Crime Story: फंस ही गई कातिल बीवी- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस तरह निशा ने रिंकू को अपने भाई के सामने खड़ा करा कर दोनों में मनमुटाव करा दिया, साथ ही उस के नाम मां की एलआईसी के रुपए हड़पने का आरोप लगा कर रुद्रपुर कोतवाली में एक एफआईआर भी दर्ज करा दी. विपिन ने अपने कुछ रिश्तेदारों के सहयोग से पुलिस से मिल कर जैसेतैसे वह मामला निपटाया.

इस से विपिन को लगा कि अब उस घर में अपने भाई के साथ रहना उस की सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है. वह अपना घर छोड़ कर अपनी ससुराल बिलासपुर में जा कर रहने लगा. तब से वह वहीं पर रह रहा था.

विपिन के घर छोड़ते ही निशा के सारे बंद रास्ते खुल गए. सुबह होते ही रिंकू अपने काम पर निकल जाता. उस के बाद वह अभिषेक को फोन कर के अपने घर बुला लेती थी. रिंकू के अभी 2 ही बच्चे थे, जिन में बड़ी बेटी मानवी 5 वर्ष की थी और उस से छोटा बेटा मानव 3 वर्ष का था.

मानवी तो स्कूल जाने लगी थी. लेकिन बेटा अभी छोटा था, जिस से निशा को कोई खास परेशानी नहीं होती थी. वह रिंकू की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए आए दिन अभिषेक यादव के साथ मस्ती करती थी. अभिषेक का आनाजाना बढ़ गया तो मोहल्ले वालों को भी अखरने लगा. चलतेचलते यह बात रिंकू के सामने भी जा पहुंची.

रिंकू ने निशा को समझाने की कोशिश की. लेकिन निशा ने उलटे उसे ही समझाते हुए कहा कि अभिषेक उस का दूर का रिश्तेदार है. वह उस के घर पर आने पर रोक नहीं लगा सकती. निशा के सामने रिंकू की एक न चली.

रिंकू का आए दिन बाहर आनाजाना लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन रिंकू ने अभिषेक और निशा को अपने घर में ही आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. अभिषेक तो छत की सीढि़यों से पीछे कूद कर भाग गया.

उस रात रिंकू और निशा के बीच खूब गालीगलौज हुई. रिंकू ने निशा को बहुत भलाबुरा कहा. लेकिन निशा को जैसे सांप सूंघ गया था.

उस ने रिंकू के सामने माफी मांगते हुए भविष्य में ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई. रिंकू जानता था कि बात ज्यादा बढ़ाने से उसी की बेइज्जती होगी, लिहाजा वह सहन कर गया.

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निशा जानती थी कि अब रिंकू को अभिषेक के बारे में सब कुछ पता चल चुका है, वह आगे किसी भी कीमत पर अभिषेक को सहन नहीं करेगा. उस दिन से अभिषेक काफी दिनों तक उस गली से नहीं गुजरा. लेकिन वह मोबाइल पर हमेशा निशा के संपर्क में रहता था. जब रिंकू कहीं काम से बाहर जाता तो वह घंटों तक अभिषेक से मोबाइल पर बात करती रहती. मोबाइल पर उस ने अभिषेक यादव से कहा कि अगर तुम मुझे सच्चा प्यार करते हो तो मुझे इस नर्क से निकाल कर कहीं दूसरी जगह ले चलो. लेकिन अभिष्ेक यादव जानता था कि उस के छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, वह उन का क्या करेगा.

निशा ने रची साजिश

अंतत: निशा ने अभिषेक के साथ मिल कर रिंकू से पीछा छुड़ाने के लिए एक साजिश रच डाली. साजिश के तहत निशा ने अभिषेक को बताया कि वह 28 फरवरी, 2021 को अपनी बहन के घर हल्द्वानी जा रही है. अगर तुम मुझे सच्चा प्यार करते हो तो मेरे आने से पहले रिंकू को दुनिया से विदा कर दो. फिर हम दोनों इसी घर में मौजमस्ती करेंगे.

अभिषेक यादव निशा के प्यार में पागल था. वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. वह उस की साजिश का हिस्सा बन गया. रिंकू की हत्या करने के लिए उस ने अपने दोस्त आकाश यादव, साहिल व सूरज को भी शामिल कर लिया. निशा और अभिषेक यादव ने आकाश को 20 हजार रुपए देने के साथ ही एक तमंचा भी दिला दिया था.

योजना के तहत निशा ने अपने भाई को अपने घर बुलाया और 28 फरवरी को वह उस के साथ चली गई. निशा के जाने के बाद रिंकू घर पर अकेला रह गया था. 28 फरवरी की शाम को पूर्व योजनानुसार आकाश यादव उर्फ बांडा निवासी भदईपुरा, साहिल निवासी भूत बंगला ने रिंकू के घर पर पार्टी करने की योजना बनाई, जिस में शराब के साथ मुर्गा भी बनाया गया.

पार्टी में तीनों ने रिंकू को ज्यादा शराब पिलाई. उस शाम रिंकू के घर के पास एक शादी भी थी, जिस में डीजे बज रहा था. डीजे की आवाज में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. देर रात तक चली पार्टी में जब रिंकू बेहोशी की हालत में हो गया तो मौका पाते ही तीनों ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी.

रिंकू की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ कर दिया था. उस के बाद तीनों घर के दरवाजे पर अंदर से ताला लगा कर छत के रास्ते नीचे कूद कर चले गए. रिंकू की हत्या के बाद आकाश ने अभिषेक को बता दिया कि उस का काम हो गया है. उस के आगे का काम स्वयं निशा ने संभाला.

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योजनानुसार निशा ने इस केस में रिंकू के छोटे भाई विपिन और उस के रिश्तेदारों को फंसाने की योजना बना रखी थी. लेकिन उस का यह दांव चल नहीं सका और वह खुद ही अपने जाल में उलझ गई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने पांचों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम में शामिल कोतवाल एन.एन. पंत, एसएसआई सतीश कापड़ी, एसआई पूरनी सिंह, रमपुरा चौकीप्रभारी मनोज जोशी, एसओजी प्रभारी उमेश मलिक, कांस्टेबल प्रकाश भगत

और राजेंद्र कश्यप को आईजी ने 5 हजार, एसएसपी ने ढाई हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

Crime Story- एक ‘मासूम’ ऐसा भी: भाग 1

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‘‘खबर एकदम पक्की  है न.’’ एएसआई अशोक ने फोन डिसकनेक्ट करने से पहले अपनी

तसल्ली के लिए उस शख्स से एक बार फिर सवाल किया, जिस से वह फोन पर करीब पौने घंटे से बात कर रहे थे.

‘‘जनाब एकदम सोलह आने पक्की खबर है… आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या कि मेरी कोई खबर झूठी निकली हो.’’ दूसरी तरह से सवाल के बदले मिले इस जवाब के बाद अशोक ने ‘‘चल ठीक है… जरूरत पड़ी तो तुझ से फिर बात करूंगा.’’ कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एसटीएफ दस्ते में तैनात सहायक सबइंसपेक्टर अशोक कुमार की अपने सब से खास मुखबिर से एक खास खबर मिली थी. वह कुरसी से खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गए.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पैशल टास्क  फोर्स यूनिट में तैनात एएसआई अशोक कुमार दिल्ली पुलिस में अकेले ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन का बंगलादेशी अपराधियों को पकड़ने का अनोखा रिकौर्ड है. बंगलादेशी अपराधियों के खिलाफ अशोक कुमार का मुखबिर व सूचना तंत्र देश में ही नहीं, बल्कि बंगलादेश तक में फैला है.

बंगलादेश तक फैले मुखबिरों का नेटवर्क अशोक को फोन या वाट्सऐप से जानकारी दे कर बताता है कि किस बंगलादेशी अपराधी ने किस वारदात को अंजाम दिया है.

अशोक कुमार को जो सूचना मिली थी, वह बंगलादेश में उन के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली थी. सूचना यह थी कि बंगलादेश का एक अपराधी, जिस का नाम मासूम है, को हत्या के एक मामले में बंगलादेश की अदालत से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह भारत भाग आया था.

भारत में वह सरवर नाम से पहचान बना कर रहता है. मुखबिर से यह भी पता चला कि सरवर तभी से लापता है, जब से मासूम ने अपनी पहचान सरवर के रूप में बनाई है. मासूम ने जब से खुद को सरवर की पहचान दी है, तब से वह सरवर नाम के व्यक्ति की पत्नी के साथ रहता है.

यह भी पता चला कि सरवर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन वह अकसर दिल्ली  आता रहता है.  दिल्ली में उस के कई रिश्तेदार व दोस्त हैं.

एएसआई अशोक ने अपने एसीपी पंकज सिंह को मुखबिर की सूचना से अवगत करा दिया. पंकज सिंह को अशोक के सूचना तंत्र पर पूरा भरोसा था. इसलिए उन्होंने एएसआई अशोक कुमार की मदद के लिए इंसपेक्टर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एसआई राजीव बामल,  विजय हुड्डा, विजय कुमार, वीर सिंह, कांस्टेबल पयार सिंह सोनू और अजीत की टीम गठित कर दी.

चूंकि मामला विदेश से भागे एक अपराधी को पकड़ने से जुड़ा था, इसलिए एसीपी पंकज सिंह ने अपने डीसीपी भीष्म सिंह के अलावा दूसरे उच्चाधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी. क्योंकि वे बखूबी जानते थे कि मामले की जांच आगे बढ़ाने पर उच्चाधिकारियों की मदद के बिना सफलता नहीं मिलेगी.

जिस तरह अशोक का मुखबिर नेटवर्क अलग किस्म का है, उसी तरह उन सूचनाओं को वैरीफाई करने का भी उन के पास अपना नेटवर्क है. मासूम उर्फ सरवर के बारे में अशोक को पहली सूचना अक्तूबर, 2020 में मिली थी.

