Story In Hindi: हमारे छोटे से कसबे में करीम चाचा जैसा पतंगबाज कोई नहीं था, लेकिन अब वे काफी उम्रदराज हो चुके थे. उन्होंने पतंग उड़ाना बंद कर दिया था. अब वे अपनी किराना की दुकान चलाते थे और पतंगों को उड़ते देख कर बहुत खुश होते थे.
करीम चाचा के बेटे का नाम सलीम था, जो शादीशुदा थे और एक 8 साल के बेटे फजल के बाप भी. फजल को पतंगें उड़ती देखने का बड़ा शौक था. सलीम पेंच लड़ाते, पर सामने वाले की पतंग नहीं काट पाते.
एक दिन सलीम ने अपने अब्बा से पूछा, ‘‘मेरी पतंग क्यों कट जाती है?’’
‘‘पतंग उड़ाना भी एक कला है सलीम,’’ करीम चाचा ने बताया.
‘‘आप तो अपने समय के माने हुए पतंगबाज रहे हैं, फिर मुझे यह हुनर क्यों नहीं आया?’’ सलीम बोले.
‘‘हां, रहा हूं,’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा.
‘‘हमें भी बताइए पेंच लड़ाने की कला,’’ सलीम ने कहा.
तभी महल्ले के कुछ और लड़के भी वहां आ गए. उन में से एक लड़के राकेश ने कहा, ‘‘चाचा, हमें भी बताइए. ज्ञान पर सब का हक होता है. द्रोणाचार्य ने अपने बेटे और शिष्यों में कभी फर्क नहीं किया. उन के बेटे अश्वत्थामा से ज्यादा काबिल उन का शिष्य अर्जुन था.’’
‘‘हांहां, क्यों नहीं...’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा, ‘‘लेकिन यह सीखने वाले की लगन पर होता है.’’
‘‘चलिए, हमें बताइए. आप हम लोगों के भी गुरु हुए,’’ राकेश ने कहा.
करीम चाचा ने पतंग में कन्नी बांधने के तरीके से ले कर पतंग छोड़ने, उड़ाने और पेंच लड़ाने के एक से एक तरीके बताए, जिन्हें सुन कर सब दंग रह गए और यह मान गए कि वाकई पतंग उड़ाना और दूसरे की पतंग काटना एक कला है. जैसे तलवारबाजी, तीरंदाजी, वैसे ही पतंगबाजी.
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