े.

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