मासूम के बारे में मिली सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए पूरे 2 महीने का समय लगा. जिस से साबित हो गया कि वह सरवर नहीं, बंगलादेशी अपराधी मासूम है.

अशोक कुमार की टीम को बेंगलुरु के अलावा पश्चिम बंगाल व दिल्ली में कई बंगलादेशी बस्तियों के धक्के खाने पड़े. संयोग से पुलिस टीम ने सरवर का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया गया तो 4 दिसंबर, 2020 को पता चला कि सरवर उर्फ मासूम 5 दिसंबर को खानपुर टी पौइंट पर आने वाला है.

एएसआई अशोक कुमार ने सरवर की तलाश के लिए गठित की गई टीम के साथ इलाके की घेराबंदी कर ली. पुलिस टीम के साथ एक ऐसा बंगलादेशी युवक भी था, जो मासूम उर्फ सरवर को पहचानता था. सरवर जैसे ही बताए गए स्थान पर पहुंचा, पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में उस के कब्जे से एक देसी कट्टा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.

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पुलिस टीम मासूम उर्फ सरवर को क्राइम ब्रांच के दफ्तर ले आई. पूछताछ में पहले तो सरवर यही बताता रहा कि पुलिस को गलतफहमी हो गई है वह मासूम नहीं बल्कि सरवर है. लेकिन एएसआई अशोक पहले ही इतने साक्ष्य एकत्र कर चुके थे कि सरवर झुठला नहीं सका कि वह सरवर नहीं मासूम है.

पुलिस ने थोड़ी सख्ती इस्तेमाल की तो वह टेपरिकौर्डर की तरह बजता चला गया कि उस ने कैसे एक दूसरे आदमी की पहचान हासिल कर खुद को मासूम से सरवर बना लिया था. यह बात चौंकाने वाली थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंसं की धारा 25 आर्म्स ऐक्ट और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

सरवर उर्फ मासूम से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

मूलरूप से बंगलादेश के जिला बगीरहाट, तहसील खुलना, गांव बहल का रहने वाला मासूम (40) बंगलादेश के उन लाखों लोगों में से एक है, जिन के भरणपोषण का असली सहारा या तो कूड़ा कबाड़ बीन कर उस से मिलने वाली मामूली रकम होती है. ऐसे लोग चोरी, छीनाझपटी और उठाईगिरी कर के अपना पेट पालते हैं.

मेहनतमजूदरी करने वाले मातापिता के अलावा परिवार में 3 बड़े भाई व एक बहन में सब से छोटा मासूम गुरबत भरी जिंदगी के कारण पढ़लिख नहीं सका. बचपन से ही बुरी संगत और आवारा लड़कों की सोहबत के कारण वह उठाईगिरी करने लगा. धीरेधीरे छीनाझपटी के साथ अपराध करने की उस की प्रवृत्ति संगीन होती गई. जेल जाना और जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध करना उस की फितरत बन चुकी थी.

मासूम ने किया अपहरण और कत्ल

साल 2005 में मासूम ने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया, जिस ने उस की जिंदगी पर मौत की लकीर खींच दी. उस ने अपने साथी बच्चू, मोनीर, गफ्फार व जाकिर के साथ मिल कर बांग्लादेश के मध्य नलबुनिया बाजार में मोबाइल विक्रेता जहीदुल इसलाम का अपहरण कर लिया.

लूटपाट के लिए अपहरण करने के बाद उस ने साथियों के साथ जहीदुल इसलाम की गला रेत कर हत्या कर दी. शृंखला थाने की पुलिस ने घटना के अगले दिन नलबुनिया इलाके के खाली मैदान से जहीदुल का शव बरामद किया.

चश्मदीदों से पूछताछ व सर्विलांस के आधार पर पुलिस ने 2 दिन के भीतर ही मासूम समेत सभी पांचों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया. सब पर मुकदमा चला. चूंकि पुलिस को मासूम के कब्जे से मृतक जहीदुल का मोबाइल फोन मिला था, इसलिए  2013 में बंगलादेश की संबंधित कोर्ट ने मासूम को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुना दी, जबकि बाकी 4 आरोपितों को कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.

लेकिन इस से पहले ही केस के ट्रायल के दौरान सन 2010 में मासूम को अदालत से जमानत मिल गई थी और वह देश छोड़ कर फरार हो गया था. अदालत से सजा मिलने के बाद जब मासूम अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर उस की गिरफ्तारी पर एक लाख का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर जमानत पर बाहर आने के बाद मासूम सरवर नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आया. मासूम जानता था कि उस के गुनाहों की फेहरिस्त काफी बड़ी हो चुकी है और जहीदुल इस्लाम केस में पुलिस को उस के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. लिहाजा उस ने कानून से बचने के लिए देश को अलविदा कह कर दूसरे देश भाग जाने की योजना बना ली.

अपनी इसी मंशा को अंजाम देने के लिए मासूम ने सरवर से मुलाकात की. सरवर से उस की मुलाकात कुछ साल पहले बशीरहाट जेल में हुई थी, जहां वह किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर गया था.

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सरवर मूलरूप से रहने वाला तो बंगलादेश का ही था, लेकिन वह ज्यादातर भारत में रहता था. जहां उस ने अवैध रूप से रहते हुए न सिर्फ वहां की नागरिकता के सारे दस्तावेज तैयार करा लिए थे, बल्कि वहां अपना परिवार भी बना लिया था.

सरवर नाम के लिए तो भारत और बंगलादेश के बीच कारोबार के बहाने आनेजाने का काम करता था, लेकिन असल में सरवर का असली काम था नकली दस्तावेज तैयार कर के बंगलादेशी लोगों का अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कराना.

मासूम ने जमानत मिलने के बाद सरवर से संपर्क साधा और उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर भारत में घुसपैठ करवा कर वहां शरण देने के लिए मदद मांगी. सरवर दोस्ती की खातिर इनकार नहीं कर सका.

सरवर ने 50 हजार रुपए में मासूम से सौदा तय किया कि वह इस के बदले न सिर्फ उसे बंगलादेश से भारत पहुंचा देगा. बल्कि उसे वहां रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी उपलब्ध करा देगा.

अगले भाग में पढ़ें- मासूम बन गया सरवर

Crime Story- एक ‘मासूम’ ऐसा भी: भाग 2

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सरवर के लिए बंगलादेशी लोगों को सीमा पार करवा कर भारत लाना मामूली सा काम था. 2011 के शुरुआत में सरवर मासूम के साथ सीमा पार कर के भारत आ गया.

सरवर उन दिनों बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता था, जहां उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था. इसी गोदाम में उस की पत्नी नजमा व 2 बेटियां साथ रहती थीं.

सरवर ने मासूम को इसी गोदाम पर अपने परिवार के साथ रखवा लिया और उसे कबाड़ का गोदाम संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी. कुछ समय भारत में रहने के बाद सरवर फिर से वापस बंगलादेश गया था.

बताते हैं कि वह बंगलादेश से भारत तो लौट आया था, लेकिन उस के बाद आज तक अपने परिवार से नहीं मिल पाया. कई महीने बीत गए लेकिन सरवर अपने परिवार के पास वापस नहीं लौटा तो परिवार को चिंता होने लगी.

सरवर की पत्नी नजमा ने बंगलादेश में फोन कर के सरवर के मातापिता से बात की. उन्होंने बताया कि सरवर तो भारत चला गया. जब उन्हें नजमा से यह पता चला कि सरवर भारत में अपनी पत्नी और बच्चों के पास नहीं पहुंचा है तो उन्होंने मई 2011 में बंगलादेश में सरवर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.

सरवर का परिवार बना मासूम का

इधर, बेंगलुरु में सरवर की पत्नी नजमा और दोनों बेटियां कायनात (22) और सिमरन (16) पूरी तरह मासूम पर निर्भर हो गईं. हालांकि सरवर ने 2 साल पहले ही बेटी कायनात की शादी बेंगलुरु में कबाड़ का काम करने वाले एक युवक यूनुस से कर दी थी.

मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा और छोटी बेटी सिमरन के गुजारे और खाने के खर्चे तो उठाने शुरू कर दिए, लेकिन अब उस के दिमाग में कुछ दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी. वह सरवर के परिवार को पालने की कीमत वसूलना चाहता था.

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मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा को धीरेधीरे विश्वास में ले कर उस से आंतरिक संबंध बना लिए. कुछ ही दिन में मासूम का नजमा से पत्नी जैसा रिश्ता कायम हो गया. वैसे नजमा के लिए सरवर हो या मासूम, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उसे लगता था कि मर्दों का उस की जिंदगी में आनाजाना उस की नियति बन चुकी है.

असल में सरवर से भी उस की दूसरी शादी थी. नजमा के पहले पति असलम की मौत हो चुकी थी. कायनात उस के पहले पति असलम से पैदा हुई बेटी थी. असलम की मौत के बाद जब नजमा बेटी को गोद में लिए आश्रय और पेट पालने के लिए इधरउधर भटक रही थी, तभी वह सरवर के संपर्क में आई थी. सरवर ने उसे आसरा भी दिया और नजमा को उस की बेटी के साथ अपना कर अपनी छत्रछाया भी दी.

सरवर अकसर हिंदुस्तान और बंगलादेश के बीच आवागमन करता रहता था. बेंगलुरु में उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था, इसी में उस ने अपने रहने का ठिकाना भी बना लिया था. सरवर के अचानक लापता हो जाने के बाद मासूम ने कबाड़ के इस गोदाम को संभालने और सरवर की बीवी और बेटी को पालने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था.

इधर सरवर की छोटी बेटी भी धीरेधीरे जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. शराब के नशे का आदी मासूम जब सिमरन को देखता तो उस का मन सिमरन का गदराता हुआ जिस्म पाने के लिए मचल उठता.

एक दिन उसे मौका मिल गया. नजमा लोगों के घरों में काम करती थी. एक रात वह अपने किसी मालिक के घर पर होने वाले शादी समारोह के लिए घर से बाहर थी कि उसी रात मासूम ने शराब के नशे में सिमरन को अपने बिस्तर पर खींच कर हवस का शिकार बना डाला.

अगली सुबह सिमरन ने अपनी मां को जब यह बात बताई तो उस ने मासूम के साथ खूब झगड़ा किया. 1-2 दिन दोनों के बीच बातचीत भी नहीं हुई. लेकिन उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया.

यह बात सिमरन भी जानती थी और नजमा भी कि मासूम ही अब उन का सहारा है. इसीलिए उस के हौसले बुलंद हो गए. इस घटना के बाद वह जब भी उस का मन करता और मौका मिलता, सिमरन को अपनी हवस का शिकार बना लेता.

इधर मासूम को अब लगने लगा था कि अगर बंगलादेश में पुलिस को उस के भारत में होने या भारत की पुलिस को उस के बंगलादेश का सजायाफ्ता अपराधी होने की बात पता चल गई तो उस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. इसलिए सितंबर, 2013 के बाद मासूम ने अपनी पहचान मिटा कर सरवर के रूप में अपनी नई पहचान बनाने का फैसला कर लिया.

अपने इरादों को पूरा करने के लिए मासूम नजमा व सिमरन को ले कर दिल्ली आ गया और यहां ई ब्लौक सीमापुरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. दरअसल, नजमा से उसे पता चला था कि कुछ समय सरवर भी यहां रहा था. इसी इलाके में सरवर ने अपनी आईडी बनवाई हुई थी. उस का आधार कार्ड भी यहीं बना था.

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कुछ समय यहां रहने के बाद मासूम ने दलालों से संपर्क साध कर ऐसी सेटिंग बनाई कि उस ने रिकौर्ड में सरवर की आईडी पर अपना फोटो चढ़वा लिया. अब वह कानून की नजर में पूरी तरह से सरवर बन गया था. बाद में इसी आईडी के आधार पर उस ने बैंक में खाता भी खुलवा लिया और ड्राइविंग लाइसैंस भी हासिल कर लिया.

मासूम बन गया सरवर

मासूम ने धीरेधीरे सरवर की पहचान से जुड़े हर दस्तावेज को खत्म कर उन सभी में खुद को सरवर के रूप में अंकित करा दिया. अब वह पूरी तरह बेखौफ हो गया.

6 माह के भीतर ये सब करने के बाद पूरी तरह सरवर बन चुका मासूम नजमा व सिमरन को ले कर फिर से बेंगलुरु लौट गया. इस बार उस ने बेंगलुरु के हिंबकुडी को अपना नया ठिकाना बनाया.

अब उस ने दिल्ली से बनवाए गए अपने ड्राइविंग लाइसैंस के आधार पर टैक्सी चलाने का नया काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने यहां भी अपनी पहचान सरवर के रूप में स्थापित कर ली.

मासूम था तो असल में अपराधी प्रवृत्ति का ही. लिहाजा उस के दिमाग में फिर से अपराध करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने बंगलादेशी लोगों के बीच अपनी अच्छीखासी पैठ बना ली थी. टैक्सी चलाने के नाम पर वह कुछ अपराधियों के साथ मिल कर छीनाझपटी और ठगी करने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने एक शानदार रास्ता भी बना लिया था. वह बेंगलुरु में क्राइम ब्रांच के साथसाथ शहर के चर्चित पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी भी करने लगा. जिस वजह से पुलिस महकमे में उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई.

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एक तरह से मासूम ने सरवर बन कर अपना पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपराध की दुनिया से होने वाली काली कमाई से उस ने कई गाडि़यां खरीद लीं, जिन्हें वह दूसरे लोगों को किराए पर दे कर टैक्सी के रूप में चलवाता था.

इतना ही नहीं, उसी इलाके में उस ने अब फिर से कबाड़ का काम भी शुरू कर दिया. इस के लिए जमीन खरीद कर गोदाम बना लिया था. पुलिस से बने संबंधों के चलते वह लूट व चोरी का माल भी खरीदने लगा.

अगले भाग में पढ़ें- कसने लगा शिकंजा

Crime Story- एक ‘मासूम’ ऐसा भी: भाग 3

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बड़े स्तर पर पुलिस के लिए मुखबिरी करने के कारण सरवर उर्फ मासूम के कुछ दुश्मन भी बन गए थे. ज्यादातर दुश्मन वे बंगलादेशी थे, जो भारत में अवैध रूप से रह कर अपराध करते थे और उन का बंगलादेश में लगातार आनाजाना होता था.

ऐसे ही कुछ लोगों ने कथित सरवर से दुश्मनी के कारण जब उस की जन्मकुंडली निकाली तो उन्हेें पता चला कि असली सरवर तो सालों से लापता है, उस की जगह मासूम ने ले ली है. बात जब फूटी तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एएसआई अशोक कुमार तक जा पहुंची.

एक मुखबिर ने इस सूचना को और पुख्ता करने के बाद वाट्सऐप कर के एएसआई अशोक को बताया. इस के बाद एएसआई अशोक ने जाल बिछाना शुरू किया और दिसंबर महीने में कथित सरवर उर्फ मासूम दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के हत्थे चढ़ गया.

एएसआई अशोक ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय से संपर्क कर वे दस्तावेज भी हासिल कर लिए, जिन में सरवर के रूप में असली सरवर तथा नए सरवर दोनों की फोटो लगी थी.

नए सरवर के ड्राइविंग लाइसैंस का रिकौर्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करने के बाद  अशोक ने दिल्ली से ले कर बेंगलुरु व कोलकाता में उन तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिन के नंबरों पर कथित सरवर की अकसर बातचीत होती थी.

ऐसे ही लोगों से पूछताछ करतेकरते अशोक इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो शख्स सरवर बन कर भारत में रह रहा है, वह असल में बंगलादेश में फांसी की सजा मिलने के बाद फरार हुआ अपराधी मासूम है.

इस के बाद अशोक ने बंगलादेश में अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर यह भी पता कर लिया कि मासूम के परिवार वालों को भी यह बात पता थी कि वह भारत में छिप कर रह रहा है. वह अपने परिवार वालों से अलगअलग फोन से संपर्क कर बातचीत करता था.

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इतना ही नहीं अशोक ने बंगलादेश के बगीरहाट जिले में शृंखला थाने का नंबर हासिल कर वहां के थानाप्रभारी से वाट्सऐप के जरिए अपना परिचय दे कर बात की और उन से मासूम की पूरी क्रिमिनल हिस्ट्री का रिकौर्ड वाट्सऐप के जरिए मंगवा लिया. साथ ही वे दस्तारवेज भी जिन में उस घटना का जिक्र था, जिस में मासूम को फांसी की सजा मिली थी.

फरार होने के बाद उस पर पुलिस के ईनाम का नोटिस भी अशोक के पास आ गया, तब जा कर उन्होंने मासूम को दबोचने की रणनीति पर काम किया.

कसने लगा शिकंजा

सरवर उर्फ मासूम के इर्दगिर्द घेरा कसते हुए एएसआई अशोक को पता चला था कि सरवर की पत्नी नजमा की एक बहन खातून दिल्ली के खानपुर इलाके में रहती है. अशोक ने खातून को विश्वास में ले कर सरवर के राज उगलवाए.

पता चला कि बेंगलुरु का रहने वाला सरवर उर्फ मासूम का दोस्त अल्लासमीन है जो इन दिनों दिल्ली के खानपुर में रहता है. मासूम उर्फ सरवर उस से अकसर मिलने आता रहता है. बस इसी माध्यम से अशोक ने सरवर को दबोचने का प्लान बनाया और 5 दिसंबर, 2020 को जब वह अल्लासमीन से मिलने आया तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

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हालांकि पुलिस ने मासूम को गिरफ्तार करने के बाद उस से सरवर को ले कर कड़ी पूडताछ की. लेकिन मासूम ने सरवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी.

शक है कि मासूम ने सरवर की हत्या कर दी होगी. उस के बाद वह सरवर की पत्नी के साथ रहने लगा और अपना नाम उसी के नाम पर सरवर भी रख लिया. इस बात की आशंका इसलिए भी है कि उसे शायद पता था कि सरवर कभी लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए उस ने अपनी पहचान सरवर के रूप में गढ़ ली थी.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि सरवर उर्फ मासूम से नजमा ने एक और बेटी को जन्म दिया, जिस की उम्र इस वक्त 8 साल है. दूसरी तरफ नजमा की मंझली बेटी सिमरन मासूम के लगातार शारीरिक शोषण से तंग आ कर अपनी बड़ी बहन के पति यूनुस की तरफ आकर्षित हो गई थी और एक साल पहले अपने बहनोई के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने मासूम उर्फ सरवर को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया और उस की गिरफ्तारी की सूचना बंगलादेश दूतावास के माध्यम से बंगलादेश की पुलिस को दे दी.

—कथा आरोपी के बयान और पुलिस की जांच पर आधारित

Crime story- चांदी की सुरंग: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस समय चांदी 70-75 हजार रुपए किलो से गिर कर 40-45 हजार रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास आ गई थी. शेखर का जयपुर में सोनेचांदी का बड़ा काम था. उस ने उन्हें बताया कि अब चांदी ज्यादा सस्ती नहीं होगी. इसलिए अगर खरीद कर रख ली जाए, तो कुछ महीनों में ही अच्छा रिटर्न दे देगी. डाक्टर सोनी को शेखर की बात जंच गई.

डा. सोनी ने शेखर की मदद से करोड़ों रुपए की चांदी की सिल्लियां खरीद लीं. चांदी की ये सिल्लियां शेखर ने उन्हें अपनी फर्मों से दिलवाईं. अब सवाल आया कि चांदी को रखा कहां जाए? बढ़ते हुए अपराधों को देखते हुए घर में ज्यादा सोनाचांदी रखना जोखिम का काम था.

शेखर ने डाक्टर सोनी को ऐसी तरकीब बताई कि चोरों को पता नहीं चल सके. शेखर ने डा. सोनी से कहा कि यह चांदी बक्सों में रख कर बेसमेंट में फर्श खुदवा कर जमीन में गाड़ दें.

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डा. सोनी को पसंद आया आइडिया

डा. सोनी को शेखर का यह बुलेटप्रूफ आइडिया पसंद आ गया, लेकिन उन्होंने शंका जताई कि जमीन खोद कर बक्से रखने वाले को तो इस राज का पता चल जाएगा. इस पर शेखर ने उन से यह काम अपने भरोसे के लोगों से कराने की बात कही. पूरी तरह आश्वस्त हो कर डा. सोनी ने चांदी जमीन में गाड़ने की जिम्मेदारी शेखर को ही सौंप दी.

शेखर ने अपने भांजे जतिन जैन को भी डा. सोनी के इस जिम्मेदारी वाले काम में राजदार बना लिया. शेखर व जतिन ने चांदी रखने के लिए लोहे के आधा फुट ऊंचे, 3 फुट चौड़े और 3 फुट लंबे 3-4 बक्से बनवाए. इन बक्सों में चांदी की सिल्लियां भर दी गईं. शेखर ने अपने ड्राइवर केदार जाट और अपने शोरूम के नौकर कालूराम सैनी से डा. सोनी के मकान के बेसमेंट में गड्ढा खुदवाया.

इस गड्ढे में डा. सुनीत सोनी की मौजूदगी में चांदी की सिल्लियों के बक्से रख दिए गए. केदार जाट और कालूराम सैनी ने बक्से रखने के बाद उन पर मिट्टी की मोटी परत बिछा दी. बाद में डा. सोनी ने उस जगह टाइल्स लगवा दी थीं.

इस तरह डा. सोनी के मकान के बेसमेंट में जमीन में दबाई गई चांदी की सिल्लियों का केवल डाक्टर दंपति, शेखर और उस के भांजे जतिन को ही पता था. गड्ढा खोदने और बक्से रखने वाले केदार जाट तथा कालूराम सैनी को चांदी होने का पता नहीं था. यह राज ज्यादा से ज्यादा केवल 6 लोगों को मालूम था.

बाद में शेखर ने डा. सोनी को फूलप्रूफ आइडिया बताने और उस पर अमल कराने के साथ ही अपने शातिर दिमाग से बड़ा षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. पहले उस ने डा. सोनी के आसपास के मकानों का पता किया. पता चला कि डाक्टर के ठीक पीछे मुंबई की रहने वाली उगंती देवी का एक खाली प्लौट है. इस प्लौट में एक कमरा बना हुआ था.

उस ने बनवारी जांगिड़ के माध्यम से उगंती देवी से संपर्क किया. पहले तो उगंती देवी ने प्लौट बेचने से इनकार कर दिया, लेकिन शेखर ने हिम्मत नहीं हारी.

वह बनवारी के जरिए उगंती देवी के पीछे लगा रहा और उसे प्लौट बेचने के लिए राजी कर लिया. प्लौट का सौदा 97 लाख रुपए में हुआ. इसी साल 4 जनवरी को इस प्लौट की रजिस्ट्री बनवारी लाल जांगिड़ के नाम से करा दी गई.

दरअसल, बनवारी तो शेखर का मोहरा था. प्लौट की सारी रकम शेखर ने ही दी. यह प्लौट शेखर ने अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए खरीदा था. प्लौट खरीदने के बाद कुछ दिन वहां सालों से उगी झाडि़यों और घासफूस की सफाई होती रही.

इस के बाद वहां बनवारी के अलावा शेखर अग्रवाल और उस का भांजा जतिन जैन के साथ कुछ और लोग भी गाडि़यों से आनेजाने लगे. प्लौट के चारों ओर लोहे की चादरें और ग्रीन नेट लगा दी गई ताकि आनेजाने वालों और अड़ोसपड़ोस के लोगों को कुछ नजर ना आए. बिजली का कनेक्शन भी ले लिया गया.

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योजनाबद्ध तरीके से उस प्लौट में बने कमरे का फर्श तोड़ कर सुरंग की खुदाई शुरू कराई गई. बनवारी की देखरेख में सुरंग की खुदाई के लिए शेखर ने टोंक जिले के रहने वाले 2 भाइयों मनराज मीणा और दिलखुश मीणा को बुलाया.

दोनों भाई पहले से ही शेखर के जानकार थे और उस के कहने पर उन्होंने एक बार डा. सोनी के फार्महाउस की तारबंदी का काम किया था.

सारा इंतजाम शेखर का

शेखर के बताए अनुसार दोनों भाइयों ने हैमर, ग्राइंडर, ड्रिल मशीन, गैंती, फावड़े और दूसरे औजारों से उस प्लौट से डा. सोनी के मकान के तहखाने तक सुरंग खोद ली. सुरंग खुदाई के काम में बीचबीच में शेखर, जतिन, बनवारी, केदार और कालूराम भी उन की मदद करते रहे. इस काम में उन्हें कई दिन लगे.

सुरंग तो खुद गई थी, लेकिन तहखाने में गड़े चांदी के बक्सों तक नहीं पहुंच पाई. बीच में पानी का टैंक बना हुआ था. दोनों भाइयों को जमीन धंसने और खुद के दबने का डर लगा, तो उन्होंने आगे खोदने से इनकार कर दिया.

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पूरी सुरंग खुदे बिना शेखर का सपना पूरा नहीं हो सकता था. उस ने बनवारी से किसी आदमी का इंतजाम करने को कहा. बनवारी ने अपने पड़ोसी रामकरण जांगिड़ से बात की. रामकरण पड़ोसी जिले सवाई माधोपुर के रहने वाले मोहम्मद नईमुद्दीन को अच्छी तरह जानता था. वह पहले शेखर के यहां कारपेंटर का काम कर चुका था. रामकरण ने नईमुद्दीन से बात की तो लालच में वह तैयार हो गया.

नईमुद्दीन ने अधूरी सुरंग की खुदाई का काम आगे बढ़ाया. उस ने लोहे के बक्सों तक सुरंग खोद दी. इस के बाद कटर और ग्राइंडर की मदद से बौक्स काट कर चांदी की सिल्लियां निकाल ली गईं.

पुलिस की जांच और आरोपियों से पूछताछ में सामने आया कि डा. सुनीत सोनी के मकान से सुरंग के जरिए चांदी की 540 किलो वजन की 18 सिल्लियां चुराई गईं. एक सिल्ली का वजन 30 किलो था. मौजूदा बाजार भाव से इस चांदी की कीमत 3 करोड़ रुपए से ज्यादा थी. पुलिस का कहना है कि डा. सोनी के मकान से चुराई चांदी की सिल्लियां शेखर अग्रवाल और उस के भांजे ने बाजार में जौहरियों को बेच दी थीं.

पूछताछ में पता चला कि नईमुद्दीन ने अपने मेहनताने के रूप में चांदी की एक सिल्ली ली थी. चांदी की यह सिल्ली 2 दिन बाद शेखर ने उसे 20 लाख 73 हजार रुपए नकद दे कर वापस ले ली. पुलिस ने नईमुद्दीन से 18 लाख रुपए बरामद किए हैं.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस को जांच में एक कटा हुआ बक्सा मिला

Crime story- चांदी की सुरंग: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रामकरण जांगिड़ ने मैनपावर मुहैया कराने, सुरंग खोदने, कटर व ग्राइंडर से लोहे का बक्सा काटने और चांदी की सिल्लियां निकाल कर शेखर व जतिन की कार में रखवाने के बदले साढ़े 5 लाख रुपए लिए थे.

बनवारी लाल जांगिड़ ने पुलिस को बताया कि मकान की डील में तय हुआ था कि शेखर जब कहेगा, तब वह मकान उस के नाम कर देगा और शेखर इस के बदले उसे 15 लाख रुपए देगा. इस के अलावा चांदी में हिस्सेदारी की बात भी तय हुई थी.

पुलिस ने भले ही इस मामले में 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन चांदी चोरी के मास्टरमाइंड शेखर अग्रवाल और जतिन जैन फरार थे. चोरी गई चांदी की 30 सिल्लियों में से एक टुकड़ा भी बरामद नहीं हो पाया था. इस से जयपुर कमिश्नरेट पुलिस विवादों में आ गई.

आरोप यह भी लगा कि शेखर के सब से विश्वस्त केदार जाट और कालूराम सैनी ने उन ज्वैलर्स के नाम पुलिस को बताए थे, जिन्हें चांदी की सिल्लियां बेची गई थीं. पुलिस ने कई ज्वैलरों को पूछताछ के लिए बुलाया जरूर, लेकिन गिरफ्तारी किसी की नहीं की गई. चांदी की 3 सिल्लियां बरामद होने की चर्चा भी रही, लेकिन पुलिस इस से इनकार करती रही.

कहा यह भी जा रहा है कि बनवारी लाल जांगिड़ को पुलिस ने 25 फरवरी को ही हिरासत में ले लिया था. उस ने शेखर अग्रवाल का सारा भांडा भी फोड़ दिया था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. इस से उसे फरार होने का मौका मिल गया. हालांकि पुलिस ने शेखर का पासपोर्ट जब्त कर लिया है.

जयपुर कमिश्नरेट पुलिस की जांच पर उठे विवादों को देखते हुए राजस्थान के पुलिस महानिदेशक एम.एल. लाठर ने 9 मार्च को चांदी चोरी के इस मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को सौंप दी.

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एसओजी खोलेगी सारी परतें

एसओजी के एडिशनल डीजी अशोक राठौड़ ने 10 मार्च को तेजतर्रार आईपीएस अफसर राजेश सिंह के नेतृत्व में 4 अफसरों की एसआईटी गठित कर दी.

एसओजी के डीआईजी शरत कविराज, एसपी राजेश सिंह और अन्य अफसरों की टीम ने 11 मार्च को मौके पर पहुंच कर सुरंग का निरीक्षण किया. इस के बाद अदालत से प्रोडक्शन वारंट ले कर जेल में बंद बनवारी जांगिड़, केदार जाट और कालूराम सैनी को अपनी कस्टडी में ले लिया.

एसओजी का मानना है कि ये तीनों ही शेखर अग्रवाल के असली राजदार और कामगार हैं. इन से पूछताछ में शेखर और जतिन के सारे राज खुलेंगे. चांदी खरीदने वाले भी पकड़े जाएंगे. शेखर और जतिन भी ज्यादा दिनों तक पुलिस से नहीं भाग सकेंगे, क्योंकि उन के विदेश भागने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं.

नेपाल में जतिन जैन बैंकाक से सोने की तस्करी के मामले में अपनी मां सरिता जैन के साथ गिरफ्तार हुआ था. कहा जाता है कि करीब 5 साल पहले शेखर बाजार का 5-6 करोड़ रुपए का कर्ज हो जाने पर विदेश चला गया था. वह करीब एक साल बाद जयपुर लौटा था.

शेखर का नाम जोधपुर में सितंबर 2020 में सोने की तस्करी के मामले में डीआरआई की काररवाई में भी सामने आया था. डा. सोनी को इस बात का दुख है कि दोस्त ही उन्हें दगा दे गया. हालांकि डा. सोनी ने कथा लिखे जाने तक पुलिस को यह नहीं बताया था कि कितनी चांदी चोरी हुई, लेकिन चर्चा है कि उन के मकान के तहखाने में जमीन में 3 बक्से गड़े हुए थे.

पुलिस को जांच में एक बक्सा कटा हुआ और 2 खाली मिले. डा. सोनी ने पुलिस को बताया कि ये बक्से खाली ही थे. सवाल यह है कि खाली बक्से जमीन में दबाने की वजह क्या थी?

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चर्चा यह भी है कि डा. सोनी ने जब चांदी निकाली तो 2 बक्सों में चांदी सुरक्षित मिली. इसे निकाल लिया गया. लेकिन इस बात का खुलासा न डाक्टर सुनीत सोनी ने किया और न ही पुलिस ने.

एसओजी ने बनवारी, केदार और कालू से रिमांड अवधि में पूछताछ कर यह पता लगाया कि शेखर और जतिन ने डाक्टर के घर से चुराई गई चांदी की सिल्लियां किनकिन लोगों को बेची थीं. इन से पूछताछ के आधार पर एसओजी ने कुछ ज्वैलर्स को नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया.

बाद में 16 मार्च तक जयपुर की ज्वैलर्स फर्म प्रदीप आर्ट्स, सरिता सिल्वर पैलेस, धनंजय कारपोरेशन, आर.के. ज्वैलर्स और सत्यनारायण मातादीन आदि से चांदी की 11 सिल्लियां बरामद कर लीं. इन का कुल वजन लगभग 300 किलो है. पुलिस ने ज्वैलर्स को गिरफ्तार नहीं किया लेकिन उन्हें मुकदमा दर्ज कराने की छूट दे दी.

इस दौरान ज्वैलर्स प्रदीप गुप्ता, देवेंद्र अग्रवाल, सर्वती, अंशुल सोनी और भंवरलाल कपूरिया आदि ने शेखर और जतिन के खिलाफ चांदी की सिल्लियां धोखाधड़ी से बेचने के 6 मुकदमे पुलिस में दर्ज करा दिए थे. एसओजी चांदी की बाकी सिल्लियों को बरामद करने और मुख्य आरोपी शेखर व जतिन की तलाश में जुटी हुई थी.

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Crime story- चांदी की सुरंग: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जिस तरह सुरंग खोद कर डा. सुनीत सोनी के तहखाने से 540 किलोग्राम चांदी की 18 सिल्लियां चुराई गईं, वह हैरतंगेज था. लेकिन इस से भी हैरतंगेज बात यह थी कि यह काम डा. सुनीत के उसी दोस्त शेखर ने कराया था, जिस ने इतनी चांदी खरीदवाई  और बक्सों में भर कर डाक्टर के क्लीनिक के फर्श में दबवाई. कैसे  हुआ यह सब…

इसी साल फरवरी के महीने में जब चांदी के भावों में भारी उतारचढ़ाव चल रहा था, तो डा. सुनीत सोनी ने अपने घर में रखी चांदी की सिल्लियों को बेचने

का मन बनाया. बेचने के लिए पहले किसी सुनार या ज्वैलर्स को चांदी की सिल्ली या उस का छोटा टुकड़ा दिखाना जरूरी था ताकि खरीदार इस बात से संतुष्ट हो जाए कि चांदी में कोई खोट नहीं है.

चांदी बेचने का विचार मन में आने पर डा. सोनी ने भरोसे के लोगों से अपने मकान के बेसमेंट के फर्श को खुदवाया. क्योंकि चांदी जमीन खोद कर दबाए गए 2 बक्सों में सुरक्षित थी. फर्श खुदने पर डा. सोनी के होश उड़ गए. फर्श के नीचे दबाए गए दोनों बक्से कटे हुए थे और उन में रखी चांदी की सिल्लियां लापता थीं.

डाक्टर सोनी समझ नहीं पाए कि जमीन में गड़े बक्सों में से चांदी की सिल्लियां कहां गायब हो गईं. उन सिल्लियों को जमीन निगल गई या लोहे के बक्से खा गए. चांदी भी कोई कम नहीं 5 क्विंटल 40 किलो थी. पूरी 18 सिल्लियों में बंटी हुई.

डा. सोनी ने कटे हुए लोहे के बक्से निकलवाए तो देखा, वहां बड़े सुराखनुमा सुरंग बनी हुई थी. वह समझ गए कि इसी सुरंग के रास्ते से चांदी निकाली गई है. इसीलिए बाकायदा सुरंग बनाई गई थी. उन्होंने अपने एक कर्मचारी को टौर्च दे कर उस सुरंग में उतारा. वह कर्मचारी रेंगता हुआ सुरंग के अंदर घुसा. 5-7 फुट के बाद वह सुरंग बंद थी. यानी चांदी की चोरी के बाद सुरंग बंद कर दी गई थी.

डा. सुनीत सोनी राजस्थान की राजधानी जयपुर में रहते हैं. वैशाली नगर के आम्रपाली सर्किल के डी ब्लौक में उन का आलीशान मकान है. इसी मकान में उन्होंने मेडिस्पा नाम से अपना हौस्पिटल खोल रखा है. सोनी जयपुर के नामी हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन हैं.

कटे हुए और खाली बक्से देख कर डा. सोनी समझ गए कि किसी ने बहुत शातिराना अंदाज में चांदी की सिल्लियां चुराई हैं. यह किसी एक आदमी का काम नहीं था. चोर आगेपीछे या ऊपर से नहीं आए, बल्कि जमीन के नीचे सुरंग के रास्ते आए थे.

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डाक्टर ने बेसमेंट सहित पांच मंजिला मकान में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे थे. मकान के भूतल से ऊपर की मंजिल तक लोहे का मजबूत जाल लगा हुआ था. अच्छी गुणवत्ता वाले सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

मकान में नीचे की मंजिल पर उन का क्लीनिक था और ऊपर की मंजिल पर परिवार रहता था. मकान में आनेजाने वाले हरेक आदमी का नाम, पता रजिस्टर में लिखा जाता था.

डा. सोनी के मकान के बेसमेंट की जमीन में गाड़ कर रखी गई चांदी की सिल्लियों की जानकारी केवल 6 लोगों को थी. इन लोगों में डा. सोनी और उन की पत्नी के अलावा परिवार से बाहर के केवल 4 लोगों को यह राज पता था कि डाक्टर साहब ने सुरक्षा के लिहाज से अपने मकान में फर्श के नीचे 2 बक्सों में चांदी की सिल्लियां रख कर गड़वाई थीं.

इस का मतलब चांदी की चोरी उन लोगों में से किसी ने की थी, या फिर उन चारों में से किसी ने कभी यह राज किसी पांचवें आदमी को बता दिया था और उस आदमी ने इस वारदात को अंजाम दिया था.

सुरंग के रहस्य का पता लगाने के लिए उन्होंने खुद आसपास के मकानों पर जा कर अपने तरीके से देखा, लेकिन कहीं भी ऐसी कोई बात नजर नहीं आई जिस से यह पता चले कि सुरंग वहां से बनाई गई थी.

डा. सोनी के मकान के पीछे वाले प्लौट में एक महीने से जरूर कुछ काम चल रहा था. उस प्लौट के चारों ओर लोहे की चादरें और हरे रंग का नेट लगा रखा था. डा. सोनी उस प्लौट पर भी गए, लेकिन उन्हें ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया, जिस से पता चलता कि सुरंग उस प्लौट में से खोदी गई थी.

चोरी हुई चांदी की कीमत करोड़ों रुपए थी. डाक्टर सोनी ने चांदी निवेश के लिहाज से खरीदी थी. इस में कुछ चांदी उन के पुरखों की भी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने चांदी की सिल्लियां जमीन में गाड़ कर उस पर फर्श बनवा कर टाइल्स लगवा दी थीं.

डा. सोनी समझ नहीं पा रहे थे कि जमीन में दबी चांदी की बात बाहर कैसे निकली? यह तय था कि जिस ने भी चांदी चोरी की योजना बनाई, वह बहुत शातिर था.

काफी सोचविचार के बाद डा. सोनी ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया. उन्होंने 24 फरवरी, 2021 को वैशाली नगर थाने में चांदी चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने मकान के बेसमेंट के फर्श में सुरक्षा के लिए चांदी की सिल्लियां रखी हुई थीं. जरूरत पड़ने पर फर्श तुड़वा कर देखा, तो लोहे के 2 बक्सों में रखी चांदी गायब मिली.

दोनों बक्से बाहर निकाल कर देखे, तो उन्हें कटर से काटा गया था. मकान की उत्तर दिशा में एक सुरंग भी बनी हुई है. सोनी ने रिपोर्ट में केवल चांदी चोरी होने की बात बताई थी. चांदी की कीमत या वजन वगैरह बाद में बताने की बात कही. बहरहाल, पुलिस ने धारा 457 और 380 में मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस अफसरों ने मौके के हालात देखे, तो हैरान रह गए. चांदी चोरी की वारदात करने के लिए पीछे के प्लौट से डा. सोनी के मकान के बेसमेंट तक सुरंग खोदी गई थी. इसी सुरंग के रास्ते चांदी की चोरी की गई.

डा. सोनी ने हालांकि पुलिस रिपोर्ट में चांदी की कीमत या वजन नहीं बताया था, लेकिन चांदी रखने के लिए बनवाए लोहे के बक्सों को देख कर पुलिस अधिकारियों को यह अंदाज हो गया कि चोरी गई चांदी करोड़ों रुपए की रही होगी.

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एडिशनल पुलिस कमिश्नर अजयपाल लांबा के निर्देशन में एसीपी रायसिंह बेनीवाल, वैशाली नगर थानाप्रभारी अनिल जैमिनी और डीएसटी (पश्चिम) इंसपेक्टर नरेंद्र खींचड़ के नेतृत्व में चांदी चोरी की जांचपड़ताल शुरू की गई. फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर जांच की और साक्ष्य जुटाए.

सब से पहले डा. सोनी के पड़ोस का प्लौट खरीदने वाले का पता लगाया गया. 20 साल से खाली पड़ा यह प्लौट इसी 4 जनवरी को 97 लाख रुपए में बनवारी लाल जांगिड़ ने खरीदा था. इस प्लौट में केवल एक कमरा बना हुआ था.

बनवारी जयपुर जिले के जमवा रामगढ़ थाना इलाके के गांव टोडा मीणा का रहने वाला था. पेशे से कारपेंटर बनवारी आजकल जयपुर में बालाजी विहार फूलवाड़ी आमेर कुंडा में रहता था.

मौके की हालत देखने से पता चला कि इस प्लौट में बने कमरे का फर्श खोद कर डा. सोनी के मकान के बेसमेंट तक सुरंग बनाई गई थी. चांदी चोरी के बाद गड्ढे में मिट्टी डलवा कर सुरंग को बंद कर दिया गया था और फर्श पर टाइल्स लगवा दी गई थीं.

पुलिस ने मजदूरों को बुला कर वह बंद सुरंग खुदवाई. इस काम में 2 दिन लग गए. बाद में पुलिस अधिकारियों और एफएसएल टीम ने सुरंग की नापतौल की. सुरंग 26 फुट लंबी, 10 फुट गहरी और 3 फुट चौड़ी थी. इस बीच पुलिस जांचपड़ताल कर लोगों से पूछताछ करती रही.

प्लौट खरीदार बनवारी लाल जांगिड़ को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि प्लौट बेशक उस के नाम से खरीदा गया है, लेकिन सारे पैसे शेखर अग्रवाल ने दिए थे. शेखर अग्रवाल के डा. सोनी से घनिष्ठ पारिवारिक और व्यावसायिक संबंध थे.

बड़ा खिलाड़ी निकला शेखर

जयपुर में राम मार्ग श्याम नगर में रहने वाले शेखर की बड़ी चौपड़ पर एन.जे. बुलियन और नारायण लाल जग्गीलाल सर्राफ और सिटी पल्स में बोरला के नाम से सोनेचांदी के आभूषणों के शोरूम हैं. पुलिस ने शेखर की तलाश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

पुलिस ने एक मार्च को बनवारी लाल जांगिड़ के अलावा कालूराम सैनी, केदार जाट और रामकरण जांगिड़ को चांदी चोरी के मामले में गिरफ्तार कर लिया.

बनवारी जांगिड़ ने कुछ साल पहले शेखर के मकान पर फरनीचर का काम किया था. इस बीच वह शेखर का इतना विश्वासपात्र बन गया था कि उस ने उस के नाम से 97 लाख रुपए का प्लौट खरीद दिया था.

कालूराम जयपुर के कानोता थाना इलाके के पुराना बगराना माली की कोठी आगरा रोड का रहने वाला था. वह कई साल से शेखर अग्रवाल की बड़ी चौपड़ स्थित फर्म एन.जे. बुलियन और नारायण दास जग्गीलाल सर्राफ शोरूम पर काम करता था.

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केदार जाट मूलरूप से टोंक जिले में निवाई के गांव लुहारा का रहने वाला था. वह शेखर अग्रवाल का ड्राइवर था. वह रहता भी शेखर के घर पर ही था. रामकरण जांगिड़ जयपुर में बालाजी विहार (प्रथम) फूलबाड़ी पीली तलाई आमेर का रहने वाला था. वह भी पेशे से कारपेंटर था.

बाद में पुलिस ने 3 मार्च को इस मामले में मनराज मीणा, दिलखुश मीणा और मोहम्मद नईमुद्दीन को गिरफ्तार किया. इन में मनराज और दिलखुश सगे भाई थे.

टोंक जिले के दत्तवास थाना इलाके के गांव तुकिया के रहने वाले दोनों भाई मजदूरी और हलवाई का काम करते थे. कुछ समय पहले दोनों ने शेखर के कहने पर डा. सोनी के फार्महाउस पर तारबंदी का काम किया था. मोहम्मद नईमुद्दीन सवाई माधोपुर जिले के मलारना डूंगर थाना इलाके के गांव पीलवा नदी का रहने वाला था. वह जयपुर में रहता था. वह पहले इस मामले में एक मार्च को गिरफ्तार रामकरण जांगिड़ के पास कारपेंटर का काम करता था.

चांदी चोरी के मामले में ही बाद में पुलिस ने 3 आरोपियों को और गिरफ्तार किया. इस तरह 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.

पुलिस की पूछताछ में चांदी चोरी की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह फिल्मी कहानियों से भी एक कदम आगे थी.

डा. सुनीत सोनी जयपुर के नामी हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन हैं. उन की पत्नी अनुपमा सोनी भी डाक्टर हैं. डा. अनुपमा सोनी मिसेज एशिया इंटरनैशनल-2018 रह चुकी थीं. डाक्टर दंपति का अच्छा कामकाज होने से आमदनी भी अच्छी थी.

डा. सोनी को 3-4 साल पहले एक युवती ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था. वह युवती उन्हें ब्लैकमेल कर लाखों रुपए मांग रही थी. उस ने डाक्टर के खिलाफ पुलिस में भी मामला दर्ज करा दिया था. बाद में डा. सोनी ने उस युवती के ही खिलाफ हनीट्रैप का मामला दर्ज कराया था. इस मामले में वह युवती और उस के गिरोह की कई अन्य युवतियों को जयपुर पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था.

डाक्टर सोनी के शेखर से कई सालों से घनिष्ठ संबंध थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. डाक्टर साहब शेखर से घरपरिवार और दुखसुख की बात करते थे. जिस के पास पैसा होता है, वह अपने पैसों को बढ़ाने की सोचता है. इसीलिए कभीकभार डा. सोनी शेखर से पैसों के निवेश के बारे में भी सलाह ले लेते थे.

कुछ महीने पहले जब चांदी के भाव घट रहे थे, तब शेखर ने डा. सोनी को आयकर के छापों का डर दिखा कर चांदी में पैसा लगाने की सलाह दी.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सोनी को पसंद आया आइडिया क्यों पसंद आया

Crime Story- मुस्कुराती आयशा की दर्दभरी कहानी: भाग 1

तमाम तरह से प्रताडि़त होने के बावजूद आयशा अपने शौहर आरिफ को दिलोजान से मोहब्बत करती थी, लेकिन लालची आरिफ आयशा के बजाय अपनी प्रेमिका को चाहता था. निकाह के एक साल बाद आरिफ ने ऐसे हालात बना दिए कि आयशा को अपनी मौत का वीडियो बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा…

अहमदाबाद में साबरमती नदी की उफान मारती लहरों पर अटकी मेरी निगाहों में उस वक्त अतीत के लम्हे एकएक कर चलचित्र की तरह तैर रहे थे. रिवरफ्रंट के किनारे चहलकदमी करने वाले लोगों से बेपरवाह मेरे जेहन में सिर्फ जिंदगी के वे अफसोस भरे लम्हे उभर कर सामने आ रहे थे, जिन के कारण आज मेरी जिंदगी इतने अवसाद में भर चुकी थी कि मैं ने एक जिंदगी का सब से कठिन फैसला ले लिया था.

मैं अपने अब्बू लियाकत अली मरकाणी की 2 संतानों में सब से बड़ी थी, मुझ से छोटा एक भाई है. अब्बू पेशे से टेलर मास्टर थे. अब्बू बचपन से ही कहा करते थे कि मेरी आयशा बड़ी टैलेंटेड लड़की है. अब्बू ज्यादा पढ़लिख नहीं सके थे, लेकिन उन का सपना था कि उन के बच्चे पढ़लिख कर काबिल इंसान बनें और लोग उन्हें उन के बच्चों की शोहरत के कारण जानें.

अब्बू ने मुझे पढ़ालिख कर या तो आईएएस बनाने या टीचर बनाने का सपना देखा था. इधर अम्मी ने भी मुझे बचपन से ही घर के हर काम में पारंगत कर दिया था. वे कहा करती थीं कि पराए घर जाना है इसलिए अपने घर की जिम्मेदारियां संभाल कर ही ससुराल की जिम्मेदारियों के लिए तैयार होना पड़ता है. मेरा ख्वाब था कि मैं पीएचडी कर के लेक्चरर या प्रोफैसर बनूं.

लेकिन कहते हैं न कि इंसान की किस्मत में जो लिखा हो, होता वही है. मुझे राजस्थान के जालौर से बचपन से ही लगाव था. क्योंकि यहां शहर के राजेंद्र नगर में मेरे मामू अमरुद्दीन रहा करते थे. बचपन से ही जब भी स्कूल की छुट्टियां होती थीं तो मैं मामू के पास ननिहाल आ जाती थी.

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मामू भी कहते थे कि आयशा तुझे जालौर से जिस तरह का लगाव है उसे देख कर लगता है तेरी शादी यहीं करानी पडे़गी. बचपन में मामू की कही गई ये बातें एक दिन सच साबित हो जाएंगी, इस का मुझे उस वक्त अहसास नहीं था.

बात सन 2017 की है, मैं ने ग्रैजुएशन पूरी कर ली थी. हमेशा गरमियों की छुट्टियों की तरह उस साल भी मैं मामू के घर चली गई थी. लेकिन इस बार एक अलग अहसास ले कर लौटी. इस बार मेरी मुलाकात वहां जालौर के ही रहने वाले आरिफ खान से हुई थी. पता नहीं, वह कौन सा आकर्षण था कि पहली ही नजर में आरिफ मेरे दिल में उतर गया. उस से मिलने के बाद दिल में अजीब सा अहसास जागा, पहली मुलाकात के बाद जब वापस लौटी तो लगा जैसे कोई ऐसा मुझ से दूर चला गया है, जिस के बिना जीवन अधूरा है.

मुझे लगा शायद मैं उसे अपना दिल दे बैठी थी. बस यही कारण था कि आरिफ से मिलनेजुलने का सिलसिला लगातार शुरू हो गया. आरिफ में भी मैं ने खुद से मिलने की वैसी ही तड़प देखी, जैसी मुझ में थी. मिलनेजुलने का सिलसिला शुरू होते ही हम दोनों अपने परिवारों के बारे में भी एकदूसरे को जानकारी देने लगे.

आरिफ अपने पिता बाबू खान के साथ जालौर की एक ग्रेनाइट फैक्ट्री में काम करता था. उस के अपने पुश्तैनी घर के बाहर 2 दुकानें थीं, जो उस ने किराए पर दे रखी थीं. आरिफ ग्रेनाइट फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर तैनात था, जबकि उस के पिता कंस्ट्रक्शन कंपनी की देखरेख का काम करते थे.

जल्द ही हम दोनों की मुलाकातें प्यार में बदल गईं. आरिफ से बढ़ते प्यार के बारे में अपनी मामीजान को सारी बात बताई तो उन्होंने मामा से आरिफ के बारे में बताया. मामा ने पहले आरिफ से मुलाकात की और उस से जानना चाहा कि क्या वह सचमुच मुझ से प्यार करता है. जब उस ने कहा कि वह मुझ से निकाह करना चाहता है तो मामूजान ने आरिफ के अब्बा व अम्मी से मुलाकात की. उस के बाद जब सब कुछ ठीक लगा तो मामू ने मेरे अब्बू व अम्मी को आरिफ के बारे में बताया.

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शादी में बदल गया प्यार

मिडिल क्लास फैमिली की तरह बेटी के जवान होते ही मातापिता को बेटी के हाथ पीले करने की फिक्र होने लगती है. मेरे अब्बू  और अम्मी मेरे लिए काबिल शौहर तथा एक भले परिवार की तलाश कर ही रहे थे.

मामू ने अब्बू को यह भी बता दिया कि उन्होेंने आरिफ व उस के परिवार के बारे में पता कर लिया है. अच्छा खातापीता और शरीफ परिवार है. अब्बू को भी लगा कि चलो बेटी ननिहाल स्थित अपनी ससुराल में रहेगी तो उन्हें  भी चिंता नहीं रहेगी. इस के बाद मेरे परिवार ने आरिफ के परिवार वालों से मिल कर आरिफ से मेरे रिश्ते की बात चलानी शुरू की. एकदो मुलाकात व बातचीत के बाद आरिफ से मेरा रिश्ता पक्का हो गया.

6 जुलाई, 2018 को आरिफ से मेरे निकाह की रस्म पूरी हो गई और मैं आयशा आरिफ खान के रूप में नई पहचान ले कर अपने मायके से ससुराल जालौर पहुंच गई. हालांकि शादी में दानदहेज देने की कोई बात तय नहीं हुई थी, लेकिन अब्बा ने शादी में अपनी हैसियत के लिहाज से जरूरत की हर चीज दी. आरिफ की मोहब्बत में निकाह के कुछ दिन कैसे बीत गए, मुझे पता ही नहीं चला.

निकाह के 2 महीने बाद ही मेरी जिंदगी में संघर्ष का एक नया अध्याय शुरू हो गया. 2 महीने के भीतर ही मुझे समझ आने लगा कि निकाह के बाद पहली रात को अपने अंकपाश में लेते हुए आरिफ ने मुझ से ताउम्र मोहब्बत करने और जिंदगी भर साथ निभाने का जो वादा किया था, वह दरअसल एक फरेब था. असल में उस की जिदंगी में पहले से ही एक लड़की थी.

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अगले भाग में पढ़ें- आरिफ की बेवफाई आई सामने

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मैं अब भी अपना परिवार जोड़ना चाहती थी. मुकदमा दर्ज होने के बाद भी मैं आरिफ को समझाती रही कि अगर वह मुझे अपना लेगा तो अब्बू से कह कर सब ठीक करा दूंगी. मैं हर तरीके से अपने परिवार को वापस जोड़ने की कोशिश कर रही थी. लेकिन आरिफ मेरी हर बात को बारबार नकारता रहा.

22 फरवरी, 2021 को मैं ने आरिफ से आखिरी बार फोन पर बात की थी. लेकिन आरिफ ने उस दिन जो कुछ कहा, उस ने मुझे भीतर से तोड़ दिया. उस ने कहा कि वह मर भी जाए तो भी मुझे ले कर नहीं जाएगा.

मैं ने आरिफ से कहा कि अगर वह ले कर नहीं जाएगा तो मैं जान दे दूंगी. इस पर आरिफ ने कहा अगर मरना है तो मर जाए, लेकिन मरने से पहले वीडियो बना कर भेज दे. मैं ने भी वादा कर लिया कि ठीक है, मरूंगी जरूर और वीडियो भी भेजूंगी. उसी दिन से मन जिंदगी के प्रति निराशा से भर गया था.

25 फरवरी को मैं उसी निराशा और हताशा में मन की शांति के लिए साबरमती रिवरफ्रंट पर जा पहुंची. यहीं पर बैठेबैठे अतीत के पन्नों  को पढ़ते हुए हताशा ने मुझे एक बार फिर इस तरह घेर लिया कि सोचा जब जीवन खत्म ही करना है तो क्यों न आज ही कर लिया जाए.

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वीडियो में उस ने जिक्र किया कि इस मामले में आरिफ को परेशान न किया जाए. मैं आरिफ से प्यार करती थी, इसलिए उस से किया गया वादा पूरा करने के लिए मैं ने एक वीडियो बनाया.

आयशा का आखिरी वीडियो

‘हैलो, अस्सलाम आलैकुम, मेरा नाम आयशा आरिफ खान है और मैं अब जो करने जा रही हूं, अपनी मरजी से करने जा रही हूं. मुझ पर कोई दबाव नहीं था. अब मैं क्या बोलूं? बस, यह समझ लीजिए कि अल्लाह द्वारा दी गई जिंदगी इतनी ही है और मेरी यह छोटी सी जिंदगी सुकून वाली थी. डियर डैड आप कब तक लड़ेंगे अपनों से? केस वापस ले लीजिए. नहीं लड़ना.

‘आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी. प्यार करते हैं आरिफ से, उसे परेशान थोड़े ही न करेंगे. अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे. चलो, अपनी जिंदगी तो यहीं तक है.

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‘मैं खुश हूं कि मैं अल्लाह से मिलूंगी और पूछूंगी कि मुझ से गलती कहां हो गई. मां बाप बहुत अच्छे मिले, दोस्त भी बहुत अच्छे मिले, पर शायद कहीं कमी रह गई मुझ में या फिर तकदीर में. मैं खुश हूं सुकून से जाना चाहती हूं, अल्लाह से दुआ करती हूं कि वो दोबारा इंसानों की शक्ल न दिखाए.

‘एक चीज जरूर सीखी है मोहब्बत करो तो दोतरफा करो, एकतरफा में कुछ हासिल नहीं है. कुछ मोहब्बत तो निकाह के बाद भी अधूरी रहती हैं. इस प्यारी सी नदी से प्रेम करती हूं कि ये मुझे अपने आप में समा ले.

‘मेरे पीछे जो भी हो प्लीज ज्यादा बखेड़ा खड़ा मत करना, मैं हवाओं की तरह हूं, सिर्फ बहना चाहती हूं. मैं खुश हूं आज के दिन, मुझे जिन सवालों के जवाब चाहिए थे वो मिल गए, जिसे जो बताना चाहती थी सच्चाई बता चुकी हूं. बस इतना काफी है. मुझे दुआओं में याद रखना. थैंक यू, अलविदा.’

आरिफ से मेरा यही वादा था, इसलिए इस वीडियो को मैं ने आरिफ और उस के परिवार वालों को सेंड कर दिया है ताकि उस को समझ आ जाए कि मैं वाकई उस से सच्ची मोहब्बत करती थी और मरने के बाद भी उसे किसी पचडे़ में नहीं फंसाना चाहती.

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इस वीडियो संदेश को आरिफ को भेजने के बाद मैं ने अपने अब्बू व अम्मी से बात की. उन्हेंबता दिया कि मैं साबरमती के किनारे खड़ी हूं और मरने जा रही हूं. हालांकि

अब्बू  ने खूब मन्नतें की कि कोई गलत कदम न उठाऊं. लेकिन मैं ने खुद की जिंदगी खत्म  करने का फैसला ले लिया था. मरने से पहले भी आरिफ के लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ था इसीलिए मैं ने अब्बू से कहा कि वे आरिफ और उस के खिलाफ दर्ज मामले को वापस ले लें.

मैं ने साबरमती के किनारे खड़े हो कर अपने इस फोन और बैग को किनारे रखा और साबरमती के सामने अपनी बांहें फैला दीं और उस के बाद मैं ने अपना भार साबरमती पर छोड़ दिया.

पति ने कहा था मर जाओ, मुझे वीडियो भेज देना

आयशा आरिफ खान ने 25 फरवरी, 2021 को सुसाइड किया था. उस से पहले आयशा ने एक वीडियो बनाया था. आयशा ने इस वीडियो को बनाने के बाद अपने पति को फोन कर के कहा था कि वह मरने जा रही है, तो आरिफ ने उस से कहा कि

वह मरने का वीडियो उसे भेजे तो वह यकीन कर लेगा.  आरिफ से बात करने के बाद आयशा ने अपने मातापिता से फोन पर बात की थी. पिता ने भांप लिया था कि बेटी बहुत परेशान व डिप्रेशन में है. उन्होंने बेटी को ऊंचनीच समझाते हुए उसे कोई भी गलत कदम न उठाने और फौरन घर लौटने के लिए कहा. लेकिन तब तक आयशा अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला कर चुकी थी.

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लिहाजा उस ने इस के कुछ देर बाद ही साबरमती नदी में छलांग लगा दी. कुछ लोगों ने जब आयशा को नदी में कूदते देखा तो रिवरफ्रंट औफिस को सूचना दी, जिस के बाद पुलिस व गोताखोरों ने कई घंटे बाद उस की लाश बाहर निकाली.

चंद रोज बाद ही आयशा की मौत का आखिरी वीडियो वायरल हुआ तो आयशा की दर्दभरी कहानी सब के सामने आई, जिस ने लोगों को झकझोर कर रख दिया.

अहमदाबाद के आयशा सुसाइड केस में गुजरात पुलिस ने उस के पति आरिफ के खिलाफ वायरल वीडियो और परिजनों की शिकायत के बाद आत्महत्या के लिए उकसाने, प्रताडि़त करने व दहेज की मांग करने का मुकदमा दर्ज कर लिया.

आयशा के सुसाइड के बाद जब उस की मौत का वीडियो वायरल हुआ तो आरिफ घर से फरार हो गया. गुजरात पुलिस जब जालौर में उस के घर पहुंची तो परिवार वालों ने बताया था कि वह एक शादी में गया था और वहीं से कहीं चला गया है. इस के बाद मोबाइल लोकेशन के आधार पर 3 मार्च, 2021 को आरिफ को पाली से अरेस्ट किया गया.

बाद में अदालत से 3 दिन का रिमांड मिलने के बाद पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो पुलिस भी यह देख कर हैरान रह गई कि आरिफ को आयशा के सुसाइड का कोई गम नहीं है. आरिफ का बर्ताव चौंकाने वाला था क्योंकि उस के चेहरे पर आयशा की मौत को ले कर रत्ती भर भी अफसोस नजर नहीं आया. वह ऐसा बर्ताव कर रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो. उस के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

आरिफ से पूछताछ में आयशा के गर्भपात के बारे में भी सवाल किए गए. उस ने बताया कि गर्भपात के बाद जब आयशा की हालत गंभीर थी तो वह बुलाने के बावजूद उसे देखने तक नहीं गया था.

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बेवफाई आई सामने

घर वाली के रूप में मेरे शरीर को भोगने के अलावा मोहब्बत तो आरिफ अपनी उस प्रेमिका से करता था, जिस से अब तक वह चोरीछिपे वाट्सऐप पर चैट और वीडियो काल कर के दिन के कई घंटे बातचीत में बिताता था. निकाह के 2 महीने बाद जब आरिफ के फोन से यह भेद खुला तो मेरे ऊपर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा.

आरिफ बेवफा होगा, इस की मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी. एक औरत कुछ भी बांट सकती है, लेकिन पति का बंटवारा उसे कतई गवारा नहीं. जाहिर था, मैं भी एक औरत होने के नाते इस सोच से अछूती नहीं रही. मैं ने आरिफ की इस बात का विरोध किया कि आखिर मुझ में ऐसी कौन से कमी है, जो वह किसी दूसरी औरत में मेरी उस कमी को तलाश रहा है.

उस दिन आरिफ ने जो कहा मेरे लिए वह किसी कहर से कम नहीं था. आरिफ ने मुझे बताया कि वह तो शादी से पहले ही एक लड़की से प्यार करता था, मगर जातपात की ऊंचनीच के कारण परिवार वाले उस से शादी के लिए तैयार नहीं हुए.

उस ने तो बस परिवार की खातिर मुझ से निकाह किया था. यह बात मेरे लिए कितनी पीड़ादायक थी, इस का अहसास दुनिया की हर उस औरत को आसानी से हो सकता है जिस ने अपने पति से दिल की गहराइयों से प्यार किया होगा.

यह दुख, दर्द, तकलीफ मेरे लिए असहनीय थी. फिर अकसर ऐसा होने लगा कि आरिफ उस प्रेम कहानी को ले कर मेरे ऊपर हाथ छोड़ने लगा. इतना ही नहीं, अब तो वह चोरीछिपे नहीं मेरी मौजूदगी में ही अपनी प्रेमिका से वीडियो काल तक करने लगा था. आंखों से आंसू और दिल में दर्द लिए मैं सब कुछ तड़प कर सह जाती थी.

आरिफ की कमाई के साधन तो सीमित थे, लेकिन उस की आशिकी के कारण उस के खर्चे बेहिसाब थे. इसलिए जब भी उसे पैसे की जरूरत होती तो वह मुझे जरूरत बता कर दबाव बनाता कि मैं अपने अब्बू से पैसे मंगा कर दूं.

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जिंदगी में पति के साथ दूरियां तो बन ही चुकी थीं, सोचा कि चलो इस से ही आरिफ के साथ संबध सुधर जाएंगे. एकदो बार मैं ने 10-20 हजार मंगा कर आरिफ को दे दिए. लेकिन पता चला कि ये पैसा आरिफ ने अपनी महबूबा के साथ अय्याशियों के लिए मंगाया था.

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कुछ समय बाद ऐसा होने लगा कि आरिफ ने मुझे एकएक पाई के लिए तरसाना शुरू कर दिया और अपनी सारी कमाई आशिकी में लुटाने लगा. पैसे की कमी होती तो मुझ पर अब्बू से पैसा लाने का दबाव बनाता.

आखिर मैं भी एक साधारण परिवार की लड़की थी, लिहाजा मैं ने कह दिया कि अब मैं अब्बू से कोई पैसा मंगा कर नहीं दूंगी.

दरअसल, मैं इतना सब होने के बाद खामोश थी तो इसलिए कि मैं अपने गरीब मातापिता की इज्जत बचाना चाहती थी. पति से मिलने वाले दर्द को छिपाते हुए मैं हर पल एक नई तकलीफ से गुजरती थी, लेकिन इस के बावजूद सहती रही.

मेरा दर्द सिर्फ इतना नहीं था. एक बार आरिफ मुझे अहमदाबाद मेरे मायके छोड़ गया. मैं उस समय प्रैग्नेंट थी. आरिफ ने कहा था कि जब मेरे अब्बू डेढ़ लाख रुपए दे देंगे तो वह मुझे अपने साथ ले जाएगा.

अचानक इस हाल में मायके आ जाने और आरिफ की शर्त के बाद मुझे परिवार को अपना सारा दर्द बताना पड़ा.

प्रैग्नेंसी के दौरान एक बार आरिफ ने मेरी पिटाई की थी. उसी के बाद से मुझे लगातार ब्लीडिंग होने लगी थी. मायके आने के बाद अब्बू ने मुझे हौस्पिटल में भरती कराया.

तब डाक्टर ने तुरंत सर्जरी की जरूरत बताई, लेकिन गर्भ में पल रहे मेरे बच्चे को नहीं बचाया जा सका. इस के बाद जिंदगी में पूरी तरह अवसाद भर चुका था.

प्रैग्नेंसी के दौरान आरिफ के बर्ताव से मैं बुरी तरह टूट गई थी. लेकिन ऐसे में अम्मीअब्बू ने मुझे सहारा दिया और मेरा मनोबल बढ़ा कर कहने लगे कि अगर आरिफ नालायक है तो इस के लिए मैं क्यों अपने को जिम्मेदार मान रही हूं.

लेकिन मेरी पीड़ा इस से कहीं ज्यादा इस बात पर थी कि इतना सब हो जाने पर भी आरिफ और उस के परिवार वाले मुझे देखने तक नहीं आए. मुझे लगने लगा कि आरिफ और उस के परिवार के लिए शायद पैसा ही सब कुछ है. वे यही रट लगाए रहे कि जब तक पैसा नहीं मिलेगा, मुझे अपने साथ नहीं ले जाएंगे.

मैं या अब्बूअम्मी जब भी आरिफ या उस के परिवार वालों से बात कर के ले जाने के लिए कहते तो वे फोन काट देते.

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निकाह के बाद दहेज के लिए किसी लड़की की जिंदगी नर्क कैसे बनती है, मैं इस का जीताजागता उदाहरण बन चुकी थी.

सब कुछ असहनीय था

मैं थक चुकी थी. मैं ने परिवार वालों को कुछ नहीं बताया. लेकिन मेरे बच्चे की मौत और आरिफ का मुझ से मुंह मोड़ लेना असहनीय हो गया था. लिहाजा थकहार कर 21 अगस्त, 2020 को मैं ने अब्बू के साथ जा कर अहमदाबाद के वटवा थाने में आरिफ और अपने सासससुर तथा ननद के खिलाफ दहेज की मांग तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया.

10 मार्च, 2020 से आरिफ जब से मुझे अब्बू के घर छोड़ कर गया था, तब से मुझे लगने लगा था कि मैं अपने गरीब परिवार पर बोझ बन चुकी हूं. इसलिए मैं ने अहमदाबाद के रिलीफ रोड पर स्थित एसवी कौमर्स कालेज में इकोनौमिक्स से प्राइवेट एमए की पढ़ाई शुरू कर दी और एक निजी बैंक में नौकरी करने लगी. जिंदगी चल रही थी, गुजर रही थी लेकिन न जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि जिदंगी पराई हो गई है.

अगले भाग में पढ़ें- आयशा ने मरने से पहले बनाया आखिरी वीडियो

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